लेखिका- रितु वर्मा
धीरज और रुचि की जिंदगी में सबकुछ परफैक्ट था. 2 बच्चे, अच्छी नौकरी, अपना घर और क्या चाहिए किसे जिंदगी से? पर फिर एक रोड ऐक्सिडैंट में धीरज ने रुचि को खो दिया. बदहवास धीरज ने जिंदगी को ही त्याग दिया. आज रुचि की मृत्यु के 3 वर्षों बाद धीरज की बेटी आन्या ने घर छोड़ दिया क्योंकि वह अपने घर के बो?िल वातवरण से तंग आ गई थी और उन का बेटा समर खुशी को तलाशते हुए ड्रग्स की दुनिया में खो गया है. धीरज को जब तक होश आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी. काश, धीरज रुचि के दुख को अपने ऊपर हावी न होने देता. मिथलेश 36 वर्ष की थी जब दुखों का पहाड़ उस के ऊपर टूट पड़ा था. उस के पति की अचानक मृत्यु हो गई थी. एक महीने तक तो मिथलेश को होश ही नहीं था पर जब उस का 12 वर्ष का बेटा अनिकेत चोरी करते हुए अपने नाना के घर पकड़ा गया तो मिथलेश ने बच्चों की तरफ ध्यान देना आरंभ किया.
मातापिता के कहने के बावजूद मिथलेश ने मायके में न रह कर किराए पर छोटा सा घर ले लिया था. छोटी सी नौकरी से शुरुआत की और धीरेधीरे तरक्की करती गई. मम्मी को मेहनत करते हुए देख कर बच्चों ने भी हौसला दिखाया और आज उन का परिवार सब रिश्तेदारों के लिए एक मिसाल है. पर हर औरत या आदमी के हौसले मिथलेश जैसे नहीं होते. रेखा के पति राजीव की मृत्यु होते ही वह बच्चों के साथ मायके आ गई थी. शुरू में तो भाईभाभी ने पान के पत्ते की तरह प्यार फेरा पर बाद में रेखा और उस के बच्चे उन के लिए एक बो?ा बन गए थे.
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आज रेखा और उस के बच्चे एक परजीवी की तरह पल रहे हैं. अगर रेखा ने मेहनत व हौसले की राह अपनाई होती तो आज उन लोगों की जिंदगी की दिशा ही अलग होती. जिंदगी के सफर के उतारचढ़ाव आसानी से तय हो सकते हैं अगर आप के साथ आप का हमसफर हो. पर अगर आप इस सफर में अकेले भी हैं तो भी हिम्मत और हौसले को अपना साथी बना लें. परजीवी की तरह आरामदायक जिंदगी जीने से कहीं बेहतर है अपने घर में नमकरोटी अपने बच्चों के साथ खा लें. हमारे समाज में आज भी पति और पत्नी के रोल अलगअलग होते हैं. घर की आर्थिक जिम्मेदारी आज भी पति के हाथों में ही होती है तो पत्नी का रोल सामाजिक होता है. ऐसे में अगर जीवनसाथी का हाथ छूट जाए तो जिंदगी का पूरा समीकरण गड़बड़ा जाता है. अगर आप या आप का कोई अपना जीवनसाथी के बिछोह से गुजर रहा है तो निम्न छोटेछोटे सु?ाव आने वाले सफर की राह को आसान बना देंगे :
1. विक्टिम कार्ड न खेलें : अगर जीवन मे कोई दुख आया है तो डट कर उस का सामना कीजिए. विक्टिम बन कर जिंदगी गुजारना कायरों और कामचोरों का काम है. अपनी जिंदगी की कहानी के हीरो बनें, विक्टिम नहीं. विक्टिम बन कर आप, बस, कुछ देर के लिए दूसरों की सहानुभूति के पात्र बन सकते हैं. अच्छा होगा कि आप थोड़ा हौसला दिखाएं और जीवन की राह पर आगे बढ़ते जाएं. आत्मसम्मान के साथ जीना ही असली जीना है.
2.रिश्तों की गरिमा बना कर रखें : आप को आप के भाईबहन या और भी दूरनजदीक के रिश्तेदार सहारा देने की कोशिश करेंगे. मदद अवश्य लें पर बस, उतनी ही जितनी जरूरी हो. अपने भाईबहन या अन्य रिश्तेदारों की आर्थिक स्थिति का फायदा उठाते हुए उन्हें इमोशनल ब्लैकमेल मत करें. ऐसा करने से भले ही वे मदद कर दें पर आप की गरिमा धूमिल हो जाएगी.
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3. बनें दूसरों के लिए रोल मौडल : अगर किसी मुश्किल परिस्थिति में आप फंसे हुए हैं तो यह आप का फैसला है कि आप को हार मान कर घुटने टेक देना है और बाकी जिंदगी घुटघुट कर रोतेबिसूरते बितानी है या फिर अपने अंदर शक्ति का संचार कर डट कर मुकाबला करना है. ऐसी ही स्थिति में आप के अंदर के गुणों का आकलन होता है. अपने साहस को जाग्रत कर के आत्मसम्मान के साथ जिंदगी गुजारिए.
4. स्वीकार करें और आगे बढ़ें : सपनों की दुनिया में आंख मींच कर रहने से अच्छा है कि आप जमीनी हकीकत को स्वीकार करें और शांति के साथ जिंदगी गुजारें. बहुत बार देखने में आता है कि हम अपने साथ होने वाले हादसे को स्वीकार नहीं करना चाहते हैं. उस हादसे से उपजी विषमताओं को अगर आप नजरअंदाज करेंगे तो आप को ही आगे और मुश्किल होगी. बेहतर होगा कि आप शांतचित्त से स्थिति को स्वीकार करें और आगे बढ़ें.
5. राजदार बनाएं मगर सोचसम?ा कर: अकेलापन बहुत बार अंदर से कचोटता है और इंसान बेबस हो कर किसी के साथ अपने दिल की बात बांटना चाहता है. अपने मन की बात किसी के साथ शेयर करने में कुछ गलत नहीं है परंतु सोचसम?ा कर ही अपने दिल की बात शेयर करें. ऐसा न हो कि आप के राज बाद में आप को हंसी या दया का पात्र बना दें.
6. दोस्तों का दायरा बढ़ाएं : सच्चे दोस्त जरूर एक या दो होते हैं परंतु जरूरी नहीं कि वे हर समय मौजूद रहें. इसलिए अपने दोस्तों का दायरा बढ़ाएं. जरूरी नहीं ये दोस्त आप के सच्चे साथी हों पर बाहर घूमनेफिरने के लिए अच्छे हों. जितना बड़ा आप के दोस्तों का दायरा होगा उतना ही आप सुरक्षित महसूस करेंगे.
7 जीवन चलने का नाम : जीवन में अगर किसी भी घटना को पकड़ कर रखेंगे तो जल्द ही किसी बीमारी का शिकार हो जाएंगे. जीवन का दूसरा नाम ही आगे बढ़ते जाना है. रुके हुए पानी की तरह ही रुके हुए विचारों में भी सड़ांध आ जाती है, इसलिए न रुकें, न थमें, धीरेधीरे अपने पथ पर चलते चलें.