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दीवार – भाग 2 : इंस्पेक्टर जड़ेजा का क्या मकसद था

लेखक- अमित अरविंद जोहरापुरकर

“यहां रोकिए, मुझे इन से बात करनी है,” महाराज बोले. “उस की इजाजत नहीं है,” इंस्पेक्टर जड़ेजा तुरंत बोले. तभी इंद्रपुरी महाराज ने एक जींस और टीशर्ट पहनी हुई एक गौरवर्णी युवती को देखा. “यह देवीजी कौन हैं? बावरा तो लग नहीं रहीं,” उन्होंने पूछा.

“यह तो बड़ा सिरदर्द है. मुंबई से लोग यहां सोशल सर्विस करने आते हैं और ख्वाहमख्वाह हमारी परेशानी बढ़ती है…” उन्होंने बड़ी ही तुच्छता से जवाब दिया. जीप आगे चल कर दीवार पार कर के वापस रास्ते पर खड़ी कर दी.

“देखिए, कुछ ज्यादा चलना नहीं पड़ेगा आप लोगों को यहां. इतना सा घूम कर तो बाहर आ सकते हैं. लेकिन इस दीवार की वजह से अब यह इलाका कितना साफसुथरा दिख रहा है, वह सोचिए.” जीप रुक गई तो सारे लोग नीचे उतर गए. वे लोग जहां खड़े थे, वह जगह दीवार के मध्य थी.

“आप लोग इन लोगों को उन के हाल पर जीने दें, उन्हें पढ़ाईलिखाई की सुविधा दें और शराब के धंधे ना करवाएं तो वैसे ही गंदगी कम हो जाएगी,” महाराज छद्महास्य कर के बोले. इंस्पेक्टर जड़ेजा उस पर कुछ बोलने के लिए सोच कर झाला की ओर देख रहे थे, लेकिन तभी एकदम से खट कर के आवाज आई और अपने दाहिने हाथ से सिर पकड़ कर इंस्पेक्टर जड़ेजा नीचे गिर गए.

झाला दौड़ते हुए उन के पास गया और उन्हें सीधा किया. तब तक नीचे जमीन पर काफी खून उतर गया था. उन के दाहिने कान पर गोली लगी थी, ऐसा प्रतीत हुआ. झाला ने नब्ज देख कर कहा, “शायद, ये तो चल बसे हैं.”अचानक झाला उठ कर खड़ा हुआ और महाराज के सामने बंदूक तान कर बोला, “पीछे हटो.. दीवार से सट कर खड़े हो जाओ, और हाथ ऊपर करो.”

“मैं ने उन्हें नहीं मारा. मैं तो उन से ही बात कर रहा था. और मेरे पास पिस्तौल कहां है,” महाराज बोले. लेकिन झाला की घिनौनी खूंख्वार नजरें देख कर उस ने जो कहा वही करना मुनासिब समझा और वे पीछे हट कर दीवार के पास खड़े हो गए. तब तक झाला ने फोन कर के पुलिस एम्बुलेंस मंगवा ली.

स्टेडियम की तरफ खड़े कुछ लोग वहां तब तक आ पहुंचे थे. “अभी हम ने बंदूक की आवाज सुनी. अब तो यहां पुलिस भी सलामत नहीं है. यह बस्ती तो हटवानी ही पड़ेगी,” उन में से एक आदमी बोला. लोगों की भीड़ जमा होने के पहले ही पुलिस की कार और एम्बुलेंस वहां आ पहुंची.

उन्होंने झाला से बात की और इंस्पेक्टर जड़ेजा का शव जहां पड़ा था, वहां बैरिकेड लगा कर बंद की, और एम्बुलेंस से उतरे हुए स्टाफ ने उन का जिम्मा ले लिया. 2 पुलिस वाले इंद्रपुरी महाराज को और दूर ले गए. आधे घंटे बाद झाला एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को ले कर महाराज के पास पहुंचा, तब तक पुलिस ने पंचनामा कर बौडी अस्पताल भिजवा दी थी.

एक अधिकारी ने कहा,  “देखिए, औकात दिखा दी आप लोगों ने.” उन का नाम एसपी नागर है, ऐसा महाराज ने उन की छाती पर लगा हुआ देखा. वे काफी वरिष्ठ लग रहे थे. “साहब, मुंह संभाल कर बात कीजिए. मैं केंद्र सरकार के एक आयोग का प्रतिनिधि हूं, और इंस्पेक्टर जड़ेजा तो मुझे यह दीवार दिखा रहे थे, तब उन की हत्या हुई.”

“मुझे भी यह सब क्या हुआ, कैसे हुआ, समझ नहीं आ रहा है. गोली तो आप की बस्ती से ही आई है. आप ही उन को अंदर ले गए थे. तब तक सारी तैयारी कर ली होगी आप लोगों ने,” एसपी नागर मुसकरा कर बोले. “यह तो गलत बात है साहब. गोली कहां से आई, यह तो किसी ने नहीं देखा.” “ठीक है, आप को हमारे साथ पुलिस स्टेशन आना पड़ेगा,” वहां बढ़ती हुई भीड़ और उस में दिखाई दिए कुछ रिपोर्टर्स को देख कर वह बोले.

असिस्टेंट कमिश्नर औफिस में बाहर ही एक लकड़ी की बेंच पर इंद्रपुरी महाराज 2 घंटे तक बैठे रहे. आखिर शाम को 5 बजे उन्हें अंदर बुलाया गया. “हमारे पास रिपोर्ट आ गई है. गोली काफी दूर से दागी गई थी. शायद दूरबीन लगी हुई बंदूक इस्तेमाल हुई है. “यह काफी गंभीर मसला है. अगर आप लोगों में से जो खूनी है, वह खुद सामने आ कर आत्मसमर्पण नहीं करता है, तो हम परसों सुबह यह बावरा बस्ती खाली कर देंगे.

“शायद मिलिटरी की भी मदद लेनी पड़े. दिनदहाड़े एक पुलिस अफसर की हत्या होने लगे तो पब्लिक हमें क्या कहेगी?” असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर एसपी नागर ने कहा. “आप ऐसा कैसे कर सकते हैं?” महाराज चौंक कर बोले. “हमें क्या करना है, यह आप हमें मत सिखाइए. पुलिस जान जोखिम में डाल कर काम करती है. वह ऐसे चोरों से गोलियां खाने के लिए नहीं.

“यह काफी गंभीर गुनाह है. वैसे भी यह बस्ती गैरकानूनी है. ऐसी जगह को पनपने देना, मतलब हमारे इस खूबसूरत शहर को जानबूझ कर गंदा करना है.””मुझे आयोग के कुछ लोगों से और दिल्ली के भी कुछ अधिकारियों से बात करनी पड़ेगी,” महाराज बोले. “जरूर बोलिए, आप के पास चौबीस घंटे हैं. उतने समय में आप खूनी को हाजिर कीजिए,” एसपी नागर हंस कर बोले.

वहां से एक रिकशा पकड़ कर महाराज कलवाड पुलिस स्टेशन पर आए और अपनी कार ले कर वह बावरा बस्ती की ओर चल पड़े. वहां पहुंच कर लंबी दीवार देख उन के पेट में भी बल पड़ गए. वह बचपन से ही अहमदाबाद आ रहे थे. पहले पिताजी के साथ और बाद में खुद अकेले ही. पहले शहर के तालाब से सट कर जो बस्ती थी, वहां बावरा लोग रहते थे. अब यहां की जगह पर उन्हें 35 साल से ज्यादा का समय हो गया था.

स्टेशन की मुलाकात

लेखिका- अर्चना त्यागी

सुरेखा ने सुबह के नाश्ते के बाद घर का काम खत्म किया और टीवी चला कर बैठ गई. उस के हाथ सलाई घुमा रहे थे. सत्यम के लिए नए डिजाइन का एक स्वेटर तैयार हो रहा था.

सीरियल में जैसे ही ब्रेक हुआ, ज्योत्सना की आवाज़ सुनाई दी. वह योगा करने के बाद रसोई में आ गई थी चाय बनाने के लिए. “चाय का भगोना कहां रख दिया है?” ज्योत्सना रसोई से ही चिल्लाई.

सुरेखा ने वहीं बैठेबैठे जवाब दिया, “बरतनस्टैंड में रखा है.”

ज्योत्सना की गुस्से में भरी आवाज़ सुनाई दी, “रोज़ ही मैं इस टाइम चाय बनाती हूं, तो बरतन संगवाए क्यों जाते हैं? सुरेखा चुप हो कर सब सुन रही थी. ज्योत्सना बड़बड़ा रही थी, “नाक में दम कर रखा है. कुछ भी काम करने जाओ, यह औरत पहले ही वहां पहुंच जाती है. हे प्रकृति, किसी के बेटे की शादी में ऐसा दहेज़ न आए.”

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सीरियल ख़त्म हुआ तो सुरेखा रसोई में आई, “लाइए मैं बना देती हूं चाय.”

ज्योत्सना को उसे सुनाने का बहाना मिल गया. “मुझ पर रहम करो. बस, अपनी बेटी को बिठा कर खिलाती रहो जिसे तुम ने कुछ नहीं सिखाया है. मैं अब भी अपने लायक हूं,” उन्होंने कप में चाय डालते हुए कहा.

सुरेखा रसोई से बाहर आ गई, “मेरी शुभि को सब काम आता है दीदी. वह अपने काम में पूरा टाइम दे पाए, इसलिए मैं उसे नहीं करने देती हूं. आप को भी पता है, उस की पीएचडी पूरी होने वाली है. इस साल उसे फुरसत नहीं है.”

ज्योत्सना सोफे पर बैठ कर चाय पी रही थी, घूंट भर कर बोली, “तुम नहीं होतीं तो उस की पढ़ाई पूरी हो ही न पाती. जिन्होंने कालेज का मुंह नहीं देखा, वे डिग्री की महिमा बताने चले हैं.”

सुरेखा बात को और खींचना नहीं चाहती थी, इसलिए टीवी बंद कर के अपने कमरे में जा कर बैठ गई. रोज़ यही सब सुनसुन कर वह थक गई थी. गुजरा समय आंखों के सामने घूमने लगा. पति के जाने के बाद भी सुरेखा गांव वापस नहीं गई थी. दोनों बेटियों की पढ़ाई पूरी होने तक किराए पर मकान ले कर शहर में ही रही. बड़ी बेटी की शादी हो गई तो गांव वापस लौटना चाहती थी लेकिन शुभि ने नहीं जाने दिया. “मम्मा, आप गांव वापस नहीं जाओगी. मुझे पढ़ाई पूरी कर के नौकरी करनी है. आप को मेरे साथ ही रहना होगा, हमेशा.”

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शुभि ने जब छात्रवृत्ति की परीक्षा पास की, तभी किसी रिश्तेदार ने सत्यम के बारे में बताया. लड़का होनहार था. प्राइवेट नौकरी कर रहा था. पापा रिटायर हो कर अपने पैतृक शहर में पत्नी के साथ रहते थे. बड़ा भाई विदेश में बस गया था.

सत्यम को शादी के बाद सुरेखा को अपने घर रखने में कोई परेशानी न थी. यही कारण था कि शुभि ने शादी के लिए हां कर दी थी.

शादी के बाद 3 वर्षों तक सब ठीक था. लेकिन पिछले महीने सत्यम के पिता को अचानक दिल का दौरा पड़ा और वे चल बसे. उस की मम्मी ज्योत्सना भी साथ में आ कर रहने लगी. तब से यह निवास घर कम, लड़ाई का मैदान ज्यादा हो गया था. शुभि और सत्यम दोनों अपने अपने काम पर चले जाते और दोनों समधनों की खूब तूतूमैंमैं होती. कोई कम न था. सुरेखा को अपनी बेटी की काबीलियत का अभिमान था और ज्योत्सना को बेटे की मां होने का. ज्योत्सना पढ़ीलिखी थी. सुबह उठ कर योगा करती, शाम को सैर करती. सोशल मीडिया पर भी सक्रिय रहती. पड़ोस में भी उन्होंने सहेलियां बना ली थीं. हर परिस्थिति में जीवन जीना उन्हें खूब आता था.

दूसरी ओर सुरेखा एक सीधीसादी घरेलू महिला थी. जिम्मेदारियां भी अकेले ही निभाती आ रही थी. जीवन को जीना उस ने सीखा ही नहीं था. ज्योत्सना खुश रहे, इस के लिए घर का सब काम वह अकेले ही करती थी. लेकिन ज्योत्सना उस के हर काम में मीनमेख निकाल देती. ज्योत्सना की सहेलियां घर पर आतीं, तो सुरेखा खाने की एक से बढ़ कर एक चीज़ बनाती लेकिन ज्योत्सना का उस के प्रति रवैया नहीं बदला. कभी पास बैठ कर बात करना तो दूर, उस को देखना भी ज्योत्सना को गवारा न था.

सुरेखा की सारी अच्छाई सत्यम की सास होने से दब गई थी. सत्यम सुरेखा की तबीयत के बारे में पूछ लेता तो ज्योत्सना का मुंह फूल जाता. उन का बस चलता तो सत्यम को कभी सुरेखा के पास भी फटकने नहीं देतीं.

एक दिन सत्यम के बौस घर पर आए तो ज्योत्सना ने बड़े उत्साह से उन का स्वागत किया. उन की पसंद का खाना भी पास के रैस्टोरैंट से मंगा लिया. शुभि ने मना किया तो ज्योत्सना ने झिड़क दिया, “जिस काम को करना नहीं आता हो, उस में सलाह नहीं देनी चाहिए. तुम अपनी मम्मी के पास बैठो, बाकी मैं देख लूंगी.” शुभि ने सुरेखा की ओर देखा और दोनों मांबेटी दूसरे काम में लग गईं.

बौस घर आए तो उन्होंने घर के बने खाने की इच्छा जाहिर की. सुरेखा ने तुरंत खाना बना दिया. अब तो ज्योत्सना की सारी अकड़ निकल गई. बौस चले गए तो उन्होंने सुरेखा को खूब सुनाई. जबकि वे जानती थीं कि सुरेखा ने तो स्थिति को संभाला था. सत्यम के हस्तक्षेप के बाद बात खत्म हुई. दिमाग की उथलपुथल को भुलाने के लिए सुरेखा अंदर आ गई.

स्वेटर को स्टूल पर रख कर बैड पर लेट गई और कब नींद आई, पता ही न चला. शुभि ने उसे उठाया, “मम्मा, उठो, खाना खा लेते हैं. सब लोग आप का इंतज़ार कर रहे हैं.”

सुरेखा उठ कर बैठ गई, “बेटा, शाम को खाना मैं नहीं खाती, तुम्हें पता तो है. रात में थोड़ा दूध ले लूंगी. तुम लोग खाना खाओ.” शुभि ने ज़िद नहीं की और बाहर चली गई.

खाना खाने के बाद शुभि ने रसोई का काम ख़त्म किया. सुरेखा को दूध दिया और अपने बैडरूम में आ गई. सत्यम ने पूछा, “आज फिर कुछ हुआ है क्या दोनों के बीच?”

शुभि ने कुरसी पर बैठते हुए जवाब दिया, “होता ही रहता है. दोनों की सोच अलग है. एडजस्ट होने में टाइम तो लगेगा.” शुभि ने टेबललैंप जला दिया और कमरे की लाइट बंद कर के कुछ पढ़ने लगी.

सत्यम ने लाइट फिर से जलाई, “शुभि, मैं सोच रहा था कि औफिस के पास ही एक फ्लैट किराए पर ले लेता हूं. मौम एडजस्ट नहीं हो पा रही हैं. वीकैंड पर यहां आता रहूंगा. इस माहौल में तुम्हारी पढ़ाई भी डिस्टर्ब हो रही है.”

शुभि ने किताब बंद कर दी, “तुम्हें याद है सत्यम, जब मम्मा हमारे साथ रहने आई थीं? एक साल लगा था उन्हें एडजस्ट होने में…” सत्यम ने पूरी बात सुने बिना ही कहा, “मौम ने अपनी मरजी की ज़िंदगी जी है. मुझे ऐसा नहीं लगता कि वे एडजस्ट कर पाएंगी.” शुभि अपनी बात पर अटल थी, “थोड़ा टाइम तो लगेगा ही. कुछ दिनों में सब नौर्मल हो जाएगा. मैं तो लैब में पढ़ लेती हूं. इतनी जल्दी कोई डिसिजन मत लो.” और दोनों सोने के लिए लेट गए, लेकिन जानते थे कि समस्या का हल निकालना आसान नहीं है.

सुरेखा ज्योत्सना को खुश रखने की पूरी कोशिश कर रही थी लेकिन बात बन नहीं रही थी. वह नहीं चाहती थी कि उस के साथ रहने से बेटी की पारिवारिक ज़िंदगी में कलह बढ़े. परंतु ज्योत्सना कुछ भी समझने को तैयार न थी. सुरेखा ज्योत्सना के सामने भी नहीं आती थी. हां, सहेलियां आतीं तो उन की फरमाइश पर नाश्ता ज़रूर बना देती. बस, वही कुछ घंटे ऐसे होते थे जब सुरेखा को सामने देख कर ज्योत्सना के तेवर नहीं बदलते थे. दोनों ने काम भी बांट लिए थे, फिर भी किसी न किसी बात पर बहस हो ही जाती थी. सुरेखा को पढ़ीलिखी नहीं होने के ताने सुनने को मिलते ही रहते थे.

पापा के जाने के बाद से लगभग हर महीने सत्यम घर जा कर आता था. इस बार शुभि भी जाने की ज़िद कर रही थी. शुभि चाहती थी कि दोनों समधनें अकेली रह कर ही एकदूसरे का महत्त्व समझ लें. यही सोच कर दोनों सुबह ही कार में बैठ कर रवाना हो गए. पांचछह घंटे का रास्ता था. वहां जा कर दोनों ने तय किया कि 2 दिनों बाद वापस जाएंगे. दोनों सोच रहे थे कि अकेले रहने से उन की मम्मियां एकदूसरे से समझौता कर लेंगी.

इधर, उन के जाते ही सुरेखा की तबीयत बिगड़ गई. बीपी की दवाई नहीं मिल रही थी. उस के सिर में बहुत दर्द था. उठ कर चलने की कोशिश की तो चक्कर आ गया. जैसेतैसे कमरे में जा कर बिस्तर पर लेट गई.

ज्योत्सना जब रसोई में आई तो सब काम ऐसे ही पड़ा था. उस ने चिल्लाना शुरू किया, “आज़ बेटी नहीं है तो मैडम कमरे से बाहर नहीं निकली हैं. पढ़ना नहीं सीखा लेकिन चालाकी भरपूर सीखी है,” बरतन पटकपटक कर उन्होंने अपना गुस्सा दिखाया.

सुरेखा कुछ देर चुपचाप सुनती रही लेकिन जब सहन न हुआ, तो लड़खड़ाती हुई अपना पर्स उठा कर फ्लैट से बाहर की ओर चली गई. कालोनी में उस समय कोई बाहर नहीं होता था. सभी काम पर चले जाते या घर में ही किसी काम में लगे होते. सुरेखा तेजी से सड़क पार कर के स्टेशन की ओर बढ़ गई. ज्योत्सना अब भी समधन को कोसने में व्यस्त थी. 2 घंटे बाद भी जब सुरेखा बाहर नहीं आई तब उन्होंने कमरे में झांका. सुरेखा वहां नहीं थी. बाहर का दरवाज़ा खुला हुआ था. घर का सारा काम फैला हुआ था.

उन्हें गुस्सा आ रहा था लेकिन दिल नहीं माना. उन्होंने पड़ोस में पूछा तो कामवाली बाई ने बताया कि उस ने एक औरत को गिरते पड़ते, सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए देखा था. अब तो ज्योत्सना के होश उड़ गए. अंदर आई तो बिजली गायब. सत्यम को फोन लगाया. उस ने बताया, वह बिल जमा करना भूल गया है, इसलिए बिजली कट गई है. सत्यम को बतातेबताते रह गई सुरेखा के बारे में. फटाफट फ्लैट में ताला लगा कर नीचे सड़क पर आ गई. जो भी मिला, उसी से पूछा.

बिल्डिंग के चौकीदार ने बताया कि सूती धोती पहने एक औरत स्टेशन की तरफ गई थी. स्टेशन थोड़ी दूरी पर ही था. अब ज्योत्सना का माथा ठनका. ट्रैफिक इतना कि सड़क पार करना मुश्किल था. लगभग दौड़ती हुई वह स्टेशन पर पहुंची. ट्रेन तभी गई थी. ज्योत्सना को लगा कि सुरेखा चली गई है. वह परेशान हो कर प्लेटफौर्म पर एक सीट पर बैठ गई. वहां कुछ लोग खड़े हुए थे. कोई कह रहा था पानी लाओ, कोई कह रहा था पंखे के नीचे बैठाओ.

ज्योत्सना खड़ी हो कर देखने लगी तो उस के होश उड़ गए. सुरेखा बेहोश पड़ी थी. ज्योत्सना ने पड़ोस वाले निर्मल जी को फोन किया. सत्यम और शुभि दोनों का फोन नहीं लग रहा था. एकदो लोगों की मदद से सुरेखा को हवा वाली जगह पर लिटाया. सुरेखा अब भी आंखें नहीं खोल रही थी. ज्योत्सना लगभग रोने वाली थी, तभी सुरेखा ने कराह कर करवट बदली. ज्योत्सना ने पहली बार बुलाया, “सुरेखा, उठो, हिम्मत करो. घर तक चलो. वहीं जा कर बिस्तर पर लेटना.”

सत्यम और शुभि भी स्टेशन पर आ गए थे. ज्योत्सना ने ज़ोर से शुभि को पुकारा. सुरेखा उठ कर चली, लेकिन नीचे गिर गई. ज्योत्सना ने उस का पर्स उठाया और सुरेखा को वापस सीट पर बैठाया. शुभि और सत्यम भी दौड़ कर पहुंचे. शुभि ने तुरंत पर्स से एक टौफी निकाल कर सुरेखा के मुंह में डाल दी. थोड़ी देर बाद उस ने आंखें खोल दीं. “शुगर लो होने से मम्मा को कभीकभी ऐसी प्रौब्लम हो जाती है,” शुभि ने सुरेखा के पास बैठते हुए कहा. वहां पर खड़े लोग खुसफुसा रहे थे, “लगता है आपस में झगड़ा हुआ है.”

ज्योत्सना लगभग चीखी, “अपनेअपने टिकट का ध्यान रखें सब. हमें आप की मदद नहीं चाहिए.” सामने से पुलिस वाला भी आ गया. सत्यम पुलिस वाले को स्थिति समझाने में लगा था. कोई बुला कर ले आया था पुलिस वाले को. शुभि ने सुरेखा को स्थिति समझाई तो वह घर लौटने को तैयार हुई. घर आने पर ज्योत्सना का अलग ही रूप दिखाई दिया. उन्होंने सब के लिए चाय बनाई और सुरेखा के पास आ कर बैठ गई, “देखो सुरेखा, अब कोई नाटक मत करना.”

सुरेखा ने मन में सोचा, ‘किस मिट्टी की बनी है यह औरत? बीमारी को भी नाटक बता रही है.’ ज्योत्सना अपनी धुन में बोल रही थी, ” मेरी जान निकल गई थी. आज़ तक किसी के लिए भी इतनी परेशान नहीं हुई हूं.” सुरेखा हैरान हो कर ज्योत्सना को देख रही थी. ज्योत्सना अब भी बोल रही थी, “गांव जाना तो इस समय नहीं हुआ पर मैं तुम्हें घुमाने ज़रूर ले जाऊंगी. कल ही दोनों चलेंगे बरेली वाले घर में. यहां दिल्ली में मन नहीं लगता है.”

सुरेखा ने आश्चर्य से ज्योत्सना की ओर देखा. सत्यम और शुभि भी इस घोषणा से अनजान थे. ज्योत्सना ने सुरेखा के हाथ से चाय का खाली कप ले कर मेज़ पर रख दिया, “उठो सिस्टर, सामान पैक करो, कुछ दिन अपन मरजी की ज़िंदगी जिएंगे. मुझे तुम से स्नैक्स बनाना भी सीखना है. मेरी सहेलियां बहुत तारीफ करती हैं तुम्हारी.”

सुरेखा धीरे से बोली, “एक गंवार, कम पढ़ीलिखी औरत के साथ आप कैसे रहेंगी दीदी?”

ज्योत्सना इस बार चिल्लाई नहीं. सुरेखा के पास पड़ी कुरसी पर बैठ गई. उस का सिर दबाने लगी, “दिमाग पर ज्यादा ज़ोर मत डालो. जल्दी से ठीक हो जाओ. फिर दोनों साथ चलेंगे. ये भी हमारी लड़ाई से तंग आ चुके हैं. इन दोनों को भी थोड़ी राहत मिलेगी.”

सुरेखा की आंखें नम थीं. शुभि के पिता के जाने के बाद किसी ने उस से इतने मनुहार से बात नहीं की थी. उस ने कभी नहीं सोचा था कि कोई कुछ ही दिनों में इस तरह उस के मन की बात समझ जाएगा. आज़ एहसास हो रहा था कि ज्योत्सना के प्रति उस की सोच कितनी नकारात्मक थी. वह ज्योत्सना के कदमों में झुकी, लेकिन उन्होंने गले से लगा लिया, “इन रिवाजों से बाहर आ जाओ, अब. तुम्हें बहन कहा है न, वही रिश्ता मानना अब. समधन बन कर तो झगड़ा ही हुआ.”

सुरेखा बिस्तर से उठ कर चली तो ज्योत्सना ने रोक दिया, “यहीं रुको, खाना मैं बनाऊंगी. तुम आराम करो.” शुभि और सत्यम चुपके से कमरे से बाहर चले गए.

अगले दिन सुरेखा और ज्योत्सना अपनाअपना बैग ले कर स्टेशन पर ट्रेन का इंतज़ार कर रही थीं. शुभि और सत्यम हंसहंस कर उन्हें कल की बात याद दिला रहे थे. स्टेशन वही था, लेकिन माहौल बदल गया था. 2 समधन अब बहन बन गई थीं.

मैला आंचल : भाग 6

“तब कहां चलना होगा?’’ मैं ने पूछा. ‘‘बनारस. वहीं कोई फ्लैट ले कर अपना काम करूंगा. इस नौकरी में कुछ नहीं रखा है.’’”मुझे भी लगा कि यह ठीक होगा. इसी बहाने अभिशापित शहर से मुक्ति मिलेगी. नया शहर, नए लोग, नई स्फूर्ति के साथ जिंदगी जिएंगे तो सबकुछ अच्छा लगेगा.

“उस की बात मान कर मां के खरीदे मकान को बेच कर बनारस आ गए. अपने पति को सारा रुपया दे कर मैं निश्चिंत हो गई. 2 साल फ्लैट में रही. खूब ठाठ थे. इन्होंने दवा की सप्लाई का काम शुरू किया था. इस सिलसिले में वे दिनभर बाहर रहते. कभीकभी शहर के बाहर भी जाना पड़ता. मुझे इन से कोई शिकायत नहीं थी. वे हमेशा मुझे खुश रखते. इस बीच मैं मां बनी. मगर दुर्भाग्य से बच्चा टिका नहीं. उम्र ज्यादा होने के कारण यह समस्या आई. उस समय मुझे बहुत पीड़ा हुई. इन्होंने मुझे संभाला. ये कहने लगे, ’’बच्चा गोद ले लेंगे. मुझे बच्चे से ज्यादा तुम्हारी फिक्र है,’’ सुन कर मुझे तसल्ली हुई.”समय सरकता रहा. एक दिन वे बोले, “वे दिल्ली दवा के काम से जा रहे हैं. 4 दिन बाद लौटेंगे,” कह कर एकाएक शालिनी भाभी की आवाज भर्रा गई. आंखों से पानी टपकने लगा. उन्हें देख कर मैं भी भावुक हो गई. थोड़ी देर बाद उन्होंने अपना गला साफ करते हुए कहा,  ‘‘वह दिन आज तक नहीं आया.’’

‘‘क्या कह रही हैं भाभी?” यह सुन कर तो मुझे भी अचरज हुआ.‘‘एक दिन एक आदमी ने मेरे दरवाजे पर दस्तक दी. पूछने पर पता  चला कि वह मेरे मकान का किराया लेने आया है.”यह जान कर मैं सकते में आ गई और बोली, ‘‘किस बात का किराया? यह मकान तो हमारा है.’’

‘‘मैडम, आप भरम में हैं. यह मकान आप के पति ने किराए पर लिया था,’’ उस ने किराएदारी के कागजात दिखाए. अब शक की कोई गुंजाइश ही नहीं बची थी.”इस  घटना ने मुझे अंदर तक तोड़ दिया. विश्वास करूं तो किस पर? मेरी मां की नादानी का बुरा नतीजा मुझे भुगतना पड़ रहा था. न मैं अवेैध पैदा होती, न इस तरह से अभिशापित जिंदगी गुजारनी पड़ती?

“जिस सामाजिक प्रताड़ना से बचने के लिए मेरी मां ने शिवराम का दामन थामा, वह भी छिप कर, क्या मिला उन को और मुझ को? जो किया, उसे खुल कर स्वीकार करती तो कम से कम सिर उठा कर जीती तो मैं.”मेरी शादी क्या जरूरी थी? समाज के लोग न स्वीकारते मुझे, न सही. पर, मैं अपने पैरों पर खड़ी हो कर अपनी जिंदगी अकेले काट लेती. आखिर वहीं पर आ गए न,’’ उन की आंखें भर आईं. जब सामान्य हुईं तो कहना जारी रखा, ‘‘अपना सारा सामान बेच कर मैं एक बाबा की शरण  में आ गई. अब मुझ में जीने की इच्छा नहीं बची थी. मेरा काम था आश्रम की देखभाल करना. वहां बहुत सी महिलाएं और पुरुष थे. आहिस्ताआहिस्ता वहां का वातावरण मुझे अच्छा लगने लगा.

“एक रात मैं अपने कमरे में सोने जा रही थी, तभी एक नाबालिग लड़की भागते हुए मेरे पास आई.‘‘आप मुझे बचा लीजिए,’’ वह मेरे शरीर से लिपट गई. मैं ने देखा कि उस के बदन के कपड़े जगहजगह से फटे हुए थे. अभी माजरा समझती, तभी 2 ताकतवर युवा मेरे पास आए. वे गुस्से में थे. वे लोग लड़की को मुझ से छीन कर ले जाने की कोशिश करने लगे.

‘‘इसे ऐसे क्यों ले जा रहे हो?’’‘‘तुम जान कर क्या करोगी.’’‘‘तुम लोगों को बताना पड़ेगा. मैं इसे ऐसे नहीं ले जाने दूंगी. बाबा से शिकायत करूंगी,’’ सुन कर दोनों हंसने लगे.‘‘बाबा के पास ही ले जा रहे हैं.’’‘‘क्यों…?’’ इस के पहले वह कुछ कहे, लड़की रोते हुए बोली, ‘‘बाबा कहने लगे अपने कपड़े उतार दो. जब मैं ने इनकार किया, तो मेरे कपड़े खुद ही जबरदस्ती उतारने लगे.

“इसी छीनाझपटी में मेरे कपड़े फट गए. कमरे का दरवाजा खुला था. सो, भाग कर आप के पास आ गई.’’‘‘चुप हरामखोर, दोबारा जबान खोली तो जान से मार देंगे.’’ दोनों उस लड़की को डपटे. मैं हतप्रभ. 10 साल मैं ने इस आश्रम में गुजारे, मगर ऐसा वाकिआ पहली बार देखने को मिला. हो सकता हो, पहले से ही यह सब होता रहा हो और मुझे पता न हो. वेैसे भी रसोई के प्रबंधन का काम संभालती थी, जो बाबा के मुख्य शयनकक्ष से दूर था. आज पहली बार इधर आना हुआ. सारा माजरा समझ में आने के बाद मैं शेरनी की तरह गुर्राई, ‘‘नहीं ले जाने दूंगी इस लड़की को.’’

‘‘तो ठीक है, तो तुम दोनों ही बाबा के पास चलो,’’ मेेैं पूरी हिम्मत के साथ बाबा के शयनकक्ष में आई. बाबा का असली रूप देख कर मेैं चकित रह गई. वह बेहतरीन बेड पर लेटा हुआ था. उस के बगल में शराब की बोतल के साथ एक भरा हुआ गिलास भी था. जिसे वह खाली करने के लिए उठाया. 2 पैग लेने के बाद मेरे करीब आया. इस के पहले उस ने कमरे को अंदर से बंद कर दिया. मैं कुछ देर तक तो भय से सिहर गई. इस के बावजूद अपनी हिम्मत को बनाए रखा. क्योंकि मैं जानती थी कि ऐसे आदमी अंदर से कमजोर होते हैं. जरा सी ताकत दिखाई जाए तो बालू के ढेर के मानिंद ढहने में इन्हें देर नहीं लगती है. जैसे ही उस ने मेरा आंचल खींचा, मैं झटके के साथ उस के हाथ से आंचल को खींच कर पीछे हट गई. वह नशे में था.

‘‘पहले तुम्हें बेआबरू करूंगा, फिर इस लड़की को. देखता हूं कि तुम्हें कोैन बचाता है.’’ उस ने दोबारा प्रयास करने की कोशिश की, तो तेजी के साथ चल कर मेज पर सेब के साथ रखे चाकू को मैं ने उठा लिया. उस की तरफ लहराया. वह फिर भी मेरी तरफ बढ़ने लगा. उस की इस हरकत ने मेरे मन में उस के प्रति और भी नफरत भर दी. वैसे भी पुरुषों ने मुझे काफी दुख दिया था. आज फिर एक पुरुष मेरे सामने मेरी आबरू लूटने के लिए खड़ा था. पुरुषों के प्रति प्रतिशेाध की भावना को बल मिला और मैं ने ताबड़तोड़ उस के पेट में चाकू भोंक दिए. पास में खड़ी वह लड़की घबरा गई. 70 साल से कम नहीं होगी उस बाबा की उम्र. जो दिन के उजाले में लोगों को रास्ता दिखाता है, वही रात के अंधेरे में कामवासना के लिए भटका हुआ मिला.

“आश्रम में शोर मच गया. सारे लोग जमा हो गए. लोग मेरी बात बिना सुने मुझे मारने की कोशिश करने लगे. उन की मार ने मुझे अधमरा कर दिया. बाबा को अस्पताल में भरती किया गया. मेरा भी इलाज किया. संयोग से मैं बच गई. मगर, बाबा 2-4 घंटे भी जिंदा नहीं रहा. “यह जान कर मुझे तसल्ली हुई. उसे मार कर मेरी जान चली भी जाती तो मुझे संतोष ही होता. वैसे भी मेरी जान की कोई कीमत नहीं थी. मरना तो सभी को है. मगर मैं ने एक लड़की की इज्जत बचाई. उस पाखंडी की असलियत लोगों के बीच लाई. मेरी जिंदगी सार्थक हो गई.

थैंक्यू मम्मी-पापा: बेटे के लिए क्या तरकीब निकाली?

‘‘हां, बोलो तानिया, कैसी हो,’’ फोन उठाते ही वरुण ने तानिया का स्वर पहचान लिया.

‘‘मैं तो ठीक हूं, पर तुम्हारी क्या समस्या है वरुण?’’ तानिया ने तीखे स्वर में पूछा.

‘‘कैसी समस्या?’’

‘‘वह तो तुम्हीं जानो पर तुम से बात करना तो असंभव होता जा रहा है. घर पर फोन करो तो मिलते नहीं हो. मोबाइल हमेशा बंद रहता है,’’ तानिया ने शिकायत की.

‘‘आज पूरा दिन बहुत व्यस्त था. बौस के साथ एक के बाद एक मीटिंगों का ऐसा दौर चला कि सांस लेने तक की फुरसत नहीं थी. मीटिंग में मोबाइल तो बंद रखना ही पड़ता है,’’ वरुण ने सफाई दी.  ‘‘बनाओ मत मुझे. तुम जानबूझ कर बात नहीं करना चाहते. मैं क्या जानती नहीं कि तुम अपनी कंपनी के उपप्रबंध निदेशक हो. तुम्हें फोन पर बात करने से कौन मना कर सकता है?’’

‘‘प्रश्न किसी और के मना करने का नहीं है पर जो नियमकायदे दूसरों के लिए बनाए गए हैं, उन का पालन सब से पहले मुझे ही करना पड़ता है,’’ वरुण ने सफाई दी.

‘‘यह सब मैं कुछ नहीं जानती. पर मैं बहुत नाराज हूं. फोन करकर के थक गई हूं मैं.’’

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‘‘छोड़ो ये गिलेशिकवे और बताओ कि किसलिए इतनी बेसब्री से फोन पर संपर्क साधा जा रहा था?’’

‘‘वाह, बात तो ऐसे कर रहे हो जैसे कुछ जानते ही नहीं. याद है, आज संदीप ने तुम्हारे स्वागत में बड़ी पार्टी का आयोजन किया है.’’

‘‘याद रहने, न रहने से कोई अंतर नहीं पड़ता. मैं ने पहले ही कहा था कि मैं पार्टी में नहीं आ रहा. आज मैं बहुत व्यस्त हूं. व्यस्त न होता तो भी नहीं आता. मुझे पार्टियों में जाना पसंद नहीं है.’’

‘‘क्या कह रहे हो? संदीप बुरा मान जाएगा. उस ने यह पार्टी विशेष रूप से तुम्हारे लिए ही आयोजित की है.’’

‘‘जरा सोचो तानिया, पिछले 10 दिन में हम जब भी मिले हैं, किसी न किसी पार्टी में ही मिले हैं. तुम्हें नहीं लगता कि कभी हम दोनों अकेले में ढेर सारी बातें करें. एकदूसरे को जानेंसमझें?’’

‘‘कितने पिछड़े विचार हैं तुम्हारे, बातें तो हम पार्टी में भी कर सकते हैं और एकदूसरे को जाननेसमझने को तो पूरा जीवन पड़ा है,’’ तानिया ने अपने विचार प्रकट किए तो वरुण बुरी तरह झल्ला गया. पर वह कोई कड़वी बात कह कर कोई नई मुसीबत मोल नहीं लेना चाहता था.

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‘‘ठीक है, तो फिर कभी मिलेंगे. बहुत सारी बातें करनी हैं तुम से,’’ वरुण ने लंबी सांस ली थी.

‘‘क्या, पार्टी में नहीं आ रहे तुम?’’ तानिया चीखी.

‘‘नहीं.’’

‘‘ऐसा मत कहो, तुम्हें मेरी कसम. आज की पार्टी में तुम्हारी मौजूदगी बेहद जरूरी है.’’

‘‘केवल एक ही शर्त पर मैं पार्टी में आऊंगा कि आज के बाद तुम मुझे किसी दूसरी पार्टी में नहीं बुलाओगी,’’ वरुण अपना पीछा छुड़ाने की नीयत से बोला था.

‘‘जैसी आप की आज्ञा महाराज,’’ तानिया नाटकीय अंदाज में हंस कर बोली.  वरुण पार्टी में पहुंचा तो वहां की तड़कभड़क देख कर दंग रह गया था. ज्यादातर युवतियां पारदर्शी, भड़काऊ परिधानों में एकदूसरे से प्रतिस्पर्धा करती नजर आ रही थीं.

तानिया को देख कर पहली नजर में तो वरुण पहचान ही नहीं सका. कुछ देर के लिए तो वह उसे देखता ही रह गया था.

‘‘अरे, ऐसे आश्चर्य से क्या घूर रहे हो?’’ तानिया खिलखिलाई थी, ‘‘कैसा लग रहा है मेरा नया रूपरंग? आज का यह नया रूपरंग, साजसिंगार खासतौर पर तुम्हारे लिए है. बालों का यह नया अंदाज देखो और यह नई ड्रैस. इसे आज के मशहूर डिजाइनर सुशी से डिजाइन करवाया है,’’ तानिया सब के सामने अपनी प्रदर्शनी कर रही थी. पर वरुण के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला था.

‘‘क्या कर रही हो तुम? क्यों लोगों के सामने अपना तमाशा बना रखा है तुम ने. अपना नहीं तो कम से कम मेरे सम्मान का खयाल करो,’’ वरुण उसे एक ओर ले जा कर बोला था.

‘‘क्यों, क्या हुआ? तुम तो ऐसे नाराज हो रहे हो जैसे मैं ने कोई अपराध कर डाला होे. खुद तो कभी मेरी प्रशंसा में दो शब्द बोलते नहीं हो और मेरे पूछने पर यों मुंह फुला लेते हो,’’ तानिया आहत स्वर में बोली थी.

‘‘तुम्हें दुखी करने का मेरा कोई इरादा नहीं था. पर फिर भी…’’

‘‘फिर भी क्या?’’

‘‘मैं अपनी भावी पत्नी से थोड़े शालीन व्यवहार की उम्मीद रखता हूं और तुम्हारी यह ड्रैस? इस के बारे में जो न कहा जाए वह कम है,’’ वरुण शायद कुछ और भी कहता कि तभी संदीप अपने 2 दूसरे मित्रों के साथ आ गया था.

‘‘हैलो वरुण,’’ संदीप ने बड़ी गर्मजोशी से आगे बढ़ कर हाथ मिलाया था.

‘‘आज आप को यहां देख कर मुझे असीम प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है. मैं ने यह पार्टी आप के सम्मान में आयोजित की है. आप के न आने से इस सब तामझाम का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता,’’ संदीप ने कहा और वहां मौजूद अतिथियों से उस का परिचय कराने लगा. तानिया भी उस के साथ ही अपने दोस्तों से वरुण का परिचय करा रही थी.

‘‘इन से मिलिए, ये हैं डा. पंकज राय. शल्य चिकित्सक होने के साथ ही तानिया के अच्छे मित्र भी हैं,’’ एक युवक से परिचय कराते हुए कुछ ठिठक सा गया था संदीप.  ‘‘डा. पंकज से इन का परिचय मैं स्वयं कराऊंगी. मेरे बड़े अच्छे मित्र हैं. 2 वर्ष तक हम दोनों साथ रहे हैं. एकदूसरे को जाननेसमझने का प्रयत्न किया. जब लगा कि हम एकदूसरे के लिए बने ही नहीं हैं तो अलग हो गए,’’ तानिया ने विस्तार से डा. पंकज का परिचय दिया.  ‘‘तानिया ठीक कहती है. मैं ने तो इसे सलाह दी थी कि हमारे साथ रहने की बात आप को न बताए. पर यह कहने लगी कि आप संकीर्ण मानसिकता के व्यक्ति नहीं हैं. वैसे भी आजकल तो यह सब आधुनिक जीवन का हिस्सा है,’’

डा. पंकज ने अपने विचार प्रकट किए थे.  कुछ क्षणों के लिए तो वरुण को लगा कि उस का मस्तिष्क किसी प्रहार से सुन्न हो गया है. पर दूसरे ही क्षण उस ने खुद को संभाल लिया. वह कोई भी उलटीसीधी हरकत कर के लोगोें के उपहास का पात्र नहीं बनना चाहता था.  पर मन में एक फांस सी गड़ गई थी जो लाख प्रयत्न करने पर भी निकल नहीं रही थी. अच्छा था कि वरुण के चेहरे के बदलते भावों को किसी ने नहीं देखा.

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हाथ में शीतल पेय का गिलास थामे वह एक ओर पड़े सोफे पर बैठ गया.  पिछले कुछ समय की घटनाएं चलचित्र की तरह वरुण के मानसपटल से टकरा रही थीं. 10-12 दिन पहले ही बड़ी धूमधाम से तानिया से उस की सगाई हुई थी. बड़े से पांचसितारा होटल में मानो आधा शहर ही उमड़ आया था. तानिया के पिता जानेमाने व्यवसायी थे. विधानपरिषद के सदस्य होने के साथ ही राजनीतिक क्षेत्र में उन की अच्छी पैठ थी. सगाई से पहले वरुण 3-4 बार तानिया से मिला था. उसे लगा कि तानिया ही उस के सपनों की रानी है, जिस की उसे लंबे समय से प्रतीक्षा थी. अपने सुंदर रंगरूप और खुले व्यवहार से किसी को भी आकर्षित कर लेना तानिया के बाएं हाथ का खेल था.  वरुण के मातापिता ने तानिया को देखते ही पसंद कर लिया था. वरुण का परिवार भी शहर के संपन्न परिवारों में गिना जाता था. पर उस के मातापिता ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के पक्षधर थे. सगाई के अवसर की तड़कभड़क देख कर उस के मित्रों और संबंधियों ने दांतों तले उंगली दबा ली थी. वरुण और उस के मातापिता ने भी इसे स्वाभाविक रूप से ही लिया था. पर अब वरुण को लग रहा था कि सबकुछ बहुत जल्दबाजी में हो गया. उसे तानिया को अच्छी तरह जाननेसमझने के बाद ही कोई निर्णय लेना चाहिए था.  तानिया की कई सहेलियां व दोस्त थे. उस ने खुद ही वरुण को सबकुछ स्पष्ट रूप से बता दिया था. शायद उस के इस खुले स्वभाव ने ही प्रारंभ में उसे प्रभावित किया था. आज जब युवा खुलेआम एकदूसरे से मिलतेजुलते हैं तो उन में मित्रता होना स्वाभाविक है. वह अब तक स्वयं को खुली मानसिकता का व्यक्ति समझता था, पर आज की घटना ने उसे पूर्ण रूप से उद्वेलित कर दिया था.

हर समय अपने पुरुष मित्रों की बातें करना, उन के गले में बाहें डाल कर घूमना, उन के साथ बेशर्मी से हंसना, खिलखिलाना, तानिया के ऐसे व्यवहार को वह सहजता से नहीं ले पा रहा था. मन ही मन स्वयं को भी झिड़क देता था.  ‘समय बहुत तेजी से बदल रहा है वरुण राज. उस के कदम से कदम मिला कर नहीं चले तो औंधे मुंह गिरोगे,’ वह खुद को ही समझाता. कभीकभी तो उसे लगता मानो वह संकीर्ण मानसिकता का शिकार है, जो आधुनिकता का जामा पहन कर भी स्त्री की स्वतंत्रता को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं आ सका.  पर आज नहीं, आज तो उसे लगा कि यह उस की सहनशक्ति से परे है. वह इतना आधुनिक भी नहीं हुआ कि समाज की समस्त वर्जनाओं को अस्वीकार कर के उच्छृंखल जीवनशैली अपना ले. उस के धीरगंभीर स्वभाव और अनुशासित जीवनशैली की सभी प्रशंसा करते थे.

धीरेधीरे सबकुछ शीशे की तरह साफ होता जा रहा था. वरुण को लगने लगा कि उसे ग्लैमर की गुडि़या नहीं जीवनसाथी चाहिए, जो शायद तानिया चाह कर भी नहीं बन सकेगी.  वरुण अपने गंभीर खयालों में खोया था कि एक हाथ में सिगरेट और दूसरे में गिलास थामे तानिया लहराती हुई आई.  ‘‘हे, वरुण, तुम यहां बैठे हो? मैं ने तुम्हें कहांकहां नहीं ढूंढ़ा. चलो न, डांस करेंगे,’’ वरुण को देखते ही उस ने आग्रह किया था.  वरुण तुरंत ही उठ खड़ा हुआ था. ‘‘तानिया यह सब क्या है? तुम तो कह रही थीं कि तुम तो सिगरेटशराब को छूती तक नहीं?’’ वरुण ने तीखे स्वर में प्रश्न किया था.  ‘‘मैं तो अब भी वही कह रही हूं. यह सिगरेट तो केवल अदा के लिए है. मुझे तो एक कश लेते ही इतने जोर की खांसी उठती है कि सांस लेना कठिन हो जाता है. तुम भी लो न. अच्छा लगता है. दोनों साथ में फोटो खिचवाएंगे. और यह तो केवल शैंपेन है, महिलाओें का पेय.’’

‘‘धन्यवाद, मैं ऐसे अंदाज दिखाने में विश्वास नहीं रखता,’’ वरुण ने मना किया तो तानिया उसे डांसफ्लोर तक खींच ले गई. तानिया देर तक वहां थिरकती रही, वरुण ने कुछ देर उस का साथ देने का प्रयत्न किया फिर कक्ष से बाहर आ गया. बाहर की ठंडी सुगंधित मंद पवन ने उसे बड़ी राहत दी. वह कुछ देर वहीं बैठ कर आकाश में बनतीबिगड़ती आकृतियों को देखता रहा.  पीनेपिलाने, नाचनेगाने और देर रात तक पार्टी गेम्स खेलने के बाद जब भोजन शुरू हुआ तो सुबह के 4 बज गए थे. वरुण की भूख मर चुकी थी.  तानिया से विदा ले कर जब तक घर पहुंचा तो पौ फटने लगी थी.

‘‘यह घर आने का समय है?’’ उस की मां शोभा देवी झल्लाई थीं.

‘‘मां, तानिया के मित्रों की पार्टी थी. रात भर गहमागहमी चलती रही. मैं थोड़ी देर सो जाता हूं. 3 घंटे के बाद जगा देना. 9 बजे तक कार्यालय पहुंचना है. आवश्यक कार्य है,’’ थके उनींदे स्वर में बोल कर वरुण अपने कमरे में सोने चला गया.  ‘‘आ गया तुम्हारा बेटा?’’ प्रात: टहलने के लिए तैयार हो रहे वरुण के पिता मनोहर ने व्यंग्यपूर्ण स्वर में पत्नी से कहा. ‘‘हां, आ गया,’’ शोभा ने बुझे स्वर में कहा था.

‘‘देख लो, साहबजादे के लक्षण ठीक नजर नहीं आ रहे.’’

‘‘हम दोनों चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. पढ़ालिखा समझदार है वरुण. अच्छे पद पर है. विवाह भी हम ने उस की पसंद पर छोड़ दिया है. सब देखसुन कर उस ने तानिया को पसंद किया था. पढ़ीलिखी सुंदर स्मार्ट लड़की है. दोनों आनंद से जीवन बिताएं, इस से अधिक हमें क्या चाहिए.’’

‘‘वह भी होता नजर नहीं आ रहा. तुम्हें नहीं लगता कि हमारे और उन के सामाजिक स्तर में बड़ा अंतर है.’’

‘‘होंगे वे बड़े लोग, हम भी उन से किसी बात में कम नहीं हैं. वैसे भी यदि वरुण प्रसन्न है तो तुम क्यों अपना दिल जला रहे हो,’’ शोभा ने बात को वहीं विराम देना चाहा था.

‘‘वह भी ठीक है. काजीजी दुबले क्यों…’’ ठहाका लगाते हुए मनोहर बाबू टहलने के लिए पार्क की ओर चल पड़े.

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कुछ दिन इसी ऊहापोह में बीत गए. वरुण अंतर्मुखी होता जा रहा था.  उस दिन डिनर के समय वरुण अपने ही विचारों में खोया हुआ था. शोभा देवी कुछ देर तक उसे ध्यान से देखती रही थीं.

‘‘वरुण,’’ उन्होंने धीमे स्वर में पुकारा.

‘‘हां, मां, कहिए न, क्या बात है?’’

‘‘बात क्या होगी, तेरी सगाई क्या हुई हम तो तुम से बात करने को तरस गए. बात क्या है बेटे?’’

‘‘कुछ नहीं मां. ऐसे ही कुछ सोचविचार कर रहा था.’’

‘‘सोचविचार बाद में करना. कभी हम से भी बात करने का समय निकाला करो न.’’

‘‘कैसी बात कर रही हो मां. कहिए न, क्या कहना है?’’

‘‘तानिया के पापा का फोन आया था. वे विवाह की तिथि पक्की कर के चटपट इस जिम्मेदारी से मुक्ति पाना चाहते हैं.’’

‘‘ऐसी जल्दी भी क्या है मां? अभी 10 दिन पहले ही तो सगाई हुई है. थोड़े दिन साथ घूमफिर लें, एकदूसरे को समझ लें, फिर विवाह के बारे में सोचेंगे.’’

‘‘क्या कह रहा है बेटे, सगाई के बाद कोई लंबे समय तक प्रतीक्षा नहीं करता. वैसे भी कितना समय चाहिए तुम्हें एकदूसरे को जानने के लिए?’’ शोभा देवी हैरानपरेशान स्वर में बोली थीं.

‘‘मां, हमारे विचारों में कोई समानता नहीं है. मुझे नहीं लगता कि यह विवाह एक दिन भी चल पाएगा. जीवन भर की तो कौन कहे,’’ वरुण रूखे स्वर में बोला था.

‘‘यह क्या कह रहा है बेटे? ये सब तो सगाई से पहले सोचना था.’’

‘‘उसी भूल की तो सजा पा रहा हूं मैं. सच कहूं तो सगाई के बाद से मैं ने एक दिन भी चैन से नहीं बिताया. मां, यह सगाई तोड़ दो. इस विवाह से न मैं खुश रहूंगा, न तानिया. हम दोनों के विचारों और जीवनशैली में जमीनआसमान का अंतर है.’’

शोभा देवी स्तब्ध रह गईं. जब मनोहर बाबू ने भोजन कक्ष में प्रवेश किया तो वहां बोझिल चुप्पी छाई थी.

‘‘क्या बात है. आज मांबेटे का मौनव्रत है क्या?’’ उन्होंने उपहास किया था.

‘‘मौनव्रत तो नहीं है पर पूरी बात सुनोगे तो तुम्हारे पांवों तले से धरती खिसक जाएगी,’’ शोभा देवी रोंआसे स्वर में बोली थीं.

‘‘फिर तो कह ही डालो. हम भी इस अलौकिक अनुभूति का आनंद उठा ही लें.’’

‘‘तो सुनो, वरुण तानिया से विवाह नहीं करना चाहता. चाहता है कि इस सगाई को तोड़ दिया जाए.’’

‘‘क्या? यह सच है वरुण?’’

‘‘जी पापा, मैं विवाह के बंधन को अपने लिए ऐसा पिंजरा नहीं बना सकता जिस में मेरा अस्तित्व मात्र एक परकटे पंछी सा रह जाए.’’  मनोहर बाबू यह सुन कर मौन रह गए थे. वरुण के स्वर से उस की पीड़ा स्पष्ट हो गई थी.  ‘‘ठीक है, जैसी तुम्हारी इच्छा. अभी तो केवल सगाई हुई है. यदि तुम समझते हो कि तुम दोनों की नहीं निभ सकती तो सगाई को तोड़ देने में ही सब की भलाई है.’’

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मनोहर बाबू और शोभा ने तानिया के मातापिता के सामने पूरी स्थिति स्पष्ट कर दी. काफी विचारविमर्श के बाद उस संबंध को वहीं समाप्त करने का निर्णय लिया गया.  दोनों पक्षों ने एकदूसरे को दी हुई वस्तुओं की अदलाबदली कर संपूर्ण प्रक्रिया की इतिश्री कर डाली.  आज बहुत दिनों के बाद शोभा देवी ने वरुण के चेहरे पर स्वाभाविक चमक देखी थी. मन में गहरी टीस होने पर भी उस के चेहरे पर संतोष था.

खेती में जल प्रबंधन के उपाय

लेखक-पल्लवी यादव, डा. ओम प्रकाश, डा. ब्रह्म प्रकाश एवं डा. कामिनी सिंह

प्राय: बौने गेहूं से ज्यादा से ज्यादा उपज लेने के लिए हलकी भूमि में पहली सिंचाई क्राउन रूट बोआई के 22 दिन से 25 दिन बाद (ताजमूल अवस्था), दूसरी सिंचाई बोआई के 40 दिन से 45 दिन बाद कल्ले निकालने की अवस्था पर, तीसरी सिंचाई बोआई के 60 दिन से 65 दिन पर दीर्घ संधि या गांठें बनते समय, चौथी सिंचाई बोआई के 80 दिन से 85 दिनों पर फूल आने की अवस्था (पुष्पावस्था) में, 5वीं सिंचाई बोआई के 100 दिन से 105 दिनों पर बालियों में दूध जैसा पदार्थ बनने की अवस्था (दुग्धावस्था) में और छठी व अंतिम सिंचाई बोआई के 115 दिन से 120 दिनों पर बाली में दाना बनते समय करने से जल की बचत के साथसाथ भरपूर उपज भी प्राप्त होती है.

* गन्ने के साथ गेहूं की फसल लेने के लिए फर्ब विधि से गेहूं व गन्ने की बोआई करनी चाहिए. इस तरीके को अपनाने से पानी की बचत के साथसाथ दोनों फसलों की पैदावार भी ज्यादा मिलती है. फर्ब विधि से गेहूं और गन्ने की बोआई कृषि जल संरक्षण का किफायती व उपयोगी तरीका है. इस तरीके में औसतन 20 से 30 फीसदी सिंचाई के पानी की बचत की जा सकती है.

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फर्ब विधि से गेहूं और गन्ने की बोआई के कई फायदे हैं :

* खास अवस्था में गेहूं में यदि केवल 3 सिंचाई ही कर पा रहे हैं, तो ये सिंचाइयां ताजमूल अवस्था, बाली निकलने के पहले और दुग्धावस्था पर ही करने से गेहूं की भरपूर उपज मिलती है.

* 2 सिंचाइयां उपलब्ध होने पर ताजमूल व पुष्पावस्था पर सिंचाई करने से ही फायदेमंद रहता है.

* इसी तरह केवल एक सिंचाई उपलब्ध होने पर ताजमूल की क्रांतिक अवस्था पर ही सिंचाई करनी चाहिए.

गन्ना की फसल में जल प्रबंधन

* गोल गड्ढा बोआई विधि अपना कर सिंचाई जल की औसतन 30 से 40 फीसदी बचत की जा सकती है. जल बचत के अलावा जल उपयोग क्षमता में 30 से 40 फीसदी और पोषक तत्त्व उपयोग क्षमता में 30 से 35 फीसदी तक बढ़ती है व गन्ने की उपज भी डेढ़ से 2 गुना ज्यादा प्राप्त होती है.

* गन्ने में एकांतर नाली सिंचाई विधि अपनाने से औसतन 30 से 40 फीसदी सिंचाई जल की बचत होती है और जल उपयोग क्षमता में 60 से 65 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो जाती है.

* एकांतर नाली सिंचाई विधि अपनाने से फसल में खरपतवारनाशी रसायनों का उपयोग कम से कम करना पड़ता है, इसलिए इन के छिड़काव के लिए घोल बनाने के लिए पानी की भी जरूरत कम होने से पानी की बचत होती है.

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साथ ही, गन्ने की पैदावार भी ज्यादा मिलती है.

* गन्ने की कटाई के बाद सूखी पत्तियों को पेड़ी गन्ने की नालियों के बीच में 6 से 8 सैंटीमीटर मोटी परत में बिछाने से औसतन 40 फीसदी सिंचाई जल की बचत की जा सकती है. इस के साथ ही साथ इस से मिट्टी में नमी संरक्षण के साथसाथ वाष्पोत्सर्जन भी कम होता है व मिट्टी की पैदावार की ताकत भी बढ़ती है.

* गन्ने की बोआई नाली विधि से करने के बाद नालियों को पाटा लगा कर बंद करने से मिट्टी की नमी संरक्षण में मददगार साबित होती है.

* गन्ने की बढ़वार की 4 अवस्थाओं के अनुसार सिंचाई (कुल 10) करने पर सिंचाई के पानी की औसतन 30-35 फीसदी बचत के साथ ही साथ जल उपयोग क्षमता 35-40 फीसदी बढ़ जाती है.

* सिंचाई के पानी की बचत के लिए गन्ने की सहफसली खेती को वरीयता देना चाहिए. इस पद्धति से गन्ने की खेती में सिंचाई के पानी की काफी बचत की जा सकती है.

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* फर्ब विधि से गेहूं और गन्ने की बोआई कृषि जल संरक्षण का किफायती व उपयोगी तरीका है. इस विधि में औसतन 20 से 30 फीसदी सिंचाई के पानी की बचत की जा सकती है. (अगले अंक में जारी) पिछले अंक में आप ने पढ़ा कृषि जल संरक्षण के अन्य उपाय फसल के सिंचाई नियोजन द्वारा कृषि जल संरक्षण : फसल का सिंचाई नियोजन उपलब्ध पानी के अनुसार करना चाहिए.

पानी की कमी होने पर केवल संवेदनशील स्थितियों में ही सिंचाई करना चाहिए. इस से 80 फीसदी तक पैदावार मी जाती है. यदि पानी की कीमत 20 फीसदी फसल से अधिक है तो भी बची हुई सिंचाई करने की जरूरत नहीं है.

गेहूं के मामले में दो अतिसंवेदनशील अवस्थाएं [पहली- ताज मूल अवस्था (सी.आर.आई.) तथा- दूसरी गांठ बनने की अवस्था] होती है.

निचली भूमि एवं अधिक बरसात होने वाली जमीन पर सभी फसलें बोई जा सकती हैं. लेकिन कम बारिश वाले इलाकों में सिंचाई की जरूरी सुविधाएं उपलब्ध होने पर गेहूं, ज्वार, मक्का एवं बाजरा जैसी फसलें बोना चाहिए. सिंचाई की मध्यांतर की अवधि एवं फसल की जल मांग के आधार पर : फसलों को पकने हेतु कृषि जल की आवश्यकता तथा उस में सिंचाई के बीच के अंतर की अवधि उस फसल पर निर्भर करती है. प्रमुख सब्जी फसलों की पानी की जरूरत एवं दो सिंचाईयों के बीच की अवधि का विवरण सारणी-1 में दिया गया है.

कम समय एवं कम पानी में पकने वाली फसलों की संस्तुति प्रजातियों की बुवाई को प्राथमिकता : बारिश आधारित क्षेत्रों में कम पानी की जरूरत वाली एवं जल्दी पकने वाली फसलें ही उगाना चाहिए. मोटे अनाज वाली फसलें, तिलहनी, दलहनी, सब्जी वाली फसलें, बागवानी फसलें, पुष्प व सुगंध वाले पौधे, कंद वाली फसलें एवं औषधीय फसलें पैदा कर सिंचाई के पानी की बचत की जा सकती है. कम समय एवं कम पानी में पकने वाली फसलों की संस्तुति प्रजातियों का विवरण सारणी-2 में वर्णित किया गया है :

भू-जल रिचार्ज विधि एवं जागरूकता का अभियान अपना कर : आज हम सब का उत्तरदायित्व है कि कृषि जल संरक्षण अधिक से अधिक कर के अनमोल पानी की बचत की जाए. जहां बारिश की बूंदें गिरें उसे वहीं पर इकट्ठा कर लेंने की तर्ज पर निम्न नारा दिया गया है :

खेत का पानी खेत में, नदी का पानी रेत में. गांव का पानी ताल में, आए काम अकाल में. इस नारे को साकार करने के लिए यह आवश्यक है कि बारिश के पानी का संरक्षण भू-जल रिचार्ज विधि अपना कर किया जाए. बारानी खेती को अधिक सफल बनाने के लिए बारिश की एकएक बूंद का उपयोग बहुत जरूरी है. चाहे वह नमी के रूप में जमीन में रहे या बरसात के पानी को किसी सही जगह पर इकट्ठा कर के किया जाए जिसे जरूरत के समय सिंचाई हेतु काम में लाया जा सके.

मिट्टी की किस्म आधारित सस्य तकनीक अपना कर :

* मानसून आने से पहले खेत की लगभग 25 से.मी. गहरी जुताई और बरसात के बाद कम गहरी (उथली) जुताई करने से खेत में ही पानी का अधिकतम संरक्षण किया जा सकता है. इस प्रकार की जुताई से विशेष कर रेतीली दोमट मिट्टी में जल संरक्षण अधिक होता है.

* काली मिट्टी में दरारें बनने के कारण सिंचाई का पानी नीचे की परतों में चला जाता है. इन खेतों में छेद वाले पाइप की मदद से सिंचाई करना कृषि जल संरक्षण में मददगार साबित होता है.

* खाली खेत में फसल अवशेषों एवं खरपतवारों की पलवार दे देनी चाहिए. अगर खेत में एक से दो मीटर का ढाल हो तो कंटूर बनाने चाहिए.

* खाली खेत या फसल के साथ उगे हुए खरपतवारों को काट कर बाहर कर देना चाहिए, जिस से इन के द्वारा होने वाली पानी के नुकसान से बचा जा सके.

* ढलान वाले खेतों में ढलान का प्रतिशत 0.2 से 0.4 (दोमट मिट्टी) तक सुनिश्चित करने पर कृषि जल प्रबंधन आसानी से किया जा सकता है.

* हल्की, कंकरीली, पथरीली एवं रेतीली मिट्टी में पानी के संरक्षण के लिए पौलीटैंक बनाने चाहिए. गहरी व सतही नाली बना कर : दो खेतों के बीच में मेंड़ की जगह गहरी सतही नाली बनाने से बरसात या सिंचाई के पानी की कुछ मात्रा को इन नालियों में संरक्षित किया जा सकता है.

खेत में सतही व गहरी नालियां बना कर किए गए संरक्षित पानी की गुणवत्ता अत्यंत बढि़या होती है. टपक सिंचाई विधि अपना कर :

* टपक सिंचाई विधि में औसतन 40 से 50 फीसदी सिंचाई के पानी की बचत हो जाती है. फलों एवं सब्जियों की फसल में टपक सिंचाई विधि अपनाना काफी किफायती सिद्ध होता है. टपक सिंचाई विधि में जल उपयोग क्षमता लगभग 80 फीसदी तक बढ़ जाती है.

* फलों एवं सब्जियों की फसल में टपक सिंचाई विधि से 20 से 25 फीसदी तक पैदावार में बढ़ोत्तरी होती है. कृषि घटकों एवं अन्य पद्धतियों को अपना कर :

* फसल को सिंचाई की जरूरत है कि नहीं, इस की जानकारी हेतु मृदा नमी के स्तर की जांच करा लेने से की सकती है.

* जल शक्ति अभियान के तहत शहरी क्षेत्रों के सीवर के पानी को प्रदूषण मुक्त कर उस जल को सिंचाई के काम में लाया जा सकता है.

* भूमि को समतल कर के हल्का ढाल देते हुए मिट्टी की किस्म के अनुसार क्यारी बना कर सिंचाई करनीचाहिए. ऐसी सतही विधियां अपना कर पानी का नुकसान काफी हद तक रोका जा सकता है तथा 60 फीसदी तक पानी का उपयोग पौधों के लिए किया जा सकता है.

* बांस को ?ाडि़यों एवं घासों के साथ मेड़ों पर पंक्तियों में रोपण करने से खेत के लिए कवच का काम करता है जो मिट्टी के नमी के स्तर को बनाए रखने के साथ कृषि जल संरक्षण में मददगार होता है. इसलिए बांस को ‘हरा सोना’ कहा जाता है.

* फलों एवं सब्जियों की खेती की तरफ अधिक ध्यान देना चाहिए. इन फसलों को उगाने में लाभ की संभावनाएं अधिक होती हैं तथा पानी की बचत भी होती है.

* सिंचाई की पुरानी तकनीक की जगह, सिंचाई की आधुनिक पद्धतियों को अपनाना चाहिए जिस से जल उपयोग क्षमता एवं उत्पादकता बढ़ेगी.

* नलकूपों से सिंचाई के समय ‘सिंचाई सेंसर माडल’ का उपयोग कर कृषि जल संरक्षण में मदद मिलेगी. * उच्च गुणवत्तायुक्त सिंचाई जल का फसलों में उपयोग करने से मृदा गुणों में सुधार होने के साथसाथ फसल की पैदावार में बढ़ोत्तरी तथा सिंचाई के पानी की बचत भी होती है.

* फसल की बुआई से पहले खेत में गोबर की सड़ी खाद की 200 से 250 कु./हे. उपयोग करना चाहिए. खादों के उपयोग से कृषि जल की बचत के साथ ही साथ मिट्टी की उत्पादन शक्ति भी बढ़ती है. कृषि में जल संरक्षण हेतु किफायती उपाय एवं सु?ाव जल की बचत के लिए अन्य कृषि आधारित मितव्ययी, कारगर एवं आसान विधियां एवं उपायों का वर्णन निम्नवत है :

* किसान भाईयों को व्यक्तिगत रूप से जल संरक्षण अभियान चला कर, सामाजिक जागरूकता के द्वारा एवं सामुदायिक स्तर पर भी जल संरक्षण उपाय करना चाहिए.

* किसान मेला, किसान गोष्ठियों, संवाद एवं प्रचार तथा प्रसार सामाग्री से जनजन तक यह संदेश पहुंचाने की कोशिश करनी चाहिए.

* कृषि जल संरक्षण विषय को प्राथमिक स्तर से ले कर उच्च स्तर तक के पाठयक्रमों में सम्मिलित करने पर जोर देना चाहिए.

* पीने के पानी/कृषि जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए सरकारी विभागों, स्वयं सहायता समूहों, निजी तौर पर एवं गैरसरकारी संस्थाओं द्वारा समयसमय पर आयोजित/संचालित प्रशिक्षण एवं जागरूकता अभियान में शामिल किया जाना चाहिए.

* पहले कहा जाता था कि ‘घरगांवों की सभ्यता और संस्कृति की पहचान तालाबों’ से होती है. अत: कृतिम रूप से बनाए गए तालाबों में बरसाती पानी को इकट्ठा कर पानी का सरंक्षण करना आज भी समय की जरूरत है. इस प्रकार से इकट्ठा किए गए पानी को सिंचाई के लिए काम में ला कर किसान भाई खेती से होने वाली अपनी आमदनी में बढ़ोत्तरी कर सकते हैं.

* किसान भाई भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के जल एवं मृदा संरक्षण से संबंधित संस्थानों से संपर्क/टेलीफोन/पत्र के माध्यम से संपर्क कर के भी अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.

लाइलाज नहीं है स्पाइनल इन्फैक्शन, बस इन बातों को न करें इग्नोर

32 साल का अंकित पीठ के दर्द से बुरी तरह परेशान था. उस की पीठ का मूवमैंट पूरी तरह रुक सा गया था. रैस्ट करने और दवा लेने के बाद भी हालत में कुछ खास सुधार नहीं हो रहा था. 6 हफ्ते पहले जब उस की पीठ में दर्द शुरू हुआ था, तभी से असामान्य तरीके से उस का वजन भी घटता जा रहा था.

अंकित ने डाक्टर से अपौइंटमैंट लिया. एक्स रे से कुछ पता नहीं चला, तो ब्लड टैस्ट कराने को कहा गया. अतिरिक्त जांच के लिए एमआरआई कराया गया, तो पता चला कि अंकित की रीढ़ की हड्डी में इन्फैक्शन हो गया है और डिस्क स्पेस व उस के आसपास की कोशिकाओं में मवाद भर गया है.

मामले की गंभीरता को देखते हुए उसे तुरंत स्पाइनल ब्रेसेस लगवाने की सलाह दी गई और प्रभावित हिस्से की सीटी गाइडेड बायोप्सी की गई. 6 हफ्ते के लिए ऐंटीबायोटिक खाने, बैड रैस्ट करने और स्पाइनल ब्रेसेस के साथ मूवमैंट की सलाह दी गई.

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हालांकि नियमित चैकअप के दौरान यह भी नोट किया गया कि उस की रीढ़ की हड्डी सिकुड़ रही है और उसी की वजह से मरीज की टांगों, ब्लैडर और आंतों पर भी असर पड़ रहा था. इस से नजात पाने के लिए तुरंत सर्जिकल ट्रीटमैंट की जरूरत थी. न्यूरोलौजिकल कंप्रैशन को दूर करने और साथ ही पेडिकल स्क्रू और रौड्स की मदद से स्पाइन को स्थिर बनाए रखने के लिए अंकित की सर्जरी की गई. इस का मकसद दर्द को दूर करना, मरीज को विकलांग होने से बचाने और रीढ़ की हड्डी के आकार को और ज्यादा विकृत होने से रोकना भी था. सर्जरी के बाद मरीज की हालत में तेजी से सुधार हुआ. उस का दर्र्द भी पूरी तरह दूर हो गया.

क्या है स्पाइनल इन्फैक्शन

स्पाइनल इन्फैक्शन एक तरह का रेयर इन्फैक्शन है, जो रीढ़ की हड्डियों के बीच मौजूद डिस्क स्पेस, कशेरुकाओं और स्पाइनल कैनाल या उस के आसपास के सौफ्ट टिशूज को प्रभावित करता है. आमतौर पर यह इन्फैक्शन बैक्टीरिया की वजह से ही होता है और रक्तवाहिनियों के जरीए यह बैक्टीरिया रीढ़ की हड्डी तक फैल जाता है. रक्तवाहिकाओं के जरीए बैक्टीरिया वर्टिब्रल डिस्क में फैल जाता है, जिस से डिस्क और उस के आसपास के हिस्सों में इन्फैक्शन होने लगता है और डिसाइटिस होने का खतरा पैदा हो जाता है.

डिसाइटिस भी एक तरह का इन्फैक्शन ही है, जो रीढ़ की हड्डी की अंदरूनी डिस्क में होता है. जैसेजैसे यह इन्फैक्शन बढ़ने लगता है, डिस्क के बीच की स्पेस कम होने लगती है और डिस्क के डिजौल्व होते रहने की वजह से इन्फैक्शन डिस्क स्पेस के ऊपर और नीचे की तरफ शरीर के अन्य अंदरूनी हिस्सों में भी फैलने लगता है, जिस से औस्टियोमाईलाइटिस हो जाता है. यह एक तरह का हड्डियों का इन्फैक्शन ही है, जो बैक्टीरिया या फंगल और्गेनिज्म की वजह से होता है.

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इन्फैक्शन की वजह से कमजोर हो रही हड्डी के टूटने या उस का आकार बिगड़ने का खतरा भी रहता है. कुछ मामलों में इन्फैक्शन या उस की वजह से टूट रही हड्डी नसों या स्पाइनल कौड की तरफ धंसने लगती है, जिस की वजह से बेहोशी आने, शरीर में कमजोरी महसूस होने, झनझनाहट होने, तेज दर्द होने और ब्लैडर डिस्फंक्शन जैसे न्यूरोलौजिकल लक्षण भी नजर आने लगते हैं.

इंटरवर्टिब्रल डिस्क स्पेस में इन्फैक्शन एक तरह का डिस्क स्पेस इन्फैक्शन है, जिसे इन 3 उपश्रेणियों में बांटा जा सकता है.

पहली है स्पाइनल कनाल इन्फैक्शंस, जिस में शामिल हैं-

– स्पाइनल ऐपिड्यूरल ऐब्सेस यानी रीढ़ की हड्डी के बाहरी हिस्से में फोड़ा होना.

– सबड्यूलरी ऐब्सेस.

– इंट्रामेड्यूलरी ऐब्सेसेज

दूसरी है आसपास के सौफ्ट टिशूज में इन्फैक्शन, जिस में शामिल है:

– सर्वाइकल और थोरेसिक पैरास्पाइनल लीजंस

– लंबर पीएसओएस मसल ऐब्सेसेज.

तीसरी है मस्तिष्क के आवरण की झिल्लियों में इन्फैक्शन.

किस वजह से होता है स्पाइनल इन्फैक्शन

कुछ परिस्थितियां स्पाइनल इन्फैक्शन से पीडि़त मरीज की रोगप्रतिरोधक क्षमता पर काफी प्रभाव डालती हैं और मरीज की रोगप्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देती हैं. इन में डाइबिटीज मैलिटस, रोगप्रतिरोधक क्षमता को दबाने या कम करने वाली दवा का इस्तेमाल, कुपोषण, और्गन ट्रांसप्लांट की हिस्ट्री और नसों के जरीए लिए जाने वाले नशीले पदार्थों के सेवन जैसी परिस्थितियां शामिल हैं.

स्पाइनल इन्फैक्शन सामान्यतया स्टेफिलोकौकस औरियस बैक्टीरिया की वजह से होता है, जो आमतौर पर हमारे शरीर की स्किन में रहता है. इस के अलावा इस्चेरिचिया कोली, जिसे ई कोलाई बैक्टीरिया भी कहा जाता है, उस से भी यह इन्फैक्शन हो सकता है. ज्यादातर स्पाइन इन्फैक्शंस लंबर स्पाइन यानी रीढ़ की हड्डी के मध्य या निचले हिस्से में होते हैं, क्योंकि इसी हिस्से से रीढ़ की हड्डी में ब्लड सप्लाई होता है. इस के बीच पैल्विक इन्फैक्शन, यूरिनरी या ब्लैडर इन्फैक्शन, निमोनिया या सौफ्ट टिशू इन्फैक्शन में होते हैं. नसों के जरीए लिए जाने वाले नशे से संबंधित इन्फैक्शन में ज्यादातर गरदन या सर्वाइकल स्पाइन प्रभावित होती है.

कैसे पहचानें लक्षणों को

वयस्कों में स्पाइनल इन्फैक्शन बहुत धीमी गति से फैलता है और इसी वजह से उस के लक्षण बहुत कम नजर आते हैं, जिस के कारण काफी देर से इस का पता चलता है. कुछ मरीजों को तो डायग्नोज किए जाने के कुछ हफ्ते या महीने पहले ही इस के लक्षणों का एहसास होना शुरू हो जाता है. इस के लक्षण आमतौर पर गरदन या पीठ के किसी हिस्से में टिंडरनैस आने के साथ शुरू होते हैं और पारंपरिक दवा लेने और आराम करने के बावजूद मूवमैंट करते वक्त महसूस होने वाला दर्द कम नहीं होता, बल्कि बढ़ता ही जाता है.

इन्फैक्शन बढ़ने पर बुखार होना, कंपकंपी आना, नाइट पेन या अप्रत्याशित तरीके से वजन घटना आदि लक्षण भी दिखाई देने लगते हैं. हालांकि ये वे सामान्य लक्षण नहीं हैं, जो हर मरीज में खासतौर पर लंबे समय से बीमार चल रहे मरीज में दिखाई देते हों. शुरुआत में मरीज को पीठ में बहुत तेज दर्द होने लगता है, जिस के कारण शरीर का मूवमैंट भी सीमित हो जाता है. अगर स्पाइनल इन्फैक्शन होने की आशंका है, तो लैबोरेटरी इवैल्यूएशन और रेडियोग्राफिक इमेजिंग स्टडीज कराना बेहद जरूरी हो जाता है.

डाक्टर कैसे डाइग्नोज करते हैं

आमतौर पर स्पाइनल इन्फैक्शन का पता लगाने की शुरुआत एक्स रे से होती है. हालांकि इन्फैक्शन शुरू होने के पहले 2 या 4 हफ्तों तक एक्स रे भी आमतौर पर सामान्य ही आता है और उस में इन्फैक्शन का पता चलने की संभावना बेहद कम रहती है. ऐसे में ऐडिशनल इमेजिंग स्टडीज करानी जरूरी है. खासतौर पर गैडोलीनियम इंट्रावीनस डाई की मात्रा बढ़ा कर एमआरआई करना बेहद जरूरी है. इस से स्नायुतंत्र के प्रभावित हुए हिस्से के विजुलाइजेशन में आसानी होती है.

इस के अलावा लैब जांच करवाना भी जरूरी है. इस में इनफ्लैमेटरी मार्कर्स काफी मददगार साबित हो सकते हैं, जो अन्य नौन इन्फैक्शियस पैथोलोजी में उतने उच्च स्तर पर नहीं होते हैं.

इन्फैक्शन की वजह बन रहे सूक्ष्म जीवकों का पता लगाने के लिए ब्लड कल्चर स्टडी की भी मदद ली जा सकती है. हालांकि लगभग  50% मामलों में ब्लड कल्चर पौजिटिव ही निकलते हैं. कुछ मरीजों में कल्चर लेने के लिए नीडिल बायोप्सी या ओपन सर्जरी करनी भी जरूरी हो जाती है ताकि इन्फैक्शन को फैलने से रोकने के लिए मरीज को सही और जरूरी मात्रा में ऐंटीबायोटिक्स दी जा सके.

क्या है इलाज

ज्यादातर स्पाइनल इन्फैक्शन के ट्रीटमैंट में नसों के जरीए दिए जाने वाले ऐंटीबायोटिक्स का कौंबिनेशन शामिल होता है. इस के अलावा ब्रेसिंग कराने और रैस्ट करने की सलाह भी दी जाती है.

चूंकि इन्फैक्शन की वजह से वर्टिब्रल डिस्क में ब्लड सप्लाई सही तरीके से नहीं हो रही होती है, इसलिए बैक्टीरिया की मौजूदगी की वजह से बौडी के इम्यून सैल्स और ऐंटीबायोटिक दवा भी इन्फैक्शन से प्रभावित हिस्से तक आसानी से नहीं पहुंच पाती है. ऐसे में आमतौर पर 6 से  8 हफ्तों तक आईवी ऐंटीबायोटिक ट्रीटमैंट की जरूरत पड़ती है.

इस के अलावा इन्फैक्शन में कमी आने पर रीढ़ की हड्डी की स्टैबिलिटी को सुधारने के लिए ब्रेसिंग कराने की सलाह भी दी जाती है. अगर ऐंटीबायोटिक्स और ब्रेसिंग से भी इन्फैक्शन कंट्रोल नहीं होता है या नसें सिकुड़ने लगती हैं तब सर्जिकल ट्रीटमैंट जरूरी हो जाता है.

आमतौर पर इन्फैक्शन को दूर कर दर्द से नजात पाने, रीढ़ की हड्डी में आ रही विकृति को बढ़ने से रोकने और नसों पर पड़ रहे किसी भी अन्य तरह के दबाव को कम करने के लिए सर्जरी की जाती है. उपचार के आगे बढ़ने के साथ ही समयसमय पर ब्लड टैस्ट और ऐक्स रे कराने की जरूरत भी पड़ती है ताकि यह वैरिफाई किया जा सके कि ट्रीटमैंट का असर हो रहा है या नहीं.

– डा. अरविंद कुलकर्णी, प्रमुख, मुंबई स्पाइन स्कोलियोसिस डिस्क रिप्लेसमेंट सैंटर, बौंबे हौस्पिटल, मुंबई

मैं 29 वर्षीय युवक हूं, पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण अभी विवाह नहीं करना चाहता, मैं जहां नौकरी करता हूं वहां कार्यरत विवाहित महिला के प्रति आकर्षित हो गया हूं, मुझे बताएं क्या करूं?

सवाल

मैं 29 वर्षीय युवक हूं, पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण अभी विवाह नहीं करना चाहता. मैं जहां नौकरी करता हूं वहां कार्यरत विवाहित महिला के प्रति आकर्षित हो गया हूं. एक दिन उस से अपने दिल का हाल कहने की गलती कर बैठा. उस ने मुझे डांटा और समझाने की भी कोशिश की, कि यह सब मेरा पागलपन है. उस ने कहा, मुझे शादी कर लेनी चाहिए तो सब ठीक हो जाएगा. पर न तो मैं अभी शादी कर सकता हूं, न ही अपने दिल पर काबू कर पा रहा हूं. मन बेचैन रहता है. जी करता है खुदकुशी कर लूं. आप कुछ रास्ता सुझाएं.

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जवाब

यह सब आप का पागलपन या ओबसैशन ही है. आप को अच्छी तरह पता है कि वह महिला शादीशुदा है तो उस से अपना हाल ए दिल सुनाने की क्या जरूरत थी. उस ने आप को डांटा, अच्छा ही किया. वह अपनी लाइफ में खुश है. उस का पति है, अपना घरबार है. ऐसे में भला वह क्यों आप के बारे में सोचेगी. आप पर पारिवारिक जिम्मेदारियां हैं जिस की वजह से अभी शादी नहीं करना चाहते तो फिर खुदकुशी की बात आप सोच भी कैसे सकते हैं. ऐसी क्या पारिवारिक मजबूरी है कि आप विवाह नहीं कर सकते, आप ने यह लिखा नहीं. हमारी राय है कि अपना ध्यान औफिस की उस महिला से हटा लीजिए क्योंकि कुछ हासिल नहीं होने वाला. अपने कैरियर पर फोकस करें. जौब चेंज करना भी आजकल आसान नहीं.

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रिलेशनशिप चाहते हैं तो ऐसा पार्टनर ढूंढे़, जिसे खुद भी किसी पार्टनर की तलाश हो. तब बात बन जाएगी. साथ ही, घर की जिम्मेदारियों को जल्द से जल्द निबटाने की तरफ ध्यान लगाएं. कहीं ऐसा न हो जिम्मेदारियां पूरी करतेकरते शादी करने की उम्र ही निकल जाए. आप चाहें तो जिम्मेदारियां निभाते हुए भी विवाह कर सकते हैं, जीवनसाथी के साथ आप अपनी जिम्मेदारियां और समस्याएं बांट भी सकते हैं. जिंदगी को जितना ज्यादा उलझाएंगे वह और उलझेगी. ज्यादा मत सोचिए. मन में उत्साह ले कर चलें, रास्ते अपनेआप मिलते जाएंगे.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

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