नोरा तब इस जेल में नयी-नयी आयी थी. वह लगातार गुमसुम सी बनी हुई थी. बैरक के एक कोने में सिमटी बैठी रहती थी. उसकी आंखें आंसुओं से तर रहती थीं और भय उसके चेहरे से टपकता था. मृणालिनी अपने बिस्तर पर बैठी उसे घूरती रहती थी. कुसुम ने एकाध बार उससे बात करने की कोशिश की, मगर ज्यादा नहीं.
मृणालिनी ने पहले दिन जोर से आवाज देकर पूछा था, ‘ऐ छोकरी... किस जुर्म में आयी खाला के घर? के नाम है? अरे बोल न... चुप काहे को लगी है?’
नोरा ने तब बड़ी मुश्किल से मृणालिनी को अपना नाम बताया था. फिर काफी कुरेदने पर बताया था कि उसे ड्रग्स ले जाते पकड़ा गया है. लेकिन साथ ही उसने यह भी कहा कि उसने कुछ नहीं किया है. वह निर्दोष है.
मृणालिनी उसकी बात सुन कर जोर से हंसी. लेकिन वह लगातार यही कहती रही कि वह निर्दोष है. मृणालिनी ने उसको झटका, ‘चल हट, सारे यही कहते हैं कि हम निर्दोष हैं. थोड़े दिन में खुद ही अपने करनी सुनाने लगते हैं. बड़े-बड़े टेढ़े यहां सीधे हो जाते हैं. ये जेल है मैडम, आपकी अम्मा का घर नहीं... कि सब आपकी बात पर भरोसा कर लेंगे.’
उस दिन मृणालिनी बुरी तरह नोरा को लताड़ कर बैरक से बाहर चली गयी. नोरा उससे बहुत डर गयी थी. डर के मारे उसने न तो शाम को चाय पी और न ही रात का खाना खाया. कुसुम ने कई बार कहा कि जाकर खाने की थाली ले आ, मगर वह बैरक से बाहर ही नहीं निकली. दूसरे दिन भी वह डरी-सहमी अपने कोने में दुबकी रही. तब कुसुम ने उससे कुछ हमदर्दी जतायी और खाना लाकर खिलाया. धीरे-धीरे नोरा सहज होने लगी. थोड़े दिन बाद मृणालिनी भी उसकी दशा देखकर उस पर तरस खाने लगी. उसकी शक्ल देखकर मृणालिनी के विचार बदले और उसे भी लगने लगा कि वह बेगुनाह है. एक दिन उसने नोरा के पास बैठ कर उसकी पूरी कहानी सुनी.