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मृणालिनी थोड़ी देर आराम करने की गरज से अपने बिछौने पर पड़ गयी. कुसुम बैरक की सलाखों से टेक लगाए बैठ गयी. वह टुकुर-टुकुर बच्चे और मां को ताक रही थी. पचपन बरस की कुसुम को चौबीस साल पहले की वह रात रह-रह कर याद आ रही थी, जब उसने अपने ननकू को जनम दिया था. उसकी हालत भी इस नोरा से कुछ अलग नहीं थी. गांव में गारे-मिट्टी के उस छोटे से कच्चे घर में जमीन पर पड़ी वह भी घंटों दर्द से छटपटाती रही थी. दर्द के कारण उस पर बार-बार बेहोशी छा रही थी. उसकी सास कभी उसे गरियाती, तो कभी उसके मुंह पर थप्पड़ मारती, ताकि वह जोर लगा कर बच्चे को बाहर आने में मदद करे. उस दिन गांव की एकमात्र दाई किसी दूसरे का बच्चा करवाने दूर गांव गयी हुई थी. रात का यही वक्त रहा होगा जब उसके ननकू ने जनम लिया था. उसका इकलौता बेटा ननकू, उसका लाडला बेटा… जिसको पालपोस कर बड़ा करने और पढ़ाने-लिखाने में उसने अपनी पूरी जवानी मजूर बन कर दूसरे के खेतों में कठोर श्रम करते गंवा दी थी. आज अपने उसी ननकू के कारण वह जेल की सलाखों में उम्रकैद की सजा काट रही है.

कुसुम के लाड-प्यार का नतीजा था कि उसका ननकू हाथ से निकल गया. वह जिद्दी और गुस्सैल लड़के के रूप में बड़ा हुआ. जो जिम्मेदारी का किसी भी अहसास से दूर, उलटा अगर उसकी कोई बात पूरी न हो तो बवाल मचा देता था. आये दिन गांव के लड़कों के साथ उसकी मारपीट, गाली-गलौच होती थी. कभी किसी के खेत से कुछ चुरा लाता, कभी किसी की लड़की छेड़ देता. कुसुम उसकी शिकायतें सुन-सुन कर भर गयी थी. बाप की तो परवाह ही नहीं करता था, कुसुम कभी कुछ समझाने की कोशिश करती तो उस पर भी चढ़ बैठता था. शादी के बाद भी उसके गुस्से में कोई कमी नहीं आयी. ननकू के इसी गुस्से ने कुसुम के पूरे परिवार को तबाह कर दिया.

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एक रात खाने में ननकू की मनपसंद सब्जी नहीं बनी तो वह अपनी घरवाली मालती से झगड़ बैठा. थाली उठा कर उसके मुंंह पर दे मारी. कुसुम ने बहू-बेटे को झगड़ते देखा तो चुपचाप उठ कर घर से बाहर चली गयी. ननकू का बाप मजूरी के लिए शहर गया हुआ था. वह देहाड़ी मजदूर था. ज्यादातर ठेकेदार के साथ ही रहता था. घर की हाय-हाय किचकिच-किचकिच से वह घर से दूर सुकून में रहता था. कुसुम को भी अब ननकू का गरजना-बरसना बर्दाश्त न होता था. उस रोज भी जब ननकू को अपनी बीवी पर चीखते देखा तो कुसुम चुपचाप निकल कर पटवारी के आंगन में जा बैठी थी. बड़ी देर तक वह दीवार से पीठ टिकाये वहीं बैठी रही. देर रात लौटी तो चारों तरफ शांति थी. उसने सोचा कि दोनों लड़-झगड़ कर सो गये होंगे. सुबह गांव भर में हंगामा मचा हुआ था. गांववालों को मालती की लाश पिछवाड़े के पोखरे में मिली. सब तरफ शोर हो गया. ननकू ने कब मालती का गला दबा कर लाश पोखरे में फेंकी, कुसुम को तो पता ही नहीं चला. वह तो सुबह जब गांव की कुछ औरतें नित्यक्रम निपटाने पोखरे की तरफ गयीं तो वहां मालती की लाश पड़ी देखी. ननकू गायब था. दिन चढ़ते-चढ़ते पूरा गांव पुलिस की छावनी बन गया.

कुसुम को पुलिस थाने उठा ले गयी. कुसुम के पति को किसी ने फोन करके खबर दी. वह कामधाम छोड़कर भागा आया. शाम को जब पत्नी को छुड़ाने थाने पहुंचा तो पुलिस ने उसको भी पकड़ कर जेल में डाल दिया गया. ननकू के बारे में पुलिस दो दिन तक दोनों से पूछती रही, मगर उन्हें पता होता तब बताते. इस बीच मालती के परिवार वालों ने ननकू और उसके पूरे परिवार पर दहेज-हत्या का मुकदमा दायर करवा दिया. मां-बाप तो पहले ही अंदर थे, ननकू को ढूंढना बाकी था. ननकू कई महीने फरार रहा, लेकिन पुलिस के हाथों से कोई कब तक बच सकता था. एक दिन पकड़ा गया. तीनों पर दहेज हत्या का मुकदमा कई साल चलता रहा और आखिर में तीनों को उम्रकैद हो गयी. इस कालकोठरी में कुसुम को चार साल हो गये हैं. उसकी उम्र और सहृदयता को देखते हुए जेल अधिकारियों का रवैया उसके साथ अच्छा है. सच पूछो तो कुसुम को यह जेल अपने घर से कहीं ज्यादा अच्छी लगती है.

सुबह होने तक कुसुम बैरक की सलाखों से पीठ टिकाये मन ही मन अपनी बीती जिन्दगी के पन्ने पलटती रही. कई बार उसकी आंखें भीगीं, कई बार सिसकियां उभरीं. कई दफा ननकू का बचपन याद आ जाता है, अपने पति का प्यार याद आ जाता है. चार साल हो गये उनके चेहरे देखे हुए. पता नहीं अब उनसे मिलना कुसुम के नसीब में है भी या नहीं.

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सुबह होने को थी. पूरब की ओर धुंधलका कम हो रहा था. नोरा का थकान के मारे बुरा हाल था. बच्चे को कंबल के भीतर सीने से चिपकाए वह सुबह होने का इंतजार कर रही थी, ताकि थोड़ी चाय मिल सके और शरीर में गर्मी आये. पौ फटते ही बैरकों के बाहर जेल अधीक्षक और कर्मचारियों की चहल-पहल शुरू हो गयी थी. ताले खुलने की आवाजें आ रही थीं. कुसुम ने नोरा को सहारा देकर बिठाया. वह दीवार से टेक लगाए बिस्तर पर बैठ गयी. बच्चा मां का दूध पीकर आराम से सो रहा था. मृणालिनी जल्दी से नोरा के लिए चाय लेकर आयी. दूसरी बैरकों की महिला कैदियों की भीड़ उसकी बैरक में जुटने लगी. नये प्राणी का चेहरा देखने के लिए सभी उतावली थीं.

नोरा के सुन्दर चेहरे पर अब मां बनने की खुशी झलकने लगी. वह अपने सीने से चिपके एडबर्ड को देखकर निहाल हो रही थी. कितना प्यारा बच्चा है – गोरा-गोरा, लाल-लाल. बिल्कुल अपने बाप फ्रेडरिक पर गया है. फ्रेडरिक की याद आते ही नोरा उदास हो गयी. पता नहीं कहां होगा फ्रेडरिक. पता नहीं वह कभी अपने बच्चे से मिल पाएगा या नहीं. पता नहीं नोरा कभी इन सलाखों से बाहर निकल पाएगी या नहीं. उसे अपने बच्चे के लिए जेल की सलाखें नहीं चाहिएं… वह सोच रही थी.

‘अरे देख तो कैसा चिपका हुआ है मां से…. दे जरा मेरी गोद में दे…’ बैरक नम्बर 3 की नाहिदा ने झपट कर नोरा की गोद से एडबर्ड को ले लिया. कुसुम ने उसे टोका, ‘अरे, अरे, ध्यान से… सो रहा है…. अभी बाहर मत ले जा… आंख नहीं खुली है अभी इसकी…. मां के पास ही रहने दे….’

मगर नाहिदा एडबर्ड को बड़े प्यार से अपने सीने से लगा कर हौले-हौले हिलाने लगी. बोली, ‘याद है अम्मा… जब शकुन को लड़की हुई थी तब हमारे पास नाड़ काटने का कोई सामान नहीं था, वह कितनी देर तक मां से जुड़ी बाहर ही पड़ी रही थी. घंटों बाद ब्लेड का छोटा सा टुकड़ा मिला था, जिससे मैंने नाड़ काटी थी. और देर हो जाती तो दोनों मर ही जातीं.’

‘हां, हां, याद है. आज भी तो कुछ नहीं था नाड़ काटने को. ये तो मृणालिनी का दिमाग चल गया जो इसने अपनी कंघी को घिस कर चाकू बना लिया, वरना रात में पता नहीं क्या होता. अब देखो डॉक्टर कितने बजे आती है.’ कुसुम बोली.

‘दस बजे से पहले न आएगी. और आकर करेगी भी क्या नासपीटी? जब उसकी जरूरत होती है तब तो यहां मिलती नहीं. चाहे कोई मर क्यों न जाए, दस बजे से पहले आती नहीं, और एक बजते ही भागती है.’ नाहिदा गुस्से से फुंफकारती हुई बोली.

‘अरे, मैंने कितनी बार जेलर से कहा कि एक फर्स्ट एड बॉक्स ही यहां रखवा दे, दर्द की दवाइयां रख दे, वो सुमन ताई को पैरों में कितना दर्द होता है, रात भर कराहती रहती है, मगर हमारी सुनता कौन है? साले चोर कहीं के…’ मृणालिनी ने एक मोटी सी गाली जेलर के लिए निकाली.

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नोरा का किस्सा इस जेल का कोई पहला नहीं था. इससे पहले भी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं. तीन साल पहले एक कैदी औरत को बच्चा हुआ था. तब मृणालिनी यहां नई-नई आयी थी. शाम सात बजे कैदियों को उनके बैरकों में डाल कर ताले लगा दिये जाते हैं, जो दूसरी सुबह सात बजे खुलते हैं. इसके बीच के समय को जेल की भाषा में तालाबंदी कहते हैं. तालाबंदी के दौरान उस औरत को बैरक में ही बच्चा हो गया था. रात भर वह दर्द से चीखती रही. मृणालिनी उसके बगल वाली बैरक में बंद थी. सुबह बैरक खुलने पर मृणालिनी ने उसे खून से लथपथ देखा. किसी ने उसके बच्चे को साफ भी नहीं किया था. तब उसने ही जच्चा-बच्चा दोनों को अच्छी तरह साफ किया. एक अन्य औरत ने, जो कभी किसी के काम नहीं आती थी, उसने उसे चाय लाकर दी थी. उसकी डोरमेट्री के अन्य कैदी उसे उसके हाल पर छोड़कर एक ओर हो गये थे. ऐसी घटनाएं जेल में होती रहती थीं, मगर जेल के अधिकारी और कर्मचारी कैदी औरतों को जानवर समान समझते हैं. समझते हैं जैसे कुत्ते-बिल्ली अपने बच्चे पैदा कर लेते हैं, वैसे ही ये औरतें भी कर लेंगी

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