बड़ी मैडम को खत दिये तीन दिन बीत चुके थे. अभी तक उधर से कोई संदेश नहीं आया था. पता नहीं बड़ी मैडम ने उसके खत को गम्भीरता से लिया भी या नहीं. पता नहीं पढ़ा भी या नहीं. नोरा यह सब सोच-सोच कर हताश हो रही थी. मृणालिनी भी चिन्तित थी. अगर बड़ी मैडम ने मदद न की तो फिर नोरा को जेल से बाहर निकलने में बहुत वक्त लग जाएगा. दो साल, चार साल या और भी ज्यादा. नोरा और मृणालिनी इन्हीं विचारों में गुम बैरक में बैठी थीं.
‘लगता है उन्होंने खत नहीं पढ़ा. या पढ़ कर रद्दी की टोकरी में डाल दिया होगा.’ नोरा ने मृणालिनी से अपनी चिन्ता व्यक्त की.
‘बड़ी अधिकारी हैं, समय न मिला होगा, धीरज रख, कुछ न कुछ जरूर होगा.’ मृणालिनी ने नोरा को ढांढस बंधाया. ‘अगर उधर से कुछ न हुआ तो मैं उस छोटे साहब से बात करूंगी, जो हमें लेकर उस दिन के कार्यक्रम में गया था. बस उसे अपने काम के लिए थोड़ा पटाना पड़ेगा.’
नोरा और मृणालिनी बातें कर ही रही थीं कि अचानक एक सेवादार ने बैरक के बाहर से नोरा का नाम लेकर पुकारा. नोरा उठ कर बाहर गयी तो बोला, ‘चल साहब बुला रहे हैं.’
मृणालिनी नोरा के पीछे-पीछे गयी. सेवादार को ऐसा कहते सुना तो सशंकित होकर पूछ बैठी, ‘कौन साहब बुला रहे हैं इसको?’
सेवादार ने पलट कर जवाब दिया, ‘इसको जेलर साहब के ऑफिस ले जाने का हुक्म आया है. बड़े साहब गाड़ी से भेजेंगे. साथ में यहां की सेवादारनी जाएगी.’ वह कहकर चल पड़ा. नोरा ने पलट कर मृणालिनी को देखा तो मृणालिनी ने उसको जाने के लिए ठेला, ‘जा... जा... लगता है तेरा काम हो गया...’