नोरा को चाय देकर मृणालिनी नहाने-धोने बैरक के बाहर बने स्नानागारों की ओर चली गयी. वह साढ़े पांच फुट लम्बी, सुन्दर नैन-नक्श वाली जवान और धाकड़ औरत थी. तीन साल पहले जब वह मानव तस्करी का दोष साबित होने पर इस जेल में आयी थी, तब अपनी नाक पर मक्खी नहीं बैठने देती थी. जेल नियमों के अनुसार हर बैरक में तीन कैदी रखे जाते हैं. अपनी बैरक में मृणालिनी बड़ी ठसक के साथ आधी से ज्यादा जगह हथिया कर रहती थी. खाने की लाइन में सबसे आगे लगती थी. शौचालय-स्नानागार का इस्तेमाल भी वह बाकी कैदी औरतों से पहले करती थी. दूसरी औरतें भले अपनी बारी के इंतजार में घंटों लाइन में खड़ी रहें, मगर मृणालिनी के पहुंचते ही सब पीछे हट जाती थीं. किसी ने कुछ कहा नहीं कि मृणालिनी का पारा चढ़ जाता था और ज्यादा चढ़ा तो हाथ भी उठ जाता था. पीट-पीट कर अधमरा कर देती थी. मां-बहन की गालियां तो ऐसे फर्राटे से बकती थी कि खूंखार और बदजुबान कहे जाने वाले पुलिस अधिकारी भी शरमा जाएं.
मगर जेल अच्छे-अच्छों के दिमाग ठिकाने लगा देती है. मृणालिनी ने फाइव स्टार होटलों की चमक से लेकर इस कालकोठरी के अन्धकार तक सारे रंग देख लिये हैं. जेल में मृणालिनी की दबंगई का ज्वार भी साल खत्म होते-होते उतर गया. ‘सुख के सब साथी, दुख में न कोए’ इसका अहसास उसे जेल आने के बाद भलीभांति हो चुका था. साल होते-होते उसका सारा जोश ठंडा पड़ गया. जब पहली बार उसकी गिरफ्तारी हुई थी तब उसने सोचा था कि अपनी ऊंची पहुंच के चलते वह पलक झपकते ही जेल से बाहर आ जाएगी. वह सोचती थी कि अपराध की जिस काली कमाई से उसने अपने घरवालों और दोस्तों की तिजारियों भरी हैं, वे जल्दी ही उसे इन सलाखों से बाहर निकाल लेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. सजा मिलने के बाद तो उसके ससुरालियों ने पूरी तरह उससे नाता तोड़ लिया और जिस पति ने उसकी काली कमाई पर अपना करोड़ों का व्यवसाय खड़ा कर लिया था उस पति ने भी उसकी ओर पलट कर नहीं देखा. जिन दोस्तों के साथ वह धंधा करती थी, वह तो ऐसे गायब हुए जैसे गधे के सिर से सींघ. किसी ने उसका साथ नहीं दिया. बड़े-बड़े धनाड्य और पावरफुल लोग जो कभी उसके एक इशारे पर नाचते थे, जितना पैसा बोलती थी सिर के बल आकर देते थे, उन्होंने पहचानने तक से इंकार कर दिया.