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मृणालिनी आज बहुत खुश थी. उसकी थोड़ी सी कोशिश ने नोरा और उसके नन्हे से एडवर्ड का जीवन सलाखों के पीछे घुट-घुट कर खत्म होने से बचा लिया था. मृणालिनी जिसने अपराध की दुनिया में रहते हुए न जाने कितनी लड़कियों का जीवन बर्बाद किया, कितनों की जिन्दगी नरक बना दी, कितनी बच्चियों को उनके मां-बाप से छीन लिया, कितनी बच्चियों को देह के दलालों के हाथों नुचवाया-बिकवाया, उस अपराधिन ने शायद जीवन में पहली बार कोई पुण्य का काम किया था.

नोरा से जुदा होते हुए मृणालिनी के आंखों से आंसुओं की धार बह रही थी. कुसुम, अनीता, मीना, चांदनी, सीमा, कुसुम सभी रो रही थीं. गोद में बेटे को लिये नोरा अपने सामान का छोटा सा बंडल लिये सबसे विदा ले रही थी. हर कैदी औरत उसे गले लगा कर भविष्य के लिए दुआएं दे रही थी. नोरा के बेटे से सभी हिलीमिली थीं. वह उन सबके लिए दिल बहलाने का खिलौना था. वह हंसता तो सब हंसतीं, वह खेलता तो सब उसके साथ खेलतीं... उसका जाना सबको उदास कर रहा था. एक अनोखा सा रिश्ता बन जाता है जेल की सलाखों में कैदियों के बीच... दर्द का रिश्ता.

जेल के गेट पर नोरा के वकील कैलाश मनचंदा अपनी गाड़ी में बैठे उसका इंतजार कर रहे थे. उनका जूनियर वकील अन्दर जेल अधिकारी के साथ नोरा की रिहाई की कार्रवाई पूरी कर रहा था. कुछ ही देर बाद नोरा अपने बेटे और जूनियर वकील के साथ जेल से बाहर आती दिखायी दी. आज उसके जिस्म पर अपनी वही साड़ी थी, जो उसने गिरफ्तारी के वक्त पहन रखी थी. जेल के दरवाजे से बाहर निकल कर उसने आसमान की ओर देखा और चंद सेकेण्ड्स के लिए अपनी आंखें बंद कर लीं. शायद वह मन ही मन अपने ईश्वर को धन्यवाद दे रही थी.

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