मृणालिनी स्नानागार से नहा-धोकर लौटी तो उसका संगमरमर सा तराशा जिस्म चमक मार रहा था. गुलाबी चेहरे पर गजब की आभा थी और बालों में पानी की बूंदे मोतियों की तरह चमक रही थीं. जेल की लाल पट्टी वाली सफेद साड़ी में भी उसकी जवानी नये ताजे गुलाब सी खिली नजर आती थी. उसके इस रूप-लावण्य पर जेल के कई अधिकारी मोहित थे. मृणालिनी को देखते ही उनकी लार टपकती थी. मगर उसकी ओर हाथ बढ़ाने की हिमाकत अभी तक कोई नहीं कर पाया था. कई तो उसकी दबंगई पर ही फिदा थे. उसकी गालियों को संत का प्रसाद समझते थे. लेकिन मृणालिनी को छेड़ दें, ऐसी हिम्मत किसी में नहीं थी. जेल में पहले ही दिन से मृणालिनी ने नाक पर मक्खी नहीं बैठने दी. उस पर क्या, उसकी बैरक के आसपास की किसी भी कैदी औरत पर अगर कोई अधिकारी बुरी नजर डालता था, तो वह खड़े-खड़े उसकी इज्जत की बखिया उधेड़ देती थी. मां-बहन की गालियों से ऐसा नवाजती थी कि फिर वह भागता ही नजर आता था. एक बार तो उसने पेशी के दौरान अदालत पहुंचने पर एक अधिकारी की शिकायत जज साहब से कर दी थी और उसकी शिकायत को जज ने गम्भीरता से लेते हुए अधिकारी पर कार्रवाई के आदेश दे डाले थे. मृणालिनी की शिकायत के चलते वह अधिकारी लंबे समय तक सस्पेंड रहा और विभागीय जांच का सामना करता रहा.
इस घटना से कैदियों के बीच मृणालिनी की इज्जत काफी बढ़ गयी थी. वह जेल की लेडी डॉन बन गयी थी. दरअसल देह की धंधे से लंबे समय तक जुड़ी रही मृणालिनी को पुरुषों की कामुक दृष्टि, उनकी लालसा, औरत को देखकर बदलने वाली उनकी गतिविधियां, हाव-भाव, बातें और इशारों की गहरी समझ थी. कोई पुरुष किसी स्त्री को किस दृष्टि से देख रहा है, वह उसके साथ किस हद तक फ्री होना चाहता है, वह हिम्मती है या डरपोक, अपनी इच्छा की पूर्ति कर पाएगा या नहीं, महिला उसकी ओर आकर्षित है या नहीं, यह तमाम बातें मृणालिनी पलक झपकते समझ जाती थी. जेल की किस महिला अधिकारी का टांका किस पुरुष अधिकारी से भिड़ा हुआ है, कौन सी कॉन्स्टेबल रात के अंधेरे में किस अधिकारी की अंकशायिनी बनती है, किस कैदी औरत की शारीरिक जरूरत संभाले नहीं संभल रही है, यह सब मृणालिनी की नजर से छिपता नहीं है.