‘आह… आह… आह… आह… ओ गौड… सेव मी…. आह… सेव मी गौड…’ नोरा की चीखों से काल कोठरी गूंज रही थी. दर्द अपनी हदें पार कर रहा था. वह जमीन पर पड़ी बिन पानी की मछली की तरह तड़प रही थी. मृणालिनी और कुसुम जैसे-तैसे उसे संभालने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन दर्द था कि बढ़ता ही जा रहा था. नोरा की चीखों और कराहों से जेल की दीवारें थरथरा रही थीं. आसपास की कोठरियों की महिला कैदियों की आंखों से नींद उड़ चुकी थी. तमाम औरतें अपनी बैरकों के जंगले पकड़ कर खड़ी थीं. सभी गहरे दर्द और दहशत में थीं. हरेक के चेहरे पर चिन्ता की लकीरें थीं कि पता नहीं अगले क्षण क्या होने वाला है. किसी ने चीख कर कहा, ‘उसके पेट को नीचे की ओर सहलाओ… उससे कहो जोर लगाए…’ तभी दूसरी आवाज उभरी, ‘पानी गर्म कर लो… ये रोटियां झोंक कर आग जला ले…ले रोटियां ले… ले… और ले…’
सामने की सलाखों में बंद औरतें निशाना साध-साध कर अपनी पोटलियों में चुरा कर छिपायी गयीं सूखी रोटियां निकाल-निकाल कर नोरा की सेल की तरफ फेंकने लगीं. कुसुम जमीन पर तड़पती नोरा को छोड़कर अपने सेल की सलाखों से हाथ निकाल कर बाहर जमीन पर पड़ी रोटियां इकट्ठा करने लगी. कैदी औरतें दोपहर और रात के वक्त खाने में ज्यादा रोटियां ले लेती थीं और उन्हें अपनी बैरकों में छिपा कर रख लेती थीं. ये रोटियां सूख कर कड़ी लकड़ी की भांति हो जाती थीं. कुछ दबंग अपराधिनें तालाबंदी के दौरान अपनी बैरकों में इन्हें जला कर चाय वगैरह भी बना लेती थीं, लेकिन ज्यादातर औरतें तो इसलिए रोटियों का ढेर लगाती थीं ताकि जाड़ों की सर्द रातों में इन्हें जला कर आग तापी जा सके. कड़कड़ाते जाड़े की रातें एक-एक कंबल के सहारे काटना मुश्किल लगता था.
नोरा का चीखना-चिल्लाना बढ़ता ही जा रहा था. मृणालिनी तेजी से अपने सामान में कुछ ढूंढ रही थी. जल्दी ही उसे अपने कपड़ों की पोटली में वह चीज मिल गयी, जिसकी उसे तलाश थी. वह प्लास्टिक की बड़ी कंघी थी. मृणालिनी जल्दी-जल्दी कंघी के दांतों को जमीन पर दबा-दबा कर तोड़ने लगी. ऐसा करने में उसके हाथ घायल हुए जा रहे थे, मगर उसे उस वक्त अपने लहूलुहान हो रहे हाथों की जरा भी परवाह नहीं थी. वह जल्दी से जल्दी उस कंघी के सारे दांतों को तोड़कर उसे चाकू जैसा धारदार बनाना चाह रही थी. पाखाने के चबूतरे के किनारे बैठ कर उसने खुरदरी जमीन पर कंघी को एक तरफ से तेजी से घिसना शुरू कर दिया. वह पूरा जोर लगाकर कंघी जमीन पर घिस रही थी. उसकी सांस धौकनी की तरह चल रही थी. नोरा का रुदन उसे व्याकुल कर रहा था. घबराहट के मारे उसका पूरा शरीर कांप रहा था, लेकिन इस वक्त न जाने कहां से उसके हाथों में गजब की ताकत आ गयी थी. कंघी को घिस-घिस कर उसने पंद्रह-बीस मिनट में एक ओर से इतना धारदार बना डाला कि अब उससे बच्चे की नाल आसानी से काटी जा सकती थी.
उधर कुसुम ने सूखी रोटियों को पाखाने के होल में डाल कर उसमें आग लगा दी. उसके ऊपर उसने पानी से भरा वह छोटा ड्रम रख दिया, जिसमें पाखाने के लिए पानी भर कर रखा जाता था. कैदियों की बैरक में ज्यादा चीजें नहीं होती हैं. मगर जरूरत का कुछ सामान रखने की इजाजत औरतों को होती है और कुछ चीज़ें वो चुरा चुरा कर जमा कर लेती हैं. आज इन थोड़े से संसाधनों के सहारे ही इस अंधेरी रात में एक नया जीव सलाखों के बीच अपनी आंखें खोलने वाला था. नोरा का तड़पना और चीखना-चिल्लाना चरम पर था. पानी को गर्म होने के लिए छोड़ कर कुसुम जमीन पर उसके पास बैठी उसका पेट दबा और सहला रही थी.
वह उसके सिर पर हाथ फेर-फेर कर दर्द को बर्दाश्त करने की ताकत देते हुए बोली, ‘नीचे की ओर जोर लगा बिटिया… लंबी सांस ले… नीचे जोर लगा… देख अभी बाहर आ जाएगा…’ नोरा का पूरा जिस्म पसीने से तर-ब-तर था. वह बार-बार थक कर बेहोश होने को हो जाती थी… कुसुम उसके गालों पर जोर-जोर से थपकी देने लगी. नोरा बेहोश न हो जाए इस घबराहट में एक बार तो उसने उसके गाल पर जोर का तमाचा भी जड़ दिया. काफी समय हो गया था नोरा को दर्द में तड़पते हुए. रात के डेढ़ बजे होंगे जब उसको दर्द उठना शुरू हुआ था. जेल के घड़ियाल ने तीन का घंटा बजाया ही था कि अचानक नोरा की एक जोरदार चीख सुनायी दी और इस चीख के साथ बच्चा बाहर आ गया. जमीन पर चारों तरफ खून ही खून फैल गया. कुसुम के हाथों में खून में लिथड़ा बच्चा देखकर मृणालिनी ने जल्दी से जमीन पर बैठ कर उसकी नाल काटी. कुसुम ने बच्चे को थोड़ा ऊपर उठाया तो वह चीख मार कर रो पड़ा. नई जिन्दगी ने अपने सही सलामत आने का पैगाम दे दिया था. लड़का हुआ था. मां का चेहरा खिल उठा. मासूम के रुदन का दूसरी बैरकों में बंद औरतों ने हर्ष मिश्रित स्वरों में स्वागत किया. कुसुम ने मृणालिनी की ओर देखा और फिर पलट कर नोरा का चेहरा देखने लगी. तीनों के चेहरों पर विजयी मुस्कान थी.
धुंधली रोशनी में नोरा का पसीने से नहाया चेहरा चांद सा चमक रहा था. दर्द गुजर चुका था मगर थकान ने उसे निढाल कर रखा था. उसमें हिलने तक की ताकत नहीं बची थी. वह ज्यों की त्यों ज़मीन पर पड़ी रही. कुसुम और मृणालिनी ने मां और बच्चे को साफ किया और पुरानी धोती में लपेट कर मासूम को नोरा के बगल में लिटा दिया. नोरा ने बेटे को छाती से चिपका लिया. उसकी आंखों के कोरों से आंसू की बूंदें टपकने लगीं. जेल की कालकोठरी में उसके एडबर्ड का जन्म होगा, यह तो उसने कभी नहीं सोचा था. एडबर्ड – हां, यही नाम रखा उसने अपने मासूम बेटे का.
एडबर्ड का पिता यानी उसका पति फ्रेडरिक कहां है, नोरा को कुछ पता नहीं. पिछले सात महीने से वह इस जेल में ड्रग तस्करी के आरोप में बंद है और इन सात महीनों में फ्रेडरिक एक बार भी उसका हालचाल लेने नहीं आया. पता नहीं वह कहां है? जिंदा भी है या नहीं? कहीं वह भी उसकी तरह किसी कैदखाने में बंद न हो? कहीं वह देश छोड़कर भाग न गया हो? अनेक सवाल नोरा के जेहन में उभरने लगे.
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मृणालिनी ने अपनी धोती फाड़ कर उसके कई टुकड़े किये. फिर कुसुम के साथ मिल कर उसने बैरक के फर्श पर बिखरा खून साफ कर डाला. पाखाने में पानी डाल कर जली हुई रोटियों की राख बहायी. सुबह होने में कुछ वक्त है. शायद पांच बज रहे हैं. बाहर अभी अंधेरा है. जाड़ों की शुरुआत हो चुकी है. रातें लंबी होने लगी हैं. छह बजे तक ही रोशनी होती है. सात बजे बैरकों के ताले खुलेंगे और कैदी औरतें अपने नित्य के कामों में जुट जाएंगी. आज इन तीनों को ही नहीं बल्कि आस पास की बैरकों में बंद सभी औरतों को बड़ी शिद्दत से सुबह होने का इंतज़ार था.