पप्पू प्रसाद को एक ही दुख है कि उस ने अब तक जंगल में जिंदा बाघ नहीं देखा. जंगलात की नौकरी करते हुए उसे 20 साल बीत गए लेकिन जंगल में विचरते हुए जिंदा बाघ नहीं देखा. बड़े साहब के साथ क्षेत्रीय दौरे के दौरान वनों का चप्पाचप्पा छान डाला लेकिन पशुराज से आमनेसामने मुलाकात अब तक नहीं हो पाई.
पप्पू प्रसाद के दिवंगत पिता हरिहर प्रसाद वन विभाग में वनरक्षक थे. 16 साल की उम्र में ही पितृवियोग हो जाने पर पप्पू की मां नाबालिग पप्पू को ले कर वन विभाग के बड़े साहब के पास जा कर बोली, ‘‘साहब, अब हमारे घर में रोटी कमाने वाला कोई नहीं रह गया. इस बालक के प्रति आप को कृपा करनी ही होगी.’’
पप्पू की मां बहुत रोई. रोती हुई मां का हाथ पकड़ कर खड़े बेचारे नाबालिग पप्पू को देख कर बड़े साहब की मेमसाहिबा ने उसे वन विभाग में नौकरी दिलाने के लिए बड़े साहब से सिफारिश की.
बड़े साहब ने कहा, ‘‘बच्चा अभी छोटा है, फिलहाल यह लड़का दैनिक मजदूर के तौर पर खलासी का कार्य करता रहे, समय आने पर पक्का कर दिया जाएगा.’’
तभी से पप्पू प्रसाद बड़े साहब के घर पर खलासी का काम करता आ रहा है. जब कभी बड़े साहब जंगल के निरीक्षण के लिए दौरा करते पप्पू साहब का सामान ले कर जीप की पीछे वाली सीट पर बैठ कर साथ जाता था.
पप्पू के पिता हरिहर प्रसाद जब जीवित थे तब वे वनरक्षक चौकी पर सरकारी आवास में अपने परिवार के साथ ही रहते थे. पप्पू बचपन में हिरण, खरगोश, लोमड़ी, सियार, नील गाय वगैरह देखा करता था. तब भेडि़यों से जंगल के लोग बहुत डरेडरे रहते थे. रात में भेडि़यों की आवाज से सभी लोग भयभीत होते थे क्योंकि पालतू जानवरों के साथसाथ कभीकभी भेडि़ए छोटे बच्चों को भी पकड़ कर ले जाते थे. शाम होते ही हर आंगन में आग जलाई जाती थी और बच्चों को कमरे के अंदर बंद कर दिया जाता था. पप्पू ने इस प्रकार डरावने माहौल में बचपन बिताया था.
जंगल में बाघ तो देखा नहीं, लेकिन पप्पू ने बाघ के बारे में बहुत कुछ सुना था कि जंगल का ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है जो बाघ से डरता न हो. हर वन्यप्राणी की कोशिश यही रहती है कि बाघ से किस प्रकार बचा रहे. पप्पू ने यह भी जाना कि बाघ जब भी जंगल में घूमताफिरता है तब जंगल के अन्य पशुपक्षी अलगअलग तरह की त्रासदी भरी आवाज निकाल कर एकदूसरे को सचेत किया करते हैं ताकि जंगल के निरीह वन्यजीव अपना और अपने छोटेछोटे बच्चों का बचाव करने का प्रयास कर सकें.
बड़े साहब का खलासी होने के बाद पप्पू प्रसाद की योगेन यादव के साथ दोस्ती हुई. योगेन यादव व्याघ्र संरक्षण परियोजना में वनरक्षक था. योगेन यादव से पप्पू प्रसाद को जानकारी मिली कि जंगल में बाघों की संख्या बहुत कम हो चुकी है. पप्पू की सम?ा में नहीं आया कि सब से शक्तिशाली बाघ का विनाश कैसे हो रहा है? आएदिन तो सुनाई देता है कि गांव में पालतू पशुओं को बाघ मार देता है. बडे़ साहब बहुत परेशान रहते हैं.
एक दिन पप्पू प्रसाद ने बड़े साहब के साथ जंगल में गश्त करते वक्त नदी के किनारे एक मरे हुए बाघ को देखा. बाघ की हड्डियां, उस के नाखून, दांत और जननेंद्रिय निकाल कर कोई ले गया था. आंख, दांत, हड्डीविहीन मरे हुए बाघ को देख कर पप्पू को नहीं लगा कि बाघ बहुत शक्तिशाली प्राणी है.
मरे पशुराज की हालत देख कर पप्पू को दुख हो रहा था. बगल में खड़े योगेन यादव से उस ने फुसफुसा कर पूछा, ‘‘बाघ की ऐसी हालत किस ने बनाई?’’
योगेन धीरे से बोला, ‘‘इस के पीछे बहुत बड़ा गिरोह है,’’ इतना कह कर वह चुप हो गया, क्योंकि मरे बाघ की जांच पड़ताल के लिए नापजोख चल रही थी. पप्पू ने देखा कि मरे बाघ के सामने वाले बाएं पैर का पंजा लोहे के बनाए फंदे में फंसा हुआ था. पंजे का आधे से ज्यादा हिस्सा कट कर फंदे के दोनों फलक के बीच में मजबूती से कसा हुआ था. असहाय बाघ के पैर में फंसे फंदे को निकालने की कोशिश का सुबूत नजदीक की जमीन पर पंजों की निशानी के रूप में था.
गांव वालों से पूछताछ करने पर जानकारी मिली कि कुछ दिन पहले एक बाघ अपने जख्म से रात भर कराहता रहा जिस की आवाज गांव वालों को सुनाई दी. जांचपड़ताल का नतीजा यह निकला कि शिकारी तस्करों ने बाघ के आनेजाने के रास्ते पर लोहे का फंदा छिपा कर रखा था, उस में उस का पैर फंस गया. फंदे में फंसे पैर की तीव्र पीड़ा से बाघ रात भर आर्तनाद करता रहा. बाद में घाव विषाक्त हो जाने से उस की मृत्यु हो गई.
पप्पू सोचने लगा कि तस्कर शिकारी कितने नृशंस हैं कि बाघ जैसे निर्भीक जानवर को निर्ममता से मारते हैं. उस की सम?ा में यह नहीं आया कि बाघ की हड्डियों, दांतों, नाखूनों तथा जननेंद्रिय को किस ने तथा क्यों निकाला होगा?
जांचपड़ताल में शाम हो चुकी थी. जांचदल के साथ पप्पू वन विश्रामगृह में वापस आया. रात को खाने के लिए योगेन यादव के यहां निमंत्रण था. वहां पर पप्पू ने यह बात छेड़ी, ‘‘मरे हुए बाघ की हड्डियों, दांतों को किस ने निकाला होगा?
योगेन यादव ने निराशा भरे भाव से कहा, ‘‘तस्कर शिकारियों ने.’’
फिर गले में भरी खराश को निकालते हुए योगेन ने बताना शुरू किया, ‘‘बाघ तस्कर बडे़ ही शातिर होते हैं. वे लोग बंजारों के रूप में जंगल के किनारे डेरा डालते हैं और सरल वनवासियों से बाघों के बारे में सूचना जमा करते हैं. समुचित जानकारी के बाद वे बाघ के आवागमन के रास्ते पर लोहे का फंदा बिछा कर या बंदूक की गोली से उन का शिकार करते हैं.’’
बीच में पप्पू ने फिर पूछा, ‘‘बाघों की हड्डियों, दांतों, नाखूनों एवं जननेंद्रिय क्यों निकाली जाती हैं?’’
योगेन यादव ने उदासी भरी आवाज में बताया, ‘‘यही तो सब से बड़ी विडंबना है. विदेशों में यह माना जाता है कि बाघ की हड्डियां, नाखून, दांत तथा जननेंद्रिय शक्ति से भरे रहते हैं और इन सब से बनी शक्तिवर्धक दवाएं पीने से आदमी भी बाघ की तरह जोशीले, शक्तिशाली एवं बलवान हो जाएंगे. वहां बाघों की हड्डी, चमड़ा आदि का बहुत बड़ा बाजार है. शिकारी तस्कर पैसा कमाने के लिए मरे हुए बाघ की खाल, हड्डियां आदि चोरी से विदेशों में भेजते हैं.’’
पप्पू यह सुन कर अचंभित हो गया. बाघ जैसे शक्तिशाली जीव के प्रति उस को दया आने लगी. दूसरे दिन सुबह जब बड़े साहब की जीप में पीछे बैठ कर पप्पू वापस जा रहा था तब उस के दिल में यह विचार आया कि बाघ को चोरीछिपे मारने वाले तस्कर तो बाघ से भी ज्यादा बुद्धिमान एवं बलवान हैं. तब उन तस्करों की हड्डियों आदि अंगप्रत्यंगों से अधिक शक्तिशाली दवा बनाने की सोच मनुष्य के दिमाग में क्यों नहीं आई.
उस बार भी विषादग्रस्त पप्पू का मन जिंदा बाघ न दिखाई पड़ने पर खेद से भर गया.
एक दिन बड़े साहब के पास खबर आई कि गांव के जंगल की सीमा पर चरवाहे के छप्पर के नजदीक एक मरा बाघ मिला है. बड़े साहब तुरंत घटना की तफतीश करने के लिए निकल पड़े. जीप में पीछे बैठे पप्पू को लगा कि शायद इस बार मरे बाघ के साथसाथ वह एक जिंदा बाघ का भी दर्शन कर ले. दिनभर जीप से चलने के बाद बड़े साहब जब मरे बाघ के पास पहुंचे तब पप्पू प्रसाद ने देखा कि योगेन यादव पहले से ही वहां पहुंच चुका था और बाघ के मरने से संबंधित सूचनाएं जमा कर चुका था.
योगेन यादव के अनुसार बाघ ने कुछ दिन पहले चरवाहों की एक भैंस को मार डाला था. गांव वाले चरवाहों ने मृत भैंस के मांस में विषाक्त पदार्थ डाल कर बाघ को मार डाला. पप्पू को यह जानकारी मिली कि बाघ एक बार शिकार करने के बाद कई दिन तक घूमफिर कर उसी शिकार को खाता रहता है. बाघ की इस आदत के बारे में चरवाहों को अच्छी तरह जानकारी थी. गांव वालों ने इस अवसर का भरपूर लाभ उठाया.
इसी दौरान योगेन यादव को एकांत में मिलने पर पप्पू ने पूछा, ‘‘गांव वाले ऐसी स्थिति में बाघ को मारते क्यों हैं? क्या उन को जानकारी नहीं है कि हमारे देश की धरोहर इन बाघों की संख्या दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है?’’
योगेन ने हंसतेहंसते कहा, ‘‘भैया, बाघ की संख्या कम हो या बढ़े इस से गरीब चरवाहों को क्या लेनादेना? उन के रोजगार के सीमित साधनों में से एक भैंस का मर जाना कितना नुकसानदेह है, यह बात उन के सिवा और कोई नहीं सम?ा सकता.’’
पप्पू प्रसाद के मन में यह सुन कर विषाद छा गया. उस को लगा कि जिस दर से बाघों की संख्या कम होती जा रही है उस को देखते हुए अब जीवित बाघ का दर्शन नामुमकिन है.
बड़े साहब के साथ मुख्यालय वापसी के समय पप्पू के मन में आया कि क्यों न बाघ परियोजना की आय से ग्रामीण गरीबों को जोड़ा जाए जिस से उन को अपने जंगलों में रह रहे बाघों के प्रति लगाव हो, लेकिन वह तो महज एक चपरासी है. उस की बात कौन सुनेगा?
एक बार तो जंगल के बीचोंबीच रेल लाइन के ऊपर एक बाघिन और उस के 2 बच्चे टे्रन से कट कर मरने की जांच में बड़े साहब के साथ पप्पू भी जंगल गया था. दरअसल, अंगरेजों के समय में जंगल से लकड़ी ढोने के लिए यह रेल लाइन बनाई गई थी जो बाद में वनवासी यात्रियों के लिए इस्तेमाल होने लगी. अब हर वर्ष रेलगाड़ी से कुचल कर कई जंगली जानवर मर जाते हैं. योगेन यादव ने यह भी बताया कि टे्रन के आनेजाने और इंजन की आवाज से जंगली जानवरों का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है और इस का उन की प्रजनन क्षमता पर भी असर पड़ता है.
एक बार बड़े साहब के परिवार के साथ पिकनिक मनाने के लिए जीप में पीछे बैठ कर पप्पू जंगल गया. उस पार्टी में बड़े साहब के साथ उन का बेटा और मेमसाहिबा भी थीं. यह तय हुआ कि हाथी पर सवार हो कर बड़े साहब, मेमसाहिबा और उन का बेटा दलदली क्षेत्र में जाएंगे. बड़े साहब के बेटे को संभालने के लिए पप्पू को भी हाथी पर जाने का मौका मिला.
इस प्रकार घूमतेघूमते कब दिन ढल गया किसी को पता ही नहीं चला. सूर्यास्त के वक्त हाथी के महावतों के बीच में कुछ शोर सा उठा. फुसफुसाहट से पप्पू को पता चला कि दलदली बेंत के जंगल के बीच कोई बाघ लेटा है. सभी लोग हाथियों पर बैठ कर सांस थामे बाघ के दर्शन के लिए प्रतीक्षा करने लगे. हाथियों को भी बाघ के नजदीक होने का आभास हुआ. वे बारबार अपनी सूंड ऊंची कर हवा में बाघ की गंध पा कर उस की मौजूदगी का एहसास करने लगे.
पप्पू के लिए समस्या यह थी कि बाघ हाथी के सामने की ओर छिपा था. बड़े साहब और मेमसाहिबा सामने बैठी थीं. बाघ का स्पष्ट रूप से दर्शन हो नहीं सकता था. जब सभी लोग बाघ के बारे में फुसफुसा रहे थे तभी पप्पू ने इधरउधर ?ांका, क्योंकि वह बाघ दर्शन का यह अवसर कतई खोना नहीं चाहता था. उधर शाम की वेला थी. सूर्यास्त हो चुका था. निशब्द अंधकार धीरेधीरे छा रहा था. कोई उपाय न देख कर पप्पू हाथी पर खड़ा हो गया. तब बेंतों के जंगलों में एक पूंछ हिलती हुई दिखाई दी. पप्पू के खड़े होते ही बड़े साहब ने जोर से धमकी दी और पूरी पार्टी वापस चल दी. धमकी से आहत पप्पू ने अपने मन को भरोसा दिया, ‘‘जंगल के अंधेरे में चेहरा छिपा कर जो जीव अपने अस्तित्व का संकेत पूंछ हिला कर देता है उसी का नाम बाघ है.’’