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सपनों का घरौंदा

खौफ: क्या था स्कूल टीचर अवनि और प्रिंसिपल मि. दास के रिश्ते का सच

प्रिंसिपल दास की नजरें आजकल अक्सर ही अवनि पर टिकी रहती थीं. अवनि स्कूल में नई आई थी और दूसरे टीचर्स से काफी अलग थी. लंबी, छरहरी, गोरी, घुंघराले बालों और आत्मविश्वास से भरपूर चाल वाली अवनि की उम्र 30- 32 साल से अधिक की नहीं थी. उधर 48 साल की उम्र में भी मिस्टर दास अकेले थे. बीवी का 10 साल पहले देहांत हो गया था. तब से वे स्कूल के कामों में खुद को व्यस्त रखते थे. मगर जब से स्कूल में टीचर के रूप में अवनि आई है उन के दिल में हलचल मची हुई है. वैसे अवनि विवाहिता है पर कहते हैं न कि दिल पर किसी का जोर नहीं चलता. प्रिंसिपल दास का दिल भी अवनि को देख बेकाबू रहता था.

” अवनि बैठो,” प्रिंसिपल दास ने अवनि को अपने केबिन में बुलाया था.

उन की नजरें अवनि के बालों में लगे गुलाब पर टिकी हुई थीं. अवनि के बालों में रोज एक छोटा सा गुलाब लगा होता था जो अलगअलग रंग का होता था. प्रिंसिपल दास ने आज पूछ ही लिया,” आप के बालों में रोज गुलाब कौन लगाता है?”

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“कोई भी लगाता हो सर वह महत्वपूर्ण नहीं. महत्वपूर्ण यह है कि आप की नजरें मेरे गुलाब पर रहती हैं. जरा अपनी मंशा तो जाहिर कीजिए,”
शरारत से मुस्कुराते हुए अवनि ने पूछा तो प्रिंसिपल दास झेंप गए.

हकलाते हुए बोले,” नहीं ऐसा नहीं. दरअसल मेरी नजरें तो… आप पर ही रहती हैं.”

अवनि ने अचरज से प्रिंसिपल दास की तरफ देखा फिर मीठी मुस्कान के साथ बोली,” यह बात तो मुझे पता थी जनाब बस आप के मुंह से सुनना चाहती थी. वैसे मानना पड़ेगा आप हैं काफी दिलचस्प.”

“थैंक्स,” अवनि के कमेंट पर प्रिंसिपल दास थोड़े शरमा गए थे.

पानी का गिलास बढ़ाते हुए बोले,” आप के लिए क्या मंगाऊं चाय या कॉफी?”

“नहीं नहीं पानी ही ठीक है. आज तो आप की बातों ने ही चायकॉफ़ी का सारा काम कर दिया,” कहते हुए अवनि हंस पड़ी.

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ऐसी ही दोचार छोटीमोटी मुलाकातों के बाद आखिर प्रिंसिपल दास ने एक दिन हिम्मत कर के कह ही दिया,” आप मुझे बहुत अच्छी लगती हो. वैसे मैं जानता हूं एक विवाहित स्त्री से मेरा ऐसी बातें कहना उचित नहीं पर बस एक बार कह देना चाहता था.”

“मिस्टर दास हर बात जुबां से कहनी जरूरी तो नहीं होती. वैसे भी आप की नजरें यह बात कितनी ही दफा कह चुकी हैं.”

“तो क्या आप भी नजरों की भाषा पढ़ लेती हैं?”

“बिल्कुल. मैं हर भाषा पढ़ लेती हूं.”

“आप के पति भी आप से बहुत प्यार करते होंगे न,” प्रिंसिपल ने उस के चेहरे पर निगाहें टिकाते हुए पूछा.

“देखिए मैं यह नहीं कहूंगी कि वह प्यार नहीं करते. प्यार तो करते हैं पर बहुत बोरिंग इंसान हैं. न कहीं घूमने जाना, न रोमांटिक बातें करना और न हंसनाखिलखिलाना. वैरी बोरिंग. घर में पति के अलावा केवल सास हैं जो बीमार हैं. ससुर हैं नहीं. पूरे दिन घर में बोर हो जाती थी इसलिए स्कूल जॉइन कर लिया. मुझे घूमनाफिरना, दिलचस्प बातें करना, दुनिया की खुशियों को अपनी बाहों में समेट लेना यह सब बहुत पसंद है. आप जैसे लोग भी पसंद हैं जिन के अंदर कुछ अट्रैक्शन हो. मेरे पति में कोई अट्रैक्शन नहीं है.”

प्रिंसिपल दास को अवनि की बातें सुन कर गुदगुदी हो रही थी. अवनि जैसी महिला उन्हें अट्रैक्टिव कह रही थी और क्या चाहिए था. उन्हें दिल कर रहा था अपनी महबूबा यानी अवनि को बाहों में भर लें पर कैसे? कोई पृष्ठभूमि तो बनानी पड़ेगी.

मिस्टर दास ने इस का भी उपाय निकाल लिया.

“अवनि क्यों न आप की क्लास के बच्चों को ले कर हम पिकनिक पर चलें. स्पोर्ट्स डे के दौरान आप की क्लास के बच्चों ने बेहतरीन परफॉर्मेंस दी. उन के रिजल्ट भी काफी अच्छे आए हैं.”

“ग्रेट आइडिया सर. बताइए न कब चलना है और कहां जाना है?” खुश हो कर अवनि ने कहा.

अवनि क्लास 7 की क्लास टीचर थी. अगले संडे ही कक्षा 7 के बच्चों को शहर के सब से खूबसूरत पार्क में ले जाया गया. पूरे दिन बच्चे एक तरफ खेलते रहे और पार्क के दूसरे कोने में मिस्टर दास अवनि के साथ रोमांस की पींगे बढ़ाने में व्यस्त रहे.

अब तो अक्सर बहाने ढूंढे जाने लगे. प्रिंसिपल और अवनि कभी कोई मीटिंग अटैंड करने बाहर निकल जाते तो कभी किसी सेलिब्रेशन के नाम पर, कभी स्कूल के दूसरे बच्चे और टीचर की शामिल होते तो कभी दोनों अकेले ही जाने का प्रोग्राम बना लेते. प्रिंसिपल को हर समय अवनि का साथ पसंद था तो अवनि को इस बहाने घूमनाफिरना, खानापीना और मस्ती मारना. दोनों ही एकदूसरे की इच्छा पूरी कर अपना मतलब निकाल रहे थे. ऐसे ही वक्त गुजरता रहा. उन का यह अवैध रिश्ता वैध रास्तों से आगे बढ़ता रहा.

अब तो अवनि अक्सर अपने हाथ का बना खाना और पकवान आदि प्रिंसिपल के लिए ले कर आती. सब की नजरें बचा कर दोनों एकदूसरे में खो जाते. पर कहते हैं न इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपता. धीरेधीरे स्टाफ रूम में दूसरे टीचर इन के रिश्ते पर कानाफूसी करने लगे. मगर अवनि इन बातों के लिए तैयार थी. वह बड़ी कुशलता से इन बातों को अफवाह बता कर आगे बढ़ जाती.

एक दिन अवनि स्कूल आई तो उसे खबर मिली कि साधारण टीचर के रूप में हाल ही में आई मिस श्वेता गुलाटी को प्रमोशन दे कर क्लास 10th की क्लास टीचर बना दिया गया है. इस बात से हर कोई अचंभित था. स्कूल के सब से सीनियर क्लास की क्लास टीचर बनना और वह भी इतने कम दिनों में, किसी को भी सहजता से कुबूल नहीं हो रहा था. अवनि तो बौखला ही गई.

वह पहले से ही यह बात गौर कर रही थी कि प्रिंसिपल दास आजकल श्वेता गुलाटी पर काफी मेहरबान रहने लगे हैं. 20 साल की श्वेता काफी खूबसूरत थी जैसे अभीअभी किसी कमसिन कली ने पंखुड़ियां खोली हों. वह जब इंग्लिश में गिटिरपिटिर करती तो दूसरे टीचर इनफीरियरिटी कंपलेक्स से ग्रस्त हो जाते. उस पर श्वेता के कपड़े भी काफी बोल्ड होते. कभी ऑफशोल्डर्ड ड्रेस तो कभी स्लीवलैस, कभी बैकलेस तो कभी शौर्ट स्कर्ट. वैसे तो उस की अदाओं के दीवाने स्कूल के ज्यादातर पुरुष थे मगर सब से ज्यादा पावरफुल प्रिंसिपल दास ही थे. सो श्वेता उन के केबिन के आसपास मंडराने लगी थी.

अवनि गुस्से में आगबबूला हो कर प्रिंसिपल के केबिन में पहुंची पर वे वहां नहीं थे. पूछने पर पता चला कि वे मिस गुलाटी के साथ लाइब्रेरी में हैं. अवनि का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने बैग उठाया और बिना किसी को इन्फॉर्म किए घर चली आई. बाद में उस के मोबाइल पर प्रिंसिपल का फोन आया तो अवनि ने फोन उठाया ही नहीं.

अगले दिन भी वह स्कूल नहीं पहुंची तो प्रिंसिपल ने उसे मैसेज किया,’ मैं तुम्हारे घर के सामने कार ले कर पहुँच रहा हूं. मुझ से नाराज हो तो भी एक बार हमें बात करनी चाहिए. आज हम बाहर ही लंच करेंगे. मैं 20 -25 मिनट में पहुंच जाऊँगा, तैयार रहना. ‘

अवनि तैयार हो कर बाहर निकली. तब तक प्रिंसिपल की कार पहुंच चुकी थी. वह कार में पीछे जा कर बैठ गई. दोनों शहर से दूर एक रेस्टोरेंट पहुंचे. कोने की एक खाली सीट पर बैठते हुए प्रिंसिपल ने बात शुरू की,” अब आप कुछ बताएंगी इस नाराज़गी की वजह क्या है?”

“वजह भी बतानी पड़ेगी? आप इतने नादान तो नहीं.”

“ओके बाबा मैं ने श्वेता को प्रमोशन दी इसी बात पर नाराज़ हो न?” प्रिंसिपल ने अपनी गलती मानी.

“मैं जान सकती हूं उस में ऐसे कौन से सुर्खाब के पंख लगे हैं जो मुझ में नहीं?” गुस्से में अवनि ने कहा.

“ऐसा कुछ नहीं है डार्लिंग…..मैं… ”

“डोंट टेल मी डार्लिंग. अब तो नई डार्लिंग मिल गई है जनाब को.”

“अरे ऐसी बात नहीं अवनि. ऐसा क्यों कह रही हो?”

“सच ही कह रही हूं. जरूर उस ने खुश कर दिया होगा आप को. तभी तो इतने कम समय में…, ” अवनि ने सीधा इल्जाम लगा दिया था.

“जुबान संभाल कर बात करो अवनि. मैं ऐसा नहीं कि हर किसी को इसी नजर से देखूं. खबरदार जो ऐसी बातें कीं. मैं प्रिंसिपल हूं, मेरे पास ऑथोरिटी है. जो मुझे काबिल लगेगा उसे प्रमोशन दूंगा. इस में तुम्हें बीच में आने का कोई हक नहीं.” प्रिंसिपल ने भी तेवर में कहा.

“हक तो वैसे भी कुछ डिसाइड नहीं हुए हैं मेरे. अब बता देना कि मैं कहां फेंक दी जाऊंगी? अब मेरी जरुरत तो रही नहीं आप को ”

“शट अप अवनि कैसी बातें कर रही हो? ”

“बातें ही नहीं काम भी करूंगी. आप खुद को सीनियर मोस्ट मत समझो. आप के ऊपर भी मैनेजमेंट है. मैं मैनेजमेंट से आप की शिकायत करूंगी.”

“अच्छा तो इतनी सी बात के लिए तुम मुझे धमकी दे रही हो? अवनि मेरे प्यार का यही बदला दोगी? ठीक है मैं भी देख लूंगा. तुम्हारे भी तो अमीर पति हैं न जिन्हें धोखा दे रही हो. मेरे पास भी बहुत से सबूत हैं अवनि जिन्हें तुम्हारे पति को दिखा दूं तो अभी हाथ में तलाक के कागजात मिल जाएंगे,” प्रिंसिपल ने धमकी दी.

“तो मिस्टर दास आप भी सावधान रहना. मेरे साथ आप की बहुत सी तस्वीरें, मैसेज और चैटिंग हैं जिन्हें मैनेजमेंट को दिखा कर अभी आप को नौकरी से निकलवा सकती हूं. आप को लूज करेक्टर साबित कर इज्जत पानी में मिला सकती हूं. पर मैं ऐसा करूंगी नहीं. मैं ने भी प्यार किया है आप को. भले ही आज कोई और पसंद आ गई हो.”

“ऐसा नहीं है अवनि. श्वेता पसंद नहीं आई बल्कि मेरे छोटे भाई की फ्रेंड है और फिर काबिल भी है. नॉलेज अच्छी है उस की. अगर तुम्हें बुरा लगा तो सॉरी पर मेरा मकसद तुम्हें हर्ट करना नहीं था,” प्रिंसिपल की आवाज नर्म पड़ गई थी.

“इट्स ओके सर. शायद मैं ने भी कुछ ज्यादा ही कह दिया आप को,”

अवनि ने भी झगड़ा बढ़ाना उचित नहीं समझा. झगड़ा बढ़ता इस से पहले ही दोनों ने पैचअप कर लिया. दोनों ही जानते थे कि उन के हाथ में एकदूसरे की कमजोर कड़ी है. नुकसान दोनों का ही होना था. बात आई गई हो गई. दोनों फिर से एकदूसरे के रोमांस में डूबते चले गए.

मगर इस बार दोनों की ही तरफ से सावधानी बरती जा रही थी. मिल कर तस्वीरें और सेल्फी लेने की परंपरा बंद कर दी गई. दोनों घूमने भी जाते तो साथ में तस्वीरें कम से कम लेते. चैटिंग के बजाय व्हाट्सएप कॉल करते और मैसेज करना भी बंद कर दिया गया. दोनों को ही डर था कि सामने वाला कभी भी उस की पोल पट्टी खोल कर उसे नंगा कर सकता है. उन के बीच पतिपत्नी का रिश्ता तो था नहीं जो हक के साथ रोमांस करें. यहां रोमांस भी छिपछिप कर करना था और एकदूसरे पर कोई हक भी नहीं था.

अवनि ने अपने मोबाइल ‘में से वे सारी तसवीरें निकाल कर लैपटॉप में एक जगह इकट्ठी कर लीं जिन तस्वीरों में दोनों एकदूसरे के बहुत करीब नजर आ रहे थे. यही नहीं सारी चैटिंग और मैसेज भी एक जगह स्टोर कर के रख लिए. वह कभी भी मौके पर चौका मारने के लिए तैयार थी. उसे पता था कि प्रिंसिपल भी ऐसा ही कुछ कर सकता है. इसलिए वह इस रिश्ते को खत्म कर उस की नाराजगी भी बढ़ाना नहीं चाहती थी.

अब उन के बीच जो रोमांस था उस में मजा तो था पर एकदूसरे से ही खौफ भी था. प्यार के साथ डर की यह भावना दोनों के लिए ही नई थी. मगर अब यही खौफ उन की जिंदगी का हिस्सा बन चूका था. दोनों ही एकदूसरे को प्यार भरी नजरों से देखते थे पर दोनों के दिमाग का एक हिस्सा समझ रहा था कि एक शख्स मेरी तबाही की वजह बन सकता है.

सपनों का घरौंदा : भाग 3

मास्साब मुंह लटकाए हुए स्कूल की ओर चल दिए. आज उन्हें वकील साहब का व्यवहार कुछ अजीब सा लगा. लेकिन कोर्टकचहरी के काम उन के अपने बस के तो थे नहीं. कहां स्कूल छोड़ कर सारा दिन कचहरी के चक्कर लगाते रहते. वैसे भी कोर्टरूम के भीतर जो हो रहा है, वह तो वकील साहब ही जानें. आम आदमी को क्या पता कि कोर्ट के भीतर क्या चल रहा है.

बीचबीच में वकील साहब से अपनी फाइल के बारे में पूछ लेते और वकील साहब भी अच्छाखासा पैसा ले कर सुरेशजी को सिर्फ कोरे आश्वासन ही देते रहे. मास्साब की जो हालत थी, वही जानते थे. रिटायरमेंट की उम्र नजदीक आ रही थी. बच्चों की कक्षाएं भी साल दर साल बढ़ रही थीं. एक मध्यवर्गीय इनसान में जीवनयापन को ले कर जो भी चिंताएं होती हैं, वह मास्साब के हिस्से में भी बराबर थी.

लगभग 1 साल बीतने वाला था. कई बार वकील साहब को पैसे दे चुके थे, लेकिन फाइल तो शायद कछुए की चाल भी नहीं चल रही थी खरगोश की तरह आधे रास्ते में ही किसी जगह सो गई थी. अब तो उन्होंने धीरेधीरे फोन उठाना भी बंद कर दिया था. अकसर पत्नी फोन उठाती और कह देती कि वकील साहब अभी घर पर नहीं है.

मास्साब को राशन वाले गुप्ताजी ने वकील बदलने की सलाह दी. थकहार कर उन्हें यह सलाह माननी ही पड़ी. एक उम्मीद की किरण दिखाई दी कि हो सकता है कि पिछला वकील यह काम नहीं कर पाया तो यह नया मेरा काम समय पर कर दे, क्योंकि इस बार जिस वकील का नाम सुझाया गया था, वह शहर में थोड़ा रुतबा रखने वाला था और कोर्ट में भी उस का दबदबा था. शहर के लोग उसे एक कुशल वकील बताते थे.

“सुरेश बाबू, देखो नामीगिरामी वकील है. पैसे तो अच्छे लेगा वह, लेकिन आप का काम जरूर हो जाएगा. मेरी साली का देवर लगता है. वह भी एक बार कह देगी तो आप का काम झटपट हो जाएगा,” गुप्ताजी बोले.डूबते को और क्या चाहिए, सिर्फ तिनके का सहारा. फिर से एक आस की किरण लिए हुए मास्साब स्कूल पहुंचे. मन में एक उम्मीद थी कि शायद इस बार मेरा काम एक ही बार में हो जाए, क्योंकि वकील भी गुप्ताजी की जानपहचान का था और गुप्ताजी की दुकान से वे वर्षों से राशन ले रहे हैं. कई बार घटिया क्वालिटी का सामान या एक्सपायरी डेट का सामान होने पर भी उन्होंने गुप्ताजी को बताया तो सही, लेकिन संबंध खराब हो जाने के डर से वापस नहीं किया. इतना मान तो गुप्ताजी उनका अवश्य रखेंगे. यही सोचतेसोचते एक और खाली पीरियड बीत गया.

गुप्ताजी ने सलाह दी कि अग्रवालजी बड़े वकील हैं और काफी व्यस्त रहते हैं, इसलिए एक बार अपनी पूरी फाइल ले कर समय ले कर उन से घर पर मिल लो.अपने पिछले वकील से जितने भी पेपर सुरेश बाबू वापस ले पाए थे, उन्हें ले कर अग्रवालजी के घर पहुंचे. घर के नीचे ही ग्राउंड फ्लोर पर अग्रवालजी ने एक केबिन में अपना औफिस बनाया था. लगभग आधा घंटा इंतजार करने के बाद वह आए और फाइल देखी. कागजात अधूरे होने की बात कह कर उन्हें पूरा करने को कहा.

“लेकिन वकील साहब, मुझे तो पता ही नहीं कि इस में और क्या कागज थे. मैं ने अपनी फाइल मिस्टर शर्माजी को दी हुई थी. उन्होंने मुझे सिर्फ यही कागज वापस किए.””अब सुरेश बाबू या तो आप उन से मिल कर सारे पेपर ले लें या फिर हमें दोबारा पेपर अरेंज करने होंगे. जैसा आप चाहें.”

सुरेश बाबू पशोपेश में पड़ गए. उन्हें पता था कि पुराने वकील से तो अब मिलना बेकार है. उन्हें तो बिना काम दक्षिणा मिल ही गई. अब वे कहां सुरेश बाबू से बात करते हैं.वह बोले, “वकील  साहब, आप ही दोबारा पेपर अरेंज कर दीजिए. जो कुछ भी थोड़ाबहुत खर्चा आएगा, वह मैं आप को दे दूंगा.””यह सब ठीक है सुरेश बाबू, लेकिन आप को अभी 10,000 रुपए एडवांस देने ही पड़ेंगे. बाकी जैसी जरूरत होगी, उस के हिसाब से देख लेंगे.”

सुरेश बाबू के तो सिर मुड़ाते ही ओले पड़ गए थे. कहां तो प्लाट ले कर उस में मकान बनाने के सपने देख रहे थे और कहां यह कोर्टकचहरी के चक्कर में पड़ कर उधार के तले दब गए थे. अपने जीवन में कभी उन्होंने किसी से उधार नहीं लिया. यह घर की ख्वाहिश ही कुछ ऐसी चीज है कि इनसान को कैसेकैसे पापड़ बेलने को मजबूर कर देती है. वह सोच रहे थे कि क्या बुरा है किराए का घर… बस महीने के शुरुआत में किराया दे दो और निश्चिंत हो जाओ. न मेंटेनेंस की चिंता, न कोई और टैक्स देना.

थोड़ाबहुत मनमुटाव तो मकान मालिक और किराएदार के बीच में चलता ही रहता है, लेकिन इस का मतलब यह थोड़े ही है कि हर आदमी मकान ही बना ले. अग्रवालजी को कागज और 10,000 रुपए सौंप कर कई दिनों तक मास्साब भोलेपन में इस सोच में रहे कि काम होने पर वकील साहब इस की सूचना दे देंगे.लेकिन ऐसा कहां होता है कि कुआं प्यासे के पास जाए. वकील साहब की तो कोई जरूरत नहीं थी. गरज तो सुरेश बाबू की थी. यह बात उन्हें तब समझ में आई, जब पत्नी ने याद दिलाई.

अग्रवाल वकील को फोन लगाया, लेकिन गुप्ताजी ने पहले ही बता दिया था कि वह बहुत अधिक व्यस्त रहते हैं. टहलतेटहलते  सामान लेने के बहाने गुप्ताजी की दुकान में ही चले गए और अपना दुखड़ा उन्हें सुनाया. बोले,” वकील साहब तो फोन नहीं उठा रहे हैं. वे आप के रिश्तेदार हैं. आप का फोन जरूर उठा लेंगे.””सुरेश बाबू देखिए, ग्राहकों की भीड़ लगी है और लड़का भी दुकान पर नहीं है. मैं शाम को अग्रवालजी से आप की बात करवाता हूं. सुबहसुबह का समय है. हो सकता है कि किसी क्लाइंट के साथ व्यस्त हों. थोड़ा अच्छा नहीं लगता.”

सपनों का घरौंदा : भाग 2

जमीन आबादी से कुछ दूर हट कर थी. फिर भी रेट कम नहीं थे. जैसेतैसे डेढ़ सौ गज का एक प्लाट मास्साब ने ले कर दिवाली में पत्नी जया को जिंदगी में पहली बार कोई तोहफा दिया था, लेकिन तोहफा ऐसा कि पत्नी के सारे गिलेशिकवे दूर हो गए थे. वह अब सपने सजाने लगी थी कि इस भूमि में अपना आशियाना बनाएगी. जहां पर बाहर से उस का नाम लिखा होगा. वह जहां चाहे आजा सकेगी और उसे कील ठोंकने पर, बच्चों के जोर से बोलने पर, तेज कदमों से चलने पर टोकने वाला कोई नहीं होगा. अपने सपनों के घर को देखने का खयाल दिल में ले कर खुशी में वह मीठी नींद में सो गई.

सुरेश मास्साब के दिमाग में जमीन से संबंधित अन्य कार्यवाही चल रही थी. जमीन की रजिस्ट्री तो हो गई थी, परंतु म्यूटेशन नहीं हो पाया था. इस के लिए मास्साब को लोगों ने एक वकील करने की सलाह दी. वह फिर से तहसील पहुंचे और काफी सोचनेविचारने के बाद एक वकील से बात हुई.

“आप बिलकुल चिंता ना करें. बहुत जल्दी ही आप का म्यूटेशन हो जाएगा. बस थोड़ाबहुत खर्चा आएगा. वह आप को एडवांस में देना होगा, क्योंकि हम भी अपनी जेब से नहीं लगा सकते. घरगृहस्थी वाले हैं.”खैर, वकील साहब ने जितने भी पैसे बताए, वह मास्साब ने अगले दिन उन्हें दे दिए, क्योंकि वह भी चाहते थे कि जल्द से जल्द म्यूटेशन हो जाए और जमीन किसी घपले में ना पड़े.

दिन पर दिन बीत गए. वकील साहब को फोन लगाते और उधर से बहुत ही मधुर आवाज में मास्साब को लगातार आश्वासन मिलता रहता.काम में कुछ प्रगति न होते देख एक दिन मास्साब स्कूल से हाफडे ले कर तहसील चले गए. वहां जा कर पता चला कि वकील साहब चेंबर में हैं. चूंकि हाफडे की समयावधि पूरी हो रही थी, तो मास्साब वापस आ गए. रास्तेभर सोचते रहे कि घर जा कर सीधे वकील साहब से बात करेंगे.

बच्चों को पढ़ाने में भी उन का मन नहीं लगा. घर पहुंच कर वकील साहब को नंबर मिलाया. नंबर वकील साहब की पत्नी ने उठाया. वह बोली, “अभी घर पर नहीं हैं. बाद में फोन कर लेना.””अरे मैडम, जब वकील साहब आ जाएं तो उन से कह दीजिएगा कि सुरेश बाबू आए थे आप से मिलने. पर, मुलाकात नहीं हो पाई, इसलिए काल बैक जरूर कर लीजिएगा…”

मास्साब का सेंटेंस पूरा होने से पहले ही वकील साहब की पत्नी ने फोन रख दिया था.अब पासा पलट चुका था. पत्नी जया मन ही मन खुश थी कि कुछ समय बाद वो अपना मकान बनाना शुरू कर देंगे, लेकिन मास्साब की हालत तो अब ऐसी थी कि जैसे कोई असहाय प्राणी. पत्नी की आंखों में जो चमक उन्हें दिखाई दे रही थी, वह उसे धूमिल भी नहीं करना चाहते थे, इसलिए अपनी परेशानी जया को नहीं बताते थे.

2-3 महीना हो चुका था रजिस्ट्री को, लेकिन म्यूटेशन की प्रक्रिया पूरी न होने की वजह से वह अपनी ही भूमि में मकान नहीं बना पा रहे थे. आज सुबह वकील साहब का फोन आया था. उन्होंने मास्साब को कोर्ट में बुलाया था. वे बच्चे की तरह खुशी से चहक उठे, “क्या म्यूटेशन हो गया, वकील साहब?”

“मास्साब, आप कोर्ट आ जाइए. तभी सबकुछ बताता हूं.”सालभर के 14 आकस्मिक अवकाश. अभी नया साल बस शुरू ही हुआ था. आज फिर मास्साब हाफडे ले कर कोर्ट पहुंचे.कुछ देर इंतजार करने के बाद वकील साहब का आना हुआ. मास्साब बेताब थे. बोले,” क्या कुछ जरूरी काम था, जो आप ने मुझे यहां बुलाया?”

“हां सुरेश बाबू, जरूरी काम से ही बुलाया है. दरअसल, जो जमीन तुम ने ली है, उस पर सैमुअल के सौतेले बेटे ने आपत्ति की है, क्योंकि अभी कुछ दिन पहले ही सैमुअल की मृत्यु हो चुकी है.”फिर वकील साहब मास्साब को लंबी कहानी सुनाने लगे, “उस क्षेत्र में बूढ़े सैमुअल की लगभग 50 एकड़ जमीन थी. उस में से अधिकतर उस ने अपने जीतेजी बेच दी. जो जमीन  आप ने खरीदी है, वह भी उसी का हिस्सा है, लेकिन अब मालिक की मौत के बाद उस का दूसरा बेटा इस संपत्ति पर अपना अधिकार जता रहा है. सैमुअल के 2 पत्नियों से अलगअलग 2 बेटे थे.”

जानकारी के आधार पर वकील साहब ने आगे बताया, “वसीयतनामा में सैमुअल ने अपनी पहली पत्नी से पैदा हुए बेटे को प्रोपर्टी में बहुत कम हिस्सा दिया है, जिस से वह बौखला कर कोर्ट पहुंच गया. यहां केस उलझता ही जा रहा है. आप को कुछ और दक्षिणा देनी होगी, ताकि मामले की छानबीन की जा सके.””वकील साहब, अभी तो मैं जेब से बिलकुल खाली हूं. आप मेरा ये काम करवा दीजिए. फिर मैं आप को आप की पूरी फीस एकसाथ दे देता हूं.”

वकील साहब थोड़ा कुटिल मुसकान के साथ बोले, “अरे मास्साब, ऐसा कैसे हो सकता है. आखिर हमारे भी बालबच्चे हैं ना. आप का केस लड़ कर ही तो हम भी पैसे कमाते हैं.”अब मास्साब परेशान हो कर कुछ दिनों में पैसों का इंतजाम करने का वादा कर के वापस स्कूल पहुंचे. स्कूल में साथियों से बात की. उन्होंने  पैसा उधार देने के लिए हामी भर दी, क्योंकि मास्साब व्यवहार से बहुत ही अच्छे और उदार थे.

यों तो जनवरीफरवरी का मौसम था. पहाड़ों में चटक धूप रहती थी, परंतु चिंता के काले बादल उन्हें घेरे जा रहे थे, जिसे अब पत्नी जया भी पढ़ पा रही थी.”सुनिए, क्या परेशानी है? आजकल आप कुछ अनमने से रहते हैं. खाना भी ढंग से नहीं  खाते. क्या बात है?”

“जया, जमीन खरीद कर बहुत बड़ी उलझन में फंस गए हैं हम लोग. उस जमीन के असली मालिक की मृत्यु हो चुकी है और अब उस के 2 बेटे संपत्ति के लिए आपस में लड़ रहे हैं. कल रविवार है. एक बार वहां जा कर देख आऊंगा. 2 ईंटों की बाउंड्री भी करा देनी सही रहेगी. इस बार तनख्वाह मिलती है तो सब से पहले यही काम करना है,” मास्साब ने खुद को हिम्मत देते हुए कहा.

अगले रविवार को दोनों पतिपत्नी बच्चों को ले कर उस स्थान पर पहुंचे, जहां पर उन का छोटा सा भूखंड उन के इंतजार में था.मगर यह क्या…? वहां पर प्लाट के चारों ओर लोहे और लकड़ी के बड़ेबड़े एंगल लगे हुए थे और उस पर लिखा था, “यह प्रोपर्टी रोबर्ट पुत्र स्वर्गीय सैमुअल की व्यक्तिगत संपत्ति है.”

पतिपत्नी दोनों सन्न में रह गए. वहीं से अपने वकील को फोन मिलाया और वहां पर आने की गुजारिश की, लेकिन वकील साहब ने आने में असमर्थता जताई. वह बोले,” मेरा काम तो सिर्फ कोर्ट तक ही है, साइट पर मेरा कोई काम नहीं. और हां, आप पैसों का बंदोबस्त जल्दी से जल्दी कर दें, ताकि आप का केस आगे बढ़ सके.”

1-2 दिनों में पैसों का इंतजाम कर मास्साब ने फिर दक्षिणा चढ़ाई और बोले, “वकील साहब, इस बार तो मेरा काम जल्दी हो जाएगा ना?” मायूस हो कर बोले थे वह.”देखिए मास्साब, हम तो अपनी ओर से पूरा प्रयास कर रहे हैं कि आप का केस जल्दी से जल्दी सुलझे, तो हम भी फ्री हो कर किसी दूसरे केस की ओर बढ़े.”

दायम्मा – भाग 4 : 20 साल पहले दायम्मा का बेटा घर क्यूं छोड़ दिया था

गुड्डी की शादी में सबकुछ अच्छी तरह निभ गया और वो ब्याह कर अपने ससुराल विदा हो गई. इसी वर्ष गौतम ने इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला लिया. वो आगे की पढ़ाई के लिए आईआईटी, मद्रास चला गया. एकाएक घर सूनासूना हो गया.

हालांकि चेन्नई से गौतम का फोन बराबर आता और हम सब से बात करने के बाद वो अपनी दायम्मा से बात करना नहीं भूलता. अपनी बातों से वो अपनी दायम्मा को खुश रखने का प्रयास करता. तथापि मैं ने गौर किया कि गिल्लू के चले जाने से उत्तमा मईया फिर से खोईखोई सी रहने लगी थी. एक बेटा उस ने बचपन में खो दिया था. दूसरे से प्रीत लगाई तो वो पढ़ने के लिए बाहर चला गया.

मैं ने महसूस किया कि इस सुनसान घर में अब उस का जी नहीं लग रहा था.

बिसेसर से कह कर मैं ने उसे कुछ दिन के लिए अपने घर ले जाने को कहा, ताकि जगह बदलने से शायद उस का मन बहल जाए. किंतु उस ने दृढ़ता से खुद ही मना कर दिया.

अगले सप्ताहांत सेमेस्टर अवसान पर गिल्लू घर आने वाला है. इस सूचना ने उस की दायम्मा में मानो नए जीवन का संचार कर दिया. अपने ‘बेटे’ को क्याक्या बना कर खिलाना है, बस इसी में वो व्यस्त हो गई. हम लोगों से अधिक उसे ही गौतम के आने का इंतजार है.

भले ही मेरे बेटे का नाम गौतम था, किंतु बुद्ध सा निष्ठुर तो वो कदापि न था. जब दायम्मा के प्रति उस के हृदय में इतनी करुणा थी, तो इस परिवार के प्रति उस के प्रेम का तो कोई पारावार ही नहीं था, ऐसा मैं मानता था.

कल संध्या में फोन पर सब से बात कर लेने के बाद अपनी दायम्मा से पूछने लगा कि आते हुए वो उस के लिए क्या उपहार लाए.

कल गौतम घर आने वाला है. कल ही मुझे गायत्री को भी अपने ससुराल से विदा कर के लाना है. इसी बहाने वह अपने भाई से भी मिल लेगी.

घर में चहुओर रौनक है. संध्या समय अपने कमरे में बैठ मैं गायत्री के ससुराल में ले कर जाने वाले उपहारों की सूची बना रहा था, तभी एक 30-32 वर्षीय पुरुष को अपने दरवाजे पर खड़ा पाया. उस के साथ बिसेसर को देख मैं चौंक गया. उस के अभिवादन का उत्तर दे कर मैं ने उस से उस का परिचय पूछा.

‘मेरा नाम उत्तम है. मैं अपनी मां से मिलने और उसे लेने आया हूं,’ उस युवक ने अपना परिचय देते हुए अपने आने का प्रयोजन बताया.

मेरे चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. तो यह वही उत्तम है, जो संकट के समय अपनी मां को बेसहारा छोड़ पलायन कर गया था और जिस के इंतजार में एक जोड़ी सूनी आंखें इतने वर्षों से राह तक रही है. मैं ने तुरंत धाय को बुला भेजा. थोड़ी ही देर में धाय के साथसाथ मां और नंदिनी भी वहां आ पहुंचे.

इस अप्रत्याशित समाचार को सुन वे दोनों अपने को रोक नहीं पाए थे.

धाय के वहां आते ही उत्तम अपनी मां के पैरों पर गिर पड़ा और अपने किए की माफी मांगने लगा.

धाय अपने बेटे को देख स्तब्ध थी. उसे सहसा विश्वास नहीं हुआ कि वह जो देख रही थी, वो सपना नहीं हकीकत था. फिर उस की आंखें बह चलीं.

मैं ने पहली बार उसे रोते हुए देखा. यहां तक कि गुड्डी की विदाई अथवा गिल्लू के होस्टल जाने के वक्त भी वो अपने जज्बातों को जब्त कर रखने में सफल रही थी. किंतु आज अपने बेटे को सामने देख एक मां का समस्त वात्सल्य आंखों के रस्ते सारे बांधों को तोड़ कर उमड़ पड़ा था.

मांबेटा आपस में वर्षों के सहेजे संस्मरण साझा करने लगे. मैं ने उन्हें छेड़ना उचित नहीं समझा. यह सोच कर मैं ने धाय को उत्तम को ले कर अपने रूम में जाने को कहा, ताकि वे दोनों निश्चिंत हो कर बातें कर सकें.

उन के जाने के बाद बिसेसर से मैं अलग से पूछने लगा. पता चला, घर छोड़ने के बाद उत्तम कलकत्ता चला गया था, जहां कुछ समय इधरउधर भटकने के बाद एक साहब के घर पर उसे काम मिल गया. उस साहब के यहां काम करते हुए उस ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद उसी साहब की पैरवी पर बंगाल सरकार के एक औफिस में चपरासी के पद पर नियुक्त हो गया. औफिस में ही कार्यरत एक बंगाली चतुर्थवर्गीय कर्मचारी से उस ने विवाह कर लिया था. अब सबकुछ सैटल होने के बाद वह अपनी मां को लेने आया था.

बिसेसर की बातें सुन मेरा माथा ठनका. ‘जब उत्तम की नौकरी लग गई थी, तब उस ने अपनी मां की सुध क्यों नहीं ली?’ मैं ने बिसेसर से पूछा.

बिसेसर के पास मेरे इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं था. मैं ने दूसरा प्रश्न किया, ‘उत्तम के कितने बालबच्चे हैं?’

‘साहब, 2 बच्चे हैं. 2 साल की एक बेटी है और बेटा इसी साल हुआ है,’ बिसेसर ने बताया.

‘तो अपने बच्चों की देखभाल के लिए उत्तम को बंगाली ‘मेम’ को एक आया की आवश्यकता थी, जिस ने उत्तम को अपनी मां के पास आने को मजबूर किया. किंतु प्रत्यक्ष में मैं ने कुछ नहीं कहा.

मैं मांबेटे के बीच नहीं आना चाहता था. मैं ने नंदिनी पर जब अपनी आशंका प्रकट की, तो उस ने इसे निर्मूल बताया.

तभी पीछे वाले भूसीघर से दोनों मांबेटा वापस आते दिखे. वापस आते ही उत्तम वहां से दनदना कर निकल पड़ा. बिसेसर के साथसाथ हम सब भी अवाक उसे जाता देखते रहे. हमारी समझ में नहीं आया कि ये आखिर हुआ क्या.

धाय चुप थी. आखिर बिसेसर के बहुत पूछने पर वो फूट पड़ी, ‘जब इस के घर भी धाय ही बनना लिखा है, तो अपने भाग्य से मैं यहीं ठीक हूं. भैया अब तुम जाओ. मुझे बहुत काम है. 6 माह बाद मेरा बेटा कल घर आ रहा है,’ यह बोल धाय वहां से चली गई.

बिसेसर के साथसाथ हम सभी हतप्रभ हो उसे जाते हुए देखते रहे. अपनी कोखजाया के लिए ‘इस के’ और गौतम के लिए ‘बेटे’ का संबोधन सुन मां और नंदिनी दोनों आश्चर्यचकित थे.

धाय की सहृदयता और स्नेहसिक्त व्यवहार के हम सब कायल थे. इसलिए 20 वर्षों बाद घर वापस आए बेटे के प्रति उस का यह व्यवहार हम सबों के लिए अप्रत्याशित था.

इतने वर्षों में मैं ने कभी भी धाय को इस कदर क्षुभित नहीं देखा था. ऐसी भी क्या वितृष्णा कि अपने बिछुड़े हुए बेटे का संगसाथ एक रात के लिए भी गवारा न हुआ और उस का परित्याग करने में उस ने एक क्षण भी न लगाया. प्रीति में कितनी शक्ति है, इस का मुझे तत्क्षण आभास हुआ. आपसी संबंधों में प्रीत का स्थान जब स्वार्थ ले लेता है, तब यह रिश्तों को खोखला कर देती है. फिर वो अपना बेटा ही क्यों न हो. कदाचित प्रीत की इसी डोर से बंधे कृष्ण ने हस्तिनापुर महाराज के आतिथ्य को ठुकरा कर विदुर का आतिथ्य स्वीकार किया था. गांव की एक अशिक्षित महिला, जिसे वर्षों से हम बेसहारा समझते आए थे, के इस निर्णय ने हमें धाय के उस सशक्त पक्ष से परिचित कराया था, जिस से हम सब अब तक अनभिज्ञ ही थे. एक निहायत ग्रामीण महिला भी अपने स्वाभिमान के प्रति इतनी संवेदनशील होगी, यह मेरे लिए अचंभे की बात थी. हो सकता है, धाय के इस व्यवहार को हमारा पढ़ालिखा समाज ‘कलह’ कह कर नकार दे, किंतु इस बात को तो कदापि ही नहीं नकारा जा सकता था कि स्वाभिमान की रक्षा के लिए जिस आत्मविश्वास और नैतिक बल की आवश्यकता होती है, वो धाय में कूटकूट कर भरा था.धाय पुनः अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गई थी.

 

 

मेरी सास मेरे साथ रहने को तैयार नहीं हैं जिससे मुझे काफी दिक्कत होती है, मैं क्या करूं?

सवाल
मैं 42 वर्षीया महिला हूं. मेरे 2 बच्चे हैं और पति सरकारी बैंक में अच्छी पोस्ट पर कार्यरत हैं. हाल ही में पति का तबादला दिल्ली हुआ है. समस्या यह है कि मेरी सास, जो 84 वर्षीया हैं, हमारे साथ रहने को तैयार नहीं हैं, जिस से हमें काफी दिक्कत होती है. कैसे हम इस समस्या का समाधान करें?

जवाब
ऐसा अधिकांश घरों में देखने को मिलता है कि घर के बड़े अपने बच्चों के साथ रहने को तैयार नहीं रहते, क्योंकि  बच्चों को उन का रोकनाटोकना अच्छा जो नहीं लगता.

दरअसल, बच्चे चाहते हैं कि उन के मातापिता आसपास तो रहें लेकिन साथ नहीं. और जब मातापिता इस बात को महसूस करने लगते हैं तो उन से थोड़ी दूरी बना लेते हैं ताकि वे भी खुश रहें और उन के बच्चे भी आजादी से जीवन व्यतीत कर सकें.

आप के मामले में हो सकता है कि शुरुआत में आप लोग साथ रहते हों और आप लोगों के बीच भी मनमुटाव हुआ हो जिस के कारण वे अब आप के साथ रहने को तैयार नहीं हों. ऐसे में आप दुखी न हों क्योंकि गलती हर इंसान से होती है, बल्कि अगर वे अकेली रह रही हैं तो उन की अच्छे से सेवा करें.

इस से हो सकता है धीरेधीरे उन का आप के प्रति व्यवहार बदले और वे फिर से आप के साथ रहने को तैयार हो जाएं. अगर आप के रिश्ते हमेशा अच्छे रहे हैं तो उन कारणों को जानने की कोशिश करें जिन के चलते वे खुद को अलगथलग महसूस करती हैं. अगर एक बार पूरी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी तो आप की समस्या का हल भी निकल जाएगा.

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सास बहू का रिश्ता, मीठा मीठा प्यारा प्यारा

एक लड़की की शादी होती है तो उसे पति के साथ मिलती है एक सास. सास व बहू के बीच पुत्र/पति अहम कड़ी होती है. मानने को तो पति और सास दोनों का एक ही लक्ष्य होता है- उस की खुशी, उस की सेहत, उस की प्रगति अर्थात दोनों उस का भला चाहती हैं. किंतु फिर भी सदियों से सासबहू का रिश्ता कड़वाहट भरा माना जाता है. मन में ललिता पवार और शशिकला के फिल्मी वैम्प किरदारों जैसी आकृतियां उभरने लगती हैं.

यदि दामाद, बेटी के पीछे लगा रहे तो बेहतर. लेकिन यदि बेटा, बहू की बात सुनता रहे तो नालायक. नहीं जनाब, सभी सासें ‘सौ दिन सास के’ फिल्म की खड़ूस सास जैसी नहीं होतीं. कुछ ऐसी भी होती हैं जिन्हें पा कर बहुएं मायके का रास्ता भूल जाती हैं. ‘मम्मी’ शब्द का जिक्र आते ही बहुओं को अपनी सास याद आती हैं, अपनी मां नहीं. कैसे बनता है रिश्ता ऐसा? अपनेआप? जी नहीं, अपनेआप नहीं, बल्कि ऐसा दोनों की समझ के तहत होता है. समझदार हैं वे सासबहू जो इस अनमोल रिश्ते की कीमत और गरिमा को पहचानती हैं और देर होने से पहले ही सही कदम उठा लेती हैं.

हर रिश्ता बनाने में समय, धैर्य और परिश्रम लगता है. हथेली पर सरसों नहीं उगती. इसलिए रिश्तों को समय दें और विश्वास बनाए रखें. रिश्ता मजबूत बनेगा. सास और बहू दोनों ही भिन्न परिवेश से आती हैं तो एकदूसरे को समझने का प्रयास करें. कोशिश करें की पहले आप दूसरे की भावनाएं समझें और बाद में मुंह खोलें. याद रखें शब्दबाण एक बार कमान से निकल गए तो उन की वापसी असंभव है, साथ ही, उन के द्वारा दिए घाव भरना भी बहुत मुश्किल. शब्द रिश्तों को पत्थर सा मजबूत भी बना सकते हैं और कांच सा तोड़ भी सकते हैं. सोचसमझ कर शब्दों का प्रयोग करें. यदि चुप्पी से काम चल सके तो चुप रहें.

ऐनी चैपमैन, अमेरिकी संगीतकार तथा लोकप्रिय वक्ता, जो स्वयं बहू रहीं और अब सास बन चुकी हैं, ने कई पुस्तकें लिखीं, जैसे ‘द मदर इन ला डांस,’ ‘ओवरकमिंग नैगेटिव इमोशंस,’ ‘10 वेज टू प्रिपेयर यौर डौटर फौर लाइफ’ आदि. वे सासबहू के रिश्ते को सुनहरा बनाने के लिए ये नियम बताती हैं :

–  सास को बहू की तुलना अपनी बेटी से नहीं करनी चाहिए और बहू को सास की तुलना अपनी मां से नहीं करनी चाहिए.

–  सास को चाहिए कि शादी के बाद बेटे को अपनी गिरफ्त से आजाद कर दे ताकि न केवल बेटेबहू का शादीशुदा जीवन सुखमय हो बल्कि सासबहू का रिश्ता भी सुदृढ़ बने.

–  बहू को अपने सैरसपाटे हेतु अपनी गृहस्थी या बच्चों की जिम्मेदारी सास पर न छोड़ने का निश्चय करना होगा.

–  यदि सास या बहू कुछ हठीले स्वभाव की हैं तो दोनों को चाहिए कि वे परस्पर नम्रता बनाए रखें लेकिन साथ ही थोड़ी दूरी भी रखें.

बहू नईनवेली है तो सास भी नवविवाहिता के लिए बहूरानी की भूमिका नई है, जिसे वह अनुभव से सीखेगी और इस के लिए उसे पर्याप्त समयाविधि मिलनी चाहिए. वहीं, सास के लिए भी उन का रोल नूतन है. एक अन्य स्त्री का अपनी गृहस्थी में प्रवेश, अपने बेटे के जीवन में स्वयं से अधिक उपस्थिति आदि के लिए स्वयं को ढाल रही हैं और इस के लिए उन्हें भी समय मिलना चाहिए.

बाटें अनुभव, आएं पास

बहुएं सास की इज्जत करें. उन्हें बुजुर्ग होने के साथ अनुभवी भी मानें. अपनी सास से उन के बचपन की मजेदार बातें सुनें, उन के शादी के बाद के किस्से, बच्चों को पालते समय संबंधित अनुभव आदि. जब एक सास अपनी बीती हुई जिंदगी के अनुभव अपनी नई बहू से बांटेगी तो उस के मन में बहू के प्रति लगाव बढ़ना स्वाभाविक है जिस से उन दोनों का रिश्ता और सुदृढ़ हो जाएगा.

सुझाव लेने में झिझक कैसी

हो सकता है कि आप अपनी सास के हर सुझाव से इत्तफाक न रखती हों, फिर भी उन के अनुभव को देखते हुए उन से सुझाव लेने में कोई हर्ज नहीं है. इस से आप को भिन्न प्रकार के विचार मिलेंगे. लेकिन कभी भी उन के दिए सुझावों को व्यक्तिगत लेते हुए उन पर बहस न करें. सुझाव को मानना आप की इच्छा पर निर्भर करता है, पसंद आए तो मानें वरना सास को अपनी सोच से अवगत करा दें.

घर दूर, फिर भी दिल पास

एक ही घर में रहते हुए दिलों का करीब आना समझ आता है. किंतु आज के परिवेश में जहां नौकरी और प्रगति के कारण बेटाबहू अलग शहर में गृहस्थी बसाते हैं, उस स्थिति में सासबहू का रिश्ता मधुर होने के साथ सुदृढ़ कैसे बने? दोनों एकदूसरे को कैसे समझें, जानें और मजबूत रिश्ता बनाएं? यह सबकुछ संभव है.

आइए, मिलते हैं कुछ ऐसी सासबहू जोडि़यों से जो शादी के बाद अलग शहरों में रहते हुए भी एकदूसरे की भावनाओं को न केवल पहचानती हैं बल्कि परिवार की डोर एक ने दूसरे के हाथों में बखूबी सौंपी है :

देवकी और पल्लवी : डैल कंपनी की सीनियर एडवाइजर, पल्लवी भारद्वाज. दिल्ली की पैदाइश, वहीं पलीबढ़ी, शिक्षा प्राप्त की. उस की शादी हुई केरल के आनंद रामकृष्णन से. विवाहोपरांत दोनों बेंगलुरु में रहने लगे जहां दोनों की नौकरियां थीं. सासससुर फलों व मसालों का अपना बगीचा संभालते हुए अपने गांव त्रिचूर में रहते हैं. भाषा, संस्कृति, खानपान सभी का फर्क था. किंतु पल्लवी ने अपने पति के साथ हर दूसरे माह अपनी ससुराल त्रिचूर जाने का क्रम अपना लिया. दोनों सासबहू हंस कर गले मिलतीं पर बातचीत कैसे हो? पल्लवी को मलयालम नहीं आती थी और देवकी को हिंदी या अंगरेजी. परंतु शादी के 8 वर्षों बाद आज भी दोनों में मधुर रिश्ता है. कैसे?

केरल में मिलने आए बेटाबहू के लिए जब देवकी खाना बनाती थीं तब पल्लवी उन के साथ रसोई में खड़ी रहती थी. वे इशारे से कहतीं कि जाओ अखबार पढ़ लो, टीवी देख लो पर पल्लवी मुसकरा कर उन्हें बताती कि उसे यहीं अच्छा लग रहा है. देवकी को उन्हें अपने हाथ का खाना खिलाना अच्छा लगता तो पल्लवी परोसने में मदद करती. अकेले में भले ही पल्लवी ताली या बिछुए नहीं पहनती पर जब सास से मिलने जाती तो उन की भावनाओं का ध्यान रखते हुए उन की संस्कृति के जेवर पहन लेती. ऐसे ही जब देवकी उन के घर आतीं, तो पल्लवी पहले से ही उन की पसंद का खयाल रखते हुए राशन मंगवा रखती. वे जो चाहे, जैसे चाहे, पकाएं. धीरेधीरे अब देवकी ने पल्लवी को अपनी संस्कृति का भोजन बनाना सिखा दिया है. जब भी दोनों मिलती हैं, एकदूसरे के साथ अधिक से अधिक समय बिताती हैं. भाषा की दीवार होते हुए भी दोनों ने एकदूसरे से न केवल तालमेल बिठा लिया बल्कि आज दोनों एकदूसरे की बात और भावना अच्छी तरह समझती हैं.

समय पर हर काम निबटाने की शौकीन देवकी कहती हैं कि यह उन्होंने अपनी बहू से सीखा कि बच्चे के साथ खेलने का सुख प्राप्त करने के लिए यदि कोई काम थोड़ा टालना भी पड़े तो कोई हर्ज नहीं. मसलन, कपड़े बाद में धुल सकते हैं, या सफाई थोड़ी देर में की जा सकती है. पल्लवी से उन्होंने प्राथमिकता देना सीखा. उन दोनों का रिश्ता जबरदस्ती की बातचीत से ऊपर, संगसाथ की खुशी में है.

बेटा होने के बाद दादी बनी देवकी ने अपने पोते अर्नव को खूब लाड़प्यार दिया. भोजन की जगह चौकलेट खिलाई जो उस के पिता को कतई पसंद नहीं आया मगर पल्लवी ने समझाया कि दादी का लाड़ है, और कुछ दिनों की बात है. रोजाना हम बच्चे को अनुशासनपूर्वक पालते हैं. जब दादी से मिलेगा, तब उन्हें अपनी मरजी का लाड़ देने दें. इसी में उन की संतुष्टि है.

पल्लवी कहती हैं कि आखिर सास भी मां है. और फिर ‘मूल से अधिक सूद प्यारा होता है’ यह कहावत सब ने सुनी है. यदि दादी अपने पोतेपोतियों को थोड़ा बिगाड़ना चाहें, उन्हें देररात तक खेलने दें या पौष्टिक भोजन की जगह उन की पसंद का जंक फूड खिलाएं तो उन्हें ऐसा करने दें. उन की भावनाओं को समझें और उन की कद्र करें.

सरोज, मोना व सुनयना : जयपुर के विद्यास्थली महिला टीचर ट्रेनिंग कालेज की उपप्राध्यापिका डा. सरोज शर्मा ने अपने ज्येष्ठ पुत्र विभाष का विवाह मोना से करवाया. सासबहू में ऐसी घुटी कि उन की शादी के 7 वर्षोंपरांत सरोज के छोटे बेटे की शादी मोना की छोटी बहन सुनयना से स्वत: दोनों परिवारों ने करवाई. आज मोना मुंबई में रहती है और सुनयना हैदराबाद में. मोना और सुनयना बताती हैं कि सरोज सास के रूप में मां से भी अधिक सरल स्वभाव की हैं. जब चाहे सो कर उठो, जो जो चाहे

कपड़े पहनो, अपनी मरजी का पकाओ, मम्मी कभी नहीं टोकतीं. उन का स्वभाव इतना सहज है कि जब एक दुर्घटना के कारण उन का औपरेशन हुआ, और बहुओं ने आग्रह किया कि अब वे साड़ी के बजाय टीशर्टलोअर पहनें तो वे आसानी से मान गईं.

सरोज कहती हैं, ‘‘हम जबजब मिलते हैं, मैं अपनी दोनों बहुओं के साथ रसोई में बराबर भागीदारी निभाती हूं, और कुछ देर उन के साथ उन के कमरे में बैठ कर दिनभर की बातें भी करती हूं. लेकिन बेटों के घर लौटते ही मैं अपने कमरे में आ जाती हूं. आखिर पतिपत्नी को भी तो आपसी समय मिलना चाहिए.’’ मोना की शादी के 25 सालों बाद भी तीनों परिवार हर दीवाली साथ मिल कर मनाते हैं- कभी जयपुर, कभी मुंबई तो कभी हैदराबाद में.

सरोज बताती हैं कि दोनों बहुओं को उन की अलमारी से उन की साडि़यां और जेवर पहनने की पूरी छूट है. और बहुएं बताती हैं कि उन की सास उन के पीहर वालों को बराबर की इज्जत देती हैं. चूंकि दोनों परिवार जयपुर में रहते हैं, सरोज हर त्योहार में दोनों बहुओं के मातापिता को भी न्योतती हैं.

सरोज को शुरू से ही काम करने का शौक रहा. अब जब बेटे उन्हें काम करने से मना करते हैं तो उन की उदासी देख बहुएं टोकती हैं, ‘‘मम्मी को काम करना अच्छा लगता है तो क्यों उन्हें अपने मन का नहीं करने देते?’’ ऐसे ही यदि कभी बेटे अपनी पत्नी से कोई शिकायती लहजे में बात करते हैं तो सरोज उन्हें फौरन टोक देती हैं, ‘‘कुछ खास चाहिए तो खुद कर लिया करो. ये कोई मशीन नहीं है, इंसान है.’’

फातिमा और फातिमा : चेन्नई की फातिमा शादी कर के एक भरेपूरे परिवार की सब से छोटी बहू बनी. इत्तफाक से उस की सास का नाम भी फातिमा ही है जो काफी बुजुर्ग हैं और चलनेफिरने में उन्हें बहुत दिक्कत रही है. लेकिन बहू ने जल्दी ही परेशानी का कारण भांप लिया.

सास अशिक्षित होने कारण और कुछ मुसलिम समाज की रिवायतों के चलते घर से बाहर कदम नहीं निकालती थीं. चलनेफिरने की कमी के कारण उन के पैरों की शक्ति क्षीण होती गई. बहू ने उन के लिए व्हीलचेयर का इंतजाम किया और नियमित रूप से उन्हें घुमाने ले जाती रही. आज उन के पैरों में इतनी जान है कि वे अपने रोजमर्रा के काम स्वयं कर सकती हैं.

शादी के एक माह बाद से ही बहू फातिमा अपने पति के कारोबार के चलते दिल्ली में रही. पीछे से सास का ध्यान रखने हेतु बहू ने एक नर्स का भी इंतजाम किया. सास मिलने आती रहती हैं और बहू भी उन से मिलने जाती रहती है. जब भी दोनों साथ होती हैं, सास फातिमा ने बहू फातिमा को बुरका पहने को कभी बाध्य नहीं किया. बल्कि बहू को साड़ी पहनना कुछ खास नहीं भाता जान कर, सास ने उसे सलवारकमीज और यहां तक कि लंबे स्कर्ट पहनने की भी इजाजत दी.

बहू हर ईद पर सास के नए जोड़े सिलवाती है. सास फातिमा को बहू फातिमा पर इतना विश्वास है कि किसी भी चीज की आवश्यकता पड़ने पर वे पूरे परिवार में से केवल फातिमा को ही बताना उचित समझती हैं. कई बार बहू को याद कर के रो भी देती हैं, ऐसा अन्य रिश्तेदार बताते हैं.

बहू फातिमा कहती है, ‘‘हमारे यहां सास को ‘मामी’ कह कर पुकारा जाता है लेकिन मैं ने हमेशा उन्हें ‘मम्मा’ ही कहा. शुरू में मुझे खाना पकाना नहीं आता था. हमारे यहां के रिवाज के हिसाब से पहला खाना, जो मुझे अकेले पकाना था, वह भी मैं ने उन्हीं की देखरेख में पकाया. उन्होंने हमेशा मेरा साथ दिया, कभी भी मेरे खाने में कोई नुक्स नहीं निकाला, बल्कि हमेशा प्रशंसा ही की. उन से सीखतेसीखते मुझे खाना बनाना आ गया. वे पास बैठी सब्जी काट कर दे दिया करतीं और बताती जातीं कि कैसे पकाऊं.’’ सास को टीवी धारावाहिकों में नागिन जैसे कार्यक्रम पसंद आते हैं तो बहू उन्हें फोन पर बताती रहती है कि कब कौन सा हिंदी धारावाहिक तमिल में डब हो कर आएगा ताकि वे देख कर आनंद उठा सकें.

साधना और मेधा : नईनई शादी के बाद जब मेधा अपने मायके जबलपुर आई तो मां ने बिंदी, मांग व बिछिया न देख फौरन टोका, ‘‘कौन कहेगा तेरी नई शादी हुई है? तेरी सास कुछ कहती नहीं?’’ लेकिन यह जानते ही कि उसे बिंदी, मांग व बिछिया में रुचि नहीं है, मेधा की सास साधना ने उस से कहा, ‘‘वैसे रहो जैसे अपने मायके में रहती थी. जो इच्छा करे, वह ड्रैस पहनो. बस, जब किसी रिश्तेदार के घर जाओ तब मांग भर लेना.’’

साधना अपने पति की नौकरी के कारण छत्तीसगढ़ में रहती हैं. मेधा रोज दफ्तर से लौट कर साधना से फोन पर अपने पति की पसंदीदा डिश पूछ लेती है. पति का दिल जीतने में उस की सास उस की बहुत मदद करती हैं.

मेधा हंसती है, ‘‘अकसर मांएं बेटों को बहुओं से बांटने में चिढ़ती हैं किंतु मेरी सास तो खुद ही मुझे मेरे पति की कमजोर नस बताती रहती हैं.’’ यहां तक कि पहले दिन से साधना ने परिवार की हर बात में मेधा की राय ली है. उसे कभी यह नहीं लगने दिया कि वह इस परिवार में नई सदस्य है.

मेधा की रिश्ते की एक बड़ी सास काफी तेजतर्रार हैं. लेकिन साधना की मेधा को सीख, कोई मेहमान कुछ ही दिनों के लिए हमारे घर आता है, उस की कोई बात बुरी भी लगे तब भी उसे उलटा जवाब नहीं देना, ने मेधा को सभी की दृष्टि में सम्मान दिलाया. रिश्तेदारी में नईनवेली बहू को सैटल करना उन्हें भलीभांति आता है.

इन दिनों टीवी के एक धारावाहिक की बात करते हुए साधना प्रसन्न हो कर कहती हैं कि उन की बहू तो रजनीकांत है. स्कूटर वह चला लेती है, कार वह चला लेती है, 15 लोगों का खाना वह बना लेती है. परस्पर प्रेम और सौहार्द्र के कारण अलग शहरों में रहते हुए भी सासबहू दोनों में बहुत अच्छी निभती है.

तो देखा आप ने, इन रीयल लाइफ उदाहरणों ने दिखा दिया कि भिन्न शहरों में रहते हुए भी आपसी समझदारी और थोड़े धैर्य के साथ चलने से, सासबहू का रिश्ता मीठा, मजबूत और मधुर हो सकता है. बस, आवश्यकता है तो साफ मन और सच्ची नीयत की.

सास को बताएं सारी बातें

कोशिश करें कि सास को आप की गृहस्थी की आवश्यक बातों का ज्ञान हो, जैसे आप कोई नई गाड़ी खरीद रही हैं या किसी और मकान में शिफ्ट हो रही हैं. बच्चों की तसवीरें भी उन्हें भेजती रहें. आजकल तो अधिकतर दादियां व्हाट्सऐप पर भी हैं और फेसबुक पर भी. बच्चों के स्कूल में हो रही फैंसी ड्रैस प्रतियोगिता, या आप की रिहाइश के प्रांगण में मन रहे राष्ट्रीय उत्सवों में बच्चों की भागीदारी की फोटो उन्हें अवश्य पोस्ट करें. नन्हें देशभक्त या नन्हीं परियां देख कर दादी का हृदय अभिभूत हो जाएगा.

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सपनों का घरौंदा : भाग 1

लेखिका- अमृता पांडे

सुरेश मास्साब स्कूल से घर की ओर लौट रहे थे. अनायास ही उन्हें ध्यान आया कि शाम के लिए कुछ सब्जियां वगैरह ले कर चला जाए. घर के रास्ते से तकरीबन आधा किलोमीटर दूर दूसरी दिशा को शाम के समय सब्जी की दुकानें लगती थीं. वह मुड़ गए उस दिशा को. सब्जियों के भाव पता किए तो बहुत ज्यादा थे. यों भी बरसात में सब्जियां की आवक कम होने की वजह से भाव अकसर बढ़ ही जाते हैं. भाव ज्यादा हो या कम, सब्जी तो खानी ही है. हां, थोड़ा कम से काम चला लेंगे. यह सोच कर वह अपनी रोज की दुकान में पहुंच गए.

मध्यवर्गीय परिवार की यही तो व्यथा है. सच में, महंगाई के बोझ तले सब से अधिक यही वर्ग दबता है, क्योंकि अमीरों को तो कोई फर्क नहीं पड़ता. गरीब अपनी आवश्यकता के हिसाब से जरूरतें पूरी कर लेता है. थोड़ीबहुत सरकारी सहायता भी राशन के माध्यम से मिल जाती है, लेकिन मध्यम वर्ग को पूछने वाला कौन है? कोई नहीं.

सब्जी का थैला हाथ में लिए मास्साब यही सोच रहे थे कि तभी सब्जी वाला बोला, “मास्साब, क्या दूं?”मास्साब ने रेट पता किए और जो सब्जियां थोड़ा मीडियम रेंज वाली थीं, वे खरीद लीं.”अरे सुरेश बाबू, कैसे हो? बहुत कम सब्जी ले जा रहे हो?”तभी उन के कानों में एक आवाज टकराई. मुड़ कर देखा तो पड़ोस वाले लालाजी थे.

“जी हां, ज्यादा सब्जियां सड़ जाती हैं, बासी हो जाती हैं, इसलिए थोड़ीथोड़ी ही ले जाता हूं, ताकि ताजगी बनी रहे. मैं तो रोज ही इधर से गुजरता हूं,” कह कर मास्साब अपने रास्ते चलने लगे और मन ही मन सोचने लगे कि लोगों को भी दूसरों के मामलों में कितनी अधिक दिलचस्पी होती है, कौन कितनी सब्जी ले जा रहा है, क्या कर रहा है, इस से किसी को क्या मतलब?

समय कुछ ज्यादा हो गया था. मास्साब तेज कदमों से घर की ओर चलने लगे. यों तो पिछले कुछ सालों से इस इलाके में भी ईरिकशा चलने लगे थे, लेकिन सुबहशाम पैदल चल कर वह 20 रुपए बचा लेते और साथ ही साथ सैर भी हो जाती.

यों तो किसी की बात का मास्साब पर बहुत अधिक फर्क नहीं पड़ता था, लेकिन सब्जी मंडी में लालाजी की कही हुई बात उन के कानों में गूंज रही थी. वह सोच रहे थे. क्या हालत हो गई है आज के समय में. मध्यम वर्ग का समाज बच्चों की इच्छा की सब्जी भी नहीं ले सकता. घर पहुंचे तो पत्नी साहिबा थोड़ा उदास सी बैठी थीं.

मास्साब ने पूछा, “क्या बात है जया. सबकुछ ठीकठाक है. तुम्हारी तबीयत ठीक है?” संक्षिप्त सा ही बोलते थे वह.”हां, मेरी तबीयत ठीक है. आप हाथपैर धो लो. मैं पानी ले कर आती हूं.”बहुत ही समझदार और सुलझी हुई महिला थी जया. पति के घर आतेआते कभी भी किसी तरह की शिकायत नहीं करती, लेकिन आज तो मन उन का भी खराब था. सुरेश बाबू के लिए चाय बना कर लाई और साथ में बैठ कर खुद भी पीने लगी. तभी सुरेश बाबू  की नजर दीवार की ओर गई, “अरे, यह कैसे टूट गया? प्लास्टर भी उखड़ गया है.”

“हां, बिट्टू ने अपनी नई जींस टांगने की कोशिश की तो यह निकल गया और मैं ने फिर से ठोंक कर अटकाने की कोशिश की, तो यह प्लास्टर निकल गया,” वह आगे बोली, “ठोंकने की आवाज सुन कर अम्माजी भी ऊपर आ गईं और आज तो वे बड़ी नाराज थीं.””हां, उन्होंने तो मकान में किसी भी तरह की छेड़छाड़ करने से पहले ही रोका था. तुम ने उसे दोबारा नहीं ठोंकना था.”

“तो कपड़े कहां टांगे जाते? आप ही बताइए. अभी 3-4 दिन पहले भी उन्होंने किसी बात को ले कर एतराज जताया था.”फिर कुछ पल रुक कर वह बोलीं, “सुनिए, हम कब तक इस तरह दूसरों की बातें सुनते रहेंगे, क्या सब की तरह हमारा भी एक छोटा सा घर नहीं हो सकता? अब बच्चे भी बड़े हो रहे हैं. उन का भी मन करता है कि कहीं अपना घर होता.”

“तुम बात सही कह रही हो. मैं मानता हूं कि यह तुम्हारा और बच्चों का अरमान होगा. मैं भी यही चाहता हूं, लेकिन इस मास्टरी में खानापीना, बच्चों को पढ़ानालिखाना. इस सब के बाद इतना बचता ही कहां है कि हम मकान बनाने की सोचें?” सुरेश बाबू ने अपने विचार रखे.

“हां, देखो. एकसाथ मकान बनाने की बात तो मैं भी नहीं कर रही हूं , लेकिन हम धीरेधीरे शुरुआत तो कर सकते हैं. आप के स्टाफ के कई लोगों ने इस बीच जमीन खरीद ली है और मकान बना लिए हैं. हम भी कहीं जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा देख लेते हैं ना,”  किसी बच्चे की तरह जिद करते हुए पत्नी जया बहुत भोली लग रही थी.

सुरेश मास्साब समझ चुके थे कि आज जया ने बात छेड़ दी है. अब बात निकली है तो दूर तलक जाएगी.गहरी सोच में पड़ गए थे वे. यों तो शिक्षा विभाग में भी अच्छीखासी वेतन वृद्धि इस बार हुई थी, लेकिन मास्साब को जो कुछ भी करना था, वह इसी तनख्वाह में करना था. कोई पुश्तैनी जमीनजायदाद या रुपयापैसा उन के पास था नहीं. आज के जमाने में बच्चों को पढ़ानालिखाना कितना महंगा है. यों भी मास्साब के दोनों बच्चे पढ़ने में अच्छे थे, तो उच्च शिक्षा में अच्छाखासा खर्चा आना तय था. बच्चों की जरूरतें पूरी ना हो पाएं तो बाद में वे भी तो सुनाते हैं कि आप ने क्या किया हमारे लिए.

पत्नी ने तो अपने मन की बात कह दी थी और थोड़ी देर में फिर वह सामान्य हो गई, लेकिन सुरेश बाबू के लिए तो आज की रात बहुत लंबी हो गई थी.अगले दिन सुबह उन्होंने अपने फंड का हिसाब लगाया. लोन के बारे में भी पता करने का दिमाग बनाया. बात भी सच है कि पूरी जिंदगी किराए के मकान में कैसे काटते.

उन्होंने महसूस किया था कि जब भी पत्नी के साथ कहीं जाते तो लोग पूछते, “अपना मकान है या किराए का?”मास्साब तो किराए का बोल कर साइड हो लेते, लेकिन पत्नी का मुंह थोड़ा मुरझा सा जाता.खैर, मास्साब ने उस दिशा में सोचना शुरू कर दिया. उन के ही किसी साथ के टीचर ने उन्हें जमीन बिकने के बारे में बात बताई.

भैंसपालन में दें ध्यान, मिलेगा बेहतर दूध उत्पादन

लेखक- डा. नगेंद्र कुमार त्रिपाठी, वैज्ञानिक,

पशुपालन डेरी कारोबार में भैंसपालन की बहुत ज्यादा अहमियत है. देश में तकरीबन 55 फीसदी दूध भैंसपालन से मिलता है, इसलिए भैंस की उन्नत नस्ल का होना बेहद जरूरी है. इस के लिए पशुपालकों को भैंस संबंधी हर जरूरी जानकारी रखनी चाहिए. अगर आप भी डेरी कारोबार से जुड़े हुए हैं या फिर भैंसपालन शुरू करने जा रहे हैं, तो इन बातों को ध्यान में जरूर रखें. इस से आप को बेहतर दूध उत्पादन मिलेगा, साथ ही साथ अच्छा मुनाफा भी कमा पाएंगे :

* अच्छी नस्ल की भैंस का होना.

* संतुलित आहार.

* भैंस के लिए आरामदायक बाड़ा.

* भैंस हर साल बच्चा दे.

* रोग पर नियंत्रण.

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भैंस की उन्नत नस्ल पशुपालकों को भैंस पालने में हमेशा उन्नत नस्ल का चुनाव करना चाहिए. अगर भैंस की नस्ल अच्छी होगी, तो दूध का उत्पादन भी ज्यादा मिल पाएगा. भैंस की कई उन्नत नस्लें जैसे मुर्रा, जाफराबादी, महसाना, पंधारपुरी, भदावरी आदि होती हैं. इन में से मुर्रा नस्ल की भैंस को सब से अधिक उत्पादन देने वाली नस्ल कहा जाता है.

मुर्रा नस्ल की भैंस के सींग मुड़े हुए होते हैं, जो देशी और दूसरी प्रजाति की भैंसों से दोगुना दूध दे सकती है. इस से रोज तकरीबन 15 से 20 लिटर तक दूध मिल सकता है. इस के दूध में फैट की मात्रा भी ज्यादा पाई जाती है, इसलिए इस की कीमत भी ज्यादा होती है. खास बात यह है कि यह भैंस किसी भी तरह की जलवायु में रह सकती है. इस की देखभाल करना भी आसान होता है. इस को ज्यादातर पंजाब और हरियाणा राज्यों में पाला जाता है.

संतुलित आहार पशुपालकों को उन्नत नस्ल के साथसाथ संतुलित आहार पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए. अगर भैंसों की चराई अच्छी होगी, तो उन से दूध उत्पादन भी अच्छा मिल पाएगा. बता दें कि इन के संतुलित आहार में जौ, मक्का, गेहूं, बाजरा, सरसों की खल, मूंगफली की खल, बिनौला की खल, अलसी की खल आदि को शामिल करना चाहिए.

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इन संतुलित आहार को पशुपालक अपने पशुओं को दूध के मुताबिक खिला सकते हैं. हर साल गाभिन हो भैंस भैंस का हर साल गाभिन होना अच्छा रहता है. अगर भैंस हर साल गाभिन न हो, तो उस को डाक्टर को जरूर दिखा लेना चाहिए. इस के अलावा भैंस का वजन भी 350 किलोग्राम के आसपास होना चाहिए. अधिक जानकारी के लिए नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र में जा कर या फोन से संपर्क करें.

Katrina Kaif और Vicky Kaushal की शादी में रणबीर कपूर को नहीं मिला न्योता, फैंस ने पूछा सवाल

बॉलीवुड स्टार कैटरीना कैफ अपने बॉयफ्रेंड विक्की के साथ 7,8,9 दिसंबर को राजस्थान में शादी के बंधन में बंधने वाली है. इनके शादी के लिए राजस्थान के माधोपुर स्थित सिक्स सेंस होटल और स्पा को बुक किया गया है.

कैटरीा और विक्की की शादी बॉलीवुड की ग्रैंड शादी होने वाली है, हालांकि इस शादी में बॉलीवुड के कुछ सितारे इन्वाइटेड नहीं है. खबर है कि कैटरीना कैफ ने अपने एक्स बॉयफ्रेंड रणबीर कपूर और सलमान खान को शादी में नहीं बुलाया है. न ही खान परिवार में किसी को न्योता दिया है.

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एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि अदाकारा ने अपनी शादी में बेहद ही कम लोगों को बुलाया है, इस शादी में उनके करीबी रिश्तेदार और दोस्त ही शामिल हो पाएंगे. फैंस ये सवाल कर रहे हैं कि अदाकारा अपने एक्स बॉयफ्रेंड रणबीर कपूर को भूल नहीं पाई हैं. इसलिए वह उन्हें अपने शादी में इन्वाइट नहीं कि हैं.

अदाकारा ने सलमान खान को न बुलाकार यह साफ कर दी हैं कि वह अपने पुराने जख्मों को अभी भी भूल नहीं पाई हैं. बता दें कि विक्की कौशल और कैटरीना कैफ एक दूसरे को लंबे समय से पसंद करते थें. अब जाकर उनलोगों ने शादी करने का फैसला लिया है.

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7 से 9 दिसंबर तक ये दोनों अपनी शादी की धूम में व्यस्त रहेंगे. दोनों एक साथ में काफी ज्यादा अच्छे दिखते हैं. फैंस को भी इन दोनों के शादी का इंतजार है.

Udaariyaan: नकली शादी का सच जानकर नफरत बना जैस्मिन का प्यार, अब लेगी फतेह से बदला

सीरियल उड़ारियां में जैस्मिन को बहुत बड़ा झटका लगा हुआ है. जैस्मिन ने जिसके बारे में कभी सपने में नहीं सोचा था, वह उसके साथ हुआ है. फतेह से धोखा मिलने के बाद से जैस्मिन खुद को संभालेगी कैसी अब फैंस को इस बात का इंतजार है.

सीरियल उड़ारियां में अब तक आपने देखा होगा कि कैसे जैस्मिन खुश होकर फतेह के साथ कनाडा जाने के लिए तैयार हो जाती है. लेकिन जैसे ही वह रास्ते में पहुंचती है , उसे फतेह की सच्चाई का पता चल जाता है.

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वहीं दूसरी तरफ तेजो भी अपने परिवार को अपनी नकली सगाई का सच बता देती है, एयरपोर्ट पर जाते ही फतेह का तेवर बदल जाता है और वह जैस्मिन के साथ जाने से मना कर देता है. इतना ही नहीं फतेह तो अपना पासपोर्ट भी जला देता है. फतेह की ये हरकत देखकर जैस्मिन डर जाती है.

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इसी बीच पुलिस फतेह को पकड़कर ले जाती है. अब जैस्मिन पागलों की तरह फतेह के पीछे – पीछे दौड़ती रहती है. अब आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि फतेह जैस्मिन को पहचानने से भी इंकार कर देगा, जैस्मिन फतेह के सामने रोते हुए अपने प्यार कि दुहाई देगी. लेकिन फतेह जब उसे शादी की सच्चाई के बारे में बताएगा तो जैस्मिन सब कुछ जानकर हिल जाएगी.

जब फतेह शादी की सच्चाई बताते हुए कहेगा कि जो शादी का पंडित  एक थिएटर आर्टिस्ट था तब जैस्मिन के पांव तले जमीन खिसक जाएंगे. फिर आगे फतेह कहेगा कि शादी के दौरान शादी की सारी रस्में गलत निभाई गई थी. फतेह कहेगा कि वह शादी के 7 फेरे नहीं बल्कि 6 फेरे लिए थें, और न ही उसने जैस्मिन की मांग भरी थी. यह सब जानकर जैस्मिन को विश्वास करना थोड़ा मुश्किल होगा.

अब जैस्मिन को समझ आ जाएगा कि फतेह ने तेजो के खातिर जैस्मिन को धोखा दिया है. अब आगे क्या होगा देखना काफी दिलचस्प होगा.

 

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