नवंबर माह में उत्तर भारत में सर्दियां शुरू हो जाती हैं. इस मौसम की खास फसलें गेहूं, आलू और सरसों मानी जाती?हैं. इन की बोआई से पहले खेत की मिट्टी की जांच अवश्य कराएं और जांच के बाद ही उर्वरकों की मात्रा तय करें. खेत में सड़ी हुई गोबर या कंपोस्ट खाद डालें.

* अपने इलाके की आबोहवा के मुताबिक बोआई के लिए फसल की किस्मों का चुनाव करें. बीजों को फफूंदीनाशक दवा से उपचारित करने के बाद ही बोएं. बोआई सीड ड्रिल से करने पर बीज भी कम लगता है और पैदावार भी अच्छी होती है.

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* बोआई अगर छिटकवां तरीके से करनी हो, तो अधिक बीज की जरूरत होती है. उर्वरकों के लिए प्रति हेक्टेयर 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस व 40 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करें. फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा व नाइट्रोजन की आधी मात्रा बोआई के समय खेत में डालें.

* गेहूं की तरह ही जौ की बोआई का काम 25 नवंबर तक पूरा कर लें. हालांकि पछेती फसल की बोआई 31 दिसंबर तक की जा सकती है. सिंचाई वाले इलाकों में 75 किलोग्राम व असिंचित खेतों में 100 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.

* तोरिया की फसल की फलियों में दाना भर रहा है और खेत में नमी की कमी है, तो फौरन सिंचाई करें. * सरसों की फसल से घने पौधे निकाल कर चारे में इस्तेमाल करें.

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* पौधे से पौधे की दूरी 15 सैंटीमीटर रखें. नाइट्रोजन की बाकी बची मात्रा बोआई के 25-30 दिन पहली सिंचाई पर छिटकवां तरीके से दें.

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