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सनकी वृद्ध, क्या करें युवा?

बेंगलुरु की 35 वर्षीया वैशाली अपने 70 वर्षीय पिता की देखभाल करने वाली इकलौती संतान है. मां अब इस दुनिया में नहीं है. पिता हाइपरटैंशन व क्रौनिक किडनी डिजीज के मरीज हैं. पिता के खानेपीने से ले कर, उन्हें अस्पताल ले जाना, उन की डायलिसिस कराना, उन के इलाज का खर्चा सबकुछ की जिम्मेदारी अकेली वैशाली की है.  पिता की इस हालत और अकेली होने के कारण वह कोई अटैंडेंट रखना भी सुरक्षित नहीं समझती. सामाजिक तौर पर वह पूरी तरह अकेली है. आसपड़ोस से उसे ‘बेचारी’ का टैग मिलता है. रात को नींद में पिता की जरा सी आहट से वह जाग उठती है. वैशाली खुद नहीं जानती ऐसा कब तक चलेगा लेकिन उस ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया है और जो उस से हो सकता है वह करने की पूरी कोशिश करती है. पिता की इस हालत के आगे उस की अपनी खुशियां, अपनी चाहतें कहीं पीछे छूट गई हैं. उम्र के तीसरे दशक में वह रुकी सी जिंदगी जी रही है जहां उस का जीवन जटिलताओं से भरा हुआ है. उस के पास यह सोचने का भी समय नहीं है कि पिता के इस दुनिया से चले जाने के बाद वह अपनी रुकी जिंदगी को कैसे रफ्तार देगी.

वैशाली जैसी अनेक पीकूवादी बहू, बेटी के रूप में अपनी व्यक्तिगत जिंदगी, अपने कैरियर को परे रख कर अपने पिता, अपनी मां या सास की सेवा में लगी हैं. उन्होंने अपनी इच्छाओं, अपनी खुशियों को तिलांजलि दे दी है. उन्हें भी कोई ऐसा चाहिए जो उन की परेशानी, उन की घुटन को समझ सके. जिम्मेदारियों के लिए अपनी इच्छाओं को मारने वाले ये केयरगिवर हर पल निराशा व नकारात्मकता में जीते हैं. हाल ही में प्रदर्शित फिल्म ‘पीकू’ की कहानी भी वैशाली जैसी है. जहां खूबसूरत, तनावग्रस्त बेटी है, बीमार पिता है. जहां बेटी की जिंदगी का हर पल दवा, बीमारी, डाक्टरों में उलझा है, पिता की देखभाल में व्यस्त बेटी की कोई पर्सनल लाइफ नहीं है. वह मैडिकल एनसाइक्लोपीडिया बन चुकी है.

पीकू फिल्म से अनेक ऐसे सवाल उभरे हैं जिन की ओर समाज ने कभी ध्यान नहीं दिया. हमारे समाज में आम धारणा है कि बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए, बुजुर्गों का मानसम्मान करना उन की सेवा करना, बच्चों का कर्तव्य है. जो व्यक्ति मांबाप की सेवा करता है वह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को पाता है. बुजुर्गों की सेवा सब से बड़ा धर्म है. इसी धर्म के चलते कितने युवाओं की इच्छाओं, आकांक्षाओं का दमन हो रहा है, इस ओर कोई क्यों ध्यान नहीं देता? क्या बच्चों की जिंदगी और उन की खुशी कोई महत्त्व नहीं रखती? विधुर वृद्ध पिता के साथ रहती अकेली कामकाजी युवती अपनी प्रोफैशनल जिम्मेदारियों व पारिवारिक जिम्मेदारियों को कैसे अकेले भला मैनेज करे? जब बुजुर्ग इमोशनल, फाइनैंशियल ब्लैकमेल करें तो वह क्या करे? कोई केयरगिवर के तनाव, निराशा व उस की कुंठित भावनाओं को क्यों नहीं समझता? आइए, कुछ उदाहरणों के जरिए ढूंढ़ते हैं इन्हीं सवालों के जवाब :

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बुजुर्गों की सनक

बुजुर्गों के इस स्वभाव को हम पीकू फिल्म के चरित्र भास्कोर के माध्यम से भी बखूबी समझ सकते हैं. भास्कोर अपनी बेटी पीकू की शादी नहीं कराना चाहता. वह लड़कों के सामने पीकू का परिचय कुछ इस प्रकार देता है, ‘‘पीकू इज नौट वर्जिन ऐंड शी इज फाइनैंशियली ऐंड सैक्सुअली इंडिपेंडैंट.’’ ऐसा इसलिए ताकि विवाह की बात आगे न बढ़ सके. सारी मैडिकल रिपोर्ट्स ठीक आने के बावजूद वह खुद को हमेशा बीमार समझता है, पीकू के औफिस, उस के दोस्तों के सामने सिर्फ अपनी बीमारी, अपनी कब्जियत का रोना रोता रहता है. वह हर बात पर अपनी चलाता है. मैडिकल नौनसैंस उस की हौबी है. अपने होमटाउन कोलकाता जाना भी भास्कोर का निर्णय होता है, प्लेन से नहीं कार से जाएंगे. यह भी उस का निर्णय होता है. तबीयत ठीक न होने के बावजूद पार्टी से आ कर डिं्रक करना, घर के नौकरों से, पड़ोसियों से बातबात पर बहस करना यह सब दर्शाता है कि वह सनकी, जिद्दी, स्वार्थी बुजुर्ग है जिसे बेटी की खुशियों से कोई लेनादेना नहीं है.

यह फिल्म वास्तविक दुनिया से अलग नहीं है. हमारे, आप के आसपास अनेक ऐसे बेटेबेटियां हैं जिन के बुजुर्ग मातापिता अपने सनकपने, स्वार्थीपने के आगे बच्चों की इच्छाओं को अनदेखा कर रहे हैं. बातबात पर चिड़चिड़ाना, छोटीछोटी शारीरिक समस्याओं को बड़ा बना कर घर में तमाशा बना देना, खानेपीने, कहीं भी आनेजाने में अपनी जिद मनवाना आदि इन के स्वभाव में शामिल है. अगर ये बुजुर्ग फाइनैंशियली सैटल हैं तो वे बच्चों को आर्थिक रूप से भी ब्लैकमेल करते हैं. अपने पुराने गांव, अपनी जमीन से जुड़े रहने की जिद, उसे न बेचने की जिद बच्चों को परेशान करने का उन का एक अन्य तरीका होता है. वे सिर्फ अपनी परेशानी को बड़ा समझते हैं. उन की परेशानी के आगे बच्चों की परेशानी कोई माने नहीं रखती. उदाहरण के तौर पर समझें तो मातापिता की सेवा करने वाला एक बेटा या बेटी जो कामकाजी है उस के औफिस में बहुत टैंशन है, वर्कप्रैशर है, औफिस पौलिटिक्स का सामना कर रहा है लेकिन जब वह घर पहुंचता है तो घर में बैठा बुजुर्ग उस से उस की परेशानी पूछने, उस से सहानुभूति रखने के बजाय अपनी परेशानियों का रोना ले कर बैठ जाता है.

अपनी बीमारियों को बढ़ाचढ़ा कर बताने के पीछे बुजुर्गों का एक मनोविज्ञान काम करता है. वे पड़ोसियों, रिश्तेदारों के सामने अपनी बीमारी के बारे में बढ़ाचढ़ा कर बताते हैं ताकि वे अधिक से अधिक सहानुभूति बटोर सकें और उन के बच्चे उन पर अधिक ध्यान दें. वे बच्चों के उन के प्रति भावनात्मक जुड़ाव को ले कर उन्हें इमोशनली ब्लैकमेल करते हैं. उन्हें बच्चों के इमोशन से कोई लेनादेना नहीं होता. अगर बुजुर्गों को सचमुच अपने बच्चों से लगाव है तो उन्हें चाहिए कि वे बच्चों की इच्छाओं, परेशानियों को समझें. खुद बीमार हों तो औरों को बीमार न बनाएं.

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केयरगिवर की रुकी जिंदगी

40 वर्षीया मोनिका चार्टर्ड अकाउंटैंट है लेकिन मोनिका ने अपने सफल कैरियर को ताक पर रख कर अपनी जिंदगी को सास की सेवा में लगा दिया है. पति प्राइवेट कंपनी में कार्यरत हैं. मोनिका को अपने कैरियर को स्थगित करना पड़ा क्योंकि सास की सेवा वही कर सकती थी. मोनिका कहती है कि सास की देखभाल में रोज उसे अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है क्योंकि सास डिमैंशिया रोग से पीडि़त हैं. मोनिका की सास कभीकभी तो इतनी अजीब तरह से पेश आती हैं कि मोनिका खुद डर जाती है और उस का तनाव व निराशा हद से अधिक बढ़ जाते हैं. कभीकभी सास जब आक्रामक हो जाती हैं और असभ्य ढंग से पेश आने लगती हैं तो समझ नहीं आता कि वह खुद को कैसे संभाले. सास की सेवा में उस का खुद का स्वास्थ्य नजरअंदाज हो रहा है. <span”>कहने को हमारे यहां संयुक्त प्रथा प्रणाली है. मातापिता की देखभाल की जिम्मेदारी घर के सभी सदस्यों की होती है लेकिन ऐसी मुश्किल घड़ी में घर के अधिकांश सदस्य पल्ला झाड़ लेते हैं. ऐसे में केयरगिवर की हालत पस्त हो जाती है. उस के लिए अकेले मरीज को संभालना, उस की दवाएं, खानापीना, डाक्टरों के पास ले जाना आदि संभव नहीं हो पाता.  और वह झल्ला जाता है या खुद डिप्रैशन में चला जाता है. उस की पूरी जिंदगी दवाओं व बीमारी में उलझ कर रह जाती है. उस की कोई व्यक्तिगत व सामाजिक जिंदगी नहीं रह जाती. वह पूरी तरह अलगथलग पड़ जाता है.</span”>

ऐसे में जरूरत है सहायक संस्थाओं की, जिन के प्रशिक्षित काउंसलर केयरगिवर की परेशानी समझें और उन्हें सही सलाह भी दें. साथ ही, ट्रेंड केयरगिवर उपलब्ध करवाने की कोशिश भी करें ताकि उन की रुकी घुटनभरी जिंदगी को खुली हवा मिल सके.

दोहरा मापदंड क्यों

पीकू फिल्म ने एक अन्य सवाल जो खड़ा किया वह यह है कि क्या मातापिता द्वारा बच्चों के पालनपोषण करने की बच्चों को इतनी बड़ी सजा मिलनी चाहिए कि बच्चे मातापिता के एहसान का बदला अपनी जिंदगी, अपने कैरियर की तिलांजलि दे कर चुकाएं? अगर बच्चों की मातापिता के स्वास्थ्य सेवा के प्रति जिम्मेदारी बनती है तो क्या मातापिता की बच्चों के भविष्य, उन के पारिवारिक जीवन में सैटल होने के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं बनती? बुजुर्ग मातापिता इतने स्वार्थी कैसे हो सकते हैं कि वे अपनी खुशी, अपनी सोच के आगे बेटे या बेटी के भविष्य को दांव पर लगा दें. ऐसे अनेक उदाहरण समाज में देखने को मिलते हैं जहां एक बेटा या बेटी अपने बुजुर्ग मातापिता की सेवा के लिए अपनी पूरी जिंदगी दांव पर लगा देता है, जिस उम्र में मातापिता को उन का विवाह कर के उन्हें जीवन की खुशियां देनी चाहिए उस उम्र में वे स्वार्थी हो कर कैसे बच्चों की व्यक्तिगत जिंदगी पर कुंडली जमा कर बैठ सकते हैं.

ऐसे बच्चे जब अपने आसपास दोस्तों, हमउम्र रिश्तेदारों को वैवाहिक जीवन की खुशियां बटोरते, कैरियर में ऊंचे मुकाम पाते देखते हैं तो वे पलपल अपनी इच्छाओं को मारते हैं और उन के पास तनावग्रस्त हो कर निराशा में डूबने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचता. आप उस लड़की या लड़के की मनोदशा का अंदाजा लगाइए जो पढ़ीलिखी आत्मनिर्भर है, खूबसूरत है लेकिन उसे मातापिता की सेवा के आगे अपनी खुशियों का त्याग करना पड़ता है. जब बच्चे मातापिता की खुशी, उन की देखभाल के बारे में सोचते हैं तो क्या मातापिता का फर्ज नहीं कि वे बच्चों की खुशियों, उन की इच्छाओं को तरजीह दें, प्राथमिकता दें?

खुद जिएं औरों को भी जीने दें

जिंदगी को खुद के लिए और बच्चों के लिए भी बोझ बनाते बुजुर्गों को सीख देती फारुख शेख व अन्य मंझे किरदारों द्वारा अभिनीत फिल्म ‘क्लब 60’ ऐसे बुजुर्गों को जीने की नई दिशा दिखाती है जो जीवन के 6 दशक देखने के बाद भी उम्र व परेशानियों की परवा नहीं करते. यह फिल्म (क्लब 60) ऐसे लोगों की कहानी है जिन की जिंदगी में उम्र या शारीरिक परेशानी कोई अड़चन नहीं है. वे आम लोगों की तरह दौड़धूप, भागदौड़, मौजमस्ती करते हैं और खुल कर जिंदगी जीते हैं. यह फिल्म भास्कोर जैसे बुजुर्गों को सिखाती है कि जिंदगी को पूरे उत्साह व उमंग के साथ जीभर जिएं और अपने बच्चों की जिंदगी को पीकू की जिंदगी जैसा न बनाएं. उन की जिंदगी को अपने कायदेकानूनों के अनुसार न चलाएं. माना कि बच्चों को आप से लगाव है, आप से भावनात्मक जुड़ाव है लेकिन इस जुड़ाव का आप गलत फायदा न उठाएं, उन्हें इमोशनली, फाइनैंशियली ब्लैकमेल न करें.

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हम यह कदापि नहीं कह रहे कि बच्चे मातापिता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को अनदेखा करें. मगर मातापिता को भी अपने बच्चों की खुशियों, इच्छाओं, भावनाओं को समझने की जरूरत है. वरना एक समय ऐसा आएगा जब जिंदगी के हर कदम पर दवाइयों, बीमारियों, परेशानियों में उलझे युवा अपने बुजुर्गों को ‘सैल्फिश’ यानी स्वार्थी कहने से नहीं चूकेंगे जैसे पीकू फिल्म के अंत में पीकू ने झल्ला कर अपने पिता भास्कोर, जिस से वह बेहद प्यार करती थी, से कहा है.

वेब सीरीज ‘अनामिका’ में सनी लियोन जासूस के किरदार में आएंगी नजर, देखें Video

अपनी हॉट, सेक्सी और अति बोल्ड इमेज के लिए मशहूर पॉर्न स्टार सनी लियोन अब पहली बार वेब सीरीज ‘अनामिका’ में अपनी ईमेज के विपरीत जासूस के किरदार में नजर आने वाली हैं,जिसे मशहूर फिल्मकार विक्रम भट्ट ने निर्देशित किया है. यानी कि अब ‘एमएक्स प्लेअर’ पर दस मार्च से है.

प्रसारित हाने वाली वेब सीरीज ‘‘अनामिका’’ में सनी लियोन खुफिया एजेंट अनामिका के रूप में छल-कपट करने के साथ ही लोगों से अपना असली चेहरा छिपाते हुए हर मुश्किल परिस्थितियों में शांत नजर आने वाली है. 8 एपीसोड की इस वेब सीरीज में सनी लियेान के साथ समीर सोनी, सोनाली सहगल, राहुल देव, शहजाद शेख और अयाज खान ने भी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं.

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इस रोमांचक फिल्म में एक बहेद होशियार एजेंट की तलाश की जा रही है, जो कथित रूप से गलत राह पर निकल गई है. अनामिका एक ऐसे ही औरत है,जो अपनी याददाश्त खो चुकी है और उसे अपनी जिंदगी के बारे में कुछ भी याद नहीं है. उसे सिर्फ इतना याद है कि तीन वर्ष पहले डॉ प्रशांत ने एक भयानक दुर्घटना से उसे बचाया था और उसे न सिर्फ अपने घर और अपने दिल में जगह दी थी, बल्कि उसे एक नाम भी दिया था! अपने भूले हुए अतीत का कोई जवाब नहीं मिलने पर अनामिकाअपनी जिंदगी में आगे बढ़ने का फैसला करती है और एक डॉक्टर से शादी कर लेती है. लेकिन कोई भी उसके बारे में असली सच नहीं जानता. क्या अनामिका इन ताकतवर लोगों से खुद को बचा पाएगी?

अब वक्त आ गया है कि अनामिका अपने अतीत से लड़े लेकिन जहां वह एक के बाद एक पहेलियां सुलझाती है, वहीं यह साफ हो जाता है, यह उन पहेलियों के अंत की शुरुआत है…

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वेब सीरीज ‘‘अनामिका’’के संदर्भ में सनी लियोन कहती हैं-

यह एक एकशन प्रधान वेब सीरीज है. मगर मैंने इससे पहले कभी भी एक्शन  जॉनर में काम नहीं किया. लेकिन जब मैंने वेब सीरीज ‘अनामिका’ की पटकथा पढ़ीतो मैं अति उत्साहित हो गयी दूसरी बात मुझे प्रतिभाशाली निर्देशक विक्रम भट्ट के साथ काम करने का अवसर मिल रहा था. फिर उन्होंने मुझे मेरे किरदार के लिए आवश्यक ट्रेनिंग दिलायी. इसमें अभिनय करना मेरे लिए अति सुखद अनुभव रहा.’’

वेब सीरीज ‘‘अनामिका’’ को मराठी, बंगाली, तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ में भी डब किया गया है.

Imlie: आर्यन की पोल खोलेगा आदित्य! क्या टूटेगा इमली का विश्वास?

टीवी शो ‘इमली’ (Imlie) में लगातार महाट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि इमली और आर्यन कार एक्सीडेंट का शिकार हो जाते हैं. ऐसे में आर्यन (Aryan) बुरी तरह घायल हो जाता है. तो वहीं इमली उसे अस्पताल लेकर जाती है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में दिखाया जाएगा कि आर्यन होश में नहीं आएगा. इमली बहुत घबरा जाएगी. वह आर्यन के ठीक होने के लिए प्रार्थना करेगी. तभी आर्यन को होश आ  जाएगा. तो दूसरी तरफ इमली से मिलने के लिए आदित्य  वहां पहुंचेगा.

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शो में आप ये भी देखेंगे कि आदित्य, इमली से कहेगा कि आर्यन तुम्हारी प्रार्थना के लायक नहीं है. आर्यन एक दोगला और मौकापरस्त इंसान है लेकिन इमली, आदित्य की बातों को अनसुना कर देगी. आदित्य ये भी कहेगा कि आर्यन के लिए इमली सिर्फ एक मोहरा हो. वह सिर्फ तुम्हें यूज कर रहा है.

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आदित्य ये भी कहेगा कि आर्यन मुझसे बदला लेने के लिए तुम्हारा यूज कर रहा है. वह सिर्फ अपना मकसद पूरा कर रहा है. वह मुझे बर्बाद करना चाहता है. लेकिन इमली कहेगी कि मुझे आर्यन पर पूरा भरोसा है. वह ऐसा नहीं कर सकता है.

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तो दूसरी तरफ आर्यन की मां उसे बताएगी कि इमली तुम्हारे लिए काफी परेशान थी. वह ठीक होने के लिए प्रार्थना कर रही थी. ये सुनकर आर्यन इमोशनल हो जाएगा. शो में ये देखना दिलचस्पा होगा कि क्या आर्यन इमली को धोखा देगा?

Anupamaa: ढोल-नगाड़ों के साथ होगी राखी दवे की एंट्री, किंजल को ले जाएगी साथ?

स्टार प्लस का सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) में लगातार हाईवोल्टेज ड्रामा देखने को मिल रहा है,जिससे फैंस का फुल एंटरटेनमेंट हो रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि अनुपमा का बर्थडे मनाया गया. और उसी दिन किंजल ने अनुपमा को सरप्राइज दी कि वह मां बनने वाली है. शाह परिवार का हर एक सदस्य ये खबर सुनकर काफी खुश हुआ. शो के अपकमिंग एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में आप देखेंगे कि अनुपमा किंजल से कहेगी कि वो मां बनने वाली है. उसे ये खुशखबरी अपनी मां यानी राखी दवे को बताने के लिए कहेगी. लेकिन किंजल मना कर देगी. तभी अनुपमा उसे मायके का मतलब समझाएगी. वह कहेगी कि किंजल राखी के बता दें कि वह नानी बनने वाली है. किंजल राखी दवे को फोन करके खुशखबरी सुनाएगी. इस बीच वह ढोल-नगाड़ों के साथ शाह हाउस में एंट्री लेगी.

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शो में आप देखेंगे कि राखी अपनी बेटी किंजल की नजर उतारेगी. फिर वह शाह हाउस में बखेड़ा खड़ा करेगी. राखी शाह परिवार का मजाक उड़ाएगी और किंजल से कहेगी कि वो उसके साथ घर चले क्योंकि वो चाहती है कि उसका नाति महलों में पैदा हो, किसी छोटे से घर में नहीं. यह बात सुनकर शाह परिवार का पारा चढ़ जाएगा.

 

शो में आप ये भी देखेंगे कि किंजल को इस बात का बुरा लगेगा कि उसकी वजह से अनुपमा का बर्थडे बीच में ही रह गया. तो दूसरी तरफ बा कहेगी कि कोई भी दादी बर्थडे मनाते हुए अच्छी नहीं लगती. बा दादी बनने  का मतलब समझाएगी, वह कहेगी कि दादी का मतलब सिर्फ पूजा-पाठ, सत्संग और तीर्थ यात्रा होता है. बापूजी बा को समझाने की कोशिश करेंगे और कहेंगे कि अनुपमा की पहचान सिर्फ दादी तक सीमित नहीं है. उसे अपने जीवन में बहुत कुछ करना है.

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Satyakatha: लुधियाना बम ब्लास्ट कांड- टैटू से हुई आतंकी की पहचान

सौजन्य: सत्यकथा

रोजाना की तरह 23 दिसंबर, 2021 को भी लुधियाना अदालत अपने नियत समय पर खुली थी. वकीलों और मुवक्किलों का आवागमन बदस्तूर जारी था. हालांकि अदालत परिसर में 13 गेटों में से 7 गेट ही खुले हुए थे और बाकी के 6 गेट पहले की तरह ही बंद थे.

मुख्य गेट पर लगे मेटल डिटेक्टर से ही हो कर सभी को अंदर जाना होता था और वहां सिक्योरिटी भी मुस्तैद थी. यही नहीं, अदालत परिसर के करीब 7 मुख्य पौइंट्स पर सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे, जिन में से 3 चल रहे थे और बाकी 4 कैमरे बंद पड़े थे.

3 सीसीटीवी कैमरों के माध्यम से ही अदालत परिसर में आनेजाने वाले लोगों पर निगरानी रखी जा रही थी. एक खास बात यह थी कि कई दिनों से चले आ रहे वकीलों का आंदोलन भी स्थगित था, इसलिए रोजमर्रा की अपेक्षा भीड़ थोड़ी कम थी.

मुकदमों की फाइलें अदालतों में लग चुकी थीं. न्यायाधीश अपनेअपने कमरों में आसन पर विराजमान हो मुकदमों को अंतिम रूप देने में मशगूल थे. वकीलों से न्यायालय कक्ष भरे पड़े थे. उसी बीच एक जबरदस्त धमाका हुआ. धमाका इतना जोरदार था कि पूरी बिल्डिंग दहल उठी.

धमाके की गूंज सुन कर वहां भगदड़ मच गई थी. यह धमाका अदालत की दूसरी मंजिल स्थित शौचालय में हुआ था. धमाके की वजह से आसपास इमारतों के शीशे चटक गए थे. शौचालय के अंदर की दीवारें तक उड़ गई थीं. यही नहीं, दूसरी मंजिल की दीवारें और छत भरभरा कर नीचे जा गिरी और मलबे में तब्दील हो गई थीं.

यह घटना दोपहर के सवा 12 बजे घटी थी. जैसे ही घटना की सूचना डिवीजन नंबर-5 थाने के इंसपेक्टर बलबीर सिंह को मिली, वह अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. यही नहीं, दिल दहला देने वाली घटना की सूचना पुलिस कमिश्नर गुरप्रीत सिंह भुल्लर को भी मिल चुकी थी. सूचना मिलते ही वह भी मौके पर पहुंच कर घटना की छानबीन करने में जुट गए थे.

मामले की गंभीरता को देखते हुए चंडीगढ़ से फोरैंसिक टीम और एनएसजी टीम मौके पर पहुंच कर जांच में जुट गई थी. एनआईए की टीम भी दिल्ली से रवाना तुरंत रवाना हो गई थी.

देखते ही देखते अदालत परिसर परिसर पुलिस छावनी में तब्दील हो गया था. राज्य के गृहमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा और डीजीपी सिद्धार्थ चट्टोपाध्याय मौके पर पहुंच चुके थे.

मलबे को हटाने में पुलिस जुटी हुई थी. दूसरी मंजिल की इमारत गिरने से संदीप कौर व शरणजीत कौर निवासी जमालपुर, मनीष कुमार निवासी वृंदावन रोड और कृष्ण खन्ना बुरी तरह घायल हो गए.

आननफानन में पुलिस ने घायलों को जिला अस्पताल पहुंचाया. चारों में से कृष्ण खन्ना की हालत गंभीर बनी हुई थी. वह मलबे के नीचे बुरी तरह दबे हुए थे और उन के सिर में काफी चोटें आई थीं.

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शौचालय के अंदर जहां धमाका हुआ था, वहां क्षतविक्षत एक लाश पड़ी थी. जहांतहां मांस के लोथड़े खून में सने पड़े थे. मरने वाला कौन था, फिलहाल उस की शिनाख्त नहीं हो सकी थी.

पुलिस अपनी काररवाई में जुटी थी. धमाका जिस तरह से हुआ था, अनुमान यही लगाया जा रहा था कि घटना आतंकी हो सकती है. आरडीएक्स अथवा आईईडी विस्फोट में इस्तेमाल किया गया होगा.

बहरहाल, पुलिस की काररवाई जारी थी. शौचालय के पास बिखरा मांस का लोथड़ा पुलिस ने समेटना शुरू किया तो मौके से एक मोबाइल फोन बरामद हुआ. पुलिस ने वह अपने कब्जे में ले लिया.

जांचपड़ताल आगे बढ़ी तो उसी मलबे में से मृतक का दाहिना हाथ मिला, जिस पर टैटू गुदा था. मृतक की शिनाख्त के लिए टैटू ही एक आखिरी सहारा था. उधर मृतक के पास से बरामद मोबाइल फोन की जांच शुरू कर दी गई.

उस फोन की काल डिटेल्स निकलवाने के लिए सर्विलांस डिपार्टमेंट को भेज दिया गया. इधर कोर्ट कौंप्लेक्स चौकी के इंचार्ज एएसआई सुखपाल सिंह की तहरीर पर डिवीजन नंबर-5 थाने में भादंसं की धारा 302, 307 विस्फोटक अधिनियम और डैमेज औफ पब्लिक प्रौपर्टी सहित 13 धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

मुकदमा दर्ज होने के बाद थाना पुलिस, एनएसजी और एनआईए की टीमें जांच में जुटी हुई थीं. 24 घंटे में जांच एजेंसियों की मेहनत ने अपना रंग दिखाया.

घटनास्थल से बरामद मोबाइल फोन और हाथ पर बने टैटू से मृतक की पहचान पंजाब पुलिस के निलंबित हैडकांस्टेबल गगनदीप सिंह निवासी जिला खन्ना, पंजाब के रूप में की गई. घटना से पहले एक घंटे के दरम्यान एक ही नंबर पर उस ने 13 बार काल की थी.

जांच एजेंसियों ने उस नंबर की डिटेल्स निकलवाई तो वह नंबर खन्ना जिले की कमलजीत कौर का निकला. जब उस की और गहराई से छानबीन की गई तो उस की पहचान एसपी (खन्ना) के रीडर कांस्टेबल के रूप में हुई.

अब देर किस बात की थी, पहचान होते ही पुलिस ने एसपी औफिस से कमलजीत कौर को धर दबोचा. यह 24 दिसंबर, 2021 की बात है.

पुलिस ने गिरफ्तार कमलजीत कौर को लुधियाना जांच एजेंसियों को सौंप दिया. जांच एजेंसी एनआईए ने जब अपने तरीके से उस से पूछताछ की तो पहले वह नानुकुर करती रही.

लेकिन जब उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ हुई तो उस ने बताया, ‘‘बम ब्लास्ट में मारा गया गगनदीप एसपी खन्ना के यहां तैनात हैडकांस्टेबल रीडर था. उसी वक्त दोनों के बीच परिचय हुआ था. यह परिचय बाद में प्यार में बदल गया. दोनों एकदूसरे ृसे प्यार करते थे. 2 साल पहले गगनदीप नशीले पदार्थ हेरोइन के साथ पकड़ा गया था, तभी से वह बरखास्त चल रहा था और जेल में बंद भी था. इस के आगे मैं कुछ नहीं जानती.’’

अब एक बात शीशे की तरह साफ हो चुकी थी कि मरने वाले का नाम गगनदीप सिंह था और वह पुलिस में हैडकांस्टेबल भी था. लेकिन उस ने जिस तरीके से धमाका करने की कोशिश की थी, वह किसी आतंकी साजिश से कम नहीं था.

सवाल यह था कि उस के पास इतना खतरनाक बम कैसे पहुंचा? इस के पीछे किनकिन लोगों के हाथ हो सकते हैं? बम प्लांट करने की ट्रेनिंग उस ने कहां से ली? ऐसे तमाम ज्वलंत सवाल थे, जिन का जवाब पुलिस और जांच एजेंसियों को ढूंढने थे.

कहते हैं, पुलिस जब अपने पर आ जाती है तो मुर्दों से भी सच उगलवा लेती है. ऐसा ही कुछ यहां भी हुआ. हैडकांस्टेबल से आतंकी बने गगनदीप सिंह की प्रेमिका कमलजीत कौर ने जांच एजेंसियों को जितना जानती थी, राज खोल दिया था.

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यही नहीं, गगनदीप के घर वालों ने उस की लाश की शिनाख्त तो कर ली लेकिन उस पर लगाए जा रहे आतंकी की मुहर से इनकार कर रहे थे, पर जांच एजेंसियों ने जब गगनदीप सिंह के खिलाफ तमाम सबूत दिखाए तो सब की बोलती बंद हो गई और उस जांच के लपेटे में मृतक की पत्नी जसप्रीत कौर और उस का बड़ा भाई प्रीतम सिंह घिर गया.

सबूतों की बिना पर पुलिस ने जसप्रीत कौर और उस के जेठ प्रीतम सिंह को गिरफ्तार कर अदालत में पेश कर जेल भेज दिया. अब तक की जांच से एक और बड़ा खुलासा हो चुका था. इस घातक विस्फोट के पीछे पाकिस्तान में बैठा आईएसआई का सक्रिय सदस्य हरविंदर सिंह उर्फ रिदा और अमृतसर जिले का मादक पदार्थ तसकर रणजीत सिंह उर्फ चीता के खतरनाक दिमाग का काम था.

आतंकी हरविंदर सिंह उर्फ रिदा और तसकर रणजीत सिंह उर्फ चीता का साथ इन का साथी जसविंदर सिंह मुल्तानी ने दिया था. वह सिख फौर जस्टिस का सक्रिय सदस्य था और जर्मनी में रहता था.

पंजाब के रहने वाले जसविंदर सिंह मुल्तानी पर खालिस्तान समर्थक होने के साथसाथ पाकिस्तान में हथियार और ड्रग तस्करी करवाने के भी आरोप हैं.

खैर, हैडकांस्टेबल गगनदीप सिंह इन बड़े आतंकियों के संपर्क में कैसे आया, फिलहाल पुलिस जांच की कहानी रोकते हुए उस की काली कहानी पेश करना जरूरी हो गया है. तो ऐसी है उस की कहानी—

31 वर्षीय गगनदीप सिंह मूलरूप से पंजाब के खन्ना जिले के घंडुआ गांव में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पिता अमरजीत सिंह, मां और बड़ा भाई प्रीतम सिंह थे.

बात 1995 से पहले की है. बेहद ईमानदार और कर्मठी किस्म के अमरजीत सिंह पीआरटीसी में सरकारी कर्मचारी थे.

अपने सख्त ईमान के चलते विभाग में वह काफी मशहूर थे और वह विभाग से रिटायर तक हो गए लेकिन उन के चरित्र पर किसी ने अंगुली तक नहीं उठाई थी. यही वजह रही कि तनख्वाह के थोड़े पैसों से घर चलाना मुश्किल हुआ जा रहा था.

हालांकि तब आज की तरह महंगाई नहीं थी, फिर भी अमरजीत सिंह का मध्यमवर्गीय परिवार तंगहाली के आलम से गुजर रहा था. इसी दौरान परिवार में एक घटना घटी.

अमरजीत सिंह का अपने भाई के साथ पैतृक संपत्ति को ले कर विवाद छिड़ गया. सीधेसादे अमरजीत अपना गांव छोड़ कर दोनों बेटों को साथ ले कर बहन के पास नंदी कालोनी, खन्ना आ गए और वहीं रहने लगे. सन 2005 में अमरजीत सिंह बहन का घर छोड़ कर परिवार सहित खन्ना के वार्ड नंबर-2 में किराए के मकान में रहने लगे थे.

परिवार की गरीबी और पैतृक संपत्ति विवाद में पिता का गांवघर छोड़ कर चले जाने की घटना का छोटे बेटे गगनदीप के मन पर गहरा असर हुआ. तब वह 15-16 साल का था.

उसी समय गगनदीप ने कसम खाई कि बड़ा हो कर वह पुलिस में जाएगा और अपने चाचा से बदला लेगा. जिस तरह पिता ने ईमानदारी के नाम पर पैसों के लिए बच्चों को रुलाया था, वैसी ईमानदारी को कफन पहना कर बेईमानी का चोला पहन कर नोटों के बिस्तर पर सोएगा.

उसी दिन से किशोर मन का कसरती बदन वाला गगनदीप पुलिस में भरती होने के लिए कठिन परिश्रम करने में जुट गया. उस की सालों की कड़ी मेहनत और दृढ इच्छा ने उस के सपनों को साकार किया. 2011 में वह पंजाब पुलिस में भरती हुआ.

पुलिस में भरती होते ही उस के सपने उड़ान भरने लगे. पुलिस में भरती हो कर उस का मकसद रुपए कमाना था, जनता की सेवा करना नहीं. अटल इरादों वाला गगनदीप करप्शन की राह पर निकल गया था और जनता के बीच खाकी वरदी का रौब जमा कर उन से रुपए वसूलता था.

हालात यह थे कि जिस घर में खाने के लाले पड़े थे, उस के पुलिस में भरती होने के साल भर बाद ही गाडि़यों की गिनती बढ़ने लगी. लेकिन गगनदीप हराम की अपनी इस कमाई से उतना खुश नहीं था, जितना उसे होना चाहिए. वह जल्द से जल्द बहुत अमीर बनना चाहता था.

इसी उधेड़बुन में वह जुटा रहता था. किस्मत के धनी गगनदीप सिंह की तरक्की राह चूमने लगी. खुराफाती और तिकड़मी दिमाग वाला गगनदीप जानता था कि कैसे किसी को अपनी ओर आकर्षित करना और उसे सीढ़ी बना कर आगे बढ़ना है.

चतुरचालाक गगनदीप अपने मृदुल व्यवहार से डीएसपी का रीडर बन गया. वहां पहुंचते ही उस की वह मंजिल मिल गई, जिस की उसे तलाश थी.

जुर्म के छोटे से ले कर बड़े अपराधियों की जन्मकुंडली औफिस की अलमारियों में जमा होती थी. रीडर तो वह पहले ही बन चुका था.

फाइलों की रीडिंग से उसे पता हो चुका था कि किस एरिया में बदमाशों और नशाखोरों का अड्डा जमा है. उन नशाखोरों पर खाकी वरदी की धौंस जमा कर खुद नशा कारोबारी बन गया था और हेरोइन जैसे खतरनाक नशा पुडि़या बना कर बेचने लगा.

नशे के इस नए कारोबार से गगनदीप के घर में बेशुमार पैसे आने लगे. अब उस ने एसएचओ स्तर के भ्रष्ट पुलिस अधिकारियों को अपने बिजनैस में शामिल किया और उन्हें समयसमय पर पैसे पहुंचाता रहा ताकि उस के गुनाह की दुकान पर किसी की बुरी नजर न लगे और उस के जुर्म की दुनिया बदस्तूर चलती रहे.

हुआ भी कुछ ऐसा ही. पैसे पाने के बाद पुलिस अधिकारियों ने भी अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी. इस से गगनदीप के हौसले बुलंद होते गए और वह नशे के कारोबार को बढ़ाता गया.

रीडर गगनदीप अपनी ऊंची पहुंच के बल पर आगे बढ़ता गया. कल तक वह डीएसपी का रीडर था, अब एसपी का रीडर बन चुका था. एसपी के औफिस में पहुंचते ही वह और बेखौफ हो गया था.

खैर, इसी औफिस में गगनदीप की मुलाकात कमलजीत कौर से हुई थी. वह भी खन्ना एसपी औफिस में नायब रीडर थी. कमलजीत कौर सुंदर और मृदुभाषी थी. जल्द ही दोनों में परिचय हुआ और आगे चल कर यह परिचय प्यार में बदल गया था.

कमलजीत गगनदीप की चिकनी- चुपड़ी बातों में आ कर उसे दिल दे बैठी. लेकिन उस के स्मार्ट चेहरे के पीछे छिपे शैतानी चेहरे को फिलहाल जान नहीं पाई थी.

7 सालों के भीतर गगनदीप ने खन्ना में अपनी कोठी बना ली थी. यह कोठी अपराध के पैसों से बनाई गई थी. युवावस्था के दिनों से मुफलिसी के जिस दौर से वह गुजरा था, उस की आलीशान कोठी की अलमारियों में महंगी चीजें करीने से सजी रहती थीं. घर में मोटरसाइकिल से ले कर चारपहिया वाहन तक आ गए थे.

एक मामूली हैडकांस्टेबल के पास इतने पैसे कहां से आ रहे थे, यह देख कर आसपड़ोस के लोग हैरान थे. जबकि वे इस की शिकायत उस के बुजुर्ग पिता से करते थे तो उस का बड़ा भाई प्रीतम भाई का पक्ष लेता हुआ पड़ोसियों से भिड़ जाता था. उस के बाद पड़ोसी भी चुप हो जाते थे.

बात 11 अगस्त, 2019 की है. मुखबिरों द्वारा लुधियाना एसटीएफ को इनपुट मिल चुका था कि मोतीनगर थाना इलाके में नशीला पदार्थ हेरोइन डिलीवर होने वाली है. इस सूचना पर एसटीएफ की टीम ने अपना जाल बिछा दिया था और जांच शुरू कर दी थी.

मुखबिर ने दूर से एसटीएफ टीम को 2 युवकों की ओर इशारा कर के बताया कि यही दोनों कुरियर हैं, जिन के पास माल है. और फिर गायब हो गया.

एसटीएफ ने उन दोनों युवकों अमनदीप और विकास को धर दबोचा और उन दोनों की गहन तलाशी ली. उन दोनों के पास से 200-200 ग्राम हेरोइन बरामद हुई. एसटीएफ ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया और मोतीनगर थाने ला कर उन से सख्ती से पूछताछ शुरू की.

दिन भर चली पूछताछ के बाद आखिरकार रात में जा कर अमनदीप और विकास दोनों ने कुबूल कर लिया कि हेरोइन उस के बौस ने डिलीवरी करने के लिए दी थी.

फिर उन्होंने जो नाम बताया, पुलिस वह नाम सुन कर चकरा गई. नशे का कारोबारी कोई और नहीं, एसपी रीडर गगनदीप सिंह था. दोनों कुरियर बौय के गिरफ्तार होने और राज से परदा उठ जाने की सूचना उसे मिल गई थी.

सूचना मिलते ही गगनदीप जिले से फरार हो गया. एसटीएफ की टीम गगनदीप सिंह के हरसंभव ठिकानों पर दबिश देती रही, जहांजहां उस के छिपने की संभावना बनी थी. वहांवहां पुलिस ने दबिश दी थी. लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं लगा.

पुलिस ने गगनदीप के बारे में सूचना देने के लिए राज्य के सभी जिलों को सूचित कर दिया था. आखिरकार 5 दिनों बाद एसटीएफ को बड़ी कामयाबी लगी. वह मोहाली जिले में छिपा था. मोहाली एसटीएफ ने एसटीएफ लुधियाना को इस की सूचना दी.

16 अगस्त, 2019 को एसटीएफ टीम ने उसे मोहाली से 400 ग्राम हेरोइन के साथ गिरफ्तार किया और प्रोडक्शन वारंट पर उसे लुधियाना ले आई और पूछताछ के बाद अदालत के सामने पेश कर जेल भेज दिया.

बाद में रिमांड पर ले कर पुलिस ने उस से पूछताछ की तो पता चला कि वरदी की आड़ में वह खुद नशे का कारोबारी बन गया था और कुरियर बौय रख कर कमीशन पर उन से नशा बिकवाता था.

उस के लिंक बड़ेबड़े माफियाओं से हो चुके थे. उस का लिंक पाकिस्तान के आतंकियों, बब्बर खालसा के सदस्यों और खतरनाक आतंकी संगठन सिख फौर जस्टिस से बना हुआ था. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि गगनदीप कितना खतरनाक हो चुका था.

बहरहाल, पूछताछ के बाद गगनदीप को लुधियाना सेंट्रल जेल के बीकेयू-4 बैरक में रखा गया. जिस बैरक में उसे रखा गया था, उसी बैरक में तस्कर और माफिया रणजीत सिंह उर्फ चीता पहले से बंद था.

कस्टम की टीम ने 29 जुलाई, 2019 को अटारी बौर्डर पर 532 किलोग्राम हेरोइन पकड़ी थी, जिस की अंतरराष्ट्रीय बाजार में 2770 करोड़ कीमत आंकी गई थी. अब तक की यह देश की पहली बड़ी खेप थी, जिसे पकड़ा गया था.

पाकिस्तान सीमापार से यह नशा अमृतसर के एक बडे़ नमक व्यापारी के नमक के कंसाइनमेंट में छिपा कर लाया गया था. यह मामला चंडीगढ़ स्थित एनआईए की अदालत में चल रहा है, जहां रणजीत सिंह उर्फ चीता आरोपी है.

जल्द ही गगनदीप और रणजीत चीता के बीच में गहरी दोस्ती हो गई थी. जेल की सलाखों के पीछे से चीता ने अपने साथियों पाकिस्तान में बैठे आईएसआई के सक्रिय सदस्य हरविंदर सिंह उर्फ रिदा और जर्मनी में रह रहे सिख फौर जस्टिस के खतरनाक आतंकी जसविंदर सिंह मुल्तानी से परिचय कराया था.

माफिया रणजीत सिंह उर्फ  चीता ने गगनदीप का पहले ब्रेनवाश किया और उसे समझाया कि उस की पहुंच खाकी से ले कर खादी के बड़ेबड़े नेताओं तक है, चिंता मत कर. जल्दी ही सलाखों से बाहर हो जाएगा. फिर तुझे हम अपने गैंग में ले लेंगे, फिर मौजा ही मौजा होगा.

रणजीत की बात गगनदीप के दिमाग में घर कर गई. उस दिन के बाद वह उस का भक्त हो गया, जो रणजीत कहता था वही वह करता था.

2 साल बाद 16 सितंबर, 2021 को गगनदीप जमानत पर जेल से बाहर आया. कुछ दिन वह शरीफों की तरह शांत बैठा रहा. हाथी के दांत की तरह दिखावे के तौर पर उस ने कपड़े का धंधा शुरू कर लिया था, लेकिन उस के दिमाग में फितूर की बातें अभी भी गूंज रही थीं.

रहरह कर उस के दिमाग में रणजीत की वह बात घूमती थी कि तुम अगर कोर्ट के रिकौर्ड रूम को उड़ा दो, जिस में तुम्हारे मुकदमे की फाइल रखी है तो तुम सदा के लिए बरी हो जाओगे और खुली हवा में सांस लोगे. क्योंकि जब मुकदमे की फाइल ही नष्ट हो जाएगी तो मुकदमा अपने आप ही खत्म हो जाएगा. न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.

उस दिन से गगनदीप जेल से बाहर आने के लिए फड़फड़ा रहा था, जबकि इस के पीछे रणजीत का खतरनाक मंसूबा छिपा था. वह एक तीर से 2 शिकार करना चाहता था.

उसे तो अपने 2770 करोड़ रुपए के नुकसान का बदला सरकार से लेना था, जिस के लिए सरकार के ही एक बंदे की उसे जरूरत थी, जिसे वह आसानी से मोहरा बना सके. आखिरकार, उसे वह मोहरा गगनदीप के रूप में मिल गया जो उस के नापाक मंसूबों को समझ नहीं सका था.

खैर, गगनदीप के दिमाग में एक ही बात चल रही थी. कोर्ट के रिकौर्ड रूम को नष्ट कर के खुद को मुकदमे से आजादी दिलाना. जेल से बाहर आने के बाद गगनदीप घर से कईकई दिनों तक गायब रहता था. पत्नी और घर वालों के पूछने पर वह कोई उत्तर नहीं देता था और पत्नी के साथ मारपीट कर बैठता था. ज्यादातर वह अपनी प्रेमिका कमलजीत कौर के साथ उस के कमरे पर बिताता था.

घटना से 2 दिन पहले गगनदीप ने खन्ना के आलीशान होटल ‘द डाउनटाउन’ में 24 घंटे के लिए एक कमरा बुक कराया था. उस होटल में प्रेमिका कमलजीत कौर के 4 घंटे बिताने के बाद फिर वह चैकआउट कर गया था.

घटना वाले दिन 23 दिसंबर, 2021 को बिना किसी को बताए गगनदीप घर से सुबह साढ़े 9 बजे अपने हाथ में काले रंग का सूटकेस ले कर निकला तो फिर घर नहीं लौटा. आई तो उस के मौत की खबर.

पुलिस सूत्रों के अनुसार, जो सूटकेस घर से ले कर वह निकला था, उस में घातक बम था. उस का मंसूबा भारी जनहानि पहुंचाना था, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. बम प्लांट करते हुए वह खुद ही शिकार बन गया.

बम प्लांट करते समय वह घबरा गया और भूल गया कि कौन सा कनेक्शन किस वायर के साथ जोड़ना है. गलत तार जुड़ने की वजह से बम फट गया और गगनदीप का चीथड़े उड़ गए.

जिस कोर्ट को उड़ाने की साजिश उस ने रची थी, उसी कोर्ट में 3 फरवरी, 2022 को उस के मुकदमों की तारीख थी.

बहरहाल, पुलिस और एनआईए बम कांड की जांच में जुटी हुई है. कथा लिखे जाने तक पुलिस एसपी खन्ना की रीडर और मृतक की प्रेमिका कमलजीत कौर, रणजीत सिंह उर्फ चीता, ड्रग तस्कर सुखविंदर सिंह, जसविंदर सिंह मुल्तानी उर्फ रिदा को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी और इस बात की जांच में जुटी थी कि घातक विस्फोटक आखिरकार गगनदीप तक पहुंचा कैसे.

लेकिन अभी तक पुलिस को इस का जवाब नहीं मिला है. जिस दिन इस राज से परदा उठेगा तो कई चेहरे बेनकाब होंगे, जिस का जनता को बेसब्री से इंतजार है.

गगनदीप के इस कारनामे की जानकारी उस के घर वालों को भी थी क्योंकि उन के खातों में विदेश से पैसे ट्रांसफर किए गए थे. पुलिस के पास इस के पक्के सबूत हैं, लेकिन उन की अभी गिरफ्तारी नहीं हुई थी. द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

गरमी में भिंडी की खेती

राइटर- प्रो. रवि प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक

भिंडी की खेती गरमी और खरीफ दोनों मौसम में की जाती है, लेकिन सिंचाई सुविधा होने पर गरमी में खेती करना ज्यादा लाभकारी होगा. भिंडी के हरे, मुलायम फलों का प्रयोग सब्जी, सूप फ्राई व अन्य रूपों में किया जाता है, जो कैंसर, डायबिटीज, एनीमिया और पाचन तंत्र के लिए लाभदायक है.

पौधे का तना व जड़, गुड़ और खांड़ बनाते समय रस साफ करने में इस का प्रयोग किया जाता है.

भिंडी ग्रीष्म और वर्षा दोनों मौसम में उगाई जाती है. इस के लिए पर्याप्त जीवांश और उचित जल निकास वाली दोमट भूमि सही रहती है. खेत की तैयारी के समय 3 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद प्रति कट्ठा (एक हेक्टेयर का 80वां भाग यानी 125 वर्गमीटर के हिसाब से)े बोआई के 15-20 दिन पहले खेत में मिला देना चाहिए. मिट्टी जांच के उपरांत ही उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए.

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गरमी में भिंडी की फसल लेने के लिए फरवरी से मार्च महीने तक और खरीफ की फसल लेने के लिए जून से 15 जुलाई तक बोआई की जाती है.

बोआई से पहले बीजों को पानी में 12 घंटे भिगो कर बोना ज्यादा लाभप्रद है. गरमी में 250 ग्राम और वर्षा में 150 ग्राम बीज प्रति बिस्वा/ कट्ठा में जरूरत पड़ती है.

समतल क्यारियों में गरमी में कतारों से कतारों की आपसी दूरी 30 सैंटीमीटर और पौधों से पौधों की दूरी 15-20 सैंटीमीटर और  वर्षा में 45-50 सैंटीमीटर कतार से कतार और पौधे से पौधे की दूरी 30 सैंटीमीटर पर रखनी चाहिए.

2 सैंटीमीटर की गहराई पर यह बोनी चाहिए.

भिंडी की किस्मों में काशी सातधारी, काशी क्रांति, काशी विभूति, काशी प्रगति, अर्का अनामिका, काशी लालिमा आदि प्रमुख हैं, जो सभी 40-45 दिन में फल देने लगती हैं. खरीफ की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, पर वर्षा न होने पर सिंचाई जरूर करें.

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गरमी में सप्ताह में एक बार सिंचाई करने की आवश्यकता होती है. खेत में सदैव नमी बनी रहनी चाहिए. देर से सिंचाई करने पर फल जल्दी सख्त हो जाते हैं और पौधे व फल की बढ़वार कम होती है.

खरपतवार को नष्ट करने के लिए गुड़ाई जरूर करें. कीट व रोगों का भी ध्यान रखें. उन्नत तकनीक का खेती में समावेश करने पर प्रति कट्ठा (एक हेक्टेयर का 80 वां भाग) 120-150 किलोग्राम तक उपज हासिल कर सकते हैं.

पहल: शीला ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए क्या किया?

धनबाद बर्दवान के बीच चलने वाली लोकल ईएमयू टे्रनों की सवारियों को दूर से ही पहचाना जा सकता है. इन रेलगाडि़यों में रोज अपडाउन करते हैं ग्रामीण मजदूर, सरकारी व निजी संस्थानों में लगे चतुर्थ श्रेणी के बाबू, किरानी, छोटीछोटी गुमटियों वाले व्यवसायी, यायावर हौकर्स और स्कूलकालेजों के छात्रछात्राएं. उस रोज दोपहर का वक्त था. लोकल टे्रन में भीड़ न थी. यात्रियों की भनभनाहट, इंजनों की चीखपुकार और वैंडरों की चिल्लपों का लयबद्ध संगीत पूरे वातावरण में रसायन की तरह फैला हुआ था. आमनेसामने वाली बर्थों पर कुछ लोग बैठे थे. उन में एक नेताजी भी थे. अभी ट्रेन छूटने में कुछ समय बाकी था कि  एक भरीपूरी नवयुवती सीट तलाशती हुई आई. कसा बदन, धूसर गेहुआं रंग, तनिक चपटी नाक. हाथ में पतली सी फाइल. उस की चाल में आत्मविश्वास की तासीर तो थी पर शहरी लड़कियों सा बिंदासपन नहीं था. एक किस्म का मर्यादित संकोच झलक रहा था चेहरे से और यही बात उस के आकर्षण को बढ़ा रही थी.

उसे देखते ही नेताजी हुलस कर तुरंत ऐक्शन में आ गए. गांधी टोपी को आगेपीछे सरका कर सेट किया और खिड़की के पास जगह बनाते हुए हिनहिनाए, ‘‘अरे, यहां आओ न बेटी. खिड़की के पास हवा मिलेगी.’’

युवती एक क्षण को ठिठकी, फिर आगे बढ़ कर नेताजी के बगल में खिड़की के पास वाली सीट पर बैठ गई.

सामने की बर्थ पर बैठे प्रोफैसर सान्याल का मन ईर्ष्या से सुलग उठा. थोड़ी देर तक तो वे चोर नजरों से लड़की के मासूम सौंदर्य को निहारते रहे. फिर नहीं रहा गया तो युवती से बातों का सूत्र जोड़ने की जुगत में बोल उठे, ‘‘कालेज से आ रही हैं न?’’

‘‘जी हां, नया ऐडमिशन लिया है,’’ युवती हौले से मुसकराई तो प्रोफैसर  निहाल हो गए.

फिर बातों का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए बोले, ‘‘मुझे पहचान रही हैं? मैं प्रोफैसर शुभंकर सान्याल. नारी सशक्तीकरण व स्वतंत्रता पर मेरे आलेख ने शिक्षा जगत में धूम मचा रखी है. आप ने देखा है आलेख?’’

‘‘न,’’ युवती के इनकार में सिर हिलाते ही प्रोफैसर को कसक का एहसास हुआ. शिक्षा जगत की इतनी महत्त्वपूर्ण घटना से युवती वाकिफ नहीं, प्रोफैसर के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच आईं.

नेताजी ने जब देखा कि लड़की प्रोफैसर की ओर ही उन्मुख बनी हुई है तो क्षुब्ध हो उठे और उस का ध्यान आकृष्ट करने के लिए बोल पड़े, ‘‘अरे बेटी, आराम से बैठो न. कोई तकलीफ तो नहीं हो रही है?’’ फिर जेब से अपना विजिटिंग कार्ड निकाल कर लड़की को देते हुए उस की उंगलियों को थाम लिया, ‘‘हमरा कार्डवा रख लो. धनबाद क्षेत्र के भावी विधायक हैं हम. अगला चुनाव में उम्मीदवार घोषित हो चुके हैं, बूझी? बर्दवान से ले कर धनबाद तक का हर थाना में हमरा रुतबा चलता है. कभी कोई कठिनाई आए तो याद कर लेना.’’

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युवती की उंगलियां नेताजी के हाथों में थीं. असमंजस से भर कर उस ने झट से हाथ नीचे कर लिया. प्रोफैसर की नजरों से नेताजी की चालाकी छिपी न रह सकी. शर्ट के तले उन की धुकधुकी भी रोमांच से भरतनाट्यम् करने लगी. आननफानन अटैची खोल कर आलेख की जेरौक्स प्रति निकाली और युवती को थमाते हुए उस की पूरी हथेली को अपनी हथेलियों में भर लिया, ‘‘इस आलेख में आप जैसी युवतियों की समस्याओं का ही तो जिक्र किया है मैं ने. नारी स्वावलंबी बने, घर की चारदीवारी से मुक्त हो कर खुले में सांस ले, समाज के रचनात्मक कार्यों से जुड़े. जोखिम तो पगपग पर आएंगे ही. जोखिम से आप युवतियों की रक्षा समाज करेगा. समाज यानी हम सब. यानी मैं, ये नेताजी, ये भाईसाहब, ये… और ये…’’

प्रोफैसर अपनी धुन में पास बैठे यात्रियों की ओर बारीबारी से संकेत कर ही रहे थे कि नजरें घोर आश्चर्य से सराबोर हो कर पास बैठी शकीला पर जा टिकीं.

सांवला रंग, काजल की गहरी रेखा. लगातार पान चबाने से कत्थई हुए होंठ. पाउडर की अलसायी परत. कंधे से झूलती पुरानी ढोलक. अरे, भद्र लोगों की जमात में यह नमूना कहां से घुस आया भाई. अभी तक किसी की नजरें गईं कैसे नहीं इस अजूबे पर.

प्रोफैसर की नजरों की डोर थाम कर अन्य यात्री भी शकीला की ओर देखने लगे.

‘‘तू इस डब्बे में कैसे घुस आई रे?’’ प्रोफैसर फनफना उठे. इसी बीच उस युवती ने कसमसा कर अपनी हथेली प्रोफैसर के पंजे से छुड़ा ली.

‘‘हिजड़े न तीन में होते हैं न तेरह में, हुजूर. सभी जगह बैठने की छूट मिली हुई है इन्हें,’’ पास बैठे पंडितजी ने टिप्पणी की तो जोर का ठहाका फूट पड़ा.

‘‘ऐ जी,’’ शकीला विचलित और उत्तेजित हुए बिना चिरपरिचित अदा से ताली ठोंकती हुई हंस पड़ी, ‘‘अब हम हिजड़ा नहीं, किन्नर कहे जाते हैं, हां.’’

‘‘किन्नर कहे जाने से जात बदल जाएगी, रे?’’ नेताजी ने हथेली पर खैनी रखते हुए व्यंग्य कसा.

‘‘जात न सही, रुतबा तो बदला ही है,’’ शकीला का चेहरा एक अजीब सी ठसक से चमक उठा.

‘‘असल में जब से तुम लोगों की मौसियां विधायक बनी हैं, दिमाग सातवें आसमान पर चढ़ कर नाचने लगा है, हंह,’’ नेताजी के भीतर एक तीव्र कचोट फुफकारने लगी. उन्हें राजनीति के अखाड़े में कूदे 25 साल हो गए थे. क्याक्या सपने देखे थे. विधायक का गुलीवर कद, लालबत्ती वाली कार, स्पैशल सुरक्षा गार्ड, भीड़ की जयजयकार. पर हाय, 3-3 बार प्रयास के बावजूद विधानसभा तो दूर, स्थानीय नगरनिगम का चुनाव तक नहीं जीत पाए और ये नचनिया सब विधायक बनने लगे. हाय रे विधाता.

‘‘बिलकुल ठीक कह रहे हैं आप,’’ प्रोफैसर के लहजे में क्षोभ घुला हुआ था, ‘‘क्या होता जा रहा है इस देश की जनता को? ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का क्या गौरवपूर्ण समरसता का इतिहास रहा है हमारा. पहले राजा प्रताप, शिवाजी, भामाशाह, कौटिल्य आदि. उस के बाद गांधी, नेहरू, अंबेडकर, शास्त्री वगैरह. देश पूरी तरह सुरक्षित था इन के हाथों में. पर अब जनता की सनक तो देखिए, हिजड़ों के हाथों में शासन की लगाम देने लगी है.’’

‘‘अब छोडि़ए भी ये बातें,’’ शकीला खीखी कर के हंसी. शकीला के वक्ष से छींटदार नायलोन की पारदर्शी साड़ी का आंचल ढलक गया था.

बातों का सिलसिला अभी चल ही रहा था कि टे्रन की सीटी की कर्कश आवाज फिजा में गूंज गई. फिर टे्रन के चक्कों ने गंतव्य की ओर लुढ़कना शुरू कर दिया. ठीक उसी समय 3 युवक भी डब्बे में चढ़ आए. कसीकसी जींस, अजीबोगरीब स्लोगन अंकित टीशर्ट, हाथों में एकाध कौपी या फाइल. एकदूसरे को धकियाते, हल्ला मचाते तीनों डब्बे के उसी हिस्से में आ गए जहां प्रोफैसर और नेताजी बैठे हुए थे. युवती पर नजर जाते ही उन के पांव थम गए और बाछें खिल गईं.

‘‘अतुल, क्यों न यहीं बैठा जाए?’’ पिंटू चहक उठा. फिर युवती से मुखातिब हो कर पूछ बैठा, ‘‘हैलो, आप स्टुडैंट हैं न? किस कालेज में हैं?’’

सवाल इतने आकस्मिक रूप में आया था कि युवती को सोचने का तनिक भी मौका नहीं मिला और वह हड़बड़ा कर बोली, ‘‘जी हां, बीसी कालेज में फर्स्ट ईयर साइंस की स्टुडैंट.’’

‘‘ओह, वंडरफुल,’’ यादव ने उड़ती नजरों से बैठे हुए लोगों का मुआयना किया, ‘‘ई बुढ़वन सब देश का कबाड़ा कर के छोड़ेंगे. हर जगह पर, चाहे सत्ता हो या साहित्य, ई लोग कुंडली मार कर बैठ गए हैं और हिलने का नाम ही नहीं ले रहे, हंह.’’

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‘‘भाईसाहब, आप का परिचय?’’ अतुल प्रोफैसर से संबोधित था.

प्रोफैसर भड़क उठे, ‘‘आप छात्र हैं न? मुझे नहीं पहचान रहे? मैं प्रोफैसर शुभंकर सान्याल. नारी सशक्तीकरण पर उसी परचे का प्रख्यात लेखक जिस की चर्चा आज हर बुद्धिजीवी और हर छात्र की जबान पर है.’’

‘‘प्रोफैसर हैं? चलिए, एगो पहेली बुझिए तो…’’ पिंटू बोली बदलबदल कर बोलने में माहिर था, खालिस बिहारी अंदाज में प्रोफैसर की ओर मुंह कर के हुंकार भर उठा, ‘‘एगो है जो रोटी बेलता है, दूसरा एगो है जो रोटी खाता है. एगो तीसरा अऊर है ससुर जो न बेलता है, न खाता है, बल्कि रोटी से कबड्डी खेलता है. ई तीसरका को कोई भी नय जानत. हमारी संसद भी नहीं. आप जानत हैं?’’

प्रोफैसर चुप. अन्य यात्रीगण भी चुप. युवती मन ही मन खुश हुई. प्रश्न क्लासरूम में किया गया होता तो वह हाथ अवश्य उठा देती. यादव दोनों ओर की बर्थ के भीतर तक चला आया और खिड़की की ओर इशारा कर के प्रोफैसर से बोला, ‘‘यहां बैठने दीजिए तो.’’

प्रोफैसर इन लोगों के व्यंग्य से खिन्न तो थे ही, चीखते हुए फट पड़े, ‘‘कपार पर बैठोगे? जगह दिख रही है कहीं? और ये बोली कैसी है?’’

यादव ने लैक्चर खत्म होने का इंतजार नहीं किया. वह प्रोफैसर को ठेलठाल कर ऐन युवती के सामने बैठ ही गया.

पिंटू बोली में ‘खंडाला’ स्टाइल का बघार डालते हुए नेताजी की ओर मुड़ा, ‘‘ऐ, क्या बोलता तू? बड़े भाई को यहां बैठने को मांगता, क्या? बोले तो थोड़ा सरकने को,’’ पिंटू की आवाज में कड़क ही ऐसी थी कि नेताजी अंदर ही अंदर सकपका गए. लेकिन फिर सोचा, इस तरह भय खाने से काम नहीं चलेगा. यही तो मौका है युवती पर रौब गांठने का.

‘‘तुम सब स्टुडैंट हो या मवाली? जानते हो हम कौन हैं? धनबाद विधानसभा क्षेत्र के भावी विधायक. विधायक से इसी तरह बतियाया जाता है?’’

‘‘विधायक हो या एमपी, स्टुडैंट फर्स्ट,’’ अतुल के बदन पर कपड़े नए स्टाइल के थे. कीमती भी. संपन्नता के रौब से चमचमा रहा था चेहरा. पिंटू ने उसे ‘बडे़ भाई’ का संबोधन यों ही नहीं दिया था. वह इन दोनों का नायक था. अतुल ने आगे बढ़ कर नेताजी की बगलों में हाथ डाला और उन्हें खींच कर खड़ा करते हुए खाली जगह पर धम्म से बैठ गया. नेताजी ‘अरे अरे’ करते ही रह गए. अंदर ही अंदर सभी लोग आतंकित हो उठे थे. ये लड़के ढीठ ही नहीं बदतमीज व उच्छृंखल भी हैं. इन से पंगा लेना बेकार है. शकीला स्वयं ही अपनी सीट से खड़ी हो गई और पिंटू से बोली, ‘‘अरे भाई, प्यार से बोलने का था न कि हम कालेज वाले एकसाथ बैठेंगे. आप यहां बैठो, मैं उधर बैठ जाती.’’

फिर जैसे सबकुछ सामान्य हो गया. तीनों युवती के इर्दगिर्द बैठने में सफल हो गए. गाड़ी अपनी रफ्तार से दौड़ती रही.

‘‘आप का नाम जान सकते हैं? कहां रहती हैं आप?’’ थोड़ी देर बाद अतुल ने युवती को भरपूर नजरों से निहारते हुए सवाल किया. उस का लहजा विनम्रता की चाशनी से सराबोर था.

‘‘जी शीला मुर्मू. काशीपुर डंगाल में रहती हूं. धनबाद से 60 किलोमीटर दूर.’’

‘‘वाह,’’ तीनों लड़के चौंक पड़े.

‘‘कोई उपाय भी तो नहीं. हमारे कसबे में इंटर तक की ही पढ़ाई है.’’

‘‘बहुत खूब. मोगैम्बो खुश हुआ,’’ पिंटू ने नई बोली का नमूना पेश किया.

एक क्षण का मौन.

‘‘जाहिर है, कोई पसंदीदा सपना भी जरूर होगा ही?’’ अतुल उस की आंखों में भीतर तक झांक रहा था, ‘‘ऐसा सपना जो अकसर रात की नींदों में आ कर परेशान करता रहता हो.’’

‘‘बेशक है न,’’ मजाक में पूछे प्रश्न का शीला ने सीधा और सच्चा जवाब दे दिया, ‘‘परिस्थितियों ने साथ दिया तो… तो डाक्टर बनूं.’’

‘‘ऐक्सीलैंट,’’ शीला के उत्तर पर तीनों ने एकदूसरे की ओर देखा. इस देखने में व्यंग्य का पुट घुला था, यह मुंह और मसूर की दाल. फिर तीनों के ठहाके फूट उठे.

फिर कुछ क्षणों का मौन.

तीनों ने देखा, शीला स्मृतियों की धुंध में खोई बाहर के दृश्यों को देख रही है. तीनों की नजरें परस्पर गुंथ गईं. आंखों ही आंखों में मौन संकेत हुए. फिर आननफानन एक मादक गुदगुदा देने वाली योजना की रूपरेखा तीनों के जेहन में आकृति लेने लगी.

‘‘कहां खो गईं आप?’’

‘‘जी?’’ शीला हौले से मुसकरा दी.

‘‘आज पहला दिन था. रैगिंग तो हुई होगी?’’ अतुल ने प्रश्न किया तो शीला एक पल के लिए सकपका गई. दिमाग में आज हुई रैगिंग का एकएक कोलाज मेढक की तरह फुदकने लगा. 3 सीनियरों का उसे घेर कर द्वितीय तल के एक क्लासरूम में ले जाना फिर ऊलजलूल द्विअर्थी यक्ष प्रश्नों का सिलसिला. शीला मन ही मन घबरा रही थी. पर रैगिंग का स्तर खूब नीचे नहीं उतरा था और तीनों छात्र मर्यादा के भीतर ही रहे थे.

‘‘आप न भी बताएंगी तो भी अनुमान लगाना कठिन नहीं कि रैगिंग के नाम पर बेहद घटिया हरकत की गई होगी आप के साथ,’’ अतुल फुफकारा, ‘‘बीसी कालेज के छात्रों को हम अच्छी तरह जानते हैं. इस शहर के सब से ज्यादा बदतमीज और लफंगे छात्र, हंह.’’

शीला मौन रही. क्या कहती भला?

‘‘एकदम ठीक बोल रहा दादा,’’ पिंटू इस बार अपने लहजे में बंगाली टोन का छौंक डालते हुए हिनहिनाया, ‘‘माइरी, अइसा अभद्रो व्यवहार से ही तो हमारा छात्र समुदाय बदनाम हो रहा. इस बदनामी को साफ करने का एक उपाय है, दोस्तो,’’ इसी बीच मादक योजना की रूपरेखा मुकम्मल आकार ले चुकी थी, ‘‘क्यों न हम इस नए दोस्त को नए प्रवेश की मुबारकबाद देने के लिए छोटी सी पार्टी दे दें?’’

‘‘गजब, क्या लाजवाब आइडिया है, अतुल,’’ यादव समर्थन में चहक उठा, ‘‘मुबारकबाद का मुबारकबाद और बदनामी का परिमार्जन भी.’’

‘‘पर बड़े भाई, पार्टी होगी कहां और कब?’’

‘‘पार्टी आज ही होगी यार और अभी कुछ देर बाद,’’ अतुल हंसा. दरअसल, योजना बनी ही इतनी मादक थी कि भीतर का रोमांच लहजे के संग बह कर बाहर टपकना चाह रहा था, ‘‘अगले स्टेशन पर हम उतर जाएंगे. स्टेशन के पास ही बढि़या होटल है, ‘होटल शहनाई.’ वहीं पार्टी दे देंगे. ओके.’’

शीला अतुल के अजूबे और अप्रासंगिक प्रस्ताव पर चकित रह गई. किसी अन्य कालेज के अपरिचित छात्र. अचानक इतनी उदारता.

‘‘नो, नो, थैंक्स मित्रो, मेरे सीनियर्स ने वैसा कुछ भी नहीं किया है अभद्र, जैसा आप सब समझ रहे हैं.’’

‘‘चलिए ठीक है. माना कि आप के सीनियर्स शरीफ हैं पर पार्टी तो हमारी ओर से तोहफा होगी आप को. परिचय और अंतरंगता इसी तरह तो बनती है. हम छात्र किसी भी कालेज के हों, हैं तो एक ही बिरादरी के.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं. अब तो मिलना होता ही रहेगा न. पार्टी फिर कभी,’’ शीला ने दृढ़ता से इनकार कर दिया.

‘‘उफ, 12 बजे हैं अभी. 3:25 बजे की लोकल पकड़वा देंगे. देर नहीं होगी.’’

‘‘सौरी…मैं ने कहा न, मैं पार्टी स्वीकार नहीं कर सकती,’’ शीला ने चेहरा खिड़की की ओर फेर लिया.

कुछ क्षणों का बेचैनी भरा मौन.

‘‘इधर देखिए दोस्त,’’ अतुल की तर्जनी शीला की ठोढ़ी तक जा पहुंची, ‘‘जब मैं ने कह दिया कि पार्टी होगी, तो फिर पार्टी होगी ही. हम अगले स्टेशन पर उतर रहे हैं.’’

अतुल के लहजे में छिपी धमकी की तासीर से शीला भीतर तक कांप उठी.

‘‘आखिर हम भी तो आप के सीनियर्स ही हुए न,’’ तीनों बोले.

शीला ने डब्बे में बैठे यात्रियों का सिंहावलोकन किया. लगभग सभी यात्री अवाक् और हतप्रभ थे. किसी ने सोचा भी न था कि ऊंट इस तरह करवट ले बैठेगा.

‘‘अरे भैया, लड़की का पार्टी के लिए मन नहीं है तो काहे जबरदस्ती कर रहे ससुर?’’ नेताजी ने बीचबचाव की पहल की तो पिंटू तुनक कर खड़ा हो गया, ‘‘ओ बादशाहो, तुसी वड्डे मजाकिया हो जी. त्वाडे दिल विच्च इस कुड़ी के लिए एन्नी हमदर्दी क्यों फड़फड़ा रेहंदी है, अयं?’’

नेताजी की ओर कड़ी दृष्टि से देखते हुए अतुल शीला से मुखातिब हो कर बोला, ‘‘आइए, गेट के पास चलते हैं.’’

‘‘नहींनहीं, मैं नहीं जाऊंगी,’’ शीला की आंखों में भय उतर आया, ‘‘प्लीज…’’

‘‘अब नखरे मत दिखा,’’ यादव और अतुल भी खडे़ हो गए. यादव ने शीला की कलाई थाम ली तो शीला ने झटके से छुड़ाते हुए विनम्र भाव से कहा, ‘‘प्लीज, छोड़ दें मुझे. पार्टी फिर कभी,’’ फिर सहायता के लिए प्रोफैसर से गुहार लगाते हुए चीख पड़ी, ‘‘देखिए न, सर…’’

‘‘आप लोग छात्र हैं या आतंकवादी, अयं? इस तरह जबरदस्ती नहीं कर सकते,’’ प्रतिरोध करने की उत्तेजना में प्रोफैसर सीट से खड़े हो गए.

‘‘शटअप,’’ यादव ने चीखते हुए प्रोफैसर को इतनी जोर से धक्का दिया कि वे लड़खड़ाते हुए धप्प से सीट पर लुढ़क गए.

तभी जीआरपी के 2 जवान गश्त लगाते हुए उधर से गुजरे. शीला को जैसे नई जान मिल गई हो, वह चीख पड़ी, ‘जीआरपी अंकल.’

शिवानंद के आगे बढ़ते कदम ठिठक गए. पीछे मुड़ कर बर्थ के भीतर तक झांका तो दृष्टि सब से पहले अतुल से टकराई. वे खिल उठे, ‘‘अरे, अतुल बाबू, आप? नत्थूराम, ई अतुल बाबू हैं, आईजी रेल, तिवाड़ी साहब के सुपुत्र.’’

‘‘अंकल, आप इस टे्रन में?’’ अतुल शिवानंद से हाथ मिलाते हुए मुसकराया.

‘‘जनता को भी न सरकार और पुलिस विभाग को बदनाम करने में बड़ा मजा मिलता है एकरा माय के. शिकायत किहिस है जे टे्रन में लूटडकैती, छेड़छाड़, किडनैपिंग बढ़ रहा है. बस… आ गया ऊपर से और्डर लोकलवा सब में गश्त लगाने का, हंह. लेकिन अभी तक एक्को केस ऐसा नय मिल सका है.’’

‘‘जनता की बात छोडि़ए,’’ अतुल ने लापरवाही से कंधे झटके. शिवानंद ने युवती की ओर देख कर संकेत से पूछा, ‘‘ई आप के साथ हैं?’’

‘‘जी हां, क्लासफ्रैंड हैं हमारी,’’ अतुल मुसकराया तो शीला का मन हुआ, सारी बात बता दे पर जबान से बोल नहीं फूटे.

‘‘मैडम, अतुल बाबू बड़े सज्जन और सुशील नौजवान हैं. इन की दोस्ती से आप फायदे में ही रहेंगी. अच्छा, अतुल बाबू, सर को हमारा परनाम कहिएगा.’’

शीला की आंखों के आगे सारी स्थिति आईने की तरह साफ हो गई. अतुल आईजी रेल का लड़का है. पावर और पैसा, जब दोनों ही चीजें हों जेब में तो यादव और पिंटू जैसे वफादार चमचे वैसे ही दौड़े आएंगे जैसे गुड़ को देख कर चींटियां. सिपाहियों के जाते ही तीनों एक बार फिर जोरों से हंस पड़े. पिंटू ने आगे बढ़ कर शीला की कलाई थाम ली और खींच कर उसे उठाने का प्रयास करने लगा. शीला की इच्छा हुई, एक झन्नाटेदार तमाचा उस के गाल पर जड़ दे. बड़ी मुश्किल से ही उस ने क्रोध को जज्ब किया. इस तरह रिऐक्ट करने से बात ज्यादा बिगड़ सकती है.

तभी न जाने किस जेब से निकल कर अतुल की हथेली में छोटा सा रिवौल्वर चमक उठा.

‘‘किसी ने भी चूंचपड़ की तो…’’ रिवौल्वर यात्रियों की ओर तानते हुए वह गुर्रा उठा, ‘‘मनीष मिश्रा केस के बारे में तो सुना होगा न?’’

मनीष मिश्रा, वही जिस के तार स्वयं पीएम साहब से जुड़े हुए थे. बदमाशों ने चलती टे्रन से बाहर फेंक दिया था उसे. अपराध? सफर कर रही एक लड़की से छेड़खानी का मुखर विरोध. यात्रियों के बदन भय से कंपकंपाने लगे और रोंगटे खड़े हो गए.

सब से पहले नेताजी उठे, ‘‘थानापुलिस में तो एतना पहचान है कि का कहें ससुर. पर ई छात्र लोग का आपसी मामला न है. पुलिस हस्तक्षेप नहीं कर सकती.’’

फिर प्रोफैसर साहब भी अटैची संभालते हुए उठ खड़े हुए, ‘‘जब इतने प्यार से पार्टी दे रहे हैं ये लोग तो क्या हर्ज है स्वीकारने में? पर घर लौट कर मेरा आलेख पढि़एगा जरूर.’’

धीरेधीरे शकीला के अलावा सभी यात्री डब्बे के दूसरे हिस्सों में चले गए. शकीला वहीं बैठी रही. हिजड़ा होते हुए भी इतना तो समझ चुकी थी कि अकेली लड़की मुसीबत में पड़ गई है. ये लोग इसे जबरदस्ती अगवा करने पर उतारू हैं. पर इस हाल में वह करे भी तो क्या?

‘‘तेरे यार सब तो भाग गए.’’ पिंटू चुटकी बजाते हुए व्यंग्य से बोला, ‘‘तू कौन सा तीर मार लेगी, अयं?’’

‘‘किन्नरों को मामूली न समझियो,’’ शकीला ताली पीटती हुई अदा से खिलखिलाई, ‘‘हमारे 2 किन्नरों ने तो महाभारत का किस्सा ही बदल डाला

था. एक थे शिखंडी महाराज, दूसरे बिरहनला (बृहन्नला).’’

ये नोंकझोंक चल ही रही थी कि तभी उस हिस्से में बूटपौलिश वाला एक लड़का हवा के झौंके की तरह आ पहुंचा. दसेक साल की उम्र. काला स्याह बदन. बाईं कलाई में पौलिश वाला बक्सा झुलाए, दाएं हाथ से ठोस ब्रश को बक्से पर ठकठकाता, ‘‘पौलिश साब.’’

‘‘तू कहां से आ टपका रे? चल फूट यहां से,’’ अतुल ने रिवौल्वर उस की ओर तान दिया. लड़का तनिक भी न घबराया. पूरा माजरा भांपते एक पल भी नहीं लगा उसे. खीखी करता खीसें निपोर बैठा, ‘‘समझा साब, कोई शूटिंग चल रहेला इधर. अपुन डिस्टप नहीं करेगा साब. थोड़ा शूटिंग देखने को मांगता. बिंदास…’’

‘‘इस को रहने दो बड़े भाई,’’ पिंटू ने मसका लगाया, ‘‘तुम लगते ही हीरो जैसे हो.’’

शकीला के रसीले बतरस और पौलिश वाले लड़के के आगमन से तीनों का ध्यान शीला की ओर से कुछ देर के लिए हट गया. शीला के भीतर एक बवंडर जन्म लेने लगा. कैसा हादसा होने जा रहा है यह? इन की नीयत गंदी है, यह तो स्पष्ट हो चुका है, पार्टी के नाम पर अगवा करने की कुत्सित योजना. उफ.

इस तरह की विषम परिस्थितियों में अकेली लड़की के लिए बचाव के क्या विकल्प हो सकते हैं भला? सहायता के लिए ‘बचाओ, बचाओ’ की गुहार लगाने पर सचमुच कोई दौड़ा चला आएगा? डब्बे में बैठे यात्रियों का पलायन तो देख ही रही है वह. फिर? इन निर्मम, नृशंस और संवेदनहीन युवकों के आगे हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने से भी कोई लाभ होने वाला नहीं. इन के लिए तो हर स्त्री सिर्फ मादा भर ही है. हर रिश्तेनाते से परे. सिर्फ मादा.

शीला सतर्क नजरों से पूरी स्थिति का जायजा लेती है. डब्बे में शकीला और पौलिश वाला लड़का ही रह गए थे. भावावेश में शकीला की ओर देखती है वह. तभी आंखों के आगे धुंध छाने लगती है, ‘अरे, बृहन्नला के भीतर से यह किस की आकृति फूट रही है? अर्जुन, हां, अर्जुन ही हैं जो कह रहे हैं, नारी सशक्तीकरण की सारी बातें पाखंड हैं री. पुरुषवादी समाज नारियों को कभी भी सशक्त नहीं होने देगा. सशक्त होना है तो नारियों को बिना किसी की उंगली थामे स्वयं ही पहल करनी होगी.’

शीला अजीब से रोमांच से सिहर उठती है. नजरें वहां से हट कर पौलिश वाले लड़के पर टिक जाती हैं. पौलिश वाले लड़के का चेहरा भी एक नई आकृति में ढलने लगता है, ‘बचपन में लौटा शम्बूक. होंठों पर आत्मविश्वास भरी निश्छल हंसी, ‘ब्राह्मणवादी, पुरुषवर्चस्ववादी व्यवस्था’ ने नारियों व दलितों को कभी भी सम्मान नहीं दिया. अपने सम्मान की रक्षा के लिए तुम्हारे पास एक ही विकल्प है, पहल. एक बार मजबूत पहल कर लो, पूरा रुख बदल जाएगा.’

शीला असाधारण रूप से शांत हो गई. भीतर का झंझावात थम गया. आसानी से तो हार नहीं मानने वाली वह. मन ही मन एक निर्णय लिया. तीनों युवक शकीला के किसी मादक चुटकुले पर होहो कर के हंस रहे थे कि अचानक जैसे वह पल ठहर गया हो. एकदम स्थिर. शीला ने दाहिनी हथेली को मजबूत मुट्ठी की शक्ल में बांधा और भीतर की सारी ताकत लगा कर मुट्ठी को पास खड़े यादव की दोनों जांघों के संधिस्थल पर दे मारा.

उसी ठहरे हुए स्थिर पल में शकीला के भीतर छिपे अर्जुन ने ढोलक को लंबे रूप में थामा और पूरी शक्ति लगा कर चमड़े के हिस्से वाले भाग से पिंटू के माथे पर इतनी जोर से प्रहार किया कि ढोलक चमड़े को फाड़ती उस की गरदन में फंस गई. और उसी ठहरे हुए स्थिर पल में पौलिश वाले लड़के के भीतर छिपे शंबूक ने दांतों पर दांत जमा कर हाथ के सख्त ब्रश को अतुल की कलाई पर फेंक मारा. इतना सटीक निशाना कि रिवौल्वर छिटक कर न जाने कहां बिला गया और ओहआह करता वह फर्श पर लुढ़क कर तड़पने लगा.

पलक झपकते आसपास के डब्बों से आए यात्रियों की खासी भीड़ जुट गई वहां और लोग तीनों पर लातघूंसे बरसाते हुए फनफना रहे थे, ‘‘हम लोगों के रहते एक मासूम कोमल लड़की से छेड़खानी करने का साहस कैसे हुआ रे?’’

सैक्स को लेकर जातियों को दबाने का काम सदियों से चला आ रहा है!

दिल्ली के जमना पर ईस्ट दिल्ली इलाके में अवैध कही जाने वाली बस्तियों की भरमार है. उत्तर प्रदेश, बिहार ही नहीं देश के लगभग सब जगह मजदूर या गरीब दिल्ली में आ कर अगर कुछ नौकरी वगैरा पा जाते हैं तो झुग्गियों के बाद इन बेहद गंदी, संकरी बस्तियों में रहने आते हैं. ज्यादातर लोग पिछड़ी जातियों के हैं और अपने साथ गांवों से औरतों के साथ छेड़छाड़, रेप, देहव्यापार की आदते  साथ लाते हैं.

हर रोज के अखबार 2-3 रेप की घटनाओं से भरे होते हैं. रेप के आरोपों में कितने दोनों की इच्छा से हुए सैक्स के होते हैं, कितने जबरन कहां नहीं जा सकता. फरवरी के तीसरे सप्ताह में शहरपुर  इलाके में 2 महिलाओं को होटल ले जा कर रेप की शिकायत दर्ज की गई. यह साफ है कि इन औरतों को जबरन होटल तो ले जाया जा नहीं सकता. होटल मनमर्जी से गई पर वहां जब मनचाही बात नहीं बनी तो रेप का मामला बना.

असल में देह की जरूरत को दबाने का जो नकली ओढऩा हम लोग ओढ़े रहते हैं. यह औरतों पर भारी पड़ता है. औरतें और लड़कियां बदन का सुख चाहती हैं पर मामला खुले नहीं, यह डर भी रहता है. अगर समाज उदार हो, बदन की जरूरतों को समझे तो इच्छा से बने संबंधों को रेप का नाम तो नहीं दिया जाएगा.

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रेप का नाम देने पर आदमी या लडक़े की गिरफ्तारी तो हो जाती है. पर लडक़ी भी बदनाम हो जाती है. पुलिस हजार सवाल करती है. पुलिस वाले उसे चालू समझते हैं. बिरादरी में नाक कट जाती है, अगर सैक्स को आम माना जाएगा तो लडक़ा तैयार हो कर आएगा, कंडोम लाएगा, लडक़ी को पिल लेने को कहेगा. किसी साथी के बदन की जो जरूरत होती है वह पूरी होगी पर कोई निशान नहीं छूटेगा.

इन मामलों में न्यूड फोटो भी लिए गए जो जब तक इच्छा न हो सही बन नहीं सकते. इन वीडियो को वायरल किए जाने की धमकी भी बेकार है क्योंकि फिर वीडियों लेने वालों का पकड़ा ही जाएगा.

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असल में सैक्स को ले कर जातियों को दबाने का काम सदियों से चला आ रहा है. ऊंची जातियों के राज महाराज, पुराहित, गुरू नीची जातियों की औरतों और लड़कियों को अपनी जायदाद समझते रहते थे और जब चाहे भोग लेते थे. आज जमाना बदल गया है. सैक्स का हक अब किसी के पास नहीं है, ऊंची जाति के दंबग के पास भी नहीं, अपनी जाति वाले गुंडे के पास भी नहीं. मर्जी हो तो ही खुशीखुशी जो भी जो चाहे करें. इस प्यार का प्यार रहने दें, रेप का नाम न दें.

मेरे पति का नौकरी में मन नहीं लगता, क्या करूं?

सवाल

मेरे पति वैसे तो काफी अच्छे हैं लेकिन उन का नौकरी में बिलकुल मन नहीं लगता. इस कारण परिवार के समक्ष आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. परिवार के किसी भी सदस्य की बात उन्हें समझ नहीं आ रही. आप ही बताएं कि कैसे उन्हें सही रास्ता दिखाया जाए?

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जवाब

पति कमाए नहीं तो जिंदगी चलती ही नहीं है. उन के नौकरी न करने से सब बेहाल हो जाएंगे और बिना नौकरी वाले आदमी को न तो घर में इज्जत मिलती है न ही बाहर.ऐसे इंसान के साथ रहने का कोई फायदा नहीं है जो दो वक्त की रोटी का भी जुगाड़ न कर सके. हो सकता है आप का यह सख्त रुख उन्हें सुधरने पर मजबूर कर दे. आप भी खुद को आत्मनिर्भर बनाएं और उन से साफ कह दें कि प्यार एक तरफ है और जिम्मेदारी एक तरफ.

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मधुर मिलन: भाग 5

Writer- रेणु गुप्ता

इस बार दादी की बात पर इनाया सोचमग्न हो गई, कुछ नहीं बोली. अब रिदान  चिल्लाया, “तो दादी, अब पापा और इनाया आंटी की शादी पक्की. इस पर तीनों बच्चे खुशी से झूमते हुए चिल्लाए,  “थ्री चीयर्स टू मम्मा एंड पापा,” और तीनों ने एकदूसरे को हग कर लिया.

दिन बीत रहे थे. लेकिन इनाया के मन में इस विवाह को ले कर जबरदस्त कशमकश चल रही थी.

उस ने कई बार इस  विवाह को ले कर अपनी आशंकाएं जाहिर करने की कोशिश की, लेकिन तीनों बच्चे और तपन के मातापिता उसे कुछ कह पाने का मौका ही न देते.

तपन के मन में भी इस शादी को ले कर बहुत  दुविधाएं थीं, लेकिन इस संबंध  के लिए मातापिता और दोनों बच्चों के बेशर्त समर्थन की वजह से वह  उन से मुक्त हो गया. अलबत्ता, इनाया के मन में इस रिश्ते  को ले कर आखिर तक हिचकिचाहट थी. वह अभी तक अपने मन को इस बंधन के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं कर पाई थी. उसे लग रहा था कि हिंदू समाज उसे अपने समाज में खुले दिल से नहीं अपनाएगा, जिस से उस की मानसिक शांति के साथसाथ उस की बेटी के मन की शांति भी भंग हो सकती है.

उस की यह उलझन भांप कर एक दिन तपन ने उस से एकांत में दोनों के विवाह की चर्चा छेड़ी.

“इनाया, क्या तुम मुझे हस्बैंड के तौर पर  अपनी ज़िंदगी में शामिल करने के लिए पूरे मन से तैयार हो? यह शादी तभी होगी अगर तुम्हें इसे ले कर कोई गंभीर औब्जेक्शन न होगा.”

तपन की इस बात पर वह बोली, “तुम मेरे बेस्ट फ्रैंड हो. मैं निश्चित हूं कि तुम्हारे साथ ज़िंदगी का एकएक लमहा  गुज़ारना मेरे ज़िंदगी को बेहद खूबसूरत बना देगा. डरती हूं तो बस इस दुनिया से और अपने धर्मों के अलग होने से. कहीं इन की वजह से हम दोनों और हमारे बच्चों की ज़िंदगी में जहर न घुल जाए.”

“नहींनहीं इनाया, निश्चिंत रहो. ऐसा कुछ नहीं होगा. मां और पापा हमारे साथ हैं, हमारे बच्चे हमारे साथ हैं, तो हम दोनों को बाकी  फुज़ूल की बातों को ले कर डरने की बिलकुल जरूरत नहीं. मौनी के जाने के बाद बहुत अकेलापन महसूस करने लगा हूं. मेरा हाथ थाम लो, बस. वादा करता हूं, तुम्हें अपने डिसीजन पर पछतावे का  मौका कभी नहीं दूंगा,” यह कहते हुए तपन ने अपना हाथ इनाया की ओर बढ़ाया. नम हो आई आंखों से इनाया ने उस के हाथ में अपना हाथ दे दिया. तपन ने हौले से उस की हथेली चूम ली.

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इनाया की इस मौन स्वीकृति के बाद उन दोनों के विवाह में कोई अड़चन शेष न रही थी. रिदान, रुद्र और  अमायरा ने तपन, इनाया और दादूदादी से सलाह  कर एक रविवार को उन की कोर्टमैरिज तय कर दी.

इधर तीनों बच्चे अपने अपने पेरैट्स के एक नए रिश्ते में बंधने  के ख़याल से बेहद उत्साहित व मगन थे.

दिन बीत रहे थे और आज उन दोनों की कोर्टमैरिज  का बहुप्रतीक्षित दिन आ पहुंचा.

इनाया  और तपन 2 हस्ताक्षरों  के साथ  जन्मजन्म के पवित्र बंधन में बंध गए.

शादी के बाद इनाया के तपन के घर में हमेशा के लिए आ जाने के बाद घर का माहौल बेहद खुशगवार हो चला था.

तपन और इनाया के विवाह को 5-6  माह होने आए, लेकिन इनाया  अभी तक पहले की तरह तपन के  घर के नए बने पोर्शन में रह रही थी और तपन अपने बैडरूम में.

दिन यों ही गुज़रते जा रहे थे कि तभी अमायरा का जन्मदिन पड़ा. रिदान और रुद्र ने उस के जन्मदिन को खास  बनाने के लिए  अमायरा की करीबी  सहेलियों और अपने कौमन दोस्तों के लिए एक बढ़िया पार्टी आयोजित की.

उस के जन्मदिन के फौरन बाद वर्ष 2005 की तरह ईद और दिवाली एक ही सप्ताह में पड़े थे. दोनों पर्वों  के एक ही सप्ताह में पड़ने से दोनों परिवारों की खुशियां  दुगनी हो चली थीं.

इनाया हर वर्ष ईद के दिन शाम को अपने दोस्तों के लिए शानदार पार्टी आयोजित करती थी. तपन ने अपने घर में इनाया की पहली ईद को यादगार बनाने के लिए शाम को अपने घर पर एक जबरदस्त  पार्टी आयोजित की.

ईद वाले दिन तपन, रिदान  और रुद्र तीनों नहाधो कर धवल कुरतेपजामे में सजधज तैयार हो गए. तपन और उस के मातापिता ने इनाया, अमायरा, रिदान और रुद्र सभी को बढ़िया ईदी दी. घरभर में उत्सव की चहलपहल थी.

इनाया तपन  और उस के पूरे परिवार के इस सहयोगपूर्ण और केयरिंग रवैए  से अभिभूत थी.

कदमकदम पर पूरे परिवार का हर सदस्य उसे यह एहसास दिला  रहा था कि वह हर चीज में उस के साथ है और वह उन से कतई अलग नहीं है.

दिन यों ही हंसीखुशी बीत रहे थे. उन सब के जीवन में थोड़ीबहुत कड़वाहट थी तो दोनों तरफ़ के कुछ करीबी रिश्तेदारों की वजह से जो शुरू से इस अंतरधार्मिक विवाह के पूरी तरह से खिलाफ़ थे. कभीकभी इनाया, तपन और तीनों बच्चों के कानों में उन के मातापिता के बड़ी उम्र में विधर्मी से विवाह करने की प्रतिक्रियास्वरूप कटु ताने और व्यंग्यबाण पड़ जाते, लेकिन उन सब के मध्य इतनी गहरी बौन्डिंग थी कि उन से उन सब को कोई फ़र्क न पड़ता.

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तभी उसी सप्ताह दिवाली आ गई. इनाया और अमायरा दिवाली मनाने को ले कर रिदान और रुद्र की तरह बेहद उत्साहित थे.

दिवाली की सुबह तपन मातापिता के साथ चाय पी रहा था कि तभी वह इनाया को सुर्ख लाल साड़ी, गहने,  मांग में दप दप  करते सिंदूर और माथे पर एक बड़ी सी बिंदी में सजीधजी देख कर मंदमंद मुसकरा उठा.

इनाया  को पूरे मन से दिवाली मनाने के मूड में देख कर घरभर  में खुशी की लहर छा गई.  रात को इनाया ने पूरे उत्साह, उमंग के साथ तपन और बच्चों के साथ ख़ुशी मनाई और फिर सासससुर के पैर छू कर उन का आशीर्वाद लिया.

सब ने देररात तक आतिशबाजी का लुत्फ़ उठाया.

देररात बच्चे अपनेअपने कमरों में सोने जा चुके थे.  दादीदादू पहले ही सो  चुके थे. इनाया  घर समेट अपने कमरे में जाने ही वाली थी कि तभी तपन उस के पास आया और बोला, “इनाया, आज मैं बहुत खुश हूं.  मुझे तुम्हें दिवाली गिफ्ट देना है.  जरा चलो तो मेरे रूम में.”

इनाया के कंधों को हौले से थाम वह उसे अपने रूम में ले गया. उस ने उसे अपने बैड पर बिठाते हुए एक बेहद खूबसूरत, बड़े से हीरे की अंगूठी उस की रिंग फिंगर में पहना दी और फिर उस के हाथ थाम उस की हथेली पर एक मयूरपंखी स्नेहचिह्न जड़ आद्र स्वरों  में उस से  कहा, “इनाया,  कब तक मुझ से यों दूरदूर रहोगी? मुझे अब  तुम से यह दूरी सही नहीं जाती,” यह कहते हुए  उस ने  उसे अपनी बांहों में बांध लिया.

दोनों की वह अरमानोंभरी रात आंखों ही आंखों में बीत गई.

2 दिलों के मधुर मिलन की यह अनोखी दास्तान अपने मुकाम तक पहुंच गई.

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