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हम तीन- भाग 3: आखिर क्या हुआ था उन 3 सहेलियों के साथ?

शाम के 4 बजे थे. हम तीनों पैदल ही साकेत चल पड़ीं. अनीता ने एक गली में दूर से ही एक घर की तरफ इशारा किया, ‘‘यही है अनिल का घर और वह जो बाहर स्कूटर खड़ा कर रहा है शायद अनिल ही है.’’

हम तीनों के कदम थोड़े तेज हुए.

अनिता ने कहा, ‘‘हां, सुकन्या, अनिल ही तो है.’’

सुकन्या ने ध्यान से देखा. अनिल किसी से फोन पर बात कर रहा था. वह ऐसे खड़ा था कि हमें उस का साइड पोज दिख रहा था. सुकन्या के कदम ढीले पड़ गए, उस ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘यह मोटा सा गंजा आदमी अनिल कैसे हो सकता है, लेकिन शक्ल तो मिल रही है.’’

अनीता ने कहा, ‘‘यही है हैंडसम सा तेरा प्रेमी जिस का साथ पाने की इच्छा आज भी तेरा पीछा नहीं छोड़ रही, जिस के सामने अपने पति का अथाह प्यार भी तुझे तुच्छ लगता है.’’

सुकन्या अचानक वापस मुड़ गई. मैं ने कहा, ‘‘क्या हुआ, अनिल से मिलना नहीं है क्या?’’

सुकन्या जल्दी से बोली, ‘‘नहीं, थोड़ा तेज नहीं चल सकती तुम दोनों? जल्दी चलो यहां से.’’

अनीता हंसते हुए बोली, ‘‘चलो, किसी रेस्तरा में चलती हैं.’’

हम ने वहां बैठ कर कौफी और सैंडविच का और्डर दिया. हमारी हंसी नहीं रुक रही थी.  सुकन्या का चेहरा देखने लायक था.

अनीता हंसी. बोली, ‘‘बेचारी सुकन्या,

इतने साल पुराने प्यार की परिणति हुई भी तो किस रूप में.’’

सुकन्या ने हमें डपटा, ‘‘चुप हो जाओ तुम दोनों, मुझे सताना बंद करो, अपनी सारी कल्पनाओं को वहीं उसी गली में दफन कर आई हूं मैं. पहली बार मुझे मेरे पति सुधीर याद आ रहे हैं. बस, अब जल्दी से उन के पास पहुंचना है.’’

मैं ने कहा, ‘‘वाह क्या बेसब्री है… तुम्हारा प्यार का भूत तो बहुत तेजी से भाग गया.’’

अब हम तीनों की हंसी नहीं रुक रही थी. हम बहुत हंसीं. इतना हंसे पता नहीं कितने साल हो गए थे. मैं ने कहा, ‘‘सुकन्या, और ये जो तुम ने गिफ्ट्स खरीदे इन का क्या होगा?’’

‘‘होगा क्या? शर्ट सुधीर पहनेंगे, मिठाई घर जा कर हम सब के साथ खाएंगे, परफ्यूम और पैन अपने बेटे को दे दूंगी.’’

मैं ने कहा, ‘‘हां, अनिल को तो यह शर्ट आती भी नहीं,’’ मुझे और अनीता को तो जैसे हंसी का दौरा पड़ गया था. सुकन्या की शक्ल देख कर हम इतना हंसी कि हमारी आंखों में आंसू आ गए. सच, अगर हमारे बच्चे हमारा यह रूप देखते तो उन्हें अपनी आंखों पर यकीन न आता. यह तो अच्छा था कि इस समय रेस्तरां में 1-2 लोग ही थे और हम बैठी भी एक कोने में थीं. वेटर बेचारा हमारी शक्लें देख रहा था. खैर, खापी कर हम अपनेअपने घर चली गईं.

गिनेचुने दिन थे. जाने का दिल भी पास आ रहा था. अगले दिन हम तीनों ने फिर खरीदारी की. मां के लिए, भैयाभाभी और यश के लिए कुछ कपड़े खरीदे. उन दोनों ने भी इसी तरह का सामान लिया. फिर जब हम तीनों साथ बैठीं तो सुकन्या के दिल में आया कि थोड़े मुझे छेड़ा जाए, अत: मुझ से कहने लगी, ‘‘विनोद कहां है आजकल? कुछ पता है?’’

मैं ने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘मेरी इस बात में जरा भी रुचि नहीं है. मुझे माफ करो.’’

अनीता हंसी, ‘‘मीनू, कहो तो उस का कायाकल्प भी देख लिया जाए.’’

मैं ने कहा, ‘‘नहीं, रहने दो, अभी एक को देख कर छेड़ा. फिर हम तीनों ने यह तय किया कि अब जब भी संभव होगा, मिलती रहेंगी. एक बार फिर पुराने समय में लौट कर बहुत मजा आया.’’

जाने का दिन आ गया. भीगी आंखों से एकदूसरी से बिदा ली. मां और भाभी ने तो पता नहीं कितनी चीचें बांध दी थीं. सब से पहले मैं ही निकल रही थी. अनीता को एक विवाह में शामिल होने के लिए 2 दिन और रुकना था, सुकन्या को लेने सुधीर आने वाले थे.

मां और भाभी प्यार भरी शिकायत कर रही थीं कि मैं सहेलियों के साथ ही घूमती रही. मैं बहुत अच्छा समय बिता कर लौट रही थी. मुंबई जा कर स्नेहा को इस रियूनियन का आइडिया देने के लिए गले से लगा कर थैंक्स कहने के लिए मैं बहुत उत्साहित थी. सच, बहुत मजा आया था.

मोदी की विदेश (कु)नीति

एक सफल व्यक्ति अपने मित्रों से जाना जाता है जबकि एक असफल व्यक्ति के चारों ओर मूर्खों का जमावड़ा रहता है. भारत की विदेश नीति से यह साफ हो गया है कि बहुत बोलने वाले खुद को चाहे महान मानते हों, उन का अहं व दंभ इतना ज्यादा हो कि उन की तर्क व विवेक शक्ति कुंद हो चुकी हो पर वे अपना बखान करते रहने से नहीं चूकते.

भारत ने जब से अमेरिका का साथ छोड़ कर रूस का दामन थामा, क्योंकि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी नरेंद्र मोदी की तरह अंधविश्वासी व पुरातनपंथी हैं और दोनों को लोकतांत्रिक भावनाओं व आम जनता के सुखों से चिढ़ है, भारत की विदेश नीति दिल्ली के गाजीपुर इलाके में बने 400 फुट ऊंचे पहाड़ की तरह हो गई है जो मीलों से दिखता है.

भारत ने यूक्रेन का साथ न दे कर साबित कर दिया है कि भारत के नेता भी अपनी जनता को व्लादिमीर पुतिन की तरह गोबर और नाली में धकेल कर अपनी पीठ थपथपा सकते हैं. पुतिन ने यूक्रेन पर आक्रमण वही सोच कर किया था जो सोच कर नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का फैसला लिया, पकौड़ों का व्यवसाय करने की सलाह दी, बिना वैज्ञानिक राय के अचानक, बिना चेतावनी, लौकडाउन थोप दिया और अब यहां तक कह रहे हैं कि वे गाय के गोबर के व्यवसाय का अजूबा तरीका 10 मार्च को बताने वाले हैं जो छुट्टे सांडों (इन में भगवाधारी शामिल नहीं हैं) की सारी समस्या हल कर देगा.

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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को नहीं पता था कि पूर्व कौमेडियन व्लोदोमीर जेलेंस्की, जो यूक्रेन का राष्ट्रपति हंसीखेल में बन गया था, इतना मजबूत निकलेगा. ऐसी ही गलती नरेंद्र मोदी लगातार कर रहे हैं जब वे कांग्रेस के राहुल गांधी को देश का नंबर एक कौमेडियन साबित करने की कोशिश करते हैं. राहुल गांधी कब जेलेंस्की जैसे साबित हो जाएं, कहा नहीं जा सकता.

आज पूरी दुनिया व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ एकजुट हो गई है, ब्राजील और बेलारूस को छोड़ कर जिन के अकेले हमदर्द नरेंद्र मोदी हैं. यूक्रेन में पढ़ रहे भारतीय छात्रों के साथ अगर उन के घर लौटने के प्रयास में यूक्रेन, पोलैंड, रोमानिया में सही व प्यारभरा बरताव नहीं हो रहा तो इस के लिए नरेंद्र मोदी जिम्मेदार हैं जिन की विदेश नीति ने सब को रुष्ट कर दिया है और उस का असर इन छात्रों पर पड़ रहा है.

नरेंद्र मोदी ने पहले अपने जैसे अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का पालतू बन कर किया था. जब कोरोना का काला साया सिर पर मंडरा रहा था तब उन्हें भारत बुला कर फिर ‘एक बार ट्रंप सरकार’ का नारा अहमदाबाद के नएनवेले स्टेडियम में लगवाया था. नतीजा यह है कि भारत को आज अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस, जो भारतीय मूल की भी हैं, से भाव नहीं मिल रहा.

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यूके्रन में जो रहा है, वह अद्भुत है. बड़ी शक्तियां छोटे देशों से कई बार हारी हैं. रूस पहले अफगानिस्तान में हार चुका है, फिर वहां अमेरिका हारा. अमेरिका वियतनाम में भी हारा. भारत श्रीलंका में तमिल टाइगर्स के हाथों पिट कर आया था, पर 4 करोड़ की आबादी वाला कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहा यूक्रेन जिस तरह एक राष्ट्रपति की हिम्मत के कारण रूस को एक सप्ताह तक रोक सका, वह दंभी व अकड़ में डूबी तानाशाही को सबक सिखा गया है.

योगी का शपथ ग्रहण: तुम्हारे अंगने में हमारा क्या काम है…

योगी आदित्यनाथ के दूसरी बार मुख्यमंत्री पद शपथ ग्रहण समारोह में एक तरफ जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने पहुंचकर  सवाल खड़े कर दिए हैं वहीं जिस तरह योगी के शपथ समारोह का भव्य कार्यक्रम आयोजित हुआ है वह अपने आप में कई सवाल खड़े करता है.

सबसे बड़ी बात यह है कि मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, राज्यपाल सहित न्यायालयों के न्यायाधीश, किसी भी शपथ समारोह का सादगी से आयोजन होता रहा है. यह हमारे देश की परंपरा रही है.

मगर अब  देश में भाजपा के सत्तासीन होने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के प्रथम शपथ ग्रहण समारोह के साथ ही शपथ समारोह को भी भव्यतम बनाने का काम शुरू हो चुका है. जिसकी परिणति एक बार फिर उत्तर प्रदेश और पंजाब में देश ने देखी है.

उत्तर प्रदेश ने तो मानो सारे रिकॉर्ड ही ध्वस्त कर दिए. शुक्रवार 25 मार्च को जब दोपहर योगी आदित्यनाथ का शपथ ग्रहण समारोह चल रहा था तो देश के सारे बड़े न्यूज चैनल कार्यक्रम का सीधा प्रसारण कर रहे थे. मानो यह कोई नई बात हो. शपथ समारोह का सीधा सा अर्थ होता है- मंत्रियों आदि का शपथ लेना ईमानदारी से अपने कर्तव्य वाहन की उद्घोषणा.

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इस कार्यक्रम को जिस तरीके से रबड़ की तरह खींच कर लाखों लोगों के सामने आयोजन हुआ है वह आजादी के अमृत महोत्सव के इस समय पर अनेक प्रश्न खड़े करता है कि हमारा देश किस दिशा में जा रहा है.

निसंदेह हमारा देश गरीब और पिछड़ा हुआ माना जाता है आज भी गांव में लोगों को पीने के लिए पानी  नहीं है, सरकार पानी तो उपलब्ध करवा नहीं पाती, बिजली सड़क कि आज भी कमी है.लोगों को आप महीने का राशन दे रहे हैं. बे रोजगारी है इस सब के बावजूद शपथ समारोह को सादगी, शालीनता से करने के बजाय राजभवन में करने के बजाए सार्वजनिक रूप से आयोजित करना और उसमें करोड़ों रुपए देश का खर्च कर देना फिजूलखर्ची नहीं है तो क्या है. मगर जब से भारतीय जनता पार्टी देश के केंद्र में स्थापित हुई है एक नई परंपरा के साथ शपथ ग्रहण समारोह को भी दिखावे का एक माध्यम बना दिया गया है.

जनता और संविधान का माखौल

2014 में जब नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने पूर्ण बहुमत के साथ देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी ,तब  पहली दफा किसी शपथ समारोह का आयोजन भव्यतम बनाया गया था. मानो यह देश में पहली बार हो रहा है चूंकि यह सब बातें मर्यादा और आप के स्वविवेक पर छोड़ दी गई हैं और एक दीर्घ परंपरा रही है. इस सब बातों को दरकिनार करके नरेंद्र मोदी की मंशा के अनुरूप अनेक देश के प्रमुखों को आमंत्रित किया गया था और आयोजन भव्यतम हो गया. उस समय मोदी लहर में किसी ने सवाल नहीं उठाया कि देश में क्या हो रहा है.

आगे चलकर यह परंपरा बनती चली जा रही है जब राज्य के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री और मंत्री गण शपथ समारोह में सादगी को दरकिनार कर करोड़ों रुपए फिजूलखर्ची  कर दिखावे का आयोजन कर रहे हैं.

क्योंकि इस संदर्भ में संविधान मौन है. ऐसे में आज चिंतन का विषय यही है कि किसी भी प्रदेश की सरकार के लिए यह कितना जरूरी है और करोड़ों रुपए खर्च करने से आखिर क्या लाभ है.

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इस अत्यंत महत्वपूर्ण प्रसंग पर हम यह भी देश की आवाम से पूछना चाहते हैं ऐसे आयोजनों पर आपकी क्या राय है क्या यह उचित है.

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के शपथ समारोह के साथ ही पंजाब में मुख्यमंत्री के रूप में भगवंत मान ने शपथ ग्रहण समारोह में भव्य प्रदर्शन करके  जता दिया कि वह भी बातें तो बड़ी बड़ी करती है मगर चलती भाजपा और कांग्रेस के पीछे पीछे ही है.

आम के बागों का प्रबंधन

Writer- प्रो. रवि प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ कीट वैज्ञानिक

अम के बागों में बौर आना शुरू हो गया है, इसलिए बागबानों को आम का ज्यादा से ज्यादा उत्पादन लेने  के लिए अभी से इस की देखभाल करनी होगी, क्योंकि जहां चूके तो रोग व कीट पूरी बगिया को बरबाद कर सकते हैं.

आम के बागों में जिस समय पेड़ों पर बौर लगा हो और खिल गया हो, उस समय किसी भी कीटनाशक का छिड़काव नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस का परागण हवा या मधुमक्खियों द्वारा होता है.

अगर पुष्पावस्था में कीटनाशक दवा का छिड़काव कर दिया तो मधुमक्खियां मर जाएंगी और बौर पर छिड़काव से नमी होने के कारण परागण ठीक से नहीं हो पाएगा, जिस से फल बहुत कम आएंगे.

आम के बागों को सब से अधिक भुनगा कीट नुकसान पहुंचाते हैं. इस के शिशु व वयस्क दोनों ही कीट कोमल पत्तियों और पुष्पक्रमों का रस चूस कर हानि पहुंचाते हैं. इस की मादा 100-200 तक अंडे नई पत्तियों व मुलायम प्ररोह में देती है और इन का जीवनचक्र 12-22 दिनों में पूरा हो जाता है. इस का प्रकोप जनवरीफरवरी माह से शुरू हो जाता है.

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इस कीट से बचने के लिए बिवेरिया बेसिआना फफूंद 5 ग्राम को एक लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें या नीम तेल 2 मिली. प्रति लिटर पानी में मिला कर छिड़काव कर के भी छुटकारा पाया जा सकता है.

सब से अधिक बीमारी से नुकसान सफेद चूर्णी (पाउडरी मिल्ड्यू) से आम को होता है. बौर आने की अवस्था में यदि मौसम बदली वाला हो या बरसात हो रही हो, तो यह बीमारी जल्दी लग जाती है.

इस बीमारी के प्रभाव से रोगग्रस्त भाग सफेद दिखाई पड़ने लगता है. इस की वजह से मंजरियां और फूल सूख कर गिर जाते हैं. इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही आम के पेड़ों पर 2 ग्राम गंधक को प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

इस के अलावा आम में गुम्मा बीमारी भी लगती है. इसे गुच्छा बीमारी भी कहते हैं. इस बीमारी में पूरा बौर नपुंसक फूलों का एक ठोस गुच्छा बन जाता है.

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बीमारी पर नियंत्रण, प्रभावित बौर और शाखाओं को तोड़ कर या काट कर किया जा सकता है. इस रोग से प्रभावित टहनियों में कलियां आने की अवस्था में जनवरीफरवरी माह में पेड़ के बौर तोड़ देना भी लाभदायक रहता है, क्योंकि इस से न केवल आम की उपज बढ़ जाती है, बल्कि इस बीमारी के आगे फैलने की संभावना भी कम हो जाती है. यदि बागबान अभी से ही आम के बागों का ध्यान रखते हैं, तो अच्छी पैदावार ले सकते हैं.

मौत के बाद वंश बढ़े ऐसे

जरमन मूल की अमेरिकी नागरिक रीटा अलैक्जैंडर नर्तकी थी और क्लेरेंस लोबो उस का डायरैक्टर. दोनों में लगाव हुआ और उन्होंने विवाह कर लिया. नृत्यसंगीत में वे अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त युग्म थे. कार्यक्रमों में अत्यधिक व्यस्तता के कारण वे चाह कर भी परिवार को आगे बढ़ाने के बारे में नहीं सोच पा रहे थे. एक बार ‘लास एंजिल्स मैडिकल काउंसिल’ के लिए उन का प्रस्तुतीकरण चल रहा था. शो के दौरान क्लेरेंस को हार्ट अटैक हुआ और मृत्यु हो गई. दुखद क्षणों में काउंसिल के डीवीएफ ऐक्सपर्ट डा. रौबर्ट निकल्सन ने शोक जताते हुए रीटा को एक अनोखा प्रस्ताव दिया. वे बोले, ‘यदि वह क्लेरेंस के बच्चे की मां बनने को उत्सुक है तो उस के मृत शरीर से शुक्राणु प्राप्त कर मैं तुम्हारे लिए प्रिजर्व कर सकता हूं.’ रीटा को तत्काल निर्णय लेना था. लोबो की स्मृति जीवंत बनाए रखने के लिए वह सहमत हो गई और सगर्व उस ने मृत्यु के बाद उस के बेटे को जन्म दिया. रोहिणी व केशव (बदले हुए नाम) मैनेजमैंट के छात्र थे. प्रेम संबंधों के बाद हालांकि उन्होंने विवाह तो कर लिया किंतु कैरियर कौंशस होने के कारण उन्हें अकसर अलग रहना पड़ता था. रोहिणी एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के मुंबई कार्यालय में सीईओ थी, जबकि केशव ने हाल ही में बैंगलुरु में अपनी आईटी कंपनी शुरू की थी. दोनों को जीतोड़ मेहनत करनी पड़ रही थी, इसलिए साथ रहने का अवसर कम ही मिल पाता था. भागदौड़ भरे क्षणों में उन्हें फुरसत भी न थी कि वे परिवार के बारे में सोच सकें जबकि उन्हें बच्चे की तीव्र चाह थी.

जब तक वे परिवार में वृद्धि की इच्छा को कार्यरूप में परिणत कर पाते, केशव गंभीर दुर्घटना का शिकार हो गया. डाक्टरों ने ‘ब्रेन डैथ’ की बात कहते हुए उस के जीवन की संभावनाओं से इनकार कर दिया. रोहिणी के मांबाप व अन्य लोग उस के भविष्य को ले कर चिंतित थे पर उस के मन में कुछ और ही चल रहा था. उस के मौन ने एक साहसिक निर्णय लिया. केशव की इच्छानुसार उस के बच्चे की मां बनने के लिए उस ने ‘सर्जिकल स्पर्म रिट्रीवल’ तकनीक के प्रयोग का निश्चय किया. केशव के परिवारजन चाहते थे कि वह उस के छोटे भाई या किसी अन्य से विवाह कर ले. रोहिणी नहीं मानी और उस ने केशव के मृत शरीर से शुक्राणु संरक्षित रखवा, उपयुक्त समय आने पर मां बनने में तनिक भी संकोच न किया. एक जरनल ‘ह्यूमन रिप्रोडक्शन’ के अनुसार, ‘पोस्टमार्टम स्पर्म रिट्रीवल’ का प्रथम प्रकरण तब सामने आया जब एक 30 वर्षीय अमेरिकी युवक की दुर्घटना में मृत्यु हो जाने के बाद उस के शुक्राणु संरक्षित किए गए. इस में शरीर में से सर्जरी कर के स्पर्म निकाले जाते हैं. 1999 में यह तकनीक सामने आई. इसे पीएसआर यानी पास्थमस स्पर्म रिट्रीवल कहते हैं. भारत में इस के ऐक्सपर्ट के बतौर डा. शीतल सबरवाल व डा. अर्चना के नाम जाने जाते हैं. विशेषज्ञ बताते हैं कि इस तकनीक के द्वारा मृत्यु के 30 घंटे बाद तक शुक्राणुओं को निकाल कर उन्हें संरक्षित किया जा सकता है बशर्ते मृतक को शुक्राणुओं से संबंधित किसी प्रकार की समस्या न रही हो. पीएसआर से प्राप्त शुक्राणुओं को अधिकतम 5 वर्ष की समयावधि तक फ्रोजन स्थिति में संरक्षित रख कर उपयोग में लाया जा सकता है. हालांकि पहले ब्रेन डैथ हो जाने वाले प्रकरणों में ऐसा किया जाना संभव नहीं था किंतु अब यह भी संभव हो गया है. जहां तक इस तकनीक के सफल होने की बात है, वैज्ञानिकों का मानना है कि मृत व्यक्ति से संरक्षित किए गए स्पर्म 40 प्रतिशत तक निर्धारित समयावधि में सक्रिय बने रहते हैं और उन्हें कुछ काल बाद, किंतु तय समयावधि में प्रत्यारोपित कर दिए जाने पर सफलता की दर 20 से 25 प्रतिशत तक मानी जाती है. तुरंत प्रत्यारोपण पर सफलता की संभावनाएं बहुत अधिक प्रबल होती हैं. बेशक, सफलता के आंकड़े अधिक उत्साहजनक नहीं लग रहे हैं किंतु मृत्यु के तुरंत बाद इन का प्रत्यारोपण करवाने तथा मृतक की स्थिति व ग्रहणकर्त्ता की मानसिक स्थिति (अवसाद आदि) से भी सफलता का अंतर्संबंध है.

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सरल व सहज प्रक्रिया

विशेषज्ञ वैज्ञानिकों के अनुसार, उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि मृतक व्यक्ति के स्पर्म तुलनात्मक रूप से अन्य की अपेक्षा में अधिक सक्रिय पाए जाते हैं. इस के लिए जरूरी है कि प्राप्त किए गए शुक्राणुओं में किसी प्रकार की कमी न हो और न ही उन्हें ग्रहण करने वाली स्त्री के स्वास्थ्य में ऐसी कोई प्रतिकूलता हो जो उसे गर्भधारण करने के अयोग्य ठहराती हो. यह भी माना जाता है कि मृतक व्यक्ति को कोई जानलेवा बीमारी नहीं होनी चाहिए और यदि वह कीमियोथैरेपी जैसा कोई इलाज ले रहा हो तो उस के शुक्राणु कुछ कम सक्रिय हो सकते हैं और तद्नुसार सफलता का प्रतिशत भी घट जाता है.  जहां तक मृत व्यक्ति के शरीर से स्पर्म निकालने और उन को संरक्षित रखे जाने की बात है, वह अधिक पेचीदगियों भरी तकनीक नहीं है. शुक्राणुओं को प्राप्त कर उन्हें फ्रोजन स्थिति में संरक्षित रखा जाता है, जो बेहद प्रचलित विधि के अनुसार ही है. इस के बाद बारी आती है फ्रोजन किए गए शुक्राणुओं को स्त्री की कोख में प्रत्यारोपित किए जाने की. सो, वह प्रक्रिया भी बेहद आसान है. ठीक वैसी ही, जैसे कि सामान्य प्रकरणों में स्त्री की कोख में भू्रण प्रत्यारोपित किया जाता है.

हालांकि इस तरह पति की मृत्यु के बाद उस के शुक्राणुओं को विधवा स्त्री परिवार की सहमति से अथवा सहमति के बिना प्रत्यारोपित करवा, बच्चे को जन्म दे सकती है किंतु विचारणीय है कि ऐसे बच्चे को कानून और समाज किस तरह से देखता है. अमेरिका और पश्चिमी देशों में, जहां इस तकनीक का आविष्कार हुआ है, मृत पति के शुक्राणुओं से पत्नी द्वारा संतति को जन्म देना गलत नहीं माना जाता किंतु सामान्यरूप से यह प्रचलन में नहीं है. जहां तक कानूनी पक्ष की बात है, पति व संतान के डीएनए मिल जाने पर इस तरह उत्पन्न संतान को कानूनन वैध संतान मान लिया जाता है. ऐसे कई प्रकरण हुए हैं जिन में न्यायालयों द्वारा अन्य संतानों के समकक्ष ऐसी संतानों को वैध उत्तराधिकार दिया गया है. भारत में अपवादस्वरूप रोहिणी जैसी आधुनिक युवतियां दिवंगत पति के शुक्राणुओं से बच्चे को जन्म देने का साहस तो दिखा सकती हैं किंतु पारंपरिक भारतीय समाज ऐसे प्रकरणों को नैतिक दृष्टि से हेय ही मानता है. जब ऐसे बच्चे समाज और कानून से रूबरू होते हैं तो उन्हें न अपनत्व प्राप्त होता है, न ही पिता से प्राप्त होने वाला उत्तराधिकार. बेशक नैतिकता के आधार पर यह बहस का मुद्दा हो सकता है किंतु भारतीय सामाजिक व्यवस्था में किसी विधवा स्त्री द्वारा पुनर्विवाह किए बिना बच्चे को जन्म देना, चाहे वह दिवंगत पति के शुक्राणुओं से ही क्यों न हो, अस्वीकार्य माना जाता है. कानूनी दृष्टि से भी ऐसी संतान को उत्तराधिकारहीन ही रहना पड़ता है.

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सामाजिक व कानूनी पहलू

इस संबंध में समाजसेवी राम मनोहर प्रभु से बात की गई. उन्होंने विषय को सुन कर उपहास भरे लहजे में कहा कि भारत में ऐसा सोचना भी संभव नहीं. वे बोले, ‘‘भारतीय पत्नी के लिए पति को गंवाना अत्यंत दुखद हादसा है. वह तत्काल ऐसी बात सोच ले और इतना बड़ा निर्णय ले ले, अकल्पनीय है. मान लीजिए, ऐसा भावुक निर्णय वह ले भी ले तो पारिवारिक सहमति नहीं बन पाएगी क्योंकि हमारे यहां मृत देह से तनिक भी छेड़छाड़ उचित नहीं मानी जाती. सर्वाधिक दुष्कर है, भारत जैसे देश में उच्च तकनीकी चिकित्सकीय सुविधाओं का निर्धारित समयसीमा में उपलब्ध हो जाना. फिर भी यदि कोई परिवार ऐसा दुस्साहसी कदम उठा ले और सुविधाएं भी जुटा ले तो मान कर चलिए कि समाज व कानून द्वारा फैसला बाद में होगा, इस से पूर्व 24 घंटे चलने वाले चैनलों पर दिलचस्प ‘मीडिया बहस’ छिड़ जाएगी.’’

प्रजनन विशेषज्ञ डा. सोमेश्वरदत्त बनर्जी ने विषय की गंभीरता को समझते हुए कहा, ‘‘बेशक क्लिनिकली यह संभव है पर ऐसे मामलों में यथासमय सभी सुविधाओं का जुट पाना, शुक्राणुओं को संगृहीत कर उन का सुरक्षित उपयोग होना, आसान नहीं. ऐसे मामलों में सौ फीसदी सफलता नहीं मिल पाती, इसलिए यह जानते हुए, न कोई क्लिनिक ऐसे कठिन कार्य को करने हेतु सहमत होगा और न ही कोई परिवार उस के लिए तैयार होगा.’’ जो भी हो, यह बहस का विषय तो है ही. माना कि आज पीएसआर सुविधाएं प्राप्त व लोकप्रिय नहीं हैं मगर कल तो हो जाएंगी. जहां तक पत्नी के अधिकार की बात है, एक स्त्री, जो पति के दिवंगत होने तक उस की पत्नी रही है, यदि पति की मृतदेह से शुक्राणु प्राप्त कर उस से संतान उत्पन्न करती है तो तार्किक दृष्टि में वह उत्तराधिकार में पति के धन को ग्रहण करने के समतुल्य कार्य है. विचारणीय तथ्य है कि जब वह पति द्वारा अर्जित धन को प्राप्त करने की वैध अधिकारिणी है तो भला उस के शुक्राणुओं को ग्रहण करने की अधिकारिणी क्यों नहीं मानी जा सकती?

मान लीजिए, यदि पति ने अपने जीवनकाल में भावी उपयोग हेतु शुक्राणुओं को ‘शुक्राणु बैंक’ में जमा रखवाया होता और बिना उपयोग का निर्देश दिए उस की मृत्यु हो गई होती तो ऐसी स्थिति में उन्हें उपयोग में लेने हेतु निर्देशित करने का कानूनी अधिकार किस के पास होता? निसंदेह वह अधिकार पत्नी के पास होता. ऐसी स्थिति में यदि वह अपने पति के शुक्राणुओं को, पति का नाम चलाने के लिए स्वयं के उपयोग में लेना चाहे तो क्या गलत है? इस में कोई दोराय नहीं कि यह उस का एकाधिकार है. वह चाहे तो किसी अन्य स्त्री के उपयोग हेतु उन्हें काम में लेने दे या स्वयं प्रयोग में ले कर पति की डैथ के बाद भी उस की संतान पैदा कर, पति को डैड बनाने का काम करे. 

Summer Special: फलों और सब्जियों से बनाएं बच्चों के लिए हेल्दी स्मूदी

स्मूदी एक ऐसा पेय पदार्थ  है जो मीठा, गाढ़ा व शक्तिवर्धक होता है. इस में ताजे या फ्रोजन फलों, दही, दूध, शहद या चीनी आदि का प्रयोग होता है. इस की पौष्टिकता को बढ़ाने के लिए अपने स्वादानुसार ओट्स, फ्लैक्सीड, ड्राईफू्रट्स, सलाद या पालक पत्ते, आइसक्रीम आदि का भी प्रयोग किया जा सकता है. इस को पीने से ऊर्जा तो प्राप्त होती ही है साथ ही, यह हैल्थ के लिए न्यूट्रीशियस सप्लीमैंट का काम भी करता है.

  1. फल और सब्जियों का मिक्स ड्रिंक

सामग्री

100 ग्राम टमाटर, 100 ग्राम सेब के छिले व कटे टुकड़े, 100 मिलीलिटर एप्पल जूस, 2 बड़े चम्मच गाजर छिली व कटी, 1 बड़ा चम्मच सेलरी बारीक कटी, 100 ग्राम दही, 1?छोटा चम्मच ताजी कुटी कालीमिर्च.

विधि 

  • टमाटरों को ब्लांच कर के छीलें और बीज निकाल लें.
  • सभी चीजों को ब्लैंडर में डाल कर चर्न करें और गिलास में सर्व करें.

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  1. हराभरा ड्रिंक

सामग्री

कीवी छिली व कटी 2 नग, 1/2 कप खीरा छोटे टुकड़ों में कटा, 1/4 कप ताजा जमा थक्का दही, 1 बड़ा चम्मच मिल्क पाउडर और 1 बड़ा चम्मच चीनी.

विधि 

  • सभी चीजों को मिक्स करें.
  • ब्लैंडर में 6-7 आइसक्यूब्स के साथ चलाएं और ठंडीठंडी स्मूदी गिलास में सर्व करें.
  • ऊपर से एक चैरी सजा दें.
  • विटामिन सी से भरपूर स्मूदी तैयार है.
  1. फलों का टेस्टी ड्रिंक

सामग्री

5 नग फ्रोजन स्ट्राबैरी, 1/2 कप छिला व गोल टुकड़ों में कटा पका केला, 1 बड़ा चम्मच अलसी के भुने बीज, 1/2 कप दही ताजा जमा, 2 छोटे चम्मच शहद, 2 बड़े चम्मच ठंडा दूध और थोड़े से आइसक्यूब्स.

विधि 

  • उपरोक्त लिखी सभी सामग्री मिलाएं.
  • 7-8 आइसक्यूब्स डाल कर ब्लैंडर में एकसार करें.
  • बढि़या स्मूदी तैयार है.

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  1. हेल्दी मूसली ड्रिंक

सामग्री

3 बड़े चम्मच फू्रटी मूसली, 11/2 कप ठंडा दूध, 1 बड़ा चम्मच फै्रश जमा दही, 2?छोटे चम्मच शहद और सजावट के लिए थोड़े से ड्राईफू्रट्स.

विधि 

  • ब्लैंडर में दही, दूध, मूसली और शहद डाल कर ब्लैंड करें.
  • क्रश्ड आइस गिलास में डालें और ऊपर से मूसली का मिश्रण डालें.
  • ड्राईफ्रूट्स और थोड़ी सी मुसेली से सजा कर सर्व करें.

भारत को किसमें लाभ: पाकिस्तान में लोकतंत्र या तानाशाही

पड़ोसी देश पाकिस्तान में उथल-पुथल शुरू होते ही मानो भारत की छाती चौड़ी होने लगती है. देश के बहुतेरे चर्चित चेहरे बलियां उछलने लगते हैं और आम जनमानस में भी प्रतिक्रिया नकारात्मक साफ साफ देखने को मिलती है.

दरअसल,इस मनोविज्ञान के पीछे यही भावना है- जैसी आम आदमी की, किसी पास पड़ोसी, जिससे रिश्ते अच्छे नहीं है संकट में पड़ते ही बांछें खिल जाती है.

इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव क्या आया है भारतीय मीडिया विशेषकर न्यूज चैनलों में यही दिखाया जा रहा है कि इमरान खान किस तरह संकट में फंस गए हैं और अब  उनकी सरकार का बच पाना मुश्किल है.

अक्सर जब भी पाकिस्तान में लोकतंत्र पर संकट के बादल मंडराते हैं भारत में एक तरह से खुशनुमा प्रतिक्रिया आने लगती है जो सीधे-सीधे इस दृष्टिकोण से गलत ठहरती है.

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हम यह भूल जाते हैं कि पाकिस्तान हमारा पड़ोसी है और रहेगा. हमें अमन और चैन के साथ अस्तित्व भावना के साथ रहना है. उनके दुख में उनके सुख में हमें साथ साथ ही रहने में समझदारी होगी.

जहां तक बात पाकिस्तान में राजनीतिक संकट की है वह तो आया है चला जाएगा.

मगर भारत में जिस तरीके की प्रतिक्रिया आती है वह यह सच बता जाती है कि हम चाहे कितने ही प्रगतिशील हो, धैर्यवान हो, मगर हम में वह ऊंचाई नहीं है जो प्राकृतिक रूप से हममें होनी चाहिए.

हम यह भूल जाते हैं कि पाकिस्तान में अगर लोकतंत्र रहेगा तो भारत का उसमें  हित है क्योंकि कोई भी लोकतांत्रिक सरकार संवैधानिक नियम कायदे से ही चलेगी. मगर किसी भी तानाशाही अथवा सैनिक शासन में भारत को ज्यादा खतरे और तनाव का सामना करना पड़ेगा.

इमरान खान की बड़ी रेली

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अविश्वास प्रस्ताव से एक दिन पूर्व 27 मार्च, रविवार को इस्लामाबाद में एक बड़ी रैली को संबोधित किया.  इमरान खान ने विपक्षी दलों पर निशाने साधा.  इमरान खान ने कहा  वे पांच साल पूरे करेंगे और इस्तीफा नहीं देंगे.उनके शब्द थे- मैं लोगों के विकास के लिए राजनीति में आया था.

इमरान ने दावा किया कि उनकी गठबंधन सरकार गिराने की ‘साजिश’ में विदेशी ताकतों का हाथ है.  अपने दावों की पुष्टि करने वाला एक पत्र सबूत के तौर पर उनके पास बताया है. उन्होंने कहा कि जिस संकट के समय आप लोग मेरे एक बुलावे पर आए, पाक के हर कोने से आए, उसके लिए शुक्रिया.

इमरान खान ने कहा कि जब हम पांच साल पूरे करेंगे, तो सारा देश देखेगा कि कभी इतिहास में दूसरी किसी सरकार ने उतनी गरीबी कम नहीं की, जितनी हमने की. उन्होंने कहा कि मै राजनीति में एक ही चीज के लिए आया था और वो ये थी कि पाकिस्तान जिस नजरिए के साथ बनाया गया था, उसे आगे बढ़ा सकूं. उन्होंने कहा कि जो काम हमने तीन साल में किए हैं, वैसे काम हमसे पहले किसी ने नहीं किए थे।

प्रधानमंत्री  इमरान खान ने कहा कि मैंने डीजल की कीमतें 10 रुपए कम कीं. 100 साल में सबसे ज्यादा बुरा समय कोरोना महामारी लेकर आई.पूरी दुनिया रुक गई उस समय इन लोगों ने कहा कि ये पाकिस्तान को बर्बाद कर रहा है.जो हमने कदम उठाए उनकी पूरी दुनिया तारीफ करती है. मैंने अपने देश के गरीबों को बचाया, देश को बचाया. हमने पाकिस्तान के इतिहास में सबसे ज्यादा टैक्स जमा किया. उन्होंने कहा कि ये सब ड्रामा इसलिए हो रहा है कि जनरल मुशर्रफ की तरह मेरी सरकार भी गिरा दी जाए. ये मुझे शुरू से ही ब्लैकमेल कर रहे हैं. इमरान की सरकार के खिलाफ विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया है, जिस पर आज 28 मार्च सोमवार को मतदान होना है. विपक्षी दलों के नेशनल असेंबली सचिवालय में आठ मार्च को एक अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया था.

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इसमें इमरान खान पर आरोप लगाया गया है कि प्रधानमंत्री इमरान खान नीत पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआइ) देश में आर्थिक संकट और बेतहाशा बढ़ती महंगाई के लिए जिम्मेदार है .

हाल ही में इमरान खान ने एक राजनीतिक संदेश भेजा था- शायद आपको याद हो, रूस यूक्रेन युद्ध की तारतम्य में इमरान खान ने कहा था कि भारत की विदेश नीति देशहित की है और वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खुल कर प्रशंसा  की थी और कहा था कि इस नीति के कारण पाकिस्तान को भी लाभ हो रहा है.

एक तरह से यह इमरान खान का भारत सरकार को सद्भावना का मित्रता का संदेश था. मगर इमरान खान के दोस्ती के बढ़े हुए इस हाथ को  थामने के लिए भारत की कोई पहल दिखाई नहीं दी. आज इमरान खान की सरकार और पाकिस्तान में लोकतंत्र अगर संकट में है तो भारत सरकार की एक प्रतिक्रिया से पाकिस्तान के लोकतंत्र को ताकत मिल सकती है. और दोनों की दोस्ती से  दोनों देश की आवाम को सुख, शांति समृद्धि.

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भारती सिंह हर साल बनना चाहती हैं मां! जानें पूरा मामला

मशहूर कॉमेडियन भारती सिंह (Bharti Singh) जल्द ही मां बनने वाली हैं. वह  इन दिनों अपनी प्रेग्नेंसी को खूब एंजॉय कर रही हैं. अब उन्होंने फैंस को बताया है कि वह हर साल मां बनना चाहती हैं. आइए बताते हैं, क्या है इसकी वजह.

भारती सिंह का एक वीडियो सामने आया है. जिसमें वह कह रही हैं कि वह हर साल मां बनना चाहती हैं. वीडियो में आप देख सकते हैं कि भारती सिंह कहती हैं, ये बात सच है लोग कहते हैं कि जबसे मैं प्रेग्नेंट हुई हूं, मम्मी बनने वाली हूं, मैं बहुत सुंदर हो गई हूं. मैं ग्लो कर रही हूं, मैं बहुत अच्छी लग रही हूं, ये बात सच है क्या? अगर ये बात सच है, तो फिर हर साल हो जाए.जल्दी बताइए कमेंट करके.

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भारती सिंह के इस वीडियो पर यूजर्स जमकर कमेंट कर रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, आप बहुत अच्छी लग रही हैं भारती मैम. हां, हर साल हो जाए. तो दूसरे ने लिखा, मैम आप पहल से ही बहुत अच्छी हो. वहीं अन्य ने लिखा है कि बच्चा एक ही अच्छा. एक अन्य यूजर ने लिखा आप पहले से काफी सुंदर लग रही है.

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हाल ही में भारती सिंह ने खुलासा किया है कि वह अप्रैल के पहले सप्ताह में मां बनने वाली हैं. भारती ने अपने यूट्यूब चैनल एलओएल लाइफ ऑफ लिंबाचिया पर वीडियो शेयर करते हुए अपनी प्रेग्नेंसी की खबर शेयर की थी. हम मां बनने वाले हैं नाम के इस वीडियो में हर्ष भी अभिनय करते नजर आए थे. इससे पहले भारती ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वह नॉर्मल डिलीवरी चाहती हैं. उन्होंने बताया कि मैंने हर दूसरे दिन योगा करना शुरू कर दिया है.

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अनुज-अनुपमा करेंगे सीक्रेट शादी? वनराज रचेगा साजिश!

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) और ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) में शादी का ट्रैक दिखाया जा रहा है. दोनों शो का महासंगम चल रहा है. ‘अनुपमा’ में  अनज और अनुपमा शादी करने वाले हैं तो वहीं ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में अक्षरा और अभिमन्यु की शादी की तैयारियां चल रही है. अक्षरा और अभिमन्यु की शादी में अनुज और अनुपमा भी शामिल होंगे. शो के अपकमिंग एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है, आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

अनुज करेगा शादी का वादा

अनुपमा सीरियल के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि शादी के मंडप में अनुज अनुपमा का हाथ पकड़े हुए, शादी का वादा करते दिखाई देगा. अनुज-अनुपमा की ये सीक्रेट शादी दिखाई जाएगी. दरअसल ये शादी अक्षरा और अभिमन्यु की शादी के वेन्यू के ठीक बगल में होगी.

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राखी दवे से हाथ मिलाएगा वनराज

तो दूसरी तरफ शाह परिवार में अनुपमा-अनुज की शादी को लेकर बवाल खड़ा होगा. बा वनराज से कहती है, अनुपमा ने समाज के सामने मेरा सिर झुका दिया है. बा फूट-फूट कर रोती है. ऐसे में वनराज अनुपमा-अनुज की शादी रोकने के लिए साजिश रचता है. वनराज चालाकी से राखी दवे के साथ हाथ मिलाने की बात करता है.

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अनुज-अनुपमा के खिलाफ वनराज रचेगा साजिश

शो में दिखाया जाएगा कि अनुज और अनुपमा की शादी में काफी सारी अड़चनें आएंगी. शो के आने वाली कहानी में अनुज और अनुपमा को अपनी शादी से ठीक पहले एक बड़ी मुसीबत में फंसेंगे. शो में अब ये देखना होगा कि क्या अनुज और अनुपमा आने वाले तूफान का कैसे सामना करते हैं, और अपने सपने को कैसे पूरा करते हैं?

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वोटरों की बदलती सोच

जहां एक ओर कांग्रेस की लोकप्रियता बुरी तरह घटती जा रही है वहीं अन्ना आंदोलन के भ्रष्टाचार के मुद्दे से निकली आम आदमी पार्टी अब हर ऐसे राज्य में पैर फैला रही है जहां पहले भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस का मुकाबला होना था. आम आदमी पार्टी की पंजाब में बहुत ही अच्छी विजय ने उस का आत्मविश्वास बढ़ा दिया है और चाहे कांग्रेस का समाप्त होना खले, लोकतंत्र जिंदा है और एकपार्टीराज नहीं बन रहा, इस का भरोसा मिल रहा है.

आमतौर पर युवाओं और राजनीति में नए आए लोगों की आप पार्टी में वोटरों ने भरोसा जताया है कि अब जनता बुरी तरह से विरासत और धर्म की राजनीति करने वाली व बहकाने व लूटने वाली नीतियों की पार्टियों से थक चुकी है और जहां जरा सा मौका मिलता है वह नया प्रयोग करने को तैयार है. पश्चिम बंगाल में यह प्रयोग तृणमूल कांग्रेस के रूप में हुआ और आंध्र में जगन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस के रूप में. तेलंगाना, तमिलनाडू, केरल भी इसी तरह के राज्य हैं जहां न कांग्रेस है और न भारतीय जनता पार्टी.

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भारतीय जनता पार्टी ने जो राममंदिर और हिंदू पौराणिकवादी खेल खेला है उस ने जनता की भावनाओं व सदियों के अंधविश्वासों को भुनाया है जो उस की रोजीरोटी को सुलभ नहीं बनाता. भाजपा को लोगों के अगले जन्म को सुधारने का झूठा वादा दिलाने के नाम पर वोट मिल जाते हैं, जबकि इन पार्टियों को जनता के आज को सुधारने का काम करना पड़ रहा है और ये जनता के ज्यादा नजदीक हैं. इसीलिए वोटर अपनेअपने राज्य में इन पार्टियों का ज्यादा समर्थन कर रहे हैं और कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी बरबाद होती दिख रही हैं.

राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता. भारतीय जनता पार्टी ने 4 राज्यों में अपनी जीत बनाए रखी पर उस के पास टैलेंट और युवा नेताओं की भारी कमी है. इस का मतलब है कि उस का शासन पौराणिक राजाओं की तरह है जो कहानीकिस्सों के अनुसार सिर्फ और सिर्फ या तो यज्ञ, हवन, पूजापाठ और दानदक्षिणा में लगे रहते थे या युद्धों में. पौराणिक ग्रंथों की कथाओं ने कहीं भी प्रकृति से लड़ कर कुछ पाने का इन राजाओं का कोई काम होता नहीं दिखा. आज भारतीय जनता पार्टी वही करना चाहती है क्योंकि घंटों जमीन पर बैठा कर कोई महान विभूति पर उपदेश कुशल बहुतेरे क्या ज्ञान बांटना है.

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आम जनता की समस्याओं से आज भारतीय जनता पार्टी का कोई मतलब नहीं रह गया जैसे पहले कांग्रेस का नहीं रह गया था जब वह शासन में थी. कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों ही भयंकर तरीके से निरर्थक फैसले लेने वाले नेताओं को चुनचुन कर कुरसियां देने की नीति अपनाती रही हैं और इसीलिए वे जनता से वोट तो पाती थीं पर वे जनता से लगाव नहीं जुटा पाती थीं.

आम आदमी पार्टी नई पार्टियों में से है जहां न तो इतिहास का बोझ है न जनता से दूर रहने वालों की भीड़. कांग्रेस की तरह ‘आजादी दिलाई’ की धुन भी उस के पास नहीं है और भारतीय जनता पार्टी के ‘हिंदू धर्म ही सर्वश्रेष्ठ’ का राग है.

शासन के स्तर पर देशवासियों को आज कोई पार्टी भी पूरी तरह संतुष्ट नहीं कर पा रही क्योंकि आज शासन की बागडोर तो असल में सरकारी दफ्तरों से खिसक कर टैक्नोलौजी विकसित करने वाली कंपनियों के हाथों में चली गई है. आज सारे सरकारी दफ्तरों पर निजी सौफ्टवेयर कंपनियों का राज है जो मनचाहा प्रोग्राम बना सकती हैं. शासन कौशल तो एप्पल, माइक्रोसौफ्ट, अमेजन, टेस्ला जैसी कंपनियों के हाथों में है जो नेताओं को निरर्थक साबित कर रही हैं. ऐसे में अगर लगभग सब जगह से कांग्रेस पिट चुकी हो और कई राज्यों में भारतीय जनता पार्टी बुरी तरह पिट रही हो, तो न कोई आश्चर्य की बात है, न अफसोस की.

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