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सेंसिटिव स्किन से फाइट करे, सेंसीबायो H2O क्लीन्ज़र

हर महिला चाहती है कि उसकी स्किन ग्लोइंग, अट्रैक्टिव होने के साथ हर तरह की प्रोब्लम से फ्री हो. लेकिन लाख सोचने के बावजूद भी जरूरी नहीं कि हर महिला की स्किन ठीक हो ही. क्योंकि स्किन एक प्रोटेक्टिव लेयर से बनी होती है. लेकिन मौसम में आए बदलाव, केमिकल वाले स्किन केयर प्रोडक्ट्स, धूलमिट्टी व गंदगी के ज्यादा संपर्क में जब हम रहते हैं तो वो हमारी स्किन की सेंसिटिविटी का कारण बनते हैं. जिससे ढेरों स्किन प्रोब्लम्स का हमें सामना करना पड़ता है. ऐसे में जरूरी है सही स्किनकेयर करने के साथ सही स्किन केयर प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करने की, ताकि हमेशा हमारी स्किन चमकतीदमकती रहे. ऐसे में  बायोडर्मा का सेंसीबायो H2O क्लीन्ज़र एक ऐसा प्रोडक्ट है , जो आपकी स्किन की खास केयर करने का काम करता है. तो आइए जानते हैं , कैसे करें स्किन की केयर.

कौन से कारण है स्किन की

सेंसिटिविटी के लिए जिम्मेदार

– हार्मफुल इंग्रीडिएंट्स 

आए रोज या लंबे समय तक ऐसे स्किन केयर प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करने, जिसमें मिनरल ऑयल्स,  सिलिकोंस व स्किन को नुकसान पहुंचाने वाले इंग्रीडिएंट्स होते हैं. इनका इस्तेमाल  करने से पोर्स बंद होने के साथ स्किन पर एक्ने , जलन जैसी समस्या उत्पन्न होने लगती है. जिसके समाधान के लिए इस बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि आप स्किनकेयर प्रोडक्ट्स में इंग्रीडिएंट्स को देखकर ही प्रोडक्ट को खरीदें. कोशिश करें नेचुरल इंग्रीडिएंट्स से बने प्रोडक्ट्स व माइल्ड प्रोडक्ट्स का ही  इस्तेमाल करें. साथ ही रात को सोते समय मेकअप को रिमूव करना न भूलें.

– पोलुशन

चाहे हम घर में रहें या फिर बाहर निकलें , हम अपने चारों ओर पोलूशन से घिरे हुए हैं. पोलुशन के कारण न सिर्फ हमें अपनी स्किन गंदी लगती है, बल्कि प्रदूषण के कणों से जुड़े कुछ केमिकल्स त्वचा की परतों में प्रवेश कर जाते हैं , जो ओक्सिडेशन स्ट्रेस का कारण बनने के कारण हमारी स्किन बैरियर को कमजोर बनाने के साथ सूजन , एजिंग का भी कारण बनते हैं . जिससे सेंसीबायो H2O क्लीन्ज़र आपको फुल प्रोटेक्शन देने का काम करता है.

– गंदगी

अगर हम स्किन की हाइजीन का ध्यान नहीं रखते हैं , तो स्किन की हालत खराब हो जाती है. जिसके कारण वह मुरझाई मुरझाई सी लगने लगती है और समय से पहले बूढ़ी नजर आने लगती है.  बता दें कि आपकी स्किन केमिकल्स व रोगजनकों के खिलाफ एक नेचुरल बैरियर का काम करती है. ऐसे में अगर आप स्किन की हाइजीन यानि उसे प्रोपर रोजाना क्लीन करते हैं , तो वह त्वचा की सतह से डेड स्किन सेल्स, गंदगी व रोगाणुओं को हटाने में सक्षम बन पाती है.

– टेप वाटर

टेप वाटर बैक्टीरिया, कैल्शियम व अन्य अवशेषों से भरा होता है, जो हमारी स्किन की बाहरी परत कहे जाने वाली एपिडर्मिस को नुकसान पहुंचा सकता है. इससे स्किन में जलन व एलर्जी जैसी समस्या हो सकती है. ऐसे में सही फेस क्लीन्ज़र का इस्तेमाल करके आप सेंसिटिव स्किन की प्रोब्लम से लड़ कर इन समस्याओं से निजात पा सकते हैं.

– फेस मास्क

कोविंद 19 वायरस के कारण जहां आज खुद को प्रोटेक्ट करने के लिए मास्क लगाना जरूरी हो गया है, वहीं ये स्किन के लिए किसी मुसीबत से कम साबित नहीं हो रहा है. क्योंकि इसके कारण चेहरे के निचले हिस्से में मुंहासों की समस्या हो जाती है, साथ ही सेंसिटिव स्किन वालों को इससे स्किन में जलन, स्किन का लाल पड़ना और यहां तक की इससे एक्जिमा की समस्या भी हो जाती है. इसके लिए फेस को क्लीन करते रहना बहुत जरूरी है , ताकि स्किन को ठंडक मिल सके.

क्या है बायोडर्मा का

सेंसीबायो H2O क्लीन्ज़र

25 साल पहले बायोडर्मा ने एक नए उत्पाद के रूप में मिसेलर टेक्नोलोजी का अविष्कार किया, जो आज एक प्रतिष्ठित प्रोडक्ट के रूप में स्थापित हो गया है.  सेंसीबायो H2O एक डर्माटोलोजिकल मिसेलर वाटर है, जो सेंसिटिव स्किन की केयर करता है. इसका यूनिक फार्मूला , स्किन के पीएच लेवल को बनाए रखकर स्किन को क्लीन व स्मूद बनाए रखने का काम करता है. बता दें कि मिसेलर टेक्नोलोजी हर तरह की अशुद्धियों और प्रदूषण कणों को प्रभावी तरीके से हटाकर स्किन को क्लीन करने में सक्षम है. इसके लिए आपको इसकी थोड़ी सी मात्रा को कॉटन में लेकर उससे सुबह और शाम चेहरे को क्लीन करना है. इसकी खास बात यह है कि इसे न तो चेहरे पर रब करना है और न ही इसके बाद चेहरे को धोने की जरूरत है. तो हुआ न इफेक्टिव व आसान तरीका. और इजी टू अवेलेबल भी.

बौक्स मैटर

बेसिक रूल्स फोर स्किन सेंसिटिविटी

– स्किन दिन के दौरान पर्यावरण के खिलाफ सुरक्षात्मक भूमिका निभाने के लिए खुद को तैयार करती है. इसके लिए जरूरी है कि आप रात भर की अशुद्धियो को दूर करने के लिए स्किन को जेंटल क्लीन्ज़र से क्लीन करें. ठीक इसी तरह चेहरे से दिनभर की अशुद्धियो को दूर करना बहुत जरूरी है, वरना चेहरे पर जमा गंदगी आसानी से स्किन में प्रवेश करके उसे नुकसान पहुंचा सकती है. इसलिए स्किन को डे व नाईट में सेंसीबायो H2O क्लीन्ज़र से क्लीन करना न भूलें.

– सेंसिटिव स्किन वालों को इस बात का ध्यान रखना है कि अगर फेस को किसी प्रोडक्ट से क्लीन करने के बाद आपको फेस पर टाइटनेस फील हो, तो इसका मतलब आप समझ जाएं कि वो प्रोडक्ट आपकी स्किन के लिए अच्छा नहीं है.

– आप सनस्क्रीन, मेकअप, क्रीम्स को कभी भी फेस पर ओवरनाईट लगाकर न सोएं. बल्कि क्लीन्ज़र से क्लीन करके स्किन को डीटोक्स करें.

– अपनी स्किन को हमेशा हाइड्रेट रखने के लिए खूब पानी पिएं. ताकि आपकी स्किन हेल्दी रहे.

Anupamaa और अनुज ने किया धमाकेदार ‘होली डांस’, देखें Video

‘अनुपमा’ (Anupamaa) सीरियल फेम रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) और गौरव खन्ना (Gaurav Khanna) यानी अनुज-अनुपमा की जोड़ी को फैंस काफी पसंद करते हैं. ये दोनों अक्सर ऑफस्कीन भी एक-दूसरे के साथ वीडियो बनाते हैं और फैंस के साथ शेयर करते हैं. फैंस को भी अनुज-अनुपमा के फोटोज और वीडियो का बेसब्री से इंतजार रहता है. अब अनुज-अनुपमा का एक डांस वीडियो सामने आया है. जिसमें वो दोनों धमाकेदार होली डांस करते हुए दिखाई दे रहे हैं.

इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि अनुज-अनुपमा ने इस बार ‘जय जय शिवशंकर गाने पर जमकर डांस किया है. इस डांस का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इस वीडियो में अनुज और अनुपमा की जबरदस्त केमिस्ट्री भी देखने को मिली.

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इस वीडियो की सबसे खास बात यह है कि अनुज-अनुपमा ने एक कलर के कपड़े पहने हुए नजर आए. अनुपमा ने डार्क पिंक कलर की साड़ी पहनी तो वहीं अनुज इसी रंग की शेरवानी पहने नजर आ रहे है. इस वीडियो को अनुज और अनुपमा ने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर किया है.

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अनुपमा ने इस वीडियो के कैप्शन में लिखा है कि मान डे पर मना कर रहेंगे होली डे डांस. आप भी होली वाला डांस करो और हमें टैग करो.

 

अनुज और अनुपमा के इस वीडियो पर फैंस और कई सेलेब्स लगातार कमेंट कर रहे हैं. मालविका यानी  अनेरी ने कमेंट किया, बहुत अच्छा. जसवीर कौर ने कमेंट किया, ‘क्या बात है. तो वहीं रोनित रॉय ने लिखा- आप लोग सही में कहर ढा रहे हो.

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अनुपमा सीरियल की बात करे तो शो के आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि मालविका वनराज को कंपनी से निकाल देगी. ये सुनकर वनराज के पैरों तले जमीन खिसक जाएगी. वनराज इस हार से तिलमिला उठेगा. ऐसे में  अनुज वनराज का साथ देगा.

GHKKPM: विराट से प्यार का इजहार करेगी सई! क्या विराट करेगा माफ?

टीवी सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin)  की कहानी में दिलचस्प मोड़ आ चुका है. शो में आपने देखा था कि विराट सई से अपने दिल की बात कहना चाहता था पर सई सुनने को तैयार ही नहीं थी. सई को लगता था कि विराट और उसके बीच कभी प्यार नहीं हो सकता. लेकिन अब सई को विराट के लिए प्यार का अहसास हो रहा है. विराट के साथ बिताये हुए हर पल को वह मिस कर रही है. शो के आने वाले एपिसोड में सई विराट को प्रपोज करने वाली है. आइए बताते हैं, शो के नये एपिसोड के बारे में.

शो के आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि देवयानी सई को माफ कर देगी. सई उससे कहेगी कि वह विराट की परवाह करती है, वह उसके साथ अपनी जिंदगी बिताना चाहती है. देवयानी सई को विराट के प्यार का अहसास करवाती है, वह कहती है कि जब वह सबसे ज्यादा खुश होती है या गुस्सा होती है तो किससे शेयर करना चाहती है. या जब वह आंख बंद करती है तो सामने कौन नजर आता है. इस तरह सई विराट का नाम लेती है. ऐसे में देवयानी कहती है कि सई विराट से प्यार करने लगी है. उसे अपने दिल की बात बता देनी चाहिए.

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शो में दिखाया जा रहा है कि विराट और सई के रिश्ते में लगातार मुश्किलें आ रही है. तो वही पाखी इस मौके का फायदा उठाना चाहती है. वह चाहती है कि सई विराट के साथ न रहे. तो दूसरी तरफ श्रुति विराट से मिलकर उसके गुस्से को शांत करने की कोशिश करती है.

 

शो में ये भी दिखाया जाएगा कि ओमकार और सोनाली पाखी के कान भरेंगे. पाखी सम्राट के सामने सई की बुराई करेगी और यह कहेगी कि विराट की इस हालत के पीछे सई का हाथ है. इसके बाद सम्राट भी पाखी की बातों में आ जाएगा.

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शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि होली सेलिब्रेशन के दौरान सई विराट को अकेले में कहीं ले जाएगी. वह विराट से अकेले में अपने प्यार का इजहार करेगी और उसे बताएगी कि वह उससे बेइंतहा मोहब्बत करती है. वह उसके साथ रहना चाहती है. सई विराट से अपनी गलती की माफी भी मांगेगी. अब ये देखना होगा कि क्या विराट सई को माफ करेगा?

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चाहत: भाग 2

Writer- रमणी मोटाना

अभी उस ने पहला पैग खत्म भी नहीं किया था कि मेनका आ गई. रंजीत को अंधेरे में बैठा देख कर बोली, ‘‘भलेमानस, कम से कम बत्ती तो जला ली होती. ओह, जनाब शराब पी रहे हैं. रंजीत, मैं ने तुम से कितनी बार कहा है कि शराब पीना अच्छा नहीं.’’

‘‘अच्छा, अब भाषण मत दो, आते ही शुरू हो गईं.’’

‘‘जानते हो, मैं कहां गई थी?’’

‘‘नहीं, और मैं जानना भी नहीं चाहता.’’

‘‘लगता है, श्रीमानजी नाराज हैं,’’ मेनका बोली, ‘‘सुनो, पापा ने मु?ो जन्मदिन पर एक कार दिलाई है. चलो, अपनी नई गाड़ी में कहीं घूमने चलें.’’

‘‘नहीं, मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’

‘‘खाली पेट शराब पियोगे तो यही होगा. मैं तुम्हारे लिए कुछ खाने को लाती हूं.’’

मेनका किचन में गई तो रंजीत ने फूलों का गुलदस्ता मेज के नीचे सरका दिया, लेकिन मेनका की नजर उस पर पड़ गई.

वह किचन के दरवाजे से पलटी और बोली, ‘‘क्या मेरे लिए तुम यह फूलों का गुलदस्ता लाए थे?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो यह मेज के नीचे क्यों सरका दिया. सम?ा, मेरे ऊपर का गुस्सा इन फूलों पर उतारा गया है. फूल लाए थे तो मु?ो दिए क्यों नहीं?’’

‘‘तुम्हारे पापा ने तुम्हें लाखों की कार दी है, मैं तुम्हें 100 रुपए के फूलों का एक छोटा सा गुलदस्ता किस मुंह

से देता?’’

‘‘पागल कहीं के,’’ मेनका उस की गोद में बैठ गई, ‘‘देने वाले का दिल देखा जाता है, तोहफे की कीमत नहीं आंकी जाती. तुम ने मु?ो प्यार के साथसाथ निखिल जैसा बेटा दिया है.’’

‘‘अरे हां, निखिल को तो मैं भूल ही गया था, वह है कहां?’’

‘‘मम्मीपापा ने उसे रोक लिया है. वह आज रात उन के साथ जुहू वाले बंगले में रहेगा.’’

‘‘इस का मतलब है कि घर में हम दोनों अकेले हैं?’’

मेनका ने हां में सिर हिलाया.

‘‘तब तो आज जन्मदिन ढंग से मनाया जाएगा,’’ रंजीत मेनका को बांहों में ले कर बोला, ‘‘मैं तुम्हारे लिए एक ओर भेंट लाया हूं, यह मोतियों का हार.’’

हार देख कर मेनका खुशी से

खिल उठी.

मेनका ने दरवाजा खोला तो देखा कि उस की मम्मी निखिल को गोद में उठाए खड़ी थीं.

‘‘मेनका, तुम्हारे बेटे ने तो नाक में दम कर दिया. बस, एक ही रट लगाए था, ‘मम्मीपापा के पास जाना है.’ हार कर मैं इसे ले आई. लो, संभालो अपने लाड़ले को.’’

‘‘मम्मी, देखिए तो, रंजीत ने मु?ो यह मोतियों का हार भेंट दिया है,’’ मेनका बोली.

मेनका की मम्मी ने उचटती हुई नजर हार पर डाली और बोली, ‘‘यदि रंजीत तुम्हें सचमुच चाहता होता तो कभी का हमारी बात मान कर पुणे आ जाता. यह भी कोई जिंदगी है? मुरगी के दड़बे जैसा घर, 5वीं मंजिल का फ्लैट. न निखिल के लिए खेलनेकूदने की जगह, न कोई और सुखसाधन,’’ और बड़बड़ाती हुई वह घर से बाहर निकल गई.

कुछ देर बाद रंजीत ने पूछा, ‘‘मेनका, क्या निखिल सो गया?’’

‘‘हां,’’ और अगले ही पल मेनका उस की बांहों में ?ाल गई. रंजीत ने उस के मुखमंडल पर चुंबनों की बौछार कर दी.

‘‘ओह, मेनका, मु?ा से वादा करो कि जब भी मैं घर आऊं, तुम्हें पाऊं. तुम जानतीं नहीं कि अकेला घर पा कर मेरी क्या हालत होती है. कलेजा मुंह को आता है. मेनका, मेरी जान, तुम मेरी जरूरत बन गई हो,’’ भावुक हो कर रंजीत बोला.

‘‘रंजीत,’’ मेनका अपना सिर उस की छाती पर टिकाते हुए बोली, ‘‘मेरा भी तुम्हारे बिना कोई वजूद नहीं है. मैं तुम्हारी हूं और सदा तुम्हारी रहूंगी, दुनिया की कोई ताकत हमें अलग नहीं कर सकती. रही घर में होने की बात तो अपने हृदय में ?ांक लिया करो न, उस में तो मैं ही विराजमान हूं.’’

समय बीतता रहा. धीरेधीरे दोनों के बीच हालात कुछ ऐसे बने कि मेनका और रंजीत के संबंध दिनबदिन बिगड़ते चले गए. छोटीछोटी घटनाएं, जिन्हें पहले दोनों हंस कर नजरअंदाज कर देते थे, अब तूल पकड़ने लगीं. महीनों दोनों में मनमुटाव रहता तथा अलगअलग अपनी आग में वे सुलगते रहते.

जब भी मेनका रंजीत से नाराज हो कर अपने मायके आती तो उस के मांबाप कहते, ‘हम ने पहले ही कहा था कि वह लड़का तुम्हारे लायक नहीं है पर तुम ने हमारी एक न सुनी. अरे, शादी हमेशा बराबर वालों में होनी चाहिए.’

इधर रंजीत को लगता था कि उस के व मेनका के बीच जो चांदी की दीवार है उसे वह कभी तोड़ नहीं पाएगा. उसे पगपग पर यह एहसास होता था कि अमरचंद उसे नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं. उसे लगता कि मेनका में भी पैसे का ठसका बहुत है और वह चिढ़ कर मेनका पर अपना गुस्सा उतारता. दोनों में आएदिन ठन जाती थी.

एक दिन रंजीत घर लौटा तो देखा, घर में ताला लगा है. दरवाजा खोला और गुस्से में शराब की बोतल ले कर बैठ गया.

काफी देर बाद मेनका अपनी मम्मी अमिता के साथ आई. अमिता निखिल को लिए मेनका के कमरे में चली गई और मेनका रंजीत के पास जा कर बोली, ‘‘सौरी, मु?ो जरा देर हो गई. मैं किट्टी पार्टी में गई हुई थी. वहां से पापा को देखने चली गई और तुम तो जानते ही हो कि जुहू से कोलाबा तक के ट्रैफिक में भीड़ कितनी होती है.’’

रंजीत गुमसुम बैठा रहा.

‘‘अरे, तुम फिर पीने बैठ गए. छोड़ो इसे, खाली पेट शराब पीने से कलेजा फुंकता है. मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूं.’’

मेनका चाय ले कर आई. रंजीत ने एक घूंट भरा और गुस्से में तमतमा कर बोला, ‘‘इसे तुम चाय कहती हो, नाली का पानी है यह, बेस्वाद, ठंडा.’’ और उस ने चाय का प्याला जमीन पर दे मारा.

मेनका सहम गई.

तभी मेनका की मम्मी अमिता ने कमरे में प्रवेश किया. उन्होंने रंजीत की बातें सुन ली थीं.

‘‘रंजीत, यह तुम बातबात में मेनका को बड़े बाप की बेटी होने का ताना क्यों देते हो? अपने पिता के यहां इस ने कभी तिनका तक नहीं तोड़ा. यहां यह तुम्हारी गुलामी कर रही है. इस पर भी तुम्हारे तेवर कभी सीधे नहीं होते. बस, बहुत हो चुका, मेनका बेटी, अभी चल तू मेरे साथ. अपना सामान पैक कर.’’

भूख के चलते खुदकुशी

दिल्ली व एनसीआर आने पर नौकरी और सिर पर छत मिल ही जाएगी, इस की अब कोई गारंटी नहीं है. यहां फरवरी के दूसरे सप्ताह में एक महिला ने आर्थिक तंगी के कारण अपने 3 बच्चों की हत्या कर खुदकुशी कर ली. उस महिला ने पहले बच्चों को जहर दिया, फिर खुद खा लिया. उस का पति छोटामोटा मोबाइल रिपेयरिंग का काम करता था. वह 2 माह से बीमारी की वजह से काम पर नहीं जा पा रहा था.

इस तरह के मामले देशभर में होते रहते हैं. और एक खास साजिश के तौर पर इन्हें प्राकृतिक मृत्यु या जहरीला हो चुका खाना खाने के कारण हुई मौत बता कर रफादफा कर दिया जाता है ताकि पुलिस का आंकड़ा न बढ़े.

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कोई भी समाज अपने हर जने के खानेपीने की गारंटी नहीं दे सकता. पर एक समाज, जहां लाखों टन अनाज सरकारी गोदामों में भरा हो, जहां आलीशान संसद भवन बन रहा हो, जहां राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री 8,000-8,000 करोड़ कीमत वाले विमानों में घूमते हों, जहां योगी कहलाए जाने वाले मुख्यमंत्री 40-50 गाडिय़ों का काफिला ले कर एक जगह से दूसरी जगह जाते हों, जहां गृहमंत्री खुलेआम 50 दौनों में रखा खाना खाते हों और तसवीरें छपवाते हो, वहां जनता की चुनी सरकार जनता की भूख को न समझ सके, यह बहुत दर्दनाक है.

इस का एक बड़ा कारण यह है कि हमारे यहां का हर समर्थ यह सोच कर चलता है कि उसे जो मिल रहा है, वह उस के पूर्वजन्म के सदकर्मों का फल है और जिसे भूख के कारण आत्महत्या करनी पड़ रही हो वह उस के पूर्वजन्म के पापों का नतीजा है. जब हर आफत की जिम्मेदारी पिछले जन्म पर डाल दी जाती हो तो इस जन्म का हर शासक अपनी जिम्मेदारी निभाएगा ही नहीं.

गाजियाबाद, जहां महिला और 3 बच्चों की मौत हुई, वह इलाका है जहां चुनाव चल रहे थे और सरकार लगातार ढोल पीट रही थी कि पिछले 5 सालों में योगी की और 7 सालों की मोदी की डबल इंजन सरकार ने देश में क्रांति ला दी है. घरघर सुख बिखेर दिया है.

अपने बच्चों को जहर देना किसी मां के लिए आसान नहीं है. जानवर तक यह नहीं कर सकते. यह बेहद हताशा के दौरान ही होता है. जिस घर में यह औरत रह रही थी उस में कितनों की ही टीबी से मौतें हो चुकी हैं जबकि टीबी अब लाइलाज बीमारी नहीं है. यह सिर्फ लापरवाही का नतीजा है जिस के चलते जो मरें वे भी जिम्मेदार हैं कि वे भाग्य, पूजापाठ में भरोसा करते हैं और जो राज करते हैं, जो मानते हैं कि जीनामरना तो कर्मों, नक्षत्रों, भगवान के हाथों में है.

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Holi Special: होली में रंग खेलने के लिए क्या पहनें

होली के त्योहार में हम रंग तो खेलते हैं पर रंगों से न सिर्फ बालों और स्किन को बचाने की जरूरत होती है बल्कि कपड़ों को भी खराब होने से बचाना पड़ता है. कपड़ों से रंग को हटाना मुश्किल तो होता ही है साथ ही रंग में मौजूद केमिकल कपड़ों को खराब कर उन्हें बदनुमा बना देते हैं. ऐसे में जरूरी है होली खेलने के लिए सही कपड़ों का चुनाव किया जाए. ज्यादातर लोग होली आते ही पुराने कपड़ों की तलाश में लग जाते हैं ताकि उनके नए कपड़े खराब न हों. यह एक अच्छा तरीका है कपड़ों को रंगों से बचाने का, लेकिन आजकल होली पर भी फैशनेबल और स्टाइलिश दिखने का ट्रेंड है. तो आइए जाने होली के दिन क्या पहने क्या न पहने…

क्या पहनें

लोग होली के लिए खासतौर पर सफेद रंग के कपड़े पहनते हैं क्योंकि वाइट कलर में अन्य रंग खिलकर आते हैं. लेकिन अगर आप सफेद रंग के कपड़े नही पहन रहे हैं तो होली के रंगों से बचने के लिए पुराने कपड़े पहनें ताकि उनके खराब होने का दुख न हो. कोई भी त्यौहार ट्रैडिशनल या एथनिक लुक में ही अच्छा लगता है. इसलिए इस बार होली पर आप एथनिक थीम रख सकती हैं.

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2- आप चाहे तो कुछ वैसा गेटअप ले सकती हैं, जैसा ऐक्ट्रेस रेखा ने ‘रंग बरसे’ गाने में लिया था. चिकनकारी कुर्ते और लैगिंग्स के साथ रंग खेलने का मजा दोगुना हो जाएगा. कुर्ते के साथ स्कार्फ या दुपट्टा भी आप कैरी कर सकती हैं.

3- होली रंगों का त्यौहार तो फिर क्यों न इस मौके पर कपड़ों के साथ भी एक्सपेरिमेंट किया जाए ? होली पर आप चटख रंगों के कपड़े, जैसे सलवार-कुर्ता या फिर वेस्टर्न आउटफिट्स कैरी कर सकती हैं.

4- होली पर कपड़ों के चुनाव के साथ यह जानना भी जरूरी है कि इस त्यौहार के लिए कौन-सा फैब्रिक सही है. कौटन फैब्रिक को होली खेलने के लिए सबसे सही मटीरियल माना जाता है. चाहे कितनी भी तेज धूप या गर्मी हो, कौटन ठंडक का एहसास कराता है. खास बात यह है कि यह फैब्रिक शरीर में चुभता भी नहीं है.

5- स्टाइलिश दिखना चाहती हैं तो फिर आप टौप या कुर्ते को प्लाजो या शार्ट्स के साथ पहन सकती हैं. आजकल कुर्ते के साथ धोती पैंट पहनने का भी खूब चलन है.

6- साड़ी होली पर पहनने वाला सबसे बेहतरीन परिधान है. साड़ी में आप ऐसा महसूस कर सकती हैं, जैसे रंगों से सराबोर कोई फिल्मी नायिका. लेकिन ध्यान रहे कि आपको साड़ी ठीक से और आत्मविश्वास से कैरी करनी होगी क्योंकि एक बार भींगने के बाद यह शरीर से चिपकने लगती है.

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क्या न पहनें

होली खेलने के लिए जो कपड़े पहनें ध्यान रहे कि वे ज्यादा टाइट या शरीर से चिपकने वाले न हों. ऐसे में ये आपको भद्दा लुक तो देंगे ही साथ ही इरिटेशन भी पैदा कर देंगे. डीप नेकलाइन पहनने से बचें. हाफ स्लीव्स का कोई भी आउटफिट न पहनें. स्कर्ट पहनने से बचें, नहीं तो परेशानी में फंस सकती हैं.

लता मंगेशकर: गूंजती रहेगी स्वर कोकिला की आवाज

जीवन के हर रंग की आवाज बनीं लता मंगेशकर भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, पर उन की सुमधुरता सदियों तक गूंजती रहेगी. रविवार के दिन की तारीख 6 फरवरी, 2022 देशदुनिया के इतिहास के पन्ने में जुड़ गई. इसी के साथ इतिहास के पन्ने में वह नाम भी दर्ज हो गया, जिस की आवाज आने वाली पीढि़यों तक सुनी जाती रहेगी. सर्द सुबह में चाय का प्याला थामे, मार्निंग वाक करते, छुट्टी के दिन प्लान बनाते, या रोजमर्रा के कामकाज से कुछ पल आराम करते हुए अनगिनत लोग हों, या फिर हाटबाजार में अपनी दिनचर्या पर निकल पड़े मेहनतकश. जिन्होंने भी लता मंगेशकर के निधन की खबर सुनी स्तब्ध रह गए.

पलभर के लिए लगा, जैसे कुछ पल थम गया. एक शून्य आ गया. एफएम रेडियो पर आ रही मधुर आवाज थरथरा उठी. उस संगीत से साजों के म्यूजिक से महीन आवाज अलग होने की कोशिश करने लगी.

लता मंगेशकर की वह भारतीय संस्कृति में रचीबसी विशुद्ध आवाज थी, जिस बारे में शायर गुलजार की लिखी चंद पंक्तियां हैं— मेरी आवाज ही पहचान है, गर याद रहे…

विश्व के उपमहाद्वीप में 8 दशक की पीढि़यों को संगीत की सुमधुरता की अनुभूति करवाने वाली लता मंगेशकर अपने 30 हजार फिल्मी, गैरफिल्मी गीतों के माध्यम से हर स्त्री की न सिर्फ एक अनूठी आवाज बन गईं, बल्कि उन्होंने उन्हें संपूर्णता के प्रति प्रेरित भी किया. शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो, जिस ने लता मंगेशकर के गानों को गुनगुनाया या गाया न हो.

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लताजी को यह मुकाम यूं ही नहीं मिल गया. यहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने न सिर्फ कड़ी मेहनत की, बल्कि कई समस्याओं का भी सामना किया.

लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर,1929 को पंडित दीनानाथ मंगेशकर के घर हुआ था. वह उन की दूसरी पत्नी शेवंती की  संतान थीं. उन्होंने पहली पत्नी नर्मदा के निधन के बाद उन की छोटी बहन शेवंती से शादी की थी. लता उन की सब से बड़ी संतान थीं. लता मंगेशकर का नाम पहले हेमा था. बाद में उन्होंने अपने नाटक भावबंधन के लोकप्रिय किरदार लतिका के नाम पर लता रख दिया था.

कोई उन्हें स्वर कोकिला कहता है, तो किसी ने सुर साम्राज्ञी की उपाधि दी थी. वैसे उन्हें ज्यादातर लोग प्यार से ‘लता दीदी’ ही बुलाते थे. उन की मां येसुबाई देवदासी समुदाय की एक कुशल गायिका थीं.

पुर्तगाल भारत (अब गोवा) की सब से प्रसिद्ध मंदिर गायिका और नर्तकियों में से एक थीं. परिवार में लता से छोटी बहनें मीना, आशा (भोसले), ऊषा और भाई हृदयनाथ हैं.

यही नहीं उन के परिवार का उपनाम भी हर्दिकर से बदल कर मंगेशकर हो गया. ऐसा उन्होंने अपने पैतृक गांव मंगेशी से जुड़ाव बनाए रखने के कारण किया. इलाके में दीनानाथ मंगेशकर की एक खास पहचान थी. वह मराठी के जानेमाने शास्त्रीय गायक थे. लोग उन से शास्त्रीय संगीत सीखने आते थे.

वह जब शिष्याओं को संगीत के रागों को सिखाते तो 4-5 साल की उम्र में लता अपने पिता को टकटकी लगाए देखा करती थीं. जब पिता नहीं होते तब उन की तरह ही गुनगुनाया करती थीं.

लता की प्रतिभा को पहचान कर पिता ने उन्हें संगीत नाटक में अभिनय और गायन करने के लिए मंच पर उतार दिया था. तब उन की उम्र महज 5 साल थी. बाद में उन्होंने अमान अली खां साहब और अमानत खां से संगीत की विधिवत तालीम ली थी.

लता मंगेशकर जब 9 साल की थीं, तब पहली बार अपने पिता के साथ स्टेज पर गाने का मौका मिला था. उन्होंने राग खंबामती गाया था. फिल्मों में गाने के बारे में लता का कहना था कि उन के पिता फिल्मों में गाना गाने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन 1942 में अपने एक दोस्त की गुजारिश पर वे तैयार हो गए थे.

इस तरह से लता ने पहली बार मार्च 1942 में एक मराठी फिल्म में गाना गाया था. उन के करियर का पहला गाना ‘नाचु या गाड़े, खेलो सारी मणि हौस भारी’ रिकौर्ड किया गया था. हालांकि गाना रिकौर्ड होने के बावजूद फिल्म नहीं बन पाई और उस के एक महीने बाद ही दीनानाथ मंगेशकर का निधन हो गया था.

उस समय परिवार चलाने की जिम्मेदारी किशोरी लता मंगेशकर पर आ गई. ऐसे वक्त पर उन्हें फिल्म निर्देशक मास्टर विनायक का सहारा मिला. वह अभिनेत्री नंदा के पिता थे. उन की बदौलत ही लता की आगे की राहें बनती चली गईं.

लता ने भले ही 1942 में 13 साल की उम्र में फिल्मों में गाना शुरू कर दिया था, लेकिन वह 1948 में ‘मजबूर’ फिल्म के सफल प्रदर्शन से हिंदी फिल्मों की मुख्यधारा में शामिल कर ली गईं. फिर भी वह नकारी जाने लगीं. उन के गुरु संगीत निर्देशक गुलाम हैदर तब फिल्म के निर्माता शशिधर मुखर्जी की टिप्पणी पर नाराज हुए थे.

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मुखर्जी ने लता की आवाज को ‘बहुत पतला’ कह कर खारिज कर दिया था. तब गुलाम हैदर ने गुस्से में यहां तक कह दिया था कि एक दिन आएगा, जब वह लता के चरणों में गिरेंगे और उन से अपनी फिल्मों में गाने के लिए विनती करेंगे.

दरअसल, हैदर साहब ने मुखर्जी को दिलीप कुमार और कामिनी कौशल की फिल्म ‘शहीद’ के लिए लता की आवाज सुनाई थी. तब उन्होंने कहा था कि वह अपनी फिल्म में लता को काम नहीं दे सकते हैं.

उन्हीं दिनों हैदर साहब ने मुंबई की लोकल ट्रेन में सफर के दौरान दिलीप कुमार से लता की आवाज सुनने के लिए अनुरोध किया तब उन्होंने उन के उच्चारण पर सवाल उठाते हुए हिंदी और उर्दू सीखने की सलाह दी.

ऐसी ही नसीहतें नूरजहां से मिली थीं. उन्होंने लता से कहा था कि अभ्यास करो, एक दिन संगीत जगत पर छा जाओगी. उस के बाद से लता मंगेशकर ने किसी और की नकल उतार कर गाना छोड़ दिया और वह अपनी आवाज में गाने के अभ्यास में जुट गईं. इस में हैदर साहब का पूरा साथ मिला, जिन्हें लता ने अपने गुरु के रूप में श्रेय दिया.

इधर लता मंगेशकर को 1948 में सफलता का स्वाद मिला, उधर हिंदी सिनेमा जगत को एक नई आवाज मिल गई. वैसे तब तक उन में स्थापित गायिका का ही असर था, फिर भी उस के अगले साल ही आई एक सस्पेंस से भरी भूतिया फिल्म ‘महल’ के गाने ‘आएगा आने वाला’ ने लोगों को रोमांच से भर दिया.

यह गाना फिल्म में एक बार नहीं, कई बार टुकड़ेटुकड़े में सुनाई देता था, जिसे संगीतकार खेमचंद प्रकाश ने संगीतबद्ध किया था.

फिल्म देखने वालों पर लता की आवाज का असर इस कदर हुआ था कि लोग फिल्म खत्म होने के बाद गुनगुनाते हुए थिएटर से निकलते थे. इस गाने को परदे पर बेहद खूबसूरत अभिनेत्री मधुबाला पर फिल्माया गया था.

फिल्म की कहानी कमाल अमरोही ने लिखी थी और डिटेक्टर की भूमिका में हीरो थे अशोक कुमार. पूरी फिल्म का तानाबाना लता की आवाज के साथ बुना गया था, जिस से गजब का थ्रिल पैदा हुआ था.

उस गाने के बाद सिनेमाप्रेमियों ने लता मंगेशकर को नूरजहां की छाया से बाहर निकलते हुए महसूस किया था. सिनेमा संगीत के विश्लेषक पत्रकारों और टिप्पणीकारों ने भी लता की आवाज बेहद पसंद आने वाली और अनोखी बताई. इस के बाद उन के संगीत के प्रति जुनून और अनुशासन की खूब प्रशंसा होने लगी थी. उन की मधुरता से भरी आवाज के बारे में तारीफों के पुल बांधे जाने लगे थे. जो न केवल अपने आप में बहुत अच्छी लगने वाली थी, बल्कि उन नायिकाओं के अनुकूल भी थी, जिन के लिए वह गाती थीं.

आवाज को ढालने में थीं माहिर

कारण, वह अपनी आवाज को नायिका के स्वरूप, व्यक्तित्व, हावभाव और किरदार के मुताबिक चालढाल व बोलचाल को देखते हुए इस कदर मोड़ देती थीं कि जैसे लगता था कि नायिका फिल्म में खुद गा रही हो.

अधिकतर नायिकाओं पर उन की आवाज एकदम से फिट बैठती थी. यहां तक की बच्चों पर फिल्माए गए गाने भी लता की आवाज में गवाए जाते थे.

बात उन दिनों की है, जब भारत को आजादी मिली थी. देश विभाजन के खूनखराबे से जूझा था. उन्हीं दिनों लता मंगेशकर का गाया गाना काफी चर्चित हुआ था, ‘यूं ही मुसकराए जा, आंसू पिए जा… उठाए जा उन के सितम…’

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यह गीत नरगिस दत्त, राजकपूर और दिलीप कुमार स्टारर फिल्म ‘अंदाज’ (1949) में फिल्माया गया था. नौशाद के संगीत निर्देशन में इस गीत को टूटे हुए दिलों के लिए एक मरहम के तौर पर महसूस किया.

यही गीत जब सरहद के दूसरी तरफ पहुंचा, तब वहां भी इस का वही असर हुआ, जो आखिर के दिनों में किसी तरह की जुदाई के दर्द जैसा था. उन दिनों लता मंगेशकर मात्र 20 साल की थीं. कोल्हापुर से आई थीं. उन का यही गाना प्रतिभा को दर्शाने वाले मानक में बदल गया.

लता मंगेशकर नूरजहां को जहां बचपन से सुनती आई थीं, वही नूरजहां ने भी उन के कुछ गाने सुने थे. इस बारे में उन से कहा था कि अभ्यास करो, एक दिन संगीत जगत पर तुम राज करोगी.

शुरुआती दिनों में लता मंगेशकर को ले कर जिस ने जो भी कहा था, वह सब दिनप्रतिदिन सच होता चला गया. आज उन के जीवन के हर भाव के गाए गीत हैं.

किसी भी आयोजन पर नजर डालिए, जीवन के कैसे भी उत्सव की कल्पना कीजिए, प्रेम से ले कर विरह तक, शोखियों से ले कर शरारतों तक, वैराग्य से ले कर भजन तक सब कुछ उन के गानों में शामिल हैं.

आज उन की आवाज से जुड़ कर संपूर्ण भारतीय संस्कृति के साथसाथ एक स्त्री की भावना का अनुभव कोई भी आसानी से कर लेता है. उन्होंने अपने करियर में जितने भी गाने गए हैं, उन में संगीतकारों से ले कर गीतकारों तक की भूमिका भी रही है.

सिनेमा के परदे पर गाने वाले अदाकारों की कई पीढि़यां गुजर गईं, किंतु सभी के साथ लता मंगेशकर की ही आवाज चिपकी रही. जिन्हें उन की आवाज नहीं मिली, उन्हें इस का मलाल भी हुआ. इस तरह से लता मंगेशकर ने न केवल हिंदी सिनेमा जगत, बल्कि असमिया, बंगला, गुजराती, तमिल, कन्नड़, मैथिली, कोंकणी, तेलुगु और भोजपुरी सहित 30 से अधिक भाषाओं में गाने गाए.

उन का करियर 1940 के दशक के अंत में मधुबाला की आवाज बनने की शुरुआत से ले कर ‘जेल’ (2009) फिल्म का भक्ति गीत गाया. इस फिल्म में भक्ति गीत को बच्चों के बीच लता मंगेशकर पर ही फिल्माया गया था.

लता मंगेशकर ने अपना आखिरी गीत ‘सौगंध मुझे इस मिट्टी की, मैं देश नहीं मिटने दूंगा’ भारतीय जनता पार्टी के लिए 30 मार्च, 2019 को रिकौर्ड करवाया था.

दुनिया में सर्वाधिक गाने का भी विश्व रिकौर्ड लता मंगेशकर के नाम है. जबकि उन के गाए गानों की संख्या को ले कर विवाद भी है. साल 1991 में द गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड्स लता मंगेशकर के द्वारा 1948 और 1987 के बीच 20 भारतीय भाषाओं में रिकौर्ड किए गए 30,000 गीतों की संख्या दर्ज की थी, जिन में एकल, युगल और कोरस समर्थित गाने थे.

इस के साथ ही लता मंगेशकर को 1974 में लंदन के प्रतिष्ठित रायल अल्बर्ट हाल में लाइव प्रदर्शन करने वाली पहली भारतीय कलाकार होने का भी गौरव प्राप्त है. उस मौके पर उन्होंने हिंदी में अपने संक्षिप्त भाषण में कहा था, ‘यह भारत के बाहर मेरा पहला संगीत कार्यक्रम है. मैं काफी नरवस हूं, लेकिन मैं गर्मजोशी से स्वागत के लिए आभारी हूं.’

लता मंगेशकर की आवाज भले ही सिनेमाई थी, लेकिन उसे अच्छी और शुद्ध स्त्रीत्व के नजरिए से देखा गया. उन के व्यक्तिगत जीवन से जुड़े जो भी विवाद थे, उस शुद्धता के आगे काफी छोटे पड़ गए थे. वह धीरेधीरे किस तरह से ‘शुद्ध’ और ‘सम्मानजनक’ राष्ट्रीय संस्कृति की विचारधारा बनती चली गईं, किसी को एहसास ही नहीं हुआ.

लता मंगेशकर की कुछ प्रसिद्ध धुनों में 60, 70 और 80 के दशक को स्वर्णिम माना जाता है. उन्हें अकसर किशोर कुमार, मोहम्मद रफी, मुकेश के साथ सहयोग करते देखा गया. नब्बे के दशक में उन्होंने कुमार शानू, एसपी बालसुब्रमण्यम, उदित नारायण, अभिजीत भट्टाचार्य, सोनू निगम के साथ गाने गाए और उन के पसंदीदा संगीतकारों में मदनमोहन, नौशाद, खय्याम, चित्रगुप्त, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, ए.आर. रहमान, जतिन-ललित, दिलीप सेन-समीर सेन के नाम प्रमुख थे.

उन का गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगो’ भले ही गैरफिल्मी हो, लेकिन उसे गायन की दृष्टि से मुश्किल गाना माना जाता है. उस गाने को लता ने दिल्ली के रामलीला मैदान में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में गाया था. तब शहीदों को याद करने वाले उस गीत का असर इस कदर हुआ कि पूरा माहौल गमगीन हो गया और पं. नेहरू की आंखों में भी आंसू आ गए थे.

भारत रत्न, दादासाहेब फाल्के पुरस्कार, फ्रेंच लीजन औफ औनर, 5 महाराष्ट्र राज्य फिल्म पुरस्कार,  3 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और अनगिनत अन्य सम्मानों से बड़ी है उन की वह फिल्मी आवाज, जिस की बदौलत वह अब तक की सब से प्रभावशाली भारतीय फिल्म गायिका बन गईं. द्य

लता ने अदाकारी भी की थी

मंगेशकर के सुर साम्राज्ञी बनने की शुरुआत गायन के साथसाथ एक्टिंग से भी हुई थी. उन के पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर शास्त्रीय संगीत के गायक और रंगमंच के एक उम्दा कलाकार थे.

उन दिनों संगीतनाटक का काफी चलन था. गीतनृत्य और संगीत से जुड़े लोगों के लिए यही आजीविका का साधन हुआ करता था. महाराष्ट्र के कोल्हापुर में इंदौर से जा बसा दीनानाथ मंगेशर परिवार का भी गहरा संबंध थिएटर से था. उन दिनों उन्होंने मराठी भाषा में कई संगीतमय नाटकों का निर्माण किया था. उन की 5 संतानों में लता मंगेशकर सब से बड़ी थीं.

उन दिनों को याद करती हुई लता मंगेशकर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन का परिवार शास्त्रीय संगीत से जुड़ा था और फिल्मी संगीत को पसंद नहीं करता था.

यह जानकारी बहुत कम ही लोगों को है कि 5 साल की उम्र में ही लगा मंगेशकर ने मराठी भाषा में अपने पिता के संगीत नाटकों में एक अदाकारा के रूप में काम करना शुरू कर दिया था. इस का जिक्र उन पर यतींद्र मिश्र की लिखी किताब ‘लता: सुरगाथा’ में किया गया है.

किताब के अुनसार नाट्यमंच पर लता की शुरुआत अभिनय से हुई थी. तब दीनानाथ मंगेशकर की नाटक कंपनी ‘बलवंत संगीत मंडली’ ने अर्जुन और सुभद्रा की कहानी पर आधारित नाटक ‘सुभद्रा’ का मंचन किया था. पंडित दीनानाथ खुद अर्जुन की भूमिका में थे, जबकि 9 साल की लता को नारद की भूमिका दी गई थी.

उस के बाद लता ने अपने पिता की फिल्म ‘गुरुकुल’ में कृष्ण की भूमिका निभाई. साल 1942 में पंडित दीनानाथ मंगेशकर की हृदयरोग से मृत्यु हो जाने के बाद फिल्म अभिनेतानिर्देशक और मंगेशकर परिवार के करीबी दोस्त मास्टर विनायक दामोदर कर्नाटकी ने लता को एक अभिनेत्री और गायिका के रूप में अपना करियर शुरू करने में मदद की थी.

मास्टर विनायक ने लता मंगेशकर को एक मराठी फिल्म ‘पहिली मंगला गौर’ में एक छोटी सी भूमिका दी थी. उस फिल्म में लता ने ‘नताली चैत्रची नवलई’ गीत भी गाया था.

उस के कुछ समय बाद ही वह 1945 में मुंबई चली चली गई थीं. वहां जा कर उन्होंने संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी. अपनी शैक्षणिक पढ़ाई के बारे में उन्होंने बताया था कि उन्हें किसी भी तरह की कोई स्कूल की औपचारिक शिक्षा भले ही नहीं मिली हो, लेकिन उन्हें एक नौकरानी ने मराठी पढ़ाई, एक पुरोहित ने संस्कृत सिखाई और रिश्तेदारों ने अन्य विषयों को पढ़ाया. एक मौलवी से उर्दू भी सीखी.

शास्त्रीय संगीत और गायन सीखने के क्रम में ही लता मंगेशकर को 1945 में मास्टर विनायक की हिंदी भाषा की फिल्म ‘बड़ी मां’ में अपनी छोटी बहन आशा भोसले के साथ एक छोटी भूमिका निभाने का अवसर मिला. उन्होंने मराठी फिल्मों में नायिका की बहन जैसी ही छोटीछोटी भूमिकाएं ही निभाईं, लेकिन उन्हें कभी भी मेकअप करना और कैमरे के सामने काम करना पसंद नहीं था.

लता मंगेशकर का कहना था कि उन्होंने एक्टिंग भी मजबूरी में की थी. वह अपने पिता को हुए आर्थिक नुकसान और उन की मृत्यु के बाद कर्ज चुकाने की कोशिश में लगी रहती थीं. उन का घर भी बिक गया था और वह अपने छोटेछोटे भाईबहनों के साथ मुंबई आ गई थीं.

1940 में उन्हें जब गाने के मौके बहुत कम मिलते थे, तब परिवार को पालने के लिए उन्होंने अभिनय शुरू किया. उन्होंने 8 मराठी और हिंदी फिल्मों में अभिनय किया था. उन में उन्हें छोटेमोटे रोल ही मिले थे. उन्हीं दिनों जब एक निर्देशक ने उन्हें उन की भौंहें भी ट्रिम करवाने बात कही थी, तब उन्हें अच्छा नहीं लगा था. हालांकि उन्होंने निर्देशक की बात मान ली थी.

कहते हैं न कि किस की किस्मत कब करवट ले ले, कहना मुश्किल है. लता के साथ भी ऐसा ही हुआ. वर्ष 1947 में मास्टर विनायक का निधन हो जाने के बाद उन की ड्रामा कंपनी प्रफुल्ल पिक्चर्स बंद हो गई. उसी दौरान उन की जिंदगी में संगीत निर्देशक उस्ताद गुलाम हैदर आए. उन्होंने लता की आवाज सुनी तो उन्हें ले कर निर्देशकों के पास गए.

तब लता की उम्र बमुश्किल 19 साल की थी और उन की पतली आवाज नापसंद कर दी गई, लेकिन गुलाम हैदर अपनी बात पर अड़े रहे और फिल्म ‘मजबूर’ (1948) में लता से मुनव्वर सुल्ताना के लिए प्लेबैक करवाया.

लता मंगेशकर ने गीतकार नाजिम पानीपति के गीत ‘दिल मेरा तोड़ा, मुझे कहीं का ना छोड़ा’ गाना गाया. यह गाना काफी लोकप्रिय हुआ. लोगों ने नई आवाज में उस दौर की गायिकाओं की झलक देखी. लता के करियर में यह पहली बड़ी सफलता वाली फिल्म थी. उस बात को लता मंगेशकर हमेशा याद करती रहती थीं. गुलाम हैदर ने उन से कहा था कि एक दिन तुम बहुत बड़ी कलाकार बनोगी और जो लोग तुम्हें नकार रहे हैं, वही लोग तुम्हारे पीछे भागेंगे.

हुआ भी ऐसा ही. गुलाम हैदर और नूरजहां देश बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए, पर लता के लिए उन की कही बात सच हो गई. ‘मजबूर’ में लता का गाना सुनने के बाद लता को कमाल अमरोही की फिल्म ‘महल’ मिली और उन्होंने ‘आएगा आने वाला’ गाया.

इस के बाद लता को कभी फिल्मों की कमी नहीं हुई. मधुबाला पर फिल्माए गए इस गीत के बाद लता मंगेशकर को कभी पीछे पलट कर नहीं देखना पड़ा.

Holi Special: नारियल बर्फी से बढ़ाए मुंह का स्वाद

अगर आप इस होली के त्यौहार पर बर्फी बनाना चाहती हैं तो आपको सपेशल नारियल बर्फ़ी की आसान रेसिपी बताते है जिसे आप ट्राय कर सकती हैं.

सामग्री

– चीनी (1 कप)

– पानी (1 कप)

– चम्मच घी (2 बड़े)

– नारियल का चूरा (1 कप सूखा)

– 3 इलायची ( पिसी हुई)

–  1 प्याला काजू और पिस्ते के टुकड़े

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बनाने की विधि

– चीनी में पानी डालकर गाढ़ी चाशनी बना लें.

– आंच एकदम धीमी रखें.

– चाशनी में नारियल और पिसी हुई इलायची डाल कर अच्छी तरह मिला लें.

– गोला सा बन जायेगा.

– घी लगाई हुई प्लेट में जल्दी से फैलाएं.

– चाकू से बर्फ़ी काटें.

– ठंडी होने पर हवा-बंद डब्बे में रखें.

– पीले रंग की बनाने के लिये केसर चाशनी में मिलाएं.

– थोड़ा सा नारियल का चूरा और पिस्ते के टुकड़े  ऊपर से सजाएं.

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त्यौहारों के मौसम में ऐसे रखें खुद को फिट

त्यौहार ढेर सारी खुशियां और आनंद लाते हैं लेकिन कई स्वास्थ्य समस्याओं की आशंका को भी बढ़ा देते हैं. ऐसे में जरूरी है कि ‘एक दिन की लापरवाही से क्या फर्क पड़ता है’ वाला रवैया न अपनाएं और पहले से ही प्लानिंग कर लें ताकि आनंद और उल्लास का यह मौसम आप के लिए स्वास्थ्य समस्याओं का निमंत्रण न बने.

1.मीठा थोड़ा ही अच्छा

मीठा भोजन ठंडा और भारी होता है और यह कफ बढ़ाता है. ज्यादा मीठा खाने से थकान, भारीपन, भूख कम लगना, अपच जैसी समस्याएं होती हैं. शूगर हाइपरटैंशन बढ़ाती है, मस्तिष्क के संकेतों को दबाती है. मीठे भोजन से कोलैस्ट्रौल बढ़ता है. मिठाइयों को एकसाथ खाने से पेटदर्द, डायरिया, लूज मोशन जैसी समस्याएं शुरू होने की आशंका बढ़ जाती है. इसलिए, मिठाई थोड़ी मात्रा में ही खाएं. हमेशा स्वस्थ्य और पोषक खाद्य पदार्थों का विकल्प चुनें. मिठाइयों के बजाय सूखे मेवे, फल, फ्लेवर्ड दही को प्राथमिकता दें

2.तैलीय, मसालेदार भोजन से बचें

हमारे देश में मसालेदार भोजन खाने की परंपरा है और त्योहारों के समय तो यह और बढ़ जाती है. मसाले गरम होते हैं. ये शरीर का ताप बढ़ा देते हैं जिस से अनिद्रा की समस्या हो जाती है. अधिक मसालेदार और तीखा खाने से पेट की कई समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं. पेट की अंदरूनी सतह पर सूजन आ जाती है, एसिडिटी की समस्या हो जाती है. अधिक तैलीय व वसायुक्त भोजन करने से रक्तचाप और शूगर का स्तर बढ़ता है.

3.ऐक्सरसाइज न करें तो डांस करें

अगर आप के लिए ऐक्सरसाइज करना कठिन हो तो आप दिल खोल कर नाचें. इस से काफी मात्रा में कैलोरी जल जाएंगी. कई प्रकार की मिठाइयां और घी का सेवन करने के बावजूद स्वस्थ रहने के लिए यह सब से अच्छा वर्कआउट हो सकता है.

4.ओवरईटिंग न करें

इन दिनों कई लोगों का वजन 3-5 किलो तक बढ़ जाता है, इसलिए अपनी प्लेट पर नजर रखनी जरूरी है. लोग  बगैर सोचेसमझे सबकुछ खाते चले जाते हैं. हाई कैलोरी फूड अधिक मात्रा में खाने से हमारी पाचनक्रिया धीमी पड़ने लगती है और हम अधिक थकान महसूस करते हैं. त्योहारों के माहौल में ऐसे भोजन से दूर रहना तो संभव नहीं है, लेकिन इन का सेवन कम मात्रा में करें ताकि कैलोरी इनटैक को कंट्रोल में रखा जा सके.

5.मिलावटी चीजों से रहें सावधान

कई मिठाइयों में कृत्रिम रंगों का उपयोग  किया जाता है. इन से किडनी स्टोन और कैंसर हो सकता है. ऐसी मिठाई को खाने से उलटी, डायरिया की समस्या हो जाती है. कई दुकानदार लड्डू, पनीर, बर्फी और गुलाबजामुन बनाने में मेटानिल यलो, लेड नाइट्रेट और म्युरिएटिक एसिड का इस्तेमाल करते हैं. इन के सेवन से शारीरिक ही नहीं, मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है. मिलावट से बचने के लिए मिठाइयों को घर पर ही बनाएं या किसी अच्छी दुकान से खरीदें.

डाइट प्लान का पालन करें

हैवी ब्रेकफास्ट करें, इस से आप का पेट अधिक समय तक भरा हुआ रहेगा. जो भी खाएं, फाइबर और पोषक तत्त्वों से भरपूर हो. दोपहर के खाने में प्रोटीन की मात्रा अधिक रखें. यह पेट को लंबे समय तक भरा हुआ रखेगा और आप भोजन कम मात्रा में खाएंगे. अपने फ्रिज और किचन में हैल्दी स्नैक्स, हरी पत्तेदार सब्जियां और फलों के विकल्प अधिक मात्रा में रखें. सफेद चीनी या कृत्रिम स्वीटनर के बजाय प्राकृतिक स्वीटनर जैसे खजूर, शहद या अंजीर का उपयोग  करें. आप गुड़ का इस्तेमाल भी कर सकती हैं.

6.भरपूर मात्रा में पानी पिएं

हर रोज भरपूर मात्रा में पानी पिएं. अपने दिन की शुरुआत पानी से करें. सुबह खाली पेट 1 लिटर पानी पिएं, इस से आप का पाचनतंत्र साफ रहेगा और आप के शरीर में जल का स्तर भी बना रहेगा. यह रक्त से विषैले पदार्थों को भी साफ कर देगा. एक दिन में कम से कम 3 लिटर पानी पिएं. जो लोग पार्टियों में जम कर ड्रिंक करते हैं, ध्यान रखें कि अल्कोहल के कारण डिहाइड्रैशन होता है. नियमित रूप से अधिक मात्रा में पानी का सेवन कर के शरीर से टौक्सिन को निकालने में सहायता करें. पानी शरीर में अल्कोहल के प्रभाव को भी कम करता है.

7.खरीदारी के लिए जाएं

खरीदारी करना आप के लिए उपयोगी हो सकता है. अपनी शौपिंग की योजना ऐसे बनाएं कि आप को अधिक से अधिक पैदल चलना पड़े. कोशिश करें कि अपनी कार का इस्तेमाल न करें. औनलाइन शौपिंग  करने के बजाय अगर आप मौल या लोकल मार्केट में घूमघूम कर शौपिंग  करेंगे तो आप अधिक मात्रा में कैलोरी खर्च करेंगे. यह आप के लिए फायदेमंद होगा.

8.डिटौक्सिफिकेशन तकनीक

मानव शरीर की रचना ऐसी होती है कि वह अपनेआप ही शरीर से हानिकारक रसायनों को निकाल देता है. लेकिन त्योहारों के मौसम में शरीर में टौक्सिंस की मात्रा ज्यादा बढ़ जाती है. अपने शरीर से टौक्सिंस को निकालने का प्रयास करें. चाय और कौफी के बजाय ग्रीन टी का सेवन करें. अपने दिन की शुरुआत एक गिलास गुनगुने पानी से करें जिस में नीबू का रस भी हो, ताकि शरीर से टौक्सिंस निकल जाएं.

9.हाइपरटैंशन

त्योहारों के मौसम आते ही अधिक कैलोरीयुक्त भोजन का सेवन बढ़ जाता है, जिस से पूरा डाइट प्लान गड़बड़ा जाता है. मिठाइयां घी और चीनी से भरपूर होती हैं जिस से उन में कैलोरी की मात्रा काफी अधिक बढ़ जाती है. त्योहार के दिनों  में खानपान में कंट्रोल नहीं होता और यह पाचनतंत्र पर भारी पड़ता है. इसलिए इन दिनों आप को ज्यादा एहतियात रखने की जरूरत है.

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