Download App

GHKKPM: पाखी का लुक देख भड़के फैंस, कही ये बात

‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) सीरियल की पाखी (Pakhi) यानी ऐश्वर्या शर्मा अक्सर सुर्खियों में छायी रहती है. अब यूजर्स एक्ट्रेस का ड्रेसिंग सेंस देखकर भड़क गए हैं और उन्हें खरी-खोटी सुना रहे हैं. आइए बताते हैं क्या है पूरा मामला.

हाल ही में ऐश्वर्या शर्मा ने सोशल मीडिया पर कुछ फोटोजे शेयर की है. जिसमें वह पीले रंग की शॉर्ट ड्रेस पहनी हुई है. एक्ट्रेस की ये ड्रेस लूज है साथ ही इसका स्टाइल भी अलग है. पीले रंग की इस ड्रेस के साथ  एक्ट्रेस ने हाई हील्स के साथ लॉग बूट्स पहने हुए हैं. इसके साथ ही कंधे पर गोल्डन कलर का बैग टांगा हुआ है और साथ ही चोटी की हुई है.

ये भी पढ़ें- वनराज को कंपनी से निकालेगी मालविका, तोषु को पड़ेगा थप्पड़!

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Aishwarya Sharma Bhatt (@aisharma812)

 

फैंस को पाखी का ये लुक पसंद नहीं आ रहा है. यूजर्स लगातार ऐश्वर्या शर्मा की इन फोटोज पर कमेंट कर रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, आप इतनी प्यारी हो लेकिन हेयर स्टाइल अच्छा नहीं है तो वहीं दूसरे यूजर ने लिखा, हेयर स्टाइल कभी अच्छा बना लिया करो पाखी दीदी.

ये भी पढ़ें- Anupamaa: अनुपमा ने की अनुज की नकल, Video हुआ वायरल

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Aishwarya Sharma Bhatt (@aisharma812)

 

किसी को एक्ट्रेस का हेयर स्टाइल पसंद नहीं आया तो किसी को एक्ट्रेस का लुक. आपको बता दें कि पाखी-विराट रियलिटी शो ‘स्मार्ट जोड़ी’ में भी नजर आ रहे हैं. शो में कपल ने खुलासा किया था कि जब वो दोनों शादी करने जा रहे थे तो कई लोग खुश हुए तो कई लोगों ने उन्हें ट्रोल किया. पाखी को लेकर कई लोगों ने कहा कि ये कौन है, इससे शादी क्यों कर रहे हो? बहुत गंदी लड़की है, बहुत गंदी औरत है.

ये भी पढ़ें- Aditya Narayan ने शेयर की अपनी बेटी की पहली फोटो

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Aishwarya Sharma Bhatt (@aisharma812)

 

वनराज को कंपनी से निकालेगी मालविका, तोषु को पड़ेगा थप्पड़!

‘अनुपमा’ सीरियल में लगातार महाट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि अनुज और वनराज बिजनेस कॉनट्रैक्ट को लेकर आपस में लड़ते हुए नजर आये. अनुपमा और बापूजी ने दोनों को शांत करवाने की कोशिश की. तो दूसरी तरफ बा हर बार की तरह अनुपमा को वनराज का दुश्मन कहा. शो के आने वाले एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में आप देखेंगे कि वनराज अनुज को हर तरह से निचा दिखाने की कोशिश करेगा.  तो दूसरी तरफ अनुपमा घर से जाने की धमकी देगी. वनराज कहेगा कि उसने अनुपमा को घर में रोक लिया और उसी का बदला दोनों ले रहे हैं. वनराज ये भी कहेगा कि अनुपमा जानती थी कि शिवरात्रि की पूजा उसके लिए काफी खास है लेकिन उसने जानबुझकर अनुज को साथ मिलकर उसका दिन खराब करना चाहती है. रिपोर्ट के अनुसार मालविका अपनी कंपनी से निकाल देगी.

ये भी पढ़ें- तेजस्वी प्रकाश और Karan Kundrra जल्द करेंगे शादी? खुद किया कुबूल

 

View this post on Instagram

 

A post shared by STAR_PLUS (@starplusserial_1)

 

शो में आप देखेंगे कि अनुपमा वनराज को खूब सुनाएगी, कहेगी कि वनराज की उड़ान अब लंबी नहीं है क्योंकि अनुज ने टेकऑफ कर लिया है. तो दूसरी तरफ बा कहेगी अनुपमा वनराज का मूड ना खराब करे. इस पर अनुपमा कहेगी कि वनराज ने उसकी जिंदगी खराब कर दी. तो बा कहेगी कि अनुपमा तो हंस-खेल रही है, वनराज ने उसकी जिंदगी नहीं बर्बाद की है.

ये भी पढ़ें- Anupamaa: अनुपमा ने की अनुज की नकल, Video हुआ वायरल

 

शो में आप ये भी देखेंगे कि तोषू अनुपमा पर भड़केगा. वह कहेगा कि उसने मां होते हुए भी उनके बेटे के बारे में नहीं सोचा, उसके करियर के बारे में नहीं सोचा. अनुपमा ने सिर्फ अपने अनुज के बारे में सोचा. तोषू अपने आने वाले बच्चे को लेकर कहेगा कि उसका बच्चा पैदा होने से पहले ही अपने बाप की बर्बादी लेकर आया है. तोषू अपने बच्चे को बोझ कहेगा.

 

तोषू के मुंह से होने वाले बच्चे के बारे में ऐसी बातें सुनकर अनुपमा उसे जोर से डांटेगी. तोषू अपने होने वाले बच्चे को मनहूस कह देगा. इस पर वनराज बर्दाश्त नहीं कर पाएगा और उसे जोर से थप्पड़ रसीद करेगा. वनराज कहेगा कि अगर वो इस बच्चे के बारें में कुछ भी अनाप-शनाप बोलेगा तो वो भूल जाएगा कि वो उसका बेटा है.

ये भी पढ़ें- विराट को मनाने में सई होगी कामयाब! पाखी को होगी जलन

 

फ्रैंडशिप- भाग 3: नैना ने अपना चेहरा क्यों छिपा लिया

पूरा वातावरण  किसी छोटे से गांव की भांति सुंदर लग रहा था. चोखी ढाणी में थोड़ीथोड़ी दूर पर बने कौटेज के बाहर लालटेन जल रही थी. वहीं बाहर खाट भी पड़ी थीं. आप खाट पर बैठ कर भी पूरी चोखी ढाणी की सुंदरता को निहार सकते हो.

आसमान में तारों की झिलमिल के बीच चांदतारों की शरारतों को देखदेख कर खुश हो रहा थातभी सागर ने नैना का हाथ अपने हाथ में ले लिया. नैना के शरीर में एक सुकून व शांति की किरण दौड़ने लगी. नैना को एक सुरक्षा का एहसास होने लगा.

दोनों धीमेधीमे कदमों से चोखी ढाणी में टहलने लगे. टहलतेटहलते दूर एकांत में सीमेंट सी बनी बैंच पर सागर बैठ गया और बोला, “नैनायहां से देखो चोखी ढाणी कितनी खूबसूरत लगती है.”  नैना ने बैंच पर बैठ कर सागर के विशाल कंधों पर अपना सिर टिका लिया. हलके से अपना चेहरा सागर के कंधे में छिपा लिया. फिर हलके से बोली, “सागरतुम ने इग्नोर करने वाली बात पूछी थी न?” नैना बोली.

हां नैनातुम ने उस बात का तो जवाब ही नहीं दिया थाबोलो तो?”

नहीं सागरतुम को तो मैं सपने में भी इग्नोर नहीं कर सकती. तुम जानते हो न शेक्सपियर की वह बात कि रोने के लिए या तो कमरा हो या फिर किसी का कंधा  जहां कभी रो कर हम अपने दुख को हलका कर सकेंजिस से सुकून मिल सके.

नैना,” सागर ने कहा, “क्या हुआ था उस दिनबोलो?”

उस दिन मम्मी और पापा की बहुत याद आ रही थीइसलिए मूड खराब था. मम्मीपापा का दर्दनाक हादसा नहीं भूल पाती.

नैना की बात सुन कर सागर की आंखें भी भर गई थीं.

 सागर ने नैना के सिर को अपने सीने में समेट कर उस पर अपने होंठ रख दिए.

 नैना की आंखों से निकल रहे आंसू सागर के सीने को भिगोने लगे थे. सागर…” नैना ने कुछ कहना चाहा.

कुछ न कहोदेखोखामोशी की आवाज,” सागर की आवाज में हलका सा कंपन था, “यह खामोशी बहुतकुछ कह रही है. सुनोयह खामोश पेड़उस पर धीमीधीमी चलती हवाकालबेलिया नृत्य करती लड़की के घुंघरू की धीमी सी आवाज…

नैना मन ही मन कुदरत से यह मांग रही थी कि यह सुकूनयह प्यार यों ही बना रहे.

बादलों की ओट से चांद सागर की खामोशियों को देख लेता थाफिर किसी बादल की ओट में छिप जाता था शायद  यह सोच कर कि चोरी कहीं पकड़ी न जाए.

सागर”, नैना बोली.

नैना की  आवाज सुन कर सागर ने अपनी गहरी आंखें खोलीं. सागर की आंखों में सितारे झिलमिलाने लगे थे.  मुसकान झरने में घुली ओस सी पवित्र लग रही थी. सागरमैं कितनी शांति महसूस करती हूं तुम्हारे साथ. प्लीजयह फ्रैंडशिप जीवनभर रहेगी न?” नैना ने पूछा.

हां नैनामेरा विश्वास करो. जीवन में तुम से कभी भी छलकपट नहीं करूंगा. तुम मेरी अच्छी दोस्त तो हमेशा रहोगीतुम मेरा प्यार भी हो,” सागर ने कहा.

क्या कह रहे होसागर?” नैना को विश्वास नहीं हो रहा था.

हां नैनामेरा विश्वास करो. तुम  मेरे विचारों जैसी हो. तुम्हारी सादगी  मुझे पसंद है,” सागर ने कहा, “हम परिवारवालों से बात करेंगेवे भी राजी होंगेविश्वास है मुझे.

फिर एक  बार नैना ने अपना चेहरा सागर के सीने में छिपा लियाचोखी ढाणी में नृत्य  की आवाज तेज होने लगी थी और रात के आंचल में सितारों की चमक गहरी हो चली थी.

प्रीत किए दुख होए: भाग 6

शोर सुन कर ममता बाहर आई और पिताजी को देख कर रो पड़ी, ‘‘अच्छे आए आप. कन्यादान तो आज आप को ही करना है. चलिए भीतर, कर दीजिए कन्यादान.’’ ‘‘कन्यादान…? एक दलित लड़की का कन्यादान मैं करूं? दिमाग तो ठीक है तेरा,’’ मुखियाजी बोले.

‘‘हांहां, आप… आप दलित किसे कहते हैं? उसे जिस ने दलित घर में जन्म लिया है? लेकिन उस ने जन्म देते वक्त कहीं कोई निशान दिया कि मैं उसे दलित मान लूं? मैं और काजल दोनों बचपन की सहेलियां हैं. बताइए, क्या फर्क है हम दोनों में? यहां दलित के नाम पर नफरत के बीज बोने का हक किस ने किस को दिया? ‘‘सुंदर और काजल के बीच बचपन का प्यार है. हम सब जातिवाद के चक्कर में इसे नहीं पहचान सके. प्यार की कोई जाति नहीं होती. अब तो सरकार ने भी इसे मान लिया है,’’ इतना कह कर ममता ने उन के हाथ से बंदूक छीन ली और उसे दूर फेंक दिया.

मुखियाजी ने भी अपनी बेटी की सामने घुटने टेक दिए, ‘‘बेटी, आज तू ने बेटी की सही परिभाषा दे कर मुझे एहसानमंद कर दिया. तू ने मुझे आईना दिखा दिया है.’’ दोनों भीतर गए और पंडित ने मुखियाजी से कन्यादान कराया. सभी बाहर निकले. काजल की मांग में सिंदूर और सुंदर के सिर पर सेहरा देखते ही बनता था.

ममता काजल को संभाले खड़ी थी. मुखियाजी ठीक सुंदर के बगल में सीना ताने खड़े हुए थे. डीएसपी साहब भी सादा कपड़ों में काजल व ममता के बगल में खड़े थे. मुखियाजी ने कहा, ‘‘बच्चो, इस समाज की बेहतरी का जिम्मा तुम्हारे ही कंधों पर है. ममता ने जो कहा, मैं तो उस से बड़ा प्रभावित हुआ और मान लिया.’’

पूरी भीड़ ने एक सुर में कहा, ‘हां.’ सरपंच ने कहा, ‘‘मुखियाजी, हम दलित बस्ती के हैं. इसे सही माने में दलित बस्ती बनाएंगे और सब को समान अधिकार दिलाएंगे. जिन बाबू लोगों के पास दलितों की जमीन, मकान वगैरह कब्जे में हैं, उसे कागज समेत वापस करवाएंगे और तमाम दलितों को भी वह सहूलियतें दिलाएंगे, जो बाबू लोगों को मिली हुई हैं.’’

ये भी पढ़ें- फैसला हमारा है: भाग 1

तभी झाड़ी में से एक दनदनाती गोली मुखियाजी के सीने पर जा लगी. वे कटे पेड़ की तरह गिरे और मर गए. एसटीएफ के जवानों ने खदेड़ कर गोली चलाने वाले को पकड़ लिया और डीएसपी के सामने खड़ा कर दिया. उस ने तुरंत एक थप्पड़ में ही कबूल कर लिया कि उसे मारना था सुंदर को, धोखे से गोली लग गई मुखियाजी को.

सुंदर, काजल व ममता दहाड़ें मार कर मुखियाजी की लाश पर गिरे. ममता रोतेरोते बेहोश हो गई. डीएसपी अंजन कुमार ने लाश को तत्काल पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और खुद 4-5 जवानों के साथ भीड़ को काबू करने में लगे रहे.

ममता जब होश में आई, तो रोरो कर कहने लगी, ‘‘आज मेरा कन्यादान होना था. अब कब होगा कन्यादान? कौन करेगा कन्यादान?’’ डाक्टर दिलासा देते हुए बोला, ‘‘बेटी, मैं करूंगा यह कन्यादान. मेरा आशीर्वाद है तुझे.’’

तभी लोगों ने देखा कि काजल ने डीएसपी के पैर पकड़ लिए. ‘‘काजल,’’ उन्हें हैरानी हुई और पैर हटा लिए, ‘‘कुछ कहना है?’’

‘‘हां.’’ ‘‘तो कहो, सब के सामने.’’

‘‘सर, आप भी मुझ से प्यार करते थे न?’’

ये भी पढ़ें- अतीत का साया

‘‘बिलकुल, पर अब तुम मेरी बहन हो गई हो. बोलो, कौन सा बलिदान करूं मैं? मेरी बड़ी हसरत थी कि तुम कुछ कहो और मैं उस पर अमल करूं?’’ ‘‘मेरी गुजारिश है कि आप ममता की मांग भर दें. एक डीएसपी भाई

का यह नायाब तोहफा होगा एक गरीब बहन को.’’ काजल ने ममता को खड़ा कर के पूछा, ‘‘ममता, मेरी सहेली, डीएसपी वर पसंद हैं न तुझे? बोल बहन.’’

ममता ने बुझी आंखों से डीएसपी को देखा और उन के सीने से लग गई. डीएसपी ने ममता की मांग भर दी. पंडितजी ने विधिविधान से मंत्र पढ़े और डाक्टर ने कन्यादान किया.

भीड़ ने तालियां बजा कर जोड़े का स्वागत किया. मुखिया मर्डर केस में अदालत ने मास्टर मिश्रा को 20 साल की कैद और हत्यारे को फांसी की सजा सुनाई.

धर्म का टैक्स, डर का हथियार

डर एक सामान्य मनोभाव है जिस के धर्म की गिरफ्त में जाते ही उस का व्यवसाय शुरू हो गया. लोगों को तरहतरह के धार्मिक डर दिखा कर उन से पैसा ?ाटका जाता है. जब युग तर्क, तथ्य और तकनीक का हो तो धर्म के नाम पर पैदा किया गया डर एक बड़ी रुकावट भी है और जेबों पर भारी डाका भी.

कोई और युग मसलन सतयुग, त्रेता या द्वापर होता तो उस बेचारे भक्त का बुत बन जाना तय था या फिर पुजारी के श्राप के मुताबिक वह कुत्ता, बिल्ली, मेंढक या चूहा योनि में भी शिफ्ट हो सकता था. लेकिन वह बच गया क्योंकि श्रापदाता ने सिर्फ श्राप देने की धमकी दी थी जिस से वह सम?ा गया कि यह कोई पौराणिक काल का दुर्वासा टाइप ऋषि नहीं है जिस का दिया श्राप सचमुच फलीभूत हो ही जाएगा. कलियुग का प्रभाव ही इसे कहा जाएगा कि भक्त ने श्राप की धौंस में न आते मंदिर में हल्ला मचाना शुरू कर दिया कि देखो भाइयो, यह पुजारी मु?ो श्राप की धमकी दे रहा है.

वाकेआ उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर का है, तारीख थी 25 जनवरी, 2022, जब इस मंदिर के पुरोहित दिनेश त्रिवेदी के एक असिस्टैंट राजेश शर्मा ने एक भक्त को धमकी दी कि दानदक्षिणा दो, नहीं तो श्राप दे दूंगा. भक्त पहले तो थोड़ा डरा, फिर उस के सिक्स्थ सैंस ने उसे चेताया कि ये पौराणिक भभकियां हैं, श्राप का रिवाज तो द्वापर के साथ ही खत्म हो गया है. आजकल जमाना बद्दुआओं का है और वे भी लग ही जाएं, इस की गारंटी नहीं, इतना ज्ञान जेहन में आते ही वह बिफर पड़ा.

पंडेपुजारियों की लूटमार और धौंसधपट से पीडि़त भक्तों ने देखते ही देखते एक टैंपरेरी यूनियन बना डाली जिस से मौका ए वारदात पर मंदिर प्रबंधन के साथसाथ कुछ पुलिस वाले भी आ पहुंचे. मीडियाकर्मियों ने भी तत्परता दिखाई. थोड़ी सी पंचायत यानी इंवैस्टिगेशन के बाद जो तथ्यनुमा बातें छन कर सामने आईं उन्होंने एक बार फिर मंदिरों व उन के अंदरबाहर घूमते दलालों की कलई खोल दी.

ये भी पढ़ें-  पैसा ही शक्ति है

पता चला कि देशभर के मंदिरों की तरह महाकाल मंदिर में भी इस तरह की घटनाएं रोजमर्रा की बातें हैं. आमजन से ले कर वीआईपी दर्शन, आरती और अभिषेक तक के मनमाने पैसे वसूले जाते हैं जिन में से कुछ की बाकायदा महाकाल थाने में एफआईआर भी दर्ज हुई हैं. दिनेश त्रिवेदी के ही एक और सहयोगी आनंद पांडे ने चंडीगढ़ से आए एक श्रद्धालु अमरदीप से नागनागिन का जोड़ा चढ़ाने के एवज में 500 रुपए मांगे थे.

इस से साबित यह होता है कि सरकारी दफ्तरों में पसरे घूसखोरी के रिवाज का मंदिरों व उन के पंडेपुजारियों की चालचलन से गहरा ताल्लुक है. संक्षेप में कह सकते हैं कि यह रिश्ता मौसेरे भाइयों जैसा है. लेकिन इस से साबित तो यह भी होता है कि देश में मूर्खों की कमी नहीं जो धातु के नागनागिन का जोड़ा चढ़ाने के लिए मंदिर पहुंच जाते हैं.

मंदिर प्रशासक गणेश कुमार धाकड़ ने सीसीटीवी फुटेज देखने के बाद भक्तों को सही जबकि पुजारियों अर्थात दलालों को दोषी पाया और उन के मंदिर में प्रवेश पर पाबंदी की घोषणा करते बात खत्म कर दी.

देशभर के मंदिरों में ऐसे नजारे आम हैं कि मूर्ति का पुजारी भक्तों से बदतमीजी करते उन्हें धकियाता है और अधिकांश भक्त इसे भी प्रभुइच्छा सम?ा प्रसाद की तरह ग्रहण कर लेते हैं. जिन में थोड़ीबहुत गैरत होती है वे पंडेपुजारियों को मन ही मन गाली बकते और कोसते मंदिर कैंपस के बाहर से ही दर्शनलाभ ले लेते हैं. लेकिन जिन का स्वाभिमान आस्था पर भारी पड़ता है, वे वैसा ही हल्ला मचाते विरोध दर्ज कराते हैं जैसा कि महाकाल के मंदिर में हुआ. लेकिन ये भक्त भी गजब के बेशरम होते हैं जो बेइज्जती होने के बाद भी मंदिर जाना नहीं छोड़ते.

कारोबार डर का

उज्जैन के मामले में दिलचस्प बात श्राप का डर दिखाना था जिस का रिवाज लुप्त सा हो चुका है. हालांकि, दूसरे हजारों तरीके सनातन काल से मौजूद हैं जिन से लोगों को पहले डराया जाता है, फिर डर दूर करने के नाम पर उन की जेबें ढीली की जाती हैं.

धर्म का धंधा दरअसल, टिका ही डर पर है जिस पर मशहूर कथाकार मुंशी प्रेमचंद ने अपनी रचना ‘रंगभूमि’ में एक जगह कहा है-

‘धर्म का मुख्य स्तंभ भय है. अनिष्ट की शंका को दूर कर दीजिए, फिर तीर्थयात्रा, पूजापाठ, स्नानध्यान रोजानमाज किसी का निशान भी न रहेगा. मसजिदें खाली नजर आएंगी और मंदिर वीरान.’

बात सही है. धर्म कोई भी हो, उस का कारोबार सिर्फ डर से चलता है. लोग डरेंगे नहीं तो मंदिरमसजिद, चर्च और गुरुद्वारे क्यों जाएंगे जहां डर दूर करने का ‘तथाकथित’ शर्तिया इलाज किया जाता है. यह डर भी कोई कुदरती नहीं है बल्कि धर्म का पैदा किया हुआ ही है ठीक किसी गांव के बाहर के पीपल के पेड़ का जैसा जिस के बारे में गांव का निक्कमा और चालाक आदमी प्रचार करता है कि वहां मत जाना, वहां भूत, प्रेत और चुड़ैल रहते हैं जो राहगीरों को मार डालते हैं, उन का खून पीते हैं या उन से चिपक जाते हैं.

डर फैलाने की बाबत वह तरहतरह के प्रपंच और षड्यंत्र भी रचता है. जब गांव वाले डर की गिरफ्त में आ जाते हैं तो वह गंडा, तावीज, तंत्रमंत्र और ?ाड़फूंक की दुकान खोल कर बैठ जाता है.

यही हाल ब्रैंडेड मंदिरों व दूसरे धर्मस्थलों का है जहां लोग डर से मुक्ति के लिए ज्यादा जाते हैं. इन मंदिरों में बड़ेबड़े पंडेपुजारी और पुरोहित पैसा समेटने को बैठे होते हैं. उज्जैन के शर्माजी ने नए किस्म का डर फैलाने की कोशिश की थी जिस में वे कामयाब नहीं हो पाए यह और बात है, नहीं तो धार्मिक डर की कमी नहीं जिन से मुक्ति पाने को लोग अपनी मरजी से लुटतेपिटते हैं.

ये भी पढ़ें- बलात्कार: महिलाओं के खिलाफ होने वाला सबसे आम अपराध!

धर्म के प्रमुख डर

बिना किसी शोध के कहा जा सकता है कि हमारेआप के इर्दगिर्द जितने भी डर हैं उन में से 95 फीसदी धर्म की उपज हैं. इन को सूचीबद्ध करना 19वें पुराण की रचना करने जैसा काम है जिसे भयपुराण कहा जा सकता है. पुराणों सहित तमाम धर्मग्रंथों में लोगों को कितनी तरह से डराया गया है, यह हर कभी सोशल मीडिया पर वायरल होती एक पोस्ट से पता चलता है. इस के मुताबिक, धर्म और उस के दुकानदारों द्वारा फैलाए गए प्रमुख डर ये हैं.-

धर्म के ठेकेदार कहते हैं कि सब से पहले तो हम से डरो, मतलब ऊंची जाति वालों से डरो. फिर भगवान से डरो.

फिर शैतान से डरो.

पिछले जन्म और अगले जन्म के कर्मों से डरो.

गृहतारोंनक्षत्रों से डरो.

हाथ की रेखाओं, जन्मकुंडली, आने वाले भविष्य से डरो.

उपवास में उपवास टूट जाए तो उस से डरो.

मांगी हुई मन्नत पूरी न कर पाए तो डरो.

जादूटोने से डरो.

नीबूमिर्ची के यंत्र से डरो.

चौराहों पर उतार कर रखे गए उतारे से डरो.

काली बिल्ली रास्ता काटे तो डरो.

कौवों की कांवकांव से डरो.

रात को उल्लू दिखे तो डरो.

कुत्ते के रोने से डरो.

रात को गूलर, पीपल के पेड़ों से डरो.

पुराने घरों से डरो.

रात को श्मशान से गुजरते वक्त डरो.

बाईं आंख फड़फड़ाए तो डरो.

खाने में बाल आ जाए तो डरो.

कोई छींके तो डरो.

डरो, डरो और डरो सिर्फ धर्म के नाम पर डरते रहो और भी बहुत सारे डर हैं जो सिर्फ भारत में बड़े गर्व से थोपे जाते हैं क्योंकि यहां लोग दिमाग को लौक कर के चाबी किसी और को दे देते हैं. वे खुद अपनी बुद्धि व तर्क से सोचते ही नहीं. जो सोचते हैं उन्हें नास्तिक, विधर्मी, वामपंथी, देशद्रोही और नक्सली करार दे कर उन का हर स्तर पर बहिष्कार किया जाने लगता है मानो जिंदा रहने और मानव योनि में रहने का हक उसी को है जो धर्म के डर और आतंक को स्वीकारता हो.

डर के मसले पर भगवान और शैतान दोनों में कोई खास फर्क नहीं किया गया है. पौराणिक साहित्य का आधार ही ये 2 तरह की कथित शक्तियां हैं. कहा यह जाता है कि भगवान हमें शैतान से बचाता है यानी कल को शैतान बचाने की जिम्मेदारी निभाने लगे तो लोग उसे भी पूजने लगेंगे जोकि धर्म के दुकानदार नहीं चाहते, इसलिए पूजापाठ की बीमारी कुछ इस तरह फैलाई गई है कि यह किसी नशे की लत से भी ज्यादा घातक हो गई है.

ये भी पढ़ें- अंधविश्वास: वास्तु- तर्क पर भारी पड़ता वहम

जब लोग पूजापाठ के आदी हो गए तो इस पर भी डर की दुकान चमकाई जाने लगी कि पूजा अगर गलत तरीके से करोगे तो पाप लगेगा और अनिष्ट हो जाएगा. पूजापाठ को ले कर इतने नियमकानून बना दिए गए कि लोग उन से भी डरने लगे. प्रेमचंदजी ने इस मानसिकता को जड़ से पकड़ा कि अनिष्ट की शंका त्याग दो तो कोई समस्या ही नहीं रह जाएगी पर धर्म का षड्यंत्र देखिए कि अनिष्ट का कारक भी भगवान की इच्छा को घोषित कर दिया गया.

बाईं आंख फड़कना, बिल्ली का रास्ता काटना, छींक आना जैसे उदाहरण अनिष्ट का संकेत माने जाते हैं जिन के पीछे वैज्ञानिक तो दूर, कोई अवैज्ञानिक वजहें भी नहीं हैं. इन से बड़े उदाहरण हैं पूजा का दीपक बु?ा जाना, कलश का अपनेआप लुढ़क जाना, जानवरों का रोना आदि जिन्हें इफरात से हिंदी फिल्मों में दिखाया जाता है कि यहां निरूपा राय या कामिनी कौशल की पूजा का दीपक बु?ा नहीं कि वहां उन का बेटा अमिताभ बच्चन या मनोज कुमार मुसीबत में पड़ गया.

पूजापाठ से संबंधित डर पर गौर करें तो मान्यता है कि नीले या काले कपड़े पहन कर पूजा करने से पाप लगता है. अगर किसी लाश को छुआ है और बिना नहाए पूजा कर ली तो ऐसे व्यक्ति को पाप लगता है. लोग तब भी पाप के भागीदार माने जाते हैं जब वे सहवास के बाद बिना नहाए पूजापाठ कर लेते हैं. क्रोध में पूजन करने से भगवान गुस्सा हो जाता है और सजा देता है जैसी सैकड़ों बंदिशें बताती हैं कि भगवान और शैतान में कोई खास अंतर नहीं है. भगवान अगर वाकई भला करने वाला (जैसा कि माना जाता है) और रहम दिल होता तो इन बातों पर क्रुद्ध न होता.

दरअसल, ये और ऐसे सैकड़ों तरह के प्रपंच पैसा कमाने की गरज और मकसद से बनाए गए हैं जिस से लोग इन नियमों को बनाने वाले और उन का पालन करवाने वालों की गुलामी ढोते रहें. नहीं तो नर्क की सजा भुगतने तैयार रहें.

डर का मनोविज्ञान

गरुड़ पुराण में इन सजाओं का इतना वीभत्स चित्रण और वर्णन है कि अच्छेखासे लोग भी डरने लगें.

आम लोग सब से ज्यादा मौत से और पाप से डरते हैं. मृत्यु एक दिन आनी है, यह हर कोई जानता है लेकिन धर्म यह कहते डराता है कि मरने के बाद भी आप चैन से नहीं रह सकते. ऊपर कहीं आप को अपने किए कर्मों की सजा मिलती ही है. इस गरुड़ महापुराण के मुताबिक कुल 84 लाख नर्क हैं और उन में से भी

21 घोर नर्क हैं जहां पापियों को तरहतरह की सजाएं दी जाती हैं. महावीचि नाम का नर्क खून से सना हुआ है जिस में जीवों को कांटों से चुभो कर यातनाएं दी जाती हैं.

इसी तरह कुंभीपाक नाम के नर्क में पापियों को गरम बालू और जलते अंगारों पर नंगे बदन लिटाया जाता है. रौरव नर्क में लोहे के जलते हुए तीरों से लोगों को बींधा जाता है. अप्रतिष्ठ नर्क में खासतौर से उन लोगों को सजा दी जाती है जो ब्राह्मणों को सताते हैं. इस नर्क में मूत्र, मवाद और उलटियों में लोगों को डुबोया जाता है.

अब भला कौन भला आदमी इन नर्कों की यातनाएं भुगतना चाहेगा, इसलिए लोग डरते हैं और खूब दानदक्षिणा भी धर्म के ठेकेदारों के बताए मुताबिक देते हैं. कोई यह नहीं सोचता कि इन कपोलकल्पनाओं का आधार और प्रमाण क्या हैं. लोग ज्यादा ऐसा न सोचने लगें, इस बाबत इफरात से धार्मिक पाखंड आएदिन समारोहपूर्वक आयोजित किए जाते हैं. इन में पुराने, घिसेपिटे पौराणिक प्रसंगों को नएनए रोचक तरीकों से बांचा जाता है.

दिलचस्प बात यह है कि डर के इस कारोबार में मेहनत, लागत और पैसा भी छोटी जाति वालों का लगता है जबकि मुनाफा धर्मगुरुओं के हिस्से में जाता है. बात ‘शोले’ फिल्म के उस डायलौग जैसी है जिस में डाकू गब्बर सिंह रामगढ़ वालों से कहता है कि ‘गब्बर के ताप (कहर) से तुम्हें एक ही आदमी बचा सकता है… खुद गब्बर… और इस के एवज में अगर मेरे आदमी तुम से थोड़ा सा अनाज व पैसा लेते हैं तो कोई गुनाह नहीं करते.’

यही धर्मस्थलों की कहानी है जहां ऊपर वाले के कहर का डर दिखा कर नीचे वाले डर के हथियार से अनाज, पैसा, सोना चांदी, कपड़े, जमीन, दूधमलाई, मिठाईखटाई और जाने क्याक्या वसूला करते हैं. ये डाकू नहीं तो और क्या हैं.

ये भी पढ़ें- अंधविश्वास: वास्तु- तर्क पर भारी पड़ता वहम

उज्जैन के महाकाल मंदिर में

3 पुजारियों राजेश शर्मा, अनिकेत शर्मा और अजय शर्मा ने यही किया था. लोचा इतना भर हुआ कि चंडीगढ़ के अमरदीप ठाकुर ‘शोले’ के अपाहिज ठाकुर बलदेव सिंह की तरह अड़ गए थे और ऐसा भी रोजरोज नहीं होता, कभीकभार होता है, इसलिए डर की दुकान पर कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वह धर्म की तरह ही शाश्वत है.

अधिकतर मनोविज्ञानी यह मानते हैं कि डर निहायत ही प्राकृतिक मनोभाव है और आदमी की अधिकांश तकलीफों की वजह सैक्स और डर है. मशहूर मनोविज्ञानी सिग्मंड फ्रायड सैक्स को डर की वजह बताते रहे लेकिन उन के एक शिष्य और साथी कार्ल गुस्ताव जुंग के मुताबिक, मृत्यु का डर ही सभी मनोरोगों का कारण है. मृत्यु के डर को हिंदू धर्म ने दूर करने के बजाय जम कर किस तरह भुनाया, यह गरुड़ पुराण जैसे ग्रंथों को पढ़ कर सहज सम?ा जा सकता है.

बिना पढ़े अगर लाइफ आफ्टर डैथ की अजीबोगरीब, कपोलकाल्पनिक, हिंसक और वीभत्स थ्योरी किसी को मुफ्त में जाननीसम?ानी है तो उसे ऐसे किसी हिंदू घर में जा कर इस का श्रवण लाभ लेना चाहिए जहां किसी की मौत के बाद गरुड़ पुराण का 13 दिन वाला पाठ चल रहा हो.

मनोविज्ञान कभी किसी काल्पनिक संसार के अस्तित्व से सहमत नहीं हुआ, उलटे वह यह जरूर बताता रहता है कि दिमाग से कमजोर लोग अपने आसपास एक काल्पनिक दुनिया बुन लेते हैं और उस को ही सच मान बैठते हैं. ऐसे लोग सिजोफ्रेनिया के मरीज कहे जाते हैं. जो लोग पार्टटाइम या दिन में कुछ समय के लिए धर्म द्वारा बुनी गई काल्पनिक दुनिया में विचरते हैं उन्हें मानसिक रोगियों की श्रेणी में क्यों नहीं रखा जाना चाहिए, इस पर बहस की तमाम गुंजाइशें मौजूद हैं.

महिलाएं डर की मुख्य शिकार

महिलाओं को सेविका, दासी और भोग्या करार देने वाले हिंदू धर्म में मासिकधर्म का डर भी विस्तार से बताया गया है जिसे बिना पढ़े 12-14 साल की वह किशोरी भी सम?ा जाती है जिस का पीरियड शुरू होने वाला होता है और जिस ने भागवत पुराण, भविष्य पुराण, मनु स्मृति और चरक संहिता जैसे दिशानिर्देश देने वाली किताबों के नाम भी नहीं सुने होते.

पहले मासिकधर्म में ही सनातन धर्म के ये फरमान और फतवे युवतियों की रगरग में नसीहतों के इंजैक्शनों के जरिए ठूंस दिए जाते हैं कि अब तुम 5 दिन अपवित्र रहोगी, तुम्हें पूजापाठ नहीं करना है, किचन में दाखिल नहीं होना है, किसी को छूना भी नहीं है और पलंग के नीचे सो सको तो और बेहतर है और साथ ही इन दिनों अचार को हाथ मत लगाना नहीं तो वह खराब हो जाएगा, गाय को छुओगी तो वह बां?ा हो जाएगी. तुम्हें मेकअप भी नहीं करना है और पौधों को पानी भी नहीं देना है नहीं तो वे सूख जाएंगे. वहीं, अगर शादीशुदा हो तो भूले से भी पति के नजदीक न जाना और छूना नहीं, वरना उस की उम्र कम हो जाएगी और तुम जल्द विधवा हो जाओगी.

पीरियड के दौरान महिला को पापिन, अछूत और शूद्रों से भी गईगुजरी माना जाता है जो अगर मंदिर चली जाए तो वह भी अपवित्र हो जाता है. डर का ऐसा रौद्र रूप शायद ही कहीं और देखने में आए कि 4-5 दिन महिला को नियमित बरतनों में खाना भी न दिया जाए. इस डर पर आएदिन हल्ला मचता रहता है लेकिन महिलाओं की पारिवारिक, सामाजिक और धार्मिक हैसियत ज्यों की त्यों रहती है.

शिक्षित परिवारों में इतना जरूर बदलाव आया है कि महिलाओं को नीचे नहीं सोना पड़ता, खाने को ठीकठाक मिल जाता है और वे पूजाघर छोड़ कर पूरे घर में घूम सकती हैं यानी डर और हीनभावना दूर करने की कोई कोशिश नहीं की जाती. इन दिनों में उनके ?ाड़ूबुहारी और साफसफाई करने पर कोई पाबंदी नहीं है क्योंकि ये तो शूद्रकर्म होते हैं.

5 दिन महिलाओं की जान योनि से रिसते रक्त, जो निहायत ही प्राकृतिक शारीरिक प्रक्रिया है, में अटकी रहती है कि कब यह ?ां?ाट खत्म हो और वे सामान्य जिंदगी जिएं. इस दौरान वे डरती रहती हैं कि भूले से भी मुंह से रामश्याम न निकल जाए और पति या घर के अन्य पुरुषों को वे धोखे से टच न कर लें.

धर्म के उद्भव से ले कर आज तक महिलाएं उस की सौफ्ट टारगेट हैं तो हैं. इस पर थोड़ा सा हल्ला बताता है कि हम एक कायर समाज में रहते हैं और मजाक यह कि इसी आधार पर विश्वगुरु बनने का ढिंढोरा पीटा करते हैं.

इलाज क्या

हर किसी के अचेतन में गहरे तक पसरे धार्मिक डर लाइलाज हैं जिन से खुद को बचाए रखना ही कल्याण का इकलौता रास्ता है. इस के लिए जरूरी है दृढ़ इच्छाशक्ति, पाखंडों से लड़ने की क्षमता होना और इन से भी ज्यादा जरूरी है तर्क करना, डराने वालों को उन की हैसियत बताते उन की मंशा पूरी न होने देना जो सिर्फ डरा कर पैसा वसूलने की होती है.

यह लूट असल में एक उपरोक्त टैक्स की तरह है जो आम लोगों की आय का बड़ा हिस्सा खा जाती है. आज भी पौराणिक युगों की तरह हमें भरोसा दिया जा रहा है कि अगर पैसा दिया तो ही धर्म का डर नहीं रहेगा. यह कैसा डर का टैक्स है.

लालच और मुफ्तखोरी पर लगाम ऐसे नहीं कसेगी कि लुटेरों के खिलाफ कभीकभार, फौरीतौर पर अपनी तसल्ली के लिए उन का विरोध करते खुद की पीठ थपथपा ली जाए, बल्कि बहिष्कार धर्मस्थलों का करना पड़ेगा जो धार्मिक डर के डेरे और अड्डे हैं और ऐसा करने की हिम्मत न जुटा पाएं तो डरते रहिए, लुटते रहिए.

Manohar Kahaniya: सीरियल किलर सिंहराज

सौजन्य: मनोहर कहानियां

Writer- शाहनवाज 

सुनीता की हत्या का पता लगाते हुए पुलिस की टीम सिंहराज तक जा पहुंची. इलाके में सब से शरीफ और ईमानदार सिंहराज ने जब अपना जुर्म स्वीकारा. हरियाणा के फरीदाबाद जिले में एक छोटे से गांव जसाना का रहने वाला 55 वर्षीय सिंहराज नागर, फरीदाबाद के सेक्टर 16 में स्थित सिटी हौस्पिटल में चौकीदारी का काम करता था. जसाना गांव से सिटी हौस्पिटल 13-14 किलोमीटर दूर था. इसलिए वह पिछले 10 सालों से साइकिल द्वारा ही अस्पताल आताजाता था.

4 जनवरी, 2022 की सुबह के करीब 7 बज रहे थे, जब सिंहराज अपने घर से ड्यूटी के लिए निकला. पौने 8 बजे के करीब वह आगरा कैनाल (नहर) के पुल से जा रहा था तो उस ने सड़क से थोड़ी दूर झाडि़यों के बीच एक युवती की लाश लटकी देखी.

यह देख तेजी से साइकिल चला रहे सिंहराज के पांव अचानक से रुक गए. पुल पर उस समय उस के अलावा और कोई नहीं था. ठंड के उन दिनों में झाडि़यों के बीच अटकी उस लाश को देख कर उस के माथे पर पसीना छलक आया था.

हलके नीले रंग का सूट सलवार पहने उस युवती की लाश को देख कर सिंहराज के मन में सवालों का बवंडर बनने लगा.

लेकिन वह ज्यादा देर तक उस जगह पर खड़ा नहीं रह सकता था. क्योंकि उसे समय पर अपनी ड्यूटी पर भी तो पहुंचना था.

सिंहराज जिस सिटी हौस्पिटल में चौकीदार था वह पिछले कुछ सालों से बंद पड़ा था, जिस की वजह से वहां मरीजों का आनाजाना बिलकुल भी नहीं था. वहां आम अस्पतालों वाली भागमभाग बिलकुल भी नहीं होती थी.

लेकिन हौस्पिटल की इमारत और आंगन में हर दिन साफसफाई होती थी, जिस के लिए सफाई करने वाले कुछ लोग अपने समय से आते थे.

हौस्पिटल पहुंच कर सिंहराज ने मेन गेट के पास अपनी साइकिल खड़ी की और वहीं मौजूद कुरसी पर बैठ गया. सुबह का समय था और कोई भी सफाई वाला उस समय तक हौस्पिटल नहीं पहुंचा था. सिंहराज अपनी कुरसी पर जम गया और सुबह वाली घटना के बारे में सोचने लगा.

जब उसे सुनीता के बारे में याद आया तो वह और भी परेशान हो गया. दरअसल, सिंहराज सुनीता को पिछले 2 सालों से जानता था और एक दिन पहले ही उस ने उसे फोन कर के अपने पास उसे पैसे लेने के लिए बुलाया था.

सिंहराज पिछले 2 सालों से हर महीने सुनीता को कुछ पैसे दिया करता था ताकि उस की कुछ आर्थिक मदद हो सके. सुनीता के बारे में सोचसोच कर सिंहराज की रूह अंदर से कांपे जा रही थी.

वह एक पल के लिए अपने मन में सुनीता के बारे में सोचता तो दूसरे पल वह झाडि़यों के बीच मौजूद उस लाश को याद कर रहा था. उस ने बिना किसी देरी के अपनी जेब से फोन निकाला और सुनीता की नानी मैना देवी को फोन किया.

ये भी पढ़ें- Manohar Kahaniya: जब जीजा पर चढ़ा साली का नशा

उस ने मैना देवी को पूरी बात बताई तो उस की नानी फोन पर ही रोने लगी. सिंहराज बोला, ‘‘मुझे लगता है तेरी नातिन वहां मरी पड़ी है. उसे आ कर देख जा. लगता है वो लाश उसी की है.’’

सिंहराज की बात सुन कर मैना देवी को अपने कानों पर यकीन ही नहीं हुआ. किंतु वह करती भी तो क्या करती. मैना देवी की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी और उस के जीवन में सुनीता के अलावा और कोई भी नहीं था. सुनीता के मातापिता की मृत्यु उस समय हो गई थी, जब वह मात्र 6 साल की ही थी.

सिंहराज आया पुलिस के शक में

सुनीता का पालनपोषण मैना देवी ने ही किया था. मैना देवी ने अपनी नातिन के बारे में सिंहराज से सुना तो वह रोने लगी. उस के रोने की आवाज सुन कर मोहल्ले की औरतें इकट्ठी हो गईं और सुनीता की हत्या पर सभी आश्चर्यचकित थीं.

फिर मोहल्ले के एक व्यक्ति के साथ वह ओल्ड फरीदाबाद थाने में चली गई तथा पुलिस को नातिन की हत्या की जानकारी दे दी.

इस के बाद ओल्ड फरीदाबाद थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई. वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर डीएलएफ क्राइम ब्रांच पुलिस भी वहां पहुंच गई. टीम ने आगरा कैनाल के उस पुल के पास पहुंच कर मामले की छानबीन शुरू कर दी.

पुलिस ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया. प्रारंभिक जांच पूरी हो जाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

इस केस की जांच डीएलएफ क्राइम ब्रांच के एसीपी सुरेंद्र श्योरान के निर्देशन में गठित टीम ने करनी शुरू कर दी. क्राइम ब्रांच इंसपेक्टर अनिल कुमार और एएसआई समुंदर सिंह ने मैना देवी के कमरे पर पहुंच कर सुनीता के संबंध में पूछताछ की.

तब वह रोते हुए बोली, ‘‘मेरी नातिन को मार दिया रे सिंहराज ने. उस ने उसे पैसे लेने के लिए बुलाया और मार दी.’’

सिंहराज की बात सुन कर पुलिस टीम ने मैना देवी से सुनीता का फोन मांगा. इस के बाद उन्होंने सुनीता के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई ताकि जांच का कोई सबूत मिल सके.

काल डिटेल्स से पता चला कि 30 दिसंबर, 2021 को सिंहराज ने सुनीता को फोन किया था. यह बात मैना देवी भी पुलिस को बता चुकी थी कि सिंहराज ने सुनीता को पैसे देने के लिए बुलाया था. क्योंकि वह हर महीने कुछ रुपए उसे सहायता के तौर पर देता था, इसलिए वह चली गई. लेकिन उस के बाद नहीं लौटी.

अब पुलिस को सिंहराज पर ही शक होने लगा. लिहाजा पुलिस ने 7 जनवरी, 2022 को पूछताछ के लिए सिंहराज को सिटी हौस्पिटल से हिरासत में ले लिया.

जब पुलिस उसे हिरासत में लेने आई तो आसपास के लोगों को यकीन ही नहीं हुआ. क्योंकि सभी की नजरों में वह एक शरीफ इंसान था. और सिंहराज जैसा भला और बूढ़ा आदमी कभी किसी को क्या चोट पहुंचा सकता था.

पुलिस सिंहराज को हिरासत में ले कर सुनीता हत्याकांड में सिंहराज की भूमिका को तलाशने में जुट गई और उस के खिलाफ पुख्ता सबूत जुटाने लगी.

पुलिस टीम ने सिंहराज से बेहद सख्ती से पूछताछ की. उन्होंने मैना देवी से उस की बातचीत और सुनीता को काल कर पैसे देने के लिए आने की बातचीत का खुलासा किया तो सिंहराज ने खुद को चारों ओर से घिरा हुआ महसूस किया.

अंत में सिंहराज ने जब अपना मुंह खोला तो पूछताछ करने वाली टीम तो क्या जिस किसी ने सिंहराज के किस्से के बारे में सुना, उस का मुंह खुला का खुला ही रह गया.

सिंहराज पुलिस पूछताछ में ज्यादा देर तक टिक नहीं पाया. उस ने सुनीता की हत्या के गुनाह को कुबूल कर लिया. लेकिन वह सिर्फ यहीं नहीं थमा. उस ने सुनीता के साथसाथ बीते 3-4 सालों में फरीदाबाद के उसी इलाके की 3 अन्य नाबालिग लड़कियों की हत्या की बात भी कुबूल कर ली. जिसे सुन कर पुलिस टीम भी चौंक गई.

वक्त गुजरने के साथसाथ मामला और भी संगीन होता चला जा रहा था. जिन हत्याओं के बारे में सिंहराज ने पुलिस के आगे अपना जुर्म कुबूला था, जब पुलिस ने उन सभी का पता लगाया तो पता चला कि ये  सभी नाबालिग लड़कियां लापता थीं.

यही नहीं, पुलिस ने जब सिंहराज के क्राइम रिकौर्ड्स खंगाले तो सब ने अपना सिर पकड़ लिया.

सिंहराज ने 1986 में जब वह सिर्फ 18 साल का था, उस समय परिवार में जमीनी विवाद के चलते उस ने अपने चाचा और उन के बेटे की हत्या की थी. जिस के लिए उसे उस समय गिरफ्तार तो किया गया था, लेकिन उस के खिलाफ पुख्ता सबूत न मिलने के कारण उसे बरी कर दिया गया था.

हद तो तब हो गई, जब सिंहराज ने अब पुलिस के सामने अपने द्वारा 36 साल पहले की गई हत्या की बात कुबूल कर ली.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: इशिका का खूनी इश्क

सनसनीखेज हत्याओं की वजह

सिंहराज ने इन सभी हत्याओं को अंजाम अलगअलग समय पर दिया था. और 1986 के बाद हर हत्या के पीछे उद्देश्य सिर्फ एक ही था, वह था उस की यौन इच्छाओं की भूख. जब उस ने पुलिस के सामने अपने सभी जुर्मों को कुबूल कर लिया था तो पुलिस ने एकएक कर उस से हत्याओं के बारे में पूछताछ शुरू की.

पूछताछ के दौरान उस ने पुलिस के हर सवाल का जवाब दिया. उस ने अपने द्वारा की गई पहली हत्या के बारे में बताते हुए कहा, ‘‘जब मैं 18 साल का था तो उस समय हमारे परिवार में जमीन का झगड़ा शुरू हुआ. हमारे चाचा के पास पहले से ही बहुत जमीनजायदाद थी, जोकि उन्हें चाची की तरफ से मिली थी. लेकिन फिर भी मेरे बड़े चाचा की नजर हमारे दादा की जमीन पर थी जोकि पहले से ही बहुत कम थी.

‘‘मुझे इस बात की चिंता थी कि मेरे दादा की तरफ से जितनी जमीन का बंटवारा होगा, उस से हमें बहुत कम हिस्सा मिलेगा. जिस से गुजारा चलाना मुश्किल होगा. मैं ने चाचा को इस के लिए प्यार से समझाया, लेकिन वह नहीं माने. इसलिए मैं एक रात चुपके से उन के घर में घुसा और जब चाचा गहरी नींद में खाट पर लेटे हुए थे तो मैं ने पीछे से जा कर अपने गमछे से उन का गला दबा दिया.

‘‘मैं ने इतना जोर लगाया कि कोई भी उस पकड़ को मुझ से नहीं छुड़ा सकता था. चाचा कुछ तड़पे थे, लेकिन मैं ने उन के मुंह पर अपना हाथ रख लिया था ताकि शोर न हो सके. 5 मिनट तक लगातार गला दबाया और उन की जान ले ली.

‘‘फिर मैं ने सोचा कि इन के बेटे को क्यों छोड़ा जाए. झगड़े के समय वह बहुत जुबान चलाता था. मेरा गुस्सा उस पर भी उतना ही था, जितना कि चाचा पर. मैं ने अपने चाचा की ही तरह उसे भी लटका दिया. बिना शोर किए.’’

3 लड़कियों का हत्यारा निकला सिंहराज

फरीदाबाद के जसाना गांव का रहने वाला सिंहराज अपने द्वारा किए गए हत्या के राज तो इस तरह से खोल रहा था जैसे कि उस ने बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की हो. इस तरह से उस ने 1986 में अपने चाचा और चचेरे भाई की हत्या की थी. उस ने बताया कि उस के बाद उस की शादी हो गई और कई सालों तक वह गांव में रह कर खेती करने लगा.

खेती करने से उस के परिवार का गुजारा नहीं हुआ. उस के परिवार में उस की पत्नी विमला देवी और 4 बच्चे थे, जिन में 2 बेटियां और 2 बेटे थे. घर में पैसा कम होने लगा तो वह अपने खेतों को बेचने लगा.

जब उस ने महसूस किया कि उस के पास संपत्ति के नाम पर सिर्फ उस का घर और कुछ जमीन बची है तो करीब 10 साल पहले यानी 2011 में वह फरीदाबाद में सेक्टर 16 सिटी हौस्पिटल में चौकीदार बन गया और यहीं काम करता रहा.

उस ने साल 2019 में पहली नाबालिग लड़की को अपना शिकार बनाया. उस ने बताया कि सिटी हौस्पिटल जहां वह चौकीदार था, उस के पास ही चौराहे पर रेहड़ी पटरी पर बंटी नाम की युवक चाय बेचता था.

बंटी के साथ उस की 14 साल की छोटी बहन प्रिया भी आती थी. वे लोग पास में लाल क्वार्टर में किराए पर रहते थे. सिंहराज हर दिन सुबह और शाम उस के पास चाय पीने जाता था. वह बंटी से हर दिन उधार चाय पीता था और बंटी के पैसे मांगने पर उसे अगले दिन पैसे देने का वादा करता था. ऐसा करते हुए बंटी के पास सिंहराज का करीब एक महीने का उधार जमा हो गया.

अगले दिन जब सिंहराज चाय पीने आया तो बंटी ने फिर एक बार उसे पैसों के लिए टोका. जिस की वजह से बंटी और सिंहराज के बीच पैसों को ले कर थोड़ीबहुत नोकझोंक हो गई.

सिंहराज को बंटी पर बहुत गुस्सा आया लेकिन उस ने अपने गुस्से को दबा कर रखा. उस ने उस के बाद बंटी के यहां चाय पीनी बंद कर दी. लेकिन जब कभी बंटी की छोटी बहन प्रिया आसपास के इलाकों में चाय दे कर हौस्पिटल के सामने से गुजरती तो सिंहराज उसे अपने पास बुलाता और उसे कुछ पैसे दे दिया करता था.

लगभग रोज वह प्रिया को अपने पास पैसे देने के बहाने बुलाता था और उस को छूता था. वह उस छोटी बच्ची के यौन अंगों को भी छू लिया करता था. 2 दिसंबर, 2019 के दिन भी उस ने यही किया. लेकिन प्रिया छोटी बच्ची होने के बावजूद उस के गंदे इरादों को समझ गई थी.

उस ने उस के पास आने से साफ इनकार कर दिया तो सिंहराज ने उसे पैसे दिखाते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं मत आ, लेकिन मेरे लिए चाय लेती आ. ये ले जा पैसे.’’

प्रिया उस के झांसे में आ गई और जब वह सिंहराज के पास गई तो उस ने उसे जकड़ लिया और उस के नाजुक अंगों को छूने लगा. प्रिया को इतना गुस्सा आया कि उस ने खुद को उस से छुड़ाते हुए कहा, ‘‘आज तो मैं भैया को सब कुछ बताऊंगी कि अंकल मेरे साथ क्याक्या करते हैं.’’

प्रिया के मुंह से यह सुन कर सिंहराज उसी पल घबरा गया. उस ने उसी समय गले में पड़े गमछे से प्रिया का गला घोंट दिया. इस के बाद उस ने उस की लाश आगरा कैनाल में डाल दी, जो बह कर कहीं दूर चली गई.

उधर जब प्रिया अचानक लापता हो गई तो उस के भाई बंटी ने ओल्ड फरीदाबाद थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: परिवार पर कहर बना दोस्त का लालच

इसी तरह से अगले साल लौकडाउन के समय जब वह इलाका जोकि पहले से ही सुनसान था, उस ने बाजार से घर जाती 12 साल की बच्ची को अपना शिकार बनाया.

12 साल की चांदनी पास के बाजार से घर जा रही थी तो सिंहराज ने उसे हौस्पिटल में अपने पास बुलाया और उस के साथ छेड़छाड़ करने लगा.

जब चांदनी ने इस का विरोध किया और अपने घर वालों को बताने की धमकी दी तो फिर से सिंहराज ने अपने गले से गमछा निकाल कर 12 साल की चांदनी का गला घोंट उसे जान से मार दिया.

उस की लाश भी आगरा कैनाल में बहा दी. थाने में चांदनी की भी गुमशुदगी दर्ज हुई थी, लेकिन पुलिस की फाइलों में यह जांच भी दब कर रह गई.

उसी तरह से सिंहराज ने पिछले साल मई 2021 में तीसरी लड़की को अपना शिकार बनाया. 15 साल की प्रेरणा जोकि सिटी हौस्पिटल में ही साफसफाई का काम करती थी, एक दिन वह अपना मेहनताना लेने के लिए थोड़ा देर से आई.

कुंठित सीरियल किलर निकला सिंहराज

उस समय पूरे अस्पताल में सिवाय सिंहराज के और कोई भी नहीं था. सिंहराज की प्रेरणा पर काफी समय पहले से ही गंदी नजर थी. उस दिन जब सिंहराज को मौका मिला तो उस ने प्रेरणा के साथ भी जबरदस्ती करनी शुरू कर दी. विरोध करने पर उस ने प्रेरणा का भी गला घोंट दिया. प्रेरणा की लाश भी आगरा नहर में फेंक दी.

अंत में उस ने 31 दिसंबर को सुनीता को अपना शिकार बनाया. दरअसल, 22 वर्षीय सुनीता के साथ उस ने 2 साल पहले ही छेड़छाड़ की थी. लेकिन सुनीता को अपना मुंह बंद करने के लिए उस ने हर महीने उसे पैसे देने का वादा किया था.

लेकिन 31 दिसंबर को उस ने सुनीता के साथ दोबारा छेड़छाड़ की तो सुनीता ने भी उस का विरोध किया. और उस ने उसी तरह सुनीता को मौत के घाट उतार दिया, जिस तरह से उस ने बाकी लड़कियों को जान से मारा था.

लाशों को इस तरह लगाया ठिकाने

सिंहराज जब हत्या करता था तो वह उन्हें ठिकाने लगाने के लिए हौस्पिटल परिसर का ही सहारा लिया करता था. सब से पहले वह लड़कियों के साथ छेड़छाड़ करता, फिर वह उन्हें जान से मार देता, जिस के बाद वह लाश को हौस्पिटल के पीछे स्टोररूम में रखता, उन्हें स्टोररूम में ही बोरे में डाल देता और अपनी साइकिल की मदद से उसे सुबहसुबह आगरा कैनाल में फेंक आता.

सिंहराज ने प्रिया, चांदनी और प्रेरणा की लाश को आगरा कैनाल के बहते हुए पानी में फेंक कर ही उन्हें ठिकाने लगाया था. लेकिन वह सुनीता के शव को बहते पानी में नहीं फेंक पाया था.

दरअसल, सिंहराज की बढ़ती उम्र और सुनीता के शव का वजन बहुत ज्यादा था. वह सुनीता के शव को फेंक तो आया था, लेकिन किसी कारणवश सुनीता का शव झाडि़यों में ही अटक कर रह गया.

सुनीता के अटके शव की वजह से ही सीरियल किलर सिंहराज का खुलासा हो पाया अन्यथा फरीदाबाद क्राइम ब्रांच, एसआईटी टीम, एनडीआरएफ की टीम ने मिल कर आगरा कैनाल में काफी दूर तक छानबीन की, लेकिन 3 लाशें नहीं मिल पाईं.

यह मामला सिर्फ सुनीता की हत्या से शुरू हुआ था, लेकिन यह इतना बड़ा मामला बन गया, जिस में 3 नाबालिग लड़कियां भी इस का शिकार हुई थीं. आरोपी सिंहराज की हवस की शिकार हुई इन चारों लड़कियों के परिवारों को अब इंसाफ मिलने की उम्मीद है.

आरोपी सिंहराज इस समय सलाखों के पीछे है और उस पर कई संगीन धाराओं में मुकदमे दर्ज हैं. सिंहराज पर आईपीसी की धारा 363, 66, 376, 302, 201, पोक्सो एक्ट (8 और 17) और एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में चांदनी, प्रेरणा, प्रिया, सुनीता परिवर्तित नाम हैं.

धर्म की धोंस

यूक्रेन पर हमले पर किस तरह पूरा यूरोप, जापान, आस्टे्रलिया और अफ्रीका व दक्षिण अमेरिका के देश तेजी से लोकतंत्र को बचाने में जुट गए, यह एक राहत का सबब है. जो ढीलढाल दूसरे विश्व युद्ध के समय की गई थी, अब न की जाए और यूक्रेन चेकेस्लोवानिया की तरह खूनी हिटलर का पहला निवाला न बए जाए. इस के लिए अब सारे देश जुट गए हैं.

इस में ज्यादा श्रेय व्लादिमीर जेलेंस्की को जाता है जिस ने देश छोडऩे से इंकार कर दिया और रूस साम्राज्य का पहले अंग रहते हुए भी अब हर सडक़, हर खेत, हर फैक्ट्री, हर घर, हर जंगल हर पहाड़ से लडऩे को देश को तैयार किया है. यूरोप ने जिस तेजी से रूस के हाथ पैर बांधने के लिए आॢथक प्रतिबंध लगा और जिस तत्परा से यूक्रेन को हथियारों का भंडार भेजना शुरू किया है, वह लगभग अद्भुत है.

यह एक देश की जनता की अपने अधिकारों की रक्षा की परीक्षा है और फिलहाल यह दिख रहा हैकियूरोप और एशिया में फैला विशाल रूस छोटे से यूक्रेन के आगे ढीला पड़ रहा है.

ये भी पढ़ें- पौराणिक ख्वाब

इतिहास में यह पहली बार नहीं हो रहा है. छोटेछोटे देशों ने अक्सर बड़े देशों को हराया है और अक्सर व छोटे देशों के राजाओं ने कमजोर किया जिन विशाल देशों को गुलाम भी बनाया है. सवाल यह होता है कि आप आम आदमी के हकों के लिए कितना लडऩा चाहते हैं या आप का दुश्मन कितना अपने हको के प्रति उदासीन हैं.

भारत एक क्लासिक उदाहरण है जहां मुट्ठी भर लोग दशकों नहीं सैंकड़ों साल बाहर से आकर राज करते रहे हैं. कई बार वे इसी मिट्टी में घुलमिल कर वैसे ही बन गए तो परिणाम उन्होंने झेला जो कुछ दशक या सदी पहले यहां के निवासियों ने झेला था.

यूक्रेन कोई धर्म राष्ट्र नहीं बन रहा था. वहां की जनता, जो कई दशकों को करनी तानाशाही शासन झेल चुकी थी, अब फिर से गुलामी का जीवन जीने को तैयार नहीं है. वे कठपुतली नहीं रहना चाहते. उन्हें एक कोमेडियन में एक कर्मठ हिम्मत वाला नेता मिल गया जो आर्मी का भी हिस्सा बन चुका है, जो दिलेर है, जो अपने घर का पता भी दुनिया को देने में नहीं हिचकता.

ये भी पढ़ें- यूक्रेन में हर घर बना लड़ाई का मैदान

यूक्रेन में रूसी समर्थक नहीं है. ऐसा नहीं कहा जा सकता है पर आज उन के मुंह और हाथ बंद हो गए है क्योंकि उन्हें एहसास हो गया है कि जनता के अधिकार एक बड़े देश, धर्म की धोंस से ज्यादा महत्व के हैं. यूरोप ने उन्हें पूरा सहयोग दिया है और यूक्रेनियों को न भूखे मरने दिया जा रहा न निहत्थे छोड़ा जा रहा. लोकतंत्र की बड़ी कीमत है और मंदिर और पूजापाठ के नाम पर जो समाज इसे बेच दे वह इंग्लैंड जैसे देश का गुलाम बनेगा ही, इस का न आॢथक विकास न वहां सामाजिक चेतना मिलेगी.

Holi के रंगों से आंखों को बचाएं, फॉलो करें ये टिप्स

होली रंगों का त्योहार है. रंग सूखे हों या गीले, उन्हें लगाए बिना होली अधूरी है. आप रंगों से अपना चेहरा रंगवाएं या दूसरे के चेहरे पर रंग लगाएं, इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि इस से आंखों को नुकसान न पहुंचे.

इन दिनों सिंथैटिक रंगों से होली खेली जाती है. इन में घातक रसायन होते हैं जो आंखों में जाने से गंभीर समस्या उत्पन्न कर सकते हैं और होली का सारा मजा किरकिरा हो सकता है. कईर् बार आंखों में रंगगुलाल चले जाने से उन में इतनी तीव्र जलन होती है कि ऐसा लगता है जैसे कुछ समय के लिए अंधे ही हो गए. आंखें खुलने का नाम नहीं लेतीं. वे लाल सुर्ख हो जाती हैं और सूज भी सकती हैं.

ये भी पढ़ें- रोमांस स्पेशल: खास दिन पर गर्लफ्रेंड को क्या गिफ्ट दें

1 चेहरा धोने से पहले सूखे कपड़े से पोछ लें…

होली खेलने के बाद शाम को जब आप स्नान करें तो सब से पहले अपनी आंखें बंद कर के बालों में कंघी कर लें या सूखे कपड़े से बाल झाड़पोंछ लें. चेहरा भी सूखे कपड़े से ठीक से पोंछ लें. इस के बाद जब आप बालों या चेहरे को साबुन व पानी से धोएं तो आंखों को कस कर बंद रखें ताकि रंग घुल कर आंखों में न जा सके.

2 रंग खेलते वक्त लगा लें चश्मा…

होली खेलते समय आप को चश्मा लगा लेना चाहिए ताकि आंखों का थोड़ा बचाव हो सके. यदि आप को नजर वाला चश्मा नहीं लगता है तो धूप का चश्मा भी लगाया जा सकता है. वैसे भी, जब आप को मालूम है कि सामने वाला आप के चेहरे या बालों में गीला-सूखा रंग डाले बगैर मानने वाला नहीं है, तो आप अपनी आंखों को कस कर बंद कर लें और उसे लगाने दें. अन्यथा रंगों से बचने की कोशिश में आप की आंखों में रंग चला जाएगा और परेशानी खड़ी हो जाएगी.

3 सड़कों पर हेलमेट का करें प्रयोग

यदि आप दोपहिया वाहन से जा रहे हैं तो हैलमेट लगा कर ही जाएं. बच्चे रंग या पानी से भरे गुब्बारे फेंकते हैं जो आंखों में घुस कर उन्हें चोटिल कर सकते हैं. इसी प्रकार, यदि आप कार से जा रहे हैं तो शीशे चढ़ा कर रखें वरना रंगभरे गुब्बारे लगने से आप की आईबौल या रेटिना क्षतिग्रस्त हो सकती है. गुब्बारे की मार इतनी जबरदस्त होती है कि आंखों की रोशनी जा भी सकती है.

ये भी पढ़ें- सनकी वृद्ध, क्या करें युवा?

4 कौन्टैक्ट लैंस न लगाएं

यदि आप कौन्टैक्ट लैंस लगाते हैं तो होली के दिन उस के बजाय चश्मा पहन लेना बेहतर है क्योंकि गुब्बारे से लैंस निकल सकता है.

5 डॉक्टर को दिखाए

यदि तमाम सावधानियां और सतर्कता बरतने के बावजूद आंखों में रंग चला ही जाए तो साफ, ठंडे पानी से उन्हें धोएं. एक बार नहीं, बारबार धोएं, इस से रंगों का प्रभाव कम हो कर जलन से राहत मिलेगी. इस के बाद नेत्र रोग विशेषज्ञ को दिखाना चाहिए. अपने मन से कोई भी लोशन, तेल या औइंटमैंट न लगाएं.

होली में सब से ज्यादा नुकसान दानेदार कण वाले रंगों से पहुंचता है. कौर्निया यानी आंखों की पुतली के लिए ये बेहद नुकसानदायक होते हैं क्योंकि इन में टौक्सिक यानी जहरीले पदार्थ होते हैं. इस से आंखों में तीव्र दर्द महसूस होता है. समय पर डाक्टर को नहीं दिखाने से आंखों में इन्फैक्शन या अल्सर भी हो सकता है.

Holi Special: सर्वस्व- क्या मां के जीवन में खुशियां ला पाई शिखा ?

बैठक में बैठी शिखा राहुल के खयालों में खोई थी. वह नहा कर तैयार हो कर सीधे यहीं आ कर बैठ गई थी. उस का रूप उगते सूर्य की तरह था. सुनहरे गोटे की किनारी वाली लाल साड़ी, हाथों में ढेर सारी लाल चूडि़यां, माथे पर बड़ी बिंदी, मांग में चमकता सिंदूर मानो सीधेसीधे सूर्य की लाली को चुनौती दे रहे थे. घर के सब लोग सो रहे थे, मगर शिखा को रात भर नींद नहीं आई. शादी के बाद वह पहली बार मायके आई थी पैर फेरने और आज राहुल यानी उस का पति उसे वापस ले जाने आने वाला था. वह बहुत खुश थी.

उस ने एक भरपूर नजर बैठक में घुमाई. उसे याद आने लगा वह दिन जब वह बहुत छोटी थी और अपनी मां के पल्लू को पकड़े सहमी सी दीवार के कोने में घुसी जा रही थी. नानाजी यहीं दीवान पर बैठे अपने बेटों और बहुओं की तरफ देखते हुए अपनी रोबदार आवाज में फैसला सुना रहे थे, ‘‘माला, अब अपनी बच्ची के साथ यहीं रहेगी, हम सब के साथ. यह घर उस का भी उतना ही है, जितना तुम सब का. यह सही है कि मैं ने माला का विवाह उस की मरजी के खिलाफ किया था, क्योंकि जिस लड़के को वह पसंद करती थी, वह हमारे जैसे उच्च कुल का नहीं था, परंतु जयराज (शिखा के पिता) के असमय गुजर जाने के बाद इस की ससुराल वालों ने इस के साथ बहुत अन्याय किया. उन्होंने जयराज के इंश्योरैंस का सारा पैसा हड़प लिया. और तो और मेरी बेटी को नौकरानी बना कर दिनरात काम करवा कर इस बेचारी का जीना हराम कर दिया. मुझे पता नहीं था कि दुनिया में कोई इतना स्वार्थी भी हो सकता है कि अपने बेटे की आखिरी निशानी से भी इस कदर मुंह फेर ले. मैं अब और नहीं देख सकता. इस विषय में मैं ने गुरुजी से भी बात कर ली है और उन की भी यही राय है कि माला बिटिया को उन लालचियों के चंगुल से छुड़ा कर यहीं ले आया जाए.’’

फिर कुछ देर रुक कर वे आगे बोले, ‘‘अभी मैं जिंदा हूं और मुझ में इतना सामर्थ्य है

ये भी पढ़ें- वक्त का पहिया: सेजल खुद पर ही क्यों शक करने लगी?

कि मैं अपनी बेटी और उस की इस फूल सी बच्ची की देखभाल कर सकूं… मैं तुम सब से भी यही उम्मीद करता हूं कि तुम दोनों भी अपने भाई होने का फर्ज बखूबी अदा करोगे,’’ और फिर नानाजी ने बड़े प्यार से उसे अपनी गोद में बैठा लिया था. उस वक्त वह अपनेआप को किसी राजकुमारी से कम नहीं समझ रही थी. घर के सभी सदस्यों ने इस फैसले को मान लिया था और उस की मां भी घर में पहले की तरह घुलनेमिलने का प्रयत्न करने लगी थी. मां ने एक स्कूल में अध्यापिका की नौकरी कर ली थी. इस तरह से उन्होंने किसी को यह महसूस नहीं होने दिया कि वे किसी पर बोझ हैं.

नानाजी एवं नानी के परिवार की अपने कुलगुरु में असीम आस्था थी. सब के गले में एक लौकेट में उन की ही तसवीर रहती थी. कोई भी बड़ा निर्णय लेने के पहले गुरुजी की आज्ञा लेनी जरूरी होती थी. शिखा ने बचपन से ही ऐसा माहौल देखा था. अत: वह भी बिना कुछ सोचेसमझे उन्हें मानने लगी थी. अत्यधिक व्यस्तता के बावजूद समय निकाल कर उस की मां कुछ वक्त गुरुजी की तसवीर के सामने बैठ कर पूजाध्यान करती थीं. कभीकभी वह भी मां के साथ बैठती और गुरुजी से सिर्फ और सिर्फ एक ही दुआ मांगती कि गुरुजी, मुझे इतना बड़ा अफसर बना दो कि मैं अपनी मां को वे सारे सुख और आराम दे सकूं जिन से वे वंचित रह गई हैं.

तभी खट की आवाज से शिखा की तंद्रा भंग हो गई. उस ने मुड़ कर देखा. तेज हवा के कारण खिड़की चौखट से टकरा रही थी. उठ कर शिखा ने खिड़की का कुंडा लगा दिया. आंगन में झांका तो शांति ही थी. घड़ी की तरफ देखा तो सुबह के 6 बज रहे थे. सब अभी सो ही रहे हैं, यह सोचते हुए वह भी वहीं सोफे पर अधलेटी हो गई. उस का मन फिर अतीत में चला गया…

जब तक नानाजी जिंदा रहे उस घर में वह राजकुमारी और मां रानी की तरह रहीं. मगर यह सुख उन दोनों के हिस्से बहुत दिनों के लिए नहीं लिखा था. 1 वर्ष बीततेबीतते अचानक एक दिन हृदयगति रुक जाने के कारण नानाजी का देहांत हो गया. सब कुछ इतनी जल्दी घटा कि नानी को बहुत गहरा सदमा लगा. अपनी बेटी व नातिन के बारे में सोचना तो दूर, उन्हें अपनी ही सुधबुध न रही. वे पूरी तरह से अपने बेटों पर आश्रित हो गईं और हालात के इस नए समीकरण ने शिखा और उस की मां माला की जिंदगी को फिर से कभी न खत्म होने वाले दुखों के द्वार पर ला खड़ा कर दिया.

ये भी पढ़ें- तलाक के बाद: क्या समीर उसकी गलतियों को माफ कर पाया

नानाजी के असमय देहांत और नानीजी के डगमगाते मानसिक संतुलन ने जमीनजायदाद, रुपएपैसे, यहां तक कि घर के बड़े की पदवी भी मामा के हाथों में थमा दी. अब घर में जो भी निर्णय होता वह मामामामी की मरजी के अनुसार होता. कुछ वक्त तक तो उन निर्णयों पर नानी से हां की मुहर लगवाई जाती रही, पर उस के बाद वह रस्म भी बंद हो गई. छोटे मामामामी बेहतर नौकरी का बहाना बना कर अपना हिस्सा ले कर विदेश में जा कर बस गए. अब बस बड़े मामामामी ही घर के सर्वेसर्वा थे.

मां का अपनी नौकरी से बचाखुचा वक्त रसोई में बीतने लगा था. मां ही सुबह उठ कर चायनाश्ता बनातीं. उस का और अपना टिफिन बनाते वक्त कोई न कोई नाश्ते की भी फरमाइश कर देता, जिसे मां मना नहीं कर पाती थीं. सब काम निबटातेनिबटाते, भागतेदौड़ते वे स्कूल पहुंचतीं.

कई बार तो शिखा को देर से स्कूल पहुंचने पर डांट भी पड़ती. इसी प्रकार शाम को घर लौटने पर जब मां अपनी चाय बनातीं, तो बारीबारी पूरे घर के लोग चाय के लिए आ धमकते और फिर वे रसोई से बाहर ही न आ पातीं. रात में शिखा अपनी पढ़ाई करतेकरते मां का इंतजार करती कि कब वे आएं तो वह उन से किसी सवाल अथवा समस्या का हल पूछे. मगर मां को काम से ही फुरसत नहीं होती और वह कापीकिताब लिएलिए ही सो जाती. जब मां आतीं तो बड़े प्यार से उसे उठा कर खाना खिलातीं और सुला देतीं. फिर अगले दिन सुबह जल्दी उठ कर उसे पढ़ातीं.

यदि वह कभी मामा या मामी के पास किसी प्रश्न का हल पूछने जाती तो वे हंस कर उस की खिल्ली उड़ाते हुए कहते, ‘‘अरे बिटिया, क्या करना है इतना पढ़लिख कर? अफसरी तो करनी नहीं तुझे. चल, मां के साथ थोड़ा हाथ बंटा ले. काम तो यही आएगा.’’

वह खीज कर वापस आ जाती. परंतु उन की ऐसी उपहास भरी बातों से उस ने हिम्मत न हारी, न ही निराशा को अपने मन में घर करने दिया, बल्कि वह और भी दृढ़ इरादों के साथ पढ़ाई में जुट जाती.

मामामामी अपने बच्चों के साथ अकसर बाहर घूमने जाते और बाहर से ही खापी कर आते. मगर भूल कर भी कभी न उस से न ही मां से पूछते कि उन का भी कहीं आनेजाने का या बाहर का कुछ खाने का मन तो नहीं? और तो और जब भी घर में कोई बहुत स्वादिष्ठ चीज बनती तो मामी अपने बच्चों को पहले परोसतीं और उन को ज्यादा देतीं. वह एक किनारे चुपचाप अपनी प्लेट लिए, अपना नंबर आने की प्रतीक्षा में खड़ी रहती.

सब से बाद में मामी अपनी आवाज में बनावटी मिठास भर के उस से बोलतीं, ‘‘अरे बिटिया तू भी आ गई. आओआओ,’’ कह कर बचाखुचा कंजूसी से उस की प्लेट में डाल देतीं. तब उस का मन बहुत कचोटता और कह उठता कि काश, आज उस के भी पापा होते, तो वे उसे कितना प्यार करते, कितने प्यार से उसे खिलाते. तब किसी की भी हिम्मत न होती, जो उस का इस तरह मजाक उड़ाता या खानेपीने को तरसता. तब वह तकिए में मुंह छिपा कर बहुत रोती. मगर फिर मां के आने से पहले ही मुंह धो कर मुसकराने का नाटक करने लगती कि कहीं मां ने उस के आंसू देख लिए तो वे बहुत दुखी हो जाएंगी और वे भी उस के साथ रोने लगेंगी, जो वह हरगिज नहीं चाहती थी.

एकाध बार उस ने गुरुजी से परिवार से मिलने वाले इन कष्टों का जिक्र करना चाहा, परंतु गुरुजी ने हर बार किसी न किसी बहाने से उसे चुप करा दिया. वह समझ गई कि सारी दुनिया की तरह गुरुजी भी बलवान के साथी हैं.

जब वह छोटी थी, तब इन सब बातों से अनजान थी, मगर जैसेजैसे बड़ी होती गई, उसे सारी बातें समझ में आने लगीं और इस सब का कुछ ऐसा असर हुआ कि वह अपनी उम्र के हिसाब से जल्दी एवं ज्यादा ही समझदार हो गई.

उस की मेहनत व लगन रंग लाई और एक दिन वह बहुत बड़ी अफसर बन गई. गाड़ीबंगला, नौकरचाकर, ऐशोआराम अब सब कुछ उस के पास था.

उस दिन मांबेटी एकदूसरे के गले लग कर इतना रोईं, इतना रोईं कि पत्थरदिल हो चुके मामामामी की भी आंखें भर आईं. नानी भी बहुत खुश थीं और अपने पूरे कुनबे को फोन कर के उन्होंने बड़े गर्व से यह खबर सुनाई. वे सभी लोग, जो वर्षों से उसे और उस की मां को इस परिवार पर एक बोझ समझते थे, ‘ससुराल से निकाली गई’, ‘मायके में आ कर पड़ी रहने वाली’ समझ कर शक भरी निगाहों से देखते थे और उन्हें देखते ही मुंह फेर लेते थे, आज वही सब लोग उन दोनों की प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे. मामामामी ने तो उस के अफसर बनने का पूरा क्रैडिट ही स्वयं को दे दिया था और गर्व से इतराते फिर रहे थे.

समय का चक्र मानो फिर से घूम गया था. अब मां व शिखा के प्रति मामामामी का रवैया बदलने लगा था. हर बात में मामी कहतीं, ‘‘अरे जीजी, बैठो न. आप बस हुकुम करो. बहुत काम कर लिया आप ने.’’

मामी के इस रूप का शिखा खूब आनंद लेती. इस दिन के लिए तो वह कितना तरसी थी.

जब सरकारी बंगले में जाने की बात आई, तो सब से पहले मामामामी ने अपना सामान बांधना शुरू कर दिया. मगर नानी ने जाने से मना कर दिया, यह कह कर कि इस घर में नानाजी की यादें बसी हैं. वे इसे छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगी. जो जाना चाहे, वह जा सकता है. मां नानी के दिल की हालत समझती थीं. अत: उन्होंने भी जाने से मना कर दिया. तब शिखा ने भी शिफ्ट होने का प्रोग्राम फिलहाल टाल दिया.

इसी बीच एक बहुत ही सुशील और हैंडसम अफसर, जिस का नाम राहुल था की तरफ से शिखा को शादी का प्रस्ताव आया. राहुल ने खुद आगे बढ़ कर शिखा को बताया कि वह उसे बहुत पसंद करता है और उस से शादी करना चाहता है. शिखा को भी राहुल पसंद था.

राहुल शिखा को अपने घर, अपनी मां से भी मिलाने ले गया था. राहुल ने उसे बताया कि किस प्रकार पिताजी के देहांत के बाद मां ने अपने संपूर्ण जीवन की आहुति सिर्फ और सिर्फ उस के पालनपोषण के लिए दे दी. घरघर काम कर के, रातरात भर सिलाईकढ़ाईबुनाई कर के उसे इस लायक बनाया कि आज वह इतना बड़ा अफसर बन पाया है. उस की मां के लिए वह और उस के लिए उस की मां दोनों की बस यही दुनिया थी. राहुल का कहना था कि अब उन की इस 2 छोरों वाली दुनिया का तीसरा छोर शिखा है, जिसे बाकी दोनों छोरों का सहारा भी बनना है एवं उन्हें मजबूती से बांधे भी रखना है.

यह सब सुन कर शिखा को महसूस हुआ था कि यह दुनिया कितनी छोटी है. वह समझती थी कि केवल एक वही दुखों की मारी है, मगर यहां तो राहुल भी कांटों पर चलतेचलते ही उस तक पहुंचा है. अब जब वे दोनों हमसफर बन गए हैं, तो उन की राहें भी एक हैं और मंजिल भी.

राहुल की मां शिखा से मिल कर बहुत खुश हुईं. उन की होने वाली बहू इतनी सुंदर, पढ़ीलिखी तथा सुशील है, यह देख कर वे खुशी से फूली नहीं समा रही थीं. झट से उन्होंने अपने गले की सोने की चेन उतार कर शिखा के गले में पहना दी और फिर बड़े स्नेह से शिखा से बोलीं, ‘‘बस बेटी, अब तुम जल्दी से यहां मेरे पास आ जाओ और इस घर को घर बना दो.’’

मगर एक बार फिर शिखा के परिवार वाले उस की खुशियों के आड़े आ गए. राहुल दूसरी जाति का था और उस के यहां मीटमछली बड़े शौक से खाया जाता था जबकि शिखा का परिवार पूरी तरह से पंडित बिरादरी का था, जिन्हें मीटमछली तो दूर प्याजलहसुन से भी परहेज था.

घर पर सब राहुल के साथ उस की शादी के खिलाफ थे. जब शिखा की मां माला ने शिखा को इस शादी के लिए रोकना चाहा तो शिखा तड़प कर बोली, ‘‘मां, तुम भी चाहती हो कि इतिहास फिर से अपनेआप को दोहराए? फिर एक जिंदगी तिलतिल कर के इन धार्मिक आडंबरों और दुनियादारी के ढकोसलों की अग्नि में अपना जीवन स्वाहा कर दे? तुम भी मां…’’ कहतेकहते शिखा रो पड़ी.

शिखा के इस तर्क के आगे माला निरुत्तर हो गईं. वे धीरे से शिखा के पास आईं और उस का सिर सहलाते हुए रुंधी आवाज में बोलीं, ‘‘मुझे माफ कर देना मेरी प्यारी बेटी. बढ़ती उम्र ने नजर ही नहीं, मेरी सोचनेसमझने की शक्ति को भी धुंधला दिया था. मेरे लिए तुम्हारी खुशी से बढ़ कर और कुछ भी नहीं… हम आज ही यह घर छोड़ देंगी.’’

ये भी पढ़ें- Holi Special: अब वैसी होली कहां

जब मामामामी को पता लगा कि शिखा का इरादा पक्का है और माला भी उस के साथ है, तो सब का आक्रोश ठंडा पड़ गया. अचानक उन्हें गुरुजी का ध्यान आया कि शायद उन के कहने से शिखा अपना निर्णय बदल दे.

बात गुरुजी तक पहुंची तो वे बिफर उठे. जैसे ही उन्होंने शिखा को कुछ समझाना चाहा, शिखा ने अपने मुंह पर उंगली रख कर उन्हें चुप रहने का इशारा किया और फिर अपने गले में पड़ा उन की तसवीर वाला लौकेट उतार कर उन के सामने फेंक दिया.

सब लोग गुस्से में कह उठे, ‘‘यह क्या पागलपन है शिखा?’’

गुरुजी भी आश्चर्यमिश्रित रोष से उसे देखने लगे.

इस पर शिखा दृढ़ स्वर में बोली, ‘‘बहुत कर ली आप की पूजा और देख ली आप की शक्ति भी, जो सिर्फ और सिर्फ अपना स्वार्थ देखती है. मेरा सर्वस्व अब मेरा होने वाला पति राहुल है, उस का घर ही मेरा मंदिर है, उस की सेवा आप के ढोंगी धर्म और भगवान से बढ़ कर है,’’ कहते हुए शिखा तेजी से उठ कर वहां से निकल गई.

शिखा के इस आत्मविश्वास के आगे सब ने समर्पण कर दिया और फिर खूब धूमधाम से राहुल के साथ उस का विवाह हो गया.

अचानक बादलों की गड़गड़ाहट से शिखा की आंख खुल गई. आंगन में लोगों की चहलकदमी शुरू हो गई थी. आंखें मलती हुई वह उठी और सोचने लगी, यहां दीवान पर लेटेलेटे उस की आंख क्या लगी वह तो अपना अतीत एक बार फिर से जी आई.

‘राहुल अब किसी भी वक्त उसे लेने पहुंचने ही वाला होगा,’ इस खयाल से शिखा के चेहरे पर एक लजीली मुसकान फैल गई.

सच्ची श्रद्धांजलि: भाग 3

Writer- Sandhya

वे चली गईं. तब मैं ने कटाक्ष करते हुए राजेश से कहा, ‘‘खाना हमारी पसंद से बनेगा और शादी के समय हमारी पसंद कहां गई थी? हुंह, बात बनाना भी कोई इन से सीखे. कितनी बेशर्मी से नाटक जारी है,’’ कहते हुए मैं ने बेमन से कागज खोला, यह तो मम्मी का पत्र था :

प्यारी प्यारी निम्मो,

आज मैं तुझ से अपनी हेमेश की कसम तोड़ने की इजाजत लेते हुए पुनर्विवाह की बात कर रही हूं. आशा करती हूं, मेरी अंतिम इच्छा पूरी करने से ‘न’ नहीं करेगी. मेरी तो विदाई की वेला आ गई है. तुझ से, हेमेश से, बेटी रिया, राजेश, रिंकू सभी से इच्छा न होते हुए भी विदा तो मुझे होना ही पड़ेगा.

एक दिन मैं ने हेमेश और डाक्टर की बातें सुन ली थीं. मुझे अपनी बीमारी का हाल मिल गया था. मैं अच्छी तरह समझ चुकी थी कि मैं चंद दिनों की मेहमान हूं. मैं ने सब से नजर बचा कर यह पत्र लिखा क्योंकि अपनी अंतिम इच्छा बताना जरूरी था. मन की बात तुम लोगों को बताए बिना भी तो मेरी आत्मा को शांति न मिल सकेगी.

मेरे बाद हेमेश एकदम अकेले हो जाएंगे. तू भी अब रिटायर होने वाली है. मेरे हेमेश को अपना लेना. दोनों एकदूसरे का सहारा बन जाना. हेमेश को तो जानती ही है, अपनी सेहत के प्रति कितने लापरवाह रहते हैं, तू रहेगी तो उन्हें वक्त पर हर चीज मिलेगी. प्यारी निम्मो, हेमेश की साली साहिबा से बीवी साहिबा बन जाना.

रिया बेटी मेरे जाने से बहुत दुखी होगी. फिर धीरेधीरे रियाराजेश अपनी जिंदगी, अपनी गृहस्थी में मन लगा लेंगे. उन की आंटी से उन की मम्मी बन जाना. मेरी बेटी का मायका पूर्ववत बना रहेगा.

थक गई हूं, अब लिखा नहीं जा रहा है. बोल देती हूं, तुम दोनों की शादी ही तुम दोनों की तरफ से मेरे लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

तेरी,

हेमू

पत्र पढ़ कर मेरी आंखों से आंसू गिरने लगे. राजेश ने भी मेरे साथ ही पत्र पढ़ लिया था. उन्होंने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया और बोले, ‘‘चलो, सारी गलतफहमियां दूर हो गईं. चल कर देखें मम्मी क्या कर रही हैं?’’

हम लोग किचन में गए. देखा, निर्मला आंटी खाना बनाने में व्यस्त थीं. पापा भी किचन में ही थे. वे सलाद काट रहे थे. मैं निर्मला आंटी के पास गई तथा बोली, ‘‘क्या बना रही हैं, मम्मी?’’

निर्मला आंटी की आंखें डबडबा आईं. उन्होंने प्यार से मेरा हाथ अपने हाथों में ले लिया फिर धीरे से कहा, ‘‘हेमेश और मेरा शादी करने का एकदम मन नहीं था. हम ने कभी एकदूसरे को इस नजर से देखा ही नहीं था लेकिन हेमू की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए शादी करनी पड़ी. मंदिर में तुम्हारे बूआ, फूफा की उपस्थिति में हम ने एकदूसरे को माला पहनाई, हेमेश ने मेरी सूनी मांग में सिंदूर भर दिया, हो गई शादी. तुम्हारी नीता बूआ ने मिठाई खिला हमारा मुंह मीठा कराया.’’

मैं चुपचाप उन्हें देखे जा रही थी.

उन्होंने आगे कहा, ‘‘तुम्हें बताने की हिम्मत मुझ में और हेमेश में न थी.

तुम्हें बताने की जिम्मेदारी नीता ने ली, उस ने तुम्हें सारी बातें बताने की कोशिश की, लेकिन तुम ने उस के फोन काट दिए, बात नहीं सुनी उस की. वैसे बेटा, तुम ने भी वही किया जो एक बेटी अपनी मम्मी को खोने के बाद इस तरह की खबर सुन कर करेगी, हमें तुम से…’’

मैं ने बीच में ही निर्मला आंटी की बात काटते हुए कहा, ‘‘आप लोगों से माफी मांगने लायक तो नहीं हूं, लेकिन फिर भी हो सके तो मुझे माफ कर दीजिए. सौरी मम्मी, सौरी पापा.’’

मम्मीपापा दोनों ने आगे बढ़ कर मुझे गले से लगा लिया. मैं ने देखा राजेश, रिंकू को गोद में लिए पूरी तरह संतुष्ट नजर आ रहे थे. वे भी मुझ से नजर मिलते ही मुसकरा दिए. इस दौरान एक विचार दिल और दिमाग को लगातार मथ रहा था कि दो उदास और तन्हा प्राणियों को एक कर जीने का मौका देना क्या हमारा कर्तव्य नहीं बनता है? इस विचार के आते ही मम्मी के प्रति श्रद्धा से सिर झुक गया.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें