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आर्यन का होगा भयंकर एक्सिडेंट! क्या बचा पाएगी इमली?

टीवी सीरियल ‘इमली’ में  इन दिनों हाई वोल्टेज ड्रामा चल रहा है. हाल ही में शो में दिखाया गया कि इमली और आर्यन ने शादी की. अब इमली आर्यन की पत्नी बन चुकी है. लेकिन शादी के बाद भी इमली आर्यन के साथ नहीं रहना चाहती है. शो के आने वाले एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते हैं, शो के नए एपिसोड के बारे में.

सीरियल ‘इमली’ में आपने देखा कि शादी के बाद इमली और आर्यन के लिए रिसेप्शन पार्टी रखा गया. जिसमें शहर के बड़े लोग हिस्सा लेते हैं. तो दूसरी तरफ आर्यन इमली को अपने साथ रिसेप्शन पार्टी में चलने के लिए कहता है. शो में आप ये भी देखेंगे कि आर्यन इमली की मांग में सिंदूर भरेगा. आर्यन कहेगा कि इमली अब उसकी पत्नी है.

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तो वहीं इमली आर्यन को सबक सिखाने के लिए नौकरानी बनेगी. रिसेप्शन पार्टी में इमली को देखकर सब हैरान रह जाएंगे. पार्टी में सभी मेहमान का एक ही सवाल होगा, आर्यन ने एक नौकरानी से शादी क्यों की? इसी बीच आर्यन भी सफाई में इमली की मदद करेगा.

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तो दूसरी तरफ पार्टी में प्रीता इमली की खूब बेइज्जती करेगी. इमली भी उसकी बोलती बंद कर देगी. वहीं बड़ी मां भी खड़ी होकर मजे से तमाशा देखेगी. पार्टी खत्म होने के बाद आर्यन अपने काम पर निकल जाएगा.

 

शो में आप देखेंगे कि रास्ते में आर्यन का भयंकर एक्सीडेंट होगा. उसकी जान खतरे में होगी. ऐसे में शो में ये देखना होगा कि इमली कैसे आर्यन की जान बचाएगी?

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झटका- भाग 3: निशा के दरवाजे पर कौन था?

निशा का सामना करने के लिए संगीता अगली शाम जींस और लाल टीशर्ट पहन कर बड़े आकर्षक ढंग से तैयार हुई. इस तरह के कपड़ों पर पहले उस के सासससुर चूंचूं करते थे पर उस दिन सास ने भी कुछ नहीं कहा.

अंजलि ने स्मार्ट और स्लिम दिखाने के लिए उस की प्रशंसा की, तो वह खुश हो गई. लेकिन अगले ही पल उस की आंखों में गंभीरता और कठोरता के भाव लौट आए.

सारे रास्ते संगीता निशा को कोसती रही. उस के बारे में संगीता का गुस्सा पलपल बढ़ता गया था.

निशा के फ्लैट की बहुमंजिली इमारत में घुसने से पहले अचानक अंजलि ने पूछा, ‘‘भाभी, आप सिर्फ निशा को ही क्यों दोषी मान रही हो? क्या भैया बराबर के दोषी नहीं हैं?’’

‘‘उन से भी मैं आज निबटूंगी,’’ संगीता का गुस्सा और ज्यादा बढ़ गया.

‘‘वैसे, एक बात कहूं, भाभी?’’

‘‘हां, कहो.’’

‘‘अगर आप ने ढीली पड़ कर जिंदगी के प्रति उत्साह न खोया होता, तो शायद समस्या जन्म ही न लेती.’’

‘‘तुम्हारा ऐसा कहना सही नहीं है. मुझे अपने बच्चे को खो देने के आघात ने दुखी और उदास किया था. अब मैं निकल आई हूं न उस सदमे से. तुम्हारे भैया का कोई अधिकार नहीं है कि मुझे संभालने के बजाय वे किसी दूसरी औरत से टांका भिड़ा लें,’ संगीता ने चिढ़ कर जवाब दिया.

‘‘भैया के संभालने से तो आप नहीं संभलीं, पर निशा की उन के जीवन में मौजूदगी ने आप को जरूर फिर से चुस्तदुरुस्त बनवा दिया है. आज उस से तोबा बुलवा देना, भाभी. पर एक बात ध्यान  में जरूर रखना.’’

‘‘कौन सी बात?’’ अंजलि की बात पसंद न आने के कारण संगीता नाराज नजर आ रही थी.

‘‘निशा वाला चक्कर खत्म हो जाए, तो फिर से बेडौल और जिंदगी की खुशियों के प्रति उदासीन मत हो जाना.’’

‘वैसा अब कभी नहीं होगा,’’ संगीता का स्वर दृढ़ता से भरा था.

‘‘गुड, आओ, अब इस निशा की खबर लें. इस के सिर से प्यार का भूत उतारें.’’ संगीता का हाथ पकड़ कर अजीब से अंदाज में मुसकरा रही अंजलि उस बहुमंजिली इमारत में प्रवेश कर गई.

बेचारी संगीता को अपने मन की भड़ास निशा के ऊपर निकालने का मौका ही नहीं मिला.

अपने फ्लैट का दरवाजा निशा ने खोला था. उस के बेहद सुंदर, मुसकराते चेहरे पर दृष्टि डालते ही संगीता के मन को तेज धक्का लगा.

‘भाभी, यही निशा है. अब इसे छोडऩा मत.’’ उन का परिचय करा कर अंजलि अचानक हंसने लगी, तो संगीता तेज उलझन का शिकार बन गई.

‘‘पहली मुलाकात में यह छोडऩेछुड़ाने की बात मत करो, अंजलि. शादी की सालगिरह की ढेर सारी शुभकामनाएं संगीता,’’ निशा ने आगे बढ़ कर संगीता को गले लगा लिया.

‘‘आज मेरी शादी की सालगिरह नहीं है,’’ संगीता ने तीखे लहजे में उसे जानकारी दी और झटके से उस से अलग भी हो गई.

‘‘इतने सारे लोग गलत हो सकते हैं क्या?’’ संगीता का हाथ पकड़ कर निशा उसे ड्राइंगहौल के दरवाजे तक ले आई.

ड्राइंगहौल में अपने सासससुर, विवेक के खास दोस्तों व उन के परिवारों के साथसाथ अपने पति को तालियां बजा कर अपना स्वागत करते देख संगीता हैरान हो उठी.

‘‘बहू, तिथियों के हिसाब से आज ही है तुम्हारे विवाह की वर्षगांठ, मुबारक हो,’’ संगीता की सास ने उसे गले लगा कर आशीर्वाद दिया.

विवेक के पास आ कर उस के हाथ थाम लिए. चारों तरफ से उन पर शुभकामनाओं की बौछार होने लगी.

‘‘इन दोनों ने मिल कर हमें बुद्धू बनाया है, संगीता,’’ बहुत प्रसन्न नजर आ रहे विवेक ने अंजलि और निशा की तरफ उंगली उठाई.

‘‘संगीता, मैं अंजलि की सब से पक्की सहेली रितु की बड़ी बहन निशा हूं. ये मेरे पति अरुण हैं और कुदरत की सौगंध खा कर कहती हूं कि मेरा कोई प्रेमी नहीं है.’’ निशा की इस बात पर सभी ने जोरदार ठहाका लगाया.

‘‘यह अंजलि की बच्ची डायरैक्टर थी सारे नाटक की. मेरी कमीज पर सैंट लगाना, मेरी जेब में पिक्चर की कटी टिकटें रखना जैसे शक पैदा करने वाले काम इसी के थे. शाम तक मुझे भी अंधेरे में रखा था इस ने,’’ विवेक ने अंजलि की चोटी को हंसते हुए जोर से एक बार खींचा.

‘‘उई,’’ अंजलि चिल्लाने के बाद शरारती ढंग से मुसकराई, ‘‘भैया, यह हमारे नाटक का ही फल है कि आज भाभी दुलहन जैसी आकर्षक लग रही हैं. निशा को और मुझे तो आप को बढिया सा ईनाम देना चाहिए.’’

‘‘ईनाम के साथसाथ धन्यवाद भी लो,’’ विवेक ने अंजलि और निशा के गाल पर प्यारभरी चपत लगाने के बाद आंखों से हार्दिक धन्यवाद भी दिया.

‘‘थैंक यू, पर तुम दोनों हो बड़ी शैतान. खूब तंग किया है मुझे तुम्हारे नाटक ने,’’ संगीता ने बारीबारी से दोनों को गले लगाया.

‘‘भाभी, मेरी एक बात का बुरा तो नहीं मानोगी?’’ निशा ने शरारती अंदाज में सवाल किया.

‘‘नहीं, आज तो तुम्हारे सौ खून माफ हैं.’’

‘‘देखिए, ‘मोटी भैंस’ को छरहरे बदन वाली हिरणी बनाने के लिए नाटक तो धांसू करना जरूरी था न,” निशा अपनी यह बात कह कर विवेक के पीछे छिप गई. सब को दिल खोल कर हंसता देख, संगीता का गुस्सा उठने से पहले ही खो गया. वह प्यार से विवेक को निहारती, उस से और सट कर खड़ी हो, प्रसन्न अंदाज में मुसकराने लगी.

मीठी छुरी- भाग 1: कौन थी चंचला?

Writer- Reeta Kumari

चंचला भाभी के स्वभाव में जरूरत से कुछ ज्यादा मिठास थी जो शुरू से ही मेरे गले कभी नहीं उतरी, लेकिन घर का हर सदस्य उन के इस स्वभाव का मुरीद था. वैसे भी हर कोई चाहता है कि उस के घर में गुणी, सुघड़, सब का खयाल रखने वाली और मीठे बोल बोलने वाली बहू आए. हुआ भी ऐसा ही. चंचला भाभी को पा कर मां और बाबूजी दोनों निहाल थे, बल्कि धीरेधीरे चंचला भाभी का जादू ऐसा चला कि मां और बाबूजी नवीन भैया से ज्यादा उन की पत्नी यानी चंचला भाभी को प्यार और मान देने लगे. कभी बुलंदियों को छूने का हौसला रखने वाले, प्रतिभाशाली और आकर्षक व्यक्तित्व वाले नवीन भैया अपनी ही पत्नी के सामने फीके पड़ने लगे.

मेरे  4 भाईबहनों में सब से बड़े थे मयंक भैया, फिर सुनंदा दी, उस के बाद नवीन भैया और सब से छोटी थी मैं. हम  चारों भाईबहनों में शुरू से ही नवीन भैया पढ़ने में सब से होशियार थे. इसलिए घर के लोगों को भी उन से कुछ ज्यादा ही आशाएं थीं. आशा के अनुरूप, नवीन भैया पहली बार में ही भारतीय प्रशासनिक सेवा की मुख्य लिखित परीक्षा में चुन लिए गए और उस दौरान मौखिक परीक्षा की तैयारियों में जुटे हुए थे, जब एक शादी में उन की मुलाकात चंचला भाभी से हुई.

निम्न  मध्यवर्गीय परिवार की साधारण से थोड़ी सुंदर दिखने वाली चंचला भाभी को नवीन भैया में बड़ी संभावनाएं दिखीं या वाकई प्यार हो गया, किसे मालूम, लेकिन नवीन भैया उन के प्यार के जाल में ऐसे फंसे कि उन्होंने अपना पूरा कैरियर ही दांव पर लगा दिया. उन से शादी करने की ऐसी जिद ठान ली कि उस के आगे झुक कर उन की मौखिक परीक्षा के तुरंत बाद उन की शादी चंचला भाभी से कर दी गई.

शादी के बाद भाभी ने घर वालों से बहुत जल्द अच्छा तालमेल बना लिया, लेकिन नवीन भैया को पहला झटका तब लगा जब भारतीय प्रशासनिक सेवा का फाइनल रिजल्ट आया. आईएएस तो दूर की बात उन का तो पूरी लिस्ट में कहीं नाम नहीं था. अब उन्हें अपना सपना टूटता नजर आया, वे चंचला भाभी को मांबाबूजी के सुपुर्द कर नए सिरे से अपनी पढ़ाई शुरू करने दिल्ली चले गए.

नवीन भैया भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में 3 बार शामिल हुए. हर बार असफल रहे. भैया हतप्रभ थे. बारबार की इस असफलता ने उन के आत्मविश्वास को जड़ से हिला दिया.

जिन नौकरियों को कभी नवीन भैया ने पा कर भी ठोकर मार दी थी, अब उन्हीं को पाने के लिए लालायित रहते, कोशिश करते पर हर बार असफलता हाथ आती. जब किसी काम को  करने से पहले ही आत्मविश्वास डगमगाने लगे तो सफलता प्राप्त करना कुछ ज्यादा ही मुश्किल हो जाता है. उन के साथ यही हो रहा था.

नवीन भैया पटना लौट आए थे. यहां भी वे नौकरी की तलाश में लग गए, कहीं कुछ हो नहीं पा रहा था. बाबूजी उन का आत्मविश्वास बढ़ाने के बदले उन्हें हमेशा निकम्मा, कामचोर और न जाने क्याक्या कहते रहते.

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प्रतिभाशाली लोगों को चाहने वालों की कमी नहीं होती और उन से ईर्ष्या करने वाले भी कम नहीं होते. होता यह है कि जब कोई प्रतिभाशाली व्यक्ति कामयाबी की राह नहीं पकड़ पाता तो उस के चाहने वाले उस से मुंह मोड़ने लगते हैं और ईर्ष्या करने वाले ताने कसने का कोई मौका नहीं छोड़ते.

नवीन भैया से जलने वाले रिश्तेदारों और पड़ोसियों को भी मौका मिल गया उन पर तरहतरह के व्यंग्यबाण चलाते रहने का. उन की असफलता से आहत उन के अपने भी उन्हें जबतब जलीकटी सुनाने लगे. पासपड़ोस के लोग तो अकसर उन्हें कलैक्टर बाबू कह उन के जले पर नमक छिड़कते, जिसे सुन एक बार नवीन भैया तो मरनेमारने पर उतारू हो गए थे. जब बाबूजी को इस घटना के बारे में मालूम हुआ तो वे क्रोध में अंधे हो उन्हें बेशर्म और नालायक जैसे अपशब्दों से नवाजते हुए मारने तक दौड़ पड़े थे.

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लोकतांत्रिक हक

रूस यूक्रेन युद्ध एक छोटे देश के अस्तित्व की लड़ाई का ही मामला नहीं है, इस का व्यापक असर हर समाज पर पड़ेगा जैसा द्वितीय विश्व युद्ध का पड़ा था. यह लड़ाई एक छोटे देश के एक विशाल देश की फौज के सामने खड़े होने की हिम्मत की है. इसका संदेश है कि हर देश का नागरिक अगर अपनी सही बात को मनवाना चाहता है या अपने हकों की रक्षा करना चाहता है तो उसे तन कर सब कुछ जोखिम में डाल कर अड़ जाना चाहिए.

यूक्रेन यदि 20 मार्च को सरेंडर कर देता और कहना कि यह तो उस का भाग्य है तो रूस अब तक सरकार बदल चुका होता और उस के टैंक पाटकिया, लिथूनिया, कजागिस्तान, किॢगस्तान की ओर बढ़ रहे होते. यूक्रेन की जनता के घर बचे होते, 30-35 लाख लोग देश छोड़ कर पनाह नहीं ले रहे होते पर एक यूक्रेन विशाल जेल में बदल चुका होता जिस के सारे 4 करोड़ निवासी 9 लाख की रूसी सेना के गुलाम होते.

हमारे अपने देश में क्या होता रहा है. हर संघर्ष में हर हक के लिए हमें यही पाठ पढ़ाया गया है कि आप को वही मिलेगा जो आप के भाग्य में है. गीता बारबार यही कहती है कि हर पल आप का पूर्व निर्धारित है. आप जो चाहे कर लें आप का वर्तमान तो आप के पिछले जन्म के कर्मों से क्या है, हमारी आज की सरकार हर मौके पर कांग्रेस को कोसती है कि उस के कर्मों के फल भारतीय जनता पार्टी की सरकार को भोगने पड़ रहे हैं. व्लादिमीर जेलेंस्की ने न इतिहास का नाम लिया न ईश्वर का. उस ने सिर्फ कहा कि हमें अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करनी है, जान पर खेल कर. कहीं कम साधन होने पर भी वह रूस से भिड़ गया. पूरा देश उस के पीछे हो गया. दिनों में पूरा यूरोप और अमेरिका उस के समर्थन में खड़ा हो गया.

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यूक्रेन को तुरंत सैनिक शस्त्र मिलने लगे. खाना दवाइयां मिलने लगीं. रूस पर आॢथक प्रतिबंध लग गए. लोकतंत्र की रक्षा यानी हर नागरिक के हकों की रक्षा तभी हो सकती है जब अपने हकों के लिए खड़ा होने का जोखिम लिया जाए और यह पाठ जेलेंस्की ने पढ़ा दिया.

रूस यूक्रेन युद्ध ने यह भी जता दिया है कि रूसी भी पश्चिमी देश जो उत्पादन करते हैं, नारेबाजी नहीं, जो व्यक्ति के हकों का सम्मान करते हैं, तानाशाही का नहीं, जो अपने यहां विविधता अपनाते हुए और्थोडोक्स क्रिश्चियन होते हुए भी एक ज्यू को राष्ट्रपति बनाने की हिम्मत रखते हैं, वे हकों का लाभ जानते हैं, जो समाज अपने चर्च के लिए नहीं अपने लोकतांत्रित हकों के लिए जान जोखिम में डालते हैं, उन्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं.

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यूक्रेन में चर्चों में घंटे नहीं बजे, पादरियों के प्रवचन नहीं हुए, चर्च को दान देना शुरू नहीं हुआ, सब ने मिल कर विशाल रूस से 2 हाथ करने का फैसला किया और हर सडक़ को रोका गया, हरहाल में बमों की बचने की फैक्ट्री बना डाला गया. हर टैंक की मोलोटोव कोकटेक या शराब की जलती बोतल का सामना करना पड़ा. शहर तहसनहस हो गए है पर दमखम पचासों मंजिल और ऊंचा हो गया है.

यूक्रेन जीने या हारे, रूस को एक सबक मिल गया है. रूसियों को यूक्रेन पर आक्रमण पर उसी तरह बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी जैसे अफगानिस्तान की जनता को कट्टरपंथी इस्लामी तालिबानी शासकों के घर में और सिर पर बैठाने की पड़ रही है. रूसी अपने धाॢमक राजनीतिक तानाशाह के मनमाने फैसले का फल भोगेंगे, अफगान (और उस जैसे और जैसे बहुत दूसरे देश के निवासी) अपने धाॢमक तानाशाहों के फल भोग रहे हैं. फल पिछले जन्म के कर्मों से नहीं इसी जन्म के कर्मों के फल से मिलता है. यूक्रेन का यह पाठ समझ लें.

माफी- भाग 3: क्या सुमन भाभी के मुस्कुराहट के पीछे जहर छिपा था?

राकेश और सुमन का गुरुवार की सुबह सहारनपुर लौटने का कार्यक्रम बना. राकेश के अंदर कोई गंभीर बीमारी नहीं पनप रही है, इस बात की खुशी सुमन भाभी को बहुत थी. इसी कारण उन्होंने सब को बाहर खाना खिलाने की दावत दे डाली. जिस होटल में जाने का कार्यक्रम बना वह बहुत महंगा होटल था.

‘‘भाभी, इतना खर्चा करने की क्या जरूरत है? आसपास के होटलों में भी अच्छा खाना कम खर्चे में उपलब्ध हो जाएगा,’’ अंजलि बोली. वह उस की खुशी में शामिल होने से बचना चाहती थी.

‘‘अंजलि, पैसा खर्च कर के अगर इंसान अपनों के साथ कुछ घडि़यां हंसतेमुसकराते गुजारने में सफल हो जाता है तो यह महंगा सौदा नहीं कहलाता. तुम्हारे परिवार से ज्यादा हमारे करीब और कौन हो सकता है? आज मेरी खुशियों में अगर तुम भी दिल से शामिल हो जाओगी तो मैं तुम्हारी बहुत आभारी रहूंगी,’’ कहते हुए सुमन की आंखों में आंसू छलक आए.

‘‘मैं ने एक बात कही थी, साथ चलने से इनकार नहीं किया है,’’ कह कर अंजलि तैयार होने के लिए अपने शयनकक्ष में चली गई.

सुमन की आंखों में आंसू देख कर अंजलि उलझन का शिकार हो गई थी. उन आंसुओं में बनावटीपन या नाटक की झलक अंजलि को नजर नहीं आई थी.

सुमन भाभी के दिल में ऐसा क्या छिपा है जो उन की आंखों में आंसू ले आया? इस राज को हल कर पाने में अंजलि बहुत सोचविचार करने के बाद भी असफल रही.

सुमन की आंखों में आए आंसू देख कर अंजलि को अपने अंदर कुछ परिवर्तन आया जरूर महसूस हुआ. सुमन की जो खराब छवि आज तक उस के दिलोदिमाग में बसी थी उस में कुछ सुधार लाने में वे आंसू सफल रहे थे. उन आंसुओं के कारण वह अंजलि को ज्यादा मानवीय, कोमल व अपने दिल के करीब प्रतीत हुई थी.

वर्षों बाद उस रात सुमन की उपस्थिति में अंजलि कुछ सहज हो कर उन से हंसबोल पाई. मन के कुछ विश्रामपूर्ण अवस्था में होने के कारण ही वह होटल में जा कर खाना खाने के कार्यक्रम का पूरा लुत्फ उठा पाई थी.

अगले दिन सुबह विदा लेने से पहले सुमन ने शिखा व सोनू को खूब प्यार कर के 100-100 रुपए दिए और बोलीं, ‘‘तुम अब परीक्षाओं के बाद सहारनपुर रहने के लिए आना. वहां खूब मजे करेंगे छुट्टियों में,’’ अंजलि को गले लगा कर सुमन ने यह निमंत्रण 2-3 बार दोहराया.

तिपहिया स्कूटर में बैठ कर बसअड्डे जाने से पहले सुमन भाभी ने अंजलि के कान में भावुक स्वर में कहा, ‘‘इस बार मैं तुम से बहुतकुछ कहने की सोच कर आई थी, लेकिन कुछ भी कहने का साहस नहीं जुटा पाई. अपने दिल की बात एक पत्र में लिख कर तुम्हारी ड्रैसिंग टेबल की दराज में रख आई हूं. उसे पढ़ कर अगर तुम मुझ मूर्ख को माफ कर दोगी तो मुझे बहुत शांति मिलेगी.’’

सुमन की आंखों से बहने वाले आंसू इस बार अंजलि के दिल को बहुत गहराई तक उद्वेलित कर गए. उसे सुमन की बात तो ज्यादा समझ नहीं आई, पर उन के कहे की प्रतिक्रियास्वरूप अंजलि को अपनी भी पलकें गीली होती महसूस हुई थीं.

बाद में अपनी ड्रैसिंग टेबल की दराज में से अंजलि को 5 सौ रुपए के 10 नोट और सुमन का लिखा पत्र मिला. पत्र में लिखा था :

प्रिय अंजलि,

8 वर्ष पहले अपनी ईर्ष्या के हाथों मजबूर हो मैं ने झूठ बोल कर जो गुनाह किया था उस की पीड़ा पिछले कुछ महीनों से मैं बहुत ज्यादा महसूस कर रही हूं.

तुम्हें याद होगा, तुम्हारी शादी के कुछ दिनों बाद ही मोनू बीमार पड़ गया था, तब उसे अस्पताल में भरती कराना पड़ा था. उस समय तुम दोनों ने हमारा बहुत मजबूत सहारा बन कर खूब भागदौड़ की थी.

इस बार जब तुम्हारे जेठजी नर्सिंगहोम में भरती हुए तो पासपड़ोस के लोग मुंहजबानी हालचाल पूछ कर अलग हो गए. ज्यादा उम्र के हो जाने के कारण सास और ससुरजी ज्यादा भागदौड़ करने की स्थिति में नहीं थे. मुझ अकेली पर इतना ज्यादा बोझ पड़ा कि मैं अकसर रोने लगती थी.

इस घटना ने मेरी आंखें खोल दीं. अगर मैं ने तुम से संबंध खराब न किए होते तो तुम्हें व अरुण भैया को बुलाने में मैं जरा भी न हिचकिचाती. मुझे तुम दोनों की अनुपस्थिति बहुत खली थी और मैं ने खुद को अपनी चेन चोरी के आरोप वाली भयंकर भूल के लिए रातदिन कोसा था.

मेरी समझ में आ गया है कि अपनों से दूर हो कर आजकल के स्वार्थी संसार में इंसान दुख, असुरक्षा व अकेलेपन के सिवा कुछ नहीं पा सकता. अपने साथ नए सिरे से मधुर संबंध बनाने का मौका तुम मुझे दोगी तो ही मैं अपने दिल में बसे गहरे अपराधबोध से उबरने में सफल हो पाऊंगी.

तुम्हारे पिता से मिले 5 हजार रुपए मैं लौटा रही हूं, लेकिन इतनाभर कर देने से मेरा प्रायश्चित्त पूरा नहीं होगा. जिस दिन तुम्हारी आंखों में मैं अपने लिए नफरत के बजाय प्रेम व अपनत्व के भाव देखूंगी उसी दिन मैं समझूंगी कि तुम ने मुझे माफ कर दिया है. तुम्हें सामने देख कर पिछले 5 दिनों में कई बार मेरा मन हुआ कि तुम्हारे पैरों पर गिर कर माफी मांग लूं, लेकिन हर बार तुम्हारी गहरी नाराजगी देख कर मेरा साहस जवाब दे जाता.

मैं तुम से रिश्ते में बड़ी जरूर हूं पर समझदारी व मानसिक परिपक्वता में तुम से मीलों पीछे हूं. अगली बार जब तुम मुझे देखो तो मेरे गले से लग जाना, नहीं तो मैं खुद को कभी माफ न कर सदा पश्चात्ताप की अग्नि में जलती रहूंगी.

सुमन.

पत्र पढ़ने के बाद अंजलि एकदम उदास हो गई. पिछले दिनों जो गलती उस से हो गई थी उस के एहसास ने उसे दुखी कर दिया था.एक तरफ सुमन भाभी को अपने किए पर गहरा अफसोस महसूस हो रहा था, जो अंजलि के यहां उस से माफी मांगने के इरादे से आई थीं. उन के हंसनेबोलने व सेवा करने के पीछे आपसी संबंध सुधारने की चाह थी. अपना अहंकार ताक पर रख वे अपनी देवरानी के सामने झुकने को तैयार थीं.

एक तरफ वे अपनी गलती के लिए माफी मांगने का साहसिक फैसला कर के आई थीं तो दूसरी तरफ अंजलि उस में आए सुखद परिवर्तन को नोट करने में असफल रही थी. वह अतीत में इस कदर उलझी रही कि ताजा वर्तमान उस की पकड़ में नहीं आया. सुमन उस के गलत रवैए से हतोत्साहित हो कर अगर अपने कदम खींच लेतीं तो उन से आपसी संबंधों के फिर से फलनेफूलने का मौका शायद सदा के लिए हाथ से निकल जाता.

अंजलि को साफ महसूस हुआ कि उस ने सुमन भाभी के सामने कोई समझदारीभरा व्यवहार नहीं किया था. सचाई तो यह भी कि उस का पत्र पढ़ने के बाद अंजलि खुद को बेहद शर्मिंदा महसूस कर रही थी.

अपने अहंकार की बेहोशी में मैं सुमन भाभी के मनोभावों को अनदेखा कर के कितनी बड़ी भूल करने जा रही थी. इस भूलसुधार के लिए मैं आपसी संबंधों को फिर से मधुर बनाने में भाभी को पूरा योगदान दूंगी. आज ही उन्हें चिट्ठी लिख कर उन से फिर अपने गलत व्यवहार के लिए क्षमाप्रार्थना करूंगी. ऐसा निश्चय करने के बाद ही अंजलि गहरी राहत महसूस करते हुए मुसकरा उठी.

Summer Special: क्या आपकी स्किन भी होती है ड्राई?

बिजी लाइफ स्टाइल और औफिस के कारण हम अपनी स्किन का ख्याल नही रखते. और न ही हम धूप में निकलना बंद कर सकते हैं. इसीलिए हमारी स्किन बेजान और ड्राई पड़ जाती है. साथ ही स्किन कभी-कभी डैमेज हो जाती है. इसीलिए जरूरी है कि बिजी लाइफ स्टाइल के बीच भी आप अपनी स्किन का ख्याल रखें, जिसके लिए आज हम आपको कुछ टिप्स में भी सौफ्ट और डैमेज स्किन की केयर कर पाएंगे.

1. नहाने के टाइम इन बातों का रखें ध्यान

स्किन ड्राई होने से बचाने के लिए ज्यादा गरम पानी का इस्तेमाल करने से बचें. नमीयुक्त साबुन या बौडी वाश का ही इस्तेमाल करें. नहाने का टाइम भी कम रखें और नहाने के बाद बौडी को सौफ्ट बनाए रखने के लिए मौइश्चराइजर का इस्तेमाल करें.

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2. स्किन को रखें मौइश्चराइज

स्किन की सुरक्षा के लिए मौइश्चराइज क्रीम का इस्तेमाल करें. शरीर में लगाने के लिए ऐंटीइची, औयली स्किन, ड्राई स्किन सहित और कई तरह की मौइश्चराइजर क्रीमें मार्केट में मौजूद हैं. उनमें से आप अपनी स्किन के अनुरूप कोई भी क्रीम चुन सकती हैं.

3. गरमी में खानपान का रखें ख्याल

स्किन की ड्राईनेस को दूर करने के लिए पौष्टिक खानपान, मछली और अलसी के तेल, ओमेगा-3 और ओमेगा-6 जैसे फैटी एसिड के सेवन से दूर रहने की कोशिश करें. सोरायसिस और एक्जिमा जैसे स्किन के संक्रामक रोगों से मुकाबले के लिए शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को दुरुस्त रखना जरूरी है. अपने खाने में अंगूर, गाजर, पालक, बादाम, अंडे, मछली आदि शामिल करें, क्योंकि ये सब विटामिन और ओमेगा-3 फैट के अच्छे स्रोत होते हैं.

4. स्किनबूस्टर्स का करें इस्तेमाल

औफिस जाने वाले लोग अपनी स्किन में भरपूर नमी बनाए रखने के लिए स्किनबूस्टर्स आजमा सकते हैं. स्किन की सौफ्टनेस और शाईन को बनाए रखने के लिए रैस्टिलेन वाइटल एक कारगर विकल्प है. नए जमाने का डर्मल फिलर रैस्टिलेन वाइटल चंद मिनटों में शाइनी स्किन मिल जाती है.

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5. सनस्क्रीन का इस्तेमाल है सबसे जरूरी

गरमी में स्किन को नुकसानदेह यूवी किरणों से सुरक्षित रखने के लिए सनस्क्रीन की जरूरत पड़ती है. स्किन को किसी भी तरह के नुकसान से बचाने के लिए बौडी के खुले हिस्सों में 15 या इस से अधिक एसपीएफ वाले सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें.

Summer Special: गरमी में करें इन फलों का सेवन

गरमी के मौसम में शरीर को खाने से अधिक पानी की जरूरत होती है. अगर आपके शरीर में पानी की कमी रह रही है तो आपको कई तरह के रोग हो सकते हैं. सीधे पानी पीने के अलावा आप अपनी डाइट में फलों को शामिल कर के पानी की कमी को दूर कर सकते हैं. इनके सेवन से आप कूल महसूस करेंगे. गरमीयों में मिलने वाले फल आम, तरबूज, खरबूज, बेल व मौसमी आपको अंदर से फिट रखते हैं.

आमतौर पर लोग गरमी में खाना अधिक नहीं खा पाते ऐसे में डाइट में फल को शामिल करना काफी लाभकारी होगा.

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लीची

गरमी में लीची मिलने लगती है. इसे खाने से आपके शरीर में विटामिन ए, सी और पानी प्रचूर मात्रा में मिलता है. इसमें पाए जाने वाले एंटीऔक्सिडेंट शरीर की इम्यून के लिए फायदेमंद होते हैं. त्वचा के लिए भी ये काफी असरदार होता है.

आम

गरमी के मौसम में लोगों को जिन फलों का इंतजार रहता है उनमें आम प्रमुख है. आम ना केवल स्वादिष्ट होता है बल्कि सेहत के लिए इसके कई फायदे हैं. दूध में आम मिला कर पीने से शरीर को काफी उर्जा मिलती है. ध्यान रखें कि इसका अधिक सेवन ना करें. शुगर के मरीजों को खासकर के इसका ध्यान रखना चाहिए.

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तरबूज का सेवन

गरमी में तरबूज का सेवन काफी फायदेमंद होता है. पर ध्यान रखें कि इसके सेवन के दौरान पानी ना पिएं. कोशिश करें कि दोपहर के वक्त पर तरबूज खाएं. इस वक्त शरीर को पानी की खासा जरूरत रहती है. तरबूज आपके शरीर में होने वाली पानी की कमी को दूर करता है.

अंगूर

शरीर को हाइड्रेट रखने में अंगूर काफी अहम रोल निभाता है. ये हमारे फेफड़ों के लिए भी काफी लाभकारी होता है. जिन लोगों को लो बीपी या शुगर की शिकायत है उन्हें अंगूर का सेवन करते रहना चाहिए.

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बेल का शरबत

गरमी में बेल का शरबत आसानी से मिलता है. इससे शरीर की गरमी दूर रहती है. पेट की सेहत के लिए भी ये काफी फायदेमंद होता है.

उस एक दिन की बात- भाग 3: क्या हुआ था उस दिन?

है, यार? बहुत दिनों से देखा नहीं उसे,’  रूम में चारों ओर देखते हुए ललक कर पूछा.

‘बेटे को देखा नहीं, बहुत दिनों से? क्या कह रहे हैं? रोज ही तो सामने बैठा होमवर्क करता रहता है, जी,’  उर्मि विस्मय से बोली.

‘आभासी दुनिया की तंद्रा में दृष्टि ससुरी यंत्रीकृत सी हो गई थी. तुम, वो, ये सारा परिवेश

सामने होते हुए भी आंखों से ओझल रहते. आज तंद्रा टूटी तो तुम्हें देखा. आज ही उसे देखूंगा. उस का होमवर्क मैं कराऊंगा, ठीक.’

‘पड़ोस में खेलने गया है, आता होगा. अब किचेन में चलती हूं, बहुत काम है,’  उर्मि उठती हुई बोली तो पीयूषजी मनुहार कर उठे, ‘प्लीज, कुछ देर रुको न, जी नहीं भरा देखने से.

खूबसूरती को भासी दुनिया में लाख विचर ले कोई, लौटना तो आखिरकार यथार्थ पर ही होता है, खाली हाथ. कितना मूर्खतापूर्ण गुजरा वह समय. जेहन में महादेवी वर्मा की पंक्तियां कौंध गईं.. विस्तृत नभ का कोई कोना, मेरा न कभी अपना होना. परिचय इतना, इतिहास यही… महादेवीजी ने ये पंक्तियां उन जैसों के लिए लिखी होंगीं शायद.

अब छोड़िए भी. रात के खाने की तैयारी करनी है,’  उर्मि उन की बांहों से छूटने का प्रयास करती बोली, ‘देर हो जाएगी, बहुत काम है,  मेरी हंसी   देखने के लिए ढेर समय मिलेगा मिस्टर अग्रवाल.’

पर पीयूषजी के भीतर का प्रेमी आज वियोग सहने को तैयार न था. उर्मि के साथ के एकएक पल को जी लेने को मचल रहा था उन का मन. ‘तो ऐसा करते हैं कि मैं भी किचेन में चलता हूं. तुम सब्जी बनाना, मैं आटा गूंथ दूंगा.’

पीयूषजी ने भोलेपन से कहा. उर्मि पति की अदा पर फिदा हो गई. पहले वाले दिन याद हो आए जब पीयूषजी उस के इर्दगिर्द बने रहने और चुहल करने का कोई बहाना नहीं छोड़ते थे.

‘आप का मन नहीं लगेगा इन कामों में,’   उर्मि ने आंखें नचाते हुए व्यंग्य किया.

‘लगेगा और खूब लगेगा. उस पिशाच को कंधे से उतार कर पेड़ पर उलटा लटका दिया है,’ पीयूषजी की आवाज आत्मविश्वास से लबरेज थी.

फिर परात में आटा, आटे में पानी, पानी मे थोड़ी चुहल और थोड़े ठहाके. फेंटते हुए देर तक

मनोयोग से आटा गूंथते रहे. ऐसा मजा जीवन में पहले कभी नहीं आया.

इसी बीच आयुष पड़ोस से खेल कर आ गया. पीयूषजी ने लपक कर उसे गोद में उठा लिया मानो अरसे बाद गोद मे लिया हो. वात्सल्य के विलक्षण फुहार से भीग गया उन का मन. बेटा भी थिरक कर चूजे की तरह चिपक गया उन से. फिर होमवर्क कराते हुए उस की मासूम बातों व हरकतों में खूब आनंद मिला.

डिनर के बाद उर्मि को ले कर छत पे चले आए. काफी दिनों बाद छत पर आए थे. सबकुछ नयानया लग रहा था. आंगन, डोली, पिछवाड़े खड़ा अमरूद का छतनार पेड़. विभिन्न किस्मों के फूलों और शो पत्तों के छोटेबड़े बीसेक गमले. कलैक्शन उन्हीं का तो किया हुआ था, चाव से. देखरेख के अभाव में कुछ अधखिले थे तो कुछ मरणासन्न. जैसे उन्हें उलाहना दे रहे हों कि नन्हें दोस्तों को भूल क्यों गए, सर?  ग्लानि से भर गया मन. कल से तुम्हारी सेवा में हाजिर रहूंगा, दोस्तों. आकाश में इस छोर से उस छोर तक विशाल स्याह चंदोबा तना था. चंदोबे पर एक ओर न्यून कोण में टिका चतुर्दशी का चांद. दोनों की नजरें उस पर टिक गईं.

चौदहवीं का चांद  उर्मि क्लिक कर बोली, ‘कितना प्यारा लग रहा न?’ ‘हां, एक अंतराल के बाद देख रहा हूं. उस चांद को भी और इस चांद को भी. आभासी दुनिया की सनकभरी दौड़ में ऐसे रोमांचकारी अनुभूतियों से रूबरू नहीं हो सका कभी,’   पीयूषजी उर्मि की बांह थाम कर थरथराती आवाज में बोले, ‘बेशक, आज के युग में सोशल मीडिया से दूर रहना संभव नहीं पर मेरे लिए वह  कीप  की तरह होगी. सिर्फ कुछ देर का लाड़, बस. उसे ड्रैकुला की तरह अनुभूतियों व इमोशन्स का खून नहीं चूसने दूंगा. उस दुनिया की सैर के दौरान भी तुम सब को, तुम को, आयुष को, घरपरिवार को और सारे सैंटीमैंट्स को साथ लिए रखूंगा.’

सुबह यथासमय नींद खुल गई. पहले नींद खुलते ही बेताल जेहन में प्रकट हो जाता और हाथ मोबाइल ढूंढने लगते. आज दिल और दिमाग शांत थे. चाय पी कर छत पर चढ़ गए.खुरपी, संडासी, ट्रिमर, वाटर केन आदि निकाला. 2 घंटे की बेसुध सेवा. एकएक पौधे को सहलाया. सहलाते हुए मन रोमांच से सराबोर होता रहा. ऐसे अनिवर्चनीय सुख से क्यों कर विमुख रहे अब तक. गमलों का काम कर के सब्जी बाजार गए. सारा परिवेष नया सा लग रहा था. रामखेलावन, मंगरु साव और पिंटू के पुराने ग्राहक थे. सभी लोग उलाहना देते हुए चहक उठे, ‘भले ही कुच्छो न खरीदो साहेब, पर दुचार दिनन पर आ कर मिल लो, तो दिल जुड़ा जात है.’

इन अनजान लोगों के मूर्त अपनापन के आगे आभासी मित्रों के छद्म, सहानुभति कितनी खोखली है. पीयूषजी उन लोगों के स्नेह से भीतर तक भीग गए.

औफिस में इंटरनैट बंद होने से सभी के चेहरे क्षुब्ध थे मानो कोई नायाब खजाना लुट गया हो. सभी पानी पीपी कर सरकार को कोस रहे थे. यह भी कोई बात हुई कि शहर के किसी ओनेकोने में जरा सा फसाद हुआ नहीं कि इंटरनैट बंद. नैट के बिना जनता की जान हलक में आ जाती है, यह नहीं सोचती वह.

कल के ढेर सारे नायाब अनुभवों से गुजरने के बाद पीयूषजी का मन शांत था. उन की टिप्पणियों को सुन कर मजा आ रहा था. देखतेदेखते 2 दिन बीत गए. 2 दिनों में  सदियों को जी लिया हो जैसे. शाम को औफिस से लौट कर घर में प्रवेश करते ही मिश्रा का फोन आ गया, ‘नैट चालू हो गया, सर. 6 बजे गूगल मीट में जुड़ना है.’

‘कीप…हंह,’ उन की हंसी छूट गई.

चाय पीते हुए पीयूषजी ने पत्नी से हुलस कर कहा, ‘तैयार हो जाओ. घूमने निकलेंगे. पहलेमल्टीप्लैक्स में फ़िल्म, फिर किसी बढ़िया रैस्तरां में शानदार डिनर. तुम सब को वापस हासिल कर लेने का सैलिब्रेशन, ओके.’

अनुज की आंटी की होगी एंट्री! अनुपमा से लेगी दहेज?

टीवी सीरियल अनुपमा (Anupamaa) में इन दिनों लगातार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि अनुपमा और अनुज की शादी की तैयारियां शुरू हो गई है. तो दूसरी तरफ बा इस शादी के खिलाफ है, वह नहीं चाहती कि अनुपमा-अनुज की शादी हो. लेकिन बापूजी अनुपमा की शादी को लेकर बेहद खुश है. शो के आने वाले एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में दिखाया जा रहा है कि अनुपमा की मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. अनुज से अपनी शादी की बात करने के बाद शाह परिवार में कुछ लोग अनुपमा के खिलाफ खड़े हो गए हैं तो वहीं बा भी लगातार अनुपमा को परेशान करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है.

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खबरों के अनुसार, शो में एक नई एंट्री होने वाली है. यह कोई और नहीं बल्कि अनुज की आंटी हैं जो अनुपमा की विरोधी होगी. वह अनुज-अनुपमा की शादी में विलेन का काम करेगी.

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शो में दिखाया जा रहा है कि अनुज अपनी शादी को लेकर काफी एक्साइटेड है. अनुज एक ग्रैंड वेडिंग करना चाहता है तो वहीं अनुपमा सिंपल तरीके से शादी करना चाहती है. ऐसे में बापूजी अनुज की इच्छा को पूरा करने के लिए घर गिरवी रखने की योजना बनाते हैं.

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बताया जा रहा है कि शो में अनुज की आंटी अनुपमा से शादी के लिए दहेज का डिमांड करेगी. अनुज की आंटी को अनुपमा पसंद नहीं आएगी. क्योंकि वह चाहती थी कि अनुज उनकी पसंद से शादी करे. ऐसे में वो अब उनकी शादी में बाधा बनकर खड़ी रहेगी.

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