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अंत भला तो सब भला- भाग 4: ग्रीष्मा की जिंदगी में कैसे मची हलचल

सासससुर की यह मनोदशा देख ग्रीष्मा का मन जारजार रोने को हो चला. वह सोचने लगी कि यह क्या तूफान ला दिया सर ने उस की जिंदगी में. सासससुर शायद अपने भविष्य को ले कर चिंतित हो उठे थे. सच भी है वृद्धावस्था में असुरक्षा की भावना के कारण इंसान अपनी वास्तविक उम्र से अधिक का दिखने लगता है. वहीं बेटेबहू और नातीपोतों के भरेपूरे परिवार में रहने वाला इंसान अपनी उम्र से कम का ही लगता है.

किसी तरह रात काट कर वह स्कूल पहुंची. बिना कुछ सोचे सीधी सर के कैबिन

में पहुंची और बोली, ‘‘कभीकभी इंसान अच्छा करने चलता है और कर उस का बुरा देता है. वही आप ने मेरे साथ किया है.’’

‘‘क्या हुआ?’’ सर ने उत्सुकतावश पूछा.

‘‘सब गड़गड़ हो गया है. शाम को आप कौफी हाउस में मिलिए. वहां बताती हूं.’’

स्कूल की छुट्टी के बाद कौफी हाउस में उस ने सारी बात सर को बता दी.

सर कुछ देर गंभीरतापूर्वक सोचते रहे फिर बोले, ‘‘मैं शाम को घर आता हूं.’’

‘‘आप आएंगे तो वे और अधिक क्रोधित हो जाएंगे…उन्हें आप की जाति से भी तो समस्या है…’’

‘‘अरे कुछ नहीं होगा, मुझ पर भरोसा रखो, अभी तुम जाओ.’’

लगभग 7 बजे विनय सर घर आए तो हमेशा हंस कर उन का स्वागतसत्कार करने वाले सासससुर आज उन के साथ अजनबियों सा व्यवहार कर रहे थे जैसे वे कोई बहुत बड़े अपराधी हों. पर विनय सर ने सदा की भांति उन के पांव छुए और कुछ औपचारिक बातचीत के बाद बाबूजी का हाथ अपने हाथ में ले कर बोले, ‘‘बाबूजी, क्या मैं आप का बेटा नहीं बन सकता? यदि आप अपनी बहू को बेटी बना कर इतना प्यार दे सकते हो कि वह अपने से पहले आप के बारे में सोचे, तो क्या मैं जिंदगी भर के लिए आप की बेटी का सहयोगी नहीं बन सकता? मैं मानता हूं कि मेरी जाति आप की जाति से भिन्न है, परंतु क्या जाति ही सब कुछ है बाबूजी? मैं और आप की बहू मिल कर इस घर की सारी जिम्मेदारियां उठाएंगे.’’

‘‘वह अपनी मरजी की मालिक है. हम ने उसे कब रोका है? उस की जिंदगी उसे कैसे बितानी है, इस का निर्णय लेने के लिए वह पूरी तरह स्वतंत्र है,’’ ससुर ने अपनी बात रखते हुए कठोर स्वर में कहा और कमरे में चल गए.

‘‘बहू और कुणाल के जाने से हम तो बिलकुल अकेले हो जाएंगे. इस बुढ़ापे में हमारा क्या होगा? बेटा तो पहले ही साथ छोड़ गया और अब बहू भी…’’  कह कर सासूमां तो सर के सामने ही फूटफूट कर रोने लगीं.

विनय सर मां के पास जा कर बोले, ‘‘मां आप ने यह कैसे सोच लिया कि मैं आप की बहू और पोते को ले कर अलग रहूंगा. मैं तो यहीं आप सब के साथ इसी घर में रहूंगा. आप की बहू ने तो सर्वप्रथम यही शर्त रखी थी कि मांबाबूजी उस की जिम्मेदारी हैं और वह उन्हें अकेला नहीं छोड़ सकती. मैं तो आप सब के जीवन का हिस्सा भर बनना चाहता हूं.

‘‘मैं सिर्फ आप की बेटी की जिम्मेदारियों में उस का हाथ बंटाना चाहता हूं. मुझ पर भरोसा रखिए. आजीवन आप को निराश नहीं करूंगा. यदि आप मुझे अपनाते हैं तो मुझे एकसाथ कई रिश्ते जीने को मिलेंगे. मेरा भी एक भरापूरा पूरिवार होगा. मेरा इस संसार में कोई नहीं है. कभीकभी अकेलापन काटने को दौड़ता है. मैं तो आप का बेटा बन कर रहना चाहता हूं. आप के जीवन की समस्त परेशानियों को अपने ऊपर ले कर आप का जीवन खुशियों से भर देना चाहता हूं. परंतु यह सब होगा तभी जब आप और बाबूजी की अनुमति होगी,’’ कह कर विनय सर बाहर चले गए.

कुछ विचार करते हुए ससुर विश्वनाथ अपनी पत्नी से बोले, ‘‘मुझे लगता है हमें इन दोनों की शादी करा देनी चाहिए.’’

‘‘कैसी बातें करते हो? हम ब्राह्मण और वह नीची जाति का… नहीं, मुझे तो कुछ ठीक नहीं लग रहा,’’ सास कुछ उत्तेजित स्वर में बोलीं.

‘‘जाति को खुद से चिपका कर क्या मिलेगा हमें? ऊंचीनीची जाति से क्या फर्क पड़ता है हमें? हमारा तो बुढ़ापा अच्छा कटना चाहिए. बेचारी बहू कब तक दे पाएगी हमारा साथ. दोनों कमाएंगे और मिल कर जिम्मेदारियां उठाएंगे तभी तो हम चैन से रह पाएंगे.’’

‘‘यह बात तो आप की सही है… हमें जाति से क्या करना. इंसान तो विनय अच्छा ही है. हमें मातापिता सा मान भी देता है,’’ सास ने भी अपने पति के सुर में सुर मिलाते हुए कहा.

अगले दिन रविवार था, सुबहसुबह ही विश्वनाथ ने विनय को फोन कर के बुला लिया. जैसे ही विनय आए औपचारिक वार्त्तालाप के बाद वे बोले, ‘‘बेटा, हम ने तुम्हें गलत समझा. शायद हम स्वार्थी हो गए थे. क्या करें बेटा बुढ़ापा ऐसी चीज है जो आदमी को स्वार्थी बना देती है.

‘‘वृद्ध सब से पहले अपनी सुरक्षा और हितों के बारे में सोचने लगते हैं. हम ने भी अपनी बेटे जैसी बहू के भविष्य के बारे में न सोच कर सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में ही सोचा, जबकि उस ने सदा पहले हमारे बारे में सोचा. कौन कहता है कि बहू कभी बेटी नहीं हो सकती? मेरी बहू तो मिसाल है उन लोगों के लिए जो बहू और बेटी में फर्क करते हैं.

‘‘इस घर की बहू होने के बाद भी उस ने सदा बेटे की ही भांति सारे फर्ज निभाए हैं.

आज तक उस ने बस दुख ही दुख देखा है

और आज जब तुम उस की झोली में खुशियां डालना चाहते हो, उस की जिम्मेदारियां बांटना चाहते हो, तो हम उस के मातापिता ही उस के बैरी हो गए. बस मेरी बेटी को सदा खुश रखना,’’ कह कर विश्वनाथ जी ने विनय सर के आगे हाथ जोड़ दिए.

परदे की ओट में खड़ी ग्रीष्मा सासससुर का यह बदला रूप देख कर हैरान थी. पर अंत भला तो सब भला सोच दौड़ कर अपने सासससुर के गले लग गई.

‘‘हम आप को कभी निराश नहीं करेंगे,’’ कह कर विनय सर और ग्रीष्मा ने झुक कर दोनों के जब पैर छुए तो विश्वनाथ और उन की पत्नी ने खुश हो कर अपने आशीष भरे हाथ उन की पीठ पर रख दिए.

Review- ‘एक बदनाम आश्रम’: सीजन तीन

रेटिंगः दो स्टार

निर्माता: प्रकाश झा प्रोडक्शन

निर्देशकः प्रकाश झा

कलाकार: बौबी देओल,चंदन रॉय

सान्याल, दर्शन कुमार, अदिति पोंनकर, त्रिधा चौधरी, अनुप्रिया गोयंका, तुशार पांडेय, ईशा गुप्ता, कनुप्रिया गुप्ता, जहांगीर खान, अध्ययन सुमन, विक्रम कोचर,सचिन श्राफ,परिणीता सेठ, तनमय रंजन व अन्य.

अवधिः लगभग सात घंटे 40 मिनट, दस एपीसोड

37 से 50 मिनट के मिनट के ओटीटी प्लेटफार्म:एम एक्स प्लेअर

हमारे देश में सजयोंगी बाबाओं की कोई कमी नही है, जो कि खुद को जनता के सामने भगवान के रूप में पेशकर उन्हे मूर्ख बनाते रहते हैं. ऐसे ही कई बाबाओं की कहानियों को मिलाकर एक काल्पनिक कथा पर वेब सीरीज ‘‘आश्रम’’ की शुरूआत हुई थी, जिसका पहला और दूसरा सीजन काफी लोकप्रिय हुआ था.उसी वेब सीरीज का अब तीसरा सीजन तीन जून से ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘एम एक्स प्लेअर’’ स्ट्ीम हो रहा है.इस बार इसे ‘‘एक बदनाम आश्रम 3’ नाम दे दिया गया है.

इसे ‘एमएक्स प्लेअर पर मुफ्त में देखा जा सकता है. सीजन दो जहां खत्म हुआ था, वही से सीजन 3 की षुरूआत हुई है.मगर इस बार कहानी में कुछ नए ट्रैक जोड़ने के साथ ही टीवी समाचार चैनलों की भी पोल खोली गयी है.

कहानी:

पहले दो सीजन की संक्षिप्त कहानीः

आश्रम वेब सीरीज की -रु39याुरुआत दलित परिवार की लड़की पम्मी से हुई थी, जो समाज की कुंठा और कुरीतियों के चलते बाबा निराला के दर पर पहुंची थी. शुरूआत में पम्मी को लगा था कि बाबा निराला का धाम दुनिया में इकलौती ऐसी जगह है जहां पिछड़ा, ऊंचा और नीचा कुछ नहीं है. यहां सब कुछ एक समान है. तथा पम्मी को यकीन था कि निराला बाबा की वजह से वह पहलवान के रूप में कई पुरस्कार अर्जित कर लेगी. लेकिन धीरे धीरे पम्मी को पता चलता है कि निराला बाबा भ्रष्ट  ही नहीं बल्कि आश्रम की साधवियों का यौन शोषण भी करता है.

एक दिन निराला बाबा,पम्मी के साथ भी जबरन बलात्कार करतसा है. तब पम्मी (अदिति पोहानकर) ठान लेती है कि वह हवस के पुजारी बाबा की सच्चाई सभी के सामने लाकर रहेगी.दूसरे सीजन में वह पत्रकार अक्की की मदद से आश्रम से भागने में सफल रहती है.

आश्रम 3 की कहानी

तीसरे सीजन की कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां दूसरे सीजन की कहानी खत्म हुई थी. अब बाबा निराला का साम्राज्य पिछली बार से भी ज्यादा फैल चुका है. उन्हें भ्रष्ट पुलिस तंत्र भ्रष्ट व राजनेताओं का भरपूर साथ मिल रहा है.अब राज्य के मुख्यमंत्री हुकुम सिंह ने एक पूर्व राजा की हवेली का अधिग्रहण कर उसे काशीपुर वाले बाबा का आश्रम ‘निराला धाम’ बनाकर 999 वर्ष  के लिए लीज पर दे दिया है.सरकार बाबा के इशारे पर नाच रही है, तो स्वाभाविक तौर पर बाबा निराला ज्यादा शक्तिशाली और चतुर बन गए हैं.बाबा निराला और भोपा सिंह ने पाखंड और काली करतूतों से अपना साम्राज्य कई गुना सजा लिया है.

-रु39याहर का बच्चा बच्चा उसकी -हजयूठी आस्था में फंस चुका है.सांस्कृतिक और आस्था की आड़ में बाबा बड़े-बड़े बिजनेसमैन और नेताओं को अपनी मुठ्ठी में ले लेते हैं. तो दूसरी तरफ बाबा निराला के अपने गुंडों के अलावा राज्य सरकार का पुलिस तंत्र पम्मी व अक्की की तलाश में है. एपीसोड दर एपीसोड कहानी में कुछ दूसरी कहानियां भी जुड़ती हैं. मसलन कांट्रैक्टर विपुल दहिया की सोलह व साल की बेटी के साथ निराला बाबा गलत काम करते हैं.

अंततः पूरे परिवार को आत्महत्या करना पड़ता है.उधर हुकुम सिंह का मंत्रिमंडल नही बन पा रहा है, उसके लिए आश्रम ने हर मंत्रालय के लिए अलग अलग रकम की मांग रखी है.बबिता अपनी चालें चल रही है,जिससे वह निराला बाबा के ज्यादा करीब हो जाए, इससे भोपा स्वामी भी परेशान है.निराला बाबा की पत्नी आरम पहुंचकर बेटे को मंत्री बनवाने की बात करती हैं. और चाल चलकर खुद ही मंत्री बन जाती हैं.बाबा से मुख्यमंत्री भी परेशान है. तभी वह अपनी मित्र सोनिया को अमरीका से बुलाते हैं.एक नया खेल षुरू होता है.उजागर सिंह अब आई बी आ गए हैं.वह भी बाबा के खिलाफ लगे हुए हैं.घटनाक्रम कुछ इस तरह बदलते हैं कि दसवें एपीसोड में पम्मी 14 दिन की न्याायिक हिरासत में जेल के अंदर पहुंच जाती हैं.

लेखन व निर्देशनः

तीसरे सीजन में भी कहानी काफी कसी हुई है. यूं तो बाबा के कई कारनामों यानी कि कहानी में दोहराव है,मगर किरदार व प्रस्तुति करण में कुछ नवीनता है. इस बार प्रकाश झा का निर्देशन कमजोर पड़ गया. जिसके चलते कुछ एपीसोड काफी शिथिल हो गए हैं.यदि यह कहा जाए कि पिछले दो सीजन के मुकाबल तीसरा सीजन कुछ नीरस हो गया है,तो गलत नहीं होगा.वह कई बार अतीत के कुछ दृश्य लाकर कहानी में मिर्च मसाला भरने का प्रयास जरुर करते हैं. आस्था, राजनीति-पुलिस की गठजोड़ अभी भी कहानी पर हावी है. इस बार रोमांचक तत्वों का घोर अभाव है. सरकार समर्थित भूमि हड़पने, वनवासियों के विस्थापन से लेकर समाचार चैनलों की भी कलई खोली गयी है.पर इस बार रोमांचक तत्वों का घोरस अभाव है.कई दृश्य बेवजह लंबे खींचे गए हैं. वह ईशा गुप्ता के किरदार सोनिया संग भी ठीक से खेल नहीं पाए. इस बार प्रकाश झा ने बोल्ड और अश्लील दृश्यों से बचने का प्रयास किया है. यूं तो अंतिम एपीसोड में 2023 में चैथे सीजन लाने की बात कही गयी है, मगर प्रकाश झा दोहराव से कैसे बचेंगें? तीसरे सीजन में भी उन्हे दोहराव के साथ कुछ गड़े मुर्दे फिर से उखाड़ने पड़े हैं.वैसे निराला बाबा से सबसे ज्यादा नुकसान तो बबिता को ही पहुंचाया, फिर भी बबिता किस नीयत से आश्रम की सेवा में रत है, कहना मुश्किल है. शायद इसी छोर को पकड़कर प्रकाश झा चौथे सीजन की कहानी गढ़ेंगे.

अभिनयः

निराला बाबा के किरदार में बॉबी देओल व भोपा स्वामी के किरदार में चंदन रॉय सान्याल का अभिनय निखरा हुआ नजर आता है.मगर पम्मी के किरदार में अदिति पोहानकर के हिस्से इस सीजन में करने को कुछ खास आया नही. वैसे भी तीसरे सीजन में महिला किरदार काफी कमजोर हो गए हैं..इस सीजन के कुछ एपीसोड में जब निराला बाबा को फंसने या गिरफ्तार होने का डर सताता है,उस वक्त एक डरपोक इंसान के भावों को भी चेहरे पर लाने में बौबी देओल कामयाब रहे हैं.तो वहीं स्त्री त्रिया चरित्र कर अपनी धाक जमाती जा रही बबिता के किरदार में त्रिधा चैधरी सबसे ज्यादा दिल जीतती हैं. त्रिधा चैधरी के किरदार में अब तक कई शेड्स आ चुके हैं. और हर शेड्स में उनका अभिनय कमाल का है. बबिता के बढ़ते प्रभाव को देखकर निराला बाबा की नजरों में अपना प्रभाव कम होने का डर कई बार भोपा स्वामी के चेहरे पर आते हैं, जिसे उन्होंने बहुत ही बेहतरीन तरीके से निभाया है. लेकिन उजागर सिंह के किरदार में दर्शन कुमार और डाक्टर के किरदार में अनुप्रिया गोयंका इस बार कमाल नहीं दिखा पायीं.

मेरे अपने- भाग 2: उसके अपनों ने क्यों धोखा दिया?

उसे याद आया, एक बार वह और महेन बैठे बातचीत कर रहे थे. उस ने महेन के कंधे पर सिर रखते हुए कहा था, ‘महेन, सचसच बताना, तुम मु?ा से शादी किसलिए कर रहे हो?’

महेन ने उस की आंखों में आंखें डालते हुए कहा था, ‘अब बता ही दूं?’

‘हां, हां, बताओ न?’

‘तुम कौफी बहुत अच्छी बनाती हो,’ और अंबिका ने उसे प्यार से एक धौल जमाई थी.

अंबिका को अब भी विश्वास नहीं होता था कि महेन जैसा व्यक्ति उसे अपना जीवनसाथी बनाना चाह रहा था. एक तरफ मन पुलकित हो रहा था, दूसरी तरफ एक अनजाने भविष्य की कल्पना से उस का दिल बैठा जा रहा था. क्या सचमुच उस के दिन पलटेंगे? 40 वर्ष एकाकी जीवन बिताने के बाद क्या उस की आशाएं फलीभूत होंगी? क्या उसे भी वह सबकुछ मिलेगा जो हर औरत चाहती है यानी घर, पति और बच्चे.

अंबिका को अपना सहमा बचपन याद आ गया. बीमार मां की तसवीर आंखों में तैर गई, उन का पीला चेहरा, दमे से जर्जर शरीर, आएदिन वे खाट पकड़ लेतीं और घर का भार नन्ही अंबिका के अपरिपक्व कंधों पर आ पड़ता.

मां के निधन के बाद अंबिका ने घर का भार संभाल लिया. गुडि़यों से खेलने की उम्र में नूनतेल की चिंता में डूब गई. कब बचपन बीता और कब जवानी में कदम रखा, इस का उसे पता ही न चला.

कभीकभी मातंगी बूआ गांव से महीनेभर के लिए आ जातीं और हर बार पिताजी से एक ही राग अलापतीं, ‘रघुनाथ, बिना औरत के तेरी गृहस्थी चौपट हो रही है, तू दूसरा ब्याह क्यों नहीं कर लेता?’

‘इस उम्र में दूसरा ब्याह? नहींनहीं अक्का.’

‘अरे, तो फिर कम से कम अंबिका का ही विवाह कर दे. ताड़ जैसी लंबी होती जा रही है. एक तो ठिकाने से लगे.’

अंबिका ने मुंह बनाया, ‘बूआ, मैं अभी शादी नहीं करूंगी.’

बूआ जब भी आतीं अंबिका को सम?ाने की कोशिश करतीं, ‘अरी बिटिया, शादी के बिना लड़की जात का निस्तार नहीं है. कुंआरी लड़की पिता के घर में बैठी रहे तो लोग क्या कहेंगे? मेरी मान, एक औरत का सच्चा जीवनसाथी उस का पति ही होता है. वह अपनी ससुराल में ही शोभा देती है. एक अकेली औरत को यह समाज चैन से जीने नहीं देता, मेरी बात गांठ बांध ले.’

‘अकेली क्यों? पिताजी हैं, राजू व राधिका है.’

‘लो सुनो, अरे, पिताजी का साया सिर पर कितने दिन रहेगा और भाईबहन, वे जवान होते ही अपनी राह पकड़ेंगे.’

लेकिन अंबिका ने उन की एक न सुनी.

अंबिका कालेज गई तो पहले ही दिन प्रकाश से उस का साक्षात्कार हुआ. प्रतिभावान, सुदर्शन, प्रकाश पहली नजर में ही उस की नजरों में समा गया.

विवाह के नाम से चिढ़ने वाली अंबिका मादक स्वप्नों में खो गई. प्रकाश भी दिलोजान से उसे चाहने लगा. अब दोनों आतुरता से एकदूसरे की राह देखते और परस्पर मिलने के बहाने ढूंढ़ते. धीरेधीरे दोनों ने यह तय कर लिया कि वे कालेज की पढ़ाई पूरी होते ही विवाह करेंगे और फिर उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका जाएंगे.

अचानक छोटी बहन राधिका घर से भाग गई. रघुनाथ यह आघात बरदाश्त न कर सके, उन्हें दिल का दौरा पड़ा. परिवार के लोग उन्हें अस्पताल

ले गए.

भागने के 4 दिनों बाद राधिका बीमार पिता को देखने अस्पताल आई. उस के साथ पड़ोस का आवारा लड़का दिनेश था.

अंबिका ने बहन को आड़े हाथों लिया, ‘अरे, यों भाग कर चोरीछिपे शादी करने की क्या जरूरत थी. मु?ो बताती तो मैं किसी तरह पिताजी को राजी कर लेती.’

‘दीदी, पिताजी तो शायद मान जाते पर दिनेश के मातापिता उस की शादी किसी मालदार लड़की से करना चाहते थे.’

फिर उस ने तनिक लजाते हुए बताया कि उस का दिनेश के साथ प्रेम प्रसंग कई महीनों से चल रहा था और अब उसे गर्भ ठहर गया था.

बहन की दिलेरी देख अंबिका स्तब्ध रह गई. इधर अचानक प्रकाश ने ऐलान किया कि उसे एक अमेरिकी विश्वविद्यालय में दाखिला मिल गया है और वह जल्दी से अमेरिका के लिए रवाना होना चाहता है.

‘अंबिका, तुम भी साथ चली चलो, हम लोग वहीं शादी कर लेंगे,’ प्रकाश ने कहा था.

‘ऐसे कैसे चली चलूं, प्रकाश?’ वह आंखों में आंसू भर कर बोली, ‘तुम तो देख ही रहे हो, मेरे पिता अस्पताल में मौत से जू?ा रहे हैं और मेरी बहन आसान्न प्रसवा है…’

‘वह सब मैं कुछ नहीं जानता,’ प्रकाश ने उस की बात काटी, ‘तुम पारिवारिक ?ामेलों में फंसी रहीं तो तुम्हारी जिंदगी मिट्टी हो जाएगी. मेरा कहा मानो, सब जिम्मेदारियां ?ाटक दो, सब बंधन तोड़ दो और अपना भविष्य बनाओ.’

पर अंबिका ऐसा न कर सकी. प्रकाश चला गया और धीरेधीरे उस ने अंबिका से अपने सारे संपर्क तोड़ दिए. अंबिका महीनों रोती रही. जब थोड़ा संयत हुई तो उस ने शोधकार्य करने का निश्चय किया. इस सिलसिले में उस का अपने विषय के प्रोफैसर श्री सेठी के यहां आनाजाना होने लगा.

समय धीरेधीरे सरकता रहा. छोटा भाई राजू एक संगीत ग्रुप में जा मिला था और गिटार बजाते देशविदेश घूम रहा था. राधिका पति व बच्चों समेत पिता के घर रहने आ गई थी.

रघुनाथ को दोबारा दिल का दौरा पड़ा और इस बार उन्होंने सदा के लिए आंखें मूंद लीं. मरने से पहले वे अपना घर अंबिका के नाम कर गए और अंबिका से वादा ले लिया कि इस घर को किसी को दान नहीं करेगी,

न बेचेगी.

अंबिका एक मशीनी जिंदगी जिए जा रही थी. उस ने असमय ही प्रौढ़ता का आवरण ओढ़ लिया था. एक दिन दर्पण में ?ांका तो कांप गई. यह बालों में सफेदी, चेहरे पर लकीरें, बु?ा आंखें, भिंचे होंठ, यौवन उतार पर था. मन तो शायद कभी का बूढ़ा हो

चुका था.

जब अविनाश के घरवालों से शादी का प्रस्ताव आया तो एक बार फिर मन में दबी आकांक्षाएं करवट लेने लगीं. मन के तार ?ान?ाना उठे. अविनाश को देख कर फिर जीने की ललक हुई.

शादी की तैयारियां जोरशोर से चल रही थीं कि अचानक लड़के वालों ने मंगनी तोड़ दी. कारण पूछने पर वे टाल गए. अंबिका मर्माहत हुई, उस के आत्मसम्मान को बड़ी ठेस लगी. अविनाश से सवालजवाब करने के बदले वह मन ही मन सुलगती रही. उस ने तय कर लिया कि अब वह एकाकी जिंदगी जिएगी.

क्या पुरुषनामी जीव के बिना जीवन काटा नहीं जा सकता? क्या उस के नाम के साथ एक पुरुष के नाम का पुछल्ला जुड़ने पर ही उसे समाज में मानसम्मान मिलेगा? सबकुछ तो था उस के पास, प्राध्यापिका की नौकरी, सिर छिपाने का अपना घर, प्यार लुटाने को उस की बहन के बच्चे, और क्या चाहिए था उसे?

लेकिन महेन से मिलने के बाद उसे लगा था कि वह इतने दिनों एक अर्थहीन जिंदगी जी रही थी. उस के हिस्से की खुशियां अपनी ?ाली में बटोरने के लिए वह लालायित हो उठी. मन में नई आशाएं, नई अभिलाषाएं अंकुरित हुईं.

‘‘दीदी,’’ राधिका ने आवाज दी, ‘‘अरे, तुम यहां बैठी हुई हो? बूआ और मैं ने सारी खरीदारी कर ली, चल कर देखो.’’

अंबिका जड़वत बैठी रही.

‘‘यह क्या? ऐसे क्यों बैठी हो? क्या हुआ?’’

‘‘राधिका, मु?ो बड़ा डर लग रहा है.’’

बिन शादी के मां बनीं Karan Kundrra की एक्स गर्लफ्रेंड अनुषा, देखें Photos

मां बनना दुनिया का सबसे खूबसूरत अहसास है. हर महिला इस खूबसूरत अहसास को जीना चाहती है. जानी-मानी वीजे अनुषा दांडेकर ने एक बच्ची को एडॉप्ट किया है.  जी हां, एक्ट्रेस ने इस प्यारी सी बच्ची की फोटोज सोशल मीडिया पर शेयर की है.

एक्ट्रेस ने फोटो शेयर कर बताया है कि उन्होंने इस बच्ची को गोद लिया है.  उनकी बेटी का नाम सहारा है. अनुषा दांडेकर ने ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर लिखा, ‘आखिरकार, मेरे पास एक छोटी बच्ची है. जिसे मैं अपना कह सकती हूं.

 

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मैं अपनी एंजेल से मिलवाती हूं. जिसका नाम है सहारा, मेरी जिंदगी का प्यार. मोन्सटर और गैंग्सटर और मैं तुम्हारा ध्यान रखेंगे. तुम्हें बिगाड़ेंगे और तुम्हें सुरक्षित रखेंगे हमेशा और हमेशा… आई लव यू बेबी गर्ल, तुम्हारी मां.’

 

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बता दें कि अनुषा दांडेकर करन कुंद्रा की एक्स गर्लफ्रेंड रह चुकी है. उन्होंने शादी नहीं किया है. अनुषा दांडेकर ने बिना शादी के ही बेटी सहारा को गोद लिया है. बता दें कि अदाकारा अनुषा दांडेकर ने 40 साल की उम्र में मां बनने का फैसला किया है.

 

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इन तस्वीरों में अनुषा दांडेकर अपनी बेटी के साथ बेहद खुश नजर आ रही हैं. ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है.  फैंस और सेलिब्रिटी लगातार बधाईयां और शुभकामनाएं दे रहे हैं. इन दिनों अनुषा निर्देशक जैसन शाह को डेट कर रही है.

क्या शादी तुड़वाना आसान है

पुलिस वालों से शादी तुड़वाना का काम तो बहुत आसान और आम दिखता है पर अब पुलिस बढ़ते युवाओं के आत्महत्याओं के मामलों से ङ्क्षचतित होकर अपनी तरह जांच पड़ताल कर के उन की शादी करा रही है. आमतौर पर प्रेमी जोड़ों को शादी न करने की इजाजत जाति, उपजाति, धर्म, पैसे धर्म, रसूख, औकात के कारणों में से एक या ज्यादा रहे कारणों से नहीं की जाती.

पुलिस वाले अगर व्यस्क जोड़े को सुरक्षा दे दें तो वे अपनेआप शादी कर लें. होता क्या है जैसे ही लडक़ी शादी के लिए भागी नहीं कि मातापिता लडक़े पर अपहरण जैसा गंभीर आरोप लगा देते हैं. पुलिस वाले लडक़े के मांबाप, दोस्तों को गिरफ्तार कर लेते हैं कि वे अपहरण के अपराध में साझीदार हैं.

जेल में बंद न होने के डर से बहुत से जोड़े मातापिता की ओर से इंकार मिलने पर भागना नहीं. आत्महत्या करने का फैसला कर लेते हैं. वे जानते है कि न पुलिस उन्हें सुरक्षा देगी और न समाज अपनाएगा.

आजकल प्रेमी जोड़ों को व्यावहारिकता की भी समझ आ गई है. प्रेम कर लेना तो आसान है पर जब तक लडक़े या लडक़ी के पिता के घर में रहने को जगह न मिले, नए जोड़े के पास इतने पैसे भी नहीं होंगे कि वे किराए पर अपना घर बसा सकें. वैसे भी मकान मालिक अब पुलिस के चक्करों में फंसने के डर से भागे हुए, चाहे शादीशुदा ही क्यों न हों, जोड़ों को कर देने से हिचकिचाते है. इसलिए पुलिस अगर शादियां करवानी शुरू की तो यह अच्छा रहेगा, हो, फिर पंडित बेचैन ही उठेंगे कि उन की रोजीरोटी का क्या होगा?

बास्केटबाल खिलाड़ी ने मलयालम में लिखा मौत का पैगाम

सौजन्य: सत्यकथा

तारीख थी 26 अप्रैल 2022. पटना में राजीव नगर थाना के तहत गांधी नगर के रोड नंबर-6 के मकान में एक युवती की लाश मिली थी. लाश पंखे से झूल रही थी. लाश की स्थिति से साफ लग रहा था कि लड़की ने आत्महत्या की है. कमरे में बेड के पास ही एक छोटे से टेबल पर सुसाइड नोट भी मिल गया. पहली नजर में उस की भाषा पटना पुलिस नहीं समझ पाई.

शुरुआती जांच में पुलिस ने उस के बारे में पता किया तब मालूम हुआ कि नोट मलयालम भाषा में लिखा है. कमरे के माहौल से मालूम हुआ कि लड़की केरल की रहने वाली थी और रेलवे में नौकरी कर रही थी. वह उस कमरे में किराए पर रहती थी. उस का नाम लिथारा केसी था. साथ ही कमरे से उस के खिलाड़ी होने के भी प्रमाण मिले. सुसाइड नोट को पढ़वाया गया. उस में लिखा था—

‘डीयर मी

तुम पहले जैसी नहीं रही, तुम कितनी बदल गई हो. तुम कितना हंसती और बोलती थी. किसी के मिलने पर उस से बात करने पर खुश होती थी. तुम्हें मालूम है मैं उस ‘पुरानी तुम’ से कितना प्यार करती हूं…

‘लेकिन आज तुम ने खुद को समेट लिया है. तुम ने बात करनी बंद कर दी है जैसे तुम ने खुद को कहीं खो दिया है. तुम वापस आओगी. मैं चाहती हूं कि तुम वापस लौटो कुछ यादें बनाने के लिए.’

यह नोट लिथारा ने खुद को संबोधित करते हुए लिखा था, जिस से उस की विचलित मानसिक स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता था.

पटना पुलिस ने इस की सूचना तत्काल लिथारा के घर वालों को दे दी. परिवार के सदस्यों में उस के मामा राजीवन अपने पड़ोसी निशांथ के साथ भागेभागे पटना आए. आते ही उन्होंने बास्केटबाल कोच रवि सिंह पर भांजी को प्रताडि़त करने का आरोप लगा दिया. उन्होंने पुलिस को बताया कि लिथारा ने फोन पर कोच रवि के बारे में उन से शिकायत की थी.

राजीवन की शिकायत पर पटना पुलिस ने कोच रवि पर आत्महत्या के लिए प्रेरित करने का मुकदमा दर्ज कर लिया. रवि पूर्व मध्य रेलवे में बास्केटबाल कोच था, उसे इस शिकायत के बाद हटा दिया गया.

दरअसल, लिथारा के मातापिता ने 26 अप्रैल 2022 की रात में लिथारा को फोन किया था, लेकिन बात नहीं होने पर वह परेशान हो गए थे. उन्होंने अपने जानपहचान वाले व्यक्ति से संपर्क किया. उस का फोन भी लिथारा ने नहीं उठाया. वह पास में ही रहता था और इसलिए वह लिथारा के कमरे पर ही चला गया. वहीं उसे लिथारा के आत्महत्या की बात पता चली. पहले उस ने पुलिस को सूचना दी. बाद में इस घटना की सूचना लिथारा के घर वालों को भी दे दी.

इस के बाद लिथारा के मामा राजीवन निशांथ के साथ पटना आए. लिथारा की लाश का पोस्टमार्टम कर शव उन्हें सौंप दिया गया.

लिथारा के मामा ने बताया कि वह बेहद ही खुशमिजाज थी. उस के आत्महत्या करने का जरा भी विश्वास नहीं होता है. वह जरूर किसी मानसिक दबाव में आ गई होगी, तभी उस ने ऐसा कदम उठाया.

लिथारा केरल में कोझीकोड के कक्काटिल की रहने वाली थी. उस के पिता करूनान केसी दैनिक मजदूर हैं. उन की पत्नी यानी लिथारा की मां कैंसर की मरीज हैं.

करूनान के 3 बच्चे हैं. लिथारा 2 बहनों में सब से छोटी थी. दोनों बहनों की शादी हो चुकी है और अपनीअपनी ससुराल में रहती हैं. इस तरह से लिथारा पर ही मातापिता के देखभाल की जिम्मेदारी थी.

लिथारा बास्केटबाल की राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी थी, इसलिए उसे रेलवे में खेल कोटे से नौकरी तो मिल गई थी, फिर भी उस के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. परिवार की इकलौती सदस्य सरकारी नौकरी में थी. इसलिए परिवार को कई उम्मीदें थीं. उस के मामा से यह भी मालूम हुआ कि उस ने परिवार की जरूरतों की पूर्ति के लिए कुछ लाख का लोन भी ले रखा था. घटना के कुछ दिन पहले ही 11 अप्रैल को वह घर गई थी. परिवार के साथ 3 दिन रहने के बाद ड्यूटी पर पटना लौट गई थी.

मामला एक खिलाड़ी की आत्महत्या का था. उस में भी मरने वाली दक्षिण भारत के अंतिम छोर के राज्य की प्रवासी थी. इस कारण यह मामला राज्य सरकारों तक जा पहुंचा. इस बाबत केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने 28 अप्रैल को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिख कर इस मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की. बिहार के मुख्यमंत्री कार्यालय से भी आश्वासन भरा जवाब उन्हें भेज दिया गया.

लिथारा साल 2018 में राष्ट्रीय स्तर पर बास्केटबाल फेडरेशन कप जीतने वाली केरल टीम की सदस्य रह चुकी थी. स्पोर्ट्स कोटे से रेलवे में उसे नौकरी मिली थी और उन की पोस्टिंग पूर्व मध्य रेलवे के दानापुर डिवीजन के पर्सनल डिपार्टमेंट (कार्मिक विभाग) में बतौर जूनियर क्लर्क की थी.

उस की नौकरी 15 नवंबर, 2019 से शुरू हुई थी और नौकरी के साथसाथ खेल की प्रैक्टिस भी करती थी. उन के कोच रवि सिंह थे.

बीते 8 मार्च को पूर्व मध्य रेलवे के हाजीपुर मुख्यालय में खेलकूद के क्षेत्र में नाम रोशन करने वाली महिला खिलाडि़यों को सम्मानित किया गया था, जिस में से लिथारा भी एक थी.

लिथारा के घर वालों के मुताबिक वह पटना में रहते हुए 2 समस्याओं को झेल रही थी. एक समस्या भाषा की थी. वह न तो हिंदी बोल पाती थी और न ही समझ पाती थी. ऊपर से पटना में 2 क्षेत्रीय भाषाएं भोजपुरी और मगही भी बोली जाती हैं. उन के साथ तालमेल बिठाने में उसे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था. उस ने अपने मातापिता से कहा था कि उस को बहुत समस्या महसूस होती है, उस को हिंदी नहीं आती है.

दुर्भाग्य से नौकरी जौइन करने के कुछ महीने बाद ही पूरा देश कोरोना की चपेट में आ गया था. लौकडाउन लग गया था. आवागमन ठप हो गया था. ऐसे में लिथारा एकदम अकेली पड़ गई.

वह दूसरी अचानक आई समस्या से भी परेशान रहने लगी थी. कोरोना से बचाव भी करना था. इसे ले कर मातापिता की हिदायतों पर भी ध्यान देना था. उस ने औफिस के सहकर्मियों से हिंदी सीखने का प्रयास किया. साथ ही उस पर खेल की प्रैक्टिस जारी रखने का भी दबाव था.

लौकडाउन का उस पर भी गहरा असर हुआ. रोजमर्रा की जरूरतें जुटाने से ले कर ड्यूटी पर आनेजाने की तक मुश्किलों का सामना करना पड़ा.

इस बारे में लिथारा के परिजनों ने बताया कि वह नए शहर में हजारों किलोमीटर दूर रहते हुए समस्याओं के बारे में फोन पर बताती रहती थी. इसी सिलसिले में कोच की ओर से भी परेशानियों के बारे में भी बताया था. लिथारा ने उन्हें बताया था कि वह कोच के व्यवहार से बहुत परेशान थी. दूसरी तरफ दानापुर रेलवे का एक पुराना जोन होने के कारण वहां के कर्मचारियों पर काम का भी बोझ बना रहता था.

लिथारा के मामा राजीवन ने पटना के राजीव नगर थाने में 27 अप्रैल, 2022 को दर्ज कराई गई रिपोर्ट में लिखा कि   लिथारा ने मुझे पूर्व में फोन पर बताया था कि मेरे बास्केटबाल कोच के द्वारा शारीरिक और मानसिक शोषण किया जाता है. मेरे ऊपर भी वो दबाव बना रहे हैं. उन की ऊपर तक पहुंच होने के चलते मैं उन के विरुद्ध शिकायत नहीं कर पा रही हूं. मुझे (राजीवन) को पूर्ण विश्वास है कि लिथारा ने अपने कोच रवि सिंह के उकसाने और प्रताडि़त करने के कारण ही मानसिक रूप से परेशान हो कर आत्महत्या कर ली है.

इस मामले की जांच राजीव नगर थानाप्रभारी नीरज कुमार सिंह को सौंपी गई है. उन्होंने राजीवन की शिकायत के आधार पर कोच से भी पूछताछ की. कोच ने  कुछ लडकेलड़कियों के खेलने के लिए मैदान में नहीं आने की शिकायत की.

उन्होंने बताया कि इस बारे में वे 19 अप्रैल को अपने वरिष्ठ अधिकारियों से लिखित तौर पर शिकायत  कर चुके थे. कोच ने तर्क दिया कि अगर उन्हें (लिथारा) को किसी तरह की शिकायत थी तो वरिष्ठ अधिकारियों से इस बात की शिकायत करनी चाहिए थी, लेकिन उन के खिलाफ ऐसी कोई शिकायत नहीं की गई.

पुलिस के मुताबिक हालांकि लिथारा के अत्महत्या के पीछे की एक वजह और भी सामने आई है. वह है अविनाश कुमार उर्फ सोनू और लिथारा के बीच काफी गहरी दोस्ती.

बताते हैं कि अविनाश अपनी पत्नी, बेटी और मां पिता के साथ द्वारिकापुरी स्थित अपने घर में रहता था. उस ने भी  उसी दिन शाम ड्यूटी से लौटने के बाद अपने कमरे में बंद कर फांसी लगा ली थी.

जबकि लिथारा के चाचा ने कोच पर ही सवाल उठाए हैं. उन्होंने पुलिस को बताया कि मृत्यु से एक दिन पहले लिथारा ने अपने मातापिता से बात की थी. तब उस ने बताया था कि उस के कोच रवि सिंह ने उस के साथ मारपीट करने की कोशिश की थी.

फिलहाल पुलिस ने रवि सिंह पर भादंवि की धारा 306 के तहत सुसाइड के लिए उकसाने का केस दर्ज कर लिया है कथा लिखे जाने तक पुलिस कोच रवि सिंह के खिलाफ जांच कर रही थी.

मार्गदर्शन: नरेश अंकल ने कैसे सीमा की मदद की?

Story in hindi

मेरी पार्टनर को मुझ पर भरोसा नहीं है, वो बार-बार मुझ पर शक करती है?

सवाल

मैं 42 वर्षीय पुरुष हूं. मेरी पत्नी का देहांत हो चुका है, बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं. मैं प्राइवेट जौब करता हूं. व्यस्त रहता हूं. मैं 6 महीने से एक महिला के साथ रिलेशनशिप में हूं. वह तलाकशुदा है. हम दोनों की आपसी सहमति है कि हम शादी नहीं करेंगे. वह मुझ से 5 वर्ष बड़ी है और उस के बच्चे भी बड़े हैं. उस की मुझ से हमेशा यही शिकायत रहती है कि मैं उस से मिलता नहीं, समय नहीं देता, फोन नहीं करता, मैसेज नहीं करता और उस से प्यार नहीं करता. मैं उसे बहुत पसंद करता हूं, यह कैसे यकीन दिलाऊं?

जवाब

आप की परेशानी का हल आप के प्रश्न में ही निहित है. आप की गर्लफ्रैंड की यह शिकायत तो तभी दूर होगी जब आप उन की इच्छाएं पूरी करेंगे और तभी उन्हें यकीन भी होगा कि आखिर वे आप के जीवन में क्या माने रखती हैं. आप को अपने व्यस्त जीवन में से कुछ क्षण तो उन के लिए निकालने ही होंगे. बिना कोई एफर्ट किए आप उन से यह उम्मीद नहीं लगा सकते कि वे खुदबखुद आप के प्यार को समझ जाएं. आप जब भी फ्री हों, 2-4 मिनट के लिए ही सही, उन्हें फोन कर लिया करें. घर आ कर उन से मैसेज कर उन का दिन कैसा बीता, आप के साथ दिनभर में क्याक्या हुआ, उन्होंने खाना खाया या नहीं, पूछ लिया करें. ये छोटीछोटी बातें ही तो बड़ीबड़ी परेशानियों का हल होती हैं. आप के औफिस की छुट्टी हुआ करे तो एक रविवार अपने बच्चों के साथ तो दूसरा अपनी गर्लफ्रैंड के साथ व्यतीत कर लीजिए. जब तक आप उन्हें खुद यकीन नहीं दिलाएंगे, खुद अपनी चाहत का इजहार नहीं करेंगे, एफर्ट नहीं करेंगे तो वे कुछ नहीं समझ पाएंगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

आयुष्मान खुराना संग रोमांस करेंगी तेजस्वी प्रकाश!

‘बिग बॉस 15’ की विनर और ‘नागिन 6’ फेम तेजस्वी प्रकाश (Tejasswi Prakash) अक्सर सुर्खियो में छायी रहती हैं. एक्ट्रेस छोटे पर्दे पर अपनी एक्टिंग से दर्शकों का दिल जीत रही है अब वह जल्द ही बॉलिवुड में डेब्यू  कर सकती हैं. जी हां सही सुना आपने. वह आयुष्मान खुराना संग स्क्रीन पर रोमांस  करती नजर आ सकती हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, तेजस्वी ‘ड्रीम गर्ल 2’ में लीड ऐक्ट्रेस बनेंगी. उन्होंने इसके लिए ऑडिशन भी दे दिया है और मेकर्स संग उनकी बातचीत चल रही है. पहली फिल्म की तरह ही सीक्वल में आयुष्मान खुराना नजर आएंगे. मूवी में नुसरत भरूचा, अनू कपूर जैसे स्टार्स भी नजर आए थे.

 

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बताया जा रहा है कि ‘तेजस्वी को एकता कपूर के ‘रागिनी एमएमएस’ के अगले प्रोजेक्ट के लिए भी ऑफर किया गया था, लेकिन ऐक्ट्रेस ने ऑफर ठुकरा दिया था. इस समय वो ‘ड्रीम गर्ल 2’ के लिए बातचीत कर रही हैं. उन्होंने ऑडिशन भी दिया है. ये उनका पहला बॉलिवुड डेब्यू भी होगा.

 

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एक इंटरव्यू के अनुसार, तेजस्वी ने फिल्मों में अपनी दिलचस्पी दिखाई थी. उन्होंने कहा था कि वो प्रोफेशनली बहुत खुश हैं और कभी भी संतुष्ट नहीं हो सकती हैं. अभी एक्सप्लोर करने के लिए ओटीटी और फिल्में हैं. बता दें कि तेजस्वी इन दिनों टीवी सीरियल ‘नागिन 6’ में नजर आ रही है.

 

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अनुपमा को फिर से मां बनाना मेकर्स को पड़ा भारी, फैंस ने सुनाई खरी-खोटी  

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में इन दिनों  फुल एंटरटेनमेंट देखने को मिल रहा है. हाल ही में अनुज और अनुपमा की शादी हुई है. और शादी के बाद अनुज-अनुपमा हनीमून मनाने के लिए मुंबई गये हैं. जहां अनुज अपने अतीत के बारे में अनुपमा से बताता है. वह अनुपमा को अनाथालय ले जाता है, जहां उन्हें एक छोटी बच्ची मिलती है. यहां से शो के मेकर्स ने एक नए ट्रैक की शुरुआत कर दी है. आइए बताते है, क्या है पूरा मामला.

शो में आप देखेंगे कि जल्द ही अनुज और अनुपमा अनु नाम की एक लड़की को गोद लेंगे. फिर से अनुपमा मां बनेगी. इससे शो की कहानी में नया मोड़ देखने को मिलेगा. मेकर्स के इस ट्विस्ट ने फैंस नाराज है.

 

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फैंस ने मेकर्स को सोशल मीडिया पर ट्रोल करना शुरू कर दिया है. शो के फैंस दावा कर रहे हैं कि सीरियल अनुपमा के मेकर्स पूरे मुद्दे को भटकाने की कोशिश कर रहे हैं.

 

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फैंस का कहना है कि जैसे अनुज-अनुपमा पेरेंट्स बनेंगे कहानी कE फोकस अनुपमा की बेटी पर चला जाएगा. ये बात फैंस को हजम नहीं हो रही है. फैंस लगातार सोशल मीडिया पर अनुपमा के मेकर्स की लताड़ लगा रहे हैं.

फैंस का कहना है कि घुमा-फिराकर मेकर्स अनुपमा का बचकाना अंदाज दिखाकर बोर करने से बाज नहीं आते हैं. एक फैन ने सोशल मीडिया पर  लिखा है कि  दर्शकों को घटिया चीजें दिखानी बंद करो. आप लोग शो के लिए काफी मेहनत कर रहे हैं. कुछ लोगों ने तो अनुपमा के मेकर्स को धमकी देनी शुरू कर दी है.

 

तो वहीं दूसरे फैन ने अनुपमा के बारे में बात करते हुए लिखा, अनुज और अनुपमा की शादी को ज्यादा समय नहीं हुआ है. शादी के तुरंत बाद अडॉप्शन ट्रैक शुरू कर दिया गया है. लेकिन कुछ फैंस अनुपमा के मेकर्स को सपोर्ट भी कर रहे हैं. लोगों का कहना है कि शो में होने जा रही अनुज कपाड़िया के भाई-भाभी की एंट्री दिलचस्प होगी.

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