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नारी अब भी तेरी वही कहानी: भाग 1

राइटर- रमेश चंद्र सिंह

‘‘मां, मैं पापा के बारे में कभी न पूछूंगी. मैं तुम्हारे पुराने जख्मों को कभी न कुरेदूंगी,’’ अचानक मेरे मुंह से निकला था.

उस दिन मैं फूटफूट कर रोई थी.  मदन ने पूछा था, ‘पीहर की याद अब भी आ रही है क्या. शायद मेरे प्यार में कुछ कमी रह गई है?’ अब मैं उसे कैसे बताऊं कि आज मैं कितनी खुश हूं. ये आंसू मांबाबूजी से बिछुड़ने के नहीं, बल्कि खुशी के हैं जो मां को पा कर पूरे वेग से छलक पड़े हैं. हां, मां को, जिसे अब तक मैं मां सम झ रही थी वह मेरी मौसी थी. असली मां तो वह है जिसे मैं मौसी सम झ रही थी.

मेरी शादी हुए एक हफ्ता गुजर गया था. मदन ने मु झे इतना प्यार दिया कि मैं मायके की याद भूल गई. सासुमां ने मु झे मां जैसा स्नेह दिया. ननद और देवर ने मु झे कभी अकेले न छोड़ा. हर वक्त साया बन कर साथ लगे रहे. ननद हर वक्त मेरे नाश्ते, खाने का ध्यान रखती. देवरजी हमेशा कोई न कोई चुटकुला सुना कर हंसाते. ऐसी ससुराल पा कर मैं निहाल हो गई थी.

मैं ने कहा, ‘‘नहीं मदन, तुम्हारे प्यार में कोई कमी नहीं.’’

‘‘कोई बात नहीं, यह नैचुरल है. जिन परिजनों के बीच 25 वर्ष गुजारे हों उन की याद तो आएगी ही.’’

फिर मदन अपने किसी दोस्त से मिलने चला गया था. मैं ने उसे कुछ बताया भी नहीं. मां ने मना किया था. पत्र के अंत में लिखा था, ‘बेटी, यह राज, राज ही रहने देना. राज जिस दिन खुलेगा, तुम्हारी मां का दांपत्य जीवन बरबाद हो जाएगा.’

शादी के बाद जब मैं विदा हो रही थी तो मौसी ने एक पैकेट थमाया था, याचनाभरी निगाहों से बोली थीं, ‘बेटी, इसे एक हफ्ते बाद खोलना.’ उस समय मैं इस याचना के पीछे छिपे राज को न सम झ पाई थी.

आज जब मैं ने एकांत पा कर पैकेट खोला तो रत्नजडि़त कंगन के साथ एक पत्र था. पत्र में लिखा था, ‘बेटी, एक राज है जिसे अपने सीने में दबाए मैं पिछले 25 वर्षों से ढो रही हूं. अब न बताऊं तो तुम्हारे साथ अन्याय होगा और मैं स्वयं को क्षमा न कर पाऊंगी.

‘दीदी अपने बड़े बेटे बिभू की जन्मतिथि की 5वीं वर्षगांठ धूमधाम से मना रही थीं. दोस्तों के साथ ही रिश्तेदारों को भी बुलाया गया था. मैं भी आई थी.

‘उस समय मैं कालेज में पढ़ती थी. यौवन के मद में चारों ओर घूमती. शोख और निडर इतनी कि कालेज में कोई लड़का बदतमीजी करता तो उसे सबक सिखाने में तनिक भी देर न करती. जब बिभू के जन्मदिन के लिए केक काटने का समय आया तो पता चला कि बर्थडे वाला नाइफ नहीं है. बिभू जिद करने लगा कि उसे बर्थडे के म्यूजिक वाला ही नाइफ चाहिए. घर मेहमानों से भरा था. जीजाजी अपने मांबाप के इकलौते थे. घर में दीदी, जीजाजी और बच्चों के अलावा कोई न था.

‘मैं पहले भी दीदी के यहां आती थी. घर से एक दुकान नजदीक थी. वह देररात तक खुली रहती थी. मैं  झट से उठी और बोली कि मैं अभी ले कर आई. अभी लोग कुछ बोलते, मैं तेजी से बाहर निकल गई.

‘लेकिन बेटी, होनी को तो कुछ और ही होना था. घर और दुकान के बीच एक जगह सुनसान थी. वहां स्ट्रीट लाइट भी नहीं थी. मैं तेजी से बढ़ी जा रही थी कि अचानक किसी ने पीछे से पकड़ कर मेरा मुंह बंद कर दिया. फिर मैं उस के मजबूत बाजुओं से मुक्त होने के लिए बहुत छटपटाई, किंतु छूट न सकी.

‘वह मु झे एक  झोंपड़ी में ले गया जहां पहले से ही एक मनचला मौजूद था. फिर वे 20-25 मिनट तक मु झे नोचतेखसोटते रहे. मैं न चिल्ला पा रही थी न उन के चंगुल से मुक्त हो पा रही थी, क्योंकि उन में से एक ने मेरा मुंह बंद कर रखा था और दूसरे ने मजबूती से मु झे पकड़ रखा था. जब उन के हवस का ज्वार शांत हुआ तो वे मु झे अकेला छोड़ कर भाग गए.

‘अब मैं दुकान कैसे जाती. रोते हुए घर पहुंची. जब मु झे आने में देर होने लगी तो दीदी ने पिछले बर्थडे वाला नाइफ कहीं से खोजा और रस्म पूरी कर दी.

‘उस समय हैप्पी बर्थडे का म्यूजिक तेज आवाज में बज रहा था. दोस्त और रिश्तेदार ‘हैप्पी बर्थडे टू यू’ कह कर बिभु को जन्मदिन की बधाइयां दे रहे थे.

‘दीदी, रास्ते में पेट दर्द होने लगा तो दुकान न जा सकी. बीच रास्ते से ही लौट आई,’ मैं ने बहाना बनाया.

‘दीदी ने कहा, ‘कोई बात नहीं मेरे कमरे में जा कर लेट जा, कुछ देर बाद ठीक हो जाएगा. गैस की शिकायत हो गई होगी. जब न ठीक होगा तो बताना, दवा दे दूंगी.’

‘फिर दीदी मेहमानों की आवभगत में लग गई थीं.

‘बिभू ने कमरे में आ कर उत्साह से केक का एक टुकड़ा मेरे मुंह में डाला. अनिच्छा से केक के टुकड़े को निगलते हुए मैं ने उस से ‘हैप्पी बर्थ टू यू’ कहा.

‘क्या आप की तबीयत खराब है, मौसी?’ उस ने मु झे उदास देख कर पूछा.

‘हां बेटा,’ दर्द से कराहते हुए मैं ने कहा तो वह बोला, ‘मम्मी से दवा देने के लिए कह देता हूं.’ फिर चला गया. दरिंदों ने 20-25 मिनट में ही ऐसा दर्द दे दिया था जो आज तक टीस रहा है और अब इस जीवन में कम न होगा.

‘यह ऐसा घाव था बेटी, जो शरीर से ज्यादा दिल को जख्मी कर गया था.

‘बाहर सभी लोग फंक्शन में मशगूल थे और भीतर कमरे में शारीरिक व भावनात्मक व्यथा से पीडि़त मैं सोच रही थी, अब ऐसी जिंदगी जी कर क्या करूंगी.

‘फिर मेरे मन में विचार आया, रस्सी से फंदा लगा लूं. इधरउधर देखा, पंखा सिर पर लटक रहा था. बगल में दीदी की साड़ी पड़ी थी. कुरसी भी पास ही थी. सोचा, किसी को कुछ न बताऊंगी. एक सुसाइड नोट लिखूंगी ताकि मेरे मरने के बाद पुलिस वाले परिवार के किसी सदस्य को बिना वजह परेशान न करें. कागज के लिए भी कहीं जाना न था. जीजाजी की नोटबुक और पैन वहीं पड़ा था.

‘अभी मैं सुसाइड के बारे में सोच ही रही थी कि अचानक मन में विचार कौंधा, ‘अगर मैं आत्महत्या कर लूंगी तो घर में कुहराम मच जाएगा. दीदी के घर का जश्न मातम में बदल जाएगा. फिर आत्महत्या अपराध भी तो है. आखिर आत्महत्या से मु झे क्या मिलेगा. इस से तो हैवानों का मनोबल और बढ़ेगा. नहीं, मैं आत्महत्या नहीं करूंगी. यह जीवन के प्रति कायर नजरिया होगा. मैं इन हैवानों को सलाखों के पीछे पहुंचवाऊंगी. उन्हें फांसी दिलवाऊंगी.’

‘मेरे अंदर  झं झावातों का तूफान था. फिर न जाने कब आंख लग गई.

‘पेटदर्द कम हुआ, शैली?’ दीदी मु झे  िझं झोड़ रही थीं.

‘अचानक मेरी आंखें खुलीं. मैं कुछ बोलने की जगह दीदी की गोद में सिर रख कर

रोने लगी.

‘क्या बात है, शैली, रो क्यों रही हो. बताती क्यों नहीं. किसी ने तुम से कुछ कहा है क्या?’

‘दीदी अब चिंतित लग रही थीं. मु झे इस तरह अपनी गोद में मुंह छिपाए रोते देख सम झ गई थीं कि मु झे पेटदर्द नहीं है, बल्कि कुछ और समस्या है. मैं ने कोई जवाब नहीं दिया. सिर्फ रोते जा रही थी. इतनी रोई कि उन का आंचल भीग गया.

‘दीदी ने मेरे आंसू अपनी हथेलियों से पोंछते हुए मेरे चेहरे को ऊपर उठाया, बोलीं, ‘नहीं बताओगी तो हम कैसे जान पाएंगे. किसी ने बदतमीजी की है क्या?’

‘रोतेरोते मैं ने दीदी को सबकुछ बता दिया.

‘सुन कर दीदी को जैसे सदमा लगा हो. कुछ क्षण चुप रह कर पूछा, ‘पहचान सकती हो उन्हें?’

‘नहीं, वहां अंधेरा था. दोनों ने अपनाअपना मुंह गमछे से ढका हुआ था.’

‘उधर कुछ बदमाश रहते हैं. किंतु अब इस की चर्चा न करना. लोग जान जाएंगे तो हमारी बदनामी होगी. इस को एक हादसा सम झ कर भूल जाना ही ठीक होगा. पापा तुम्हारी शादी के लिए कुछ लोगों से बात कर रहे हैं. लड़के वाले जानेंगे तो शादी टूट जाएगी. ऐसी लड़की से कोई शादी नहीं करना चाहता जिस का कौमार्य भंग हो गया हो.’

‘किंतु दीदी उन हैवानों को हम ऐसे ही छोड़ दें? इस तरह तो उन की हैवानियत बढ़ती ही जाएगी. आज उन्होंने मेरी इज्जत लूटी है, कल किसी और की लूटेंगे. यह तो ठीक न होगा.

‘दीदी, अभी हम थाने में रिपोर्ट कर दें तो दोनों पकड़े जाएंगे. ये यहींकहीं होंगे. लोकल हैं. पुलिस वाले हो सकता है इस इलाके के गुंडोंबदमाशों को जानते भी हों.’

‘हो सकता है पकड़े जाएं, पर इस से तुम्हें क्या फायदा होगा. अभी तो कोई कुछ नहीं जानता, पर इस के बाद तो सारी दुनिया जान जाएगी. पढ़ाई छोड़ कर तुम्हें पुलिस और कोर्ट के चक्कर लगाने होंगे. मीडिया वाले होहल्ला करेंगे. यह तय है कि तब तुम से कोई शादी न करना चाहेगा. जब तुम नहीं पहचानतीं तो उन की शिनाख्त कैसे करोगी? पुलिस वाले रिश्वत ले कर मामला दबा देंगे. हम नाहक परेशान होंगे सो अलग.’

‘दीदी लगातार तर्क पर तर्क देती चली गई थीं और मेरी आवाज दबती चली गई थी. दीदी ने मु झे कसम दिलाई कि इस राज को राज रहने देने में ही हमारी भलाई है. उन्होंने इस घटना के बारे में किसी को

न बताया. यहां तक कि जीजाजी को

भी नहीं.

‘अब इस जलालत के बाद मैं एक दिन भी दीदी के यहां नहीं रुकना चाहती थी. जीजाजी ने कई बार कुछ दिनों तक रुक जाने को कहा, लेकिन मैं दूसरे दिन ही अपने घर लौट गई.

‘दिन बीते तो धीरेधीरे मैं नौर्मल होने लगी. फिर कालेज जाने लगी, पर अब मेरे अंदर एक बड़ा बदलाव हो गया था. अंदर ही अंदर घुटने लगी.

‘इसी तरह 2 महीने गुजर गए. एकाध बार उलटी की शिकायत हुई, पर ध्यान न दिया.

ऐतिहासिक कहानी: समर्पणा

राइटर- डा. प्रभात त्यागी

आंखें मलमल कर उस ने देखा है तो वही. पर यह कैसे संभव है…?

आश्चर्य, हर्ष व उत्साह से उल्लासित जया के कदमों में मानो पर लग गए. वह राजभवन की घुड़साल, पशुशाला, रसोई, स्नानागार व वाटिकाओं को पार कर ऊपरी मंजिल में स्थित अपनी कोठरी में जा घुसी. दूसरे ही पल एक कपड़े की पुटलिया हाथ में थामे आंध्र देश के वारंगल की जनानी ड्योढी में ‘महाराज रुद्र’ के सम्मुख खड़ी थी.

धोंकनी सी चलती अपनी सांसों को मुश्किल से नियंत्रित कर उस ने कहा, ‘आप इन्हें धारण कर लीजिए. अपने महाराज वीरभद्र शीघ्र पधार रहे हैं.’

उस के नयनों में अनोखी चमक थी. उस के होंठों पर हलकी मुसकराहट अठखेलियां कर रही थी. कपड़े की पुटलिया में रुद्रंबा को अपनी चमचम करती स्वर्णा पाजेब. सोने के ही बिछुए, मंगलसूत्र, रत्नों के कई बहुमूल्य हार, मांग भरने की सिंदूर की सुनहरी डिबिया व रत्नचूर्ण से निर्मित माथे की बिंदी, कंगन आदि अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे. ‘जयलक्ष्मी, तू मेरी दासी नहीं मुंहबोली बहन है, पर क्या ऐसी हंसीठिठोली तेरे लिए उचित है?’ रुद्रंबा का स्वर तीखा था.

‘तू भूल गई क्या कि हम सब ने आज से 3 महीने पहले महाराज वीरभद्र के मृत तन को अग्निचिता में सुला दिया था और उन के अंतिम चिन्हों को कृष्णा की उत्ताल लहरों में बहा कर, उन्हें अश्रुपूर्ण विदा भी दी थी? और तू कह रही है कि वे जीवित आ रहे हैं?’ रुद्रंबा रुंधे गले से बोली.

‘महादेवी, मेरा एक भी बोल झूठा हो तो दीवार पर लटकी इस चाबुक से मेरी गरदन काट कर घूरे में फेंक दीजिए. और लीजिए, इस खिड़की से स्वयं झांक लीजिए कि मैं सत्य से कितनी निकट या दूर हूं,’

रुद्रंबा ने तेजी से उठ कर वातायन से झांका. अपलक वह देखती ही रह गई. सचमुच महाराज वीरभद्र को कांधे पर बैठाए कई व्यक्तियों की भीड़ गोलकुंडा के मुख्य राजभवन के प्रमुख द्वार की ओर उमड़ रह थी. बिलकुल सामने सूर्य की लालिमा सारे जग में सिंदूर बिखेर रही थी. कई पक्षियों के नियमबद्ध झुंडों ने इसी पल आसमान में किलोल करते हुए खुशी का इजहार किया.

रुद्रंबा की दृष्टि सहसा अपने वर्तमान विधवा वेश पर गई. श्वेत परिधान, सूखे केश व रंगहीन मुख को परिवर्तित कर वह थोड़े समय के ही बाद माथे पर मुकुट, राजसी वस्त्रों, अनगिनत गले की माल और चमचमाते बंद, गले के उत्तरीय और रत्नजटित पगरखियों को पहन कर गोलकुंडा की ‘रुद्र महाराज’ के रूप में सिंहासनारूढ़ हो जाएगी.

60 वर्ष तक गोलकुंडा पर राज कर उस के पिता गणपति ने ही उसे अपने उत्तराधिकारी के रूप में राज्य सिंहासन पर बैठाते हुए उसे न केवल सदैव पुरुष वेश धारण करते रहने, अपितु जनता को भी उसे हमेशा ‘रुद्र महाराज’ के रूप में संबोधित करने का आदेश दिया था.

रुद्रंबा उस पल को याद करते हुए अचानक सोचने लगी कि पुरुषों के उस के समाज ने नारी जाति को कितना अपमानित किया है? एक ‘पति’ नामधारी प्राणी से पुट लिया की इन सब वस्तुओं का महत्व है, अन्यथा इन्हें किसी कोने में या कहीं भी रख देने में इन की सार्थकता है. यही नहीं, कहीं तो स्वर्ग सिधारे पति की चिता में ही एक-दो नहीं, बल्कि हजारों उस की रानियों और उपपत्नियों को जीवित बैठा कर भी समाज आनंदित हो जाता है क्या?

‘नहीं जया, मैं इन्हें धारण कर अपने नारीत्व का मखौल नहीं उड़ाऊंगी. एक बात बता यदि मैं इन सब से सज्जित हो कर उन के सामने चली भी गई तो क्या उन्हें यह विश्वास नहीं हो जाएगा कि मैं उन की अनुपस्थिति में भी इसी सधवा वेश में आनंदित रहती थी? तब क्या उन के पुरुषत्व पर ठेस नहीं लगेगी?’

‘मैं अपढ़ आप की ऊंचीऊंची बातें क्या समझूं? मेहरबानी कर आप इन्हें अवश्य धारण करें. आप को मेरी कसम. अन्यथा आप मेरा मरा मुंह देखें, यदि इन्हें आप ने अभी धारण नहीं किया,’ जया कक्ष के एक कोने में मुंह सुजा कर जा बैठी.

‘ओह जया. अपनी कसम दे कर तू ने मुझे किस उलझन में डाल दिया. चल, तेरी खुशी के लिए मैं इन्हें धारण कर लेती हूं- अपनी बहन के लिए मैं हृदय पर पत्थर रख कर फिर से सधवा बन जाती हूं. जा, जा कर स्वागत की भाली सजा…

वैसे, तू सुन ले. ‘रुद्र महाराज’ राज्य की संप्रभु हैं. उन का स्थान सर्वोच्च है. साधारण कानून उस पर लागू नहीं हो सकते. हां, सधवा रुद्र राजमहल से बाहर तो जाएगी नहीं.

प्रमुदित जया दौड़ पड़ी. उस ने अपने हाथों में तुरतफुरत रुद्रंबा का सिंगार किया और उन्हें पुटलिया की वस्तुओं के अतिरिक्त भी कई सिंगारिक उपकरणों से विभूषित कर दिया.

एकांत में रुद्रंबा ने पति से प्रश्न किया कि आखिर वे 3 महीने कहां रहे? वे क्यों गायब हो गए थे?

वीरभद्र ने उसे बताया कि एक राजसी अश्व पर आरूढ़ वह वारंगल के जंगलों में शिकार के लिए निकला था. शिकार कोई नहीं मिला. लौटते हुए निद्रित अवस्था में उस का अश्व गोलकुंडा से निकल कर उत्तरपश्चिम दिशा में देर्वागति की सीमा में पहुंच गया, यह उसे ज्ञात नहीं हुआ. अचानक उसे कई सैनिकों ने घेर लिया. उसे बंदी बना कर देवगिरि के शासक सिंघणा के सम्मुख ले जाया गया. सीमोल्लंघन के अपराध में उसे 3 महीने तक बंदीगृह में काटने पड़े.

पर, तुम सावधान हो जाओ, क्योंकि वहां मुझ से कोई परिचित तो था नहीं. अत: मैं ने जब अपनेआप को गोलकुंडा राजमहल का एक सेवक घोषित किया, तो जानती हो सिंघणा ने मुझ से क्या कहा? उस ने भरे दरबार में मुझे धमकी दी कि बहुत शीघ्र वह एक कमजोर नारी द्वारा संचालित गोलकुंडा पर आक्रमण कर, उसे देवगिरि का एक अंग बना लेगा.

वीरभद्र ने मानो सोते हुए सांप पर पैर रख दिया. रुद्रंबा फुफकार कर बोली, ‘आने दो सिंघणा को यहां. उसे ज्ञात हो जाएगा कि पिछले वर्षों में मैं ने यहां राज किया है, कोरा अभिनय नहीं. युद्धस्थल में मैं ने मदुरा के शासकों व उड़ीसा के गंगों को जैसे शिकस्त दी थी, सिंघणा भी मेरे हाथों, एक नारी द्वारा बुरी तरह परास्त ही होगा.’

रुद्रंबा का मस्तिष्क वीरभद्र से बात करते हुए भी पूरी तरह यह मंथ रहा था कि आखिर गोलकुंडा में वीरभद्र के स्थान पर किस की अन्येष्टि की गई. दोष किस का रहा?

जया को जब उस ने अपने पति से हुई वार्तालाप की बातें बताईं तो उस का भी यही प्रश्न था कि राजकीय सम्मान के साथ महाराज वीरभद्र के स्थान पर किसे अंत्येष्टि का लाभ मिला और क्यों?

‘रुद्र महाराज’ के आदेश पर राज्य प्रधान भागता चला आया. तनिक कठोरता दिखाने पर उस ने स्वीकार कर लिया कि उस के किसी कर्मचारी ने किसी ऐसे व्यक्ति की अंतिम क्रिया करा दी, जिस का क्षतविक्षत तन, जिस का खून किया गया था, महाराज वीरभद्र से बहुत मिलताजुलता था.

रुद्रंबा ने तुरंत राज्य प्रधानी को जीवनभर के लिए बंदीगृह में डाल दिया. मूल उत्तरदायित्व उसी का था, कर्मचारी का नहीं.

रुद्रंबा द्वारा रुद्र महाराज का चोला धारणा कर लेने से वीरभद्र से उस के संबंधों में अनजाने ही एक गंभीर दरार पैदा हो गर्ई थी. वीरभद्र कभी राज्य सिंहासन पर रुद्रंबा का साथ नहीं दे सकता था क्योंकि दो पुरुष एक सिंहासन पर कैसे बैठते? सामान्य संबंधों में भी रुद्र महाराज संपूर्णा गोलकुंडा सहित अपने पति की भी ‘महाराज’ थी. उस के पति को भी उसे अपनी शासिका स्वीकारना चाहिए. यह भाव उसे पति से विलग करता गया. वीरभद्र ने भी इसे अपनी नियति मान कर अपनेआप को निम्नतर व उपेक्षित बना लिया. अत: वे दोनों अनजान बनते गए.

जब पतिपत्नी में एकसमान धरातल, सहजता व बराबरी न हो तो दोनों में सामंजस्य कठिन है. वीरभद्र व रुद्रंबा के विवाह बाद से ही ऐसे संबंध थे. पति को पुन: पा कर रुद्रंबा ने यद्यपि हर्ष व आनंद का प्रदर्शन किया, पर उस के मन में तार जया के प्रयासों के उपरांत भी झंकृत नहीं हो सके थे.

वीरभद्र ने देवगिरि से लौटने के पश्चात बातों ही बातों में रुद्रंबा से कहा, ‘रुद्र, तुम्हें विश्वास हो या नहीं, पर मैं तुम्हें मन से चाहता हूं, तुम्हारी मैं पूजा करता हूं. इन तीन महीनों में एकदूसरे से दूर रहने के कारण मेरे हृदय में तुम्हारे प्रति प्रेम की चिंगारी और भी तीव्र हो चुकी है.’

रुद्रंबा कुछ बोली नहीं, पर मन ही मन वह हंस पड़ी.

समय का रथ स्वाभाविक गति से चलता गया. अचानक एक दिन सिंघणा अपनी विशाल सेना ले कर वारंगल में आ धमका. उस का मंतव्य वारंगल को हस्तगत कर गोलकुंडा का विलय देवगिरि में करना था.

पूर्व की भांति रुद्र महाराज ने काकतीय सैनिकों को ललकारा. उन का नेतृत्व करते हुए उस ने उन्हें अपनी व राष्ट्र की स्वाधीनता को अक्षुण्य रखने की प्रेरणा दी. जनसाधारण ने अपनी शासिका की पूर्व युद्ध प्रवीणता को याद कर उसे युद्ध के लिए भावभीनी विदाई दी.

रुद्रंबा शत्रु पर टूट पड़ी. युद्ध भयानक हुआ. इस में रुद्र महाराज की फुरती व सक्रियता दर्शनीय थी. सिंघणा जिसे बच्चों का खेल मान रहा था, उस के विपरीत नारी की सेना का सामना करने में उसे पसीने छूट गए. स्थिति ऐसी हुई कि गोलकुंडा के बहादुर सैनिकों ने देवगिरि को बुरी तरह परास्त कर दिया. सिंघणा को प्राण बचा कर भागना पड़ा. पीठ दिखाने के बाद भी सिंघणा ने देवगिरि में जा कर घोषित किया कि नारी शासिका को अभयदान दे कर वह लौट आया है. चाटुकारों ने उस की बात का समर्थन किया.

रुद्रंबा की भूल यही थी कि उस ने भागते शत्रु का पीछा नहीं किया. उस का कहना था, ‘पीठ दिखाने वाले शत्रु का पीछा करना नैतिकता का प्रतिकार है.’

विजयी रुद्र महाराज का वारंगल की जनता ने अभूतपूर्व स्वागत किया. उसे न केवल पुष्पमालाओं, प्रत्युत्त बहुमूल्य उपहारों से लाद दिया गया. रात्रि में घरघर में दीपमालिका जैसे जगमगाहट हुई.

इस सम्मान से अभिभूत जया की प्रसन्नता का तो पारावार ही नहीं था. उस ने अपनी रानी की अपने ढंग से राजमहल में अगवानी की. रुद्रंबा के तन के घावों को हाथों से संभाल कर धोते हुए उन पर वैद्यजी के परामर्श के अनुसार उस ने कई प्रकार की जड़ीबूटियों का लेप किया.

उसे पलंग पर सावधानी से लिटाते हुए जया अचानक बोली, ‘महाराज, आप को एक गुप्त बात भी मुझे बतानी है.’ उस ने फुसफुसा कर उस के कान में जो बात बताई, उस से रुद्रंबा विस्मित हो कर मौन हो गई. तत्काल उस ने प्रश्न किया, ‘तुझे किस ने बताया?’

‘मुझे कौन बताता, मैं ने अपने ही हाथों में सैनिक वेश उन्हें दिया था.’

‘सच…? तो छोड़ मेरे घावों को. लालटेन उठा व चल मेरे साथ,’ जया ने आज्ञा का पालन किया. वे दोनों युद्ध स्थल में पहुंची. वहां वे एकएक मृत व्यक्ति का मुख लालटेन के प्रकाश में टटोलती रहीं. अचानक जया बोली, ‘महाराज, ये रहा उन का तन. गले में डाली इस विशेष गलमाल को मैं ने विदा लेते समय डाली थी.

रुद्रंबा जड़ खड़ी रह. इस सैनिक वेशधारी की युद्ध प्रवीणता की तो रुद्रंबा ने युद्धकाल में ही खूब प्रशंसा की थी. पर ये वे होंगे, यह उस की कल्पना के परे था.

तभी उसे युद्धकाल की वह घटना भी याद आ गई. ‘जया, इन्होंने तो आज मेरे प्राण भी बचाए थे. एक सैनिक का तीर न जाने किधर से आ कर मेरे तन के आरपार होने को था, पर इन्होंने अपने अश्व से उतर कर उस तीर को अपनी छाती पर ले लिया. मैं तो स्वयं अपने प्राणरक्षक को ढूंढ़ रही थी. ओह, जया…

अपने प्राणी का उत्सर्ग कर, मेरे पति ने मेरी आंखें खोल दी हैं. मुझ मूर्ख को देखो कि मैं ने यह बताने पर भी कि ये मुझे प्राणों से अधिक चाहते हैं, मैं ने उन की बात सुनीअनसुनी कर दी.

मृत पति वीरभद्र का मुख अपने दोनों हाथों में थाम कर, उस पर निर्मल अश्रुओं की झड़ी लगा कर उन के मुख को उस ने धो डाला.

जया तो खड़ीखड़ी तीव्र विलाप कर रही थी, तभी अपने पीछे खड़े एक बीस वर्षीय युवक के बोल रुद्रंबा को सुनाई दिए, ‘नानी, मैं तो आप को ही अब तक अपनी प्रेरणा का पुंज मानता था, पर नाना के अमर बलिदान ने तो मुझे हिला ही डाला.’  प्रताप रुद्र, रुद्रंबा का धेवता आंसू पोंछता हुआ बोल उठा.

इसी समय मुमम्मा, रुद्रंबा की बेटी ने वीरभद्र के चरणों से सिर उठा कर कहा, ‘अम्मां, तुम ने पिताजी की बहुत उपेक्षा की है, पर देखो, उन के मुख पर कितनी प्रखर ओज है इस समय?’

रुद्रंबा क्या प्रत्युत्तर देती? उस के अनवरत अश्रु ही मौन उत्तर दे रहे थे.

‘नाना के मृत तन के सम्मुख मैं शपथ लेता हूं कि आप दोनों की प्रसिद्धि को मैं आंच नहीं आने दूंगा- आप दोनों की प्रतिष्ठा को मैं बनाए रखूंगा.’

अगले चार वर्षों के पश्चात पूरे 34 वर्ष शासन करने के पश्चात जब रुद्र महाराज ने 1289 में अंतिम सांस ली, तो गोलकुंडा चतुर्दिक उन्नति कर चुका था.

रुद्र महाराज की बेटी मुमम्मा ने अपनी मां की इच्छानुसार गोलकुंडा का शासन संभाला, पर उस ने थोड़े समय के ही पश्चात सिंहासन अपने बेटे प्रताप रुद्र को सौंप दिया.

प्रताप रुद्र ने नानी के सम्मुख से ही अश्व संचालन, युद्धकला व शासन के दांवपेच सीखे थे. इसलिए वह काकतीयों का सफलतम व अत्यंत प्रतिभाशाली शासक सिद्ध हुआ. उस ने तो अपने काल में मलिक काफूर व दिल्ली की सेना को भी करारी शिकस्त दी. पूरे दक्षिण भारत को रोंद देने वाले काफूर की गति गोलकुंडा में आ कर प्रताप रुद्र के सामने इतनी कमजोर हो गई कि दिल्ली को गोलकुंडा से समझौता कर के ही किसी प्रकार अपने प्राण बचाने पड़े.

प्रताप अपनी नानी रुद्रंबा का अत्यंत आभारी था, जिस ने उसे प्रत्येक क्षेत्र में पारंगत बनाया. इस से पूर्ण भारत में कश्मीर में यशोवती, दिद्दा व सुगंध, पूर्वी चालुक्यों में विजयामहादेवी, कदंबों में दिवा भारसी और उड़ीसा की भौमकार वंशीय पृथ्वी, दंडी, धर्मा व बैकुंला महादेवी कोई भी उत्तराधिकारी न होने अथवा अपने बेटे के बालिग होने तक सिंहासनारूढ़ रह चुकी थी. पर पूरे 34 वर्ष तक के लंबे अंतराल में सफल शासिका रहने में (वृद्ध भी. सदैव पुरुष वेश में) रुद्रंबा अग्रणी कही जा सकती है.

व्यंग्य: दोस्ती के दांत दिखाने वाले, निभाने वाले

Wrietr- अशोक गौतम

विश्व स्तर पर दोस्ताना संघ की स्थापना जब हुई हो तब हुई हो, पर इस की नींव की बहुतकुछ आउटलाइन मेरे जवान होते दिनों में उस समय तैयार होने लगी थी जब हम सब महल्ले के सारे जवान होते बातबात पर एकदूसरे के हाथों में एकदूसरे का हाथ ले उसे पूरे जोर से दबा कसम खाते नहीं थकते थे कि हम सब अपनी अपनी दोस्ती की कसम खाते हैं कि जो हम में से किसी को दूसरे महल्ले के गधे ने भी हाथ लगाया तो हम सब मिल कर साले के हाथपांव तोड़ कर रख देंगे. उस के हाथपांव हों या न. उस की पूंछ, कान मरोड़ कर रख देंगे. उस के पूंछ, कान हों या न. हम में से किसी की ओर दूसरे महल्ले का सही होने पर भी जो कोई आंख उठा कर भी देखेगा तो उस की आंखों में देगीमिर्च डाल देंगे. बाद में घर में दाल में मिर्च न डले, तो न सही.

मुझे तब अपने दोस्तों पर यह कसम खाते हुए बहुत गर्व होता था. तब मैं अपने को कई बार महल्ले की ही नहीं, शहर की महाशक्ति समझने लग जाता था. तब मुझे लगता था कि मेरा अमेरिका भी कुछ नहीं कर सकता.  तब मैं सोचता था कि मेरा चीन भी कुछ नहीं कर सकता. पर एक दिन मेरा दोस्ती का सारा घमंड चूरचूर हो गया.

हुआ यों कि एक दिन बिन बात के दूसरे महल्ले के लड़के ने मेरी आती जवानी को बेकार में ललकार दिया जबकि मेरी आती जवानी ने उस के महल्ले का कुछ भी बुरा नहीं किया था. उस की बेकार की ललकार को सुन मैं भी तब गुस्से में आ गया था. हद है यार, बिन कुछ किए ही बंदा ललकार रहा है?

मैं गुस्से में इसलिए नहीं आया था कि मुझ में उस का विरोध करने का दम था. मैं ने सोचा था कि जिस के पीछे उस के दोस्त हों, उसे तो खुदा से भी डर नहीं लगता है. लगना भी नहीं चाहिए. दोस्तों के सिवा मेरे पास उस वक्त, बस, आतीआती जवानी थी, जबकि वह औलरैडी एडवांस लैवल का जवान था. मैं तो गुस्से में इसलिए आया था कि मेरे पास मेरे पीछे बीस दोस्त थे. मुझे अंधविश्वास था कि मेरे पीछे मेरे दोस्त हिमालय की तरह खड़े हैं. वे मेरी खाल तो क्या,  किसी भी कीमत पर मेरा बाल भी बांका नहीं होने देंगे.  मुझे यह  पता था कि मैं उस के सामने पिददी हूं. पर मैं ने दोस्तों के दम पर सहर्ष उस का चैलेंज स्वीकार कर लिया. क्योंकि किताबों में किस्सेकहानियों में पढ़ा था कि जिस के पीछे दोस्त होते हैं उस का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता.

बस, फिर क्या था. मैं ने उस की ललकार को अपनी नईनई दहाड़ से दबाने की कोशिश की तो दूसरे महल्ले का लड़का और भी आक्रामक हो गया. मैं ने उस के आगे बेखौफ हो अपनी नएनए लड़ने के तरीकों से अनजान छाती तान दी कलाशनिकोव राइफल की तरह, यह सोच कर कि मेरे पीछे मेरे दोस्तों की मिजाइलें हैं.

दस मिनट… बीस मिनट… तब मैं अकेला ही जैसेतैसे उस का विरोध उस के लातघूंसे सहन करते करता रहा. पर मेरे दोस्त मेरी सहायता को नहीं आए, तो नहीं आए. वे, बस, दूर से हवा में हौकियां, डंडे लहराते, मेरे जोश को तालियां बजाते बढ़ाते, मेरी पीठ के बहाने अपनी पीठ थपथपाते,  तो दोतीन दूर से मेरे जख्मों पर मरहम लगाते. मैं ने तब उन्हें तब उस का सामना करने को अपने साथ आने को बहुत पुकारा. पर वे नहीं आए, तो नहीं आए. मुझे  लगा, जैसे वे उस के भी दोस्त हों.

अंत में मैं खुद ही जैसेतैसे हौसला बना कर उस का आधापौना सामना किया और जैसेकैसे अपने को बचा पाया. उस के बाद टांगों के नीचे से कान पकड़े थे कि बेटे, जिंदगी में जो हिम्मत हो, तो किसी की गलतसही ललकार का सामना हो सके तो अकेले ही करना. हर वह, जो मुसीबत में काम आने की कसम खाता है, दोस्त नहीं होता. कलियुग में दोस्त हाथी के दांतों की तरह होते हैं, मुसीबत आने से पहले कसमें खाने वाले और, तो मुसीबत के वक्त काम आने वाले और.

GHKKPM: विराट की जिंदगी में होगी इस हसीना की एंट्री! क्या करेगी सई

सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ की इन दिनों हाईवोल्टेज ड्रामा देखने को मिल रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि सई और विराटत के कारण शिवानी और राजीव एक हो गए हैं. इसी बीच सई-विराट की जिंदगी में एक और तूफान आने वाला है. आइए बताते है, शो के आगे की कहानी.

एक रिपोर्ट के अनुसार सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ की कहानी में जल्द ही सोनिया सिंह की एंट्री होने वाली सोनिया सिंह सुपरहिट शो ‘दिल मिल गए में’ काम कर चुकी हैं. ‘गुम है किसी के प्यार में’ सोनिया सिंह राजीव की बहन का किरदार निभाने वाली हैं.

 

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शो में राजीव की बहन की एंट्री कई ट्विस्ट और टर्न्स लेकर आने वाली है. गौरतलब है कि विराट और सई ने मिलकर परिवार के लोगों को शिवानी और राजीव की शादी के लिए राजी कर लिया है.

 

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बताया जा रहा है कि शो में शिवानी और राजीव की शादी के दौरान सोनिया सिंह की धमाकेदार एंट्री होगी. हालांकि मेकर्स ने अब तक भी इस बात का खुलासा नहीं किया है कि शो में सोनिया सिंह का किरदार कैसा होगा. लेकिन ये तय है कि शो में इस हसीना की एंट्री के बाद बड़ा ट्विस्ट देखने को मिलेगा.

 

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आलिया-रणबीर की शादी की Kissing फोटोज देख भड़के लोग, किया ट्रोल

बॉलीवुड के चर्चित कपल रणबीर कपूर और आलिया भट्ट अपनी शादी को लेकर सुर्खियों में छायेहुए हैं. दोनों की शादी की कई फोटोज और वीडियोज सामने आई है. फैंस इन फोटोज और वीडियोज को काफी पसंद कर रहे हैं. तो कुछ लोगो ने ट्रोल भी किया है. आइए बताते है, क्या है पूरा मामला.

रणबीर और आलिया 14 अप्रैल को वास्तु बिल्डिंग में सात फेरे लिए. रणबीर कपूर और आलिया भट्ट की शादी की कई ऑफिशियल फोटोज सामने आई हैं, जिन्हें फैंस पसंद भी कर रहे हैं. तो वहीं रणबीर-आलिया की किसिंग फोटो भी सामने आई, जिसे देखने के बाद यूजर्स ने ट्रोल करना शुरू कर दिया.

 

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यह फोटो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. इस फोटो पर कई लोगों ने कमेंट किया है. एक यूजर ने कमेंट में लिखा, ‘कितनी किस लोगे भाई सुहागरात के लिए रखो भाई’ तो वहीं दूसरे यूजर ने लिखा ‘वेस्ट की नकल करने के लिए कड़ी मेहनत करने की कोशिश कर रहे हैं. कम से कम हम उनकी सराहना कर सकते हैं.’

 

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इस कपल ने शादी के बाद मीडिया के सामने आकर कई फोटोज क्लिक कराई थीं.

 

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रणबीर कपूर और आलिया भट्ट की वेडिंग फोटोशूट सामने आई है, जिसमें रणबीर कपूर और आलिया भट्ट के साथ सोनी राजदान, महेश भट्ट, शाहीन भट्ट, नीतू कपूर, रिद्धिमा कपूर फोटोशूट करवा रहे है. तो वहीं एक फैन ने फोटो एडिट कर ऋषि कपूर को भी सबके साथ खड़ा कर दिया है.

 

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बता दें कि रणबीर कपूर और आलिया भट्ट एक-दूसरे को बीते 4 साल से डेट कर रहे थे. वर्क फ्रंट की बात करें तो आलिया भट्ट और रणबीर कपूर पहली बार डायरेक्टर अयान मुखर्जी की फिल्म’ ब्रह्मास्त्र’ में साथ नजर आएंगे.

IPS नवनीत सिकेरा: जानें ‘भौकाल’ वेब सीरीज के असली हीरो के बारे में

इन दिनों ओटीटी प्लेटफार्म पर वेब सीरीज ‘भौकाल’ के दूसरे भाग की काफी चर्चा है. उस में यूपी के एक जांबाज आईपीएस को शातिर ईनामी अपराधियों से सामना करते दिखाया गया है. बात सितंबर 2003 की है, तब पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता बढ़ते अपराधों को ले कर बेहद परेशान थी. मुजफ्फरनगर के माथे पर तो क्राइम के कलंक का जैसे धब्बा लग चुका था. आए दिन अपहरण, हत्या, बलात्कार, लूट और डकैती की होने वाली ताबड़तोड़ वारदातों से समाजवादी पार्टी की मुलायम की सरकार पर लगातार आरोपों की बौछार हो रही थी.

मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को विधानसभा में विपक्षी राजनीतिक दलों के सवालों के जवाब देते नहीं बन पा रहा था. कारण था शातिरों के सक्रिय कई गैंग और उन की बेखौफ आपराधिक घटनाएं. वे अपराध को अंजाम देने से जरा भी नहीं हिचकते थे.

मुख्यमंत्री ने पुलिस विभाग के आला अफसरों की गोपनीय बैठक बुलाई थी. उन के बीच फन उठाए अपराधों को ले कर गहन चर्चा हुई. बेकाबू अपराधों पर अंकुश लगाने के वास्ते कुछ नीतियां बनीं और कुछ जांबाज पुलिसकर्मियों की लिस्ट बनाई गई. उन्हीं में एक आईपीएस अधिकारी नवनीत सिकेरा का नाम भी शामिल था.

तुरंत उस निर्णय पर काररवाई की गई. अगले रोज ही आईपीएस नवनीत सिकेरा मुजफ्फरनगर के एसएसपी के पद पर तैनात कर दिए गए. तब डीआईजी मेरठ ने उन्हें पत्र सौंपते हुए कहा था, ‘इस देश में 2 राजधानियां हैं— एक दिल्ली जहां कानून बनाए जाते हैं, दूसरी मुजफ्फरनगर (क्राइम कैपिटल) जहां कानून तोड़े जाते हैं.’

यह कहने का सीधा और स्पष्ट निर्देश था कि कानून तोड़ने वाले को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाना चाहिए. दरअसल, 49 वर्षीय नवनीत सिकेरा उत्तर प्रदेश कैडर के 1996 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं. इन दिनों वह उत्तर प्रदेश पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक हैं. इस से पहले वह इंसपेक्टर जनरल थे.

वैसे तो उन्होंने आईआईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. कंप्यूटर साइंस में बीटेक और एमटेक की डिग्री हासिल करने के बावजूद वह पिता को आए दिन मिलने वाली धमकियों की वजह से आईपीएस बनने के लिए प्रेरित हुए. हालांकि उन्होंने भारत में यूपीएससी की सब से बड़ी परीक्षा अच्छे रैंक के साथ पास की थी और आईएएस के लिए चुने गए थे.

सिकेरा की सूझबूझ और जांबाजी

आईआईटी रुड़की से इंजीनियरिंग और फिर आईपीएस बने नवनीत सिकेरा ने मुजफ्फरनगर का जिम्मा संभालने के तुरंत बाद इलाके में हुई मुख्य वारदातों की सूची के साथ उन के आरोपियों की डिटेल्स मंगवाई. यह देख कर उन्हें हैरानी हुई कि अधिकतर आरोपी हजारों रुपए के ईनामी भी थे.

आरोपियों ने बाकायदा गैंग बना रखे थे. पुलिस की आंखों में धूल झोंकना उन के लिए बाएं हाथ का खेल था. यहां तक कि वे पुलिस पर भी हमला करने से नहीं चूकते थे.

उन्हीं बदमाशों में शौकीन, बिट्टू और नीटू कैल की पूरे जिले में दहशत थी. छपारा थाना क्षेत्र के गांव बरला के रहने वाले शौकीन पर 20 हजार रुपए का ईनाम घोषित था. इस के अलावा थाना भवन क्षेत्र के गांव कैल शिकारपुर निवासी बिट्टू और नीटू की आपराधिक वारदातों से भी जिले में दहशत फैली हुई थी.

शौकीन ने गांव के ही 2 लोगों की हत्या के अलावा अपहरण और हत्या की कई वारदातों को अंजाम दिया था.

सिकेरा ने कंप्यूटर साइंस की इंजीनियरिंग का इस्तेमाल शातिरों की आपराधिक गतिविधियों के साथ कनेक्ट करने में लगाया. सूझबूझ से अपनाई गई डेटा एनालिसिस की तकनीक क्राइम से निपटने में काम आई.

जल्द ही शातिरों के खिलाफ रणनीति बनाने में उन्हें पहली कामयाबी मिली और उन्होंने शौकीन को एनकाउंटर में मार गिराया. उस के बाद नीटू और बिट्टू भी मारे गए. दोनों वैसे शातिर थे, जिन पर पुलिस पर ही हमला कर कारबाइन भी लूटने के आरोप थे.

उस के बाद वह सिकेरा से ‘शिकारी’ बन गए थे. यह संबोधन थाना भवन में बिट्टू कैल का एनकाउंटर करने पर तत्कालीन डीआईजी चंद्रिका राय ने दिया था. तब उन्होंने सिकेरा के बजाए नवनीत ‘शिकारी’ कह कर संबोधित किया था.

हालांकि नवनीत सिकेरा 6 सितंबर, 2003 से ले कर पहली दिसंबर, 2004 तक मुजफ्फरनगर में एसएसपी पद पर रहे. इस दौरान उन्होंने कुल 55 शातिर और ईनामी बदमाशों को एनकाउंटर में ढेर कर दिया था.

एनकांउटर में मारे गए बदमाशों में पूर्वांचल के शातिर शैलेश पाठक, बिजनौर का छोटा नवाब, रोहताश गुर्जर, मेरठ का शातिर अंजार, पुष्पेंद्र, संदीप उर्फ नीटू कैल, नरेंद्र उर्फ बिट्टू कैल आदि शामिल थे. वैसे यूपी में उन के द्वारा कुल 60 एनकाउंटर करने का रिकौर्ड है.

सब से खतरनाक एनकाउंटर

मुजफ्फरनगर के छोटेमोटे बदमाशों के दबोचे जाने के बावजूद कई खूंखार शातिर बेखौफ छुट्टा घूम रहे थे. उन में कई जमानत पर छूटे हुए थे, तो कुछ दुबके थे.

उन्हीं में शातिर रमेश कालिया का नाम भी काफी चर्चा में था. उस ने पुलिस की नाक में दम कर रखा था. वह भी ईनामी बदमाश था और फरार चल रहा था.

रमेश कालिया लखनऊ का रहने वाला एक खतरनाक रैकेटियर था. उस का मुख्य धंधा उत्तर प्रदेश के कंस्ट्रक्टर और बिल्डरों से जबरन पैसा उगाही का था. साल 2002 में जब समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी. तब मुख्यमंत्री बनने पर मुलायम सिंह यादव के सामने प्रदेश की कानूनव्यवस्था को सुधारना बड़ी चुनौती थी.

सरकार के लिए कालिया नाक का सवाल बना हुआ था. उस ने पूरी राजधानी को अपने शिकंजे में ले रखा था. वह गैंगस्टर बना हुआ था. उस के माफिया राज की जबरदस्त दहशत थी.

उस के गुंडे और शूटर बदमाशों द्वारा आए दिन लूटपाट, डकैती, हत्या और फिरौती की वारदातों से सामान्य नागरिकों में काफी दहशत थी, यहां तक कि राजनीतिक दलों के नेता तक उस के नाम से खौफ खाते थे.

और तो और, सितंबर 2004 में समाजवादी पार्टी के एमएलसी अजीत सिंह की हत्या का रमेश कालिया ही आरोपी था. अजीत सिंह की हत्या उन के जन्मदिन के मौके पर ही कर दी गई थी. इस कारण राज्य की चरमराई कानूनव्यवस्था और नागरिकों की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े हो गए थे.

तब तक नवनीत सिकेरा का नाम पुलिस महकमे में काफी लोकप्रिय हो चुका था. यह देखते हुए ही सिकेरा को उस के खात्मे की जिम्मेदारी सौंपी गई थी.

कालिया 14 साल की उम्र से ही क्राइम की दुनिया में था. उस उम्र में उस ने एक व्यक्ति पर जानलेवा हमला कर दिया था, जिस कारण वह पहली बार जेल गया था. जेल से छूटने के बाद लखनऊ के कुख्यात माफिया सूरजपाल के संपर्क में आ गया था. उस के साथ काफी समय तक रहते हुए वह शातिर बदमाश बन चुका था. वह कई आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो गया था.

सूरजपाल की मौत के बाद वह उस के गिरोह का सरगना भी बन गया था. इस तरह उस पर कुल 22 केस दर्ज हो गए थे, जिन में से 12 हत्याओं के अलावा 10 मामले हत्या का प्रयास करने के थे. उस पर कांग्रेसी नेता लक्ष्मी नारायण, सपा एमएलसी अजीत सिंह और चिनहट के वकील रामसेवक गुप्ता की हत्या का आरोप था.

इस लिहाज से खूंखार कालिया को शिकंजे में लेना आसान नहीं था. उन दिनों सिकेरा की पोस्टिंग मुजफ्फरनगर के बाद मेरठ में हो चुकी थी. वहां भी लोग आपराधिक घटनाओं से त्रस्त थे.

सिकेरा ने अपराधियों पर नकेल कसनी शुरू कर दी थी. उन का नाम लोगों ने सुन रखा था और उन से उम्मीदें भी खूब थीं.

उन्हीं दिनों प्रौपर्टी डीलर इम्तियाज ने कालिया द्वारा जबरन वसूली की मोटी रकम की शिकायत दर्ज करवाई थी. उन्होंने इस बारे में सिकेरा से मिल कर पूरी जानकारी दी थी कि वह पैसे के लिए कैसे तंग करता रहता है.

प्रौपर्टी डीलर ने सिकेरा को जबरन वसूली संबंधी पूछताछ के सिलसिले में बताया था कि उन्होंने कालिया को 40 हजार रुपए दिए थे, जबकि उस की मांग 80 हजार रुपए की थी. कम रुपए देख कर वह गुस्से में आ गया था और उस पर पिस्तौल तान दी थी.

इम्तियाज की शिकायत पर सिकेरा ने वांटेड अपराधी को घेर कर दबोचने की योजना बनाई. उन्होंने पहले एक मजबूत टीम बनाई. टीम में जांबाज पुलिसकर्मियों को शामिल किया और सभी को पूरी प्लानिंग के साथ अच्छी ट्रेनिंग दी.

सिकेरा को 12 फरवरी, 2005 को रमेश कालिया के निलमथा में होने की खबर मिली. यह सूचना उन्होंने तुरंत अपनी टीम के खास साथियों को बुला कर एनकाउंटर का प्लान बनाया.

राजनेताओं के संरक्षण के चलते बेखौफ रमेश कालिया पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखने के साथ व्यापारियों से रंगदारी वसूला करता था. उस ने एक बिल्डर से 5 लाख रुपए की मांग की थी. इस के लिए निलमथा इलाके में निर्माणाधीन मकान पर बुलाया था.

बारातियों की वेशभूषा में किया एनकाउंटर

उस ने चारों ओर अपने साथियों को मुस्तैद कर रखा था. उस के अड्डे तक पहुंचने का कोई रास्ता नजर न आने पर सिकेरा ने पुलिस की नकली बारात की रूपरेखा तैयार की थी. बैंडबाजे के साथ बारात निलमथा में रमेश कालिया के अड्डे तक जा पहुंची.

उस के बाद सिकेरा ने कालिया को दबोचने के लिए अनोखा प्लान बनाया. उन्होंने पुलिस टीम को बारातियों की वेशभूषा में निलमथा में भेज दिया. उन्हें यह भी मालूम हुआ था कि वह बारात लूटपाट की भी वारदातें कर चुका था.

नकली बारात में एक महिला सिपाही सुमन वर्मा को दुलहन बना दिया गया. उन्हें काफी जेवर पहना दिए गए थे. चिनहट के इंसपेक्टर एस.के. प्रताप सिंह दूल्हे के गेटअप में थे.

नाचतेगाते बारातियों ने कालिया को चारों तरफ से घेर लिया. उस ने रास्ता लेने के लिए गुस्से में पिस्तौल निकाल ली. वह अभी हवाई फायर करने वाला ही था कि बाराती बने पुलिसकर्मी ऐक्शन में आ गए.

उस का भी वही हश्र हुआ, जो इस से पहले सिकेरा के हाथों अन्य बदमाशों का हुआ था. लगभग 20 मिनट तक चले इस औपरेशन में पुलिस और कालिया गिरोह के बीच 50 से अधिक गोलियां चली थीं. इस गोलीबारी में पुलिस ने रमेश कालिया को ढेर कर दिया था.

पुलिस महकमे में यह खबर आग की तरह फैल गई कि कालिया एनकाउंटर में मारा गया. यह खबर मीडिया में सुर्खियां बन गई. इसी के साथ आईपीएस सिकेरा के नाम एक और शाबाशी का तमगा जुड़ गया. तब तक वे 60 एनकाउंटर कर चुके थे.

सिकेरा की 10 महीने की कप्तानी में इतने एनकाउंटर एक रिकौर्ड है. शिकायतों पर काररवाई करा कर उन्होंने नागरिकों का ऐसा विश्वास जीता कि शहर से ले कर गांव तक उन का खुद का नेटवर्क बन गया था.

कालिया की मौत के बाद लोगों ने काफी राहत महसूस की.

सिकेरा का जब वहां से ट्रांसफर किया गया, तो लोगों को काफी सदमा लगा. वे नहीं चाहते थे कि सिकेरा कहीं और जाएं. उन की लोकप्रियता का यह आलम था कि शहर में उन्हें वापस बुलाने के लिए जगहजगह पोस्टर लगा दिए.

इस सफलता के बाद आईपीएस नवनीत सिकेरा को सन 2005 में विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति का पुलिस पदक मिला था. मुजफ्फरनगर और लखनऊ के अलावा सिकेरा ने वाराणसी में भी एसएसपी के पद कार्य किया. उस के बाद सिकेरा ने जनपद मेरठ के एसएसपी के पद पर कार्यभार ग्रहण किया था.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी वह एसएसपी के पद पर तैनात रहे थे. उन की पोस्टिंग जहां भी हुई, वहां अपराधियों में खौफ बना रहा. उन का सन 2012 में डीआईजी के पद पर प्रमोशन हो गया था. उस के अगले साल 2013 में उन्हें  मेधावी सेवा हेतु राष्ट्रपति के पुलिस पदक से नवाजा गया था.

उन्होंने 2 साल तक डीआईजी रह कर कार्य किया. फिर साल 2014 में वह आईजी बना दिए गए. सन 2015 में डीजीपी द्वारा उन्हें रजत पदक दिया गया. उस के बाद 2018 में डीजीपी द्वारा ही स्वर्ण पदक से नवाजा गया.

सुपरकौप बन कर उभरे सिकेरा

‘सुपर कौप’ बन कर उभरे आईपीएस नवनीत सिकेरा के उस दौर में हुए बदमाशों के खात्मे की कहानी को वेब सीरीज ‘भौकाल’ में दिखाया जा चुका है.

इस में नवनीत सिकेरा के किरदार का नाम नवीन सिकेरा है, कुछ अन्य किरदारों के नाम भी बदल दिए गए हैं. यह सीरीज नवनीत सिकेरा के उस समय के कार्यकाल पर आधारित है, जब वह यूपी के मुजफ्फरनगर में बतौर एसएसपी तैनात हुए. उन की शादी डा. पूजा ठाकुर सिकेरा से हुई, जिन से एक बेटा दिव्यांश और एक बेटी आर्या है.

अपराधियों को नाकों चना चबाने पर मजबूर करने वाले नवनीत सिकेरा ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए विशेष कदम उठाया और वीमेन पावर हेल्पलाइन 1090 की शुरुआत की.

इसे कारगर बनाने के लिए काउंसलिंग और सोशल साइटों का भी इस्तेमाल किया. इस से लड़कियों को काफी हिम्मत मिली. जिस की कमान बतौर आईजी के पद पर रहते हुए सिकेरा ने खुद संभाल रखी थी.

वीमेन पावर लाइन-1090 शुरू होते ही पूरे प्रदेश में मशहूर हो गई. शहरों के अलावा गांव से भी महिलाओं द्वारा 1090 पर काल कर मदद मांगी जाने लगी.

प्राप्त जानकारी के अनुसार वीमन पावर लाइन में हर साल तकरीबन 2 लाख शिकायतें दर्ज होती हैं, जिस के निस्तारण के लिए एक टीम लगाई गई है. सिकेरा वीमेन पावर लाइन को अपने जीवन की एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानते हैं.

सिकेरा की सफलता के पीछे लंबा संघर्ष

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर से आने वाले नवनीत सिकेरा को लंबे संषर्घ का सामना करना पड़ा. पढ़ाई के दरम्यान कई बार उपेक्षा और तिरस्कार से जूझना पड़ा.

शिक्षण संस्थानों के कर्मचारियों के रूखे व्यवहार के आगे तिलमिलाए, झल्लाहट हुई, किंतु उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और मेहनत के बूते वह सब हासिल कर लिया, जिस की उन्होंने भी कल्पना नहीं की थी. एटा जिले में किसान मनोहर सिंह के घर जन्म लेने वाले नवनीत सिकेरा ने हाईस्कूल तक की पढ़ाई उसी जिले के एक सरकारी स्कूल से की थी. उन का घर छोटे से गांव में था. हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़ने के कारण अंगरेजी भाषा पर उन की अच्छी पकड़ नहीं थी.

12वीं की पढ़ाई पूरी होने के बाद वह दिल्ली हंसराज कालेज में बी.एससी में प्रवेश के लिए गए. अंगरेजी पर अच्छी पकड़ नहीं आने के कारण कालेज के क्लर्क ने एडमिशन फार्म तक नहीं दिया. फार्म नहीं मिलने पर सिकेरा दुखी हो गए, किंतु हार नहीं मानी.

खुद से किताबें खरीद कर पढ़ाई करने लगे. पहले अंगरेजी ठीक की. बाद में इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने लगे. उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से पहली बार में आईआईटी जैसी परीक्षा पास कर ली.

उन का नामांकन आईआईटी रुड़की में हो गया. वहां से उन्होंने कंप्यूटर सांइस ऐंड इंजीनियरिंग से बीटेक की पढ़ाई पूरी की. उन्होंने अपना लक्ष्य एक अच्छा सौफ्टवेयर इंजीनियर बनने का बनाया. लगातार वह अपने लक्ष्य पर निशाना साधे रहे.

बीटेक की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली आईआईटी में एमटेक में दाखिला ले लिया. एमटेक की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने पाया कि उन के पिता मनोहर सिंह के पास कुछ धमकी भरे फोन आते थे, जिस से वह बहुत परेशान हो जाते थे. उस के बाद जो वाकया हुआ, उस ने सिकेरा की जिंदगी ही बदल कर रख दी.

अपमान ने जगा दिया जज्बा

दरअसल, गांव में उन के पिता ने अपनी जमापूंजी से कुछ जमीन खरीदी थी. जिस पर असामाजिक तत्त्वों ने कब्जा कर लिया था. इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर गांव लौटे नवनीत पिता को ले कर थाना गए थे, लेकिन वहां पुलिस अधिकारी ने उन की कोई मदद नहीं की. उल्टे उन्हें ही बुराभला सुना दिया.

जब पिता ने बेटे का परिचय एक इंजीनियर के रूप में देते हुए कहा कि उन का बेटा पढ़ालिखा है, तब पुलिस वाले ने एक और ताना मारा, ‘ऐसे इंजीनियर यूं ही बेगार फिरते हैं.’

इस घटना ने सिकेरा को अंदर से झकझोर कर रख दिया. उन्होंने एमटेक करने का विचार छोड़ दिया और देश की सब से प्रतिष्ठित सेवा यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी.

शानदार रैंक के साथ यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली, उन्हें आईएएस के अच्छे रैंक के साथ प्रशासनिक पदाधिकारी की पेशकश की गई. लेकिन उन्होंने सबडिवीजनल औफिसर और कलेक्टर बनने के बजाय आईपीएस बनना पसंद किया.

उन की हैदराबाद में सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी में 2 साल की ट्रेनिंग हुई और वे 1996 बैच के आईपीएस अफसर बन गए.

उस के बाद उन की पहली पोस्टिंग बतौर आईपीएस अधिकारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर में एएसपी के पद पर मिली.

कुछ समय में उन का तबादला मेरठ हो गया. उस के बाद वे कुछ समय तक जनपद मुरादाबाद में एसपी रेलवे के पद पर रहे. वहां उन की तैनाती टैक्निकल सर्विसेज एसपी के पद पर की गई थी.

सन 2001 में आईपीएस नवनीत सिकेरा को जीपीएस-जीआईएस आधारित आटोमैटिक वेहिकल लोकेशन सिस्टम विकसित करने के लिए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने 5 लाख के पुरस्कार से सम्मानित किया था.

नवनीत सिकेरा के फेसबुक पेज उन के कारनामों से भरे पड़े हैं. अधिकतर पोस्ट उन्होंने खुद लिखे हैं. उन्होंने अपने पोस्ट के जरिए बताया है कि कैसे यूपी में पुलिस का चेहरा बदला और क्राइम को कंट्रोल में लाने में सफलता मिली.

आईपीएस नवनीत सिकेरा की एक विशेष खूबी यह रही कि उन्होंने तकनीक को भी एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया. पुलिस को सर्विलांस की नई टैक्नोलौजी से परिचित करवाया.

उन के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने यूपी पुलिस को एक ऐसा तकनीकी मुखबिर देने का काम किया था, जब पुलिस विभाग में कंप्यूटरीकरण का नामोनिशान नहीं था.

वह  पुलिस के लिए सर्विलांस जैसा मुखबिर ले कर आए और इस का प्रयोग करते हुए मुजफ्फरनगर में बदमाशों के खौफ के गढ़ को ढहाने का काम किया.

एनकाउंटर के दौरान उन्होंने बुलेटप्रूफ ट्रैक्टर से खूंखार बदमाशों को न केवल रौंद डाला, बल्कि छिटपुट बदमाशों को दुबकने पर मजबूर कर दिया.

ऐसा उन्होंने फौरेस्ट कांबिंग के लिए किया था. बुलेटप्रूफ ट्रैक्टर पर वह एके-47 ले कर खुद सवार होते थे और जंगलों में छिपे बदमाशों को उन के अंजाम तक पहुंचा देते थे.

कंबाइन हार्वेस्टर मशीन से कम समय में ज्यादा काम

यह एक बड़ा कृषि यंत्र है, जो किसानों के बड़े ही काम आता है. कंबाइन हार्वेस्टर मशीन का इस्तेमाल करने से मजदूरों की समस्या तो दूर होती ही है, साथ ही कम समय में ज्यादा काम किया जा सकता है. कम लागत और कम समय में जल्दी काम पूरे हो जाते हैं.

इस यंत्र की मदद से धान, गेहूं, सोयाबीन, सरसों वगैरह की कटाई और सफाई का काम एकसाथ कर सकते हैं. इस में समय और लागत  बहुत कम लगती है.

इस मशीन में लगे खास यंत्र कटर कम स्प्रेडर की मदद से फसल के अवशेष को कटाई के बाद खेत में ही बिखेर देता है. बाद में मिट्टी में सड़ कर यही जैविक खाद बन जाती है.

इस यंत्र की खूबी यह है कि यह तेज हवाओं और वर्षा के चलते गिरी हुई फसल को भी आसानी से काट सकते हैं.

इन कंबाइन हार्वेस्टर मशीनों में सब से आगे लंबे कटरबार यानी दांतेदार फसल काटने के पट्टे लगे होते हैं. यह यंत्र कटर से फसल काटता है. इस के बाद फसल कन्वेयर बैल्ट के जरीए रेसिंग यूनिट में पहुंच जाती है.

यहां पर फसल के दाने ड्रैसिंग ड्रम से रगड़ने पर अलगअलग हो जाते हैं. साथ ही, मशीन में लगे पंखे से अनाज छलनी से साफ हो कर एक टैंक में पहुंचता है.

कंबाइन हार्वेस्टर में एक स्टोन ट्रैप यूनिट लगी होती है, जो फसल के साथ आने वाले कंकड़ और मिट्टी को अलग कर देता है.

इस मशीन के इस्तेमाल से किसान

कुदरती आपदाओं से होने वाले नुकसान से बच सकते हैं और समय रहते फसलों की कटाई कर सकते हैं.

बढि़या कंपनी का हार्वेस्टर एक घंटे में तकरीबन 4 से 5 एकड़ क्षेत्र में फसलों की कटाई कर सकता है. कंबाइन हार्वेस्टर मशीन से किसान खेत में आड़ीतिरछी पड़ी फसल को भी काट सकते हैं.

सरकार द्वारा भी कृषि यंत्रों पर सब्सिडी दी जाती है. सब्सिडी की दर राज्य सरकारों की अलगअलग होती है. आमतौर पर लघु, सीमांत व महिला किसानों को 50 फीसदी व बड़े किसानों को 40 फीसदी तक सब्सिडी दी जाती है.

किसान इस योजना का फायदा उठा सकते हैं. कई प्रदेशों में तो किसान संगठन भी इस का इस्तेमाल करते हैं.

स्वराज का कंबाइन हार्वेस्टर जेन 2-8100 ऐक्स सैल्फ प्रोपेल्ड कंबाइन हार्वेस्टर

महिंद्रा एंड महिंद्रा लिमिटेड की ओर से स्वराज ने नया जेन 2-8100 ऐक्स सैल्फ-प्रोपेल्ड कंबाइन हार्वेस्टर अक्तूबर, 2021 में ही बाजार में उतारा है, जो धान की खेती करने वाले किसानों के लिए बेहतर यंत्र है.

यह चलने में बहुत ही सुविधाजनक है. अच्छी उत्पादकता के साथ ही साथ काम करने वाला यह हार्वेस्टर महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के किसानों की काफी हद पहुंच में है.

101 एचपी की ताकत वाले इस कंबाइन हार्वेस्टर में अनाज इकट्ठा करने के लिए इस में 2140 लिटर की क्षमता वाला बड़ा सा अनाज टैंक लगा हुआ है. इस के पार्ट्स को आसानी से बदला जा सकता है और साफसफाई भी आसान है.

इस हार्वेस्टर यंत्र को खासतौर से चावल, गेहूं और सोयाबीन जैसी फसलों की कटाई के हिसाब से डिजाइन किया गया है. इस में नवीनतम जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम भी लगा हुआ है. रात के अंधरे में भी इसे आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है. इस में अच्छी लाइटिंग का भी इंतजाम है.

महिंद्रा हार्वेस्ट मास्टर एच-12 4डब्ल्यूडी ट्रैक्टर माउंटेड कंबाइन हार्वेस्टर

ट्रैक्टर माउंटेड का मतलब है कि ट्रैक्टर पर फिट किए जाने वाला हार्वेस्टर, खासकर ट्रैक्टर्स की महिंद्रा अर्जुन नोवो सीरीज के लिए परफैक्ट मैच के तौर पर महिंद्रा द्वारा डिजाइन किया गया एक बहुफसल हार्वेस्टर है.

यह मशीन मिट्टी में सूखी और नम दोनों ही हालात में बेहतरीन काम करती है. ऐसा कंपनी का कहना है. यह तेजी से ज्यादा क्षेत्रफल को कवर करने वाला, अनाज का कम से कम नुकसान और ईंधन की कम खपत वाला हार्वेस्टर है.

इस ट्रैक्टर माउंटेड कंबाइंड हार्वेस्टर को इस्तेमाल करने के लिए महिंद्र का अर्जुन नोवो डीआई-आई/655 डीआई ट्रैक्टर का साथ जरूरी है.

इस हार्वेस्टर में 49 नाइफ ब्लेड्स और 24 नाइफ गार्ड्स लगे हैं. अनाज को इकट्ठा करने के लिए इस में एक बड़ा सा टैंक लगा है, जिस में धान तकरीबन 750 किलोग्राम तक इकट्ठा किया जा सकता है.

इन के अलावा अनेक कंपनियों के ट्रैक्टर जैसे दशमेश, जॉन डियर, फील्डकिंग, करतार, प्रीत आदि के अनेक मौडल बाजार में मौजूद हैं.

मुट्ठीभर बेर: औलेगा क्यों तड़प रही थी

घने बादलों को भेद, सूरज की किरणें लुकाछिपी खेल रही थीं. नीचे धरती नम होने के इंतजार में आसमान को ताक रही थी. मौसम सर्द हो चला था. ठंडी हवाओं में सूखे पत्तों की सरसराहट के साथ मिली हुई कहीं दूर से आ रही हुआहुआ की आवाज ने माया को चौकन्ना कर दिया.

माया आग के करीब ठिठक कर खड़ी हो गई. घने, उलझे बालों ने उस की झुकी हुई पीठ को पूरी तरह से ढक रखा था. उस के मुंह से काले, सड़े दांत झांक रहे थे. वह पेड़ के चक्र से बाहर देखने की कोशिश करने लगी, लेकिन उस की आंखों को धुंधली छवियों के अलावा कुछ नहीं दिखाई दिया. कदमों की कोई आहट न आई.

शिकारियों की टोली को लौटने में शायद वक्त था. उस ने अपने नग्न शरीर पर तेंदुए की सफेद खाल को कस कर लपेट लिया. इस बार ठंड कुछ अधिक ही परेशान कर रही थी. ऐसी ठंड उस ने पहले कभी नहीं महसूस की. गले में पड़ी डायनासोर की हड्डियों की माला, जनजाति में उस के ऊंचे दर्जे को दर्शा रही थी. कोई दूसरी औरत इस तरह की मोटी खाल में लिपटी न थी, सिवा औलेगा के.

औलेगा की बात अलग थी. उस का साथी एक सींग वाले प्राणी से लड़ते हुए मारा गया था. पूरे 2 पूर्णिमा तक उस प्राणी के गोश्त का भोज चला था. फिर औलेगा मां भी बनने वाली थी. उस भालू की खाल की वह पूरी हकदार थी जिस के नीचे वह उस वक्त लेट कर आग ताप रही थी. पर सिर्फ उस खाल की, माया ने दांत भींचते हुए सोचा.

आग बिना जीवन कैसा था, यह याद कर माया सिहर गई. आग ही थी जो जंगली जानवरों को दूर रखती थी वरना अपने तीखे नाखूनों से वे पलभर में इंसानों को चीर कर रख देते. झाडि़यों से उन की लाल, डरावनी आंखें अभी भी उन्हें घूरती रहतीं.

माया ने झट अपने 5 बच्चों की खोज की. उस से बेहतर कौन जानता था कि बच्चे कितने नाजुक होते हैं. सब से छोटी अभी चल भी नहीं पाती थी. वह भाइयों के साथ फल कुतर रही थी. सभी 3 दिनों से भूखे थे. आज शिकार मिलना बेहद जरूरी था. आसमान से बादल शायद सफेद फूल बरसाने की फिराक में थे. फिर तो जानवर भी छिप जाएंगे और फल भी नहीं मिलेंगे. ऊपर से जो थोड़ाबहुत मांस माया ने बचा कर रखा था, वह भी उस के साथी ने बांट दिया था.

माया परेशान हो उठी. तभी उस की नजर अपने बड़े बेटे पर पड़ी. वह एक पत्थर को घिस कर नुकीला कर रहा था, पर उस का ध्यान कहीं और था. माकौ-ऊघ टकटकी लगा कर औलेगा को देख रहा था सामक-या के धमकाने के बावजूद. क्या उसे अपने पिता का जरा भी खौफ नहीं? पिछले दिन ही इस बात पर सामक-या ने माकौ-ऊघ की खूब पिटाई की थी. माकौ-ऊघ ने बगावत में आज शिकार पर जाने से इनकार कर दिया और सामक-या ने जातेजाते मांस का एक टुकड़ा औलेगा को थमा दिया. वही टुकड़ा जो माया ने अपने और बच्चों के लिए छिपा कर रखा था. माया जलभुन कर रह गई थी.

एक सरदार के लिए सामक-या का कद खास ऊंचा नहीं था. पर उस से बलवान भी कोई नहीं था. एक शेर को अकेले मार डालना आसान नहीं. उसी के दांत को गले में डाल कर वह सरदार बन बैठा. और जब तक वह माया पर मेहरबान था, माया को कोई चिंता नहीं. ऐसा नहीं कि सामक-या ने किसी और औरत की ओर कभी नहीं देखा, पर आखिरकार वापस वह माया के पास ही आता. माया भी उसे भटकने देती, बस, ध्यान रखती कि सामक-या की जिम्मेदारियां न बढ़ें. नवजात बच्चे आखिर बहुत नाजुक होते हैं. कुछ भी चख लेते हैं, जैसे जहरीले बेर.

माया की इच्छा हुई एक जहरीला बेर औलेगा के मुंह में भी ठूंस दे, पर अभी उस के कई रखवाले थे, उस का अपना बेटा भी. पूरी जनजाति उस के पीछे पड़ जाएगी. खदेड़खदेड़ कर उसे मार डालेगी.

कुछ रातों बाद…

बर्फ एक सफेद चादर की भांति जमीन पर लेटी हुई थी. कटा हुआ चांद तारों के साथ सैर पर निकला था. मैमौथ का गोश्त खा कर मर्द और बच्चे गुफा के भीतर सो चुके थे. औरतें एकसाथ आग के पास बैठी थीं. कुछ ऊंघ रही थीं तो कुछ की नजर बारबार बाहर से आती कराहने की आवाज की ओर खिंच जाती. सुबह सूरज उगने से पहले ही औलेगा छोटी गुफा में चली गई थी और अभी तक लौटी नहीं थी. रात गहराती गई. चांद ने अपना आधा सफर खत्म कर लिया. पर औलेगा की तकलीफ का अंत न हुआ. अब औरतें भी सो चली थीं, सिवा माया के.

कदमों की आहट ने उस का ध्यान आकर्षित किया. औलेगा के साथ बैठी लड़की पैर घसीटते हुए भीतर घुसी. वह धम्म से आग के सामने बैठ गई और थकी हुई, घबराई हुई आंखों से माया को देखने लगी. तभी औलेगा की तेज चीख सुनाई दी. माया झट से उठी और मशाल ले कर चल पड़ी. दूसरी मुट्ठी में उस ने बेरों पर उंगलियां फेरीं.

औलेगा का नग्न शरीर गुफा के द्वार पर, आग के सामने लेटा, दर्द से तड़प रहा था. बच्चा कुछ ही पलों की दूरी पर था. और थोड़ी ही देर में एक नन्ही सी आवाज गूंज उठी. पर औलेगा का तड़पना बंद नहीं हुआ. शायद वह मरने वाली थी. माया मुसकरा बैठी और बच्चे को ओढ़ी हुई खाल के अंदर, खुद से सटा लिया. भूखे बच्चे ने भी क्या सोचा, वह माया का दूध चूसने लगा. अचंभित माया के हाथ से सारे बेर गिर गए. वह कुछ देर भौचक्की सी बैठी रही, औलेगा को कराहते हुए देखती रही. उस की नजर सामने की झाडि़यों से टिमटिमाती लाल आंखों पर पड़ी. बस, आग ने ही उन्हें रोक रखा था. और आग ही ठंड से राहत भी दे रही थी. औलेगा की आंखें बंद हो रही थीं. माया ने आव देखा न ताव, मुट्ठीभर मिट्टी आग पर फेंकी, बच्चे को कस कर थामा, मशाल उठाई और चलती बनी. न औलेगा की आखिरी चीखें और न ही एक और बच्चे की पहली सिसकी उसे रोक पाई.

Summer Special: गर्मी को बनाएं कूल-कूल

ग्लोबल वर्मिंग, पर्यावरण की जो दिशा-दशा है, उससे तो यही लगता है कि हर साल गर्मी का पारा नई ऊंचाइयों को छुएगा. कड़कड़ाती हुई गर्मी शुरू होने से पहले सेहत के मद्देनजर कुछ जरूरी कदम उठाना लाजिमी है. कुल मिला कर है, मौसम के मिजाज के अनुरूप लाइफ स्टाइल को बदलना जरूरी है. पर कैसे? आइए देखते हैं:

  1. हम सब जानते हैं कि गर्मी में हमारे शरीर को ज्यादा पानी की जरूरत होती है. गर्मी के दिनों में पसीना निकलता है. कुछ जगहों पर चिपचिपाहट के साथ ज्यादा ही पसीना निकलता है. जहां चिपचिपाहट वाली गर्मी नहीं है, वहां हिट स्ट्रोक के कारण डिहाइड्रेशन होता है. इस कारण शरीर में पानी की कमी हो जाती है. इसीलिऋ पूरे दम पर गर्मी शुरू होने से पहले थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पानी पीने का मात्रा बढ़ाया जाए तो प्रचंड गर्मी थोड़ी राहत रहेगी. गर्मी में कम से कम आठ ग्लास या तीन लीटर पानी जरूरी है. ध्यान रहे ज्यादा पानी भी नुकसान पहुंचाता है. इससे ज्यादा प्यास लगे तो डॉक्टर की सलाह जरूर लें.
  2. नियमित रूप से दिन भर में एक तय समय योगा-कसरत के लिए निकालें. अपनी सेहत के अनुरूप हर रोज हल्के-फुल्के कसरत से लेकर चलने-टहलने का नियम बना लें. इतना भी सेहतमंद रहने में सहायक होगा. और दिन भर स्फूर्ति देने और सक्रिय रखने का काम करेगा. सुबह के समय जब अपेक्षाकृत मौसम जरा कूल होता है, उस समय आउटडोर एक्सारसाइज कर सकते हैं. स्वीमिंग कर सकते हैं. स्वीमिंग से पूरे शरीर का एक्सरसाइज होता है. अगर जिम के लिए सुबह का समय नहीं मिल पाता है तो शाम को जिम जा सकते हैं. दोहपर के समय जिम से दूर रहना ही अच्छा होगा. शरीर को ठंडा रखने के लिए बहुत सारे योगा है. इनका भी सहारा लिया जा सकता है.
  3. गर्मी के दिनों में सन बर्न, हिट स्ट्रोक की आशंका रहती है. इसीलिए घर से बाहर निकलने पर अपने साथ छाता, सनग्लास साथ लेकर निकले. इसके अलावा बाहर निकलने से आधा घंटे पहले सनस्क्रीन क्रीम लगाएं. इसीके साथ अपने लिए पानी का बोतल रखें.
  4. आमतौर पर गर्म के दिनों में कोल्ड ड्रिंक पीने का चलन आम है. इसे पीने से बचें. इनसे फौरी राहत जरूर मिल जाती है. लेकिन अंतत: ये शरीर को नुकसान ही पहुंचाते हैं. इससे अच्छा है नारियल पानी, शिकंजी, दही का घोल, बटर मिल्क, लस्सी, आम पन्ना, बेल का शरबत. ये सभी शरीर को ठंडा रखती है. इनसे गर्मी का एहसास भी कम ही होता है.
  5. गर्मी के मौसम को देखते हुए बहुत ज्यादा चाय या कौफी से बचकर रहें.
  6. अगर अभी से खाने-पीने पर ध्यान देंगे तो गर्मी आराम से निकल जाएगी. सर्दी का मौसम गया तो समझ लीजिए तला, मसालेदार खाना खाने का समय भी बीत गया. अब हल्का-फुल्का खाने पर जोर दें. तली चीजों से दूर रहे. बेहतर होगा, बाहर का खाना खाने से बचें. खासतौर फास्ट फूड और बाजार में मिलनेवाले कटे हुए फल. ऐसे फल व सब्जी रोज के खाने में शामिल करें जिनकी तासीर ठंडी हो. मसलन; गर्मी के दिनों में तरबूत, पपीता, खरबूज, खीरा जैसे भरपूर पानीवाले फल कुदरत की देन हैं. इसी तरह सब्जी भी. घिया, तरोई, नेनुआ, परवल, कद्दू जैसे पानी से भरपूर सब्जी शरीर को भीतर से ठंड रखते हैं. अगर शरीर का तापमान कम हो जाए तो वातावरण की गर्मी का एहसास कम होता है.
  7. गर्मी के दिनों में पसीने के कारण कुछ लोगों को अक्सर फंगल इंफेक्शन की शिकायत हो जाती है. इससे निपटने के लिए जरूरी है कि अपने शरीर के विभिन्न हिस्सों की साफ-सफाई की जाए. बेहतर हो, खुशबूदार साबुन के बजाए मेडिकेटेड साबुन का इस्तेमाल किया जाए.
  8. गर्मी से निपटने के लिए सूती कपड़ों के अलावा हल्के रंग के ड्रेस, साड़ी, सलवार-कुर्त्ता या शर्ट पहना जाए. अंदरुनी कपड़ों के लिए भी सूती मैटेरियल का चुनाव करें. कुछ भी पहने टाइट फिटिंग के बजाए ढीला-ढाला पहना चाए.

इन कुछ उपायों को अपना कर गर्मी के कठिन दिनों को आराम से निकाला जा सकता है.

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