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विद्या का मंदिर- भाग 1: क्या थी सतीश की सोच

“अरे रे, रोकना,” रमा ने एक बार जब फिर राहुल से कार रुकवाई, तो राहुल के मुंह से निकल पड़ा, “ओह नो.”

सामने उस के वही चिरपरिचित हनुमानजी का मंदिर था जिस को वह रोज ही यहां से गुजरते हुए देखता था. पहले यह छोटा सा मंदिर था. देखते ही देखते मंदिर ने भव्य रूप ले लिया था. बढ़ते ट्रैफिक और रोज जाम जैसी स्थिति पैदा होने के मद्देनजर सड़कों को चौड़ी करने के लिए कई अवैध रूप से कब्जा की हुई इमारतों, छोटीमोटी दुकानों को हटा दिया गया. लेकिन इस मंदिर को छूने की हिम्मत किसी को न हुई. सड़क चौड़ी हुई, ट्रैफिक प्लान भी बदला. लेकिन यह मंदिर अपनी जगह पर जस का तस रहा. हां, इस का स्वरूप बदलता रहा. मंदिर में एक के बाद एक भगवान की प्रतिमाएं स्थापित होती रहीं और मंदिर का आकार छोटे से बड़ा होता गया. एक विशालकाय हनुमानजी की प्रतिमा मंदिर के बाहर ऊपर स्थापित कर दी गई. बाईं ओर से एक सड़क जाती और दाईं ओर से दूसरी. रास्ता वन-वे हो गया. वैसे तो मंदिर का मुख्यद्वार सड़क के दाईं ओर खुलता था, लेकिन हनुमानजी की प्रतिमा सड़क को 2 भागों में विभाजित करने वाले स्थान पर मंदिर के ऊपर स्थापित की हुई थी. सिंदूरी रंग की विशालकाय मूर्ति बरबस ही लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लेती थी.

राहुल को जो बात सब से ज्यादा अखरती थी, वह थी, वे 2 दुकानें.  मंदिर के बाईं ओर शराब की दुकान और दाईं ओर चिकन कौर्नर.  रोज शाम को इन 2 दुकानों में  जितनी भीड़ उमड़ती थी, उतनी भीड़ तो मंदिर में भी नहीं उमड़ती. बजरंगबलीजी भले ही बल में अव्वल हों, मगर लोकतंत्र के पैमाने में कहीं टिक नहीं पाते थे. सामने बड़ी सी हनुमानजी की प्रतिमा और उन के दोनों तरफ ये दुकानें एक अजीब सा विरोधाभास उत्पन्न करती थीं. शाम को मंदिर में होती आरती और शंखनाद की ध्वनि इन 2 दुकानों में भीड़ से उत्पन्न कोलाहल में दब के रह जाती. यह दृश्य राहुल को बहुत ही हास्यास्पद लगता था. हनुमानजी को क्या देखने को मिल रहा…यह विचार आते ही राहुल को हंसी आ जाती. कभीकभी तो मन करता राहुल का कि हनुमानजी की मूर्ति को कपड़े से ढक दे या इन 2 दुकानों को यहां से हटा दे, इन में दूसरा विकल्प बिलकुल भी संभव न था.

उसी हनुमानजी के मंदिर के आगे रमा ने गाड़ी रुकवा दी.

“मुझे, मंदिर में चलने के लिए मत कहना,” राहुल ने अड़ते हुए कहा.

“भगवान हनुमानजी से भी आशीर्वाद ले लो,” हनुमानजी की प्रतिमा को हाथ जोड़ते हुए रमा बोली.

“मम्मी, आप यह चौथे मंदिर में जा रही हो,” झुंझलाते हुए राहुल ने गाड़ी से उतरते हुए कहा.

राहुल की बातों को अनसुना कर रमा मंदिर में भगवानजी के आगे नतमस्तक हो गई. राहुल उखड़ा सा खड़ा रहा.

पापा की कार राहुल को मुश्किल से ही छूने को मिलती थी, कारण, वे अभी भी राहुल को बच्चा समझते थे और थोड़ा डरते भी थे उस की ड्राइविंग से. नौकरी पर लगते ही राहुल ने सब से पहले अपने लिए कार खरीदी. मम्मीपापा मना ही करते रह गए. लाल रंग की नई चमचमाती कार घर में खड़ी हो गई.

दूसरे दिन राहुल का अपनी नई कार चलाने की सारी खुशी और जोश उस समय ठंडा हो गया, जब उस ने बैग में अपना लंचबौक्स रख, कार की चाबी हवा में घुमाते हुए औफिस जाने के लिए निकलने ही वाला था कि रमा ने रोक दिया.

“पहले गाड़ी देवी मां के मंदिर जाएगी. वहां देवी की पूजा और आशीर्वाद के बाद ही कार चलाएगा.”

“मम्मी, मैं इन सब में विश्वास नहीं करता,” अपनी नई गाड़ी चलाने को उतावला राहुल लापरवाही से बोला.

“मुझे कुछ नहीं सुनना,” रमा ने अपना अंतिम फैसला सुनाया, तो राहुल खीझ गया.

मुंह फुला कर राहुल चाबी वहीं टेबल पर जोर से पटक और बिना कुछ बोले तेजी से औफिस के लिए निकल गया.

“क्यों बच्चे का मूड खराब करती हो,” अखबार पढ़ते हुए सतीश चंद्र बोले.

“आप तो चुप ही रहिए. आप को तो पूजापाठ में कोई आस्था है नहीं, राहुल को भी वैसे ही बना रहे हो,” कार की चाबी को कस कर पकड़ती हुई रमा बोली.

इतवार को सुबहसुबह रमा ने राहुल को उठा दिया.

“मम्मी, चाय तो पिला दो पहले,” उनींदा सा राहुल बोला.

“कोई चायवाय नहीं. मंदिर में पूजा के बाद ही चायनाश्ता करेंगे. जल्दी उठ और नहा कर तैयार हो जाओ, नहीं तो मंदिर में फिर बहुत भीड़ हो जाएगी.”

अधखुली आंखों से राहुल ने देखा- सामने मम्मी तैयार खड़ी थी.

“अभी सोने दो, रोज तो जल्दी उठना पड़ता है,” बोल कर राहुल ने बिस्तर पर दूसरी ओर करवट ले कर लिहाफ अपने ऊपर तक खींच कर फिर सो गया.

“कल औफिस कार से जाना है कि नहीं?” राहुल के ऊपर से लिहाफ खींचती हुई रमा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा.

राहुल को पता था कि बिना देवी के मंदिर जाए मां कार चलाने नहीं देगी. कार चलाने की लालसा ने राहुल के अंदर एकाएक ऊर्जा का संचार कर दिया. एक झटके से उठा और जल्दी से नहा कर तैयार होने लगा.

शहर से 14 किलोमीटर दूर मुख्य सड़क पर बना यह मंदिर अपनी प्राकृतिक छटा से यात्रियों का मन बरबस ही मोह लेता  है. एक ओर विभिन्न किस्म के हरेभरे पेड़ों से आच्छादित पहाड़ियां और दूसरी ओर थोड़ी सी समतल भूमि पर निर्मित देवी मां का मंदिर और पीछे विस्तृत क्षेत्र में फैली बरसाती नदी, जिस में उथला पानी का स्तर. नदी के स्वच्छ, निर्मल जल में छोटेबड़े,  सफेदस्लेटी रंग के गोलाकार पत्थर स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं, कभीकभार हिरन व हाथी भी नदी के आसपास विचरित करते दिख जाते हैं. दूर सड़क से यह विहंगम दृश्य बड़ा रमणीक लगता है.

इतवार होने की वजह से सच में मंदिर में बहुत भीड़ थी. मंदिर की मान्यता है कि नया वाहन लेने पर देवी से पूजा करवाने पर वाहन और चालक दोनों सुरक्षित रहते हैं. किस्मकिस्म की चमचमाती ब्रैंडेड नई दोपहिया और चौपहिया वाहनों की असंख्य गाड़ियां मंदिर के बाहर खचाखच खड़ी हुई थीं. ऐसा लग रहा, मानो शहर के सारे शोरूमों की गाड़ियां यहीं एकसाथ इकट्ठी हो गई हों. बड़ी मुश्किल से पार्किंग की जगह मिली. भिखारियों की अच्छीखासी तादाद मंदिर के बाहर मंड़रा रही थी.

उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की भाव और भावना एक: सीएम योगी

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के लिए गुरुवार का दिन ऐतिहासिक रहा. दोनों राज्यों के बीच तीन दशक से चले आ रहे एक विवाद का पटाक्षेप करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अलकनंदा अतिथि गृह की चाबी सौंपी तो उत्तर प्रदेशवासियों के लिए हरिद्वार में नवनिर्मित भव्य भागीरथी भवन का लोकार्पण किया.

माँ गंगा तट के पर आयोजित संपन्न कार्यक्रम को मुख्यमंत्री योगी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन के अनुरूप बताया. उन्होंने कहा कि माँ गंगा भारत के जीवनधारा की आत्मा हैं. गंगा तब बनती है जब अलकनंदा और भागीरथी एक साथ मिलती हैं.

प्रधानमंत्री जी ने हमें विवादों को संवाद से सुलझाना सिखाया है और इसी भावना के साथ दोनों राज्यों के बीच विवादों का समाधान होना संभव हुआ.

पूज्य संतों, धर्माचार्यों, अनेक पूर्व मुख्यमंत्री गणों, उत्तराखंड सरकार के मंत्रियों की उपस्थिति में मुख्यमंत्री योगी ने दोनों राज्यों के समग्र विकास के लिए साथ-साथ मिलकर काम करने की जरूरत बताई.

उत्तराखंड को अपनी माँ और मातृभूमि कहते हुए सीएम योगी ने कहा कि उत्तराखंड में स्प्रिचुअल टूरिज्म और इको टूरिज्म की अपार सम्भावनाएं हैं. उत्तर प्रदेश की 25 करोड़ जनता सहित पूरे भारत से कौन ऐसा है जो उत्तराखंड के चार धाम का पुण्य लाभ नहीं लेना चाहता, ऐसा कोई नहीं जो हर की पैड़ी पर स्नान नहीं करना चाहता. यहां हर मौसम में पर्यटन के अवसर हैं.

चारधाम यात्रा के दौरान केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री की ओर लोग आने को उत्सुक हैं तो दूसरे सीजन में कुमाऊं, नैनीताल, झूंसी मठ से जुड़े अनेक हिल स्टेशन भी लोगों को लालायित करता है. यही नहीं, हाल के वर्षों में यहां फारेस्ट कवर भी बढ़ा है, जो इको टूरिज्म की संभावनाओं को बल देने वाला गया. सीएम योगी ने डबल इंजन की सरकार में देवभूमि उत्तराखंड में केदारनाथ, बद्रीनाथ, ऋषिकेश, आदि आध्यत्मिक स्थलों के पर्यटन विकास के लिए जारी प्रयासों की सराहना की. इन पावन स्थलों को आस्था के साथ-साथ राष्ट्रीय एकात्मता को तेज और ओज देने के केंद्र की संज्ञा देते हुए सीएम योगी ने विश्वास जताया कि यहां विकास की यह यात्रा सभी के सुख-समृद्धि का कारक बनेगी.

काशी में 50 लोग पूजन नहीं कर पाते थे, आज 50 हजार लोग होते हैं मौजूद उत्तर प्रदेश में अयोध्या दीपोत्सव, काशी देव दीपावली, बरसाना रंगोत्सव, कृष्ण जन्मोत्सव के भव्य आयोजनों की चर्चा करते हुए सीएम ने अयोध्या, काशी, शुक तीर्थ, नैमिष धाम, राजापुर, आदि पावन, आध्यत्मिक ऊर्जा के केंद्रों के समग्र विकास के कार्यक्रमों की भी जानकारी दी.

प्रधानमंत्री जी के मार्गदर्शन में काशी में श्रीकाशीविश्वनाथ धाम कॉरिडोर निर्माण के बाद बदली परिस्थितियों की चर्चा करते हुए सीएम योगी ने कहा कि जहां 50 लोग एक साथ पूजा-पाठ नहीं कर सकते थे आज 50 हजार लोग एक साथ उपस्थित रहते हैं. मुख्य पर्वों पर तो 05 लाख लोग दर्शन कर रहे हैं.

वेदालाइफ-निरामयम् में लिया आड़ू और खुमैनी का स्वाद

पौड़ी-गढ़वाल में पतंजलि योगपीठ द्वारा नवविकसित योग, आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा की इंटीग्रेटेड थेरेपी के अत्याधुनिक केंद्र “वेदालाइफ-निरामयम्” भ्रमण के अनुभवों को भी साझा किया.

सीएम ने बताया कि वहां उन्होंने आड़ू और खुमैनी जैसे फलों का आनंद लिया. उन्होंने कहा कि एक सूखी पहाड़ी पर, जहां मोटे पत्थर हुआ करते थे, वहां 40 हजार से अधिक वृक्षों का एक मनोरम जंगल बसा दिया गया है. यह पूरा क्षेत्र किसी ऋषि की साधना स्थली लगती है. कल देश के मैदानी क्षेत्रों में जब 45℃ तापमान था तब हम लोग वहां 15℃ का आनंद ले रहे थे. सीएम योगी ने कहा कि यह केंद्र हेल्थ टूरिज्म को बढ़ावा देने के साथ ही व्यापक पैमाने पर रोजगार सृजन का कारक भी बनेगा.

भड़काऊ नैरेटिव की गुलामी

देश में भड़काऊ नैरेटिव हावी है. यह नैरेटिव इसलिए हावी है ताकि सरकार सवालजवाब और तमाम जिम्मेदारियों से बच सके. धर्म अब मुख्य सवाल है और रोजगार, महंगाई, स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय जैसे मूल मुद्दे दरकिनार कर दिए गए हैं. लोग भड़काऊ नैरेटिव को मुसलिमविरोधी मान रहे हैं पर यह शुद्ध रूप से जनताविरोधी नैरेटिव है.

बच्चा जब पैदा होता है तब उस का दिमाग खाली ब्लैकबोर्ड (स्लेट) की भांति होता है, बिलकुल खाली. जैसेजैसे वह बड़ा होता है, वह अपने जीवन में मिले अनुभवों के माध्यम से ज्ञान अर्जित करता जाता है.

वर्ष 1632 में जन्मे व ‘उदारवाद के पिता’ कहे गए दार्शनिक जौन लोक ने अपने सिद्धांत ‘टेबुला रासा’ में इस बात का जिक्र किया था कि, मनुष्य के जन्म के समय दिमाग में कोई विचार नहीं होता, न सोचनेसमझने की क्षमता. यानी, जब कोई बच्चा पैदा होता है तब उस का दिमाग शून्य होता है, न कोई पिक्चर न कोई याद न कोई सपना. वह अधिक से अधिक अपनी मां के गर्भाशय के भीतर की तरलता (एमिनियोटिक सेक) को ही समझ पाता है, जो उसे सहलाहट (सैंसिटिव) महसूस कराती है.

सिद्धांत के इस बिंदु को यदि थोड़ा और आगे ले कर चलें तो यह माना जा सकता है कि जिस दौरान कोई बच्चा पैदा होता है, उसे अपने मातापिता, भाईबहनों, नातेरिश्तेदारों तक का बोध नहीं होता और न किसी दैवीय ताकत का, मतलब भगवान का भी नहीं. मान लीजिए अगर कोई बच्चा गुजरात के हिंदू परिवार में पैदा हुआ है तो संभव है कि गुजराती भाषा और हिंदू धर्म का अनुकरण करेगा. अगर वह लंदन के ईसाई परिवार में पैदा हुआ है तो इंग्लिश भाषा और ईसाईयत का अनुकरण करेगा और अगर वह बगदाद के मुसलिम परिवार में पैदा हुआ है तो अरबी भाषा व इसलाम का अनुकरण करेगा. ये चीजें उसे जन्मजात नहीं मिलतीं, उस के परिवेश से मिलती हैं.

फिर सवाल यह कि जिस भगवान का उसे पैदा होते बोध नहीं होता, उस के लिए मारकाट, लड़ाईझगड़ा और हिंसा क्यों? अतीत में दुनियाभर में न जाने कितने ही धर्मयुद्ध हुए और आज भी कितने ही उसी कगार पर हैं. तमाम वैज्ञानिक चमत्कारों के बावजूद धार्मिक अंधपन में अलगअलग समुदायों के बीच सिरफुटौवल की स्थिति है, कई देश धार्मिक वर्चस्व कायम करने में मरखप रहे हैं. वे अपनी ऊर्जा गैरजरूरी, कुतार्किक बहसों में लगा रहे हैं और अंदरूनी कलह से जूझ रहे हैं. यह सब क्यों?

समाजशास्त्री व दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने कहा था, ‘“धर्म लोगों के लिए एक अफीम है.’” बात सही है, वह अफीम जो इंसान को उस के वास्तविक पहचान से अलग कर देती है. अतीत में इन धर्मों की बदौलत राजामहाराजाओं, पंडेपुजारियों, मौलवियों व पादरियों ने जनता की आंखों में धूल झोंक कर अपने ऐशोआराम का राजपाट चलाया, ऊंचनीच का भेद बनाए रखा, टैक्स वसूले, जनता पर अत्याचार किए, बेगारीभुखमरी और लाचारी का कारण पुराने जन्मों का कर्म बताया. भारत समेत दुनिया के अलगअलग देशों में दक्षिणवादी सरकारें आज फिर से जनता को उन्हीं पाखंडों में धकेलने की साजिश रच रही हैं. शासकों द्वारा धार्मिक नैरेटिव चला कर लोगों को न सिर्फ पाखंडी, अंधविश्वासी और नफरती बनाया जा रहा है ताकि लोग गुलामी सहते हुए पूजापाठी बनें और दानदक्षिणा करते रहें, बल्कि जरूरी मुद्दों से ध्यान भी भटकाया जा रहा है ताकि कोई उन से सवालजवाब न करने लगे.

धर्म की आड़ में

इस नैरेटिव को गढ़ने में शासक और उस का प्राचारतंत्र मीडिया पूरी तरह से जुटा हुआ है. लोगों को कैसे असल मुद्दों से बिदकाना है, भारत में टीवी चैनलों की गोदी पत्रकारिता अच्छे से जानती है. वहां हर समय धर्मयुद्ध छिड़ा रहता है. अव्वल यह कि सुबह के अखबार भी धीरेधीरे धार्मिक नफरत का जहर फैलाने में जुट गए हैं. अखबारों की मुख्य हैडलाइन से ले कर बड़ेछोटे कौलमों में धर्म का स्पेस फैलता जा रहा है जबकि जनमानस की खबरें सिकुड़ती जा रही हैं.

इस नैरेटिव को समझना कोई बड़ी बात नहीं. इसे अखबार की हैडलाइन और प्राथमिकता देख कर समझा जा सकता है. जैसे सीएमआईई के ताजा आंकड़े बताते हैं कि देश की शहरी बेरोजगारी दर अप्रैल के महीने में बदतर 9.22 फीसदी हो चली है, पर यह खबर कहीं साइड में छोटे से कौलम में जानबूझ कर सरका दी जाती है जिस में न सरकार से सवाल होता है न कोई विश्लेषण. ठीक इस की बगल में ‘गाज़ियाबाद के हिजाब प्रकरण में छात्राओं से पूछताछ…’ शीर्षक वाली लंबीचौड़ी खबर छपती है. ठीक नीचे 3 ओलम में ‘ओखला में 6, शाहीन बाग़ में 9 को चलेगा बुलडोजर’ शीर्षक वाली खबर बनती है. वहीं बगल में 3 बड़े कौलमों में ‘जोधपुर में नमाज के बाद उत्पात’ शीर्षक वाली खबर छपती है, जिसे पेज 11 व 16 में विस्तार दिया जाता है. इन भड़काऊ और भ्रामक खबरों के बीच जनता से जुड़ी खबर को कैसे दबाया जाए या सरकाया जाए, यह कृत्य बड़े शातिराना तरीके से किया जा रहा है.

सवाल यह है कि रोजीरोटी से ज्यादा धर्म से जुड़े मसले क्या इतने जरूरी हो चले हैं कि उस के लिए किसी अखबार को पहले ही पेज में 60-70 फीसदी खबर तनाव, नफरत और कट्टरपन पैदा करने वाली छापनी पड़े और बाकी जगह महज नेताओं की ब्रैंडिंग वाली खबरें हों, जैसे ‘दुनिया में मोदी का डंका’, ‘फ़्रांस में मोदी की जयजय’, ‘वायनाड में स्मृति की राहुल को चुनौती’, ‘राहुल गांधी की पब पार्टी’, क्या जनता को जानने के लिए यही सब खबरें रह गई हैं? सवाल यह है कि देश का नैरेटिव ‘अच्छे दिन’ से कैसे ‘मोदी की जय’ और ‘जय श्रीराम’ में शिफ्ट होता चला गया?

कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश के चंदौली में यूपी पुलिस पर ये गंभीर आरोप लगे कि उस ने कारोबारी कन्हैया यादव की गैरमौजूदगी में घर में घुस कर परिवार की महिलाओं के साथ मारपीट की. यह मारपीट इतनी भयानक हुई कि कन्हैया यादव की बड़ी बेटी निशा यादव की तत्काल मौत हो गई. ऐसे ही उत्तर प्रदेश के ललितपुर के थानाध्यक्ष पर आरोप लगा है कि उस ने बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कराने आई 13 वर्षीया नाबालिगा के साथ दुष्कर्म किया. हालिया ऐसी ढेरों खबरे हैं जो या तो गायब कर दी गईं या कहीं कोने में सरका दी गईं. जाहिर है देश में जब धर्म का नशा हावी हो तब महिला सुरक्षा और जैंडर जस्टिस की खबरें कोई माने नहीं रखतीं. यही कारण भी है कि मुसलिम महिलाओं को खुले बलात्कार की धमकी देने वाले बजरंग मुनि दास को भारतीय जनमानस ने आसानी से पचा लिया क्योंकि महिलाओं की सुरक्षा अब देश में गौण हो चली है.

ऐसे ही मध्य प्रदेश के सिवनी में 3 आदिवासियों की मौबलिंचिंग का मामला सामने आया है. जिस में 2 आदिवासी मारे गए. आरोपित लोग कोई और नहीं, बजरंग दल के कार्यकर्ता बताए गए. यह संगठन वही है जिस के कार्यकर्ता कल तक मुसलमानों को गौकशी के आरोपों में मारतेपीटते आए थे और उस का पैतृक संगठन आरएसएस आदिवासियों को हिंदू बता रहा था. आज यही संगठन खुलेआम धर्म की आड़ ले कर ऊंचनीच का खेल खेल रहा है.

वहीं, दलितों को मंदिरों में जाने से रोकने, मूंछे रखने, घोड़ी चढ़ने, मजदूरी मांगने के एवज में दबंगों व ऊंचों द्वारा पीटा जा रहा है. ऐसी खबरें छोटेछोटे कौलमों में आती हैं जहां सफाईकर्मी की मौत गटर सफाई के दौरान हो गई, ऐसी खबरें अब बिना नजरों में आए निकल जाया करती हैं, क्योंकि धर्म से जुड़ी खबरों के शीर्षक भव्य, व्यापक और उत्तेजक दिखने लगे हैं. यही कारण भी है कि ‘प्रैस फ्रीडम इंडैक्स 2022’ में भारतीय मीडिया की रैंक 8 पायदान नीचे गिर कर 150वें पायदान पर आ गई है.

एससी/एसटी/ओबीसी, दहेज़ उत्पीड़न, रेप, जैंडर जस्टिस, रोजगार, महंगाई, जबरन टैक्स वसूली, मजदूर-किसानों की खबरें सुर्खियों से गायब हो गई हैं, और यह सिर्फ इसलिए कि धर्म का नैरेटिव जोर से फैलाया जाता रहे. इस नैरेटिव में भले मुसलिम प्राइम टारगेट दिखाई दे रहे हों पर झेलना हिंदू आबादी को भी पड़ रहा है, क्योंकि उस की समस्याएं, दुखदर्द, न्याय, उत्पीड़न पूरी तरह डिस्कोर्स से गायब कर दिए गए हैं. यही कारण है कि इस नैरेटिव को हालिया दिनों में जानबूझ कर अधिक हवा दी जा रही है क्योंकि महंगाई और अर्थव्यवस्था से देश की आम आबादी हलकान में है, फिर चाहे वह मुसलमान हो या हिंदू. बस, फर्क यह है कि पहले इन समस्याओं के लिए लोग सरकार और व्यवस्था को निशाने पर लिया करते थे, अब मुसलिमों पर दोष मढ़ने लगे हैं.

बढ़ता सांप्रदायिक तनाव

पिछले कुछ समय से धर्मरूपी इस अफीम के नशे का सुरूर भारत के वातावरण में निरंतर फैलते देखा जा सकता है, जिस ने जनमानस को अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया है. इसे जानबूझ कर फैलाया भी जा रहा है. लोगों के मन में धर्म विशेष के नारे लगा कर, मारनेकाटने की मंशा घर करने लगी है. कट्टर धार्मिक नेताओं द्वारा लगातार नफरती बयान दिए जा रहे हैं, और ऐसे लोगों को मिल रहा राजनीतिक व प्रशासनिक संरक्षण सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा कर रहे हैं. दुखद यह कि भारत का बहुसंख्य तबका अब इन चीजों को आसानी से पचाने लगा है, क्योंकि वह इस नैरेटिव में खुद को एडजस्ट करने लगा है.

पिछले 1-2 महीनों के भीतर हुईं ऐसी कई घटनाएं बता रही हैं कि देश एक ऐसे ज्वालामुखी पर बैठा हुआ है जो कब फट पड़े, कहा नहीं जा सकता और इस ज्वालामुखी को गरमाने का काम कोई और नहीं, बल्कि खुद देश की सत्ता में बैठे लोग कर रहे हैं.

अमेरिका स्थित ‘जेनोसाइड वाच’ के संस्थापक प्रोफैसर ग्रेगरी स्टैंटन ने भारत में नरसंहार की चेतावनी दी है और कहा है कि मुसलमान समुदाय इस के शिकार हो सकते हैं. प्रोफैसर ग्रेगरी स्टैंटन ने 1994 में रवांडा में हुए नरसंहार, जिस में 100 दिनों में तकरीबन 10 लाख लोग मारे गए थे, का भी पूर्वानुमान किया था.

वे कहते हैं, “2002 में जब गुजरात दंगे में 1,000 से अधिक मुसलमान मारे गए थे तब से भारत में नरसंहार की चेतावनी पर ‘जेनोसाइड वाच’ मुखरता से काम कर रहा है. उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे.” उन के अनुसार, इस बात के कई सारे सुबूत हैं कि उन्होंने उस नरसंहार को बढ़ावा दिया था.

पिछले दिनों घटी घटनाओं में भी सरकार इस माहौल को या तो हवा दे रही है या मूक समर्थन दे रही है. युवा हिंसक दंगाई भीड़ में तबदील हो रहे हैं. जिन युवाओं के हाथों में किताबें, लैपटौप होनी चाहिए थीं, जिन्हें अपनी नौकरी के लिए संघर्ष करना था, उन के हाथों में तलवारें लहरा रही हैं. यह सब इसलिए क्योंकि उन के दिमाग में लगातार यही बातें डाली जा रही हैं. हालिया रामनवमी व हनुमान जयंती में हिंसक सांप्रदायिक घटनाएं जिस फौरमेट में घटीं, वे बताती हैं कि ये तयबद्ध योजना के तहत अंजाम दी गईं.

फौरमेट – एक धार्मिक यात्रा, यात्रा में शामिल युवाओं के हाथों में हथियार (लंबीलंबी तलवारें व पिस्टल, चाकू आदि), डीजे का भारीभरकम शोर, उस शोर में बज रहे नफरती, उकसाऊ व भौंडे भजन/गाने, मुसलिम इलाकों के रूट, मसजिद, प्रशासन की लापरवाही, हिंसा और दंगा. इसे इस तरह समझिए-

  • करौली, राजस्थान – हिंदूवादी समूह द्वारा 2 अप्रैल, 2022 को नवरात्र और नव संवत्सर के मौके पर जुलूस का आयोजन किया गया. जब यह जुलूस मुसलिम बहुल इलाका हटवारा से गुजरा. शामिल लोगों ने कथित तौर पर सांप्रदायिक गालियां दीं और स्थानीय निवासियों के लिए आपत्तिजनक अपशब्द कहे. इस के तुरंत बाद सांप्रदायिक हिंसा शुरू हो गई. पथराव, आगजनी और संपत्ति के नुकसान की सूचना.

खरगोन, मध्य प्रदेश – विवाद मसजिद के बाहर डीजे बजाने को ले कर उत्पन्न हुआ. बताया जा रहा है कि रामनवमी का जुलूस पूर्व निर्धारित तालाब चौक के रास्ते निकलना था. जुलूस ने तय रूट के बजाय नया रूट लिया और एक मसजिद के सामने रोक कर लोगों ने डीजे की धुन पर नाचना शुरू कर दिया. भ्रामक नारे, गालीगलौज और जुलूस में डीजे पर भौंडे गाने बजाने के बाद जम कर पत्थरबाजी. पुलिस को आंसूगैस के गोले छोड़ने पड़े तो वहीं पैट्रोल पंप का भी भरपूर उपयोग किया गया. कई घरों और दुकानों में आग लगा दी गई.

  • गुजरात – रामनवमी के मौके पर निकाली जा रही यात्रा के दौरान 2 समूहों में विवाद के बाद झड़प हो गई. खंभात में हुई हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई. पुलिस अधीक्षक अजीत राजन के मुताबिक, हिंसा के दौरान जम कर पथराव हुआ और स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए पुलिस को आंसूगैस के गोले तक छोड़ने पड़े. वहीं हिम्मतनगर में 2 समुदायों के लोग आपस में भिड़ गए और वाहनों व दुकानों में तोड़फोड़ कर भारी नुकसान पहुंचाया. इस के अलावा 11 अप्रैल को भी वडोदरा के पुराने शहर इलाके में एक सड़क दुर्घटना के बाद भड़की सांप्रदायिक हिंसा में कई लोग घायल हुए.
  • झारखंड – रामनवमी के मौके झारखंड में भी एक नहीं, बल्कि 2 शहरों में हिंसा की खबरें सामने आईं. यहां के बोकारो और लोहरदगा में सांप्रदायिक हिंसा की सूचना मिली. यह भी जुलूस के बाद घटित हुई घटनाएं थीं. वहीं दूसरी ओर लोहरदगा में दंगाइयों ने कई वाहनों को आग के हवाले किया और जम कर पथराव किया, जिस में कई लोग घायल हो गए.

पश्चिम बंगाल – पश्चिम बंगाल में भी रामनवमी के मौके पर निकाले जा रहे जुलूस के दौरान हिंसा का मामला सामने आया. इस घटना की राज्यस्तरीय जांच शुरू कर दी गई है.

आंध्र प्रदेश – 16 अप्रैल को ही आंध्र प्रदेश के कुरनूल में हनुमान जन्मोत्सव के दौरान निकाले जा रहे एक जुलूस में 2 समूहों के बीच विवाद हो गया. विवाद इतना बढ़ा कि दोनों ओर से पथराव शुरू कर दिया गया. इस हमले में कम से कम 15 लोगों के घायल होने की खबर है. रिपोर्ट के मुताबिक, लाउडस्पीकर की आवाज को ले कर यह पूरा विवाद शुरू हुआ था.

उत्तराखंड – रुड़की में हनुमान जयंती के मौके पर निकाली गई शोभायात्रा के दौरान पथराव, नारेबाजी और उग्र नारों की खबरें आईं. आरोप है कि जानबूझ कर मुसलिम इलाके से यात्रा निकाली गई. कथित रूप से घटना उस समय घटित हुई जब जुलूस भगवानपुर थाना क्षेत्र के डंडा जलालपुर गांव से गुजर रहा था. खबरों के अनुसार, अब मुसलिम परिवार वहां से पलायन करने को मजबूर हो किए जा रहे हैं.

दिल्ली – जहांगीरपुरी में निकाली गई हनुमान जयंती की शोभायात्रा में घटना तब घटी जब जुलूस तेज शोर करता हुआ मसजिद के पास पहुंचा. ऊपर की घटनाओं की तरह, एक विशेष समुदाय के लोगों को गालीगलौज करना, भड़काऊ नारे लगाना, उन्हें उकसाना. इस विवाद में भी 2 पक्षों के बीच कहासुनी होना, जिस के बाद पथराव का सिलसिला. जहांगीरपुरी के बी और सी ब्लाक में जहां सांप्रदायिक झड़पें हुईं, वहां मछली बेचने वाले, मोबाइल मरम्मत करने वालों की दुकानें और कपड़े के खुदरा विक्रेताओं सहित एक मजदूर वर्ग की आबादी रहती है.

सवाल जिन के जवाब नहीं

इन घटनाओं के बाद कुछ सवाल सामने हैं जिन के जवाब न तो सरकार में बैठा कोई नुमाइंदा देने को तैयार है और न ही प्रशासन में. जैसे- अलगअलग इलाकों में आरएसएस, बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद् व अन्य हिंदूवादी संगठनों द्वारा निकाले गए धार्मिक जुलूसों में लहराए गए गैरकानूनी हथियारों (तलवारें, बंदूक, चाक़ू) की परमिशन किस ने दी? लगभग सभी जुलूसों का रास्ता मुसलिम बहुल इलाकों और मसजिदों के आगे से क्यों निकाला गया? इस रूट की मंशा क्या थी? जब ये जुलूस निकाले जा रहे थे तब प्रशासन क्या कर रहा था? इन जुलूसों के लिए क्या उचित परमिशन ली गई (जैसा पुलिस के अनुसार, जहांगीरपूरी जुलूस की परमिशन नहीं ली गई)? जब मसजिदों के आगे जानबूझ कर हो हल्ला मचाया जा रहा था और उकसाऊ नारे लगाए (हिंदुस्तान में रहना होगा तो जय श्री राम कहना होगा, नोट- इस में धर्म विशेष के खिलाफ गलियां भी शामिल हैं) जा रहे थे, तब प्रशासन क्या कर रहा था? हिंसा के बाद प्रशासन की कार्यवाही एकतरफा क्यों दिखाई दे रही है? इतना सब हो जाने के बाद प्रधानमंत्री की तरफ से कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं आई है?

ये महज कुछ घटनाएं हैं, जो हाल के दिनों मुख्यधारा में जगह बना पाईं. ऐसी ही गोवा, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्णाटक में भी घटनाएं घटीं, जिन्होंने ने भारत की एकता और भाईचारे को तोड़ने का काम किया. अब इन सभी घटनाओं में क्या हुआ, कैसे हुआ, किस ने पहले पत्थर फेंका, यह सब “निष्पक्ष” जांच का विषय है, पर, यकीनन सिलसिलेवार घटी ये सभी घटनाएं किसी बड़ी योजना का हिस्सा जरूर दिखाई देती हैं, जिस का नैरेटिव काफी पहले से गढ़ा जा रहा है और खमियाजा देश को भुगतना पड़ रहा है.

29 मार्च को केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में जानकारी दी कि देशभर में पिछले 4 वर्षों में सांप्रदायिक दंगों से जुड़े 3,400 केस दर्ज किए गए हैं. यह आंकड़ा 2016 से 2020 के बीच का है. इन 4 वर्षों के दौरान दंगों से जुड़े 2.76 लाख केस रजिस्टर किए गए. अब सोचने वाली बात यह है कि ये घटनाएं क्या अपनेआप ही घटती चली गईं या इस के लिए लगातार माहौल बनाने की कोशिश की गई?

नफरती बयानों की बाढ़

नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि देश में हर साल धारा 153ए (हेट स्पीच) के तहत दर्ज होने वाले मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है. जहां 2014 में देश में हेट स्पीच के कुल 336 मामले दर्ज हुए थे, वहीं 2020 में 1,804 मामले दर्ज हुए हैं. यानी, 7 वर्षों में हेट स्पीच के मामले 6 गुना तक बढ़ गए हैं. वहीं, इन मामलों में कन्विक्शन रेट घटता जा रहा है. अधिकतर मामलों में नफरत फैलाने वाले बरी हो जा रहे हैं.

हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने 2020 के दिल्ली दंगों में अनुराग ठाकुर द्वारा दी गई हेट स्पीच (देश के गद्दारों को…) पर सुनवाई करते हुए कहते हुए कहा, “चुनाव के दौरान दिए गए भाषण सामान्य समय में दिए गए भाषणों से अलग होते हैं क्योंकि चुनाव के दौरान नेता बिना किसी विशेष इरादे के अपनी रैलियों में अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश करते हैं.”

इस के आगे कोर्ट ने कहा, “चुनावी भाषण में नेताओं द्वारा नेताओं के लिए कई चीजें कही जाती हैं और वे गलत हैं. लेकिन हमें किसी भी घटनाक्रम की आपराधिकता को देखना होगा. अगर आप कुछ मुसकरा कर कह रहे हैं तो इस में कोई अपराध नहीं है. लेकिन अगर आप कुछ आक्रामक तरीके से कह रहे हैं, तो यह जरूर (अपराध) है.” जाहिर है कोर्ट की यह टिप्पणी गले उतरने लायक बिलकुल नहीं और इन चीजों से ही असामाजिक तत्त्वों को शह मिल रही है.

पिछले दिनों सिलसिलेवार चले नफरती बयान सरकार के समर्थन और कोर्ट की इसी चुप्पी का नतीजा हैं. देश के अलगअलग राज्यों में धर्म संसद आयोजित की गईं. यह सब प्रशासन की देखरेख में हुए. रामनवमी के दिन कट्टरवादी हिंदू नेता साध्वी ऋतंभरा ने हिंदुओं से अपील करते हुए कहा, “हिंदू बंधुओं, दो नहीं चार संतानें पैदा करो. अगर ऐसा हो जाएगा तो देश हिंदू राष्ट्र बन जाएगा. ”इस बयान को न सिर्फ मुसलिमों को डराने के लिए कहा गया, बल्कि महिलाओं को बच्चे पैदा करने की मशीन समझने और घरों में कैद रहने की साजिश के तौर पर कहा गया.

ऐसा ही कुछ हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के मुबारकपुर में 3 दिवसीय ‘धर्म संसद’ के पहले दिन हिंदू कट्टरपंथी यति सत्येवानंद सरस्वती ने कहा. उन्होंने कहा,“ देश में मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या हिंदुओं के पतन का संकेत है. हिंदुओं को अपने परिवारों को मजबूत करना चाहिए. उन्हें अपने परिवारों, मानवता और सनातन धर्म की रक्षा के लिए अधिक बच्चों को जन्म देना चाहिए.”

पिछले 6 महीनों के भीतर इस तरह के बयानों की झड़ी लग गई है. फिर चाहे वह हरिद्वार, छतीसगढ़, दिल्ली की धर्मसंसद हो या जंतरमंतर और धार्मिक आयोजनों के मंचों से खुले सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने के बयान हों, जिन में महात्मा गांधी तक को गालियां दी गई हैं, गोडसे को राष्ट्रभक्त कहा गया है, महिलाओं पर टिप्पणियां की गई हैं. इस पूरे मामले में सत्ता पक्ष के नेताओं की तरफ से उचित कार्यवाही करने की जगह आरोपियों के समर्थन में बयान दिए गए हैं. वहीं केंद्र व भाजपाशासित राज्य सरकारों द्वारा चीजों को सुधारने की जगह भड़काने की कोशिशे की गई हैं, फिर चाहे वह मध्य प्रदेश में महज आरोप के आधार पर एकतरफ़ा घरों को उजाड़ना हो, या दिल्ली के जहांगीरपुरी में बदले की भावना से गैरकानूनी ढंग से गरीब मुसलिमों की दुकानों को अतिक्रमण के नाम पर उजाड़ना हो.

थ्योरी औफ नौर्मलाइजेशन

आज देश की जनता को इस का विरोध कर सड़कों पर आना चाहिए था, सरकार के खिलाफ बगावत करनी चाहिए थी, पर वह या तो इन कार्यवाहियों की खुली समर्थक बन बैठी है, या शिथिल हो चुकी है, या सहम गई है. यही भाजपा की सब से बड़ी जीत है कि उस ने देश की अधिकतर जनता को पंगु और मानसिक गुलाम बना दिया है और ऐसी भायनक घटनाओं को नौर्मलाइज्ड (सामान्यीकरण) कर दिया है जो लोकतंत्र के लिए घातक है. उदाहरण के लिए, आरोप साबित होने से पहले सजा दे देना (बुलडोजर कार्यवाही) यह तानाशाही का परिचायक है जिसे लोगों ने हाथोंहाथ स्वीकार कर लिया है. भाजपा ने अपने विरोधियों की राजनीति पर पूरी तरह कब्जा कर लिया है. आंदोलनकारियों को सहमा दिया है और जनता को तटस्थ या समर्थक बना दिया है.

यह बिना नैरेटिव चलाए संभव नहीं. दार्शनिक मिशेल फूको ने अपनी थ्योरी ‘नौरमलाइजेशन’ में इस बात को इंगित किया था कि सत्ता में बैठे लोग, जिन के पास ताकत होती है, वे अपने एजेंडे के लिए लगातार नैरेटिव चलाते हैं. लोग क्या सोचें क्या नहीं, क्या चीज नौर्मल होगी क्या नहीं, यह सब डिसाइड करते हैं. उदाहरण के लिए आज से 10 साल पहले खुद को ‘धर्मनिरपेक्ष’ कहलाया जाना अच्छा माना जाता था और ‘धार्मिक कट्टर’ कहलाया जाना बुरा. आज ‘धर्मनिरपेक्ष’ कहलाया जाना बुरा माना जा रहा है और ‘धार्मिक कट्टर’ कहलाया जाना अच्छा.

इसी प्रकार अपने एजेंडे तक पहुंचने के लिए भाजपा लगातार कुछ न कुछ नैरेटिव जनता के बीच उछालती है. वह लगातार अपने एजेंडे पर अग्रसर है. उस के लिए जरूरी नहीं कि चुनाव हों या नहीं, वह विवादित मुद्दों के केंद्र में हमेशा बने रहना भी चाहती है. उदाहरण के तौर पर पिछले 2 महीनों में हिजाब विवाद, मुसलिम ट्रेडर का बहिष्कार, हलाल-झटका, नवरात्र में मीट बैन, चारधाम यात्रा में गैर हिंदुओं पर रोक इसी के क्रम दर्शाते हैं. इस के अलावा भाजपा ने अपने खिलाफ उठने वाले विरोधों की आवाज को कुचलने का काम किया है. सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ताओं पर प्रशासनिक हमले बढ़ रहे हैं.

ध्यान देने वाली बात यह है कि पिछले 8 सालों में भाजपा ने बहुत तेजी से अपने लक्ष्य बदले हैं. उस ने जनता के दिमाग को बुरी तरह कैप्चर किया है. जैसे 2014 में भाजपा जब सरकार में आई थी तब उस ने जनता के बीच विकास का नैरेटिव दिया, जिस में महंगाई कम करना, भ्रष्टाचार ख़त्म करना, सब का साथ सब का विकास, अच्छे दिन, गरीबों का उत्थान और देश को मजबूत बनाना शामिल था.

2016 में जेएनयू तथाकथित ‘देशद्रोह’ प्रकरण के बाद देश को राष्ट्रवाद का नैरेटिव दिया. देशभक्त और देशद्रोही की बहस चलाई गई. फिर 2019 का पूरा चुनाव राष्ट्रवाद के नाम पर लड़ा गया. अब 2022 आतेआते उस ने हिंदूराष्ट्र का नैरेटिव देना शुरू कर दिया है, जिस का पहला आधार मुसलिमों के नागरिक व सामाजिक अधिकारों को छीन कर उन्हें अलगथलग करना है.

पूंजी, मीडिया, तंत्रमंत्र का साथ

अपने नैरेटिव जनता के दिमाग में डालने के लिए भाजपा के पास तमाम संसाधन मौजूद हैं. एसोसिएशन फौर डैमोक्रेटिक रिफौर्म्स (एडीआर) द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को वित्त वर्ष 2019-20 में सब से ज्यादा 720.407 करोड़ रुपए कौर्पोरेट चंदा मिला. जिस के मुकाबले में कांग्रेस को 154 कौर्पोरेट दाताओं से 133.04 करोड़ का चंदा मिला. यह दिखाता है कि उद्योगपतियों का झुकाव भारत में मोदी की तरफ है.

इस रिपोर्ट के अनुसार, इस समय बीजेपी देश की सब से अमीर पार्टी है, जिस ने वित्तवर्ष 2019-20 के लिए 4,847 करोड़ की संपत्ति घोषित की है. दूसरे नंबर पर मायावती की बसपा 698.33 करोड़ रुपए की संपत्ति के साथ है. तीसरे नंबर पर कांग्रेस है. उस के पास 588.16 करोड़ रुपए की संपत्ति है. इसी अनुपात में भाजपा के खर्चों में बढ़ोतरी हुई है. तथ्य यह है कि महज 42 सालों के भीतर ही भाजपा सब से अमीर पार्टी बन चुकी है. यह दिखाता है कि कोर्पोरेट और अमीरों ने किस तरह से भाजपा पर अपना प्यार लुटाया है. यह प्यार एकतरफा तो लुट नहीं सकता, इसलिए पिछले 8 सालों में देश की सरकारी संपत्ति इस प्यार की कीमत चुका रही है.

क्रिस्टोफ जैफ्रीलोट अपनी किताब ‘मोदीज इंडिया : हिंदू राइज एंड राइज औफ एथनिक डैमोक्रेसी’ में लिखते हैं, “भारत में अमीर और अमीर बन गए हैं. सरकार की कर नीति ने इस प्रवर्ती को ठीक करने के बजाय इसे और मजबूत किया है.” क्रिस्टोफ मानते हैं कि इस में क्रोनिज्म (तरफदारी नीति) का मामला है. कुछ लोग अमीर से और अमीर हुए, इस में मोदी सरकार और उद्योगपतियों के बीच करीबी संबंध होना शामिल है.

भाजपा के नैरेटिव को जनता के ऊपर थोपने में मीडिया बड़ी भूमिका अदा कर रही है. आज मुख्यधारा की मीडिया मोदीशाह के नियंत्रण में है. जरूरी मुद्दों से ध्यान भटकाना, भाजपा प्रचारक की भूमिका निभाना और विपक्ष को निशाने पर लेना मीडिया का रोल रह गया है. पक्षपाती मीडिया का उदाहरण हर शाम प्राइम टाइम पर देखने को मिल जाता है. कैसे धार्मिक विषयों को उठा कर सामाजिक द्वेष को बढ़ावा दिया जाता है. जो मीडिया संस्थान सरकार की आलोचना करता है उसे तरहतरह से परेशान करने के उदाहरण बीते सालों से लगातार देखने को मिल रहे हैं. इस के साथ ही भाजपा का आईटी सैल सोशल मीडिया पर अपने अन्य विशाल सह संगठनों के साथ मिल कर योजनाबद्ध तरीके से झूठी या आधीअधूरी एकतरफ़ा खबरों का प्रचारप्रसार करती है. इस में व्हाट्सऐप ग्रुप, फेसबुक ट्रोलिंग सामान्य बन चुकी हैं.

भाजपा के नैरेटिव को बढ़ाने में सब से अधिक कारगर वह पारंपरिक व्यवस्था है जिस के घेरे में लगभग हर हिंदू परिवार फंसा है. इस में दानदक्षिणा पर निर्भर मंदिरों में बैठे पंडेपुजारी मुफ्त में सदियों से भाजपा के एजेंडे का प्रचार करते रहे हैं. डील यही कि देश में ऐसे लोगों की जमात बढ़े जो धर्मकर्म के कार्यों में अधिक से अधिक शामिल हो, जो डरीसहमी हो, जिसे बारबार मंदिर आने की जरूरत हो, जो धर्म के मकड़जाल में इतनी घिरी हुई हो कि दानदक्षिणा करे, चढ़ावा चढ़ाए. इसी तबके से हिंदूराष्ट्र बनाने की मुखर आवाज आ रही है. संविधान को बदलने की मांग भी यही तबका जोरशोर से कर रहा है. वजह यह है कि एक को सत्ता भोगने का सुख मिले तो दूसरे को दानदक्षिणा का सुख. यही कारण है कि दिनरात ‘हिंदू खतरे में हैं’, ‘मुस्लिम राज आ जाएगा’, ‘4 बच्चे पैदा करो’ की रट लगाई जाती है.

एंटी सिमिटिज्म की शुरुआत तो नहीं

जरमनी में जब फासीवादी हिटलर का राज था, तब प्रचार मंत्री जोसेफ गोएबल्स की एक बात मशहूर थी कि, ‘किसी झूठ को इतनी बार कहो कि वह सच बन जाए और सब उस पर यकीन करने लगें.’ वहां यहूदियों को अलगथलग करने के लिए तमाम भ्रामक प्रचार किए गए. ऐसी जानकारियां फैलाई गईं जो कुछ ही सच, बाकी भ्रामक होतीं, ताकि लोग इन बातों पर आसानी से विश्वास कर लें, यहूदियों के खिलाफ पूर्वाग्रह, नफरत, द्वेष फैलाया गया. नाजियों द्वारा लगातार यहूदियों के खिलाफ मुद्दे उछाले गए जिस से जनमानस में एंटी सिमिटिक विचार हावी होने लगे. यह इसलिए क्योंकि वहां के शासक ऐसा चाहते थे. पर जैसे धुंध हटने के बाद सबकुछ साफ नजर आने लगता है वैसे ही हिटलर के मरने के बाद वहां आम लोगों को समझ आया कि हिटलरभक्ति और यहूदियों से नफरत ने उन्हें कितना अंधा बना दिया था कि वे सहीगलत नहीं समझ पाए और आज वे किस बरबादी पर खड़े हैं.

भारत में भी एंटीसिमिटिक दौर की शुरुआत होना कहना गलत नहीं होगा, क्योंकि इस समय मुसलिमों के खिलाफ कई प्रकार के पूर्वागृह तेजी से फैलाए जा रहे हैं, जैसे मुसलिम देश के प्रति वफादार नहीं हो सकते, वे 20-20 बच्चे पैदा करते हैं, वे हिंदू महिलाओं को अपने प्यार में फंसा कर जबरदस्ती धर्मांतरण कराते हैं, देश में मुसलिम अपनी संख्या बढ़ा रहे हैं जिस से एक दिन मुसलिम राज स्थापित हो जाएगा, मुसलिम बाहरी हैं, मुसलिम नौकरियां खा रहे हैं, जमीनों को हड़प रहे हैं इत्यादि.

जाहिर है, ये सब नैरेटिव गढ़े जा रहे हैं ताकि मूल मुद्दों से ध्यान भटकाया जा सके. जैसा कि पिछले कुछ समय से लगातार देखने को मिल रहा है, केंद्र सरकार रोजगार के अवसर पैदा करने में विफल रही है. बल्कि जो बचे रोजगार थे उन पर भी वह चोट पहुंचाने का काम कर रही है. छोटा और मध्यम क्षेत्र, भारतीय रोजगार के सब से बड़े दाता, 2016 में हुए नोटबंदी के बाद से लड़खड़ा गए हैं और बाद में जीएसटी व लौकडाउन जैसे आघातों का सामना करना पड़ा है.

कई आंकड़ों से पता चलता है कि मोदीकाल में अमीर अधिक अमीर हुए हैं, गरीबों और अतिगरीबों की संख्या में इजाफा हुआ है. अमीरी-गरीबी की खाई बढ़ी ही है. महंगाई की बात करें तो थोक और खुदरा दोनों प्रकार की महंगाई में महीनेदरमहीने इजाफा हो रहा है. कंज्यूमर प्राइस इंडैक्स (सीपीआई) पर आधारित खुदरा महंगाई नवंबर में 4.9 फीसदी के स्तर पर पहुंच चुकी है. आम लोगों के लिए यह इजाफा परेशान करने वाला है. वहीं दूसरी ओर होलसेल प्राइस इंडैक्स (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित थोक महंगाई को देखें तो यह पिछले 12 साल के उच्च स्तर पर पहुंच चुकी है. इस का स्तर डराने वाला है. फिलहाल देश में थोक महंगाई 14.23 फीसदी के स्तर पर है.

भारत में पिछले दिनों कई राज्यों में हुई सांप्रदायिक हिंसा को ले कर रिजर्व बैंक औफ इंडिया के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने देश को आगाह किया. रघुराम राजन ने कहा कि दुनिया में देश की बन रही ‘अल्पसंख्यक विरोधी’ छवि भारतीय प्रोडक्ट्स के लिए बाजार को नुकसान पहुंचा सकती है. उन्होंने कहा कि भारत की ऐसी इमेज बनने के चलते विदेशी सरकारें राष्ट्र पर भरोसा करने में हिचकिचा सकती हैं. हो सकता है कि निवेशक आप को एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में न देखें.

इस के ठीक पहले मुसलिम दुकानदारों के बहिष्कार की मांग पर भारत की और दुनिया की शीर्ष बायोटेक कंपनियों में से एक, बायोकौन की संस्थापक व प्रमुख किरण मजूमदार शो के बयान ने आपति जाहिर की. इस से व्यापर पर पड़ने वाले नुकसान को ले कर चेताया. उन का बयान एक ट्वीट में आया, उन्होंने कहा, “कर्नाटक ने हमेशा समावेशी आर्थिक विकास किया है और हमें इस तरह के सांप्रदायिक बहिष्कार (मुसलिम वेंडर की दुकानों के बहिष्कार) की अनुमति नहीं देनी चाहिए. अगर आईटीबीटी (सूचना प्रौद्योगिकी और जैव प्रौद्योगिकी) सांप्रदायिक हो गई तो यह हमारे वैश्विक नेतृत्व को नष्ट कर देगी. मुख्यमंत्री जी, कृपया इस बढ़ते धार्मिक विभाजन को हल करें.””

जाहिर है, नफरत और हिंसा का यह माहौल न केवल भारतीय मुसलमानों के लिए एक संकट ले कर आया है बल्कि भारत के बहुसंख्यक हिंदू आबादी के लिए भी कम खतरनाक नहीं है. भारत की छवि विश्व मंच पर ख़राब हो रही है, जिस से कंपनियां भारत में आने से हिचकिचा रही हैं. आज महंगाई की मार हिंदूमुसलिम दोनों पर पड़ रही है. महिला उत्पीड़न के मामले दब रहे हैं तो हिंदू महिलाओं पर इसे अधिक झेलना पड़ रहा है. बेरोजगारी दोनों समुदाय के युवा झेल रहे हैं. सरकारी नौकरियों में कटौती सभी पर भारी पड़ रही है. इसलिए भाजपा व हिंदूवादी संगठनों का फैलाया यह नैरेटिव मुसलिमविरोधी से कहीं अधिक, जनताविरोधी हो चला है.

इस शो से टीवी पर वापसी कर रही हैं Shivangi Joshi, पढ़ें खबर

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’  फेम शिवांगी जोशी (नायरा) अपनी एक्टिंग के बदौलत दर्शकों के दिल पर राज करती है. वह घर-घर में अपने किरदार से मशहूर है. हाल ही में शिवांगी जोशी ‘बालिका वधू सीजन 2’ में नजर आईं थी. लेकिन यह शो जल्द ही ऑफ एयर हो गया. इसके बाद एक्ट्रेस फिर से टीवी पर वापसी करने जा रही है.

शिवांगी जोशी ने खुद इसका खुलासा किया है कि वह टीवी पर वापसी करने जा रही है. बता दें कि बीते कई दिनों से शिवांगी जोशी का नाम रोहित शेट्टी के रियलिटी शो ‘खतरों के खिलाड़ी सीजन 12’ को लेकर चर्चा में बना हुआ था.

 

एक इंटरव्यू में शिवांगी जोशी ने चुप्पी तोड़ी है. उन्होंने कहा है कि ‘खतरों के खिलाड़ी मेरा पहला रिएलिटी शो होगा. मैं बहुत ज्यादा एक्साइटेड हूं. ये शो मेरे डर को दूर करने और अपनी काबिलियत को चेक करने के लिए अच्छा प्लेटफॉर्म होगा.

 

शिवांगी जोशी ने आगे कहा कि वो रोहित शेट्टी से मिलने के लिए एक्साइटेड हैं. इसके साथ ही एक्ट्रेस ने कहा कि वो उम्मीद करती हैं कि उनसे बहुत प्रेरणा मिलेगी.

 

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में नायरा और कार्तिक की जोड़ी को फैंस ने काफी पसंद किया. इस शो में इन दोनों ने ऑनस्क्रीन कपल का रोल निभाया था. दोनों की केमिस्ट्री भी खूब चर्चा में रही थी.

 

अनुपमा से बच्चों को दूर करेगा वनराज! तो अनुज देगा करारा जवाब

सीरियल ‘अनुपमा’  में इन दिनों लगातार ट्विस्ट एंड टर्न देखने को मिल रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि समर, तोषु, किंजल, पाखी आपसे में बात करते है कि शादी के बाद अनुज को पापा कहकर बुला सकते हैं, तभी वनराज सुन लेता है और उसे बड़ा घक्का लगता है. वह काफी इमोशनल हो जाता है. वह कहता है कि वो अपने बच्चों खुद से कभी दूर नहीं होने देगा.

शो के आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुज अनुपमा से वादा करेगा कि शादी को बाद वो कभी भी उस पर हक नहीं जमाएगा. शादी के बाद दोनों मिलकर बच्चे और अपने परिवार की जिम्मेदारी संभालेंगे.

 

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शो में जल्द ही आप देखेंगे कि अनुज और अनुपमा की शादी की रस्में शुरू हो जाएगी. अनुपमा अपनी शादी को लेकर काफी खुश होगी. तो दूसरी तरफ वनराज को जलन होगी और वह अनुपमा के बारे में सोचेगा. दूसरी तरफ परिवार के अन्य लोग शादी में धमाल मचाएंगे.

 

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अनुपमा-अनुज की मेहंदी की रस्म में मीका सिंह की एंट्री होने वाली है.शो में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. वनराज को लगेगा की अनुज उससे बाप होने का हक छीन लेगा. ऐसे में वह अनुपमा से बच्चों को दूर करने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगा. वनराज अनुपमा से बच्चों की कस्टडी मांगेगा.

 

लेकिन अनुपमा वनराज को बच्चों की कस्टडी देने से मना कर देगी. ऐसे में अब वनराज और अनुपमा के बीच एक नई जंग देखने को मिलेगा. शो में ये देखना दिलचस्प होगा कि कैसे अनुज वनराज को सबक सिखाता है.

बड़ी लकीर छोटी लकीर- भाग 3: सुमित को अपनी पत्नी से क्यों समस्या होने लगी?

2-3 माह में थोड़ाथोड़ा मुनाफा होने लगा. उस दौड़ में पहला स्थान प्राप्त करने के चक्कर में मैं शायद सहीगलत में फर्क को नजरअंदाज करने लगा. थोड़ा सा पैसा आते ही दिलखोल कर खर्च करने लगा. अचानक एक दिन साइबर सैल से पुलिस आई जांच के लिए. पता चला कि मेरी कंपनी के द्वारा कुछ ऐसे पैसे का लेनदेन हुआ है जो कानून के दायरे में नहीं आता है. एक बार फिर से मैं हाशिए पर आ खड़ा हो गया. जितना कामयाब होने की कोशिश करता उतनी ही नाकामयाबी मेरे पीछेपीछे चली आती.

शिखा ने कहा कि मैं कभी भी उस के या अन्वी के बारे में नहीं सोचता. हमेशा सपनों की दुनिया में जीता हूं.

शायद वह अपनी जगह ठीक थी पर उसे यह नहीं मालूम था कि मैं सबकुछ उसे और अन्वी को एक बेहतर जिंदगी देने के लिए करता हूं. पर क्या करूं मैं ऊपर उठने की जितनी भी कोशिश करता उतना ही नीचे चला जाता हूं. हमारे रिश्ते की खाई गहरी होती गई. हम पतिपत्नी का प्यार अब न जाने कहां खोने लगा.

यह सोचता हुआ मैं वर्तमान में लौट आया हूं. कल शिखा की छोटी बहन की शादी है. सभी रिश्तेदार एकत्रित हुए हैं. न जाने क्या सोच कर मैं शिखा के लिए अंगूठी खरीद ले आया. सब लोग शिखा की अंगूठी की तारीफ कर रहे थे और मैं खुशी महसूस कर रहा था. वह अलग बात है, मैं इन पैसों से पूरे महीने का खर्च चला सकता था.

तभी देखा कि नीतू सब को अपना कुंदन का सैट दिखा रही है जो उस ने खासतौर पर इस शादी में पहनने के लिए खरीदा था. मुझे अंदर से आज बहुत खालीखाली महसूस हो रहा था. मैं इन लकीरों के खेल में उलझ कर आज खुद को बौना महसूस कर रहा हूं.

बरात आ गई थी. चारों तरफ गहमागहमी का माहौल था. तभी अचानक पीछे से किसी ने आवाज लगाई. मुड़ कर देखा तो देखता ही रह गया.

मेरे सामने भावना खड़ी थी. भावना और मैं कालेज के समय बहुत अच्छे मित्र थे या यों कह सकते वह और मैं एकदूसरे के पूरक थे. प्यार जैसा कुछ था या नहीं, नहीं मालूम पर उस के विवाह के बाद बहुत खालीपन महसूस हुआ. भावना जरा भी नहीं बदली थी या यों कहूं पहले से भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी. वही बिंदासपन, बातबात पर खिलखिलाना.

मुझे देखते ही बोली, ‘‘सुमि, क्या हाल बना रखा है… तुम्हारी आंखों की चमक कहां गई?’’

मैं चुपचाप मंदमंद मुसकराते हुए उसे एकटक देख रहा था. मन में अचानक यह

खयाल आया कि काश मैं और वह मिल कर हम बन जाते.

भावना चिल्लाई, ‘‘यह क्या मैं ही बोले जा रही हूं और तुम खोए हुए हो?’’

हम गुजरे जमाने में पहुंच गए. 3 घंटे 3 मिनट की तरह बीत गए. होश तब आया जब शिखा अन्वी को ले कर आई और शिकायती लहजे में बोली, ‘‘तुम्हें सब वहां ढूंढ़ रहे हैं.’’

मैं ने उन दोनों का परिचय कराया और फिर शिखा के साथ चला गया. पर मन वहीं भावना के पास अटका रह गया. जयमाला के बाद फिर से भावना से टकरा गया.

भावना निश्छल मन से शिखा से बोली, ‘‘शिखा, आज की रात तुम्हारे पति को चुरा रही हूं… हम दोनों बरसों बाद मिले हैं… फिर पता नहीं मिल पाएं या नहीं.’’

ये सब सुन कर मुझे पता लग गया था कि मैं अब भावना का अतीत ही हूं और शायद उस ने कभी मुझे मित्र से अधिक अहमियत नहीं दी थी. यह तो मैं ही हूं जो कोई गलतफहमी पाले बैठा था.

फिर भावना कौफी के 2 कप ले आई. मुसकराते हुए बोली, ‘‘चलो हो जाए कौफी विद भावना.’’

मैं भी मुसकरा उठा. मैं ने औपचारिकतावश उस से उस के घरपरिवार के बारे में पूछा. उस से बातचीत कर के मुझे आभास हो गया था कि मेरी सब से प्यारी मित्र अपनी जिंदगी में बहुत खुश है पर यह क्या मुझे सच में बहुत खुशी हो रही थी?

भावना ने मुझ से पूछा, ‘‘और सुमि तुम्हारी कैसी कट रही है? बीवी तो तुम्हारी बहुत प्यारी है.’’

उस के आगे मैं कभी झूठ न बोल पाया था तो आज कैसे बोल पाता. अत: मैं ने उसे अपना दिल खोल कर दिखा दिया. मैं ने उस से कहा, ‘‘भावना, मैं क्या करूं… मैं हार गया यार… जितनी कोशिश करता हूं उतना ही नीचे चला जाता हूं.’’

भावना बोली, ‘‘सुमित, कभी शिखा से ऐसे बात की जैसे तुम ने आज मुझ से करी है?’’

मैं ने न में सिर हिलाया तो वह बोली, ‘‘फिर हर समय इन लकीरों के खेल में उलझे रहना… पति न जाने क्यों अपनी पत्नियों को बेइंतहा प्यार करने के बावजूद उन्हें अपने दर्द से रूबरू नहीं करा पाते हैं. तुम पहले इंसान नहीं हो जो ऐसा कर रहे हो और न ही तुम आखिरी हो, पर सुमित तुम खुद इस के जिम्मेदार हो… इन लकीरों के खेल में तुम खुद उलझे हो… अपना सब से प्यारा दोस्त समझ कर यह बता रही हूं कि अपनी तुलना अगर दूसरों से करोगे तो खुद को कमतर ही पाओगे. सुमि, बड़ी लकीर अवश्य खींचो पर अपनी ही अतीत की छोटी लकीर के अनुपात में… तुम्हें कभी निराशा नहीं होगी. जैसे मछली जमीन पर नहीं रह सकती वैसे ही पंछी भी पानी में नहीं रह पाते. सुमि, शायद तुम एक मछली हो जो उड़ने की कोशिश कर रहे हो.

‘‘फिर बोलो गलती किस की है, तुम्हारी, शिखा या अनिल की?

‘‘दूसरे तुम्हारे बारे में क्या सोचते हैं, इस से ज्यादा इस बात पर निर्भर करता है कि आप अपने बारे में कैसा महसूस करते हैं…

‘‘शिखा की मां हो या तुम्हारी सब अपनेअपने ढंग से चीजों को देखेंगे पर यह तुम्हारी जिम्मेदारी है कि तुम कैसे अपने रिश्ते निभाते हो.

‘‘जैसे एक बहू को शादी के बाद अपने नए परिवार में तालमेल बैठाना पड़ता है. वैसे ही एक पुरुष को भी शादी के बाद सब से तालमेल बैठाना पड़ता है पर इस बात को एक पति, दामाद अकसर नजरअंदाज कर देते हैं… अनिल से अपनी तुलना करने के बजाय उस से कुछ सीखो और मुझे यकीन है तुम्हारे अंदर भी ऐसे गुण होंगे जो अनिल ने तुम से सीखे होंगे. नकारात्मकता को अपने और शिखा के ऊपर हावी न होने दो. जैसे तुम खुद को देखोगे वैसे ही दूसरे लोग तुम्हें देखेंगे.

‘‘यह उम्मीद करती हूं कि अगली बार फिर कभी जीवन के किसी मोड़ पर टकरा गए तो फिर से अपने पुराने सुमि को देखना चाहूंगी,’’ कह भावना चली गई.

मैं चुपचाप उसे सुनता रहा और फिर मनन करने लगा कि शायद भावना सही बोल रही है. लकीरों के खेल में उलझ कर मैं खुद ही हीनभावना से ग्रस्त हो गया हूं. शायद अब समय आ गया है हमेशा के लिए इस खेल को खत्म करने का पर इस बार अपनी शिखा को साथ ले कर मैं अपनी जिंदगी की एक नई लकीर बनाऊंगा बिना किसी के साथ तुलना कर के और फिर कभी भावना से टकरा गया तो अपनी जिंदगी के नए सफर की कहानी सुनाऊंगा.

ऐसी जुगुनी- भाग 4: जुगुनी ने अपने ससुरालवालों के साथ क्या किया?

दरअसल, उसे तो कोई बीमारी हुई ही नहीं थी. बस, भावुक होने की वजह से सदमे में रहने लगी थी कि अब क्या होगा. 2 बेरोजगार भाइयों और 2 अनब्याही बहनों तथा एक परित्यक्त स्त्री (बहन) के परिवार का बेड़ा पार कैसे होगा? बड़े भाई ने अपनी जिम्मेदारियों से बहुत पहले ही किनारा कर लिया था. तेजेंद्र भी अपनी पत्नी के दबाव में उन के लिए कुछ भी कर पाने में असमर्थ था. यहां तक कि उन से मिलने की युक्ति भी नहीं कर पाता था. जुगुनी उसे बातबात में लांछित करती रहती थी.

अपनी मौत से ठीक एक दिन पहले मीठी ने खुद फोन कर के तेजेंद्र से निवेदन किया, ‘‘भैया, आप तुरंत मेरे पास आ जाइए. मेरी तबीयत बहुत खराब चल रही है. आप आ जाएंगे तो मुझे ढाढ़स मिलेगा. मेरा मनोबल बढ़ेगा और मैं ठीक हो जाऊंगी.’’

तेजेंद्र ने उसे दिलासा दिया, ‘‘मैं यहां तुम्हारी भाभी से इजाजत ले कर शीघ्र आने का बंदोबस्त कर रहा हूं.’’ पर उसे तो बेहद डर लग रहा था कि अगर उस ने बीमार मीठी से मिलने जाने के लिए जुगुनी से कुछ कहा तो वह झगड़ाफसाद करने पर उतारू हो जाएगी और उसे किसी कीमत पर वहां नहीं जाने देगी. सारे गड़े मुर्दे उखाड़ने और दहेज के स्कूटर को वापस लेने के मुद्दे पर झगड़ने लगेगी.

लेकिन, अफसोस कि इस के पहले वह जुगुनी से इस बारे में बात करता, अगले ही दिन मीठी की तबीयत बिगड़ गई और उस के दिल की धड़कन रुक गई. तेजेंद्र को फोन पर खबर मिली कि मीठी नहीं रही.

वह बेहद आहत हुआ. मीठी के अंतिम शब्द थे, ‘कोई बड़ा आदमी घर में नहीं है.’ क्योंकि जब वह अंतिम सांसें ले रही थी, न तो पिताजी घर पर थे, न ही गजेंद्र. कमलेंद्र भाईसाहब के उपस्थिति होने की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती थी. बस, उस की बड़ी और छोटी दोनों बहनें नंदिनी और रोशनी तथा तेजेंद्र का छोटा भाई प्रेमेंद्र ही उपस्थित थे. कमलेंद्र और तेजेंद्र तथा छोटा भाई गजेंद्र उस की अंत्येष्टि में मौजूद हुए. कमलेंद्र का परिवार अंत्येष्टि और दूसरे क्रियाकर्म में शामिल होने के लिए बाद में आया जबकि तेजेंद्र की पत्नी जुगुनी मीठी के शव के पास बैठ कर घडि़याली आंसू बहाती रही. जुगुनी के बड़े भाई शांताराम ने अंत्येष्टि के बाद के कर्मकांडों में पहुंचने का नाटक किया जबकि उस के मांबाप ने एक दिन पहुंच कर वहां अपनी मौजूदगी दर्ज की. अम्मा ने जुगुनी को एक कोने में ले जा कर उस के कान से अपना मुंह सटा दिया, ‘‘देखो जुगुनी, आगेआगे होता है क्या? तेरी ससुराल में बचेखुचे लोगों का भी सफाया जल्दी ही होने वाला है. मैं अपने कर्मकांडों के बल से खुद डायन बन कर लोगों के जीवन से खेल सकती हूं, यह मेरा दावा है. सारी दुनिया में उथलपुथल मचा सकती हूं.’’ तब, जुगुनी ने मुसकरा कर अम्मा को शांत रहने की सलाह दी.

जवान और अनब्याही बहन के निधन पर भाईबहन और सगेसंबंधी सभी व्याकुल थे. तेजेंद्र पश्चात्ताप की आग में जलता रहा, ‘काश, मैं मीठी के बुलाने पर समय से पहुंच गया होता तो इस अनिष्ट को रोका जा सकता था.’

बहरहाल, जब वह सारा कर्मकांड पूरा करा कर वहां से वापस मुंबई पहुंचा तो जुगुनी का दिमाग सातवें आसमान पर चढ़ा हुआ था. उस ने मुंबई पहुंचते ही अपने जवान हो रहे बेटे अनुग्रह के कान भर कर उसे अच्छी तरह पढ़ालिखा दिया था कि तुम्हारे चाचाबूआ तुम्हारे पापा के टुकड़ों पर पल रहे हैं और तुम्हारे पापा अपनी तनख्वाह का एक हिस्सा उन के खर्चे के लिए हर माह भेज देते हैं. अनुग्रह को लगा कि उस का हक उस के चाचाबूआ मार रहे हैं. सो, वह अपने पिता की न केवल पूरी तरह अवज्ञा करने लगा, बल्कि उन से बदतमीजी से पेश भी आने लगा.

जुगुनी ने पता नहीं किस तरह उसे भड़काया कि एक दिन वह सारी हदें लांघ गया और उस ने अपने पापा पर हाथ उठा दिया. तेजेंद्र अपने बेटे की मार खा कर शर्र्म से जारजार हो गया. उस का जी कर रहा था कि वह खुदकुशी कर ले. पर, उस के सामने तो घर की जिम्मेदारियां थीं, जिन्हें वह पूरा कर के ही इस दुनिया से कूच करेगा.

वह छत पर चला गया और खुद को एक कमरे में बंद कर लिया. वह विषम परिस्थितियों से बेहद डर गया. अब उसे ऐसी स्थिति से बचना चाहिए ताकि वह अपने बेटे की हिंसा का शिकार न हो.

पर, जुगुनी तो उस की हालत देख, मन ही मन खुश हो रही थी. उस ने झट अम्मा को फोन लगा कर इस बारे में जानकारी दी, ‘‘आज तेजेंद्र को हम ने बेबस व लाचार कर दिया है. कितनी अच्छी बात है कि अनुग्रह अब मेरा साथ दे रहा है और उस ने आज अपने बाप की पिटाई भी की है. पर, वह बेहया, अपनी हरकत से बाज आने वाला नहीं है. वह अभी भी अपने भाईबहनों के लिए बेचैन है.’’

अम्मा खुशी से चहक उठी, ‘जुगुनी, अभी कल मैं देवी मइया के दर्शन करने गई थी. मैं ने उन से मांगा था कि वे जल्दी से जल्दी मेरी जुगुनी की जिंदगी संवार दें. अहा, मइया की कृपा तत्काल हो गई है. देखना, अब तू गिनती के कुछ दिनों में आबाद हो जाएगी. कोई भूचाल आएगा जिस में तेजेंद्र और उस के परिवार वाले मीठी की तर्ज पर बिना वजह कुत्ते की मौत मरेंगे और तू तेजेंद्र की मिल्कियत पर राज करेगी. यह तुझ से मेरा वादा है.’’

अम्मा से बातचीत बंद होते ही जुगुनी का भाई शांताराम, जिस ने पड़ोस में ही मकान ले रखा था, आ धमका. दरअसल, तेजेंद्र के किसी पड़ोसी ने उस के घर में होहल्ला सुन कर उसे जा कर बता दिया था कि तेजेंद्र और जुगुनी के बीच आजकल खूब ठनी हुई है और ऐसे मौके का मजा लेने के लिए तुम्हारा वहां मौजूद होना जरूरी है. सो, शांताराम ने आते ही चुटकी ली, ‘‘मेरे इशारे पर सही जा रही हो, जुगुनी. कुछ समय पहले जब तेजेंद्र के भाईबहन भी आए हुए थे, मैं ने देखा था कि अनुग्रह अपने चाचाबूआओं से बड़े प्यार और इज्जत से पेश आ रहा था. मुझे अनुग्रह को उन के इतना करीब पा कर बेहद डाह हो रही थी. तब, मैं ने तुम से कहा था कि जुगुनी, तुम्हें अपने बच्चों के मन में ऐसी ऊलजलूल बातें डालनी होंगी कि वे अपने चाचाबूआओं से घोर नफरत करने लगे.

‘‘आज मुझे कितनी खुशी हो रही है कि तुम ने मेरे सबक पर अमल किया. अनुग्रह ने अपने बाप की पिटाई कर के मेरे मन को बहुत ठंडक पहुंचाई है. वह तो उस का दुश्मन बन गया है. अब देखना, तुम्हारे अच्छे दिन आने वाले हैं. तुम कुछ ही समय में फलनेफूलने लगोगी.’’

तब जुगुनी ने शांताराम के कान में फुसफुसा कर कहा, ‘‘वो मुआ तेजेंद्र ऊपर कमरे में खुद को बंद कर के शोक मना रहा होगा. दरअसल, वह अपने भाईबहनों से मोबाइल पर बात कर रहा होगा. वह उन से छिपछिप कर बात करने से कभी बाज नहीं आएगा.’’

अत्यंत उपेक्षित और अपमानित हो कर तेजेंद्र छत पर बने अलग कमरे में रहने लगा था. जुगुनी अपनी अम्मा से पाठ पढ़ कर उसे मानसिक रूप से और भी प्रताडि़त करने लगी थी.

जैसे ही वह नीचे की मंजिल पर किसी काम से आता, वह ताने देने लगती, ‘‘अपनी रसोई भी ऊपर ही कर लो. नीचे अपनी मनहूस शक्ल दिखाने क्यों आ जाते हो?’’ तब, अनुग्रह भी व्यंग्य करने से बाज नहीं आता. लेकिन, मन से तनिक भावुक बेटी रचना, जो अपने भाई से 5 साल छोटी थी, बड़ी सहानुभूति से पापा को देखती. पर, मम्मी के डर से उस के पक्ष में कुछ भी न बोल पाती. वह सशंकित होती कि मम्मी उस की शिकायत नानी अर्थात अम्मा से न कर दें.

तेजेंद्र का मन दुनिया से उचटता जा रहा था. पत्नी ने तो उसे औरत का सुख कभी दिया ही नहीं, बेटे ने भी उस का दिल खूब तोड़ा जबकि उस ने अपनी जिम्मेदारियां बखूबी निभाई थीं. अपनी पैतृक विरासत और रिश्तों से भी वह दूर होता जा रहा था.

एक दिन शाम को औफिस से लौट कर उसे अचंभा हुआ. उस ने नीचे की मंजिल में झांक कर देखा कि जुगुनी की अम्मा, भाई शांताराम और जीजा दोनों ड्राइंगरूम में आ कर जमे हुए हैं. पता नहीं, वे कब आए और क्यों? उस ने छिप कर उन की बातें सुनी. उसे यह जान कर अत्यधिक क्षोभ हुआ कि वे सारे उसे येनकेनप्रकारेण किनारे लगाने की साजिश रच रहे हैं. वह बेहद रोंआसा और संजीदा हो गया. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उस की ससुराल वाले ही नहीं, खुद उस की पत्नी भी उस से किनारा करना चाहती है.

मानसिक तनाव से उस का सिर फटने लगा. ब्लडप्रैशर से दिल में दर्द भी होने लगा. तब उस ने सिरदर्द की एक गोली ली और छत पर जा कर दरवाजे पर सांकल चढ़ाया और जमीन पर ही लेट गया. लेटे ही लेटे उस ने सीलिंग फैन की ओर देखा, फांसी लगा कर आत्महत्या कर लेने से ही मेरी दैहिकमानसिक अशांति का शमन होगा. पर, उस ने आखिरकार अपने कदम वापस खींच लिए, अभी तो बेटे अनुग्रह को उच्चशिक्षा दिलानी है और जवान हो रही बिटिया की शादी करनी है.

अभी मुझे तो आत्महत्या का खयाल तक नहीं लाना चाहिए, अन्यथा लोग क्या कहेंगे कि इस ने अपनी जरूरी जिम्मेदारियां तक नहीं निभाईं, फिर जैसे ही उस ने सीढि़यां उतरने के लिए जमीन से उठने की कोशिश की, वह संभल नहीं पाया और बैड पर ही निढाल लुढ़क गया. शायद, ब्लडप्रैशर ज्यादा बढ़ गया था.

सुबह जब देर तक तेजेंद्र का दरवाजा नहीं खुला तो जुगुनी ने शांताराम को बुला भेजा, वह मुआ अभी भी नींद के खुमार में ऊपर बैड तोड़ रहा है. उस से पूछो कि उसे औफिस जाना है या नहीं? जुगुनी लगातार भुनभुनाती जा रही थी.

लेकिन, कई बार जोरजोर से आवाज लगाने और दरवाजा पीटने पर भी जब तेजेंद्र की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो जुगुनी ने ताना कसा, ‘‘लगता है, उस ने नींद की गोली खा रखी है?’’ आखिरकार, शांताराम ने दरवाजा पड़ोसियों की मदद से तोड़ दिया. अंदर प्रवेश कर जब उस ने बैड पर पड़े तेजेंद्र का बदन हिलाया तो उस में कोई हरकत नहीं हुई. वहां खड़ी जुगुनी ने फिर चुटकी ली, यह तो ऐसे ही घोड़ा बेच कर सोता है.

फिर शांताराम ने उस की नाड़ी टटोली और सीने पर हाथ रखा तो वह एकदम से हड़बड़ा उठा, ‘‘अरे, इस की तो सांस ही नहीं चल रही.’’ तब तक पड़ोस के डाक्टर हितेश भी आ चुके थे, उन्होंने तेजेंद्र की जांच की और सिर झुका लिया, ‘‘ही इज नो मोर. ही डाइड औफ अ सीवियर हार्ट अटैक.’’

जब शांताराम ने जुगुनी को आंख मार कर कुछ गुप्त इशारा किया तो उस ने माहौल के मुताबिक अपनेआप को ढालते हुए रोने का नाटक शुरू कर दिया. जब तक महल्ले वाले शोरगुल सुन कर इकट्ठे होते, जुगुनी झट रूमाल पानी से भिगो कर आंखें पोंछते हुए दहाड़ें मारमार कर रोने लगी. जमीन पर हाथ पटकपटक कर चूडि़यां तोड़ीं, मांग में लगा सिंदूर मिटाया. उस की अम्मा को उस के इस सिद्धहस्त व्यवहार को देख बड़ा अचंभा हो रहा था कि उस की बेटी तो उस से भी बढि़या नौटंकी कर लेती है.

पूरे तेरह दिनों तक चलने वाली तेजेंद्र की अंत्येष्टिक्रिया के समापन के बाद ताजी जानकारी यह है कि जुगुनी के जीजा स्थायी तौर पर मुंबई में बस चुके हैं तेजेंद्र द्वारा जमाई गई गृहस्थी में. अम्मा  ने भी वहां पक्का डेरा जमा लिया है जबकि तेजेंद्र के बड़े भाई कमलेंद्र, जिन की जुगुनी पर विशेष कृपा थी, का आनाजाना लगा रहता है. जुगुनी अपने रचे हुए इस नए संसार में बेहद खुश नजर आ रही थी. ऐसा लग रहा था मानो बुराई ने अच्छाई को निगल लिया हो.

Manohar Kahaniya: टूट गया दिव्या के प्यार का सुर और ताल- भाग 3

उन्होंने सूचना मेहम थानाप्रभारी प्रह्लाद सिंह को दे दी. थानाप्रभारी एसआई विकास के साथ वहां पहुंचे तो उन्हें भी लगा कि यहां किसी की लाश दबी हो सकती है. लिहाजा उन्होंने सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी. थोड़ी ही देर में वहां पर पुलिस के उच्चाधिकारी भी एफएसएल एक्सपर्ट डा. सरोज दहिया के साथ पहुंच गए.

तहसीलदार मदनलाल के सामने जब वहां खुदाई कराई गई तो वहां एक अर्द्धनग्न युवती की लाश निकली जो केवल अंडरगारमेंट पहने हुए थी. उस के सिर और गले पर चोट के निशान थे. उस समय मृतका की शिनाख्त न होने पर उसे पीजीआई रोहतक की मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दिया था.

दिल्ली पुलिस को जब मेहम पुलिस द्वारा एक युवती की लाश बरामद होने की जानकारी मिली तो उस ने थाना मेहम के थानाप्रभारी प्रह्लाद सिंह से संपर्क किया. तब प्रह्लाद सिंह ने बता दिया कि उन्होंने जो लाश बरामद की थी, वह रोहतक पीजीआई में रखवा दी है.

यह जानकारी पाने के बाद जाफरपुर कलां पुलिस ने दिव्या के घर वालों को रोहतक पीजीआई बुला लिया. दिव्या के मातापिता और बहन रोहतक पहुंच गए. उन्होंने उस लाश की पहचान संगीता इंदौरिया उर्फ दिव्या के रूप में की.

दिव्या की लाश देख कर घर वालों के तो जैसे होश ही उड़ गए थे. उस के परिजन आक्रोशित हो गए. उन्होंने उस की मौत का जिम्मेदार पुलिस को बताया. साथ ही उस का पोस्टमार्टम करवाने से मना कर दिया.

वे पूरी रात प्रदर्शन करते हुए दोषियों को सजा देने की मांग करते रहे. इस बीच भीम आर्मी वाले भी उन के सपोर्ट में आ गए.

पुलिस पर दबाव बढ़ा तो बड़े अधिकारियों ने दिव्या के मातापिता को समझाबुझा कर किसी तरह मामला शांत करवाया और शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाया.

इस मामले को रोहतक पुलिस ने तमाम सबूतों के साथ दिल्ली पुलिस को सौंप दिया. पुलिस ने आरोपियों से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उन्हें अपहरण और हत्या की धाराओं में गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

दूसरी मां- भाग 2: क्या मीना आंटी अपने लिए सम्मान पैदा कर सकीं?

हमारी पहली मुलाकात मेरी 14वीं सालगिरह के समारोह में हमारे घर में हुई थी. मेरे मनपसंद गुलाबी रंग में वे एक खूबसूरत ड्रैस मेरे लिए उपहार में लाई थीं. मीना आंटी को धन्यवाद देते हुए मैं ने प्रसन्नता व्यक्त की और कहा, ‘‘बड़े दिनों से ऐसी ड्रैस पहनने की इच्छा थी मेरी. आप को किस ने बताया कि गुलाबी रंग मेरा पसंदीदा रंग है?’’

‘‘तुम्हारे पापा ने. तुम्हें उपहार पसंद आया, इस बात की मुझे खुशी है, कविता,’’ एक बार मेरा गाल प्यार से थपथपा कर वे दूसरे मेहमानों से बातें करने लगी थीं.

मैं ने ही नहीं, मुझ से 3 साल छोटे मेरे भाई सुमित ने भी उस पहली मुलाकात में मीना आंटी को पसंद कर लिया था. वे सुमित के लिए स्केट्स का जोड़ा ले कर आई थीं. अब वह घरबाहर दिनरात स्केटिंग करते हुए मीना आंटी के गुण गाता रहता.

मीना आंटी पापा के औफिस में काम करती थीं. उन की उम्र हमारी पहली मुलाकात के वक्त करीब 35 वर्ष की रही होगी. उन का रंग गेहुआं और नैननक्श साधारण थे. आंखों में एक चमक हर वक्त मौजूद रहती थी.

उन के साधारण रंगरूप को अत्यधिक प्रभावशाली उन का धीरगंभीर व्यक्तित्व बनाता था. साधारण औरतों की तरह मैं ने उन्हें ज्यादा बोलते कभी नहीं देखा. वे कम बोलती थीं और काम की बातें करती थीं. उन के हावभाव और बोलचाल में भरपूर आत्मविश्वास झलकता था. हलके रंगों की सूती साडि़यां उन के सुगठित शरीर पर बहुत जमती थीं. खूबसूरत न होते हुए भी मीना आंटी के प्रभावशाली व्यक्तित्व से सामने वाला बहुत प्रभावित होता था.

जन्मदिन समारोह में कुछ देर हमारी अकेले में बातें हुई थीं.

‘अभी तुम 8वीं कक्षा में पढ़ रही हो न कविता?’ अपनी बगल वाली कुरसी पर बैठा कर उन्होंने मुझ से परिचय बढ़ाने की खातिर पूछा था.

‘जी आंटी,’ मैं ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘बड़ी हो कर क्या बनना चाहती हो?’

‘मैं डाक्टर बनूंगी, आंटी,’ मैं ने जोशीले अंदाज में जवाब दिया.

‘क्यों बनना चाहती हो डाक्टर तुम?’ उन्होंने दिलचस्पी दिखाई.

‘मेरी मां चाहती थीं कि मैं डाक्टर बनूं. आंटी, उन के इस सपने को मैं जरूर पूरा करूंगी.’

‘यह तो बड़ी अच्छी बात होगी, कविता. खूब दिल लगा कर पढ़ रही

हो न?’

‘जी, हां आंटी.’

‘7वीं में कितने नंबर आए थे तुम्हारे?’

‘72 प्रतिशत,’ मैं ने सकुचाते स्वर में बताया.

‘इतने नंबर लाने से तो बात नहीं बनेगी, कविता,’ उन का स्वर गंभीर हो उठा, ‘मैडिकल में प्रवेश पाने के लिए बड़ा तगड़ा कंपीटिशन है आजकल. सिर्फ सोच भर लेने से जिंदगी के मकसद पूरे नहीं होते. और दिल लगा कर पढ़ाई में मेहनत नहीं करोगी तो डाक्टर नहीं बन सकोगी.’

साफसच्ची बात मुंह पर कह देने का उन का रूखा सा अंदाज मुझे पलभर को अखरा था. फिर मैं ने उन से मिले खूबसूरत उपहार के बारे में सोचा और मन की नाराजगी को भुला कर, ‘मैं और ज्यादा मेहनत करूंगी, आंटी,’ ऐसा वादा कर के मैं अपनी सहेलियों के पास चली गई थी.

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जन्मदिन समारोह के बाद से लगभग हर शनिवारइतवार मीना आंटी हमारे यहां कभी पापा के साथ तो कभी अकेली आ जाती थीं. सुमित और मेरा वक्त उन के साथ अच्छा गुजरता था. बातों से ज्यादा वे कुछ न कुछ करते रहने में दिलचस्पी रखती थीं.

मेरे साथ वे बैडमिंटन खेलतीं तो सुमित उन्हें शतरंज की बाजी में उलझा कर खूब खुश होता. क्रिकेट पर उन दोनों के बीच गरमागरम बहस अकसर हो जाती. गणित और विज्ञान में ही नहीं, चित्रकला व कढ़ाईबुनाई में भी मेरी सहायता करने की उन में काबिलीयत थी.

2 महीने की जानपहचान के बाद हमारे आपसी संबंध बड़े अच्छे हो गए थे. भरपूर प्यार और सम्मान था उन के प्रति मेरे दिल में. फिर एक शाम मेरी सीमा चाची ने जो कुछ मुझ से कहा, उस ने मेरे दिलोदिमाग में जबरदस्त हलचल मचा दी थी.

चाची ने मुझे पास बैठा कर पूछा, ‘कविता, तू अपनी इस मीना आंटी

की चालाकी को समझ भी पा रही है

या नहीं?’

‘वे क्या चालाकी कर रही हैं, चाची?’ मैं ने फौरन माथे पर बल डाले.

‘तुम बच्चों से दोस्ती बढ़ा कर वह तुम्हारी मां की जगह आना चाहती है इस घर में.’

‘ऐसी कोई बात नहीं है, चाची.’ मैं ने चाची से ऐसा कहा जरूर, पर भीतर ही भीतर मैं बेचैन हो उठी थी.

‘यही सच है, कविता. तुम्हारी ताईजी का आज दोपहर में मुझे फोन आया था. कल तुम्हारे पापा अपने बड़े भाई से मिलने गए थे. वे तुम्हारी इस चालाक मीना आंटी से शादी करना चाहते हैं. मुझे तो यह तलाकशुदा औरत कभी अच्छी नहीं लगी. जब सौतेली मां बन कर घर में आ जाएगी तब दिखाएगी अपना असली रंग. तुम्हारे पिताजी को तुम से दूर कर के देखना कैसा सुलूक करेगी तुम भाईबहनों के साथ.’

चाची मेरी भावानाओं को भड़का कर मेरे दिल में मीना आंटी के प्रति नफरत पैदा करना चाह रही थीं. चाची का व्यक्तित्व मीना आंटी के व्यक्तित्व से बिलकुल अलग है और उन दोनों की कभी पट नहीं सकती, यह बात चाची अपने व्यवहार व बातों से पहले ही कई बार जाहिर कर चुकी थीं. उन के भड़काने का मुझ पर खास प्रभाव नहीं होने वाला था. फिर भी मीना आंटी को ले कर उस वक्त मेरे मन में चिढ़, नाराजगी और नफरत के भाव पैदा हुए थे.

जब मेरी मां की मौत हुई तब मेरी उम्र 10 वर्ष से कुछ कम थी. उन के गुरदे खराब हो गए थे. सुमित और मुझे कच्ची उम्र में बेसहारा छोड़ कर दुनिया से जाने का सख्त अफसोस उन्हें आखिरी सांस तक रहा था.

‘मेरे बाद अपने पापा का, अपने छोटे भाई का ध्यान रखना मेरी गुडि़या…मेरी जगह तुझे संभालना होगा घर’, अपनी पलकें हमेशा के लिए मूंद लेने से पहले मां ने मुझे अपने सीने से लगा कर इस तरह की बात सैकड़ों बार कही होगी.

मां को मैं भूली नहीं थी. उन को याद करते हुए कभी भी मेरी आंखों में आंसू आ जाया करते थे. वे हमारे बीच नहीं थीं, पर घर के चप्पेचप्पे से उन की यादें जुड़ी हुई थीं. उन की जगह कोई दूसरी औरत लेने की कोशिश करे, यह बात मेरे लिए असहनीय होती, मां की जगह मीना आंटी को देखने की कल्पना जब मैं ने की, तो चिढ़ व गुस्से के कारण मेरा दिमाग भन्ना उठा और आंखों में भावुकतावश आंसू छलक आए.

Mother’s Day 2022- दूसरी मां: क्या मीना आंटी अपने लिए सम्मान पैदा कर सकीं?

 

 

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