पहले उत्तर प्रदेश में, फिर मध्य प्रदेश में और अब दिल्ली की जहांगीरपुरी में बुलडोजर तानाशाही का इस्तेमाल कोई चौंकाने वाला नहीं है. यह तो दिख ही रहा है कि समाज का एक वर्ग किसी भी तरह अपना वर्चस्व बनाए रखने बौर बढ़ाने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना रहा है और अपनाता रहेगा. बुलडोजर तानाशाही का इस्तेमाल कांग्रेस के ही जमाने में 1975-77 में जम कर किया गया था और इसीलिए अब कांग्रेसी ज्यादा बोल नहीं पा रहे.

कहने को सरकारी जमीन पर गैरकानूनी ढंग से बने मकानों और निर्माणों की बुलडोजरों से गिराया जा रहा है पर यह हो रहा है एक समाज ‘मुसलिम समाज’ के खिलाफ ही. सत्ता में बैठे लोगों की सोच दूरगामी है. वे आज मुसलिम समाज को पार्टीशन और आंतकवाद से जोड़ कर डरा देना चाहते हैं ताकि बाद में इस डर का इस्तेमाल हर उस जने के खिलाफ किया जा सके जो उन की नहीं मान रहे हो.

लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि बुलडोजर और उसे चलाने वाले न कपड़े पहचानते हैं, माथे पर लगे रहं, न जाति या धर्म. वे तो हुक्त देने वाले को जानते हैं. पी. चिदंबरम जब वित्तमंत्री और गृहमंत्री थे तो उन्होंने बहुत से कठोर कानून बनाए थे क्योंकि उन के हिसाब से सब व्यापारी चोर हैं और नागरिक आतंकवादी है. उन्हें जब 100 दिन से ज्यादा जेल अपने बनाए कानूनों में भुगतनी पड़ी तो अहसास हुआ होगा कि कानून का राज क्या होता है और क्यों अच्छा होता है.

बुलडोजर तानाशाही सीधेसीधे कानूनी मान्याओं के खिलाफ  है. सजा पहले दे दो, सुनवाई पहले कर दो. समाज में यह बहुत होता है. रोड रेड में होता है. नौकरानी का टीसैट तोडऩे पर होता है. पत्नी की पिटाई पर होता है. स्कूलों में रैङ्क्षगग पर होता है. एक पूरे समाज को कुछ के दोष के लिए सजा देना इसी बुलडोजर तानाशाही को पैदा करता है.

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