बेटी को ले कर मां उस के बचपन से ही ओवर प्रोटैक्टिव होती है. मां नहीं चाहती जो परेशानी उस ने झेली, वह उस की बेटी भी झेले. यही कारण है कभी प्यार तो कभी डांट के जरिए वह बेटी को अपनी बात समझाती है. इस अनमोल रिश्ते की अहमियत मांबेटी दोनों को समझनी चाहिए.
अकसर बच्चे अपनी मां के सब से करीब होते हैं. उन के लिए मां सब से ऊपर होती हैं. लेकिन फिर भी मां की जरा सी डांट उन्हें गुस्से से आगबबूला कर देती है. मां और बेटी का रिश्ता घर में सब से अनूठा होता है. वे एकदूसरे के बाल बनाती हैं, साथ शौपिंग करती हैं, एकदूसरे को सौंदर्य टिप्स देती हैं और बीमार होने पर एकदूसरे का खयाल भी रखती हैं.
मां के लिए उस की बेटी अपने दूसरे जन्म के समान होती है, वह उसे जीवन की हर वह खुशी देना चाहती है जो उसे नहीं मिल पाई. बेटी के लिए मां आदर्श होती है, मां का स्नेह, प्यार बेटी की सब से बड़ी ताकत होती है. मां और बेटी का रिश्ता नोंकझोंक से भी भरा हुआ होता है. मां के पास डांट का हथियार होता है तो बेटी के पास मुंह फुलाने का. जब मां की चिंता व क्रोध, कठोर शब्दों में बदल कर बेटी पर अंगारे समान गिरता है तो इस वार के जवाब में वह गुस्से का सहारा लेती है. बेटी का गुस्सा भी कई स्तरों का होता है. पहला स्तर है, ‘नर्म गुस्सा.’ इस गुस्से में वह थोड़े नखरे दिखाती है, ना-नु करती है पर जल्दी मान जाती है. दूसरे स्तर का गुस्सा ‘ताने वाला गुस्सा’ होता है. इस गुस्से में वह मां से झगड़ती है, थोड़ा बुराभला कहती है और अपना नाम मां के मुंह से निकलता सुन भी ले तो राशनपानी ले कर उन पर चढ़ जाती है, ‘‘हां, मैं ही बेवकूफ हूं, भईया ही अच्छे हैं बस,’’ ‘‘मुझ से तो कोई प्यार नहीं करता. सब भईया को ही करते हैं,’’ कहकह कर कानों में दर्द करती है. तीसरे स्तर का गुस्सा ‘अनशन गुस्सा’ है. इस में बेटी भूखहड़ताल पर बैठती है. पूरा दिन उपवास और शाम को पापा के सामने से पानी पीपी कर निकलती है, तब तक जब तक पापा खाना खाने को नहीं बोलते. आखिर में मम्मीपापा के मनाने पर ही बेटी का उपवास टूटता है.
गुस्से का आखिरी पड़ाव थोड़ा चिंताजनक है. यह पड़ाव अकसर मांबेटी के रिश्तों में दूरियां पैदा करता है. कभीकभी मां अपनी बेटी से कुछ ऐसे शब्द बोल देती है जो बेटी के अंतर्मन को चोट पहुंचाते हैं. गुस्सा जब तक मुंह फुलाने, बातें सुनाने या शिकायत करने तक ही सीमित रहे तब तक सुरक्षित है, परंतु जब गुस्सा अपना आखिरी पड़ाव ले लेता है तो यह रिश्तों के लिए असुरक्षा पैदा कर देता है.
बेटी अगर मां से बात करना छोड़ देती है तो चाहे वह खाना खाए, दो शब्द बोले लेकिन उस की चहचहाहट, उस का लड़कपन कहीं खोने लगता है. बेटी का यह गुस्सा मां को दिखता तो है पर वह बातें सुना कर या उसे हलकाफुलका प्यार जता कर मना नहीं सकती.
इस नाराजगी और गुस्से को दूर करने के लिए बेटी को मां से और मां को बेटी से बैठ कर सभी कही गई बातों पर विचार करने की जरूरत होती है. जब तक आप बैठ कर अपनी मां से बात नहीं करेंगी तो शायद यह गुस्सा तो उड़ जाए लेकिन उस की बनाई दूरियां हमेशा वक्त के साथ गहराती रहेंगी.
अकसर जिन छोटीमोटी लड़ाइयों को हम नजरअंदाज कर देते हैं वे आगे बढ़ कर अपराध का रूप ले सकती हैं. आप अपनी मां से गुस्सा हैं, तो आप के मस्तिष्क में उन के लिए कड़वाहट भरना मुश्किल नहीं है, और कई बार यह कड़वाहट अपराधों का रूप ले लेती है.
जनवरी 2017 : मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के हबीबगंज इलाके के निवासी की 17 वर्षीया बेटी एक चिट्ठी छोड़ कर घर से भाग गई. घर से भागने का कारण मातापिता का बेटे को अधिक प्यार करना था. चिट्ठी में लड़की ने लिखा, ‘मुझे तलाशने की कोशिश मत करना, अब अपने बेटे को ही प्यार करना.’
अप्रैल 2018 : दिल्ली के कविनगर एरिया में एक बेटी ने अपनी ही मां की पीटपीट कर हत्या कर दी. हत्या का कारण बेटी के अपनी ही टीचर के साथ समलैंगिक संबंध थे, जिस का विरोध करने पर बेटी रश्मि राणा ने प्रेमिका टीचर निशा गौतम के साथ मिल कर मां को पीटपीट कर मार डाला.
दिसंबर 2018 : तमिलनाडु के थिरूवल्लूर में बेटी ने अपनी मां की चाकुओं से गोद कर केवल इसलिए हत्या कर दी क्योंकि उस की मां उसे घर छोड़ कर भागने के लिए मना कर रही थी. बेटी देवी प्रिया को फेसबुक पर बने दोस्त विवेक से प्यार हो गया. उस ने विवेक और उस के दोस्तों के साथ घर छोड़ कर भागने का इरादा कर लिया था. मां के रोकने पर प्रिया ने उन का कत्ल कर दिया.
उपरोक्त मामले इस बात के गवाह हैं कि किस तरह मांबेटी के आपसी मतभेद विकराल रूप ले लेते हैं और सनसनीखेज अपराधों में बदल जाते हैं. इन मामलों में मां और बेटी के बीच पड़ी दरारों को साफसाफ देखा जा सकता है. पहले मामले में यदि बेटी ने अपनी मां से अपने मन की बात कही होती और उस की मां ने अपनी बेटी की बात सुनी होती तो शायद उसे घर छोड़ कर भागना नहीं पड़ता.
अकसर मातापिता के बेटे की तरफ झुकाव से बेटियां खुद को अनचाहा महसूस करने लगती हैं, परंतु अगर मां अपनी बेटी की व्यथा समझ उसे गले से लगा ले और उसे उतना ही प्यार दे जितना अपनी दूसरी संतान को दे रही है तो शायद वह अपनी बेटी को समय रहते रोक सकती.
दूसरे और तीसरे मामले में मां और बेटी के बीच बातचीत की कमी साफसाफ देखी जा सकती है. बेटी के प्रेम संबंधों पर मां ने उसे आराम से समझाने की कोशिश की होती या बेटी ने अपने प्रेम में अंधे न हो कर मां की बात समझी होती तो शायद मां को अपनी जिंदगी से हाथ न धोना पड़ता.