गर्मी क्यों लगती है -
जैसा कि हम जानते हैं पानी ऊंचे से नीचे की तरफ बहता है उसी तरह ताप यानि हीट का बहाव भी ज्यादा तापमान से कम तापमान की तरफ होता है .अगर बाहर का तापमान बॉडी टेम्परेचर से अधिक है तो हीट हमारे शरीर के अंदर जायेगा और हमें गर्मी महसूस होगी . शरीर को ठंढा रखने के लिए ह्रदय की गति बाढ़ जाती है जिस के चलते हार्ट को ज्यादा काम करना पड़ता है .
गर्मी का दिल पर असर -
शरीर को ठंढा रखने के लिए शरीर से पसीना आना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है .पसीने के साथ नमक और कुछ मिनरल्स और प्रोटीन भी शरीर से बाहर निकलते हैं . ये मांसपेशियों के संकुचन और एलेक्ट्रॉलीट के संतुलन के लिए जरूरी होते हैं . इन्हें रोकने के लिए कुछ हार्मोन्स बनते हैं ताकि मिनरल और वाटर बैलेंस बना रहे . पसीना के इवैपोरेट करने से कुछ ठंढक मिलती है पर आद्रता या ह्यूमिडिटी बढ़ने से भाप बनना भी मुश्किल हो जाता है . इस दौरान रक्त का बहाव त्वचा की ओर ज्यादा होता है और हृदय की गति तेज हो जाती है . उसे ज्यादा ब्लड पंप करना पड़ता है .
इसके अतिरिक्त ऐसे रोगी को अक्सर डाइयुरेटिक दवा लेनी होती है जिससे शरीर से द्रव बाहर निकलता है . कुछ सामान्य दिल की दवाएं , ACE इन्हिबिटर , कैल्शियम चैनल ब्लॉकर , बेटा ब्लॉकर आदि के चलते हार्ट बीट कम हो जाती है . गर्मी से लड़ने के लिए दिल को ज्यादा खून नहीं मिल पाता है और शरीर को तापमान के अनुकूल एडजस्ट करने में कठिनाई होती है . कुछ दवाओं के असर से सूर्य के प्रकाश में संवेदनशीलता बढ़ जाती है या त्वचा पर प्रतिकूल असर पड़ता है . कुल मिला कर गर्मी के मौसम में दिल पर अतिरिक्त दबाव रहता है .पर दिल के रोगी आसानी से इसके अनुकूल बनने में सक्षम नहीं होते हैं और उन में हीट स्ट्रोक या लू लगने या गर्मी संबंधी अन्य कठिनाईयों की संभावना ज्यादा होती है .