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ऐसी जुगुनी- भाग 1: जुगुनी ने अपने ससुरालवालों के साथ क्या किया?

‘‘अगर तुम आजीवन सुखी रहना चाहती हो तो अपनी ससुराल वालों, खासकर अपनी ननदों और देवरों से भरसक दूरी बनाए रखो. मैं उन्हें पहली नजर में ही पहचान गया था कि वे एक नंबर के कंजूस व मक्खीचूस किस्म के लोग हैं. यदि तुम ने मेरा कहना नहीं माना तो वे हरामखोरनिठल्ले एक दिन तुम्हारे सीने पर मूंग दलेंगे. इतना ही नहीं, वे दरिद्रजन तुम्हारा सारा हक भी मार लेंगे. तुम्हारे दकियानूस पति की बेवकूफी का वे पूरा फायदा उठाएंगे,’’ शांताराम ने अपनी नवब्याहता बहन को समझाने और ससुराल वालों के खिलाफ उस के मन में जहर की पहली डोज डालने की कोशिश की.

उस ने फिर कहा, ‘‘तुम्हें गलती से हम ने ऐसे परिवार में ब्याह दिया है जहां एक भाई कमाता है, बाकी तोंद पर हाथ फेरते हुए, बस, डेढ़ सेर खाते हैं. तेजेंद्र के सिवा तो वहां कोई कुछ करता ही नहीं. मां पहले ही कालकवलित हो चुकी है और बाप रिटायर्ड हो चुका है जिस का घर से कुछ भी लेनादेना नहीं है जबकि बड़ा भाई अपने परिवार में बीवीबच्चों के साथ मस्त है. किसी को किसी से कोई मतलब नहीं है. सब आपस में लड़मर रहे हैं. एक बात मैं कहूं, यह परिवार कई प्रकार से कमजोर है और तुम इस कमजोरी का खूब फायदा उठा सकती हो. आखिर, पढ़ीलिखी लड़की हो. कम से कम अपनी अक्ल का थोड़ा तो इस्तेमाल करो और इस परिवार का बेड़ा गर्क करो.’’

नाम तो उस का ज्योतिंद्रा था पर सब उसे जुगुनी ही कहते थे. जुगुनी भौंहें चढ़ाती हुई मुसकरा उठी, ‘‘भैया, मैं अब कोई दूधपीती बच्ची नहीं हूं. इन 7 दिनों में ही सबकुछ देख चुकी हूं, सब समझ चुकी हूं. अब मुझे क्या करना है, यह भी तय कर चुकी हूं. देखना, मैं ससुराल में इतनी साजिश रचूंगी और इतनी तिकड़म आजमाऊंगी कि तेजेंद्र खुदबखुद उन से दूरी बना कर रहने लगेगा. तेजेंद्र तो मेरी तरेरती निगाहों के आगे कठपुतली की तरह नाचता फिरेगा. और हां, ससुरालियों के मन में भी एकदूसरे के प्रति इतना जहर भरूंगी कि वे एकदूसरे के जानीदुश्मन बन जाएंगे.’’

शांताराम बहन के इस अंदाज में शेखी बघारने पर फख्र करते हुए आश्चर्य से भर उठा, ‘‘ससुराल में कदम रखते ही तुम्हारी छठी इंद्रिय काम करने लगी है. पहले तो तुम गधी थी. तो भी मैं तुम्हें बता देना चाहता हूं कि तुम्हारा पति कमअक्ल और लकीर का फकीर है. थोड़ाबहुत साहित्य क्या लिख लेता है, वह खुद को तुलसीदास और शेक्सपियर समझने लगा है. पर, वह है पूरा डपोरशंख. खुद को भौतिकवाद से दूर रखने का पाखंड खूब कर लेता है. दरअसल, तुम्हारे सारे ससुराल वाले कंजूस और लीचड़ हैं. तुम्हारा तेजेंद्र भी दांत से पैसा दबाए रखता है. ऐसे लोग कूपमंडूक होते हैं और उन्हें विरासत, परंपरा, तहजीब जैसी गैरजरूरी बातों से ज्यादा लगाव होता है. उसे समझाना होगा कि अब उस का अपना परिवार है और इसी के लिए जीना व मरना है. मांबाप और भाईबहन के लिए जिंदगी तबाह करने की जरूरत नहीं है. वे कमीने तो उस की शादी के बाद से ही पराए हो गए हैं. अब उस के अपने हैं तो केवल हम ससुराल वाले,’’ जुगुनी उस की हर बात पर ध्यान देती हुई संजीदा होती जा रही थी.

बेशक, ससुराल में कदम रखते ही नई बहू के तेवर तीखे हो गए. अभी हफ्ताभर ही तो हुआ है जुगुनी और तेजेंद्र की शादी हुए. तेजेंद्र के भाईबहनों ने उस की शादी में बड़े उत्साह से सभी कामों को अंजाम दिया था और नए रिश्तेदारों के साथ वे बड़ी गंभीरता व शालीनता से पेश भी आ रहे थे.

बहनों में बड़ी, नंदिनी तो इतनी खुश थी कि वह पंख उग आए गौरैये के चूजे की भांति घर से बाहर तक फुदकती फिर रही थी, और जो भी मिलता उस से कहती जा रही थी- ‘अब घर में मां के बाद उन की कमी को मेरी दूसरी भाभी पूरी करेंगी. हम सब उन्हें भाभी नहीं भाभीमां कह कर पुकारेंगे. इतने मिलजुल कर और प्यार से रहेंगे कि अपने मतलबी रिश्तेदारों और जिगरी दोस्तों के मन में भी हमारे लिए बेहद ईर्ष्या पैदा हो जाएगी.’

उस ने तेजेंद्र से कहा, ‘‘भैया, अभी भाभी को मुंबई मत ले जाना. जब महीनेभर बाद अगली बार आना, तो ले जाना. अभी तो हमें इन से दिल से दिल मिला कर मेलजोल बढ़ाना है.’’

पर, जुगुनी को नंदिनी का प्रस्ताव बिलकुल अटपटा सा लगा. उस ने तुरंत तेजेंद्र को बैडरूम में ले जा कर समझाया, ‘‘अभी मैं यहां बिलकुल नहीं रहूंगी. क्या हम हनीमून पर नहीं चलेंगे? अगर हनीमून पर नहीं जाना है तो मुझे मुंबई अपने साथ ले चलो, वरना, मुझे कुछ समय के लिए मायके में ही छोड़ दो. जब दोबारा मुंबई से आना तो मुझे अपने साथ ले जाना. लेकिन, मेरा निर्णय कान खोल कर सुन लो, मैं यहां हरगिज नहीं रहने वाली.’’

तेजेंद्र चिंता में पड़ गया. उसे जुगुनी का स्वभाव एकदम अटपटा सा लग रहा था. बहरहाल, उस ने सोचा कि अभी जुगुनी को ऐसे नाखुश करना उचित नहीं होगा. सो, उस ने नंदिनी को समझाया कि वह अभी जुगुनी को यहां रुकने के लिए न कहे और वह मान भी गई. पर, जुगुनी तो मन ही मन खुश हो रही थी कि तेजेंद्र तो बड़ी सहजता से उस की बात मान लेता है. बेवकूफ है तो क्या हुआ, अपने परिवार वालों के बीच मुझे अहमियत तो देता है, गोबरगणेश कहीं का…

उस के बाद वह मुंबई के लिए अपनी अटैचियां व जरूरी सामान पैक करने लगी.

विवाह के समय मायके से जो उपहार मिले थे, जब तेजेंद्र उन्हें घर पर ही छोड़ कर जुगुनी के साथ मुंबई जाने को तैयार होने लगा तो वह एकदम से बौखला उठी, ‘‘तेजेंद्र, यह तो तुम अच्छा नहीं कर रहे हो. क्या मेरे घर वालों ने इतने ढेर सारा दानदहेज, गिफ्ट वगैरा तुम्हारे निठल्ले भाईबहनों को ऐश करने के लिए दिए हैं? कम से कम टीवी, फ्रिज और बैड तो अपने साथ ले चलो.’’

तेजेंद्र ने जुगुनी से अचानक ऐसे शब्दों की अपेक्षा नहीं की थी. लिहाजा, उस ने ठंडे दिमाग से उसे समझाया, ‘‘जुगुनी, मुझे तुम मिल गई, यह मेरे लिए बहुतकुछ है. सामान को तो गोली मारो. बहरहाल, इतना ढेर सारा सामान लाद कर हम मुंबई जाएंगे तो कैसे जाएंगे? इन्हें यहीं छोड़ दो. वहां हम अपने बलबूते पर सैटल होंगे और ये सारे सामान खुद खरीदेंगे. तुम्हें तो पता ही है, मेरी अच्छी तनख्वाह है. इन से कहीं बेहतर क्वालिटी के सामान वहां किस्तों में खरीद लेंगे.’’

जुगुनी इतराने लगी, ‘‘अच्छा, क्या मेरे मायके से आए सामान एवन क्वालिटी के नहीं हैं?’’

तेजेंद्र समझ गया कि जुगुनी और उस के परिवार वाले दुनियादारी व सामान के पीछे जान भी दे सकते हैं. छोटे शहरों के लोगों में विलासिता के साजोसामान खरीदने की ललक तीव्र होती है. उसे एहसास हो गया कि जुगुनी के मन में क्या चल रहा है. वह समझ गया कि जुगुनी के लिए मानवीय रिश्तों की कोई खास अहमियत नहीं है.

लिहाजा, उस पल तेजेंद्र के चेहरे पर आए हावभाव को पढ़ कर जुगुनी को लगा कि अभी उसे ऐसा अडि़यल रुख नहीं अपनाना चाहिए. वह कोई तरकीब सोचने लगी ताकि उस पर कोई दोष भी न आए और उस के मन की मुराद भी पूरी हो जाए. यानी उस के मायके का सारा सामान और उपहार उस के कब्जे में आ जाए. उस ने एकांत में जा कर झट मायके अपनी अम्मा को फोन लगाया तथा उन्हें सारी बात से अवगत कराया और मुंबई रवाना होने से पहले उन्हें और बाबूजी को मिलनेजुलने के बहाने फोन पर ही ठीक एक दिन पहले बुला लिया.

अम्मा ने आते ही कमर कस ली. ‘‘जुगुनी, तुम बिलकुल फिक्र मत करना. देखो, मैं किस तरह से सारा दानदहेज तुम्हारे साथ मुंबई भिजवाती हूं. एक तो इन लीचड़ ससुरालियों ने दहेज की सारी रकम ऐंठ ली, दूसरे, अब वे सारा दानदहेज और गिफ्ट भी हजम कर लेना चाहते हैं.’’

अम्मा ने बाबूजी को बरगलाना शुरू कर दिया, ‘‘अजी सुनते हो, अब कान में रुई डाल कर सोना बंद करो. देखो, तुम्हारी गाढ़े पसीने की कमाई पर गैरों की गिद्धदृष्टि लगी हुई है.’’

बाबूजी के कान खड़े हो गए, ‘‘वह कैसे?’’

‘‘वह ऐसे कि जुगुनी की शादी में जो सामान तुम ने इतने जतन कर के दिए हैं, तेजेंद्र उन्हें अपने भाईबहनों को सौंप कर खाली हाथ ही मुंबई जा रहा है. अब भला, मेरी बिटिया टीवी, फ्रिज के बगैर एक पल को भी कैसे रह पाएगी? तेजेंद्र तो रोज ड्यूटी बजाने औफिस को चला जाया करेगा जबकि मेरी गुडि़या घर में अकेली दीवारों पर रेंगती छिपकलियां देख कर ही सारा समय काटेगी. तेजेंद्र के भाईबहन दहेज के सामान पर जोंक की तरह चिपके हुए हैं. उस ने तो दहेज में मिला स्कूटर पहले ही अपने भाई प्रेमेंद्र के हवाले कर दिया है.’’

बाबूजी अपनी पत्नी के बहकावे में आने से पहले थोड़ीबहुत जो समझदारी दिखा सकते हैं वह उस से बातें करने के बाद पलभर में उड़नछू हो जाती है. उन्होंने अम्मा को समझाने की कोशिश की, ‘‘अभी कुछ ऐसा बखेड़ा खड़ा मत करो क्योंकि अभी शादी को हफ्ताभर ही तो हुआ है. अगर मैं तेजेंद्र के पापा से इस बारे में कुछ कहूंगा तो यह अच्छा लगेगा क्या? आखिर, यह तुम्हारा घर नहीं, बिटिया का ससुराल है.’’

अम्मा तुनक उठी, ‘‘अजी, ऐसा अच्छाभला सोचने लगोगे तो ससुराल में तुम्हारी बिटिया का जीना दूभर हो जाएगा. कल को ये लोग उस का गला भी घोंट सकते हैं. तेजेंद्र के घर वाले कितने कमीने हैं, इस बात का सुबूत देने की जरूरत नहीं है. उन के हौसले को बढ़ने से पहले ही तोड़ना होगा. सांप के फन उठाने से पहले ही उसे कुचल देना होगा. वरना, एक दिन तुम्हारी बेटी को चिथड़ा पहना कर वापस मायके भेज दिया जाएगा. तलाक तक की नौबत आ जाएगी. हो सकता है कि वे उसे जिंदा फूंकने का दुस्साहस भी करें, हां.’’

मेरे पति अपने करीब नहीं आने देते, मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं 22 साल की एक शादीशुदा औरत हूं. मेरी शादी को एक साल होने वाला है लेकिन मेरे पति मुझे अब तक अपने पास नहीं आने देते हैं. मेरा उन के साथ जिस्मानी संबंध बनाने का मन करता है. कोई उपाय बताएं?

जवाब

आप की समस्या गंभीर है. आमतौर पर इस उम्र में शादी के बाद पति सैक्स के लिए उतावला रहता है. अगर पति को?भरोसे में ले कर जानने की कोशिश करें कि उस में सैक्स की इच्छा क्यों नहीं?है. अपनी सैक्सी अदाओं से उसे लुभाने की कोशिश करें. बात न बने तो घर की बड़ी औरतों को बताएं या फिर पति को किसी माहिर डाक्टर के पास ले जाएं.

मुमकिन है कि आप के पति में सैक्स को ले कर कमजोरी का डर बैठ गया हो या फिर और कोई ऐसी बात हो जो वह आप को नहीं बता पा रहा है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

Crime Story: ममता, मजहब और माशूक

मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमाओं को जोड़ने वाली धार्मिक नगरी चित्रकूट में यों तो साल भर श्रद्धालुओं की आवाजाही बनी रहती है, लेकिन तीजत्यौहार के दिनों में भक्तों का जो रेला यहां उमड़ता है, उसे संभालने में पुलिस प्रशासन के पसीने छूट जाते हैं. ऐसे में यदि व्यवस्था में जरा सी चूक हो जाए तो पुलिस प्रशासन के लिए समस्या खड़ी कर सकती है. लिहाजा पुलिस व प्रशासन भीड़भाड़ वाले दिनों में अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हैं कि व्यवस्था और सुविधाओं में कोई कमी न रह जाए.

इस साल भी जनवरी के दूसरे सप्ताह से ही चित्रकूट में श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया था, जिन का इंतजार पंडेपुजारियों के अलावा स्थानीय व्यापारी भी करते हैं. कहा जाता है कि मकर संक्रांति की डुबकी श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक लाभ पहुंचाती है और यदि डुबकी सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के समय लगाई जाए तो हजार गुना ज्यादा पुण्य मिलता है.

14 जनवरी, 2018 को मकर संक्रांति की डुबकी लगाने के लिए लाखों लोग चित्रकूट पहुंच चुके थे. श्रद्धालु अपनी हैसियत के मुताबिक लौज, धर्मशाला व मंदिर प्रांगणों में ठहरे हुए थे. वजह कुछ भी हो पर यह बात दिलचस्प है कि चित्रकूट आने वालों में बहुत बड़ी तादाद मामूली खातेपीते लोगों यानी गरीबों की रहती है. उन्हें जहां जगह मिल जाती है, ठहर जाते हैं और डुबकी लगा कर अपने घरों को वापस लौट जाते हैं.

चित्रकूट में दरजनों प्रसिद्ध मंदिर और घाट हैं, जिन का अपना अलगअलग महत्त्व है. हर एक मंदिर और घाट की कथा सीधे राम से जुड़ी है. कहा यह भी जाता है कि चित्रकूट में राम और तुलसीदास की मुलाकात हुई थी. इन्हीं सब बातों की वजह से यहां लगने वाले मेले में देश के दूरदराज के हिस्सों से श्रद्धालु आते हैं.

मेले में आए लोग श्री कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा भी जरूर करते हैं. लगभग 7 किलोमीटर की यह पदयात्रा करीब 4 घंटे में पूरी हो जाती है. 14 जनवरी को भी श्रद्धालु श्री कामदगिरि की परिक्रमा कर रहे थे, तभी कुछ ने यूं ही जिज्ञासावश पहाड़ी के नीचे झांका तो उन की आंखें फटी की फटी रह गईं.

इस की वजह यह थी कि पहाड़ी के नीचे की तरफ लगे बिजली के एक खंभे पर एक लड़की की लाश लटकी थी. शोर हुआ तो देखते ही देखते परिक्रमा करने वाले लोग वहां रुक कर लाश देखने लगे.

पुलिस को बुलाने या सूचना देने के लिए किसी को कहीं दूर नहीं जाना पड़ा. क्योंकि भीड़ जमा होने पर परिक्रमा पथ पर तैनात पुलिस वाले खुद ही वहां पहुंच गए. पुलिस वालों ने जब खंभे पर लटकी लड़की की लाश देखी तो उन्होंने तुरंत इस की खबर आला अफसरों को दी. कुछ ही देर में थाना नयापुरा के थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. पुलिस लाश उतरवाने में लग गई.

पुलिस काररवाई के चलते भीड़ यह निष्कर्ष निकाल चुकी थी कि लड़की अपने घर वालों के साथ आई होगी और खाईं में गिर गई होगी. लेकिन पुलिस ने जब खंभे से लाश उतारी तो न केवल पुलिस वाले बल्कि मौजूद भीड़ भी हैरान रह गई. क्योंकि तकरीबन 11-12 साल की लग रही उस लड़की के मुंह में कपड़ा ठूंसा हुआ था.

मुंह में कपड़ा ठूंसा होने पर मामला सीधेसीधे हत्या का लगने लगा. पुलिस भी यह मानने लगी कि हत्या कहीं और कर के लाश यहां ला कर फेंकी होगी. क्योंकि अभी तक आसपास के किसी थाने से किसी लड़की की गुमशुदगी की खबर नहीं आई थी.

चित्रकूट में लड़की की लाश मिलने की खबर आग की तरह फैली तो लोग तरहतरह की बातें करने लगे. पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई, जिस में बताया गया कि उस लड़की की हत्या गला घोंट कर की गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302 और 201 के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

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उस वक्त चित्रकूट में बाहरी लोगों की भरमार थी. इसी वजह से लाश की शिनाख्त नहीं हो पाई थी. फिर भी पुलिस कोशिश में लग गई कि शायद कोई सुराग मिल जाए. अब तक की जांच से यह स्पष्ट हो गया था कि मृतका चित्रकूट की न हो कर कहीं बाहर की रही होगी.

इस तरह के ब्लाइंड मर्डर पुलिस के लिए न केवल चुनौती बल्कि सरदर्द भी बन जाते हैं. इस मामले में भी यही हो रहा था. हत्यारों तक पहुंचने के लिए लाश की शिनाख्त जरूरी थी.

पुलिस वालों ने सब से पहले सीसीटीवी फुटेज देखने का फैसला लिया, लेकिन यह भी आसान काम नहीं था, क्योंकि मकर संक्रांति के वक्त चित्रकूट में सैकड़ों कैमरे लगे हुए थे. यह जरूरी नहीं था कि सभी फुटेज देखने के बाद भी इतनी भीड़भाड़ में वह लड़की दिख जाए. पर सीसीटीवी फुटेज देखने के अलावा पुलिस के पास कोई और रास्ता भी नहीं था.

चित्रकूट में इस हत्या की चर्चा तेज होने लगी तो सतना के एसपी राजेश हिंगणकर ने मामला अपने हाथ में ले लिया. उन्होंने जांच में जुटी पुलिस के साथ बैठक की और कुछ दिशानिर्देश दिए. पुलिस टीम के लिए यह काम भूसे के ढेर से सुई ढूंढने जैसा था. पुलिस टीम सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने में जुट गई. पुलिस की मेहनत रंग लाई.

12 जनवरी, 2018 की एक फुटेज में एक युवक और युवती के साथ वह लड़की दिखी तो पुलिस वालों की आंखें चमक उठीं.

उत्साहित हो कर पुलिस ने और फुटेज खंगालीं तो इस बात की पुष्टि हो गई कि जिस लड़की की लाश पुलिस ने बरामद की थी, वह वही थी जो फुटेज में युवकयुवती के साथ थी. यह फुटेज जानकीकुंड अस्पताल की थी, जहां युवक व युवती मरीजों वाली लाइन में लगे थे.

उस दिन स्नान के लिए वहां लाखों लोग आए थे. इसलिए यह पता लगाना आसान नहीं था कि वह युवक और युवती कहां के रहने वाले थे, इसलिए पुलिस ने ये फुटेज सोशल मीडिया पर भी वायरल कर दिए, जिस से उन तक जल्द से जल्द पहुंचा जा सके.

फुटेज सोशल मीडिया पर डालने के बाद भी पुलिस को उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. इस पर हत्यारे का सुराग देने पर 10 हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया गया. इसी दौरान पुलिस वालों ने जानकीकुंड अस्पताल के रजिस्टर की जांच भी शुरू कर दी थी.

अस्पताल में आए मरीज का नामपता जरूर लिखा जाता है लेकिन हजारों की भीड़ में यह पता लगा पाना मुश्किल काम था कि जो चेहरे कैमरे में दिख रहे थे, उन के नाम क्या थे. इस के बाद भी पुलिस वाले नामपते छांटछांट कर अंदाजा लगाने में लगे रहे कि वे कौन हो सकते हैं. इस प्रक्रिया में 25 दिन निकल चुके थे और लाख कोशिशों के बाद भी पुलिस के हाथ कामयाबी नहीं लग रही थी.

चित्रकूट के लोगों की दिलचस्पी भी अब मामले में बढ़ने लगी थी. उन्हें सस्पेंस इस बात को ले कर था कि देखें पुलिस कैसे हत्यारों तक पहुंचती है और पहुंच भी पाती है या नहीं.

अस्पताल के रजिस्टर में दर्ज जिन नामों पर पुलिस ने शक किया और जांच की, उन में एक नाम उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के विजय और उस की पत्नी आरती का भी था. एसपी के निर्देश पर एक पुलिस टीम विजय के गांव ऐंझी पहुंच गई.

विजय से सीधे पूछताछ करने के बजाय पुलिस ने पहले उस के बारे में जानकारी हासिल की तो एक जानकारी यह मिली कि उस की 10-11 साल की एक बेटी नेहा भी थी, जो लगभग एक महीने से नहीं दिख रही है.

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पुलिस ने चित्रकूट से लड़की की जो लाश बरामद की थी, उस की उम्र भी 10-12 साल थी. यह समानता मिलने पर पुलिस की जिज्ञासा बढ़ गई. इस के बाद पुलिस विजय के घर पहुंच गई. उस समय उस की पत्नी आरती भी घर पर मौजूद थी. पुलिस ने जब उन दोनों से उन की बेटी नेहा के बारे में पूछा तो वह बोले कि उन की कोई बेटी नहीं थी, केवल एक बेटा ही है.

उन की बातों से लग रहा था कि वह झूठ बोल रहे हैं क्योंकि उनके पड़ोसियों ने बता दिया था कि इन की 10-11 साल की एक बेटी नेहा थी, जो पता नहीं कहां चली गई है. इसी शक के आधार पर पुलिस विजय और उस की पत्नी आरती को चित्रकूट ले आई.

थाने में उन दोनों से जब पूछताछ शुरू हुई तो दोनों साफ मुकर गए कि उन की कोई बेटी भी है. तब पुलिस ने उन्हें सीसीटीवी फुटेज दिखाई, जिस में उन के साथ 10-11 साल की बच्ची थी. फुटेज देखते ही दोनों बगले झांकने लगे. उसी समय दोनों ने आंखों ही आंखों में कुछ बात की और चंद मिनटों में ही बेटी की हत्या का राज उगल दिया.

पुलिस वाले यह जान कर आश्चर्यचकित रह गए कि आरती का असली नाम सबीना शेख है और वह मुसलमान है. सबीना की शादी सन 2006 में उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के ही निवासी जाहिद अली से हुई थी. जाहिद से उसे 2 बच्चे हुए, पहली बेटी सिमरन और दूसरा बेटा साजिद जो 5 साल का है.

सबीना जाहिद के साथ रह जरूर रही थी, लेकिन उस के साथ उस की कभी पटरी नहीं बैठी, क्योंकि सबीना किसी और को चाहती थी.

दरअसल सबीना और विजय एकदूसरे को बचपन से चाहते थे, लेकिन सबीना की शादी घर वालों ने उस की मरजी के खिलाफ जाहिद से कर दी थी, इसलिए सबीना जाहिद के साथ रह जरूर रही थी, लेकिन उसे वह दिल से नहीं चाहती थी.

उस ने तो अपने दिल में विजय को बसा रखा था. जब दिल नहीं मिले तो उन के बीच बातबेबात झगड़ा रहने लगा. अपनी कलह भरी जिंदगी सुकून से गुजारने की गरज से सबीना ने शादी के 9 साल बाद विजय को टटोला. उसे यह जान कर खुशी हुई कि विजय उसे आज भी पहले की तरह चाहता है और उसे बच्चों सहित अपनाने को तैयार है.

बस फिर क्या था बगैर कुछ सोचेसमझे एक दिन वह पति को बिना बताए विजय के साथ भाग गई. यह सन 2015 की बात है.  योजनाबद्ध तरीके से दोनों भाग कर ऐंझी गांव आ कर रहने लगे. सबीना अपने बच्चों को भी साथ ले आई थी, जिस पर विजय को कोई ऐतराज नहीं था.

अपने पुराने और पहले आशिक के साथ रह कर सबीना खुश थी. उधर जाहिद ने भी बीवी के गायब होने पर कोई भागदौड़ नहीं की, क्योंकि वह तो खुद सबीना से छुटकारा पाना चाहता था. सबीना अब हिंदू के साथ रह रही थी, इसलिए उस ने खुद का नाम आरती सिंह, बेटी सिमरन का नाम नेहा सिंह और बेटे साजिद का नाम बदल कर आशीष सिंह रख लिया था.

नए पति के साथ खुशीखुशी रह रही सबीना को थोड़ाबहुत डर अपने मायके वालों से लगता था कि अगर उन्हें पता चला तो वे जरूर फसाद खड़ा कर सकते हैं. साजिद उर्फ आशीष ने तो विजय को पापा कहना शुरू कर दिया था, लेकिन सिमरन विजय को पिता मानने को तैयार नहीं थी. सिमरन उर्फ नेहा चूंकि 10-11 साल की हो चुकी थी, इसलिए वह दुनियाजहान को समझने लगी थी. उस का दिल और दिमाग दोनों विजय को पिता मानने को तैयार नहीं थे.

आरती की बड़ी इच्छा थी कि नेहा विजय को पापा कहे. इस बाबत शुरू में तो आरती और विजय ने उसे बहुत बहलायाफुसलाया, लेकिन इस्लामिक माहौल में पली सिमरन हमेशा विजय को मामू ही कहती थी. जब इस संबोधन पर सबीना ने सख्ती से पेश आना शुरू किया तो वह सिमरन के इस मासूमियत भरे सवाल का कोई जवाब वह नहीं दे पाई कि आप ही तो कहती थीं कि ये मामू हैं, अब इन्हें पापा कैसे कह दूं. मेरे अब्बू तो दूसरे गांव में रहते हैं.

इस से विजय और सबीना की परेशानी बढ़ने लगी थी. वजह मामू और अब्बा के मुद्दे पर सिमरन बराबरी से विवाद और तर्क करने लगी थी. दोनों को डर था कि यह उजड्ड और बातूनी लड़की कभी भी उन का राज खोल सकती है क्योंकि गांव में कोई इन की असलियत नहीं जानता था. अगर गांव वाले सच जान जाएंगे तो धर्म के ठेकेदार इन का रहना और जीना मुहाल कर देते.

जब लाख समझाने और धमकाने से भी बात नहीं बनी यानी सिमरन विजय को पिता मानने को तैयार नहीं हुई तो खुद सबीना ने विजय को इशारा किया कि इस से तो अच्छा है कि सिमरन का मुंह हमेशा के लिए बंद कर दिया जाए. विजय भी इस के लिए तैयार हो गया.

दोनों ने मकर संक्रांति पर चित्रकूट जाने की योजना बनाई और सिमरन से कहा कि वहां तुम्हारी आंखों की जांच भी करा देंगे. सिमरन जिद्दी जरूर थी, पर इतनी समझदार अभी नहीं हुई थी कि सगी मां के मन में पनप रही खतरनाक साजिश को भांप पाती.

12 जनवरी, 2018 को चित्रकूट आ कर दोनों ने जानकीकुंड अस्पताल में सिमरन उर्फ नेहा की आंखों की फ्री जांच करवाई और उस दिन उन्होंने विभिन्न मंदिरों में दर्शन किए. 13 जनवरी, 2018 को इस अंतरधर्मीय परिवार ने चित्रकूट में परिक्रमा की और रात में नरसिंह मंदिर के प्रांगण में आ कर सो गए.

2 दिन घूमनेफिरने के बाद थकेहारे दोनों बच्चे तो जल्द सो गए, लेकिन दुनिया के सामने दोहरी जिंदगी जीते विजय और आरती उर्फ सबीना की आंखों में नींद नहीं थी. रात 12 बजे के लगभग दोनों ने गहरी नींद में सोई नेहा उर्फ सिमरन का गला मफलर से घोंट डाला.

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उस के मर जाने की तसल्ली होने के बाद दोनों यह सोच कर लाश को झाडि़यों में फेंक आए कि सिमरन की लाश को जल्द ही चीलकौए और जानवर नोचनोच कर खा जाएंगे और उन के जुर्म की भनक किसी को भी नहीं लगेगी. लाश खाईं में गिराने के बाद वे दोनों बेटे को ले कर गाजियाबाद भाग गए और कुछ दिन इधरउधर भटकने के बाद ऐंझी पहुंच गए.

पहाड़ी से लाश गिराते समय इत्तफाक से नेहा की लाश का बायां पांव खंभे में उलझ गया और लाश लटकी रह गई.

9 फरवरी, 2018 को जब सारे राज खुले तो हर किसी ने इसे वासना के लिए ममता का गला घोंटने वाली शर्मनाक वारदात कहा. बात सच भी थी, जिस का दूसरा पहलू सबीना और विजय की यह बेवकूफी थी कि वे नाम बदल कर चोरीछिपे रह रहे थे.

सबीना जाहिद से तलाक ले कर सीना ठोंक कर विजय से शादी करती तो शायद सिमरन भी विजय को पिता के रूप में स्वीकार कर लेती, पर इसे इन दोनों की बुजदिली ही कहा जाएगा कि धर्म और समाज के दबाव से लड़ने के बजाय उन्होंने एक मासूम की हत्या कर के अपनी जिंदगी खुशहाल बनने का ख्वाब देख डाला. कथा संकलन तक दोनों जेल में थे.

जहीर इकबाल ने सोनाक्षी सिन्हा से किया प्यार का ऐलान, लिखा- ‘आई लव यू’

बॉलीवुड एक्ट्रेस सोनाक्षी सिन्हा और एक्टर जहीर इकबाल का लवलाइफ सुर्खियों में छाये रहता है. काफी दिनों से चर्चा चल रही थी कि ये कपल एक दूसरे को डेट कर रहा है. लेकिन सोनाक्षी सिन्हा और जहीर इकबाल ने इसे अफवाह बताया था. अब खुद जहीर इकबाल ने सोशल मीडिया पर प्यार का इजहार किया है.

जहीर इकबाल ने सोनाक्षी सिन्हा के लिए अपना प्यार कबूल कर लिया है. दरअसल जहीर ने सोशल मीडिया पर अपनी लेडी लव को बिलेटेड बर्थडे विश करते हुए एक पोस्ट लिखा है.

 

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इसके साथ ही एक्टर ने सोनाक्षी सिन्हा का एक वीडियो भी पोस्ट किया है. जिसमें एक्ट्रेस बर्गर खाते हुए नजर आ रही है. इस वीडियो को पोस्ट करते हुए जहीर इकबाल ने प्यार का इजहार किया है.

 

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जहीर ने इन वीडियोज को शेयर करते हुए एक्टर ने लिखा, ‘हैप्पी बर्थडे सोनाज… शुक्रिया मुझे न मारने के लिए… आई लव यू… आपको ढेर सारा खाना, फ्लाइट्स, लव और खुशियां मिले… फोटो क्रेडिट- ये वीडियो बताता है कि हम एक दूसरे को कितने वक्त से जानते हैं.’

 

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जहीर इकबाल की इस पोस्ट से पता चलता है कि ये दोनों रिलेशनश्प में हैं. बता दें कि फिल्म निर्माता दिनेश विजान की बहन की रिसेप्शन पार्टी में सोनाक्षी सिन्हा और जहीर इकबाल एक साथ पहुंचे थे.

अनुज-अनुपमा ने मनाया #maanday, देखें रोमांटिक VIDEO

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में रूपाली गांगुली (अनुपमा) और गौरव खन्ना (अनुज कपाड़िया) की जोड़ी को फैंस काफी पसंद करते हैं. फैंस को अनुज-अनुपमा की फोटोज और वीडियो का बेसब्री से इंतजार रहता है. शो में इन दिनों दिखाया जा रहा है कि शादी के बाद अनुपमा ने कपाड़िया हाउस में रहना शुरू कर दिया है.  तो वहीं अनुज की भाभी की भी एंट्री हो चुकी है. शो की कहानी में नए ट्विस्ट एंड टर्न आ रहे है. इसी बीच अनुपमा ने खास अंदाज में मानडे मनाया है. आइए बताते है पूरी खबर.

अनुज-अनुपमा का एक रोमांटिक वीडियो सामने आया है. इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि अनुज अपनी पत्नी के साथ आशिकों की तरह रोमांस करता नजर आ रहा है.

 

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अनुज-अनुपमा ने मानडे के मौके पर इस वीडियो को शेयर किया है. इस वीडियो में अनुपमा नई नवेली दुल्हन की तरह साड़ी पहने दिख रही है तो वहीं अनुज अनुपमा की तारीफ कर रहा है. अनुज को अपनी तारीफ करते देखकर अनुपमा शर्मा जाती है.

 

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अनुपमा ने इस वीडियो को शेयर करते हुए अपने फैंस को धन्यवाद कहा है. एक्ट्रेस ने वीडियो को शेयर करते हुए कैप्शन लिखा है, आखिरकार मानडे आ ही चुका है. मैं अपनी डिजिटल फैमिली को धन्यवाद कहना चाहती हूं. आप सब से इश्क करने की इजाजत हम रब से लाए हैं. लव यू ऑल…

 

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फैंस अनुज अनुपमा के इस वीडियो को जमकर लाइक कर रहे है. शो के आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि में बरखा अपने पति अंकुश को भड़काएगी और कहेगी कि वो अनुज से बिजनेस में अपना हिस्सा मांगे. बरखा बातों-बातों में यह भी बता देगी कि उसने अनुज को क्यों नहीं बताया कि उसका बिजनेस खत्म हो गया था. जिस पर अंकुश कहेगा कि वो आते ही अपने भाई से बिजनेस की बात नहीं कर सकता.

 

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बरखा अंकुश से कहेगी कि वो बिजनेस में अपना हक मांगे. बरखा कहेगी कि अगर उसने हेल्प मांगी तो अनुज उसे नौकरी देगा.

सौतेली- भाग 3: शेफाली के मन में क्यों भर गई थी नफरत

‘‘मैं इस के लिए तुम पर जोर भी नहीं डालूंगा, मगर तुम उस से एक बार मिल लो…शिष्टाचार के नाते. वह ऊपर कमरे में है,’’ पापा ने कहा.

‘‘मैं सफर की वजह से बहुत थकी हुई हूं, पापा. इस वक्त आराम करना चाहती हूं. इस बारे में बाद में बात करेंगे,’’ शेफाली ने अपने कमरे की तरफ बढ़ते हुए रूखी आवाज में कहा.

शेफाली कमरे में आई तो सबकुछ वैसे का वैसा ही था. किसी भी चीज को उस की जगह से हटाया नहीं गया था.

मानसी और अंकुर वहां उस के इंतजार में थे.

कोशिश करने पर भी शेफाली उन के चेहरों या आंखों में कोई मायूसी नहीं ढूंढ़ सकी. इस का अर्थ था कि उन्होंने मम्मी की जगह लेने वाली औरत को स्वीकार कर लिया था.

‘‘तुम दोनों की पढ़ाई कैसी चल रही है?’’ शेफाली ने पूछा.

‘‘एकदम फर्स्ट क्लास, दीदी,’’ मानसी ने जवाब दिया.

‘‘और तुम्हारी नई मम्मी कैसी हैं?’’ शेफाली ने टटोलने वाली नजरों से दोनों की ओर देख कर पूछा.

‘‘बहुत अच्छी. दीदी, तुम ने मां को नहीं देखा?’’ मानसी ने पूछा.

‘‘नहीं, क्योंकि मैं देखना ही नहीं चाहती,’’ शेफाली ने कहा.

‘‘ऐसी भी क्या बेरुखी, दीदी. नई मम्मी तो रोज ही तुम्हारी बातें करती हैं. उन का कहना है कि तुम बेहद मासूम और अच्छी हो.’’

‘‘जब मैं ने कभी उन को देखा नहीं, कभी उन से मिली नहीं, तब उन्होंने मेरे अच्छे और मासूम होने की बात कैसे कह दी? ऐसी मीठी और चिकनीचुपड़ी बातों से कोई पापा को और तुम को खुश कर सकता है, मुझे नहीं,’’ शेफाली ने कहा.

शेफाली की बातें सुन कर मानसी और अंकुर एकदूसरे का चेहरा देखने लगे.

उन के चेहरे के भावों को देख कर शेफाली को ऐसा लगा था कि उन को उस की बातें ज्यादा अच्छी नहीं लगी थीं.

मानसी  से चाय और साथ में कुछ खाने के लिए लाने को कह कर शेफाली हाथमुंह धोने और कपडे़ बदलने के लिए बाथरूम में चली गई.

सौतेली मां को ले कर शेफाली के अंदर कशमकश जारी थी. आखिर तो उस का सामना सौतेली मां से होना ही था. एक ही घर में रहते हुए ऐसा संभव नहीं था कि उस का सामना न हो.

मानसी चाय के साथ नमकीन और डबलरोटी के पीस पर मक्खन लगा कर ले आई थी.

भूख के साथ सफर की थकान थी सो थोड़ा खाने और चाय पीने के बाद शेफाली थकान मिटाने के लिए बिस्तर पर लेट गई.

मस्तिष्क में विचारों के चक्रवात के चलते शेफाली कब सो गई उस को इस का पता भी नहीं चला.

शेफाली ने सपने में देखा कि मम्मी अपना हाथ उस के माथे पर फेर रही हैं. नींद टूट गई पर बंद आंखों में इस बात का एहसास होते हुए भी कि? मम्मी अब इस दुनिया में नहीं हैं, शेफाली ने उस स्पर्श का सुख लिया.

फिर अचानक ही शेफाली को लगा कि हाथ का वह कोमल स्पर्श सपना नहीं यथार्थ है. कोई वास्तव में ही उस के माथे पर धीरेधीरे अपना कोमल हाथ फेर रहा था.

चौंकते हुए शेफाली ने अपनी बंद आंखें खोल दीं.

आंखें खोलते ही उस को जो चेहरा नजर आया वह विश्वास करने वाला नहीं था. वह अपनी आंखों को बारबार मलने को विवश हो गई.

थोड़ी देर में शेफाली को जब लगा कि उस की आंखें जो देख रही हैं वह सच है तो वह बोली, ‘‘आप?’’

दरअसल, शेफाली की आंखों के सामने वंदना का सौम्य और शांत चेहरा था. गंभीर, गहरी नजरें और अधरों पर मुसकराहट.

‘‘हां, मैं. बहुत हैरानी हो रही है न मुझ को देख कर. होनी भी चाहिए. किस रिश्ते से तुम्हारे सामने हूं यह जानने के बाद शायद इस हैरानी की जगह नफरत ले ले, वंदना ने कहा.

‘‘मैं आप से कैसे नफरत कर सकती हूं?’’ शेफाली ने कहा.

‘‘मुझ से नहीं, लेकिन अपनी मां की जगह लेने वाली एक बुरी औरत से तो नफरत कर सकती हो. वह बुरी औरत मैं ही हूं. मैं ही हूं तुम्हारी सौतेली मां जिस की शक्ल देखना भी तुम को गवारा नहीं. बिना देखे और जाने ही जिस से तुम नफरत करती रही हो. मैं आज वह नफरत तुम्हारी इन आंखों में देखना चाहती हूं.

‘‘हम जब पहले मिले थे उस समय तुम को मेरे साथ अपने रिश्ते की जानकारी नहीं थी. पर मैं सब जानती थी. तुम ने सौतेली मां के कारण घर आने से इनकार कर दिया था. किंतु सौतेली मां होने के बाद भी मैं अपनी इस रूठी हुई बेटी को देखे बिना नहीं रह सकती थी. इसलिए अपनी असली पहचान को छिपा कर मैं तुम को देखने चल पड़ी थी. तुम्हारे पापा, तुम्हारी बूआ ने भी मेरा पूरा साथ दिया. भाभी को सहेली के बेटी बता कर अपने घर में रखा. मैं अपनी बेटी के साथ रही, उस को यह बतलाए बगैर कि मैं ही उस की सौतेली मां हूं. वह मां जिस से वह नफरत करती है.

‘‘याद है तुम ने मुझ से कहा था कि मैं बहुत अच्छी हूं. तब तुम्हारी नजर में हमारा कोई रिश्ता नहीं था. रिश्ते तो प्यार के होते हैं. वह सगे और सौतेले कैसे हो सकते हैं? फिर भी इस हकीकत को झुठलाया नहीं जा सकता कि मैं मां जरूर हूं, लेकिन सौतेली हूं. तुम को मुझ से नफरत करने का हक है. सौतेली मांएं होती ही हैं नफरत और बदनामी झेलने के लिए,’’ वंदना की आवाज में उस के दिल का दर्द था.

‘‘नहीं, सौतेली आप नहीं. सौतेली तो मैं हूं जिस ने आप को जाने बिना ही आप को बुरा समझा, आप से नफरत की. मुझ को अपनेआप पर शर्म आ रही है. क्या आप अपनी इस नादान बेटी को माफ नहीं करेंगी?’’ आंखों में आंसू लिए वंदना की तरफ देखती हुई शेफाली ने कहा.

‘‘धत, पगली कहीं की,’’ वंदना ने झिड़कने वाले अंदाज से कहा और शेफाली का सिर अपनी छाती से लगा लिया.

प्रेम के स्पर्श में सौतेलापन नहीं होता. यह शेफाली को अब महसूस हो रहा था. कोई भी रिश्ता हमेशा बुरा नहीं होता. बुरी होती है किसी रिश्ते को ले कर बनी परंपरागत भ्रांतियां.

अमेरिका में बढ़ता गन कल्चर

अमेरिका 231 वर्षों बाद भी अपने गन कल्चर को खत्म नहीं कर पाया है. इस की 2 प्रमुख वजहें हैं. पहली, कई अमेरिकी राष्ट्रपति से ले कर वहां के राज्यों के गवर्नर तक इस कल्चर को बनाए रखने की वकालत करते रहे हैं. दूसरी, गन बनाने वाली कंपनियां यानी गन लौबी भी इस कल्चर के बने रहने में अपना फायदा पाती हैं.

अमेरिका के टेक्सास शहर में हाईस्कूल के एक 18 वर्षीय छात्र ने पहले घर में अपनी दादी को गोली मारी, उस के बाद एक प्राइमरी स्कूल में घुस कर नन्हेनन्हे बच्चों पर दनादन गोलीबारी की. हत्यारे लड़के का नाम है साल्वाडोर रैमोस, जिस की अंधाधुंध फायरिंग में 19 मासूम बच्चों समेत 21 लोगों की जानें चली गईं. मारे गए तमाम बच्चे दूसरी, तीसरी और चौथी कक्षा के छात्र थे. उन को बचाने की कोशिश में स्कूल के 2 टीचर भी मारे गए.

कुछ दूसरे स्टाफ मैंबर्स, बच्चे और कुछ पुलिस वाले भी उन्मादी रैमोस की गोलियों से घायल हुए, जिन्हें अस्पतालों में भरती कराया गया है और जिन में से कुछ की हालत अभी भी काफी खराब है. इस घटना के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 4 दिनों के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की और तमाम संस्थानों एवं वाइट हाउस पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका दिया गया. ये उन नन्हे मासूमों को श्रद्धांजलि थी जिन्होंने अभी दुनिया देखनी शुरू ही की थी.

हत्यारे छात्र साल्वाडोर रैमोस जब स्कूल के अंदर घुसा तो उस के एक हाथ में हैंडगन थी और दूसरे में राइफल झूल रही थी. एक दिन पहले रैमोस ने इन हथियारों की तसवीर अपने इंस्टाग्राम पोस्ट पर डाली थी. स्कूल में घुसते ही उस ने रायफल सीधी कर बच्चों पर अंधाधुंध गोलियां दागनी शुरू कर दीं. खून से लथपथ जमीन पर तड़पतड़प कर गिरते और मरते बच्चों को देख कर वह दरिंदा अट्हास करता रहा. हालांकि कुछ ही देर में पुलिस की गोलियों ने उस का जिस्म भी छलनी कर दिया मगर तब तक उस की गोलियां 21 जानें लील चुकी थीं.

हाईस्कूल के एक छात्र द्वारा टेक्सास के स्कूल में फायरिंग की यह घटना कनेक्टिकट में वर्ष 2012 में हुई फायरिंग से मिलती हुई है. कनेक्टिकट के न्यूटाउन में सैंडी हुक एलिमैंट्री हाईस्कूल में 14 दिसंबर, 2012 को 20 वर्षीय युवक ने ठीक इसी तरह फायरिंग की थी. उस हमले में 26 लोगों की जानें गई थीं, उन में 20 बच्चे थे. वह अमेरिका के इतिहास की सब से भयावह मास शूटिंग थी.

पिछले कुछ सालों में अमेरिका में हुई गोलीबारी की घटनाओं ने दुनिया को झकझोर कर रख दिया है. अमेरिका में गन कल्चर बेहद आम होता जा रहा है. यह देश के लिए बड़ी चुनौती है. अमेरिका में हथियार रखना आम आदमी के संवैधानिक अधिकारों में शुमार है और इस के लिए कोई कठिन नियम भी नहीं है. कपड़े और ग्रोसरी की तरह अमेरिका में हथियार खरीदेबेचे जाते हैं. खासतौर से युवा लड़कों द्वारा और इस गन कल्चर के कारण हुई मौतों का बोझ अब अमेरिका की संसद पर बढ़ रहा है.

पिछले महीने 14 मई को बफेलो शहर के एक सुपरमार्केट में फायरिंग हुई, जिस में 10 लोगों की मौत हो गई. अगले दिन रविवार को कैलिफोर्निया के चर्च में गोलीबारी की खबर आई, जिस में एक शख्स मारा गया. अप्रैल के महीने में न्यूयौर्क के एक रेलवे स्टेशन पर हुई गोलीबारी में 13 लोग घायल हुए. अमेरिका में वर्ष 2021 में भी फायरिंग की कई घटनाएं हुई थीं. कैलिफोर्निया के सैन जोस और कोलोराडो के बोल्डर में साल 2021 में भीषण गोलीबारी हुई थी. 22 मार्च, 2021 को बोल्डर की एक सुपरमार्केट में सामूहिक गोलीबारी की घटना में 10 लोगों की मौत हो गई थी. 2 महीने बाद 26 मई को सैन जोस में एक ट्रांसपोर्टेशन अथौरिटी कंट्रोल सैंटर में फायरिंग हुई और 9 लोग मारे गए. वहां गोलीबारी करने वाले शख्स ने भी खुदकुशी कर ली थी. निश्चित ही हत्यारा गहरे अवसाद व क्रोध में रहा होगा.

2019 के दौरान अमेरिका में हत्या के कुल 14,400 मामले सामने आए थे. इस से पहले 1993 में 18,253 लोगों की मौत बंदूक से जुड़े अपराधों की वजह से हुई थी. 2020 के दौरान अमेरिका में होने वाली 79 फीसदी हत्याएं बंदूक से की गईं. यह साल 1968 से अब तक का सब से बड़ा आंकड़ा है. पेव रिसर्च सैंटर के मुताबिक, 2020 में ऐसे मामलों में 34 फीसदी इजाफा हुआ. एक औनलाइन डेटा बेस ‘गन वौयलैंस आर्काइव’ के मुताबिक, 2020 में अमेरिका में सामूहिक गोलीबारियों में करीब 513 लोग मारे गए हैं. बीते 5 वर्षों में 49 फीसदी हथियारों से संबंधित घटनाएं अमेरिका में बढ़ी हैं.

अमेरिका में हर साल हत्या और फायरिंग की बड़ी घटनाएं सामने आती हैं. हर साल फायरिंग से जुड़े मामलों में हजारों लोगों की जान जाती है. इस की बड़ी वजह है अमेरिका का हथियारों के प्रति बेहद उदार रवैया, युवाओं और बच्चों में असुरक्षा की बढ़ती भावना, बिखरते परिवार और टूटता सामाजिक तानाबाना.

अमेरिका में हथियार रखने के कानून बेहद आसान हैं. किसी भी शख्स को हथियार रखने की इजाजत मिली हुई है. वहां बंदूक खरीदना आसान है. कोई भी व्यक्ति आसानी से जा कर बंदूक खरीद सकता है. साल 1791 में अमेरिका के संविधान में दूसरा संशोधन लागू किया गया था. उस के तहत अमेरिकी नागरिकों को हथियार रखने के अधिकार दिए गए थे. उस का असर यह हुआ कि अमेरिका में बड़े पैमाने पर लोगों को पास बंदूकें हैं.

एक रिपोर्ट के अनुसार, वहां के राजनेताओं में हथियार रखने का चलन बहुत पुराना है. वर्तमान में 44 फीसदी रिपब्लिकन नेताओं के पास और 20 फीसदी डैमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं के पास बंदूकें हैं. समाज में भी हथियार एक स्टेटस सिंबल बना हुआ है. अमेरिका में 39 फीसदी पुरुषों और 29 फीसदी महिलाओं के पास बंदूकें हैं. इसी तरह ग्रामीण इलाकों में रहने वाले 41 फीसदी और शहरी इलाकों में 29 फीसदी लोगों के पास बंदूकें हैं. बंदूकें रखने की सब से बड़ी वजह असुरक्षा की भावना है.

पिछले एक दशक में अमेरिका में नस्लवाद के मामलों में भारी वृद्धि देखी गई है. काले लोगों के लिए गोरों के मन में बेइंतहा नफरत भरी हुई है. वहीं अमेरिका में 59 फीसदी लोग अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था से संतुष्ट नहीं हैं. इस से उन में हिंसा पनपती है. अमेरिकी समाज में परिवार-संस्कृति नहीं है, लोग एकाकी जीवन अधिक जीते हैं. उन के पास दुखसुख बांटने वाले नहीं हैं, लिहाजा अकेलेपन में अवसाद पैदा होता है. कोढ़ में खाज यह कि ऐसी जर्जर मानसिक स्थिति के साथ रह रहे लोगों के हाथों में बंदूकें हैं. यह कौकटेल गोलाबारी जैसी भयावह घटनाओं के रूप में आएदिन सामने आता है और सैकड़ों निर्दोष लोगों को अपना शिकार बनाता है.

टूटा हुआ पारिवारिक तानाबाना

अमेरिका में 13-14 बरस का किशोर अपने मातापिता और परिवार के अन्य सदस्यों से दूर होस्टल में या घर से दूर अन्य शहरों में पढ़ाई के लिए निकल जाता है. 18 बरस का होतेहोते वह पूरी तरह पारिवारिक बंदिशों से मुक्त होता है. उन्मुक्त जीवनचर्या वाले अमेरिकी समाज में वैसे ही पारिवारिक बंधन न के बराबर हैं. कोई बच्चा तलाकशुदा पेरैंट्स में से किसी एक के साथ रह रहा है तो कोई परिवार के किसी अन्य सदस्य के साथ अथवा बिलकुल अकेला. जिन घरों में मातापिता के बीच तनाव और तकरार लगातार बना रहता है, वहां बच्चे कम उम्र में ही अवसाद का शिकार हो जाते हैं. प्रेम और लगाव की जगह मन में कुंठा और गुस्सा पनपता रहता है जो मौक़ा मिलने पर ज्वालामुखी की तरह फटता है, कभी अपनों पर तो कभी बाहरी लोगों पर.

उम्र के उस दौर में जब एक किशोर को सहीगलत की पहचान करवाने वाले मातापिता की दरकार होती है, अपनी भावनाएं साझा करने के लिए उन की जरूरत होती है, अपनी जिज्ञासाओं के समाधान के लिए किसी अपने की आवश्यकता होती है, क्रोध को संभालने और जब्त करने के लिए किसी बड़े द्वारा सही दिशानिर्देश चाहिए होता है, उस दौर में अमेरिकी किशोर और युवा बिलकुल अकेले होते हैं और सारे निर्णय खुद ही लेते हैं. निर्णय सही हैं या गलत, उन को यह बताने वाला कोई नहीं होता.

अधिकांश युवा और किशोर अकेलेपन के चलते अवसादग्रस्त भी होते हैं. प्रेम, धैर्य, सामंजस्य, भाईचारे जैसी भावनाओं के बजाय उच्श्रृंखलता, उन्माद, हीमैन जैसी फीलिंग उन के व्यक्तित्व पर ज़्यादा हावी रहती है. ऐसी स्थिति में अगर हाथ में बंदूक भी आ जाए तो सर्वनाश होना निश्चित है. अमेरिकी समाज धीरेधीरे इसी सर्वनाश की ओर बढ़ रहा है.

18 साल की उम्र से पहले बंदूक खरीदने की छूट

अमेरिका में भले ही 21 साल से पहले शराब खरीदना गैरकानूनी हो, लेकिन 18 साल की उम्र होने पर बंदूक और राइफल खरीदने की छूट है. यहां तक कि मिलिट्री वाली राइफल खरीदने के लिए भी कोई ठोस कानून नहीं है. इस से अमेरिका के युवा मनमाने ढंग से इन खतरनाक हथियारों को आसानी से खरीदते हैं और बाद में पर्सनल दुश्मनी या मानसिक अवसाद के चलते यही हथियार लोगों की जान ले लेते हैं.

कम उम्र में बच्चों को मनमानी करने की आजादी

विशेषज्ञों की मानें तो अमेरिका में बढ़ता गन कल्चर इस तरह की मास किलिंग का प्रमुख कारण है. लेकिन, सस्ते में और आसानी से मिल रहे जानलेवा हथियार ही इस की वजह नहीं हैं. अमेरिका में बढ़ता ओपन कल्चर भी इस की एक बड़ी वजह है. वहां बच्चे कम उम्र में ही मनमाने तरीके से जीने लगते हैं. फ्रीडम के नाम पर वे परिवार से अलग रहते हैं, अपने फैसले खुद करने लगते हैं. इस से कई बार मानसिक अवसाद बढ़ता है. उन्हें समझाने वाला कोई नहीं होता. ऐसे में युवा कई बार इस तरह के कदम उठाते हैं.

स्टेटस सिंबल है गन रखना

अमेरिका में कभी ब्रिटिश सत्ता थी. अमेरिका के लोगों ने बंदूक के दम पर ब्रिटिश शासन से लड़ कर अपने देश को आजाद कराया. हालांकि, बंदूक से मिली आजादी को देखते हुए वहां की सरकारों ने लोगों को हथियार रखने की छूट दे दी. धीरेधीरे वक्त के साथ हथियार रखना अमेरिकी रहनसहन का हिस्सा बन गया. यहां तक कि इस के लिए कोई सख्त कानून भी नहीं है, जिस के चलते अब इस का दुरुपयोग बढ़ता जा रहा है.

नागरिकों के बंदूक रखने के मामले में अमेरिका दुनिया में सब से आगे है. स्विट्जरलैंड के स्माल आर्म्स सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में मौजूद कुल 85.7 करोड़ सिविलियन गन यानी बंदूकों में से अकेले अमेरिका में ही करीब 40 करोड़ सिविलयन बंदूक मौजूद हैं. दुनिया की आबादी में अमेरिका का हिस्सा 5 फीसदी है लेकिन दुनिया की कुल सिविलियन गन में से 46 फीसदी अकेले अमेरिका में हैं. अक्टूबर 2020 में आए गैलप सर्वे के मुताबिक, 44 फीसदी अमेरिकी वयस्क उस घर में रहते हैं जहां बंदूकें हैं. इन में से एकतिहाई वयस्कों के पास बंदूकें हैं. अमेरिका की जनसंख्या से ज्यादा वहां नागरिकों के पास बंदूकें यानी सिविलियन गन हैं. अमेरिका की आबादी करीब 33 करोड़ है और वहां सिविलियन गन करीब 40 करोड़ हैं. यानी, अमेरिका में हर 100 लोगों पर 120 बंदूकें उपलब्ध हैं.

दुनिया में केवल 3 ही देश ऐसे हैं जहां बंदूक रखना संवैधानिक अधिकार है. अमेरिका, ग्वाटेमाला और मैक्सिको. हालांकि, अमेरिका की तुलना में ग्वाटेमाला और मैक्सिको में लोगों के पास काफी कम बंदूकें हैं. साथ ही, पूरे मैक्सिको में केवल एक ही गन स्टोर है जिस पर आर्मी का नियंत्रण है.

231 वर्षों बाद भी नहीं बदला कानून

बता दें कि 1783 में अमेरिका को ब्रिटेन से आजादी मिली. इस के बाद अमेरिका में संविधान बना और 1791 में उसी के तहत अमेरिका के लोगों को हथियार रखने का अधिकार मिला. जिस तरह भारत में लोग आसानी से मोबाइल और सिम खरीदते हैं, उसी तरह अमेरिका में लोग हथियार खरीद लेते हैं. लेकिन इस गल कल्चर की कीमत अमेरिका अब भुगत रहा है. अमेरिका अपनी आजादी के 231 वर्षों बाद भी इस कानून को नहीं बदल पाया है.

सार्वजनिक स्थल पर शूटिंग मामलों में 13 गुना का इजाफा

अमेरिका में मास शूटिंग को ले कर पीईडब्ल्यू की रिपोर्ट एक और अहम खुलासा करती है. रिपोर्ट एफबीआई के आंकड़ों के आधार पर बताती है कि साल 2000 से 2020 के दौरान भीड़भाड़ वाले इलाकों में शूटिंग के मामलों में 13 गुना इजाफा हुआ है. साल 2000 में जहां अमेरिका में 3 घटनाएं हुई थीं, वे 2020 में बढ़ कर 40 पहुंच गईं. इन आंकड़ों से साफ है कि अमेरिका में बंदूक संस्कृति बहुत बड़ी समस्या बनती जा रही है. और इस की एक प्रमुख वजह वहां का उदार कानून है. अमेरिका में बंदूक से लोगों की मौत में बहुत तेजी से इजाफा हो रहा है.

मर्डर ही नहीं, आत्महत्या के भी मामले बढ़े

गन कल्चर की वजह से अमेरिका में न केवल लोगों की हत्याओं के मामले बढ़े हैं, बल्कि इस से आत्महत्या करने के भी केस बढ़े हैं. 2019 में अमेरिका में बंदूक से 23 हजार से ज्यादा लोगों ने सुसाइड किया था. यह इस दौरान दुनिया में बंदूक से आत्महत्या के कुल मामलों का 44 फीसदी था. वहीं 2020 में यह आंकड़ा बढ़ कर 24,300 हो गया. यूएन के मुताबिक, 1990 से 2019 के बीच बंदूकों से सर्वाधिक आत्महत्या के केस अमेरिका में दर्ज हुए.

सस्ते हथियारों से बढ़ रहा गन कल्चर

5 वर्षों पहले अमेरिका में एक सर्वे हुआ था, जिस में सामने आया कि वहां के करीब 40 फीसदी लोगों के पास गन हैं. इस के अलावा अमेरिकी कानून के मुताबिक, वहां हथियार खरीदना दूसरे मुल्कों की तुलना में बेहद सस्ता है. अमेरिका की दुकानों में बंदूक उतनी ही आसानी से मिल जाती है, जितनी आसानी से भारत में इलैक्ट्रौनिक सामान और मोबाइल फोन मिलते हैं. अमेरिकी एक्सपर्ट्स का मानना है कि हथियार के लाइसैंस देने से पहले उसे रखने वाले की हिस्ट्री और बैकग्राउंड चैक करना बेहद जरूरी है. इस से काफी हद तक फायरिंग के मामलों को रोका जा सकता है.

अमेरिका में गन कल्चर भले ही वहां के युवाओं को प्रभावित करता हो लेकिन इस की कीमत भी समयसमय पर अमेरिकी लोगों को चुकानी पड़ती है. लाखों आम लोगों के साथसाथ अमेरिका के 4 पूर्व राष्ट्रपति की हत्याओं के पीछे भी कहीं न कहीं गन कल्चर का ही हाथ है. राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन और राष्ट्रपति जेम्स ए गारफील्ड की हत्या भी बंदूक से ही की गई थी.

आज भले ही गन कल्चर अमेरिकी लाइफ का एक हिस्सा बन गया है लेकिन देश के अधिकांश लोग आज इस कल्चर के खुश नहीं हैं. इसी कड़ी में मेयर एरिक एडम ने ट्वीट कर कहा है कि क्यू ट्रेन में एक यात्री की हत्या, बुफेलो में खरीदारी करते लोगों की हत्या और अब टेक्सास में स्कूली बच्चे समेत लोगों की हत्या… ये तमाम घटनाएं अमेरिका की जहरीली बंदूक संस्कृति को रिफ्यूल करने का काम कर रही हैं.

अमेरिका में कई संगठन हैं जो विदेशों में मानवाधिकारों के लिए काम करते हैं. मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए अमेरिका दुनिया के दूसरे देशों को फंड भी देता है. अमेरिका अन्य देशों में मानवाधिकारों के लिए चिंता व्यक्त करता है लेकिन यह देश कभी अपनी नीतियों का निष्पक्ष विश्लेषण नहीं करता. यही वजह है कि अमेरिका की गन संस्कृति वहां के ‘जनगणमन’ पर भारी पड़ रही है. अमेरिका को अपने ही कानूनों पर दोबारा सोचने की जरूरत है. वरना अमेरिका विश्व मंच पर अपना प्रभुत्व खो देगा.

जिम जाएं तो रखें ध्यान

18साल की कालेज में पढ़ने वाली मुंबई की रूपल एक पौश बिल्ंिडग में रहती है. जिम उस बिल्ंिडग के अंदर ही है. लेकिन वह कालेज से आ कर इतना थक जाती है कि कहीं जाने की इच्छा नहीं होती.

एक दिन जब उस ने अपनी सहेली को हाथ में बैग लिए पसीनेपसीने आते हुए देखा, तो रूपल ने तुरंत पूछ लिया कि वह कहां से आ रही है और पसीने से इतनी भीगी क्यों है?

सहेली ने हंस कर जवाब दिया,

‘‘जिम से.’’

रूपल ने पूछा, ‘‘क्या तुम रोज जाती हो?’’

सहेली ने कहा, ‘‘रोज नहीं जा पाती कालेज की वजह से, सप्ताह में 3 या 4 दिन ही जा पाती हूं. कोविड के दौरान घर बैठ कर औनलाइन पढ़ाई करने की वजह से मेरी आदत खराब हो गई है. कालेज जाने के बाद मैं थकने लगी हूं. इस से मेरी पढ़ाई ढंग से नहीं हो पा रही है और मेरा वजन भी बढ़ चुका है. मेरे घुटनों में अभी से दर्द होने लगा है. डाक्टर ने जिम या वर्कआउट किसी भी प्रकार की करने के लिए सलाह दी है ताकि मेरा दर्द खत्म हो जाए. तुम्हें भी तो वर्कआउट करना चाहिए, रूपल. तुम्हारा वजन भी काफी बढ़ गया है.’’

रूपल को सहेली की बात अच्छी लगी और अगले दिन से वह अपनी सहेली के साथ जिम जाने लगी.

बचना है जंकफूड से

यह सही है कि छोटे शहरों और महानगरों में रहने वाले लड़केलड़कियों के वजन में कोविड के दौरान काफी बढ़ोतरी हुई है. कम समय में डायबिटीज या अन्य किसी रोग से इन बच्चों के आक्रांत होने की संभावना अधिक है, जिसे कम करना उन के लिए मुश्किल है.

वजन बढ़ने की वजह कम वर्कआउट और ज्यादा भोजन करना है. इस में जंकफूड सब से अधिक घातक सिद्ध होता है, क्योंकि इन्हें ट्रैडिशनल फूड पसंद नहीं होता. कुछ पेरैंट्स बच्चे के मोटापे को देख कर उसे हैल्दी बच्चा सम?ाते हैं. यही बच्चे बड़े हो कर बीमार होने लगते हैं.

एक सर्वे में 10 से 24 साल की उम्र वाले 10 से 30 प्रतिशत युवा किसी न किसी प्रकार की शारीरिक समस्या या बीमारी से पीडि़त पाए गए हैं. ऐसे में इस ओर ध्यान देना जरूरी है.

शहरों में भीड़भाड़ अधिक होने की वजह से कुछ शारीरिक एक्टिविटीज करना संभव नहीं होता, ऐसे में जिम में जाना ही एक विकल्प बचता है, जिसे नियमित करना आवश्यक है.

जिम करने यानी ऐक्सरसाइज करने का एक फायदा यह है कि इस से शरीर का स्टैमिना बढ़ता है और शरीर की कार्यक्षमता भी बढ़ती है. जब किसी काम को बिना थके ज्यादा देर तक किया जा सकता है तो यह शरीर में स्टैमिना बढ़ने का संकेत होता है.

सुनें बात ट्रेनर की

फिटनैस एक्सपर्ट योगेश भटेजा कहते हैं, ‘‘आज के यूथ फिल्मों में हीरों के 6 पैक या 8 पैक देख कर खुद उस की कोशिश करते हैं जो कई बार घातक हो जाता है. हमेशा ट्रेनर के अनुसार ही वर्कआउट करना अच्छा होता है. उम्र, शारीरिक बनावट, खानपान आदि के अनुसार ही व्यायाम करना सही होता है.’’

वे आगे कहते हैं, ‘‘सब से पहले मैं वर्कआउट का एक चार्ट बनाता हूं और उसे फौलो करने की कोशिश करता हूं. मेरे यहां हर लड़कालड़की फिट रहने के लिए ही आते हैं. मेरा काम उन की मंशा के अनुसार बौडी देना है. जो आम इंसान फिट होना चाहते हैं, मैं उन से कहता हूं कि अगर आप में इच्छाशक्ति है तो मैं फिट रहने का रास्ता बता सकता हूं. फिटनैस को कायम रखना आसान है, मुश्किल नहीं.’’

जिम जाने की सही उम्र

जिम में जाने की उम्र को ध्यान में रखना बहुत आवश्यक है. 13 से 18 साल के बच्चे वयस्कों के बराबर व्यायाम नहीं कर सकते हैं. इस उम्र में जिम जाना शुरू कर सकते हैं. जिम में इस उम्र में जौगिंग, स्विमिंग, वेट लिफ्ंिटग जैसी ऐक्सरसाइज ट्रेनर के अनुसार कर सकते हैं. इस के अलावा फुटबौल, बास्केट बौल, कुश्ती जैसे खेल भी खेल सकते हैं. वर्कआउट नियमित करें, इस से फिट रहना आसान होता है.

बिना सोचे न जाएं जिम

कुछ यूथ को आजकल कम उम्र में मोटापा घेर लेता है. ट्रेनर योगेश आगे कहते हैं, ‘‘आइडियली देखा जाए तो 3 महीने में प्लस 3 या माइनस 3 किया जा सकता है. इस से अधिक करने पर बौडी सिस्टम पर गलत असर पड़ता है. एक सीमित दायरे में वजन घटाने पर किसी प्रकार की समस्या नहीं होती. बिना सोचेसम?ो कुछ भी करना गलत होता है, जिसे आज के यूथ करते हैं. वे ऐसा कहीं पढ़ कर या देख कर ओवरनाइट में वैसा शरीर बनाना चाहते है, जो ठीक नहीं. इस से नींद की समस्या, कई प्रकार की बीमारियां, हार्मोनल समस्याएं आदि हो सकती हैं. इस के अलावा नमक छोड़ देना या पानी कम पीने से वजन कभी नहीं घटता.’’

डाइट पर दें ध्यान

‘‘ट्रेनर योगेश कहते हैं, ‘‘बौडी की जरूरत और टाइप के अनुसार ही डाइट चार्ट होने पर व्यक्ति हमेशा फिट रहता है. प्रोटीन, फैट, फाइबर आदि को हमेशा अपनी डाइट में शामिल करें.’’ न्यूट्रीशनिस्ट से मिल कर सही डाइट प्लान बनाना जरूरी है ताकि वजन घटाना मुश्किल न हो. संतुलित भोजन और नियमित वर्कआउट से व्यक्ति फिट रह सकता है. आजकल मोटापे के शिकार बच्चे अधिक होते हैं. इस के कुछ कारण ये हैं-

बच्चों में मोटापा बढ़ने का मुख्य कारण, उन का बाहर जा कर न खेलना,

गैजेट्स का बच्चों के जीवन पर

अधिक प्रभाव,

जंकफूड का बहुत ज्यादा सेवन,

समय से न सोना आदि.

इस के अलावा शुगर, सौफ्ट ड्रिंक और जंकफूड को अवौयड करें, पत्तेदार सब्जियां और मौसमी फल खाएं, समय से खाने और समय से सोने के साथ बौडी को रोज सुबह डिटौक्स करना जरूरी है. याद रखें, कभी भी सुबह उठ कर खाली पेट वर्कआउट न करें.

स्ट्राबेरी की खेती: युवा किसानों को मिली नई राह

खेती में परंपरागत तरीकों से हट कर नएनए प्रयोग करना किसानों के लिए मददगार साबित हो रहा है और खेती मुनाफे का धंधा भी बन रही है. मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के 2 युवाओं ने अपनी पढ़ाई के साथसाथ खेतों में नवाचार कर दूसरे किसानों के लिए भी नई राह बनाई है.

नरसिंहपुर जिले के एक छोटे से गांव लोलरी के रहने वाले मुकुल लांघिया और अभिषेक लोधी ने एक एकड़ जमीन में स्ट्राबेरी की खेती कर 5 लाख रुपए तक का मुनाफा कमाया है.

लोलरी गांव के रहने वाले मुकुल लांघिया और अभिषेक लोधी ने यहां के किसानों को लाभदायक स्ट्राबेरी की खेती का एक नया रास्ता दिखाया है.

24 साल के लोलरी गांव के बाशिंदे मुकुल एमबीए के छात्र हैं, जबकि उन के सहयोगी अभिजीत फार्मेसी का कोर्स कर रहे हैं. इन दोनों युवाओं ने पढ़ाई के साथ ही कुछ नया करने की सोची और अपने खेतों में स्ट्राबेरी की खेती करने की योजना बनाई. दोनों ने इस की खेती की तकनीकी जानकारी के लिए हिमाचल प्रदेश के गांवों का दौरा कर वहां के किसानों से मिल कर खेती की तकनीकी की जानकरी प्राप्त की.

बातचीत के दौरान मुकुल बताते हैं कि पहले उन्होंने जबलपुर में मिट्टी प्रयोगशाला में अपने खेत की मिट्टी की जांच कराई और वहां से स्ट्राबेरी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी होने की रिपोर्ट मिलने पर खेती शुरू की.

वैसे, अक्तूबर महीने में स्ट्राबेरी की खेती शुरू की जाती है, लेकिन उन्होंने थोड़ी देर से नवंबर महीने में स्ट्राबेरी का प्लांटेशन किया. तकरीबन एक एकड़ यानी 80 डिसमिल क्षेत्रफल में स्ट्राबेरी के तकरीबन 12,000 पौधे लगाए, शेष बचे हुए हिस्से में ब्रोकली के 3,000 पौधे लगाए. अब यह फसल पक कर तैयार हो गई है और वह जबलपुर, बालाघाट, भोपाल, इंदौर, सागर, मंडला और दूसरे बड़े शहरों में सप्लाई कर रहे हैं.

मुकुल ने बताया कि इस में तकरीबन एक लाख, 70 हजार रुपए की लागत आई और स्ट्राबेरी की खेती से तकरीबन 5 लाख रुपए की आय प्राप्त होने की उम्मीद है.

मुकुल के सहयोगी अभिषेक लोधी बताते हैं कि स्ट्राबेरी की फसल अक्तूबर के महीने में लगती है और अप्रैल तक चलती है, जिस में 70 से 90 दिन में स्ट्राबेरी में फल आना चालू हो जाता है और अप्रैल तक फल निकलता रहता है. हम ने इस बार एक एकड़ में परीक्षण किया और सफलतापूर्वक स्ट्राबेरी का उत्पादन किया. चटक लाल रंग का दिखने वाला यह फल जितना स्वादिष्ठ होता है, उतना ही सेहतमंद भी है. इस का रसदार खट्टामीठा स्वाद लोगों को बेहद भाता है. साथ ही, इस की खुशबू भी इसे दूसरे फलों से अलग बनाती है.

वे बताते हैं कि इस फल की बाजार में कीमत तकरीबन 300 रुपए प्रति किलोग्राम है. हम ने अभी बालाघाट, जबलपुर, नरसिंहपुर, भोपाल आदि शहरी क्षेत्रों में भेजा है और लोकल बाजार में भी भेजा है.

स्ट्राबेरी की खेती करने के लिए मुकुल ने हिमाचल प्रदेश के अपने कुछ दोस्तों से बात की और फिर उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों का सहयोग लिया. विभाग ने ड्रिप व मल्चिंग पद्धति से खेती करने की सलाह दी. अंचल में स्ट्राबेरी मिलने लगी है, तो आसपास से डिमांड शुरू हो गई है, जिस के बाद रोजाना लोकल में ही तकरीबन 4,000 रुपए की स्ट्राबेरी बिक रही है. जबलपुर, भोपाल, इंदौर, सागर, मंडला के साथ ही छतरपुर और टीकमगढ़ जिलों से भी डिमांड आ रही है.

स्ट्राबेरी का खाने योग्य भाग लगभग

98 फीसदी होता है. इन फलों में विटामिन सी और लौह तत्त्व प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं. यह अपने विशेष स्वाद और रंग के साथसाथ औषधीय गुणों के कारण भी एक महत्त्वपूर्ण फल है. इस का उपयोग कई मूल्य संवर्धित उत्पादों जैसे आइसक्रीम, जैम, जैली, कैंडी, केक आदि बनाने के लिए भी किया जाता है. इस की खेती अन्य फल वाली फसलों की तुलना में कम समय में ज्यादा मुनाफा दिला सकती है.

भारत में कुछ साल पहले तक स्ट्राबेरी की खेती केवल पहाड़ी क्षेत्रों जैसे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, कश्मीर घाटी, महाराष्ट्र जैसी जगहों तक ही सीमित थी. वर्तमान में नई उन्नत प्रजातियों के विकास से इस को उष्णकटिबंधीय जलवायु में भी सफलतापूर्वक उगाया जा रहा है. इस के कारण यह मैदानी भागों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार आदि राज्यों में अपनी अच्छी पहचान बना चुकी है. तकनीकी जानकारी की कमी में किसान इस की खेती करने में अपनेआप को असहज महसूस करते हैं, जबकि यदि स्ट्राबेरी की वैज्ञानिक तकनीक से खेती की जाए तो इस की फसल से अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है.

इन दोनों नौजवान किसानों का मानना है कि खेती करने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है:

पलवार बिछाना

अपने खेत में बिछी प्लास्टिक मल्चिंग के बारे में बताते हुए मुकुल कहते हैं कि स्ट्राबेरी उत्पादन में यह एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है. यह काम जमीन की ऊपरी सतह पर सूखे पत्तों, टहनियों या घासफूस से ढक कर किया जाता है, पर आजकल पलवार बिछाने के लिए ज्यादातर प्लास्टिक मल्च का प्रयोग किया जाता है.

स्ट्राबेरी में इस का प्रयोग करने से फल सीधे मिट्टी के संपर्क में नहीं आते हैं. इस से फलों को सड़ने से बचाया जा सकता है. साथ ही, यह खरपतवारों का नियंत्रण करने और सिंचाई की जरूरत को कम करने का काम करती है.

पलवार के लिए आमतौर पर काले रंग की तकरीबन 50 माइक्रोन मोटाई वाली प्लास्टिक की फिल्म का इस्तेमाल किया जाता है. जब पौधे अच्छी तरह स्थापित हो जाएं, तब प्लास्टिक फिल्म बिछाने का काम पौध रोपण के तकरीबन एक महीने बाद किया जाता है.

क्यारियों में प्लास्टिक पलवार बिछाते समय पौधे से पौधे व कतार से कतार की दूरी को ध्यान में रखते हुए छेद करते हैं, जिस से पौधे आसानी से ऊपर आ जाएं.

पलवार बिछाने से पहले ड्रिप (टपक) सिंचाई प्रणाली क्यारियों में व्यवस्थित कर दी जाती है.

निराईगुड़ाई और सिंचाई प्रबंधन

स्ट्राबेरी के पौधे लगाने के कुछ समय बाद उन के आसपास खरपतवार उग आते हैं. ये खरपतवार पौधों को मिलने वाले पोषक तत्त्वों को ग्रहण करने के साथ कई तरह के कीटपतंगों को सहारा देते हैं. रोपे गए पौधों से एक महीने बाद फुटाव शुरू हो जाता है. फुटाव शुरू होने पर खेत की निराईगुड़ाई कर के खरपतवार निकाल देने चाहिए.

स्ट्राबेरी में पौधे की जड़ें जमीन में ज्यादा गहराई तक नहीं जाती हैं. यह सतह पर ही फैलने वाला पौधा होता है, इसलिए इस में कम समय के अंतराल पर नियमित सिंचाई की जरूरत होती है. पहली सिंचाई पौध रोपने के तुरंत बाद कर देनी चाहिए, उस के बाद 2 से 3 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करना फायदेमंद रहता है.

सिंचाई के लिए ड्रिप सिंचाई प्रणाली उत्तम रहती है. इस पद्धति द्वारा पौधों को उन की जरूरत के अनुसार पानी बूंदबूंद के रूप में  पौधों की जड़ों में सीधा और समान रूप से पहुंचाया जा सकता है. इस के साथ ही कम पानी का इस्तेमाल कर के अधिकतम पैदावार ली जा सकती है.

ड्रिप सिंचाई प्रणाली में जल के साथसाथ उर्वरक, कीटनाशक और दूसरे घुलनशील रासायनिक तत्त्वों को भी सीधे पौधों तक पहुंचाया जा सकता है.

उन्होंने बताया कि यह पहाड़ी क्षेत्र का पौधा है और पौलीहाउस में ही उस की पैदावार सही होती है.

युवा किसान मुकुल लांघिया के मोबाइल नंबर 9424999078 और अभिषेक लोधी के मोबाइल नंबर 8770857962 से बात कर के स्ट्राबेरी की खेती से संबंधित जानकारी प्राप्त की जा सकती है.

मैं मां बनना चाहती हूं, क्या करूं?

सवाल

हम निसंतान दंपती हैं. शादी हुए 8 साल हो गए हैं. मेरा 2 बार गर्भपात हो गया है. अब हम आईवीएफ से बच्चा करने की सोच रहे हैं. मैं ने सुना है कि आईवीएफ के बाद महिला को 9 महीने बैड रैस्ट करना पड़ता है. क्या वाकई ऐसा है? और वे बच्चे क्या नौर्मल बच्चों जैसे ही होते हैं?

जवाब

अफसोस की बात है कि शादी के 8 वर्षों बाद भी आप संतान सुख से वंचित हैं. आईवीएफ ट्रीटमैंट को ले कर लोगों के मन में बहुत सारी आशंकाएं हैं जबकि आईवीएफ ऐसी प्रक्रिया है जिस से संतान सुख की प्राप्ति कराई जाती है. आईवीएफ टैक्नोलौजी से पैदा हुए बच्चे प्राकृतिक गर्भधारण द्वारा जन्म लेने वाले बच्चों के समान ही होते हैं.

भ्रूण को भले ही लैब में तैयार किया जाता है, परंतु इस भ्रूण का विकास मां के गर्भ में ही पूरी तरह से प्राकृतिक रूप से होता है और इस में नौर्मल प्रैग्नैंसी द्वारा ही बच्चे का जन्म होता है.

जहां तक 9 महीने बैड रैस्ट की बात है, तो बता दें कि आईवीएफ की प्रक्रिया केवल गर्भधारण करने के लिए होती है. इस के बाद शेष आगे की प्रक्रिया पूरी तरह से नैचुरल ही होती है. जैसे डाक्टर सामान्य प्रैग्नैंसी में नियम व शर्तें बताते हैं वैसे ही आईवीएफ ट्रीटमैंट द्वारा गर्भधारण करने वाली महिला को वही शर्तें व नियम बताए जाते हैं.

ऐसा बिलकुल नहीं है कि जो महिलाएं आईवीएफ ट्रीटमैंट द्वारा गर्भधारण करती हैं उन को 9 महीने तक बैड रैस्ट करना पड़ता है. यदि किसी कारणवश डाक्टर आप को परामर्श देते हैं कि कुछ समय बैड रैस्ट करना है तो आप जरूर करें. यह सलाह तो सामान्य गर्भधारण करने वाली महिला को भी डाक्टर देते हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

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