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Summer Special: गर्मी से है परेशान तो खाएं ये फल

गर्मी का मौसम जानलेवा बनता जा रहा है. हर साल गर्मी अपने पिछले साल का रिकौर्ड तोड़ रही है. सर्दी के 3-4 महीने के अलावा पूरे साल गर्मी रहती है. लेकिन लाख चाहने के बाद भी घर पर बंद होकर तो रहा नहीं जा सकता. बाहर निकलना भी जरूरी है. कड़कड़ाती गर्मी और सड़क पर लगे जाम को झेलना भी. यह सब झेला जा सकता है, सेहत के प्रति थोड़ा सचेत रह कर. इसके लिए शरीर के साथ मन को भी तरोताजा और ठंडा होगा. गर्मी में शरीर को अधिक से अधिक पानी की जरूरत होती है. गर्मी के दिनों में शरीर का पानी सूखता है. इसलिए पानी के साथ अलग-अलग तरह के तरल की भी जरूरत पड़ती है. शरीर में पानी की कमी होना डिहाइड्रेशन कहलाता है. यह जानलेवा भी हो सकता है. इसलिए शरीर में पानी मात्रा को बनाए रखना जरूरी है.

पानी की मात्रा को बनाए रखने के लिए पानी काफी नहीं है. इसके साथ खाने के पैटर्न में भी बदलाव जरूरी है. डॉक्टर खाने के बजाए पेय पर ज्यादा से ज्यादा निर्भर रहने की सलाह देते हैं. वैसे इस मौसम में बाजार में किस्म-किस्म के शीतल पेय और बोतल से लेकर फलों के जूस के ताजा होने बड़े दावे करनेवाले ट्रेटा पैक के जूस आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं. ये सब बेशक प्यास बुझाने और गर्मी से राहत देकर ठंडक जरूर महसूस कराते हैं. पर यह फौरी तौर पर राहत देते हैं. इस गर्मी में इतना काफी नहीं. सेहतमंद और पौष्टिक पेय भी जरूरी है, जो अंदरूनी तौर पर राहत दे. जाहिर है बोतलबंद और ट्रेटापैक जूस व पेय से बात नहीं बनेगी.

कोलकाता की जानीमानी डायटिशियन रश्मि रायचौधरी कहती हैं कि उमस भरी गर्मी में शरीर को अंदरुनी तौर पर ठंडा रखने के लिए प्रकृति ने भरपूर फल-मूल दिया है. अब सवाल है कि किस तरह का खाना खाने से बगैर किसी तरह की शारीरिक समस्या के गर्मी आराम से कट सकती है. डायटिशियन द्वारा सुझाए गए कुछ फल इस प्रकार है:

खीरा: रोज खाने में एक मंझोले आकार का खीरा खाएं. इसे काट पर भी खाया जा सकता और सलाद में शामिल करके भी. खीरे और पुदीने का रिफ्रेशिंग स्मूदी, खीरे का रायता शरीर को भीतर से ठंडा और तरोताजा बनाता है. खीरे में पाया जाने वाला पोटाशियम शरीर में पानी का संतुलन बनाने में मददगार है. हालांकि इसमें अन्य फल व सब्जी की तरह ढेर सारे विटामिन नहीं होने के बावजूद शरीर के रोजमर्रा की विटामिन सी और के की जरूतर को पूरा करता है. इसके अलावा इसके छिलके में स्टेरल नाम का एक और उपादान पाया जाता है, जो कोलेस्ट्रोल की मात्रा को संतुलित बनाने में सहायक होता है. इसीलिए खीरे के छिलके को फेंकना मुनासिब नहीं है. खीरा इम्युन सिस्टम को भी मजबूत करता है.

नारियल पानी: इसमें पाया जाता है एमिनो एसिड, इंजाइम्स, डाइटरी फाइबर, विटामिन सी और कई तरह के मिनरल मसलन पोटाशियम, मैग्निशियम और मैंगनीज पाया जाता है. पोषक तत्व से भरपूर यह एक प्राकृतिक एनर्जी ड्रिंक है. इस पर यह फैट और कोलेस्ट्रोल फ्री होता है. इसमें पाया जानेवाला पोटाशियम गर्मी के एहसास को कम करता है. इतना ही नहीं, डॉक्टरों का मानना है कि नारियल पानी अपने आपमें स्लाइन का विकल्प है. हमारे देश में हर जगह चिकित्सा की सुविधा नहीं होती. ऐसे जगहों में हाइड्रेशन के कारण गंभीर रूप से बीमार हुए मरीजों को नारियल पानी पिलाया जाए तो यह शरीर में पानी की कभी को पूरा कर सकता है. यह डायबिटिज के मरीज के लिए लाभदायक है, क्योंकि यह शरीर में शक्कर के स्तर को नियंत्रित करता है.

तरबूज: रस से भरपूर तरबूत अपने आपमें एक ‘होल फूड’ भी है. शरीर में पानी की मात्रा को बनाए रखता है. स्वादिस्ट होने के साथ कई बीमारियों में यह रामवाण माना जाता है. दिल की बीमारी, डायबिटिज को नियंत्रित करता है. इसमें पाए जानेवाले विटामिन ए बी सी और आयरन इम्युन सिस्टम को मजबूती देता है. दिमाग को ठंडक देता है. जाहिर है गर्मी के मौसम में सिर को ठंडा रखेगा. रक्तचाप, कब्ज और खून की कमी को दूर करता है. सेहत के लिहाज में उपयोगी होने के साथ सौंदर्यवर्द्धक भी है यह तरबूज. इसमें पाया जानेवाला लाइकोपिन त्वचा को चमकदार बनाता है. इसके बीज को पीस कर चेहरे पर लगाने से निखार साफ नजर आता है. इसके पल्प को चेहरे पर रगड़ने से ब्लैक हेड निकल जाते हैं. इतनी खूबियों वाले तरबूज का बाजारू जूस पीने से बेहतर है इसे ताजा खाना व पीना.

बेल: पका हो या कच्चा – दोनों हर तरह से बेल फायदेमंद होता है. गर्मी के दिनों में पके बेल का शरबत शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है. गर्मी केदिनों में अक्सर आंव-दस्त की समस्या होती है. तब पेट को ठंडा रखना जरूरी होता है. ऐसे में बेल फायदेमंद होता है. दरअसल यह फल पाचन व पेट संबंधी तमाम मर्ज की रामवाण दवा है. तेज गर्मी के दिनों में बेल का एक ग्लास शरबत लू से बचाता है. लू लग जाए तो इसके पल्प का लेप लू की जलन को भगा कर दवा का काम करता है. गर्मी में आंखे लाल हो जाती है, जलन महसूस होती है। ऐसी शिकायत होने पर बेल के पत्तों के रस का बूंद तुरंत लाभ पहुंचाता है. इसके रेशे कब्ज क शिकायत को दूर करते हैं. शक्कर, बेल का पल्प और नींबू मिला कर शरबत मन और शरीर को तरोताजा करता है. इसका मुरब्बा बल प्रदान करता है.

स्ट्रोबेरी: स्वाद में बढि़या होने के साथ गर्मी के दिनों के लिहाज से इसकी सबसे बड़ी खूबी है कि यह शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है, इसीलिए गर्मी के मौसम में उपयोगी है. इसमें विटामिन सी भूरपूर है, सर्दी-खांसी और संक्रमण से बचाव करता है. विटामिन सी त्वचा में कोलाजेन अधिक मात्रा में पैदा करता है, जो त्वचा को झुर्रियों से बचाता है. कुल मिला कर इम्युन सिस्टम के लिहाज से भी यह उपयोगी फल है. आंखों को इस विटामिन की जरूरत होती है, इसीके बल पर यह सूरज की कड़ी रोशनी और अल्ट्रावौएलेट रे से जूझता है. त्वचा को काला पड़ने से भी बचाता है. इसकी कमी से आंखों के लेंस की प्रोटीन नष्ट हो सकती है. चूंकि इसमें एंटीऔक्सीडेंट होता है यह तत्व आंखों के लिए तो अच्छा होता ही है; साथ में इसमें कैंसर से भी लड़ने वाले फ्लेवोनौएड, फोलेट और केंफेरौल भी होते है. फोलेट लाल रक्त कणिका में वृद्धि करता है. इसका पोटैशियम, मैग्निशियम हड्डियों के जोड़ के लिए जरूर पोषक खनिज है.

टमाटर: यह भी शरीर में पानी की जरूरत को पूरा करता है. इसके अलावा टमाटर कैंसररोधी भी है. इसके अलावा इसे खाने के साथ लगाने के भी कई फायदे हैं. इसमें भी पाया जानेवाला लाइकोपेन सूरज की अल्ट्रावायलेट रे से त्वचा की रक्षा करता है. इसे त्वचा पर लगाया जाए तो सन टैनिंग दूर होती है और एक खास तरह की चमक पैदा होती है. इसका एंटीऔक्सिडेंट और विटामिन सी प्राकृतिक रूप से एस्ट्रेजेंट का काम करता है.

Anupamaa: शादी की पहली रस्म में टांग अड़ाएगी बा तो डॉली सुनाएगी खरी-खोटी

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) की कहानी में दिलचस्प मोड़ आ चुका है. शो में अब तक आपने देखा कि बा अनुपमा-अनुज की शादी को रोकने की हर तरह से कोशिश की लेकिन बा की कोशिश नाकामयाब होती दिखाई दे रही है. शो में जल्द ही अनुपमा की शादी का रस्म दिखाया जाएगा. आइए जानते हैं शो के अपकमिंग ट्विस्ट के बारे में.

‘अनुपमा’ में दिखाया जा रहा है कि अनुज लोगों के तोहफे और चिट्ठियां लेकर अनुपमा के पास पहुंच जाता है. लोगों के मिल रहे प्यार को वनराज कचरा बताता है तो वहीं बा भी अनुपमा को नीचा दिखाने की कोशिश करती है.

 

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‘अनुपमा’ के आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुज और अनुपमा लोगों के लेटर पढ़ेंगे. लेटर पढ़कर अनुज और अनुपमा काफी खुश हो जाएंगे तो दूसरी तरफ काव्या भी कुछ लेटर पढ़ेगी. काव्या दावा करेगी कि समाज के लोग अनुज और अनुपमा की शादी से खुश नहीं है. ऐसे में अनुपमा काव्या को करारा जवाब देगी.

 

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शो में जल्द ही अनुज और अनुपमा की शादी की रस्म देखने को मिलेगा. वनराज की बहन डॉली भी अनुपमा की शादी में शामिल होने के लिए शाह हाउस पहुंच जाएगी. तो दूसरी तरफ अनुज और अनुपमा जमकर रोमांस करते नजर आएंगे.

 

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शो में आप देखेंगे कि अनुपमा की शादी की पहली रस्म के लिए चार औरतों की जरूरत होगी. बा कहेगी कि घर में केवल 4 औरतें ही हैं. बा ये भी कहेगी कि अनुपमा की शादी शुरू होने से पहले ही अपशगुन हो रहा है. बा की बातें सुनकर डॉली भड़क जाएगी. डॉली बा को परिवार के सामने जमकर खरीखोटी सुनाएगी.

शो में ये भी दिखाया जाएगा कि अनुज ये शादी शाह हाउस में नहीं होने देगा. कपाड़िया हाउस में अनुज और अनुपमा की शादी की रस्में पूरी की जाएगी.

अनुपमा नमस्ते अमेरिका: वनराज की बोलती बंद करेगी मोटी बा, देखें Video

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) का प्रीक्वल ‘अनुपमा नमस्ते अमेरिका’ (Anupamaa Namaste America) ओटीटी प्लेटफॉर्म हॉट स्टार पर 25 अप्रैल से ऑनएयर किया जाएगा. दर्शकों को ‘अनुपमा’ का प्रीक्वल का बेसब्री से इंतजार है. इसी बीच ‘अनुपमा नमस्ते अमेरिका’ का प्रोमो मेकर्स ने सोशल मीडिया पर शेयर किया है. आइए बताते है इस प्रोमो के बारे में.

इस प्रोमो में आप देख सकते हैं कि अनुपमा और वनराज का लुक रिविल कर दिया गया है. प्रोमो में महिलाएं ‘अनुपमा’ को अमेरिका जाने को लेकर तरह-तरह बात करती दिख रही है. एक महिला कहती नजर आ रही है कि अनुपमा अमेरिका चली जाएगी तो बच्चों को कौन संभालेगा.

 

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ऐसे में मोटी बा रिएक्ट करती है, कहती है कि मां के साथ-साथ बाप को भी बच्चों को देखने की जिम्मेदारी होती है. वह आगे कहती है कि अनुपमा के साथ साथ वनराज की भी कुछ जिम्मेदारियां है. अनुपमा के प्रीक्वल में सरिता जोशी का मोटी बा का किरदार निभा रही है.  ‘अनुपमा नमस्ते अमेरिका’ के प्रोमो ने आते ही सोशल मीडिया पर हंगामा मचा दिया है.

 

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‘अनुपमा नमस्ते अमेरिका’ में 17 साल पहले की कहानी दिखाई जाएगी. रूपाली गांगुली सुधांशु पांडे इन दिनों अनुपमा के साथ-साथ इस शो की शूटिंग में भी व्यस्त हैं. पिछले कुछ समय से दर्शक यह बात सुनते आ रहे हैं कि आखिर 17 साल पहले अनुपमा की जिंदगी में क्या हुआ था?

 

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इस प्रोमो के अनुसार, औरतें इस बात को लेकर परेशान हैं कि अगर अनुपमा अमेरिका चली जाएगी तो बच्चों को कौन संभालेगा? प्रोमो में अनुपमा और वनराज शाह का यंगर लुक देखते ही बन रहा है और फैन्स इस प्रोमो को खूब पसंद कर रहे हैं.

 

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इस प्रोमो पर एक यूजर ने कॉमेंट किया है, ‘बस अब और इंतजार नहीं हो रहा है’ तो वहीं एक दूसरे यूजर ने लिखा, ‘प्रोमो देखकर समझ आ चुका है कि बहुत मजा आने वाला है.’

टेररिस्ट से मुकाबले को तैयार होगी अब यूपी की महिला होमगार्ड्स

यूपी की महिला होमगार्ड्स अब अपनी हिम्मत और हौसले से दुश्मन को पस्त करेंगी. किसी भी परिस्थितियों से निपटने के लिए हमेशा तैयार रहेंगी. वीआईपी की आतंकियों से सुरक्षा की जिम्मेदारी और प्रमुख स्थलों की सुरक्षा भी संभालती नजर आएंगी.

प्रदेश सरकार बहुत जल्द महिला होमगार्ड्स को एंटी-टेरेरिस्ट (आंतकवाद रोधी) मॉड्यूल का प्रशिक्षण देने जा रही है. होमगार्ड विभाग को अन्य सुरक्षा बलों की तरह सशक्त बनाने की तैयारी कर रही है. सरकार ने प्रशिक्षण लेने वाले होमगार्ड्स को ड्यूटी भत्ता देने का भी बड़ा फैसला लिया है. इसके लिए विभाग के अधिकारियों को 100 दिन में प्रस्ताव बनाकर भेजने का लक्ष्य सौंपा है.

योगी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में होमगार्ड्स विभाग का कायाकल्प करने के लिए संकल्पित है. 20 प्रतिशत पदों पर महिलाओं की भर्ती के साथ ही उनके प्रशिक्षण में एंटी-टेरेरिस्ट मॉड्यूल के साथ-साथ अन आर्म्ड कम्बैट और पीएसओ ड्यूटी के मॉड्यूल को शामिल करने जा रही है. शहरी और ग्रामीण पुरुष और महिला होमगार्ड्स की प्रशिक्षण अवधि में भिन्नता को खत्म करके उसको 90 दिन किया जाएगा.

इन 90 दिनों में नए माड्यूलों को शामिल कर होमगार्ड्स की दक्षता एवं कार्यकुशलता को बढ़ाने में मदद मिलेगी. इससे शांति एवं कानून व्यवस्था तो सुदृढ़ होगी ही साथ में ड्यूटी पर नागरिकों को महिला होमगार्ड्स बेहतर सेवायें उपलब्ध करा पायेगी. सरकार ने विभागीय अधिकारियों से प्रशिक्षणरत होमगार्ड्स को ड्यूटी पर मानते हुए प्रशिक्षण भत्ते के स्थान पर ड्यूटी भत्ता देने की योजना भी बना ली है. बता दें कि यह पहला मौका है जब किसी सरकार ने होमगार्ड्स विभाग को आगे बढ़ाने के तेजी से प्रयास शुरू किये हैं. महिला और पुरुष होमगार्ड्स को भी आधुनिक प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की जा रही है.

‘सीवर पॉइंट’ को उत्तर प्रदेश सरकार ने बना दिया ‘सेल्फी पॉइंट’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा शुरू किए गए नमामि गंगे का अभियान आजादी के बाद भारत की नदी संस्कृति को पुनर्जीवित करने की महत्वपूर्ण योजना बनी. ये बातें रविवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक कार्यक्रम में कहीं. गंगा यात्रा कार्यक्रम में पहुंचे सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि 25 सौ किलोमीटर के अपने लंबे प्रवाह में पांच राज्य में से यूपी में यमुना और गंगा मां का सबसे ज्यादा आशीर्वाद है. मां गंगा से जुड़ी योजनाएं पहले भी बनती थी 1986 में गंगा एक्शन प्लान कार्य शुरू भी हुआ. केंद्र व राज्य सरकारों को मिलकर इस योजना से जुड़कर कार्य करना था इस एक्शन प्लान में बिहार, बंगाल उत्तर प्रदेश तीन राज्य थे. लेकिन नमामि गंगे योजना के पहले हमने जब गंगा नदी का मूल्यांकन किया तो पता चला की गंगा सर्वाधिक प्रदूषित है.

उन्होंने कहा कि मुझे इस बात की खुशी है कि नमामि गंगे का ये अभियान यूपी में सफल हुआ. उत्तर प्रदेश के कानपुर में गंगा की स्थिति पीड़ादायक थी. इसके जल में जीव नष्ट हो जाते थे. लगातार 100 साल से सीसामऊ से रोज 14 करोड़ लीटर सीवर इसमें गिरता था.  लेकिन हमारी सरकार ने इस सीवर पॉइंट को सेल्फी पॉइंट में बदला. आज एक बूंद भी सीवर गंगा में नहीं गिरता है और जल के साथ जीव भी यहां सुरक्षित हैं. प्रयागराज के 2019 में आयोजित हुए कुंभ की सफलता की कहानी भी स्वच्छता और अविरल निर्मल गंगा की गाथा को कहती है. हमारी सरकार ने न सिर्फ गंगा मां पर बल्कि उसकी सहायक 10 नदियों पर भी अपना ध्यान केंद्रित किया. प्रयागराज के कुंभ में करोड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लिया और गंगा के निर्मल अविरल से आचमन भी किया. उन्होंने कहा कि कोई भी योजना तब सफल होती है जब सरकार के साथ समाज भी उसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लेता है. और इस योजना की सफलता भी हमें तभी मिली जब समाज ने हमारा साथ दिया.

गंगाजल आचमन और पूजा करने योग्य-सीएम

काशी में गंगा निर्मल दिखती है आज गंगाजल आचमन और पूजा करने योग्य हो गया है. यहां डॉल्फिन भी दिखाई देती है. राज्य सरकार ने केंद्र सरकार की योजना को ध्यान में रखते हुए नदियों में कचरे के प्रवाह को रोकने का कार्य किया. जिसमें से अब तक 46 में से 25 का काम पूरा हो चुका है, 19 में काम चल रहा है और दो कार्य प्रगति पर है. आज हमारी सरकार इस योजना को आगे बढ़ा रही है. शवदाह गृह को आधुनिक किया जा रहा है. तकनीक को अपनाकर निर्मल गंगा को बनाने का काम किया जा रहा है. मुझे लगता है कोई भारतीय ऐसा नहीं होगा जो गांव का नाम लेकर आचमन न करता हो. आज सरकार के साथ समाज को भी एकजुट होकर काम करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि सिर्फ गंगा ही नहीं गंगा के साथ उसकी 10 सहयोगी नदियों को भी ध्यान में रखकर अपना योगदान देना चाहिए. उन्होंने कहा कि हम सबको नदियों में कूड़ा कचरा डालने से बचना होगा आज नमामि गंगे की सफलता के पीछे लोगों का बहुत बड़ा सहयोग रहा है. हमारी सरकार लगातार इन नदियों के उत्थान पर कार्य कर रही है. जो ड्रेनेज व सीवर के लिए अलग से व्यवस्था की जा रही है. साल 2019 में गंगा परिषद बैठक में हमने गंगा यात्रा निकाली, जो बिजनौर से कानपुर और कानपुर से बिजनौर तक निकली.

जनपद और राज्य स्तर पर किया गंगा समिति का गठन-सीएम

गंगा के उत्थान के साथ हम प्राकृतिक खेती और किसानों की मदद कर रहे हैं. आज गंगा के दोनों तटों पर बागवानी, गंगा नर्सरी, गंगा घाट, गंगा पार्क स्थापित हो चुके हैं. उन्होंने कहा कि सर्वाधिक प्रवाह यूपी में होने के कारण आज हमारी सरकार ने दोनों तटों पर वृक्षारोपण, किसानों को फ्री में पौधा और 3 साल की सब्सिडी देने के कार्यक्रम को तेजी से चल रहे हैं. जिसको हम निरंतर युद्ध स्तर पर बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं. मेरी सभी से अपील है कि समाज गंगा की धारा को निर्मल और अविरल बनाने में आगे आए. हमारी सरकार ने गंगा समिति का गठन जनपद और राज्य स्तर पर किया है जिसके तहत लगातार कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है.

नारी अब भी तेरी वही कहानी: भयानक हादसे की शिकार हुई शैली

एक भयानक हादसे ने शैली के जीवन में ऐसा जख्म दिया कि वह ताउम्र एक  झूठ ले कर चलती रही. लेकिन उस ने अपनी बेटी के नाम खत में न सिर्फ खुद के मां होने का दर्द बयान किया था बल्कि पुरुष की उन शेखियों पर चोट पहुंचाई थी जो वह नारी की स्वतंत्रता के नाम पर बघारता है.

बहुमत की जंजीर में जनहित

अगर किसी देश की जनता सुखी नहीं है, भयग्रस्त है, घुटघुट कर जीने के लिए मजबूर है, उसे अपनी मरजी से पहननेओढ़ने, आनेजाने, बोलने और खाने की आजादी नहीं है तो ऐसे नागरिकों से भरा देश भले विश्व के अन्य देशों के मुकाबले मजबूत और विकसित दिखता हो परंतु वह भीतर से बिलकुल खोखला होगा. ऐसा देश एक दुखी देश ही कहलाएगा जहां जनता दबाव और प्रताड़ना की शिकार होगी, मगर उसे अपनी तकलीफ कहने तक की इजाजत नहीं होगी. सत्ता में बैठे लोग तानाशाह की तरह व्यवहार करेंगे, जनता से उन्हें कोई सरोकार नहीं होगा और दुनिया के सामने वे खुद को सब से ताकतवर दिखाने में मशगूल रहेंगे.

राष्ट्रहित के नाम पर ऐसे तानाशाह जो फैसले लेते हैं, उन से उन के देश की जनता का कोई हित नहीं जुड़ा होता है. अकसर बहुमत उन के साथ दिखता है या वे ऐसा दिखाते हैं और बहुमत की दुहाई दे कर यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि वे जो कर रहे हैं उस में जनता का हित समाहित है और जनता उस फैसले की समर्थक एवं सहयोगी है. जबकि बहुमत दबाव डाल कर, डर दिखा कर, लालच दिखा कर या ?ाठे वादे कर के हासिल किया जाता है.

दरअसल राष्ट्रहित, जनहित और बहुमत तीनों बिलकुल भिन्न बातें हैं. दुनिया में ऐसे कई देश हैं जहां बहुमत सत्ता के पक्ष में दिखने के बावजूद राष्ट्रहित और जनहित के मुद्दों पर सवाल उठ रहे हैं. जहां जनता सत्ता के फैसलों से आक्रोशित है, लेकिन फिर भी बहुमत सत्ता के साथ दिखता है और इस की बिना पर लिया गया फैसला राष्ट्रहित में लिया गया फैसला करार दे दिया जाता है. तीनों चीजों को गड्डमड्ड कर के एक तानाशाह बड़ी चालाकी से अपना लक्ष्य साध लेता था.

अहम सवाल यह है कि एक शासक के लिए राष्ट्रहित, जनहित और बहुमत तीनों में क्या सब से ज्यादा जरूरी है? राष्ट्रहित में उठाए गए कदमों से अगर जनता को तकलीफ हो रही है तो ऐसे राष्ट्रहित के क्या माने हैं? बहुमत सत्ता के साथ होने पर भी यदि जनता तकलीफ में है तो ऐसा बहुमत किस काम का है? जब तक शासक द्वारा जनता का कल्याण न हो तब तक राष्ट्र का कल्याण नहीं हो सकता. कोई भी राष्ट्र जनहित के बगैर मजबूत नहीं हो सकता. जनता की खुशहाली और जनता की तकलीफों का निराकरण ही जन को देश से जोड़ता है. इसी से राष्ट्रहित सधता है और इसी से सच्चा बहुमत हासिल होता है.

कुछ देशों की बात करते हैं. हाल ही में अफगानिस्तान पर तालिबान ने कब्जा कर वहां अपना शासन शुरू किया. तालिबान के आने से पहले अफगानिस्तान भले एक कमजोर देश था मगर वहां जनता खुशहाल थी. वह धीमी गति से विकास के पथ पर अग्रसर था. औरतें बिना दबाव के बाहर निकल कर काम कर रही थीं. बच्चियां शिक्षा पा रही थीं. वहां उन के लिए अच्छे शिक्षा संस्थान थे. लोग मनचाहा रोजगार कर पा रहे थे. उन पर कोई ड्रैस कोड लागू नहीं था. औरतों पर हिजाब की पाबंदी नहीं थी.

वे आजाद थीं. खुल कर सांस ले रही थीं. खेलकूद में हिस्सा ले रही थीं, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेलों में भाग लेती थीं. अपनी क्षमताओं का भरपूर प्रदर्शन कर गौरव प्राप्त करती थीं, सुख और सुकून महसूस करती थीं. अनेकानेक औरतें उच्च शिक्षा प्राप्त कर डाक्टरइंजीनियर बन रही थीं. अनेकानेक औरतें शासनप्रशासन में अच्छे पदों पर कार्यरत थीं. मगर तालिबानी हुकूमत ने उन से यह सारा सुख छीन लिया, धर्म के नाम पर उन की आजादी छीन ली और उन्हें घररूपी पिंजरे में कैद कर दिया. कई सख्त पाबंदियां अफगान मर्दों पर भी लागू हुईं.

अब वहां आदमी कामधंधा छोड़ कर 5 वक्त की नमाज के लिए मसजिद की दौड़ लगा रहा है. पैंटशर्ट या सूटटाई की जगह अजीब ढीले कुरते और उटंगे पायजामे पहन रहा है. बड़ेबड़े ओहदों पर रह चुके उच्च शिक्षा प्राप्त पुरुष इन लिबासों में अजीब नमूना लगने लगे हैं. बहुतेरे ऐसे हैं जो सत्ता के दबाव में कंधे पर हथियार टांगने को मजबूर हैं.

मर्दों को सख्त आदेश है कि अपनी औरतों को घर में रखें. बेटियों की पढ़ाई छुड़ा दें. न चाहते हुए भी वे मारे डर के ऐसा कर रहे हैं. औरतों पर काले बुर्के डाल दिए गए हैं. उन की शिक्षा में व्यवधान आ गया है. उन की नौकरियां खत्म कर दी गई हैं. उन के ओहदे छीन लिए गए हैं. आगे आने वाले सालों में वहां की औरतें डाक्टरइंजीनियर नहीं बनेंगी, सिर्फ बच्चा पैदा करने वाली मशीन होंगी.

आज दुनिया को अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि शरीयत का पालन कर के उन के मुल्क में अमन शांति कायम हो चुकी है. बहुमत उन के साथ है और राष्ट्रहित में वे सख्त से सख्त कदम उठाने के लिए तैयार हैं. उन का राष्ट्र इतना मजबूत और ताकतवर है कि वे अपने धर्म की रक्षा के लिए दुनिया के किसी भी मुल्क से युद्ध को तैयार हैं. मगर क्या अफगानिस्तान में जनता खुश है? औरतें और बच्चे खुश हैं? क्या तरक्कीपसंद लोग, आधुनिकता और विज्ञान की तरफ बढ़ते लोग धर्म के फंदे में फंस कर खुश हैं? क्या जनता खुद को आजाद महसूस कर रही है? क्या अफगानिस्तान में अब जनहित के काम हो रहे हैं? ऐसे तमाम सवाल हैं जिन का जवाब न में ही मिलेगा.

तालिबान के सत्ता में आते ही लाखों की संख्या में अफगान नागरिक अपना घरबार, जमीनजायदाद छोड़ कर भाग खड़े हुए. आज लाखों अफगानी अन्य देशों में शरणार्थी बन कर रह रहे हैं. जो अफगानिस्तान में रह गए उन में निराशा और हताशा बढ़ती जा रही है, खासतौर से महिलाओं में, क्योंकि वे अपनी मरजी से कुछ कर ही नहीं सकती हैं. उन के लिए वहां की सरकार कुछ सोच भी नहीं रही है. जनहित के सारे काज ठप हैं और राष्ट्रहित के नाम पर तालिबानी युद्ध के लिए तैयार दिखते हैं.

राष्ट्रहित को तमाम देश सर्वोपरि मानते हैं. इस के लिए वे युद्ध करने को भी तैयार रहते हैं. राजनीतिक पार्टियां बहुमत के बल पर सरकार बना लेती हैं, लेकिन क्या इस से जनहित भी सधता है? शायद नहीं.

राष्ट्रहित की दुहाई दे कर यूक्रेन पर बमबारी करने वाला रूस आज अपनी ही जनता के आक्रोश व विरोध का सामना कर रहा है. रूसी जनता में अपने शासक के खिलाफ रोष बढ़ता जा रहा है. वे जानते हैं कि राष्ट्रहित के नाम पर पुतिन ने रूस और यूक्रेन दोनों देशों के सैनिकों और आम जनता को जबरन बारूद में ?ांक दिया है. दोनों ओर जनता के जानमाल का नुकसान हो रहा है. फिर युद्ध में होने वाले खर्च का पूरा भार आने वाले समय में जनता पर होगा, कर बढ़ेंगे, तरक्की बाधित होगी, जनहित के कार्य पिछड़ जाएंगे. मगर सत्ता द्वारा, बस, खोखले राष्ट्रहित का ढोल पीटा जाएगा.

चीन की तानाशाही तो सर्वविदित है. चीन एक शक्तिशाली देश है मगर अपनी जनता पर अत्याचार कर रहा है. कम्युनिस्टों द्वारा शासित चीन में लोगों का रहना मुहाल होता जा रहा है, खासतौर पर उइगर मुसलमानों का, जिन्हें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के आदेशों से जेलनुमा जगहों पर रख कर उन पर तमाम पाबंदियां लगा दी गई हैं. उन के धार्मिक रीतिरिवाजों पर सरकार का पहरा है. चीन की सरकार ने अपने हजारों मुसलिम नागरिकों को हिंसा के बलबूते जबरन उन के परिवार से दूर डिटैंशन कैंपों में भेज दिया है, जहां उन्हें इसलाम का त्याग करने के लिए मजबूर किया जाता है और चीन की सत्तारूढ़ पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति वफादार रहने की प्रतिज्ञा दिलाई जाती है.

एक समुदाय विशेष को टारगेट करने के लिए बनाए गए सामूहिक हिरासत केंद्र, सांस्कृतिक और धार्मिक क्रियाकलापों को रोकने और उन पर कड़ी निगरानी की रिपोर्ट्स को ले कर दुनियाभर में चिंता जताई जा रही है. मगर चीन इसे राष्ट्रहित में किए जाने वाले कार्य कहता है. आखिर अपनी ही जनता के हितों पर कुठाराघात कर के चीन किस तरह का राष्ट्रहित साध रहा है?

ऐसा ही कुछ भारत में भी देखने को मिलता है. आप यह जानकार चौंक जाएंगे कि पिछले लगभग एक दशक से भारत सरकार राष्ट्रहित के नाम पर अपने ही नागरिकों के हितों की कितनी अनदेखी कर रही है. एनएसएसओ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत अब उच्चतम बेरोजगारी दर से पीडि़त है. वर्ल्ड हैल्थ और्गेनाइजेशन के मुताबिक, दुनिया के सभी शीर्ष 10 सब से प्रदूषित शहर अब भारत में हैं.

भारत सरकार दावा करती है कि वह विश्वगुरु बनने की राह पर है मगर भारत की जनता भुखमरी से नहीं उबर पा रही है. भारत में आज 80 वर्षों में सब से अधिक आय असमानता है. भारत विश्व का दूसरा सब से असमान देश है. थौमस रौयटर्स का सर्वे कहता है कि भारत महिलाओं के लिए दुनिया का सब से खराब देश बन चुका है. भारत सरकार द्वारा जनहित का नाम दे कर जबरन थोपे गए कानूनों के खिलाफ देशभर का किसान डेढ़ साल घरबार छोड़ कर सड़कों पर खुले आसमान के नीचे आंदोलनरत रहा, 700 से ज्यादा किसान मर गए, मगर मोदी सरकार कहती है हम राष्ट्र प्रथम की नीति का पालन करते हैं. आखिर वे किस राष्ट्र की बात कर रहे हैं?

इस बार भारतीय किसानों को पिछले 18 वर्षों में सब से खराब कीमत का सामना करना पड़ा है. मोदी सरकार में अब तक की सब से ज्यादा गाय से जुड़ी हिंसा और रिकौर्ड मौबलिंचिंग की घटनाएं हुई हैं. भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों को प्रैस कौन्फ्रैंस कर के कहना पड़ा कि लोकतंत्र खतरे में है और हमें काम नहीं करने दिया जा रहा है. असहिष्णुता और धार्मिक अतिवाद भारत में अपनी चरम पर हैं. सरकार की आलोचना करने वालों को देशद्रोही का लेबल लगा कर जेल भेज दिया जाता है. चुनाव के वक्त तमाम जांच एजेंसियों और पुलिस एजेंसियों को सत्ताधारियों द्वारा अपनी उंगलियों पर कठपुतली की तरह नचाया जाता है और विरोधी पार्टियों के नेताओं को जेल में ठूंस दिया जाता है. धार्मिक उन्माद और ध्रुवीकरण के जरिए मासूम जनता में डर कायम किया जाता है.

भारत जैसे महादेश में जहां की अधिकांश आबादी को दो जून रोटी के लिए हाड़तोड़ मेहनत से फुरसत नहीं है, वह राजनेता और राजनीति की गूढ़ बातों से लगभग अनभिज्ञ होती है. उसे थोड़ा सा लालच दे कर, थोड़ा सा डर दिखा कर, थोड़े से सपने दिखा कर जिधर हांको वह उधर चल पड़ती है.

चुनाव में उतरने वाले ताकतवर नेता सब से पहले अपने चुनाव क्षेत्र में आने वाले सभी गांवों के प्रधानों को अपनी पावर और पैसे से साधते हैं. फिर प्रधान गांव वालों से जहां वोट डालने को कहता है, पूरा गांव उस नेता के पक्ष में वोट डाल आता है. बदले में 500 रुपए का एक नोट या एक साड़ी या एक शराब की बोतल पा कर वह निहाल हो जाता है. यानी भारत में आम आदमी शासक नहीं चुनता, उस से शासक के चुनाव पर मोहर लगवाई जाती है, कभी बंदूक से तो कभी बैलेट से.

सवाल यह है कि चुनाव के वक्त बहुसंख्यकों को धर्म की घुट्टी पिला कर और अल्पसंख्यकों को डरा कर अगर बहुमत हासिल कर भी लिया तो जनहित और राष्ट्रहित में क्या इजाफा हुआ? जनता तो त्राहित्राहि कर रही है. भूख, गरीबी, बेरोजगारी, कर्ज उस का पीछा नहीं छोड़ रहे हैं. उस के जीवन में असंतोष और दुख भरा पड़ा है. ऐसे टूटेफूटे, घायल और दर्द से कराहते लोगों से भरे देश में तानाशाही प्रवृत्ति के नेता जब राष्ट्रहित और राष्ट्र प्रथम की बातें बोलते हैं तो आलोचना के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं.

राष्ट्रहित या राष्ट्रीय हित जैसे शब्द को राजनेताओं और नीतिनिर्माताओं ने हमेशा अपने लिए उपयुक्त तरीकों से और अपने राज्यों के कार्यों को सही ठहराने के अपने उद्देश्य के लिए उपयोग किया है.

हिटलर ने ‘जरमन राष्ट्रीय हितों’ के नाम पर विस्तारवादी नीतियों को सही ठहराया. अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने हमेशा ‘अमेरिकी राष्ट्रीय हित’ के हित में अधिक से अधिक विनाशकारी हथियारों के विकास के लिए अपने निर्णयों को उचित ठहराया है. डिएगो गार्सिया में एक मजबूत परमाणु आधार बनाने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका ने तत्कालीन यूएसएसआर द्वारा पेश की गई चुनौती को पूरा करने के साथसाथ हिंद महासागर में अमेरिकी हितों की रक्षा के नाम पर उचित ठहराया था.

1979-89 के दौरान तत्कालीन यूएसएसआर ने ‘सोवियत संघ राष्ट्रीय हितों’ के नाम पर अफगानिस्तान में अपने हस्तक्षेप को उचित ठहराया. वहीं, चीन के राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करने के प्रयासों के नाम पर चीन ने भारत और सोवियत संघ के साथ अपने सीमा विवादों को सही ठहराया.

सच तो यह है कि जनहित के बगैर किसी भी राष्ट्र का हित हो ही नहीं सकता है. जन के मजबूत होने से ही राष्ट्र मजबूत होता है. जन के सुखी और संपन्न होने से ही राष्ट्र सुखी और संपन्न होता है.

जो सरकार अपनी जनता के हितों के लिए कार्य करती है, उसे बहुमत जुटाने के लिए ?ाठ का सहारा नहीं लेना पड़ता है. बहुमत स्वयं उस के साथ चलता है. जनहित के उस के कार्य राष्ट्रहित को स्वयं साध लेते हैं. जनता की ताकत

ही किसी राष्ट्र की सच्ची ताकत है. इसलिए जनहित सर्वोपरि है. नेताओं को सम?ाना चाहिए कि जब जन प्रथम होगा, तभी राष्ट्र प्रथम होगा.   द्य

अलग-थलग पड़ता रूस

पश्चिमी देशों ने अमेरिका के नेतृत्व में एक बार फिर जता दिया है कि वे चाहें तो अपने आर्थिक बल पर ही किसी भी शक्ति नहीं, महाशक्ति को भी बहुत अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं. रूस ने सोचा था कि यूक्रेन में उस की सैर कुछ टैंकों से पूरी हो जाएगी और वहां सत्ता परिवर्तन कर के वह अपना कम्युनिस्ट दिनों का रोबदाब फिर साबित कर सकेगा. यह सैर उस पर भारी पड़ रही है. चीन का अपरोक्ष साथ होने के बावजूद यूक्रेन की जनता का विद्रोह और पश्चिमी उन्नत देशों का एकजुटता से रूस का बहिष्कार कर देना राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का एक ऐसा कांटोंभरा ‘उपहार’ रूसी जनता को मिला है जिस का असर दशकों तक रहेगा.

अमेरिका व कई पश्चिमी देश रूस के फैलते पंजों से परेशान थे पर वे अकेले कुछ नहीं कर पाते थे. यूक्रेन के मामले में पुतिन की धौंसबाजी और यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदोमीर जेलेंस्की की हिम्मत ने एक बहुत बड़े देश के छक्के छुड़ा दिए. रूसी सेना को भारी नुकसान हो रहा है, उस की पोल हर रोज खुल रही है और अब सिवा अणुबम के उस के पास कुछ नहीं बचा है.

रूस की आबादी 14 करोड़ है और यूक्रेन की 4 करोड़. रूस के पास 1.70 करोड़ वर्ग किलोमीटर की भूमि है और यूक्रेन के पास सिर्फ 6 लाख वर्ग किलोमीटर. रूस की अर्थव्यवस्था 1.5 ट्रिलियन डौलर की है और यूक्रेन की 350 बिलियन डौलर की. यूक्रेन की सेना 2 लाख सैनिकों की है और रूस की 9 लाख की. फिर भी हर रूसी राष्ट्रपति पुतिन के पीछे खड़ा हो, जरूरी नहीं. पर, हर यूक्रेनी अपने राष्ट्रपति जेलेंस्की के पीछे खड़ा है. यूक्रेन से युद्ध के कारण भागे 25 लाख लोगों में ज्यादातर बच्चे, औरतें और बूढ़े हैं. जवान पुरुष ही नहीं, स्त्रियां भी रूसी हमले का जवाब देने के लिए खड़ी हैं. रूस की भारी बमबारी  30 दिनों में यूक्रेन की राजधानी को हिला नहीं पाई और इसीलिए दुनिया की सारी राजधानियां अब यूक्रेन के साथ खड़ी हैं.

चीन जैसा कट्टर तानाशाही देश सिर्फ दबे शब्दों में रूस का समर्थन कर पा रहा है क्योंकि 15 ट्रिलियन डौलर की उस की भी अर्थव्यवस्था उस 75 ट्रिलियन डौलर की अर्थव्यवस्था के सामने बौनी है जो आज रूस के खिलाफ खड़ी हो गई है.

75 ट्रिलियन वाले देश कितनी आसानी से एक दंभी, तानाशाह, डेढ़ पसली की डेढ़ ट्रिलियन डौलर वाले देश को हाशिए पर खड़ा कर सकते हैं, यह दिखने लगा है. अमेरिका के पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो पुतिन भक्त थे, अब अपना स्वर बदल रहे हैं और वहां की रिपब्लिकन पार्टी को भी राष्ट्रपति जो बाइडन का साथ देना पड़ रहा है. कुछ यूरोपीय देश अभी भी कुछ सामान रूस से खरीद रहे हैं पर धीरेधीरे सब दूरदर्शी सोच में रूस को कंगाल बनाने में जुट गए हैं. रूसी अमीरों का जो पैसा पश्चिमी देशों ने जब्त किया है वह शायद यूक्रेन के पुनर्निर्माण में लग जाए क्योंकि यह अब लगने लगा है कि रूस को तहसनहस हुए यूक्रेन से अभी या कुछ समय बाद लौटना ही होगा.

यूक्रेन ने साबित कर दिया है कि पश्चिमी देशों की वैयक्तिक स्वतंत्रताएं, लोकतंत्र, लगातार वैज्ञानिक उन्नति आदि रूसी और्थोडौक्स चर्च पर कहीं अधिक भारी हैं जिस के इशारे पर भक्त राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने विधर्मी यहूदी व्लोदोमीर जेलेंस्की को हटाने की कोशिश की थी. यह बात, हालांकि, चर्चा में कम ही आई है लेकिन हकीकत यही है और इस युद्ध के बीज भी धर्म ने ही बोए हैं.

नारी अब भी तेरी वही कहानी: भाग 1

राइटर- रमेश चंद्र सिंह

‘‘मां, मैं पापा के बारे में कभी न पूछूंगी. मैं तुम्हारे पुराने जख्मों को कभी न कुरेदूंगी,’’ अचानक मेरे मुंह से निकला था.

उस दिन मैं फूटफूट कर रोई थी.  मदन ने पूछा था, ‘पीहर की याद अब भी आ रही है क्या. शायद मेरे प्यार में कुछ कमी रह गई है?’ अब मैं उसे कैसे बताऊं कि आज मैं कितनी खुश हूं. ये आंसू मांबाबूजी से बिछुड़ने के नहीं, बल्कि खुशी के हैं जो मां को पा कर पूरे वेग से छलक पड़े हैं. हां, मां को, जिसे अब तक मैं मां सम झ रही थी वह मेरी मौसी थी. असली मां तो वह है जिसे मैं मौसी सम झ रही थी.

मेरी शादी हुए एक हफ्ता गुजर गया था. मदन ने मु झे इतना प्यार दिया कि मैं मायके की याद भूल गई. सासुमां ने मु झे मां जैसा स्नेह दिया. ननद और देवर ने मु झे कभी अकेले न छोड़ा. हर वक्त साया बन कर साथ लगे रहे. ननद हर वक्त मेरे नाश्ते, खाने का ध्यान रखती. देवरजी हमेशा कोई न कोई चुटकुला सुना कर हंसाते. ऐसी ससुराल पा कर मैं निहाल हो गई थी.

मैं ने कहा, ‘‘नहीं मदन, तुम्हारे प्यार में कोई कमी नहीं.’’

‘‘कोई बात नहीं, यह नैचुरल है. जिन परिजनों के बीच 25 वर्ष गुजारे हों उन की याद तो आएगी ही.’’

फिर मदन अपने किसी दोस्त से मिलने चला गया था. मैं ने उसे कुछ बताया भी नहीं. मां ने मना किया था. पत्र के अंत में लिखा था, ‘बेटी, यह राज, राज ही रहने देना. राज जिस दिन खुलेगा, तुम्हारी मां का दांपत्य जीवन बरबाद हो जाएगा.’

शादी के बाद जब मैं विदा हो रही थी तो मौसी ने एक पैकेट थमाया था, याचनाभरी निगाहों से बोली थीं, ‘बेटी, इसे एक हफ्ते बाद खोलना.’ उस समय मैं इस याचना के पीछे छिपे राज को न सम झ पाई थी.

आज जब मैं ने एकांत पा कर पैकेट खोला तो रत्नजडि़त कंगन के साथ एक पत्र था. पत्र में लिखा था, ‘बेटी, एक राज है जिसे अपने सीने में दबाए मैं पिछले 25 वर्षों से ढो रही हूं. अब न बताऊं तो तुम्हारे साथ अन्याय होगा और मैं स्वयं को क्षमा न कर पाऊंगी.

‘दीदी अपने बड़े बेटे बिभू की जन्मतिथि की 5वीं वर्षगांठ धूमधाम से मना रही थीं. दोस्तों के साथ ही रिश्तेदारों को भी बुलाया गया था. मैं भी आई थी.

‘उस समय मैं कालेज में पढ़ती थी. यौवन के मद में चारों ओर घूमती. शोख और निडर इतनी कि कालेज में कोई लड़का बदतमीजी करता तो उसे सबक सिखाने में तनिक भी देर न करती. जब बिभू के जन्मदिन के लिए केक काटने का समय आया तो पता चला कि बर्थडे वाला नाइफ नहीं है. बिभू जिद करने लगा कि उसे बर्थडे के म्यूजिक वाला ही नाइफ चाहिए. घर मेहमानों से भरा था. जीजाजी अपने मांबाप के इकलौते थे. घर में दीदी, जीजाजी और बच्चों के अलावा कोई न था.

‘मैं पहले भी दीदी के यहां आती थी. घर से एक दुकान नजदीक थी. वह देररात तक खुली रहती थी. मैं  झट से उठी और बोली कि मैं अभी ले कर आई. अभी लोग कुछ बोलते, मैं तेजी से बाहर निकल गई.

‘लेकिन बेटी, होनी को तो कुछ और ही होना था. घर और दुकान के बीच एक जगह सुनसान थी. वहां स्ट्रीट लाइट भी नहीं थी. मैं तेजी से बढ़ी जा रही थी कि अचानक किसी ने पीछे से पकड़ कर मेरा मुंह बंद कर दिया. फिर मैं उस के मजबूत बाजुओं से मुक्त होने के लिए बहुत छटपटाई, किंतु छूट न सकी.

‘वह मु झे एक  झोंपड़ी में ले गया जहां पहले से ही एक मनचला मौजूद था. फिर वे 20-25 मिनट तक मु झे नोचतेखसोटते रहे. मैं न चिल्ला पा रही थी न उन के चंगुल से मुक्त हो पा रही थी, क्योंकि उन में से एक ने मेरा मुंह बंद कर रखा था और दूसरे ने मजबूती से मु झे पकड़ रखा था. जब उन के हवस का ज्वार शांत हुआ तो वे मु झे अकेला छोड़ कर भाग गए.

‘अब मैं दुकान कैसे जाती. रोते हुए घर पहुंची. जब मु झे आने में देर होने लगी तो दीदी ने पिछले बर्थडे वाला नाइफ कहीं से खोजा और रस्म पूरी कर दी.

‘उस समय हैप्पी बर्थडे का म्यूजिक तेज आवाज में बज रहा था. दोस्त और रिश्तेदार ‘हैप्पी बर्थडे टू यू’ कह कर बिभु को जन्मदिन की बधाइयां दे रहे थे.

‘दीदी, रास्ते में पेट दर्द होने लगा तो दुकान न जा सकी. बीच रास्ते से ही लौट आई,’ मैं ने बहाना बनाया.

‘दीदी ने कहा, ‘कोई बात नहीं मेरे कमरे में जा कर लेट जा, कुछ देर बाद ठीक हो जाएगा. गैस की शिकायत हो गई होगी. जब न ठीक होगा तो बताना, दवा दे दूंगी.’

‘फिर दीदी मेहमानों की आवभगत में लग गई थीं.

‘बिभू ने कमरे में आ कर उत्साह से केक का एक टुकड़ा मेरे मुंह में डाला. अनिच्छा से केक के टुकड़े को निगलते हुए मैं ने उस से ‘हैप्पी बर्थ टू यू’ कहा.

‘क्या आप की तबीयत खराब है, मौसी?’ उस ने मु झे उदास देख कर पूछा.

‘हां बेटा,’ दर्द से कराहते हुए मैं ने कहा तो वह बोला, ‘मम्मी से दवा देने के लिए कह देता हूं.’ फिर चला गया. दरिंदों ने 20-25 मिनट में ही ऐसा दर्द दे दिया था जो आज तक टीस रहा है और अब इस जीवन में कम न होगा.

‘यह ऐसा घाव था बेटी, जो शरीर से ज्यादा दिल को जख्मी कर गया था.

‘बाहर सभी लोग फंक्शन में मशगूल थे और भीतर कमरे में शारीरिक व भावनात्मक व्यथा से पीडि़त मैं सोच रही थी, अब ऐसी जिंदगी जी कर क्या करूंगी.

‘फिर मेरे मन में विचार आया, रस्सी से फंदा लगा लूं. इधरउधर देखा, पंखा सिर पर लटक रहा था. बगल में दीदी की साड़ी पड़ी थी. कुरसी भी पास ही थी. सोचा, किसी को कुछ न बताऊंगी. एक सुसाइड नोट लिखूंगी ताकि मेरे मरने के बाद पुलिस वाले परिवार के किसी सदस्य को बिना वजह परेशान न करें. कागज के लिए भी कहीं जाना न था. जीजाजी की नोटबुक और पैन वहीं पड़ा था.

‘अभी मैं सुसाइड के बारे में सोच ही रही थी कि अचानक मन में विचार कौंधा, ‘अगर मैं आत्महत्या कर लूंगी तो घर में कुहराम मच जाएगा. दीदी के घर का जश्न मातम में बदल जाएगा. फिर आत्महत्या अपराध भी तो है. आखिर आत्महत्या से मु झे क्या मिलेगा. इस से तो हैवानों का मनोबल और बढ़ेगा. नहीं, मैं आत्महत्या नहीं करूंगी. यह जीवन के प्रति कायर नजरिया होगा. मैं इन हैवानों को सलाखों के पीछे पहुंचवाऊंगी. उन्हें फांसी दिलवाऊंगी.’

‘मेरे अंदर  झं झावातों का तूफान था. फिर न जाने कब आंख लग गई.

‘पेटदर्द कम हुआ, शैली?’ दीदी मु झे  िझं झोड़ रही थीं.

‘अचानक मेरी आंखें खुलीं. मैं कुछ बोलने की जगह दीदी की गोद में सिर रख कर

रोने लगी.

‘क्या बात है, शैली, रो क्यों रही हो. बताती क्यों नहीं. किसी ने तुम से कुछ कहा है क्या?’

‘दीदी अब चिंतित लग रही थीं. मु झे इस तरह अपनी गोद में मुंह छिपाए रोते देख सम झ गई थीं कि मु झे पेटदर्द नहीं है, बल्कि कुछ और समस्या है. मैं ने कोई जवाब नहीं दिया. सिर्फ रोते जा रही थी. इतनी रोई कि उन का आंचल भीग गया.

‘दीदी ने मेरे आंसू अपनी हथेलियों से पोंछते हुए मेरे चेहरे को ऊपर उठाया, बोलीं, ‘नहीं बताओगी तो हम कैसे जान पाएंगे. किसी ने बदतमीजी की है क्या?’

‘रोतेरोते मैं ने दीदी को सबकुछ बता दिया.

‘सुन कर दीदी को जैसे सदमा लगा हो. कुछ क्षण चुप रह कर पूछा, ‘पहचान सकती हो उन्हें?’

‘नहीं, वहां अंधेरा था. दोनों ने अपनाअपना मुंह गमछे से ढका हुआ था.’

‘उधर कुछ बदमाश रहते हैं. किंतु अब इस की चर्चा न करना. लोग जान जाएंगे तो हमारी बदनामी होगी. इस को एक हादसा सम झ कर भूल जाना ही ठीक होगा. पापा तुम्हारी शादी के लिए कुछ लोगों से बात कर रहे हैं. लड़के वाले जानेंगे तो शादी टूट जाएगी. ऐसी लड़की से कोई शादी नहीं करना चाहता जिस का कौमार्य भंग हो गया हो.’

‘किंतु दीदी उन हैवानों को हम ऐसे ही छोड़ दें? इस तरह तो उन की हैवानियत बढ़ती ही जाएगी. आज उन्होंने मेरी इज्जत लूटी है, कल किसी और की लूटेंगे. यह तो ठीक न होगा.

‘दीदी, अभी हम थाने में रिपोर्ट कर दें तो दोनों पकड़े जाएंगे. ये यहींकहीं होंगे. लोकल हैं. पुलिस वाले हो सकता है इस इलाके के गुंडोंबदमाशों को जानते भी हों.’

‘हो सकता है पकड़े जाएं, पर इस से तुम्हें क्या फायदा होगा. अभी तो कोई कुछ नहीं जानता, पर इस के बाद तो सारी दुनिया जान जाएगी. पढ़ाई छोड़ कर तुम्हें पुलिस और कोर्ट के चक्कर लगाने होंगे. मीडिया वाले होहल्ला करेंगे. यह तय है कि तब तुम से कोई शादी न करना चाहेगा. जब तुम नहीं पहचानतीं तो उन की शिनाख्त कैसे करोगी? पुलिस वाले रिश्वत ले कर मामला दबा देंगे. हम नाहक परेशान होंगे सो अलग.’

‘दीदी लगातार तर्क पर तर्क देती चली गई थीं और मेरी आवाज दबती चली गई थी. दीदी ने मु झे कसम दिलाई कि इस राज को राज रहने देने में ही हमारी भलाई है. उन्होंने इस घटना के बारे में किसी को

न बताया. यहां तक कि जीजाजी को

भी नहीं.

‘अब इस जलालत के बाद मैं एक दिन भी दीदी के यहां नहीं रुकना चाहती थी. जीजाजी ने कई बार कुछ दिनों तक रुक जाने को कहा, लेकिन मैं दूसरे दिन ही अपने घर लौट गई.

‘दिन बीते तो धीरेधीरे मैं नौर्मल होने लगी. फिर कालेज जाने लगी, पर अब मेरे अंदर एक बड़ा बदलाव हो गया था. अंदर ही अंदर घुटने लगी.

‘इसी तरह 2 महीने गुजर गए. एकाध बार उलटी की शिकायत हुई, पर ध्यान न दिया.

ऐतिहासिक कहानी: समर्पणा

राइटर- डा. प्रभात त्यागी

आंखें मलमल कर उस ने देखा है तो वही. पर यह कैसे संभव है…?

आश्चर्य, हर्ष व उत्साह से उल्लासित जया के कदमों में मानो पर लग गए. वह राजभवन की घुड़साल, पशुशाला, रसोई, स्नानागार व वाटिकाओं को पार कर ऊपरी मंजिल में स्थित अपनी कोठरी में जा घुसी. दूसरे ही पल एक कपड़े की पुटलिया हाथ में थामे आंध्र देश के वारंगल की जनानी ड्योढी में ‘महाराज रुद्र’ के सम्मुख खड़ी थी.

धोंकनी सी चलती अपनी सांसों को मुश्किल से नियंत्रित कर उस ने कहा, ‘आप इन्हें धारण कर लीजिए. अपने महाराज वीरभद्र शीघ्र पधार रहे हैं.’

उस के नयनों में अनोखी चमक थी. उस के होंठों पर हलकी मुसकराहट अठखेलियां कर रही थी. कपड़े की पुटलिया में रुद्रंबा को अपनी चमचम करती स्वर्णा पाजेब. सोने के ही बिछुए, मंगलसूत्र, रत्नों के कई बहुमूल्य हार, मांग भरने की सिंदूर की सुनहरी डिबिया व रत्नचूर्ण से निर्मित माथे की बिंदी, कंगन आदि अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे. ‘जयलक्ष्मी, तू मेरी दासी नहीं मुंहबोली बहन है, पर क्या ऐसी हंसीठिठोली तेरे लिए उचित है?’ रुद्रंबा का स्वर तीखा था.

‘तू भूल गई क्या कि हम सब ने आज से 3 महीने पहले महाराज वीरभद्र के मृत तन को अग्निचिता में सुला दिया था और उन के अंतिम चिन्हों को कृष्णा की उत्ताल लहरों में बहा कर, उन्हें अश्रुपूर्ण विदा भी दी थी? और तू कह रही है कि वे जीवित आ रहे हैं?’ रुद्रंबा रुंधे गले से बोली.

‘महादेवी, मेरा एक भी बोल झूठा हो तो दीवार पर लटकी इस चाबुक से मेरी गरदन काट कर घूरे में फेंक दीजिए. और लीजिए, इस खिड़की से स्वयं झांक लीजिए कि मैं सत्य से कितनी निकट या दूर हूं,’

रुद्रंबा ने तेजी से उठ कर वातायन से झांका. अपलक वह देखती ही रह गई. सचमुच महाराज वीरभद्र को कांधे पर बैठाए कई व्यक्तियों की भीड़ गोलकुंडा के मुख्य राजभवन के प्रमुख द्वार की ओर उमड़ रह थी. बिलकुल सामने सूर्य की लालिमा सारे जग में सिंदूर बिखेर रही थी. कई पक्षियों के नियमबद्ध झुंडों ने इसी पल आसमान में किलोल करते हुए खुशी का इजहार किया.

रुद्रंबा की दृष्टि सहसा अपने वर्तमान विधवा वेश पर गई. श्वेत परिधान, सूखे केश व रंगहीन मुख को परिवर्तित कर वह थोड़े समय के ही बाद माथे पर मुकुट, राजसी वस्त्रों, अनगिनत गले की माल और चमचमाते बंद, गले के उत्तरीय और रत्नजटित पगरखियों को पहन कर गोलकुंडा की ‘रुद्र महाराज’ के रूप में सिंहासनारूढ़ हो जाएगी.

60 वर्ष तक गोलकुंडा पर राज कर उस के पिता गणपति ने ही उसे अपने उत्तराधिकारी के रूप में राज्य सिंहासन पर बैठाते हुए उसे न केवल सदैव पुरुष वेश धारण करते रहने, अपितु जनता को भी उसे हमेशा ‘रुद्र महाराज’ के रूप में संबोधित करने का आदेश दिया था.

रुद्रंबा उस पल को याद करते हुए अचानक सोचने लगी कि पुरुषों के उस के समाज ने नारी जाति को कितना अपमानित किया है? एक ‘पति’ नामधारी प्राणी से पुट लिया की इन सब वस्तुओं का महत्व है, अन्यथा इन्हें किसी कोने में या कहीं भी रख देने में इन की सार्थकता है. यही नहीं, कहीं तो स्वर्ग सिधारे पति की चिता में ही एक-दो नहीं, बल्कि हजारों उस की रानियों और उपपत्नियों को जीवित बैठा कर भी समाज आनंदित हो जाता है क्या?

‘नहीं जया, मैं इन्हें धारण कर अपने नारीत्व का मखौल नहीं उड़ाऊंगी. एक बात बता यदि मैं इन सब से सज्जित हो कर उन के सामने चली भी गई तो क्या उन्हें यह विश्वास नहीं हो जाएगा कि मैं उन की अनुपस्थिति में भी इसी सधवा वेश में आनंदित रहती थी? तब क्या उन के पुरुषत्व पर ठेस नहीं लगेगी?’

‘मैं अपढ़ आप की ऊंचीऊंची बातें क्या समझूं? मेहरबानी कर आप इन्हें अवश्य धारण करें. आप को मेरी कसम. अन्यथा आप मेरा मरा मुंह देखें, यदि इन्हें आप ने अभी धारण नहीं किया,’ जया कक्ष के एक कोने में मुंह सुजा कर जा बैठी.

‘ओह जया. अपनी कसम दे कर तू ने मुझे किस उलझन में डाल दिया. चल, तेरी खुशी के लिए मैं इन्हें धारण कर लेती हूं- अपनी बहन के लिए मैं हृदय पर पत्थर रख कर फिर से सधवा बन जाती हूं. जा, जा कर स्वागत की भाली सजा…

वैसे, तू सुन ले. ‘रुद्र महाराज’ राज्य की संप्रभु हैं. उन का स्थान सर्वोच्च है. साधारण कानून उस पर लागू नहीं हो सकते. हां, सधवा रुद्र राजमहल से बाहर तो जाएगी नहीं.

प्रमुदित जया दौड़ पड़ी. उस ने अपने हाथों में तुरतफुरत रुद्रंबा का सिंगार किया और उन्हें पुटलिया की वस्तुओं के अतिरिक्त भी कई सिंगारिक उपकरणों से विभूषित कर दिया.

एकांत में रुद्रंबा ने पति से प्रश्न किया कि आखिर वे 3 महीने कहां रहे? वे क्यों गायब हो गए थे?

वीरभद्र ने उसे बताया कि एक राजसी अश्व पर आरूढ़ वह वारंगल के जंगलों में शिकार के लिए निकला था. शिकार कोई नहीं मिला. लौटते हुए निद्रित अवस्था में उस का अश्व गोलकुंडा से निकल कर उत्तरपश्चिम दिशा में देर्वागति की सीमा में पहुंच गया, यह उसे ज्ञात नहीं हुआ. अचानक उसे कई सैनिकों ने घेर लिया. उसे बंदी बना कर देवगिरि के शासक सिंघणा के सम्मुख ले जाया गया. सीमोल्लंघन के अपराध में उसे 3 महीने तक बंदीगृह में काटने पड़े.

पर, तुम सावधान हो जाओ, क्योंकि वहां मुझ से कोई परिचित तो था नहीं. अत: मैं ने जब अपनेआप को गोलकुंडा राजमहल का एक सेवक घोषित किया, तो जानती हो सिंघणा ने मुझ से क्या कहा? उस ने भरे दरबार में मुझे धमकी दी कि बहुत शीघ्र वह एक कमजोर नारी द्वारा संचालित गोलकुंडा पर आक्रमण कर, उसे देवगिरि का एक अंग बना लेगा.

वीरभद्र ने मानो सोते हुए सांप पर पैर रख दिया. रुद्रंबा फुफकार कर बोली, ‘आने दो सिंघणा को यहां. उसे ज्ञात हो जाएगा कि पिछले वर्षों में मैं ने यहां राज किया है, कोरा अभिनय नहीं. युद्धस्थल में मैं ने मदुरा के शासकों व उड़ीसा के गंगों को जैसे शिकस्त दी थी, सिंघणा भी मेरे हाथों, एक नारी द्वारा बुरी तरह परास्त ही होगा.’

रुद्रंबा का मस्तिष्क वीरभद्र से बात करते हुए भी पूरी तरह यह मंथ रहा था कि आखिर गोलकुंडा में वीरभद्र के स्थान पर किस की अन्येष्टि की गई. दोष किस का रहा?

जया को जब उस ने अपने पति से हुई वार्तालाप की बातें बताईं तो उस का भी यही प्रश्न था कि राजकीय सम्मान के साथ महाराज वीरभद्र के स्थान पर किसे अंत्येष्टि का लाभ मिला और क्यों?

‘रुद्र महाराज’ के आदेश पर राज्य प्रधान भागता चला आया. तनिक कठोरता दिखाने पर उस ने स्वीकार कर लिया कि उस के किसी कर्मचारी ने किसी ऐसे व्यक्ति की अंतिम क्रिया करा दी, जिस का क्षतविक्षत तन, जिस का खून किया गया था, महाराज वीरभद्र से बहुत मिलताजुलता था.

रुद्रंबा ने तुरंत राज्य प्रधानी को जीवनभर के लिए बंदीगृह में डाल दिया. मूल उत्तरदायित्व उसी का था, कर्मचारी का नहीं.

रुद्रंबा द्वारा रुद्र महाराज का चोला धारणा कर लेने से वीरभद्र से उस के संबंधों में अनजाने ही एक गंभीर दरार पैदा हो गर्ई थी. वीरभद्र कभी राज्य सिंहासन पर रुद्रंबा का साथ नहीं दे सकता था क्योंकि दो पुरुष एक सिंहासन पर कैसे बैठते? सामान्य संबंधों में भी रुद्र महाराज संपूर्णा गोलकुंडा सहित अपने पति की भी ‘महाराज’ थी. उस के पति को भी उसे अपनी शासिका स्वीकारना चाहिए. यह भाव उसे पति से विलग करता गया. वीरभद्र ने भी इसे अपनी नियति मान कर अपनेआप को निम्नतर व उपेक्षित बना लिया. अत: वे दोनों अनजान बनते गए.

जब पतिपत्नी में एकसमान धरातल, सहजता व बराबरी न हो तो दोनों में सामंजस्य कठिन है. वीरभद्र व रुद्रंबा के विवाह बाद से ही ऐसे संबंध थे. पति को पुन: पा कर रुद्रंबा ने यद्यपि हर्ष व आनंद का प्रदर्शन किया, पर उस के मन में तार जया के प्रयासों के उपरांत भी झंकृत नहीं हो सके थे.

वीरभद्र ने देवगिरि से लौटने के पश्चात बातों ही बातों में रुद्रंबा से कहा, ‘रुद्र, तुम्हें विश्वास हो या नहीं, पर मैं तुम्हें मन से चाहता हूं, तुम्हारी मैं पूजा करता हूं. इन तीन महीनों में एकदूसरे से दूर रहने के कारण मेरे हृदय में तुम्हारे प्रति प्रेम की चिंगारी और भी तीव्र हो चुकी है.’

रुद्रंबा कुछ बोली नहीं, पर मन ही मन वह हंस पड़ी.

समय का रथ स्वाभाविक गति से चलता गया. अचानक एक दिन सिंघणा अपनी विशाल सेना ले कर वारंगल में आ धमका. उस का मंतव्य वारंगल को हस्तगत कर गोलकुंडा का विलय देवगिरि में करना था.

पूर्व की भांति रुद्र महाराज ने काकतीय सैनिकों को ललकारा. उन का नेतृत्व करते हुए उस ने उन्हें अपनी व राष्ट्र की स्वाधीनता को अक्षुण्य रखने की प्रेरणा दी. जनसाधारण ने अपनी शासिका की पूर्व युद्ध प्रवीणता को याद कर उसे युद्ध के लिए भावभीनी विदाई दी.

रुद्रंबा शत्रु पर टूट पड़ी. युद्ध भयानक हुआ. इस में रुद्र महाराज की फुरती व सक्रियता दर्शनीय थी. सिंघणा जिसे बच्चों का खेल मान रहा था, उस के विपरीत नारी की सेना का सामना करने में उसे पसीने छूट गए. स्थिति ऐसी हुई कि गोलकुंडा के बहादुर सैनिकों ने देवगिरि को बुरी तरह परास्त कर दिया. सिंघणा को प्राण बचा कर भागना पड़ा. पीठ दिखाने के बाद भी सिंघणा ने देवगिरि में जा कर घोषित किया कि नारी शासिका को अभयदान दे कर वह लौट आया है. चाटुकारों ने उस की बात का समर्थन किया.

रुद्रंबा की भूल यही थी कि उस ने भागते शत्रु का पीछा नहीं किया. उस का कहना था, ‘पीठ दिखाने वाले शत्रु का पीछा करना नैतिकता का प्रतिकार है.’

विजयी रुद्र महाराज का वारंगल की जनता ने अभूतपूर्व स्वागत किया. उसे न केवल पुष्पमालाओं, प्रत्युत्त बहुमूल्य उपहारों से लाद दिया गया. रात्रि में घरघर में दीपमालिका जैसे जगमगाहट हुई.

इस सम्मान से अभिभूत जया की प्रसन्नता का तो पारावार ही नहीं था. उस ने अपनी रानी की अपने ढंग से राजमहल में अगवानी की. रुद्रंबा के तन के घावों को हाथों से संभाल कर धोते हुए उन पर वैद्यजी के परामर्श के अनुसार उस ने कई प्रकार की जड़ीबूटियों का लेप किया.

उसे पलंग पर सावधानी से लिटाते हुए जया अचानक बोली, ‘महाराज, आप को एक गुप्त बात भी मुझे बतानी है.’ उस ने फुसफुसा कर उस के कान में जो बात बताई, उस से रुद्रंबा विस्मित हो कर मौन हो गई. तत्काल उस ने प्रश्न किया, ‘तुझे किस ने बताया?’

‘मुझे कौन बताता, मैं ने अपने ही हाथों में सैनिक वेश उन्हें दिया था.’

‘सच…? तो छोड़ मेरे घावों को. लालटेन उठा व चल मेरे साथ,’ जया ने आज्ञा का पालन किया. वे दोनों युद्ध स्थल में पहुंची. वहां वे एकएक मृत व्यक्ति का मुख लालटेन के प्रकाश में टटोलती रहीं. अचानक जया बोली, ‘महाराज, ये रहा उन का तन. गले में डाली इस विशेष गलमाल को मैं ने विदा लेते समय डाली थी.

रुद्रंबा जड़ खड़ी रह. इस सैनिक वेशधारी की युद्ध प्रवीणता की तो रुद्रंबा ने युद्धकाल में ही खूब प्रशंसा की थी. पर ये वे होंगे, यह उस की कल्पना के परे था.

तभी उसे युद्धकाल की वह घटना भी याद आ गई. ‘जया, इन्होंने तो आज मेरे प्राण भी बचाए थे. एक सैनिक का तीर न जाने किधर से आ कर मेरे तन के आरपार होने को था, पर इन्होंने अपने अश्व से उतर कर उस तीर को अपनी छाती पर ले लिया. मैं तो स्वयं अपने प्राणरक्षक को ढूंढ़ रही थी. ओह, जया…

अपने प्राणी का उत्सर्ग कर, मेरे पति ने मेरी आंखें खोल दी हैं. मुझ मूर्ख को देखो कि मैं ने यह बताने पर भी कि ये मुझे प्राणों से अधिक चाहते हैं, मैं ने उन की बात सुनीअनसुनी कर दी.

मृत पति वीरभद्र का मुख अपने दोनों हाथों में थाम कर, उस पर निर्मल अश्रुओं की झड़ी लगा कर उन के मुख को उस ने धो डाला.

जया तो खड़ीखड़ी तीव्र विलाप कर रही थी, तभी अपने पीछे खड़े एक बीस वर्षीय युवक के बोल रुद्रंबा को सुनाई दिए, ‘नानी, मैं तो आप को ही अब तक अपनी प्रेरणा का पुंज मानता था, पर नाना के अमर बलिदान ने तो मुझे हिला ही डाला.’  प्रताप रुद्र, रुद्रंबा का धेवता आंसू पोंछता हुआ बोल उठा.

इसी समय मुमम्मा, रुद्रंबा की बेटी ने वीरभद्र के चरणों से सिर उठा कर कहा, ‘अम्मां, तुम ने पिताजी की बहुत उपेक्षा की है, पर देखो, उन के मुख पर कितनी प्रखर ओज है इस समय?’

रुद्रंबा क्या प्रत्युत्तर देती? उस के अनवरत अश्रु ही मौन उत्तर दे रहे थे.

‘नाना के मृत तन के सम्मुख मैं शपथ लेता हूं कि आप दोनों की प्रसिद्धि को मैं आंच नहीं आने दूंगा- आप दोनों की प्रतिष्ठा को मैं बनाए रखूंगा.’

अगले चार वर्षों के पश्चात पूरे 34 वर्ष शासन करने के पश्चात जब रुद्र महाराज ने 1289 में अंतिम सांस ली, तो गोलकुंडा चतुर्दिक उन्नति कर चुका था.

रुद्र महाराज की बेटी मुमम्मा ने अपनी मां की इच्छानुसार गोलकुंडा का शासन संभाला, पर उस ने थोड़े समय के ही पश्चात सिंहासन अपने बेटे प्रताप रुद्र को सौंप दिया.

प्रताप रुद्र ने नानी के सम्मुख से ही अश्व संचालन, युद्धकला व शासन के दांवपेच सीखे थे. इसलिए वह काकतीयों का सफलतम व अत्यंत प्रतिभाशाली शासक सिद्ध हुआ. उस ने तो अपने काल में मलिक काफूर व दिल्ली की सेना को भी करारी शिकस्त दी. पूरे दक्षिण भारत को रोंद देने वाले काफूर की गति गोलकुंडा में आ कर प्रताप रुद्र के सामने इतनी कमजोर हो गई कि दिल्ली को गोलकुंडा से समझौता कर के ही किसी प्रकार अपने प्राण बचाने पड़े.

प्रताप अपनी नानी रुद्रंबा का अत्यंत आभारी था, जिस ने उसे प्रत्येक क्षेत्र में पारंगत बनाया. इस से पूर्ण भारत में कश्मीर में यशोवती, दिद्दा व सुगंध, पूर्वी चालुक्यों में विजयामहादेवी, कदंबों में दिवा भारसी और उड़ीसा की भौमकार वंशीय पृथ्वी, दंडी, धर्मा व बैकुंला महादेवी कोई भी उत्तराधिकारी न होने अथवा अपने बेटे के बालिग होने तक सिंहासनारूढ़ रह चुकी थी. पर पूरे 34 वर्ष तक के लंबे अंतराल में सफल शासिका रहने में (वृद्ध भी. सदैव पुरुष वेश में) रुद्रंबा अग्रणी कही जा सकती है.

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