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‘पृथ्वीराज’ का ट्रेलर रिलीज, जानें क्यों खड़ें हो गए थे अक्षय कुमार के रोंगटे

फिल्म ‘‘पिंजर’’ फेम लेखक व निर्देशक डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी पिछले 18 वर्षों से निडर, सच्चे व पराक्रमी सम्राट पृथ्वीराज चौहान के जीवन, कृतित्व उनकी वीरता पर लगातार शोध करने के बाद अब ये फिल्म ला रहे हैं. ये फिल्म काफी हद तक कवि चंद बरदाई के ‘पृथ्वीराज रासो’ से प्रेरित है. ‘‘यशराज फिल्मस ’’ने 9 मई को महाराणा प्रताप की जयंती के दिन वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान पर आधारित फिल्म ‘‘पृथ्वीराज’’ का ट्रेलर जारी किया.

इसके लिए यशराज स्टूडियो में बाकायदा एक समारोह आयोजित किया गया था, जहां मीडिया कर्मियों के साथ ही अक्षय कुमार के कुछ फैन्स को भी फिल्म का ट्रेलर दिखाया गया. फिल्म का ट्रेलर देखकर अहसास हुआ कि यह फिल्म एक तरफ सम्राट पृथ्वीराज चौहान की वीरता का जश्न मानती है, वहीं उनकी प्रेम कहानी को भी बयां करती है.

क्यो खड़े हो गए थे अक्षय के रोंगटे

ट्रेलर लांच के अवसर पर फिल्म ‘‘पृथ्वीराज’’ में बेरहम आक्रमणकारी मुहम्मद से भारत की रक्षा के लिए बहादुरी से लड़ाई लड़ने वाले वीर योद्धा पृथ्वीराज का किरदार निभाने वाले अभिनेता अक्षय कुमार ने कहा- ‘‘जब डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी (पद्म श्री) ने मुझे इसकी कथा व पटकथा सुनायी, तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे. मैं चाहता हूं कि हर कोई सम्राट पृथ्वीराज चैहान की कहानी देखे.

मैं तो चाहता हूं कि सरकार इसे हर स्कूल के हर बच्चे को दिखाने की व्यवस्था करे. जब मुझे फिल्म सुनाई गई, तो कहानी के माध्यम से मेरे रोंगटे खड़े हो गए और मैंने तुरंत इस फिल्म से जुड़ने के लिए हां कह दी थी. यह एक उत्कृष्ट स्क्रिप्ट है, एक सच्ची खोज है जो इतिहास, देशभक्ति, उन मूल्यों के चित्रण को एक साथ लाती है, जिन्हें हमें जीना चाहिए और प्रेम की एक ऐसी कहानी भी बताती है जो मिलना बेहद दुर्लभ है.”

अक्षय कुमार ने आगे कहा-‘‘इसमें वह सब कुछ है जिसके लिए मैं, एक दर्शक के रूप में, सिनेमाघरों में जाना चाहूंगा.इस फिल्म का कैनवास काफी बड़ा है. किसी भी अभिनेता के लिए किसी ऐसे व्यक्ति को चित्रित करना वास्तव में सम्मान की बात है, जिसने अपने वतन/भारत के लिए इतना कुछ किया है, जिसे हम जानते हैं.’’

अक्षय कुमार ने एक सवाल के जवाब में कहा-‘‘एक अभिनेता के तौर पर यह मेरा सौभाग्य है कि मेरे हिस्से लीक से हटकर इसी तरह की कहानियों को जीवंत करने का अवसर आता है और मैं उन्हे जीवंतता प्रदान कर पाता हूं. पृथ्वीराज हमारे प्रेम का श्रम है. हमने हर पल यह सोचने में बिताया है कि हम अपने देश और अपने देशवासियों के लिए अंतिम सांस तक खड़े रहने वाले इस शक्तिशाली राजा को कितने प्रामाणिक और शानदार तरीके से श्रद्धांजलि दे सकते हैं.”

अक्षय कुमार और मानुषी की उम्र का फासला

पृथ्वीराज का किरदार निभा रहे अभिनेता अक्षय कुमार और रानी संयोगिता का किरदार निभा ही अभिनेत्री मानुषी छिल्लर के बीच उम्र का बहुत बडा अंतर है. अब देखना है कि फिल्म में यह अंतर कैसे पाटा गया है. क्या विश्व सुंदरी मानुषी छिल्लर की सुंदरता से उनकी उम्र की तरफ लोगों का ध्यान नहीं जाएगा?

फिल्म ‘‘पृथ्वीराज’’ का ट्रेलर इस बात का अहसास करता है कि जहां रोमांस इस फिल्म का अहम हिस्सा है, वहीं फोकस गोरी के साथ युद्ध पर भी होगा. गोरी के किरदार में मानव विज हैं. तो वहीं पृथ्वीराज के वफादार चाचा काका कान्हा के किरदार में संजय दत्त हैं.

कौन थे पृथ्वीराज

चाहनामा चौहान, वंश के 12वीं शताब्दी के मजबूत हिंदू शासक पृथ्वीराज चौहान थे. पृथ्वीराज ने 1191 में तराइन की पहली लड़ाई में तत्कालीन मुस्लिम शासक मुहम्मद गोरी को हराकर अपनी किंवदंती प्राप्त की. हालांकि, एक साल बाद, आक्रमणकारी पहले की हार का बदला लेने के लिए वापस आ गया. गोरी की जीत को हिन्दुस्तान की इस्लामी विजय में एक ऐतिहासिक घटना के रूप में देखा गया. यह फिल्म 12वीं शताब्दी के कवि पृथ्वी चंद भट्ट पर आधारित है, जिन्हें चंद बरदाई व कविता ‘पृथ्वीराज रासो’ के नाम से जाना जाता है.

इतिहास हमेशा व्यक्तिपरक होता है. और अति राष्ट्रवाद के उदय ने नागरिकों को उस इतिहास पर सवाल उठाने के लिए मजबूर किया है जिसके साथ वह बड़ा हुआ है. पृथ्वीराज के शासनकाल और उससे भी महत्वपूर्ण उसकी मृत्यु ने इतिहास कारों के अलग-अलग विचार व्यक्त किए हैं. पृथ्वीराज रासो का दावा है कि चौहान राजा को एक कैदी के रूप में लिया गया था और बाद में आंखों पर पट्टी बांधकर पृथ्वीराज ने अपने तीर से गोरी को मार डाला.

फिल्म के ट्रेलर के एक दृश्य में बढ़ी हुई दाढ़ी के साथ युद्ध कैदी पृथ्वीराज चैहान दो शेरों पर तीर चला रहे हैं. इससे यह बात उभर कर आती है कि डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी की फिल्म इस सिद्धांत को तोड़ती है कि हिंदू योद्धा राजा पृथ्वीराज तराइन की दूसरी लड़ाई के बाद मारा गया था.

विवाद पर डायरेक्टर ने कही ये बात

फिल्म ‘‘पृथ्वीराज’’ के लेखक व निर्देशक डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने इस अवसर पर अपनी फिल्म के संदर्भ में कहा-‘‘ फिल्म देखकर लोगो को अहसास होगा कि पृथ्वीराज चौहान की लड़ाई की वजह धर्म या राजनीति नहीं थीं.’’

पिछले कुछ समय से फिल्म ‘पृथ्वीराज’ के नाम पर राजस्थान स्थित करणी सेना आपत्ति जता रही थी. इस पर ट्रेलर लांच के वक्त निर्देशक डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने कहा, ‘‘जो भी संगठन आपत्ति कर रहा है, शायद यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है कि कोई भी हमारे देश के इतिहास के साथ खिलवाड़ न करे. मैं उनका बचाव नहीं कर रहा हूं, मैं केवल अपनी निजी राय व्यक्त कर रहा हूं. भारत में प्रत्येक संगठन और व्यक्ति को अपनी चिंताओं और आपत्तियों को उठाने का अधिकार है. लेकिन हमारे संविधान के दायरे में और इसके बाहर नहीं.

इसके अलावा, यदि आप लोकप्रिय पुस्तक पृथ्वीराज रासो का उल्लेख करते हैं, तो एक भी संदर्भ नहीं है जहां उन्हें सम्राट के रूप में संबोधित किया गया है. वहां पृथ्वीराज चैहान पर दो अन्य लोकप्रिय ऐतिहासिक पुस्तकें हैं, जिनमें से कोई भी उन्हें उनके नाम के अलावा किसी अन्य के रूप में संबोधित नहीं करता है.‘‘

डॉ. चंद्र प्रकाश द्विवेदी ने आगे कहा- ‘‘यदि आप एक नायक की कहानी को शुद्ध दिल और अत्यंत सम्मान के साथ बताते हैं, तो अन्य चीजें वास्तव में मायने नहीं रखती हैं. मुझे यकीन है कि इस फिल्म को देखने के बाद, उन सभी जिन्हें इसके बारे में कोई संदेह है, वह संतुष्ट होंगे और इस फिल्म को बनाने में किए गए काम की सराहना करने में सक्षम होंगे.

इस कहानी के महत्वपूर्ण होने का कारण यह है कि, संभवतः, पृथ्वीराज चौहान अंतिम, प्रमुख हिंदू सम्राट थे.‘‘

पृथ्वीराज पर बन चुकी हैं ये फिल्में

वैसे पृथ्वीराज पर यह पहली फिल्म नहीं है. इस योद्धा पर सबसे पहले 1924 में ‘पृथ्वीराज चैहान’ नामक फिल्म बनी थी. इसके बाद 1962 में पृथ्वीराज चाहाण की प्रेम कहानी पर तमिल फिल्म ‘रानी संयुक्ता’ बनी थी, जिसमें एम जी रामचंद्रन ने पृथ्वीराज का पद्मिनी ने संयोगिता का किरदार निभाया है.

बेवफाई- भाग 4: प्रेमलता ने क्यों की आशा की हत्या

‘‘मुझे ही नहीं प्रेम और आशा के साथ होस्टल में रहने वाली सभी लड़कियों को मालूम था. दोनों का कहना था कि हम दोनों का नाम लता है और लता का काम ही लिपटना होता है. सो हम दोनों एकदूसरे से लिपट कर अपने नाम को सार्थक करती हैं. उन के घर वालों को मालूम था या नहीं मैं नहीं जानती,’’ रूपम बगैर कुछ पूछे कहती गई, ‘‘लेकिन इन दोनों ने यह समझ लिया था कि एकदूसरे के साथ रहने के लिए पढ़ाई से बढ़ कर और कोई बहाना नहीं हो सकता. सो दोनों एकदूसरे से लिपट कर पढ़ती रहती थीं और अव्वल आया करती थीं. सो घर वाले भी आगे पढ़ने में सहयोग दे रहे थे. एमए तक तो दोनों होस्टल में रहती थीं. फिर मेरी शादी हो गई. एक अन्य सहेली से सुना था कि दोनों लताएं विभिन्न व्यवसायिक कोर्स कर रही हैं और होस्टल के बजाय फ्लैट में ऐज ए कपल रह रही हैं.’’

‘‘फिर आशा मैडम ने शादी कैसे कर ली?’’

‘‘यह तो प्रेम ही बता सकती है.’’

स्नेहा ने मायूसी से सिर हिलाया, ‘‘जिस दृढ़ता से सुबह उस ने पुलिस अधिकारियों से कहा था कि इकबाले जुर्म के अलावा वह और कुछ नहीं कहेगी मुझे नहीं लगता कि वह कुछ बताएगी.’’

‘‘आशा के अपने पति के साथ कैसे संबंध थे?’’

‘‘दिलीप सर जिस तरह से व्यक्ति हैं, उस से तो लगता है दोनों में बहुत प्यार था. वैसे तो मैडम व्यक्तिगत बात नहीं करती थीं, लेकिन जब भी दिलीप सर आने वाले होते थे तो उन के चेहरे और व्यवहार में भी उमंग, उत्साह और आकुलता होती थी और उन के जाने के बाद मायूसी किसी भी सामान्य दंपती की तरह.’’

‘‘मनोविज्ञान की ज्ञाता हो?’’

‘‘ज्ञाता तो खैर नहीं हूं, लेकिन एमए मनोविज्ञान में ही किया है.’’

‘‘तो फिर अपने इस ज्ञान का फायदा उठा कर प्रेम को इमोशनल ब्लैकमेल क्यों नहीं करतीं? उस से जा कर जेल में मिलो और बताओ कि उस के घर की तलाशी लेने पर तुम्हें और इंस्पैक्टर को उस के और आशा के रिश्ते का पता चल गया है. अभी तक तो तुम ने इंस्पैक्टर को यह बात दिलीप को बताने से रोक लिया है, क्योंकि तुम नहीं चाहतीं कि आशा मरने के बाद पति की नजरों से गिरे. अगर प्रेम को वाकई में आशा से प्यार था तो वह भी अपनी प्यारी आशा की रुसवाई नहीं चाहेगी.’’

‘‘ठीक है इंस्पैक्टर देव से कहती हूं कि मुझे प्रेमलता से मिलने दें,’’ स्नेहा उठ खड़ी हुई, ‘‘आप के सुझाव के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.’’

‘‘मैं भी आशा की रुसवाई नहीं चाहूंगी स्नेहा और उसे रोकने का एक ही तरीका है प्रेम का इमोशनल ब्लैकमेल. आशा की रुसवाई रोकने के लिए वह जरूर कुछ बोलेगी.’’

रूपम के कमरे से निकल कर स्नेहा ने देव को फोन कर रूपम के सुझाव के बारे में बताया.

‘‘सुझाव तो अच्छा है, लेकिन प्रेमलता तुम्हें देखते ही सतर्क हो जाएगी और फिर उस को इमोशनल ब्लैकमेल करना मुश्किल होगा. बेहतर होगा कि यह काम रूपम ही करे. तुम उन से आग्रह करो.’’

‘‘ठीक है इंस्पैक्टर, मैं अभी बात करती हूं.’’

थोड़ी हीलहुज्जत के बाद रूपम इस शर्त पर यानी कि वह प्रेमलता से मिलने जेल में नहीं जाएगी और न ही उस की और प्रेमलता की मुलाकात की खबर मीडिया में आएगी, क्योंकि हत्या की अभियुक्ता से उस की दोस्ती उस के पति की पदप्रतिष्ठा के अनुकूल नहीं होगी.

‘‘मैं आप की बात से सहमत हूं. इंस्पैक्टर से कहती हूं कि जेल से बाहर आप की मुलाकात करवाए.’’

बात देव की समझ में भी आई. अत: उस ने कमिश्नर साहब से बात की.

‘‘मैं आईजी प्रिजन से बात कर के प्रेमलता को मैडिकल चैकअप के बहाने जेल से बाहर भिजवाने की कोशिश करता हूं. ऐसी जगह जहां रूपम उस से बात कर सके और तुम चुपचाप उस बातचीत को रिकौर्ड कर लेना, लेकिन इस में समय लगेगा.’’

‘‘कोई बात नहीं सर, मीडिया को कह देंगे कि सिवा महापौर के इकबाले जुर्म के पुलिस और कोई सुराग जुटाने में अभी तक असफल है.’’

अगले रोज जब मीडिया आशा के अंतिम संस्कार की कवरेज में व्यस्त था, देव और स्नेहा रूपम को एक अस्पताल के वीआईपी ब्लौक में ले गए. एक वातानुकूलित कमरे में सोफे पर बैठी प्रेमलता अखबार पढ़ रही थी. उस के चेहरे पर थकान जरूर थी, पर उदासी या परेशानी नहीं.

रूपम को देख कर वह चौंक पड़ी. बोली, ‘‘अरे रूपम तू… आशी ने बताया तो था कि तू शहर में है, लेकिन यहां अस्पताल में कैसे? सब खैरियत तो है न?’’

‘‘खैरियत तूने छोड़ी ही कहां है?’’ रूपम के स्वर में विद्रूप था, ‘‘टीवी चैनलों और अखबारों की खबरों पर मुझे विश्वास नहीं हुआ कि तू आशा यानी अपनी जान की जान ले सकती है और अगर ले भी ली थी तो तुरंत अपनी जान भी क्यों नहीं दे दी? आत्मसमर्पण का ड्रामा कर के अपनी और आशा की दोस्ती को रुसवा क्यों किया?’’

प्रेमलता के चेहरे पर ‘यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था’ जैसे भाव उभरे लेकिन अगले ही पल संयत हो कर बोली, ‘‘तुझे यहां कैसे और किस ने आने दिया?’’

‘‘ससुराल की तरफ से रिश्तेदारी है एक आला पुलिस अफसर से. सो उन्होंने मेहरबानी कर दी.’’

‘‘मेहरवेहरबानी कुछ नहीं, यह जान कर कि तू मेरी सहपाठिन है मुझ से कुछ उगलवाने को भेजा है.’’

‘‘तेरे से अब कुछ उगलवाने की जरूरत किसे है? तेरे बैडरूम की तलाशी और दिलीप से मिली इस जानकारी ने कि आशा यहां की नौकरी छोड़ कर दुबई में बसने जा रही थी, तेरे इस बयान का कि यह बेवफाई पर उतर आई थी का रहस्य भी खोल दिया है, लेकिन बेचारी आशा की इज्जत की तो बुरी तरह धज्जियां उड़ा दीं और जांनिसार पति की नजरों में भी गिरा दिया. अच्छा सिला दिया आशा की दोस्ती का…’’

‘‘बगैर पूरी बात सुने अपना फैसला सुनाने की तेरी कालेज की आदत अभी तक गई नहीं,’’ प्रेम ने बात काटी.

‘‘आदतें कभी नहीं जातीं प्रेम,’’ रूपम व्यंग्य से हंसी, ‘‘तुझे और आशा को जो एकदूसरे की आदत पड़ चुकी थी वह आशा की शादी के बाद गई क्या?’’

‘‘सवाल ही नहीं उठता था. घर वालों के तकाजे से तंग आ कर आशी जब खाड़ी में बसे एक सैल्स ऐग्जीक्यूटिव से शादी कर रही थी तो मैं ने बहुत समझाया था कि ऐसी गलती मत कर, मेरे वाली चाल चल कर घर वालों को बहलाती रह.’’

‘‘तेरी कौन सी चाल थी?’’ रूपम ने दिलचस्पी से पूछा.

‘‘यही कि जब भावी वर से अकेले में मुलाकात हो तो उसे या तो हकीकत बता दो या कुछ ऐसा कहो कि वह स्वयं ही शादी से मना कर दे. मैं ने तो कई लोगों के साथ यही किया और फिर घर वालों से विनती की कि मेरी शैक्षिक योग्यता और नौकरी को देख कर हीनभावना से भर कर जब सभी मुझे नकार देते हैं, तो बारबार रिश्ते की बात चला कर मेरा तमाशा बनाना बंद कर दें. शादी जब होनी होगी हो जाएगी. बात उन की समझ में आ गई.

‘‘लेकिन आशी ने अपनी बीमार मां की खुशी के लिए दिलीप से शादी करनी मान ली कि दुबई में टूअरिंग जौब करने वाला, उसे न तो वहां ले कर जाएगा और न ही जल्दीजल्दी यहां आया करेगा. इसी बात पर वह तलाक ले कर उस से छुटकारा पा लेगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. दिलीप कुछ सप्ताह के अंतराल में आता था. तब आशी मुझ से कोई संपर्क नहीं रखती थी. चंद दिनों की बात होती थी. सो मैं बरदाश्त कर लेती थी. लेकिन अब तो दिलीप ने दुबई में अपने लिए ही नहीं आशी के लिए भी नौकरी ढूंढ़ ली थी, आशी इस से बेहद खुश थी. तू ही बता मेरे साथ मरनेजीने के वादे करने वाली आशी का मुझे इस तरह मझधार में अकेले छोड़ कर जाना मैं क्यों और कैसे बरदाश्त करती?’’

प्रेम थोड़ी देर रुक कर फिर बोली, ‘‘इससे पहले कि तू पूछे कि मैं ने यह बात आशी से क्यों नहीं पूछी, तो बता दूं कि पूछी थी और वह इतरा कर बोली कि मैं तो अब रुकने से रही क्योंकि मुझे समझ आ गया है कि जिंदगी की असल कमाई पति के संग गुजारा समय है और तेरे संग गुजारे क्षण जिंदगी का बोनस. बहुत लूट लिया बोनस का मजा अब कुछ कमाई करना चाहती हूं और तुझे भी सलाह देती हूं कि मुझे भूल कर तू भी असली कमाई कर, क्योंकि सिर्फ बोनस के सहारे तो जिया नहीं जा सकता. जीने के लिए तो सभी कमाते हैं सो तू भी कमा और शादी कर के मेरी तरह जिंदगी और घरगृहस्थी का पूरा मजा लूट.’’

‘‘किस से शादी करूं?’’ मेरे यह पूछने पर आशी कुछ देर तो सोचती रही, फिर बोली कि तू ने बताया था कि 5 सितारा होटलों की शृंखला का मालिक अमन तेरे पीछे करोडों रुपए ले कर घूम रहा है कि तू उस के यहां बन रहे होटल में कुछ बोरवैल वगैरा खुदवाने की अनुमति दे दे, उस से क्यों नहीं शादी कर लेती? या कहे तो दुबई में कोई अरब शेख ढूंढ़ूं तेरे लिए.

‘‘बता नहीं सकती रूपम कि कितना गुस्सा आया आशी की इस बेवफाई या बेहयाई पर. देखने में मैं आशी से 21 ही हूं, कितने लड़के मरते थे कालेज में मुझ पर तुझे मालूम ही है और बाद में भी एक से बढ़ कर एक रिश्ते आते रहे मेरे लिए जिन्हें मैं ने आशी के नाम पर कुरबान कर दिया और आज वही आशी मुझे बदचलन अमन या किसी अनजान अरब शेख से शादी करने को कह रही थी. पूरी रात उबलती रही गुस्से में, किसी तरह सुबह का इंतजार किया और बस…’’

‘‘मैं तेरी मनोस्थिति समझ सकती हूं प्रेम. जो हो गया उस के लिए तुझे दोष नहीं दूंगी, लेकिन तेरी और आशा की अच्छी दोस्ती होने के नाते इतनी विनती जरूर करूंगी कि अब चुप रह कर अपने और आशा के रिश्ते की मीडिया और समाज में छीछालेदर मत करवा. आशा को रुसवाई से बचाने के लिए अपनी इस ख्याति को कि तू एक निहायत ईमानदार और कर्त्तव्यपरायण महापौर है लगा दे दांव पर और सिद्ध कर दे कि आशा भी एक कर्त्तव्यनिष्ट पत्रकार थी,’’ रूपम ने चुनौती के स्वर में कहा.

‘‘कैसे?’’ प्रेम ने भृकुटियां चढ़ा कर पूछा.

‘‘तू ने अभी बताया था न कि कोई अमन तुझे लाखों की रिश्वत दे रहा था और भी कई लोग आते होंगे ऐसे प्रस्ताव ले कर?’’ रूपम ने पूछा.

‘‘हां रोज ही.’’

‘‘तो बस भुना किसी ऐसे प्रस्ताव को. कुबूल कर ले कि आशा ने तुझे किसी के ऐसे प्रस्ताव को स्वीकार करते सुन लिया था और वह इस सनसनीखेज खबर को अपने अखबार में छापने पर अड़ी हुई थी,’’ रूपम ने उकसाने के स्वर में कहा, ‘‘तेरे इस बयान के बाद पुलिस तेरे और आशा के रिश्ते को नजरअंदाज कर तेरी रिश्वतखोरी को उजागर कर देगी.’’

‘‘तू ठीक कहती है रूपम. हत्यारिन के रूप में तो बदनाम हो ही चुकी हूं अब क्यों न भ्रष्ट बन कर आशी को ही नाम और सम्मान दिला दूं,’’ प्रेम ने उसांस ले कर कहा.

‘‘शाबाश, जमी रहना इस फैसले पर,’’ कह कर रूपम बाहर आ गई.

बराबर के कमरे से इंस्पैक्टर देव और स्नेहा भी बाहर आ गए.

‘‘वाह रूपमजी, किस चुतराई से आप ने कत्ल की वजह उगलवाई और फिर उस से भी ज्यादा होशियारी से अपनी दिवंगत सहेली की बदनामी को रोका. आप की जितनी भी तारीफ की जाए कम है,’’ दोनों ने एकसाथ कहा.

‘‘2 भ्रमित सहेलियों के लिए इतना करना तो बनता ही था,’’ रूपम मुसकराई.

मेरी शादी को 5 साल हुए हैं, पति मुझे मारते हैं, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं विवाहित महिला हूं. विवाह को 5 वर्ष हुए हैं. मेरा 2 साल का बेटा है. समस्या यह है कि मेरे पति मुझे मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने के साथसाथ मेरे साथ मारपीट भी करते हैं. उन के इस व्यवहार से परेशान हो कर एक वर्ष पूर्व मैं अपने मायके आ गई थी. मैं अपने पति से तलाक लेना चाहती हूं पर मेरे घर वाले नहीं चाहते कि मैं पति से तलाक लूं. मैं क्या करूं?

जवाब

आप ने अपनी समस्या में न तो यह  बताया कि पति के आप के प्रति दुर्व्यवहार का कारण क्या है. क्या वे दहेज को ले कर आप को प्रताड़ित करते हैं या आप से उन को कोई शिकायत है, जिस के चलते वे आप के साथ दुर्व्यवहार करते हैं. साथ ही, आप ने यह भी नहीं बताया कि आप के परिवार वाले क्यों नहीं चाहते कि आप अपने पति से तलाक लें.

आप के परिवार वालों की मंशा आप के तलाक न लेनेदेने के पीछे अगर यह है कि वे चाहते हैं कि आप अपने पति से सुलह कर लें ताकि आप की बसीबसाई गृहस्थी में बिखराव न आए, खासकर जबकि  आप का बेटा अभी छोटा है, तो हमारी भी आप के लिए यही सलाह होगी कि आप एक बार कोई भी निर्णय लेने से पहले अपने पति से उन के आप के प्रति गलत व्यवहार का कारण जानें.

अगर आप को उन से और उन्हें आप से कोई शिकायत है तो उस का समाधान ढूंढें व रिश्ते को टूटने से बचाने का प्रयास करें, क्योंकि तलाक के परिणाम किसी भी बसेबसाए घर के लिए अच्छे नहीं होते.

वैसे भी तलाक की प्रक्रिया अत्यंत जटिल व दुरूह होती है जिस के चलते तलाक लेने वाला न केवल आर्थिक रूप से, बल्कि मानसिक व शारीरिक रूप से भी प्रभावित होता है.

उपरोक्त कोशिशों के बाद भी अगर आप को लगे कि आप अपने पति के साथ अब और नहीं निभा सकतीं तो घरेलू हिंसा कानून के अंतर्गत आप उन से तलाक ले सकती हैं और मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना के मुआवजे की मांग भी कर सकती हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

मल्टीक्रौप थ्रेशर: अनेक खूबियों वाला कृषि यंत्र

मल्टीक्रौप थ्रेशर एक ऐसा कृषि यंत्र है, जिस से फसल तैयार होने के बाद अनाज व भूसा अलग किया जाता है. अलगअलग फसलों के अनुसार अनेक तरह के थ्रेशर हैं. इस यंत्र से अनेक तरह की फसलों की थ्रेशिंग का काम किया जाता है. मध्यम दर्जे के किसानों के लिए यह बहुत ही काम आने वाली मशीन है, जिसे सालों तक अनेक फसलों के लिए काम में लिया जा सकता है.

अनेक कृषि यंत्र निर्माता ऐसे थ्रेशर बना रहे हैं, जिसे मल्टीक्रौप थ्रेशर कहा गया है, जो एक ही थ्रेशर यंत्र द्वारा अलग तरह की फसलों के लिए काम करता है. इस मशीन की मदद से गेहूं, सरसों, सोयाबीन, तुअर, बाजरा, मक्का, जीरा, चना, ग्वार, ज्वार, मूंग, मोठ,  मसूर, राई, अरहर जैसी अनेक फसलों की गहाई की जा सकती है.

यह थ्रेशर मशीन कम समय और कम लागत में फसल से दाने को अलग करती है और अवशेष का भूसा बनाती है.

इस यंत्र से किसान अपने काम के अलावा अन्य आसपास के किसानों को किराए पर चला कर भी अच्छी आमदनी करते हैं. इस यंत्र में पहिए लगे होते हैं. ट्रैक्टर के द्वारा इसे एक खेत से दूसरे खेत पर लाया व ले जाया भी जा सकता है.

थ्रेशर एक ऐसा यंत्र है, जो काफी समय से चलन में है, लेकिन समय के साथसाथ इस में कई बदलाव हुए हैं. सामान्य थ्रेशर से मल्टीक्रौप थ्रेशर तक पहुंचे. हालांकि कम कीमत में सामान्य थ्रेशर भी उपलब्ध हैं,  जिन से सीमित फसल के काम कर सकते हैं.

बाजार में कई कंपनियों के अनेक प्रकार के थ्रेशर उपलब्ध हैं. किसान को अपनी लागत और जरूरत के हिसाब से थ्रेशर खरीदना चाहिए. किसानों को आईएसआई मार्का के थ्रेशर को प्राथमिकता देनी चाहिए, क्योंकि ये निर्धारित मापदंडों के अनुसार बने होते हैं और इन के पार्ट्स भी बढि़या क्वालिटी के होते हैं.

इन यंत्रों को चलाने के लिए ट्रैक्टर या बिजली की जरूरत होती है, इसलिए किसान को अपने पास मौजूद ट्रैक्टर, मोटर या इंजन की एचपी शक्ति के अनुसार ही थ्रेशर का चुनाव करना चाहिए.

थ्रेशर खरीदते समय यह भी जांच लें कि जरूरत के समय उस की मरम्मत भी हो सके. इसलिए ऐसा ब्रांड लें, जो आप की पहुंच में हो.

थ्रेशर खरीदते समय सुरक्षा के हिसाब से भी ध्यान देना चाहिए. ऐसे थ्रेशर का चुनाव करना चाहिए, जो सुरक्षा की दृष्टि से आधुनिक तकनीक से बना हो.

मल्टीक्रौप थ्रेशर आधुनिक तकनीक से बने होते हैं. इस से अलगअलग काम एकसाथ किए जा सकते हैं, जैसे कि अनाज को साफ कर के उस के भूसे को अलग करना आदि.

अच्छे थ्रेशर उच्च दक्षता के साथ फसलों के दाने को साफसुथरे तरीके से अलग करते हैं. इन यंत्रों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से ले जाया जा सकता है

हरिओम इंजीनियरिंग का मल्टीक्रौप कटर थ्रेशर 

अजमेर रोड, बगरू (जयपुर) राजस्थान नैशनल हाईवे-8 पर स्थित हरिओम इंजीनियरिंग वर्क्स कृषि के अनेक छोटेबड़े यंत्र बना रही है, जिन में कटर, थ्रेशर, कुटी की मशीन, ट्रौली, प्लाऊ हल, मल्टीक्रौप थ्रेशर जैसे यंत्र शामिल हैं.

टोकरी मौडल मल्टीक्रौप कटर थ्रेशर : इन का यह यंत्र अनेक खूबियों वाला है. इस की खासीयत यह है कि इस में एक तरफ टोकरी सिस्टम है, तो वहीं दूसरी तरफ कटर सिस्टम है. यह मशीन दोनों तरफ चलती है.

इस यंत्र से कुटी काटने से ले कर अनेक छोटीबड़ी फसलों की गहाई का काम लिया जा सकता है. गेहूं, धान, बाजरा, सरसों, मक्का, सोयाबीन, मूंग, चना, जीरा, धनिया, सभी तरह की दलहनी फसलों के लिए बेहतर थ्रेशर है.

इस थ्रेशर को 40 हौर्सपावर ट्रैक्टर के साथ इस्तेमाल कर सकते हैं. इस की कीमत लगभग 4 लाख, 30 हजार है.

चूंकि नए मौडल वाला यह मल्टीक्रौप थ्रेशर है, इस के काम करने की कूवत हर फसल में अलगअलग है. यह थ्रेशर हैवी ड्यूटी वाला थ्रेशर है, जो नमी व सूखी फसल को भी निकालने में सक्षम है.

इस मल्टीक्रौप कटर थ्रेशर के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप उन के  मोबाइल नंबर : 9509362824, 9799591854, 9602327147 पर ह्वाट्सएप या फोन कर सकते हैं.

Mother’s Day 2023: मां का प्यार- भाग 1

निधि को पागलों के अस्पताल में भरती कराने की सलाह जब भी कोई संगीता को देता, उस की आंखों से आंसुओं की जलधारा झरने लगती. वह हर किसी से एक ही बात कहती, ‘‘जब मां हो कर मैं अपनी बेटी की देखभाल और सेवा नहीं कर सकती तो अस्पताल वालों को उस की क्या चिंता होगी. निधि को अस्पताल में भरती कराने का मतलब किसी बूढ़े जानवर को कांजीहाउस में डाल देने जैसी बात होगी.’’ जन्म से पागल और गूंगी बेटी की देखभाल संगीता स्वयं ही कर  रही थी. निधि के अलावा संगीता की 3 संतानें और थीं-दो बेटे और एक बेटी. बेटे पढ़लिख कर शहर में कामध्ांधे में लग गए थे. बेटी ब्याह कर ससुराल चली गई थी. घर में संगीता और निधि ही बची थीं. संगीता निधि में इस तरह खो गई थी कि अपनी उन तीनों संतानों को भूल सी गई थी. अब वह अपना समग्र मातृत्व निधि पर ही लुटा रही थी. छुट्टियों में जब बेटे और बेटी परिवार के साथ घर आते तो उस का घर बच्चों की किलकारी से गूंज उठता. लेकिन संगीता एक दादीनानी की तरह अपने उन पौत्रपौत्रियों को प्यार नहीं दे पाती थी.

मां के इस व्यवहार पर बेटों को तो जरा भी बुरा नहीं लगता, लेकिन बहुएं ताना मार ही देती थीं. दोनों बहुएं अकसर अपनेअपने पतियों से शिकायत करतीं,  ‘मांजी को हमारे बच्चे जरा भी नहीं सुहाते. जब देखो तब अपनी उस पागल बेटी को छाती से लगाए रहती हैं. इस पागल की वजह से ही हमारे बच्चों की उपेक्षा होती है.’ मातृत्व की डोर में बंधी संगीता के साथ कभीकभी बहुएं अन्याय भी कर बैठतीं. संगीता का व्यवहार बेटों के बच्चों के प्रति ही नहीं, बेटी के बच्चों के प्रति भी वैसा ही था. बहुएं तो पति के सामने अपना क्षोभ प्रकट कर शांत हो जातीं लेकिन बेटी तो मुंह पर ही कह देती थी,  ‘निधि को इतना प्यार कर के आप ने उसे और पागल बना दिया है. यदि आप ने उसे आदत डाली होती तो कम से कम उसे शौच आदि का तो भान हो गया होता. 18 साल की लड़की कितनी भी पागल हो, उसे कुछ न कुछ तो भान होना ही चाहिए. निधि गूंगी है, बहरी तो नहीं. कुछ कह नहीं सकती, पर सुन तो सकती है. एक बार गलती करने पर थप्पड़ लगा दिया होता तो दोबारा वह गलती न करती.’

बेटी और आगे कुछ कहती, संगीता की आंखें बरसने लगतीं. मां की हालत देख कर बेटी का भी दिल भर आता. फिर भी वह कलेजा कड़ा  कर के कहती,  ‘मां, तुम सोचती हो कि बेटी को इतना प्यार कर के उसे खुशी और आराम दे रही हो जबकि सचाई यह है कि तुम्हीं उस की असली दुश्मन हो. तुम हमेशा तो बैठी नहीं रहने वाली. जब वह भाभियों के जिम्मे पडे़गी तब इस की क्या हालत होगी, तुम ने कभी सोचा है.’ संगीता अन्य लोगों को तो चुप करा देती थी, लेकिन बेटी पलट कर जवाब दे देती थी, ‘अस्पताल तुम्हें कांजीहाउस लगता है, ज्यादा से ज्यादा वह वहां मर जाएगी. उस के लिए तो मर जाना ही ठीक है. कम से कम चौबीसों घंटों की परेशानी से तो वह छुटकारा पाएगी. वही क्यों, परिवार भी उस से छुटकारा पा जाएगा.’

निधि की मौत को संगीता भी छुटकारा मानती थी. लेकिन वह कुदरती हो जाए तो…बेदरकारी के साथ जानबूझ कर मौत के मुंह में निधि को धकेलना संगीता के लिए असह्य था. इसीलिए बेटों एवं बेटी के लाख कहने पर भी संगीता निधि को अस्पताल भेज कर मौत के मुंह में झोंकने को तैयार नहीं थी. बेटे मां की सोच को समझ कर चुप हो गए थे. उन्होंने इस विषय पर बात करना भी छोड़ दिया था. निधि का कोई उपचार भी नहीं था क्योंकि लगभग सभी डाक्टरों ने स्पष्ट कह दिया था कि वह किसी भी तरह ठीक नहीं हो सकती. संगीता से जो हो सकता था, वह निधि के लिए करती रहती थी. अचानक एक घटना यह घटी कि कन्या विद्यालय में पढ़ने वाली एक लड़की कुसुम पागल हो गई. निधि की तरह उसे भी न शौच आदि का भान रह गया था, न कपड़ों का. यह जान कर संगीता को दुख तो बहुत हुआ लेकिन इस के साथ ही उसे इस बात का संतोष भी हुआ कि जब एक अच्छीभली लड़की पागल हो कर होश गंवा सकती है तो जन्म से पागल निधि को इन बातों का होश नहीं रहता तो इस में आश्चर्य की कौनसी बात है.

कुसुम के घर वालों ने सलाहमशवरा कर के उसे पागलों के अस्पताल में ले जाने का निर्णय लिया. जब यह जानकारी संगीता को हुई तो उसे लगा कि आज कुसुम की मां होती, तो ऐसा कतई न होता. ‘मां बिन सून,’ गलत नहीं कहा गया है. यह सोचते हुए उस ने आंखें बंद कीं, तो उसे दिखाई दिया कि उस के मरने के बाद बेटे भी निधि को पागलों के अस्पताल में छोड़ आए हैं. उस का कलेजा कांप उठा और उस की आंखें खुल गईं. कुसुम के अस्पताल जाने के बाद अस्पताल से खबर आई कि उसे वहां फायदा हुआ है. उसे पहले रस्सी से बांध कर रखना पड़ता था, अब वह खुली घूम रही है. अब वह कोई उपद्रव भी नहीं करती. शौच और कपड़ों का भी उसे होश रहने लगा है. अब उस में एक यही कमी है कि वह दिनभर गाती रहती है. पागलपन का बस यही एक लक्षण उस में बचा है. डाक्टरों ने कहा था कि एकाध महीने में वह एकदम ठीक हो जाएगी. और अगले महीने सचमुच वह ठीक हो गई थी. लेकिन डाक्टरों ने सलाह दी थी कि अभी उसे एकाध महीने यहां और रहने दें, जिस से उन्हें पूर्ण संतोष हो जाए.

विद्या का मंदिर- भाग 2: क्या थी सतीश की सोच

जब भी कोई नई गाड़ी मंदिर के आगे रुकती, मांगने वालों की टोली उस को घेर लेती. दुआओं का सिलसिला चालू हो जाता- ‘साहब…आप की गाड़ी सलामत रहे…ईश्वर खूब तरक्की दे.’ कुछ नई गाड़ी का नशा… कुछ दुआओं का असर… लोग दरियादिली से इन भिखारियों को खुल कर रुपए दे रहे थे. अभी राहुल और रमा ठीक से उतरे भी नहीं थे कि भिखारियों ने उन को भी घेर लिया और शुरू हो गया उन का राग…आप की गाड़ी सलामत…ईश्वर…

“यह क्या 10 रुपए…” रमा ने जब 10 रुपए दिए तो भिखारिन ने हिकारत से कहा.

“तो कितना दे?” व्यंग्य से राहुल बोला.

“सौ रुपए.” गाड़ियों की बढ़ती कीमतों के साथसाथ भिखारियों के भाव भी बढ़ गए थे.

“सौ रुपये? पकड़ना है तो पकड़…” जैसे ही रमा ने यह कहा, दूसरी भिखारिन ने आ कर लपक लिया.  उस के बाद तो दोनों भिखारिनों में तकरार शुरू हुई, तो दोनों ने वहां से निकलने में ही अपनी भलाई समझी और देवी मां को चढ़ावा चढ़ाने के लिए मंदिर परिसर में बनी दुकान की ओर बढ़ गए.

प्रसाद खरीद कर मांबेटे ने मंदिर के अंदर प्रवेश किया. मंदिर घंटेघड़ियालों के साथ देवी मां के जयकारों से गुंजायमान था. पूरा माहौल भक्तिमय था. पूजा की थाली ले कर दोनों श्रद्धालुओं के लिए बनी लंबी कतार में खड़े हो गए. मई महीने की गरमी में लाइन में खड़ेखड़े दोनों का बुरा हाल हो गया.

“मम्मी, देखो न, कितनी गरमी है,” पसीना पोंछते हुए राहुल ने कहा.

“तभी तो मैं सुबह जल्दी उठने के लिए कह रही थी,” गरमी से बेहाल रमा बोली.

लंबी लाइन धीरेधीरे आगे खिसक रही थी. पूजा के लिए लगी कतार से मंदिर का दाईं ओर का हौल दिखाई दे रहा था, जहां पर भंड़ारा चल रहा था. लोग पंक्तियों में बैठे भोजन का आनंद ले रहे थे. छोले, पूरी, तरकारी, हलवे की खुशबू  हवा में तैर रही थी. सुबह से खाली पेट राहुल को खाने को देख कर जी ललचाने लगा. उस का मन कर रहा था कि पूजा की पंक्ति से हट कर वह खाने की पंगत में बैठ जाए. लेकिन वह मन मसोस कर रह गया और बेताबी से अपने नबर आने का इंतजार करने लगा. जैसेतैसे कर के दोनों की बारी आई. श्रद्धा से पूजा की थाली रमा ने पंडितजी को पकड़ा दी, जिस में पुष्प, फल, मिष्ठान, श्रीफल, देवी मां की लाल चुनरी और एक काली चोटी थी. पंडितजी ने पूजामंत्रोच्चार के बाद सब से पहले उन से दक्षिणा रखवाई, प्रसाद दिया, फिर कार के पास आ कर नारियल फोड़ कर उस का पानी बोनट के ऊपर छिड़क दिया. नारियल वास्तव में तगड़ा था. पानी से लबालब भरा हुआ था. नारियल के फोड़ने से जो अमृतस्राव बहा, वह राहुल के सूखे गले को तो नहीं, पर, कार के बोनट को तरबतर कर गया. नारियल जल कई दिशाओं से होता हुआ बोनट से जमीन पर गिरने लगा, जो पहले से ही कई श्रीफलों के उत्सर्ग से पसीजी हुई थी. उस के पश्चात पंडितजी ने लाल चुनरी कार के साइड मिरर में बांध दी, काली चोटी को गाड़ी के सामने नीचे लटका दिया और पूजा संपन्न हो गई.

राहुल ने राहत की सांस ली और कार में सीट बेल्ट लगाते हुए कहा, “मम्मी, आप भी… अगर पूजा करवाने से सबकुछ सुरक्षित रहता, तो इतने ऐक्सिडैंट न होते सड़कों पर.”

“देखा नहीं कितनी सारी गाड़ियां थीं. बड़ी मान्यता है इस देवी मंदिर की, दूरदूर से लोग आते हैं.  कितना आलीशान हो गया है. शादी के बाद जब तेरे पापा ने अपना स्कूटर खरीदा  था, उस समय तो यह मंदिर छोटा सा था. गाड़ियां तो इक्कीदुक्की हुआ करती थीं. अब देखो,” गर्व से रमा बोली.

अभी गाड़ी थोड़ी दूर ही चली थी कि सामने एक भगवान शनिदेव मंदिर के आगे गाड़ी रुकवा दी रमा ने. यहीं पर ही यह सिलसिला नहीं थमा, एक बार फिर भगवान गणेशजी के मंदिर में राहुल से कार रुकवा दी. फिर वही पूजा शुरू हो गई. और अब यह हनुमानजी का मंदिर. सुबह से निकले हुए, भूख से राहुल का पेट बुरी तरह कुलबुला रहा था.

“आगे शिवजी का मंदिर है, मैं वहां बिलकुल कार नहीं रोकूंगा,” राहुल चेतावनी देते हुए बोला.

“नहीं बेटा, ऐसा नहीं कहते. बस, शिवजी का मंदिर और आगे बिलकुल सड़क पर एक पीर की मजार,” बेटे को मनाने की कोशिश करती हुई रमा बोली.

सतीश चंद्र का फोन बारबार आ रहा था, कभी राहुल को तो कभी रमा को. एक बार फिर फोन की घंटी बज उठी.

“कहां हो तुम लोग?” चिंतित स्वर में सतीश चंद्र बोले.

“बस, पहुंचने ही वाले हैं,” कह रमा ने फोन बंद कर दिया.

“क्या बात है? बड़ी देर कर दी,” 3 बजे घर पहुंचने पर सतीश चंद्र ने व्यग्रता से पूछा.

“पापा, यह आप मम्मी से पूछें.” डाइनिंग टेबल पर खाना लगा देख राहुल तेजी से बाथरूम में हाथ धोने चला गया.

डाइनिंग टेबल पर बैठ वह खाने पर एक तरह से टूट पड़ा.

मुंह में खाना ठूंसे हुए राहुल पापा से बोला, “पापा, मम्मी का बस चलता, तो पता नहीं कितने मंदिरों में और ले जाती मुझे.”

“मुझे तो पता है, तभी तो मैं जाता नहीं,” मुसकरा कर चटकारे लेते हुए पत्नी की ओर देख कर सतीश चंद्र बोले.

जैसे ही रमा ने घूर कर पति की ओर देखा, वे चुपचाप नजरें नीचे कर खाना खाने लगे.

“जब इतनी कम दूरी में 5 मंदिर, तो पता नहीं शहर में कितने होंगे और पूरे देश में. और पापा, मैं ने गौर किया कि मसजिदें भी कम नहीं हैं. एक से बढ़ कर एक. ओ माय गौड!”

“निकल गया न तुम्हारे मुंह से भगवान का नाम,” रमा ने राहुल के शब्दों को पकड़ते हुए कहा.

“मम्मी, आप भी…”

“छोड़ो यह सब, खाना खाओ,” अपनी मुसकराहट को दबाने का असफल प्रयास करते हुए वे बोले.

शाम को रमा चाय और पकौड़े बना कर लाई. आज वह प्रसन्नमना है. बातचीत के साथ तीनों चाय के साथ पकौड़ों का आनंद लेने लगे.

“सुनो जी, मां का मंदिर इतना सुंदर बन गया है कि आप भी देखते, तो दंग रह जाते.”

“और तुम ने उसी रास्ते में सरकारी स्कूल के उखड़ते प्लास्टर और उधड़ते फर्श को नहीं देखा?” जिला शिक्षा अधिकारी के पद से रिटायर हुए सतीश चंद्र का दर्द छलका.

महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में मददगार गुलाबी मीनाकारी

गुलाबी मीनाकारी अपनी खूबसूरत कारीगरी से जहां पूरी दुनिया में धूम मचा रही है. वही महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में भी मददगार साबित हो रही है. सरकार की “समर्थ “योजना के अंतर्गत महिलाओं को गुलाबी मीनाकारी का हुनर सिखाया जा रहे है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश यात्रा के दौरान अपने ख़ास मेहमानों को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में बनी ग़ुलाबी मीनाकारी के उत्पादों को उपहार स्वरुप देते है. जिससे इस जीआई उत्पाद की मांग देश और विदेश में बढ़ती जा रही है. ग़ुलाबी मीनाकारी से दूर हो रहे शिल्पी अब प्रशिक्षण लेकर एक बार फिर इस प्राचीन कला से जुड़ रहे है.

जी.आई.उत्पाद और वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट में शामिल गुलाबी मीनाकारी की ख़ूबसूरती कायल पूरी दुनिया होती जा रही. सहायक निदेशक हस्तशिल्प अब्दुल्ला ने बताया कि  सरकार गुलाबी मीनाकारी का हुनर  सिखाने के लिए “समर्थ”नाम से  प्रशिक्षण कार्यक्रम चला रही है. जिससे महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही है. समर्थ नाम से चल रहे प्रशिक्षण कार्यक्रम 65 दिनों का होता है. जिसमें सरकार प्रशिक्षुओं को 300 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से प्रोत्साहन राशि भी देती है. ये प्रशिक्षण कार्यक्रम वस्त्र मंत्रालय द्वारा कराया जा रहा है.

सहायक निदेशक ने बताया कि 2 अक्टूबर 2021 से प्रशिक्षण का कार्यक्रम चल रहा है. प्रशिक्षण कार्यक्रम में महिलाएं शामिल हो रही है. अभी तक 60 महिलाएं  प्रशिक्षण ले चुकी है. जिसमें सीधे तौर पर करीब 70 प्रतिशत महिला काम करके आत्मनिर्भर बन रही है. जबकि बाकी पार्ट टाइम काम करके कमाई कर रही है. प्रशिक्षण कार्यक्रम की सफलता इसी बात से लगाई जा सकती है की इसमें वेटिंग लिस्ट चल रही है. प्रशिक्षण कार्यक्रम को पुख्ता बनाने के लिए के बायोमेट्रिक अटेंडेंस ,वीडियो ग्राफ़ी कराइ जाती है. जिसमे 80 प्रतिशत अटेंडेंस अनिवार्य है.  टीम प्रशिक्षुओं का असेसमेंट करने के बाद पास करती है तभी  प्रोत्साहन राशि और सर्टिफिकेट  दिया जाता है.

प्रशिक्षण दे रहे नेशनल अवार्डी कुंज बिहारी ने बताया  कि प्रधानमंत्री अपने विदेशी मेहमानों को ग़ुलाबी मीनाकारी का  नायब तोहफ़ा जरूर देते और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा लोगों  को उपहार देने और लोगों से जी आई और ओडीओपी को उपहार स्वरूप देने की अपील करने से हस्त शिल्पियों के हुनर की मांग बढ़ी है. और गुलाबी मीनाकारी को  संजीवनी मिली है.

शिवानी- भाग 4: फार्महाउस पर शिवानी के साथ क्या हुआ

अजय फोन करने के बाद शिवानी को उठा कर बैडरूम तक ले गया. सब परेशान चुपचाप खड़े थे. संजय भी चुपचाप खड़ा था. उस रात के बाद वह शिवानी से आज ही मिला था. उसे यह नहीं पता था कि शिवानी के गर्भ में उस की संतान है. वह अपनी हरकत के लिए जरा भी शर्मिंदा नहीं था.

डाक्टर मनाली ने आ कर शिवानी का चैकअप किया, फिर कहा, ‘‘उमा, शिवानी का ब्लडप्रैशर हाई है. क्या यह किसी टैंशन में है?’’

अजय ने कहा, ‘‘नहीं तो. सब हंसबोल रहे थे पर अचानक पता नहीं क्या हुआ. कैसे आजकल बहुत सुस्त रहती है.’’

दवाइयां और कुछ निर्देश दे कर डाक्टर चली गईं. सब दोस्तों ने भी फिर मिलते हैं, कहते हुए विदा ली.

घर के सदस्य शिवानी की हालत पर दुखी थे. उमा कह रही थीं, ‘‘क्या हो गया इसे. किस चिंता में रहती है… पता नहीं क्या सोचती रहती है.’’

लता ने कहा, ‘‘आप परेशान न हों, आराम करेगी तो ठीक हो जाएगी.’’

शिवानी ने आंखें खोलीं, पर बोली कुछ नहीं. एक उदास सी नजर सब के चेहरे पर डाली. मन ही मन और दुखी हुई. सब से सच छिपाने का अपराधबोध और हावी हो गया. आंखों की कोरों से आंसू बह चले तो उमा जैसे तड़प उठीं, ‘‘न बेटा, दुखी मत हो. ऐसी हालत में तबीयत कभी ठीक, कभी खराब चलती रहती है. कोई चिंता न करो. बस, खुश रहो.’’

शिवानी खुद को संभाल कर मुसकराई तो सब के चेहरे पर भी मुसकान उभरी.

रात को सोने के समय अजय शिवानी के सिर को सहलाते हुए उस का मन बहलाने के लिए उस के दोस्तों की बातें करने लगा तो वह कहने लगी, ‘‘अजय, मुझ से बस अपनी बात करो, बस अपनी. किसी और की नहीं.’’

‘‘अच्छा ठीक है, पर शिवानी मुझे सचसच बताओ कि तुम्हें कुछ टैंशन है क्या?’’

‘‘नहीं अजय, बस बहुत सुस्त रहती है तबीयत आजकल, पर तुम चिंता न करो. मैं अपना ध्यान रखूंगी,’’ कहते हुए शिवानी ने अपना सिर अजय के कंधे से सटा लिया.

अजय शिवानी की उदासी का कारण खराब तबीयत समझ कर शांत हो गया.

जैसेजैसे समय बीत रहा था, घर में तैयारियों की बात होती रहती थी. रमेश और सुधा भी अकसर उस से मिलने आते रहते थे. शिवानी अकेले में सोचती, ‘यह कैसी गर्भावस्था है, कैसे इस बच्चे को पालूंगी, मुझे तो जरा भी ममता का एहसास नहीं हो रहा.’

उस की कितनी ही रातें रोते बीत रही थीं, कोई कितना रो सकता है, इस का अनुभव उसे स्वयं न था.

देखतेहीदेखते उस के हौस्पिटल जाने का दिन आ गया. गौतम ने रमेश और सुधा को भी सूचना दे दी. गर्भावस्था का पूरा समय शिवानी ने जिस तनाव में बिताया था और पूरे परिवार का जो स्नेह उसे मिलता आया था, वह सब शिवानी को याद आ रहा था. शारीरिक और मानसिक, तीव्र पीड़ा के पलों को झेलते हुए उस ने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया. लता तो खुशी के मारे रो ही पड़ी. सब ने एकदूसरे को गले लगा कर बधाई दी. सुधा ने फौरन कुछ पैसे अजय को देते हुए कहा, ‘‘हमारी तरफ से मिठाई लानी है, बेटा.’’

अजय, ‘‘अच्छा, लाता हूं,’’ कह कर मुसकराते हुए चला गया. नवजात शिशु सब के आकर्षण का केंद्र बन गया था.’’

उमा ने बच्चे को देखते हुए कहा, ‘‘अरे, यह तो बिलकुल अजय पर गया है.’’

लता ने कहा, ‘‘नहीं, शिवानी की झलक दिखाई देती है.’’

गौतम हंसे, ‘‘मुझे तो यह दादी पर लग रहा है.’’

सब हंस रहे थे. शिवानी के मन में अब तक बच्चे को देखने का जरा भी उत्साह नहीं था. वह चुपचाप निढाल पड़ी थी. अजय मिठाई ले आया था. सब एकदूसरे का मुंह मीठा करवा रहे थे. उमा ने डाक्टर, नर्स और आसपास के लोगों को भी मिठाई खिलाई. शिवानी के दिल पर पत्थर सी चोट लग रही थी.

शिवानी के चेहरे पर नजर डालते हुए अजय ने कहा, ‘‘ठीक हो न?’’

‘‘हां.’’

‘‘अब सारी तबीयत ठीक हो जानी चाहिए. अब कोई उदासी नहीं चलेगी, समझीं,’’ हंसते हुए अजय ने कहा तो लता भी बोलीं, ‘‘हां, अब सारी तबीयत ठीक हो जानी चाहिए, पहले की तरह खुश रहना, बेटा.’’

शिवानी फीकी सी हंसी हंस दी. वह यही सोच रही थी कि ये सब इस बच्चे की इतनी खुशियां मना रहे हैं जिस के पिता का भी मुझे नहीं पता, कौन है. यह बच्चा तो मुझे हमेशा उस धोखे की याद दिलाता रहेगा जो मैं ने अपने परिवार को दिया है. कैसे पालूंगी इसे…

तभी बाहर अजीब सा शोर सुनाई दिया, तो सभी बाहर चल दिए.

शिवानी को अभी बहुत कमजोरी थी. वह चुपचाप आंखें बंद कर लेटी थी. बराबर ही पालने में बच्चा लेटा था. थोड़ी देर बाद एक नर्स अंदर आई तो शिवानी ने पूछा, ‘‘क्या हुआ है?’’

‘‘कल से एक लड़की दाखिल थी. रात ही उस ने बेटे को जन्म दिया था. अब वह लड़की बच्चे को छोड़ कर गायब है. उस के दिए पते पर, फोन पर सब देख लिया, सब फर्जी जानकारी थी. पता नहीं कौन थी. बच्चा पैदा कर छोड़ कर गायब हो गई. अभी एक बेऔलाद पतिपत्नी यहां किसी को देखने आए थे. सारी बात सुन कर उस बच्चे को गोद लेने के लिए तैयार हैं.’’

‘‘एक सगी मां बच्चे को पैदा करते ही छोड़ कर चली गई, अब 2 पराए लोग उस

बच्चे के लिए इतने उतावले हैं कि पूछो मत. दोनों इतने खुश हैं, मैडम कि शादी के 10 साल बाद उन के जीवन में एक नन्हीं खुशी आ ही गई. उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि वह किस का होगा, दोनों बस उस बच्चे को गोद लेने के लिए छटपटा रहे हैं. पता नहीं कौन थी क्या मजबूरी थी.’’

शिवानी सांस रोके नर्स की बात सुन रही थी. नर्स चली गई तो जैसे शिवानी की आंखें खुलीं. वह जैसे होश में आई. एक दंपती किसी गैर के बच्चे के लिए तरस रहे हैं और वह अपने बच्चे से पीठ फेरे लेटी है.

इस का पिता जो भी हो, मां तो वही है न. उस का भी तो अंश है बच्चा. मां के हिस्से की ममता पर तो इस का हक है ही न. और मां का ही क्यों, हर रिश्ते के स्नेह का पात्र बनने वाला है यह. दादादादी, नानानानी, अजय, सब की खुशियों का कारण बना है यह. फिर वह मां की ममता से ही क्यों दूर रहे और इस बच्चे का कुसूर भी तो नहीं है कोई… उस अजनबी दंपती के बारे में, अपने बच्चे के बारे में सोचतेसोचते पिछले कई महीनों का उस का मानसिक संताप दूर होता चला गया.

वह धीरे से उठी. बच्चे का चेहरा देखते हुए झुक कर उसे गोद में उठाया. नर्ममुलायम सा स्पर्श कई महीनों से जलतेतपते तनमन को सहलाता चला गया.

बेटे का विद्रोह- भाग 3: क्या शिव ने मां को अपनी शादी के बारे में बताया?

“जब मेला देखने के लिए पैसा मांगे, तो पापा ने डांट कर भगा दिया. फिर मैं ने चुपके से तुम्हारे डब्बे से 50 रुपए ले लिए थे, तो आप ने चिमटे से हाथ जला दिया था. यह देखो, आज तक निशान पड़ा है…”

“जब सुमित्रा की अम्मां ने आ कर झूठमूठ कह दिया था कि तुम्हारे बेटे ने हमारी बिटिया को छेड़ा है, तो आप लोगों ने मुझ से एक बार भी नहीं पूछा और पापा सब के सामने ही चप्पल ही चप्पल पीटने लगे थे… गाली तो हर समय उन की जबान पर रहती थी…”

मांबेटे दोनों की आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे…

“पापा ने जिज्जी की शादी  अपनी बिरादरी, कुल, गोत्र और जमीनजायदाद देख कर नकारा लड़के के साथ कर दी तो अब झेलो… जल्दीजल्दी 4 बच्चे भी हो  गए. उन्हें न पढ़ाना और न लिखाना… बस, अपनी जातिबिरादरी देखती रहना…”

“सारी जिंदगी पापा से गाली खाती रहीं और पिटती रहीं. आज हम अपनी जिंदगी में कमा खा रहे हैं… चैन से जी रहे हैं, तो कभी किरिस्तानी, तो कभी कुछ कह रही हो… न मुझे आप के जेवर का लालच है और न ही जमीनजायदाद का. मुझे कुछ नहीं चाहिए… मैं अपनी जिंदगी में बहुत खुश  हूं… आप सबकुछ जिज्जी को दे दीजिए. मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता…”

शिव उठने को  हुआ, तो उन्होंने उस की बांह पकड़ कर रोने का उपक्रम करने लगीं, ’हाय राम, बेटा तुम्हारे पापा को वहां के डाक्टर ने जवाब दे दिया है… तुम्हें उन की जरा भी चिंता नहीं है. उन का लिवर और किडनी दोनों ही खराब हो गए हैं. बचने की उम्मीद ना के  बराबर है…”

“तो मैं क्या करूं…? जो करे वह भरे. मैं कुछ  नहीं कर सकता.”

“अपने बाप के पैसे पर ऐश करने वाले अनपढ,  बेरोजगार, गंजेडी, शराबी लड़का ढूंढ़ा, जो उन की जातबिरादरी का था. कुंडली में 36 गुण मिलाए गए, फिर  जिज्जी का ब्याह कर दिया… न पढ़ाया, न लिखाया…

“अपनी जिंदगी खराब कर रखी है और जिज्जी की बरबाद कर रखी है… 4-4 बच्चे हैं. वह भी ऐसे ही रह जाएंगे… ‘

ऐसा सुन कर वे सिसकने लगी थीं. बोलीं, “बेटा, असल में तुम्हारे जीजा किसी दूसरी औरत के चक्कर में पड़ गए हैं. पहले तो हम सब तुम से छिपाते रहे, लेकिन अब तो सारी रकम धीरेधीरे दूसरी औरत का घर भर रही है और बाकी नशे की भेंट चढ़ रही है…”

“फिर भी तो जब से आई हो, कौन जाति की है…? किरिस्तानी है… कहे जा रही हो… यदि आप के दिमाग से किरिस्तानी का भूत उतर जाए, तो मैं  कासगंज कुछ दिन की मैडिकल लगा कर वर्क फ्रोम होम ले सकता हूं…

“आप अच्छी तरह ठंडे दिमाग से खूब सोचविचार कर लो…” कह कर उस ने घड़ी देखी. रात के 3 बज चुके थे. वह तेजी से उठ कर अपने बेडरूम में चला गया था.

सुशीलाजी की आंखों की नींद उड़ गई थी. सही तो कह रहा है. किरिस्तानी है तो क्या हुआ… रूप, गुण, संस्कार, इतनी पढ़ीलिखी है, औफिस जाती है और मेरे पैर छूती है… उन के मन की बंदिशें उन्हें समझा रही थीं. जातबिरादरी, कुंडली  का क्या फायदा मिला… उन का अपना जीवन गाली खाते और पिटते बीता और अब बिटिया की जिंदगी भी वैसी ही बीत रही है…

पंडितजी की तो किडनी 70 साल में खराब हुई और कुंवरपाल तो यदि 40 साल भी चल जाए तो समझो… उन के मन की बेड़ियां उन्हें धिक्कार रही थीं… दोनों कितने प्यार के साथ खुशीखुशी रह रहे हैं और वहां तो दिनभर लड़ाईझगड़ा और आपस में गालीगलौज के सिवा कोई कुछ जानता ही नहीं…

उन्हें अपने घर की भलाई  देखनी चाहिए कि कौन क्या कह रहा है… यह सोचना चाहिए… रातभर की ऊहापोह, तर्कवितर्क के बाद संशय का कुहासा छंट गया था और सदियों से चली आ रही मन की जंजीरें टूट चुकी थीं…

उन्होंने सुबह उठते ही शिव और रोजी को प्यार से लिपटा कर कहा, ”आज तुम दोनों ने अपनी बात और व्यवहार से मेरी आंख पर से जातपांत की बेड़ियों   के बंधन को काट कर रख दिया है… काश, मुझे पहले किसी ने इस तरह समझाया होता तो घर की बरबादी न होती… कोई बात नहीं, देर आयद दुरुस्त आयद… तुम लोगों को मेरे साथ कासगंज चलना है… अपने औफिस से चाहे छुट्टी लो, चाहे घर से   काम करो… यह सोच कर चलो कि वहां तुम लोगों को  लंबे समय तक रहना पड़ेगा…

हमें यहां आए 3 दिन हो गए. तुम्हारे पापा का न जाने क्या हाल होगा? बेटा जल्दी करो… कह कर वह रोआंसी हो उठी थीं.

रोजी बोली, “मेरे पास तो साड़ियां 2-4 ही होंगी…”

“बेटी, तुम जो चाहे पहनना. कपड़ों की चिंता मत करो. दुकान से आ जाएंगे. कासगंज छोटी जगह तो है, लेकिन सबकुछ मिल जाता है.

“कुंवरपाल और सुनैना को तो हम समझ लेंगें…”

अम्मां का यह बदला हुआ नया रूप शिव को अनजाना सा लग रहा था, परंतु उस के मन में साहस भी जगा रहा था कि यदि अम्मां का साथ मिलेगा, तो रोजी को  वहां रहने में परेशानी नहीं होने वाली.

अम्मां को तो उस ने दब्बू स्वभाव और पापा की हां में हां मिलाते हमेशा देखा था.

शिव को महसूस हो रहा था कि अम्मां अपने बचपन की अधूरी ख्वाहिशों को रोजी के माध्यम से पूरा कर के खुश होना चाहती हैं…

यह सत्य भी है कि हर लड़की को शादी के बाद अपनी इच्छाओं, सपनों, अपनी सारी ख्वाहिशों को पति और परिवार के लिए बक्से में बंद कर स्टोररूम के कोने में रख देना पड़ता  है और आज भी देखा जाता है कि पति परमेश्वर का पुरुषोचित अहंकार पत्नी की ख्वाहिशों के रास्ते में आड़े आ जाता है. परिवार और बच्चों के लिए हमेशा पत्नी को ही समझौता करना पड़ता है. ऐसा क्यों है…?

स्प्रेयर फसल सुरक्षा उपकरण

समयसमय पर देखने में आया है कि फसलों में अनेक तरह के खरपतवार उग जाते हैं, जो फसल को पनपने नहीं देते. इस के अलावा अनेक तरह के कीट व रोगों का प्रकोप भी खेतों में होता है, जिन से उपज पर खासा असर होता है.

इन सब पर काबू पाने के लिए किसानों को कृषि रसायनों का इस्तेमाल करना पड़ता है या जैविक घोलों का छिड़काव करना होता है. वह भी एक सीमित मात्रा में करना होता है. यह काम हाथ से या अन्य किसी तरीके से संभव नहीं है. इस के लिए किसान को खेत में छिड़काव करने वाले यंत्र स्प्रेयर का इस्तेमाल करना पड़ता है.

आज अनेक प्रकार के स्प्रेयर बाजार में मौजूद?हैं. जैसे नैपसैक स्प्रेयर, रौकिंग स्प्रेयर, फुट स्प्रेयर, पावर स्प्रेयर, बैटरी स्प्रेयर, सोलर से चलने वाला स्प्रेयर, अल्ट्रा लो वौल्यूम स्प्रेयर और शक्तिचालित पावर स्प्रेयर, मिस्ट ब्लोअर स्प्रेयर जैसे नामों से मिलते हैं.

आमतौर पर यह उपकरण हाथ से, पैर से या ट्रैक्टर आदि से चलने वाले होते हैं. छोटे व मध्यम दर्जे के किसान ज्यादातर हाथ से चलने वाले स्प्रेयर को ही तवज्जुह देते हैं. क्योंकि उन की कीमत कम और रखरखाव भी बेहतर तरीके से किया जा सकता है.

शक्तिचालित स्प्रेयर यंत्र बड़े रकबे व बागबगीचों के लिए ठीक रहते हैं. दूसरी बात यह कि वह महंगे भी पड़ते हैं.

इसी तरह से कई बार सूखे पाउडर के रूप में दवाओं का खेत में भुरकाव किया जाता है. शुष्क पाउडर के भुरकाव के लिए डस्टर जैसे यंत्रों का इस्तेमाल किया जाता है.

मौजूदा समय में छोटे स्प्रे पंप से ले कर बड़े टंकीनुमा स्प्रेयर भी बाजार में मौजूद?हैं. पौधों में कीड़ेमकोड़ों और रोगों की रोकथाम के लिए छोटे?स्प्रेयर यंत्र की जरूरत होती है, जबकि खरपतवारों की रोकथाम के लिए बड़े स्प्रे यंत्र की जरूरत होती?है. कुछ छोटे?स्प्रेयर हैं, जिन का इस्तेमाल करना आज किसानों के लिए बहुत ही आसान है.

पीठ पर लटकाए जाने वाले स्प्रे यंत्र

कृषि कार्यों में लाए जाने वाले छोटे यंत्रों में से एक हैं. इस प्रकार के स्प्रेयर में लगे पंप द्रवचालित प्रकार के होते हैं, जिन में जलीय घोल पर पंप की सीधी क्रिया द्वारा छिड़काव दाब बनता है.

इस तरह से उत्पन्न हुआ दाब इस घोल को नोजल के सूक्ष्म छिद्रों से बाहर की ओर फेंकता है. इस से यह उचित आकार की छोटीछोटी बूंदों में बंट जाता है और समान रूप से फसल के ऊपर छिड़काव कर देता है.

बैटरीचालित स्प्रेयर

इस स्पे्रयर को बैटरी द्वारा चलाया जाता है. बैटरीचालित स्प्रेयर के प्रयोग से समय और ऊर्जा की बचत होती है और रसायनों के छिड़काव में कम खर्च आता है. इस का प्रयोग दक्षिणी उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा अधिक किया जा रहा है.

इस टू इन वन स्प्रेयर में 12 वोल्ट की बैटरी लगी होती?है. एक बार बैटरी चार्ज होने के बाद 4 से 5 घंटे तक इस स्प्रेयर से छिड़काव किया जा सकता है. पूरी बैटरी चार्ज करने में तकरीबन 8 घंटे का समय लगता?है. जिस तरह से मोबाइल फोन घर में चार्ज करते हैं, उसी तरीके से इस की बैटरी भी चार्ज की जाती?है.

इस स्प्रेयर के साथ नोजल का सैट भी मौजूद रहता?है, जिन्हें अपनी सुविधानुसार बदला जा सकता?है. इस स्प्रेयर का वजन तकरीबन 4.50 किलोग्राम?होता?है और यह कृषि रसायनों का फसलों पर अच्छी तरह बराबर छिड़काव करता है. इस तरह के स्प्रेयर 18 से ले कर 22 लिटर तक की टंकी के साथ उपलब्ध हैं.

पैरचालित स्प्रेयर

इस स्प्रेयर का प्रयोग पैर के द्वारा किया जाता है. इस की सक्शन नली में राकिंग स्प्रेयर की तरह छलनी लगी होती है, जिस से घोल को टंकी में डाला जाता है. इस का यंत्र लोहे के बने स्टैंड में लगा होता है और पंप सिलैंडर को पैडल से चला कर दाब उत्पन्न किया जाता है.

लगातार स्प्रे करने के लिए एक आदमी के द्वारा पैडल को चलाया जाता है और दूसरा आदमी छिड़काव करता जाता है.  इस के द्वारा 0.8 से 1 हेक्टेयर फसल पर प्रतिदिन छिड़काव किया जा सकता है.

इंजन स्प्रेयर?

ये 2 स्ट्रोक और 4 स्ट्रोक में बने होते?हैं. यह 25 लिटर टैंक में भी मौजूद हैं. इस स्प्रेयर में टैंक के नीचे एक छोटा इंजन लगा होता?है. इस यंत्र को चलाने के लिए पैट्रोल का इस्तेमाल किया जाता?है. एक लिटर पैट्रोल में डेढ़ घंटे तक इस यंत्र से काम लिया जा सकता है. यह यंत्र समतल जमीनी खेती के अलावा बागबानी के लिए भी इस्तेमाल किया जाता?है.

पावरचालित स्प्रेयर

इस स्प्रेयर का प्रयोग अधिक क्षेत्र में स्प्रे करने के लिए किया जाता है. इस के प्रयोग से समय की बचत होती है और छिड़काव में कम खर्च आता है. इस में सब से अधिक टै्रक्टरचालित स्प्रेयर का ही उपयोग होता है. इस में दाब उत्पन्न करने के लिए रोलर वेन पंप लगा होता है, जिसे ट्रैक्टर के पीटीओ शाफ्ट द्वारा चलाया जाता है.

इस प्रकार के स्प्रेयर के फ्रेम पर एक पंप प्रेशर गेज, टंकी, प्रेशर रिलीफ वौल्व, सक्शन और निकास नली, बूम और एडजेस्टेबल नोजल एकसाथ लगे होते हैं.

इस के अलावा फ्रेम को ट्रैक्टर के 3 पौइंट लिंकेज (लिफ्टिंग आर्म) से जोड़ा जाता है. इस स्प्रेयर के बूम को अपनी जरूरत के मुताबिक ऊपर या नीचे किया जा सकता है.

इस तरह के स्प्रेयर 200 से ले कर 500 लिटर तक की टंकी के साथ होते हैं. इस में 12-14 एडजेस्टेबल नोजल लगे होते हैं. बूम और नोजल की दूरी को अपनी आवश्यकतानुसार घटाया और बढ़ाया जा सकता है.

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