Download App

घर के पिछवाड़े मुरगीपालन: एक्स्ट्रा आमदनी का जरिया

पारंपरिक मुरगीपालन यानी बैकयार्ड मुरगीपालन या फिर घर के पिछवाड़े मुरगीपालन की यह पद्धति भारत में प्राचीन काल से ही प्रचलित है. इस में आमतौर पर 5-10 मुरगियों को एक परिवार द्वारा पाला जाता है, जो घर और उस के आसपास में अनाज के गिरे दाने, झाड़फूस के कीड़ेमकोड़े, घास की कोमल पत्तियां, घर की जूठन आदि खा कर पेट भरती हैं. मुरगियों को पालने में किसी खास घर की जरूरत नहीं होती है और न्यूनतम खर्च पर मुरगियां पाली जा सकती हैं.

यह जानकारी कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती के केंद्राध्यक्ष प्रो. एसएन सिंह ने मुरगीपालन प्रशिक्षण में प्रशिक्षणार्थियों को दी. उन्होंने कहा कि सालभर में प्रति व्यक्ति 180 अंडा और 11 किलोग्राम मांस के सापेक्ष महज 70 अंडा व 3.8 किलोग्राम मांस ही उपलब्ध हो पा रहा है.

बैकयार्ड मुरगीपालन से ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को न केवल न्यूनतम खर्च पर मांस और अंडे के रूप में उच्च गुणवत्ता का प्रोटीन उपलब्ध हो जाता है, बल्कि कुछ मात्रा में मांस व अंडा बेच कर कुछ ऐक्स्ट्रा आमदनी भी हासिल की जा सकती है.

पशुपालन विशेषज्ञ डा. डीके श्रीवास्तव ने बताया कि घर के पिछवाड़े मुरगीपालन के लिए किसी ऐक्स्ट्रा जमीन और श्रम की जरूरत नहीं होती है. इस में एकदिवसीय चूजों की खरीद के लिए बहुत ही कम पैसों की जरूरत होती है

मुरगियां अवशिष्ट पदार्थों व कीड़ेमकोड़ों को उच्च प्रोटीन वाले अंडे व मांस में बदल कर न केवल खाद्य सुरक्षा, बल्कि स्वच्छ प्रर्यावरण, खाद के द्वारा भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ाने और ग्रामीण इलाकों में माली रूप से पिछड़े किसानों, बेरोजगार नौजवानों को स्वरोजगार दे कर स्वावलंबी बनाती हैं.
उन्होंने कहा कि घर के पिछवाड़े मुरगीपालन के लिए कड़कनाथ, वनराजा, ग्राम प्रिया, गिरि राजा, कैरी निर्भीक, कैरी श्यामा, हितकारी, उपकारी व कैरी प्रिया आदि नस्लें उपयुक्त हैं, जिन से सालभर में 180-200 अंडे और 8-10 हफ्ते में 1.00-1.25 किलोग्राम तक शारीरिक वजन प्राप्त कर लेती हैं.

पौध रोग वैज्ञानिक डा. प्रेम शंकर ने बताया  कि देशी मुरगियों में रोग बहुत ही कम लगते हैं, फिर भी बचाव के लिए मरेक्स, लसोटा, गंवोरो आदि का टीका अवश्य लगवाना चाहिए. कुछ रोग मुरगियों में बहुत तेजी से पनपते हैं और कम समय में ही मुरगियां मर जाती हैं, इसलिए इलाज से बचाव बेहतर है.
उन्होंने कहा कि मुरगियों को हमेशा ताजा व साफ पानी पिलाना चाहिए और उसे फिटकरी व एक्वाफ्रेस (5 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में घोल कर) से उपचारित कर के ही पिलाएं.

वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. आरवी सिंह ने बायोसिक्योरिटी पर चर्चा करते हुए कहा कि मुरगीशाला में किसी भी व्यक्ति को सीधे अंदर न जाने दें. अंदर जाने वाले व्यक्ति को फार्मलीन से सेनेटाइज कराने के बाद ही जूता, चप्पल, कपड़ों को बदल कर मुरगीशाला में जाने से बाहर के रोग अंदर नहीं जा पाएंगे और मुरगियां सुरक्षित रह कर अधिक उत्पादन दे सकेंगी.

मुंडका अग्निकांड: CCTV फैक्ट्री बनी आग का गोला

पश्चिमी दिल्ली में मुंडका मैट्रो स्टेशन के पास स्थित एक तीनमंजिला कमर्शियल बिल्डिंग जब आग की लपटों में धूधू कर जलने लगी, उस समय उस में 250 से ज्यादा लोग थे. कुछ वहां मौजूद फैक्ट्री और वेयरहाउस में काम कर रहे थे तो अनेक लोग बिल्डिंग के एक हिस्से में चल रही मोटिवेशनल सेमिनार सुनने के लिए इकट्ठे हुए थे.

बिल्डिंग के रिहाइशी हिस्से में कइयों के परिजन थे, जिस में महिलाएं, बूढ़े और बच्चे थे. आग लगते ही पूरी बिल्डिंग में भगदड़ मच गई. मगर निकल भागने का रास्ता आग ने रोक रखा था. बिल्डिंग से निकलने वाला अकेला सीढ़ी का रास्ता भी आग की लपटों में घिरा हुआ था. उस के बीच से निकलना आग में कूदने के बराबर था. नीचे जेनरेटर रखा था, जो धूधू कर जल रहा था.

चारों तरफ गहरा काला धुआं भर चुका था, आग की भयावह लपटें, जल कर लाल भभूक होती दीवारें और उन के बीच जान बचाने के लिए इधरउधर भागते लोग, हृदयविदारक दृश्य था. भय, आंसू, प्रार्थना और चीखें पूरी बिल्डिंग को दहला रही थीं. अपनों के लिए दहाड़ें मारते लोग शीशे की खिड़कियों पर चिपके हुए थे कि कोई तो उन्हें वहां से निकाल ले.

दिल दहला देने वाला दृश्य था. कई कमरों में लोगों ने शीशे की खिड़कियां तोड़ दी थीं. 3 माले से लोग जान बचाने के लिए खिड़कियों से नीचे छलांग लगा रहे थे. जिन्हें रस्सी या कोई और चीज मिल गई थी, वे उस के सहारे उतरने की कोशिश कर रहे थे. बिल्डिंग के नीचे हजारों की संख्या में जमा हो चुके लोग अपने परिजनों के लिए दुआएं कर रहे थे. छटपटा रहे थे कि किस तरह उन्हें जीवित बाहर निकाला जाए.

कई लोग बदहवास से मोबाइल में रिश्तेदारों की तसवीर लोगों को दिखा रहे थे और पूछ रहे थे कि इन्हें देखा क्या, कैसे हैं ये? जिंदा तो हैं ना? नीचे आए या नहीं? किसी खिड़की पर दिख रहे हैं क्या?

30 गाडि़यां जुटी थीं आग बुझाने में

डर से कांपते लोग आग की लपटों में अपनों को खो देने के भय से फायर ब्रिगेड वालों के पैरों में गिरे जा रहे थे कि वे किसी तरह उन तक पहुंच कर उन को बचा लें. आग बुझाने के लिए 30 फायर ब्रिगेड की गाडि़यां और दमकल के सौ से ज्यादा कर्मचारी लगे थे. लगातार पानी की तेज बौछार बिल्डिंग पर मारी जा रही थी, लेकिन आग थी कि भड़कती जा रही थी, फैलती जा रही थी. जैसे सब को लील लेना चाहती हो.

दमकल कर्मचारियों की कोशिश थी कि किसी तरह सीढि़यों की आग पर काबू पाया जाए, ताकि बिल्डिंग के अंदर घुस कर सभी मंजिलों पर सर्च शुरू की जा सके. इस बीच बहुत सारे लोग जान बचाने के लिए खिड़कियों से नीचे कूदने लगे. इन में बड़ी संख्या युवतियों की भी थी. स्थानीय लोगों ने रस्सियां ला कर उन्हें क्रेन के जरिए खिड़कियों तक पहुंचाया, जिसे पकड़ कर लोग नीचे आने लगे.

कुछ लोगों को क्रेनों पर बिठा कर बाहर निकाला गया. कई तो घबराहट में ऐसे कूदे कि अपने हाथपैर तुड़वा बैठे. कई घंटों की मशक्कत के बाद फायर ब्रिगेड ने बिल्डिंग की सीढि़यों की आग पर काबू पाया, मगर धधकती दीवारों का ताप इतना ज्यादा था कि उन के बीच से निकल कर ऊपर जाना संभव नहीं हो पा रहा था. दमकलकर्मियों ने बाहर से सीढि़यां लगा कर अंदर प्रवेश किया.

सर्च शुरू हुई तो एक के बाद एक काले राख हुए शव निकलने लगे. अधिकतर शव इतने ज्यादा जल चुके थे कि उन की पहचान करना ही मुश्किल था. अफरातफरी के माहौल में मृतकों को निकाला जा रहा था. जिस की भी पहचान होती, उस के परिचित पछाड़ खाखा कर गिरने लगते थे.

बिल्डिंग में लगी आग ने कुल 27 जिंदगियां लील ली थीं और 2 दरजन से ज्यादा लोग बुरी तरह झुलस गए थे. यही नहीं, 29 से ज्यादा लोगों के बारे में कोई सुराग नहीं मिल रहा था, उन के परिजन बौखलाए हुए घटनास्थल से अस्पताल और मोर्चरी तक चक्कर काट रहे थे.

इस बिल्डिंग के एक औफिस में काम करने वाली पूजा ने ‘मनोहर कहानियां’ को बताया कि 13 मई को कंपनी के दफ्तर में कर्मचारियों की एक मोटिवेशनल सेमिनार था, जिस में कंपनी की दूसरी ब्रांचों में काम करने वाले लोग भी आए हुए थे. इस वजह से भीड़ ज्यादा थी. अभी सेमिनार चल ही रहा था कि अचानक आग लगने का शोर हुआ.

हम भाग कर बाहर आए तो देखा चारों तरफ आग की लपटें उठ रही हैं. काला धुआं तेजी से कमरों में भरने लगा. खिड़कियों पर पूरी तरह बंद शीशे थे, इसलिए धुंआ बाहर नहीं निकल रहा था. हमारी सांसें रुकने लगीं. कई लोग सीढि़यों की ओर लपके, मगर उलटे पांव वापस भागे क्योंकि सीढि़यों का रास्ता धुएं और आग से बंद हो चुका था. तब तक कुछ खिड़कियों के शीशे लोगों ने तोड़ डाले.

बाहर से कुछ रस्सियां फेंकी गईं, जिन को पकड़ कर बिल्डिंग से नीचे उतरने की कोशिश लोग करने लगे, मगर रस्सियां छोटी थीं. बहुत सारे लोग तो उन पर लटक कर नीचे जाने के बाद काफी ऊंचाई से कूद कर जान बचाते दिखे. मैं भी एक रस्सी से लटक गई. मगर बीच में ही मेरे हाथ से रस्सी छूट गई. नीचे खड़े लोगों ने मुझे जमीन पर गिरने से बचा लिया.

पूजा ने बताया, ‘मेरी भांजी दृष्टि भी इसी बिल्डिंग में काम करती है. मगर हादसे के बाद से उस का कुछ पता नहीं चल रहा है. मेरा पूरा परिवार अस्पताल और मोर्चरी में जगहजगह उसे तलाश रहा है. सेमिनार होने की वजह से अंदर लोगों की तादाद ज्यादा थी. उस मोटिवेशनल सेमिनार को सुनने के लिए काफी संख्या में युवा वहां पहुंचे थे.’

चश्मदीदों ने बताया कि हादसे के बाद दमकल की गाडि़यां भी मौके पर देरी से पहुंचीं. तब तक आग बहुत ज्यादा फैल चुकी थी. आग बुझाने के बाद सर्च औपरेशन देर रात तक जारी था. दूसरे दिन सुबह तक अंदर से लाशें निकलती रहीं.

दिल्ली पुलिस ने 60-70 लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने की पुष्टि की है. एक महिला जान बचाने के लिए इमारत से बाहर कूद पड़ी, जिस से उस की मौत हो गई. देर रात तक उस महिला की पहचान नहीं हो पाई थी. उस की उम्र 40-45 साल थी. हादसे में जख्मी हुए 9 लोगों को संजय गांधी अस्पताल में इलाज के लिए भरती कराया गया.

आग से जान बचा कर निकले पंकज ने बताया कि इमारत चारों तरफ से शीशे से ढंकी हुई है और खिड़कियों में भी विंडो एसी लगे हुए थे. इसी वजह से धुआं अंदर ही अंदर और तेजी से फैलता चला गया. जब आग लगने का पता चला तो बाहर की तरफ से शीशे तोड़ कर और कुछ खिड़कियां खोल कर रास्ता बनाया गया और नीचे से सीढि़यां लगा कर और रस्से लटका कर लोगों को बाहर निकाला गया.

मुंडका में आसपास के प्रतिष्ठानों में काम करने वाले लोगों ने बताया कि इस बिल्डिंग में कोफ इंपेक्स प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी में सीसीटीवी कैमरे, राउटर पार्ट्स की असेंबलिंग इंपोर्ट कर के ट्रेडिंग की जाती है. कंपनी में करीब 100 कर्मचारी काम करते थे, जिन में 50 युवतियां थीं. बिल्डिंग की पहली मंजिल पर फैक्ट्री थी और दूसरे पर वेयरहाउस, जिस में कार्यरत अधिक संख्या युवतियों की थी.

अपनों को जलते देखा आग में

इसमाइल खान ने अपनी बहन को तब जिंदा देखा था, जब आग लगी थी. वह एक खिड़की के शीशे को पीट रही थी. इसमाइल दौड़ाभागा उसे बचाने की कोशिश में जुट गया.

इसमाइल ने बताया कि मैं ने उस से शाम 5 बजे बात की, उस समय फायर ब्रिगेड की गाडि़यां ट्रैफिक जाम में फंसी थीं. मैं ने उसे उस की दोस्त के साथ खिड़की पर खड़े देखा था और बारबार उस से नीचे कूदने को कहा, लेकिन वह हिम्मत नहीं जुटा सकी. फिर मैं ने बिल्डिंग फांद कर उस तक पहुंचने की कोशिश की, लेकिन मैं बुरी तरह घायल हो गया.

हम ने हाल ही में अपने पिता को खोया था और लगा कि अगर बहन को कुछ हो गया तो मेरा तो जीना मुश्किल हो जाएगा. मैं सच में उसे बचाना चाहता था. मगर मैं उसे बचा नहीं पाया. इसमाइल बहन को याद करके बुरी तरह फफक पड़ा.

एक अन्य व्यक्ति जो पास ही खड़ा था, उस ने बताया हम अपनी साली को ढूंढने के लिए एक से दूसरे अस्पतालों के बीच भागदौड़ करते रहे. किसी ने उस के बारे में कुछ नहीं बताया.

पुलिस वालों ने भी हाथ खड़े कर दिए. उन्होंने किसी तरह की सूचना देने से इनकार कर दिया. पुलिस वालों ने कहा कि अब एक ही रास्ता बचा है कि मृतकों की पहचान की जाए. जो शव अंदर से निकाले गए हैं वो इतनी बुरी तरह जल चुके हैं कि किसी को देख कर पहचानना बहुत मुश्किल है. अब हमें डीएनए रिपोर्ट आने तक इंतजार करना होगा.

सुनीता नाम की महिला अपनी एक रिश्तेदार सोनम को ढूंढ रही थी. उस ने कहा कि वह सुरक्षा व्यवस्था के कारण तुरंत बिल्डिंग के पास नहीं पहुंच सकी थी. उसे पता ही नहीं चल रहा है कि सोनम निकल पाई या नहीं.

कई दूसरे लोगों ने आरोप लगाया कि वे अपने परिजनों के बारे में पुलिस वालों से पूछते रहे, लेकिन उन्हें कुछ जवाब नहीं मिला. मौके पर सब सन्न थे, किसी के पास कोई जवाब ही नहीं था.

पश्चिमी दिल्ली के संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल के बाहर लोगों की भीड़ जमा थी. भीड़ के बीच एक युवा बमुश्किल अपने आंसुओं को रोके गुमसुम खड़ा था. उस से पूछने पर अपने आप को संभालते और आंसू पोछते हुए कहा, ‘मेरी गर्लफ्रैंड भी आग में फंसी थी. उस ने मुझे वीडियो काल किया. मैं उस की हिम्मत बढ़ा रहा था. धीरेधीरे धुआं बढ़ता जा रहा था और फिर काल कट गई.’ उस युवक की गर्लफ्रैंड अब लापता है.

संजय गांधी अस्पताल के बाहर कई ऐसे परिवार थे, जिन के अपने आग की घटना के बाद से लापता थे. 14 साल की मोनी अपनी बहन पूजा को खोजते हुए अस्पताल पहुंची थी.

19 साल की उस की बहन उसी सीसीटीवी कंपनी के औफिस में नौकरी करती थी, जिस में आग लगी. मोनी ने बताया कि हमें न्यूज से आग लगने का पता चला और हम दौड़ते हुए यहां आए. हमें नहीं पता कि हमारी बहन कहां है, प्रशासन ने बस इतना ही कहा है कि संजय गांधी अस्पताल में पता करो.

मोटिवेशनल स्पीकर कैलाश ज्ञानी और उन के बेटे ने गंवाई जान

मुंडका अग्निकांड में मोटिवेशनल स्पीकर कैलाश ज्ञानी और उन का बेटा अमित ज्ञानी भी नहीं रहे. जब आग लगी, तब कैलाश ज्ञानी की स्पीच चल रही थी. इसे अटेंड करने के लिए काफी संख्या में कर्मचारी पहुंचे थे. ये कर्मचारी सीसीटीवी कैमरे और राउटर बनाने वाली कंपनी के थे.  इस कंपनी के मालिक हरीश गोयल और वरुण गोयल हैं, जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है.

आग लगने पर बाहर निकलने का रास्ता न मिल पाने के कारण कैलाश ज्ञानी और उन का बेटा अन्य लोगों के साथ वहां फंस गए और दोनों की जान चली गई.

कैलाश ज्ञानी लंबे समय से सफलता और मैनेजमेंट पर सेमिनार करते आ रहे थे. उन की स्पीच यूट्यूब और फेसबुक पर खूब हैं और लोगों द्वारा बहुत पसंद किए जाते हैं. मगर मुंडका का सेमिनार उन का आखिरी सेमिनार साबित हुआ.

बबलू की हिम्मत और होशियारी ने बचाई 30 लोगों की जान

मुंडका की इमारत में जब आग लगी तो कुछ दूर बैठे बबलू की नजर इस बिल्डिंग पर पड़ी. उन्होंने इस बड़ी मुसीबत को पलक झपकते भांप लिया. उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले से ताल्लुक रखने वाले बबलू मुसीबत में फंसे लोगों के लिए देवदूत बन कर आए.

पेशे से कबाड़ी का काम करने वाले बबलू ने बिना वक्त गंवाए भागते हुए अपनी कबाड़ की दुकान से 12-15 गद्दे और रस्सी निकाली. कुछ लोगों को मदद के लिए पुकारा और गद्दे और रस्सियां उठा कर भागते हुए बिल्डिंग के पास पहुंचे.

उन्होंने शीशे की खिड़कियों के नीचे गली में एक के ऊपर एक कई गद्दे बिछा दिए. पास रखी रस्सी को ऊपर की तरफ फेंका और लोगों से इसे पकड़ कर नीचे आने के लिए चिल्लाने लगे.

लोगों ने हिम्मत दिखाई और बबलू की फेंकी रस्सी के सहारे नीचे उतरने लगे. वे भीषण लपटों के बीच लोगों को रस्सी पकड़ कर नीचे कूदने की अपील कर रहे थे. कुछ लोग रस्सी पकड़ कर सीधे नीचे उतर रहे थे, जबकि कुछ लोग छलांग लगा कर सीधे गद्दों पर गिरे और बच गए.

कुछ लोग रस्सी से उतरने की कोशिश में घबरा कर गिरे और उन्हें बचाने के दौरान बबलू को खुद कई जगह चोटें आईं. लेकिन वह कहते हैं कि यह चोट कुछ भी नहीं है. मुझे दुख है कि अगर फायर ब्रिगेड की टीम जल्दी पहुंच जाती तो और काफी लोगों को बचाया जा सकता था, क्योंकि शुरू में आग ने भयानक रूप नहीं लिया था. बबलू ने 1-2 नहीं, बल्कि 30 से अधिक लोगों को बाहर निकाला. उन्होंने तब तक दम नहीं लिया, जब तक कि इस आग में उन की रस्सी पूरी तरह से जल नहीं गई. बबलू इस अग्निकांड के न सिर्फ एक चश्मदीद हैं, बल्कि एक रीयल लाइफ हीरो हैं.

हादसा तो तय था, पहले भी लग चुकी थी आग

मुंडका के स्थानीय लोगों का कहना है कि वहां हादसा होना तय था. यहां कई बिल्डिंग्स अवैध रूप से बनी हुई हैं, जिन्हें देख कर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है. यहां कई बार आग लगने की छोटीछोटी घटनाएं हुई हैं, लेकिन तब हंगामा नहीं बरपा और बात को दबा दिया गया.

उन का कहना है कि अधिकारियों और बिल्डरों के बीच ऐसा नेक्सस है कि सुरक्षा नियमों को ताक पर रख कर बिल्डिंग बनाने की अनुमति मिल जाती है.

दिल्ली में ऐसी अनेक फैक्ट्रियां मिल जाएंगी, जहां ऐसे इंतजाम ही नहीं है कि अगर आग लग जाए तो बाहर निकलने का कोई वैकल्पिक रास्ता हो. फैक्ट्रियां ही नहीं, दिल्ली में बड़ी संख्या में ऐसे बिल्डर फ्लैट हैं, जहां 4 मंजिला इमारत में उसी जगह बिजली के मीटर लगाए गए हैं, जहां से लोग ऊपर की मंजिलों पर आतेजाते हैं.

कई ऐसे फ्लैटस में हादसे भी हो चुके हैं, जिन में मीटरों में ही आग लगने से ऊपर धुआं भर गया और लोग सीढि़यों से नीचे आ ही नहीं सके. लेकिन इन हादसों के बावजूद अब तक बिल्डर फ्लैट्स में इस चलन को समाप्त करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है.

आग लगने की घटनाओं की एक बड़ी वजह ये है कि जब इमारतें बनती हैं, उस वक्त अग्निशमन उपायों पर विचार ही नहीं किया जाता है. दिल्ली में हजारों की संख्या में ऐसी फैक्ट्रियां हैं, जिन में न तो अग्निशमन के लिए पर्याप्त इंतजाम हैं और न ही बिल्डिंग का नक्शा बनाते वक्त ऐसी व्यवस्था की गई कि आग लगने पर लोगों के बाहर निकलने का कोई अन्य रास्ता हो.

100 दमकल कर्मियों ने रात भर चलाया राहत अभियान

दिल्ली फायर सर्विस के डायरेक्टर अतुल गर्ग के मुताबिक, मुंडका की आग पर काबू पाने के लिए 30 से ज्यादा दमकल वाहन और 100 से ज्यादा कर्मचारी मौके पर भेजे गए थे.

उधर, राष्टीय आपदा प्रबंधन बल (एनडीआरएफ) की भी एक टीम देर रात मौके पर पहुंच गई थी और उस ने भी राहत कार्यों को अंजाम दिया. बाद में कूलिंग औपरेशन भी शुरू किया गया. एक विशेष सूचना केंद्र बना दिया गया, ताकि लोगों को उन के परिजनों, रिश्तेदारों, दोस्तों के बारे में जानकारी दी जा सके.

अतुल गर्ग का कहना है कि बिल्डिंग में शायद ज्वलनशील पदार्थ इकट्ठा किए गए थे. इस कारण आग तेजी से फैल गई. अधिकांश शव पूरी तरह जले हुए थे. इस के अलावा बिल्डिंग से निकासी का सिर्फ एक ही रास्ता था सीढ़ी का, जिस के नीचे जेनरेटर रखा था.

आग शायद जेनरेटर से ही लगी थी और सीढि़यों के जरिए पहले माले तक पहुंची, जहां कुछ ज्वलनशील पदार्थों के संपर्क में आते ही भड़क गई. इस इमारत का फायर एनओसी नहीं था और आग बुझाने का कोई उपकरण भी नहीं था. इमारत में प्लास्टिक का सामान और सीसीटीवी बनाने का सामान भरा हुआ था, इसलिए आग एक मंजिल से दूसरी पर बहुत तेजी से फैल गई.

पुलिस ने काररवाई करते हुए कंपनी के मालिकों हरीश गोयल और वरुण गोयल को गिरफ्तार कर लिया और इमारत की मालिक सुशीला लाकड़ा, उस के बेटे मनीष लाकड़ा, मनीष की पत्नी सुमित्रा लाकड़ा के खिलाफ भादंवि की धारा 308, 304, 120बी और 34 के तहत मामला दर्ज कर लिया. फैक्ट्री मालिक पीतमपुरा निवासी हैं.

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दोषियों पर कड़ी काररवाई का दिया भरोसा

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया ने घटना के दूसरे दिन घटनास्थल का निरीक्षण किया, जहां गुजरी शाम हुए अग्निकांड में 27 लोगों के शव निकाले गए थे. केजरीवाल ने हादसे में मारे गए लोगों के परिवार वालों को 10-10 लाख रुपए और घायलों को 50-50 हजार रुपए मुआवजे के तौर पर देने का ऐलान किया.

केजरीवाल ने कहा है कि किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा. मामले को गंभीरता से लेते हुए एक हेल्प डेस्क भी बनाई गई और बिल्डिंग में कार्यरत सभी कर्मचारियों के परिजनों से संपर्क किया जा रहा है. इस के साथ उन्होंने इस मामले पर कड़ी काररवाई की बात कहते हुए मजिस्ट्रैट से जांच कराने के आदेश भी दे दिए.

वहीं राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी आग लगने से हुई लोगों की मौत पर शोक जताया है.

प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से इस हादसे में जान गंवाने वालों के आश्रितों को 2-2 लाख रुपए तथा घायलों को 50-50 हजार रुपए की राशि दिए जाने का भी ऐलान हुआ.

राजधानी में आग लगने की घटनाओं का पुराना इतिहास है

मुंडका की घटना ने 13 जून, 1997 को दिल्ली के ग्रीन पार्क स्थित उपहार सिनेमा हाल अग्निकांड और झांसी रोड स्थित अनाज मंडी में आग लगने की घटनाओं की याद ताजा कर दी है.

अनाज मंडी में 3 साल पहले 8 दिसंबर, 2019 को आग लगी थी, जिस में 45 लोगों की झुलसने और दम घुटने से मौत हो गई थी और दरजनों लोग जख्मी हुए थे. घटना सुबह 5 बजे हुई थी, जब जाड़े की सर्द सुबह में लोग गहरी नींद में सो रहे थे.

यहां भी निकासी का एक संकरा सीढ़ी का रास्ता था और नीचे सामान पटा पड़ा था, जिस में आग लगने से निकासी का मार्ग अवरुद्ध हो गया था.

जिस बिल्डिंग में आग लगी थी, वहां खिड़कियों पर लोहे की ग्रिल लगी थीं, जिन्हें अंदर फंसे लोग तोड़ नहीं पाए और कमरों के अंदर ही जल कर खाक हो गए.

दक्षिण दिल्ली के ग्रीन पार्क में उपहार सिनेमा हाल में लगी भीषण आग में 59 लोगों की जान चली गई थी. इस भीषण अग्निकांड ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था. सिनेमा हाल में लगी इस आग में 100 से अधिक लोग घायल हो गए थे.

जिस समय यह हादसा हुआ सिनेमाघर में बौर्डर फिल्म चल रही थी. इस के बाद भी आग लगने की अनेक घटनाएं हुईं, मगर दिल्ली सरकार ने कोई सबक नहीं लिया.

भ्रष्टाचार के शिकंजे में ऐसे फंसी IAS पूजा सिंघल

महेंद्र सिंह धोनी के साथ अपना जन्मदिन सेलिब्रेट करने वाली आईएएस पूजा सिंघल ने 22 साल की अफसरी में काले धन का जो खजाना जुटाया, उस में मजदूरों का पैसा भी शामिल था.  साल 2000 बैच की आईएएस पूजा सिंघल के सितारे गर्दिश में तब आ गए, जब उन की मनरेगा घोटाले से जुड़े मनी लौंड्रिंग मामले में 11 मई, 2022 को गिरफ्तारी हो गई. उन के अपने घर से ले कर ससुराल, पति के अस्पताल और उन से जुड़े लोगों पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) टीम ने एक साथ छापेमारी की.

ईडी द्वारा 5 राज्यों के 25 ठिकानों पर हुई छापेमारी में कुल 19.31 करोड़ रुपए बरामद हुए और वह करीब 20 शेल कंपनियों को ले कर सुर्खियों में आ गईं. साथ ही 150 करोड़ की अवैध संपत्ति के दस्तावेज जब्त कर लिए गए.

प्रवर्तन निदेशालय के रांची स्थित क्षेत्रीय कार्यालय के बाहर 11 मई, 2022 को खान व उद्योग विभाग की सचिव पूजा सिंघल की गिरफ्तारी को ले कर दिन भर गहमागहमी बनी रही. छापेमारी के बाद पूजा सिंघल को भी पूछताछ के लिए बुलाया गया था. दिन के करीब सवा 10 बजे वह ईडी के दफ्तर पहुंची थीं. वहां उन से पूछताछ की गई.

इस के बाद दोपहर में उन के पति अभिषेक झा को बुलाया गया, जिस के बाद दोनों से पूछताछ हुई. शाम करीब सवा 5 बजे सूचना आई कि पूजा सिंघल व उन के पति को गिरफ्तार कर लिया गया है.

ईडी औफिस में ही उन का मैडिकल कराया गया. इस के बाद उन्हें प्रवर्तन निदेशालय द्वारा कोर्ट ले जाने की तैयारी की जाने लगी. शाम करीब साढ़े 7 बजे उन्हें क्षेत्रीय कार्यालय से कोर्ट ले जाया गया.

पूजा सिंघल की गिरफ्तारी के बाद सिविल कोर्ट व जज कालोनी में घंटों अफरातफरी मची रही. गिरफ्तारी की सूचना पर ईडी के विशेष लोक अभियोजक बी.एम.पी. सिंह व लोक अभियोजक अतीश कुमार पहले सिविल कोर्ट पहुंचे, इस के बाद मीडियाकर्मी और शाम करीब साढ़े 6 बजे ईडी के अधिकारी भी सिविल कोर्ट पहुंचे.

कागजी काररवाई के बाद सभी विशेष न्यायाधीश पी.के. शर्मा के आवासीय कार्यालय गए. वहां सुनवाई हुई और पूजा सिंघल को जेल भेज दिया गया.  ईडी औफिस में प्रवेश करने से ले कर बाहर निकलने तक पूजा सिंघल गुमसुम और थकीथकी लग रही थीं. उन के साथ एक महिला भी थी.

गिरफ्तार पूजा सिंघल ईडी की स्पैशल कोर्ट में पेशी के बाद रांची के बिरसा मुंडा केंद्रीय जेल, होटवार में पहुंचते ही चक्कर खा कर बेहोश हो गईं. जेलकर्मियों ने उन के चेहरे पर ठंडा पानी छिड़का और दवा खिलाई, तब जा कर वह होश में आईं.

जेल सूत्रों के अनुसार, वहां उन्हें रोटी, सब्जी, दाल व सलाद दी गई. थोड़ी सी रोटी खाने के बाद उन्होंने खाने से इंकार कर दिया. उस वक्त वह काफी उदास और खामोश थीं. उन्हें महिला सेल में रखा गया.

ऐशोआराम की जिंदगी गुजार रही पूजा को सामान्य कैदी की तरह फर्श पर सोने को मजबूर होना पड़ा. कमरे में मच्छर काटने और वार्ड में पसरी गंदगी से बदबू के चलते पूरी रात वह सो नहीं पाईं. सुबह होते ही जेलकर्मियों पर अपना रौब दिखाने लगीं और जेल का खाना खाने से मना कर दिया.

कुछ समय में ही उन्हें एहसास हो गया कि वह रिमांड पर ली गई एक कैदी है, न कि कोई हाकिम. उन्हें ईडी के सवालों के जवाब भी देने थे. फिर भी सामान्य दिनचर्या को भूलना सहज नहीं हो पा रहा था.

ईडी के जांच अधिकारियों के लिए उन से सख्त पूछताछ करना आसान नहीं था. उन्होंने डाक्टर की मदद ली. डाक्टर ने उन के बेहोश हो जाने का कारण मानसिक तनाव में नींद का नहीं आना बताया. इसी के साथ उन्हें योगा करने की सलाह दी गई.

यूं शुरू हुई छापेमारी

केंद्रीय वित्त विभाग की एक महत्त्वपूर्ण शाखा ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी दिल्ली से पूरे दलबल के साथ 4 और 5 मई, 2022 को रांची पहुंच चुके थे. उन्होंने एयरपोर्ट रोड स्थित ईडी के औफिस (पूर्व में पूर्व मंत्री एनोस एक्का का आवास) पर औपरेशन के ब्लूप्रिंट को अंतिम रूप दिया था.

देर रात तक सभी औफिस में ही रुके रहे. उन्हें करीब 10 साल पुराने खूंटी मनरेगा घोटाले से संबंधित एक जांच और छापेमारी करनी थी. हालांकि ईडी झारखंड में पहले से ही 2 दरजन से अधिक मामलों में जांच कर रहा है. फिर भी उस रोज जो काररवाई होनी थी, वह बेहद खास थी.

वीवीआईपी नौकरशाह से जुड़ा मामला होने के कारण ईडी ने पहले से ही औपरेशन का ब्लूप्रिंट तैयार कर लिया था. बाधाओं की आशंका को देखते हुए स्थानीय पुलिस के अलावा सीआईएसएफ और सीआरपीएफ को भी शामिल कर लिया गया था. और तो और, इस काररवाई की किसी को भनक तक नहीं लगने दी गई थी.

दरअसल, जांच झारखंड कैडर की वरिष्ठ आईएएस अधिकारी पूजा सिंघल के खिलाफ थी और छापेमारी उन के  हनुमान मंदिर स्थित ‘बूटीमो’ के आवास से ले कर पति समेत दूसरे परिचितों व रिश्तेदारों के कई ठिकानों पर की जानी थी. उन में पति के मालिकाना हक वाले रांची का एक बहुचर्चित सुपर स्पैशलिटी अस्पताल ‘पल्स’ भी था.

25 ठिकानों पर हुई छापेमारी

सुबह ठीक 7 बजे टीम के लोग एक साथ स्कूल बस और कारों से उन के कुल 25 ठिकानों पर पहुंच गए थे. वे ठिकाने थे भूविज्ञान विभाग की सचिव पूजा सिंघल का आवास, पल्स हौस्पिटल, पंचवटी रेजीडेंसी, कांके रोड, चांदनी चौक, हरिओम टावर आदि.

इसी दिन धनबाद के धनसार और सरायढेला में भी ईडी की छापेमारी शुरू हुई, जो अगले रोज 5 मई की शाम तक चली. वहां जांच करने वाले पश्चिम बंगाल के नंबर की गाड़ी से पहुंचे थे.

धनबाद के देवप्रभा, धनसार इंजीनियरिंग (डेको), हिलटौप हाइराइज, जीटीएस ट्रांसपोर्ट, संजय उद्योग, नवीन तुलस्यान समेत कुल 9 कंपनियों के कार्यालयों पर छापेमारी की गई. एकएक कार्यालयों में 3-4 गाडि़यों से टीम पहुंची, जिस में स्थानीय पुलिस भी शामिल थी.

अचानक हुई ईडी की इस काररवाई से पूरे प्रदेश ही नहीं, दिल्ली तक में खलबली मच गई. राजनीतिक गलियारों, नौकरशाहों, बड़ेबड़े कारोबारियों, खनन विभाग से जुड़ी कंपनियों से ले कर मीडिया जगत में सनसनी फैल गई. कई तरह की चर्चाएं होने लगीं और अटकलों का बाजार गर्म हो गया. इन छापेमारी में सब से संवेदनशील जगह पल्स अस्पताल था, जहां ईडी की टीम शांति से पहुंची थी.

अस्पताल के भीतर केवल स्टाफ को ही एंट्री दी जा रही थी. अधिकारियों ने छापेमारी के लिए रांची के बरियातू स्थित पल्स अस्पताल में काफी सावधानी बरती. कई अधिकारी पैदल ही अस्पताल में पहुंचे. अस्पताल को पूरी तरह कब्जे में लेने के बाद अस्पताल से बाहर जाने वाले हर शख्स का परिचय पत्र और सामानों की चैकिंग की गई.

जांच करने वाले एक अधिकारी ने 5 मई को इस की औपचारिक जानकारी न्यूज एजेंसी पीटीआई को दी थी. उन्होंने बताया कि ईडी ने खनन मामले में झारखंड और अन्य राज्यों में कई ठिकानों पर छापेमारी की है. मामला गंभीर है.

यह छापेमारी झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में 18 परिसरों में धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के प्रावधानों के तहत की गई है. भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की अधिकारी एवं झारखंड खनन सचिव पूजा सिंघल के परिसर की भी तलाशी की गई है.

जांच अधिकारी ने ही बताया कि यह मामला झारखंड के कनिष्ठ अभियंता राम बिनोद प्रसाद सिन्हा के खिलाफ 2020 में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा पीएमएलए के तहत दर्ज है. कुछ साल पहले झारखंड सतर्कता ब्यूरो द्वारा सिन्हा के खिलाफ 16 प्राथमिकी और आरोपपत्र दायर किए गए थे.

सिन्हा पर ‘अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग करने, जालसाजी और धन की हेराफेरी के जरिए 18 करोड़ रुपए के सरकारी धन का गबन करने’ का आरोप लगाया गया था. उसी संदर्भ में ईडी ने जांच शुरू की, जो 6 मई की शाम तक चलती रही.

झारखंड के रांची, धनबाद व खूंटी, बिहार के मुजफ्फरपुर, राजस्थान के जयपुर, मुंबई, हरियाणा के फरीदाबाद व गुरुग्राम, पश्चिम बंगाल के कोलकाता और दिल्ली एनसीआर के डेढ़ दरजन से अधिक जगहों पर एक साथ छापेमारी की गई.

बिहार के मुजफ्फरपुर में पूजा सिंघल के पति अभिषेक झा का पैतृक मकान है. वहां छापेमारी के क्रम में उन के पिता कामेश्वर झा से भी पूछताछ की गई. पूजा सिंघल के चार्टर्ड एकाउंटेंट (सीए) सुमण कुमार के रांची स्थित ठिकाने से भारी मात्रा में कैश बरामद हुआ, जिस की गिनती मशीन द्वारा की गई.

छापेमारी सीए के अलावा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के करीबी माने जाने वाले व्यवसाई अमित अग्रवाल के ठिकानों पर भी हुई, जहां से बेनामी संपत्ति के सुराग मिले.

रांची में छापेमारी की मुख्य जगहों में कांके रोड के चांदनी चौक स्थित पंचवटी रेजिडेंसी के ब्लौक नंबर 9, लालपुर के हरिओम टावर स्थित नई बिल्डिंग और बरियातू का पल्स अस्पताल चर्चा का केंद्र बना.

पूजा देश में सब से कम उम्र की बनी थी आईएएस अधिकारी

देहरादून की मूल निवासी आईएएस पूजा सिंघल आज भले ही मुश्किल के दिनों से गुजर रही हों, लेकिन साल 2000 में उन की किस्मत बुलंदी पर थी. तब उन की उम्र थी मात्र 21 साल कुछ महीने. उन्होंने 1999-2000 की सिविल सेवा के लिए यूपीएससी द्वारा ली जाने वाली सभी तीनों परीक्षाएं पास कर सभी को चौंका दिया था. परीक्षा में उन्होंने 26वां रैंक हासिल किया था

वह देहरादून के गढ़वाल विश्वविद्यालय की स्नातक हैं. उन्होंने अपना ग्रैजुएशन बिजनैस एडमिनिस्ट्रेशन में किया था. वह परीक्षा भी उन्होंने प्रथम श्रेणी से पास की थी. इस के बाद वह आईएएस की परीक्षा में शामिल हुई थीं और पहले ही प्रयास में पास कर गईं.

इस तरह वह देश की सब से कम उम्र में आईएएस बनने वाली युवा बन गई थीं. उन का नाम लिम्का बुक औफ रिकौर्ड्स में दर्ज कर लिया गया. उन्हें झारखंड का काडर मिला था.

उसी साल नए राज्य के तौर पर झारखंड अस्तित्व में आया था. पूजा के लिए झारखंड में सब कुछ नया था. माहौल नया. मिजाज बिलकुल अलग. नया शासन और कामकाज का तरीका गृह प्रदेश से एकदम भिन्न.

वह हरियाली और ऊंचेऊंचे पहाड़ों और लंबेलंबे पेड़ों और झरनों की खुशनुमा वादियों को छोड़ कर सख्त पथरीली पहाडि़यों, घने जंगलों के आदिवासी बहुल इलाके में आ गई थीं.

अकसर आकर्षक प्रिंट वाली गहरे रंगों वाली साड़ी पहनने वाली पूजा सिंघल साल 2006 में उपायुक्त (डीसी) बनाई गई थीं. इस पद पर उन की पहली पोस्टिंग पाकुड़ में हुई. इस दौरान मनरेगा के तहत बेहतर कार्य प्रबंधन और रोजगार सृजन के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला.

वह झारखंड के उन गिनेचुने आईएएस अधिकारियों में शामिल हो गईं, जिन्हें ‘पीएम अवार्ड फार एक्सीलेंस इन पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन’ मिल चुका है.

पाकुड़ के बाद उन्होंने चतरा, लोहरदगा, खूंटी और पलामू जिलों की उपायुक्त (डीसी) रहते हुए कई महत्त्वपूर्ण पदों को भी संभाला. इस दौरान झारखंड में सभी मुख्यमंत्रियों से उन के अच्छे संबंध बने रहे.

झारखंड में 8 साल पहले तक अस्थिर सरकारें रहीं और कई बार राष्ट्रपति शासन भी लगा. इस का अप्रत्यक्ष तौर पर भी उन्हें फायदा मिलता रहा.

उन्हें प्रोफेशनल संबंध बनाने में मदद मिली और राज्य के कई राजनेताओं, उन की पत्नियों, चिकित्सकों और ब्यूरोक्रेसी के लोगों से बेहतर निजी ताल्लुकात बना लिए. कहने को तो वह औफिस में कड़क अधिकारी थीं, लेकिन सामाजिक कार्यक्रमों में वह बेहद सहज और मुखर महिला के तौर पर जानी जाती थीं.

वैसे तो पूजा सिंघल के निजी परिवार के बारे में लोग ज्यादा नहीं जानते हैं, लेकिन उन से उम्र में छोटे अभिषेक झा उन के दूसरे पति हैं. इस से पहले उन की शादी झारखंड कैडर के ही आईएएस राहुल पुरवार से हो चुकी है. बताते हैं कि उन से 2 बच्चे भी हैं.

22 साल के करिअर की कलंक कथा

अभिषेक झा रांची के पल्स सुपर स्पेशियालिटी अस्पताल के प्रबंध निदेशक हैं, जबकि उन का पैतृक निवास बिहार के मुजफ्फरपुर में है.

वरिष्ठ आईएएस अधिकारी पूजा सिंघल का करिअर उड़ते गुब्बारे की तरह जितनी तेजी से आसमान में पहुंचा और चमक बिखेरी, उतनी ही तेजी से फट कर जमीन पर भी आ गिरा. देश के सब से कम उम्र की आईएएस पूजा ने 22 सालों में झारखंड के सभी मुख्यमंत्रियों के साथ काम किया और इस रसूख का जम कर अपने निजी फायदे के लिए इस्तेमाल किया.

पूजा सिंघल की 2 दशक से अधिक समय के करिअर में करीब 19 स्थानों पर नियुक्ति हुई. शुरुआती कुछ दिनों की छोड़ दें तो वह जहां भी रहीं, वहां विवादों में फंसती रहीं. पहली तैनाती हजारीबाग में सदर अनुमंडल अधिकारी के रूप में हुई थी. यहां अपने काम के कारण वह काफी चर्चित रहीं.

शिक्षा परियोजना में पदस्थापन के दौरान भी उन का कार्यकाल अच्छा रहा. उन्होंने बच्चों को दी जाने वाली किताबों के गिरोह का भंडाफोड़ भी किया. उन के नेतृत्व में ही पहली बार झारखंड में विकलांगों का डाटा संग्रह हुआ था. रिम्स में निदेशक (प्रशासन) के तौर पर भी उन का कामकाज काफी सराहनीय रहा.

लेकिन बाद में विवादों से नाता तब से जुड़ना शुरू हो गया जब वह कृषि विभाग में गईं. भाजपा नेतृत्व वाली सरकार में उन का सचिव रैंक में प्रमोशन हुआ और वह कृषि सचिव बनाई गईं. साथ ही 2004 में नए बने मनरेगा, जो तब नरेगा था, के लिए डिप्टी कलेक्टर के पद पर खूंटी जिले में नियुक्त की गईं.

उन की कलंक कथा खूंटी जिले से शुरू हुई, जहां वह 16 फरवरी, 2009 से 14 जुलाई, 2010 तक वहां तैनात थीं. उन पर मनरेगा फंड से 18 करोड़ की हेराफेरी का आरोप लगा था. ईडी खूंटी समेत चतरा जिलों में मनरेगा फंड की अनियमितताओं में सिंघल के संलिप्त होने की जांच कर रही है.

खनन माफियाओं को पहुंचाया फायदा

इस के साथ ही ईडी पूजा सिंघल के खिलाफ एक अन्य शिकायत के आधार पर भी जांच कर रही है, जिस में आरोप लगाया गया है कि वह अपनी मरजी से रेत खनन के लिए ठेके अपने पसंद के ठेकेदारों को ही देती रही हैं. इस बाबत झारखंड हाईकोर्ट के अधिवक्ता राजीव कुमार ने फरवरी 2022 में ईडी के पास शिकायत दर्ज कराई थी.

पूजा सिंघल के उन जिलों में उपायुक्त के रूप में पदस्थापित होते ही उन का विवादों से नाता जुड़ गया था. केंद्र सरकार की मनरेगा (महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम)  के तहत 3 महीने की रोजगार गारंटी का प्रावधान है. इस के लिए स्थानीय स्तर पर रोजगार मुहैया करवाने की जिम्मेदारी जिलाधिकारी पर होती है.

वह रोजगार कोई नियमित वेतन की नौकरी का नहीं, बल्कि दिहाड़ी मजदूरी से संबंधित है. इस में इलाके में सड़क निर्माण, बांध बनाने, तालाब खुदवाने, गांव की गलियों को पक्का करने, नालियां बनवाने, सार्वजनिक निर्माण आदि से संबंधित कार्य हो सकते हैं.

इस योजना की जब शुरुआत हुई थी, तब मजदूरों के चयन से ले कर उन के भुगतान का काम पूरी तरह से मैनुअल होता था. उन दिनों डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर (डीबीटी) की शुरुआत नहीं हुई थी. ऐसे में फरजी रजिस्टर बनाना कोई मुश्किल काम नहीं था.

बिचौलिए के तौर पर पंचायत से जुड़े लोगों की मनमरजी चलती थी और वे सभी तरह के अधिकारियों से मिल कर निर्माण कार्य की परियोजना बनाने से ले कर उस के लिए होने वाले भुगतान में भी दखलअंदाजी रखते थे.

इस तरह से मनरेगा के तहत निर्माण कार्य की परियोजना के पूरे फंड की बंदरबांट बड़ी आसानी से हो जाती थी और कमीशन का एक हिस्सा जिला उपायुक्त तक भी जाता था.

झारखंड में विकास के नाम पर मनरेगा के तहत आने वाली योजनाएं दुधारू गाय बन चुकी थीं. खासकर पेयजल के लिए कुएं खुदवाने, गहराई तक हैंडपंप लगवाने और सिंचाई के तालाब खुदवाने एवं उस की सफाई करवाने का काम जरूरी समझा जाता था. आदिवासियों की संख्या अधिक होने के कारण फरजी मजदूरों की सूची आसानी से बना ली जाती थी.

खूंटी में जिला उपायुक्त के पद पर रहते हुए पूजा सिंघल पर मनरेगा स्कीम में 18 करोड़ रुपए की गड़बड़ी करने का मामला सामने आया. इस मामले में उन पर इंजीनियरों से सांठगांठ करने का आरोप भी लगा. लेकिन विभागीय जांच के बाद पूजा सिंघल को क्लीन चिट मिल गई थी.

इस के बाद वहां से उन का स्थानांतरण चतरा किया गया. चतरा में उन पर 6 करोड़ रुपए एक एनजीओ को नियम विरुद्ध दिए जाने का आरोप लगा. इस मामले को विधायक विनोद सिंह ने सदन में उठाया था.

विधानसभा की कमेटी ने जांच भी की थी. चतरा में ही तैनाती के दौरान इन पर आतंकी हमला भी हुआ था. इस कारण उन्हें अस्पताल में भरती कराना पड़ा था.

पूजा सिंघल पर कृषि विभाग में विशेष सचिव के रूप में तैनाती के दौरान भी उन पर अनियमितता के कई आरोप लगे. इस कारण उन्हें समयबद्ध प्रोन्नति नहीं मिल पाई. बाद में उपायुक्त रहने के दौरान उन पर लगे आरोपों की विभागीय जांच कराई गई. उद्योग विभाग के सचिव ए.पी. सिंह को विभागीय जांच के लिए संचालन पदाधिकारी बनाया गया था. श्री सिंह ने जांच के बाद क्लीन चिट दे दी थी.

फिर भी बनी रही पहुंच

क्लीन चिट मिलने के बाद उन्हें प्रोन्नति दे कर कृषि विभाग का सचिव बनाया गया. करीब 3 साल तक वह कृषि विभाग में रहीं. रघुबर दास की सरकार गिरने के बाद उन के स्थान पर अबु बकर सिद्दीकी को सचिव बनाया गया. वहीं, पूजा सिंघल की तैनाती खेलकूद, कला संस्कृति एवं पर्यटन विभाग में कर दी गई. वहां से फिर इन को उद्योग और खान सचिव बनाया गया. पूजा सिंघल पर भले ही मजदूरों के पैसे की हेराफेरी का आरोप लगा हो, लेकिन उन पर सरकार भी कम मेहरबान नहीं रही. उन्होंने ईडी को घोटाले के संबंध में जो जवाब दिए और उस पर जो काररवाई हुई, उस में भी कई विरोधाभास दिखे.

आरोपों के बावजूद वह न केवल क्लीन चिट पाती रहीं, बल्कि उच्च पद पर प्रमोशन भी होता रहा और अपने पति के बिजनैस को भी फायदा पहुंचाती रहीं, जिस में उन का भाई भी शामिल था.

साल 2012 में मनरेगा घोटाले से संबंधित झारखंड विधानसभा में पूछे गए सवालों के जवाब में सरकार ने इसे स्वीकार करते हुए दोषी अधिकारियों पर काररवाई का भरोसा दिलाया था. फिर भी 27 फरवरी, 2017 को कार्मिक विभाग ने संकल्प जारी कर पूजा सिंघल को घोटाले के आरोपों से क्लीनचिट दे दी थी. तब उन से जुड़े मामलों की जांच के लिए राज्य सरकार के तत्कालीन पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के प्रधान सचिव अमरेंद्र प्रताप सिंह की रिपोर्ट का हवाला दिया गया था. जबकि खूंटी की तत्कालीन उपायुक्त पूजा सिंघल के खिलाफ गंभीर आरोपों की लंबी फेहरिस्त थी.

विधानसभा में भी उठे थे सवाल

इस बाबत 16 मार्च, 2011 को विधायक विनोद कुमार सिंह की सूचना पर सरकार ने जो जवाब दिया, उस में पूजा सिंघल के खिलाफ काररवाई की बात नहीं कही गई. सिर्फ आश्वासन दिया गया कि पूजा सिंघल के खिलाफ मनरेगा के अंतर्गत विभिन्न योजनाओं में बरती गई वित्तीय अनियमितताओं के संदर्भ में उन के विरुद्ध केवल सूचना उपलब्ध करवाने की जानकारी दी गई.

जबकि ईडी को चतरा में पूजा सिंघल की उपायुक्त के तौर पर तैनाती के दौरान भारी नकदी के लेनदेन के पुख्ता सबूत मिले. इस की पुष्टि भी विधानसभा में सरकार से पूछे गए सवालों के जवाब से हुई.

13 मार्च, 2012 को विधानसभा में  ग्रामीण विकास विभाग ने स्वीकार किया कि 15 फरवरी, 2008 को पूजा सिंघल ने एनजीओ वेलफेयर प्वायंट को  4 करोड़ रुपए और एक अन्य एनजीओ प्रेरणा निकेतन को 14 मई, 2008 की तरीख में 2 करोड़ रुपए अग्रिम का भुगतान किया. तब दोनों एनजीओ के खाते के संचालन पर रोक लगाई गई थी.

इसी तरह से 4 सितंबर, 2012 को भी तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री सुदेश कुमार महतो ने घोटाले से संबंधित कई सवाल पूछे थे, जिन का संबंध पूजा सिंघल से था.

इन के जवाब देते हुए सरकार ने स्वीकारा था कि प्रेरणा निकेतन और वेलफेयर प्वायंट को आवंटन एवं कार्य में अनियमितता की जांच आयुक्त, उत्तरी छोटा नागपुर द्वारा मार्च, 2012 में की गई थी. जांच रिपोर्ट में कार्य आवंटन एवं कार्यान्वयन में अनियमितता की पुष्टि हुई है.

खूंटी में पोस्टिंग के दौरान पूजा सिंघल के खिलाफ आरोप लगे थे. वहीं उन्होंने बगैर किसी हिसाबकिताब के विभिन्न तारीखों में कुल 15.72 करोड़ रुपए में से 10.05 करोड़ का अग्रिम भुगतान कर दिया था. एक दूसरा आरोप निलंबित जूनियर इंजीनियर विनोद प्रसाद सिन्हा से काम लेने का भी लगा. यह मनरेगा के दिशानिर्देश की अवहेलना और पद का दुरुपयोग था.

इस के साथ ही फरजी कार्यों की स्वीकृति देने और एक ही कार्य विभाग को देने के संदर्भ में गबन किए जाने का आरोप भी लगा. इन मामलों में कुल 16 प्राथमिकी दर्ज की गईं. पति के पल्स अस्पताल पर भी जांच की आंच झारखंड में अलगअलग राजनीतिक दलों की सरकारें आतीजाती रहीं और पूजा सिंघल का प्रभाव जस का तस बना रहा. यह उन का आभामंडल ही था, जिस कारण उन से संबंधित सवाल जब विधानसभा के पटल पर आते थे तो किसी न किसी बहाने से हंगामा खड़ा हो जाता था और सवाल रद्दी की टोकरी में चले जाते थे.

इस से पूरक प्रश्न उठाना ही मुश्किल था. कुल मिला कर बताते हैं कि पूजा सिंघल भी भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों को बचाने वाली बड़ी जमात में शामिल थीं. कई बार उन के खिलाफ जांच कमेटी बनी. उन्होंने जमीनी स्तर पर केवल जांच की, बल्कि काररवाई की अनुशंसा तक कर दी. फिर भी मामला ठंडे बस्ते में ही चला गया.

पूजा सिंघल के पति अभिषेक झा के पल्स अस्पताल के साथ भी जमीन खरीद मामले का विवाद है. इस में रुंगटा बंधु शामिल बताए गए हैं. इस का खुलासा भी ईडी द्वारा मनी लांड्रिंग के मामले में पूजा सिंघल, अभिषेक झा, सीए सुमन कुमार, आलोक सरावगी और बोकारो के बिल्डर संजय कुमार आदि से पूछताछ के बाद हुआ.

पूछताछ में जमीन की खरीदफरोख्त की लंबी प्रक्रिया में रुंगटा बंधुओं के भी शामिल होने की जानकारी मिली. इस दौरान पल्स अस्पताल का नक्शा निगम से पास नहीं होने और संबंधित जमीन के ‘भुइंहरी’ होने की जानकारी मिली.

सीए ने पूछताछ में पल्स की जमीन खरीदने के लिए पूजा सिंघल के निर्देश पर पंचवटी बिल्डर्स को 3 करोड़ रुपए नकद देने की बात स्वीकारी थी. साथ ही उस के पास से बरामद रुपए में पूजा सिंघल का होने की बात भी स्वीकार की.

पंचवटी बिल्डर्स द्वारा पास कराए गए नक्शे पर ही फ्लैट बनाने के बदले पल्स अस्पताल बना दिया गया. अस्पताल की बिल्डिंग का नक्शा निगम के पास नहीं है.

दूसरी तरफ जानकारी मिली कि इस भुइंहरी जमीन को 1948 में सरेंडर दिखाया गया. इस के बाद 1972 में किसी हरख कुमार जैन के नाम पर इसे बंदोबस्त दिखाया गया है. बाद में यह जमीन किसी दूसरे व्यक्ति के नाम पर हस्तांतरित हुई. उस के नाम पर 2017 में एक रसीद भी काटी गई

बहरहाल, इस बार ईडी की छापेमारी में पूजा सिंघल द्वारा अंजाम दिए गए घोटाले को ले कर पुख्ता सबूत मिले हैं. इस से 2017 में उन्हें दी गई क्लीनचिट पर सवाल उठ रहे हैं.

जांच एजेंसियां इस सिलसिले में भी पूछताछ कर सकती हैं. इस की जद में वे तमाम अधिकारी आ सकते हैं, जिन्होंने पूजा सिंघल को क्लीनचिट दी थी. कथा लिखने तक प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों की पूजा सिंघल और अन्य से पूछताछ जारी थी.

Moonsoon Special: बारिश के मौसम में बचें इन 10 बीमारियों से

भारत में मौनसून की सब से ज्यादा प्रतीक्षा रहती है, क्योंकि यह मौसम हरेक को गरमी से राहत देता है, लेकिन साथ ही इस मौसम के कारण कई बीमारियों के पनपने की भी आशंका रहती है. बुजुर्ग और बच्चों पर इस मौसम का सब से ज्यादा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि उन की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है.

कई तरह के कीटाणु और संक्रमण मौनसून के साथ आते हैं. पेरैंट्स के लिए बहुत जरूरी है कि वे बच्चों को इन बीमारियों का शिकार होने से बचाएं और कुछ आवश्यक सावधानी बरतें. इस मौसम में नमी के कारण कीटाणुओं की संख्या में वृद्धि होती हैं. बच्चों को इन कीटाणुओं से दूर रखने के लिए काफी सावधानी बरतनी चाहिए.

मौनसून के दौरान स्वाइन फ्लू के मामले बढ़ जाते हैं. इस के अलावा, त्वचा की बीमारियां, दूषित पानी से उत्पन्न बीमारियां और मच्छर जनित बीमारियां काफी बढ़ जाती हैं.

  1. वायरल बुखार

यह सब से आम बीमारी है, जो मौनसून के दौरान बच्चों को प्रभावित करती है. तापमान में  बहुत ज्यादा उतारचढ़ाव बच्चे के शरीर को बैक्टीरिया के हमले के प्रति अतिसंवेदनशील बनाता है जिस के कारण वायरल, सर्दी और फ्लू होता है. इस का इलाज यदि शुरुआती चरण में किया जाए तो ठीक रहता है वरना देरी से गंभीर संक्रमण का खतरा हो सकता है.

2. डेंगू

यह इस मौसम की आने वाली सब से गंभीर बीमारियों में से एक है. एडिस व इजिप्टी मच्छरों द्वारा काटे जाने पर होने वाली यह एक आम और खतरनाक बीमारी है. ये मच्छर गरम और आर्द्र जलवायु में पैदा होते हैं. डेंगू का प्रकोप भारत में सब से ज्यादा है. इस के शुरुआती लक्षण बुखार, सिरदर्द, बदन पर चकत्ते उभरना आदि हैं.

3. मलेरिया

यह बीमारी मादा एनोफिलीज मच्छर के काटने से होती है. ये मच्छर बरसात का पानी इकट्ठा होने से पनपते हैं. इस के लक्षण लगातार बुखार के साथ कंपकंपी और गंभीर थकावट होती है. यदि बच्चे में इस का लक्षण दिखे तो तुरंत डाक्टर को दिखाएं, ताकि बीमारी गंभीर रूप न ले सके.

4. कॉलरा

यह एक गंभीर बैक्टीरियल बीमारी है जिस से गंभीर डिहाइड्रेशन होता है. यह रोग प्रदूषित भोजन और पानी में मौजूद बैक्टीरिया के कारण होता है. यह बीमारी साफसफाई और स्वच्छता की कमी से होती है. इस बीमारी के लक्षण हैं उलटी आना, अचानक दस्त होना, मतली, मुंह का खुश्क होना और मूत्र में कमी.

5. टायफाइड

यह दूषित पानी और भोजन से पैदा होने वाली एक आम बीमारी है. इस बीमारी के आम लक्षण लंबे समय तक बुखार, पेट में तेज दर्द और सिरदर्द हैं.

6. चिकनगुनिया

यह मच्छर से उत्पन्न होने वाली वायरल बीमारी है जो डेंगू की तरह है. इस के कारण बुखार और जोड़ों में तेज दर्द होता है जो लंबे समय तक रहता है. यह बीमारी मादा मच्छर के काटने से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलती है. इस का कोई उचित इलाज या टीकाकरण नहीं है. यदि आप का बच्चा इस बीमारी से पीडि़त है, तो उसे भरपूर आराम करना चाहिए और उसे डिहाइड्रेशन से बचाने के लिए भरपूर तरल पदार्थ दिए जाने चाहिए.

7. पेट का संक्रमण

इस सीजन में यह बच्चों को होने वाली सब से आम बीमारी है. दूषित भोजन और पानी पीने से बच्चों के पेट में संक्रमण होने की आशंका रहती है. इस के शुरुआती लक्षण उलटी, सिरदर्द और हलका बुखार हैं.

8. पीलिया

यह भी प्रदूषित भोजन और पानी पीने से फैलता है. पीलिया के लक्षण हैं आंखों और नाखूनों में पीलापन आना, भूख और स्वाद में कमी, कमजोरी, कंपकंपी के साथ तेज बुखार होना. इस बीमारी के लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. यह जानलेवा बीमारी है.

9. लेप्टोस्पाइरोसिस

स्पाइरल आकार वाले बैक्टीरियम स्पायरोछेते द्वारा लेप्टोस्पाइरोसिस बीमारी होती है. इस का दूषित पानी के साथ घनिष्ठ संबंध है. इस बीमारी के लक्षणों में तेज बुखार, कंपकंपी, सिरदर्द, और लिवर का फेल हो जाना शामिल हैं. अगर इस बीमारी को अनदेखा किया जाए तो यह बीमारी घातक हो सकती है.

10. हैपेटाइटिस ए

यह बीमारी लिवर को काफी प्रभावित करती है. यह दूषित भोजन और पानी के इस्तेमाल से होती है. हैपेटाइटिस ए के सामान्य लक्षण हैं- बुखार, उलटी और शरीर में चकत्ते होना. यह एक वायरस है जो किसी को भी आसानी से प्रभावित कर सकता है. यह एक संक्रमित बीमारी है.

– डा. शब्बीर चामढाव  

(लेखक सैफी अस्पताल, मुंबई में बालरोग विशेषज्ञ हैं)

राजस्थानी डिश: इस मौसम में घर पर बनाएं बाटी चोखा

शहरों में बाटीचोखा खाने का प्रचलन कम था. धीरेधीरे बाटीचोखा खाने का प्रचलन बढने लगा. पहले लोग इस को समोसा और पकौड़ी के मुकाबले कम पसंद करते थे. बाद में जब सेहत को ले कर लोग जागरूक होने लगे, तो समोसा पकौड़ी की जगह पर इस को ज्यादा पसंद करने लगे.

बाटी में, जिन लोगों को पसंद नहीं होता है, उस में चिकनाई नहीं लगाई जाती है, इसलिए सेहत की नजर से लोगों ने इस को खाना शुरू किया. समोसा पकौड़ी के मुकाबले यह ताजी होने के कारण भी खूब पसंद की जाने लगी.

“बाटीचोखा” को अब शादीविवाह और दूसरी पार्टियों में भी एक अलग डिश के रूप में खूब पसंद किया जाने लगा है.

सोंधी बाटी तो चटक चोखा

बाटीचोखा के कारीगर विजय साहनी कहते हैं, “बाटीचोखा 2 अलगअलग चीजें होती हैं. बाटी गोलगोल गेहूं के आटे की बनी होती है. इस के अंदर चनेे का बेसन भून कर मसाला मिला कर भरा जाता है.

“इस के बाद इसे आग में पका कर खाने के लायक तैयार किया जाता है. इस के साथ खाने के लिए चोखा दिया जाता है, जो आलू, बैगन और टमाटर से तैयार होता है.

“बाटीचोखा के साथ प्याज और मूली का सलाद भी दिया जाता है. कुछ लोग इस में मक्खन लगा कर खाना पसंद करते हैं, तो कुछ लोग इस को ऐसे ही खाते हैं.”

विजय साहनी कहते हैं कि बाटी को तैयार करने के लिए कंडे और लकड़ी की आग को तैयार किया जाता है. इस के लिए लोहे की बड़ी कड़ाही में कंडे और लकड़ी को जला कर राख तैयार की जाती है. इसी में बाटी को डाला जाता है. जब बाटी पूरी तरह से पक जाती है, तो इस को खाने के लिए चोखा के साथ दिया जाता है.

बाटी पकाने में सावधानी रखनी पड़ती है. बाटी जलनी नहीं चाहिए. यह कच्ची भी न रहने पाए, इस का खास खयाल रखा जाता है.

बाटी बनाने के लिए आटा टाइट होना चाहिए. रोटी बनाने वाले आटे से इस को अलग रखा जाता है.

बाटी बनाने के लिए सामग्री

20 बाटी बनाने के लिए 1 किलो गेहूं का आटा, 250 ग्राम चने का सत्तू, 10 ग्राम अजवाइन,10 ग्राम कलौंजी, 50 ग्राम मिर्च, 20 ग्राम अदरक, 50 ग्राम लहसुन, 50 ग्राम सरसों का तेल, 50 ग्राम हरी मिर्च, 10 ग्राम काली मिर्च का प्रयोग करते हैं.

-सब से पहले चने के सत्तू में यह मसाला मिला कर बाटी के अंदर भरने का मसाला तैयार कर लेते हैं.

-इस के बाद आटा गूंध कर गोलगोल बाटी तैयार करते हैं.

-सत्तू मिले मसाले को इस में भर देते हैं.

-तैयार बाटी को आग में पकने के लिए डाल देते हैं.

चोखा बनाने के लिए

500 ग्राम आलू, 250 ग्राम बैगन और 250 ग्राम टमाटर लेते हैं. इस में लहसुन, मिर्च और नमक स्वाद के हिसाब से डालते हैं. इस को मिला कर चोखा तैयार किया जाता है.

तैयार बाटी को चोखा और मूली, प्याज और अचार के साथ खाने के लिए दिया जाता है. जिन लोगों को मक्खन के साथ बाटी खाना पसंद होता है. वह मक्खन का उपयोग भी करते हैं.

10 साल- भाग 2: नानी से सभी क्यों परेशान थे?

मेरी नानी से सभी बहुत परेशान थे. मैं तो डर के मारे कभी नानी के पास जाती ही नहीं थी. मुझे देखते ही उन के मुंह से जो स्वर निकलते, वे मैं तो क्या, मेरी मां भी नहीं सुन सकती थीं. कहतीं, ‘बेटी को जरा संभाल कर रख. कमबख्त, न छाती ढकती है न दुपट्टा लेती है. क्या खजूर की तरह बढ़ती जा रही है. बड़ी जवानी चढ़ी है, न शर्म न हया.’ बस, इसी तरह वृद्धों को देखदेख कर मेरे कोमल मन में वृद्धावस्था के प्रति भय समा गया था. वृद्धों को प्यार करो तो चैन नहीं, उन से न बोलो तो भी चैन नहीं. बीमार पड़ने पर उन्हें पूछने जाओ तो सुनने को मिलता, ‘देखने आए हो, अभी जिंदा हूं या मर गया.’ उन्हें किसी भी तरह संतोष नहीं.हमारे पड़ोस वाले बाबाजी का तो और भी बुरा हाल था. वे 12 बजे से पहले कुछ नहीं खाते थे. बेचारी बहू उन के पास जा कर पूछती, ‘बाबा, खाना ले आऊं?’

‘यशवंत खा गया क्या?’ वे पूछते.

‘नहीं, 1 बजे आएंगे,’ बहू उत्तर देती.

‘अरे, तो मैं क्या उस से पहले खा लूं? मैं क्या भुक्खड़ हूं? तुम लोग सोचते हो मैं ने शायद जिंदगी में कभी खाना नहीं खाया. बडे़ आए हैं मुझे खाना खिलाने वाले. मेरे यहां दसियों नौकर पलते थे. तुम मुझे क्या खाना खिलाओगे.’ बहू बेचारी मुंह लटकाए, आंसू पोंछती हुई चली आती. कुछ दिन ठीक निकल जाते. बेटे के साथ बाबा खाना खाते. फिर न जाने क्या होता, चिल्ला उठते, ‘खाना बना कि नहीं?’

‘बस, ला रहा हूं, बाबा. मैं अभी तो आया हूं,’ बेटा प्यार से कहता. ‘हांहां, अभी आया है. मैं सब समझता हूं. तुम मुझे भूखा मार डालोगे. अरे, मैं ने तुम लोगों के लिए न दिन देखा न रात, सबकुछ तुम्हारे लिए जुटाता रहा. आज तुम्हें मेरी दो रोटियां भारी पड़ रही हैं. मेरे किएकराए को तुम लोगों ने भुला दिया है. बीवियों के गुलाम हो गए हो.’ फिर तो चुनचुन कर उन्हें ऐसी गालियां सुनाते कि सुनने वाले भी कानों में उंगली लगा लेते. बहूबेटे क्या, वे तो अपनी पत्नी को भी नहीं छोड़ते थे. उन के पांव दबातेदबाते बेचारी कभी ऊंघ जाती तो कयामत ही आ जाती. बच्चे कभी घर का सौदा लाने को पैसे देते तो अपने लिए सिगरेट की डब्बियां ही खरीद लाते. न जाने फिर मौका मिले कि नहीं. सिगरेट उन के लिए जहर थी. बच्चे मना करते तो तूफान आ जाता.

यह वृद्धावस्था सचमुच ही बड़ी बुरी है. मालूम नहीं लोगों की उम्र इतनी लंबी क्यों होती है? अगर उम्र लंबी ही होनी हो तो उन में कम से कम सामंजस्य स्थापित करने की तो बुद्धि होनी चाहिए? ‘अगर मेरी भी उम्र लंबी हुई तो क्या मैं भी अपने घरवालों के लिए सनकी हो जाऊंगी? क्या मैं अपनी मिट्टी स्वयं ही पलीद करूंगी?’ हमेशा यही सोचसोच कर मैं अपनी सुंदर जवानी को भी घुन लगा बैठी थी. बारबार यही खयाल आता, ‘जवानी तो थोड़े दिन ही अपना साथ देती है और हम जवानी में सब को खुश रखने की कोशिश भी करते हैं. लेकिन यह कमबख्त वृद्धावस्था आती है तो मरने तक पीछा नहीं छोड़ती. फिर अकेली भी तो नहीं आती, अपने साथ पचीसों बीमारियां ले कर आती है. सब से बड़ी बीमारी तो यही है कि वह आदमी को झक्की बना देती है.’

इसी तरह अपने सामने कितने ही लोगों को वृद्धावस्था में पांव रखते देखा था. सभी तो झक्की नहीं थे, उन में से कुछ संतोषी भी तो थे. पर कितने? बस, गिनेचुने ही. कुछ बच्चों की तरह जिद्दी देखे तो कुछ सठियाए हुए भी.देखदेख कर यही निष्कर्ष निकाला था कि कुछ वृद्ध कैसे भी हों, अपने को तो समय से पहले ही सावधान होना पड़ेगा. बाकी वृद्धों के जीवन से अनुभव ले कर अपनेआप को बदलने में ही भलाई है. कहीं ऐसा न हो कि अपने बेटे ही कह बैठें, ‘वाह  मां, और लोगों के साथ तो व्यवहार में हमेशा ममतामयी बनी रही. हमारे परिवार वाले ही क्या ऐसे बुरे हैं जो मुंह फुलाए रहती हो?’ लीजिए साहब, जिस बात का डर था, वही हो गई, वह तो बिना दस्तक दिए ही आ गई. हम ने शीशे में झांका तो वह हमारे सिर में झांक रही थी. दिल धड़क उठा. हम ने बिना किसी को बताए उसे रंग डाला. मैं ने तो अभी पूरी तरह उस के स्वागत की तैयारी ही नहीं की थी. स्वभाव से तो हम चुस्त थे ही, इसीलिए हमारे पास उस के आने का किसी को पता ही नहीं चला. लेकिन कई रातों तक नींद नहीं आई. दिल रहरह कर कांप उठता था.

अब हम ने सब पर अपनी चुस्ती का रोब जमाने के लिए अपने काम की मात्रा बढ़ा दी. जो काम नौकर करता था, उसे मैं स्वयं करने लगी. डर था न, कोई यह न कह दे, ‘‘क्या वृद्धों की तरह सुस्त होती जा रही हो?’’ज्यादा काम करने से थकावट महसूस होने लगी. सोचा, कहीं ऐसा न हो, अच्छेखासे व्यक्तित्व का ही भुरता बन कर रह जाए. फिर तो व्यक्तित्व का जो थोड़ाबहुत रोब है, वह भी छूमंतर हो जाएगा. क्यों न कोई और तरकीब सोची जाए. कम से कम व्यक् तित्व तो ऐसा होना चाहिए कि किसी के बाप की भी हिम्मत न हो कभी हमें वृद्धा कहने की. अब मैं ने व्यायाम की कई किताबें मंगवा कर पढ़नी शुरू कर दीं. एक किताब में लिखा था, कसरत करने से वृद्धावस्था जल्दी नहीं आती और काम करने की शक्ति बढ़ जाती है. गुस्सा भी अधिक नहीं करना चाहिए. बस, मैं ने कसरत करनी शुरू कर दी. गुस्सा भी पहले से बहुत कम कर दिया.पूरा गुस्सा इसलिए नहीं छोड़ा ताकि सास वाली परंपरा भी न टूटे. हो सकता है कभी इस से काम ही पड़ जाए. ऐसा न हो, छोड़ दिया और कभी जरूरत पड़ी तो बुलाने पर भी न आए. फिर क्या होगा? परंपरा है न, अपनी सास से झिड़की खाओ और ज ब सास बनो तो अपनी बहू को बीस बातें सुना कर अपना बदला पूरा कर लो. फिर मैं ने तो कुछ ज्यादा ही झिड़कियां खाई थीं, क्योंकि हमें दोनों लड़कों को डांटने की आदत नहीं थी. यही खयाल आता था, ‘अपने कौन से 10-20 बच्चे हैं. लेदे कर 2 ही तो लड़के हैं. अब इन पर भी गुस्सा करें तो क्या अच्छा लगेगा? फिर नौकर तो हैं ही. उन पर कसर तो पूरी हो ही जाती है.’

मेरे बच्चे अपनी दादी से जरा अधिक ही हिलमिल जाते थे. यही हमारी सास को पसंद नहीं था. एक उन का चश्मा छिपा देता तो दूसरा उन की चप्पल. यह सारा दोष मुझ पर ही थोपा जाता, ‘‘बच्चों को जरा भी तमीज नहीं सिखाई कि कैसे बड़ों की इज्जत करनी चाहिए. देखो तो सही, कैसे बाज की तरह झपटते हैं. न दिन को चैन है न रात को नींद. कमबख्त खाना भी हराम कर देते हैं,’’ और जो कुछ वे बच्चों को सुनाती थीं, वह इशारा भी मेरी ओर होता था, ‘‘कैसी फूहड़ है तुम्हारी मां, जो तुम्हें इस तरह ‘खुला छोड़ देती है.’’ मेरी समझ में यह कभी नहीं आया, न ही पूछने की हिम्मत हुई कि ‘खुला छोड़ने से’ आप का क्या मतलब है, क्योंकि इंसान का बच्चा तो पैदाइश से ले कर वृद्धावस्था तक खुला ही रहता है. हां, गायभैंस के बच्चे की अलग बात है.

तो साहब, मुसीबत आ ही गई. इधर परिवार बढ़ा, उधर वृद्धावस्था बढ़ी. हम ने अपनेआप को बिलकुल ढीला छोड़ दिया. सोचा, जो कुछ किसी को करना है, करने दो. अच्छा लगेगा तो हंस देंगे, बुरा लगेगा तो चुप बैठ जाएंगे. हमारी इस दरियादिली से पति समेत सारा परिवार बहुत खुश था. बेटेबहुएं कुछ भी करें, हम और उत्साह बढ़ाते. हुआ यह कि सब हमारे आगेपीछे घूमने लगे. हमारे बिना किसी के गले के नीचे निवाला ही नहीं उतरता था. हम घर में न हों तो किसी का मन ही नहीं लगता था. हम ने घर की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी और पति के साथ घूमने की, पति को खुश करने की पूरी आजादी उन्हें दे दी थी. नौकरों से सब काम वक्त पर करवाती और सब की पसंद का खयाल रखती. हमारा खयाल था, यही तरीका है जिस से हम, सब को पसंद आएंगे. प्रभाव अच्छा ही पड़ा. हमारी पूछ बढ़ गई. हम ने सोचा, लोग यों ही वृद्धावस्था को बदनाम करते हैं. उन्हें वृद्ध बन कर रहना ही नहीं आता. कोई हमें देखे, हम कितने सुखी हैं. सोचती हूं, वृद्धावस्था में कितना प्यार मिलता है. कमबख्त 10 साल पहले क्यों नहीं आ गया.

शेरदिल- पीलीभीत सागा: पंकज त्रिपाठी की शानदार एक्टिंग, पढ़ें रिव्यू

रेटिंग: डेढ़  स्टार

निर्माताः टी सीरीज

लेखकः सुदीप निगम , अतुल कुमार राय और सृजित मुखर्जी

निर्देशकः सृजित मुखर्जी

कलाकारः पंकज त्रिपाठी, सयानी गुपत, नीरज काबी व अन्य

अवधिः दो घंटे

जानवर, जंगल,पर्यावरण,बाघ के शिकार के साथ इंसान द्वारा जानवरों के स्वच्छंद विचरने वाले स्थल जंगलों पर अधिपत्य जमाने के चलते पैदा होने वाली समस्याओं पर रवि बुले निर्देशित कम बजट की फिल्म ‘‘आखेट’’ के अलावा विद्या बालन के अभिनय से सजी फिल्म ‘‘शेरनी’’ पहले भी आ चुकी हैं. स्थापित कलाकार न होने और कम बजट में बनी फिल्म ‘आखेट’ सही -सजयंग से दर्शकों तक पहुंच न सकी.जबकि घटिया फिल्म ‘शेरनी’ को दर्शकों ने नकार दिया था. अब इसी तरह के कथानक पर राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता सृजित मुखर्जी फिल्म ‘शेर दिल’ लेकर आए हैं, जो कि उनके कम ज्ञान की ओर इशारा करती है.‘आखेट’ की ही तरह ‘शेरदिल’ भी गरीबी व भुखमरी की भी बात करती है,मगर इस फिल्म का लेखन करने से पहले सृजित मुखर्जी ने गांवों में जाकर शोध नहीं किया. पिछले दस वर्षों के अंतराल में जो बदलाव आए हैं, उसकी तरफ ध्यान नही दिया. जिसके चलते फिल्म ‘‘शेरदिल’’ बोझील होने के साथ साथ कई जगह अतार्किक भी लगती है.

कहानीः

फिल्म ‘‘शेरदिल’’ की कहानी पीलीभीत की सत्य घटना से प्रेरित है.यह कहानी टाइगर रिजर्व से सटे गांव-गांव की कहानी है, जहां भुखमरी व गरीबी का बोलबाला है.गांव के मुखिया गंगाराम (पंकज त्रिपाठी) गांव की भलाई और गांव की सुख व समृद्धि के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं. गंगाराम के परिवार में बू-सजय़ी मां,पत्नी लज्जो (सयानी गुप्ता), एक बेटा व एक बेटी है. गांव-गाव टाइगर रिजर्व के पास है, जिसके चलते बाघ और जंगली जानवरों ने भी गांव वालों का जीना हराम कर दिया है.यह जंगली जानवर व बाघ अक्सर अपने जंगल की सीमा से बाहर आकर खेत में घुसकर फसल काटने के साथ-साथ  गांव के लोगों को भी अपना शिकार बनाते रहते हैं. तो वहीं खेती पर बा-सजय़ की मार भी पड़ी है.इसी के चलते गांव वाले गरीबी और भुखमरी के दंश को झेलते हुए अपना जीवन बिताने को मजबूर हैं. गांव के मुखिया गंगाराम अपने गांव को गरीबी से निजात दिलाने के लिए शहर जाकर सरकारी दफ्तरों में सरकारी मदद की असफल गुहार लगाते हैं.फिर उनकी नजर एक नोटिस पर पड़ती है, जिसके अनुसार टाइगर रिजर्व के आस पास के गांव के किसी निवासी पर खेत में काम करते समय बाघ उसका शिकार करेगा, तो सरकार उसके आश्रितों को दस लाख रूपए देगी.

इस सरकारी नोटिस को पढ़ने के बाद गंगाराम अपने गांव को गरीबी से निजात दिलाने और अपनी आने वाली पीढ़ियो के उज्जवल भविष्य के लिए एक योजना बनाता है. उसके बाद गंगाराम गांव पहुंचते ही सबसे पहले अपने परिवार के सदस्यों को झूठी कहानी बनाकर बताता है कि डाक्टरों ने बताया है कि वह खून के कैंसर का मरीज है और अब उसके पास सिर्फ तीन माह की ही जिंदगी बची है.फिर वह अपने परिवार के अलावा गांव वालों से कहता है कि वह मरने से पहले गांव और परिवार का उद्धार करना चाहता है,इसलिए वह बाघ का शिकार बनने के लिए जंगल जा रहा है.जंगल में गंगाराम को भटकते हुए सात दिन बीत जाते हैं,पर बाघ नजर ही नही आता.फिर गंगाराम की जंगल बाघ का शिकार करने वाले शिकारी जिम अहमद (नीरज काबी) से होती है. गंगाराम खुद जिस बाघ का शिकार होने पहुंचा है, उसे यह शिकारी अपना शिकार बना कर तस्करी के धंधे में खूब पैसे कमाने की चाह रखता है.दोनों के बीच तय होता है कि दोनों एक साथ बाघ की तलाश करेंगे,फिर पहले गंगाराम ,बाघ का षिकार बनेंगें,उसके बाद शिकारी बाघ का शिकार करेगा. अब आगे क्या होगा, इसे फिल्म में देखना ही ठीक रहेगा.

लेखन व निर्देशनः

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्मकार सृजित मुखर्जी ने अति आवश्यक मुद्दे को अपनी फिल्म में उठाया है, मगर फिल्म के लेखन व निर्देशन से पहले उन्होंने अपनी तरफ से षोधकार्य करने की जहमत नही उठायी. जिसके चलते फिल्म अतार्किक और बोझिल हो गयी है.यदि फिल्मकार सृजित मुखर्जी ने थोड़ी सी भी मेहनत की होती तो यह एक बेहतरीन व्यंग फिल्म बन सकती थी. फिल्म के शुरूआती में ही यह बात उजागर हो जाती है कि यह पीलीभीत नकली है.इसके गांव और उनकी बोलियां भी नकली हैं.शायद सफलता के मद में चूर सृजित मुखर्जी ने इस फिल्म को पूरी इमानदारी से नही बनायी.वह भी अब नोट छापने में लग गए हैं.

फिल्म की शुरूआत बहुत धीमी गति से होती है.इंटरवल से पहले फिल्म इतनी सुस्त है कि दर्षक का फिल्म देखने का मोहभंग हो जाता है.

गरीबी, भुखमरी व पर्यावरण की बात महज संवादों में है.लेखक व निर्देशक भुखमरी, गरीबी आदि को दिखाने में पूरी तरह से असफल रहे हैं. फिल्म में जिस तरह का गांव का अनप-सजय़ व मूर्ख सरपंच दिखाया गया है, वैसा सरपंच अब नहीं रहा. इसके अलावा कई जगह मुंबइया शब्द ‘संडास’ का उपयोग किया जाना भी खलता है.

इतना ही नही किस तरह व-ुनवजर्याों से विकास के नाम पर जंगलों को खत्म कर बड़ी बड़ी फैक्टरी खड़ी की जा रही है,किस तरह इंसान जानवरों की दुनिया यानी कि जंगल में घुस कर अतिक्रमण कर रहा है, जिसके परिणामस्वरुप जानवर, इंसान के खेतों और जिंदगी में हाहाकार मचाने को मजबूर हो गया है. जैसे संवेदनशील मुद्दे को भी ठीक से नही उठाया गया.पूरी फिल्म में एक भी दृश्य ऐसा नहीं है, जिससे यह स्थापित होता हो कि जानवर ,इंसानो को परेशान कर रहा है.सरकारी योजनाओं की बखिया जरुर उधेड़ी गयी है.फिल्म में हिंदू मुस्लिम को लेकर भी बात की गयी है.वहीं कई जगह फिल्म उपदेशात्मक हो गयी है.इसके अलावा बाघ के षिकारी के किरदार और जंगली जानवरों की तस्कारी का मुद्दा भी ठीक से चित्रित नही किा गया.बेवजह क्लायमेक्स में सोशल मीडिया को जोड़कर निर्देशक ने गलती कर दी.

अभिनयः

सशक्त अभिनेता पंकज त्रिपाठी को हर किरदार में खुद को संजोना बखूबी आता है.पंकज त्रिपाठी ने गंगाराम के किरदार को जीवंतता प्रदान करने में अपनी जान लगा दी. मगर कहानी में दम नही है.किरदार भी ठीक से विकसित नहीं किया गया है. पंकज त्रिपाठी को इस तरह की अधपकी फिल्में करने से दूरी बनाकर रखना चाहिए. लेकिन अपनी शोहरत को भुनाते हुए जल्द से जल्द ज्यादा से ज्यादा फिल्में कर धन संचित कर लेने की दौड़ का हिस्सा बनकर वह अपने आपको अभिनय के स्तर पर दोहराने लगे हैं.इस तरह वह ‘लंबी रेस’ का घोड़ा बनने से वंचित रह जाएंगे.

अभिनय जगत में लंबे समय तक टिके रहने के लिए अभिनेता पंकज त्रिपाठी को अपनी कार्यशैली पर गंभीरता से विचार करने की जरुरत है. लज्जो के छोटे किरदार में सयानी गुप्ता का अभिनय षानदार है.वह अपने अभिनय की छाप छोड़ जाती हैं.

नीरज काबी के हिस्से करने को कुछ खास रहा ही नही.क्योंकि उनका किरदार ही ठीक से नही गढ़ा गया.

आलिया भट्ट ने ‘जुग-जुग जियो के लिए’ कही ये बात, सास नीतू कपूर के लिए लिखा पोस्ट

एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के मशहूर डायरेक्टर राज मेहता की फिल्म ‘जुग जुग जियो’  शुक्रवार 24 जून यानी को सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. जी हां, यह फिल्म सुर्खोयों में छायी हुई है. इस फिल्म को लेकर अलग-अलग तरह का रिएक्शन मिल रहा है. फैंस और सेलिब्रिटी लगातार इस फिल्म को लेकर सोशल मीडिया पर रिएक्शन दे रहे हैं.

आपको बता दें कि फिल्म में वरुण धवन, कियारा आडवाणी, अनिल कपूर और नीतू कपूर मुख्य भूमिका में हैं. तो वहीं आलिया भट्ट ने  इस फिल्म को लेकर सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर किया है.

alia-bhatt

आलिया भट्ट ने अपनी सास नीतू कपूर की फिल्म ‘जुग जुग जियो’ की खूब तारीफ की है. आलिया भट्ट और नीतू कपूर में काफी अच्छी बॉन्डिंग है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by VarunDhawan (@varundvn)

 

दरअसल आलिया भट्ट ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट की स्टोरी पर अपनी सास नीतू कपूर की स्टोरी को रिशेयर किया है. इसमें फिल्म ‘जुग जुग’ जियो का पोस्टर है. आलिया भट्ट ने इस स्टोरी को शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा है, ‘एंटरटेनमेंट से फुल, हंसें, रोएं, ताली बजाएं और चीयर करें. नीत कपूर माइंडब्लोइंग हैं. अनिल कपूर आपने हर समय खूब हंसाया. वरुण धवन आप स्टार हैं. कियारा आडवाणी आपने मुझे रुला दिया. राज मेहता आप हमेशा की तरह हिट करते हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by VarunDhawan (@varundvn)

 

वर्क फ्रंट की बात करें तो आलिया भट्ट आने वाले समय में रणबीर कपूर के साथ फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ में नजर आएंगी. ये पहली फिल्म है, जिसमें आलिया और रणबीर एक साथ नजर आएंगे.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Alia Bhatt ?☀️ (@aliaabhatt)

 

2022 के राष्ट्रपति चुनाव में 1971 का नियम, जानिए इसकी वजह

राष्ट्रपति चुनाव किसी आम चुनाव की तरह नहीं होता. इसमें वोटिंग से लेकर वोट गिनने का तरीका भी काफी अलग होता है. तो आइए पहले जानते है कि राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटों की गिनती किस आधार पर होती है.

राष्ट्रपति चुनाव के लिए जनता नहीं बल्कि जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि मतदान करते हैं. जैसे विधायक, लोकसभा सांसद और राज्यसभा सांसद.

देश में विधायकों की संख्या : 4033

लोकसभा सांसदों की कुल संख्या : 543

राज्यसभा के कुल सांसदों की संख्या : 233

भारत के राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोट करने वालों की संख्या : 4809

राष्ट्रपति चयन के लिए जो सांसद और विधायक वोट डालते हैं उन्हें इलेक्टॉरल कॉलेज यानी निर्वाचक मंडल कहा जाता है, जिसका जिक्र संविधान के आर्टिकल 54 में किया गया है. लेकिन यहां ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसी भी सदन के नॉमिनेटेड सदस्य राष्ट्रपति चुनाव में वोट नहीं कर सकते क्योंकि ये सीधे जनता के द्वारा नहीं चुने जाते हैं. ऐसे में राज्यसभा के 12 और लोकसभा के 2 सदस्य इसमें हिस्सा नहीं लेते हैं.

वोट वैल्यू तय करने का आधार

संसदीय क्षेत्र के आकार (कितने वोटर्स या जनसंख्या है) के ऊपर निर्भर ना रहते हुए हर एक सांसद के वोट की वैल्यू एक समान होती है. वहीं विधायकों की वोट वैल्यू जनसंख्या के आधार पर होती है.

हैरानी की बात ये है कि इस वोट वैल्यू को निकालने में जिस जनसंख्या का इस्तेमाल होता है वो 2011 का नहीं बल्कि 1971 का होता है. तो आइए जानते है कि आखिर इस वोट वैल्यू को निकालने में 1971 की जनसंख्या के आंकड़े का इस्तेमाल क्यों होता है.

1976 में बदला गया नियम

बता दें कि 1976 में जनसंख्या नियत्रंण कानून को संविधान में शामिल किया गया था. और माना जाता है कि इसके बाद जनसंख्या पर काबू आने लागा था. इसके बाद राज्य की जनसंख्या घटने की वजह से सांसदों और विधायकों के वोट की वैल्यू कम होने लगी. जिसके बाद एक संशोधन लाकर तय किया गया कि वोट वैल्यू को निकालने के लिए 1971 की जनसंख्या का इस्तेमाल किया जाएगा.

इस दौरान इंदिरा गांधी की सरकार की ओर से राष्ट्रपति चुनाव के लिए बदलाव किया गया  जनसंख्या नियत्रंण को सूची में शामिल कर दिया गया. इसके साथ ही अनुच्छेद 55 में जोड़ा गया कि साल 2000 के बाद पहली जनगणना होने तक राष्ट्रपति चुनाव के लिए 1971 की जनसंख्या ही मान्य होगी. साथ ही ये भी कहा गया कि 2000 के बाद भी जबतक जनसंख्या की नई जनगणना नहीं होती तबतक 1971 की जनगणना ही मान्य होगी.

2001 के बाद भी नहीं हुआ बदलाव

इंदिरा सरकार ने संविधान में संशोधन किया उसको 30 साल भी बदला नहीं गया. जब 2001 में जनसंख्या की जनगणना के वक्त इसकी वैलिडिटी खत्म हुई तो केंद्र में NDA की सरकार थी. उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे. उन्होंने इसमें कोई संशोधन ना करते हुए इसको आगे 2026 तक आगे बढ़ा दिया. बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए राष्ट्रपति चुनाव का आधार भी नई जनसंख्या को बनाया जाए ये बहस शुरू हुई, जिसपर पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने रोक लगा दी. जिसके बाद इस संशोधन में आगे भी बदलाव नहीं हुआ, जिसके कारण आज भी राष्ट्रपति चुनाव में 1971 की जनसंख्या के आधार पर वोट वैल्यू निकाली जाती है.

कैसे निकाली जाती है वोट वैल्यू?

विधायकों की वोट वैल्यू निकालने के लिए विधायक के क्षेत्र के आधार पर वहां की कुल आबादी को निर्वाचित विधायकों की संख्या से भाग दिया जाता है, जो नंबर आता है उसे फिर 1000 से भाग दिया जाता है. जो भी वैल्यू आएगी वो उस प्रदेश के विधायक की वोट वैल्यू है. 1000 से भाग देने पर अगर शेष 500 से ज्यादा हो तो वेटेज में 1 जोड़ दिया जाता है. और 500 से कम होने पर उसे काउंट नहीं किया जाता.

अंत भला तो सब भला: ग्रीष्मा की जिंदगी में कैसे मची हलचल

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें