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एक हत्यारा 7 लाशें: अय्याशी के लिए जगरूप ने किए कत्ल

मार्च 2015 के अंतिम सप्ताह की 24 तारीख को पटियाला की विकास कालोनी में एक युवक की लाश मिली थी. लाश के टुकड़े कर के एक अटैची में बंद कर के अटैची को सुनसान जगह पर फेंक दिया गया था. मृतक के कई टुकड़े करने के बाद उस के चेहरे पर ईंटें मार कर कुचला गया था.

पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर के लाश की शिनाख्त करवाई तो पता चला कि अटैची में मिली लाश अनिल कुमार नामक युवक की थी. इस हत्या ने पूरे शहर में दहशत पैदा कर दी थी.

दहशत का एक कारण यह भी था कि पुलिस को इस तरह लाश कोई पहली बार नहीं मिली थी. सन 1995 से ले कर अब तक इसी तरह पुलिस ने पंजाब के अलगअलग शहरों से करीब 8 लाशें बरामद की थीं और ये सभी अनसुलझे मामले फाइलों में बंद हो चुके थे. यह ताजा मामला भी पहले मिली लाशों की फेहरिस्त में शामिल कर लिया गया था, क्योंकि अब से पहले मिली लाशें और अब मिली लाश को देख कर ऐसा लगता था जैसे इन सब का कातिल एक ही रहा हो.

इन सभी हत्याओं की कार्यप्रणाली एक जैसी ही थी. अब तक मिली सभी लाशें टुकड़ों में मिली थीं और उन सब के चेहरे पर ईंटें मार कर चेहरा बिगाड़ा गया था. इस तरह की हत्याओं का पहला मामला सन 1995 में लुधियाना में सामने आया था. मृतक का नाम नंदलाल था और उस की लाश भी पुलिस को अटैची में बंद टुकड़ों के रूप में मिली थी.

अनिल की तरह नंदलाल के चेहरे को भी ईंटें मार कर बिगाड़ा गया था. बाद में पुलिस की काफी मशक्कत के बाद मृतक की पहचान नंदलाल के रूप में हुई थी, पर पुलिस की दिनरात की मेहनत के बाद भी वह कातिल तक नहीं पहुंच पाई थी. अंतत: इस केस को अनसुलझा करार देने के बाद इस की फाइल बंद कर दी गई थी.

इस के बाद साल, 6 महीने में लुधियाना और पटियाला में इसी तरह लाशें मिलती रहीं और उन हत्याओं की जांच भी होती रही, पर कातिल को पकड़ना तो दूर की बात पुलिस उस का पता तक नहीं लगा पाई. समय के साथसाथ हत्याओं के ये सारे केस फाइलों में बंद हो कर रह गए थे.

लेकिन अनिल की इस ताजा हत्या ने एसपी (देहात) हरविंदर सिंह विर्क का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया और उन्होंने इस तरह हुई हत्याओं की सभी फाइलें मंगवा कर उन का बारीकी से अध्ययन करने के बाद हत्यारे को पकड़ने का काम डीएसपी सौरभ जिंदल को सौंप दिया.

डीएसपी सौरभ जिंदल ने अपने विश्वसनीय पुलिसकर्मियों की टीम बना कर इस मामले की जांच शुरू कर दी. सब से पहले उन्होंने पटियाला के टैगोर सिनेमा के पीछे मिली राजिंदर कुमार नामक युवक की लाश से अपनी जांच शुरू की. राजिंदर की लाश भी 2015 में मिली थी और अब तक मिली अन्य लाशों की तरह उस की लाश के भी टुकड़े कर अटैची में बंद कर के टैगोर सिनेमा के पिछवाड़े फेंके गए थे. उस का चेहरा भी ईंट मार कर बिगाड़ा गया था.

डीएसपी सौरभ जिंदल ने जब राजिंदर की फाइल का बारीकी से निरीक्षण किया तो पता चला कि राजिंदर की लाश के टुकड़ों के साथ उस के कपड़े भी मिले थे और उन कपड़ों में एक विजिटिंग कार्ड भी था, जो किसी सुरजीत नामक कौंटैक्टर का था.

डीएसपी सौरभ जिंदल ने सुरजीत को बुलवाया और मृतक राजिंदर की फोटो दिखा कर उस के बारे में पूछा. फोटो देख कर उस ने झट से बता दिया कि राजिंदर उसी मकान मेंअपनी पत्नी के साथ किराए पर रहता था, जिस में वह खुद रह रहा था. आगे की पूछताछ में पता चल कि वह मकान किसी रीना नाम की औरत का था.

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यह जानकारी भी मिली कि रीना का चालचलन ठीक नहीं था. रीना के अवैध संबंध एक आदमी से थे और वह अकसर रीना के घर आया करता था. पड़ोसियों के अनुसार, रीना उस आदमी की रखैल थी और वह उस के इशारों पर नाचती थी.

रीना के पास आने वाला आदमी कौन था, उस का नाम क्या था और वह कहां का रहने वाला था, रीना के अलावा यह बात और कोई नहीं जानता था. बहरहाल, डीएसपी सौरभ जिंदल ने सब से पहले राजिंदर के बारे में उस की पत्नी से पूछताछ की.

उस की पत्नी का कहना था कि उस का पति सिंचाई विभाग में कार्यरत था और कई दिनों से घर से लापता था. आश्चर्यजनक बात यह थी कि राजिंदर की पत्नी ने उस के गायब होने की कहीं रिपोर्ट तक दर्ज नहीं करवाई थी. जांच में यह भी पता चला कि राजिंदर कुमार भी रीना पर गलत नजर रखता था.

डीएसपी सौरभ जिंदल ने मामले की गहनता से जांचपड़ताल की तो कई बातें बड़ी विचित्र और रहस्यमयी दिखाई दीं. इसलिए जिंदल ने रीना से ही पूछताछ करना उचित समझा. रीना को अपने औफिस बुला कर जब उस से उस के प्रेमी के बारे में पूछा गया तो रीना ने अपने प्रेमी के बारे में कई रहस्य उजागर किए.

उस ने बताया कि उस के प्रेमी का नाम जगरूप सिंह था और वह पिछले काफी समय से अपनी मजबूरी के कारण उस के साथ रह रही थी, क्योंकि जगरूप उसे ब्लैकमेल कर रहा था और वह उसे धमकी दे कर कई बार कह चुका था कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी या उस के बारे में किसी से कुछ कहा तो अन्य लोगों की तरह वह उस की भी हत्या कर देगा और उस की लाश के टुकड़ेटुकड़े कर चीलकौवों को खिला देगा.

इन सब बातों के अलावा रीना से यह भी पता चला कि 45 वर्षीय जगरूप सिंह बदोवाल, लुधियाना का रहने वाला है. बदोवाल में जगरूप कहां रहता था, इस बात का रीना को पता नहीं था. डीएसपी सौरभ जिंदल के आदेश पर उन की पुलिस टीम ने बड़ी मेहनत करने के बाद लुधियाना के बदोवाल में जगरूप का घर ढूंढ निकाला, पर इतनी मेहनत के बाद यहां भी पुलिस के हाथ निराशा ही लगी.

दरअसल, जगरूप को किसी तरह से यह सूचना मिल गई थी कि पुलिस ने अब तक हुए ब्लाइंड मर्डर्स की फाइलों को खोल कर नए सिरे से जांच शुरू कर दी है और जल्द ही पुलिस उस तक पहुंचने वाली है. इसीलिए वह अपने घर बदोवाल से फरार हो गया था.

जगरूप की गिरफ्तारी को ले कर पुलिस ने रेड अलर्ट घोषित कर जगहजगह उस की तलाश में छापेमारी शुरू कर दी. इस बीच पुलिस को पता चला कि जगरूप लुधियाना के जालंधर बाईपास इलाके में कहीं रह रहा है. दिनरात मेहनत कर के पुलिस ने उस का ठिकाना ढूंढ तो लिया, लेकिन पुलिस के वहां पहुंचने से पहले ही वह वहां से भी फरार हो गया. पुलिस खाली हाथ पटियाला लौट आई.

अगली बार पुलिस ने रीना से पुन: पूछताछ कर जगरूप के उन सभी ठिकानों को घेर लिया, जहां उस के छिपने की संभावना हो सकती थी. अंत में अपने आप को चारों ओर से घिरा देख कर 4 जनवरी, 2018 को जगरूप सिंह ने एक व्यक्ति के जरिए सिविललाइंस थाने में आ कर सरेंडर कर दिया. इसी के साथ पिछले कई महीनों से जगरूप और पुलिस के बीच चल रहे चूहेबिल्ली के खेल का अंत हो गया.

जगरूप सिंह के पिता की मृत्यु उस के बचपन में ही हो गई थी. जगरूप बचपन से ही अय्याश प्रवृत्ति का था और ऐशोआराम की जिंदगी जीना चाहता था. बचपन से ही वह स्कूल में हमउम्र और अपनी उम्र से बड़ी लड़कियों से छेड़छाड़ करता रहता था. इसी के चलते उसे स्कूल से निकाल दिया गया था. उम्र के साथसाथ उस का अय्याशी वाला शौक भी बढ़ता गया.

लेकिन अय्याशी के लिए ढेर सारे पैसों की जरूरत थी, जो उस के पास नहीं थे. अंतत: अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए उस ने एक रास्ता खोज निकाला. अपने आप को शरीफ और पैसे वाला दिखा कर वह लड़कियों से पहले दोस्ती करता था और बाद में उन की अश्लील फोटो खींच कर उन्हें ब्लैकमेल करते हुए देहव्यापार के धंधे में धकेल देता था. उन की कमाई से वह खुद ऐश करने लगा. इस तरह जगरूप ने अनेकों लड़कियों की जिंदगी बरबाद की थी. उस के चंगुल में फंसने वाली लड़की का उस से बच निकलना असंभव था.

सन 1994 में जगरूप का बड़ा भाई आस्ट्रेलिया चला गया. वह वहां टैक्सी चलाने का काम करने लगा. इस काम में उसे अच्छी कमाई होने लगी. जब धंधा जम गया तो उस ने अपनी मां को भी हमेशा के लिए अपने पास आस्ट्रेलिया बुला लिया.

आस्ट्रेलिया जाने से पहले जगरूप की मां ने एक लड़की देख कर उस की शादी यह सोच कर करवा दी थी कि एक तो उन के आस्ट्रेलिया चले जाने के बाद जगरूप का खयाल कौन रखेगा और दूसरे उन का सोचना था कि शादी के बाद शायद जगरूप की जिंदगी में कोई ठहराव आ जाए, पर यह उन का मात्र भ्रम था.

जगरूप को न सुधरना था और न ही वह सुधरा. बल्कि दिनप्रतिदिन उस की अय्याशियां बढ़ती गईं. नईनवेली पत्नी के सामने जब जगरूप का घिनौना चेहरा आया तो समझदारी दिखाते हुए वह चुपचाप घर छोड़ कर अपने मायके चली गई और उस ने दोबारा मुड़ कर पति की तरफ नहीं देखा.

जगरूप के बताए अनुसार, उस ने अपनी जिंदगी का पहला कत्ल 22 साल की उम्र में मई 1995 में लुधियाना निवासी नंदलाल का किया था. नंदलाल की पत्नी जगरूप की प्रेमिका थी. नंदलाल को जब जगरूप के साथ अपनी पत्नी के संबंध होने का पता चला तो वह अपनी पत्नी को उस से संबंध तोड़ने के लिए कहने लगा. इसी बात को ले कर घर में क्लेश होने लगा था.

अपनी प्रेमिका के माध्यम से जगरूप को जब नंदलाल के क्लेश करने का पता चला तो उस ने बड़ी बेरहमी से उस की हत्या करने के बाद उस की लाश के कई टुकड़े कर दिए और चेहरे पर ईंटें मारमार कर उस का चेहरा बिगाड़ दिया. जगरूप के आत्मसमर्पण करने से पहले बीते 23 सालों में भी लुधियाना पुलिस नंदलाल की हत्या की गुत्थी को नहीं सुलझा पाई थी.

इस बीच नंदलाल की हत्या के बाद पुलिस को या किसी अन्य व्यक्ति को उस के कार्यकलापों पर संदेह न हो, इस के लिए दिखावे के तौर पर जगरूप ने औटोरिक्शा चलाना शुरू कर दिया था. पर उस का असली धंधा वही रहा.

नाजायज संबंधों के चलते साल 1995 से अब तक 7 कत्ल करने वाला सीरियल किलर ऐश और आराम की जिंदगी जीने के लिए लड़कियों से गलत काम करवाता रहा. जगरूप के पकड़े जाने से कई ब्लाइंड मर्डर केस जो पुलिस की फाइलों में बंद हो चुके थे, खुल गए.

जगरूप ने अब तक लुधियाना और पटियाला में 7 हत्याएं करने का अपराध स्वीकार कर लिया. एसपी (डी) हरविंदर सिंह विर्क के सामने जगरूप ने यह भी स्वीकार किया कि वह 2 कत्ल के केसों में 4-5 साल तक जेल में भी रहा है. पुलिस जगरूप के इस बयान की जांच करेगी कि वह किनकिन केसों में जेल गया था, गया भी था या नहीं.

इस के अलावा पुलिस इस बात की भी जांच करेगी कि इन 7 हत्याओं के अतिरिक्त उस ने और कितनी हत्याएं की हैं. इन केसों के बारे में फिलहाल जानकारी जुटाई जा रही है. पुलिस के मुताबिक जगरूप सिंह महिलाओं के साथ संबंध बनाने के लिए उतावला रहता था.

उस का शिकार अधिकतर खूबसूरत विधवा या तलाकशुदा महिलाएं ही बनती थीं. अपने शिकार को जाल में फांसने के बाद वह धीरेधीरे उसे हलाल कर के अय्याशी के लिए रकम जुटाता था.

अब तक जगरूप ने कितनी महिलाओं को अपनी हवस का शिकार बना कर उन्हें देहव्यापार के धंधे में झोंका, पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है. हालांकि जगरूप को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया गया है, फिर भी समयसमय पर पुलिस पूछताछ के लिए उस का रिमांड ले कर वास्तविकता तक पहुंचने का प्रयास कर रही है.

अब तक की गई पूछताछ से यह बात सामने आई कि आरोपी पहले महिलाओं को अपने प्रेमजाल में फंसाता था और फिर जबरदस्ती उन से धंधा करवा कर पैसे बनाता था. अगर कोई उस के बीच में आता था, तो वह उसे बड़ी बेरहमी के साथ मार देता था. अब तक उस ने जितने भी लोगों को मौत के घाट उतारा था, सभी हत्याएं उस ने बड़ी निर्ममता के साथ की थीं.

जनसंख्या पर झूठ

जनसंख्या नियंत्रण के मामले एक ?ाठ नरेंद्र मोदी से ले कर नुक्कड़ वाले मंदिर के पुजारी तक बहुत जोर से फैलाते हैं कि मुसलिमों की आबादी तेजी से बढ़ रही है और निकट भविष्य में वे बहुमत में आ जाएंगे. हकीकत यह है कि राष्ट्रीय प्रजनन दर यानी फर्टिलिटी दर, जो 2 है, के मुकाबले में मुसलिम फर्टिलिटी दर 2.36 अवश्य है और हिंदू फर्टिलिटी दर 1.94, लेकिन यह अंतर ऐसा नहीं है कि मुसलिम जनसंख्या जल्दी ही बहुमत में आ जाए. सालदरसाल हिंदू और मुसलिम प्रजनन दर दोनों तेजी से गिर रही हैं. वहीं, परिवार नियोजन धर्म से ज्यादा औरतों का निजी मुद्दा है.

चिंता की बात तो यह है कि अनुसूचित जातियों और अनूसूचित जनजातियों में यह बहुत ज्यादा है. 2015-16 के सर्वे में यह बात सामने आई है कि विवाहित औरतों, जो बच्चे पैदा करने की आयुवर्ग में हैं, में 3 बच्चे वाली 21 फीसदी अनुसूचित जातियों की हैं जबकि 4 से ज्यादा बच्चों वाली 22 फीसदी. जो लोग मुसलमानों के

5 के 25 की बात करते हैं उन्हें इन

22 फीसदी शैड्यूल्ड कास्ट युवतियों की चिंता करनी चाहिए जो 1 से 4-5 हो रही हैं.

उत्तर प्रदेश में जहां जनसंख्या नियंत्रण कानून की बहुत बात होती है,

2015-2020 के आंकड़े बताते हैं कि मुसलिम औरतों की प्रजनन दर 3.1 प्रति महिला है तो शैड्यूल्ड कास्ट हिंदू महिला की भी 3.1 है जबकि शैड्यूल्ड कास्ट की 3.6. पिछड़ी जातियों में यह दर 2.8 और केवल ऊंची जातियों में 2.3 है. यह दर सभी धर्मों व जातियों में तेजी से गिर रही है बिना किसी कानून के.

जैसेजैसे औरतों में शिक्षा का संचार हो रहा है और उन के कमाने के अवसर बढ़ रहे हैं, उन की प्रजनन दर यानी फर्टिलिटी रेट घट रहा है. 2022 के आकंड़े तो यह आश्वस्त करते दिखते हैं कि हम किसी जनसंख्या ज्वालामुखी पर नहीं बैठे हैं, असल में जल्द ही हमें चीन और जापान की तरह बच्चों की कमी दिखने लगेगी और सारी आबादी सफेद होने लगेगी यानी बूढ़े ज्यादा होने लगेंगे.

धार्मिक विवाद खड़ा कर के जो वैमनस्य का माहौल बनाए रखा जा रहा है, वह एक धंधे के लिए लाभदायक है- धर्म का धंधा. इसी के कारण देशभर में नए मंदिर तेजी से बन रहे हैं और पुरानों में पूजापाठ बढ़ रहा है, दानदक्षिणा बढ़ रही है,  जहां कम बच्चे व युवा मातापिता को और उत्पादक बना रहे हैं वहीं इस जनसंख्या के विषय को ले कर फैलाया जा रहा धार्मिक जहर उन्हें धर्म की भक्ति करने पर मजबूर कर रहा है.

मुद्दा: आर्यन खान बरी, चालू मीडिया पर आंच भी नहीं

ऐक्टिंग के क्षेत्र में देशविदेश में मशहूर अभिनेता शाहरुख खान के पुत्र आर्यन खान को मुंबई क्रूज ड्रग्स केस में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) की एसआईटी ने क्लीन चिट दे दी है, यानी वे ड्रग्स केस मामले में पूरी तरह बेकुसूर पाए गए हैं. एनसीबी को आर्यन खान के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिला. ऐसे में उन सारे दावों की हवा निकल गई जो इस मामले के शुरू होने के बाद किए जा रहे थे. 22 दिन जेल और 238 दिनों तक लंबे चले ट्रायल के बाद आर्यन खान बेदाग निकले हैं. आर्यन के बेदाग निकलने के बाद एनसीबी और मीडिया की भूमिका पर सवाल खड़े हो गए हैं.

इस में कोई शक नहीं है कि आर्यन खान को जबरदस्ती बलि का बकरा बनाया गया था, ठीक वैसे ही जैसे कुछ समय पहले रिया चक्रवर्ती को बनाया गया. आर्यन खान मामले की जांच करने वाले एनसीबी के डीडीपी संजय सिंह ने जांच में यह पाया कि आर्यन के पास ड्रग्स नहीं था. आर्यन द्वारा ड्रग्स के सेवन करने का प्रमाण भी उन्हें नहीं मिला. जो व्हाट्सऐप चैट्स निकाली गईं वे इस मामले से लिंक नहीं करतीं. वहीं, एनसीबी के डीजी एस एन प्रधान ने कहा कि जिस तरह के सुबूत सामने आए हैं उन से यह साफ है कि यह कोई अंतर्राष्ट्रीय साजिश का मामला नहीं था, पर सवाल यह कि जो दाग मीडिया और नारकोटिक्स ने इन दिनों आर्यन खान पर लगाए क्या वे आसानी से धुल पाएंगे? 24 वर्षीय एक युवा को जिस तरह के तनावों से गुजरना पड़ा क्या उस की भरपाई हो पाएगी?

आर्यन खान का मामला 2 अक्तूबर, 2021 को उछला था जब एनसीबी ने मुंबई से गोवा जा रहे क्रूज पर रेड डाली थी. उस रेड में 13 ग्राम कोकीन, 21 ग्राम चरस और एमडीएमए की 22 गोलियां मिलने की बात सामने आई थी. इस मामले ने सनसनी तब फैला दी थी जब फिल्म स्टार शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को उन के दोस्तों के साथ क्रूज से एनसीबी ने हिरासत में ले लिया. उस के बाद उन्हें अदालत में पेश किया गया. आर्यन को हिरासत में

लेने के बाद से मानो मीडियारूपी गिद्धों को परोसा हुआ शिकार मिल गया. वे इस मामले पर टूट पड़े, क्योंकि इस मामले में उन्हें एकसाथ ग्लैमर, सिनेमा, स्कैंडल, ड्रग्स, क्राइम का ही नहीं बल्कि धर्म का भी छौंका मिल रहा था.

मसलन, कोर्ट कार्यवाही एक तरफ चल रही थी दूसरी तरफ मीडिया ट्रायल का खेल शुरू हो चुका था. जब आर्यन खान पर आरोप लगाए गए तब मीडिया ने उन्हें नशेड़ी, तस्कर, पैडलर और न जाने क्याक्या कहा. हर रोज सुबहशाम टीवी चैनलों पर आर्यन खान की लाइव लिंचिंग की गई. चैनलों द्वारा ऐसे सनसनीखेज दावे किए गए जो ‘गुप्त सूत्रों’ के हवाले से हुआ करते थे. ये कौन से गुप्त सूत्र थे और कहां से थे, ये तो वे ही जानें पर उन गुप्त सूत्रों की आड़ में हदों की सीमाएं लांघी गईं.

यह कैसा मीडिया ट्रायल

इस पूरे मसले में आर्यन खान की विच हंटिंग की गई. गिरफ्तारी के दिन उन्होंने कौन से रंग की टीशर्ट, जैकेट, मास्क, जींस पहनी थी, इसे बारीकी से बताया जाने लगा. जमानत के दिन वे किस कार में, कौन सी सीट पर, कैसे, कहां से जाएंगे, घर जाएंगे या होटल आदि फुजूल बातें रिपोर्टिंग का हिस्सा थीं. सिर्फ

हवाई बातों और ?ाठेबेबुनियाद या आधेअधूरे तथ्यों से ही चैनलों द्वारा कई प्रकार के दावे किए गए. इस ड्रग्स मामले में आर्यन खान के खिलाफ कोई सुबूत न मिलने पर एनसीबी और मीडिया ने इसे अंतर्राष्ट्रीय तारों से जुड़ा हुआ बताया. इस के लिए चैट्स का हवाला दिया, ताकि दर्शकों को लगे कि देश के खिलाफ यह बहुत बड़े षड्यंत्र का हिस्सा है.

उन दिनों मीडिया की कवरेज एकतरफा, हवाहवाई और धूर्त किस्म की थी. बड़ी चालाकी से न्यूज चैनल शीर्षकों का चयन करते, उदाहरण के लिए, जी न्यूज ने अपने प्राइमटाइम शो ‘ताल ठोक’ कार्यक्रम में ‘बौलीवुड के नशेबाज बच्चे’ शीर्षक से शो चलाया, जिस पर आर्यन खान की बड़ी फोटो चस्पां की गई. अंत में दर्शकों के कन्फ्यूजन के लिए क्वेश्चन मार्क डाला. साथ में, हैशटैग दिया गया ‘बौलीवुड ड्रग्स पार्टी’. शीर्षक में शब्दों का चयन ही आरोपी को अपराधी घोषित कर देने वाला था. इस में तथ्य न के बराबर थे. चैनलों में, बस, एंकरएंकरनियों व बेतुके पेनलिस्टों की चीखमचिल्ली और तेज दनदनाते साउंड इफैक्ट्स थे.

ऐसे ही अपने एक और शो में ‘आर्यन ड्रग्स और डील’ नाम से शो चलाया. इस में भी अधिकतर जानकारियां सूत्रों के हवाले से थीं. व्हाट्सऐप चैट के सामने आने के बाद चरित्र हनन के लिए चैनलों ने ‘आर्यन खान के फोन में आपत्तिजनक तसवीरें’ वाले शीर्षक चलाए. रिपोर्टर खबरें देने की जगह सड़कों पर कारों का पीछा कर रहे थे. मीडिया ट्रायल के नाम पर बगैर तथ्यों या आधेअधूरे तथ्यों से वे वह सब कहने के लिए आजाद थे जो भड़ासी हो, सनसनीखेज हो और आर्यन खान को कैसे अपराधी साबित किया जा सके, इसी के इर्दगिर्द था.

जी हिंदुस्तान चैनल के एक शो में कहा गया, ‘आर्यन खान से एमडीएमए की 22 गोलियां बरामद हुईं.’ चैनल को यह खबर भी सूत्रों से मिली. चैनल के अनुसार, अगर 22 गोलियां मिलीं तो आर्यन बरी कैसे हो गया? सिर्फ आर्यन नहीं, आर्यन के जरिए बौलीवुड को बदनाम किया जाने लगा. ‘आज तक’ में ऐसे कई शो चलाए गए. ‘आज तक’ के प्राइम टाइम ‘दंगल’ शो में ‘उड़ता बौलीवुड’ शीर्षक दिया गया, जिस में फ्रंट पर शाहरुख खान की बड़ी तसवीर लगाई गई. शाहरुख खान की छवि को खराब करने वाले शो भी चलाए गए, जैसे, शो ‘राष्ट्रवाद’ में शीर्षक दिया ‘खुल गया मन्नत में जन्नत का गेम.’ यह शीर्षक सी ग्रेड भोजपुरी फिल्मों के टाइटल जैसा सुनाई पड़ता है.

इसी प्रकार रिपब्लिक चैनल ने अपने एक शो में शीर्षक दिया, ‘शिकंजे में बादशाह का बेटा’. हिरासत और शिकंजा क्या होता है, शायद चैनल वाले जानते नहीं थे, या आर्यन को अपराधी मान कर बैठे थे. ‘शिकंजे’ शब्द को बारीकी से पढ़ने की जरूरत है, गड़बड़ यहीं सम?ा आ जाएगी. ‘शिकंजा’ शब्द कब और किन परिस्थितियों में उपयोग होता है? क्या आर्यन खान को किसी बहुत बड़ी क्रिमिनल एक्टिविटी में पकड़ा गया? क्या वे पुलिस से बच कर भाग निकलना चाह रहे थे? क्या उन्होंने पुलिस या एनसीबी से बचने के लिए पलटवार किया? नहीं, यकीनन नहीं. तो फिर शिकंजा किस बात का? शिकंजा शब्द तो घोषित अपराधियों के लिए उपयोग किया जाता है जो भागने की कोशिश कर रहे हों, या हत्थे न चढ़े हों. आर्यन तो महज आरोपी थे, जिन्हें हिरासत में  लिया गया.

आर्यन खान पर शुरू हुए मीडिया ट्रायल में किसी न किसी तरह से हर रोज घंटों उन के ड्रग्स कनैक्शन को साबित करने की कोशिश की जा रही थी. बौलीवुड का ‘काला सच’, ‘ड्रग्स कनैक्शन’, ‘नशेबाज बेटा’, ‘बिगडै़ल बेटा’ जैसे शब्दों से न्यूज चलाई जा रही थीं. तथाकथित व्हाट्सऐप चैट्स का इस्तेमाल कर उन की इमेज को खराब किया गया. साथ ही, मीडिया उन्हें फंसाने में लगे लोगों को बचाने और उन्हें हीरो के रूप में पेश करने में लगा रहा.

एक तरफ जहां मीडिया आर्यन खान का गुनाह साबित होने से पहले उन्हें गुनाहगार मान कर बैठा था, वहीं उन की रिपोर्टिंग में खबरों के नाम पर चौबीसों घंटे लोगों को कूड़ा परोसा जा रहा था. जितने दिन आर्यन जेल में रहे, मीडिया गुप्त स्रोतों से भीतरखाने की खबरें लाता रहा. खबरें चलाई गईं कि ‘शाहरुख खान के बेटे आर्यन जेल में पारले जी बिस्कुट को पानी में डुबो कर खा रहे हैं और इस के बाद उन्हें कब्ज की शिकायत भी हो गई है.’ ‘आर्यन खान के चलते गौरी खान और शाहरुख खान के ?ागड़े चल रहे हैं.’ ‘आर्यन खान 4 साल से ड्रग्स लेते रहे हैं, जिस की खबर उन के पेरैंट्स को थी.’

इस तरह की खबरें जानबू?ा कर दर्शकों को परोसी गईं और दर्शक भी चटखारे ले कर इन खबरों का भोग करते रहे. मीडिया ट्रायल के नाम पर चलाई जा रही खबरों ने न सिर्फ एक युवा के जीवन और उस के कैरियर को तबाह करने की कोशिश की बल्कि आम लोगों को भी भ्रमित करने का काम किया. आर्यन खान के पक्ष में एनसीपी के नेता नवाब मलिक, जो पहले दिन से ही आवाज उठा रहे थे, के औफिस ने भी ट्वीट किया, उन्होंने लिखा, ‘‘अब जबकि आर्यन खान और 5 अन्य लोगों को क्लीन चिट मिल गई है तो क्या एनसीबी समीर वानखेड़े की टीम और उन की निजी सेना के खिलाफ कार्रवाई करेगी या फिर अपराधियों को बचाने का काम होगा?’’

गलती होना और जानबू?ा कर गलती करना 2 अलगअलग चीजें हैं. सवाल यह है कि अब जब आर्यन खान निर्दोष साबित हुए हैं तो सिर्फ समीर वानखेड़े ही क्यों, मीडिया पर भी आपराधिक मुकदमा क्यों न चलाया जाए जो जानबू?ा कर केस को भ्रमित करता रहा? आखिर मीडिया ट्रायल के नाम पर कब तक अपनी बेशर्मी व अपराधों पर परदा डालता रहेगा?

एसएसआर और रिया चक्रवर्ती प्रकरण

यह सिर्फ आर्यन खान का मसला नहीं. पिछले कुछ समय से मीडिया का रवैया मीडिया ट्रायल के नाम पर एकतरफा और सांप्रदायिक हो चला है. इस में कोई संदेह नहीं कि शाहरुख खान के बेटे को भी इसी के चलते रडार पर लिया गया, क्योंकि शाहरुख खान उन अभिनेताओं में से रहे हैं जो भाजपा-आरएसएस की पसंद नहीं रहे हैं.

इस के साथ भाजपा के बड़े नेता पहले भी शाहरुख खान को ले कर आपत्ति जता चुके हैं. ऐसे में यह पूरा मामला बौलीवुड को डराने और ‘खानों’ के मान को हानि पहुंचाने का दिखाई देता है. इस के इतर, बौलीवुड में ‘खानों’ के दबदबे को खत्म करने और एंटरटेनमैंट को किसी खास सोच में तबदील किए जाने का मसला भी है, जिस के आगे बौलीवुड फिलहाल रोड़ा है.

यही कारण है कि मीडिया के साथ ही, एनसीबी को ले कर केंद्र सरकार की भूमिका पर भी सवाल उठते हैं. इस से पहले सुशांत सिंह राजपूत केस में भी मीडिया ट्रायल और एनसीबी का एजेंडा विवादों में था. रिया चक्रवर्ती का मामला भी महाराष्ट्र का था, पर जानबू?ा कर एक केस बिहार में दर्ज करवा कर जांच अपने हाथों में ली गई. मनमाने ढंग से गिरफ्तारियां की गईं. फिर मीडिया ट्रायल के नाम पर वही खेल शुरू हुआ जो आर्यन खान के मामले में देखने को मिला.

गौर करने वाली बात यह है कि उस दौरान बिहार में चुनाव होने थे और भाजपा व उस का सहयोगी दल जेडीयू कठोर जांच और बिहार प्राइड के नाम पर इस मामले को भुनाने में लगे थे. एसएसआर और रिया चक्रवर्ती प्रकरण को तब तक भुनाया गया जब तक बिहार चुनाव नहीं हो गए. रिया चक्रवर्ती ने सुप्रीम कोर्ट में उस दौरान इस बात का जिक्र भी किया कि उन्हें बिहार चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक एजेंडे के तौर पर बलि का बकरा बनाया जा रहा है. वे अपने पर हो रहे मीडिया ट्रायल को ले कर नाखुश थीं.

नाखुश हों भी क्यों न, उन दिनों चैनल हर रोज एक महिला का चीरहरण जो किया करता था. उस के कुछ उदाहरण आप भी देखिए, जैसे एबीपी न्यूज ने अपनी खबर में शीर्षक दिया, ‘रिया का अंडरवर्ल्ड कनैक्शन सामने आया’, ‘हत्या से पहले मिटाए सुबूत… रिपब्लिक भारत चैनल का शीर्षक- ‘‘सुपारी गैंग की साथी है रिया?’, ‘बेनकाब हो गए रिया के रक्षक.’ न्यूज 18 का शीर्षक- ‘रिया का तंत्रमंत्र और तिजोरी’, न्यूज 24 का शीर्षक- ‘इश्क का काला जादू.’

इस मीडिया ट्रायल के नाम पर टीवी चैनल रोज रात को यही सब चीखमचिल्ली करते रहे, फुजूल की गपबाजी में लोगों को मूर्ख बनाते रहे. बाबा, साधुओं और ज्योतिषियों को बैठा कर आरोपप्रत्यारोप करते रहे. रिया चक्रवर्ती की कार का पीछा करना, उन के ड्राइवर, नौकर, गार्ड को रोकरोक कर पूछापाछी करना आदि सामान्य होने लगा. रिया को काला जादू करने वाली कहा गया. रिया का दोष साबित होने से पहले उसे दोषी बना दिया गया. यह बात फैलाई गई कि उस ने पैसों के लालच में सुशांत की हत्या की या करवाई और उसे ड्रग्स दिए, अपने यौवन के जाल में फंसा कर सुशांत को फुसलाया, फिर ब्लैकमेल किया.

उस दौरान भी तमाम केंद्रीय एजेंसियां सीबीआई, ईडी, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ऐसे सक्रिय हो गई थीं मानो मामले के जर्रेजर्रे का सच सामने ला देंगी. महीनों यह सब चलता रहा लेकिन हाथ खाली रहे. सवाल यह कि इतने दिन यह सब चलता रहा, लोगों को इन खबरों में दिनरात जबरन बांधे रखा गया, आखिर इस से हुआ क्या? क्या सच सामने आया? एसएसआर का क्या हुआ?

किसान आंदोलन और तबलीगी जमात के समय

यह बात किसी से छिपी नहीं रह गई है कि मीडिया के एक बड़े धड़े की भूमिका खुल कर भाजपा समर्थक और सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने की बन गई है. इस के लिए वह दिनरात गैरजरूरी मुद्दों को हवा देता है और जन मुद्दों को दबाता है. पिछले साल किसान आंदोलन के शुरू होने पर यह बात किसान सम?ा चुके थे, तभी उन्होंने मीडिया के कुछ खास समूहों, जिन्हें गोदी मीडिया कहा जाता है, को धरना स्थलों में घुसने पर पाबंदी लगा दी थी. वे जानते थे कि इन्हें घुसने भी दिया जाए तब भी ये उन का पक्ष दिखाएंगे नहीं, उलटा उन्हें ही बदनाम करेंगे, जैसा हुआ भी.

किसान आंदोलन के दौरान किसानों को क्याक्या नहीं कहा गया. सब से पहले उन्हें किसान मानने से ही इनकार किया गया. उन के आंदोलन को कुछ लोगों का ही आंदोलन कहा गया. जैसेजैसे किसानों की संख्या बढ़ती गई वैसेवैसे उन्हें देशद्रोही, खालिस्तानी और न जाने क्याक्या कहा गया. जब वे बड़ी संख्या में बौर्डरों पर जमा होने लगे तो उन्हें ‘भटके हुए किसान’ कहा गया. सरकार का अडि़यल और जिद्दी रवैया होने के उलट किसानों को जिद्दी और अडि़यल कहा गया. पूरे एक साल 6 दिन किसानों ने दिल्ली के बौर्डर पर सर्दीगरमीबरसात ?ोली, जिन के आगे आखिरकार सरकार को ?ाकना पड़ा, पर जैसे ही सरकार ने नए कृषि कानून वापस लिए वैसे ही किसानों की जीत न कह कर सरकार का उदार और ऐतिहासिक फैसला बताया गया. फिर कृषि कानूनों में वही मीडिया नुक्स निकालता दिखा जो कल तक उन के फायदे गिना रहा था.

मीडिया, खासकर टीवीचैनल, आज जन मुद्दों को सिर्फ दबा ही नहीं रहा, इस का हालिया अतीत दिखाता है कि यह खुल कर सांप्रदायिक भी हो चला है. बढ़चढ़ कर लोगों में उन्माद भरने का काम टीवी चैनलों का हो गया है. कोरोनाकाल में तबलीगी जमात प्रकरण कौन भूल सकता है. सरकारी लापरवाही और प्रवासी मजदूरों के प्रति सरकार की बदइंतजामी को ढकने के लिए तबलीगी जमात के मुद्दे को उठाया गया. मामले की गंभीरता को सम?ाने

की जगह चैनलों ने हिंदूमुसलमान की बहस चलाई. मुसलमानों को कोरोनावाहक कहा गया. हर किसी के मन में एकदूसरे के धर्म को ले कर शंका और डर का वातावरण फैलाया गया. ‘कोरोना जिहाद’ ‘थूक जिहाद’ जैसे कार्यक्रम परोसे गए. देश के माहौल को सांप्रदायिक बनाया गया. इस का असर यह हुआ कि गरीब, ठेलेपटरी वाले पीटे जाने लगे, सरकार की सारी जवाबदेहियां खत्म हो गईं, सारा दोष मुसलिमों पर मढ़ा गया.

भावुक दर्शकों को लपेटे में लेते चैनल

‘आर्यन खान ने ड्रग्स ली या नहीं?’ इस सवाल का जवाब आज 7 महीने बाद आ गया है. अब जाहिर है इस जवाब के बाद एनसीबी की साख पहले जैसी नहीं रही, लोगों का भरोसा इस संस्था से जरूर टूटा है. अब सवाल यह कि तकरीबन

7 महीने बाद मिले इस जवाब से आम आदमी को क्या सीखने को मिला? मीडिया ने जिस तरह दर्शकों को महीनों इसी गपबाजी में फंसाए रखा उस से उन्हें क्या हासिल हुआ? सवाल यह भी कि आर्यन खान, रिया चक्रवर्ती, एसएसआर के अनसुल?ो या सुल?ो जवाब से आम आदमी को क्या हासिल हुआ? कौन सा रोजगार बढ़ा? कितनी महंगाई कम हुई? कितने भूखों को खाना मिला?

हालिया प्रैस फ्रीडम रिपोर्ट बताती है कि भारत का रैंक पिछले साल के मुकाबले 8 अंक और नीचे गिर कर 150 पर पहुंच गया है. यह इसीलिए क्योंकि अधिकतर मीडिया प्लेटफौर्म सरकार की चाटुकारिता कर रहे हैं और जो सचाई बयान कर रहे हैं उन्हें तरहतरह से परेशान किया जा रहा है. क्या यह आंकड़ा नहीं बताता कि हमारा मीडिया किस हद तक कपटी बन चुका है.

आज अधिकतर टीवी चैनल पिछले कई वर्षों से शाम 5 बजे शाम से ले कर रात 10 बजे तक भूल कर भी ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं करते जिस में ‘ब्रैंड मोदी’ को जरा सा भी नुकसान पहुंचे. दिनभर का थका, नौकरीपेशा इंसान जब शाम को घर पहुंच कर टीवी खोलता है तो उसे ‘ब्रैंड मोदी’ के गुणगान से ओतप्रोत न्यूज ही देखने को मिलते हैं. उसे अपने काम की खबरें नहीं मिलतीं.

आज आम आदमी अपनी परेशानियों से थका और महंगाई से पिटा अपने काम की खबरों के बजाय लगातार एकजैसे कंटैंट को सुनता रहता है, जिस से उस में भक्ति जगे, फिर चाहे वह मोदी के प्रति हो या भगवानों के प्रति. उस के दुख और हताशों को ये चैनल सही मार्गदर्शन देने की जगह दूसरे धर्म के प्रति नफरत और हिंसा के उकसावे से भर रहे हैं. जो लोग गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई की मार ?ोल रहे हैं उन्हें बताया जा रहा है कि धर्म का पालन करो, सच्चे हिंदू यानी कट्टर हिंदू बनो. इस कारण, वह अपनी तकलीफों के कारणों को खुद में सरकारी नीतियों में न ढूंढ़ कर गैरधर्मियों के वजूद में खोज रहा है.

बीते सभी मामले बताते हैं कि टीवी चैनल बड़ी चालाकी से लोगों के दिमाग पर कब्जा कर लेते हैं या इसे ऐसा कहना ज्यादा उचित होगा कि सबकुछ जानते हुए हम खुद उन्हें हमारे दिमाग पर कब्जा करने का न्योता देते हैं. वे जनता की भावुकता का इस्तेमाल करते हैं. हर बार चैनल भ्रम फैलाने वाले मुद्दे उछालते हैं और जनता उसे लपक लेती है.

तथ्य यही है कि इतना सब घटित होने के बाद भी हम सोचनेसम?ाने को तैयार नहीं हैं. वरना आर्यन खान के बेबुनियाद मामले की जगह गौर तो इस पर भी किया जा सकता था कि जिस दौरान मीडिया पर आर्यन खान मामला तूल पकड़ रहा था, उसी दौरान भाजपा नेता केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी की कार से

4 किसानों को लखीमपुर में बेरहमी से कुचला गया, आरोप है कि जिसे उन का बेटा आशीष मिश्रा टेनी चला रहा था.

मैं 26 साल की हूं, मुझे पीरियड्स में प्रौब्लम रहती है, डाक्टर का कहना है कि विवाह के बाद मुझे मां बनने में दिक्कत होगी, इस के क्या मायने हैं?

सवाल

मैं 26 साल की युवती हूं. मुझे पीरियड्स में बहुत प्रौब्लम रहती है. परेशान हो कर मैं ने जब डाक्टर को दिखाया तो उन्होंने अल्ट्रासाउंड करवाने की सलाह दी. जब पैल्विक अल्ट्रासाउंड हुआ तो उस में डाक्टर ने एक गांठ बताई. यह रिपोर्ट देख कर डाक्टर ने 3 महीने तक मुझे दवा लेने के लिए कहा. अब मैं ठीक हूं. पर डाक्टर का कहना है कि विवाह के बाद मुझे मां बनने में दिक्कत होगी. इस के क्या माने हैं?

क्या मुझे फिर से अल्ट्रासाउंड करवाना चाहिए? डाक्टर की बात को ले कर मैं काफी चिंतित हूं. बताएं क्या करूं?

जवाब
आप के एसएमएस से यह बात साफ नहीं है कि आप पीरियड्स को ले कर किस तरह की प्रौब्लम से गुजरती रही हैं. क्या आप को पीरियड्स बहुत देर से और बहुत अल्प मात्रा में होते हैं या पीरियड्स के समय आप को पैल्विक में बहुत दर्द होता है या फिर आप को और कोई समस्या है? इसी प्रकार पस्ल्विक अल्ट्रासाउंड पर जिस गांठ की आप चर्चा कर रही हैं, वह भी कई किस्म की हो सकती है और उस का संबंध भी कई प्रकार के रोग विकारों से हो सकता है.

अच्छा होगा कि आप हमें अपनी समस्या के बारे में खुल कर लिखें और साथ ही अपने पैल्विक अल्ट्रासाउंड की पूरी जांच रिपोर्ट भेजें. ताकि आप की समस्या की गंभीरता को समझ हम आप को उस की पूरी जानकारी दे सकें.

जहां तक तीसरी बार पैल्विक अल्ट्रासाउंड कराने की बात है, उस का फैसला भी रोग को समझ कर ही लिया जा सकता है. किसी भी जांच जैसे पैल्विक अल्ट्रासाउंड कराने के पीछे लक्ष्य एक ही होता है कि डाक्टर रोग की ठीकठीक डायग्नोसिस कर सके और सही इलाज शुरू किया जा सके.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

Monsoon Special: बारिश के मौसम में ऐसे बनाएं कच्चे केले के कबाब

कच्चे केले के कबाब को आप हरी चटनी के साथ सर्व कर सकती हैं. तो आइए जानते हैं, कच्चे केले के कबाब की रेसिपी.

सामग्री

सौंफ पाउडर (1/2 टी स्पून)

गेंहू का आटा (1 टी स्पून)

कौर्न फ्लोर (1 टी स्पून)

चीज  (150 ग्राम कद्दूकस किया हुआ)

हरी मिर्च  (बारीक कटा हुआ, 3-4)

सूखे अंजीर (बारीक कटा हुआ, 3-4)

हरा धनिया (टुकड़ों में कटा हुआ)

ताजे अनार के बीज़ (1/2 कप)

नींबू का रस (कम मात्रा में)

औयल (तलने के लिए)

नमक (स्वादानुसार)

मक्खन (1/2 टेबल स्पून)

इलाइची पाउडर (1/2 टी स्पून)

दालचीनी पाउडर (1/2 टी स्पून)

अदरक (1/2 टी स्पून)

बनाने की वि​धि

केलों को किनारे से काट लें और उसमें चीरा लगा दें.

इन्हें 6-7 मिनट के लिए पकाएं.

इन पर पानी डालकर ठंडा कर लें, छीलकर केलों को अच्छे से मैश कर लें.

एक पैन में मक्खन, नमक और मैश किए हुए केलों को डालें.

जब मिश्रण हल्का गुलाबी हो जाए तो इसमें इलाइची पाउडर, दालचीनी पाउडर, सफेद मिर्च पाउडर का पाउडर, अदरक और सौंफ पाउडर डालें.

इसे कुछ देर पकाएं और ठंडा होने दें.

फीलिंग के लिए:

चीज़, अंजीर, हरा धनिया, हरी मिर्च, अनार के दाने, नींबू का रस और नमक डालकर अच्छे से मिलाएं.

गेंहू का आटा और कौर्न फ्लोर के साथ केले का मिश्रण डालकर अच्छे से मिला लें, इसमें नींब का रस डालें.

बनाना मिश्रण से कोफ्ते बनाएं, इसमें फीलिंग भरें और किनारों को बंद कर दें.

एक पैन में तेल गर्म करें और इसमें कबाब डालकर इन्हें गोल्डन ब्राउन होने दें.

अपनी पसंद की चटनी के साथ सर्व करें.

Monsoon Special: बारिश के मौसम में ऐसा होना चाहिए खानपान

बारिश का मौसम अपने साथ कई बीमारियां भी लाता है. ऐसे में हम अगर इस मौसम में सही खानपान और साफसफाई का ध्यान न रखें तो बीमारियों का आसानी से शिकार बन जाते हैं. अत: इस मौसम में खानपान संबंधी सही जानकारी होनी आवश्यक है ताकि खुद को तरोताजा और चुस्ततंदुस्त रखा जा सके.

आइए, जानते हैं कि इस मौसम में हमारा आहार कैसा हो:

1.बारिश के मौसम में बासी खाना खाने से बचें. हमेशा ताजा भोजन ही करें. यह भी ध्यान रखें कि खाना सुपाच्य हो. गरिष्ठ और तलाभुना खाना नुकसानदेह हो सकता है.

2.  इस मौसम में खाली पेट न रहें. बाहर भी खाली पेट न जाएं. घर में खाना खा कर और ले कर जाएं. लंचबौक्स में सलाद जरूर हो. पानी की बोतल साथ ले जाना न भूलें.

3.  फलों का सेवन ज्यादा से ज्यादा करें. ये शरीर में ताजगी बनाए रखते हैं. तरबूज, खरबूजा, खीरा, ककड़ी, संतरा, अंगूर, लीची आदि का सेवन शरीर में पानी की कमी को तो दूर करता ही है, जरूरी पोषक तत्त्वों की भी पूर्ति होती है.

4.  चायकौफी की जगह नीबू पानी, शिकंजी, आम पन्ना, लस्सी, छाछ, आदि का सेवन अधिक करें.

5. इस मौसम में बेल, सेब और आंवले का मुरब्बा चुस्तदुरुस्त रखने में मदद करेगा.

6.  इस मौसम में बैक्टीरिया और वायरस ज्यादा फैलते हैं. शुगर कंटैंट वाले फलों में बैक्टीरिया पनपने की संभावना बढ़ जाती है, इसलिए ताजा फलों का ही सेवन करें. पहले से कटे फलों को न खाएं. सब्जियां भी ताजा ही खाएं.

7.बारिश के मौसम में स्वच्छ पानी पीना बेहद जरूरी है.

8.जहां तक हो सके नौनवेज खाने से परहेज करें.

9.हरी चटनियों का सेवन अच्छा रहता है. पुदीनापत्ती, धनियापत्ती, आंवला, प्याज आदि का सेवन करें.

10. घर में पुदीनापत्ती, धनियापत्ती, ग्लूकोज आदि जरूर रखें. फूड पौयजनिंग की समस्या होने पर ये उस से राहत दिलाएंगे.

11. नियमित ऐक्सरसाइज जरूर करें.

अनुपमा ने इमली के साथ मिलकर बा को सिखाया सबक, देखें Video

रविवार विद स्टार परिवार (Ravivaar With Star Parivaar) में टीवी सितारे जमकर धमाल मचा रहे हैं. शो में सीरियल की बहुएं अपना जलवा बिखेर रही हैं. इसी बीच अनुपमा (Anupamaa) और इमली (Imlie) का एक धमाकेदार वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है. आइए बताते हैं, इस वीडियो के बारे में.

इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि अनुपमा और इमली मिलकर अपनी सास को सबक सिखाती नजर आ रही हैं. इमली ने अपनी सास पर हमला बोला है तो वहीं अनुपमा ने बा को सबक सिखाया है.

 

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अनुपमा सीरियल में इन दिनों धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है.  शो में जल्द ही किंजल का बेबी शॉवर दिखाया जाएगा. किंजल के बेबी शॉवर में भी खूब हंगामा मचने वाला है. राखी और बा एक दूसरे को जमकर ताने मारती नजर आएंगी.

 

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किंजल के बेबी शॉवर की तैयारी करने के लिए अनुज और अनुपमा शाह हाउस में ही रुकने वाले हैं. अनुज और अनुपमा परिवार के साथ मिलकर किंजल के बेबी शॉवर की तैयारी करेंगे.

 

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बा ऐलान करेगी कि वनराज के बिना किंजल का बेबी शॉवर नहीं होगा. किंजल के बेबी शॉवर में राखी और बा की तीखी बहस होने वाली है.

 

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मां बनने वाली हैं आलिया भट्ट, शेयर की ये गुड न्यूज

बॉलीवुड एक्ट्रेस आलिया भट्ट ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर कर फैंस को चौंका दिया है. जी हां, एक्ट्रेस ने इंस्टाग्राम पर एक फोटो शेयर की है. इस फोटो के कैप्शन में उन्होंने खुशखबरी शेयर की है. आइए जानते है, क्या शेयर किया  है आलिया भट्ट  ने…

दरअसल आलिया भट्ट जल्द ही मां बनने वाली हैं. एक्ट्रेस ने सोशल मीडिया पर फोटो शेयर कर यह खुशखबरी दी है कि जल्द ही उनका बेबी आने वाला है.

 

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आलिया ने रणबीर के साथ हॉस्पिटल की एक तस्वीर शेयर की है. उन्होंने फोटो शेयर करते हुए लिखा- हमारा बच्चा, जल्द ही आ रहा है.उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर करके जानकारी दी  है. आलिया और रणबीर के पेरेंट्स बनने के बारे में जानकर फैंस चौंक गए हैं.

 

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आलिया की इस पोस्ट पर फैंस और उनकी फैमिली, फ्रेंड्स लगातार बधाइयां और शुभाकामनाएं दे रहे हैं. इस पोस्ट पर मां सोनी राजदान और ननद रिद्धिमा का भी रिएक्शन आया है. सोनी राजदान ने लिखा है, बधाई मामा एंड पापा लॉयन तो वहीं रिद्धिमा ने हार्ट की इमोजी बनायी है.

 

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आलिया ने इंस्टाग्राम पर दो तस्वीरें शेयर की है. पहली फोटो में वे अस्पताल की बेड पर लेटी हुई है तो दूसरी तस्वीर में  शेर-शेरनी और एक बच्चे की फोटो शेयर की है. अब आलिया की फैमिली जल्द ही पूरी होने वाली है.

 

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बता दें कि आलिया और रणबीर ने इस साल अप्रैल महीने में शादी की थी. दोनों की शादी की तस्वीरें जमकर वायरल हुई थी.

हमारी बहू इवाना: क्या शैलजा इवाना को अपनी बहू बना पाई?

दिनेश और शैलजा ने अपने बेटे विशाल के लिए कई जगह लड़की देखी, पर बात न बन सकी. वजह, उन्हें योग्य व गोरी बहू चाहिए थी. विशाल ने जब फ्रांस में एक गोरी लड़की पसंद की और उस की फोटो शैलजा को भेजी, तो उन की खुशी का ठिकाना न रहा.

हमारी बहू इवाना- भाग 1: क्या शैलजा इवाना को अपनी बहू बना पाई?

“लो, तुम्हारी गोरी बहू लाने की तमन्ना पूरी हो गई,” मोबाइल पर आंखें गड़ाए  दिनेश सोफे से उठ कर किचन में सब्जी काट रही शैलजा के पास जा पहुंचा.

दिनेश के शब्दों को सुन शैलजा के हाथ रुक गए. चेहरा उत्सुकता से स्वयं ही दिनेश के मोबाइल की ओर मुड़ गया.

“अरे वाह, यह तो सचमुच गोरी है,” बेटे विशाल द्वारा व्हाट्सएप पर भेजी फोटो देख शैलजा आह्लादित हो उठी.

“होगी क्यों नहीं? गोरी जो है, मतलब विदेशी,” ठहाका लगाते हुए दिनेश अपने शब्दों का उत्तर शैलजा की भावभंगिमाओं में खोजने लगा. शैलजा की आंखों में दिख रही चमक और मुखमंडल की आभा यह बताने के लिए पर्याप्त थी कि उसे विशाल की पसंद पर गर्व सा हो रहा था.

“मैं विशाल से कहना चाहती हूं कि जल्द से जल्द इस गौरवर्णा को मेरी बहू बनाने की तैयारी कर ले. अभी फोन कर लो न.”

“कुछ देर बाद करता हूं. आज संडे है तो वह घर पर ही होगा,” दिनेश उत्सुकता दबा मोबाइल पर अन्य मैसेज पढ़ने में व्यस्त हो गया.

शैलजा को आज अचानक जैसे पंख लग गए. धरती से आसमान में पहुंच गई हो वह. कुछ अकाल्पनिक सा घटित हो रहा है उस के साथ. फ्रांस में रहने वाले 32 वर्षीय बेटे विशाल के लिए कब से वह जीवनसंगिनी की तलाश में थी. कितनी लड़कियों के फोटो देखे थे उस ने. रिश्तेदारों और सहेलियों को बारबार याद दिलाती कि उसे एक मनभावन कन्या की तलाश है. विभिन्न मैरिज साइट्स के माध्यम से भी एक योग्य बहू पाने की उस की तलाश पूरी नहीं हो पा रही थी. कभी उसे लड़की पसंद नहीं आती, तो किसी का बायोडेटा या फोटो देख विशाल बात आगे बढ़ाने से मना कर देता. जहां सब की रजामंदी हुई वहां शैलजा और दिनेश गए भी, लेकिन निराशा हाथ लगी. आदर्श बहू के गुणों में उस का रंग गोरा होना शैलजा की प्राथमिकता थी. दिनेश से वह कहती कि जब किसी लड़की की प्रोफाइल ठीकठाक होती तो न जाने क्यों सांवला रंग चिढ़ाने आ जाता है, लेकिन उस ने भी ठान लिया है कि बहू तो गोरी ही लाएगी वह.

दिन रात एक करने के बाद भी बात न बनने से शैलजा को चिंता सताने लगी थी कि परदेश में बैठे विशाल ने यदि अपने लिए स्वयं ही कोई लड़की पसंद कर ली तो क्या होगा? वह मानदंडों पर खरी न उतरी तो उस की नाक कट जाएगी. पड़ोस में रहने वाली मिसेज तनेजा की बहू का डस्की कौम्प्लेक्शन देख नाकभौं सिकोड़ने वालों में वह भी सम्मिलित थी.

दिनेश के मित्र सिंह साहब के बेटे की सगाई के अवसर पर दबी जबान में मेहमान उस विजातीय विवाह की आलोचना कर रहे थे. ऐसी किसी लड़की का विशाल द्वारा चुन लिया जाना शैलजा के लिए कितना पीड़ादायक होगा, इस की कल्पना कर ही वह सिहर उठती.

आज जब उस ने विशाल द्वारा भेजी तसवीर देखी तो बागबाग हो उठी. गोरे रंग में डूबी काया सभी को चकाचौंध कर देगी और जातिपांति की बात भी कोई नहीं उठाएगा जब बहू विदेशी होगी. उस का मन प्रसन्नता से नाचने लगा. बस एक समस्या उसे थोड़ी चुभन दे रही थी.

“होने वाली बहू न तो हिंदी बोल पाएगी और शायद समझ भी न पाए. यही थोड़ा तकलीफदेह लग रहा है, बाकी तो सब ठीक ही है,” सब सोचनेसमझने के बाद वह दिनेश से बोली.

“हां, हिंदी में उसे दिक्कत होगी, लेकिन इंगलिश का सहारा तो है ही. तुम अपनी पैंतीस साल की नौकरी के दौरान फर्राटेदार न सही कामचलाऊ इंगलिश तो बोल ही लेती हो. फिर क्या सोचना?” बेफिक्री के अंदाज में दिनेश ने जवाब दिया.

“उन लोगों का लहजा कुछ अलग ही होता है. दूसरी बात यह है कि मेरा काम औफिस में कर्मचारियों की छुट्टियों का हिसाब रखना, उन के द्वारा जमा बिलों की सत्यता की जांच और उन की अर्जियों को आगे बढ़ाने का ही है. इंगलिश में बातें करने का मौका न के बराबर ही मिलता है.”

शैलजा फिर सोच में पड़ गई. कुछ देर की माथापच्ची के बाद सिर झटकते हुए वह बोली, “मैं भी क्या ले कर बैठ गई. बहू से ज्यादा बोलने की नौबत आएगी ही कहां? फोन पर तो ज्यादा बातें विशाल से ही होंगी. रही यहां आने की बात तो दो महीने के लिए ही आएगा विशाल. उसी दौरान शादी कर देंगे, कुछ दिन वे साथसाथ घूमेंगे, फिरेंगे, फिर वापस चले जाएंगे.

“चलो ठीक है, बहू के साथ बात हो न हो, बस रिश्तेदारों और अड़ोसपड़ोस में नाक ऊंची हो जाए, इतना ही बहुत है,” मन ही मन होने वाली बहू के प्रति की लोगों की आंखों में प्रशंसा के भावों की कल्पना कर शैलजा गदगद हुए जा रही थी.

कुछ देर बाद उन्होंने विशाल को वीडियो काल किया. थोड़ी घबराई, थोड़ी संकोची सी मुद्रा में लड़की भी विशाल के पास बैठी थी. विशाल ने मम्मीपापा और भावी जीवनसंगिनी इवाना का परस्पर परिचय करवाया.

इवाना बेहद आकर्षक, सौम्य दिख रही थी. हर्षातिरेक से शैलजा व दिनेश एकसाथ “हेलो” बोल खिलखिला कर हंस पड़े.

इवाना के गुलाबी होंठ खिल उठे. चांद से उस के चेहरे पर लाल लिपस्टिक खूब फब रही थी. सुनहरी बालों में खोंसा हुआ उज्जवल डेजी का फूल मोतियों सी दमकती धवल ड्रैस के साथ मैच कर रहा था.

शैलजा का ह्रदय तरंगित होने लगा. स्वयं से कह उठी, ‘अरे वाह, गुलबहार लगाया है बालों में. यह तो मेरा प्रिय फूल है और इस फूल सी खूबसूरत, सलोनी है इवाना.’

दिनेश भी इवाना से प्रभावित हो टकटकी लगाए स्क्रीन की ओर देख रहा था.

उन दोनों को अभी एक और अचरज मिलना बाकी था. बातें शुरू हुईं, तो यह देख उन की प्रसन्नता असीमित हो चली कि इवाना हिंदी में बात कर पा रही है और हिंदी भी ऐसी कि आसानी से समझ में आ जाए.

शैलजा व दिनेश की लगभग हर बात समझते हुए वह पूरे आत्मविश्वास के साथ उत्तर दे रही थी. हिंदी भाषा पर इवाना की इतनी पकड़ का कारण पूछने पर पता लगा कि उस के पिता एक भारतीय हैं.

इवाना ने बताया कि उस की मां इटली की रहने वाली हैं, लेकिन वे भी हिंदी समझती हैं और थोड़ाबहुत बोल भी लेती हैं, क्योंकि उन्होंने कई वर्ष भारत में बिताए हैं. पिता फ्रांस की एंबेसी में एक महत्वपूर्ण पद पर थे.

“तुम्हारे पापा का पूरा नाम क्या है? मैं एजुकेशन डिपार्टमेंट में होने के कारण उस एंबेसी में काम करने वाले लोगों को जानता हूं. भारत में फ्रेंच भाषा के प्रचारप्रसार को ले कर मुझ से वे मशवरा करते रहते हैं,” दिनेश इवाना की बात सुन उत्सुक हो पूछ बैठा

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