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बिग बॉस से बाहर आते ही सुंबुल ने खरीदा नया घर, वीडियों में दिखाई झलक

इमली से बिग बॉस तक अपनी पहचान बनाने वाली सुंबुल एक बार फिर से चर्चा में आ गई हैं, हाल ही में सुंबुल ने अपना नया घर खरीदा है, जिसकी वीडियो सुंबुल ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर किया है. इमली में दिखाया गया है कि सुंबुल काफी ज्यादा सीधी कुडी है.

सुंबुल ने अपनी बहन और पापा के लिए यह घर खरीदा है, जिसमें फिलहाल डेकोरेशन का काम चल रहा है, इसकी एक झलक दिखाते हुए सुंबुल ने लिखा है नया घर , काम अभी जारी हैं, शेयर किए हुए वीडियो में सुंबुल के पिता भी नजर आ रहे हैं.

 

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बता दें कि सुंबुल ने बिग बॉस 16 में साफ कर दिया था कि सुंबुल अपने पापा से कितना प्यार करती है. सुंबुल ने सीरियल इमली से अपनी एक अलग पहचान बनाई है, इस सीरियल में इनके किरदार को खूब पसंद किया गया था.

19 साल की सुंबुल ने सपनों के शहर में अपना आशियाना बनाया है, जिसे देखकर फैंस लगातार उन्हें बधाई दे रहे हैं.सुंबुल की इस वीडियो पर लगातार कमेंट आ रहे हैं. लोग उन्हें जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए मोटिवेट कर रहे है. सुंबुल एक खुले विचार की लड़की है.

बता दें कि सुंबुल ने बिना गॉड फादर के अपना कैरियर संवारा है, आज वह अपने जीवन में काफी ज्यादा आगे बढ़ गई है.

YRKKH: आरोही-अभिमन्यु की शादी की खबर से परेशान होगी अक्षरा, कायरव लेगा ये एक्शन

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में इन दिनों नए-नए ड्रामें देखने को मिल रहे हैं,इस सीरियल में अक्षरा का रोल प्रणाली राठौर निभा रही हैं, आएं हो रहे नए-नए ड्रामें ने दर्शकों का दिल जीत लिया है.

सीरियल की कहानी इन दिनों मिमी के बर्थ डे पर आकर रुका हुआ है, जिसमें दिखाया जा रहा है कि बिरला और गोयनका परिवार एक साथ मस्ती करते नजर आ रहा है, बर्थ डे पर अक्षरा और अभिमन्यु एक साथ नजर आते हैं, जिसे देखकर मंजरी भड़क जाती है.

आने वाले एपिसोड में मंजरी आरोही  औऱ अभिमन्यु का सच बताने वाली है, बर्थ डे में डांस करने वाली जोड़ियां साथ दिखेगी. जिसमें अभिमन्यु और अबीर एक साथ आते हैं,

अबीर और अभिमन्यु को एक साथ डांस करते देखकर सभी लोग हैरान हो जाते हैं, वहीं अबीर अभिमन्यु को कॉफी के लिए ऑडर दे देता है जिसके बाद से दोनों को एक साथ देखकर फैंस खुश हो जाते हैं.

अबीरऔर अभिमन्यु के बाद अक्षरा और अभिनव एक साथ डांस करते नजर आते हैं, जिसे देखकर अभिमन्यु के चेहरे पर थोड़ी से उदासी नजर आती है. धीरे- धीरे पूरा परिवार डांस करते नजर आता है. एक तरफ अक्षरा अभिनव और अबीर के साथ एंजॉय कर रही होती है तो वहीं दूसरी तरफ अभि आरोही के साथ . इसी बीच आरोही और अभिमन्यु एक-दूसरे के सामने अभिमन्यु की शादी की बात रखेंगे. जिसे सुनकर अक्षरा परेशान हो जाएगी.

इलाइची चाय से लेकर मसाला चाय तक, जानें ये 3 चाय पीने के फायदे

चाय पीने का अपना ही एक अलग मजा होता है. चाहे वह दोस्तों के साथ हो या रिश्तेदारों के साथ. ऑफिस में बॉस के साथ चाय पीने का मौका मिले या किसी खास इंसान को होटल या अपने घर पर दिया गया चाय का इनविटेशन. चाय हर मौके के लिए परफेक्ट है.

कैंसर से बचाव में चाय के फायदे

कैंसर से बचाव में चाय कुछ हद तक फायदेमंद साबित हो सकती है. दरअसल, चाय में पॉलीफेनॉल्स पाए जाते हैं, जो ट्यूमर कोशिकाओं को फैलने से रोक सकते हैं. एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) की वेबसाइट पर इसी संबंध में कई शोध उपलब्ध हैं. इनके अनुसार, ग्रीन टी ग्लूटाथियोन एस-ट्रांसफरेज और क्विनोन रिडक्टेस जैसे डिटॉक्सिफिकेशन एंजाइम को सक्रिय करने का काम कर सकती है, जो ट्यूमर को बढ़ने से रोकने का काम कर सकते हैं. इसके अलावा, ग्रीन टी और ब्लैक टी में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट फ्लेवनोइड्स (एपिकैटेचिन, एपिगैलोटेचिन, एपिकैटेचिन गैलेट) कीमोंप्रिवेंटिव (कैंसररोधी) प्रभाव दिखा सकते हैं.

हृदय के लिए फायदेमंद है चाय

संतुलित मात्रा में ग्रीन टी या ब्लैक टी का सेवन हृदय को स्वस्थ रखने में मददगार साबित हो सकता है. दरअसल, चाय का सेवन करने वाले लोगों में ब्लड प्रेशर, सीरम में लिपिड की मात्रा और डायबिटीज नियंत्रित रहती है. साथ ही कोलेस्ट्रॉल भी कम होता है, जिससे शरीर को हृदय रोग होने की संभावना कम होती है. फिलहाल, हृदय स्वास्थ्य के मामले में चाय के बेहतर प्रभाव जानने के लिए अभी और वैज्ञानिक शोध की जरूरत है.

डायबिटीज कम करने में चाय के फायदे

एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित एक शोध में मधुमेह के लिए चाय के फायदे की बात कही गई है. शोध में बताया गया है कि चाय डायबिटीज के जोखिम और इससे जुड़ी जटिलताओं को कम करने में मददगार हो सकती है. शोध के अनुसार, चाय इंसुलिन की सक्रियता को बढ़ाती है, जो ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है. इस आधार पर कह सकते हैं कि चाय का सेवन डायबिटीज के मरीजों के लिए लाभकारी हो सकता है. इस शोध में ग्रीन, ब्लैक और ओलोंग जैसी विभिन्न प्रकार की चायों को शामिल किया गया है.

(आलेख में किए गए दावों की पुष्टि हम नहीं करते, किसी भी सलाह पर अमल करने से पहले डॉक्टर से परामर्श अवश्य लें.)

अब आप सोच रहे होगें कि इतनी अलग अलग तरह की चाय हमें कहां मिल सकती है तो आपको ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है, क्योंकि हम आपको बताने वाले हैं एक ऐसे ब्रांड के बारे में जहां आपको चाय की कई वैरायइटीज मिल सकती हैं. आइए जानते हैं इसके बारे में…

Sugandh Tea- 29 सालों से बेहतरीन चाय की पहचान 

जी हां, सुगन्ध टी पिछले 29 सालों से चाय की कई बेहतरीन किस्में बना रही हैं जो न सिर्फ स्वाद में बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद है. यहां आपको चाय की अलग अलग किस्में मिलेंगी, जिनके बारे में आप यहां क्लिक shopsugandh.com करके डीटेल में जान सकते हैं.  

  1. इलाइची चाय –

अब आपको इलायची चाय बनाने के लिए अलग से इलायची पीसने की भी जरूरत नहीं है क्योंकि सुगन्ध लाया है एक अनोखी इलायची चाय जिसमें चाय पत्ती के साथ असली इलायची कूट के डाली गई है ताकि आपके चाय पीने का अनुभव और भी खास हो जाए.

2. मसाला चाय- 

बात करते हैं हमारी स्पेशल मसाला चाय के बारे में जो आपको ताजगी भी देगी और एक जबरदस्त स्वाद भी. इस चाय की खास बात ये है कि इसमें आपको अलग अलग मसालों का फ्लेवर एक ही चाय में मिल जाएगा. इसमें अदरक, लौंग, इलायची और काली मिर्च का ऐसा स्वाद है जिस वजह से आप इसे बार बार पीना चाहेंगे.

3. असम चाय-

उच्च गुणवत्ता वाली चाय की पत्तियों से बनी असम चाय एक अलग ही स्वाद और ताजगी का एहसास देती है. सुगन्ध अपनी गोल्ड चाय में कुछ ऐसी ही बेहतरीन और चुनिंदा बगानो से लायी गई चाय आपके लिए पेश करता है. ये चाय कम मात्रा में ही बनाई जाती है

 

Satyakatha: नापाक रिश्ता

सौजन्य-सत्यकथा

इसी साल 18 मार्च की बात है. शाम का समय था. करीब 6-साढ़े 6 बज रहे थे. छत्तीसगढ़ के शहर बिलासपुर में रहने वाली सरिता  श्रीवास्तव मंदिर जाने की तैयारी कर रही थीं. बेटा ओम प्रखर घर पर अपने कमरे में पढ़ रहा था. इसी दौरान डोर बेल बजी. सरिता ने बाहर आ कर गेट खोला. गेट पर 25-30 साल की एक युवती खड़ी थी.

सरिता ने युवती की ओर देख कर सवाल किया, ‘‘हां जी, बताओ क्या काम है?’’   युवती ने अपने दोनों हाथ जोड़ कर सरिता से कहा, ‘‘मैम नमस्ते. ओम घर पर है क्या?’’

‘‘हां, ओम घर पर ही है.’’ सरिता ने युवती को जवाब दे कर सवाल किया, ‘‘आप को उस से क्या काम है?’’  ‘‘मैम, मेरा नाम आराधना एक्का है. मैं ओम के स्कूल में टीचर हूं. इधर से जा रही थी, तो सोचा ओम से मिलती चलूं.’’ युवती ने बताया.

बेटे की टीचर होने की बात जान कर सरिता ने आराधना को अंदर बुलाते हुए ओम को आवाज दे कर कहा, ‘‘ओम, आप की मैम मिलने आई हैं.’’ ओम बाहर आया, तो टीचर उसे देख कर मुसकरा दी.

सरिता को मंदिर जाने को देर हो रही थी. इसलिए उन्होंने ओम से कहा, ‘‘ओम, अपनी टीचर को चायपानी पिलाओ. मुझे मंदिर के लिए देर हो रही है.’’

‘‘ठीक है मम्मी, आप मंदिर जाइए.’’ ओम ने मम्मी को आश्वस्त किया और अपनी टीचर से कहा, ‘‘मैम, आ जाओ, कमरे में बैठते हैं.’’‘‘हां बेटे, तुम बातें करो. मैं मंदिर हो कर आती हूं.’’ कह कर सरिता घर से निकल गईं.

मंदिर सरिता के घर से दूर था. जब वह मंदिर से घर लौटीं, तो रात के करीब 8 बज गए थे. घर का गेट खुला देख कर सरिता को थोड़ा ताज्जुब हुआ, ओम की लापरवाही पर खीझ भी हुई. वह ओम को आवाज देती हुई घर में घुसीं.

ओम का जवाब नहीं आने पर उन्होंने कमरे में जा कर देखा, तो उन के मुंह से चीख निकल गई. ओम अपने कमरे में पंखे के हुक से लटक रहा था.सरिता पढ़ीलिखी हैं. वह निजी स्कूल चलाती हैं. अपने 16-17 साल के बेटे ओम को फंदे पर लटका देख कर वह कुछ समझ नहीं पाईं. उन्होंने रोते हुए तुरंत घर से बाहर आ कर जोर से आवाज दे कर पड़ोसियों को बुलाया. पड़ोसियों की मदद से पंखे से लटके ओम को नीचे उतारा गया.

ओम को फंदे से उतार कर उस की नब्ज देखी, तो सांस चलती हुई नजर आई. सरिता पड़ोसियों की मदद से बेटे को तुरंत बिलासपुर के अपोलो हौस्पिटल ले गईं. डाक्टरों ने बच्चे की जांचपड़ताल करने के बाद उसे मृत घोषित कर दिया.

अस्पताल वालों ने इस की सूचना तोरवा थाना पुलिस को दी. मामला सुसाइड का था, इसलिए पुलिस अस्पताल पहुंच गई. पुलिस ने सरिता से पूछताछ के बाद ओम का शव पोस्टमार्टम के लिए अपने कब्जे में ले लिया.

इस के बाद पुलिस देवरीखुर्द हाउसिंग बोर्ड इलाके में सरिता के घर पहुंची. उस समय तक रात के करीब 10 बज गए थे. इसलिए पुलिस ने वह कमरा सील कर दिया, जिस में ओम ने फांसी लगाई थी.

दूसरे दिन तोरवा थाना पुलिस ने ओम के शव का पोस्टमार्टम कराया. एक पुलिस टीम ने सरिता के मकान पर पहुंच कर ओम के कमरे की जांचपड़ताल की. कमरे में पुलिस को ओम का मोबाइल स्टैंड पर लगा हुआ मिला. मोबाइल का डिजिटल कैमरा चालू था. पुलिस ने मोबाइल की जांच की, तो उस में ओम के फांसी लगाने का पूरा वीडियो मिला.

ओम ने अपना मोबाइल स्टैंड पर इस तरह सेट किया था कि उस के फांसी लगाने की प्रत्येक गतिविधि कैमरे में कैद हो गई थी. पुलिस ने मोबाइल जब्त कर लिया. पुलिस ने ओम की किताब, कौपियां भी देखीं, लेकिन कोई सुसाइड नोट नहीं मिला. उस के कमरे से दूसरी कोई संदिग्ध चीज भी नहीं मिली.

पुलिस ने सरिता श्रीवास्तव से ओम के फांसी लगाने के कारणों के बारे में पूछा, लेकिन उन्हें कुछ पता ही नहीं था, तो वे क्या बतातीं. उन्होंने मंदिर जाने से पहले ओम की टीचर आराधना के घर आने और मंदिर से वापस घर आने तक का सारा वाकया पुलिस को बता दिया.

लेकिन इस से ओम के आत्महत्या करने के कारणों का पता नहीं चला.तोरवा थाना पुलिस ने ओम की आत्महत्या का मामला दर्ज कर लिया. जब्त किए उस के मोबाइल पर कुछ चीजों में लौक लगा हुआ था. मोबाइल का लौक खुलवाने के लिए उसे साइबर सेल में भेज दिया गया. पुलिस जांचपड़ताल में जुट गई, लेकिन यह बात समझ नहीं आ रही थी कि ओम ने सुसाइड क्यों किया और सुसाइड का वीडियो क्यों बनाया?

ओम प्रखर एक निजी स्कूल में 12वीं कक्षा में पढ़ता था. इस के साथ ही एक इंस्टीट्यूट में कोचिंग भी कर रहा था. ओम सरिता का एकलौता बेटा था. पति सुनील कुमार से अनबन होने के कारण सरिता बेटे के साथ घर में अकेली रहती थीं. सरिता परिजात स्कूल की प्राचार्य थीं. यह स्कूल वह खुद चलाती थीं.

पुलिस ओम के सुसाइड मामले की जांचपड़ताल कर रही थी, इसी बीच उस के कुछ दोस्तों के मोबाइल पर डिजिटल फौर्मेट में कुछ सुसाइट नोट पहुंचे. पता चलने पर पुलिस ने ये सुसाइड नोट जब्त कर लिए. इन सुसाइड नोट में ओम ने कई तरह की बातें लिखी थीं, जिन में वह जीने की इच्छा जाहिर कर रहा था और अपने व अपनों के लिए कुछ करने की बात भी कह रहा था.

सुसाइड नोट में ओम ने किसी लड़की का जिक्र करते हुए लिखा था कि वह उस का मोबाइल नंबर कभी ब्लौक तो कभी अनब्लौक कर देती है. उस ने सुसाइड नोट में अपनी मौत से उसे दर्द पहुंचाने की बात भी लिखी थी.

यह सुसाइड नोट सामने आने से पुलिस को यह आभास हो गया कि यह मामला प्रेम प्रसंग का हो सकता है. इसलिए पुलिस ने सुसाइड नोट के आधार पर जांच आगे बढ़ाई. इस दौरान ओम के दोस्तों के पास उस के सुसाइड से जुड़े मैसेज आते रहे.

जांच में पता चला कि ओम ने सुसाइड से पहले मोबाइल में 2-3 सुसाइड नोट रिकौर्ड किए थे. इस के अलावा कुछ अन्य मैसेज भी लिखे थे.ये मैसेज और सुसाइड नोट दोस्तों को अलगअलग समय पर मिलें, इस के लिए उस ने टाइम सेट किया था. टाइम सेट किए जाने के कारण ही ओम के दोस्तों को उस के सुसाइड नोट और मैसेज अलगअलग समय पर मिले.

सुसाइड नोट और मैसेज के आधार पर पुलिस ने 23 मार्च को ओम को आत्महत्या के लिए उकसाने और पोक्सो ऐक्ट के तहत मामला दर्ज कर शिक्षिका आराधना एक्का को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस की ओर से एकत्र किए सबूतों के आधार पर जो कहानी सामने आई है, वह 16-17 साल के किशोर ओम प्रखर को उस की टीचर आराधना एक्का द्वारा अपने प्रेमजाल में फंसाने और उस का दैहिक शोषण करने की कहानी थी.

30 साल की आराधना एक्का बिलासपुर के सरकंडा इलाके में एक निजी स्कूल में कैमिस्ट्री की टीचर थी. ओम भी इसी स्कूल में 12वीं कक्षा में पढ़ता था. ओम अपनी क्लास का होशियार विद्यार्थी था.पढ़ातेपढ़ाते आराधना का झुकाव ओम की ओर होने लगा. वह गुरुशिष्य का रिश्ता भूल कर ओम को प्यार करने लगी. आराधना ने ओम का मोबाइल नंबर भी ले लिया. वह कभी ओम को क्लास में रोक कर उसे छूती और प्यार भरी बातें करती, तो कभी घर पर बुला लेती.

ओम जवानी की दहलीज पर खड़ा था. वह प्रेम प्यार का ज्यादा मतलब तो नहीं समझता था, लेकिन इस उम्र में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ जाना स्वाभाविक है.आराधना जब उसे छूती और उस के नाजुक अंगों को सहलाती, तो ओम को अच्छा लगता. किशोरवय ओम जल्दी ही अपनी टीचर के प्यार की गिरफ्त में आ गया. आराधना उस का शारीरिक शोषण भी करने लगी.

इसी बीच आराधना का अपने स्कूल के एक शिक्षक से प्रेम प्रसंग शुरू हो गया. इस के बाद आराधना ने ओम की तरफ ध्यान देना कम कर दिया. इस से ओम बेचैन रहने लगा.आराधना ने उसे प्यार की ऐसी गिरफ्त में ले लिया था कि ओम को उस के बिना सब कुछ सूनासूना सा लगता था. ओम जब आराधना को फोन करता, तो कई बार वह फोन नहीं उठाती थी. इस पर ओम को कोफ्त होती थी.

ओम ने पता किया, तो मालूम हुआ कि आराधना का एक टीचर से चक्कर चल रहा है. यह बात जान कर ओम परेशान हो उठा. एक दिन आराधना ने ओम को बिलासपुर के एक मौल में बुलाया. ओम वहां गया, तो उस ने बहाने से आराधना का मोबाइल ले लिया. ओेम ने आराधना की आंख बचा कर उस के मोबाइल को हैक कर लिया.

इस के बाद आराधना जब भी अपने प्रेमी टीचर से बातें करती या सोशल मीडिया पर कोई मैसेज भेजती, तो सारी बातें ओम को पता चल जातीं. आराधना की बेवफाई की बातें सुन और पढ़ कर ओम ज्यादा परेशान रहने लगा.

18 मार्च को आराधना जब ओम के घर आई, तब उस की मम्मी सरिता श्रीवास्तव मंदिर जा रही थीं. मां के मंदिर जाने के बाद ओम ने आराधना से उस की बेवफाई के बारे में पूछा, तो आराधना ने उसे फटकार दिया और अपनी मनमर्जी की मालिक होने की बात कहते हुए चली गई.

आराधना की बातों से किशोरवय ओम के दिल को गहरी ठेस पहुंची. नासमझी में उस ने सुसाइड करने का फैसला कर लिया. उस ने किसी खास ऐप की मदद से कोड लैंग्वेज में कुछ सुसाइड नोट लिखे. एकदो सुसाइड नोट उस ने हिंदी में भी लिखे. ये सुसाइड नोट लिख कर उस ने टाइम सेट कर दिया और अपने दोस्तों को भेज दिए.

इस के बाद घर में अकेले ओम ने एक रस्सी से फांसी का फंदा बनाया और कमरे में लगे पंखे से लटक कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली.

सुसाइड नोट के टाइम सेट किए जाने के कारण ओम के दोस्तों को उस के सुसाइड नोट अलगअलग तय समय पर मिले. दोस्तों को सुसाइड नोट मिलने पर ओम के सुसाइड करने के कारणों का पता चला.

पुलिस ने ओम के मोबाइल का लौक खुलवा कर जांचपड़ताल की, तो उस में कोड वर्ड में लिखा सुसाइड नोट मिला. पुलिस ने साइबर विशेषज्ञों की मदद से सुसाइड नोट के कोड वर्ड को डिकोड कराया.

सुसाइड नोट में आराधना के लिए एक जगह लिखा था कि उसे पता था कि मैं बेस्ट हूं लेकिन उस ने मुझे बरबाद कर दिया. मैं जिंदा रहना चाहता हूं, अपने लिए, अपने घर वालों के लिए. जो मुझ से प्यार करते हैं, उन के लिए बहुत कुछ करना चाहता हूं. मैं जिंदगियां बचाना चाहता हूं, लेकिन मुझे कोई नहीं बचा सकता.

आराधना की बेवफाई का जिक्र करते हुए ओम ने सुसाइड नोट में लिखा कि वह मुझे अकसर ब्लौक कर देती थी और खुद की जरूरत पड़ने पर अनब्लौक. मैं ने उस से पूछा था कि वास्तविक जीवन में कैसे ब्लौक करोगी?

मैं ने उस से मजाक में यह भी पूछा था कि क्या कोई और मिल गया है, तो उस ने कहा था, क्या मेरा एक साथ 10 के साथ चक्कर चलेगा? फिर बोली थी कि कभी शक मत करना.पहले उस ने मुझे प्यार में फंसाया. फिर जब मुझे गहराई से प्यार हो गया, तो वह मुझे छोड़ने की बात करने लगी. मैं मनाता था, तो मान भी जाती थी. वह मुझे इस्तेमाल करती थी. मैं ने उसे सब कुछ दे दिया.

आरोपी टीचर आराधना ने पुलिस से बताया कि ओम ही उसे परेशान करता था. वह कम उम्र का था, इसलिए उस ने कभी उस की शिकायत उस के घर वालों से नहीं की.पुलिस ने आरोपी टीचर को गिरफ्तार करने के बाद अदालत में पेश किया. अदालत के आदेश पर उसे 24 मार्च को जेल भेज दिया गया. पुलिस ने उस का मोबाइल भी जब्त कर लिया.

बहरहाल, आराधना ने अपनी काम इच्छा की पूर्ति के लिए किशोर उम्र के ओम का इस्तेमाल किया. हवस में अंधी आराधना की बेवफाई ने ओम को तोड़ दिया. उस ने सुसाइड कर लिया.बेटे ओम की मौत से सरिता श्रीवास्तव पर दोहरा वज्रपात हुआ. एक तो वह पति से पहले ही अलग रहती थीं. अब बेटे की मौत ने उन की जिंदगी की रहीसही खुशियां भी छीन लीं.

Holi Special: होली पर बनाए मेवा चूरा

होली पर बहुत सारी मिठाइयां बनाई जाती है, लेकिन आज हम आपके लिए मेवा चूरा बनाने कि विधि लेकर आएं हैं, तो आइए जानते हैं कैसे बनेगा मेवा चूरा.

सामग्री

– 1 कप गेहूं का आटा

– 1 कप सूजी

– 2 कप बूरा

– थोड़ा सा चीनी पाउडर

– थोड़ा सा नारियल पाउडर.

– 11/2 कप घी

– 50-50 ग्राम काजू, बादाम, किशमिश

बनाने की विधि

– गज व गोंद सभी को अलगअलग घी में भून कर पीस लें

– 1/2 कप घी गरम कर उस में सारे मेवे 1-1 कर के सुनहरा होने तक भून कर अलग रख दें.

– ठंडा होने पर पीस लें.

– अब इसी घी में सूजी डाल कर सुनहरा होने तक भून लें.

– इसे भी ठंडा होने दें,  बचे घी में आटे को घी छोड़ने तक भूनें.

– फिर आंच से उतर कर ठंडा होने दें, नारियल पाउडर न भूनें.

– जब आटा हलका सा गरम रह जाए तो उस में सारी सामग्री डालने के बाद बूरा डालें.

– और अच्छी तरह मिला कर एक जार में भर कर रखें.

– यह मेवा चूरा 20-25 दिन तक रखा जा सकता है.

Holi Special: बुरा तो मानो होली है

फगुआ में देशज बबुआ सब्सिडी की गलीसड़ी भंग के अधकचरे नशे में इधर से उधर, उधर से इधर बिन पेंदे के नेता सा चुनावी दिनों के धक्के खा रहा था. टिकट न मिलने पर कभी इस दल को तो कभी उस दल को कोसे जा रहा था. पता ही न चल रहा था कि यह नशा भंग का है या कमबख्त वसंत का.

बबुआ सरकार का आदमी होने के बाद भी सरकार की भंग के अधकचरे नशे में गा रहा था, ‘सरकार ने कहा कि बबुआ नोटबंदी के दौर में नोटबंदी के बाद भी हंस के दिखाओ, फिर यह जमाना तुम्हारा है. नोटबंदी में सरकार के सुरताल के साथ फटे गले से सुर मिलाओ, फिर यह आशियाना तुम्हारा है. …तो लो सरकार, हम नोटबंदी में जनता के गिरने के बाद भी खड़े हो गए और मिला ली है सरकार की ताल के साथ ताल, मिला ली है सरकार के चकाचक गाल के साथ अपनी फटी गाल…कि पग घुंघुरू बांध बबुआ नोटबंदी में नाचे रे…नाचे रे…नाचे रे…’ उधर जनता की खाली, बदहाली जेबें देख वसंत परेशान. खाली जेबों के ये, खाक रंग खेलेंगे? अब की बार होली के नाम पर देवर अपनी भाभियों को कैसे ठिठेलेंगे?

देशज बबुआ जब से सरकार से जुड़ा है, उसे पता है कि सरकार का काम ही है सोएजागे, हर पल हवाई दावे करना. जो दावे न करे, भला वह सरकार ही काहे की. और वफादार जनता का काम है सरकार के दावों की रक्षा के लिए चौकचौराहों पर दिनदहाड़े एकदूसरे को धक्के देते मरना. दावे सरकार के तो छलावे जनता की जिंदगी के अभिन्न अंग हैं.

सो, सरकार ने फगुआ में रंग जमाने के बहाने, होली के नशे में जनता को धुत्त बनाने के साथ भंग के चकाचक रंग में दावा किया, ‘उस की नोटबंदी रंग ला रही है. ब्लैकमनिए की ब्लैकमनी नंगेपांव दौड़ जनता से गले लगने के लिए जनता के जनधन खातों की ओर बढ़ रही है. अब आम जनता सावधान हो जाए. उस की जेब भरने वाली है’. पर जनता ने भूख के नशे में भी जो बिना बैटरी की टौर्च लिए गौर से देखा तो पाया, रे बबुआ, ब्लैकमनिए नहीं, अबके भी मुई जनता ही लूटी जा रही है. यह जनता है ही ऐसी. इस की जिंदगी में कभी इस के तो कभी उस के हाथ लुटना ही लिखा है. आदमी के जो तीसरा हाथ होता तो तीसरे के हाथों भी लुटने को सहर्ष तैयार रहता. या उसे तीसरा हाथ भी लुटने को राजी कर लेता. सरकार कोई भी हो, वह दिल्ली के तख्त पर चढ़ बस दावे करती रहती है और बेचारे बबुआढबुआ कश्मीर से कन्याकुमारी तक तालियां बजाते भूखों मरते रहते हैं, अपनी खुशी से.

अब के सरकार ने चुनाव को वसंत में मिलाते मस्ती की कौकटेल तैयार की तो चुनावी घोषणापत्र को हर तरह के रंग में हर वोटर की मांग के अनुरूप लिपाया, ढोल मंजीरा ले आ डटी फगुआ के मंच पर. जनता को बरगलाबरगला गले का वैसे ही बुरा हाल था. पर भैया, तीजत्योहार है, गाना तो पड़ेगा ही. जनता को वोटों के लिए लुभाना तो पड़ेगा ही. यही राजनीति का धर्म है. इसीलिए होली में इस बार देवर से कहीं अधिक राजनीति बेशर्म है. सरकार को फगुआ के मंच पर जमे देख जनता छाछ की जली जीभ को मुंह में इधरउधर घुमाते बड़बड़ाने लगी. सरकार के दम में दम मिलाते ढोल की जगह अपना पिचका पेट बजाने लगी. उसे चुनाव के दिनों में भी ये सब करते देख सरकार ने उसे डांटा, ‘हद है री जनता, चुनाव के दिनों में भी पेट बजा रहे हो? क्या गम है जिस को दिखा रहे हो? अपना ये पिचका पेट दिखा तुम क्या बके जा रहे हो? ‘इधर हम एक आदमी के चारचार पेट भरने का इंतजाम कर रहे हैं, उधर वोटर भूखे मर रहे हैं. जरूर देश पर किसी भूतप्रेत का साया है. देखो तो, हम ने अपने घोषणापत्र में तुम्हारे लिए क्याक्या पकने को कड़ाही में सजाया है. बस, हमें वोट दो. इस बार सतयुग शर्तिया समझो आया है.’

जनता ने यह सुन चुनाव का तंबूरा बजाती सरकार के आगेपीछे हाथ जोड़े, ‘हुजूर, माना आप 5 साल हम से ठिठोली ही करते हो. ठिठोली करना आप का राजधर्म है. ठिठोली करना आप का जीवन का मर्म है. पर चुनाव के दिनों में तो कम से कम ठिठोली न कीजिए. होली है इस का मतलब यह बिलकुल नहीं कि होली के नाम पर जो मन करे, बके जाओ. देखो तो, हम नोटबंदी की मार से अभी भी नहीं उबरे हैं. हमें नोटबंदी से उबारो. ‘हे दीनानाथ, सुना है आप अबके भगवान को भी तारने जा रहे हो? हम तो नए नोटों के लिए अभी भी बंद पड़े एटीएम के आगे हाथ जोड़े लाइन में हाथ बांधे एकदूसरे को पीछे धकियाते, वहीं के वहीं खड़े हैं. कोई एकदूसरे से आगे न निकल जाए, इसलिए दिनरात जैसे भी हो, एकदूसरे के आगे विपक्षियों की तरह अड़े हैं. अड़ना हमारा जन्मसिद्घ अधिकार है. देखो तो, काले नोटों वाला लाला अब भी लंबी तान के सो रहा है. अब तो जागो सरकार, उस के कारनामे देख, उस के घर का पहरेदार कुत्ता तक रो रहा है.’

सरकार बोली, ‘लगता है साइकिल ने तुम्हारा दिमाग घुमाया है. रोटी हमारे आटे की खा रहे हो और हमारे ही विपरीत कमर मटका रहे हो. धत्त तेरे की जनता.’ ‘माफ करना, वादेदाता. सच तो सच है. मुंह में कीड़े पड़ें जो अब हम झूठ बोलें. झूठ बोलना इन का नहीं, लोकतंत्र के राजा का काम है,’ सरकार के खासमखास ने ढोल पर थाप देते सरकार के ऊंचा सुनने वाले कान में शब्द सरकाया कि अचानक नोटबंदी के चलते सरकार को कान्हा मान राधा ने उस पर रंग गिराया. सरकार होली के रंग में भीग गई सारी. ‘ये फजीहत का रंग हम पर, फिर से किस ने डाला? गोरी सरकार को ये किस रंग से नहला रहे हो? ये किस तरह का फगुआ मना रहे हो?’ सरकार दिल्ली गलिन में राधा को झाड़ती, अपने वसन संभालती राधा को लताड़ती चीखी तो राधा बौराई, ‘सरकार, माफ करना. नोटबंदी के दौर में दूसरे रंग न खरीद पाई. होली का त्योहार बचा रहे, इसलिए पानी में तवे की कालिख ले मिलाई. अब आप सामने आ गए तो??? मैं तो अपने श्याम को और श्याम करने के लिए… सोचा, श्याम कारे ही तो हैं. होली भी हो जाएगी और…पर सरकार, लगता है अब जनता के तीजत्योहार ऐसे ही मनेंगे. हे पौपुलर सरकार, हो सके तो दिल्ली से बाहर निकलो, मोहन प्यारे. हो सके तो बयानों से बाहर निकलो, सोहन प्यारे. ऊंचे लोगों की तिजोरियां नहीं, हम गरीबों के पेट भरो जनता के सहारे.’

मोहन सुन परेशान. राधा की आंखें धुएं से फूटने से बचाने के लिए उसे गैस भी दी, तो भी अपनी न हुई. चुनाव सिर पर. जनता को कैसे फुसलाएं? नोटबंदी का अब क्या तोड़ लाएं? लेओ भैया, जे तो उन के पैरों पर कुल्हाड़ी मारतेमारते अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी पड़ गई. होली में सारा चकाचक घोषणापत्र गुड़गोबर हो गया. एजेंडे का वोटर एजेंडे में ही खो गया. होली के हुल्लड़ में सरकार परेशान है. चुनाव से प्रैशरियाए सिर पर टोकरा भरा आसमान है. किस ओर जाएं. बिन कनैक्टिविटी के किसे डिजिटाई टोपी पहनाएं. डिजिटलिया हो छत पर खड़े कोई सिग्नल तलाश रहा है तो कोई सिग्नल के लिए हनुमानचालीसा बांच रहा है

ऐसे में फगुआ के अवसर पर वोट बटोरने का कोई खालिस रास्ता तो दिखाओ, हे लोकतंत्र. होली में होली से अधिक वोटों को झटकने की मारधाड़ है. अब के लट्ठमार होली नहीं, वोटमार होली चली है. सभी अपनेअपने सिर पर अपनेअपने घोषणापत्रों का हैलमेट रख वोटों के लिए जनता द्वारा धकियाए जाने के बाद भी अड़े हुए हैं.

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Holi Special: रंगों के नुकसान से खुद को बचाएं ऐसे

होली खेलते समय रंगों की गुणवत्ता सही हो. कैमिकल रंगों के बजाय सूखे रंग, अबीर, फूल आदि का प्रयोग करें. परंपरागत तौर पर होली गुलाल, जो कि ताजा फूलों से बनाया जाता था, के साथ खेली जाती थी. पर आजकल रंग कैमिकल के इस्तेमाल के साथ फैक्टरी में बनाए जाने लगे हैं. इन में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले कैमिकल्स हैं, लेड औक्साइड, कौपर सल्फेट, एल्युमिनियम ब्रोमाइड, प्रुशियन ब्लू, मर्क्यूरी सल्फाइट. इन से काला, हरा, सिल्वर, नीला और लाल रंग बनते हैं. ये देखने में रंग जितने आकर्षक होते हैं उतने ही हानिकारक तत्व इन में इस्तेमाल हुए होते हैं.

लेड औक्साइड रीनल फेलियर का कारण बन सकता है, कौपर सल्फेट आंखों में एलर्जी, पफ्फिनैस और कुछ समय के लिए अंधेपन का कारण बन सकता है. एल्युमिनियम ब्रोमाइड और मर्क्यूरी सल्फाइट खतरनाक तत्व होते हैं और प्रुशियन ब्लू कौन्टैक्ट डर्मेंटाइटिस का कारण बन सकते हैं. ऐसे कई उपाय हैं जिन्हें अपना कर इन हानिकारक तत्वों के असर से बचा जा सकता है.

त्वचा को रखें नम

पारस अस्पताल, गुरुग्राम के त्वचा विभाग के प्रमुख डा. एच के कार कहते हैं, ‘‘होली खेलते समय फुल आस्तीन के कपड़े पहनें ताकि आप की त्वचा खतरनाक तत्त्वों के असर से सुरक्षित रहे. खुद को पूरी तरह से हाइड्रेटेड रखें क्योंकि डिहाइड्रेशन से त्वचा रूखी हो जाती है और ऐसे में आर्टिफिशियल रंगों में इस्तेमाल होने वाले कैमिकल्स न सिर्फ आप की त्वचा को अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं, बल्कि इन का असर लंबे समय तक बना रहेगा. अपने कानों और होंठों को नम बनाए रखने के लिए वैसलीन लगाएं. अपने नाखूनों पर भी वैसलीन लगा सकती हैं.’’

डा. एच के कार आगे कहते हैं, ‘‘अपने बालों में तेल लगाना न भूलें, ऐसा न करने से बाल होली के रंगों में मिले कैमिकल्स से डैमेज हो सकते हैं. जब कोई आप के चेहरे पर रंग फेंक रहा हो या उसे रगड़ रहा हो तब आप अपने होंठों और आंखों को अच्छी तरह से बंद कर लें. सांस के जरिए इन रंगों की महक अंदर जाने से इंफ्लेमेशन हो सकता है, जिस से सांस लेने में तकलीफ हो सकती है.

‘‘होली खेलते समय अपने कौंटैक्ट लैंस निकाल दें और आंखों के आसपास की त्वचा को सुरक्षित करने के लिए सनग्लासेज पहन लें.

‘‘ज्यादा मात्रा में भांग खाने से आप का ब्लडप्रैशर बढ़ सकता है. इसलिए इस का इस्तेमाल भूल कर भी न करें.

‘‘अपने चेहरे को कभी रगड़ कर साफ न करें क्योंकि ऐसा करने से त्वचा पर रैशेज और जलन हो सकती है. स्किन रैशेज से बचने के लिए त्वचा पर बेसन व दूध का पेस्ट लगा सकते हैं.’’

जिन लोगों की त्वचा संवेदनशील होती है उन्हें ऊपर बताए तमाम उपायों का खास ध्यान रखना चाहिए. आजकल बाजार में और्गेनिक रंग भी उपलब्ध हैं, कैमिकल वाले रंगों की जगह इन्हें खरीद कर लाएं. एकदूसरे के ऊपर पानी से भरे गुब्बारे न फेंकें, इस से आंखों, चेहरे व शरीर को नुकसान हो सकता है.

होली के त्योहार के दौरान ऐसी चीजें खानेपीने से बचें जो बहुत ज्यादा ठंडी हों.

इन्फैक्शन का खतरा

दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल में त्वचा विभाग के निदेशक और प्रोफैसर डा. विजय कुमार गर्ग कहते हैं, ‘‘कैमिकल रंगों से एलर्जी की समस्या, सांस में तकलीफ व इन्फैक्शन हो सकता है. रंगों को गाढ़ा करने के लिए आजकल उस में कांच का चूरा भी मिलाया जाता है जिस से त्वचा व आंख को नुकसान हो सकता है. बेहतर होगा कि आप हर्बल रंगों से होली खेलें. अपने साथ रूमाल या साफ कपड़ा जरूर रखें ताकि आंखों में रंग या गुलाल पड़ने पर उसे तुरंत साफ कर सकें. रंग खेलने के दौरान बच्चों का खास ध्यान रखें.’’

कोलंबिया एशिया अस्पताल, गाजियाबाद के त्वचा विशेषज्ञ डा. भावक मित्तल कहते हैं, ‘‘जहां तक हो सके सुरक्षित, नौन टौक्सिक और प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करें. ये न सिर्फ खतरनाक कैमिकल से मुक्त और सुरक्षित होते हैं बल्कि इन को त्वचा से हटाना भी आसान होता है. एक अन्य विकल्प यह है कि आप अपने लिए घर पर रंग बनाएं, जैसा कि पुराने जमाने में फलों के पाउडर व सब्जियों में हलदी और बेसन जैसी चीजें मिला कर रंग बनाए जाते थे, लेकिन ध्यान रहे, अगर ये तत्त्व अच्छे से बारीक पिसे हुए नहीं होंगे तो ये त्वचा पर रैशेज, लाली और यहां तक कि इरिटेशन का कारण बन सकते हैं.’’

कैमिकल रंगों से बालों को ऐसे बचाएं

अगर त्वचा और बाल रूखे होते हैं तो न सिर्फ इन पर खतरनाक रंगों का असर अधिक होता है बल्कि कैमिकल भीतर तक प्रवेश कर जाता है. होली खेलने से 1 घंटा पहले बालों में तेल लगा कर अच्छे से मसाज करें. तेल आप की त्वचा पर सुरक्षा की एक परत बनाएगा और इस से रंग आसानी से निकल जाएगा. कान के पीछे के हिस्से, उंगलियों के बीच के हिस्से और अपने नाखूनों के पास की त्वचा को बिलकुल नजरअंदाज न करें.

होली खेलने से पहले नारियल अथवा औलिव औयल के साथ सिर में अच्छे से मसाज करने से न सिर्फ खतरनाक रंगों के असर से बचाव होता है बल्कि गरमी और धूलमिट्टी से भी बचाव होता है. यह तेज रंगों को आप के सिर की त्वचा पर चिपकने नहीं देता है.

अपनी त्वचा को एग्जिमा, डर्मेटाइस और अन्य समस्याओें से बचाने के लिए हाथों और पैरों को ढकने वाले कपड़े पहने.

आखिर क्यों शापित है पालीवालों के 84 गांव

अतीत की गौरवगाथा व स्वर्णिम इतिहास को अपने आंचल में समेटे पश्चिमी राजस्थान में थार के
विशाल रेगिस्तान में अंतिम छोर में बसा है जैसलमेर. इस के चारों ओर पहले कभी पालीवाल ब्राह्मणों के अत्यंत ही कलात्मक 84 गांव बसे हुए थे. वे सभी गांव एक ही रात में ऐसे उजड़ गए, जोकि आज तक फिर बसने का नाम ही नहीं ले रहे हैं. पालीवालों के 84 गांव अब कलात्मक खंडहरों के रूप में ही नजर आते हैं.
इन 84 गांवों में पालीवालों के 20 हजार घर थे, जिन में करीब एक लाख एक हजार 340 परिवार रहते थे. पालीवालों के वीरान पड़े इन गांवों में भवन निर्माण कला सचमुच दर्शनीय हैं.

ये मकान वैदिक कालीन आर्यों तथा प्राचीन यूनानी कला के उत्कृष्ट नमूने हैं. आज से करीब 200 साल पहले जैसलमेर रियासत के तत्कालीन दीवान सालिम सिंह की हठधर्मिता व क्रूरता के साथसाथ धनलिप्सा के लिए मशहूर इस दीवान के हाथों इन पूरे के पूरे गांवों को एक ही रात में उजाड़ कर पालीवालों को यहां से जाने के लिए मजबूर कर दिया था. उन के जाने के बाद सालिम सिंह ने उन की अपार धन संपदा पर अपना अधिकार जमा लिया था.

बाद में कुछ अन्य जाति के लोगों ने कुछेक गावों में डेरा अवश्य डाला, लेकिन अधिकांश गांव आज भी शापित माने जाते हैं, जो वीरान व निर्जन अवस्था में हैं. वहां कोई भी बसने को तैयार नहीं है.
उजड़े हुए इन गांवों की विशेषता भी कम रोचक नहीं है. चारों तरफ रेत ही रेत व साल में लगभग 6 महीने यहां चलने वाली रेतीली आंधियों के बावजूद यहां रेत जमा नहीं होती, बल्कि पालीवालों द्वारा बसाए गए जिले के ओला गांव में तो हाथ धोने की रेत तक नजर नहीं आती है, जबकि गांव के चारों ओर रेत के टीले नजर आते हैं.

दरअसल, पालीवालों ने बड़ी ही बुद्धिमत्ता से छोटीछोटी पहाडि़यों के बीच अपने गांव नगर की भांति बसाए थे. इस क्षेत्र में होने वाली मामूली वर्षा का पानी भी सहेज कर रखा जाता था. यहां के बने तालाब भी उस पानी से भरे रहते थे, जो पूरे साल पालीवालों के सूखे कंठों की प्यास बुझाने में के लिए काफी थे. हालांकि यहां के पालीवाल मूलरूप से किसान थे व उन्होंने अपनी खेती के लिए सिंचाई प्रबंध ऐसी विधि से कर रखे थे कि वैज्ञानिक भी उन की क्षमता देख कर हैरान रह जाते हैं.

पालीवाल ब्राह्मणों के घरघर में उन्नत किस्म का पशुधन भी था, जिन में गाएं, ऊंट, बैल व घोड़े भी थे. यहां के गांवों में कलात्मक घुड़शालाएं भी हैं तथा हर घर के बाहर बैलगाड़ी खड़ी करने के लिए अलग से कमरे भी बने हुए हैं. यहां के वीरान गांवों में पीले पत्थरों से बने कलात्मक संगोष्ठी भवन भी देखे जा सकते हैं तो कई छतरियां भी.उन्नत किसान होने के साथसाथ पालीवाल समृद्ध व्यापारी भी थे. ये मुख्यत: अनाज, घी, ऊन व पशुधन की खरीदफरोख्त करते थे. पालीवाल समृद्धशाली तो थे ही, इसलिए अपने आप को लूटपाट से बचाने की भी इन में अनूठी कला थी. गांवों में इन के मकान कतारबद्ध बने हुए हैं.

इन मकानों में पहले मकान से ले कर आखिरी मकान तक एक ही सीध में आरपार आवाज पहुंचाने के लिए गोलाकार छेद (बारी) बने दिखाई देते हैं. यहां के गांवों में ‘खाबा’ तथा ‘कुलधरा’ नामक विशाल व्यापारिक मंडिया भी थीं. पालीवाल विदेशों से भी लेनदेन करते थे. व्यापार के लिए ऊंटों व बैलगाडि़यों को काम में लिया जाता था.ये लोग सिंध, बलूचिस्तान व अफगानिस्तान से व्यापार करते थे. साधन व धनसंपदा संपन्न होने के कारण ही पालीवालों का जीवन ऐश्वर्यपूर्ण था.

रेत के समंदर में पालीवालों के उन्नत गांव, कलात्मक भवन, विशाल तालाब, कीर्ति स्तंभ छतरियां, चौकियां, विशाल मंदिर, कुएं देवलियां, पटियाले, तुलसी चौरे इत्यादि क्या कुछ नहीं है इन के गांवों में. लेकिन अब सब कुछ सूना है व यहां पाकिस्तान से आए कुछ शरणार्थियों ने खाबा के पास अपने मकान जरूर बना लिए हैं, लेकिन मुख्य गांव तो अब भी जनशून्य ही हैं.

जैसलमेर के महारावल मूलराज द्वितीय के दीवान मेहता सालिम सिंह ने अपने अनवरत जुल्मों से भले ही पालीवालों को अपने गांवों से बेदखल कर दिया हो, लेकिन आज जब जैसलमेर के चारों ओर घनी आबादी हो और ऐसे में यह गांव अब भी सूने पड़े हों तो यह कौतूहल का विषय अवश्य बना रहता है.
विश्व के कोनेकोने से स्वर्णनगरी जैसलमेर में आने वाले देशी व विदेशी पर्यटक ये गांव देख कर हैरानी में पड़ जाते हैं.

ब्रिटिश जज सर गोडन सीलीन ने इन गांवों का अवलोकन कर पालीवालों के गांवों की तुलना ग्रीक के खंडहरों से की थी. यहां की मरूभूमि को समृद्ध और वैभवशाली बनाने वाले पालीवालों के यहां से जाने पर जैसलमेर की समृद्धि व श्रीवृद्धि भी यहां से हमेशाहमेशा के लिए चली गई. आधुनिकता के दौर में पता नहीं क्यों आज भी ये 84 गांव मानो शापित से ही लगते हैं?

लेखक- चैतन चौहान

गन्ने की नई प्रजातियों से लें अधिक उत्पादन

गन्ना उष्ण कटिबंधीय व उपोष्ण देशों में उगाया जाता है. भारत में कपड़ा उद्योग के बाद चीनी उद्योग का दूसरा स्थान है. दुनिया के कुल 114 देशों में चीनी का उत्पादन 2 फसलों गन्ना व चुकंदर के द्वारा किया जाता है. दुनिया के खास गन्ना उत्पादक देश ब्राजील, भारत, क्यूबा, चीन, मैक्सिको व फिलिपींस हैं. गन्ने के रकबे में भारत पहले स्थान पर है, परंतु चीनी उत्पादन में भारत ब्राजील के बाद गन्ने का दूसरा सब से वैश्विक चीनी उत्पादक और दुनिया का खास चीनी उपभोक्ता है.

यह 11.08 मिलियन टन चीनी का उत्पादन करता है. वैश्विक चीनी का लगभग 70 फीसदी गन्ने से मिलता है. भारत का कुल गन्ना खेती रकबा लगभग 5.08 मिलियन हेक्टेयर है और उत्पादन 68 टन प्रति हेक्टेयर की उत्पादकता के साथ 350.02 मिलियन टन है. गन्ने की फसल से 100 टन प्रति हेक्टेयर की पैदावार ली जा सकती है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमें उन्नत प्रजाति, समन्वित पोषक तत्त्व, नवीन विधियों द्वारा बोआई एवं रोग व कीटों के प्रबंधन की जानकारी होनी चाहिए. खेत की तैयारी खेत को तैयार करने के लिए एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से जोत कर 3 बार हैरो से जुताई करें.

देशी हल की 5 से 6 जुताइयां काफी होती हैं. अंतिम जुताई के समय गोबर, कंपोस्ट, प्रेसमड (चीनी मिल से मिलने वाली) का इस्तेमाल जरूर करें और इस को 10-15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला दें. आखिरी जुताई के समय पाटा लगाएं. मिट्टी व आबोहवा गन्ने की खेती के लिए अच्छी जल निकास वाली भारी मिट्टी पसंद की जाती है. हालांकि यह मध्यम और हलकी बनावट वाली मिट्टी पर भी सुनिश्चित सिंचाई के साथ अच्छी तरह से बढ़ती है. 0.5 फीसदी के साथ मिट्टी में 0.6 फीसदी कार्बन और पीएच मान 6.5-7.5 गन्ने की बढ़वार के लिए सब से मुनासिब है. बीज एवं बीजोपचार मिट्टीजनित एवं बीजजनित रोगों से फसल को बचाने के लिए गन्ने के टुकड़ों को नम वायु उपचार 54 डिगरी सैल्सियस तापमान 8 घंटे तक उपचारित करने से पैडी का बोनापन, उकठा आदि नहीं होते हैं.

बोने से पहले फफूंदनाशक दवाओं जैसे एगलाल 1.23 किलोग्राम दवा को 250 लिटर पानी में मिला कर टुकड़ों को घोल में डुबो कर बोते हैं. बोआई का समय

* शरदकालीन बोआई : 15 सितंबर से 31 अक्तूबर तक.

* बसंतकालीन बोआई : 1 फरवरी से 31 मार्च तक.

* विलंब या देर से बोआई : 15 अप्रैल से 31 मई तक.

बोआई के तरीके समतल विधि यह रोपण का सब से सरल व सस्ता तरीका है. आमतौर पर शरदकालीन गन्ने में लाइन से लाइन की दूरी 90 सैंटीमीटर, बसंतकालीन में 75 सैंटीमीटर और ग्रीष्मकालीन गन्ने में 60 सैंटीमीटर रखें. कूंड ट्रैक्टर के द्वारा भी निकाले जा सकते हैं. कूंडों की गहराई 10-15 सैंटीमीटर होनी चाहिए. समतल विधि में गन्ने की बोआई देशी हल अथवा ट्रैक्टरचालित नाली खोलने वाला हल अथवा ट्रैक्टरचालित कटर प्लांटर से बोआई करते हैं.

दोहरी लाइन बोआई विधि में शरदकालीन, बसंतकालीन एवं ग्रीष्मकालीन बोआई में लाइनों की दूरी क्रमश: 90:30:90:60:30:60 और 45:30:45 सैंटीमीटर रखते हैं.

समतल विधि में बोआई के बाद मिट्टी और बोए गए गन्ने के टुकड़ों से नमी की कमी तेजी से होती है और जमाव पर बुरा असर पड़ता है. ट्रैंच विधि से बोआई ट्रैंच विधि में यू आकार की 25 सैंटीमीटर गहरी और 30 सैंटीमीटर चौड़ी खूड़ (ट्रैंच) 90 सैंटीमीटर की दूरी पर ट्रैक्टरचालित ट्रैंचर से खोदी जाती है. इस मशीन द्वारा एक बार में 2 खूड़ (ट्रैंच) बनाई जाती हैं और तीसरी व चौथी ट्रैंच दूसरे चक्कर पर मशीन में लगे गाइडर की मदद से लगे निशानों पर समान दूरी पर बनती है.

ट्रैंचों (खूड़) में गन्ने के टुकड़े खूड़ के बीच में समानांतर अथवा क्रौस डाले जाते हैं. दोहरी जुड़वां लाइन में गन्ना बोआई के लिए दोहरी लाइन प्लांटिंग रिजर द्वारा बीच में 120 सैंटीमीटर चौड़ी बेड बना कर उस के दोनों तरफ 30-30 सैंटीमीटर के अंतराल पर खूड़ निकाले जाते हैं. इस प्रकार 4 जुड़वां खूड़ों के बीच की दूरी 120+30 या 150 सैंटीमीटर होती है.

गन्ने के टुकड़ों की बोआई श्रमिकों द्वारा ट्रैंच की तली में एक तरफ डाल कर की जाती है. सिंचाई ट्रैंचों में की जाती है. गोल गड्ढा विधि गोल गड्ढा विधि में तकरीबन 2,700 गसेल गड्ढे प्रति एकड़ बनाए जाते हैं. गड्ढे 90 सैंटीमीटर व्यास के होते हैं. गड्ढे की आपस की दूरी 150 सैंटीमीटर और लाइन से लाइन की दूरी 180 सैंटीमीटर होती है. किसी ट्रैक्टरचालित गड्ढा मशीन द्वारा गड्ढे बनाए जाते हैं. बोआई से पहले गड्ढों में 5 किलोग्राम गोबर की खाद, 100 ग्राम जिप्सम व 125 ग्राम सुपर फास्फेट भर दिया जाता है. फिर दो आंख वाले 22 बीज टुकड़े डालने चाहिए.

गन्ने के टुकड़ों के ऊपर क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी का छिड़काव 4 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से करने के बाद 5 सैंटीमीटर मोटाई में मिट्टी डाल कर गड्ढा बंद कर दें. पौली बैग नर्सरी नर्सरी के लिए रोगरहित बीज गन्ना लिया जाता है. हाथ से एक आंख के बीज टुकड़े काट कर 0.1 फीसदी कार्बंडाजिम के घोल में 10 मिनट के लिए डुबा लें और फिर छोटेछोटे छिद्र किए गए 12×8 सैंटीमीटर पौली बैग में की जा सकती है. इस विधि से जड़ों का कोई नुकसान नहीं होता है, इसलिए पौध भी बहुत कम लगती है. पौली बैग विधि में पौधे में अधिक टिलर निकलते हैं. पौली बैग से निकले अंकुर वाटरलौगिंग रकबे में भी लगाए जा सकते हैं. बड चिप तकनीक इस विधि में बड चिप की मदद से नर्सरी लगाई जाती है और फिर पौधे को सावधानी से खेत में लगा दिया जाता है. बड चिपिंग मशीन की मदद से गन्ने की आंख को गांठ के भाग से बाहर निकाल लें.

एक एकड़ रकबे में बोआई के लिए 6 क्विंटल बड चिप की जरूरत पड़ती है और बाकी गन्ना मिल में पिराई के लिए भेज दिया जाता है. बड चिप का क्लोरोपायरीफास 2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी+कार्बंडाजिम 1 ग्राम लिटर पानी के घोल में 10 मिनट के लिए भिगो कर उपचार कर लें. बराबर मात्रा में मिट्टी रेत और गोबर की सड़ी खाद कंपोस्ट का मिश्रण बना कर छोटेछोटे छिद्रों वाले पौलीथिन बैग या केबिटी ट्रे में भर कर आंख के मुंह के ऊपर की तरफ कर दें और मिट्टी के मिश्रण से ढक दें. फव्वारे से लगातार सिंचाई करते रहें व बिजाई के 15 दिन बाद या 25 दिन बाद 1 फीसदी यूरिया के घोल का छिड़काव करें. यह 6 से 8 हफ्ते बाद खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाती है.

गन्ने और अंत:फसली खेती गन्ने में अंत:फसल जैसे गेहूं, लोबिया, फ्रैंच बीन, काबुली चना, तरबूज, बैगन आदि जैसी फसलों को लगाते हैं. बसंतकालीन गन्ने के साथ मूंग और उड़द की अंत:फसली खेती खासतौर से उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब और हरियाणा में कर के दलहन का लगभग 10 लाख हेक्टेयर के अलावा रकबे को बढ़ाया जा सकता है. दोहरे लाभ के लिए दलहनी फसलों के बोने से जैसे गन्ना+लोबिया व गन्ना+मूंग तरीके द्वारा शुद्ध मुनाफे में बढ़ोतरी की जा सकती है. सिंचाई गन्ना फसल की जल मांग अधिक है. तकरीबन 1400 से 1800 मिलीलिटर है.

गन्ने में 6 से 8 सिंचाइयों की जरूरत पड़ती है. सिंचाई की सुविधा यदि सीमित हो, तो गन्ने की क्रांतिक संवेदनशील दशाओं और गन्ने का जमाव कल्लों का प्रस्फुटन, जल्द बढ़वार और पकने की दशा में सिंचाई जरूर करें. बारिश के मौसम से पहले 10-15 दिन के फासले पर मौसम के अनुसार एवं 1-2 सिंचाई बारिश के बाद करें. गन्ने में पहली सिंचाई 40-50 दिन बाद करनी चाहिए. गन्ने में कल्ले निकलते समय सिंचाई जरूर करें. इस के बाद 15-20 दिन के अंतर से सिंचाई करते रहें.

खाद एवं उर्वरक गन्ने में खाद की मात्रा मिट्टी की जांच के मुताबिक डालनी चाहिए. पोषक तत्त्वों के लिए 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 से 80 किलोग्राम फास्फोरस व 60 किलोग्राम पोटाश की दर से प्रयोग करना चाहिए. फसल में फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की एकतिहाई मात्रा बोआई के समय कूंड़ों में गन्ना बीज के नीचे या बीज कूंड के साथ खोले गए खाली कूंड में डालनी चाहिए. नाइट्रोजन की बची मात्रा 2 बार में सिंचाई सुविधा के मुताबिक बारिश होने से पहले डाल दें. 20-25 किलोग्राम जिंक सल्फेट एवं 20 किलोग्राम गंधक बोते समय इस्तेमाल करना चाहिए. खरपतवार पर नियंत्रण समयसमय पर खरपतवारों के नियंत्रण के लिए निराई करते रहना चाहिए.

सामान्यत: 5 से 6 बार निराईगुड़ाई करना अति आवश्यक है. लाइन से लाइन की गुड़ाई की अपेक्षा पौधे से पौधे की गुड़ाई अधिक लाभकारी पाई गई है. गन्ने की कटाई की विधि जैसे ही हैंड रिप्रफैक्टोमीटर दस्ती आवर्तन मापी का बिंदु 18 तक पहुंचे, गन्ने की कटाई शुरू कर देनी चाहिए. गन्ने की मिठास से भी गन्ने के पकने का पता लगाया जा सकता है. कटाई करने से पहले मेंडें़ समतल कर के गन्ने की कटाई तेज धार वाले औजार से जमीन की सतह से करनी चाहिए. उपज गन्ने की वैज्ञानिक विधि से खेती करने से तकरीबन 70 से 90 टन प्रति हेक्टेयर उपज ली जा सकती है.

लेखक-डा. ऋषिपाल, कीट विज्ञान ] डा. जयप्रकाश कन्नौजिया, पादप रोग विज्ञान ] अजय यादव, शस्य विज्ञा ] डा. रघुवीर सिंह, डा. हिमांशु शर्मा मेरठ प्रौद्योगिक संस्थान

दानरूपी फीस

देश के कई कालेजों में कैपिटेशन फी लेने का चक्कर आज भी चल रहा है. जबतक केंद्रीय परीक्षाओं के आधार पर ही ऐडमीशन देने के नियम सुप्रीम कोर्ट ने लागू नहीं किए थे तब तक तो बहुत से कालेज लाखों की कैपिटेशन फी ले कर ही ऐडमीशन देते थे. अपने लाड़लों को किसी भी तरह डाक्टर, इंजीनियर या एमबीए की डिग्री दिलाने के चक्कर में मांबाप लाखों की कैपिटेशन फी दे भी देते थे.

ये लाड़ले वे होते हैं जो मैरिट लिस्ट में ऊंचे स्थान पर नहीं आ पाए, लेकिन चूंक खासे खातेपीते घरों के थे, सो उन के मांबाप इस खर्च को भविष्य के लिए पूंजी निवेश मान कर देते रहे हैं.

मई 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई थी कि राज्य सरकारों द्वारा कैपिटेशन फी लेने को प्रतिबंधित करने के बाद भी शिक्षा के पूरी तरह व्यवसायीकरण होने की वजह से कैपिटेशन फी अलगअलग नामों से ली जाने लगी है.

मद्रास उच्च न्यायालय ने अब आयकर के मामले में यह कहा है कि यह कैपिटेशन फी न दान है., न डिपौजिट, बल्कि पूरी तरह आय है और संस्थान को इस पर आयकर देना होगा. हाईकोर्ट ने इस मामले में यह आदेश नहीं दिया कि कैपिटेशन फी लौटा दी जानी चाहिए. आयकर विभाग भी लौटाने के मामले में आंख बंद रखे हुए है क्योंकि उसे तो आयकर की चिंता है, पैसे के कानूनी या गैरकानूनी होने की
नहीं.

कैपिटेशन फी दे कर प्रवेश लेना मांबाप के लिए एक आवश्यकता है क्योंकि
सरकारों को मंदिरों को बनवाने की जल्दबाजी है, लोगों का जीवन सुधारने के लिए
मैडिकल या इंजीनियरिंग कालेज खुलवाने की नहीं. शिक्षा संस्थानों ने इस अभाव का पूरा फायदा उठाया है. कुछ संस्थानों ने सहयोगी चैरिटी संस्थाएं बना लीं जहां कैपिटेशन फी दान के रूप में ली जाती और बदले में ऐडमिशन उस ‘धर्मार्थ’ संस्था के प्रबंधकों द्वारा चलाए जाने वाले कालेज में मिल जाता है.

जिस शिक्षा की जड़ में ही बेईमानी और धूर्तता हो, वह कहां और कब सही काम करने का पाठ युवाओं को दे पाएगी. मांबाप के पैसे पर गुलछर्रे उड़ाने वाले बच्चों के समझ में यह आ जाता है कि जीवन बेईमानियों से भरा है. वे शिक्षा को मैरिट का उत्पाद नहीं समझते, एक खरीदी हुई चीज समझते हैं. वैसे तो, यह काम जोरों से प्राइमरी शिक्षा से ही चल रहा है जहां स्टाफ से ट्यूशन पढ़ने वाले बच्चों को स्कूल पास कर देते हैं क्योंकि वे फीस के अतिरिक्त पैसा दे रहे हैं. यानी, पूरे जीवन में बच्चों को बेईमानी का पाठ पढ़ाया जा रहा है, टैस्टबुक्स में छपे शब्द निरर्थक हो गए हैं.

कुल मिलाकर मद्रास उच्च न्यायालय का ‘दानरूपी कैपिटेशन फी’ पर आयकर
लगाने का फैसला उसी तरह का है जैसे सुपारी ले कर हत्यारे की आय पर कर
लेने को सही मानना.

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