Download App

मेरी बेटी की उम्र 11 साल है,चंद महीनों से उस के वक्ष में उभार आने लगा है, क्या इतनी छोटी उम्र में स्तनों का विकास शुरू होना ठीक है?

सवाल
मेरी बेटी की उम्र 11 साल है. चंद महीनों से उस के वक्ष में उभार आने लगा है. मैं जब कभी  उसे नहलाती हूं तो वह शरीर के उस हिस्से में हाथ नहीं रखने देती. कहती है दर्द होता है. क्या यह नौर्मल है या मुझे उसे किसी डाक्टर को दिखाने की जरूरत है? क्या इतनी छोटी उम्र में स्तनों का विकास शुरू होना ठीक है?

जवाब
अधिकतर लड़कियों की देह में तरुणा बनने के परिवर्तन 8 से 13 साल की उम्र में शुरू होते हैं. जैसेजैसे देह में सैक्स हारमोन बनने की हलचल शुरू होती है वैसेवैसे नारीत्व के दैहिक गुण प्रकट होते जाते हैं. वक्ष का आकार बढ़ता है, कामेंद्रियों का विकास होता है, बगलों और नाभि के नीचे बाल उगने लगते हैं, भीतरी जननांग जैसे गर्भाशय के आकार में वृद्धि होती है और साथ ही क्रियात्मक दृष्टि से परिवर्तन भी आते हैं. लड़की रजस्वला हो जाती है.

प्रजनन अंगों में आने वाले इस सयानेपन का अपना एक क्रम होता है. ज्यादातर लड़कियों में इस परिवर्तन का पहला लक्षण स्तन विकास के रूप में दिखाई देता है.

8 से 13 साल की उम्र में शुरू हुई स्तन विकास की प्रक्रिया 5 चरणों में पूरी होती है. सब से पहले स्तनाग्र यानी निपल और उस के आसपास के गुलाबी घेरे एरिओला में खून का दौरा बढ़ता है, फिर इस घेरे का व्यास बढ़ता जाता है और स्तनकली दिखने लगती है. अगले चरण में दोनों के साइज में वृद्धि होती है.

चौथे चरण में निपल और उस के आसपास का घेरा अधिक उन्नत हो कर स्तन से ऊपर उठ जाता है और अंतिम चरण में स्तन के आकार में वृद्धि होती है, जिस से निपल के आसपास का घेरा फिर से स्तन के उठाव पर आ जाता है और सिर्फ निपल ही आगे की तरफ उठा रह जाता है.

जिस समय स्तनकली विकसित होती है, उस समय देह के इस भाग में छूने पर दर्द महसूस होना सामान्य बात है. उस के लिए किसी डाक्टर से कंसल्ट करने की जरूरत नहीं. पर इस अतिरिक्त संवेदनशीलता से निबटने के लिए आप बिटिया को स्पोट्स ब्रा पहनने की सलाह दे सकती हैं.

जाएं तो जाएं कहां-भाग 1: क्या हुआ उन 4 कैदियों के साथ?

वे चारों दिल्ली के तिहाड़ जेल में विचाराधीन कैदी थे. वे दिल्ली में ही पकड़े गए थे. चारों की उम्र 40 से 45 साल के आसपास थी. वे जानते थे कि कुछ समय बाद उन को अपने इलाके के जेलों में भेज दिया जाएगा. पुलिस के मुताबिक, उन्होंने अपराध किए थे. विचाराधीन कैदियों से काम करवाने का कोई कानून नहीं था, लेकिन कानून उस का जिस के हाथ में ताकत. हर बैरक का एक इंचार्ज होता है, जिसे जेल की भाषा में वार्डन कहते हैं. जेल में आते ही कैदियों से उन के बारे में जान लिया जाता है कि वे क्या काम कर सकते हैं. वे चारों बहुत तगड़े नहीं थे. उन से पानी भरवाने या साफसफाई का मेहनत वाला काम नहीं लिया जा सकता था. उन से पूछा गया कि वे क्या काम कर सकते हैं  उन्होंने कुछ नहीं कहा. वे चुप ही रहे.

जेल में 5 सौ लोगों के लिए दोनों वक्त का भोजन, दलिया, चाय बनाना होता है. इस के लिए रसोई में काम करने वालों को सुबह 4 बजे उठना पड़ता है. उन्हें एक अलग बैरक दे दिया जाता है, जिस में रसोई में काम करने वाले कैदी रहते हैं.

लेकिन रसोई में काम करने का एक फायदा यह भी था कि उन्हें 100-150 आदमियों के बीच जानवरों की तरह रहने की जरूरत नहीं थी, न ही बारबार की मारपिटाई, बेइज्जती की चिंता थी और न ही गुंडेटाइप लोगों की सेवा करने की जरूरत पड़ती थी. जेल के वार्ड सुबह 7 बजे खुलते थे. जिन कैदियों की जेल में सत्ता थी, पकड़ थी, वे अपना चायनाश्ता ले कर रसोई में आ जाते और रसोइए बड़ीबड़ी भट्ठियों में किनारे की थोड़ी सी जगह उन के लिए छोड़ देते. रसोई में काम करने वाले पुराने कैदी रिहा हो चुके थे या दूसरे जेलों में ट्रांसफर हो चुके थे. शुरू में आए कैदियों को जेल के दूसरे कैदी और जेल प्रशासन उसी नजर से देखता है, जो केस पुलिस ने बताया है. धीरेधीरे उन के तौरतरीकों से समझ आता है कि वे आदतन अपराधी नहीं हैं. अपराध या तो गुस्से में आ कर जोश में हुआ है या पुलिस ने झूठे केस में फंसाया है.

शुरूशुरू में उन चारों पर बड़ी सख्ती होती. उन पर निगरानी रखी जाती. उन के साथ वही होता, जो नए कैदी के साथ होता है. गालीगलौज, मारपीट. बड़े अपराधियों द्वारा अपने निजी काम कराना. बैरक की साफसफाई से ले कर झाड़ू लगाना. सीनियर कैदियों के कपड़े धोना. उन की हर तरह से सेवा करना. जब बैरक नंबर एक का कैदी अनुपम परेशान हो गया, तो उस ने हिम्मत कर के हवलदार से कहा, ‘‘साहब, ऐसे तो मैं मर जाऊंगा. आप कुछ कीजिए.’’ अनुपम ने जिस हवलदार से कहा, वह उसी की जाति का था. हवलदार ने कहा, ‘‘मैं क्या कर सकता हूं  यह जेल है, घर नहीं. यहां तो यह सब होता ही है.’’ अनुपम की बारबार की गुजारिश से पसीज कर हवलदार ने कहा, ‘‘रसोई का काम ले लो. काम ज्यादा है, लेकिन बाकी मुसीबतों से बच जाओगे.’’

यह सुनते ही अनुपम मान गया. बैरक नंबर 2 में बंद बिशनलाल को खाना बनाना आता था. जब यह बात जेलर को पता चली, तो उसे बुला कर पूछा, ‘‘रसोई में काम कर सकते हो ’’

बिशनलाल ने तुरंत हां कर दी. बैरक नंबर 3 में चांद मोहम्मद और राकेश थे. वे भी दबंग कैदियों की सेवा से थक चुके थे. उन्होंने गार्ड मोहम्मद आसिफ से अपनी तकलीफ कही. गार्ड मोहम्मद आसिफ ने कहा, ‘‘मैं साहब से बात कर के रसोईघर में रखवा सकता हूं, लेकिन कोई शिकायत नहीं मिलनी चाहिए. मन लगा कर ईमानदारी से काम करना.’’ उन दोनों ने हामी भर दी. गार्ड मोहम्मद आसिफ ने जेलर से उन को रसोईघर में काम पर रखने के लिए कहा. जेलर ने यह कह कर मना कर दिया कि ये तो संगीन और बड़े अपराध में आते हैं. अगर कहीं उन्होंने भागने की कोशिश की या कुछ और गड़बड़ की, तो जेल प्रशासन मुसीबत में आ जाएगा.

गार्ड मोहम्मद आसिफ ने कहा कि ये 2 साल से बंद हैं. इन का कोई भी नहीं है. इतने समय में आदमी की पहचान हो जाती है. दोनों बहुत ही सीधे हैं.

जेलर ने अपनी बात रखते हुए कहा, ‘‘लेकिन, विचाराधीन कैदियों को काम देना नियम के खिलाफ है.’’

इस पर गार्ड मोहम्मद आसिफ ने कहा, ‘‘साहब, यहां कौन से काम नियम से होते हैं. जेल में गांजा बिकता है. बड़े विचाराधीन कैदियों के पास मोबाइल फोन हैं. हथियार हैं. उन का खानापीना अलग बनता है. वे सब कौन से नियम का पालन करते हैं या हम उन से करवा सकते हैं

‘‘उन की मुलाकात जब चाहे तब होती है. वे जब तक चाहें, तब तक मिल सकते हैं. उन के पास बाहर से हफ्ता आता है. हम उन पर रोक नहीं लगा सकते.

‘‘और फिर, इन का तो अपराध भी साबित नहीं हुआ है. पहली बार जेल आए हैं. न ही इन की कोई जमानत कराने वाला है, न ही कोई मिलने आने वाला. अनुपम और बिशनलाल भी तो बड़े अपराध में बंद हैं. वे भी रसोई में काम कर रहे हैं.’’

जेलर ने कुछ देर सोचा, फिर कहा, ‘‘ठीक है.’’

इस तरह उन चारों को रसोई वाला छोटा सा बैरक मिल गया, जो उन के लिए सुकून की जगह थी.

वे सुबह 4 बजे उठते. जेल का गार्ड आ कर उन के बैरक का ताला खोलता, उन्हें बाहर निकालता. वे रसोई में चाय और दलिया बनाना शुरू कर देते.

इस बीच जेल के गार्डों के लिए और साथ में खुद के लिए अच्छी चाय बनाते. गार्ड अपनी ड्यूटी करते और वे चारों मिलजुल कर जेल में बंद 5 सौ कैदियों के लिए जेलछाप चाय बनाते.

जेलछाप चाय मतलब बहुत बड़े बरतन में 5 सौ लोगों के लिए चाय, जिस में शक्कर भी कम, चायपत्ती भी कम और दूध भी कम.

कैदियों के हिस्से की शक्कर, चायपत्ती, दूध वगैरह जेलर, सुपरिंटैंडैंट व उपजेलर के घर पहुंचते थे. इस का कोई विरोध नहीं करता था. यह नियम सा बन गया था. एक लिटर वाले 5 पैकेट दूध में 500 लोगों की चाय. बाकी 45 पैकेट दूध जेल प्रशासन के पास जाता.

जेल में सामग्री सप्लाई करने वाले ठेकेदार और जेल सुपरिंटैंडैंट, जेलर के बीच सब तय हो जाता था. अंदर जो आता, वही कैदियों के हिस्से का माना जाता.

साथ काम करतेकरते उन चारों में अपनापन हुआ, जुड़ाव हुआ. उन्होंने एकदूसरे के बारे में पूछना शुरू किया.

उन चारों प्रमुख रसोइयों के अलावा उन के जूनियर भी थे, जो रहते थे मुख्य बैरकों में, लेकिन सुबह 7 बजे बैरक खुलने के बाद वे मुख्य रसोइयों द्वारा बनाई गई चाय व दलिया 2 बड़ेबड़े बरतनों में ले कर सब को बांटते थे.

दोपहर के 12 बजे तक खाना बंटने के बाद वे चारों अपने छोटे से बैरक में आ कर अपने लिए बनाया स्वादिष्ठ भोजन करते. इस बीच गिनती के साथ सभी बैरक बंद हो जाते.

वे चारों भी अपने बैरक में आराम करते. फिर शाम की चाय बनाते. फिर

6 बजे तक खाना बनता और बंटता. बांटने वाले अलग थे. चारों अपने लिए बनाया खाना ले कर अपने बैरक में आते.

शाम 6 से साढ़े 6 बजे के बीच फिर से सभी कैदियों की गिनती होती. गार्ड बाहर से ताला लगाते और कैदी बैरक के अंदर खाना खाते, टैलीविजन देखते और सेवा करने वाले गरीब, कमजोर हाथपैर दबाते हुए अमीर, ताकतवर कैदियों से बदले में बीड़ीतंबाकू इनाम के तौर पर पाते, फिर सो जाते.

टैलीविजन में सिर्फ दूरदर्शन आता, बाकी के चैनल नहीं. कुछ बैरकों में रंगीन टैलीविजन, कुछ में ब्लैक ऐंड ह्वाइट. जो सब के लिए खाना बनाते, उन्हें इतना हक खुद ब खुद मिला हुआ था कि वे अपने लिए अच्छी रोटी और तड़का लगी दाल और अच्छी सब्जी बना सकते थे.

ताकतवर कैदी भी अपने लिए ये साधन जुटा लेते. बाकियों का भोजन ऐसा था कि दाल में दाल के दाने ढूंढ़ने से भी नहीं मिलते थे. रोटियां कच्ची या जली हुई होतीं.

वे चारों रसोई के बैरक में थे. सिपाही बैरक का ताला लगा कर अपनी ड्यूटी पर तैनात था. शाम के 7 बज चुके थे. चारों ने मिल कर खाना खाया.

चांद मोहम्मद ने बिशनलाल से पूछा, ‘‘तुम्हारी जमानत का क्या हुआ ’’

‘‘खारिज हो गई है…’’ बिशनलाल ने उदास लहजे में कहा.

अनुपम ने बीच में कहा, ‘‘जुर्म भी तो बड़ा है.’’

‘‘मैं बेकुसूर हूं,’’  बिशनलाल ने विरोध में कहा.

‘‘हर कुसूरवार जेल में आ कर यही कहता है, ‘‘अनुपम ने ताना कसा.

‘‘तो तुम मानते हो कि तुम ने गुनाह किया है ’’ राकेश ने अनुपम से पूछा.

‘‘मेरे कहने या न कहने से क्या होता है. एक बार पुलिस ने जो केस बना दिया, लग गया वही ठप्पा. मैं बेकुसूर हूं, इस बात को कौन मानेगा ’’

‘‘तुम फंसे कैसे इस चक्कर में  लगता तो नहीं…’’ राकेश ने पूछा.

‘‘सुनने में दिलचस्प है न मेरी कहानी ’’ अनुपम ने कहा.

‘‘सुनाओ, एकदूसरे की सुन कर मन भी हलका होगा और समय भी कटेगा,’’ चांद मोहम्मद ने कहा.

अनुपम उन्हें अपनी आपबीती सुनाते हुए समय को पीछे की ओर खींच

ले गया.

‘‘मैं कश्मीरी ब्राह्मण हूं. जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर में अपने परिवार के साथ मैं भी जन्नत की सी जिंदगी जी रहा था. खूबसूरत बीवी. 2 प्यारी बेटियां. बैंक की नौकरी. अपना घर.

‘‘मेरी बीवी मनोरमा घरेलू औरत थी. बेटियां पलक और अलका 10वीं और 11वीं जमात में पढ़ रही थीं. जिंदगी बड़े आराम से गुजर रही थी.

‘‘आतंकवाद ने फिर से दस्तक दी. हमें लगा कि आतंक का एक दौर गुजर चुका है. कई बेकुसूर मारे जा चुके थे. आतंकवादी मारे जा चुके थे या सरैंडर कर चुके थे. चारों ओर सैनिकों के कदमों की आवाजें सुनाई देती थीं, लेकिन हम जैसे मिडिल क्लास लोग सुकून महसूस कर रहे थे.

‘‘हमें लगा कि सेना है, तो हम महफूज हैं, लेकिन कुदरत का नियम हर जगह लागू होता है. हर कमजोर भोजन होता है ताकतवर का.

‘‘रात का वक्त था. अचानक घर की पिछली दीवार से किसी के कूदने की आवाज सुनाई दी. मैं पीछे देखने के लिए गया. सामने का नजारा देख कर मेरी रूह कांप गई.

‘‘मैं दरवाजा बंद करने के लिए तेजी से मुड़ा कि आवाज आई, ‘अपनी जगह से हिले तो गोली चला दूंगा.’

‘‘वे 3 थे. तीनों की एके 47 मेरी तरफ ही तनी हुई थी.

‘‘मेरे हलक से बड़ी मुश्किल से आवाज निकली, ‘क्या…चाहिए ’

‘‘उन में से एक ने कहा, ‘हमें आज रात आसरा चाहिए. कल सुबह हम चले जाएंगे. लेकिन अगर तुम ने कोई हरकत की, तो गोली मार दूंगा.’

‘‘इस के बाद वे मुझे धकेलते हुए मेरे ही घर के अंदर ले गए और वहां जा कर एक आतंकवादी ने कहा, ‘कौनकौन हैं घर में  सब सामने आओ.’

‘‘मेरी पत्नी समझदार थी. उस ने दोनों बेटियों को दूसरे कमरे में अलमारी के पीछे छिपा दिया.

‘‘पत्नी सामने आई. उस ने कहा, ‘हम दोनों ही हैं. बेटियां अपने मामा के घर गई हुई हैं.’

‘‘उन्होंने घर की तलाशी ली. इस के बाद वे निश्चिंत हुए. उन में से एक ने कहा, ‘हमें भूख लगी है. खाना चाहिए.’

‘‘पत्नी ने डरते हुए कहा, ‘अभी बनाती हूं.’

‘‘पत्नी खाना बनाने लगी. वे चारों टैलीविजन देखने लगे. मुझे उन्होंने अपने बीच बिठा लिया और एक ने कहा, ‘डरो मत. हम सुबह चले जाएंगे. पर तुम कोई बेवकूफी मत करना, नहीं तो…’

‘‘मैं समझ गया था उन की धमकी. उन के पास शराब की बोतल थी. उन्होंने मुझे गिलास लाने का इशारा किया.

‘‘मैं रसोईघर में गया. उन में से एक अपनी एके 47 के साथ मेरे पीछेपीछे आया.

‘‘मैं रसोईघर से कांच के 3 गिलास लाया. तब तक खाना बन चुका था. मेरी पत्नी ने उन्हें खाना परोसा. वे खाना खाते रहे, शराब पीते रहे. खाना खाने के बाद उन्होंने बाकी शराब भी खत्म की.

‘‘उन में से एक ने कहा, ‘हमें औरत चाहिए.’ ‘‘यह सुन कर मैं सकते में था और मेरी पत्नी दहशत में. ‘‘एक आतंकवादी ने मुझे कुरसी पर जबरदस्ती बिठा कर अपनी एके 47 मेरे सिर पर लगा दी. दूसरे ने मेरी पत्नी से कहा, ‘हम बहुत दिनों से भटक रहे हैं. कल सुबह चले जाएंगे. अपनी और अपने पति की सलामती चाहती हो, तो हमें अपनी मनमानी करने दो. आवाज निकली, तो समझो कि तुम दोनों की लाशें बिछीं.’ ‘‘बाकी 2 मेरी पत्नी के साथ बारीबारी से बलात्कार करते रहे. ‘‘जब दोनों मनमानी कर चुके, तो तीसरा मेरी पत्नी के पास पहुंचा. पहले ने मुझ पर एके 47 तान दी. रात के 12 बजे से 4 बजे तक वे बारीबारी से मेरी पत्नी के साथ बलात्कार करते रहे और मैं सिर झुकाए बैठा रहा.

‘‘हमें चिंता अपनी बेटियों की थी. विरोध करने पर हमारे साथ कुछ होता, तो  दोनों बाहर आ जातीं. ‘‘सुबह के 4 बजे वे निकल गए. हमें हमारे ही घर में लाश की तरह बना कर. बस तसल्ली थी तो इतनी कि बेटियों की आबरू बची रही.

‘‘सुबह के 8 बजे थे. टैलीविजन पर खबर आई कि सुबह 5 बजे सेना ने मुठभेड़ में 2 आतंकी मार गिराए. तीसरा पकड़ा गया. उस आतंकी ने बताया कि वे रात में एक घर में पनाह लिए हुए थे.

‘‘खबर सुन कर पत्नी ने घबरा कर कहा, ‘मैं बेटियों को ले कर अपने भाई के घर जा रही हूं. यहां कभी भी पुलिस आ सकती है. आप तुरंत किसी वकील के पास जाइए, नहीं तो आतंकियों को पनाह देने के जुर्म में पता नहीं हमें क्याक्या भुगतना पड़े ’

‘‘पत्नी रोते हुए बच्चों को ले कर घर से निकल गई. मैं वकील के घर पहुंचा. ‘‘वकील ने गुस्से में कहा, ‘अपने साथ क्या हमें भी मरवाओगे  यहां कोई नहीं सुनेगा. तुम दिल्ली जा कर किसी वकील से मिलो.’

‘‘उस ने मुझे फौरन घर से बाहर कर दिया. मैं छिपतेछिपाते दिल्ली पहुंचा, पर गिरफ्तार कर लिया गया.

‘‘मैं जितनी बार खुद को बेकुसूर कहता, उतनी ही बार मुझ पर कानून की थर्ड डिगरी चलती. मैं ने पुलिस के दिए कागजों पर दस्तखत कर दिए. तब से  यहां 2 साल हो गए.’’

– क्रमश:

जाएं तो जाएं कहां-भाग 3: क्या कैदी जेल से बाहर आ पाएं?

अनुपम, बिशनलाल, राकेश और चांद मोहम्मद जेल में बंद थे. अपना दुखदर्द बांटने के लिए वे अपनी आपबीती सुनाने लगे. इसी बीच जेल में अजीब सा माहौल हो गया और पुलिस ने कई कैदियों को पीट डाला. वे चारों ही पिटाई की चर्चा करने लगे.

‘‘बेकुसूरों की भी पिटाई कर दी,’’ राकेश ने कहा.

‘‘यहां भी जंगलराज ही तो है,’’ बिशनलाल बोला.

‘‘मुझे तो लगा कि हमारी भी…’’ चांद मोहम्मद ने बात अधूरी छोड़ दी.

‘‘हमारी क्यों? हम ने तो कभी अपना सिर नहीं उठाया. उन के हर अच्छेबुरे समय में साथ दिया है,’’ अनुपम ने कहा.

‘‘गेहूं के साथ घुन भी पिसता है,’’ बिशनलाल बोला.

‘‘हां, हो भी सकता था. हम क्या कर सकते हैं? उन की कैद में?हैं. गुलाम हैं उन के,’’ चांद मोहम्मद ने कहा.

‘‘चांद मोहम्मद, कैद में तो सभी हैं. तुम अपनी कहो,’’ राकेश बोला.

‘‘क्या कहूं…’’ चांद मोहम्मद ने कहा, ‘‘जब मैं बाहर था तो सोचता था कि मेरे साथ जो हुआ, वह इसलिए हुआ क्योंकि मैं मुसलिम हूं. लेकिन, तुम लोगों को सुन कर लगा कि सभी का एक सा हाल है. ज्यादा सोचना भी ठीक नहीं, वरना फायदा उठाते हैं धर्म के ठेकेदार.’’

‘‘तो तुम यह कहना चाहते हो कि तुम भी बेकुसूर हो?’’ राकेश ने कहा.

‘‘नहीं, मैं बेकुसूर नहीं हूं, तो कुसूरवार भी नहीं हूं,’’ कह कर चांद मोहम्मद चुप हो गया.

‘‘साफसाफ कहो, तुम क्या कहना चाहते हो?’’ अनुपम ने पूछा.

चांद मोहम्मद को वह जमाना याद आ गया, जब वह शेरोशायरी किया करता था. प्यारमुहब्बत भरी गजलें लिखा करता था. फिर उस की शादी उसी लड़की से हो गई, जिसे वह बेहद प्यार करता था.

पत्नी पेट से थी. चांद मोहम्मद एक जलसे में गया हुआ था. लौट कर वह वापस आया, तो पूरी बस्ती जल कर राख हो चुकी थी. हर तरफ घायलों की कराहें, जले हुए घर, लाशों के ढेर लगे हुए थे. उस की पत्नी मर चुकी थी. उस के पेट में त्रिशूल घुसा हुआ था.

चारों ओर पुलिस की गाडि़यों के सायरन, अस्पताल, राहत कैंप, मीडिया की रिपोर्टिंग का नजारा था.

धर्म के ठेकेदारों के तीखे बयान. राजनीतिबाजों ने अपनी सियासत तेज कर दी थी. मसजिद में धर्मगुरु खून का बदला खून से लेने की बात कर रहे थे कि सच्चे मुसलिम हो तो उठो और जिहाद करो.

चांद मोहम्मद सोच रहा था, ‘क्या यह हमारा वतन नहीं है? क्यों हम लोगों को पाकिस्तान भेजने की बात कही जाती है? क्यों हमें गद्दार कहा जाता है? कुछ लोगों की गलती की सजा पूरी कौम को क्यों दी जाती है? क्यों बेकुसूरों को ही सूली पर चढ़ना पड़ता है हर बार?’

चांद मोहम्मद ने उन सब को बताया, ‘‘मौलवी ने हमें भड़काते हुए कहा, ‘कौम की खिदमत करो. जन्नत नसीब होगी. सच्चे मुसलिम बनो.’

‘‘और मैं सरहद पार चला गया. ट्रेनिंग से जब मैं वापस आया, तो मुझ से कहा गया कि तुम्हारा टारगेट है हिंदू नेता की हत्या कर के गोधरा का बदला लेना.

‘‘मैं इस के लिए तैयार भी हो गया. जो त्रिशूल मेरी पत्नी के पेट में घोंपा गया?था, वह मुझ में भी तब तक चुभा रहेगा, जब तक कि मैं उस त्रिशूल वाले नेता की हत्या नहीं कर देता. मेरे साथ 2 और जिहादी थे. मैं, नुसरत बेगम, जो सौफ्टवेयर इंजीनियर थी.

‘‘नुसरत बेगम 30 साल की एक खूबसूरत औरत थी. किसी हिंदू लड़के से इश्क कर बैठी थी. लड़के ने धोखा दे दिया था, इसलिए वह पक्की जिहादी बन चुकी थी. हर हिंदू लड़के में उसे अपना बेवफा प्रेमी दिखता था.

‘‘दूसरा, असलम. उस का पूरा परिवार फसाद में मारा गया था. वह खून के बदले खून चाहता था. हम तीनों कौम के रहनुमा अकबर खान से मिलने वाले थे. अकबर खान की विशाल हवेली के एक गुप्त कमरे में हमें ठहराया गया था.

‘‘रात के 2 बजे अचानक मेरी नींद खुली. किसी के हंसीठहाके की आवाज सुनाई दी. रात के 2 बजे कौन हो सकता है अकबर अली की हवेली में?

‘‘मैं आवाज का पीछा करते हुए गुप्त कमरे से बाहर निकला. वहां बड़े से हाल में अकबर अली के साथ एक और शख्स बैठा हुआ था. शराबकबाब का दौर चल रहा था.

‘‘हंसीठहाकों के बीच अकबर खान की आवाज सुनाई दी, ‘इस बार तुम ने हमारे कुछ ज्यादा ही लोग मार दिए.’

‘‘दूसरी आवाज आई, ‘अगली बार तुम हिसाब बराबर कर लेना.’

‘‘दूसरी आवाज वाला आदमी अब मुझे साफ दिखाई दिया. मैं चौंक गया. यह तो वही त्रिशूलधारी नेता था.

‘‘अकबर खान ने कहा, ‘हां, बलि के 3 बकरे मिले हैं. कल तुम्हारी सभा है. तुम बुलेटप्रूफ जैकेट पहने रखना. मारे जाएंगे सभा में आए लोग.’

‘‘वह त्रिशूलधारी नेता बोला, ‘और तुम्हारे आतंकी?’

‘‘‘उन्हें पुलिस मार गिराएगी.’

‘‘‘चलो, तब तो हमें राजनीति को चमकाने का खूब मौका मिलेगा. चुनाव आ रहे हैं.

‘‘‘तुम ने हमें गोधरा दिया था, तभी तो हमारे लोगों ने वोट दिया था हमें.’

‘‘‘तुम ने किया तो हम ने किया.’

‘‘‘राजनीति इसी तरह चलती है.’

‘‘यह सुन कर मैं सकते में था. मैं तेजी से अपने 2 साथियों के पास पहुंचा. उन्हें जगा कर सारी बात बताई. उन के चेहरे पर भी तनाव छा गया.

‘‘असलम ने गुस्से में कहा, ‘मतलब, हमें इस्तेमाल किया जा रहा?है. बलि के बकरे हैं हम?’

‘‘मैं ने कहा, ‘हम जैसे लोग हमेशा मजहब के नाम पर गुमराह होते रहे?हैं. सब आपस में मिले हुए हैं.’

‘‘नुसरत ने गुस्से में कहा, ‘गोली तो इन के सीने में उतारनी चाहिए.’

‘‘असलम बोला, ‘अच्छा है कि हम यहां से भाग निकलें.’

‘‘और हम तीनों वहां से भागने की तैयारी में लग गए. हमें?क्या पता था कि जिस गुप्त कमरे में हमें ठहराया गया है, वहां पर गुप्त कैमरे भी लगे हुए हैं. हमारी बातें उन तक पहुंच रही थीं.

‘‘हम शहर से 40 किलोमीटर दूर सुनसान रास्ते में थे कि हमारी गाड़ी को चारों तरफ से पुलिस ने घेर लिया. असलम और नुसरत के पास पिस्तौल थी. उन दोनों ने गाड़ी से निकल कर भागते हुए पुलिस पर फायरिंग की. जवाबी कार्यवाही में पुलिस ने भी गोली चलाई. वे दोनों मारे गए. मैं ने हाथ

ऊपर कर दिए. मुझे आतंकवादी होने के आरोप में अंदर कर दिया.’’

बैरक में फिर सन्नाटा पसर गया और वे चारों थकेहारे से जमीन पर बिछे अपने कंबलों में निढाल हो कर लेट गए.

आज बिशनलाल और अनुपम की पेशी थी. वे दोनों जल्दीजल्दी खाना खा कर मुख्य द्वार के पास बने कमरे की

ओर चल दिए. पेशी की तारीख पिछली पेशी में ही कोर्ट के बाबू द्वारा पता चल जाती थी. जिन के वकील होते थे, वे बता देते थे.

जेल में पेशी पर जाने वालों की रोज लिस्ट बना कर उन्हें आवाज दी जाती थी. जेल के बाहर पुलिस की गाड़ी खड़ी रहती थी.

पेशी पर जाने वाले सारे विचाराधीन कैदियों को एक कमरे में जमा करने के बाद जेल के मुख्य द्वार से एकएक कर के बाहर निकाला जाता और गेट से सटी पुलिस गाड़ी में पुलिस के पहरे में अंदर बिठा दिया जाता.

सारे कैदियों के बैठने के बाद पुलिस की गाड़ी का दरवाजा बंद कर ताला

लगा दिया जाता. फिर पिछले केबिन में 4 हथियारबंद पुलिस वाले बैठते और अदालत की ओर गाड़ी चल पड़ती.

अदालत के पास बने एक छोटे, पर मजबूत कमरे में सारे विचाराधीन कैदी जानवरों की तरह ठूंस दिए जाते. जिस की पेशी की पुकार लगती, उसे 2 पुलिस वाले दोनों हाथों में हथकड़ी लगा कर अदालत में पेश करते.

बिशनलाल और अनुपम जैसे अपराधियों को 4 पुलिस वाले बंदूक के साए में ले जाते. अदालत भी सरकार की होती है. काम सरकारी तरीके से चलता है. मुलजिम को कठघरे में खड़ा किया जाता. पुलिस वाले भी मुलजिम के कठघरे के पास ही खड़े रहते. जिन का वकील होता, वह मुलजिम की तरफ से बोलता. जिस का नहीं होता, उसे सरकार की तरफ से वकील दिया जाता. जो न होने के बराबर ही होता था.

अनुपम और बिशनलाल को जमानत नहीं दी गई. सरकारी वकील ने भरपूर विरोध जताया. उन्हें नक्सलवादी, आतंकवादी बता कर यह कहा कि इन से समाज को खतरा है. जमानत मिलने पर इन के भाग जाने का डर है.

ऐसे भी बहुत से विचाराधीन कैदी थे, जिन्हें जमानत मिली तो उन के पास जमानतदार नहीं थे. कुछ ऐसे भी विचाराधीन कैदी थे, जिन की पेशी हुई ही नहीं, क्योंकि उन के गवाह नहीं आए थे. गवाह आते तो सरकारी वकील छुट्टी पर होता. कभी मजिस्ट्रेट लंबी छुट्टी पर होता. फिर सरकारी छुट्टी, जांच अधिकारी, डाक्टर का हाजिर न होना. इस तरह छोटेछोटे केसों में लोग सालों पडे़ रहते जेल के अंदर.

शाम होते ही अगली तारीख ले कर मुलजिमों को पुलिस की गाड़ी में बिठा कर वापस जेल भेज दिया जाता. जितने गए थे, उन की गिनती के साथ उन्हें अंदर लिया जाता. फिर वही रूटीन. भोजन लो. अपने बैरक में जाओ और ‘टनटनटन’ की आवाजों के साथ बैरक में सभी की गिनती होती और शाम 7 बजे से सुबह 7 बजे तक सब अपने बैरकों में कैद.

अनुपम को हैरानी हुई कि उस के नाम किसी ने चिट्ठी लिखी है. जेल में आने वाली चिट्ठियों को जेलर के पास से हो कर गुजरना पड़ता था. उसे पहले खोल कर पढ़ा जाता, फिर चिट्ठी दी जाती. चिट्ठी खुली थी. जेल के गार्ड ने चिट्ठी ला कर अनुपम को दी.

अनुपम ने चिट्ठी खोल कर पढ़ी:

‘प्रिय पतिदेव,

‘चरण स्पर्श,

‘पता चला है कि आप आतंकवाद के आरोप में दिल्ली जेल में हैं. सो, चिट्ठी लिखने का सौभाग्य मिला. मैं ठीक हूं. दोनों बेटियां साथ में?हैं. हम इस समय जम्मू शरणार्थी शिविर में हैं. कुछ समय बाद ही कश्मीर में आतंकवादियों ने फिर से पैर पसार लिए थे. उन का खुला आदेश?था कि हिंदू घाटी छोड़ दें, वरना मारे जाएंगे.

‘जब हिंदुओं की दिनदहाड़े हत्याएं होने लगीं, तो सभी हिंदू मौका मिलते ही अपना घर छोड़ कर भाग गए. आसपड़ोस के मुसलिम परिवारों ने कहा भी कि आप लोग मत जाइए. लेकिन बंदूक के सामने किस का जोर चलता?है. बाद में उन्होंने ही कहा कि अभी आप लोग चले जाइए. माहौल ठीक होते ही आ जाना.

‘काफी समय बीत गया, लेकिन कोई भी जाने को तैयार नहीं है. राहत केंद्रों से ही लोग दिल्ली जैसे शहरों की तरफ बढ़ने लगे हैं, रोजगार की तलाश में. नए मकान की तलाश में.

‘मैं जम्मू में ही रह कर दूसरों के घरों में बरतनझाड़ू का काम कर के जैसेतैसे दोनों बेटियों की खातिर जी रही हूं. आप से मिलने दिल्ली आना नहीं हो पा रहा है.

‘मैं ने एक वकील से बात की है. वह आप का केस लड़ने को तैयार है. वह भी कश्मीरी पंडित?है. हमारे दर्द को समझता है. बिना पैसे के इनसानियत के नाम पर वह केस लड़ने को राजी है. हम जल्दी मिलेंगे.

‘आप के इंतजार में.

‘आप की मनोरमा.’

चिट्ठी पढ़ कर अनुपम की आंखों में आंसू आ गए. खुशी के आंसू. आंसू अपनों के मिलने के.

चारों कैदी रसोई वाले बैरक में बैठे थे. अनुपम ने बाकी तीनों को बताया. वे खुश हो गए.

‘‘किसी ने ठीक ही कहा है कि एक दरवाजा बंद होता है, तो दूसरा खुल जाता है,’’ अनुपम ने कहा.

‘‘हां, और किसी के लिए सारे दरवाजे बंद कर देता है. किसीकिसी की जिंदगी में उजाला होता ही नहीं है,’’ बिशनलाल ने कहा. जमानत खारिज होने से वह उदास था.

‘‘हम तो भटके हुए राही हैं. राजनीति के शिकार. हम जाएं तो जाएं कहां? हम जैसों का न कोई देश है, न घर,’’ चांद मोहम्मद ने कहा.

‘‘आप लोग अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मारते हैं,’’ राकेश ने कहा.

‘‘हां, तुम ठीक कहते हो. बलि के बकरे हैं हम. कटने के ही काम आते हैं…’’ चांद मोहम्मद ने उदास लहजे में कहा, ‘‘हमारे अपने ही लोग हमारे दुश्मन हैं, तो…’’

माहौल फिर बोझिल हो गया. चारों लेट कर नींद के आने का इंतजार करने लगे.

‘‘यहां पर कितनी गंदगी है. जेल प्रशासन भी साफसफाई का बिलकुल खयाल नहीं रखता,’’ अनुपम ने कहा.

‘‘यही आदमी बाहर की दुनिया में भी कहता है. गंदगी खुद करता है और कुसूर सरकार को देता है. बाहर भी आबादी जरूरत से ज्यादा है और अंदर भी. हमें इस का ध्यान खुद रखना होगा,’’ चांद मोहम्मद ने कहा.

‘‘सब को ध्यान रखना चाहिए. हम अकेले क्या कर सकते हैं?’’ राकेश ने कहा.

‘‘हम यह चाहते हैं कि पानगुटका खा कर थूकें हम और सफाई सरकार करे. शौचालय की गंदगी के लिए भी हम सरकार को दोष देंगे. अंदरबाहर सब जगह एक सा हाल है,’’ बिशनलाल ने कहा.

‘‘अफसरमुलाजिम सिर्फ घूस खाएं, मुनाफा कमाएं, हमें इस्तेमाल करें और हमारे हिस्से में आए सिर्फ मेहतरी,’’ अनुपम ने मुंह बनाते हुए कहा.

‘‘खैर छोड़ो… हां भाई राकेश, तुम सुनाओ. इतना बड़ा केस तो है नहीं तुम्हारा, फिर तुम्हारी जमानत क्यों नहीं हो पा रही है?’’ चांद मोहम्मद ने पूछा.

‘‘जमानत के लिए वकील चाहिए. जमानत मंजूर होने के बाद जमानतदार चाहिए. उस सब के लिए पैसा चाहिए. पैसा है नहीं मेरे पास.

‘‘फिर बाहर जा कर हमें करना क्या है? बेरोजगारी से कौन लड़ेगा? पैसे कहां से आएंगे? फिर समाज की हंसी भी बरदाश्त करनी पड़ेगी. घर वालों को लाख दफा मना किया था, लेकिन माने नहीं. खुद भी भुगत रहे हैं और हमें भी भुगतवा रहे हैं,’’ राकेश ने कहा.

‘‘हुआ क्या था?’’ अनुपम ने पूछा.

‘‘नौकरी मिली नहीं. न रिश्वत देने के लिए पैसे थे और न ही कोई सरकारी कोटा. घर के लोगों की सारी उम्मीदें मुझ से थीं. मैं यूपीएससी की तैयारी के लिए दिल्ली गया, लेकिन कुछ हो न सका.

‘‘एक मुसलिम लड़की के प्यार में दीवाना हुआ, तो उस के घर वालों ने फतवा जारी कर दिया. पढ़ाईलिखाई एक तरफ रह गई. मेरी जान के लाले पड़ गए. शादी के लिए मंदिर तक पहुंच गए. ऐन वक्त पर लड़की के परिवार वाले वहां आ गए.

‘‘लड़की अपने परिवार का विरोध न कर सकी. मुझे मारापीटा गया. पुलिस को घूस खिला कर 4 दिन तक थाने में बंद रख कर थर्ड डिगरी दी गई.

‘‘जब मैं बाहर आया, तो दोस्तों से पता चला कि प्रेमिका की शादी दुबई में जा कर करवा दी गई. मैं घर पहुंचा तो पिता के सपने चकनाचूर करने का मुझे कुसूरवार करार दिया गया.

‘‘रोजरोज के तानों से तंग आ कर मैं काम की तलाश में मुंबई चला आया. कुछ दिन भटकने के बाद मैं आटोरिकशा चलाने लगा.

‘‘कुछ दिन बीते थे कि हिंदीमराठी झगड़ा शुरू हो गया. उत्तरभारतीयों खासकर बिहारियों के आटोरिकशे जला दिए गए. तोड़फोड़ की गई. मराठी नेता ने मुंबई छोड़ो अभियान छेड़ दिया. उन के अभियान में मैं भी फंस गया. मारपीट कर मुझे पटना जाने वाली ट्रेन में ठूंस दिया गया.

‘‘घर आया तो मातापिता को लगा कि लड़के की शादी कर दी जाए. मैं ने लाख समझाया कि अभी मुझे कुछ कर लेने दो, कुछ बन जाने दो.

‘‘पिताजी ने गुस्से से कहा, ‘तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता. तुम कुछ नहीं बन सकते. शादी करो और हमें जिम्मेदारी से मुक्त करो.’

‘‘पिताजी चाहते थे कि हमारी जाति में शादी हो जाए. दहेज में जो रकम मिलेगी, उस से मेरे लिए छोटीमोटी दुकान खोल देंगे.

‘‘शादी की रात पत्नी ने कहा, ‘मैं किसी और से प्यार करती हूं. मुझे हाथ मत लगाना.’

‘‘मेरे सारे अरमान ठंडे पड़ गए. मैं ने पूछा भी कि फिर मुझ से शादी क्यों की? मेरी जिंदगी क्यों बरबाद की? पता नहीं, क्या हुआ, शादी की पहली ही रात दुलहन ने जहर खा लिया.

‘‘अस्पताल में दुलहन तो बच गई, लेकिन उस के कहने पर दहेज के लिए सताने और उसे खुदकुशी के लिए उकसाने का केस बना. पूरा परिवार अंदर. बूढ़े मातापिता, जवान बहन.

‘‘बड़ी मुश्किल से एकएक कर के मातापिता और बहन की जमानत हुई. चाचा और मामा ने दलालों को पैसा दे कर जमानतदार दिलवाए.

‘‘मैं हर तरफ से टूट चुका था. उस पर पिताजी का गुस्सा. एक बार मिलने आए तो उन्होंने कहा कि हम कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहे. हम यह शहर छोड़ कर जा रहे हैं. जब हमारे पास पैसे होंगे तो जमानत करवा लेंगे, अब सिर्फ पेशी में आएंगे.

‘‘पिताजी परिवार को ले कर बनारस चले गए. चाचा बनारस में नौकरी करते थे. उन्होंने पिताजी को एक प्राइवेट कंपनी में चौकीदार की नौकरी दिलवा दी. 4-5 हजार रुपए महीने की तनख्वाह में घर चलाएं या केस लड़ने के लिए पैसा दें, मेरी जमानत कराएं. बहन की शादी करना भी जरूरी है. पेशी में मां और बहन से कोर्ट में मुलाकात हुई.

‘‘मां ने रोते हुए कहा, ‘हम तुम्हारी जमानत कराने की कोशिश में लगे हैं. यहां से तो जमानत अर्जी खारिज हो गई. हाईकोर्ट से तुम्हारी जमानत हो जाएगी. लेकिन अभी पैसों की तंगी है.’

‘‘मैं ने मां से कहा, ‘क्या करूंगा बाहर आ कर मैं? अंदर ही ठीक हूं. मेरी जमानत की कोशिश मत करना.’’’ माहौल में फिर उमस सी भर आई.

बिशनलाल ने कहा, ‘‘न तो जमीन अपनी, न ही जंगल अपना. पुलिस कारोबारी, माओवादी सब दुश्मन अपने. जाएं तो जाएं कहां?’’

चांद मोहम्मद ने अपने इर्दगिर्द भिनभिना रहे मच्छर को मारते हुए कहा, ‘‘वतन हो कर बेवतन. मजहब के बकरे हैं हम. जाएं तो जाएं कहां?’’

मच्छरों से बचने के लिए अनुपम ने जगहजगह से फटी हुई चादर पैर से सिर तक ओढ़ते हुए कहा, ‘‘अपने ही देश में शरणार्थी, अपने ही घर में आतंकवादियों का शिकार और अपनी ही पुलिस से आतंकवाद का ठप्पा. मर क्यों नहीं जाते हम?’’

राकेश ने कहा, ‘‘कल होली है. मिठाई बांटने आएंगी कई समाजसेवी संस्थाएं.’’

बिशनलाल ने खड़े हो कर कहा, ‘‘भाईचारा जिंदाबाद…’’ और फौरन लेट गया.

राकेश ने हाथ को माइक बनाते हुए कहा, ‘‘सुनिए, सन्नाटे को चीरती हुई सनसनी. एक बिहारी की दर्दभरी दास्तां. प्रेमिका का निकाह दुबई में. पत्नी भाग गई प्रेमिका के संग. दहेज का लोभी, बीवी को मारने की कोशिश करने

वाला यह खतरनाक शख्स राकेश कुमार जेल में…’’

इस के बाद राकेश हंसने लगा. साथ ही, यह सुन कर बाकी तीनों भी हंसने लगे. हंसतहंसते चारों की आंखों में

आंसू आ गए और फिर चारों एकसाथ अपनेअपने आंसुओं को छिपाने के लिए मुंह को अपने हाथों से बंद कर लेते, लेकिन कमबख्त आंसू छलकछलक कर उन के दर्द का ब्योरा दे ही देते.

बोनसाई-भाग 3: सुमित्रा अपनी बात को रखते हुए क्या कहीं थी?

रात में खाने की टेबल पर स्नेहा ने खुशी से उद्घोषणा की, ‘मां, कल मेरी पहली सैलरी आ जाएगी. सुगंधा और सुमेधा की सफलता की खुशी में हम एक शानदार पार्टी करेंगे.’ दोनों छोटी बहनों ने करतल ध्वनि से इस उद्घोषणा का स्वागत किया. पर मेरा चेहरा कुछ सोच कर लटक गया था.

‘आप यही सोच कर उदास हो रही हैं न मां कि जब हमारे अपने ही हमारी खुशियों में शरीक नहीं होंगे तो फिर ऐसे सैलिब्रेशन का क्या फायदा? आप चिंता मत कीजिए, मां. हम सब को निमंत्रित करेंगे. अब यह उन का निर्णय है कि वे हमारी खुशियों में सम्मिलित होते हैं या नहीं? वैसे, हम तीनों ने जो लिस्ट बनाई है उस में खुशीखुशी शामिल होने वाले हमारे शुभचिंतकों की संख्या उन नकारात्मक सोच वाले रिश्तेदारों से कहीं ज्यादा है. क्या हम उन सभी को निराश कर दें?’

‘नहींनहीं, तुम लोग जैसा ठीक समझो, करो.’ मैं आशंकित हृदय से ही सही पर उन के साथ तैयारियों में लग गई थी. सविता भाभी को सूचना मिली तो वे मिठाई का डब्बा लिए दौड़ी चली आई थीं.

‘मैं तो जाने कब से इस शुभ घड़ी की प्रतीक्षा कर रही थी. देखो बहना, अब तो स्नेहा अपने पांवों पर खड़ी हो गई है. क्या अब मैं उसे अपनी बहू बनाने का प्रस्ताव रख सकती हूं? आप निश्चिंत रहिए, उस की जिम्मेदारियां हमारी जिम्मेदारियां होगीं.’

आश्चर्य और खुशी के अतिरेक से मेरी बोलती बंद हो गई थी. झूठ नहीं कहूंगी, उन के सुशिक्षित सुपुत्र राहुल से जब भी मुलाकात होती थी जेहन में उसे अपना दामाद बनाने का खयाल बरबस आ ही जाता था. पर अपनी और उन की हैसियत का मुकाबला होंठों पर ताला लगा देता था. आज बिना मांगे ही मनचाही मुराद पूरी हो रही थी. सच है, मेहनत का फल अच्छा ही होता है. आननफानन सगाई के कार्ड छपवा कर सभी को निमंत्रण भेजे गए.

जैसेजैसे उत्सव का दिन समीप आ रहा था, दिल की धड़कनें बेकाबू होती जा रही थीं. मेरे अपने इस खुशी में शरीक होंगे या नहीं, यह सोच कर मन आशंकित था. पर बच्चों की खुशी के लिए मैं अपने सभी संशय, पूर्वाग्रह एक ओर रख तैयारियों में लग गई थी.

सगाई के एक दिन पहले अचानक दोनों भैयाभाभियों को दरवाजे पर देख मैं खुशी से पगला उठी थी. ‘भला इतनी खुशी के मौके पर हम कैसे दूर रह सकते थे’ कहते हुए उन्होंने एकएक कर हम चारों को सीने से लगा लिया था. आंसुओं की लड़ी के मध्य सारे गिलेशिकवे बह गए थे. इस के बाद तो पीहर, ससुराल दोनों ओर से रिश्तेदारों के आने का जो सिलसिला आरंभ हुआ तो अंत समय तक चलता रहा. मेरे हर्ष का पारावार न था.

‘मेरे दिमाग में अपनी सुगंधा के लिए भी एक बहुत अच्छा रिश्ता है. बात चलाऊं?’ लड्डू मुंह में खिसकाते हुए बूआ सास मुझ से बोलीं. मेरी नजरें अनायास ही स्नेहा और सुगंधा की ओर उठ गई थीं. दोनों की बेचैन निगाहें मुझ ही पर टिकी थीं. मैं उन की मनोस्थिति भलीभांति समझ रही थी. पर बूआजी अपने ही गरूर में मगरूर थीं. ‘लड़के वाले मेरी पहचान के हैं. मना नहीं करेंगे. समझ लो, मेरी बदौलत सुगंधा का समय चमकने वाला है.’

‘बूआजी, समय बारिश का पानी है और परिश्रम कुएं का जल. बारिश में नहाना आसान तो है लेकिन रोज नहाने के लिए हम बारिश के सहारे तो नहीं रह सकते न? माना समय से कभीकभी चीजें आसानी से मिल जाती हैं किंतु हमेशा समय के भरोसे तो नहीं जी सकते न? मेरी नजरों में तो कर्म ही असली चीज है. वैसे भी, सुगंधा अभी यूपीएससी की परीक्षा में बैठना चाहती है और उसी की तैयारी में लगी है. तो फिलहाल तो रिश्ता करना संभव नही हो पाएगा.’ एक पल ठिठकने के बाद मैं ने दृढ़ता से जवाब दिया. इस के साथ ही मैं उठ कर बालकनी में आ गई. दृष्टि अनायास ही सविताजी द्वारा लाए बोनसाई पर टिक गई- ‘कितना फूलफल रहा है यह!’

 

अनायास ही मन खुद को बोनसाई मान तुलना पर उतर आया. छोटा कद, छोटी हैसियत. नहीं. बड़ी सोच, बड़े विचार किसी को बड़ा बनाते हैं. मेरा अनघड़ कमजोर व्यक्तित्व आज तक मुझे झुकने पर मजबूर करता रहा. पर अब और नहीं. अपने व्यक्तित्व और चरित्र को मजबूत बना कर ही मैं अपनी बेटियों का संबल बन सकती हूं.’

आश्चर्य! बोनसाई खिलखिला रहा था. और मेरी बेटियां मेरे कंधों पर लदी मुझे गर्व से निहार रही थीं.

उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ : पर उपदेश कुशल बहुतेरे

“राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने संसद की एक समिति से कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के 12 सदस्यों द्वारा बार-बार आसन के समीप आकर नारे लगाकर और सदन की कार्यवाही बाधित करके कथित रूप से विशेषाधिकार का हनन करने के मामले की जांच करने को कहा है.” संपूर्ण खबर पढ़ने के बाद ऐसा लगता है कि यह बेवजह की कवायद शुरू हो रही है . लाख टके का सवाल है कि अगर विपक्ष विरोध प्रदर्शन भी नहीं करेगा तो फिर किस तरह अपनी भावनाओं को देश के समक्ष कैसे रखेगा.ऐसे में तो एक जांच आयोग सम्मानीय उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ भी बन सकता हैं राजनीति में आने के बाद और भाजपा के संरक्षण में आपके संपूर्ण कार्य व्यवहार को अगर देखा जाए तो कई फैसले और बातें ऐसी हैं जो जांच का विषय हो सकती हैं. आपने भी तो एक आवरण ढक उखा है आपने भी तो मैंने मोदी और भारतीय जनता पार्टी के लिए पद पर रहते हुए मानो आखे बंद कर ली है.

जैसे हाल ही में आपने उच्चतम न्यायालय को लेकर के बयान दिया था जो चर्चा में था, आपने किसानों के संदर्भ में भी जो व्यवहार संसद में किया था और कानून रातों रात पारित कराया गया था उस पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया था और अंततः सरकार की किरकिरी हुई थी , नरेंद्र दामोदरदास मोदी की केंद्रीय सरकार को तीन कानून वापस लेने पड़े थे . 12 सांसदों के व्यवहार की जांच को लेकर के जो खबर देश के सामने है उसके अनुसार नौ सदस्य कांग्रेस के और तीन आम आदमी पार्टी (आप) के हैं.

कांग्रेस सदस्यों में शक्तिसिंह गोहिल, नारणभाई जे राठवा सैयद नासिर हुसैन, कुमार केतकर, इमरान प्रतापगढ़ी, एल हनुमंतैया, फूलो देवी नेताम, जेबी एम हिशाम और रंजीत रंजन हैं. ‘आप’ सदस्यों में संजय सिंह, सुशील कुमार गुप्ता और संदीप कुमार पाठक हैं. राज्यसभा सचिवालय ने 18 फरवरी के बुलेटिन में कहा है , ‘सभापति ने (सांसदों) द्वारा प्रदर्शित घोर नियम विरुद्ध आचरण से उत्पन्न विशेषाधिकार के कथित उल्लंघन के एक सवाल का उल्लेख किया है, इसमें राज्यसभा के नियमों और शिष्टाचार का उल्लंघन करते हुए बार-बार सदन में आसन के समीप आना, नारे लगाना और लगातार तथा जानबूझ कर परिषद की कार्यवाही में बाधा डालना, सभापति को बैठकों को बार-बार स्थगित करने के लिए बाध्य करना शामिल है.’

जिन सदस्यों की जांच करने को कहा गया है, उनमें नौ कांग्रेस के और तीन आप के हैं। कांग्रेस सदस्यों में शक्तिसिंह गोहिल, नारणभाई जे राठवा, सैयद नासिर हुसैन, कुमार केतकर, इमरान प्रतापगढ़ी, एल हनुमंतैया, फूलो देवी नेताम, जेबी एम हिशाम और रंजीत रंजन हैं.

 अलोकतांत्रिक रास्ते और रंग

दुनिया भर में चर्चित हो चुके गौतम अडानी पर लगातार विपक्ष सरकार को घेरने में लगा हुआ था ,इस को लेकर संसद के दोनों सदनों में लगातार और जम कर हंगामा हुआ था . सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोपों का सिलसिला चलता रहा. कांग्रेस के तीन राज्यसभा सदस्यों ने अडाणी समूह के खिलाफ ‘हिंडनबर्ग रिसर्च’ द्वारा लगाए गए आरोपों से जुड़े मामले पर चर्चा की मांग बीते दिनों देश में हिंडनबर्ग की रिपोर्ट करते हुए कार्यस्थगन के नोटिस दिए थे. भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद ऐसा लगता है कि भारत देश एक दूसरे रास्ते पर चल पड़ा है जो संविधान से और मर्यादाओं से इतर है. यही कारण है कि अब यह आवाज उठे लगी है कि यह अलोकतांत्रिक रास्ते पर चलने वाली सरकार है और उसके चेहरे इस ख्वाब में है कि हम तो सनातन काल तक सत्ता में रहेंगे मगर यह भूल जाते हैं कि इस देश की जनता में लोकतांत्रिक रंग बिखरे हुए हैं.

साजिद से रिश्ते की खबर पर भड़की बिग बॉस 16 कंटेस्टेंट सौंदर्या शर्मा, कहा- पुलिस कारवाई करें

सौदर्यां शर्मा इन दिनों अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर चर्चा में बनी हुई हैं. बिग बॉस 16 में सौदर्यां का रिश्ता गौतम विज के साथ बा हुआ था, लेकिन गौतम के जाने के बाद से सौदर्यां का नाम साजिद खान के साथ जुड़ने लगा था.

बता दें कि दोनों कि रिलेशन की खबर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है, हालांकि इस बात को कबूलने के लिए दोनों में से कोई भी तैयार नहीं है. हर जगह इस बात को फैलाई जा रही है कि सौंदर्या और साजिद एक-दूसरे को डेट कर रहे हैं.

हालांकि एक्ट्रेस ने साजिद खान को डेट करने की खबर को गलत बताया है, साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह परेशान करने वाली बात है, इस पर मुंबई पुलिस को एक्शन लेना चाहिए. यह बहुत ही ज्यादा परेशान करने वाली बात है.

बता दें कि बीते दिनों सौदर्या और साजिद की खबर आई थी जिसमें उन दोनों को डेट करने की बात बताई जा रही थी, सौदर्यां ने कहा कि मैं हमेशा उन्हें दोस्त बड़े भाई और एक गुरू के रूप में देखती आ रही हूं लेकिन पता नहीं क्यों लोग इस तरह कि बात कर रहे हैं.

बता दें कि साजिद खान ने अभी तक इस पर कोई बयान नहीं दिया है लेकिन ये साफ है कि सौदर्यां और साजिद का कोई रिलेशन नहीं है.

कनाडा की नागरिकता छोड़ना चाहते हैं अक्षय कुमार, कहा- भारत मेरा सब कुछ है

अक्षय कुमार की फिल्म सेल्फी आज रिलीज होने वाली है, इस फिल्म के ट्रेलर को देखने के बाद ऐसा लग रहा है कि यह फिल्म लोगों को खूब पसंद आने वाली है. इस फिल्म में अक्षय कुमार के साथ इमरा हाशमी भी नजर आने वाले हैं.

इन सबके बाद से अक्षय कुमार ने एक नया इंटरव्यू दिया है और बताया है कि भारत ही उनके लिए सबकुछ है, बता दें कि अक्षय कुमार अक्सर कानाडा कि नागरिकता को लेकर ट्रोल होते हैं लेकिन इस बार वह इस विषय पर खुलकर बात करते नजर आएं हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Akshay Kumar (@akshaykumar)

एक चैनल को इंटरव्यू के दौरान अक्षय कुमार ने बताया है कि उनके लिए भारत ही सबकुछ है, वह इस देश से काफी ज्यादा प्यार करते हैं. जो कुछ उन्होंने यहां से पाया है, वह सब भारत से ही पाया है, अगर उनको मिले इसे वापस करने का तो वह जरुर करेंगे.

मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे वापस इसे लौटाने का मौका मिला , एक समय मेरी फिल्में नहीं चल रही थी तो मैं अपने दोस्त से रिक्वेस्ट करके कानाडा गया , वहां जाकर मैंने काम करना शुरू कर दिया, लेकिन किस्मत से दोनों फिल्में हिट हो गई तो मेरे दोस्त ने कहा कि वापस इंडिया जाओ. वहां जाकर काम करों और मैं वापस आ गया.

अक्षय कुमार ने ये भी कहा कि वह भूल गए थे कि उनके पास कनाडा का पासपोर्ट भी है, लेकिन अब उन्होंने अपना पासपोर्ट वापस करने के लिए अनुमति दिया है.

बता दें कि फिल्म सेल्फी में वह एक सुपरस्टार का किरदार निभा रहे हैं, जिसमें उन्हें खूब पसंद किया जाएगा. साथ में पुलिस ऑफिसर का किरदार निभा रहे इमरान हाशमी भी शानदार एक्टिंग करते नजर आ रहे हैं.

 

समलैंगिक शादियां, कब होंगी कानूनी

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 13 दिसंबर को समलैंगिक और इंटररैशियल मैरिज को सुरक्षा देने वाले कानून पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. इस हस्ताक्षर के बाद 1996 का मैरिज एक्ट निरस्त हो गया जो एक पुरुष और एक महिला के बीच विवाह को परिभाषित करता था.

हालांकि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में ओबेर्गफेल बनाम होजेस के फैसले में देशभर में समलैंगिक विवाह को वैध कर दिया था लेकिन जून में अदालत के डौब्स बनाम जैक्सन के फैसले ने संघीय स्तर पर गर्भपात के अधिकार को पलटते हुए अन्य अधिकारों के लिए संघीय सुरक्षा के बारे में चिंता जताई थी. एक तरफ जहां अमेरिकी संसद ने समलैंगिकों और अलगअलग नस्लों के बीच होने वाली शादियों की हिफाजत के लिए ऐतिहासिक विधेयक पास किया, वहीं इंडोनेशिया की संसद ने नए कानून के जरिए प्रीमैरिटल सैक्स और लिवइन रिलेशनशिप को आपराधिक करार दे दिया है.

इन सब के बीच भारत में समलैंगिक शादियों को मान्यता देने का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर, 2018 को एक अहम फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को अवैध बताने वाली भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को रद्द कर दिया था. तब अदालत ने कहा था कि अब से सहमति से 2 वयस्कों के बीच बने समलैंगिक यौन संबंध अपराध के दायरे से बाहर होंगे. हालांकि, उस फैसले में समलैंगिकों की शादी का जिक्र नहीं था.

समलैंगिक विवाह को मान्यता दिलाने के लिए एलजीबीटी समुदाय का कोर्ट में संघर्ष जारी है. बता दें कि देश की मोदी सरकार समलैंगिक विवाह के पक्ष में नहीं है. दिल्ली हाईकोर्ट में अपने हलफनामे में सरकार द्वारा तर्क दिया गया कि संसद ने देश में विवाह कानूनों को केवल एक पुरुष और एक महिला के मिलन को स्वीकार करने के लिए तैयार किया है. इस में किसी भी हस्तक्षेप से देश में व्यक्तिगत कानूनों के नाजुक संतुलन के साथ तबाही मच जाएगी.

दुनियाभर में करीब 29 देश ऐसे हैं जहां समलैंगिक विवाह को तमाम कानूनी दिक्कतों के बावजूद कोर्ट या कानून में बदलाव कर या फिर जनमत संग्रह कर. मई 2022 के गैलप पोल में हुए सर्वे के मुताबिक 71 फीसदी अमेरिकी समलैंगिक विवाह के समर्थन में थे, पर क्या यह बात भारत के संदर्भ में कही जा सकती है, जबकि यहां की सरकार ऐसे विवाहों तक के खिलाफ हो, सोचने वाली बात है.

निशाने पर आम आदमी

जानेमाने उद्योगपति गौतम अडानी की संपत्ति का आंकलन करना आम जनता के लिए बहुत मुश्किल है क्योंकि यह संख्या इतनी बड़ी है कि आम भारतीय जो 2 डौलर यानी 160 रुपए प्रतिदिन में जीता है, इस रकम का अंदाजा ही नहीं लगा सकता. अडानी एंपायर की बैलेंस शीटें देश के कई राज्यों के वार्षिक लेखेजोखों से बड़ी हैं. अभी तो यही समझिए कि अमेरिका की एक शार्ट सैलिंग इन्वैस्ट कंपनी ने अपने शोध में जैसे ही बताया कि अडानी की संपत्ति सिर्फ भ्रम है, वह अकाउंट बुक्स की हेराफेरी पर टिकी है, दुनियाभर की इन्वैस्टमैंट कंपनियों ने अडानी के शेयरों और बौंडों से हाथ खींचना शुरू कर दिया.

अडानी ग्रुप में पैसा लगाने वालों में से बहुतों को इस बात का एहसास था कि अडानी ग्रुप में कहीं कुछ गलत है पर वे फिर भी मुनाफा कमा रहे थे, इसलिए लगातार निवेश कर रहे थे, पैसे लगा रहे थे. भारत सरकार अकसर नए कौन्ट्रैक्ट अडानी ग्रुप को मनमाने दामों पर भेंट कर रही थी. अडानी के हवाई जहाजों में ही 2014 में नरेंद्र मोदी ने देशभर में प्रचार किया था. निवेशकों को यह भरोसा भी था कि जैसे नरेंद्र मोदी ने बाबरी मसजिद को राममंदिर में बदल डाला, संसद भवन को अपनी मरजी का बनवा लिया, वैसे ही वे गौतम अडानी की कंपनियों में किए गए निवेश को नुकसान नहीं पहुंचने देंगे.

यह बिलकुल अजीब है कि आखिर में अडानी ग्रुप में निवेशकों का भरोसा फिर आ जाए और पता चले कि रिपोर्ट किसी खुन्नस में लिखी गई है. इस बारे में इतना समझना काफी है कि आमतौर पर इन्वैस्टमैंट कंपनियां किसी ऐसी रिपोर्ट पर इतनी जल्दी अपना निवेश नहीं बटोरतीं. अमेरिका की एक शोध एजेंसी हिंडनबर्ग की रिसर्च रिपोर्ट में अवश्य कुछ ऐसा है जिसे वे ज्यादा समझ सकते हैं जिन का अडानी की कंपनियों में निवेश है.

हिंडनबर्ग भी बिना कारण भारत के प्रधानमंत्री के निकट के उद्योगपति के खिलाफ रिपोर्ट यों ही प्रकाशित नहीं करेगी. अब तक विकीलीक्स, पनाया पेपर्स जैसी रिपोर्टों को गलत नहीं साबित किया जा सका है जबकि उन रिपोर्टों में कितने ही देशों के बहुत ही अमीर व प्रभावशाली लोग शामिल थे.

हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने जिन बातों का खुलासा किया है उन का अंदेशा बहुतों को बहुत समय से था पर अर्थजगत तो होता ही लौटरी जैसा है और कोई भी नहीं चाहता कि जो कागजी ढांचा झूठ और फरेब पर बना है, वह टूटे क्योंकि उस में बहुतों को फायदा है, सरकारों को चलाने वालों को भी.

फिर भी यह साबित करता है कि हर अमीर ने न तो केवल सूझबूझ से पैसा कमाया है, न ही कोई नई चीज जनता को दे कर. बहुत से अमीरों का पैसा हेराफेरी का होता है. उस का अंतिम और अगला शिकार वह आम आदमी होता है जो, गौतम अडानी या मुकेश अंबानी को तो छोडि़ए, नगरनिगम के पार्षद और पंचायत अध्यक्ष की पोल भी नहीं खोल सकता है. वह तो सबकुछ भगवान की मरजी ही मानता है. इसीलिए तो धर्म की दुकानें रातदिन चमकती हैं.

उद्धव ठाकरे की अग्नि परीक्षा

बाला साहब ठाकरे द्वारा बनाई गई शिवसेना आज संक्रमण काल से गुजर रही है. महाराष्ट्र की राजनीति में रुचि रखने वाले देश भर के जानकारों के बीच यह चर्चा जोरों पर है कि क्या शिवसेना को भारतीय जनता पार्टी एक “राजनीतिक चक्रव्यूह” के तहत खत्म कर रही है. हम बात कर रहे हैं शिवसेना कि जो महाराष्ट्र में भाजपा के लिए बड़े भाई की भूमिका में हुआ करती थी, जब तलक बाला साहब ने शिवसेना का नेतृत्व किया उसके समक्ष भाजपा हमेशा बौनी रही.

मगर विगत विधानसभा चुनाव में जब उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के साथ खड़े होकर सत्ता की बागडोर संभाल ली मुख्यमंत्री बन गए तो भारतीय जनता पार्टी माने आकाश से जमीन पर गिर गई और उसके बाद शुरू हुआ शिवसेना और उद्धव ठाकरे को खत्म करने का महा अभियान. जिसके तहत यह प्रचारित किया गया कि उद्धव ठाकरे बाला साहब के बताए रास्ते से भटक गई है कांग्रेस से हाथ से हाथ मिला कर के मानौ उद्धव ठाकरे दे बहुत बड़ा अपराध कर लिया हो, यहां यह भी दृष्ट्या है कि भाजपा यह चाहती थी कि मुख्यमंत्री तो हमारा होना चाहिए जिस पर उद्धव ठाकरे ने साफ पीछे हटने से इंकार मना कर दिया और राजनीति की नई बिसात बिछा दी जिससे भारतीय जनता पार्टी तिलमिला गई और केंद्र की ताकत के सहारे यात्रा शुरू हो गई कि उद्धव ठाकरे और शिवसेना को खत्म कर दिया जाए.

आखिरकार आज परिस्थितियां ऐसी विपरीत हो गई है कि शिवसेना का नाम और चुनाव चिन्ह दोनों ही उद्धव ठाकरे के हाथों से निकल गया है अब लाख टके का सवाल यह है कि आने वाले चुनावी महासमर में उद्धव ठाकरे क्या अपना अस्तित्व बचा पाएंगे या फिर राजनीति से हाशिए चले जाएंगे. ——————

उद्धव ठाकरे : अब संघर्ष का रास्ता _________

यह सारा देश देख रहा है कि किस तरह केंद्र सरकार के बुने गए चक्रव्यूह में आज उद्धव ठाकरे फंस गए हैं. अब उनकी अग्निपरीक्षा है कि वह जनता के बीच जाएं और उनका आशीर्वाद लेकर के एक बार फिर मुख्यमंत्री बन कर दिखाएं .

जिस तरह घटनाक्रम घटित हो गए हैं उससे स्पष्ट है कि उद्धव ठाकरे और उनकी शिवसेना का समय अच्छा नहीं चल रहा है और एक षड्यंत्र के तहत उद्धव ठाकरे का नाम मिटाने का प्रयास जारी है . इसी तारतम्य में शिवसेना के लिए चुनाव चिह्न पर निर्वाचन के फैसले के बाद संसद भवन में आबंटित कार्यालय पर भी एकनाथ शिंदे गुट का हो गया है. संसद भवन सचिवालय ने इस कार्यालय को शिंदे गुट को शिवसेना संचालित करने के लिए आबंटित कर दिया है. सदन में शिंदे के चेहरे राहुल शेवाले के पत्र के जवाब में सचिवालय ने यह कार्रवाई की है . अब शिंदे गुट को कार्यालय आवंटित करने का आदेश जारी कर कहा गया है कि संसद भवन का कमरा 128 शिवसेना संसदीय पार्टी को बतौर आबंटित किया जाता है.
सनद रहे कि निर्वाचन आयोग ने शिंदे गुट को असली शिवसेना के रूप में मान्यता दी है . और इस गुट को ही चुनाव चिह्न ‘तीर-धनुष’ भी आबंटित किया है इस मामले में लोकसभा सचिवालय ने स्पष्ट किया कि यह कक्ष शिवसेना के नाम पर आवंटित है और पार्टी इसका प्रयोग कर सकती है.

समझने वाली बात यह है कि शिवसेना की स्थापना बाला साहब ठाकरे ने की थी वह इसके सुप्रीमो थे इसके पश्चात उद्धव ठाकरे सुप्रीमो बने कोई भी राजनीतिक दल और सत्ता अलग-अलग चीजें हैं अगर किसी राजनीतिक दल के अधिकांश विधायक या सांसद बगावत कर दें या दल बदल कर ले तो स्थितियां क्या होंगी इसका बड़ा ही दिलचस्प उदाहरण शिवसेना उद्धव ठाकरे गुड और शिवसेना एकनाथ शिंदे को को लेकर समझा जा सकता है फिलहाल एकनाथ शिंदे गुट को शिवसेना का नाम, चुनाव चिह्न और महाराष्ट्र विधानसभा में स्थित पार्टी कार्यालय पर कब्जा मिल चुका है. एकनाथ शिंदे ने कहा था कि वह मुंबई स्थित शिवसेना भवन और उद्धव ठाकरे गुट की अन्य संपत्तियों पर दावा नहीं करेंगे.

शिंदे ने कहा कि शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न उन्हें योग्यता के आधार पर दिया गया है. बाला साहेब ठाकरे की विचारधारा हमारी संपत्ति है हम दूसरों की संपत्ति पर निगाह नहीं रखते. शिंदे ने कहा कि करीब 76 फीसद निर्वाचित सदस्य हमें समर्थन दे रहे हैं.और हमारे पास नाम और चुनाव चिह्न भी हैं. महाराष्ट्र में जो परिस्थितियां निर्मित हुई हैं वह है जनादेश की आने वाले चुनाव में यह स्पष्ट हो जाएगा कि कौन बाला साहब ठाकरे की विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए अधिकृत होगा .

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें