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सिंदूर विच्छेद: भाग 2- अधीरा पर शक करना कितना भारी पड़ा

“हाय दीदी, इतनी जल्दी क्यों छोड़ कर चली गईं,” अनुभा रोतेरोते कह रही थी.

छोटी बहन सुगंधा को तो अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. अपने हाथों से अधीरा को छूछू कर देख रही थी,”दीदी, उठो… देखो हम आ गए. अब तो उठ जाओ. देखो, हम अचानक ही आ गए. वह भी बिना तुम्हारे बुलावे के. तुम हर बार हमें बुलाती थीं ना कि आ जाओ, आ जाओ… दीदी, अब उठ भी जाओ ना, इतनी भी क्या नाराजगी…”

पर अधीरा तो इन सब से दूर जा चुकी थी.

बड़ी सी कोठी के शानदार ड्राइंगरूम  के बीच में अधीरा आज शांत लेटी थी. हमेशा की तरह हंसतीखेलती, मुसकराती, अपने घर को सजातीसंवारती अधीरा अब कभी नहीं दिखेगी किसी को.

मनोज ड्राइंगरूम के दरवाजे पर काफी दूरी पर बैठा था. वहां से उसे अधीरा का चेहरा नहीं दिख रहा था.दोनों बहनों के रूदन से माहौल और भी गमगीन हो गया. पास बैठीं परिवार की अन्य औरतें और अधीरा की सहेलियां भी तेज स्वर में रोने लगीं.

अनुभा अपनी बड़ी बहन के पास बैठ कर सुबक रही थी और आग भरी नजरों से मनोज को ही घूर रही थी.

एक पल को दोनों की नजरें मिल गईं,’ओह, इतनी नफरत, घृणा…’मनोज की नजरें झुक गईं.

‘हां…हां…मैं हूं ही इस लायक. मैं ने कब उसे चैन से रहने दिया.’

उस दूधवाले प्रकरण के बाद कुछ साल सब ठीक रहा. दूधवाले को हटा दिया गया. अब दूध एक बूढ़ा नौकर डेरी से लाने लगा था. अधीरा भी धीरेधीरे सब भूल गई, ऐसा लगता था पर अविश्वास की फांस उस के दिल की गहराइयों तक समा चुकी थी.

6 साल बाद एक रोज सोमवार को-

‘अरे मेरी बात सुनो तो. मैं नहीं आ पाऊंगी. मेरा आ पाना संभव नहीं है,’अधीरा किसी से बात कर रही थी.

मनोज को अंदर आते देख उस ने झट से फोन रख दिया. इतनी बात तो मनोज ने सुन ही ली थी और शक का फन उफान पर था…

‘किस का फोन था?’

‘क…क…किसी का नहीं. मेरी एक सहेली अंजलि का था. घर पर बुला रही थी मुझे. आप के लिए नाश्ता लगा दूं क्या?’

पर बात आईगई नहीं हुई.
उसी दिन मनोज ने चुपचाप कौल डिटेल निकलवा ली. ललित नाम के किसी शख्स ने 2 बार अधीरा को फोन किया था.

‘मेरी जानकारी के बगैर कोई गैरमर्द मेरी बीवी को फोन कर रहा है और मेरी बीवी मुझ से छिपा रही है. जरूर उस का कोई पुराना आशिक होगा,’अब मनोज वही सोच रहा था जो वह सोचना चाहता था.

अगले दिन-

‘कौन है यह ललित और क्यों उस ने तुम्हें फोन किया? कहां बुला रहा था मिलने के लिए?’

सवालों की बौछार सुनते ही अधीरा हड़बड़ा गई. उस का चेहरा सफेद पड़ गया.

‘बोलतीं क्यों नहीं.’

‘वह मेरे साथ कालेज में पढ़ता था .शादी के 10 वर्षों बाद अब उस के घर में बेटी हुई है. उस के नामकरण में बुला रहा था मुझे. उस की पत्नी अंजलि भी मेरी अच्छी दोस्त है पर कई वर्षों से मेरा मिलना नहीं हुआ उन दोनों से,’अधीरा ने स्पष्टीकरण देने की कोशिश की.

पर अविश्वास में अंधा हो कर मनोज यह सब सुननेमानने को तैयार नहीं था.

“अब किस का इंतजार है? मृतदेह को इतने घंटों तक घर में रखना ठीक नहीं हैं,” कोई बोल रहा था.

आवाज सुन कर मनोज अपने वर्तमान में लौट आया…

‘काश, सबकुछ वहीं रुक गया होता. काश, उस ने अपने दिल के साथ कुछ दिमाग की भी सुन ली होती. मगर
ऐसा हो ना सका,’ वह मन ही मन सोच रहा था.

अजीब सा विरोधाभास था. अपने नाम के विपरीत अधीरा में धैर्य कूटकूट कर भरा था. मनोज के बेमतलब के इल्जामों को सुन कर कुछ दिन तो वह खूब रोती थी, कुछ माह उदास रहती थी पर अपने बेटों का मुख देख कर सबकुछ भुला देती थी.

रोने की आवाजें अब तेज हो चली हैं… 1-1 सरकते पल में जैसे सांसों में धुंआ भरता महसूस हो, जैसे नब्ज डूबती ही जा रही हो… हर गुजरता लम्हा उन्हें मिलाने के बजाय दूर करने के लिए तैयार खड़ा था.

दोनों बेटे और अनुभा, सुगंध के पति और उन के बेटे अधीरा का पार्थिव शरीर को उठा कर बांस की बनी सेज पर लिटा रहे थे. बांस पर सूखी पुआल भी पड़ी थी, उस पर सफेद चादर बिछा दी गई.

“उस पर मत लिटाओ मेरी अधीरा को. उस के कोमल बदन पर खरोंचें लग जाएंगी,” मनोज मानो तड़प उठा.

मनोज आगे बढ़ा पर दोनों बेटों की अंगार बनी आंखों को देख कर पांव जमीन पर चिपक कर रह गए. इस के आगे मनोज कुछ कह ही नहीं सका. उस के कदम भी लड़खड़ा कर रहे थे.

भाभी अपराजिता ने उसे थाम लिया,”इन बातों से अब कोई फायदा नहीं भैया. जब तुम जीतेजी उस के मानसम्मान की रक्षा ना कर सके तो अब मृतदेह से मोह दिखाने से क्या फायदा? चुपचाप किसी कोने में खड़े रहो, नहीं तो अपने दोनों बेटों का गुस्सा तो तुम्हें पता ही है…”

 

लेखिका- यामिनी नयन गुप्ता

मैं अपनी परिवार की लाडली हूं , लेकिन अब मेरे भाई कि शादी होने वाली है, मुझे लगता है कि भाभी सबकी लाडली हो जाएगी , क्या करूं बताएं?

सवाल

हम 2 भाईबहन हैं. भाई जो 27 साल का हैमुझे से बड़ा है. उस की जल्दी ही अब शादी होने वाली है. घर में मैं मम्मीपापा की लाड़ली हूं और भाई भी मुझे बहुत प्यार करता है. मेरा पूरा ध्यान रखता है. किसी फ्रैंड के घर देररात पार्टी हो तो मुझे घर वापस लेने पहुंच जाता है. मुझे अपनी कोई बात मनवानी होती है तो भाई को बोलती हूं और वह मम्मीपापा को समझ कर मेरी जिद पूरी कर देता है.

भाई की अब शादी हो रही है तो मुझे लग रहा है कि अब भाई मुझे से दूर हो जाएगा. भाभी घर में सब की लाड़ली हो जाएगी. यह सोच कर बहुत दुख हो रहा हैभावी भाभी से जलन हो रही है. क्या करूं कि मन की उलझन और नकारात्मक भाव खत्म हो जाएं?

जवाब

आप के भाई की शादी होने वाली हैभाभी घर में आने वाली है तो भाभी के आने से आप को कई फायदे मिल सकते हैं. आप भी लड़की हैं. आप की भी शादी होनी है. आप भी किसी की भाभी बनेंगी तो फिर क्या आप अपनी ननद से अच्छा रिश्ता नहीं बनाना चाहेंगी. आप क्यों ऐसा सोच रही हैं कि आने वाली भाभी आप के सारे हक छीन लेगीभाई से आप को दूर कर देगीमायके में आप का रुतबा कम हो जाएगा.

जरा दूर की सोचिएमातापिता के बाद भाईभाभी ही रह जाएंगे जिन से आप का मायका होगा. इसलिए बेकार की बातें दिमाग से निकाल दें. भाभी को अपनी बैस्ट फ्रैंड बनाने की कोशिश कीजिएगा. आप भाभी के साथ सब वे चीजें कर सकती हैं जो अपनी खास सहेली के साथ किया करती हैंजैसे घूमनामूवी देखनानाइटआउट पर जानाशौपिंग करना. भाभी को अपनी बहन की तरह सम?ोंगीतो सारी दिक्कतें दूर हो जाएंगी.

भाभी की प्रौब्लम में उन का साथ देंगी तो भाभी भी आप की हर संभव मदद करने की कोशिश करेंगी. ताली एक हाथ से नहीं बजतीइसलिए सभी को इज्जतप्यार देंगी तो वे भी आप को कई फायदे देंगी.  

बजट या नो बजट

केंद्र सरकार का 2023-24 का बजट एक कंपनी की बैलेंस शीट की तरह है जिस में न कोई संदेश है, न दिशा. उस में केवल लफ्फाजी, बड़ेबड़े वादे, महान कार्य कर डालने की डींगें हैं. संसद में देश का बजट पेश करना एक रस्मी सालाना त्योहार है जो एक तरह से लक्ष्मीपूजन सा है जिस में लक्ष्मी आने की जगह वह पटाखों, निरर्थक उपहारों, मिठाइयों, खाने की पार्टियों, आनेजाने, बेमतलब के सामान में व्यर्थ कर दी जाती है.

जैसे लक्ष्मीपूजन पर उम्मीद की जाती है कि पूजापाठ से कुछ मिलेगा, वैसे ही बजट से राहत मिलने की उम्मीद की जाती है पर सालदरसाल पता चल रहा है कि कुल मिला कर सरकार का टैक्स बढ़ रहा है जबकि जनता की जेब कट रही है.

काम अगर चल रहा है तो इसलिए कि जनता अपने सुख को बचाए रखने के लिए ज्यादा काम करती है. अर्थशास्त्र की थ्योरी के हिसाब से टैक्स न केवल सरकार का खर्च चलाते हैं, वे व्यापार को रैगुलेट भी करते हैं, साथ ही, प्रोड्क्शन, वितरण, इस्तेमाल करने की सही दिशा भी देते हैं. आमतौर पर सरकारें टैक्सों को उन चीजों पर ज्यादा लगाती हैं जो विलासिता की हैं, रोजमर्रा की चीजों पर कम.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नरेंद्र मोदी सरकार को बजट में कुछ नया नहीं सुझाया. इस में भगवा रंग सामने से तो नहीं दिखता पर जो पैसा बांटा गया है उस में भेदभाव दिखता है. स्टौक बाजार की मंदी ने दिखा दिया है कि निर्मला के बजट ने गौतम अडानी की करतूतों से सहमी शेयर मार्केट को कोई राहत नहीं दी. बजट में कहीं ऐसा कुछ नहीं दिखा जिस से लगे कि बजट बनाने वालों ने कभी अडानी समूह को सही दृष्टि से देखा था. जो तथ्य हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट में आए हैं, वे सब पब्लिक डोमैन में पहले से थे और 8 सालों से नरेंद्र मोदी सरकार उन पर आंखें मूंदे थी.

यह लैंडस्लाइड मैनमेड है और इस में अकेले मोदी बजट जिम्मेदार है जो आम नागरिकों को तो बकरे की तरह आयकरों की कसाई के छूरे के नीचे खड़े कर देते हैं पर अडानी, अंबानी के लिए जनता के खून से लाल हुए कपड़े को बिछा कर उन्हें वहां पूरा डांस करने की छूट देते हैं.केंद्र सरकार ने सामान्य चीजों की बिक्री या उत्पादन करने का काम पहले से ही आउटसोर्स कर के जीएसटी काउंसिल को दे रखा है ताकि जो थोड़ाबहुत सवालजवाब का नाटक संसद में हो जाता था, अब वह भी न हो.

इस बार के करों में ऐसी कोई छूट नहीं जो राहत दे, ऐसा कोई पैसा बांटा नहीं गया है जो बेरोजगारों को आस दे. भारत को 2 या 3 नंबर की अर्थव्यवस्था घोषित तो किया जा रहा है पर प्रतिव्यक्ति डौलर की आय में भारत की 2,100 डौलर के आसपास है जबकि लक्जेमबर्ग की 1,35,693 डौलर, सिंगापुर की 72,794 डौलर, चीन की 13,000 डौलर और नेपाल की 4,000 डौलर है. फिर भी निर्मला जी ने दस बार अपना गुणगान किया है कि 140 करोड़ की आबादी का बड़ा देश होने के कारण हम कितने बड़े हैं. हकीकत यह है कि हम बहुत ज्यादा गरीब हैं. मुंबई की धारावी स्लम की कुल कीमत कितनी होगी जो 512 एकड़ यानी 2 करोड़ 30 लाख वर्गफुट जगह में फैला है और जहां प्रतिवर्ग फुट कीमत 15,000 से 20,000 रुपए है. वहां 100-150 वर्गफुट का झोंपड़ 15 से 30 लाख रुपए का है. भारत धारावी है, लक्जेमबर्ग अडानी या अंबानी.

निर्मला जी को अपना ढोल संभल कर पीटना चाहिए. गनीमत यही है कि भाजपाई तो अपनी पार्टी के खिलाफ कुछ बोलते नहीं हैं और विपक्षी काफी कम होने के साथ ईडी से इतने भयभीत हैं कि वे चुप ही रहते हैं और गंद बजट पेपर्स के कारपेट के पीछे छिपी रह जाती है.

यह बजट आम बजटों से न ज्यादा न कम निराशाजनक है. यह किसी जनप्रिय नेता का नहीं है, भावनाओं के रथ पर सवार युद्ध जीते राजा का है और सब को ‘जो जीता वह सिकंदर’ मान कर, सिर झुका कर, हजूर-माईबाप कह कर इसे सहज स्वीकारना होगा. भक्त ‘बजट की जय हो’ का नारा लगाएंगे ही.

पर्यटन: डार्क टूरिज्म लोगों में बढ़ रही बरबादी देखने की तलब

लोग ऐसी जगहों पर जाने के लिए उत्सुक हैं जहां से कोई डार्क हिस्ट्री जुड़ी हो. दरअसल यह जगह एक अलग तरह की क्यूरोसिटी पैदा करती है. बतौर सैलानी, ज्यादातर लोग नदी, पहाड़, , ?, रेगिस्तान, समुद्र, नए देश और शहर वगैरह देखने जाते हैं ताकि रोजमर्रा की जिंदगी से दूर हो कर कुछ दिन ऐसी जगह सुकून से बिताए जा सकें जहां अलग संस्कृति, लोग और खानपान को जाननेसमझ का मौका मिले. पर 8 अरब की इस दुनिया में सब का मिजाज एक सा हो, यह जरूरी नहीं है.

हाल ही में मेरा एक दोस्त मुंबई घूम कर आया और बोला कि वहां उसे सब से ज्यादा धारावी बस्ती ने लुभाया. मुझे समझ नहीं आया कि ‘मायानगरी’ के नाम से मशहूर मुंबई की गंदी ?पड़पट्टी धारावी में ऐसा क्या था जो मेरे दोस्त के दिलोदिमाग में बस गया. यहीं से मुझे ‘डार्क टूरिज्म’ की भनक लगी. अगर आप के लिए भी यह शब्द नया हो तो इस के बारे में एक उदाहरण से समझते हैं.

राजस्थान का एक गांव है कुलधरा. अगर इस के इतिहास और वर्तमान में फर्क महसूस करें तो बीते कल को यह एक अच्छी बसावट वाला गांव था, जो आज पूरी तरह उजड़ चुका है. कहते हैं कि यहां रात को कोई इंसान तो क्या, परिंदा भी पर नहीं मारता है पर क्यों? दरअसल ऐसा माना जाता है कि साल 1300 में पालीवाल ब्राह्मण समाज ने सरस्वती नदी के किनारे जैसलमेर जिले में इस गांव को बसाया था. पर अचानक यह उजाड़ कैसे हो गया? एक मिथक के मुताबिक, यहां की रियासत के दीवान सालम सिंह की गंदी नजर इस गांव की एक खूबसूरत लड़की पर पड़ गई थी. उस ने इस के लिए ब्राह्मणों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था और उस लड़की के घर संदेश भिजवाया था कि अगर अगली पूर्णमासी तक उसे लड़की नहीं मिली तो वह गांव पर हमला कर के लड़की को उठा ले जाएगा. कहा जाता है कि सभी गांव वाले एक मंदिर पर इकट्ठा हुए और पंचायत ने फैसला किया कि कुछ भी हो जाए,

वे अपनी लड़की उस दीवान को नहीं देंगे और अगली शाम कुलधरा गांव कुछ यों वीरान हुआ कि आज तक नहीं बस पाया है. यह भी कहा जाता है कि गांव वालों ने जाते समय गांव को यह श्राप दिया था कि यहां आने वाले दिनों में कोई नहीं रह पाएगा. अब उस श्राप में कितनी सचाई है, यह अपनेआप में रिसर्च की बात है पर दुनियाभर के लोग इस गांव को बतौर सैलानी जरूर देखने आने लगे. अकेला कुलधरा ही नहीं, दुनियाभर में ऐसी बहुत सारी जगहें हैं जो सिर्फ इसलिए देखी जाती हैं जहां कभी कोई ऐसी घटना घट चुकी होती है, जो यकीनन दर्दनाक होती है. लोग उन्हें इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि वहां पर हुई त्रासदी के निशान आज भी मौजूद हैं. उन जगहों पर जा कर लोग युद्ध की विभीषिका, बड़ी आपदा, दुख और नरसंहार की कहानी को देखते हैं. लोगों को ऐसी जगहों पर बने खंडहरों के बीच रहना और उन की तसवीरें लेना पसंद आता है. इसी को ‘डार्क टूरिज्म’ या ‘ब्लैक टूरिज्म’ कहा जाता है.

आज रूस और यूक्रेन युद्ध में तकरीबन उजड़ चुके हैं, खासकर यूक्रेन में मची तबाही ने उसे कई साल पीछे धकेल दिया है. दुनियाभर के देश चाहते हैं कि अब यह युद्ध खत्म हो जाए. अमेरिका भी ऐसा ही कहता है पर अगर ‘डार्क टूरिज्म’ को पसंद करने वालों पर गौर किया जाए तो 30 फीसदी अमेरिकी यूक्रेन जाना चाहते हैं. उन का कहना है कि वे युद्ध के रुकने का इंतजार कर रहे हैं. ऐसे लोगों को वहां का मंजर देखने में खास दिलचस्पी है और वे वहां पैदा हुए नए हालात से सबक लेना चाहते हैं.

पूरी दुनिया में ‘डार्क टूरिज्म’ के नजरिए से कुछ खास जगहें लोगों को खूब पसंद आती हैं. जापान का सुसाइड फौरेस्ट अओकिगहारा, कोलंबिया की लक्जरी जेल पाब्लो एस्कोबार, पोलैंड का यातना स्थल, टैनेसी का मैककेमी मनोर घोस्ट जैसी कुछ जगहें इन में खास हैं. बहुत से लोग तो अब अमेरिका की उस जगह को देखने जाते हैं जहां कभी उस की शान ‘ट्विन टौवर’ बनी थी और जिन्हें एक आतंकी हमले में हवाईजहाज की टक्कर से जमींदोज कर दिया गया था. इस कांड में बहुत से लोग अपनी जान धो बैठे थे. इस के अलावा बहुत से सैलानी ऐसी जगह जाने को उत्सुक रहते हैं जहां कभी युद्ध हुआ था, जैसे वियतनाम में युद्ध अवशेष संग्रहालय और क्यू ची सुरंगें देखने के बाद लोग अलग तरह का रोमांच महसूस करते हैं. इसी तरह रवांडा और कंबोडिया में हुए नरसंहार से जुड़ी जगहें भी लोगों को लुभाती हैं. भारत में लोग अमृतसर के जलियांवाला बाग और अंडमाननिकोबार द्वीपसमूह में सैलुलर जेल, जो ‘काला पानी’ के नाम से भी बदनाम है, को देखने जाते हैं.

ये दोनों जगहें अपनी खूबसूरती के लिए तो कतई पसंद नहीं की जाती हैं. पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग नाम की एक जगह है, जहां पर 13 अप्रैल, 1919 को अंगरेजों ने कई भारतीयों पर गोलियां बरसाई थीं. उस कांड में कई परिवार खत्म हो गए थे. अंगरेजों ने छोटे बच्चों, औरतों, यहां तक कि बूढ़ों को भी नहीं छोड़ा था. उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया था. अंडमाननिकोबार द्वीपसमूह की सैलुलर जेल की बुनियाद 1897 में रखी गई थी और 1906 में यह बन कर तैयार हो गई थी. इस जेल में कुल 698 कोठरियां बनी थीं और हर कोठरी 15×8 फुट की थी. इन कोठरियों में 3 मीटर की ऊंचाई पर रोशनदान बनाए गए थे, ताकि कोई भी कैदी दूसरे कैदी से बात न कर सके. कहते हैं कि इस जेल में न जाने कितने ही भारतीयों को फांसी की सजा दी गई थी. इस के अलावा कई तो दूसरी वजहों से भी मर गए थे,

लेकिन इस का रिकौर्ड कहीं मौजूद नहीं है. इसी वजह से इस जेल को ‘भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय’ कहा जाता है. ‘डार्क टूरिज्म’ के ये ‘काले अध्याय’ देखने में भले ही आंखों को सुकून नहीं देते हैं पर उन का अपना एक इतिहास होता है, जो हमें उस देशकाल को जाननेसमझने का मौका मुहैया कराता है. जापान का परमाणु बम का शिकार हिरोशिमा हो या यूक्रेन का चेरनोबिल परमाणु हादसा, ये सब जगहें बहुत से सैलानियों को अपनी तरफ खींचती हैं.

यही वजह है कि बहुत से लोग इन जगहों को बड़ा संवदेनशील भी मानते हैं और उन्हें इस बात की चिंता रहती है कि कहीं नासमझ की वजह से लोग इन्हें मजाक न बना दें. आजकल सैल्फी लेने और मोबाइल फोन पर रील बनाने का बहुत ज्यादा चलन है, लिहाजा किसी ऐतिहासिक त्रासदी से जुड़ी जगह पर सैलानी ऐसा मसखरापन न करें जो दूसरों को तकलीफ दे. उदाहरण के तौर पर जलियांवाला बाग में बहुत से लोगों ने अपनी शहादत दी थी तो वहां पर अपनेआप को संयत रखें और कुछ ऐसा न करें जो बेहूदा लगे. याद रहे कि ‘डार्क टूरिज्म’ भले ही हमारी काली यादों से जुड़ा है पर यह हमारे इतिहास को सम?ाने में रोशनी का काम करता है. लिहाजा, ऐसी जगहों पर गरिमा बनाए रखें.

क्या प्राइमरी लैवल पर ट्यूशन जरूरी है

प्रख्यात अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने बहुत छोटे बच्चों, जो अभी कक्षा दो, तीन या चार में ही हैं, की स्कूल की पढाई के अलावा प्राइवेट ट्यूशन के विषय में कहा था, ‘भारत में प्राइमरी लैवल पर बच्चों को प्राइवेट ट्यूशन के लिए भेजना शर्मनाक है. चीन, जापान, इंडोनेशिया, अमेरिका या विभिन्न यूरोपीय देशों की यात्रा में मैंने कहीं भी प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर ट्यूशन का प्रचलन नहीं देखा. प्राइवेट ट्यूशन का जारी रहना और लगातार बढ़ना इस बात का सूचक है कि हमारे स्कूल अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं. जब बच्चों को एक अलग ट्यूटर की जरूरत पड़ रही है तो फिर स्कूलों की उपयोगिता क्या है?’

भारत में छोटेबड़े सभी शहरों और अब तो गांवोंकसबों में भी स्कूल की पढ़ाई के बाद बच्चों को प्राइवेट ट्यूटर के पास दोतीन घंटे बिताना आम है. हर मातापिता अपने बच्चे को क्लास में अव्वल देखना चाहते हैं. उनकी महत्त्वाकांक्षाओं और इच्छाओं का नाजायज दबाव बच्चों के ऊपर बढ़ता जा रहा है. दूसरी तरफ टीचर्स, चाहे सरकारी स्कूल के हों, या प्राइवेट स्कूल के, को अतिरिक्त पैसे की हवस ने इतना लालची बना दिया है कि वे स्वयं बच्चों पर ट्यूशन पढ़ने का दबाव बनाते हैं, वरना क्लास में फेल कर देने की धमकी देते हैं. इस तरह वे बच्चों को मानसिक रूप से प्रताड़ित करते रहते हैं. प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाने में पैसा खूब है. जितनी एक बच्चे की महीने की स्कूलफीस होती है, लगभग उतना ही पैसा ट्यूशन पढ़ाने वाला टीचर ले लेता है. विषय भी सारे नहीं पढ़ाता. अधिकतर साइंस, गणित और इंग्लिशके ट्यूशन के लिए ही इनके पास बच्चे जाते हैं.

ट्यूशन का सिलसिला कब शुरू हुआ?

प्राचीन समय में शिक्षा गुरुकुल में दी जाती थी. शस्त्र-शास्त्र के ज्ञान के लिए शिष्यों को लंबे समय तक गुरु के पास गुरुकुल में ही रहना होता था. आमतौर पर शिक्षा राज्य की जिम्मेदारी होती थी और गुरुकुल का खर्च राजा उठाता था. प्राचीन ग्रंथों में गुरु को ईश्वर से बड़ा दर्जा दिया गया है. प्राचीन काल में प्राइवेट टीचर का कोई अस्तित्व नहीं था. भारत ने बहुत लंबे समय तक गुरु-शिष्य परंपरा का निर्वहन किया. आज भी कुछ गुरुकुल और मदरसों का अस्तित्व समाज में है.

पाश्चात्य देशों में स्कूल सिस्टम शुरू हुआ और भारत में अंग्रेजों की हुकूमत के साथ इसका विस्तार हुआ. यहां भी स्कूल खुले. अध्यापकों की भरतियां हुईं. शिक्षा के लिए सिलेबस और समय निर्धारित हुआ. मगर आजादी के बाद के कई दशकों तक भी देश में प्राइवेट ट्यूशन का कोई चलन नहीं था. पढ़ाई में कमजोर बच्चों को स्कूल के बाद रोक कर अलग से पढ़ाया जाता था और उसके लिए स्कूल कुछ एक्स्ट्रा चार्ज नहीं करता था. पहले संयुक्त परिवार में रहने के कारण स्कूल से आने के बाद या परीक्षाओं के वक्त सभी बच्चे दादा, चाचा, बूआ या बड़े भाईबहनों से पढ़ते थे. धीरेधीरे विभिन्न क्षेत्रों में प्रतियोगी परीक्षाओं की शुरुआत के साथ प्राइवेट ट्यूशन का चलन भी शुरू हुआ.

एक पीढ़ी पहले वाली जमात की बात करें तो उस वक्त भी 8वीं या 9वीं कक्षा के बाद ही ट्यूशन की जरूरत पड़ती थी, वह भी उन विषयों में जिन में बच्चा कुछ कमजोर होता था ताकि 10वीं बोर्ड की परीक्षा में पास हो जाए. मगर वर्तमान पीढ़ी तो पहली और दूसरी कक्षा से ही प्राइवेट ट्यूटर के पास जाने लगी है. नन्हेनन्हे बच्चे स्कूल में लंबा समय गुजारने के बाद दोतीन घंटे ट्यूटर के पास भी बिताते हैं. नतीजा, बच्चों के पास खेलनेकूदने का समय ही नहीं बचा है. पूरे वक्त पढ़ाई का बोझ उन पर हावी रहता है. वे बस खाते हैं और किताबों में घुसे रहते हैं. यही वजह है कि छोटेछोटे बच्चे थुलथुल काया लिए मोटेमोटे चश्मे लगाए नजर आते हैं.

मदर्स प्राइड स्कूल का 6 साल का अंकुर 2 बजे स्कूल से लौटता है. उसकी मम्मी स्कूल यूनिफौर्म बदले बिना उसको झटपट खाना खिला कर स्कूल यूनिफौर्म में ही ट्यूशन टीचर के घर भेज देती हैं. दो घंटे वहां पढ़ने व होमवर्क करने के बाद जब अंकुर साढ़े 6 बजे थकामांदा लौटता है तो फिर पड़ोस के बच्चों के साथ खेलने का न तो टाइम बचता है और न ही ताकत. आते ही सो जाता है. 10 बजे उसके पापा रात के खाने के लिए उसको जबरदस्ती उठाते हैं.

अकसर अंकुर ट्यूशन पढ़ने नहीं जाना चाहता. स्कूल से लौट कर वह अपने हमउम्र बच्चों के साथ घर के सामने वाले पार्क में खेलना चाहता है. कभी टीवी पर अपना मनपसंद कार्टून शो देखना चाहता है, कभी वीडियो गेम खेलना चाहता है, लेकिन मम्मी के आगे उसकी एक नहीं चलती है. ट्यूशन क्लास न जाने के लिए अंकुर कभीकभी पेटदर्द का भी बहाना करता है, लेकिन उसकी मम्मी गरम पानी से चूरन की गोली खिला कर उसे ट्यूशन के लिए रवाना कर देती है. ट्यूशन क्लास ले जाने के लिए बाकायदा ईरिकशा लगवा रखा है, जिसमें उसके साथ महल्ले के दोएक बच्चेऔर जाते हैं उसी टीचर से ट्यूशन पढ़ने.

अंकुर अभी कक्षा 2 में है. शहर के अच्छे इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ता है. उसकी स्कूल की फीस 3,000 रुपए महीना है और उसकी मां 4,000 रुपए हर महीने ट्यूशन टीचर को देती है, जो उसका सारा होमवर्क और रिवीजन वर्क करवाती है. अंकुर की मां हर वक़्त उसे समझाती है कि उसे क्लास में फर्स्ट आना है. इसी क्लास में ही नहीं, बल्कि आगे भी हर क्लास में फर्स्ट आना है और बड़े होकर पापा की तरह इंजीनियर बनना है.

नन्हा सा बच्चा जो अभी इंजीनियर होने का मतलब भी नहीं समझता, पढ़ाई के नाम पर उससे उसकी सारी आज़ादी और अधिकार छीन लिए गए हैं. मांबाप की महत्त्वाकांक्षा के लिए वह गुलामों सी जिंदगी जी रहा है. उसके बर्थडे पर मिलने वाले बढ़ियाबढ़िया खिलौने अलमारी में बंद रहते हैं. बैडमिंटन रैकेट और बैट-बौल डब्बे से बाहर नहीं निकलते. खेलने के लिए उसके पास सिर्फ संडे का आधा दिन होता है. बाकी दिन सुबह से शाम तक वह स्कूल यूनिफौर्म में ही रहता है. वह मन लगा कर पढ़े, इस के लिए उसकी मां चौकलेट, चिप्स, मोमोस, पिजा आदि जो वह खाने के लिए मांगता है, सब मंगा कर देती है. यही वजह है कि अंकुर थुलथुल होता जा रहा है. मगर उसकी मां कहती है कि उस का बेटा हैल्दी है. पढ़ाकू बच्चे ऐसे ही होते हैं.

चलताऊ शिक्षण संस्थान

दो पीढ़ी पहले के स्कूल और वहां के मास्टरजी के पढ़ाने का तरीका याद करें. भले टाटपट्टी वाला स्कूल क्यों न हों, मास्टरजी की छड़ी की करामात थी कि 20 तक के पहाड़े बच्चों को जबानी रटे होते थे. विज्ञान और गणित के बड़ेबड़े समीकरण याद होते थे. इतिहास में कौन किसका बेटा और कौन किसका पोता सब मालूम होता था. उस पीढ़ी ने प्राइवेट ट्यूशन को कभी जाना ही नहीं. स्कूल से छूटे तो सीधे खेल के मैदान में नजर आते थे. उन की ज्ञानवृद्धि के लिए स्कूली शिक्षा पर्याप्त थी, जो बहुत अच्छे तरीके से होती थी. मगर आज कुछ पब्लिक स्कूलों को छोड़ दें तो आमतौर पर स्कूलों में शिक्षा देने का काम बड़े ही चलताऊ तरीके से हो रहा है.
गलीगली कुकुरमुत्तों की तरह इंग्लिश स्कूल खुले हुए हैं. उनमें अधिकांश टीचर स्कूल के आसपास की कालोनी से ही आते हैं, जो अनट्रेंड होते हैं और कम सैलरी में पढ़ाने के लिए तैयार हो जाते हैं. अधिकतर प्राइवेट और सरकारी स्कूलों के पास बुनियादी साधन नहीं हैं. स्टूडैंट्स के अनुपात में टीचर बहुत कम हैं. एक शिक्षक पर कई कक्षाओं की जिम्मेदारी होती है. देखा जाता है कि जो टीचर सुबह नर्सरी क्लास लेती है वही हाफटाइम के बाद 9वीं या 10वीं के बच्चों को पढ़ा रही है. कम सैलरी, साधनों की कमी और व्यवस्थागत कमियों की वजह से ऐसे शिक्षक अपने दायित्व के प्रति उदासीन रहते हैं. ऐसे में बच्चों के अभिभावकों के सामने प्राइवेट ट्यूटर रखने के अलावा दूसरा रास्ता नहीं बचता.

ऊपरी कमाई का बड़ा लालच

स्कूलों में टीचर्स बच्चों पर दबाव डालते हैं कि वे उनके घर आकर उनसे ट्यूशन लें. पेरैंटटीचर मीटिंग में वे पेरैंट्स को बताते हैं कि उनका बच्चा पढ़ाई में बड़ा कमजोर है. अगर अभी से ध्यान नहीं दिया गया तो पिछड़ जाएगा. इस तरह बच्चे और पेरैंट्स की घेराबंदी के बाद बच्चों का प्राइवेट ट्यूशन शुरू हो जाता है. दिलचस्प है कि वही शिक्षक, जो कक्षा में गंभीर नहीं होते, प्राइवेट ट्यूशन में बच्चे पर काफी ध्यान देते हैं क्योंकि यहां ऊपरी कमाई का लालच है.
अयान शेख कक्षा 8 का छात्र है. वह स्कूल की छुट्टी के बाद हफ्ते में 3 दिन दो घंटे गणित और विज्ञान के ट्यूशन के लिए स्कूल के ही टीचर फ्रेडरिक फैंथम के घर जाता है और 3 दिन दो घंटे इंग्लिश और हिस्ट्री-ज्योग्राफी के ट्यूशन के लिए मिसेज कामता कौशल के घर जाता है. उसके पिता हर माह 6 हज़ार रुपए उस के प्राइवेट ट्यूशन पर खर्च करते हैं और साढ़े 3 हज़ार रुपए स्कूल की फीस देते हैं.
अयान कहता है कि स्कूल में तो ये टीचर्स कुछ पढ़ाते नहीं हैं पर घर पर बहुत अच्छी तरह विषय समझाते हैं. अगर स्कूल में ही अच्छी तरह पढ़ा दें तो ट्यूशन की ज़रूरत न पड़े. अयान की क्लास के अनेक बच्चे इन दोनों टीचर्स के घर जाकर ट्यूशन पढ़ते हैं. समझ सकते हैं कि ऐसे टीचर्स की ऊपरी कमाई कितनी ज्यादा है. लखनऊ, दिल्ली, नोएडा, मुंबई, बेंगलुरु जैसे शहरों में प्राइवेट ट्यूशन कमाई का बड़ा धंधा बन चुका है.

संयुक्त परिवार का टूटना

पहले जब चाचाताऊ,दादादादी इकट्ठे एक ही छत के नीचे रहते थे तो बच्चों को पढ़ाई में घर वालों की ही मदद मिल जाती थी. होमवर्क कराने का जिम्मा कभी दादाजी के ऊपर होता था तो कभी चाचा पर. बड़े भाईबहन भी शाम को सभी छोटे बच्चों को एक जगह बिठा कर पढ़ाते थे. कभीकभी इस सामूहिक पढाई में महल्ले के बच्चे भी शामिल होते थे. बच्चों में आपसी प्रतिस्पर्धा भी रहती थी. एकदूसरे से अधिक नंबर लाने की होड़ लगती थी. इस तरह की पढाई में धन के लेनदेन का कोई स्थान नहीं था. लेकिन जैसेजैसे संयुक्त परिवार टूटे और लोग पुश्तैनी मकान छोड़ कर बीवीबच्चों के साथ दूसरे शहरों में बसे, बच्चों की पढ़ाई मुश्किल हो गई.

आरंभिक स्तर पर बच्चों को स्कूल के अलावा घर में भी थोड़ेबहुत मार्गदर्शन की जरूरत होती है. लेकिन एकल परिवार में यदि मांबाप दोनों नौकरीपेशा हैं तो उनके पास वक़्त ही नहीं है कि दोतीन घंटे बैठ कर वे अपने बच्चों को पढ़ा सकें. अगर पिता नौकरीपेशा है और मां गृहिणी है और उसकी शिक्षा इतनी नहीं है कि वह बच्चे को पढ़ा सके तो भी समस्या उत्पन्न होती है. सभी पेरैंट्स की यह ख्वाहिश रहती है कि उनके बच्चे कक्षा में अच्छे नंबर लाएं मगर पढ़ेलिखे मातापिता भी अपनी व्यस्तता के बीच से थोड़ा भी वक्त बच्चों को नहीं देना चाहते. वे स्कूल और प्राइवेट ट्यूटर के भरोसे सबकुछ छोड़कर निश्चिंत हो जाते हैं. इसी कारण ट्यूशन की यह समानांतर व्यवस्था दिनोंदिन मजबूत होती जा रही है.

ट्यूशन पढ़ाना स्टेटस सिंबल

छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना आज स्टेटस सिंबल भी बन गया है. किसका बच्चा कौन से महंगे स्कूल में पढ़ रहा है और किस महंगे ट्यूटर से ट्यूशन ले रहा है, इसको बताने में लोगों को बहुत गर्व महसूस होता है. कभीकभी आवश्यकता न होने पर भी धनाढ्य वर्ग अपने बच्चों का ट्यूशन लगा देता है. ‘मिसेज मेहरा अगर अपने बेटे को मिनाक्षी मैडम के ट्यूशन क्लास में पढ़वा रही हैं तो हमारे पास पैसे की कमी है क्या जो हम अपनी बेटी को उन के ट्यूशन क्लास में नहीं भेज सकते?’ कालोनी और फ्लैट कल्चर में रह रहे लोगों की यह सोच आज नर्सरी के बच्चे को भी ट्यूशन के चक्रव्यूह में फंसा रही है. ट्यूशन लगाना पेरैंट्स के लिए आज एक सामाजिक उपलब्धि लगती है चाहे उनके बच्चे को सब आता हो. काफी बच्चों के मातापिता तो सिर्फ इसलिए ट्यूशन भेजते थे ताकि वे शाम को महल्ले के बच्चों के बीच खेलने न जाएं.

अंशिका ने अपनी 7 साल की बेटी का ट्यूशन लगवा दिया है, जबकि वे खुद उसका सारा होमवर्क करवा सकती हैं. अभी तक करवा ही रही थीं. उन से पूछा तो बोलीं, ‘अरे ट्यूशन की जरूरत तो नहीं थी, मैं तो बेटी को खुद पढ़ा लेती हूं, मगर साथ वाली बड़ा टोकती हैं. उनकी बेटी भी ट्यूशन जाती है. मैंने सोचा कि कहीं ताना न देने लगे कि- अरे आपकी बेटी ट्यूशन नहीं जाती?उनकी बात से ऐसा लगेगा जैसे हम आर्थिक रूप से उनसे कमजोर हैं. इसलिए इस का ट्यूशन लगवा दिया.

कुछ मातापिता की यह हार्दिक इच्छा होती है कि जो वे जीवन में नहीं बन पाए, उनका बच्चा वह अवश्य बने (भले ही उसकी उस क्षेत्र में रुचि न हो). ऐसे लोग प्रतिमाह पड़ने वाले ट्यूशन फीस के अतिरिक्त भार के लिए और अधिक मेहनत कर लेते हैं, पर बच्चे को ट्यूशन कराने से पीछे नहीं हटते हैं.

(बौक्स –1)
ट्यूशन की जरूरत क्यों
आरिफ एक प्रतिष्ठित स्कूल में बायोलौजी के टीचर हैं. उन्होंने अपने बेटे के लिए गणित और विज्ञान का ट्यूशन तब लगवायाजब वह 9वीं कक्षा में आया. उससे पहले वे खुद ही उसका होमवर्क करवाते रहे हैं. नर्सरी और केजी के बच्चों को ट्यूशन के लिए भेजे जाने का वे विरोध करते हैं.

आरिफ कहते हैं,“ “यदि आप स्वयं अपने बच्चों को घर पर पढ़ा सकते हैं तो ट्यूशन टीचर की जरूरत नहीं है. और इतने छोटे बच्चों को तो ट्यूशन के लिए भेजना ही नहीं चाहिए. स्कूल में चारपांच घंटे की पढ़ाई उनके लिए पर्याप्त है. बच्चों में आत्मविश्वास जगाने और आत्मनिर्भरता सिखाने की ज्यादा जरूरत होती है. बच्चों का दिमाग इतना सक्रिय होता है कि क्लास में उन्हें जो कुछ भी बताया जाता है उसे शीघ्र ही ग्रहण कर लेते हैं. मेरी राय में यदि आप उन्हें घर पर समय दे सकते हैं तो छोटी कक्षा में ट्यूशन के लिए हरगिज न भेजें.”

आरिफ चूंकि खुद एक टीचर हैं तो वे बच्चों की पढ़ाई के प्रति गंभीरता और लापरवाही को भलीभांति समझते हैं. वे कहते हैं, ““बच्चे की ग्रहणशक्ति और स्कूल में टीचर्स द्वारा विषय को पढ़ाने के तरीके पर निर्भर करता है कि उसको स्कूल की पढ़ाई के अलावा भी पढ़ाए जाने की आवश्यकता है अथवा नहीं. कुछ बच्चे किसी बात को तेजी से सीख लेते हैं तो कुछ दो या चार बार पढ़ने के बाद ही अध्याय के मूल सिद्धांत को समझ पाते हैं. तो इसका सटीक जवाब है कि यदि बच्चे को हर अध्याय का कौन्सेप्ट समझ में आ रहा है तो उसको ट्यूशन की कोई आवश्यकता नहीं है.””

आरिफ आगे कहते हैं,“ “हर बच्चे की सीखने की शक्ति में भिन्नता होती है. जिन स्कूलों में अध्याय के मूल सिद्धांत को सरलता से और रोचकता के साथ पढ़ाया या सिखाया जाता है, उन स्कूलों के बच्चे तेजी से अध्याय को सीख लेते हैं. ऐसे बच्चों को स्कूलों के बाद ट्यूशन जाने की आवश्यकता नहीं होती है. घर में बच्चों को सपोर्ट देना भी बहुत ज़रूरी है. आज के दौर में मातापिता अपने बच्चों की शिक्षा को लेकर काफी सजग हैं. बहुतेरे अभिभावक बच्चों को स्कूल से आने के बाद खुद पढ़ाते हैं. नियमित रूप से बच्चे को पढ़ाने से उसकी कमजोरियां मांबाप को पता चलती हैं और उन्हें दूर किया जा सकता है. जो छात्र किसी अध्याय को धीमी गति से सीखते हैं, और उनको घर पर अभिभावक का भी सपोर्ट नहीं मिल पाता है, उन्हीं बच्चों को ट्यूशन जाने की आवश्यकता होती है.”

(बौक्स –2)

प्रतिस्पर्धा का समय
शेफाली अस्थाना के दोनों बच्चे पढ़ाई में बहुत अच्छे हैं. शेफाली सरकारी नौकरी में हैं. वे शाम को घर आने के बाद स्वयं दोनों बच्चों को पढ़ाती हैं. छोटे बच्चों को प्राइवेट ट्यूटर के पास भेजने की बढ़ती रवायत पर उनका कहना है, ““पहले बच्चों की माताएं घर पर रहती थीं, यदि पिता बिजी हुए तो वे बच्चों को पढ़ाती थीं. मैं स्वयं अपने बच्चों को पढ़ाती हूं जबकि मैं नौकरी भी करती हूं. आजकल मातापिता बच्चों को समय नहीं देना चाहते. वे उनके ऊपर पैसा खर्च करने को तैयार हैं पर उनके पास घंटेदोघंटे बैठ कर यह नहीं जानना चाहते कि वे पढाई में कैसे हैं.पहले संयुक्त परिवार होते थे और बच्चे घर के किसी भी सदस्य से पढ़ लिया करते थे. ऐसा अब नहीं है.

““हम भाईबहनों ने उच्च शिक्षा प्राप्त की मगर कभी किसी से प्राइवेट ट्यूशन नहीं पढ़ा. हम सबको शाम को पिताजी पढ़ाते थे. अगर वे किसी काम से शहर से बाहर होते थे तो ताऊजी पढ़ाते थे. पहले के पिता अपने बच्चों की तरक्की स्वयं देखते थे क्योंकि उनके पास आज की पीढ़ी की अपेक्षा पैसा कम होता था और वे उसे बरबाद नहीं करना चाहते थे, बल्कि संभाल कर चलते थे. पहले कक्षाओं में शिक्षक भी मन लगाकर पढ़ाते थे और जिन बच्चों को कुछ नहीं समझ में आता था, वे स्कूल की छुट्टी के बाद उन्हें अतिरिक्त समय दे दिया करते थे. आज के शिक्षकों में यह भावना नहीं है. वे सीधे ट्यूशन लेने को कहते हैं. मातापिता भी शिक्षक के कोप से बचने के लिए या उसकी निगाह में अपने बच्चे का महत्त्व बढ़ाने के लिए उनसे ही ट्यूशन लगवा देते हैं.

“आज का समय प्रतिस्पर्धा का है, इसलिए हर मातापिता चाहते हैं कि उनका बच्चा अधिक से अधिक अंक लाए और इसीलिए वे छोटी कक्षा से ही उस को ट्यूशन के लिए भेजना शुरू कर देते हैं. जो लोग संयुक्त परिवार से अलग हो चुके हैं और पतिपत्नी दोनों नौकरी करते हैं तो उनके पास बच्चों को पढ़ाने के लिए समय नहीं रह गया है. उनका घर और बच्चे सब नौकरों और प्राइवेट ट्यूटर के सहारे रहते हैं.”

अडानी पर आंच

25 जनवरी,2023. यहवहतारीख है जिसने विश्व के दूसरे सबसे अमीर भारतीय उद्योगपतिगौतम अडानी के साम्राज्य की नींव हिला दी. हिंडनबर्ग ने अडानी ग्रुप के खिलाफ32 हजार शब्दों की एक रिपोर्ट क्या जारी कीकिअडानी अर्श से फर्श पर आ गए. शेयरमार्केटमें उनकी कंपनियों के शेयर जिस तेजी से गिरे,अडानी एक हफ्ते में अमीरी की दुनिया में नंबर2से लुढ़क कर30 से भी नीचे चले गए. सड़क से संसद तक हंगामा उठ खड़ा हुआ क्योंकि अडानी की कंपनियों ने भारतीय बैंकों से न सिर्फ अरबों रुपए लोन के तौर पर उठाएहुए हैं, बल्कि उद्योग और व्यापार के हर महत्त्वपूर्ण क्षेत्र पर उनका कब्ज़ा है.

क्या है हिंडनबर्ग की रिपोर्ट
हिंडनबर्ग रिसर्च की स्थापना साल2017 में नाथन एंडरसन ने की है. यह एक वित्तीय शोध करने वाली कंपनी है, जो इक्विटी, क्रैडिटऔर डेरिवेटिव मार्केट के आंकड़ों का विश्लेषण करती है. हिंडनबर्ग रिसर्च हेज फंड का कारोबार भी करती है. इसेकौरपोरेट जगत की गतिविधियों के बारे में खुलासा करने के लिए जाना जाता है.

कंपनी यह पता लगती है कि क्या शेयर मार्केट में कहीं गलत तरीके से पैसों की हेराफेरी तो नहीं हो रही है? क्या कोई कंपनी अकाउंट मिसमैनेजमैंट से खुद को बड़ा तो नहीं दिखा रही है? क्या कंपनी अपने फायदे के लिए शेयर मार्केट में गलत तरह से दूसरी कंपनियों के शेयर को बेट लगाकर नुकसान तो नहीं पहुंचा रही?
हिंडनबर्ग ने साल2020 के बाद से30 कंपनियों की रिसर्च रिपोर्ट उजागर की है और रिपोर्ट रिलीज़ होने के अगले ही दिन उस कंपनी के शेयर औसतन15 फीसदी तक टूट गए.

हिंडनबर्ग का खुलासा
हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि अडानी समूह दशकों से शेयरों के हेरफेर और अकाउंट की धोखाधड़ी में लिप्त है. इसी हेरफेर के चलते3साल में शेयरों की कीमतें बढ़ने से अडानी समूह के संस्थापक गौतम अडानी की संपत्ति एक अरबडौलर बढ़कर120 अरबडौलर हो गई. इस दौरान समूह की7 कंपनियों के शेयर औसत819 फीसदी बढ़े हैं. यही नहीं,मौरीशस से लेकर संयुक्त अरब अमीरात जैसे अनेक टैक्सहैवन देशों में अडानी परिवार ने कई मुखौटा कंपनियां खोल रखी हैं जिनके तहत मनीलौंड्रिंग और भ्रष्टाचार का जबरदस्त खेल चलता है.

हिंडनबर्ग2सालों से अडानी समूह की कंपनियों की छानबीन कर रहा है. अडानी समूह के पूर्व अधिकारियों सहित दर्जनों लोगों से बातचीत, महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों का संकलन और शैल कंपनियों का ब्योरा जमा करने के बाद जो खुलासा हुआ उसमेंअडानी तो डूबे ही, मोदी सरकार भी गंभीर सवालों के घेरे में आ गई, क्योंकि गौतम अडानी से प्रधानमंत्री मोदी की नज़दीकियां और उनको उभारने में उनका सहयोग किसी से छिपा नहीं है.

मोदी के ख़ास अडानी
गौतम अडानी प्रधानमंत्रीनरेंद्रमोदी के ख़ास दोस्तों में सबसे ऊपरी पायदान पर हैं. 2014 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद सबसे बड़ा जादू यह हुआ कि देशविदेश में अरबों रुपयों के प्रोजैक्ट अडानी को मिलने लगे. देश के अनेक बड़े रेलवे स्टेशन और बंदरगाहों की देखरेखवसंचालन का काम अडानी की कंपनियों ने उठा लिया. सारे नियम बदल कर देश के6एयरपोर्ट की देखरेख, विकास और संचालन की बागडोर अडानी के हाथमेंसौंप दी गई, जबकि इस क्षेत्र में काम करने का उन्हें कोई अनुभव नहीं था और नियमतयाबिना अनुभव वाली कंपनी को ऐसी जिम्मेदारी नहीं दी जा सकती थी. अडानी के लिए सारे नियम बदल दिए गए. अगस्त2021 में अडानी ग्रुप ने मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज इंटरनैशनल एयरपोर्ट का मैनेजमैंट जीवीके ग्रुप से अपने हाथों में लिया और इस डील के साथ अडानी समूह की सब्सिडियरी एएएचएल देश की सबसे बड़ी एयरपोर्ट कंपनी बन गई. अडानी को धन की कमी न हो,इसके लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से हजारों करोड़ रुपया अडानी की कंपनियों को बतौर लोन दिलवाया गया और देखते ही देखते8वर्षों में गौतम अडानी दुनिया के दूसरे सबसे बड़े अमीर बन गए.

प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं में अडानी का साथ होना अडानी ग्रुप को बड़ा फायदा पहुंचाने लगा. पीएमबंगलादेश गए. वहां सरकार के साथ उनकी पावर डील हुई और कुछ दिनों बाद अडानी को1,500 मेगावाट पावर डील मिल गई. बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ग्रीन हाइड्रोजन एनर्जी के लिए बजट में19,800 करोड़ रुपएका प्रावधान किया और अडानी पावर ने दावा किया किवहदुनिया में सबसे बड़ी ग्रीन एनर्जी कंपनी बनेगी. इस तरह बीते7-8सालों में मोदी की कृपा से देशविदेश में सैकड़ों प्रोजैक्ट अडानी के पास आ गए. आज अडानी समूह की छाप भारत में हर जगह है. ऐसे में हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद अडानी समूह ही संकट में नहीं है बल्कि मोदी सरकार की कई बड़ी योजनाएं भी ख़तरे में हैं, चाहे वो इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में हों, या सैन्य क्षेत्र में या आत्मनिर्भर भारत के प्रोजैक्ट्स हों या फिर कृषिकेक्षेत्रमें हों.

गौरतलब है कि अडानी विल्मर देश में खाद्य तेल कारोबार की सबसे बड़ी कंपनी है. समूह सेब में सबसे बड़ी आपूर्ति चेन है, जो हिमाचल के बाद कश्मीर के सेब के व्यापार में हिस्सेदारी की कोशिश में लगा है. वह निजी क्षेत्र में सबसे बड़ी अनाज भंडारण कंपनी है. अडानी गैसनैटवर्क गैस वितरण में भारत की सबसे बड़ी कंपनी है. बिजली उत्पादन और वितरण में समूह देश की सबसेबड़ाहै. एयरपोर्ट निर्माण और मैनेजमैंट के मामले में यहदेश की3बड़ी कंपनियों में सबसे बड़ीअडानी की कंपनीहै. बंदरगाहों की देखभाल और संचालन में यहदेश की सबसे बड़ी कंपनी है.

हिंडनबर्ग कीरिपोर्ट से अडानी जिस संकट में हैं उससे समूह की नईयोजनाओं पर कितना असर पड़ेगा या फिर निवेशक निवेश करेंगे या नहीं और कर्ज़ देने वाले बैंक उन्हें अब आगे कर्ज़ देंगे या नहीं, यहबड़ा सवाल खड़ा हो गया है. गौरतलब है कि पिछले2सालों में अडानी ग्रुप का क़र्ज़ एक लाख करोड़ रुपएसे बढ़कर लगभग2लाख करोड़ रुपएहो चुका है. रिपोर्ट से सामने आने के बाद से गौतम अडानी अब तक100 अरबडौलर से अधिक का नुकसान उठा चुके हैं और इसमें कोई शक नहीं कि उनके व्यापार साम्राज्य के लिए यहएक बड़ा झटका है.

यह धक्का अकेले अडानी समूह को नहीं लगा है. अडानी समूह में निवेश करने वाले भारतीय जीवन बीमा निगम(एलआईसी) और भारत के सबसे बड़े सरकारी बैंक स्टेट बैंकऔफ़ इंडिया को भी इसका नुकसान झेलना पड़ रहा है. समूह की मौजूदा कंपनियों और नईविशाल योजनाओं के लिए अडानी को बहुत पैसा चाहिए. खुद अडानी कहते हैं कि उन्हें अपनी योजनाओं को पूरा करने के लिए अगले10 सालों में100 अरबडौलर चाहिए. अब तक विदेशी निवेशक और बैंक और भारत के सरकारी बैंक कर्ज देते रहे हैं, लेकिन ताज़ा संकट के बाद आशंका व्यक्त की जा रही है कि अब भारतीय बैंक अडानी समूह को उस तरह कर्ज नहीं दे पाएंगे जैसे अभी तक देते आएहैं. विदेशी निवेशक भी अब भारत और इसकी कंपनियों में निवेश करने से पहले सौ बार सोचेंगे. अडानी का संकट उन लोगों के लिए भी एक चेतावनी है जो भारत में निवेश करने पर विचार कर रहे हैं क्योंकि संपत्ति के अधिकारों की सुरक्षा में बड़ीचूकउन्हें यहां नज़र आएगी.

रिपोर्ट पर अडानी समूह का रुख
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को अडानी समूह ने निराधार और बदनाम करने वाला कहा है. समूह के मुख्य वित्तीय अधिकारी(सीएफओ) जुगेशिंदर सिंह का कहना कि रिपोर्ट में इस्तेमाल तथ्यात्मक आंकड़े प्राप्त करने के लिए समूह से कोई संपर्क नहीं किया गया. यह रिपोर्ट चुनिंदा गलत व बासी सूचनाओं, निराधार और बदनाम करने की मंशा से की गई है. यह एक दुर्भावनापूर्ण संयोजन है और अडानीसमूहइसके लिए हिंडनबर्ग के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेगा.

हिंडनबर्ग का जवाब
अडानी समूह की कानूनी चेतावनी के बाद हिंडनबर्ग ने उनकी धमकियों का स्वागत किया है. हिंडनबर्ग ने कहा कि वह अपनी रिपोर्ट पर पूरी तरह से कायम है. यदि गौतम अडानी वास्तव में पारदर्शिता को अपनाते हैं, जैसा कि वे दावा करते हैं, तो उन्हें उत्तर देना चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर अडानी गंभीर हैं, तो उन्हें अमेरिका में भी मुकदमा दायर करना चाहिए, जहां हम काम करते हैं. हमारे पास कानूनी जांच प्रक्रिया में मांगे जाने वाले दस्तावेजों की एक लंबी सूची है.

सुप्रीमकोर्टका सुझाव
अडानी प्रकरण पर अधिवक्ता विशाल तिवारी और एमएल शर्मा द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे एक गंभीर मामला मानते हुए कहा कि वास्तव में हमं परेशान करने वाली बात यह है कि हम भारतीय निवेशकों के हितों की रक्षा कैसे करें? रिपोर्ट के चलते अडानी समूह की कंपनी के शेयर की कीमतें गिरने से छोटे निवेशकों को भारी नुकसान हुआ है. निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए देश में एक मजबूत नियामक ढांचे की जरूरत है ताकि भारतीय निवेशकों को अचानक उत्पन्न होने वाली अस्थिरता से बचाया जा सके जो हाल के सप्ताहों में देखा गया है. अगर केंद्र सहमत होता है तो नियामक सुधारों का सुझाव देने के लिए शीर्ष अदालत के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में एक समिति का गठन किया जा सकता है. मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि अदालत ने सेबी का प्रतिनिधित्व करने वालेसौलिसिटर जनरल तुषार मेहता को संकेत दिया है किदेश के भीतर नियामक तंत्र को विधिवत मजबूत करने के संबंध में तुरंत कदम उठाएजाने की जरूरत है.

फिलहाल अपनी और ज्यादा छीछालेदरहोनेसे बचने के लिए केंद्र सरकार अडानी ग्रुप-हिंडनबर्ग मामले में एक्सपर्ट कमेटी बनाने को तैयार हो गई है. कमेटी यह देखेगी किस्टौकमार्केट केरैगुलेटरी मैकेनिज्म में फेरबदल की जरूरत है या नहीं.

बॉक्स अडानी के अहम प्रोजैक्ट्स और कारोबार

धारावी पुनर्विकास परियोजना- अडानी समूह ने20,000 करोड़रुपएकी धारावी पुनर्विकास परियोजना के लिए कामयाब बोली लगाई थी. उन्हें6.5 लाख झुग्गीवासियों का पुनर्वास करके इसे7साल में पूरा करना है. यह परियोजना अडानी समूह को मुंबई के बीचोंबीच लाखों वर्ग फुट आवासीय और वाणिज्यिक जगह बेचकर मोटा पैसा कमाने में मदद करेगी.

ग्रीन एनर्जी- पिछले साल सितंबर मेंगौतम अडानी ने अगले दशक में100 अरबडौलर का निवेश करने की घोषणा की है, जिसमें से उन्होंने70 प्रतिशत ग्रीन एनर्जी पर खर्च करने का वादा किया है. हरित ऊर्जा में समूह का आक्रामक रुख़पैट्रोलियम ईंधन पर देश की निर्भरता में भारी कटौती करने की भारत सरकार कीमहत्त्वाकांक्षाओंके अनुरूप है.

अडानी डिफैंसएंड एयरोस्पेस- अडानी की रक्षा का सामान बनाने वाली कंपनी’अडानी डिफैंसएंड एयरोस्पेस’ ने ड्रोन सहित रक्षा उत्पादों का निर्यात भी शुरू कर दिया है. ड्रोन बनाने के लिए कुछ इसराईली कंपनियों के साथ समझौता हुआ है. अडानी समूह अपनीवैबसाइट में कहता है, ‘हम रक्षा और एयरोस्पेस में एक वैश्विक प्लेयर बनने के लिए प्रतिबद्ध हैं. भारत को विश्वस्तरीय और हाईटैकरक्षा निर्माण के लिए एक गंतव्य के रूप में बदलने में मदद कर रहे हैं जो कि आत्मनिर्भर भारत बनने की पहल से जुड़ा हुआ है.

विमान सेवाएं और एमआरओ- भारत की पैसेंजर और कार्गो एयरलाइंस के पास700 से अधिक विमान हैं. इसके अलावा भारतीय वायुसेना के विमान हैं जिनको समयसमय पर मेंटिनैंसऔर सर्विस कराने की जरूरत होती है. यह काम अडानी की कंपनी करती है. अडानी की कंपनी से यहसुविधा पड़ोसी देशों की कुछ एयरलाइंसभी लेती हैं.

अडानी कनेक्स डाटासैंटर- अगले दशक में1 जीडब्लयू डाटासैंटर क्षमता के साथ डिजिटल इंडिया को सशक्त बनाने के लिए अडानी ग्रुप और दुनिया का सबसे बड़ा निजी डाटासैंटरऔपरेटर’एजकनेक्स’ का एकजौइंटवैंचर है. अडानी ग्रुप कीवैबसाइट में इसजौइंटवैंचर के बारे में कहा गया है- हमारा मिशन हर संगठन के डाटा और उनके डिजिटल ट्रांसफौर्मेशन को तेज करना है और उन्हें आवश्यक पारदर्शिता, मानक, सुरक्षा और लचीलेपन का स्तर प्रदान करना है.

गोड्डा थर्मल पावर स्टेशन- 1,600 मेगावाट वाला गोड्डा थर्मल पावर स्टेशन, जोबंगलादेश को बिजली की आपूर्ति करने के लिए बनाया जा रहा है, लगभग6महीने की और देरी का सामना कर रहा है, लेकिन यह लगभग तैयार है.

 

भारतीयों की बढ़ती औसत आयु का सच

पिछले 4 दशकों में भारतीय पुरुषों व महिलाओं की औसत आयु में निश्चित रूप से वृद्धि तो हुई है पर भारतीय बुजुर्गों को अपने जीवन के अंतिम वर्ष बहुत जर्जर स्थिति में गुजारने पड़ते हैं. यह सोचने की बात है कि आखिर भारत के लोग अंतिम दिनों में सेहतमंद जिंदगी क्यों नहीं गुजार पाते? जब महादेवी वर्मा को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला तो पत्रकार उन के पास प्रतिक्रिया लेने पहुंचे. पत्रकारों ने उन से पूछा, ‘आप को खुशी हुई?’ उन्होंने कहा, ‘सच बताऊं तो कुछ खास नहीं.’

पत्रकारों ने हैरानी से पूछा, ‘क्यों?’ महादेवी वर्मा ने कहा, ‘अगर जवानी में मिलता तो इस का कोई लुत्फ लेती, घूमतीफिरती, पैसे खर्च करती लेकिन इस का मेरे लिए क्या अर्थ है. अब तो मैं बस उस की संख्या बढ़ाने के लिए जिंदा हूं. जबकि सच यह है कि खुद को ढो रही हूं.’ यह 1986 की बात है. मगर बुढ़ापे और सेहत को ले कर अभी भी कुछ खास फर्क नहीं हुआ. इस में कोई दोराय नहीं कि आजादी के बाद से अब तक के समय अंतराल को देखें तो आम भारतीयों की औसत आयु में 15 से 18 साल तक का इजाफा हुआ है. लेकिन जहां तक सेहत का सवाल है, इस में कुछ खास फर्क नहीं हुआ यानी उम्र तो बढ़ गई है लेकिन सेहतमंद उम्र का औसत तकरीबन अभी भी उतना ही है,

जितना दशक पहले हुआ करता था. जानीमानी रिसर्च वैबसाइट मैक्रोट्रैंड्स औसत आयु दर निकालती है. इस के अनुसार भारत में 2023 में औसत आयु दर 70.42 वर्ष है. यह दर पिछले साल 2022 के अनुपात में 0.33 प्रतिशत से अधिक है. 2022 में भारत की औसत आयु दर 70.19 वर्ष थी जो 2021 में 69.96 थी और 2020 में 69.73 वर्ष थी. यूनाइटेड नैशन की रिपोर्ट कहती है कि 2050 तक भारत की औसत आयु दर 81.3 वर्ष हो जाएगी. सालदरसाल भारत में औसत आयु दर में बढ़ोतरी हो रही है लेकिन भारतीय बुजुर्गों को अपने जीवन के अंतिम वर्ष बहुत जर्जर स्थिति में गुजारने पड़ते हैं. अगर विकसित देशों से तुलना की जाए तो भारतीयों की औसत आयु में इजाफा भी कुछ विशेष नहीं है क्योंकि जिन रोगों से भारत में मौत का खतरा अधिक रहता है उन्हीं रोगों से दूसरे देशों में लोग बच जाते हैं. मतलब यह कि अगर सरकारी नीतियां सही हों तो आसानी से हिंदुस्तानियों की उम्र में भी इजाफा हो सकता है और अकाल मौतों में भी कमी आ सकती है. साथ ही, जीवन के अंतिम वर्षों को भी सेहतमंद बनाया जा सकता है.

2020 में वर्ल्ड बैंक के अनुमानित आंकड़ों के अनुसार भारत में जहां यह औसत आयु दर 70 साल थी वहीं चीन में 77, यूएई में 78, यूके में 81, कनाडा में 82, स्विट्जरलैंड में 83 वर्ष थी. इन अध्ययनों से खुलासा होता है कि भारत में पिछले कुछ वर्षों से लोगों की औसत आयु बढ़ी है लेकिन इन खुलासों के साथ दूसरा बड़ा खुलासा यह भी है कि भारतीय महिलाएं सेहतमंद जीवन व्यतीत नहीं कर पातीं. भारतीय महिलाएं अपने अंतिम वर्षों में कई बीमारियों से ग्रसित रहती हैं. श्री गुरु रामदास यूनिवर्सिटी, पंजाब की रिपोर्ट में मनप्रीत और जसप्रीत ने महिलाओं की आयु के अंतिम वर्षों में बीमारियों का ब्यौरा दिया. वे लिखते हैं इस उम्र में महिलाएं सब से कौमन बीमारियों जैसे एनीमिया, डैंटल प्रौब्लम, हाइपरटैंशन, अर्थराइटिस जैसी समस्याओं से जूझती हैं जिस में साइकोलौजिकल डिसट्रैस बड़ी समस्या है जो 66.6 प्रतिशत शहरी महिलाओं और 82.3 प्रतिशत ग्रामीण महिलाओं में है. इस का अर्थ यह है कि उन के बाद के 10.5 वर्ष विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त रहते हैं.

भारतीय पुरुष भी अपने जीवन के अंतिम 8-9 वर्ष दर्द, परेशानी व बीमारी में ही गुजारते हैं. जिन 10 देशों के स्त्रीपुरुष अधिकतम स्वस्थ जीवन गुजार रहे हैं उन में भारत शामिल नहीं है. यह सोचने की बात है कि आखिर भारत के लोग अंतिम दिनों में सेहतमंद जिंदगी क्यों नहीं गुजार पाते? इस की सब से बड़ी वजह है अधिकतर भारतीयों का स्वास्थ्य के प्रति सजग न होना, रोजमर्रा की जिंदगी में स्वच्छता और अनुशासन के लिए प्रतिबद्ध न होना और रहनसहन में वैज्ञानिक व पर्यावरण अनुकूल चेतना का न होना. क्या आप जानते हैं, भारतीय जितना किसी बड़ी बीमारी से नहीं मरते, उस से कहीं ज्यादा घरों में अपनी अज्ञानता के चलते बढ़ाए गए प्रदूषण से मरते हैं. निसंदेह, इस में ग्रामीण भारतीयों की संख्या सब से ज्यादा है. ग्रामीण भारत की रसोइयों में प्रदूषण का स्तर स्वीकार्य मात्रा से 30 गुना अधिक है.

राजधानी दिल्ली तो दुनिया के प्रदूषित शहरों में से एक है. लेकिन भारत के ग्रामीण घरों में आमतौर पर दिल्ली के मुकाबले 6 गुना ज्यादा वायु प्रदूषण होता है. इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में घरेलू प्रदूषण कितना भयानक है. ग्रामीण क्षेत्रों में चूल्हेचौके का काम लकड़ी, कोयला व गोबर को बतौर ईंधन इस्तेमाल कर के किया जाता है, क्योंकि गैस उन्हें अभी भी महंगी लगती है. जिस से स्वास्थ्य, खासकर महिलाओं के स्वास्थ्य, पर कुप्रभाव पड़ता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि घरेलू वायु प्रदूषण (जो चूल्हे की वजह से होता है) के कारण भारत में हर साल 5 लाख मौतें होती हैं. मरने वालों में अधिकतर महिलाएं व बच्चे होते हैं. दक्षिणपूर्व एशिया में घरेलू वायु प्रदूषण के कारण जितनी सालाना मौतें होती हैं उन में से 80 प्रतिशत भारत में होती हैं. कहते हैं भारत की आत्मा गांव में बसती है पर यही ग्रामीण लोग घरेलू प्रदूषण के कारण कई बीमारियों से जूझते हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार 24 करोड़ से अधिक घरों के भारत देश में लगभग 10 करोड़ परिवार एलपीजी से वंचित हैं.

सरकार ने उज्ज्वला योजना तो चलाई पर महंगी गैस के चलते जो गरीब लोग एलपीजी की तरफ शिफ्ट हुए थे वे भी ठोस ईंधन का रुख करने लगे हैं. भारत के लगभग 70 प्रतिशत ग्रामीण घरों में रोशनदान की व्यवस्था नहीं है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया में 3 अरब से अधिक लोग भोजन बनाने के लिए ठोस ईंधन (लकड़ी, कोयला, गोबर आदि) पर निर्भर होते हैं. ठोस ईंधन जलाने में कार्बन मोनोऔक्साइड, पार्टीक्युलेट्स, बेंजीन व फार्मलडीहाइड निकलते हैं, जिन के कारण निमोनिया, दमा, अंधापन, फेफड़ों का कैंसर, टीबी व जन्म के समय कम वजन की शिकायतें पैदा होती हैं, जो अकसर मौत का कारण बन जाती हैं.

इस समस्या का सब से बड़ा कारण है ग्रामीण भारत तक रसोई गैस की सुविधा का न पहुंच पाना और पिछले सालों में घरेलू गैस पर भी टैक्सों की भरमार की गई है जिन से वह आज भी महंगी है. यह अजीब विरोधाभास है कि यहां काफी लोग शाकाहारी हैं लेकिन फिर भी पर्याप्त फल नहीं खाते. प्रोफैसर इज्जती के मुताबिक, भारतीयों की अकाल मौतों और जर्जर बुढ़ापे के कुछ प्रमुख कारणों में से उन के द्वारा नमक का अधिक सेवन, तंबाकू का इस्तेमाल और बढ़ती शराब की लत भी है. उन के अनुसार, ‘अगर भारतीय तंबाकू का कम सेवन करें, अपने भोजन में नमक का इस्तेमाल कम करें तो वे कई तरह की बीमारियों, मसलन ब्लडप्रैशर आदि से बचे रहेंगे.

उन में मोटापे की समस्या भी नियंत्रित रहेगी और बुढ़ापा भी सेहतमंद रहेगा.’ जिन देशों के पुरुष लंबा स्वस्थ जीवन गुजारते हैं उन में पहले 10 इस प्रकार से हैं, जापान, सिंगापुर, स्विट्जरलैंड, स्पेन, इटली, आस्ट्रेलिया, कनाडा, अंडोरा, इजराइल व दक्षिण कोरिया. जबकि ऐेसे टौप 10 देश जिन में महिलाएं लंबा स्वस्थ जीवन गुजारती हैं, वे हैं- जापान, दक्षिण कोरिया, स्पेन, सिंगापुर, ताइवान, स्विट्जरलैंड, अंडोरा, इटली, आस्ट्रेलिया व फ्रांस. जापान में दोनों पुरुष व महिलाएं न सिर्फ लंबा जीवन पाते हैं बल्कि अधिक समय तक स्वस्थ भी रहते हैं. लेकिन इन दोनों ही सूचियों में भारत का नाम कहीं नहीं है. जिन देशों में दोनों पुरुषों व महिलाओं की औसत आयु 78 वर्ष से अधिक है,

वे हैं- आइसलैंड, फ्रांस, नौर्वे, स्पेन, स्वीडन, अंडोरा, स्विट्जरलैड, इटली, इजराइल, कतर, सिंगापुर, जापान, आस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड. भारतीयों की औसत आयु में शायद वृद्धि पिछले इसलिए भी हुई है क्योंकि हिंदुस्तान में बाल मृत्युदर को कम करने के साथसाथ युवा वयस्कों में मृत्युदर कम करने में सफल रहा. इस वृद्धि को अधिक बढ़ाया जा सकता है, अगर प्रोफैसर इज्जती के उक्त सु?ाव पर सरकारी योजना बने व उस पर कार्य हो क्योंकि ध्यान रहे, आहार के कारण भी खतरा बढ़ जाता है.

सोशियो इकोनौमिक एंड एजुकेशन डेवलपमैंट सोसाइटी के निदेशक दीपक मिश्रा के अनुसार भारत में हर साल 13.5 लाख लोगों की मृत्यु तंबाकू उपयोग के चलते होती है. डब्लूएचओ की रिपोर्ट कहती है हर साल 2.6 लाख भारतीयों की मौत शराब पीने के चलते होती है. वहीं हर रोज दुनियाभर में 6 हजार लोग शराब पीने के चलते मर जाते हैं. इन मौतों को होने से रोका जा सकता है.

तलाक के बाद: भाग 1

Writer- VInita Rahurikar

3 दिनों की लंबी छुट्टियां सुमिता को 3 युगों के समान लग रही थीं. पहला दिन घर के कामकाज में निकल गया. दूसरा दिन आराम करने और घर के लिए जरूरी सामान खरीदने में बीत गया. लेकिन आज सुबह से ही सुमिता को बड़ा खालीपन लग रहा था. खालीपन तो वह कई महीनों से महसूस करती आ रही थी, लेकिन आज तो सुबह से ही वह खासी बोरियत महसूस कर रही थी.

बाई खाना बना कर जा चुकी थी. सुबह के 11 ही बजे थे. सुमिता का नहानाधोना, नाश्ता भी हो चुका था. झाड़ूपोंछा और कपड़े धोने वाली बाइयां भी अपनाअपना काम कर के जा चुकी थीं. यानी अब दिन भर न किसी का आना या जाना नहीं होना था.

टीवी से भी बोर हो कर सुमिता ने टीवी बंद कर दिया और फोन हाथ में ले कर उस ने थोड़ी देर बातें करने के इरादे से अपनी सहेली आनंदी को फोन लगाया.

‘‘हैलो,’’ उधर से आनंदी का स्वर सुनाई दिया.

‘‘हैलो आनंदी, मैं सुमिता बोल रही हूं, कैसी है, क्या चल रहा है?’’ सुमिता ने बड़े उत्साह से कहा.

‘‘ओह,’’ आनंदी का स्वर जैसे तिक्त हो गया सुमिता की आवाज सुन कर, ‘‘ठीक हूं, बस घर के काम कर रही हूं. खाना, नाश्ता और बच्चे और क्या. तू बता.’’

‘‘कुछ नहीं यार, बोर हो रही थी तो सोचा तुझ से बात कर लूं. चल न, दोपहर में पिक्चर देखने चलते हैं,’’ सुमिता उत्साह से बोली.

‘‘नहीं यार, आज रिंकू की तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है. मैं नहीं जा पाऊंगी. चल अच्छा, फोन रखती हूं. मैं घर में ढेर सारे काम हैं. पिक्चर देखने का मन तो मेरा भी कर रहा है पर क्या करूं, पति और बच्चों के ढेर सारे काम और फरमाइशें होती हैं,’’ कह कर आनंदी ने फोन रख दिया.

सुमिता से उस ने और कुछ नहीं कहा, लेकिन फोन डिस्कनैक्ट होने से पहले सुमिता ने आनंदी की वह बात स्पष्ट रूप से सुन ली थी, जो उस ने शायद अपने पति से बोली होगी. ‘इस सुमिता के पास घरगृहस्थी का कोई काम तो है नहीं, दूसरों को भी अपनी तरह फुरसतिया समझती है,’ बोलते समय स्वर की खीज साफ महसूस हो रही थी.

फिर शिल्पा का भी वही रवैया. उस के बाद रश्मि का भी.

यानी सुमिता से बात करने के लिए न तो किसी के भी पास फुरसत है और न ही दिलचस्पी.

सब की सब आजकल उस से कतराने लगी हैं. जबकि ये तीनों तो किसी जमाने में उस के सब से करीब हुआ करती थीं. एक गहरी सांस भर कर सुमिता ने फोन टेबल पर रख दिया. अब किसी और को फोन करने की उस की इच्छा ही नहीं रही. वह उठ कर गैलरी में आ गई. नीचे की लौन में बिल्डिंग के बच्चे खेल रहे थे. न जाने क्यों उस के मन में एक हूक सी उठी और आंखें भर आईं. किसी के शब्द कानों में गूंजने लगे थे.

‘तुम भी अपने मातापिता की इकलौती संतान हो सुमि और मैं भी. हम दोनों ही अकेलेपन का दर्द समझते हैं. इसलिए मैं ने तय किया है कि हम ढेर सारे बच्चे पैदा करेंगे, ताकि हमारे बच्चों को कभी अकेलापन महसूस न हो,’ समीर हंसते हुए अकसर सुमिता को छेड़ता रहता था.

बच्चों को अकेलापन का दर्द महसूस न हो की चिंता करने वाले समीर की खुद की ही जिंदगी को अकेला कर के सूनेपन की गर्त में धकेल आई थी सुमिता. लेकिन तब कहां सब सोच पाई थी वह कि एक दिन खुद इतनी अकेली हो कर रह जाएगी.

कितना गिड़गिड़ाया था समीर. आखिर तक कितनी विनती की थी उस ने, ‘प्लीज सुमि, मुझे इतनी बड़ी सजा मत दो. मैं मानता हूं मुझ से गलतियां हो गईं, लेकिन मुझे एक मौका तो दे दो, एक आखिरी मौका. मैं पूरी कोशिश करूंगा कि तुम्हें अब से शिकायत का कोई मौका न मिले.’

समीर बारबार अपनी गलतियों की माफी मांग रहा था. उन गलतियों की, जो वास्तव में गलतियां थीं ही नहीं. छोटीछोटी अपेक्षाएं, छोटीछोटी इच्छाएं थीं, जो एक पति सहज रूप से अपनी पत्नी से करता है. जैसे, उस की शर्ट का बटन लगा दिया जाए, बुखार से तपते और दुखते उस के माथे को पत्नी प्यार से सहला दे, कभी मन होने पर उस की पसंद की कोई चीज बना कर खिला दे वगैरह.

लेकिन समीर की इन छोटीछोटी अपेक्षाओं पर भी सुमिता बुरी तरह से भड़क जाती थी. उसे इन्हें पूरा करना गुलामी जैसा लगता था. नारी शक्ति, नारी स्वतंत्रता, आर्थिक स्वतंत्रता इन शब्दों ने तब उस का दिमाग खराब कर रखा था. स्वाभिमान, आत्मसम्मान, स्वावलंबी बन इन शब्दों के अर्थ भी तो कितने गलत रूप से ग्रहण किए थे उस के दिलोदिमाग ने.

मल्टीनैशनल कंपनी में अपनी बुद्धि के और कार्यकुशलता के बल पर सफलता हासिल की थी सुमिता ने. फिर एक के बाद एक सीढि़यां चढ़ती सुमिता पैसे और पद की चकाचौंध में इतनी अंधी हो गई कि आत्मसम्मान और अहंकार में फर्क करना ही भूल गई. आत्मसम्मान के नाम पर उस का अहंकार दिन पर दिन इतना बढ़ता गया कि वह बातबात में समीर की अवहेलना करने लगी. उस की छोटीछोटी इच्छाओं को अनदेखा कर के उस की भावनाओं को आहत करने लगी. उस की अपेक्षाओं की उपेक्षा करना सुमिता की आदत में शामिल हो गया.

समीर चुपचाप उस की सारी ज्यादतियां बरदाश्त करता रहा, लेकिन वह जितना ज्यादा बरदाश्त करता जा रहा था, उतना ही ज्यादा सुमिता का अहंकार और क्रोध बढ़ता जा रहा था. सुमिता को भड़काने में उस की सहेलियों का सब से बड़ा हाथ रहा. वे सुमिता की बातों या यों कहिए उस की तकलीफों को बड़े गौर से सुनतीं और समीर को भलाबुरा कह कर सुमिता से सहानुभूति दर्शातीं. इन्हीं सहेलियों ने उसे समीर से तलाक लेने के लिए उकसाया. तब यही सहेलियां सुमिता को अपनी सब से बड़ी हितचिंतक लगी थीं. ये सब दौड़दौड़ कर सुमिता के दुखड़े सुनने चली आती थीं और उस के कान भरती थीं, ‘तू क्यों उस के काम करे, तू क्या उस की नौकरानी या खरीदी हुई गुलाम है? तू साफ मना कर दिया कर.’

सेहत और स्वाद के लिए Holi पर बनाएं ये पकवान

होली की मस्ती तब तक फीकी है जब तक साथ में जायकेदार व्यंजनों की भरमार न हो. नाचने गाने के साथ खाने को कुछ मजेदार मिलें तो होली का मजा दोगुना हो जाता है. आइए जानते हैं  कुछ ऐसे ही जायकेदार, चटपटे पकवानों के बारे में.

1 चुकंदर मिस्री मजा

सामग्री : 1 लिटर दूध, 2 मध्यम चुकंदर, 11/2 बड़े चम्मच चीनी, 1 बड़ा चम्मच घी, मिस्री आवश्यकतानुसार, बादाम इच्छानुसार.

विधि : चुकंदर को छील कर कस लें, दूध उबालें और कसा चुकंदर डाल कर अच्छी तरह सुखा कर भून लें. चीनी डाल कर अच्छी तरह जल्दीजल्दी हथेलियों में लेले कर ऊंचाई का आकार दें. थोड़ी देर फ्रिज में रख कर सैट करें. बादाम व मिस्री से सजाएं.

2 गुझिया

सामग्री : 2 कप मैदा, 3 बड़े चम्मच मोयन का घी, 1/4 चुकंदर कटा, 1/2 कप मटर पिसे, 1/4 कप मेवा कटा, 1/2 छोटा चम्मच इलायची पिसी, 1 बड़ा चम्मच बूरा, तलने के लिए पर्याप्त घी या तेल, 1 बड़ा चम्मच देसी घी.

विधि : चुकंदर को कद्दूकस करें व 1 कप पानी में डाल कर उबालें. पानी रंगीन हो जाए तो छान लें. फिर मैदा छानें व उस में मोयन डाल कर मसलें. कुनकुने रंगीन पानी की मदद से मैदा गूंधें व गीले कपड़े में लपेट कर रखें. साफ, सूखी कड़ाही में घी व मटर डाल कर भूनें, उस में कटा मेवा, बूरा, इलायची डाल कर मिलाएं. मैदे से लोइयां तोड़ें व गोल बेल लें. 1 छोटा चम्मच मैदा कटोरी में लें व थोड़े से पानी के साथ घोल बना लें. हर गोल बेली लोई में  1/2-1/2 बड़ा चम्मच भरावन भर कर मोड़ें व चारों ओर घुला मैदा लगा कर किनारे चिपकाएं और सांचे में रखरख कर गुझिया का आकार दें व गरम घी या तेल में मंदी आंच पर तल कर ब्राउनपेपर पर निकालें.

3 मटर टिक्की

सामग्री : 1 कप मटर, 1 बड़ा चम्मच देसी घी, 1 बड़ा चम्मच बूरा, सजाने के लिए मीठी कैंडी.

विधि : ग्राइंडर में 1/4 प्याला पानी के साथ मटर के दानों को पीस लें. फिर साफसूखी कड़ाही में डाल कर मंदी आंच पर पानी सुखाएं व घी डाल कर अच्छी तरह से भूनें. कच्चापन दूर हो जाए तब बूरा डाल कर मिलाएं. हथेली पर टिक्की के आकार में फैलाएं व मीठी कैंडी से सजा कर परोसें.

4 टोमैटो समोसा

सामग्री : 2 कप मैदा, 1/2 कप मटर, 1/2 कप पनीर के टुकड़े, 4 बड़े चम्मच मोयन के लिए घी, 11/2 बड़े चम्मच टोमैटो प्यूरी, चुटकीभर जीरा, 1/4-1/4 छोटा चम्मच नमक, मिर्च व हलदी, 1-1 छोटा चम्मच चाटमसाला व अमचूर, 1/2 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी, तलने के लिए पर्याप्त तेल या घी.

विधि : 1 छोटा चम्मच तेल कड़ाही या पैन में गरम करें व जीरा डाल कर कड़काएं. हलदी, मिर्च, नमक व मटर डाल कर मिलाएं. 1/4 कटोरी पानी के साथ मटर गलाएं. फिर चाटमसाला, अमचूर, पनीर के टुकड़े व धनियापत्ती डाल कर भूनें. मैदा में नमक, मोयन का घी व टोमैटो प्यूरी डाल कर गूंध लें. गूंधे मैदे की लोइयां बनाएं व बेल कर पतली पूरियां तैयार करें. चाकू से बीच से काट कर 2 भाग करें. प्रत्येक कटे टुकड़े को कोन का आकार दे कर मटर भरावन भरें व किनारे बंद कर के गरम तेल में हलकी आंच पर तल कर ब्राउनपेपर पर निकालें. सौस, चटनी के साथ परोसें.

5 गाजर कौर्नफ्लैक्स लड्डू

सामग्री : 500 ग्राम गाजर, 1 लिटर दूध, 10-12 बादाम कटे, 10-12 किशमिश, 1/4 कप हरी कैंडी, आवश्यकतानुसार कौर्नफ्लैक्स, 2 बड़े चम्मच मिल्कपाउडर, 2 बड़े चम्मच चीनी.

विधि : गाजरों को छील कर कस लें. दूध उबालें व गाजर डाल कर गाढ़ा होने तक पकाएं और उस का खोया बना लें. इस के बाद चीनी डाल कर किशमिश डालें व लगातार चलाते हुए भूनें. कटे बादाम, हरी कैंडी व कौर्नफ्लैक्स डाल कर मिलाएं. कौर्नफ्लैक्स क्रश होने पर थोड़े और डालें. मिल्कपाउडर भी डालें. बंधने लायक हो जाने पर लड्डू बनाएं.

पुरुषसत्तात्मक समाज में महिलाओं को आगे बढ़ने में आज भी समस्याएं होती हैं- शर्मिला टैगोर

फिल्म गुलमोहर’, जो आज की पारिवारिक परिवेश पर आधारित एक ऐसी ड्रामा फिल्म है, जिसमे एक परिवार के सभी सदस्य साथ रहते हुए भी अलग विचारधारा रखते है, लेकिन उनमे प्यार और आदर की कोई कमी नहीं है. परिवार की बड़ी बुजुर्ग जब एक निर्णय लेती है, तो पूरा परिवार उस निर्णय से हिल जाते है और 35 साल से रह रहे इस घर को छोड़ने के बारें में सोचने लगते है, जहाँ उनकी यादें और भावनाएं है, लेकिन उन्हें इस निर्णय को मानना है.

परिवार की बड़ी बुजुर्ग का ये निर्णय 4 दिन बाद होली की त्यौहार को साथ मनाने के बाद ख़त्म होने वाला है, लेकिन कैसे पूरा परिवार इस निर्णय के साथ उन चार दिनों को जी रहा है, कैसे सबकी सोच एक दूसरे से अलग है, कुछ इसी ताने-बाने के साथ फिल्म अंजाम तक पहुँचती है. ये फिल्म डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर 3 मार्च को रिलीज होने वाली है.

पद्मभूषण और राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता लीजेंड अभिनेत्री शर्मिला टैगोर ने इसमें बहुत ही महत्वपूर्ण और मुख्य भूमिका निभाई है. 12 साल की गैप के बाद उन्होंने इस फिल्म में बहुत ही उम्दा अभिनय किया है, जिसमे उन्होंने अपने अनुभव और निर्देशक राहुल चित्तेला के विजन को पर्दे पर उतारने की कोशिश की है.

चाहत रही अच्छी कहानी की

बातचीत के दौरान शर्मिला कहती है कि मुझे एक अच्छी फिल्म में काम करने की इच्छा थी और वह निर्देशक राहुल लेकर आये और मैंने किया. इसमें रिश्ते और संबंधों को बहुत ही खूबसूरत तरीके से पेश किया गया है. साथ ही एक बड़ी अच्छी स्टारकास्ट और टीम है. सभी की भूमिका एक सामान है. परिवार की कहानी है और दिल को छू लेने वाली कहानी है. बहुत ही मिठास है, ऐसी फिल्म में काम करना मेरे लिए बहुत ख़ुशी की बात है.

ये आज की कहानी है, आज लोगों के पास समय नहीं है, ऐसा सभी गलत कहते है और एक मकान में रहते हुए भी फ़ोन पर बात करते है. मेरे हिसाब से जब आप किसी से मिलते है और गले लगते है, तो अलग ही एहसास होता है. किसी से गले मिलना बात करना, इसमें प्लानिंग करनी पड़ती है और समय भी मिलता है, बस रिश्ते को फ्लरिश करने के लिए एक चाहत की जरुरत होती है.

रिलेटेबल है कहानी

रियल लाइफ में भी शर्मिला इस भूमिका से खुद को काफी रिलेट कर पाती है, उनका कहना है कि मेरे परिवार में भी कुछ लोग मेरी बात से असहमत होते है, ‘गिव एंड टेक’ का सिलसिला चलता रहता है. मैं उस पर अधिक ध्यान नहीं देती और किसी को हर्ट भी नहीं करती, लेकिन कभी-कभी एक दृढ़ निश्चय लेना पड़ता है और मैं उसे लेती हूँ. मैं सभी से बातचीत करना और दोस्ती रखना पसंद करती हूँ.

है अच्छा दौर

इस दौर को शर्मिला क्रिएटिविटी का सबसे अच्छा दौर मानती है, जहाँ सबको काम करने का मौका मिलता है. वह कहती है कि फिल्म और क्रिकेट का दौर हमेशा चलता रहता है. ये कभी बंद नहीं हो सकता, लेकिन फिल्मों में कोर को टच करना जरुरी होता है, तभी दर्शक उससे खुद को जोड़ पाते है. इसके अलावा अभी फिल्मों में तकनीक काफी आ चुकी है, जो पहले नहीं थी. अगर कहानी से दर्शक खुद को नहीं जोड़ पाते है, तो आज के दर्शक रियेक्ट करते है. टेस्ट और आशाएं बदली है, इमोशनल चीजों को हटाया नहीं जा सकता. दर्शकों ने ही इसे महत्व दिया है, उन्हें वे हटा नहीं सकते. इस फिल्म की लोकेशन रियल है और पूरी विजन निर्देशक की है. जिसमे प्यार, आदर, भावनाएं आदि पूरी तरह से है, जो कहानी को सपोर्ट करती है.

जरुरी है परिवार का सहयोग

शर्मिला ने हमेशा उन टैबू को तोडा, जिसे समाज नहीं मानती थी. वह कहती है कि मैंने हमेशा उन टैबू को तोड़ा जिसे समाज मानता नहीं था, लेकिन लगता है आज ये गलत नहीं. प्रेशर बहुत होता है, इसमें मेरे पति और प्रसिद्ध क्रिकेटर टाइगर पटौदी का हमेशा साथ रहा है. मैंने शादी की, बच्चों की माँ बनी, लेकिन इस दौरान मेरे परिवार ने काम करने से मना भी किया, पर मैंने काम किया, क्योंकि मेरे साथ मेरे पति थे, उन्होंने कभी काम करने से मना नहीं किया. मैंने भी बच्चों को कभी नेगलेक्ट नहीं किया, उन्हें सिखाया है कि काम से मैं हैप्पी फील करती हूँ. अभी मेरी कुछ सोशल एक्सपेक्टेशन है, जिसे पूरा करना है. कई बार इसे सोचकर रिग्रेट होता है, लेकिन कम हो, इसकी कोशिश करनी है.

महिलाओं को आज भी है समस्या

पुरुषसत्तात्मक समाज में महिलाओं को आगे बढ़ने में समस्याएं आज भी होती है, लेकिन शहरों में महिलाएं लकी है, उन्हें हर तरह की आज़ादी होती है, जबकि छोटे शहरों और गांव में महिलाएं अभी भी काफी समस्या का सामना करती है.

शर्मिला कहती है कि हम सभी लकी है और शहरों में रहते है. मेरे ग्रैंडमदर की शादी 5 साल की उम्र में हुई थी, पहला बच्चा 13 साल की उम्र में हुआ था. मेरी माँ को को-एड यूनिवर्सिटी में जाने की अनुमति नहीं थी. मुझे हमेशा ये पूछा गया कि शादी के बाद फिल्म में काम करने की अनुमति कैसे दी गई और मेरे बच्चे भी उसी फील्ड में है. हर साल हमारी आजादी बढ़ रही है, हमें धैर्य रखने की जरुरत है. महिलाओं के पक्ष में समाज पूरी तरह से बदल नहीं सकती, लेकिन ये भी समझना है कि महिलाएं आगे बढ़ रही है और एक महिला को दूसरी महिला को कभी क्षति न पहुंचाएं.

साथ में आयें, साथ रहे और एक दूसरे की सहायता करें. पुरुषों के बिना समाज नहीं चल सकता. समाज में महिला और पुरुष दोनों को साथ में काम करना है. महिलाये एक दूसरे को बहन की तरह देखें और किसी को जज न करें. महिलाएं कई बार दूसरी महिला या जेनरेशनके लिए बहुत अधिक जजिंग हो जाती है, ये ठीक नहीं. सभी को साथ में लेकर चलना ही हमारे लिए एक अच्छी बात है.

स्ट्रोंग महिला को होती है मुश्किलें

शर्मिला आगे कहती है कि स्ट्रोंग महिला की भूमिका फिल्म में हो या रियल लाइफ में निभाना बहुत मुश्किल होता है. परिवार का सहयोग इसमें सहायक होता है. मुझे मेरी पिता और पति का सहयोग मिला. हम तीन बहने है, मेरे पिता ने कभी लड़के की चाहत नहीं रखी. वे कहते रहे कि मेरी सभी लड़कियां बराबर है और मैं लड़के को कभी मिस नहीं करता. हम सभी वैसे ही बड़े हुए है. मेरे पति ने भी मुझे वैसे ही सहरा दिया है. मुझे उनके लिए कुछ पैक्ड नहीं था. डिनर के लिए उनका इंतजार करने जैसी स्टीरियोटाइप महिला मुझे नहीं बनना पड़ा. उन्होंने मुझे हमेशा उतनी आज़ादी दी, जितनी मुझे चाहिए थी.

कम होती है रिश्तों की अहमियत

शर्मिला आगे कहती है कि पहले बच्चा माँ के बिना नहीं रह सकता, बाद में माँ ग्रांटेड हो जाती है. मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ, जब मैंने शादी की तो मेरी पूरी नजर टाइगर पर था, बच्चे होने पर उनपर शिफ्ट हो गयी, अब ग्रैंड चिल्ड्रेन पर हो चुकी है. इस बीच माँ भी छूट जाती है. मैं अपनी दादी से बहुत प्रभावित रही. मेरे तीनों बच्चे हम दोनों से किसी न किसी रूप में मेल खाते है.

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