जैसे पौराणिक कथाओं में बारबार कहा जाता है कि देवताओं के राजा हर समय दस्युओं के राजाओं को समाप्त करने की तरकीबें लगाते रहते थे. ब्राह्मणों द्वारा छल, कपट, प्रपंच, झूठ, फरेब, षडयंत्र, औरतों आदि के जरिए अच्छेभले चलते दस्युओं के राजाओं को ब्राह्मणमयी बनाने के लिए संघर्ष चलता रहता था. आज वैसा ही कृत्य भारतीय जनता पार्टी अपने विपक्षियों के खिलाफ हर समय करती रहती है.
संविधान में हर राज्य में केंद्र द्वारा नियुक्त एक राज्यपाल या गवर्नर की व्यवस्था दर्ज है जो असल में नाम का मुख्य अधिकारी है जैसा राष्ट्रपति होता है. भाजपा के नेतृत्व वाली मौजूदा केंद्र सरकार उन्हें हर समय गैरभाजपा सरकारों के पीछे पगलाए कुत्तों की तरह दौड़ाए रखती है. दिल्ली के उपराज्यपाल से ले कर तमिलनाडू के राज्यपाल तक किसी भी गैरभाजपा सरकार के अपने राज्य के गवर्नर से अच्छे संबंध नहीं हैं.
दिल्ली के राज्यपाल तो खुद को बादशाह मानते है और मुख्यमंत्री को चपरासी. वहीं, दूसरे गैरभाजपा शासित राज्यों के राज्यपाल यह चाहते हैं कि वहां की दूसरी पार्टियां परेशान हो कर जल्द से जल्द भाजपा मुखिया के कदमों में सिर रखने आ जाएं. जनता ने किसे वोट दे कर चुना, इस से उन्हें कोई मतलब नहीं. दरअसल, इन गवर्नरों का खयाल यह है कि वह जनता मूर्ख ही है जो भारतीय जनता पार्टी को वोट नहीं देती और ऐसे में अगर सरकार व गवर्नर विवाद में वह पिस रही है तो यह उस के पापों का फल है.
देश के फैडरल स्ट्रक्चर, जिस में राज्य लगभग स्वतंत्रतापूर्वक अपना काम कर सकते हैं, को बुरी तरह बिगाड़ दिया गया है. संविधान की आत्मा है संघीय संरचना तथा अलगथलग भाषाओं व इतिहास के लोग अपनी मरजी के नेता चुन सकें और सारा देश सफेद टोपी या भगवा दुपट्टे वालों के अधीन न हो.