आज की जंकफूड संस्कृति के चलते युवा भी हड्डियों से जुड़ी बीमारियों की चपेट में लगातार आ रहे हैं. युवा टैक्नोलौजी और सुविधाओं पर इतना ज्यादा निर्भर हो गए हैं कि शारीरिक परिश्रम करना कहीं पीछे रह गया है. पहले लोग शारीरिक काम बहुत करते थे, इसलिए स्वस्थ व फिट रहते थे. इस के अलावा युवाओं की अनियमित दिनचर्या, दिनभर डैस्क जौब, टैक्नोलौजी व मशीनों पर बढ़ती निर्भरता, शारीरिक व्यायाम न करने और पोषक खानपान न होने की वजह से हड्डियों के रोग होने का रिस्क बढ़ रहा है. वहीं, महिलाएं परिवार के सदस्यों की देखभाल में खुद की सेहत पर ध्यान देना भूल जाती हैं. इस वजह से युवावस्था में ही वे हड्डियों से जुड़ी समस्याओं से जूझने लगती हैं. गर्भधारण, स्तनपान कराने से ले कर मीनोपौज तक महिलाओं की हड्डियों का मजबूत होना बहुत महत्त्वपूर्ण है.

महिलाएं 20 के आखिरी पड़ाव या 30 के शुरुआती सालों में हड्डियों से जुड़े सेहत संबंधी मुद्दों व समस्याओं पर ध्यान नहीं देतीं. इस वजह से वे हड्डियों से जुड़े विकार औस्टियोपोरोसिस से घिर जाती हैं. भारत जैसे देश में तो महिलाओं को शुरुआत में पता तक नहीं चल पता कि वे औस्टियोपोरोसिस से ग्रस्त हैं.

हड्डियों की देखभाल करने की कोई उम्र नहीं है. किशोर लड़कियां अपनी इसी उम्र में ही हड्डियों का घनत्व बढ़ा सकती हैं. 30 वर्ष की उम्र के बाद यह थोड़ा मुश्किल हो जाता है. अगर शुरुआती सालों में हड्डियां मजबूत रहेंगी तो उम्र बढ़ने के साथ महिलाएं स्वस्थ रहेंगी. महिलाओं में 30 वर्ष की उम्र के बाद शरीर से कैल्शियम का भंडार कम होने लगता है और 40 की उम्र पार मीनोपौज के बाद तो कैल्शियम की जरूरत और अधिक हो जाती है क्योंकि मीनोपौज के बाद पुरानी हड्डियों के अवशोषित होने के मुकाबले नई हड्डियों के निर्माण की दर कम होने लगती है जिस से औस्टियोपोरोसिस होने का खतरा बढ़ जाता है. मीनोपौज के 5 से 7 साल तक महिलाओं का 20 प्रतिशत तक हड्डियों का घनत्व कम हो सकता है. शरीर में हड्डियां एक तरह की जीवित कोशिकाएं होती हैं जो लगातार अवशोषित होती रहती हैं और साथसाथ बनती भी रहती हैं. लेकिन 30 वर्ष की उम्र के बाद यह प्रक्रिया धीमी हो जाती है, इसलिए महिलाओं के लिए यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि वे 20 वर्ष की उम्र के पड़ाव से ही सही मात्रा में कैल्शियम लें ताकि मीनोपौज के बाद औस्टियोपोरोसिस जैसी बीमारियों का रिस्क कम हो जाए.

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