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उतरन : क्यों बड़े भाई की उतरन पर जी रहा था प्रकाश

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नौकरी के साथ घर की सुरक्षा को न करें अनदेखा

मुंबई की एक पौश कालोनी में रहने वाली 70 वर्ष की एक बुजुर्ग महिला की अचानक बाथरूम में मृत्यु हो जाने से पूरा परिवार सदमे में आ गया. उसका ग्रैंड सन पास के औफिस में जौब पर गया था. जब वह घर आयातो दरवाजा न खुलने पर उसने चाबी से दरवाजा खोला. लेकिन अपनी दादी को बाथरूम में अचेतन अवस्था में देखकर वह घबराया.वह उन्हेंपास के अस्पताल में ले गया. लेकिन डाक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया और कहा कि उन की दादी की मौत पिछले 5 घंटे पहले हुई है.

पोते को आश्चर्य का ठिकाना न रहा. लेकिन जब पोस्टमार्टम हुआ तो पता चला कि किसी ने उनका गला दबाकर पहले हत्या की है और बाद में बाथरूम में शव को ऐसे लिटा दिया कि लगे गिरने से नैचुरल डैथ हुई है. पुलिस की छानबीन और सोसाइटी की सीसीटीवी से पता चला कि उनके घर में सालों से काम करने वाली नौकरानी और उसके अपंग बेटे ने मिलकर उनकी जान ली हैक्योंकि घर से कुछ कीमती सामान,पैसे और मोबाइल गायब थे.

वह बुजुर्ग महिला पति के देहांत के बाद अकेले अपनी पुरानी नौकरानी के साथ रहती थी.महिला का एक बेटा और बेटी विदेश में रहते हैं जबकि पोता इंडिया पढ़ने आया और यहीं उसे अच्छी नौकरी मिल जाने से वह अपनी दादी के साथ रहने लगा था.

यह सही है कि मुंबई जैसे बड़े शहरों में जौब पर जाने से पहले,खासकर महिलाओं को, परिवार और घर की सुरक्षा को लेकर काफी मशक्कत करनी पड़ती है, क्योंकि घर से निकलकर कहीं जाने के लिए यहां घंटों का समय लगता है.

ऐसे में किसी अनहोनी में वे तुरंत घर नहीं पहुंच पाते.परिवार में रहने वाले बुजुर्ग और बच्चों की जिंदगी मैड सर्वेंट के हाथ में ही रहती है, जो एक चिंता का विषयहोता है और यह आजकल कुछ अधिक देखा जा रहा है कि विश्वास के साथ घर की देखभाल के लिए रखी जाने वाली मैड सर्वेंट सुरक्षित नहीं होती.

घर की सुरक्षा जरूरी

इस बारे में मुंबई की दिंडोशी पुलिस स्टेशन की अस्सिस्टेंट पुलिस इंस्पैक्टर सुविधा पुलेल्लू कहती हैं कि घर पर किसी भी प्रकार की हैल्पर, चाहे वह घर का काम करने वाली महिला हो या पुरुष या किसी वयस्क या बच्चे की देखभाल करने वाली हो, पुलिस वैरिफिकेशन करवा लेने से वे कुछ गलत करने से पहले डरते हैं. अगर करें भी तो पकड़ना आसान होता है.इसलिए इसे करवाना जरूरी होता है. लेकिन कुछ लोग इसे झंझट समझ कर नहीं करवाते और बाद में अपराध हो जाया करते हैं.

पुलिस वैरिफिकेशन काकाम कठिन नहीं होता. इसे 2 तरीके से किया जा सकता है. पहला तो औनलाइन जो आप किसी के द्वाराया फिर खुद से कर सकते हैं और दूसरा,औफलाइन होता है, जिसको पुलिस स्टेशन पर जाकर एक फौर्म भरकर इस प्रकिया को पूरा किया जा सकता है. इससे पता चलता है कि व्यक्ति किसी भी गलत काम में या उससे संलग्न तो नहीं है.

हैल्पर के रहते हुए घर में चोरी, कोई घटना आदि के होने की सिचुएशन में यहहैल्पफुल होता है. अगर किसी वजह से वैरिफिकेशन नहीं कराया है, तो तब तक के लिए उसका फोटो खींचकर और आधारकार्ड की एक कौपी अपने पास जरूर रखें. किसी भी व्यक्ति को हैल्पर या मेड सर्वेंट रखने से पहले निम्न बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है-

  • किसी भी वैबसाइट से नौकर हायर करने से पहले वैबसाइट के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करलें, किसी भी अनरजिस्टर्ड संस्था या कंपनी से हैल्पर या हाउसमेड हायर न करें.
  • नौकर या नौकरानी को घर में एंट्री देने से पहले ही उसका व उसके द्वारा जमा करवाए दस्तावेजों का पुलिस वैरिफिकेशन करवा लें.
  • मेड, घर के नौकर या अपरिचितों के सामने कभी भी अपनी अलमारियां न खोलें. चाहे वह कितने ही वर्षों से आपके यहां काम कर रहा हो.अपनी ज्वैलरी, पैसे या अन्य कीमती वस्तुएं उनके सामने न निकालें और उनके सामने पैसों के लेनदेन के बारे में भी बात न करें.
  • मेड अगर किसी को अपने साथ लेकर आए या अपना रिश्तेदार बताकर आपसे मिलवाए तो उसे अंदर आने की इजाजत न दें. हो सकता है, इस बहाने वह आपका घर और सामान उसे दिखा रही हो.
  • अगर आप शहर से बाहर जा रहे हैं तो मेड को यह न बताएं कि आप कितने दिनों में आएंगी.
  • किसी को भी अपने घर की चाबी न दें. अकसर लोग चाबियों को डोरमैट या किसी प्लांट के नीचे रख देते हैं. कार की और घर की चाबियां अलगअलग की-रिंग में रखें.
  • किसी भी तरह से नौकर हायर करने से पहले संबंधित पास के पुलिस थाने से वैरिफिकेशन जरूर करवा लें. इसके अलावा नौकर रखने के बाद भी सतर्कता से जुड़ी कई बातों का हमेशा रखें, ताकि भविष्य में किसी प्रकार की आपराधिक गतिविधि होने से परिवार या व्यक्ति खुद बच सके.

वारिसाना अधिकार में मां का दखल कितना उचित

शांति ने अभी शादीशुदा जिंदगी को ठीक से समझा भी नहीं था कि वैधव्य का जिन्न उसके सामने आ खड़ा हुआ. 10 साल की बेटी और 7 साल के बेटे के साथ वह अचानक यों बिना छत के घर की हो जाएगी, उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी. यह तो ससुराल वाले बहुत अच्छे थे जो उसे लगातार यह महसूस करवा रहे थे कि वह अकेली नहीं है. सास का बारबार उसे सीने से लगा लेना न जाने कितने ही खतरों से सुरक्षित होने का हौसला दे रहा था.

लेकिन सपनों की उम्र अधिक लंबी नहीं हुआ करती. उन्हें तो टूटना ही होता है. शांति का भी सुंदर सपना उस समय टूट गया जब पति के नाम पर खरीदे गए मकान को उसने अपने नाम पर करवाना चाहा. कोर्ट ने जब मृतक के लीगल वारिसों की सूची मांगी तो उसे यह जानकर बहुत आश्चर्य हुआ कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार पति की अर्जित की हुई संपति में उसके बच्चों के अतिरिक्त उसकी सास भी बराबर की हिस्सेदार है.

अधिक आश्चर्य तो तब हुआ जब सास ने मकान पर अपने हिस्से को शांति के पक्ष में रिलीज नहीं किया. सास का कहना था कि शांति को इस घर में रहना है तो शौक से रहे. यदि वह इसे बेचकर मायके या कहीं और जाना चाहती है तो उसे इस मकान का खयाल छोड़ देना होगा.

सोचा तो शांति ने यही था कि इस मकान को बेचकर जो भी रुपयापैसा मिलेगा उससे वह अपना और अपने बच्चों का भविष्य बनाने की कोशिश करेगी लेकिन अब यह उसे संभव नहीं लग रहा था क्योंकि स्वयं उसके पास आय का कोई स्रोत श्रोत नहीं था और यदि उसे ससुराल वालों के रहमोकरम पर पलना है तो फिर बच्चों का भविष्य कैसे बना पाएगी. मुकदमेबाजी में उलझने का भी कोई मतलब नहीं था. जब खाने को ही पैसा नहीं है तो वकीलों को देने के लिए कहां से आएगा. वैसे भी, कानून उसके पक्ष में नहीं था.

यहीं से उनके आपसी रिश्तों में कड़वाहट घुलने लगी. जो सास कभी मां की तरह स्नेह करती थी वह अब प्रतिद्वंद्वी बन सामने तनी हुई थी. केवल प्रतिद्वंद्वी ही नहीं, बल्कि अब तो चोरी और सीनाजोरी वाली नौबत भी आ चुकी थी. रहना है तो सास की मरजी से रहो वरना अपनी राह देखो.

शांति जैसी बहुत सी महिलाएं हैं जो कानून के इस पक्ष के कारण आर्थिक और मानसिक परेशानियां झेलती हैं. समाज में यों भी किसी युवा विधवा महिला का जीना आसान नहीं है, ऐसे में यदि उसका आर्थिक पक्ष भी कमजोर हो तो कोढ़ में खाज वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है. पति को खोने का गम, बच्चों की जिम्मेदारी के साथसाथ स्वयं को लोगों की तीखी निगाहों से बचाए रखना भी कम मुश्किल काम नहीं. पगपग पर जहां लुटेरे बैठे हों,तो विधवा की आधी शक्ति तो इन्हीं निरर्थक प्रयोजनों में नष्ट हो जाती है.

निर्वसीयती संपत्ति पर अधिकार किस का

मृत निर्वसीयती विवाहित पुत्र की संपति में मां को अधिकार देना उसकी विधवा के हक पर डाका डालने जैसा है क्योंकि मां तो स्वयं अपने पति की संपत्ति की उत्तराधिकारी है ही, ऐसे में उसे मृत विवाहित पुत्र का उत्तराधिकार देना कहां तक उचित है?

कानूनन किसी भी व्यक्ति को अपनी वसीयत बनाने का अधिकार होता है और हरेक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में यह काम अनिवार्य रूप से करना ही चाहिए ताकि उसकी मृत्यु के बाद उसके वारिसों को किसी भी प्रकार की कानूनी अड़चन का सामना न करना पड़े. अमूमन ऐसी सलाह किसी भी उम्रदराज व्यक्ति को दी जाती है लेकिन आमतौर पर स्वस्थ युवा व्यक्ति, जिसकी मृत्यु की कोई आसन्न शंका न हो, की असामयिक मृत्यु होने पर उसकी आश्रित विधवा को ऊपर वर्णित परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है.

हमारे यहां अमूमन वसीयत बनाने का चलन नहीं है और गांवों में तो संपत्ति के विवाद में हत्याएं तक हो जाती हैं. दूरदराज में आज भी विधवा विवाह का प्रचलन नहीं है और युवा विधवाएं भी पति की मृत्यु के बाद वहीं ससुराल में ही रहती हैं. बहुत बार तो पुत्र की संपत्ति को बचाने के लिए मातापिता अपनी विधवा बहू को उसके देवर आदि के साथ नाते पर भी बिठा देते हैं. फिर चाहे वह महिला उस रिश्ते में सहज हो या न.

ऐसे में इस अप्रासंगिक कानून के कारण कितनी युवा विधवाएं विपरीत परिस्थितियां भोगने के लिए शापित होती होंगी, इसके आंकड़े शायद किसी के भी पास नहीं होंगे. यदि पति की अर्जित संपत्ति पर केवल उसकी पत्नी और बच्चों का ही अधिकार हो तो वह महिला अपनी मरजी से जीने का फैसला ले सकती है क्योंकि तब उस पर किसी अन्य की ठेकेदारी नहीं थोपी जा सकती.

ऐसा एक उदाहरण पिछले दिनों देखने में आया. गांव में हमारे पड़ोस में रहने वाली 32 वर्षीया रचना के पति राजेश की दिल का दौरा पड़ने से आकस्मिक मृत्यु हो गई. बैंक खातों की जानकारी से पता चला कि राजेश के नाम लगभग 5 लाख की फिक्स्ड डिपौजिट है लेकिन राजेश ने उसमें किसी को नौमिनी नहीं किया. भुगतान प्राप्त करने के समय बैंक ने रचना को एक फौर्म दिया जिसमें उसे अपनी सास के हस्ताक्षर करवाने थे.

फौर्म में लिखा था कि यदि यह रकम रचना के बैंक खाते में जमा की जाती है तो सास को कोई आपत्ति नहीं होगी. सास अपनी बहू के साथ सहानुभूति दिखाते हुए उस फौर्म पर हस्ताक्षर करने लगी लेकिन उसके छोटे बेटे यानी रचना के देवर ने अपनी मां को ऐसा करने से रोक दिया और उस रकम में मां के हिस्से की मांग की. पैसा आता देखकर मां की सहानुभूति भी हवा हो गई और उसने हस्ताक्षर करने से मना कर दिया.

अब रचना के पास 2 ही विकल्प थे. पहला तो यह कि वह अपने पति की कमाई पर सास का अधिकार स्वीकार करके उसका हिस्सा उसे दे दे और दूसरा यह कि वह इस रकम पर कोई क्लेम ही न करे और उसे यों ही विवादित छोड़ दे यानी ‘न खाऊंगी न खाने दूंगी’. कानून की मदद तो उसे मिलने से रही. रचना को ये दोनों ही परिस्थितियां स्वीकार्य नहीं थीं.

उत्तराधिकार अधिनियम में मृतक की मां को उसका लीगल वारिस मानना कहां का न्याय है, वह भी तब जबकि पुरुष विवाहित ही नहीं बल्कि बालबच्चों वाला भी है. क्या पति की अर्जित संपति पर केवल और केवल उसकी पत्नी और बच्चों का अधिकार नहीं होना चाहिए? कहीं ऐसा तो नहीं कि यह अधिनियम सबकुछ जानतेबूझते हुए ही बनाया गया हो ताकि महिलाओं को अपने नियंत्रण में रखा जा सके?

एकल महिला का सहारा

पति के गुजर जाने के बाद युवा स्त्रियां समाज को बिना चारदीवारी के तालाब सी लगती हैं जिसका पानी कोई भी इस्तेमाल कर सकता है. ऐसे में यदि उनके आर्थिक संबल की भी बंदरबांट होने लगे तो वे किससे शिकायत करें? किसी भी परेशानी में अंतिम सीमा तक जाने के बाद थकहारकर व्यक्ति कानून और अदालत का ही सहारा लेता है और यदि वही शोषक हो तो पीड़ित अपनी व्यथा किसके सामने रखेगा?

यहां इन परिस्थितियों का दूसरा पहलू देखा जाना भी बहुत आवश्यक है. कई मामलों में मां अपने जीवनयापन के लिए केवल अपने मृतक पुत्र पर ही आश्रित होती है. कारण कई हो सकते हैं, मसलन मृतक के पिता का कोई निश्चित आयस्रोत न हो, पिता किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हो,मां विधवा, परित्यक्ता या तलाकशुदा हो आदि. ऐसे में यदि मां को पुत्र का उत्तराधिकार नहीं मिले तो वह बेसहारा हो जाएगी. ऐसी स्थिति में मां के मानवीय पक्ष भी विचार किए जाने आवश्यक हैं.

सरकार को उत्तराधिकार कानून की इस कमी की तरफ ध्यान देकर इसमें आवश्यक संशोधन करना चाहिए. यदि मां को उत्तराधिकारी बनाया जाना आवश्यक ही हो जाता है तो कानून में कम से कम यह प्रावधान अवश्य रखना चाहिए कि मां को यह अधिकार तभी मिले जा वह पूर्णतया अपने मृतक पुत्र पर ही आश्रित हो अन्यथा विवाहित पुरुष की अर्जित संपत्ति पर प्रथम श्रेणी उत्तराधिकार का हक केवल उसकी पत्नी और बच्चों का होना चाहिए. मां को पिता की तरह दूसरी श्रेणी का अधिकारी बनाया जा सकता है.

बुढ़ापे का सहारा बना कातिल

उम्र बढ़ने पर इंसान का शरीर तो कमजोर हो ही जाता है, कई तरह की बीमारियां भी घेर लेती हैं. 88 साल के हो चुके हरिकिशन वर्मा के साथ भी कुछ ऐसा ही था. हालांकि देखने में वह ठीकठाक लगते थे, लेकिन अंदर से वह कई तरह की बीमारियों से घिरे थे. वह शास्त्रीनगर के नीमड़ी गांव स्थित अपने घर में अपनी 50 साल की बेटी राजबाला के साथ रहते थे.

उसी मकान में उन के बेटे अजीत और विजय अपनी ज्वैलरी शौप चलाते थे, लेकिन इन दोनों बेटों से उन का कुछ लेनादेना नहीं था. इस की वजह यह थी कि उन का उन से संपत्ति को ले कर विवाद चल रहा था. उन का छोटा बेटा अरविंद, जो उत्तरीपश्चिमी दिल्ली के सरस्वती विहार में रहता था, वही उन की देखभाल के लिए रोज आता था.

अरविंद सुबह ही पिता के पास पहुंच जाता और दिन भर उन की देखभाल करता था. शाम 6-7 बजे वह घर लौट जाता था. कई सालों से उस का यही नियम बना हुआ था.

एक दिन अरविंद सुबह करीब साढ़े 9 बजे नीमड़ी गांव स्थित पिता के घर पहुंचा. वह जब भी आता था, घर का मुख्य दरवाजा अंदर से बंद मिलता था. दरवाजा खटखटाने के बाद बहन राजबाला कुंडी खोलती थी.

28 जनवरी को भी उस ने दरवाजा खटखटाया. 5 मिनट तक कुंडी नहीं खुली तो उस ने दोबारा दरवाजा खटखटाया. दोबारा भी कुंडी नहीं खुली और न ही अंदर से कोई आवाज आई तो वह सोचने लगा कि पता नहीं क्या बात है, जो अभी तक दरवाजा नहीं खुला.

उस ने आवाज देते हुए दरवाजे को धक्का दिया तो वह खुल गया. वह जैसे ही गैलरी में पहुंचा, उसे किचन के सामने राजबाला औंधे मुंह पड़ी दिखाई दी. बहन को उस हालत में देख कर वह घबरा गया. दौड़ कर उस ने बहन को सीधा किया तो शरीर अकड़ा एवं ठंडा था, नाक और मुंह से थोड़ा खून भी निकला हुआ था, जो सूख चुका था. बहन की हालत देख कर वह सहम उठा.

उसे पिता की ङ्क्षचता हुई तो आवाज देते हुए वह सामने वाले कमरे में गया. वहां टीवी चल रहा था और उस के पिता जो लुंगी बांधे रहते थे, वह बैड पर पड़ी थी. इस के बाद वह सामने वाले कमरे में गया तो वहां पिता रजाई में लिपटे हुए मिले. रजाई हटाई तो उन का शरीर भी ठंडा और अकड़ा हुआ था.

उन्हें पेशाब की जो नली लगी हुई थी, वह जस की तस लगी थी. बहन और पिता की हालत देख कर अरविंद चीखता हुआ बाहर आया और सभी को यह बात बताई. इस के बाद उस ने यह सूचना दिल्ली पुलिस के कंट्रोल रूम को दे दी. नीमड़ी गांव के नजदीक मुख्य रोड पर स्थित पैट्रोल पंप के पास अकसर पुलिस कंट्रोल रूम की वैन खड़ी रहती है. 100 नंबर पर कौल होते ही वैन नीमड़ी गांव पहुंच गई और हरिकिशन तथा उन की बेटी राजबाला को बाड़ा ङ्क्षहदूराव अस्पताल ले गई, जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया.

चूंकि यह क्षेत्र उत्तरी दिल्ली के थाना सराय रोहिल्ला के अंतर्गत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना थाना सराय रोहिल्ला को दे दी गई.

हरिकिशन और उन के बेटों को थाना सराय रोहिल्ला के ज्यादातर पुलिसकर्मी जानते थे. इस की वजह यह थी कि हरिकिशन और उन के बेटे आए दिन झगड़े की शिकायतें ले कर वहां आते रहते थे. उन के बीच प्रौपर्टी को ले कर काफी समय से झगड़ा चल रहा था.

इसीलिए सूचना पा कर कार्यवाहक थानाप्रभारी साहिब सिंह लाकड़ा एसआई आलोक कुमार राजन, कांस्टेबल यशपाल को ले कर नीमड़ी गांव पहुंच गए. वहां से पता चला कि पुलिस कंट्रोल रूम की वैन हरिकिशन और राजबाला को हिंदूराव अस्पताल ले गई है तो कांस्टेबल यशपाल को घटनास्थल पर छोड़ कर साहिब सिंह लाकड़ा और एसआई आलोक कुमार हिंदूराव अस्पताल जा पहुंचे. साहिब सिंह ने वहां मौजूद मृतक हरिकिशन के बेटे अरविंद से बात करने के बाद इस घटना की जानकारी एसीपी मनोज कुमार मीणा और डीसीपी मधुर वर्मा को दे दी.

2-2 हत्याओं की बात थी, इसलिए डीसीपी मधुर वर्मा, डीसीपी द्वितीय असलम खां, एसीपी मनोज कुमार मीणा भी घटनास्थल का दौरा करने के बाद बाड़ा हिंदूराव अस्पताल पहुंच गए. सूचना पा कर हरिकिशन के अन्य दोनों बेटे विजय वर्मा और अजीत वर्मा, जिन से उन का झगड़ा चल रहा था, वे भी अस्पताल पहुंच गए थे.

उन्होंने भी अपने पिता और बहन की हत्या पर दुख जताया. पिता और बहन की हत्या हुई थी, इसलिए दुख होना स्वाभाविक था. पुलिस ने इन दोनों भाइयों से भी बात की. उन्होंने बताया कि जिस मकान में पिता और बहन की हत्या हुई है, उन का वह मकान मेन बाजार में है.

उसी मकान में 2 दुकानें बनी हैं, जिन में वे महालक्ष्मी ज्वैलर्स के नाम से ज्वैलरी का धंधा करते हैं. वे रोजाना सुबह 10 बजे के करीब अपनी दुकानें खोलते हैं और रात 9 बजे बंद कर के सरस्वती विहार स्थित अपने फ्लैटों पर चले जाते थे.

आज जब वे अपनी दुकानों पर आए तो उन्हें पिता और बहन की हत्या की खबर मिली. जब उन्हें पता चला कि दोनों को बाड़ा हिंदूराव अस्पताल ले जाया गया है तो वे वहां आ गए.

“आप दोनों बता सकते हैं कि इन की हत्या किस ने की होगी?” साहिब सिंह ने पूछा.

“पता नहीं सर, यह किस ने किया है? इस बारे में हम किसी का नाम भी तो नहीं ले सकते, लेकिन इतना जरूर बता सकते हैं कि कल रात 9 बजे के करीब जब हम दुकान बंद कर के अपने घर के लिए निकले थे, तब दोनों ठीकठाक थे.” अजीत वर्मा ने कहा.

अजीत और विजय से बात करने के बाद साहिब सिंह घटनास्थल पर आए. घटनास्थल के निरीक्षण में उन्होंने पाया कि घर का सारा सामान अपनीअपनी जगह पर रखा है. इस से साफ था कि ये हत्याएं लूट की वजह से नहीं की गई थीं. उसी मकान के एक हिस्से में विजय और अजीत की ज्वैलरी की दुकानें थीं.

हत्यारों को यदि लूटपाट करनी होती तो वे ताला तोड़ कर दुकानों का सामान ले जा सकते थे, लेकिन दुकानों के ताले बंद थे. अब सवाल यह था कि ये हत्याएं क्यों और किस ने कीं?

थाने पहुंच कर अरविंद ने पुलिस को बताया कि उस के पिता और बहन की हत्या उस के बड़े भाइयों, अजीत वर्मा और विजय वर्मा ने उन की संपत्ति हथियाने के लिए की हैं. संपत्ति को ले कर बापबेटों के बीच आए दिन झगड़ा होने की जानकारी पुलिस को थी ही, इसलिए जब अरविंद ने अपने दोनों सगे भाइयों पर हत्या का शक जताया तो पुलिस ने उस की शिकायत पर अजीत वर्मा और विजय वर्मा के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के इस बात की जानकारी डीसीपी को दे दी.

डीसीपी मधुर वर्मा ने हत्या के इस मामले को सुलझाने के लिए एसीपी मनोज कुमार मीणा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित की, जिस में इंसपेक्टर साहिब सिंह लाकड़ा, एसआई आलोक कुमार राजन, राजीव कुमार, कांस्टेबल यशपाल, ताराचंद को शामिल किया गया. जिन दोनों भाइयों के खिलाफ मुकदमा दर्ज था, वे बाड़ा ङ्क्षहदूराव अस्पताल में थे. पुलिस टीम दोनों भाइयों अजीत वर्मा और विजय वर्मा को वहां से थाने ले आई.

थाने में पूछताछ में दोनों भाइयों ने कहा कि प्रौपर्टी को ले कर पिता से उन का विवाद जरूर चल रहा था, लेकिन हत्या करने जैसी बात वे सोच भी नहीं सकते. अपने समय पर वे दुकानें बंद कर के स्कूटी से सरस्वती विहार चले गए थे.

उन का कहना था कि उन के छोटे भाई अरविंद को पिताजी बहुत ज्यादा चाहते थे, क्योंकि घर में वह सब से छोटा था. ज्यादा लाड़प्यार की वजह से वह बिगड़ गया था. कोई कामधंधा भी नहीं करता था. कहीं ऐसा तो नहीं कि पैसे की जरूरत पडऩे पर उस ने पिताजी से पैसे मांगे हों और पिताजी ने मना कर दिया हो तो उसी ने गुस्से में उन्हें मार दिया हो. राजबाला ने उसे देख लिया हो, तो उस ने उस की भी हत्या कर दी हो.

अजीत वर्मा और विजय वर्मा ने पुलिस को जो बताया था, वह सच भी हो सकता था. इसलिए सच्चाई जानने के लिए पुलिस ने अरविंद वर्मा को भी थाने बुला लिया.

पड़ोसियों और दुकानदारों को जब पता चला कि जिन लोगों की हत्या हुई है, पुलिस उन्हीं के घर वालों को संदिग्ध मान कर पूछताछ कर रही है तो उन्हें यह बात बुरी लगी. दुकानें बंद कर के सभी इकट्ठा हुए और कहने लगे कि पुलिस इस मामले को गंभीरता से न ले कर घर वालों को ही परेशान कर रही है. इस बात से नाराज हो कर सभी पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे.

एसीपी मनोज कुमार मीणा और अन्य अधिकारियों ने भीड़ को समझाया और विश्वास दिलाया कि उन्हें कातिलों का सुराग मिल चुका है, इसलिए कातिल जल्द ही पुलिस की गिरफ्त में होंगे. पुलिस किसी निर्दोष को कतई नहीं फंसाती. उन के काफी समझाने के बाद भीड़ शांत हुई.

पुलिस पर मामले के खुलासे का दबाव बढ़ता जा रहा था. अरविंद और उस के दोनों भाई पुलिस की गिरफ्त में थे. पुलिस दोनों उन से अपने तरीके से पूछताछ कर रही थी. पुलिस ने पड़ोसियों से पूछताछ कर के यह जानने की कोशिश की कि हरिकिशन और उन की बेटी राजबाला की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी? इस पूछताछ में एक बात यह सामने आई कि हरिकिशन अकड़ वाले जिद्दी स्वभाव के आदमी थे. अगर कोई आदमी उन के घर के आगे गाड़ी खड़ी कर देता था तो वह उस से लडऩे को तैयार हो जाते थे. लेकिन ये झगड़े ऐसे नहीं थे, जिस से कोई उन की हत्या कर देता.

हरिकिशन का नीमड़ी गांव में 100 वर्ग गज का जो मकान था, वह वहां की मेन बाजार में था. मौजूदा समय में उस की कीमत करोड़ों रुपए में थी. इस से पुलिस को लग रहा था कि ये हत्याएं प्रौपर्टी को ले कर ही की गई हैं.

तीनों भाई खुद को बेकसूर बता रहे थे. एसआई आलोक कुमार राजन जिस समय साहिब सिंह के सामने तीनों भाइयों से पूछताछ कर रहे थे, उसी समय इंद्रलोक चौकी के प्रभारी राजीव कुमार सीसीटीवी कैमरे की एक फुटेज ले कर आ गए. वह फुटेज हरिकिशन के मकान के सामने स्थित एक ज्वैलर्स की दुकान के सामने लगे सीसीटीवी कैमरे की थी.

पुलिस को उस फुटेज से पता चला कि अरविंद रोजाना सुबह 9-10 बजे के बीच पिता के पास आता था और शाम 7, साढ़े सात बजे तक वहां रहता था. वह साढ़े 7 बजे के करीब मकान के मुख्य दरवाजे से बाहर निकलता दिखाई दिया था. पूछताछ में अरविंद ने बताया भी यही था.

उसी फुटेज में साढ़े 8 बजे के करीब एक युवक हरिकिशन के मकान के मुख्य दरवाजे से तेजी से निकलता दिखाई दिया. एचडी क्वालिटी के सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में वह युवक साफतौर पर घबराया हुआ दिख रहा था. उस के निकलने के कुछ देर बाद 2 लोग तेजी से उसी दरवाजे से निकले. वे दोनों हेलमेट लगाए हुए थे.

पुलिस ने वह फुटेज अरविंद को दिखाई तो उस ने उन लोगों को पहचान कर बताया कि हेलमेट लगा कर निकलने वाले उस के बड़े भाई अजीत और विजय हैं. उन से पहले जो युवक भागता हुआ निकला था, वह विजय का बेटा विकास है. अरविंद ने बताया कि विकास कभीकभी वहां आता था. घर से निकलते समय इतना घबराया हुआ क्यों था, यह बात उस की समझ में नहीं आई.

उस दिन अजीत और विजय घर के अंदर से हेलमेट लगा कर निकले थे, जबकि इस के पहले वे अपना हेलमेट हाथ में ले कर निकलते थे और स्कूटी पर बैठने के बाद हेलमेट लगाते थे. पुलिस ने वह फुटेज अजीत और विजय को दिखाई तो उन्होंने यह तो माना कि हेलमेट लगाए हुए वही घर से निकले थे, लेकिन उस दिन वे घर के अंदर से हेलमेट लगा कर क्यों निकले, इस बात का वे कोई उचित जवाब नहीं दे सके.

पूछताछ के लिए पुलिस विजय के बेटे विकास को थाने ले आई. विकास को अलग ले जा कर जब उस से इस दोहरे हत्याकांड के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने सारी सच्चाई पुलिस को बात दी. उस ने बताया कि उसी ने अपने पिता और चाचा के साथ मिल कर दादा और बूआ की हत्या की थी. बेटों द्वारा बाप और बहन के कत्ल की बात सुन कर पुलिस हैरान रह गई. क्योंकि एक बाप ने जिस तरह जीजान लगा कर अपने बेटों की परवरिश की थी, किसी लायक बनाया था, वही बेटे उन की जान ले लेंगे, ऐसा किसी ने सोचा भी नहीं था.

खैर, केस खुल चुका था. अजीत और विजय जो अब तक पिता और बहन की हत्या पर घडिय़ाली आंसू बहा रहे थे और खुद को बेकसूर बता रहे थे, उन की हकीकत सामने आ चुकी थी. पुलिस ने उन दोनों के सामने विकास से पूछताछ की. उस ने उन के सामने भी हत्या का खुलासा कर दिया. अब विजय और अजीत कैसे हत्या से मना कर सकते थे.

लिहाजा उन्होंने भी स्वीकार कर लिया कि इस डबल मर्डर को उन्होंने ही अंजाम दिया था. उन्होंने बताया कि पिता और बहन ने उन के सामने ऐसे हालात खड़े कर दिए थे कि उन की हत्या करने के अलावा उन के पास कोई दूसरा उपाय नहीं था.

विकास, विजय और अजीत से पूछताछ के बाद हरिकिशन और उन की बेटी राजबाला की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

हरिकिशन वर्मा मूलरूप से हरियाणा के जिला झज्जर के रहने वाले थे. सन 1950 के आसपास नौकरी की तलाश में वह दिल्ली आए तो सन 1953 में दिल्ली के एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में उन की नौकरी लग गई. इस के बाद वह अपनी पत्नी लक्ष्मी देवी को भी दिल्ली ले आए.

हरिकिशन की ड्यूटी गुलाबी बाग के स्कूल में थी, इसलिए उन्होंने वहीं नीमड़ी गांव में किराए का कमरा ले लिया. हंसीखुशी के साथ उन का समय बीत रहा था. वह एकएक कर 4 बेटों आजाद, अजीत, विजय, अरविंद और 4 बेटियों सावित्री, सरला, राजबाला और चंद्रकला के पिता बने.

हरिकिशन के पिता हरलाल गांव में रहते थे. वह हरिकिशन के लिए अनाज वगैरह भेजते रहते थे. घर से सहयोग मिलने की वजह से हरिकिशन को किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती थी.

उसी दौरान उन के पिता ने नीमड़ी गांव में उन के लिए 100 वर्ग गज का एक प्लौट खरीद दिया था. वह प्लौट गांव की मुख्य सडक़ के किनारे था. हरिकिशन उसी प्लौट में घर बनवा कर रहने लगे. उन्होंने अपने सभी बच्चों को पढ़ायालिखाया. बच्चे जैसेजैसे जवान होते गए, वह उन की शादियां करते गए. बड़े बेटे आजाद की युवावस्था में ही मौत हो गई थी. उस के बाद उन के 3 बेटे रह गए थे.

हरिकिशन ने उत्तरीपश्चिमी दिल्ली के सरस्वती विहार में एक 3 मंजिला मकान बना कर एकएक फ्लोर अपने तीनों बेटों को रहने के लिए दे दिया था, जिस में वे अपनेअपने परिवारों के साथ रहते थे. उन का नीमड़ी गांव में जो मकान था, उस में अजीत और विजय ने अलगअलग 2 दुकानें बना ली थीं, जिन में वे सोनेचांदी की ज्वैलरी का धंधा करते थे.

हर मांबाप के लिए उस समय एक बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है, जब उन की बेटी शादीशुदा होने के बावजूद अपने मायके में आ कर रहने लगती है. राजबाला की यही समस्या थी, जिस की वजह से हरिकिशन काफी परेशान रहते थे. हरिकिशन सन 1988 में नौकरी से रिटायर हो चुके थे.

दरअसल, उन्होंने राजबाला की शादी फरीदाबाद में कर दी थी. शादी के बाद हर औरत की ख्वाहिश मां बनने की होती है. शादी के कई सालों बाद भी जब वह मां नहीं बनी तो वह मानसिक तनाव में रहने लगी. क्योंकि ससुराल में सभी उसे ताने देने लगे थे. हालात यहां तक पहुंच गए कि पति ने उसे तलाक दे दिया.

तलाक के बाद राजबाला पिता के पास आ गई. जवान बेटी किस तरह अपनी जिंदगी काटेगी, इस बात की ङ्क्षचता हरिकिशन और उन की पत्नी लक्ष्मी देवी को परेशान करती थी. दोनों एक बार बेटी का घर फिर से बसाने की कोशिश की और दिल्ली में ही एक आदमी से उस की शादी कर दी.

बेटी का घर फिर से बस गया तो वे निश्चिंत हो गए. सभी बच्चे अपनीअपनी घरगृहस्थी में खुश थे, इसलिए उन्हें किसी भी तरह की कोई चिंता नहीं थी. लेकिन उन की यह निश्चिंतता ज्यादा दिनों तक कायम नहीं नहीं रह सकी. बेटी राजबाला की उन्होंने जो दूसरी शादी की थी, उस से भी उस की जिंदगी में खुशहाली नहीं आ सकी. वजह वही रही कि यहां भी राजबाला की कोख सूनी रही. वह मां नहीं बनी तो उस की गृहस्थी में फिर से जहर घुलना शुरू हो गया.

ससुराल के और लोगों की बात तो दूर, पति भी बातबात पर ताने देने लगा. रोजरोज की बेइज्जती से राजबाला ऊब गई तो एक दिन ससुराल से मायके आ गई. यह सन 2003 की बात है. इस के बाद वह न ससुराल गई और न ही उस का पति उसे बुलाने आया.

राजबाला ने इसे नियति का खेल मानते हुए हालातों से समझौता कर लिया और पिता के साथ ही रहने लगी. लक्ष्मी देवी राजबाला की बहुत चिंता करती थीं. इसी चिंता की वजह से वह बीमार रहने लगीं और एक दिन चल बसीं.

हरिकिशन वर्मा ने तीनों बेटों को सरस्वती विहार में एकएक फ्लैट दे रखा था. उन्हें अब बेटी राजबाला की चिंता थी. उन के न रहने पर बेटे राजबाला की देखभाल करेंगे या नहीं, इस बात पर उन्हें संशय था. इसलिए वह नीमड़ी गांव वाला मकान राजबाला को देना चाहते थे, जिस से भविष्य में उसे किसी का मोहताज न रहना पड़े.

नीमड़ी वाले मकान में 2 दुकानों और उन के पीछे वाले 2 कमरों पर विजय और अजीत का कब्जा था. मकान मुख्य बाजार में था, इस से काफी महंगा था. अजीत और विजय को जब पता चला कि उस के पिता यह मकान राजबाला के नाम करना चाहते हैं तो उन्होंने पिता से इस बात का विरोध किया.

हरिकिशन जिद्दी स्वभाव के थे ही. उन्होंने साफ कह दिया कि यह मकान उन का है, इसलिए वह इसे किसे देते हैं, यह उन की मरजी. पिता के इस दो टूक जवाब से दोनों भाइयों को लगा कि अगर उन्होंने मकान दूसरे के नाम कर दिया तो उन के हाथ से दुकानें निकल जाएंगी. तब वे सडक़ पर आ जाएंगे.

उन्होंने पिता की बात का जम कर विरोध किया और यहां तक कह दिया कि वे किसी भी हालत में यह घर किसी दूसरे के नाम नहीं करने देंगे. इसी बात को ले कर बापबेटों के बीच आए दिन झगड़ा होने लगा.

इस झगड़े से परिवार 2 हिस्सों में बंट गया. एक तरफ अजीत और विजय थे तो दूसरी तरफ हरिकिशन, उन की बेटी राजबाला और बेटा अरविंद. दोनों ही अपनीअपनी जिद पर अड़े थे. हरिकिशन ने भी ठान लिया था कि जो औलाद उन की बात नहीं मान रही, उसे वह अपनी जायदाद से फूटी कौड़ी नहीं देंगे.

उन्होंने दोनों बेटों से अपनी दुकानें खाली करने को कह दिया. लेकिन वे दुकानें खाली करने को तैयार नहीं थे. तब हरिकिशन ने दिल्ली उच्च न्यायालय की शरण ली. अजीत और विजय ने न्यायालय में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि चूंकि वे हरिकिशन वर्मा की जायज औलादें हैं, इसलिए इस पैतृक संपत्ति पर उन का भी अधिकार है.

जबकि हरिकिशन कहा था कि यह संपत्ति पैतृक नहीं है, इसे उन्होंने खुद खरीदी है. इसलिए इस संपत्ति पर वे अपना अधिकार नहीं जता सकते.

अदालत ने फैसला सुनाया कि जिन दुकानों का अजीत और विजय उपयोग कर रहे हैं, हर महीने वे डेढड़ेढ़ हजार रुपए किराए के रूप में हरिकिशन को दें. यह बात करीब 9 साल पहले की है. इसी आदेश पर दोनों भाई पिता को निर्धारित धनराशि देते रहे.

विजय और अजीत ने अपनी दुकानों के पीछे बने कमरों में चांदी के सिक्के बनाने की मशीनें लगवा ली थीं. बड़े ज्वैलर्स के और्डर पर वे चांदी के सिक्के बना कर पहुंचाते थे. इस से उन की आमदनी बढ़ गई थी. राजबाला और हरिकिशन दुकानों को खाली कराने के उपाय खोजते रहते थे. इसलिए दोनों भाई दुकानों के शटर में ताले हमेशा अंदर से लगाते थे.

अंदर से ताले लगा कर वे पीछे की गैलरी से होते हुए घर के मुख्य दरवाजे से निकलते थे. उसी समय राजबाला या हरिकिशन उन से किसी न किसी बात पर झगड़ा कर बैठते थे, जिस की शिकायत पुलिस कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर होती थी. तब पुलिस मौके पर पहुंच कर दोनों पक्षों को समझाबुझा कर शांत कराती थी.

जैसेजैसे हरिकिशन की उम्र बढ़ती जा रही थी और वह बीमार भी रहने लगे थे, इसलिए उन का छोटा बेटा अरविंद उन की देखभाल के लिए रोज सुबह उन के पास आ जाता था. दिन भर उन के पास रहता और शाम को सरस्वती विहार स्थित अपने घर चला जाता था. उस का रोज का यही क्रम था.

दिवाली या अन्य मौकों पर अजीत और विजय के पास चांदी के सिक्के बनाने के बड़े और्डर आते थे, जिन्हें पूरा करने के लिए वे रातदिन काम करते थे. इन के काम को प्रभावित करने के लिए राजबाला 100 नंबर पर फोन कर के शिकायत कर देती थी कि उस के भाई सिक्के बनाने में तेजाब का इस्तेमाल करते हैं, जिस की स्मैल से उस के बूढ़े पिता को सांस लेने में परेशानी होती है.

इस शिकायत पर पुलिस आ कर उन का काम रुकवा देती थी. काम रुकने पर विजय और अजीत का नुकसान होता. इस तरह के फोन राजबाला अकसर करती रहती रहती थी. आए दिन के इस तरह के झगड़े से दोनों भाई परेशान रहते थे.

एक दिन विजय के हाथ पिता के इसी मकान की एक परची हाथ लग गई. वह परची गांव वजीरपुर के प्रधान द्वारा लिखी गई थी. पहले जब लोग कोई प्लौट या मकान खरीदते थे, गांव में इसी तरह की परचियों पर लिखापढ़ी हो जाती थी.

हरिकिशन को भी प्लौट की इसी तरह की परची कटी थी. वह परची हरिकिशन के पिता हरलाल के नाम थी. लेकिन हरिकिशन ने उस परची पर कङ्क्षटग कर के अपना नाम लिख दिया था. विजय को इस परची से लगा कि नीमड़ी गांव वाला प्लौट उस के दादा हरलाल ने खरीदा था. यानी जिस प्लौट को हरिकिशन अपने द्वारा खरीदा बता रहे थे, वह उन के दादा का खरीदा था. जबकि दादा की संपत्ति परिवार के लोगों की मरजी के बिना किसी और को नहीं दी जा सकती थी.

उसी परची के आधार पर विजय ने तीसहजारी न्यायालय में इस्तगासा दाखिल कर प्लौट की उस परची पर कटिंग कर धोखाधड़ी करने वाले पिता हरिकिशन और भाई अरविंद के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने की अपील की थी.

तब तत्कालीन महानगर दंडाधिकारी ज्योति कलेर के आदेश पर उस परची की फोरैंसिक जांच हुई तो यह बात सिद्ध हो गई कि परची पर कटिंग कर के हरिकिशन का नाम बाद में लिखा गया था. इस के बाद कोर्ट के आदेश पर हरिकिशन और उन के छोटे बेटे अरविंद के खिलाफ सराय रोहिल्ला थाने में भादंवि की धारा 420/467/468/120 बी के तहत रिपोर्ट दर्ज हो गई थी.

इस केस में हरिकिशन की गिरफ्तारी हुई तो अरविंद ने अपनी अग्रिम जमानत ले ली थी. कोर्ट में केस चलने के बावजूद इन लोगों के बीच चल रहा झगड़ा बंद नहीं हुआ. छोटीछोटी बातों पर झगड़ा कर के पुलिस को फोन करना आए दिन की बात थी, इसीलिए थाने का हर पुलिसकर्मी इन्हें अच्छी तरह से जानता था. झगड़े से विजय और अजीत का धंधा चौपट हो रहा था. उन पर लोगों का कर्ज भी हो गया था.

शाम दोनों भाई इसी समस्या पर विचार कर रहे थे, तभी विजय का बेटा विकास आ गया. अपने पिता और चाचा की हालत देख कर वह भी परेशान हो गया. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि इस समस्या का समाधान कैसे निकला जाए.

अचानक विकास तैश में आ गया. उस ने कहा कि क्यों न इस समस्या की जड़ हरिकिशन और राजबाला को ही खत्म कर दिया जाए? उपाय अच्छा था. विजय और अजीत विकास की बात पर सहमत हो गए, लेकिन समस्या यह थी कि यह सब किया कैसे जाए.

विकास ने कहा, “यह बहुत आसान है. दादा और बूआ को गला दबा कर मार देते हैं. उस के बाद हम लोग निकल चलते हैं. यहां अरविंद चाचा भी आते हैं, वह दिन भर इन के पास रहते हैं. पुलिस जब पूछताछ करेगी तो हम अरविंद का नाम ले लेंगे. इस तरह एक तीर से 2 शिकार हो जाएंगे.

लालच में आ कर तीनों ने हरिकिशन और उस की बेटी राजबाला की हत्या करने की पूरी योजना बना डाली. शाम 7 बजे के बाद जब अरविंद वहां से चला गया तो 8 बजे के करीब उन्होंने अपनी दुकानों के शटर गिरा कर अंदर से ताले बंद किए. इस के बाद वे तीनों गैलरी से होते हुए उन कमरों की तरफ गए, जहां हरिकिशन और राजबाला रहते थे.

राजबाला उस समय कमरे में बैठी टीवी देख रही थी. विजय उस के कमरे में इस तरह घुसा कि राजबाला को उस के आने की भनक तक नहीं लगी. विजय ने उस के पास पहुंच कर पहले एक हाथ से मुंह दबोचा और दूसरे हाथ से उस का गला दबाने लगा.

राजबाला मजबूत जिस्म की थी. उस ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की. किसी तरह उस ने खुद छुड़ा भी लिया. वह कमरे से निकल कर बाहर के दरवाजे की ओर भागी तो विजय ने उसे पकड़ कर गिरा दिया और दोनों हाथों से गला घोंट दिया.

अजीत और विकास उस कमरे में गए, जिस में हरिकिशन सोते थे. हरिकिशन उस समय रजाई ओढ़े सो रहे थे. आते ही विकास ने हरिकिशन का मुंह वहां पड़ी धोती से दबाया तो हरिकिशन जाग गए. उन्होंने अपना बचाव करते हुए विकास को गाल पर एक चांटा मारा तो विकास की पकड़ ढीली पड़ गई. तभी अजीत ने विकास को हटा कर खुद पिता का मुंह और नाक हाथ से दबा दिया.

हरिकिशन तड़पने लगे तो विकास ने उन के पैर दबोच लिए. कुछ देर में उन का शरीर ढीला पड़ गया तो उन्होंने उन की लाश रजाई में लपेट दी. उन्हें उम्मीद थी कि मकान के मुकदमे से जुड़े कागजात घर में रखी सेफ में रखे होंगे, इसलिए वे चाबी तलाशने लगे.

राजबाला के कमरे में उन्हें एक बैग मिला, जिस में उन्हें अलमारी की चाबी मिल गई. वह चाबी विजय ने अपने पास रख ली. दोनों हत्याएं करने के बाद पहले विकास निकला. वह घबराया हुआ इधरउधर यह देख रहा था कि उसे घर से निकलते कोई देख तो नहीं रहा.

इस के कुछ देर बाद सिर पर हेलमेट लगा कर विजय और अजीत निकले. जाते समय वे दरवाजे को भिड़ा गए थे. तीनों ने यही सोचा था कि घर से निकलते हुए उन्हें किसी ने नहीं देखा, लेकिन उन के घर के सामने ज्वैलर्स की दुकान के बाहर उच्च क्वालिटी के लगे सीसीटीवी कैमरे ने देख लिया था, यह शायद उन्हें पता नहीं चला.

विकास मैट्रो से तो विजय और अजीत अपनी एक्टिवा से सरस्वती विहार स्थित अपने फ्लैटों पर चले गए थे. तीनों यही सोच रहे थे कि उन पर किसी को शक नहीं होगा. लेकिन उन की हकीकत कैमरे से सामने आ गई थी.

पुलिस ने विजय, अजीत और विकास से पूछताछ कर उन्हें तीस हजारी न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी अजय कुमार मलिक के समक्ष पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. पुलिस ने सेफ की चाबी व अन्य सबूत इकट्ठे कर उन्हें फिर से उन्हीं की अदालत में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों और अभियुक्तों से की गई बातचीत पर आधारित

किडनी को स्वस्थ रखने के लिए अपनाएं ये 10 टिप्स

किडनी या गुर्दा हमारे शरीर का एक प्रमुख अंग है. हमारे शरीर में दो गुर्दे होते हैं. इन गुर्दों का प्रथम कार्य रक्त में से विषाक्त पदार्थों को छानकर निकालना और रक्त को शुद्ध करने का है. दूसरा कार्य शरीर में विद्युत-अपघटक यानी इलेक्ट्रोलाइट्स के संतुलन को बनाये रखना है और तीसरा शरीर में प्रवाही और खासकर जल का संतुलन बनाये रखना है. साफ है कि शरीर में गुर्दों का बहुत ही अहम रोल होता है. स्वस्थ जीवन के लिए हमारे दिल और दिमाग के साथ-साथ किडनी का स्वस्थ रहना बेहद जरूरी है. इसमें जरा भी खराबी आने से कई अनेक रोग शरीर को जकड़ लेते हैं. आजकल लोगों की गलत जीवनशैली और आदतों की वजह से गुर्दे और उससे जुड़ी बीमारियां बहुत तेजी से बढ़ रही हैं. अल्कोहल का सेवन इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है.

गुर्दे खराब होने का सबसे पहला संकेत पेशाब के जरिए मिलता है. अगर आपको बार-बार थोड़ा-थोड़ा पेशाब आ रहा है, इसका रंग बदल गया है और साथ में जलन महसूस हो रही है तो इसका साफ मतलब है कि आपके गुर्दे ठीक से कार्य नहीं कर रहे हैं. गुर्दे खराब होने से शरीर का दूषित पानी पूरी तरीके से बाहर नहीं निकल पाता है और यह फेफड़ों में भरना शुरू हो जाता है, जिससे फेफड़ों को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती है और इन्सान को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है, साथ ही सीने में भारीपन व दर्द महसूस होता है.

जब आपके गुर्दे खराब होने शुरू होते हैं तो सबसे पहले मूत्रविसर्जन में ही बदलाव नजर आता है. धीरे-धीरे आपके हाथों-पैरों में सूजन दिखने लगती है. जल के संतुलन पर काबू कम होने से आंखों के नीचे पपोटे भी सूजे हुए महसूस होते हैं. सुबह सो कर उठने के बाद आपको अपनी आंखें सूजी-सूजी लगती हैं. कई बार कुछ घंटों में यह सूजन खत्म हो जाती है और कई बार यह सूजन दिन भर बनी रह सकती है. अगर समय रहते इन लक्षणों के आधार इलाज शुरू हो जाए तो बेहतर है, वरना जैसे-जैसे किडनी अपना काम करना बंद करती है, वैसे-वैसे शरीर के कई अन्य अंग भी काम करना बंद करने लगते हैं. समय से इलाज ही बचाव है, वरना एक बार किडनी काम करना बंद कर दे तो फिर कोई इलाज संभव नहीं होता है. ऐसे में डायलिसिस की मजबूरी पूरी जिन्दगी के लिए बन जाती है. यह एक मंहगा और मुश्किल इलाज है और हरेक के बस का भी नहीं है.

गौरतलब है कि हमारा शरीर एक किडनी के सहारे भी चल सकता है. कभी-कभी शरीर में एक किडनी खराब होने पर जल्दी पता नहीं चलता, क्योंकि शरीर के सारे जरूरी कार्य दूसरी किडनी संभाल लेती है. जब दोनों किडनियां काम करना बंद कर देती है, तभी हम इसे किडनी का फेल होना कहते हैं. इस हालत में किसी डोनर से उसकी एक किडनी लेकर डॉक्टर मरीज की एक किडनी बदल देते हैं.

गुर्दे की खराबी के शुरुआती लक्षण

अगर आपको सांस लेने में दिक्कत महसूस होने लगे तो यह गुर्दे की खराबी का संकेत हो सकता है. इसके अलावा पेशाब न आना या कम मात्रा में बार-बार आना भी गुर्दे की बीमारी इंगित करता है. पेशाब में जलन होती हो, पेशाब बदबूदार हो और उसमें झाग उठता हो, जिसके चलते आपको बार-बार फ्लश करना पड़े तो यह लक्षण गुर्दे की बीमारी का संकेत देते हैं. सीने में दर्द रहना, ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत होना, सोने में दिक्कत होना, थकान और कमजोरी महसूस होना, अचानक से बेहोशी की अवस्था में चले जाना, लगातार उल्टी होना, आलस्य आना, भूख का ना लगना या कम लगना, पेट या पीठ में दर्द होना भी गुर्दे की खराबी के शुरुआती लक्षण हैं. यदि आप इन लक्षणों के दिखने पर इनका सही से इलाज नहीं कराएंगे तो आगे चलकर यह गंभीर बीमारी में तब्दील हो सकते हैं. इसीलिए इनमें से कोई भी लक्षण दिखता है तो किडनी स्पेशलिस्ट से तुरंत कॉन्टेक्ट करें.

प्रारम्भिक चरण के गुर्दे की बीमारी के लक्षण इंगित करना मुश्किल हो सकता है. वे अक्सर सूक्ष्म और पहचान करने में कठिन होते हैं. लेकिन आप हाथों-पैरों और चेहरे पर सूजन देखें तो लापरवाही उचित नहीं है. सूजन होना एक प्रमुख लक्षण है, अगर अचानक ही चेहरे या हाथ-पैरों में सूजन आने लगे, पेशाब कम होने लगे तो ये किडनी के बीमारी के लक्षण हैं.

इसके अलावा अगर आपका मूत्र झागदार है. मूत्र में अत्यधिक बुलबुले – विशेष रूप से वे जो दूर जाने से पहले आपको कई बार फ्लश करने की आवश्यकता होती है – मूत्र में प्रोटीन को इंगित करते हैं. मूत्र में प्रोटीन एक प्रारंभिक संकेत है कि गुर्दे के फिल्टर क्षतिग्रस्त हो गये हैं, जिससे प्रोटीन मूत्र में लीक हो रहा है. आपकी आंखों के आस-पास सूजन का आना भी इस तथ्य के कारण होता है कि आपके गुर्दे शरीर में प्रोटीन रखने के बजाय मूत्र में बड़ी मात्रा में प्रोटीन का रिसाव कर रहे हैं.

किडनी खराब होने पर आप का ब्लड प्रेशर भी असंतुलित हो जाता है. कई बार यह बहुत बढ़ जाता है तो कई बार यह बहुत कम हो जाता है. किडनी फेल होने पर आप की पीठ में बहुत जोर से दर्द होता है. इस के आलावा हड्डियों तथा जोड़ों में भी दर्द की समस्या रहती है. सिरदर्द एक बहुत बड़ी समस्या बन जाता है. इन लक्षणों के दिखते ही इलाज शुरू कर दें. जब किडनी खराब होनी शुरू होती है तो इस का इलाज संभव है परन्तु एक बार किडनी फेल हो जाने पर आप को बहुत ज्यादा मुश्किल हो सकती है.

किडनी की बीमारी से बचने के उपाय

  1. रोजाना 8-10 गिलास पानी पीएं.
  2. फल और कच्ची सब्जियां ज्यादा खाएं.
  3. अंगूर खाएं क्योंकि ये किडनी से फालतू यूरिक एसिड निकालते हैं.
  4. मैग्नीशियम किडनी को सही काम करने में मदद करता है, इसलिए ज्यादा मैग्नीशियम वाली चीजें जैसे कि गहरे रंग की सब्जियां खाएं.
  5. खाने में नमक, सोडियम और प्रोटीन की मात्रा घटा दें.
  6. 35 साल के बाद साल में कम-से-कम एक बार ब्लड प्रेशर और शुगर की जांच जरूर कराएं.
  7. ब्लड प्रेशर या डायबीटीज के लक्षण मिलने पर हर छह महीने में पेशाब और खून की जांच कराएं.
  8. न्यूट्रिशन से भरपूर खाना, रेग्युलर एक्सरसाइज और वजन पर कंट्रोल रखने से भी किडनी की बीमारी की आशंका को काफी कम किया जा सकता है.

किडनी के मरीज खाने में रखें ख्याल

किसी शख्स की किडनी कितना फीसदी काम कर रही है, उसी के हिसाब से उसे खाना दिया जाए तो किडनी की आगे और खराब होने से रोका जा सकता है :

  1. प्रोटीन : 1 ग्राम प्रोटीन/किलो मरीज के वजन के हिसाब से लिया जा सकता है. नॉनवेज खानेवाले 1 अंडा, 30 ग्राम मछली, 30 ग्राम चिकन और वेज लोग 30 ग्राम पनीर, 1 कप दूध, 1/2 कप दही, 30 ग्राम दाल और 30 ग्राम टोफू रोजाना ले सकते हैं.
  2. कैलरी : दिन भर में 7-10 सर्विंग कार्बोहाइड्रेट्स की ले सकते हैं. 1 सर्विंग बराबर होती है – 1 स्लाइस ब्रेड, 1/2 कप चावल या 1/2 कप पास्ता.
  3. विटामिन : दिन भर में 2 फल और 1 कप सब्जी लें.
  4. सोडियम : एक दिन में 1/4 छोटे चम्मच से ज्यादा नमक न लें. अगर खाने में नमक कम लगे तो नीबू, इलाइची, तुलसी आदि का इस्तेमाल स्वाद बढ़ाने के लिए करें. पैकेटबंद चीजें जैसे कि सॉस, आचार, चीज, चिप्स, नमकीन आदि न लें.
  5. फौसफोरस : दूध, दूध से बनी चीजें, मछली, अंडा, मीट, बीन्स, नट्स आदि फॉसफोरस से भरपूर होते हैं इसलिए इन्हें सीमित मात्रा में ही लें. डॉक्टर फॉसफोरस बाइंडर्स देते हैं, जिन्हें लेना न भूलें.
  6. कैल्शियम : दूध, दही, पनीर, टोफू, फल और सब्जियां उचित मात्रा में लें. ज्यादा कैल्शियम किडनी में पथरी का कारण बन सकता है.
  7. पोटैशियम : फल, सब्जियां, दूध, दही, मछली, अंडा, मीट में पोटैशियम काफी होता है. इनकी ज्यादा मात्रा किडनी पर बुरा असर डालती है. इसके लिए केला, संतरा, पपीता, अनार, किशमिश, भिंडी, पालक, टमाटर, मटर न लें. सेब, अंगूर, अनन्नास, तरबूज, गोभी ,खीरा , मूली, गाजर ले सकते हैं.
  8. फैट : खाना बनाने के लिए वेजिटबल या औलिव औइल का ही इस्तेमाल करें. बटर, घी और तली-भुनी चीजें न लें. फुल क्रीम दूध की जगह स्किम्ड दूध ही लें.
  9. तरल चीजें : शुरू में जब किडनी थोड़ी ही खराब होती है तब सामान्य मात्रा में तरल चीजें ली जा सकती हैं, पर जब किडनी काम करना कम कर दे तो तरल चीजों की मात्रा का ध्यान रखें. सोडा, जूस, शराब आदि न लें. किडनी की हालत देखते हुए पूरे दिन में 5-7 कप तरल चीजें ले सकते हैं.
  10. सही समय पर उचित मात्रा में जितना खाएं, पौष्टिक खाएं.

नारीवाद: जननी के व्यक्तित्व और सोच में कैसा विरोधाभास था?

मैं पत्रकार हूं. मशहूर लोगों से भेंटवार्त्ता कर उन के बारे में लिखना मेरा पेशा है. जब भी हम मशहूर लोगों के इंटरव्यू लेने के लिए जाते हैं उस वक्त यदि उन के बीवीबच्चे साथ में हैं तो उन से भी बात कर के उन के बारे में लिखने से हमारी स्टोरी और भी दिलचस्प बन जाती है.

मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ. मैं मशहूर गायक मधुसूधन से भेंटवार्त्ता के लिए जिस समय उन के पास गया उस समय उन की पत्नी जननी भी वहां बैठ कर हम से घुलमिल कर बातें कर रही थीं. जननी से मैं ने कोई खास सवाल नहीं पूछा, बस, यही जो हर पत्रकार पूछता है, जैसे ‘मधुसूधन की पसंद का खाना और उन का पसंदीदा रंग क्या है? कौनकौन सी चीजें मधुसूधन को गुस्सा दिलाती हैं. गुस्से के दौरान आप क्या करती हैं?’ जननी ने हंस कर इन सवालों के जवाब दिए. जननी से बात करते वक्त न जाने क्यों मुझे ऐसा लगा कि बाहर से सीधीसादी दिखने वाली वह औरत कुछ ज्यादा ही चतुरचालाक है.

लिविंगरूम में मधुसूधन का गाते हुए पैंसिल से बना चित्र दीवार पर सजा था.

उस से आकर्षित हो कर मैं ने पूछा, ‘‘यह चित्र किसी फैन ने आप को तोहफे में दिया है क्या,’’ इस सवाल के जवाब में जननी ने मुसकराते हुए कहा, ‘हां.’

‘‘क्या मैं जान सकता हूं वह फैन कौन था,’’ मैं ने भी हंसते हुए पूछा. मधुसूधन एक अच्छे गायक होने के साथसाथ एक हैंडसम नौजवान भी हैं, इसलिए मैं ने जानबूझ कर यह सवाल किया.

‘‘वह फैन एक महिला थी. वह महिला कोई और नहीं, बल्कि मैं ही हूं,’’ यह कहते हुए जननी मुसकराईं.

‘‘अच्छा है,’’ मैं ने कहा और इस के जवाब में जननी बोलीं, ‘‘चित्र बनाना मेरी हौबी है?’’

‘‘अच्छा, मैं भी एक चित्रकार हूं,’’ मैं ने अपने बारे में बताया.

‘‘रियली, एक पत्रकार चित्रकार भी हो सकता है, यह मैं पहली बार सुन रही हूं,’’ जननी ने बड़ी उत्सुकता से कहा.

उस के बाद हम ने बहुत देर तक बातें कीं? जननी ने बातोंबातों में खुद के बारे में भी बताया और मेरे बारे में जानने की इच्छा भी प्रकट की? इसी कारण जननी मेरी खास दोस्त बन गईं.

जननी कई कलाओं में माहिर थीं. चित्रकार होने के साथ ही वे एक अच्छी गायिका भी थीं, लेकिन पति मधुसूधन की तरह संगीत में निपुण नहीं थीं. वे कई संगीत कार्यक्रमों में गा चुकी थीं. इस के अलावा अंगरेजी फर्राटे से बोलती थीं और हिंदी साहित्य का भी उन्हें अच्छा ज्ञान था. अंगरेजी साहित्य में एम. फिल कर के दिल्ली विश्वविद्यालय में पीएचडी करते समय मधुसूधन से उन की शादी तय हो गई. शादी के बाद भी जननी ने अपनी किसी पसंद को नहीं छोड़ा. अब वे अंगरेजी में कविताएं और कहानियां लिखती हैं.

उन के इतने सारे हुनर देख कर मुझ से रहा नहीं गया. ‘आप के पास इतनी सारी खूबियां हैं, आप उन्हें क्यों बाहर नहीं दिखाती हैं?’ अनजाने में ही सही, बातोंबातों में मैं ने उन से एक बार पूछा. जननी ने तुरंत जवाब नहीं दिया. दो पल के लिए वे चुप रहीं.

अपनेआप को संभालते हुए उन्होंने मुसकराहट के साथ कहा, ‘आप मुझ से यह  सवाल एक दोस्त की हैसियत से पूछ रहे हैं या पत्रकार की हैसियत से?’’

जननी के इस सवाल को सुन कर मैं अवाक रह गया क्योंकि उन का यह सवाल बिलकुल जायज था. अपनी भावनाओं को छिपा कर मैं ने उन से पूछा, ‘‘इन दोनों में कोई फर्क है क्या?’’

‘‘हां जी, बिलकुल,’’ जननी ने कहा.

‘‘आप ने इन दोनों के बीच ऐसा क्या फर्क देखा,’’ मैं ने सवाल पर सवाल किया.

‘‘आमतौर पर हमारे देश में अखबार और कहानियों से ऐसा प्रतीत होता है कि एक मर्द ही औरत को आगे नहीं बढ़ने देता. आप ने भी यह सोच कर कि मधु ही मेरे हुनर को दबा देते हैं, यह सवाल पूछ लिया होगा?’’

कुछ पलों के लिए मैं चुप था, क्योंकि मुझे भी लगा कि जननी सच ही कह रही हैं. फिर भी मैं ने कहा, ‘‘आप सच कहती हैं, जननी. मैं ने सुना था कि आप की पीएचडी आप की शादी की वजह से ही रुक गई, इसलिए मैं ने यह सवाल पूछा.’’

‘‘आप की बातों में कहीं न कहीं तो सचाई है. मेरी पढ़ाई आधे में रुक जाने का कारण मेरी शादी भी है, मगर वह एक मात्र कारण नहीं,’’ जननी का यह जवाब मुझे एक पहेली सा लगा.

‘‘मैं समझा नहीं,’’ मैं ने कहा.

‘‘जब मैं रिसर्च स्कौलर बनी थी, ठीक उसी वक्त मेरे पिताजी की तबीयत अचानक खराब हो गई. उन की इकलौती संतान होने के नाते उन के कारोबार को संभालने की जिम्मेदारी मेरी बन गई थी. सच कहें तो अपने पिताजी के व्यवसाय को चलातेचलाते न जाने कब मुझे उस में दिलचस्पी हो गई. और मैं अपनी पीएचडी को बिलकुल भूल गई. और अपने बिजनैस में तल्लीन हो गई. 2 वर्षों बाद जब मेरे पिताजी स्वस्थ हुए तो उन्होंने मेरी शादी तय कर दी,’’ जननी ने अपनी पढ़ाई छोड़ने का कारण बताया.

‘‘अच्छा, सच में?’’

जननी आगे कहने लगी, ‘‘और एक बात, मेरी शादी के समय मेरे पिताजी पूरी तरह स्वस्थ नहीं थे. मधु के घर वालों से यह साफ कह दिया कि जब तक मेरे पिताजी अपना कारोबार संभालने के लायक नहीं हो जाते तब तक मैं काम पर जाऊंगी और उन्होंने मुझे उस के लिए छूट दी.’’

मैं चुपचाप जननी की बातें सुनता रहा.

‘‘मेरी शादी के एक साल बाद मेरे पिता बिलकुल ठीक हो गए और उसी समय मैं मां बनने वाली थी. उस वक्त मेरा पूरा ध्यान गर्भ में पल रहे बच्चे और उस की परवरिश पर था. काम और बच्चा दोनों के बीच में किसी एक को चुनना मेरे लिए एक बड़ी चुनौती थी, लेकिन मैं ने अपने बच्चे को चुना.’’

‘‘मगर जननी, बच्चे के पालनपोषण की जिम्मेदारी आप अपनी सासूमां पर छोड़ सकती थीं न? अकसर कामकाजी औरतें ऐसा ही करती हैं. आप ही अकेली ऐसी स्त्री हैं, जिन्होंने अपने बच्चे की परवरिश के लिए अपने काम को छोड़ दिया.’’

जननी ने मुसकराते हुए अपना सिर हिलाया.

‘‘नहीं शंकर, यह सही नहीं है. जैसे आप कहते हैं उस तरह अगर मैं ने अपनी सासूमां से पूछ लिया होता तो वे भी मेरी बात मान कर मदद करतीं, हो सकता है मना भी कर देतीं. लेकिन खास बात यह थी कि हर औरत के लिए अपने बच्चे की परवरिश करना एक गरिमामयी बात है. आप मेरी इस बात से सहमत हैं न?’’ जननी ने मुझ से पूछा.

मैं ने सिर हिला कर सहमति दी.

‘‘एक मां के लिए अपनी बच्ची का कदमकदम पर साथ देना जरूरी है. मैं अपनी बेटी की हर एक हरकत को देखना चाहती थी. मेरी बेटी की पहली हंसी, उस की पहली बोली, इस तरह बच्चे से जुड़े हर एक विषय को मैं देखना चाहती थी. इस के अलावा मैं खुद अपनी बेटी को खाना खिलाना चाहती थी और उस की उंगली पकड़ कर उसे चलना सिखाना चाहती थी.

‘‘मेरे खयाल से हर मां की जिंदगी में ये बहुत ही अहम बातें हैं. मैं इन पलों को जीना चाहती थी. अपनी बच्ची की जिंदगी के हर एक लमहे में मैं उस के साथ रहना चाहती थी. यदि मैं काम पर चली जाती तो इन खूबसूरत पलों को खो देती.

‘‘काम कभी भी मिल सकता है, मगर मेरी बेटी पूजा की जिंदगी के वे पल कभी वापस नहीं आएंगे? मैं ने सोचा कि मेरे लिए क्या महत्त्वपूर्ण है-कारोबार, पीएचडी या बच्ची के साथ वक्त बिताना. मेरी अंदर की मां की ही जीत हुई और मैं ने सबकुछ छोड़ कर अपनी बच्ची के साथ रहने का निर्णय लिया और उस के लिए मैं बहुत खुश हूं,’’ जननी ने सफाई दी.

मगर मैं भी हार मानने वाला नहीं था. मैं ने उन से पूछा, ‘‘तो आप के मुताबिक अपने बच्चे को अपनी मां या सासूमां के पास छोड़ कर काम पर जाने वाली औरतें अपना फर्ज नहीं निभाती हैं?’’

मेरे इस सवाल के बदले में जननी मुसकराईं, ‘‘मैं बाकी औरतों के बारे में अपनी राय नहीं बताना चाहती हूं. यह तो हरेक औरत का निजी मामला है और हरेक का अपना अलग नजरिया होता है. यह मेरा फैसला था और मैं अपने फैसले से बहुत खुश हूं.’’

जननी की बातें सुन कर मैं सच में दंग रह गया, क्योंकि आजकल औरतों को अपने काम और बच्चे दोनों को संभालते हुए मैं ने देखा था और किसी ने भी जननी जैसा सोचा नहीं.

‘‘आप क्या सोच रहे हैं, वह मैं समझ सकती हूं, शंकर. अगले महीने से मैं एक जानेमाने अखबार में स्तंभ लिखने वाली हूं. लिखना भी मेरा पसंदीदा काम है. अब तो आप खुश हैं न, शंकर?’’ जननी ने हंसते हुए पूछा.

मैं ने भी हंस कर कहा, ‘‘जी, बिलकुल. आप जैसी हुनरमंद औरतों का घर में बैठना गलत है. आप की विनम्रता, आप की गहरी सोच, आप की राय, आप का फैसला लेने में दृढ़ संकल्प होना देख कर मैं हैरान भी होता हूं और सच कहूं तो मुझे थोड़ी सी ईर्ष्या भी हो रही है.’’

मेरी ये बातें सुन कर जननी ने हंस कर कहा, ‘‘तारीफ के लिए शुक्रिया.’’

मैं भी जननी के साथ उस वक्त हंस दिया मगर उस की खुद्दारी को देख कर हैरान रह गया था. जननी के बारे में जो बातें मैं ने सुनी थीं वे कुछ और थीं. जननी अपनी जिंदगी में बहुत सारी कुरबानियां दे चुकी थीं. पिता के गलत फैसले से नुकसान में चल रहे कारोबार को अपनी मेहनत से फिर से आगे बढ़ाया जननी ने. मां की बीमारी से एक लंबी लड़ाई लड़ कर अपने पिता की खातिर अपने प्यार की बलि चढ़ा कर मधुसूधन से शादी की और अपने पति के अभिमान के आगे झुक कर, अपनी ससुराल वालों के ताने सह कर भी अपने ससुराल का साथ देने वाली जननी सच में एक अजीब भारतीय नारी है. मेरे खयाल से यह भी एक तरह का नारीवाद ही है.

‘‘और हां, मधुसूधनजी, आप सोच रहे होंगे कि जननी के बारे में यह सब जानते हुए भी मैं ने क्यों उन से ऐसे सवाल पूछे. दरअसल, मैं भी एक पत्रकार हूं और आप जैसे मशहूर लोगों की सचाई सामने लाना मेरा पेशा है न?’’

अंत में एक बात कहना चाहता हूं, उस के बाद जननी को मैं ने नहीं देखा. इस संवाद के ठीक 2 वर्षों बाद मधुसूदन और जननी ने आपसी समझौते पर तलाक लेने का फैसला ले लिया.

अब और नहीं: क्या दीपमाला मन में दबी चिंगारी बुझा सकी?

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मैं नौकरी के सिलसिले में अमेरिका जाना चाहता हूं पर मेरी पत्नी मना कर रही है, मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं और मेरी पत्नी नोएडा की बड़ी इंटरनैशनल कंपनियों में नौकरी करते हैं. पत्नी प्रोडक्ट मैनेजर  की पोस्ट पर है और मैं प्रोडक्शन इंजीनियर की. हम दोनों की अब तक कोई संतान नहीं है. पत्नी की उम्र 32 वर्ष और मेरी 36 वर्ष. असल में हम दोनों ने अपना फर्टिलिटी टैस्ट कराया था जिस से पता चला कि मेरी पत्नी इंफर्टाइल है.

आईवीएफ, सैरोगेसी या बच्चा गोद लेने के विषय में सोचसमझकर आपसी सहमति से हम ने फैसला कर लिया था कि हमें बच्चा नहीं चाहिए. हम दोनों ही अगले महीने मेरी नौकरी के सिलसिले में 3 वर्षों के लिए अमेरिका के लिए निकलने वाले थे. लेकिन, हुआ यह कि मेरी पत्नी को एक सहेली के बच्चे को देख एक बार फिर खुद के बच्चे की इच्छा होने लगी है.

मैंने उसे बस इतना भर कहा था कि अगर हम अमेरिका नहीं गए तो मेरी नौकरी भी जा सकती है. उस ने मेरी बात का जाने कौन सा मतलब निकाला पर अमेरिका जाने से साफ इंकार कर दिया. अब मुझे समझ नहीं आ रहा कि किस पर फोकस करूं, हर महीने लाखों देने वाली नौकरी पर या अपनी बीवी पर.

जवाब

यह स्थिति सचमुच दुविधापूर्ण है. आप और आप की पत्नी इंफर्टिलिटी ट्रीटमैंट की सहायता ले सकते हैं लेकिन उस प्रोसैस में बहुत समय लगेगा. आप को अमेरिका के लिए इसी महीने निकलना है जोकि ट्रीटमैंट के चलते संभव नहीं हो पाएगा. आप यह कर सकते हैं कि अपनी पत्नी को उस के मातापिता या अपने मातापिता के पास छोड़ कर अमेरिका चले जाएं.

आप टैस्ट्स के लिए साथ जाएं, प्रोसैस शुरू कराएं. अपनी पत्नी को सम झाएं कि इंफर्टिलिटी ट्रीटमैंट में लाखों का खर्च आता है जिस के लिए आप दोनों में से किसी को तो अपनी नौकरी करते रहना ही होगा. हां, हो सके तो कोशिश करिए कि आप अपनी नौकरी भारत में रह कर ही जारी रख सकें. पैसे तो आप कहीं भी रह कर कमा सकते हैं. इस ट्रीटमैंट में आप की पत्नी को आप के साथ और सपोर्ट की बेहद जरूरत है. ठंडे दिमाग से सोच कर फैसला लीजिए.

ट्रायल पीरियड रिव्यू : मानव कौल व जेनेलिया देशमुख के बेहतरीन अभिनय के बावजूद कमजोर फिल्म

रेटिंग : पांच में से दो स्टार

निर्माता : ज्योति देशपांडे, हेमंत भंडारी, अमित रवींद्रनाथ शर्मा और अलेया सेन

कहानी : अलेया सेन

पटकथा : कुंवरशिव सिंह और अक्षत त्रिवेदी

निर्देशक : अलेया सेन

कलाकार : जेनेलिया देशमुख, मानव कौल, गजराज राव, शक्ति कपूर, शीबा चड्ढा, स्वरूपा घोष, बरुण चंदा और जिदान ब्राज

अवधि : 2 घंटे, 5 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्म : जियो सिनेमा

कई एड फिल्मों, कुछ म्यूजिक वीडियो का निर्देशन करने के बाद आलिया सेन ने वर्ष 2018 में फीचर फिल्म ‘‘दिलजंगली’ का निर्देशन किया था. अब पूरे 5 वर्ष बाद वह बतौर निर्देशक फिल्म ‘ट्रायल पीरियड’ ले कर आई हैं, जिसे 21 जुलाई, 2023 से ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘जियो सिनेमा’’ पर मुफ्त में देखा जा सकता है.

फिल्म ‘ट्रायल पीरियड’ की कहानी एक सिंगल मदर की तकलीफों के साथ ही ‘ट्रायल’ पर नए पापा को लाने की है. यह फिल्म इस बात को रेखांकित करती है कि खून के रिश्तों से भी ज्यादा अहमियत भावनात्मक रिश्तों की होती है.

कहानी

कहानी के केंद्र में सिंगल मदर अनामया राय चौधरी उर्फ ऐना (जेनेलिया देशमुख) और उन का 6 साल का बेटा रोमी (जिदान ब्राज) है. कामकाजी ऐना और उन बेटे का जीवन सामान्य रूप से चल रहा है. लेकिन चीजें तब बदलती हैं, जब रोमी की जिद के चलते ऐना को उस के लिए 30 दिन के ट्रायल पर ‘नए पापा’ लाना पड़ता है. लेकिन रोमी को अपने पिता की याद तब आती है, जब उस के सहपाठी उसे परेशान करते हैं.

मंच पर रोमी को अपने पिता के बारे में कुछ कहने के लिए कहा जाता है, क्योंकि वह कुछ भी कहने में असमर्थ होता है. रोमी टूट जाता है और बाद में पिता की मांग करता है.

रोमी अकसर अपने पड़ोस में मामाजी (शक्ति कपूर) और मामी (शीबा चड्ढा) के घर जाता है, जिन्हें ट्रायल के आधार पर सामान औनलाइन और्डर करते देखता है. लेकिन उस 6 साल के बच्चे के दिमाग में ट्रायल पीरियड पर औनलाइन और्डर और इनसानों के बीच अंतर समझना थोड़ा मुश्किल था. उधर प्रजापति द्विवेदी यानी पीडी (मानव कौल) उज्जैन में एक शिक्षक हैं. नौकरी छूट जाने के बाद वह अपना बोरियाबिस्तर बांध कर अपने फूफा श्रीवास्तव (गजराज राव) के पास दिल्ली आते हैं, जो कि लोगों को नौकरी दिलाने की एजेंसी चलाते हैं.

काफी जद्दोजेहद के बाद रोमी के मामा अपने मित्र श्रीवास्तव से मिल कर अपनी समस्या बताते हैं, तो श्रीवास्तव अपने भतीजे प्रजापति द्विवेदी उर्फ पीडी (मानव कौल) को समझा कर ऐना के घर 30 दिन के लिए रोमा के ‘नए पापा’ बना कर भेज देते हैं. यहीं से शुरू होती है चुनौती.

वास्तव में ऐना पीडी के सामने शर्त रखती है कि रोमी के साथ उसे ऐसे पेश आना है, ताकि उसे पिता शब्द से नफरत हो जाए.

न चाहते हुए भी अपने फूफा के दबाव में पीडी ऐना के बेटे रोमी के ‘ट्रायल पापा’ बन जाते हैं. मगर रोमी की मां ऐना और पीडी के बीच एक अलग तरह का युद्ध जारी रहता है. पीडी रोमी के अंदर के डर को खत्म कर उस के अंदर ताकत का संचार करते हैं.

लेखन व निर्देशन

फिल्मकार ने नेक इरादे से फिल्म बनाई है, मगर विषय की गंभीर समझ न होने के चलते वह मात खा गई. फिल्मकार ने पारिवारिक मूल्यों के साथ ही रिश्तों को सुचारु रूप से चित्रित किया है. कामकाजी मां और सिंगल मदर की अपनी तकलीफों पर वह ठीक से रोशनी नहीं डाल पाई. इतना ही नहीं, सिंगल मदर ऐना व उन के बेटे रोमी के बीच भावनात्मक रिश्तों को भी ठीक से चित्रित नहीं किया गया.

इस तरह के विषय पर काफी बेहतरीन व रोचक फिल्म बन सकती थी, पर अलेया सेन मात खा गईं. जब दो अजनबी विचित्र परिस्थितियों में मिलते हैं और एक बंधन बनाते हैं, तब कहानी सपाट कैसे चल सकती है?

उन्होनें एक ही दिशा में चलने वाली सपाट कहानी पेश की है. इस तरह के रिश्तों की जटिलता का भी वह चित्रण ठीक से नहीं कर पाईं. फिल्म में भावनात्मक उतारचढ़ाव की काफी कमी है. पीडी रोमी के पिता बन कर स्कूल में उस का जीवन बदलना शुरू कर देते हैं. वह छोटे लड़के को अपने डर पर काबू पाने में मदद करते हैं और एक दिन वह वही ताकत उस की मां के अंदर भी पैदा करते हैं. पर ऐना व पीडी के रिश्तों पर लेखक ने न के बराबर काम किया है.
जिस तरह से महज दो दृश्यों से दोनों के बीच प्यार के पनपने का चित्रण है, वह बड़ा अजीब सा लगता है.

रोमी के नानानानी के आने के बाद कहानी में जिस नाटकीयता की उम्मीद जगती है, वह उतनी ही जल्दी खत्म हो जाती है. फिल्म के एडीटर इस फिल्म की कमजोर कड़ी हैं. कई दृश्यों में दोहराव नजर आता है.

अभिनय

रितेश देशमुख के साथ विवाह रचाने के बाद जेनेलिया देशमुख कुछ मराठी फिल्मों में अभिनय करती नजर आईं. हिंदी फिल्मों में लंबे समय के बाद उन्होंने वापसी की है. सिंगल मदर के साथ ही दूसरे जीवनसाथी की तलाश न करने वाली मूलतः बंगाली ऐना के किरदार में वह अपनी छाप छोड़ने में सफल रही हैं.

वर्ष 2003 से अब तक कई सीरियलों और फिल्मों में अभिनय करते हुए मानव कौल ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है. अब इस फिल्म में छोटे शहर उज्जैन के रहने वाले और पारिवारिक मूल्यों पर गर्व करने वाले पीडी के किरदार में मानव कौल के अभिनय का कोई सानी नहीं है. उन के अभिनय की तारीफ करने के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं. मानव ने अपने किरदार में हर एक इमोशन को बखूबी ढाला है.

रोमी यानी जिदान ब्राज की मासूमियत दिल को छू जाती है. शक्ति कपूर, शीबा चड्ढा, गजराज राव और अन्य सभी कलाकारों ने ठीकठाक अभिनय किया है.

क्या ‘द कश्मीर फाइल्स’ के बाद ‘मणिपुर फाइल्स’ बनाएंगे Vivek Agnihotri ?

Vivek Agnihotri Tweet : पिछले दो महीनों से मणिपुर में हिंसा चल रही है. यहां कुकी और मेतई समुदाय के बीच जन-जातीय दर्जा को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जिसमें 100 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है, तो वहीं 50 हजार से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. हालांकि इस बीच सोशल मीडिया पर दरिंदगी का एक भयानक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें दिख रहा है कि भीड़ में मौजूद वाहियात दरिंदे निर्वस्त्र अवस्था में दो रोती बिलखती, असहाय महिलाओं की परेड करवा रहे हैं और कथित रूप से उनका बलात्कार भी किया गया था. यहीं नहीं भीड़ (manipur incident) में शामिल पुरुष उनके साथ अमानवीय व्यवहार भी कर रहे हैं. इसको लेकर सोशल मीडिया पर लोग अपना गुस्सा जाहिर कर रहे हैं.

वहीं जब इस जघन्य अपराध पर फिल्म बनाने को लेकर निर्माता विवेक अग्निहोत्री (Vivek Agnihotri) से सवाल किया गया तो उन्होंने क्या कहा? आइए जानते हैं.

यूजर ने की ‘मणिपुर फाइल्स’ बनाने की मांग

बीते दिन ट्विटर पर एक यूजर ने विवेक अग्निहोत्री की एक पोस्ट पर रिएक्ट करते हुए उनसे सवाल किया. यूजर ने लिखा, ‘समय बर्बाद मत करो, जाओ और एक फिल्म ‘मणिपुर फाइल्स’ बनाओ अगर तुम्हारे अंदर वाकई सच में कुछ करने की ताकत है.” इस ट्वीट का जवाब देते हुए विवेक (Vivek Agnihotri Tweet) ने लिखा, ‘शुक्रिया कि आपने मुझे पर यह विश्वास जताया, पर सारी फिल्में मुझसे ही बनवाओगे क्या यार. तुम्हारी ‘इंडिया टीम’ में कोई फिल्ममेकर नहीं है क्या.’

ओटीटी पर रिलीज होगी ‘द कश्मीर फाइल्स अनरिपोर्टेड’

आपको बता दें कि निर्माता विवेक अग्निहोत्री (Vivek Agnihotri Tweet) ने कश्मीर में हुए नरसंहार को लेकर फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ बनाई थी, जिसे लोगों से खूब सरहाना मिली थी. हालांकि अब वो ‘द कश्मीर फाइल्स’ को नया रूप देकर वेब सीरीज की शक्ल में तैयार कर रहे हैं, जो ओटीटी पर रिलीज होगी. इसका नाम ‘द कश्मीर फाइल्स अनरिपोर्टेड’ रखा गया है, जिसका ट्रेलर शुक्रवार को जारी किया जा चुका है.

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