भारत देश के लिए 23 अगस्त, 2023 का दिन इतिहास में दर्ज हो गया जब चंद्रयान-3 ने सौफ्ट लैंडिंग कर साउथ पोल चंद्रमा पर अपने कदम रखते हुए तिरंगा झंडा लहराने लगा. संपूर्ण देश में खुशियों का जो सैलाब उठा वह स्वाभाविक था. देश के लिए यह बहुत ही गर्व की बात थी. मगर एक प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र दामोदरदास मोदी को जो एक समयकाल मिला है उस में नरेंद्र मोदी जिस तरह अपनेआप को, अपने चेहरे को, अपने नाम को प्रोजैक्ट करते हैं वह रेखांकित करने योग्य है.

हितोपदेश में भी माना गया है कि हमें अपना काम, अपनी छवि इस तरह प्रस्तुत करनी चाहिए कि कोई भी उंगली न उठा सके. मगर चंद्रयान 3 की सफलता के बाद जिस तरह नरेंद्र दामोदरदास मोदी का प्रचारतंत्र अपना काम करने लगा और यह बताने लगा कि किस तरह नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में वैज्ञानिकों को काम करने के लिए यह यह सुविधा दी गई और अगर नरेंद्र मोदी ऐसा नहीं करते तो आज यह ऐतिहासिक दिन देश नहीं देख पाता.

दरअसल, यह भावना देशप्रेम, देशभक्ति तो नहीं कहा जा सकता. प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति जैसे पदों पर बैठे हुए व्यक्तियों को संयम से काम लेने की आवश्यकता होती है. आप को देश ने सम्मान दिया है। चुन कर कुरसी पर बैठाया है इस से अधिक आप को और क्या चाहिए. नरेंद्र मोदी के संदर्भ में यह और भी ज्यादा प्रासंगिक है.

मोदी... मोदी... मोदी...

चंद्रयान के चांद पर पहुंचने की खबर देश ही नहीं दुनियाभर के सभी अखबारों में प्रमुखता से प्रकाशित हुई है। यह संपूर्ण मानवता के लिए एक ऐसा समय था जिसे हरकोई अपनेअपने तरीके से कैद कर लेना चाहता था। मगर जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चांद पर चंद्रयान के पहुंचने के पहले ही स्वयं को प्रदर्शित करने का काम किया है वह आलोचना का विषय बन गया. भारत से प्रकाशित एक मात्र द टेलीग्राफ ने इसे बखूबी लक्ष्य कियाऔर लिखा,'इसरो के यूट्यूब चैनल पर चंद्रयान को चांद पर पहुंचने से पहले दिखाया और बताया गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी भी देख रहे हैं. इस के बाद चंद्रयान उतरा और बैंगलुरु के नियंत्रणकक्ष में तालियां बजने लगीं.'

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