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न करें हनीमून पर ये मिसटेक्स

शादी तय होते ही विवेक हनीमून की कल्पना की ऊंची उड़ान भरने लगा. मन ही मन कई तरह के प्लान बनाने लगा. वह दिन भी आ गया जब वह अपनी पत्नी को ले कर हनीमून के लिए चला गया. मगर दोनों जल्द ही घर लौट आए. ऐसी क्या बात हुई कि दोनों अपने बनाए प्रोग्राम के पहले ही घर लौट आए? असल में हनीमून के दौरान विवेक से कुछ मिसटेक हो गई, जिस की वजह से हनीमून का मजा ही खराब हो गया. शादी तय होते ही लोग हनीमून के सपने देखने लगते हैं, लेकिन हनीमून के दौरान वे कुछ मिसटेक्स कर देते हैं, जिन की वजह से हनीमून का भरपूर मजा नहीं ले पाते हैं. हनीमून के दौरान कुछ जरूरी बातों पर ध्यान रख कर गलतियों से बच सकते हैं. मसलन:

  • कहां जाना है मिल कर करें फैसला: हनीमून पर दो जनों को जाना होता है. इसलिए इस का फैसला एक जना न करे, कहीं ऐसा न हो आप जिस जगह पर हनीमून के लिए गए हैं, वह जगह आप के पार्टनर को पसंद न हो. मौसम के अनुसार आरामदायक, खुशनुमा व सुकून वाली जगह चुनें.
  • पहले बजट बनाएं: हनीमून पर जाने से पहले बजट बना लें ताकि बाद में आप को परेशानी का सामना न करना पड़े, दिखावे के चक्कर में विदेश जाने या हाईफाई जगह रुकने का प्लान न बनाएं. अपनी हैसियत से अधिक बजट आप के हनीमून में बाधा डाल सकता है. अपने बजट में बनाया गया हनीमून टूअर ही हनीमून का सही आनंद देगा.
  • ऐडवैंचर टूअर न बनाएं: अपने हनीमून टूअर को ऐडवैंचर टूअर न बनाएं. कई जोड़े अपने हनीमून टूअर को ऐडवैंचर टूअर बना लेते हैं. वे स्वयं को इतना थका लेते हैं कि बिस्तर पर जाते ही नींद के आगोश में चले जाते हैं, जिस से हनीमून का सारा मजा किरकिरा हो जाता है.
  • फालतू बातें न करें: घूमते वक्त फालतू बातें न करें. कहीं किसी गार्डन या शांत जगह बैठ कर रोमांटिक बातें करें या आंखोंआंखों में बातें करें.
  • दूसरे कपल्स को न घूरें: देखा गया है कि अनेक लड़के हनीमून टूअर पर दूसरे कपल्स को खासकर लड़कियों को घूरते नजर आते हैं. असल में लड़कों की फितरत होती है लड़कियों पर नजर डालने की, लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि वे बैचलर लाइफ से मैरिज लाइफ में ऐंट्री कर चुके हैं. ऐसे में जीवनसंगिनी को आप की यह आदत खटक सकती है.
  • मोबाइल रखें बंद: आजकल अधिकतर लोग मोबाइल कौल, नैट या गेम पर बिजी रहते हैं. मोबाइल पर बिजी होने पर एकदूसरे पर से ध्यान हट जाता है. हनीमून के दौरान मोबाइल को पूरी तरह बंद रखें. जब घर वालों से बात करनी हो उस वक्त थोड़े समय के लिए चालू कर लें.
  • शूट न करें: कुछ जोड़े इतने ऐक्साइट रहते हैं कि अपनी फर्स्ट नाइट के क्रियाकलापों को शूट कर लेते हैं. रोमांच के इन पलों को शूट करना अच्छी बात नहीं है. पिछले दिनों इंदौर का एक जोड़ा मुंबई हनीमून के लिए गया था. उन्होंने अपनी फर्स्ट नाइट की लाइव शूटिंग करनी शुरू की. उन का फोन औटो मोड पर था. ऐसे में उन की पूरी शूटिंग औनलाइन हो गई. उन के जितने फ्रैंड्स औनलाइन थे, उन्होंने इस का मजा लिया. किसी समझदार दोस्त ने उन्हें फोन कर के इस बारे में जानकारी दी तो दोनों शर्म से पानीपानी हो गए.
  • टीवी बंद रखें: मोबाइल के बाद ज्यादातर लोगों को टीवी देखने का शौक होता है. हनीमून के दौरान टीवी देख कर अपने रोमांटिक पलों को कम न करें. कमरे में आने के बाद सब से पहले रिमोट कहीं छिपा दें ताकि दूसरे को टीवी चलाने का मौका न मिले.
  • लाइट म्यूजिक सुनें: रोमांटिक होने के लिए गाना सुनना तो ठीक है पर उन हसीन पलों में गाना सुनना ठीक नहीं है. ऐसे मौके पर गाने सुनने से ध्यान बंट जाता है और सैक्स का मजा खराब हो जाता है. उस दौरान मदहोश कर देने वाला लाइट म्यूजिक ठीक रहेगा.
  • सैक्स में ही न डूबे रहें: हनीमून की मस्ती में डूबे रहना तो अच्छी बात है पर हर वक्त सैक्स में डूबे रहना अच्छी बात नहीं है शादी के बाद सैक्स ऐंजौय का साधन जरूर है, पर इस के लिए सारी जिंदगी भी तो पड़ी है, मजा लें पर लिमिट में. तब इस का आनंद कुछ और ही होगा.
  • पास्ट में न झांकें: विवेक और प्रतिमा हनीमून पर गए थे. रोमांच और मौजमस्ती के दौरान विवेक अपनी पत्नी के पास्ट में झांकने की कोशिश करने लगा. उस ने प्रतिमा से पूछा उस के कितने बौयफ्रैंड हैं? उन के साथ कभी बैड भी शेयर किया क्या? विवेक की बातें सुन कर उस के दिल को बड़ा धक्का लगा. उस का सारा उत्साह रफूचक्कर हो गया. विवेक ने जब महसूस किया कि प्रतिभा उस की बात का बुरा मान गई है तब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ. उस ने प्रतिभा से माफी मांगते हुए कहा कि यह सब तो उस ने मजाक में कहा था. लेकिन प्रतिभा के दिल को गहरी चोट लगी थी. वर्षों गुजर जाने के बाद भी वह इस बात को भुला नहीं पाई. इसलिए ऐसी बातें जीवनसाथी से न करें, जिन से लाइफ टाइम आप को पछताना पड़े.
  • जल्दबाजी न करें: बैड पर सैक्स ऐक्ट के समय जल्दबाजी में न रहें. आप ने सुना होगा, जल्दबाजी का काम शैतान का होता है. फिर आप शैतान का काम क्यों करना चाहेंगे? बडे़ इत्मीनान से सैक्स का भरपूर आनंद लें.
  • सहज रहें: इस बात से न डरें कि आगे कुछ गड़बड़ न हो जाए. डर और घबराहट की वजह से किसी प्रकार की प्रौब्लम हो सकती है. अत: बिलकुल सहज रहें. कई लड़कियां अपनेआप को शर्मीली या एकदम से बिंदास दिखाने की कोशिश करती हैं. ये दोनों ही बातें ठीक नहीं हैं. आप जीवनसाथी के सामने वैसे ही रहने की कोशिश करें जैसी आप हैं.
  • नखरे न करें: सैक्स के वक्त पति के सामने ज्यादा नखरे दिखाने की कोशिश करना ठीक नहीं है. इस से पति नाराज हो सकता है. शरमाना, इठलाना, नखरे दिखाना स्त्री के गुण हो सकते हैं, पर ऐन मौके पर नखरे दिखाने पर पति का मूड बिगड़ सकता है. अत: ऐसे मौके पर पति को भरपूर सहयोग दें.
  • ऐक्सपैरिमैंट न करें: हनीमून के दौरान सैक्स संबंध को ले कर ज्यादा ऐक्सपैरिमैंट न करें. कुछ लोग दोस्तों द्वारा बताए गए टिप्स, सस्ती किताबों या वैबसाइट पर दी गई ऊलजलूल टिप्स आजमाने लगते हैं. उन बेतुके टिप्स की वजह से जीवनसाथी को परेशानी हो सकती है. जबलपुर के एक होटल में हनीमून के दौरान एक युवक अपनी नवविवाहिता को दोनों पैरों से बांध कर उलटा लटका कर सैक्स करने की कोशिश करने लगा. किसी दोस्त ने उसे बताया था कि इस तरह से पहली बार सैक्स करने पर मजा कुछ और ही आता है. इस लटकी नवविवाहिता की सांस ऊपरनीचे होने लगी. वह तो अच्छा हुआ, युवक ने नवविवाहिता की हालत देख कर जल्दी उतार दिया. इतने में नवविवाहिता बेहोश हो गई. उस ने जल्दी से डाक्टर बुला कर सारी बात सहीसही बता दी. डाक्टर ने चैक कर के बताया, दिमाग में रक्तसंचार बढ़ जाने से वह बेहोश हो गई है. थोड़ी देर और लटकी रहती तो उस की जान भी जा सकती थी.
  • अच्छी तरह देख  लें: होटल कितना ही महंगा क्यों न हो, पूरे कमरे को अच्छी तरह जरूर चैक कर लें. बाथरूम, बैडरूम, आलमारी, ट्यब लाइट, स्विचबोर्ड, पंखा आदि जगहों को चैक करें. चेक करने का आसान उपाय है कि इन के पास मोबाइल ले जाएं. यदि कहीं कैमरा लगा होगा तो मोबाइल का नैटवर्क गायब हो जाएगा. कैमरा लगा होने का पता करने के लिए दूसरा उपाय है उस रूम की सारी लाइटें बंद कर दें. फिर अपने स्मार्ट फोन का कैमरा औन करें. लेकिन फ्लैश औफ कर दें. फिर कैमरे में देखें कि कोई लाल रंग के डौट्स तो नहीं दिख रहे हैं. दिखें तो समझ जाएं कि हिडन कैमरा लगा है. इस बात का ध्यान रखें, हनीमून के लिए किसी अच्छे होटल का ही चुनाव करें. कम रेट वाले होटलों में स्पाई कैमरे लगे रहने के चांस अधिक होते हैं, क्योंकि यहां काम करने वाले कर्मचारियों को वेतन कम मिलता है. ऐसे में वे अलग से कुछ कमाने के चक्कर में ऐसी हरकतें कर सकते हैं.
  • औफिस की चिंता: हनीमून के दिनों में आप अपना औफिस साथ न ले जाएं. ऐसे में पूरा ध्यान नईनवेली दुलहन के बजाय औफिस या अपने बिजनैस पर रहता है. ऐसे में हनीमून का सारा मजा खराब हो जाता है. फोन अटैंड करना, मेल चैक करना, फोन कर के कर्मचारियों को निर्देश देना जैसी बातें आप की पार्टनर को डिस्टर्ब करती हैं. हनीमून के दौरान सारी बातें भूल कर अपना फोकस जीवनसाथी पर करें.

वही परंपराएं, भाग 1 : 50 साल बाद जवान की जिंदगी में क्या आया बदलाव ?

मैं 50 वर्षों बाद पटियाला आया हूं. भाषा विभाग, पंजाब यदि मेरे कहानी संग्रह को सुदर्शन पुरस्कार से न नवाजता तो मैं इस शहर में शायद न आ पाता. पर कहते हैं, जहाज का पंछी जब एक बार जहाज छोड़ कर जाता है तो अपने जीवनकाल में एक बार फिर जहाज पर आता है. मेरी स्थिति भी वैसी ही थी. इतने वर्षों बाद इस शहर में आना मुझे रोमांचित कर रहा था.

पुरस्कार समारोह 2 बजे ही समाप्त हो गया था. मैं उन स्थानों को देखना चाहता था जो मेरे मानस पटल पर सदा छाए रहे. 65 की लड़ाई के बाद हमारी यूनिट यहीं आ गई थी. यह मेरी पहली यूनिट थी. मैं मैट्रिक पास कर के 15-16 साल की आयु के बाद सेना में भरती हुआ था. मैं ने यहीं से अपनी आगे की पढ़ाई शुरू की थी. यहीं के न्यू एरा कालेज में सांध्य कक्षाओं में पढ़ा करता था. मेरे उस समय के कमांडिंग अफसर मेजर पी एम मेनन ने इस की इजाजत दे दी थी.

मैं ने सेना में रहते एमए हिंदी पास कर लिया था. मैं वह कालेज देखना चाहता था. बाहर निकल कर इसी सड़क पर वह कालेज होना चाहिए. मैं ने ड्राइवर से उसी सड़क पर चलने के लिए कहा. थोड़ी दूर चलने पर मुझे कालेज की बिल्ंिडग दिखाई दे गई. मैं ने कार को एक तरफ पार्क करने को कहा. नीचे उतरा और कालेज को ध्यान से देखा. पहले बिल्ंिडग पुरानी थी. अब उस को नया लुक दे दिया गया था. खुशी हुई, कालेज ने काफी तरक्की कर ली है.

मैं जल्दी से कालेज की सीढि़यां चढ़ गया. जहां हमारी कक्षाएं लगा करती थीं, वहां पर अब पिं्रसिपल का औफिस बन गया था. पिं्रसिपल के कमरे में एक सुंदर महिला ने मेरा स्वागत किया. मैं ने उन को अपने बारे में बताया कि किस प्रकार 50 वर्षों बाद मैं यहां आया हूं. जान कर उन्होंने खुशी जाहिर की. मैं ने उस समय के पिं्रसिपल पाठक साहब के बारे में पूछा. उन्होंने कहा, वे उन के पिता थे. पाठक साहब अब नहीं रहे. यह जान कर दुख हुआ. वे बहुत अच्छे शिक्षक थे. परीक्षाओं के दिनों में वे बहुत मेहनत करते और करवाते थे. उन महिला ने चाय औफर की. पाठक साहब की मौत के बारे में सुन कर चाय पीने का मन नहीं किया. कालेज की तरक्की की शुभकामनाएं दे कर मैं नीचे आ गया.

ड्राइवर से कार को मालरोड पर ले जाने के लिए कहा. उसी रोड पर आगे चल कर राजिंद्रा अस्पताल आता है. मालरोड पर काफी भीड़ हो गई है, वरना दिन में अकसर यह रोड खाली रहती थी. राजिंद्रा अस्पताल के सामने कार रुकी. मैं नीचे उतरा. अस्पताल के सामने डाक्टरी करने वाले लड़कों का होस्टल है. इतने वर्षों में वह भी काफी पुराना हो गया है.

मेरी मौसीजी के लड़के ने यहीं से डाक्टरी की थी जो बाद में डीजी मैडिकल, सीआरपीएफ से सेवानिवृत्त हुए. परीक्षा के दिनों में मैं उन के कमरे में आ कर रहा करता था. शाम को लड़के मैस में खाना न खा कर, होस्टल के गेट के सामने बने ढाबे से हलकाफुलका खाना खाया करते थे.

रात को नींद न आए और परीक्षा की तैयारी कर सकूं, इसलिए मैं भी केवल ब्रैडआमलेट खा लेता था. ढाबे का मालिक एक युवा सरदार था, गुरनाम सिंह. उस से अच्छी जानपहचान हो गई थी. परीक्षा के दिनों में वह कभी मुझ से पैसे नहीं लिया करता था. कहता था, ‘तुस्सी अपना इम्तिहान दो जी, पैसे आंदे रैनगे.’ गुरनाम सिंह का यह स्नेह मुझे हमेशा याद रहा.

ढाबा आज भी वहीं था. इतने वर्षों में केवल इतना बदलाव आया था कि बैंचों की  जगह अब टेबलकुरसियां लग गई थीं. स्टूडैंट आराम से बैठ कर खापी सकते थे. सड़क पार कर के मैं ढाबे पर पहुंचा. पर मुझे गुरनाम सिंह कहीं दिखाई नहीं दिया. समय का अंतराल भी तो बहुत था. मन में कई शंकाएं उठीं जिन्हें मैं ने जबरदस्ती दबा दिया. गल्ले पर बैठे सरदारजी से मैं ने पूछा, ‘‘यह ढाबा तो सरदार गुरनाम सिंह का है?’’

15 अगस्त स्पेशल : औपरेशन, भाग 1

रामबन, कश्मीर घाटी का एक संवेदनशील जिला. ऊंचे पहाड़, दुर्गम रास्ते और गहरी खाइयों के बीच स्थित है यह छोटा सा इलाका. भोलेभाले ग्रामीण जो मौसम की मार सहने के तो आदी थे मगर हाल ही में हुईं आतंकी वारदातों की मार के उतने आदी नहीं थे. मन मार कर इस को भी झेलने के अलावा उन के पास कोई चारा न था. सभी अच्छे दिनों की कल्पना को मन ही मन संजो रहे थे इस यकीन के साथ कि दुखों की रात की कभी तो खुशियोंभरी सुबह होगी.

पूरे इलाके में रामबन में ही एक सरकारी स्कूल, छोटा सा डाकखाना और एक अस्पताल था. राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़े होने के चलते कभीकभी इन सेवाओं की अहमियत बढ़ जाती थी. हालांकि स्कूल था मगर शिक्षक नदारद थे, अस्पताल था मगर सुविधाएं ना के बराबर थीं, डाकखाना था जो डाकबाबू के रहमोकरम पर चल रहा था. मगर फिर भी उन की इमारतें उन के होने का सुबूत दे रही थीं.

उस दिन रामबन और आसपास के जिलों में मंत्रीजी का दौरा था. पूरा प्रशासन उन के स्वागत में एकपैर पर खड़ा था. सुरक्षाकर्मियों की नींद उड़ी हुई थी. आएदिन आतंकी घटनाओं ने वैसे भी सुरक्षा एजेंसियों की नाक में दम किया हुआ था, उस पर मंत्रीजी को अपने लावलशकर के साथ इलाके का दौरा करना उन के लिए किसी आपदा से कम न था. अस्पताल वालों को भी मुस्तैद रहने की हिदायत थी और सुरक्षाकर्मियों का वहां भी जमावड़ा था.

मैडिकल डाइरैक्टर अस्पताल के अफसर डाक्टर सारांश को समझा रहे थे कि मंत्रीजी का किस तरह से स्वागत करना है. डाइरैक्टर साहब कहे जा रहे थे और डा. सारांश हैरानी से उन्हें ताकते जा रहे थे.

‘‘सर, यह काम हमारा नहीं है, हमारा काम है मरीजों की तीमारदारी करना, उन का इलाज करना न कि आनेजाने वाले मंत्रियों की सेवा करना,’’ डा. सारांश ने अपनी बात कही तो मैडिकल डाइरैक्टर ने उन्हें समझाइश दी, ‘‘मैं जानता हूं डा. सारांश, मगर करना पड़ता है. यह हमारे सिस्टम का ही हिस्सा है.’’

‘‘तो बदल क्यों नहीं देते यह सिस्टम, सालों से चल रहे ऐसे सिस्टम को तिलांजलि क्यों नहीं दे देते हम,’’

डा. सारांश यह कहते हुए अपने कक्ष की तरफ बढ़ गए. इधर जहां सारा प्र्रशासन मंत्रीजी की फिक्र में घबराया हुआ सा था, वहीं महज कुछ ही मील दूर सेना की एक टुकड़ी औपरेशन विनाश की तैयारी में थी. फोनलाइन पर सीमापार से हो रही आतंकियों की बातचीत को सुना गया था. सूचना थी कि पाकिस्तान ने आतंकवादियों की एक टोली भारत की सीमा में ढकेल दी थी और आतंकियों ने रामबन के जंगलों में अपना आशियाना बनाया हुआ था. आतंकी पूरे असलहों और साजोसामान से लैस थे. वे एक बड़ी घटना को अंजाम देने की फिराक में थे.

खबर पक्की थी. सो, कमांडिंग अफसर ने कोई जोखिम नहीं लिया और अलगअलग टोलियां बना कर बीहड़ की अलगअलग दिशाओं में भेज दीं. उन्हीं में से एक टोली का नेतृत्व कर रहे थे मेजर बलदेव राज. मेजर बलदेव एक अच्छे खानदान से थे. उन के सारे भाईबहन विदेशों में अच्छी नौकरियों और बिजनैस से जुड़े थे. वतनपरस्ती के जज्बे ने

उन्हें विदेशी शानोशौकत के बजाय फौज में पहुंचा दिया था जहां उन की गिनती जांबाज अफसरों में होती थी. लिहाजा, पाकिस्तान से आए 4 आतंकवादियों को पकड़ने के लिए उन्हें खास जिम्मेदारी दी गई थी.

पीठ पर वजनी साजोसामान, हाथ में बंदूक और सिर पर भारीभरकम हैलमेट पहने मेजर बलदेव के नेतृत्व में उन की टोली जंगल के चप्पेचप्पे की छानबीन कर रही थी. खबर पक्की थी कि आतंकवादी उन्हीं जंगलों में छिपे थे, इसलिए मेजर बलदेव गुप्त भाषा में अपने सिपाहियों को बारबार आगाह कर रहे थे. शाम का साया धीरेधीरे बादलों पर छा रहा था. तभी पत्तों की सरसराहट हुई और जवानों को आभास हो गया कि आतंकवादी आसपास ही थे.

धीरेधीरे जवान उस ओर बढ़ने लगे जहां से सरसराहट हो रही थी. तभी अचानक दूसरी दिशा से अंधाधुंध फायरिंग शुरू हो गई. मेजर बलदेव को ऐसे ही किसी हमले की आशंका थी, लिहाजा, उन की टोली के कुछ सिपाहियों का रुख दूसरी ओर था.

अगले चंद मिनट आग के गोले, धुएं और शोर के बीच बीत गए. दूसरी ओर से फायरिंग बंद हो गई तो मेजर बलदेव समझ गए कि दुश्मन का खात्मा हो गया है. अगले ही पल धुआं छटा और अपने साथियों को करीब पा कर उन्होंने राहत की सांस ली. ‘‘सर, चारों आतंकवादी मारे गए हैं, आइए उन की लाशें देखिए और हैडक्वार्टर को इत्तला कर दीजिए.’’

मेजर बलदेव ने उठने की कोशिश की मगर उठ नहीं पाए. उन की दायीं टांग लहूलुहान थी, होंठों पर दर्द था मगर आंखों में विजय की मुसकान थी. उन्होंने बड़ी मुश्किल से हैडक्वार्टर को मैसेज भिजवाया और एक बार फिर ब्रिगेडियर साहब से भूरिभूरि प्रशंसा पाई.

मेजर बलदेव के घायल होने की सूचना पा कर एक जीप वहां भेजी गई. पहाड़ी इलाके में वाहन के पहुंचने में लगे समय के दौरान मेजर बलदेव के जिस्म से काफी खून बह चुका था. बड़ी मुश्किल से उन्होंने खुद को संभाला हुआ था.

मामले की नजाकत को समझते हुए उन्हें करीब के सिविल अस्पताल में ले जाने का फैसला लिया गया और थोड़ी देर में जीप रामबन के सिविल अस्पताल के बाहर थी. मैडिकल डाइरैक्टर खुद वहां मौजूद थे. उन्होंने मेजर को वार्ड में पहुंचा कर डाक्टर सारांश को उन का इलाज करने का आदेश दिया.

काव्या की क्लास लगाएगी Anupamaa, वनराज से तलाक लेने को कहा

Anupamaa Spoiler alert : टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ इन दिनों खूब सुर्खियों में बना हुआ है. शो के मेकर्स सीरियल की टीआरपी रेटिंग बढ़ाने के लिए ‘अनुपमा’ में रोजाना नए-नए धमाके पर धमाका कर रहे हैं. शो के करंट ट्रैक (Anupamaa Spoiler alert) की बात करे तो आज दिखाया जाएगी कि काव्या का सच जानने के बाद अनुपमा के पैरों तले जमीन खिसक जाती है. वह काव्या को फटकार लगाती है. साथ ही उसे कहती है कि उसने अपना घर खुद तोड़ लिया.

काव्या ने वनराज और अनिरुद्ध दोनों को धोखा दिया

आज दिखाया जाएगा कि, अनुपमा काव्या से कहती है कि पहले तुमने वनराज के साथ मिलकर अनिरुद्ध को धोखा दिया और अब अनिरुद्ध के साथ मिलकर वनराज को. हालांकि इस बीच बार-बार काव्या अनुपमा को सफाई देने की भी कोशिश करती है, लेकिन अनुपमा काव्या की एक नहीं सुनेगी. वह काव्या को उसकी शादी की 25वीं सालगिरह पर मिले धोखे के बारे में भी याद दिलाती है.

काव्या अपनी सफाई में क्या कहेगी ?

वहीं आगे काव्या (Anupamaa Spoiler alert) अनुपमा से कहती है, एक वक्त ऐसा भी था जब सभी घरवालों ने मुझे पराया कर दिया था, लेकिन इस बच्चे के आने के बाद मुझे जीने की एक उम्मीद मिली. यहां तक कि वनराज भी मुझसे फिर से प्यार करने लगा. इसके अलावा परिवार के सभी सदस्यों की भी मुझे अटेंशन मिलने लगी, लेकिन अनुपमा काव्या की कोई बात नहीं सुनती और उससे कहती है कि वो सबको सच बता दें. साथ ही अनुपमा काव्या को सलाह देती है कि वो वनराज से तलाक लेकर अपने बच्चे के साथ अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करें.

दूसरी तरफ वनराज अनुपमा (Anupamaa Spoiler alert) और काव्या की सभी बाते सुन लेता है. अब आगे ये देखना दिलचस्प होगा कि वनराज सच जानने के बाद काव्या को तलाक देगा या अनिरुद्ध के बच्चें को अपना लेता है.

Rekha के न्यू लुक को देख फैंस हुए हैरान, उम्र पर उठे सवाल

Rekha New Look : बॉलीवुड एक्ट्रेस रेखा जितना अपनी फिल्मों से सुर्खियों में बनी रहती हैं. उतना ही वह अपने नए-नए लुक्स से लाइफलाइट बटोरती हैं. हालांकि एक बार फिर एक्ट्रेस ने अपने न्यू लुक से लोगों को हैरान कर दिया है. रेखा (Rekha New Look) अपने नए लुक में बेहद यंग लग रही है और उनके फैंस उन्हें पहचान भी नहीं पा रहे हैं.

रेखा के नए लुक को देख फैंस हुए इंप्रेस

दरअसल, बीते दिन एक्ट्रेस रेखा (Rekha New Look) फैशन डिजाइनर मनीष मल्होत्रा के घर पहुंची थी. इस दौरान उन्होंने एक ब्लैक कलर की ड्रेस पहन रखी थी. साथ ही उन्होंने काला चश्मा और कैप भी कैरी की थी, जिस लुक में वह बहुत हसीन लग रही हैं. इसके अलावा रेखा ने एक बैग भी कैरी कर रखा है, जो लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींच रहा है.

यूजर- क्या आप सच में 68 साल की हैं?

आपको बता दें कि सोशल मीडिया पर अब रेखा (Rekha New Look) की ये तस्वीरें वायरल हो रही हैं, जिन्हें उनके फैंस खूब शेयर कर रहे हैं. साथ ही उनके इस लुक की जमकर तारीफ कर रहे हैं. एक यूजर ने रेखा की तस्वीर के नीचे कमेंट किया. क्या रेखा जी आप सच में 68 साल की हैं? वहीं एक अन्य यूजर ने लिखा, इस उर्म में भी कोई इतना सुंदर व हसीन कैसे लग सकता हैं?

15 अगस्त स्पेशल : स्वदेश के परदेसी, भाग 1

आस्ट्रेलियाई शहर पर्थ के सीक्रेट गार्डन कैफे में बैठी अलाना अपने और्डर का इंतजार करती हुई न्यूजपेपर के पन्ने पलट रही थी, तभी उस के मोबाइल पर यीरंग का फोन आ गया.

‘‘हैलो डार्लिंग, क्या कल किंग्स पार्क में होने वाली कैंडिल विजिल में तुम भी चलोगी? मेरे पास एक मित्र से फेसबुक के जरिए निमंत्रण आया है.’’

‘‘कौन सी और किस की कैंडिल विजिल?’’

‘‘वही जो मेलबौर्न के टैक्सी ड्राइवर मनमीत सिंह की याद में निकाली जा रही है.’’

‘‘वह तो इंडियन की कैंडिल विजिल है, हमें क्या लेनादेना है उस से. कोई मतलब नहीं है उस का हम से.’’

‘‘इंडियन की कैंडिल विजिल है… क्या मतलब है तुम्हारा, क्या कहना चाहती हो तुम? क्या हम और तुम इंडियन नहीं हैं?’’

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं.’’ अलाना लगभग चीखती हुई बोली. आसपास बैठे लोगों के हैरानी से उसे ताकने के कारण उसे याद आया कि वह एक सार्वजनिक स्थान पर बैठी हुई है.

पानी के 2 घूंट गटक कर अपनेआप पर काबू करती हुई बोली, ‘‘नहीं, मैं नहीं जाऊंगी. तुम तो ऐसे ही हो, सबकुछ जल्दी ही भूल जाते हो. याद नहीं तुम्हें कि दिल्ली में हमारे साथ क्या हुआ था? हर तरह का नर्क देख लिया था हम ने वहां. यहां आस्ट्रेलिया में आए हुए हमें तकरीबन 5 साल हो गए हैं. अभी तक सब ठीक ही चल रहा है. किसी मनमीत सिंह के साथ मेलबौर्न में क्या हुआ, हमें कोई लेनादेना नहीं. मगर दिल्ली, वहां की तो जमीन पर पहला कदम रखते ही हमारे दुर्दिन शुरू हो गए थे. दोजख बन गई थी हमारी जिंदगी. दूसरे देशों में आ कर ये लोग रेसिज्मरेसिज्म चिल्लाते हैं. खुद के गरीबान में झांक कर नहीं देखते कि खुद का असली रूप क्या है?’’

‘‘बिलकुल दुरुस्त फरमाया तुम ने, अलाना. सब से बड़े नस्लवादी तो हमारे अपने देशवासी ही हैं,’’ अब यीरंग की आवाज भी सुस्त हो चुकी थी, ‘‘खैर, कोई जबरदस्ती नहीं है, अभी तो तुम्हारे पास सोचने के लिए समय है. कल तक तय कर लेना कि तुम्हें जाना है या नहीं.’’

लाना ने कौफी के घूंट भरने शुरू किए. पर्थ में सीक्रेट गार्डन कैफे की कौफी उस की मनपसंद कौफी थी. वह जबतब यहां कौफी पीने चली आया करती थी. मगर आज यीरंग से फोन पर बात होने के बाद, 5 साल पहले दिल्ली में किए गए अपमान के घूंटों की स्मृतियां कौफी के स्वाद को कड़वा व बेस्वाद कर गईं. चिंकी, मोमो, चाऊमीन, बहादुर, हाका नूडल्स जैसे तमाम शब्द फिर से कानों में गूंजते हुए उस की वैयक्तिकता को ललकारने लगे. याद आ गया वह समय जब वह मिजोरम से दिल्ली विश्वविद्यालय, इतिहास में मास्टर्स करने, आई थी.

‘पासपोर्ट निकालो,’ एयरपोर्ट अथौरिटी के एक आदमी ने कड़क आवाज में पूछा था उस से.

‘वह क्यों सर, मैं इंडियन हूं और अपने ही देश में एक प्रांत से दूसरे प्रांत में जाने के लिए पासपोर्ट की जरूरत नहीं होती, इतना तो हम भी जानते हैं.’

‘अच्छा, शक्ल से तो इंडियन नहीं लगती हो. चलो एक छोटा सा टैस्ट कर लेते हैं. जरा यह तो बताओ कि इंडिया में कुल मिला कर कितने प्रांत हैं?’

‘सर, आप नस्लवाद फैला रहे हैं, मेरे नैननक्श मेनलैंड में रहने वालों से अलग हैं, इस का यह मतलब नहीं कि उन का अधिकार इस देश पर मुझ से अधिक हो जाता है. हमें तो गर्व होना चाहिए कि हमारे देश में हर तरह की शक्लसूरत, खानपान वाले लोग रहते हैं. इंडिया मेरी मातृभूमि है और इस पर जितना हक आप का बनता है उतना ही मेरा भी है. रही बात आप के सवाल के जवाब की, तो उस के बदले में मैं भी आप से एक सवाल करती हूं, ‘कौन सी महिला स्वतंत्रता सेनानी जेल में सब से लंबे समय तक रही थी? अगर आप सच्चे हिंदुस्तानी हैं तो आप को इस का जवाब जरूर पता होना चाहिए.’

‘एयरपोर्ट अथौरिटी में मैं हूं या तुम? यहां सवाल पूछने का हक सिर्फ मुझे है.’

‘हम लोकतंत्र में रहते हैं. हमारा संविधान हर नागरिक को सवाल पूछने व अपने विचार व्यक्त करने का हक देता है. खैर, आप की इन्फौर्मेशन के लिए उस स्वतंत्रता सेनानी महिला का नाम था- रानी गाइडिनलियु और वे मणिपुर की थीं. अब देखिए न, सर, आप अपनेआप को इंडियन कहते हैं और आप को अपने देश के इतिहास की जानकारी नहीं है. जब मिजोरम, नगालैंड, मणिपुर में रहने वाले लोगों को झांसी की रानी और भगतसिंह का इतिहास पता है तो आप को भी तो रानी गाइडिनलियु के बारे में पता होना चाहिए.’

अलाना उस औफिसर का साक्षात्कार सच से करवा चुकी थी और अब वह ‘मान गए मैडम, अब बस भी कीजिए,’ कह कर खिसियाई मुसकराहट देता हुआ अपना बचाव कर रहा था.

दिल्ली के मर्द अलाना को चरित्रहीन समझते थे और बस या टैक्सीस्टैंड पर खड़ी देख कर सीधा मतलब निकालते थे कि वह धंधे के लिए खड़ी है. ऐसे ही एक मौके पर उस की मुलाकात यीरंग से हुई थी. यीरंग 5 साल पहले इन्फौर्मेशन टैक्नोलौजी की पढ़ाई करने के लिए अरुणाचल प्रदेश से दिल्ली आया था और एक कंपनी में डेटा साइंटिस्ट के पद पर कार्य कर रहा था. एक दिन उस ने सड़क पर गुजरते हुए देखा कि कुछ लोग बसस्टौप पर खड़ी एक मिजो गर्ल को तंग कर रहे हैं. उस ने अपनी कार वहीं रोक दी और अलाना की मदद करने आ पहुंचा. यीरंग को देख कर वे असामाजिक तत्त्व तुरंत ही भाग गए.

उस दिन यीरंग ने अलाना को उस के फ्लैट तक सुरक्षित पहुंचा दिया और यहीं से उन की दोस्ती की शुरुआत भी हो गई. एक से दर्द, एक सी समस्याओं के दौर से गुजर रहे थे दोनों. यही दुविधाएं दोनों को जल्दी ही एकदूसरे के करीब ले आईं और पहली मुलाकात के एक साल बाद उन्होंने शादी कर ली. उन दोनों की शादी के बाद अलाना की छोटी बहन एंड्रिया भी दिल्ली में पढ़ने आ गई और उन के साथ रहने लगी.

शादी के बाद उन की जरूरतें बढ़ने और एंड्रिया के साथ आ कर रहने के कारण उन्हें बड़े घर की जरूरत महसूस हुई. बहुत से मकान देखे गए. कुछ मकान पसंद नहीं आते थे और जो उन्हें पसंद आते, उन के मकान मालिकों को ‘चिंकीस’ को अपना मकान देना गवारा नहीं था. मकान की तलाश के दौरान उन्हें रंगबिरंगे, सुखददुखद अनुभव हो रहे थे. कई अनुभव चुटकुले बनाने के काबिल थे तो कई दिल को लहूलुहान करते कांच की किरचों जैसे थे.

एक मकान मालिक अपने 2 बैडरूम के फ्लैट को दिखाते हुए कुछ इस  अंदाज में कमैंट्री दे रहा था जैसे कि कोई टूरिस्ट गाइड किसी टूरिस्ट को दिल्ली का लालकिला दिखा रहा हो. वापस लौटते समय उस कमैंट्री की नकल उतारतेउतारते अलाना और एंड्रिया के पेट में हंसतेहंसते बल पड़ गए थे. एक घर का किराया एजेंट ने सिर्फ 5 हजार रुपए बताया था, मगर जब वे मकान देखने पहुंचे तो मकान मालिक एकाएक 8 हजार रुपए महीने की मांग करने लगा.

‘मगर हमारे कुछ लोकल फ्रैंड्स तो केवल 5 हजार रुपए में ही ऐसा घर ले कर इस इलाके में रह रहे हैं,’ यीरंग ने डील करने की कोशिश करते हुए कहा.

‘जरूर रह रहे होंगे. लोकल्स तो लोकल्स होते हैं, विश्वास के लायक होते हैं. तुम्हारे जैसे चिंकी लोगों को घर में रखने का मतलब है ऐक्सट्रा रिस्क लेना. अभी कल के ही अखबार में खबर पढ़ी थी हम ने. तुम्हारी तरफ की एक औरत ड्रग का धंधा करती हुई पकड़ी गई. ऊपर से पड़ोसियों को तुम्हारे गंदे खाने की दुर्गंध के साथ भी निभाना पड़ेगा. देख लो अगर 8 हजार रुपए किराया मंजूर है तो अभी एडवांस निकालो, वरना अपना रास्ता नापो. खालीपीली मेरा वक्त बरबाद तो करो मत,’ मकान मालिक अपनी मोटी तोंद पर हाथ फिराता, एक जोर की डकार मारता हुआ बोला.

यह सीधासीधा नस्लवाद था. लेकिन कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं था. इस मकान की लोकेशन भी सुविधाजनक थी, इसलिए सौदा मंजूर कर लिया गया. दिल्ली में नईनई आई एंड्रिया की अपनी अलग परेशानियां थीं. क्लास में सभी उसे पार्टीगर्ल और पियक्कड़ समझते थे और मना करने पर भी बारबार नाइटक्लब में पार्टी के लिए चलने को कहते. मिजोरम की खूबसूरत फिजाओं को छोड़ कर दिल्ली के प्रदूषित, गरम मौसम में उस का मन वैसे ही उचाट रहता था, ऊपर से ऐसी बातें मानसिक तनाव को और भी ईंधन दे रही थीं.

उस का दिल करता कि वह रोज आराम से बैठ कर वौयलिन बजाए मगर मेनलैंड का भयंकर कंपीटिशन उसे किताबों में सिर खपाने को मजबूर करता. मिजोरम की नैसर्गिक सुंदर वादियों में बिताए, नदियों की कलकल से संगीतमय, दिन अब दूर की याद बन कर रह गए थे. जरूरतें उसे प्रकृति की गोद के सुरम्य, कोमल एहसास से निकल कर महानगर की कठोरता से जूझने को मजबूर कर रही थीं.

शरद पवार : ‘चाणक्य’ राजनीति के चक्रव्यूह में

देश के पूर्व रक्षा मंत्री और राष्ट्रीय राष्ट्रवादी कांग्रेस के सुप्रीमो शरद पवार को राजनीति का ‘चाणक्य’ कहा जाता है. बड़ेबड़े नेताओं को उन्होंने अपने घातप्रतिघात से चारों खाने चित करने में सफलता प्राप्त की है. दरअसल सवाल है, जिन्होंने इंदिरा गांधी से ले कर आज तक 50 वर्षों से अधिक के राजनीतिक समय में बारबार एहसास दिलाया है कि वे राजनीति के महाक्षत्रप हैं. आधुनिक चाणक्य हैं. कब, क्या निर्णय लेना है, यह कोई शरद पवार से सीख सकता है.

एक समय में आप ने सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने के माहौल के दरमियान अपना हाथ खींच कर एक ऐसी चुनौती दी थी, जिस के कारण सोनिया गांधी को कदम पीछे हटाने पड़े. चाहे देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी रहे हों या फिर नरसिम्हा राव, शरद पवार की ठसक राजनीति में बरकरार रही. यह भी माना जाता है कि बाला साहब ठाकरे को ऊंचा मुकाम दिलाने में शरद पवार का ही हाथ था. मगर अब देश में नरेंद्र मोदी राजनीति की नई एबीसीडी लिख रहे हैं और ‘चाणक्य’ की भूमिका में देश के गृह मंत्री अमित शाह हैं. ऐसे में जो आपरेशन महाराष्ट्र में देश ने देखा है, उस से यह संदेश जाता है कि शरद पवार की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है. ऐसे समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 1 अगस्त, 2023 को पुणे का दौरा करेंगे. मोदी यहां विभिन्न विकास परियोजनाओं का उद्घाटन व शिलान्यास भी करेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस यात्रा के दौरान लोकमान्य तिलक राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा. यह सम्मान उन्हें राकांपा प्रमुख शरद पवार देंगे. राकांपा के सहयोगी दलों ने शरद पवार से इस कार्यक्रम में शामिल होने का आग्रह किया है.

अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या नरेंद्र मोदी का अपने हाथों से शरद पवार सम्मान करेंगे या फिर पीछे रह जाएंगे? यह एक ऐसा समय है, जो निश्चित रूप से शरद पवार के लिए सोचने का है कि वह क्या कदम उठाएं.

अगर शरद पवार नरेंद्र मोदी का सम्मान करते हैं, तो इस के राजनीतिक मायने यह होंगे कि नरेंद्र मोदी ने शरद पवार को राजनीति के अखाड़े में घात दे दिया है. शरद पवार का जैसा स्वभाव है, उस से यह आकलन किया जा रहा है कि वे नरेंद्र मोदी के क्रम में निश्चित रूप से शिरकत करेंगे और आने वाले समय में उन की गति भी वही हो जाएगी, जो मुलायम सिंह यादव की हुई थी. और यही संदेश नरेंद्र मोदी विपक्ष को और देश को देना चाहते हैं.

शिव सेना (उद्धव गुट) का मानना है कि शरद पवार को मोदी का अभिनंदन करते हुए नहीं देखा जाना चाहिए. पार्टी के प्रवक्ता संजय राउत ने कहा, “जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के घटकों को तरहतरह के नाम दे रहे हैं और जब उन्होंने और उन की पार्टी ने राकांपा को बरबाद कर दिया है, तो राकांपा सुप्रीमो को किसी भी स्थिति में कार्यक्रम में उपस्थित नहीं होना चाहिए.”

मोदी का सम्मान बढ़ेगा

सनद रहे कि यह पुरस्कार उन लोगों को दिया जाता है, जिन्होंने राष्ट्र की प्रगति और विकास के लिए काम किया है और जिन के योगदान को केवल उल्लेखनीय और असाधारण रूप में देखा जा सकता है.

यह पुरस्कार हर साल एक अगस्त को स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक की पुण्यतिथि पर दिया जाता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूर्व यह पुरस्कार पूर्व राष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा और प्रणब मुखर्जी, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, इंदिरा गांधी और मनमोहन सिंह के अलावा मशहूर व्यवसायी एनआर नारायणमूर्ति और ‘मैट्रो मैन’ ई. श्रीधरन जैसे 40 दिग्गजों को प्रदान किया जा चुका है. अब अगर शरद पवार इस कार्यक्रम में शरीक रहते हैं, अपने हाथों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह सम्मान देते हैं, तो निश्चित सम्मान बढ़ेगा और राजनीति के खेल में इक्कीस का दर्जा हासिल कर लेंगे और शरद पवार के लिए घाटे का सौदा होगा.

ज्योति से ज्योति जले- भाग 1: उन दोनों की पहचान कैसे हुई?

मैं रश्मि को पिछले 7 सालों से जानती हूं. मेरा बेटा मिहिर जब उस की कक्षा में पढ़ता था तब वह स्कूल में नईनई थी. उस का परिवार मुंबई से उसी वर्ष बोरीवली आया था.

हमारी पहचान भी बड़े नाटकीय एवं दिलचस्प अंदाज में हुई थी. मिहिर का पहली यूनिट परीक्षा का परिणाम कुछ संतोषजनक नहीं था. ‘ओपन हाउस’ के दिन की बात है.

जब सभी विद्यार्थियों के अभिभावक जा चुके और मैं भी जाने लगी तो उस ने इशारे से मुझे रुकने के लिए कहा था. उस के अंदाज में अदृश्य सा आदेश पा कर मेरे बढ़ते कदम रुक गए थे.

‘‘आप, मिहिर की मदर हैं?’’ बेहद नाराजगी के स्वर में उस ने मुझ से पूछा था.

‘‘जी हां.’’

‘‘मैं आप को क्या कह कर पुकारूं?’’ उस ने फिर पूछा, ‘‘नाम ले कर या फिर मिहिर की दुश्मन कह कर… वैसे मैं आप का नाम जानती भी तो नहीं…’’

‘‘जी…वर्षा,’’ मैं ने अपना नाम बताया.

‘‘तो वर्षाजी, आप ही बताइए, क्या आप अपने बच्चे पर हमेशा इसी तरह, गुस्से से बरसती हैं या फिर कभी स्नेह की बारिश भी उस पर करती हैं?’’

‘‘म…मैं समझी नहीं…’’ मैं स्तब्ध सी उस के सुंदर चेहरे को देखती रह गई, ‘‘दरअसल, बात यह है कि…’’ मेरा वाक्य अधूरा रह गया.

‘‘इतना गुस्सा भी किस काम का कि नन्हे बच्चे को यों बेलन से मारना पड़े?’’ रश्मि ने नसीहत देते हुए कहा, ‘‘वर्षाजी, इनसान को हमेशा, हर हाल में अपने पर काबू पाना सीखना चाहिए. गुस्से में तो खासकर. मेरी बात मानिए, जब कभी भी आप को गुस्सा आए तब आप अपनी सूरत आईने में देख लें. इस सूरत में यदि आप अपने गुस्से पर काबू पाने में सफल न हुईं तो फिर बताइएगा.’’

‘‘मैडम, आप ही बताइए, मैं क्या करूं? मिहिर पढ़ाई में ज्यादा ध्यान नहीं देता. हर वक्त उस के सिर पर सिर्फ क्रिकेट का ही जनून सवार रहता है. अभी से यह हाल है तो आगे जा कर उस का भविष्य क्या होगा? आज परिणाम आप के सामने ही है.’’

‘‘तो उसे समझाने का आप कोई और तरीका अपनातीं. क्या आप के हाथों बेलन की मार से वह रातोंरात बदल जाएगा? माफ कीजिए, आप तो बेलन का सही उपयोग और मां शब्द का सही अर्थ दोनों बदलने पर तुली हुई हैं.’’

मैं चुपचाप उस की नसीहत सुनती रही.

‘‘वर्षाजी, बच्चों के मन और शरीर दोनों गूंधे हुए आटे की तरह नम होते हैं, उसे जैसा आकार देना चाहें हम दे सकते हैं, पर मैं ने अकसर देखा है, हर मातापिता अपने बच्चों को अपनी अपेक्षाओं के अनुसार ढालना चाहते हैं. वे एक बात भूल जाते हैं कि बच्चों की भी अपनी पसंदनापसंद हो सकती है. खैर, आप ‘मां’ के आगे एक अक्षर ‘क्ष’ और जोड़ दीजिए.’’

‘‘क्ष…मा…’’ मेरे मुंह से निकल पड़ा.

‘‘यही ‘मां’ शब्द का सही अर्थ है, समझीं?

‘‘क्रोध से अकसर बनती बात बिगड़ जाती है. अगर आप अपने मातृत्व को जीवित रखना चाहती हैं तो अपने गुस्से को मारना सीखिए, क्षमा करना सीखिए. इसे टीचर का भाषण नहीं, मित्र की नसीहत समझ कर याद रखिएगा.’’

मैं अपने किए पर बेहद शर्मिंदा थी. सच ही तो कह रही थी वह, मुझे गुस्से में बेकाबू हो कर अपने बच्चे को यों बेलन से नहीं मारना चाहिए था. मिहिर की पिंडली बेलन की मार से इस कदर सूज गई थी कि वह सही ढंग से चल भी नहीं पा रहा था.

‘मुझे क्षमा करना मेरे बच्चे. आज के बाद फिर कभी नहीं,’ मन ही मन निर्णय कर मैं सचमुच रो पड़ी.

और आज उसी की बदौलत मेरा बेटा न सिर्फ पढ़ाई में ही आगे है बल्कि क्रिकेट में भी खूब आगे निकल गया है. पहले अंकुर 12 फिर 14 और अब अंडर 19 के बैच में खेलता है. कई बार अखबार में उस की टीम के अच्छे प्रदर्शन के समाचार भी छपे हैं. मुझे अपने बेटे पर नाज है.

उस पल से ही हमारे बीच सच्ची मित्रता का सेतु बंध गया था. मैं हैरान थी उसे देख कर. सुंदरता, बुद्धिमत्ता और सहृदयता का संगम किसी एक ही शख्स में मिल पाना वह भी आज के दौर में किसी चमत्कार से कम नहीं लगा.

यह अनुभव सिर्फ मेरा ही नहीं, प्राय: उन सभी का है जो रश्मि को करीब से जानते हैं. पिछले 7 साल में उस ने न जाने कितने बच्चों पर ज्ञान का ‘कलश’ छलकाया होगा. वे सभी बच्चे और उन के मातापिता…सब के मुंह से, उस की सिर्फ प्रशंसा ही सुनी है, वह सब की प्रिय टीचर है.

वह है भी तो तारीफ के काबिल. वह अपनी कक्षा में पढ़ने वाले तकरीबन हर बच्चे की पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में जानने का प्रयास करती है. जैसे ही उसे पता चलता है कि किसी के परिवार में कोई समस्या है, वह झट से उस का हल ढूंढ़ने को तत्पर हो जाती है, उन की मदद करने के लिए कुछ भी कर गुजरती है.

सभी बच्चों की अकसर एक ही तकलीफ होती, पैसों का अभाव. हर साल वह न जाने कितने विद्यार्थियों की फीस, किताबें, यूनिफार्म आदि का इंतजाम करती है, जिस का कोई हिसाब नहीं. नतीजतन, वह खुद हमेशा पैसों के अभाव में रहती है.

एक दिन उस की आंखों में झांकते हुए मैं ने पूछा, ‘‘रश्मि, सच बताना, तुम्हारा बैंक बैलेंस कितना है?’’

‘‘सिर्फ 876 रुपए,’’ वह मुसकराती हुई बोली, ‘‘वर्षा दीदी, मेरा बैंक बैलेंस कम है तो क्या हुआ? इतने सारे लोगों के आशीर्वाद का बैलेंस मेरे जीवनखाते में इतना तगड़ा है, ये क्या कम है? मरते वक्त मैं अपना बैंक बैलेंस साथ ले कर जाऊंगी क्या? मैं तो इसी में खुश हूं. आप मेरी चिंता मत कीजिए.’’

‘‘नहीं रश्मि, तुम गलत सोचती हो. इस बात से मुझे इनकार नहीं कि मृत्यु के बाद इनसान सभी सांसारिक वस्तुओं को यहीं छोड़ जाता है, लेकिन यह बात भी इतनी ही सच है कि जब तक जिंदा होता है, मनुष्य को संसार के सारे व्यवहारों को भी निभाना पड़ता है और उन्हें निभाने के लिए पैसों की जरूरत पड़ती है…यह बात तुम क्यों नहीं समझतीं?’’

‘‘मैं बखूबी समझती हूं पैसों का महत्त्व लेकिन दीदी, मैं ने हमेशा अनुभव किया है कि जब कभी भी मुझे पैसों की जरूरत होती है, कहीं न कहीं से मेरा काम बन ही जाता है. यकीन कीजिए, पैसों के अभाव में आज तक मेरा कोई भी काम, कभी भी अधूरा नहीं रहा.’’

मैं समझ गई कि इस नादान को समझाना और पत्थर से सिर टकराना एक ही बात थी. मेरे लाख समझाने के बावजूद वह मेरी सलाह को अनसुना कर पुन: अपने उसी स्वभाव में लौट आती है.

वह भोलीभाली नहीं जानती कि कभीकभी कुछ लोग उस की इस उदारता को मूर्खता में शामिल कर उसे धोखा भी देते हैं.

ऐसा ही एक किस्सा 6 साल पहले हुआ था. यश नाम का एक लड़का पहली कक्षा में पढ़ता था. उस की मां को किसी ने बताया होगा कि रश्मि टीचर सब की मदद करती हैं.

स्कूल छूटने का वक्त था. मैं रश्मि के इंतजार में खड़ी थी. मुझे देख कर जब वह मुझ से मिलने आई तब यश की मम्मी शांति भी अपने मुख पर बनावटी चिंता ओढ़ कर हमारे पास आ कर खड़ी हो गईं.

‘‘टीचर, यश के पापा का पिछले साल वड़ोदरा में अपैंडिक्स का आपरेशन हुआ था. वह किसी काम से वहां गए थे. अचानक दर्द बढ़ जाने पर आपरेशन करना जरूरी था, वरना उन की जान को खतरा था. आपरेशन का कुल खर्च सवा लाख रुपए हुआ था. मेरे मायके वालों ने कहीं से कर्ज ले कर किसी तरह वह बिल भर दिया था, पर उस में से 17 हजार रुपए भरने बाकी रह गए थे जोकि आजकल में ही मुझे भेजने हैं, क्या आप मेरी मदद करेंगी?’’ वे रो पड़ीं.

रश्मि ने यश की मम्मी की पूरी बात धैर्य से सुनी फिर बिना मेरी ओर देखे ही उन को वचन दे दिया कि वह यथाशक्ति उन की मदद करेगी. रश्मि जानती थी कि अगर वह मेरी ओर देखती तो शांतिजी को मदद करने का वचन नहीं दे पाती क्योंकि मैं उसे ऐसा करने से जरूर रोकती.

मुझे विश्वास था कि उसे कुछ भी कहना व्यर्थ था. फिर सोचा, एक आखिरी कोशिश कर लूं, शायद सफलता मिल जाए.

तब प्रत्युत्तर में उस ने जो कुछ कहा, वह मेरे लिए अप्रत्याशित था.

‘‘वर्षा दीदी, मैं अपना दर्द सीने में दबा कर सिर्फ खुशियां बांटने में विश्वास करती हूं. इसीलिए अपने गमों से न तो कभी आप का परिचय करवाया, न ही किसी और का, पर आज ऐसा करना मेरे लिए जरूरी हो गया है.

‘‘दीदी, मैं ने बचपन और जवानी के चंद वर्षों का हर पल अभावों में गुजारा है. कभीकभी तो हमारे घर खाने को भी कुछ नहीं होता था. मैं भूखी रहती, पर कभी भी अपने ही पड़ोस में रहने वाले अपने सगे चाचा के घर जा कर रोटी का एक निवाला तक पाने की कोशिश नहीं की. धन के अभाव में मैं ने अपनी मां को तिलतिल मरते देखा है. मेरा इकलौता छोटा भाई इलाज के अभाव में मर गया. उस के हृदय में सुराख था.

‘‘ऐसी बात नहीं थी कि हम गरीब थे. पापामम्मी दोनों अध्यापक थे लेकिन पापा अपने वेतन का अधिकतर हिस्सा जरूरतमंदों की मदद में खर्च करते तब मां के सामने घर खर्च चलाने में कितनी दिक्कतें आती होंगी.’’

मैं सांस रोके उस की आपबीती सुनती रही.

नीरजा के बलिदान की कहानी फिल्मी नहीं, जमीनी हकीकत

साल 2016 में निर्देशक राम माधवानी की फिल्म ‘नीरजा’ रिलीज हुई थी. आज पूरे 6 साल बीत चुके हैं लेकिन नीरजा की कहानी कहीं न कहीं सभी के जहन में जिंदा है. नीरजा भनोट की जिंदगी और बलिदान पर आधारित इस बायोपिक में नीरजा भनोट की भूमिका सोनम कपूर ने निभाई.

‘नीरजा’ लोगों को कितनी पसंद आई, कितनी सफल रही, फिल्म में कितना मसाला मिलाया गया, अगर कुछ देर के लिए इन बातों को दरकिनार कर दें तो यह सच है कि नीरजा एक बहादुर लड़की थी और उस ने अपनी जान की परवाह न कर के 359 लोगों की जान बचाई थी.

संदर्भवश हम यहां नीरजा भनोट की असली कहानी प्रस्तुत कर रहे हैं.

नीरजा का जन्म 7 सितंबर, 1963 को चंडीगढ़ में हुआ था. उन के पिता हरीश भनोट हिंदुस्तान टाइम्स के जानेमाने पत्रकार थे. उन के 3 बच्चे थे, 2 लडक़े अखिल और अनीश तथा एक बेटी नीरजा. एकलौती बेटी होने की वजह से नीरजा अपनी मां रमा भनोट और पिता हरीश भनोट की बहुत लाडली थी. पतिपत्नी उसे बेटों से भी ज्यादा चाहते थे, इसीलिए वे उसे लाडो कहते थे. नीरजा की शिक्षा चंडीगढ़ के सेक्रेड हार्ट कान्वेंट से शुरू हुई.

मार्च, 1974 में जब नीरजा करीब साढ़े 10 साल की थी और छठी कक्षा में पढ़ रही थी, हरीश भनोट का तबादला मुंबई हो गया. मुंबई में हरीश भनोट ने बेटी का दाखिला ख्यातनाम बौंबे स्कौटिश स्कूल में कराया. हाईस्कूल पास कर लेने के बाद नीरजा ने सेंट जेवियर कालेज में एडमिशन लिया और वहां से अर्थशास्त्र और सामाजिक विज्ञान विषयों से स्नातक की डिग्री ली.

कालेज के दिनों में एक दोपहर नीरजा अपनी फ्रैंड्स के साथ कालेज गेट के पास खड़ी थी. तभी ‘बांबे’ पत्रिका के संवाददाताओं और फोटोग्राफर्स की एक टीम वहां से गुजरी. उन लोगों की नजर नीरजा पर पड़ी तो उन्हें पत्रिका के नए शुरू हुए फीचर ‘दि गर्ल नैक्सट डोर’ के लिए नीरजा का चेहरा बिलकुल सटीक लगा. उन्होंने बात की तो नीरजा इस के लिए तैयार भी हो गईं.

फलस्वरूप पत्रिका के आगामी अंक में फीचर के साथ पूरे पेज पर नीरजा का फोटो भी छपा. चित्र के नीचे कैप्शन था नीरजा भनोट. दाहिने गाल पर डिंपल, बास्केट बौल की रसिया और सेंट जेवियर में बीए की छात्रा.

इस तरह अचानक किसी पत्रिका में चित्र छप जाना कोई बड़ी उपलब्धि नहीं होती, मगर नीरजा के लिए यह उपलब्धि ही रही. क्योंकि यहीं से उस की मौडलिंग की शुरुआत हो गई. इस के बाद उस ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. करीब 3 सालों तक वह देश के कई प्रतिष्ठित उत्पादों बिनाका टूथपेस्ट, फोरहंस और गोदरेज आदि के विज्ञापनों में दूरदर्शन व सिनेमा के परदे पर दिखाई देती रहीं.

मौडलिंग में मिली अपार सफलता के बाद उन के पास सीरियल और फिल्मों के प्रस्ताव भी आने लगे. लेकिन इन प्रस्तावों पर गंभीरतापूर्वक विचार करने से पहले ही नीरजा के सामने शादी का प्रस्ताव आ गया. मार्च, 1985 में वैवाहिक विज्ञापन के माध्यम से नीरजा का रिश्ता तय हुआ और वह शादी कर के ससुराल चली गईं.

यह रिश्ता नीरजा के लिए जीवन की सब से बड़ी त्रासदी साबित हुई. 2 ही महीने में उन की ससुराल वालों की दहेज की नाजायज मांगें सामने आने लगीं.

यह न नीरजा को स्वीकार था न भनोट परिवार को. फलस्वरूप शादी के चंद महीनों बाद ही नीरजा को वापस उन के मायके भेज दिया गया. बाद में यह रिश्ता तलाक में बदल गया.

इस बीच नीरजा भीतर तक छलनी हो चुकी थीं. ससुराल में बारबार मिले तानों ने उन का मन अवसाद से भर दिया था. जो अपमान उन्हें अपनी ससुराल में मिला था, उस की उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी. वहां निरंतर उन के वजूद को ललकारा जाता था. वह देश के जानेमाने पत्रकार की बेटी थीं, उन की अपनी खुद की भी एक अलग पहचान थी. पढ़ीलिखी तो थी ही, आकर्षक व्यक्तित्व भी था.

बहरहाल, तलाक के बाद नीरजा ने मौडलिंग से मुंह मोड़ लिया था. टीवी धारावाहिकों और फीचर फिल्म निर्माताओं को वह पहले ही मना कर चुकी थीं.

हालांकि नीरजा को अपने पिता के घर में कोई कमी न थी, न ही किसी तरह की कोई परेशानी थी. फिर भी जीवन इतना सरल नहीं होता. आखिर सोचविचार कर उन्होंने नौकरी करने की ठान ली. नौकरी भी कोई आम तरह की नहीं, दूसरों से एकदम हट कर. एक ऐसी नौकरी जो केवल पैसा कमाने के लिए ही न हो, बल्कि जिस में आत्मसंतुष्टि का भी अहसास हो.

आखिर सोचविचार कर नीरजा ने ‘पेन एम’ में फ्लाइट अटैंडेंट की नौकरी के लिए आवेदन कर दिया. इस पद के लिए करीब 10 हजार युवकयुवतियों ने आवेदन किया था. जिन में कुल 80 लोगों को चुना जाना था. नीरजा का नाम भी उन्हीं 80 लोगों में आया. इस के बाद शुरू हो गया नीरजा के जीवन का एक अनोखा अध्याय.

जिस रोज से नीरजा ने पेन एम में काम करना शुरू किया, उसी दिन से हरीश भनोट अपनी पत्नी रमा व कुत्ते टिप्सी को ले कर नीरजा के उड़ान पर जाते वक्त उसे विदा करने जाया करते थे. इतना ही नहीं, उन की वापसी के वक्त भी ये सब उसे घर के दरवाजे पर ही खड़े मिलते थे. ऐसा कभी नहीं हुआ कि नीरजा को घर पहुंच कर डोरबैल बजानी पड़ी हो.

वक्त के साथ नीरजा का जीवन फिर से व्यवस्थित होने लगा था. पिछले जख्म भूल कर वह सामान्य होने की कोशिश करने लगी थीं. इस बीच उन्होंने कुछ शुभचिंतकों के समझाने पर मौडलिंग व अभिनय के छिटपुट कार्यों को भी थोड़ीबहुत तरजीह देना शुरू कर दिया था.

2 सितंबर, 1986 की सुबह नीरजा फ्रैंकफर्ट से वापस आई थी. अगले रोज वह दिन भर शूटिंग में व्यस्त रहीं. इस के अगले दिन उन्हें एक बड़ा असाइनमैंट मिला. उस सुबह 9 बजे वह शूटिंग पर गईं और रात में करीब 8 बजे घर लौटीं. घर पहुंच कर उन्होंने खुशी से चहकते हुए पिता को बताया कि उन्होंने पूरा दिन निर्देशक आयशा सयानी के साथ शूटिंग में बिताया था.

कुछ देर इधरउधर की बातें करने के बाद नीरजा ने खाना खाया. फिर मां से पेन एम की पिकअप कार आने से डेढ़ घंटा पहले जगाने का कहते हुए सो गईं.

पेन एम से सूचना मिली कि पिकअप कार नीरजा को लेने सवा एक बजे आएगी. अत: साढ़े 11 बजे उन्हें जगाने की प्रक्रिया शुरू हुई जो उन की मां के लिए एक कठिन कार्य था. गहरी नींद में सोई नीरजा को उठाने के लिए उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ी.

मौसम में हलकी ठंडक थी, फिर भी वह हमेशा की तरह ठंडे पानी से नहाई. तैयार होतेहोते नीरजा मां से बतियाती भी रहीं. 7 सितंबर को नीरजा का जन्मदिन था. इस अवसर पर कितने लोगों को बुलाने की बात पूछी गई तो उन्होंने कहा कि इस बार वह घर पर रह कर सादे तरीके से जन्मदिन मनाएंगी.

सवा एक बजे पिकअप कार उन्हें लेने आ पहुंची. बैग से लदी ट्रौली थामे नीरजा आत्मविश्वास के साथ चलती हुई फ्लैट से बाहर निकल गईं. जब वह कार में बैठ गईं तो मातापिता ने उन्हें हाथ हिला कर विदा किया. तब वे लोग कहां जानते थे कि वे अपनी लाडली बेटी को अंतिम यात्रा पर जाने के लिए विदा कर रहे हैं.

5 सितंबर, 1986 को शुक्रवार था. सुबहसुबह का वक्त. इतनी सुबह कि अभी मसजिदों में अजान के स्वर तक नहीं उभरे थे. कुछ ही देर पहले मुंबई से आया पेन एम विमान कराची की धरती पर उतरा था. और अब फिर से उड़ान भरने की तैयारी में था. विमान में सवार करीबकरीब सभी बच्चे सो रहे थे. केबिन में कुछ यात्री नींद में थे तो कुछ बैठे हुए चायकौफी की चुस्कियां ले रहे थे.

वरिष्ठ परिचारिका होने के नाते नीरजा भनोट विमान में चहलकदमी कर रही थीं. विमान चलने में जब कुछ ही वक्त रह गया, तो नीरजा ने सीढिय़ों के रास्ते आधुनिक हथियारों से लैस 4 व्यक्तियों को विमान में आते देखा. नीरजा को भांपते देर नहीं लगी कि वे आतंकवादी हैं. उन के हावभाव से लग रहा था कि संभवत: वे जहाज को हाईजैक करना चाहते हैं.

नीरजा ने सब से पहला काम यह किया कि वह इस की सूचना देने के लिए कौकपिट की ओर दौड़ पड़ीं. लेकिन इस के पहले ही एक आतंकवादी ने आगे बढ़ कर उन्हें बालों से पकड़ लिया. इस पर उन्होंने चिल्लाते हुए सांकेतिक भाषा में संभावित विमान अपहरण की घोषणा कर दी. एक अन्य परिचारिका नीरजा का हाईजैक कोड सुनते ही भाग कर इस की सूचना कौकपिट अधिकारियों को दे आई.

सूचना मिलते ही तीनों कौकपिट अधिकारी, पायलट और इंजीनियर विमान के आपातद्वार से कूद कर हवाईअड्डे के टॢमनल में जा पहुंचे. नीरजा को जैसे ही उन लोगों के भागने की जानकारी हुई, उन्होंने बचाव अभियान की कमान खुद संभालने का निर्णय ले लिया.

अब तक उन्हें बालों से पकडऩे वाला आतंकवादी उन्हें धकेलते हुए विमान के कोने में ले गया था. इस बीच नीरजा संभल चुकी थीं. उन्हें मालूम था कि विमान में उस वक्त अन्य 13 कर्मचारियों के सहित करीब 400 यात्री सवार हैं.

नीरजा ने पहला काम यह किया कि आतंकवादियों के साथ वार्ता शुरू कर दी. बातचीत में उन्होंने उन का मकसद जानने की कोशिश की, उन की मांगों के बारे में पता लगाने का प्रयास किया. इस बातचीत में आतंकी नेता ने यह बात पक्की तरह जाहिर कर दी कि विमान को अपहृत कर लिया गया है. उस ने यह भी कहा कि अगर उन की मांगें नहीं मानी गईं तो विमान में सवार सभी लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाएगा.

इस बात ने नीरजा को भीतर तक हिला कर रख दिया. उन्होंने मन ही मन तय कर लिया कि चाहे उन की खुद की जान क्यों न चली जाए, वह विमान में सवार किसी भी शख्स पर आंच नहीं आने देगी.

उन्होंने किया भी यही.

पूरे 17 घंटों तक जितना भी संभव था, नीरजा अकेली ही सारे यात्रियों की देखभाल करने का प्रयास करती रहीं. इस दौरान उन की मुसकान यात्रियों व अन्य विमानकॢमयों को इस बात पर आश्वस्त करती रही कि खतरा उतना बड़ा नहीं है, जितना उन्होंने सोच लिया था.

नीरजा की भावभीनी मुसकान से आभास होता था कि बस कुछ देर की बात है, फिर सब ठीक हो जाएगा. जबकि नीरजा जानती थीं कि भले ही वह अपनी सूझबूझ और चतुराई से वहां खूनखराबा नहीं होने दे रहीं, लेकिन वक्त गुजरने के साथ अन्य कई तरह की परेशानियां सामने आ सकती हैं. उन्हें और उन की सहयोगी परिचारिकाओं को उड़ान के तकनीकी पक्ष की बहुत ज्यादा जानकारी नहीं थी. पावर जैनरेटर का ईंधन खत्म होता जा रहा था, जिस की वजह से वोल्टेज कम होने लगा था.

इस दौरान नीरजा शायद मन ही मन एक ही बात सोच रही थीं कि विमान के भीतर इस तरह की परेशानी पैदा होने से पहले ही वह किसी भी तरह यात्रियों को बाहर निकालने में सफल हो जाएं. वोल्टेज खत्म होते ही बच्चों का दम घुटने की आशंका थी.

तब तक नीरजा ने अपनी आत्मविश्वास भरी बातों से आतंकवादियों का भी मन मोह लिया था. यही वजह थी कि वे पहले की तरह डरानेधमकाने के बजाय अब उन से दोस्ताना लहजे में बातें करने लगे थे. उस वक्त नीरजा आतंकवादियों के नेता के बिलकुल करीब खड़ी थीं.

इस बीच जरा सी देर पहले उन्होंने एक यात्री को पानी का गिलास दिया था. विमान के भीतर रोशनी काफी मंद हो गई थी. ठीक उसी वक्त अचानक जाने क्या हुआ कि विमान के भीतर गोलियों की तड़तड़ाहट शुरू हो गई.

दरअसल, अपने मंसूबे कामयाब न होते देख किसी बात पर खफा हो कर अपहर्ताओं ने फायरिंग शुरू कर दी थी. नीरजा को मौका मिला तो वह छलांग लगा कर विमान के इमरजेंसी द्वार के पास जा पहुंची. उन्होंने जल्दी से विमान का दरवाजा खोल कर 100 से ज्यादा यात्रियों को बाहर निकाल दिया. बच्चों को उन्होंने हाथों से उठाउठा कर बाहर किया. इस का नतीजा यह निकला कि आतंकवादियों के सरदार ने नीरजा के पास पहुंच कर उन के पेट में गोली दाग दी. तभी दूसरे आतंकी ने एक और गोली चलाई, जो नीरजा के हाथ में लगी.

इस आतंकवादी ने 2 बच्चों को भी निशाने पर ले लिया था. इस से पहले कि वे बच्चे गोलियों का शिकार होते, नीरजा ने उन के सामने पहुंच कर सारी गोलियां अपने जिस्म पर झेल लीं.

नीरजा का समूचा शरीर गोलियों से छलनी हो गया था. बेतहाशा खून बह रहा था. इतना सब होने पर भी उन्होंने यात्रियों को आपातद्वार से कूदने के बारे में समझाना जारी रखा.

इस के बाद की नीरजा की दास्तान केवल इतनी है कि उन्हें किसी तरह अस्पताल ले जाया गया, मगर तक तक वह इस दुनिया को अलविदा कह चुकी थीं. उन की बहादुरी के विवरण कई दिनों तक दुनिया भर के समाचारपत्रों के मुखपृष्ठ पर विस्तार से छपते रहे.

पूरे विश्व से असंख्य संवेदना संदेश भनोट परिवार के पास पहुंचे. उस वक्त विमान में फंसे यात्रियों ने पूरी घटना और नीरजा की दिलेरी का विवरण देते हुए अपने पत्रों में लिखा था कि यदि आज वे जीवित हैं तो नीरजा के पराक्रम की बदौलत.

नीरजा की याद को ताजा रखने के लिए उन की स्मृति में अनेक लोगों ने पेड़ लगाए. कइयों ने अपनी बेटियों का नाम बदल कर नीरजा रख दिया. कई महानुभावों ने उन की बहादुरी पर कविताएं लिखीं. इन में चर्चित अंगरेजी कवि हरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय भी थे.

असाधारण वीरता के लिए दिया जाने वाला ‘अशोक चक्र’ देश का सर्वोच्च पुरस्कार है. तब तक कुल 16 गैरसैनिकों को इस पुरस्कार से नवाजा गया था. 26 जनवरी, 1987 को नीरजा को मरणोपरांत जब यह सर्वोच्च पुरस्कार दिया गया तो वह इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाली देश की सब से कम उम्र की महिला थीं.

अमेरिका की विश्वविख्यात संस्था ‘दि नैशनल सोसायटी औफ दि संस औफ दि अमेरिकन रेवोल्यूशन’ ने ‘हीरोइन नीरजा’ को विशेष उपाधि से सम्मानित करते हुए नीरजा के बारे में घोषित किया, ‘नीरजा ने क्रूरतम संकट के समक्ष अद्वितीय वीरता का परिचय देते हुए अपना बलिदान दे कर उन ऊंचे आदर्शों का पालन किया, जिन से हमारे देशभक्त पूर्वज अनुप्रमाणित हुए थे.’

पेन एम ने नीरजा को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अॢपत करते हुए अपने उद्गार कुछ इस तरह से सार्वजनिक किए, ‘अपनी असाधारण कत्र्तव्यपरायणता व निश्चित मृत्यु के समक्ष भी नीरजा ने अपनी निर्भयता व अथक प्रयासों से सैंकड़ों भयभीत यात्रियों और अपने सहकॢमयों को मौत के जबड़े से बाहर खींचा. अपना कत्र्तव्य निभाते हुए उन्होंने अपने जीवन का उत्सर्ग कर डाला. नीरजा का यह निस्वार्थ बलिदान और उन की निष्ठापूर्ण सेवाभावना मानवता के लिए प्रेरणास्रोत बनी रहेगी, इस में दो राय नहीं.’

पाकिस्तान की प्रमुख संस्था ‘कैदी सहायक सभा’ ने नीरजा को मरणोपरांत अपने प्रथम मानवता पदक ‘तमगा ए इंसानियत’ से नवाजा था.

इन के अलावा और भी बीसियों संस्थाएं थीं, बीसियों पुरस्कार थे, जिन के माध्यम से नीरजा की स्मृतियों को ताजा रखने के प्रयास किए गए थे. भारतीय डाक विभाग ने उन पर विशेष डाक टिकट जारी किया था. पिता हरीश भनोट ने ‘नीरजा भनोट पेन एम ट्रस्ट’ की स्थापना कर के वह पूरा पैसा इस ट्रस्ट के खाते में डाल दिया, जो उन्हें नीरजा के बलिदान के एवज में विभिन्न संस्थाओं से मिला था. यह खाता साढ़े 36 लाख रुपए की धनराशि से खोला गया था.

इस के तहत सामाजिक उत्थान के अन्य कार्यों के अलावा हर साल 2 ऐसी महिलाओं को ‘नीरजा भनोट अवार्ड’ से सम्मानित किया जाने लगा, जिन्होंने बहादुरी की अद्भुत मिसाल कायम करते हुए अन्य महिलाओं के लिए मार्ग प्रशस्त किया हो. आज इस की गिनती देश के गौरवशाली पुरस्कारों में होती है.

इस साल 26वें अवार्ड के रूप में यह पुरस्कार 13 जनवरी, 2016 को बंगलुरु की सुभाषिनी वसंत को दिया गया. इस बार यह पुरस्कार हासिल करने वाली वह अकेली महिला थीं.

उन्हें डेढ़ लाख रुपए नकद के साथ एक साइटेशन व एक ट्रौफी दी गई थी. इस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करने के लिए फिल्म ‘नीरजा’ की हीरोइन सोनम कपूर आई थीं.

उल्लेखनीय है कि फौक्सस्टार स्टूडियोज के बैनर तले राम माधवानी के निर्देशन में निर्माता अतुल कासबेकर ने नीरजा के जीवन पर आधारित बायोपिक फिल्म का निर्माण किया है, जिस का टाइटल भी ‘नीरजा’ ही रखा गया है.

इस फिल्म में शबाना आजमी, शेखर खजियानी, उदय चोपड़ा एवं अबरार जहूर के अलावा नीरजा के किरदार में सोनम कपूर हैं. यह फिल्म 19 फरवरी, 2016 को रिलीज हो चुकी है.

अपनी भूख को जानिए

डोली एक गृहिणी है जोकि आजकल अपनी एक आदत से बेहद परेशान है. वह न चाह कर भी अपनी भूख पर कंट्रोल नहीं कर पा रही है. इस कारण अब उसे मोटापे का तो सामना करना पड़ ही रहा है, साथ ही, उसे सिरदर्द, पेटदर्द व तनाव की समस्या भी रहने लगी है. वहीं, कभीकभी हम सभी के साथ अकसर ऐसा होता है कि हम खाना खाने के बाद भी अजीब सी भूख से परेशान रहते हैं या अचानक से कुछ खाने की लालसा जाग उठती है.

किसी विशेष पदार्थ को खाने की लालसा सिर्फ आप की इच्छा ही नहीं होती है बल्कि यह संकेत होता है की आप के अंदर किसी पौष्टिक पदार्थ की कमी हो रही है जिस का कारण हमारे शरीर या जीवनशैली में विशेष पोषक तत्त्वों की कमी होता है.

वास्तव में एक संतुलित आहार हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी होता है. यदि इस में असंतुलन हो जाता है तो यह हमारे शरीर पर नकरात्मक प्रभाव डालता है. कभी अचानक से मीठा खाने का, तो कभी नमकीन, खट्टा, चटपटा या तलाभुना खाने की ललक होती है. सो, जरूरी है कि आप को अपनी इस बढ़ती भूख का सही कारण पता हो जिस से आप जल्दी ही नजात पा सकें.

नमक

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर रोज 5 ग्राम से अधिक नमक का सेवन सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है क्योंकि हमारे मूत्र, रक्त और पसीने में भी सोडियम शामिल होता है. इस के अधिक सेवन से हाई ब्लडप्रैशर, किडनी की समस्या, दिल का दौरा या स्ट्रोक विकसित होने का खतरा बढ़ सकता है. इस स्थिति के कई कारण भी हो सकते हैं, जैसे-

  • हमारे शरीर में लवण और खनिजों के स्तर बिगड़ने से पोटैशियम, कैल्शियम या आयरन की कमी का आना.
  • ज्यादा पेशाब और पसीना आना.
  • नमक खाने का आदी (लत) होना.
  • एडिसन बीमारी का होना. इस में अवसाद, चिड़चिड़ापन अत्यधिक थकान, भूख की कमी, वजन का कम होना, कम रक्तचाप, मांसपेशियों में ऐंठन और कमजोरी, मतली, दस्त, उलटी की समस्या हो सकती है.

आदतों में करें बदलाव

  • सफेद नमक की जगह काले नमक का प्रयोग करें.
  • भोजन में ऊपर से नमक न डालें.
  • सलाद या फल बिना नमक के खाएं.

मीठा खाने की लालसा

मीठा खाने से एनर्जी तो मिलती है लेकिन जरूरत से ज्‍यादा ग्‍लूकोज आप को बीमार बना सकता है. यह दिल की समस्या, मोटापा, स्किन प्रौब्लम, डायबिटीज, ब्रेन से जुड़ी समस्‍या, फैटी लिवर जैसी बीमारियों से ग्रस्त कर सकता है, इसलिए सावधानी बरतना बहुत जरूरी है.

कारण

  • भोजन में कार्बोहाईड्रेट की मात्रा ज्यादा लेना.
  • खराब पाचनतंत्र.
  • शरीर में पानी की कमी होना.

आदतों में करें बदलाव

  • अपने दांतों की अच्छे से सफाई करें.
  • रोजाना वर्कआउट करें.
  • खाने से पहले फल खा लें.
  • खाना खाने के आधे घंटे बाद पानी पिएं. इस से भी मीठे की तलब को कम किया जा सकता है.

तलाभुना खाने की लालसा

यदि आप को तलाभुना खाने की इच्छा हो रही है तो इस का मतलब है आप के शरीर में आवश्यक फैटी एसिड ओमेगा-3 और ओमेगा-6 की कमी हो रही है. कभीकभी मौसम में हो रहे बदलाव के कारण भी यह इच्छा बढ़ जाती है लेकिन वसायुक्त भोजन शारीरिक व मानसिक बीमारियों से ग्रस्त कर सकता है, इसलिए इस पर काबू पाना बहुत जरूरी है.

आदतों में करें बदलाव

  • भोजन में प्रोटीन की मात्रा को बढ़ाएं.
  • नट्स, जैसे काजू, मूंगफली का सेवन करें.
  • व्यायाम अवश्य करें, इस से तनाव से भी राहत मिलेगी.
  • रात में तलाभुना न खाएं, इस से एसिडिटी की परेशानी हो सकती है.

खट्टा खाने की लालसा

खट्टे स्वाद की बढ़ती ललक बताती है कि आप का पाचनतंत्र निर्जलित है. यदि आप का जिगर (लिवर) कमजोर है तो भी खट्टे खाने की तीव्र इच्छा होती है. लेकिन लिवर से संबंधित परेशानी में खट्टी चीजों से परहेज करना चाहिए. ज्यादा खट्टा खाने से क्रोध और ईर्ष्या भावना उत्तेजित होती है जिस से मानसिक तनाव भी बढ़ता है.

आदतों में करें बदलाव

  • पानी का सेवन अधिक करें.
  • दूसरे आहार डाइट में शामिल करें.
  • दही, खट्टा क्रीम, सिरका, अचार या जंक फूड जैसे पदार्थों से परहेज करें.
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