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‘एक देश एक चुनाव’ : एक बार फिर कटघरे में मोदी सरकार

एक देश एक चुनाव को ले कर जिस तरह नरेंद्र मोदी सरकार लालायित है वह अब केंद्र सरकार के गले की हड्डी बन गया है. आननफानन में केंद्र सरकार ने ‘एक देश एक चुनाव’ का राग अलापते हुए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन कर दिया. मगर देश के विपक्ष से इस पर कोई चर्चा हो, यह आवश्यक नहीं समझा।

अगर मोदी सरकार यह मानती है कि देश में लोकतंत्र है तो विपक्ष के सभी नेताओं को, देश की सभी महत्त्वपूर्ण राजनीतिक पार्टियों को बुला कर बैठक कर के इस पर चर्चा करनी चाहिए थी.

इतनी अकड़ क्यों?

दरअसल, नरेंद्र मोदी यह भूल गए कि लोकतंत्र में सत्ता और विपक्ष मिल कर ही देश को एक दिशा दे सकते हैं. अकेले सत्ता चलाना लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता और इस की आलोचना होगी और इसे देश स्वीकार नहीं कर सकता.

दरअसल, नरेंद्र मोदी सरकार हर चीज में जल्दी करना चाहती है। इस का महत्त्वपूर्ण कारण है मोदी सरकार में परिपक्वता की बड़ी कमी है, जिस कारण यह सरकार गलतियां करती चली जाती है और भुगतता है सारा देश.

चुनाव को लेकर एक बड़ी पहल

केंद्र सरकार ने लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव एकसाथ कराने के मुद्दे पर गौर करने और जल्द से जल्द सिफारिशें देने के लिए 2 सितंबर को अचानक 8 सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति अधिसूचित कर दी. मगर इन सदस्यों से परामर्श तक नहीं किया गया.

यही कारण है कि अधीर रंजन चौधरी ने अपनी सदस्यता से 24 घंटे में ही इस्तीफा दे दिया. सरकार ने समिति की अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को दी और कहा कि इस में गृहमंत्री अमित शाह, लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी, राज्यसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद और वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह सदस्य होंगे.

बढ़चढ़ कर कहा गया कि समिति तुरंत ही काम शुरू कर देगी और जल्द से जल्द सिफारिशें करेगी. इस में पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष सी कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी भी सदस्य हैं. बताया गया कि कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में समिति की बैठकों में हिस्सा लेंगे जबकि कानूनी मामलों के सचिव नितेन चंद्रा समिति के सचिव होंगे.

समिति संविधान, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम और किसी भी अन्य कानून और नियमों की पड़ताल करेगी और उन विशिष्ट संशोधनों की सिफारिश करेगी, जिस की एकसाथ चुनाव कराने के उद्देश्य से आवश्यकता होगी. समिति यह भी पड़ताल करेगी और सिफारिश करेगी कि क्या संविधान में संशोधन के लिए राज्यों द्वारा अनुमोदन की आवश्यकता होगी?

सब से बड़ा मसला

समिति एकसाथ चुनाव की स्थिति में खंडित जनादेश, अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार करने या दलबदल या ऐसी किसी अन्य घटना जैसे परिदृश्यों का विश्लेषण करेगी और संभावित समाधान भी सुझाएगी. समिति उन सभी व्यक्तियों, सुझावों और संवाद को सुनेगी और उन पर विचार करेगी जो उस की राय में उस के काम को सुविधाजनक बना सकते हैं और उसे अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देने में सक्षम बना सकते हैं.

मगर यह भी सच है कि देश के विपक्ष के बड़े नेताओं, जिन के पास लंबा अनुभव है, जैसे शरद पवार, लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, मल्लिकार्जुन खङगे जैसे नेताओं से इस मसले पर कोई चर्चा सरकार नहीं करना चाहती और एक तरह से इकतरफा एक देश एक चुनाव का फारमूला लागू करना चाहती है.

सब से बड़ा मसला यह है कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को उन की सेवानिवृत्ति के बाद केंद्र सरकार ने यह दायित्व सौंपा है और एक तरह से एक नई परिपाटी शुरू कर के उन की गरिमा को क्षति पहुंचाने का काम किया है. अगर नरेंद्र मोदी इस संदर्भ में गंभीर हैं तो उन्हें अपने स्वयं यानि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक कमेटी बना कर के इस काम को आगे बढ़ाना चाहिए था.

फरिश्ता : कैसे बदली दुर्गेश्वरी देवी की तकदीर ?

“सर, कोई बहुत बड़े वकील साहब आप से मिलना चाहते हैं,” वार्ड बौय गणपत ने दरवाजा फटाक से खोलते हुए उत्सुकता व उत्कंठा से हांफते हुए कहा और उस की सांसें भी इस कारण फूली हुई थीं.

मैं ने हाल ही मैं खिड़की से देखा था कि कोई प्राथमिक स्वास्थय केंद्र के सामने बरगद के पेड़ के नीचे बड़ी व लग्जरी गाड़ी मर्सिडीज पार्क कर रहा था. शायद इस बड़ी गाड़ी के कारण गणपत नैसर्गिक रुप से गाड़ी में आने वाले व्यक्ति को बड़ा वकील मान रहा था.

मैं समझ नहीं पा रहा था कि कोई बड़ा सा वकील मुझ से क्यों मिलना चाहता है? सामान्यतया सरकारी अस्पताल में कभीकभार नसबंदी केस बिगड़ने पर मरीज के रिश्तेदार मुआवजे के लिए कोर्ट केस करते हैं. पर उस के लिए सामान्यतया नोटिस मरीज के रिश्तेदार देने आते हैं.

“हैलो डाक्टर साहब, माइसैल्फ एडवोकेट गुप्ता और ये मेरे असिस्टेंट हैं,” काले कोट वाली ड्रैस में सहज उन्होंने मेरे हाथ से हाथ मिलाते हुए कहा.

“बैठिए,” मैं ने कुरसी की ओर इशारा करते हुए कहा.

“आप सोच रहे होंगे कि शहर से आए हुए वकील का आप से क्या काम होगा?” उन्होंने मेरे चेहरे को पढ़ते देख कर मुसकरा कर कहा.

“निशंक,” मैं ने मुसकराते हुए कहा.

“लीजिए चाय,” गणपत मेरे कहे बिना ही चाय ले कर आ गया. यह गणपत कि समझदारी थी या फिर पूंजीवाद का असर?

“यह दुर्गेश्वरी जी की वसीयत है,” फाइल हाथ में ले कर मेरी टेबल पर रख कर खोलते हुए वे बोले.

“पर आप मुझे यह क्यों बता रहे हो? और दुर्गेश्वरी जी कौन है?” मैं नै हैरानगी से उन की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देख कर पूछा.

“मैं आप को सब इसलिए बता रहा हूं कि दुर्गेश्वरी जी ने वसीयत में अपनी आधी संपत्ति, जिस में एक दोमंजिला मकान, लगभग एक किलो सोने के गहने आप के नाम किया है और आधी संपत्ति का मैडिकल ट्रस्ट बना कर आप को उस का मुख्य ट्रस्टी बनाया है,” वकील गुप्ता ने धड़ाका करते हुए आगे बताया, “दुर्गेश्वरी जी वही, आप की वह मरीज हैं जो आप के पास दुर्गा के नाम से इलाज कराने आती थीं.”

मैं हैरान था. उन के पास उतनी संपत्ति कहां से आई, वे तो बहुत ही गरीब थीं, यहां तक कि उन के पास साधारण सी दवा खरीदने के भी पैसे नहीं होते थे.

“पर वे खुद कहां हैं? काफी दिनों से हौस्पिटल भी नहीं आईं,” मैं ने चिंतित स्वर में पूछा. मुझे अभी तक वकील साहब की बातों पर विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि पिछले 2 वर्षों से वे मुझ से सरकारी अस्पताल में इलाज करा रही थीं, मुझ से अच्छा उन की गरीबी को कौन जान सकता है.

“सौरी सर, मुझे आप को बताते हुए दुख हो रहा है कि पिछले सप्ताह ही शहर के मशहूर अपोलो अस्पताल में उन का निधन हो गया,” वकील साहब ने दुखी स्वर में कहा.

“ओह नो, वे मेरी सब से अच्छी मरीज थीं,” मैं ने दुखी स्वर में कहा.

मैं तो उन का संबधी हूं भी नहीं. फिर वसीयत मेरे नाम करने का मतलब क्या है. मैं अभी भी स्तब्ध व आश्चर्य में बुत बन गया था. जिस स्त्री ने मेरे नाम लाखों रुपए किए, उस का सही नाम तक मुझे पता नहीं.

मेरे चेहरे पर प्रश्न देख कर वे बोले, “मैं आप को पूरी बात बताता हूं जिस से आप सारी बात समझ सकें. मैं समझ सकता हूं कि आप के अंदर कई प्रश्न उठ रहे होंगे कि, आखिर सरकारी दवाखाने की मुहताज व छोटे से गांव में अकेले गरीबी में रहने वाली दुर्गेश्वरी देवी कौन थीं? उन के पास इतनी सारी प्रौपर्टी कहां से आई? क्यों वे छोटे से गांव में रहती थीं?

“दरअसल, मैं उन के पति अखिलेश सिंह का बचपन का मित्र हूं. वे भी वकील थे और उन के पति भी मेरे साथ हाईकोर्ट में वकालत करते थे. 5 वर्षों पहले उन की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. और उन का कोई बच्चा नहीं था.

“वे अकेली हो गई थीं, भले ही उन के पति बहुत सारी संपत्ति छोड़ गए थे. उन के काफी रिश्तेदार उन की अकूत जायदाद के लिए आसपास मंडराते थे और जिन रिश्तेदारों को उन के जायदाद का लालच नहीं था वे उन की जवाबदारी लेने से हिचकिचाते थे कि कौन उन की जिंदगीभर जवाबदारियों का बोझ ले.

“स्वार्थी रिश्तेदार उन की मृत्यु की कामना करने लगे और कई रिश्तेदार अपने बच्चे उन्हें गोद देने की जिद करने लगे. दुर्गेश्वरी पर दबाव बढ़ने लगा, एक पति बिन अकेली स्त्री, ऊपर से स्वार्थी रिश्तेदार.

“एक रात उन्होंने अपने कानों से सुना कि उन की हत्या की योजना बन रही है. वे घबरा गईं और उन्हें अपने घर व शहर से भागना हितकर लगा.

“इस देवकरण गांव में उन के बहुत दूर के एक रिश्तेदार रहते थे जिन के यहां शादी के किसी कार्यक्रम में बरसों पहले वे आई थीं.

“वे दूसरे दिन सुबह कुछ गहने व रोकड़ रकम ले कर भाग कर यहां आ गई थीं. यहां अपने दूर के रिश्तेदार से झुठ बोला कि उन के पति की मृत्यु के बाद उन की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई और कोई रिश्तेदार उन्हें रखना नहीं चाहता है. इस कारण वे गांव में जिंदगी गुजारना चाहती हैं. वे लोग कृपया उन्हें छोटा सा मकान किराए पर दिला दें. रिश्तेदार भी अपने यहां रखना नहीं चाहते थे. उन्होंने पुराना सा वर्षो से बंद मकान बहुत ही कम किराए पर दिलाया.

“यह छोटा सा मकान व गांव उन की हैसियत से बहुत ही छोटा था पर उन के जीवन के लिए सुरक्षित था. उस के बाद क्या हुआ, यह आप अच्छी तरह जानते हैं.

“यहां आ कर कभी भी उन्होंने किसी को अपने पैसे व हैसियत के बारे में नहीं बताया. हमेशा जानबूझ कर लाचार व गरीब की तरह जीवन बिताया और सरकारी योजना व अस्पताल का लाभ लिया.

“थोड़े दिनों बाद सबकुछ शांत होने के बाद वे बीचबीच में शहर जाती थीं और अपनी जायदाद का ध्यान रखती थीं. और वहां अपने रिश्तेदारों को यह बताती थीं कि उन्होंने सबकुछ दान में दे दिया है और एक अनाथालय में रह कर सेवाकार्य करती हैं.

“यह सबकुछ सुन कर जो रिश्तेदार उन की संपत्ति के भूखे थे उन्होंने दुर्गेश्वरी जी को बहुत बुराभला कहा और हमेशा के लिए संबध तोड़ लिए. और जिन रिश्तेदारों को उन की संपत्ति का मोह नहीं था, उन लोगों ने अब उन से संबध रखना शुरू कर दिया.

“अब वे भले ही थोड़ीबहुत तकलीफ में जी रही थी पर अब परिस्थतियां उन के अनुकूल और सुरक्षित हो गई थीं. कुछ महीने पहले जब शहर आई थीं तो उन्होंने मुझ से वसीयतनामा बनवाया और मुझे पूरी बात बताई कि क्यों वे आप के नाम अपनी संपत्ति करना चाहती हैं. और मैं भी एकदिन गुपचुप यहां बीच में आया था और उन के फैसले से संतुष्ट हुआ था,” वकील गुप्ता ने उन्हें पूरी बात बताई.

“पर मैं अभी तक यह समझ नहीं पा रहा हूं कि उन्होंने क्यों मुझे अपनी संपत्ति का वारिस बनाया? मैं अभी तक यह बात समझ नहीं पाया हूं,” मैं अभी तक हैरत में था.

“वह आप इस पत्र को पढ़ कर ही समझ सकते हैं जो आप के नाम दुर्गेश्वरीजी ने तब लिखा था जब वे मेरे पास वसीयत बनाने आई थीं. उन्होंने मुझ से कहा था कि उन के मरने के बाद यह पत्र मैं आप को दूं,” वकील साहब ने सीलबंद हालत में एक लिफाफा मुझे दिया, जिस पर मेरा नाम लिखा था.

“आप कब आ रहे हैं कोर्ट में ताकि प्रौपर्टी आप के नाम हैंडओवर हो सके,” वकील गुप्ता ने पूछा.

“जब तक मैं पत्र पढ़ न लूं कि क्यों उन्होंने मुझे वारिसदार बनाया, तब तक मैं कैसे कुछ कहूं?”

मैं ने पत्र खोल कर पढ़ा. बहुत ही खूबसूरत और सलीकेदार लिखावट थी जो कह रही थी कि वे बहुत ही पढ़ीलिखी महिला होंगी.

‘डाक्टर साहब,

‘मैं आप को डाक्टर साहब की जगह फरिश्ता कहूं तो गलत न होगा. न आप मेरे, बल्कि इस छोटे से पिछड़े गांव के कई गरीबों के फरिश्ते हो. आप मेरा पत्र पढ़ रहे होंगे तब तक मैं न सिर्फ गांव से बल्कि दुनिया से ही बहुत दूर जा चुकी होंगी कि आप की दवा भी असर नहीं करेगी. सब को एक दिन जाना होता है और मैं भी जा रही हूं. सच बताऊं डाक्टर साहब, मैं शांति और संतुष्टि से जा रही हूं, क्योंकि जाने से पहले मैं अपने पति की मेहनत व ज्ञान से अर्जित संपत्तिति फरिश्ते के हाथों में दे कर जा रही हूं. जो न सिर्फ सच्चा हकदार है बल्कि उस धन का सदुपयोग भी करेगा और मानवता के काम मैं भी लगाएगा.

‘मुझे अब भी वो दिन याद हैं जब मैं पहली बार सरकारी अस्पताल आई थी. मैं पूरी रात बुखार से तप व कांप रही थी, उस दिन मैं शहर से वापस आई थी और रास्ते में बारिश के कारण पूरी तरह से भीग गई थी. रात को छोटे से गांव में डाक्टर नहीं होगा, यह सोच कर पूरी रात घर पर बुखार से तड़प रही थी. बहुत सुबहसुबह मैं यह सोच कर अस्पताल गई कि शायद नर्स या फिर वार्ड बौय हो जो मुझे दवा दे देगा जिस से कि मुझे थोड़ाबहुत आराम मिले. उस समय सुबह लगभग 8 बजे थे. देखा तो आश्चर्य हुआ कि सुबहसुबह केस बारी पर लंबी लाइन लगी हुई थी. घिसट कर मैं आप के चिकित्सा कक्ष में दाखिल हुई.

‘डाक्टर साहब, मुझे बहुत तेज बुखार है,’ मैं ने मरियल सी आवाज में दरवाजा का हैंडिल पकड़ते हुए कहा.

‘आप ने कुरसी से उठ कर मुझे उठाया और जोर से बोले, ‘गणपत, मां जी को इमरजैंसी रुम में ले कर जाओ.,’

‘गणपत मुझे व्हीलचेयर पर इमरजैंसी रुम में ले गया जो आप के कक्ष के पास ही था. पीछेपीछे आप आए और मुझे जांच कर, नर्स को जरूरी इंजैक्शन व ग्लुकोज चढ़ाने को बोला. मैं इतने बुखार और अर्धबेहोशी में भी सुखद आश्चर्य में थी गांव के सरकारी डाक्टर का फरिश्ते जैसा व्यवहार देख कर. आप के इंजैक्शन व इलाज से मैं दोपहर तक काफी ठीक हो गई थी. मैं प्यास से पानीपानी बोल रही थी, कि किसी ने पानी का गिलास मेरे आगे किया. मैं ने गटागट बिना देखे पानी पिया. पानी के कारण शरीर को जान मिली तो मैं ने देखा कि एक डाक्टर मुझे पानी पिला रहा है. मैं झेंप गई, बोली, डाक्टर साहब, आप ने पानी का गिलास दिया?’

‘हां, गणपत काम से बाहर गया है. आप पानी के लिए कह रही थीं,’ आप ने मुसकरा कर कहा.

‘फिर आप ने मेरे परिवारों वालों के बारे में पूछा. तो मैं ने कहा कि कोई नहीं है. तो आप को मेरे खाने की चिंता हुई और आप ने चपरासी भेज कर अपने घर से मेरे लिए खाना मंगाया. सच कहूं उस दिन पहली बार मेरे पति के जाने के बाद, ‘मेरा कोई दुनिया में है’ यह महसूस हुआ, लगा कि इस गांव में ऊपर वाले ने फरिश्ते के रुप में मेरी संतान की कमी को पूरी कर दी.

‘मैं पूरे 4 साल से इस गांव में रह रही हूं और पूरे गांव वाले हमेशा आप की प्रंशसा करते रहते हैं कि आप के इस गांव के अस्पताल में आने के बाद गांववालों को छोटीमोटी बीमारियों के लिए शहर की ओर नहीं भागना पड़ता है. रात को भी किसी को इमरजैंसी हो तो भी आप मुसकराते हुए इलाज करते हैं. फिर भी आप को कई बार मरीजों को शहर भेजना पड़ता है क्योंकि आप के पास जरूरी साधन और दवाइयां नहीं होती हैं. मेरी बैंक में जमा रकम से मिलने वाले ब्याज से आप ट्रस्ट बना कर जरूरी दवाइयां और साधन ले कर आएं, जिस से मैं इस गांव के प्यार और सुरक्षा के बदले आभार जता सकूं.

‘आप भी दूसरे डाक्टरों की तरह शहर में नर्सिंगहोम खोल कर, प्रैक्टिस कर के लाखोंकरोड़ों कमा सकते थे, वैभवशाली जिंदगी जी सकते थे, खुद का बहुत बड़ा बंगला बना सकते थे, विदेश घूम सकते थे, पर आप ने गांव में सेवा करने का प्रण लिया. यह महान कार्य एक फरिश्ता ही कर सकता है.

‘अभी तक मुझे मेरे पति की संपत्ति के लिए हमेशा चिंता होती कि मेरे मरने के बाद यह गलत हाथों में जाएगी. पर फरिश्ते की तरह आप की मेरे और पूरे गांव की निस्वार्थ भाव से की गई सेवा से मैं बहुत प्रभावित हूं और इसलिए फीस समझ कर ही मैं अपनी आधी संपत्ति आप के नाम पर कर के जा रही हूं.

‘आप की सब से फेवरेट मरीज,

‘दुर्गेश्वरी.’

“वकील साहब, आज तक किसी बड़े से बड़े डाक्टर को इतनी फीस नहीं मिली जितनी मेरे को मिली है.” पत्र पढ़ कर मेरी आंखों से झरझर आंसू बहने लगे.

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उपाध्यक्ष महोदय : उपाध्यक्ष का पद क्यों होता है भारीभरकम?

जब कोई व्यक्ति किसी संस्था के लिए ‘उगलत निगलत पीर घनेरी’ वाली दशा को प्राप्त हो जाता है तो उसे उस संस्था का उपाध्यक्ष बना दिया जाता है.

उपाध्यक्ष पदाधिकारियों में ईश्वर की तरह होता है, जो होते हुए भी नहीं होता है और नहीं होते हुए भी होता है. वह टीम का 12वां खिलाड़ी होता है, जो पैडगार्ड बांधे बल्ले पर ठुड्डी टिकाए किसी के घायल होने की प्रतीक्षा में लघुशंका तक नहीं जाता और मैच समाप्त होने पर गु्रपफोटो के लिए बुला लिया जाता है.

उपाध्यक्ष कार्यकारिणी का ‘खामखां’ होता है. किसी भी कार्यक्रम के अवसर पर वह ठीक समय पर पहुंच जाता है तथा अध्यक्ष महोदय के स्वास्थ्य की पूछताछ इस तरह करता है जैसे वह उन का बहुत हितैषी हो. वह संस्था के लौन में बाहर टहलता रहता है और अध्यक्ष के आने और खासतौर पर न आने की आहट लेता रहता है.

अगर इस बात की पुष्टि हो जाती है कि अध्यक्ष महोदय नहीं आ रहे हैं, तो वह इस बात की जानकारी अपने तक ही बनाए रखता है और बहुत विनम्रता व गंभीरता से बिलकुल पीछे की ओर बैठ जाता है, जैसे उसे कुछ पता ही न हो. जब सचिव आदि अध्यक्ष महोदय के न आने की सूचना देते हैं, जिस का कारण अपरिहार्य होता है और सामान्यत: बहुवचन में होता है, तो वह ऐसा जाहिर करता है जैसे उस के लिए यह सूचना सभी सर्वेक्षणों के विपरीत चुनाव परिणाम आने की सूचना हो.

वह माथे पर चिंता की लकीरें उभारता है और अध्यक्ष महोदय के न आने के पीछे वाले कारणों के प्रति जिज्ञासा उछालता है. फिर कोई गंभीर बात न होने की घोषणा पर संतोष कर के गहरी सांस लेता है. अब वह अध्यक्ष है और संस्था का भार उस के कंधों पर है.

आमतौर पर उपाध्यक्ष, अध्यक्ष से संख्या में कई गुना अधिक होते हैं. कई संस्थाओं में अध्यक्ष तो एक ही होता है पर उपाध्यक्ष एक दर्जन तक होते हैं क्योंकि काम करने वालों की तुलना में काम न करने वालों की संख्या हमेशा ही अधिक रहती है.

उपाध्यक्षों के 2 ही भविष्य होते हैं, एक तो वे अध्यक्ष के मर जाने, पागल हो जाने या निकाल दिए जाने की स्थिति में अध्यक्ष बना दिए जाते हैं या फिर झींक कर अंतत: दूसरी संस्था में चले जाते हैं जहां पहली संस्था में व्याप्त अनेक अनियमितताओं के बारे में रामायण के अखंड पाठ की तरह लगातार बताते रहते हैं.

उपाध्यक्षों का सपना संस्था का अध्यक्ष बनने का होता है और संस्था इस प्रयास में रहती है कि इस व्यक्ति को ऐसे कौन से तरीके से निकाल दिया जाए कि यह संस्था की ज्यादा फजीहत न कर सके.

मंच पर उपाध्यक्षों के लिए कोई कुरसी नहीं होती है. वहां अध्यक्ष बैठता है, सचिव बैठता है, विशिष्ट अतिथि बैठता है पर उपाध्यक्ष नहीं बैठता है, केवल उस की दृष्टि वहां स्थिर हो कर बैठी रहती है. कभीकभी जब फूलमालाएं अधिक आ जाएं तब मुख्य अतिथि से उस का परिचय कराने के लिए मंच से घोषणा की जाती है कि अब हमारी संस्था के वरिष्ठ उपाध्यक्ष मुख्य अतिथि को माला पहनाएंगे. बेचारा मरे कदमों से मंच पर चढ़ता है और माला डाल कर उतर आता है. फोटोग्राफर उस का फोटो नहीं खींचता इसलिए वह मुंह पर मुसकान चिपकाने की भी जरूरत नहीं समझता.

उपाध्यक्ष किसी संस्था का वैसा ही हिस्सा होता है जैसे कि शरीर में फांस चुभ जाए, आंख में तिनका पड़ जाए या दांतों के बीच कोई रेशा फंस जाए. सूखने डाले गए कपड़े पर की गई चिडि़या की बीट की भांति उस के सूख कर झड़ जाने की प्रतीक्षा मेें पूरी संस्था सदैव तत्पर रहती है क्योंकि गीले में छुटाने पर वह दाग दे सकता है.

उपाध्यक्ष के दस्तखत न चेक पर होते हैं न वार्षिक रिपोर्ट पर. न उसे संस्था के संस्थापक सदस्य पूछते हैं न चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी. न उसे अंत में धन्यवाद ज्ञापन को कहा जाता है और न ही प्रारंभ में विषय प्रवर्तन को. न उस का नाम निमंत्रणपत्रों में होता है और न प्रेस रिपोर्टों में. गलती से यदि कभी अखबार की रिपोर्टों में नाम चला भी जाता है तो समझदार अखबार वाले समाचार बनाते समय उसे काट देते हैं. अगले दिन सुबह वह अखबार देखता है और उसे पलट कर मन ही मन सोचता है कि लोकतंत्र के 3 ही स्तंभ होते हैं. काश, चौथा भी होता तो मैं भी उस पर बैठ कर प्रकाशित हो लेता.

वैसे मैं आत्महत्या का पक्षधर नहीं हूं और इस साहस को हमेशा कायरतापूर्ण कृत्य बता कर तथाकथित बहादुर बना घूमता हूं पर फिर भी मेरा यह विश्वास है कि किसी संस्था का उपाध्यक्ष बनने की तुलना में आत्महत्या कर लेना लाखगुना अच्छा है.

ज्यादा सोने से हो सकती हैं ये 7 परेशानियां

हमारे शरीर के लिए सोना बेहद जरूरी है. सोने से दिमाग ताजा होता है और शरीर की उर्जा रिस्टोर होती है. नींद ना पूरी होने से कई तरह की बीमारियां भी पैदा होती हैं. एक स्वस्थ व्यक्ति को 8 घंटों से ज्यादा नहीं सोना चाहिए. इससे ज्यादा सोने से कई तरह की परेशानियां पैदा होने लगती हैं. इस खबर में हम आपको ज्यादा सोने से होने वाली परेशानियों के बारे में जानकारी देंगे.

बढ़ता है मोटापा

शरीर के बढ़ते मोटापे का सीधा असर आपके सोने के समय से होता है. जब आप सोते हैं तो आपके शरीर की कैलोरी बर्न नहीं होती. जिससे आपके शरीर का वजन बढ़ता है. कई शोध में ये बात सामने आई है कि ज्यादा सोने से कई तरह की मनोवैज्ञानिक बीमारियों का खतरा बना रहता है.

रहता है दिल की बीमारी का खतरा

ज्यादा सोने वाले लोगों में दिल की बीमारी का खतरा बना रहता है.

कमजोर होती है याद्दाश्त

ज्यादा देर तक सोना हमारे दिमाग को भी गलत ढंग से प्रभावित करता है. इससे हमारी याद्दाश्त भी कमजोर होती है.

सिरदर्द की शिकायत

आम तौर पर ज्यादा सोने वालों में सिरदर्द की शिकायत देखी जाती है. यह मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटर में उतार-चढ़ाव के कारण हो सकता है, जिसमें नींद के दौरान सेरोटोनिन बढ़ सकता है, जिससे सिरदर्द हो सकता है.

कब्ज की परेशानी

ज्यादा देर तक सोने वालों में कब्ज की परेशानी देखी जाती है. पेट को हेल्दी रखने के लिए जरूरी है कि सही समय पर सही बौडी मुवमेंट होता रहे.

हो सकती है पीठ में दर्द की शिकायत

ज्यादा देर तक सोने से आपकी पीठ में दर्द हो सकता है. ऐसा इस लिए होती है क्योंकि ज्यादा देर तक सोने से शरीर में खून के बहाव पर बुरा असर पड़ता है और आपकी पीठ अकड़ जाती है.

डिप्रेशन का खतरा

जानकारों का मानना है कि ज्यादा देर तक सोने से दिमाग में डोपानाइन और सेरोटोनिन का लेवल कम होता है. यही कारण है कि आपका मुड पूरे दिन चिड़चिड़ा सा रहता है.

नाई बन लोगों के बाल काटते नजर आए Sunil Grover, फैन्स के साथ-साथ राजकुमार राव भी हुए फिदा

Sunil Grover New video : एक्टर सुनील ग्रोवर बीते कई दिनों से सोशल मीडिया पर छाए हुए हैं. उनकी वीडियोज लोगों को खूब पसंद आ रही है. कभी वह गन्ने का जूस बेचते नजर आते हैं, तो कभी सड़क किनारे कपड़े धोते, मूंगफली बेचते या फिर बर्फ का गोला बनाते देखे जाते हैं. हालांकि इस बार उन्होंने एक ऐसी वीडियो पोस्ट की है, जिस पर उनके फैंस तो जमकर रिएक्ट कर ही रहे है. साथ ही बॉलीवुड के एक्टर भी अपने आप को कमेंट करने से रोक नहीं पा रहे हैं.

नाई बन एक शख्स के बाल काटते नजर आए सुनील

दरअसल, इस बार सुनील ग्रोवर (Sunil Grover New video) ने जो वीडियो पोस्ट की है. उसमें वह कुछ बेचते हुए नहीं बल्कि एक आदमी के बाल काटते नजर आ रहे हैं. वीडियो में देखा जा सकता है कि सुनील, गुरु कृपा हेयर कटिंग सलून में मौजूद है. जहां वह कुर्सी पर बैठे एक ग्राहक के बाल काटते है. उनके हाथ में उस्तरा है, जिससे वह उस शख्स के बाल काट रहे है. जैसे ही अभिनेता ने ये वीडियो पोस्ट की, वैसे ही ये वायरल हो गई.

इस वीडियो को देखने के बाद फैन्स अपनी हंसी नहीं रोक पा रहे हैं. साथ ही सुनील ग्रोवर के इस नए अंदाज की भी खूब तारीफ कर रहे हैं. जहां एक यूजर ने लिखा, ‘नैचुरल एक्टर हैं सुनील साहब, ये हर जगह फिट हो जाते हैं.’ वहीं एक अन्य यूजर ने लिखा, ‘भैया जी ये आप किस लाइन में आ गए हैं?’

राजकुमार राव से लेकर आरती छाबड़िया ने किया रिएक्ट

हालांकि फैन्स के अलावा बॉलीवुड के कई सितारों ने भी एक्टर के इस वीडियो पर रिएक्ट किया है. एक्ट्रेस आरती छाबड़िया ने सुनिल के नाई वाले इस वीडियो पर लाफिंग इमोजी बनाकर रिएक्ट किया है. वहीं एक्टर राजकुमार राव, जितेंद्र कुमार और जेमी लिवर भी अपने आप को इस वीडियो पर कमेंट करने से रोक नहीं पाए. उन्होंने इस वीडियो को लाइक किया है.

शाहरुख की ‘जवान’ में नजर आएंगे सुनील ग्रोवर

वहीं सुनील ग्रोवर (Sunil Grover New video) के वर्क फ्रंट की बात करें तो वह जल्द ही शाहरुख खान और नयनतारा स्टारर ‘जवान’ में नजर आएंगे. इस फिल्म में उनका अहम किरदार होगा. सुनील के अलावा इस फिल्म में विजय सेतुपति, दीपिका पादुकोण और सान्या मल्होत्रा भी दिखाए देंगे. जो बड़े पर्द पर 7 सितंबर को रिलीज होगी.

आत्महत्या करने के लिए पति ने उकसाया था Aparna Nair को! एक्ट्रेस की मां ने किए चौंकाने वाले खुलासे

Aparna Nair Death : बीते दिनों मलयालम टीवी एक्ट्रेस अपर्णा नायर (Aparna Nair Death) अपने करमना स्थित घर में मृत पाई गई थीं. उनका शव संदिग्ध हालत में लटका हुआ पाया गया था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक्ट्रेस अपर्णा का लटका हुआ शव देखते ही उन्हें तुरंत अस्पताल लेकर जाया गया, जहां जांच के बाद डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. वहीं पुलिस ने अप्राकृतिक मौत का मामला दर्ज कर लिया था. साथ ही मामले की जांच भी की जा रही थी.

वहीं अब इस केस में एक नया मोड़ आया है. दरअसल, अभिनेत्री की मां बीना ने दामाद संजीत पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उनका दावा है कि अपर्णा के पति संजीत ने एक्ट्रेस को आत्महत्या करने के लिए उकसाया था. साथ ही वह उनकी बेटी को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया करता था, जिस कारण अपर्णा ने विवश होकर मौत को गले लगा लिया.

अपर्णा की मां ने दामाद पर लगाए ये आरोप

आपको बता दें कि, एक्ट्रेस (Aparna Nair Death) की मां ने दावा किया है कि आत्महत्या करने से ठीक पहले अपर्णा ने उनसे बात की थी.  मां बीना के मुताबिक, एक्ट्रेस ने अपनी मां को वीडियो कॉल पर बताया था कि, ‘वह पति संजीत की मानसिक प्रताड़ना को अब बिल्कुल भी सहन नहीं करेगी.’ इसके अलावा उनकी मां ने कहा, ”सिर्फ अपर्णा और संजीत ही जानते हैं कि उनके बीच क्या हुआ था? उसने तो मुझे शुक्रवार की सुबह कॉल किया था.”

साथ ही ये भी बताया था कि, ‘वो जा रही.’ इसके आगे उन्होंने कहा, ‘ये बात सुनने के बाद मैंने तुरंत संजीत को कॉल किया और उससे कहा कि वो इस बात का पता करें कि अपर्णा सुरक्षित है या नहीं? मैंने संजीत से कहा था कि वो घर का दरवाजा तोड़कर अंदर जाए और अपर्णा को कोई गलत कदम उठाने से रोके. लेकिन उसने मेरी एक बात नहीं सुनी.’

अपर्णा-संजीत के बीच नहीं था सब कुछ ठीक

इसके अलावा बीना ने आगे बताया कि, ‘मेरे कॉल करने के आधे घंटे बाद संजीत अपर्णा के रूम में गया, लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी. अगर संजीत मेरे कॉल करने के तुरंत बात अपर्णा को देखने जाता तो शायद वह अपर्णा को आत्महत्या करने से रोक सकता था.’ इसी के साथ एक्ट्रेस (Aparna Nair Death) की मां ने ये भी बताया कि अपर्णा और संजीत की शादीशुदा जिंदगी ठीक नहीं चल रही थी. दोनों के बीच काफी परेशानी थी.

संजीत ने खुद को बताया निर्दोष

वहीं दूसरी तरफ संजीत ने अपनी सासू मां के सभी आरोपों को खारिज कर दिया है. उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा, ‘वह निर्दोष है और उन्हें नहीं पता कि पत्नी अपर्णा ने इतना बड़ कदम क्यों उठाया.’ बहरहाल, पुलिस पहले बीना का स्टेटमेंट रिकॉर्ड करेगी. जिसके बाद जांच की जाएगी. अगर जांच में संजीत के खिलाफ सबूत मिलते है तो उनके खिलाफ केस भी दर्ज किया जाएगा.

आपको बता दें कि 31 साल की अपर्णा (Aparna Nair Death) मलयालम फिल्म इंडस्ट्री का जाना-माना चेहरा थीं. उन्होंने ‘अथमासखी’ और ‘चंदनमाझा’ जैसे कई पॉपुलर शो में काम किया हैं. वह अपने पति संजीत और दो बेटियां थ्रया और कृतिका के साथ करमना में रहती थी.

जब पत्नी की आंखों में प्रेमी बस जाए

छत्तीसगढ़ के जिला बलौदा बाजार के थाना पलारी के गांव छेरकापुर के रहने वाले भकला आडिल का बेटा सुमेर आडिल आवारा दोस्तों के साथ रह कर काफी बिगड़ गया था. वह गांव की बहूबेटियों पर बुरी नजर रखने लगा तो भकला ने उस की शादी पड़ोस के गांव की रहने वाली तोपबाई से कर दी. भकला का सोचना था कि पत्नी की जिम्मेदारी आते ही बेटा अपने आप सुधर जाएगा. परिणाम उस के आशा के एकदम अनुकूल ही निकला.

सुमेर नईनवेली पत्नी तोपबाई के रूपयौवन में कुछ इस तरह उलझा कि शादी के बाद उस का ज्यादातर समय घर पर ही गुजरने लगा. शादी के डेढ़ साल बाद तोपबाई ने बेटी को जन्म दिया तो सुमेर की जिम्मेदारी और बढ़ गई. अब उस के पास समय ही नहीं रहा कि वह दोस्तों के साथ उठेबैठे. एकएक कर के सुमेर 4 बच्चों का बाप बन गया.

परिवार बढ़ा और उसी बीच बाप की भी मौत हो गई तो सुमेर घरपरिवार की जिम्मेदारियों में इस कदर उलझ गया कि अब उसे अपना भी होश नहीं रहता था. इस के बावजूद जवानी की बिगड़ी अन्य आदतें भले ही सुधर गई थीं, लेकिन पीनेपिलाने की आदत जस की तस थी. जबकि अब उस के बच्चे भी जवान हो रहे थे. उस की बड़ी बेटी हेमलता 18 साल की हो चुकी थी.

सुमेर के घर से कुछ दूरी पर संतरू यादव का घर था. उस का दूध का कारोबार था. इसलिए उस के बेटे नरसिंह यादव उर्फ शेरा का मन पढ़ाई में नहीं लगा तो उस की पढ़ाई छुड़ा कर संतरू ने उसे अपने साथ दूध के कारोबार में लगा लिया था. उस का एक बेटा और था, जो रायपुर चला गया था और वहां किसी कंपनी में नौकरी करने लगा था. उस के जाने के बाद उसे शेरा का ही सहारा रह गया था.

एक ही गांव का होने की वजह से सुमेर और शेरा में अच्छी पटती थी. इसी वजह से दोनों का एकदूसरे के घर भी आनाजाना था. वैसे तो दोनों की उम्र में 5-6 साल का अंतर था, लेकिन उन की आदतें काफी हद तक मिलतीजुलती थीं, इसीलिए दोनों में पटरी खाने लगी थी. सुमेर भी खानेपीने वाला आदमी था और शेरा भी. अकसर दोनों की शामें एक साथ गुजरती थीं.

दोस्त की पत्नी होने की वजह से शेरा तोपबाई को भाभी कहता था. इसी रिश्ते की आड़ में दोनों के बीच हंसीमजाक भी खूब होता था. उन का यह मजाक कभीकभी मर्यादा भी लांघ जाता था.

4 साल पहले की बात है. गरमी के दिन थे. शेरा अपनी भैंसों को नहलाने के लिए रोजाना दोपहर को गांव के दक्षिण में जायसवाल आरा मिल से थोड़ी दूर स्थित ठाकुरबिया तालाब पर ले जाता था.

उस दिन शेरा ने अपनी भैंसों को पानी में उतारा ही था कि उस की नजर तालाब के दूसरे घाट पर नहा रही तोपबाई पर पड़ी. वह साड़ी उतार कर सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज में नहा रही थी. शेरा ने सोचा तोपबाई उसे देख कर या तो पानी में बैठ जाएगी या निकल कर साड़ी लपेट लेगी. लेकिन जब उस ने ऐसा कुछ नहीं किया तो शेरा की आंखों में चमक आ गई.

शेरा को अचानक शरारत सूझी और वह अपनी भैंसों को धीरेधीरे उसी ओर खदेड़ ले गया, जिधर तोपबाई नहा रही थी. तोपबाई को लगा, उस की भैंसे अपनेआप आ गई हैं, इसलिए वह खामोश रही. शेरा ने भैंस के ऊपर पानी डालने के बहाने एक अंजुली पानी तोपबाई के ऊपर भी उछाल दिया.

तोपबाई के भीगे खुले अंग धूप में कुंदन की तरह चमक रहे थे. उस स्थिति में वह कुछ ज्यादा ही सुंदर लग रही थी. पहली बार तो तोपबाई कुछ नहीं बोली, लेकिन जब उस ने दोबारा यही हरकत की तो वह उस की शरारत भांप गई. बिल्लौरी आंखों से शेरा को घूरते हुए बोली, ‘‘क्यों शेरा, तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा है क्या कि मैं नहा रही हूं?’’

‘‘क्यों नहीं दिखाई दे रहा है भाभी. पानी में भीग कर इस धूप में तो आप कुंदन की तरह चमक रही हैं.’’

‘‘तुम मेरे ऊपर पानी क्यों उछाल रहे हो?’’ तोपबाई ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘भाभी, मैं पानी आप के ऊपर नहीं, भैसों के ऊपर उछाल रहा था, जिस से उन की गरमी थोड़ी शांत हो जाए. उसी में से थोड़ा पानी आप पर भी चला गया होगा.’’ शेरा ने सफाई दी.

‘‘भैंस ही नहलाना था तो उधर ही नहला लिया होता. तुम्हें पता नहीं यहां औरतें नहाती हैं.’’ तोपबाई ने बनावटी प्रतिरोध किया.

‘‘अरे ये भैंसे भी तो औरतें हैं. मैं तो इन्हें उसी ओर ले गया था. ये खुद ही अपने घाट पर आ गईं. अब इन्हें छोड़ कर मैं कहां जा सकता हूं.’’

‘‘ठीक है, मैं ही जा रही हूं. तुम अपनी भैसों की गरमी शांत करो.’’

‘‘आप की गरमी बड़ी जल्दी शांत हो गई भाभी. मैं ने तो सोचा था कि अभी आप नहाएंगी. लेकिन आप की गरमी तो पानी का छींटा पड़ते ही शांत हो गई.’’ शेरा ने यह बात जिस अंदाज में कही थी, तोपबाई को उस का मतलब समझते देर नहीं लगी. उस ने कहा, ‘‘मेरी गरमी पानी से शांत नहीं होती, उस के लिए मर्द चाहिए. हिम्मत है मेरी गरमी शांत करने की.’’

‘‘मौका मिला तो जरूर कोशिश करूंगा भाभी,’’ शेरा ने कहा, ‘‘मौका तो दीजिए. उस के बाद देखिए, मेरी हिम्मत को.’’

इस के बाद बात खत्म हो गई. लेकिन शेरा का जब भी तोपबाई से सामना होता, शेरा अभिवादन कर के यह कहना नहीं भूलता, ‘भाभी गरमी शांत करने का कब मौका दे रही हो?’

उसी बीच गांव में छत्तीसगढ़ी नाचगाने का प्रोग्राम बना. जिस दिन नाचगाना होना था, सुबह शेरा तोपबाई के दरवाजे से गुजरा तो आंगन में बैठी तोपबाई उसे दिखाई दे गई. दरवाजे के पास से ही उस ने कहा, ‘‘रामराम भाभीजी, क्या हालचाल है, क्या कर रही हैं?’’

‘‘तुम भी अजीब सवाल करते हो, देख नहीं रहे हो बैठी हूं.’’

‘‘वह तो देख रहा हूं, मेरा मतलब कुछ और था. मैं तो गरमी…’’ शेरा की बात पूरी होती, उस के पहले ही तोपबाई ने कहा, ‘‘देवरजी, अभी तुम जाओ. रात में नाच देखने आऊंगी. वहीं मिलना.’’

शेरा का वह दिन बड़ी मुश्किल से बीता. रात 10 बजे के बाद नाचगाना शुरू हुआ तो तोपबाई ने सुमेर से कहा, ‘‘चलो, नाच देखने नहीं चलोगे क्या?’’

‘‘तुझे नाच देखने का बड़ा शौक है तो तू जा. अभी मेरा मन नहीं है. नाच पूरी रात चलेगी, मन होगा तो आ जाऊंगा.’’ सुमेर ने कहा.

तोपबाई तो यही चाहती थी. इसलिए वह तुरंत निकल गई. वह नाच देखने थोड़े ही गई थी. वह तो शेरा से मिलने गई थी. इसलिए वहां पहुंचते ही शेरा को खोजने लगी. शेरा भी उसी को खोज रहा था, इसलिए उन्हें मिलने में देर नहीं लगी. मिलते ही शेरा उसे गांव के बाहर बने स्कूल में ले गया.

प्रोग्राम पहले से ही तय था, इसलिए शेरा पहले ही वहां दरी बिछा आया था. दरी पर बैठते हुए तोपबाई ने कहा, ‘‘शेरा, मैं ज्यादा देर तक रुक नहीं सकती, इसलिए जो भी करना है, जल्दी करो. अगर सुमेर नाच देखने आ गया तो मुझे वहां न पा कर शक करेगा. वैसी भी वह बड़ा शक्की आदमी है.’’

‘‘भाभीजी, आप उस की चिंता ना करो, मैं हूं न. मैं सब संभाल लूंगा. आखिर मेरी उस से दोस्ती जो है…’’

शेरा भी कहां समय गंवाना चाहता था. इसलिए उस ने तोपबाई को बांहों में भर लिया. इस के बाद वासना का ज्वर उमड़ा तो जल्दी ही शेरा को अहसास हो गया कि तोपबाई सचमुच हुस्न के गोले छोड़ने वाली तोप है.

वासना का तूफान शांत हुआ तो अधखुली आंखों से शेरा की ओर देखते हुए तोपबाई ने कहा, ‘‘शेरा आज मैं तुम्हारी कायल हो गई. तुम ने सचमुच मेरी गरमी शांत कर दी.’’

‘‘भाभी, तुम भी कम नहीं हो. मेरे भी छक्के छुड़ा दिए.’’ शेरा ने कहा.

कपड़े ठीक करते हुए तोपबाई उठी, ‘‘अब मुझे चलना चाहिए. लेकिन जाने से पहले एक बात का जवाब जरूर चाहूंगी. कहीं तुम मुझे मंझधार में तो नहीं छोड़ दोगे? मैं ने अपनी इज्जत तुम्हारे हवाले कर दी है.’’

‘‘भाभी जैसा तुम सोच रही हो, वैसा कुछ भी नहीं होगा. हमारेतुम्हारे बीच आज जो संबंध बने हैं, वह ताउम्र बने रहेंगे. भले ही हम दोनों बूढ़े हो जाएं, पर हमारा प्यार जरा भी कम नहीं होगा. तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है. कभी भी तुम्हें किसी भी चीज की जरूरत हो, मुझ से बेहिचक कहना. मैं तुम्हारी हर जरूरत पूरी करूंगा.’’

इच्छा पूरी होने के बाद शेरा अपनी राह चला गया तो तोपबाई अपनी राह. इस के बाद दोनों को जब भी मौका मिलता, कहीं न कहीं जिस्मानी भूख शांत कर लेते. यह ऐसा संबंध है, जो किसी भी तरह छिपाए नहीं छिपता. शेरा और तोपबाई के भी संबंधों की जानकारी सभी को हो गई.

मजे की बात यह थी कि तोपबाई जहां 4 बच्चों की मां थी, वहीं उस का प्रेमी शेरा भी 2 बच्चों का बाप था. उस की पत्नी संतोषी को तीसरा बच्चा होने वाला था. जब इस बात की जानकारी संतोषी को हुई तो उस ने पूरा घर सिर पर उठा लिया. उस ने शेरा को समझाया भी, लेकिन उस पर पत्नी के समझाने का कोई असर नहीं पड़ा. जल्दी ही हालत यह हो गए कि संतोषी अगर तोपबाई का नाम ले लेती तो उसे गुस्सा आ जाता और वह उस की पिटाई कर देता.

दूसरी ओर सुमेर भी पत्नी की बदचलनी से शर्मिंदा था. लेकिन उसे शराब की ऐसी लत लगी थी कि वह अपनी कमाई का आधे से ज्यादा पैसा शराब में उड़ा देता था. तोपबाई जब भी समझाने का प्रयास करती, उसे चार बातें सुननी पड़तीं. घर में बच्चे बड़े हो चुके थे, इसलिए सुमेर तोपबाई पर सख्ती नहीं कर पा रहा था.

शायद इन्हीं वजहों से तोपबाई और शेरा के संबंधों में कोई रुकावट नहीं आई. जब पानी सिर से ऊपर जाने लगा तो सुमेर ने तोपबाई के घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी. वह खुद तो उस पर नजर रखता ही था, इस काम में बेटी भी उस की मदद करती थी.

सुमेर और बेटी की निगरानी से तोपबाई परेशान हो उठी. अब वह पहले की तरह शेरा से नहीं मिल पा रही थी. शेरा भी तोपबाई से मिलने के लिए बेचैन रहता था. शेरा को पता था कि सुमेर ने उस पर घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा रखी है.

दोनों की छटपटाहट बढ़ी तो एक दिन तोपबाई ने कहा, ‘‘शेरा, अगर तुम चाहते हो कि मैं पूरी तरह से तुम्हारी हो जाऊं तो तुम्हें सुमेर को रास्ते से हटाना होगा. शेरा भी तोपबाई के लिए बेचैन था, इसलिए वह इस के लिए भी तैयार हो गया.’’

25 जुलाई, 2014 को शेरा के एक रिश्तेदार के बेटे का जन्मदिन था. शेरा जन्मदिन की पार्टी में शामिल हो कर रात 9 बजे के आसपास घर लौट रहा था, तभी बजरंग चौक के पास उस की मुलाकात सुमेर से हो गई.

उसे देखते ही शेरा के दिमाग में उसे ठिकाने लगाने का विचार आ गया. उस ने उस के पास जा कर कहा, ‘‘सुमेरभाई लगता है, आजकल आप मुझ से नाराज चल रहे हैं, इसीलिए मेरे साथ बैठ कर खातेपीते नहीं हैं. बहुत दिनों बाद मिले हो तो चलो आज साथ बैठ कर एकएक पैग पी लेते हैं.’’

सुमेर शराब पिए था, लेकिन शराब उस की कमजोरी बन चुकी थी, इसलिए वह मना नहीं कर सका. शेरा ने उसे अपनी मोटरसाइकिल नंबर सीजी04जे एफ-5513 पर बैठाया और बलौदा बाजार की ओर चल पड़ा. उस समय रात के 10 बज रहे थे. बलौदा बाजार से उस ने शराब की एक बोतल खाने का सामान खरीदा और लौट पड़ा.

रास्ते में पड़ने वाले खोरसी नाला के पास उस ने मोटरसाइकिल रोक दी और ठीकठाक जगह तलाश कर बैठ गया. शेरा ने खुद तो कम पी, जबकि सुमेर को ज्यादा पिलाई. सुमेर पर शराब का नशा चढ़ा तो वह वहीं पर लेट गया. इस के बाद शेरा ने तोपबाई को फोन किया, ‘‘तोपबाई, सुमेर मेरे पास नशे में बेहोश पड़ा है. तुम कहो तो इसे ऊपर पहुंचा दूं या मोटरसाइकिल पर लाद कर तुम्हारे घर छोड़ दूं.’’

‘‘अब मैं बताऊंगी कि उस का क्या करना है. पहले तो कहते थे कि जीवन भर साथ निभाऊंगा, मंझधार में नहीं छोड़ूंगा. अब मुझ से पूछ रहे हो कि क्या करूं?’’ तोपबाई गुस्से में बोली, ‘‘अगर तुम चाहते हो कि मैं उस के हाथों पिटती रहूं, बेइज्जत होती रहूं तो ला कर उसे यहां छोड़ दो.’’

शेरा की समझ में आ गया कि तोपबाई क्या चाहती है. उस ने कहा, ‘‘ठीक है, आज मैं सारे फसाद का अंत किए देता हूं, आज के बाद तुझे मारनेपीटने वाला कोई नहीं रहेगा. रहेगा तो सिर्फ प्यार करने वाला.’’

इस के बाद शेरा ने सुमेर के पास जा कर दोनों हाथों से उस की गरदन दबोच ली और दबाने लगा. सुमेर पर नशा इस कदर हावी था कि वह विरोध नहीं कर सका. उस ने हाथपैर पटक कर दम तोड़ दिया.

सुमेर मर गया तो शेरा उस के दोनों पैर पकड़ कर उसे घसीटते हुए नाले के पास ले गया और उस की लाश को उठा कर नाले में फेंक दिया. इस के बाद निश्चिंत हो कर अपने घर चला गया.

26 जुलाई, 2014 की सुबह खोरसी नाले से सटे गांव मगरचबा के रहने वालों ने नाले में लाश देखी तो इस की जानकारी कोतवाली बलौदा बाजार को दी. सूचना पाते ही कोतवाली प्रभारी प्रमोद सिंह दलबल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

थाने से निकलते समय थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसपी अभिषेक शांडिल्य के अलावा एएसपी वी.पी. राजभानू को भी दे दी थी. लाश पानी में पेट के बल पड़ी थी. थानाप्रभारी ने गांव वालों की मदद से वह लाश बाहर निकलवाई.

लाश देख कर ही लग रहा था कि उसे रात में ही पानी में फेंका गया था. वहां मौजूद लोगों से पुलिस ने लाश की शिनाख्त करानी चाही तो कोई भी उस की शिनाख्त नहीं कर सका.

थानाप्रभारी प्रमोद सिंह घटनास्थल और लाश की जांच कर रहे थे कि एसपी अभिषेक शांडिल्य एवं एएसपी वी.पी. राजभानू भी आ गए. इस के बाद घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

इस के बाद थानाप्रभारी प्रमोद सिंह ने थाने लौट कर हत्या का मुकदमा दर्ज कराया और यह पता लगाने लगे कि 2-3 दिनों में कहीं कोई गुमशुदगी तो दर्ज नहीं हुई. उन्हें पता चला कि थाना पलारी में थोड़ी देर पहले ही एक महिला तोपबाई आई थी, जिस का पति सुमेर आडिल पिछले दिन से गायब है. तोपबाई ने अपने पति का जो हुलिया बताया था, वह लावारिस लाश के हुलिए से मेल खा रहा था.

इस के बाद थानाप्रभारी प्रमोद सिंह ने तोपबाई को पोस्टमार्टम हाउस बुलवा लिया. पोस्टमार्टम हाउस में तोपबाई को नाले में मिली लाश दिखाई तो वह जोरजोर से रोने लगे. इस से साफ हो गया कि मृतक उस का पति सुमेर आडिल था. पोस्टमार्टम के बाद लाश तोपबाई को सौंप दी गई. थानाप्रभारी प्रमोद सिंह ने जांच शुरू की तो पता चला कि तोपबाई का गांव के ही शेरा यादव से अवैध संबंध था. इस बात को ले कर सुमेर आए दिन उस की पिटाई करता रहता था.

थानाप्रभारी प्रमोद सिंह ने तोपबाई और शेरा यादव को थाने बुलवा लिया. दोनों से अलगअलग सख्ती से पूछताछ की गई तो सुमेर की हत्या का सारा राज सामने आ गया. शेरा यादव ने स्वीकार कर लिया कि सुमेर की पत्नी तोपबाई के साथ पिछले कुछ सालों से उस के अवैध संबंध थे. उसी के कहने पर उस ने उस के पति सुमेर की हत्या कर लाश नाले में फेंक दी थी.

सुमेर की हत्या का खुलासा होने के बाद थानाप्रभारी प्रमोद सिंह ने अज्ञात की जगह शेरा और तोपबाई को नामजद कर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. तोपबाई को जहां रायपुर की जिला जेल में रखा गया है, वहीं शेरा को बलौदा बाजार जिला जेल भेजा गया है. बलौदा बाजार जेल में महिला सेल न होने की वजह से उसे रायपुर भेजा गया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

तनावपूर्ण जीवनशैली से माइग्रेन की समस्या

दिल्ली जैसे किसी भारतीय महानगर में रहने वाले व्यक्ति को जिंदगी की सुबह समय पर औफिस पहुंचने की आपाधापी से शुरू होती है. फिर कई तरह की मीटिंग्स, काम पूरा करने की समय सीमा, भोजन न कर पाने की मजबूरी, ट्रैफिक का ?ामेला और फिर अगले दिन काम पर जाने के तनाव के साथ ही उन के दिन का अंत होता है. ऐसे में उन्हें अपने लिए व आराम करने के लिए वक्त नहीं मिलता.

दक्षतापूर्ण क्षेत्रों में काम करने वाले ऐसे भारतीय शहरी लगातार पूरी नींद लेने से वंचित रह जाते हैं. वे हमेशा काम के बो?ा तले दबे होते हैं. ज्यादातर समय वे ढेर सारे प्रोजैक्ट और दायित्व पूरे करने की मारामारी में ही गुजार देते हैं. देर तक काम करना उन के लिए सामान्य बात है, जबकि भोजन से वंचित रह जाना उन की आदत बन जाती है.

कुल मिला कर उन की जीवनशैली पेंडुलम की तरह ?ालती रहती है. कोविड के बाद वर्क फ्रौम होम से कुछ राहत मिली है पर इस में नौकरी का खतरा बढ़ गया है क्योंकि जो दिखता नहीं वह लगता है ही नहीं. वर्क फ्रौम होम वाले ज्यादा टैंस में भी हो सकते हैं.

लगातार बेहद तनावनूर्ण लाइफस्टाइल के चलते कार्डियोवैस्क्यूलर स्थितियों और डायबिटीज जैसे लाइफस्टाइल डिसऔर्डर के मामले बढ़ते जा रहे हैं. स्ट्रैस और चिंता के कारण कुछ लोग माइग्रेन की चपेट में भी आ जाते हैं.

माइग्रेन के सिरदर्द की सहीसही वजह तो नहीं बताई जा सकती लेकिन सम?ा जाता है कि मस्तिष्क की असामान्य गतिविधियां नर्व्स के सिग्नल्स को प्रभावित करती हैं और मस्तिष्क की ब्लड फ्लो इसे और तीव्र कर सकती है. यह डिसऔर्डर लगातार स्थिति बिगाड़ने वाला होता है जिस से प्रभावित व्यक्ति की जिंदगी अस्तव्यस्त हो जाती है.

अफसोस यह है कि इस के बावजूद बहुत सारे प्रभावित लोग चिकित्सकीय सलाह नहीं लेते. वे यह मान बैठते हैं कि इस का कोई उपाय नहीं हो सकता.

क्रौनिक माइग्रेन की स्थिति को यों ही नहीं छोड़ देना चाहिए. प्रभावी चिकित्सकीय सहायता और उपचार से इसे ठीक व नियंत्रित किया जा सकता है. चिकित्सकीय सहायता, पौष्टिक खानपान, लाइफस्टाइल में बदलाव और माइग्रेन के दौरे से बचाव के उपाय इस में काफी कारगर हो सकते हैं.

इसी तरह ओनाबोटुलिनम टौक्सिन टाइप ए का इंजैक्शन भी इस स्थिति में सुधार ला सकता है. अब आजकल और नई दवाइयां भी आने लगी हैं पर डाक्टर उन का उपयोग संभल कर ही करते हैं.

माइग्रेन का दौरा

माइग्रेन का दर्द बढ़ाने में कई कारक जिम्मेदार होते हैं. मसलन, हार्मोनल बदलाव, नींद की कमी, अनियमित खानपान की आदत, एसिडिटी, अवसाद, धूप में रहना और तनाव जैसे कई कारक इस के लिए जिम्मेदार होते हैं. कुछ महिलाओं को हार्मोनल कारणों से मासिकधर्म के समय माइग्रेन का दौरा पड़ता है जबकि कुछ लोगों को तेज रोशनी, सड़कों के ट्रैफिक के कोलाहल में शोरशराबे और तीखी गंध के कारण इस स्थिति से गुजरना पड़ता है. खानपान की कुछ चीजों से भी प्रबल माइग्रेन की संभावना बढ़ती है.

गरमी, धूल और खानपान की आदतों जैसे बाहरी कारकों से बचा जा सकता है और इन पर नियंत्रण रखा जा सकता है. वहीं हार्मोनल समस्याओं, दबाव, तनाव और चिंता जैसे आंतरिक कारकों से सावधानीपूर्वक निबटना होता है.

तनाव और माइग्रेन

माइग्रेन ऐसी समस्या है जो मस्तिष्क के स्नायु से शुरू होती है. जाहिर है कि मस्तिष्क में किसी तरह का बड़ा दबाव मस्तिष्क की गतिविधियों को सक्रिय करते हुए सिरदर्द की स्थिति में ला सकता है. हालांकि हमारे दैनिक जीवन में तनाव हमेशा लगा रहता है और हमें इस से बेहतर तरीके से प्रबंधित करने के तौरतरीके अपनाने की जरूरत होती है ताकि हमारे शरीर और मस्तिष्क में इस का कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े.

दरअसल स्ट्रैस से माइग्रेन और तनाव जैसे सिरदर्द दोनों उभर सकते हैं. महिलाओं को अकसर कई तरह की जिम्मेदारियां एकसाथ पूरी करनी पड़ती हैं. अपने कैरियर से जुड़े कामकाज के अलावा उन्हें परिवार व बच्चों की जिम्मेदारियां भी संभालनी पड़ती हैं. ऐसी स्थिति में वे बहुत ज्यादा काम के दबाव की स्थिति से गुजरती हैं. इसलिए माइग्रेन या तनावपूर्ण सिरदर्द उन में ज्यादा पाया जाता है.

नींद का अभाव, भोजन से वंचित रह जाने चिंता आदि कारणों से भी तनाव बढ़ता है और यह माइग्रेन के सिरदर्द का कारण बनता है. व्हाट्सऐप, फेसबुक में खो जाना मोबाइल व टीवी पर लगातार फिल्में देखना, वर्क फ्रौम होम के कारण कंप्यूटर की स्क्रीन में आंखें गड़ाए रखना भी माइग्रेन को बढ़ाने के कारण हो सकते हैं. माइग्रेन का मरीज इन्हें कम इस्तेमाल करे, जितना संभव हो.

कई बार दर्दनिवारक दवाइयों के बहुत ज्यादा इस्तेमाल से भी बारबार सिरदर्द उभरता है. कुछ समय बाद ये दर्दनिवारक दवाएं दर्द मिटाने में बेअसर हो जाती हैं. इस के अलावा लंबे समय तक दर्दनिवारक दवाइयों का इस्तेमाल न सिर्फ किडनी, लिवर और पेट पर धीरेधीरे प्रतिकूल प्रभाव दिखाने लगता है बल्कि अति इस्तेमाल से जुड़ा सिरदर्द भी उत्पन्न हो सकता है और इन सब से निबटना बहुत मुश्किल हो जाता है.

हालांकि क्रौनिक माइग्रेन से पीडि़त कुछ लोगों पर परंपरागत पद्धतियों से इलाज शुरू किया जाता है पर जब कोई असर नहीं होता तब ऐसे लोगों के लिए बोटोक्स नाम से लोकप्रिय उपाय ओनाबोटुलिनम टौक्सिन टाइप ए का इंजैक्शन बड़ी राहत बन कर सामने आया है. ऐसे वयस्क मरीजों को रोग से नजात दिलाने के लिए इस दवा को अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन से मंजूरी मिली है जो महीने में 15 या अधिक दिन 4 घंटे से भी ज्यादा समय तक सिरदर्द की समस्या से पीडि़त रहते हैं.

यह दवा कई लोगों को गंभीर दर्द से राहत दिलाने में कारगर साबित हुई है. यह दवा स्नायु के उन संकेतकों को अस्थायी रूप से अवरुद्ध करने का काम करती है जिन से बेचैनी और दर्द बढ़ाने वाले रसायन प्रवाहित होते हैं.

इस दवा का असर कई महीनों तक रहता है और 3 महीने के अंतराल पर नियमित रूप से इस का इंजैक्शन लेने वाले मरीजों के जीवन की क्वालिटी में आश्चर्यजनक सुधार आ सकता है. बोटोक्स के इंजैक्शन सिर के पास के कुछ खास बिंदुओं पर लगाए जाते हैं और इसे अच्छी तरह इंजैक्ट करने की तकनीक में निपुण चिकित्सकों द्वारा ही लगाया जाता है.

स्ट्रैस मैनेजमैंट भी एक महत्त्वपूर्ण उपाय है जिसे अत्यंत तनावपूर्ण जीवनशैली जीने वाले व्यक्तियों को अपनाना चाहिए.

पीएम मोदी का भाषण और वास्तविकता

जिसे समूचा विपक्ष अहंकार कहता नजर आया, असल में वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लड़खड़ाता आत्मविश्वास है जो देश के लिए चिंता की बात होनी चाहिए कि हमारे प्रधानमंत्री सब्र खोने लगे हैं और अपनी कुरसी की ख्वाहिश को लालकिले के भाषण में जताने से भी नहीं चूके.

‘‘मैं अगले साल झंडा फहराने और उपलब्धियां गिनाने फिर आऊंगा…’’ यह वाक्य नरेंद्र मोदी के अंदर गहराते डर को बयां करता है. यह डर 12 अगस्त को मध्य प्रदेश के सागर में भी व्यक्त हुआ था जब उन्होंने दलित समाज सुधारक रविदास के स्मारक स्थल का भूमिपूजन किया था. तब भी उन्होंने कहा था कि जिस स्मारक की आज आधारशिला रख कर जा रहा हूं उस का लोकार्पण करने मैं ही सालडेढ़साल बाद आऊंगा.

अब जबकि लोकसभा चुनाव में 9 महीने ही बचे हैं तब यह बेहद जरूरी हो जाता है कि नरेंद्र मोदी के भाषणों का तथ्यों, राजनीति व मनोवैज्ञानिक दृष्टि से विश्लेषण किया जाए. राजनीतिक विश्लेषण करने की जिम्मेदारी तो विपक्ष और मीडिया का एक, छोटा सा ही सही, हिस्सा निभा ही रहा है. लालकिले से प्रधानमंत्री का 15 अगस्त का भाषण महज भाषण नहीं होता बल्कि एक ऐतिहासिक दस्तावेज भी होता है. इस बार नरेंद्र मोदी ने इस दस्तावेज पर प्रमुख रूप से जो लिखा उस पर एक नजर डालें तो उस में उन का कुरसी प्रेम और सत्ता खो देने का भय ही नजर आता है.

यह अहंकार क्यों?

सागर में उन्होंने यह नहीं कहा था कि डेढ़ साल बाद जब मैं आऊंगा तो आप लोगों यानी जनता के आशीर्वाद से राज्य में भाजपा की ही सरकार होगी और भाई शिवराज सिंह चौहान ही मुख्यमंत्री होंगे. इसी तरह 15 अगस्त के उन के भाषण में वे ही वे यानी मोदी ही मोदी या मैं ही मैं शामिल था. उन्होंने यह भी नहीं कहा कि अगर संयोग रहा तो यही राजनाथ सिंह रक्षा मंत्री होंगे, अमित शाह गृह मंत्री रहेंगे और वित्त मंत्री निर्मला सीतारामण ही होंगी. यानी मोदी इन दिनों सिर्फ और सिर्फ अपने प्रधानमंत्री बने रहने की बात सोच और कर रहे हैं. इतना आत्मकेंद्रित और आत्ममुग्ध हो जाना देश के सभी 140 करोड़ परिवारजनों के लिए किसी भी लिहाज से शुभ नहीं कहा जा सकता.

क्या कहा मोदी ने?

लालकिले के प्रांगण में बैठे तमाम आम और खास लोगों के चेहरों पर भी बेफिक्री के भाव प्रधानमंत्री के भाषण को ले कर थे, मसलन :

‘‘1947 में हजार साल की गुलामी में संजोए हुए हमारे सपने पूरे हुए. मैं पिछले एक हजार वर्षों की बात इसलिए कर रहा हूं क्योंकि मैं देख रहा हूं कि देश के पास एक बार फिर अवसर है. मेरे शब्द लिख कर रख लीजिए. अभी हम जिस युग में जी रहे हैं, इस युग में हम जो करेंगे, जो कदम उठाएंगे और एक के बाद जो निर्णय लेंगे वे स्वर्णिम इतिहास को जन्म देंगे.

‘‘आज भारत पुरानी सोच, पुराने ढर्रे को छोड़ कर कर लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए चल रहा है, जिस का शिलान्यास हमारी सरकार करती है. उस का उद्घाटन हम अपने कालखंड में ही करते हैं. इन दिनों जो शिलान्यास मेरे द्वारा किए जा रहे हैं, आप लिख कर रख लीजिए कि उन का उद्घाटन भी आप लोगों ने मेरे नसीब में छोड़ा हुआ है…’’

भाग्यवाद की हद ही इसे कहा जाएगा कि अगली बार भी, बकौल नरेंद्र मोदी, नरेंद्र मोदी ही प्रधानमंत्री होंगे, हालांकि इस बात को मौजूद लोगों ने लिखा नहीं क्योंकि किसी के पास पेनकौपी या डायरी नहीं थे.

सभी को मान लेना चाहिए कि विधि ने उन के नसीब में अभी और हजारों शिलान्यास, उद्घाटन, भूमिपूजन वगैरह लिख छोड़े हैं जिन को सच साबित करना अब उन के 140 करोड़ परिवारजनों की जिम्मेदारी है जिन में से 5-6 करोड़ सवर्ण तो इसे उठाएंगे ही, बाकी दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और आदिवासियों का ठिकाना नहीं.

प्रधानमंत्री या भविष्यवक्ता

नरेंद्र मोदी की भविष्यवाणी से देश एक भारीभरकम चुनावी खर्चे से भी बच जाएगा, फिर भले ही वे और 5 साल ‘वंदे भारत’ टाइप महंगी और रईसों की लग्जरी ट्रेनों को रेलवे गार्ड जैसे हरी ?ांडी दिखाते गुजार दें.

गौरतलब है कि इन ट्रेनों के बारे में भी उन्होंने बड़े फख्र से कहा कि रेल आधुनिक हो रही है तो वंदे भारत ट्रेन भी आज देश में चल रही है. गांवगांव पक्की सड़कें बन रही हैं तो इलैक्ट्रिक बसें, मैट्रो की रचना भी आज देश में हो रही है. आज गांवगांव तक इंटरनैट पहुंच रहा है.

हकीकत यह रही

वंदे भारत ट्रेनों की हालत यह है कि वे खाली चल रही हैं. प्रधानमंत्री की ही दिखाई हरी ?ांडी से 7 जुलाई से शुरू हुई लखनऊ-गोरखपुर रूट की वंदे भारत ट्रेन को शुरू के 4-5 दिन तो ठीकठाक मुसाफिर मिले लेकिन जुलाई के तीसरे सप्ताह में ही यह ट्रेन 80 फीसदी खाली चलने लगी. यानी शुरू में लोग शौकिया तौर पर सवार हुए थे और अब मजबूरी में इस महंगी ट्रेन में यात्रा कर रहे हैं और जो मजबूरी में भी नहीं कर रहे वे वाकई रईस हैं जो इतना महंगा किराया अफोर्ड कर पा रहे हैं. इस ट्रेन की चेयरकार का किराया 890 और ऐग्जिक्यूटिव क्लास का किराया 1,700 रुपए है. जबकि इंटरसिटी में यही किराया 475 रुपए है.

भोपाल-इंदौर वंदे भारत ट्रेन तो तीसरे ही दिन 29 जून को टैं बोल गई थी जब 15 फीसदी ही यात्री इसे मिले थे. भोपाल से इंदौर का किराया 810 और 1,500 रुपए अफोर्ड करने में तो रईसों को भी पसीने आ रहे हैं क्योंकि इस रूट पर लग्जरी बस का किराया 400 रुपए है और ऐक्सप्रैस ट्रेनों का 200 रुपए. एकाध घंटे की बचत के लिए कोई सम?ादार आदमी ज्यादा पैसे खर्च नहीं कर रहा, जिस से रेलवे लगातार घाटे में जा रही है और इस घाटे की भरपाई गरीब ही करेंगे, यह भी तय ही है.

गरीबों के लिए झुनझुना

ये वही गरीब हैं जो भव्य रेलवे स्टेशनों में दाखिल होने से भी डरने लगे हैं क्योंकि वहां हर चीज या सुविधा का जरूरत से ज्यादा पैसा देना पड़ता है. 2014 तक स्टेशनों पर शौच जाने के 50 पैसे लगते थे, अब 10 रुपए देने पड़ते हैं. प्लेटफौर्म टिकट भी 1 से बढ़ कर 10 रुपए का हो गया है. पार्किंग प्राइवेट हाथों में है, जिस का न्यूनतम शुल्क ही 20 रुपए प्रति 2 घंटे का है. इस के बाद यह प्रति घंटे के हिसाब से बढ़ता जाता है. जिन गरीबों को मोदीजी झुनझुना दिखाते रहते हैं उन्हें तो 10 से कम में 30 मिलीग्राम की पतली चाय पीने के पहले भी हजार बार सोचना पड़ता है.

सड़कों के भी यही हाल हैं. अच्छी वे हैं जो अमीरों के लिए हैं, जिन की चमचमाती बड़ीबड़ी कारों के लिए अरबों रुपए खर्च कर एहसान गरीबों पर थोपा जाता है कि देखो, हम ने इतने किलोमीटर सड़कें बना दीं. अब हमें वोट दो जिस से मोदीजी फिर से प्रधानमंत्री बनें और तुम्हारी बचीखुची दरिद्रता दूर कर सकें क्योंकि उन का तो ब्रह्मा, विष्णु और महेश से सीधा कनैक्शन है.

बेचारे गरीब यह भी नहीं पूछ पाते कि माईबाप, इन सड़कों पर हमारी बचीखुची बैलगाडि़यां, ट्रैक्टर और बाइकें तो न के बराबर चलती हैं, इसलिए हमारे सिर मढ़ा जा रहा एहसान इलजाम ज्यादा लगता है.

आप को रईसों को जो सहूलतें देनी हों, दो लेकिन उस की वसूली हम से तो मत करो. कच्ची बस्तियों को जोड़ने वाली और उन के अंदर की संकरी गलियों की सड़कों को बना डालने का कोई वायदा नहीं किया गया.

यही हाल गांवगांव की इंटरनैट सेवा का है. इस में कोई शक नहीं कि गांवों में इंटरनैट का चलन बढ़ा है लेकिन उतना नहीं जितना कि 15 अगस्त के भाषण में प्रधानमंत्री ने बताया.

यह कैसा तर्क

‘इंटरनैट इन इंडिया रिपोर्ट 2022’ के मुताबिक भारत में कोई 75 करोड़ 90 लाख इंटरनैट यूजर्स हैं, जिन में से 39 करोड़ 99 लाख ग्रामीण हैं. एक अनुमान के मुताबिक कोई 85 करोड़ लोग गांवों में रहते हैं. अब उन में से आधे से भी कम इंटरनैट इस्तेमाल करते हैं तो यह कोई गिनाने लायक उपलब्धि तो नहीं.

इन 75 करोड़ 90 लाख में से एक सर्वे रिपोर्ट की मानें तो 76.7 फीसदी को डौक्यूमैंट को कौपी पेस्ट करना नहीं आता. 87.5 फीसदी को कंप्यूटर में नया सौफ्टवेयर इंसटौल करना नहीं आता, 92.5 फीसदी को एक डिवाइस से दूसरी डिवाइस कनैक्ट करना नहीं आता, इस से 2 और फीसदी ज्यादा को प्रेजैंटेशन बनाना नहीं आता और इस से भी 2 फीसदी ज्यादा कंप्यूटर प्रोग्राम बनाना नहीं जानते.

जाहिर है, इन में 96 फीसदी लोग ग्रामीण हैं जिन के लिए इंटरनैट का मतलब भजन और गाने सुनना सहित पोर्न फिल्में देखना है.

अब भला ऐसी डिजिटल क्रांति का राग अलापने का फायदा क्या जिस में अब, एक ताजे आंकड़े के मुताबिक, 51 करोड़ यूजर्स शहरों के और 34 करोड़ गांवों के बचे हैं. डिजिटल लिटरैसी के अभाव में हालत घर के कोने में पड़े उज्ज्वला योजना के मुंह चिढ़ाते गैस सिलैंडरों जैसी हो गई है कि पैसा हो तो डाटा की सहूलियत है, नहीं तो एक बार इंटरनैट इस्तेमाल कर आंकड़ा बढ़ाते चलते बनो और जब कोई काम पड़े तो कियोस्क सैंटर वालों की जेब भरते रहो.

सामर्थ्य अर्थव्यवस्था और परिवारवाद

नरेंद्र मोदी के पूरे भाषण में सामर्थ्य और तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था की चाशनी भी खुली रही जिस की बखिया विपक्षियों ने तुरंत भी उधेड़ कर रख दी कि 2014 में देश पर कुल इतना कर्ज था और 10 साल में बढ़ कर इतना हो गया. सामर्थ्य से नरेंद्र मोदी का अभिप्राय तो विपक्षियों को भी नहीं सम?ा आया कि आखिर संस्कृतनुमा इस शब्द को 45 बार ढाल बना कर वे कहना क्या चाह रहे हैं? क्या यह ताकत की किसी नई दवाई का नाम है? अगर देश सामर्थ्यवान हो ही गया है तो फिर लोचा क्या है और तीसरी बार प्रधानमंत्री बन कर वे कितनी सामर्थ्य और देना चाहते हैं? यानी देश में अभी भी असमर्थता है जिसे जड़ से मिटाने के लिए भाजपा को चुनते रहने और मोदी को स्थायी प्रधानमंत्री बनाने की सख्त जरूरत है, नहीं तो हम फिर से गुलाम हो जाएंगे. तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था की पोल खुल जाती है जब पता चलता है कि प्रतिव्यक्ति आय के अनुसार रैंक 123वीं विश्व में और 38वीं एशिया में है.

दुर्दशा और बदहाली

इस सब के पीछे जो आशय था वह यह कि इस गुलामी की वजह हर कोई जानता है कि कांग्रेस नेहरू-गांधी परिवार है जिस ने 65 साल में देश पर राज किया. देश में जो दुर्दशा और बदहाली दिखती है उस की जिम्मेदार पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू हैं जिन्होंने करपात्री महाराज जैसों सहित सवर्ण और सनातनियों के दबाव के बाद भी देश को हिंदू राष्ट्र नहीं बनने दिया. इसे बारबार तुष्टिकरण की बात कह कर नरेंद्र मोदी ने 4-5 फीसदी सवर्णों को खुश करने की कोशिश की है.

क्या नेहरू ने कारखानों, फैक्टरियों, रेलों, बांधों और टैक्नोलौजी को प्राथमिकता दे कर देश की संस्कृति और गौरव नष्ट कर दिया. क्यों उन्होंने दलितों, आदिवासियों और औरतों के हक में कानून बनाए. 50 और 60 के दशक में भी आधुनिक विचारधारा क्यों अपनाई जिस से हिंदू पिछड़ गए.

मणिपुर और हरियाणा जैसी हिंसा व औरतों की बेइज्जती की चर्चा उन्होंने न जाने किस धुन में कर दी. नहीं तो ऐसे क्षुद्र विषयों पर बोलना उन की शान के खिलाफ है.

बेबस या खीझ

इधर मोदीजी ने परिवारवाद और भ्रष्टाचार को कोसा और उधर विपक्ष ने देर न लगाते भाजपा के परिवारवाद और भ्रष्टाचार के 100 से भी ज्यादा उदाहरण उंगलियों पर गिनाए.

नरेंद्र मोदी की बेचैनी की असल और मूल वजह राहुल गांधी हैं जिन्हें वे 2014 के चुनाव प्रचार में युवराज कह कर तंज कसते रहते थे. तब वे सोनिया गांधी को राजमाता और रौबर्ट वाड्रा को दामाद एक खास व्यंगात्मक लहजे में कहते थे ठीक वैसे ही जैसे पश्चिम बंगाल में उन्होंने ममता बनर्जी को ‘दीदी ओ दीदी…’ कहते मजाक बनाया था जिसे वहां की जनता ने पंचायत चुनाव तक में नकारा ही नहीं, बल्कि एक तरह से दुत्कार दिया.

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