छत्तीसगढ़ के जिला बलौदा बाजार के थाना पलारी के गांव छेरकापुर के रहने वाले भकला आडिल का बेटा सुमेर आडिल आवारा दोस्तों के साथ रह कर काफी बिगड़ गया था. वह गांव की बहूबेटियों पर बुरी नजर रखने लगा तो भकला ने उस की शादी पड़ोस के गांव की रहने वाली तोपबाई से कर दी. भकला का सोचना था कि पत्नी की जिम्मेदारी आते ही बेटा अपने आप सुधर जाएगा. परिणाम उस के आशा के एकदम अनुकूल ही निकला.

सुमेर नईनवेली पत्नी तोपबाई के रूपयौवन में कुछ इस तरह उलझा कि शादी के बाद उस का ज्यादातर समय घर पर ही गुजरने लगा. शादी के डेढ़ साल बाद तोपबाई ने बेटी को जन्म दिया तो सुमेर की जिम्मेदारी और बढ़ गई. अब उस के पास समय ही नहीं रहा कि वह दोस्तों के साथ उठेबैठे. एकएक कर के सुमेर 4 बच्चों का बाप बन गया.

परिवार बढ़ा और उसी बीच बाप की भी मौत हो गई तो सुमेर घरपरिवार की जिम्मेदारियों में इस कदर उलझ गया कि अब उसे अपना भी होश नहीं रहता था. इस के बावजूद जवानी की बिगड़ी अन्य आदतें भले ही सुधर गई थीं, लेकिन पीनेपिलाने की आदत जस की तस थी. जबकि अब उस के बच्चे भी जवान हो रहे थे. उस की बड़ी बेटी हेमलता 18 साल की हो चुकी थी.

सुमेर के घर से कुछ दूरी पर संतरू यादव का घर था. उस का दूध का कारोबार था. इसलिए उस के बेटे नरसिंह यादव उर्फ शेरा का मन पढ़ाई में नहीं लगा तो उस की पढ़ाई छुड़ा कर संतरू ने उसे अपने साथ दूध के कारोबार में लगा लिया था. उस का एक बेटा और था, जो रायपुर चला गया था और वहां किसी कंपनी में नौकरी करने लगा था. उस के जाने के बाद उसे शेरा का ही सहारा रह गया था.

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