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परफैक्ट बैलेंस : नेहा ने अपनी कमजोरी को बातों में ही क्यों समेट लिया था?

‘‘नेहा बहुत थक गया हूं, एक गरमगरम चाय का कप और प्याज के पकौड़े हो जाएं. जरा जल्दी डार्लिंग,’’ राज ने औफिस से आते ही सोफे पर फैलते हुए कहा.

फीकी सी मुसकान बिखेरते नेहा ने पति को पानी का गिलास दिया और फिर उस के पास ही बैठ गई. फिर थकी सी आवाज में बोली, ‘‘चाय और पकौड़े थोड़ी देर में तैयार करती हूं. आज जल्दीजल्दी नहीं हो सकेगा.’’

‘‘क्यों, सब ठीक तो है?’’ राज की आवाज में खिन्नता साफ थी.

‘‘पिछले कुछ दिनों से थोड़ी कमजोरी महसूस कर रही हूं. थकीथकी सी रहती हूं,’’ पति की खिन्नता को भांप कर नेहा ने अपनी बढ़ती कमजोरी को थोड़ी बातों में समेट दिया था. यही तो वह करती आ रही है कई सालों से. कोई भी समस्या हो वह यथासंभव स्वयं ही सुलझा लेती या फिर हलके से उसे राज के सामने रखती ताकि उसे किसी प्रकार का तनाव न हो. ऐसा करने में नेहा को बहुत खुशी मिलती.

‘‘ठीक है पकौड़े न सही चाय के साथ बिस्कुट तो दे सकती हो मेरी नाजुक रानी,’’ राज ताना मारने से नहीं चूका. फिर नेहा की कमजोरी वाली बात को अनसुना कर फ्रैश होने के लिए बाथरूम की ओर बढ़ गया.

नाजुक नेहा के मन रूपी दर्पण पर जैसे किसी ने पत्थर दे मारा हो. कब थी वह नाजुक. 15 सालों की गृहस्थी में उस ने हर छोटेबड़े काम को कुशलता से निभाया था. कब टपटप करता बिगड़ा नल ठीक हो गया, कब पंखा दोबारा चलने लगा, कब बाथरूम की दीवार से रिसता पानी बंद हो गया उस ने राज को पता ही नहीं लगने दिया. बच्चों की देखरेख, पढ़ाईलिखाई, बैंक का काम, कितने ही और घरबाहर से जुड़े काम वह चुपचाप सुचारु रूप से संपन्न करती आ रही थी.

इतना ही नहीं नेहा छोटी कक्षा के 8-10 बच्चों को घर पर ही ट्यूशन भी पढ़ा देती थी. ताकि घर की आमदनी में थोड़ीबहुत वृद्धि हो सके.

पति और अपने बच्चों को प्रसन्न रखने में ही उस ने खुद को भुला दिया था. राज जबजब उसे गुलाबो या झांसी की रानी कह कर छेड़ता तो वह फूली न समाती थी. यही तो उस का प्यारा सा संसार था. यही उस की मनचाही साधना. अपने शौक, अपनी चाहतें सब कुछ उस ने सहर्ष भुला दिए थे. इस बात का नेहा को कभी कोई मलाल नहीं था, कोई गिला नहीं था. पर आज उसे मलाल हुआ कि मेरी कमजोरी, मेरी तकलीफ राज की नजर में कुछ अर्थ नहीं रखती. खुद को ताक पर रख दिया, यही मुझ से गलती हुई.

विचारों की उठतीउफनती लहरों में नेहा ने जैसेतैसे चाय बनाई.

राज फ्रैश हो कर आ गया था. खोईखोई सी नेहा ने उस के सामने चाय और बिस्कुट रख दिए. बस एक रोबोट की तरह यंत्रवत. कहते हैं कि सूखी आंखों से भी आंसू गिरते हैं, पर उन्हें समझने या देखने वाले बिरले ही होते हैं.

‘‘क्या कमाल की चाय बनाई है मेरी गुलाबो ने,’’ चाय की चुसकियां लेते हुए राज ने घाव पर मरहम लगाने की असफल चेष्टा की.

‘गुलाबो, हूं… अब लगे हैं मेरी खुशामद करने. चाय, बिस्कुट मिल गए… मेरी कमजोरी गई भाड़ में. दिल रखने के लिए ही सही कुछ तो पूछते मेरी कमजोरी के बारे में. इन्हें क्या? गलती मेरी ही है जो कभी इन के सामने अपनी तकलीफ नहीं रखी… यही तो सजा मिली है,’ मन ही मन बुदबुदा कर नेहा ने अपनी खीज निकाली.

‘‘नीरू और उमेश कहां हैं?’’ राज के प्रश्न पर नेहा का ध्यान भंग हुआ.

‘‘ट्यूशन वाले बच्चों का कैसा चल रहा है?’’

‘‘अच्छा चल रहा है. उन्हें भी आजकल अधिक समय देना पड़ रहा है. परीक्षा जो नजदीक है,’’ अनमनी सी नेहा बोली.

हर पौधे की तरह मानव हृदय के कोमल पौधे को भी समयसमय पर प्रेमजल से सींचना  पड़ता है, सहृदयता एवं सहानुभूति की खाद को जड़ों में यदाकदा डालना पड़ता है अन्यथा पौधा मुरझा जाता है. विशेषकर नारी का संवेदनशील हृदय जो प्रेम की हलकी सी थाप से छलकछलक जाता है, किंतु अवहेलना की तनिक सी चोट पर मरुस्थल सा शुष्क बन जाता है.

‘‘वह तो है. परीक्षा आ रही है तो समय देना ही पड़ेगा. इतना तो शुक्र है कि घर बैठे ही कमा लेती हो. बाहर नौकरी करती तो आए दिन थक जाती… आनाजाना पड़ता तो पता चलता,’’ घायल मन पर राज ने फिर चोट की.

यह चोट नेहा के लिए असहनीय थी. बोली, ‘‘घर पर ही अंदरबाहर के हजारों काम होते हैं. ये काम आप को दिखते ही नहीं. सब कियाकराया जो मिल जाता है… इतने सालों की गृहस्थी में मैं ने आप पर किसी भी काम का कम से कम बोझ डाला है. इसीलिए मेरी थकान, मेरी कमजोरी आप को पच नहीं रही. आखिर बढ़ती उम्र है… शरीर हमेशा एकजैसा तो नहीं रहता… पर नहीं, मैं तो सदैव गुलाब की तरह खिली रहूं, तरोताजा रहूं… है न?’’ क्रोध और क्षोभ से नेहा की आंखें छलछला आईं.

‘‘अब यह भी क्या बात हुई नाराज होने की? तुम तो मेरी झांसी की रानी हो. कुछ भी कहो आज भी तुम मुझे पहले जैसी गुलाबो ही दिखती हो,’’ राज ने बढ़ती कड़वाहट में मिठास घोलनी चाही.

‘‘रहने दो अपने चोंचले. आप का चैक बैंक में जमा करा दिया था और इंश्योरैंस वाले को फोन कर दिया था,’’ नेहा ने मात्र सूचना दी.

‘‘यह हुई न बात. पढ़ीलिखी, मौडर्न बीवी का कितना सुख होता है. मौडर्न औरत वाकई चुस्त और दुरुस्त होती है.’’

‘‘मौडर्न औरत बेमतलब पिसतीघुटती नहीं है और न ही इतनी मूर्ख कि अपने वजूद को भुला दे चाहे कोई कद्र करे या न करे,’’ नेहा के स्वर तीखे हो चले थे.

‘‘तिल का ताड़ मत बनाओ नेहा. तुम ही एकमात्र स्त्री नहीं हो जो घर और बाहर संभाल रही है. इस बढ़ती महंगाई के युग में हर सजग स्त्री कुछ न कुछ कर के पैसा कमा रही है. घर और परिवार में बैलेंस आजकल की स्त्री को बखूबी आता है. तनिक सूझबूझ से सब हो जाता है,’’ राज ने आग में घी डाल ही दिया.

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं? क्या मुझ में सूझबूझ नहीं? इतने सालों से क्या मैं झकझोर रही हूं? क्या कमी रखी है किसी भी बात में? बैलेंस ही तो करती आ रही हूं अब तक… पर सच ही कहा है कि घर की मुरगी दाल बराबर,’’ नेहा आपे से बाहर हो चुकी थी.

सच सब से गहरे घाव भी उन्हीं से मिलते हैं जिन्हें हम बहुत चाहते हैं. उसी समय नीरू और उमेश आ गए. तूफान थम सा गया. नेहा ने उन्हें नाश्ता कराया. फिर उन्हें पढ़ाने बैठ गई.

वातावरण बोझिल हो चुका था.

‘‘मैं जरा बाहर घूमने जा रहा हूं,’’ कह कर राज बाहर निकल गया.

राज और नेहा की गृहस्थी सुखी और सामान्य थी. थोड़ी बहुत नोकझोंक होती रहती थी. यह सब तो गृहस्थ जीवन का अभिन्न अंग है. बहुत मिठास भी बनावटी लगती है.

नेहा राज को बहुत परिश्रम करता देखती. महीने में 2-3 टूअर भी हो जाते. देर रात तक राज नएनए प्रोजैक्ट पर काम करता. अपने पति पर नेहा को गर्व था. वह राज को प्रसन्न रखने की भरसक कोशिश करती.

सच तो यह था कि दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे. लेकिन प्यार करने और दूसरे के मन की गहराई को समझने में काफी अंतर है. दिल महंगी भेंट नहीं मांगता. 2 शब्द प्रेम, प्रशंसा या सहानुभूति के ही पर्याप्त होते हैं. भावनाओं का स्थान भौतिक पदार्थ कमी नहीं ले सकते.

चूंकि नेहा हमेशा खिलीखिली रहती, इसलिए राज को उसे इसी प्रकार देखने की आदत हो चुकी थी. उस ने कभी इस बात को न जाना न समझा कि नेहा हर कार्य को कैसे कुशलतापूर्वक निबटा लेती. बहुत कम ऐसे अवसर आए जब नेहा ने अपनी परेशानी राज को बताई. प्रेमविभोर नेहा से शायद जानेअनजाने यही गलती हो गई थी. आज झगड़े का मूल कारण भी यही था. रात को डिनर के समय पतिपत्नी चुपचाप से थे. अंदर की पीड़ा जो थी सो थी.

बच्चे स्वभावानुसार चहक रहे थे, ‘‘पापा, मम्मी ने आज दमआलू कितने स्वादिष्ठ बनाए हैं,’’ नीरू ने चटकारे लेते हुए कहा.

‘‘हां बेटा, बहुत स्वादिष्ठ बने हैं,’’ राज ने स्वीकार किया.

उमेश भी नेहा को अपनी विज्ञान शिक्षिका और स्कूल की विज्ञान प्रदर्शिनी के बारे में बता रहा था. नेहा भी जैसेतैसे बेटे के उत्साह में भाग ले रही थी.

बच्चों का भोलापन वास्तव में कलकल करते निर्मल शीतल जलप्रपात सा है, जो पतिपत्नी के गिलेशिकवों के जलतेबुझते अंगारों को शांत कर देता है.

डिनर समाप्त हुआ तो बच्चे अपने बैडरूम में चले गए. नेहा ने जल्दी से बचे काम निबटाए और कपड़े बदल कर राज की तरफ पीठ कर के लेट गई. राज लेटेलेटे कुछ पढ़ रहा था. 11 बज रहे थे. नेहा के लेटते ही राज ने बत्ती बुझा दी.

‘‘नाराज हो क्या?’’ राज की आवाज में मलाई जैसी चिकनाहट थी.

नेहा चुप. कांटा बहुत गहरा चुभा था. पीड़ा हो रही थी.

‘‘डार्लिंग कल शाम मैं टूअर पर निकल जाऊंगा. 2-3 दिन के बाद ही आऊंगा. तुम बात नहीं करोगी तो कैसे चलेगा.’’

‘‘मेरा सिर दुख रहा है. आप सो जाएं,’’ नेहा ने टालना चाहा.

‘‘लाओ मैं तुम्हारा सिर दबा दूं,’’ राज नेहा को मना रहा था.

नेहा अब तक मन ही मन कोई फैसला ले चुकी थी. इसलिए प्रतिकार किए बिना उस ने करवट बदली और राज की ओर देखा. राज ने समझा बिगड़ी बात बनने लगी है. वह नेहा का सिर दबाने लगा.

‘अच्छा है… होने दो सेवा,’ नेहा मन ही मन मुसकराई. मन हलका हुआ तो आंख लग गई. राज भी हलके मन से सो गया.

अगला दिन सामान्य ही रहा. राज औफिस निकल गया. बच्चे स्कूल. नेहा

रोज के कार्यों में व्यस्त हो गई. पर कल रात उस ने जो फैसला लिया था. उसे भूली नहीं थी.

शाम हुई. बच्चे स्कूल से लौटे और राज औफिस से. कुछ खापी कर राज टूअर पर निकल गया. निकलने से पहले नेहा को आलिंगन में लिया. बच्चों को प्यार किया. सब ठीकठाक था. हमेशा की तरह.

3 दिन बाद राज सुबह 9 बजे घर लौटा. बच्चे स्कूल जा चुके थे. नेहा ने हंसते हुए स्वागत किया, ‘‘आप नहाधो लें. तब तक मैं नाश्ता तैयार करती हूं,’’

राज को लगा सब पहले जैसा नौर्मल है. दिल को सुकून मिला.

राज जैसे ही तरोताजा हुआ नेहा ने उस के सामने गरमगरम चाय और प्याज के पकौड़े रख दिए. साथ में पुदीने की चटनी.

‘‘मैं जानता था मेरी गुलाबो कभी बदल नहीं सकती,’’ राज बहुत खुश था.

‘‘कैसा रहा आप का टूअर?’’

‘‘अच्छा रहा. बहुत काम करना पड़ा पर मैं संतुष्ट हूं.’’

‘‘औफिस कितने बजे जाना है?’’

‘‘दोपहर 3 बजे निकलना है. थोड़ा आराम करूंगा. तुम अपनी कहो. क्याक्या किया इन 3 दिनों में?’’ राज ने पकौड़ों का आनंद लेते हुए उत्सुकता से नेहा की ओर देखा.

‘‘बहुत कुछ किया,’’ नेहा के चेहरे पर रहस्यमयी मुसकान थी.

‘‘बताओ तो सही.’’

‘‘एक स्कूल में इंटरव्यू दे कर आई हूं. पार्टटाइम जौब है. छठी और 7वीं कक्षा के बच्चों को अंगरेजी और समाजशास्त्र पढ़ाना है. मेरी ही पसंद के विषय हैं.’’

‘‘इंटरव्यू… यह सब क्या है,’’ राज सकपका गया.

‘‘हां डार्लिंग इंटरव्यू. नौकरी लगभग तय है. अगले महीने से जाना होगा. मेरी 1-2 सहेलियां भी वहां पढ़ा रही हैं. वेतन भी अच्छा है. मेरी सहेली ने ही मेरी सिफारिश की थी. अत: बात बन गई,’’ नेहा ने डट कर अपनी बात कह डाली. वह जानती थी कि राज को यह बात अच्छी नहीं लगेगी. लगे न लगे पर अब पता चलेगा कि परफैक्ट बैलेंस रखना क्या होता है.

‘‘अचानक यह नौकरी की क्या सूझी?’’ राज हैरान और खिन्न था.

‘‘अब इस में सूझने की क्या बात है?

जब हर आधुनिक स्त्री नौकरी कर रही है तो फिर मैं क्यों नहीं,’’ नेहा ने चटनी के चटखारे लेते हुए कहा.

‘‘तुम्हें मेरी उस दिन की बात बुरी लग गई?’’

‘‘बिलकुल नहीं. आप ठीक कहते थे. बैलेंस करने की ही तो बात है,’’ नेहा को मजा आ रहा था.

‘‘तुम्हारी कमजोरी… थकावट का क्या… सेहत भी देखनी पड़ती है.’’

‘‘भई कमाल है. आज आप को मेरी सेहत की बहुत चिंता होने लगी. पर सुन कर अच्छा लगा. चिंता न करें यह सब तो चलता ही है.’’

‘‘नेहा, बात उड़ाओ मत. मैं सीरियस हूं,’’ राज परेशान हो उठा.

‘‘धीरज रखें. मैं डाक्टर से मिल कर आई हूं. ब्लड टैस्ट की रिपोर्ट भी आ गई है.

सब ठीक है हीमोग्लोबिन कम है. डाक्टर की बताई दवा लेनी शुरू कर दी है और खानपान भी डाक्टर के निर्देशानुसार ले रही हूं.’’

‘‘और तुम्हारी ट्यूशनें?’’

‘‘पार्टटाइम नौकरी है. दोपहर 12:30 बजे तक लौट आऊंगी. ट्यूशन तो 3 बजे शुरू होती है. वह भी सप्ताह में 4 बार. महरी फुलटाइम सुबह से शाम तक आ जाया करेगी. बच्चे तो शाम 5 बजे तक ही लौटते हैं. स्कूल मुझे सप्ताह में 5 दिन ही जाना है. शनिर विवार छुट्टी. सब बैलेंस हो जाएगा,’’ नेहा मोरचे पर डटी थी.

‘‘तुम जानती हो अगले महीने बड़े भाईसाहब और भाभी आ रहे हैं,’’ राज ने हारे सिपाही के स्वर में कहा.

‘‘यह तो और भी अच्छी बात है. भाभीजी तो बहुत सुघड़ हैं. मेरी बहुत मदद हो जाएगी. वे भी थोड़ीबहुत घर की देखभाल कर लेंगी और भाईसाहब बच्चों को गणित और विज्ञान पढ़ा दिया करेंगे. इन विषयों में तो वे माहिर हैं,’’ नेहा आज घुटने टेकने वाली नहीं थी.

‘‘तो तुम ने नौकरी करने का निश्चय कर ही लिया है,’’ राज ने हथियार डाल दिए.

‘‘बिलकुल. आप देखना आप की झांसी की रानी घरबाहर को कैसा बैलेंस करती है. आप से ही तो मुझे प्रेरणा मिली है. खैर, छोडि़ए इन बातों को. आप थके हुए हैं. आओ सिर में तेल की मालिश कर देती हूं. आराम मिलेगा,’’ नेहा चाश्नी से सने तीर छोड़ रही थी.

‘‘लंच में क्या है?’’

‘‘सब आप की मनपसंद की चीजें.

लौकी के कोफ्ते, बैगन का भरता और मीठे में बासमती चावल की खीर. आया न मुंह में पानी?’’

‘‘हांहां, ठीक है,’’ राज निरुत्तर हो चुका था.

कहना न होगा कि नेहा परफैक्ट बैलेंस का अंदाज सीख चुकी थी.

खतरनाक है यूरिक एसिड का बढ़ना

श्यामली काफी दिनों से परेशान थी. मेट्रो स्टेशन की सीढ़ियां चढ़ते वक्त तो उसकी आंखों में आंसू ही आ जाते थे. वजह थी उसके टखने, एड़ी और अंगूठे के पास लगातार बना रहने वाला तीव्र दर्द. उसके दोनों पैर के अंगूठे के पास रह-रह कर टीस उठती थी. इधर कुछ दिनों से घुटनों में भी कसाव महसूस होने लगा था. पैरों में सूजन भी रहने लगी थी. सरपट दौड़ने वाली श्यामली के लिए कदम-कदम चलना भी मुश्किल होता जा रहा था. श्यामली को लगता था कि यह फील्ड जौब की वजह से ऐसा हो रहा है. क्लाइंट्स से मिलने के चक्कर में उसे सारा दिन इधर-उधर घूमना पड़ता था और ज्यादातर समय वह पैदल चलती थी. उसने मां को बताया तो मां ने गर्म पानी से सिंकाई का मशवरा दिया. एक हफ्ते से वह हर रात सोने से पहले गर्म पानी में नमक डाल कर पैरों की सिंकाई कर रही थी, मगर फायदा रत्ती भर नहीं पड़ा. दर्द निवारक गोलियां खा-खाकर दिन गुजर रहे थे.

उस दिन तो दर्द असहनीय हो गया था. श्यामली शाम को दफ्तर से बाहर निकली तो औफिस की सीढ़ियां देखकर उसे पसीना आ गया. ‘कैसे उतरूं’ वह सोच ही रही थी कि रागिनी आ गयी. रागिनी का सहारा लेकर वह धीरे-धीरे सीढ़ियां उतर कर नीचे आयी. उस दिन रागिनी उसे जबरदस्ती डौक्टर के पास ले गयी. डॉक्टर ने श्यामली के पैर के अंगूठे के पास दबाया तो दर्द के मारे उसकी चीख निकल गयी. डौक्टर ने ब्लड टेस्ट लिखा. दूसरे दिन ब्लड टेस्ट की रिपोर्ट आयी तो पता चला उसके खून में यूरिक एसिड की मात्रा बहुत ज्यादा है. एक हफ्ते की दवाईयों और कुछ परहेज के बाद श्यामली नौर्मल हो गयी, मगर पहली बार उसको यह ज्ञान प्राप्त हुआ कि पैरों का दर्द सिर्फ थकान से नहीं, शरीर में यूरिक एसिड के बढ़ने से भी हो सकता है.

यूरिक एसिड बढ़ने की मुख्य वजह खानपान में बदलाव आना है. श्यामली की साल भर पहले ही शादी हुई थी. उसके मायके में जहां बहुत सादा खाना खाया जाता था, वहीं ससुराल में घी-मैदे का इस्तेमाल ज्यादा होता था. इसके साथ ही राजमा, छोले, सोयाबीन भी हर दूसरे-तीसरे दिन बनते थे. खानपान में यह बदलाव श्यामली के शरीर को नुकसान पहुंचा रहा था.

रक्त में यूरिक एसिड बढ़ने पर वह महीन गोलियों के रूप में हड्डियों के जोड़ों के बीच जमा होने लगता है. जिसकी वजह से सूजन और दर्द पैदा होता है. यदि समय से इसका इलाज न हो तो यह गाउट और अर्थराइटिस में बदल जाता है. दरअसल जब किसी वजह से किडनी की फिल्टर यानी छानने की क्षमता कम हो जाती है तो यूरिया यूरिक एसिड में परिवर्तित हो जाता है, जो हड्डियों के बीच में जमा होने लगता है. आमतौर पर यूरिक एसिड का ज्यादातर हिस्सा किडनियों के जरिए फिल्टर होकर पेशाब के जरिए शरीर से बाहर निकल जाता है, लेकिन जब यूरिक एसिड शरीर में ज्यादा बनने लगे और किडनी उसे पूरी तरह से फिल्टर न कर पाये तो खून में यूरिक एसिड का लेवल बढ़ जाता है. जब यह शरीर में जगह-जगह हड्डियों के बीच जमा हो जाता है तो गाउट की समस्या पैदा हो जाती है. यूरिक एसिड के बढ़ने से शरीर की मांसपेशियों में सूजन आ जाती है, जिससे तीव्र दर्द महसूस होता है. यह दर्द शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है, खासकर टखने, कमर, गर्दन, घुटने  और पांव के अंगूठे के आसपास.

यूरिक एसिड बढ़ने के मुख्य कारण

यूरिक एसिड क्यों बढ़ जाता है, यह जान लेना जरूरी है, ताकि आप उन चीजों से दूर रहें, जिनसे यूरिक एसिड बढ़ता है. खानपान में बदलाव यूरिक एसिड बढ़ने का मुख्य कारण है. अगर आप डायबिटीज के मरीज हैं तो आपके शरीर में यूरिक एसिड का बढ़ना तय है क्योंकि डायबिटीज की दवाओं से भी यूरिक एसिड बढ़ता है. रेड मीट, सी फूड, दाल, राजमा, मशरूम, गोभी, टमाटर, मटर, पनीर, भिंडी, अरबी और चावल के अधिक प्रयोग से यूरिक एसिड बढ़ता है. भोजन के रूप में लिया जाने वाला प्यूरिन प्रोटीन भी यूरिक एसिड के लेवल को बढ़ाता है. जो लाग व्रत रखते हैं उनमें भी अस्थायी रूप से यूरिक एसिड का लेवल बढ़ जाता है. जबरदस्ती एक्सरसाइज के चक्कर में पड़ने से भी यूरिक एसिड का लेवल बढ़ जाता है. इसके अलावा ब्लड प्रेशर की दवाएं, पेन किलर्स और कैंसर रोधी दवाएं खाने से भी यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है.

यूरिक एसिड बढ़ने के लक्षण

शुरुआत में यूरिक एसिड के बढ़ने का पता नहीं लग पाता है. ज्यादातर लोगों को इस बात की जानकारी भी नहीं होती कि यूरिक एसिड के बढ़ने को कैसे पहचानें. कुछ लक्षण हैं जिन्हें देख कर आप पहचान सकते हैं कि आपका यूरिक एसिड बढ़ रहा है. जैसे जोड़ों में दर्द होना, उठने बैठने में परेशानी होना, उंगलियों में सूजन आ जाना, जोड़ों में गांठ की शिकायत होना. इसके अलावा पैरों और हाथों की उंगलियों में चुभने वाला दर्द होता है, जो कई बार असहनीय हो जाता है. यूरिक एसिड बढ़ने से थकान भी जल्दी लगती है.

अपनाएं कुछ घरेलू उपाय

यूरिक एसिड के लक्षण नजर आने पर डॉक्टर से परामर्श लें और अपना ब्लड टेस्ट करवाएं. दवाएं लेने से यूरिक एसिड की अतिरिक्त मात्रा मूत्र के जरिए शरीर से बाहर निकल जाती है. लेकिन भविष्य में यह फिर न बढ़े इसके लिए कुछ नियमित घरेलू उपाय भी अपनाएं.

–  रोज सुबह दो से तीन अखरोट खाएं. ऐसा करने से बढ़ा हुआ यूरिक एसिड धीरे-धीरे कम होने लगेगा.

–  हाई फायबर फूड जैसे ओटमील, दलिया, बींस, ब्राउन राइस खाने से यूरिक एसिड की ज्यादातर मात्रा एब्जौर्ब हो जाती है आरैर उसका लेवल खून में ठीक बना रहता है.

–  अजवाइन का सेवन रोजाना करें. इससे भी यूरिक एसिड की मात्रा कम होगी.

–  विटामिन-सी से भरपूर चीजें ज्यादा से ज्यादा खाएं क्योंकि विटामिन-सी यूरिक एसिड को मूत्र के जरिए बाहर निकालने में मदद करता है.

– सलाद में रोजाना आधा या एक नींबू निचोड़ कर खाएं. इसके अलावा दिन में कम से कम एक नींबू-पानी जरूर पियें.

–  राजमा, छोले, अरबी, चावल, मैदा, रेड मीट जैसी चीजें ज्यादा न खाएं.

–  रोजाना एक सेब जरूर खाएं. सेब में मौजूद मैलिक एसिड यूरिक एसिड को न्यूट्रिलाइज कर देता है, जिससे ब्लड में इसका लेवल कम हो जाता है.

–  रोजाना खाना खाने के बाद एक चम्मच अलसी के बीज चबाएं, इससे यूरिक एसिड की मात्रा कम होगी.

–  यूरिक एसिड बढ़ जाने पर अगर गठिया की परेशानी हो गयी हो और तेज दर्द रहे तो घबराएं नहीं. बथुए के पत्तों का जूस निकाल कर रोज सुबह खाली पेट पियें, उससे दो घंटे बाद तक कुछ न खाएं. रोजाना ऐसा करने पर कुछ वक्त बाद यूरिक एसिड की मात्रा कम हो जाएगी और गठिया के दर्द में आराम आ जाएगा.

डर : क्या उसे मौत का खौफ था?

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एक देश एक चुनाव का फुस शिगूफा

एक देश एक चुनाव का बेमतलब का मुद्दा उठा कर भारतीय जनता पार्टी राजनीतिक दलों का ध्यान बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई, सरकार के पल्लू से बंधे हर रोज अमीर होते धन्ना सेठों, अरबों रुपए के सेठों के कर्जों की ओर से हटा देने की कोशिश कर रही है. यह कदम नरेंद्र मोदी का हर चुनाव जीत ही लेने की ताकत की पोल भी खेलता है.

एक चुनाव का मतलब है कि जब लोकसभा के चुनाव हों तभी विधानसभाओं के भी हों. शायद तभी शहरी कारपोरेशनों, जिला परिषदों और पंचायतों के भी हों. एकसाथ आदमी वोट देने जाए तो वह 4-5 चुनावों में एक बार वोट दे दे और फिर 5 साल तक घर बैठे, रोए या हंसे.

एक देश एक चुनाव का नारा एक देश एक टैक्स की तरह का है जिस ने हर चीज पर कुल मिला कर टैक्स पिछले 6 सालों में दोगुना कर दिया है. इसी के साथ एक विवाह नियम की बात भी होगी. फिर शायद कहना शुरू करेंगे कि सारी शादियां भी 5 साल में एक बार हों और बच्चे भी एकसाथ पैदा हों.

इस जमात का भरोसा नहीं है कि यह कौन सा शिगूफा कब ले कर खड़ी हो जाए. मोदी सरकार लगातार शिगूफों पर जी रही है. 2016 में नोटबंदी 2 घंटे में लागू कर दी गर्ई कि अब नकदी का राज खत्म, काला धन गायब. फिर टैक्स के बारे में यही कहा गया. फिर कोविड के आने पर एक देश एक दिन में लौकडाउन का शिगूफा छेड़ा गया. हर बार का वादे किए गए, जो कभी पूरे नहीं हुए.

अभी सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने कहा कि एक देश एक कानून के हिसाब से धारा 370 जो कश्मीर से हटाई गई है उस के बाद वहां के हालात कब ठीक होंगे कि उसे केंद्र शासित राज्य की जगह दूसरों जैसी राज्य सरकार मिल सके.

एक ही मालिक है वाली सोच स्वयंसेवक संघ के सदस्यों को पहले दिन से पढ़ानी शुरू कर दी जाती है. मंदिरों, मठों में जिन के पास जनता की दान की गई अरबों की संपत्ति होती है एक बार ही, शायद जन्म से तय, बड़े महंत को गद्दी मिलती है, फिर उस के बेटे को. कहींकहीं जहां शादी की इजाजत न हो, वहां एक बार एक चेला महंत बना नहीं, वह जब तक चाहे गद्दी पर बैठेगा.

सरकार की मंशा एक देश एक ‘बार’ चुनाव की है, ठीक वैसे जैसे हिंदू संयुक्त परिवार में एक बार कर्ता बना तो हमेशा वही रहेगा चाहे जितना मरजी खराब काम करे. परिवार को तोड़ना पड़ता है, पार्टीशन होता है. मंदिरों में झगड़ेदंगे होते हैं, दूसरा बड़ा चेला मंदिर के दूसरे हिस्से पर जबरन कब्जा कर लेता है.

क्या यह देश में राजनीति में दोहराया जाएगा? क्या लेनिन, स्टालिन, माओ, हिटलर की तरह एक चुनाव का मतलब एक बार चुनाव होगा? नतीजा क्या हुआ, वह इन देशों के बारे में जानने से पता चल सकता है. व्यापारिक घरानों में एक बार चुनाव का मतलब व्यापारिक घर छूटना होता है. अंबानी का घरव्यापार टूटा, बिड़लों के टूटे तो एक हिस्से का 20,000 करोड़ एक अकाउंटैंट के हाथ लग गए.

खापों में एक बार मुखिया चुन लिया गया तो इस का मतलब होता है उस की धौंस, उस की उगाही, उस की बेगार कराने की ताकत. एक देश एक चुनाव जिसे एक ‘बार’ चुनाव कहना ठीक होगा. इसी ओर एक कदम है. फिर तो जैसे इंद्र अपनी गद्दी बचाने के लिए मेनकाओं का और वज्रों का इस्तेमाल करता था, भाजपा का एक बार चुना गया नेता करेगा. रूस के पुतिन और चीन के शी जिनपिंग ने 2 बड़े देशों को अब पतन की राह पर ले जाना शुरू कर दिया है. लाखों अमीर, पढ़ेलिखे रूसीचीनी भाग रहे हैं, फिर लाखों भारतीय भी भागेंगे.

Anupamaa के नए प्रोमो को देख भड़के लोग, कहा- बंद करो शो

Anupamaa Trolling : स्टार प्लस के सबसे पसंदीदा शो “अनुपमा” के हर एक एपिसोड को लोगों का खूब प्यार मिलता हैं. लेकिन इस समय शो में जो ट्रैक दिखाया जा रहा है. उसे देखने के बाद दर्शक भड़क गए हैं.

दरअसल बीते दिनों शो का नया प्रोमो जारी किया गया. इसमें दिखाया गया है कि पाखी के घर से गायब होने के बाद शाह और कपाड़िया दोनों फैमिली में बूरी तरह बवाल मच जाता है. जहां एक तरफ पाखी के गायब होने के पीछे अधिक, अनुपमा को दोषी ठहराने की कोशिश करता है. तो वहीं दूसरी तरफ बाकी घरवालों को शक है कि अधिक ने पाखी को गायब किया है. हालांकि ये प्रोमो अनुपमा के लॉयल फैंस को बिल्कुल भी पसंद नहीं आया है. उन्होंने एक बार फिर शो को बंद करने की मांग उठाई है.

लोग ने शो को बताया इरिटेटिंग

आपको बता दें कि जब से शो (Anupamaa trolling) का नया प्रोमो जारी किया गया है तभी से दर्शक भड़के हुए हैं. जहां एक यूजर ने लिखा है, ”इतने बकवास-बकवास ट्रैक्स कहां से लाते हो? अभी तो वो मालती देवी का भी नाटक बाकी है. एक बार फिर अनुपमा उसे घर लेआएगी और वो फिर से अनुपमा-अनुज की जिंदगी खराब करेगी और फिर से अनुपमा महान बनेगी, कितना प्रिडिक्टिबल है.” वहीं एक अन्य यूजर ने लिखा, ‘मेरी जिंगदी का सबसे बेकार शो है ये.’ एक और यूजर ने लिखा- ”अब ये शो इरिटेटिंग हो गया है.”

पहले भी शो को बंद करने की उठी थी मांग

इसके अलावा एक यूजर ने तो शो (Anupamaa trolling) को बंद करने की बात ही कह डाली. उसने लिखा, ‘इसी ड्रामे की वजह से शो की टीआरपी प्रतिदिन गिरती जा रही है. अगर आपके पास कोई अच्छी स्टोरी नहीं है तो इस बकवास को बंद कर दीजिए.’

आपको बताते चलें कि इससे पहले भी शो को बंद करने की मांग उठी थी. लोगों का कहना है कि अगर मेकर्स के पास कोई अच्छी स्टोरी नहीं बची है तो बकवास दिखाने से अच्छा है कि सीरियल को बंद कर दिया जाए.

“इंडिया” से क्यों बौखलाए हैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ?

यह एक दफा फिर साफ दिखाई दे रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश के सभी विपक्षी दलों की एकता और इंडिया नाम रखे जाने से बौखलाहट और घबराहट है. इसका सबूत यह है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की गरिमा मय व्यक्तित्व और “राष्ट्रपति पद” को उनकी सरकार ने कटघरे में खड़ा कर दिया. इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ जो पहली बार राष्ट्रपति भवन से एक आमंत्रण पत्र में इंडिया की जगह भारत शब्द का उपयोग किया गया.

दरअसल, सच्चाई यह है कि 2023 में पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव हैं और 2024 में देश में लोकसभा का चुनाव. ऐसे में नरेंद्र मोदी की सरकार विपक्ष की बढ़ती लोकप्रियता और भाजपा के समानान्तर “इंडिया” नाम रखकर जिस तरह एकजुट हुई है उससे घबरा गए यह एक दफा फिर सिद्ध हो गया. भारत का नाम दुनिया के देशों के सामने नीचे करते हुए हुआ यह की जी-20 रात्रिभोज के निमंत्रण में राष्ट्रपति को ‘प्रेसीडेंट आफ भारत’ प्रकाशित कर केंद्र सरकार में यह सिद्ध कर दिया कि उसकी सोच कितनी छोटी और तुच्छ नरेंद्र मोदी की सरकार किसी को भी बर्दाश्त नहीं कर पा रही है.

कहा जाता है कि अगर आप बड़े हैं तो आपका हृदय भी विशाल होना चाहिए बड़प्पन इसी में है, मगर नरेंद्र दामोदरदास मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद जिस तरह का व्यवहार विपक्ष के साथ और देश की जनता के साथ कर रहे हैं उसे अगर गहराई से महसूस किया जाए तो वह ना कबीले तारीफ होगा.

नोटबंदी हो या फिर जीएसटी का मामला हर एक फैसले में उन्होंने उन्होंने मानो अपने पैरों तले सब कुछ रौंद दिया. यह एक बार प्रमाणित रूप से सिद्ध हो गया जब राष्ट्रपति भवन से आमंत्रण पत्र पर इंडिया की जगह भारत लिखा हुआ आमंत्रण सामने आया, यह पहली दफा हुआ है. जब प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की जगह प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखा गया है. यही कारण है कि जहां नरेंद्र मोदी की देश भर में आलोचना शुरू हो गई वही सच तो यह है कि भारत के राष्ट्रपति जैसे गरिमामय पद और शख्सियत को भी केंद्र सरकार ने दांव पर लगा दिया.

कांग्रेस ने इसे देश के संघीय ढांचे पर हमला बताया है और दावा किया कि विपक्षी गठबंधन इंडिया से डर एवं नफरत के कारण सरकार देश का नाम बदलने में जुट गई है. यह आपत्ति कांग्रेस ने एक्स पर जाहिर की.

कांग्रेस ने कहा कि कहा-” विपक्षी गठबंधन ‘बांटने वाली’ इस राजनीति के सामने नहीं झुकेगा और वह जीत हासिल करेगा.” कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया -” भाजपा का विध्वंसक दिमाग सिर्फ यही सोच सकता है कि लोगों को कैसे बांटा जाए. एक बार फिर वे ‘इंडियंस’ और भारतीयों के बीच दरार पैदा कर रहे हैं। स्पष्ट है कि हम सभी एक है! जैसा कि अनुच्छेद 1 कहता है इंडिया, – जो भारत है, राज्यों का एक संघ होगा, यह तुच्छ राजनीति है क्योंकि वे विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की वजह से बेचैन हो गई है भाजपा.”

राजद नेता मनोज झा ने कहा -” भारतीय जनता पार्टी विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की वजह से बेचैन हो गई है. लोग जल्द ही उन्हें सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाएंगे.” मनोज झा ने आगे कहा-” आप ‘रिपब्लिक आफ इंडिया’ को ‘रिपब्लिक आफ भारत’ में बदलने के लिए प्रस्ताव ला रहे हैं। ‘इंडिया’ से डरते हैं. जो करना है कर लो मोदी जी जुड़ेगा भारत, जीतेगा इंडिया !”

कांग्रेस के बड़े चेहरे शशि थरूर ने कहा -” इंडिया को ‘भारत’ कहने में कोई संवैधानिक आपत्ति नहीं है, जो कि देश के दो आधिकारिक नामों में से एक है. इतिहास को फिर से जीवंत करने वाले नाम, दुनिया भर में पहचाने जाने वाले नाम पर अपना दावा छोड़ने के बजाय हमें दोनों शब्दों का उपयोग जारी रखना चाहिए.”

देश का नाम बदलने का अधिकार किसी को नहीं

देश के वयोवृद्ध नेता और जिनका सम्मान नरेंद्र मोदी भी करते रहे हैं राकांपा अध्यक्ष शरद पवार ने इंडिया नाम बदले जाने पर आपत्ति करते हुए महत्वपूर्ण बात कही -” किसी को भी देश का नाम बदलने का अधिकार नहीं है.” उनकी यह टिप्पणी कांग्रेस के उस दावे के बाद आई है कि जी -20 रात्रिभोज के निमंत्रण में राष्ट्रपति को ‘प्रेसीडेंट आफ इंडिया’ की जगह ‘प्रेसीडेंट आफ भारत’ कहकर संबोधित किया गया है. शरद पवार ने तल्ख लहजे में कहा है -” मुझे समझ नहीं आता कि सत्तारूढ़ दल देश से संबंधित नाम को लेकर क्यों परेशान है.”

कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने दावा किया कि जी-20 सम्मेलन के लिए राष्ट्रपति द्वारा मेहमानों को भेजे गए निमंत्रण पत्र में ‘रिपब्लिक आफ इंडिया’ की जगह ‘रिपब्लिक आफ भारत’ लिखा जाना प्रधानमंत्री मोदी की बौखलाहट नहीं, बल्कि सनक है. उन्होंने कहा -” वे ‘इंडिया’ से घबराते हैं यह तो हमें पता था, पर इतनी नफरत कि देश का नाम ही बदलने लग जाएंगे.”

दरअसल, वर्तमान केंद्र सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अंधेरे की और जाती हुई एक भटकी हुई सरकार है जो अपनी गलत उद्देश्य के कारण देश को भी अंधेरे की ओर ले जा रही है.

KBC 15 : करोड़पति बनने के बाद जसकरण से अमिताभ बच्चन ने कही ये बात, शेयर किए यादगार पल

Kaun Banega Crorepati 15 : सोनी टीवी के सबसे पसंदीदा क्विज शो ‘कौन बनेगा करोड़पति 15’ को अपना पहला करोड़पति मिल गया है. बीते दिनों पंजाब के जसकरण सिंह (Jaskaran Singh) ने करोड़पति बनकर इतिहास रच दिया है.

उन्होंने एक करोड़ रुपये के सवाल का सही जवाब दिया है, जिसके बाद जसकरण ने सात करोड़ रुपये के सवाल का भी सामना किया. लेकिन जब जसकरण ने एक करोड़ रुपये जीते तो शो के होस्ट यानी अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) भी अपनी एक्साइटमेंट रोक नहीं पाए और उन्होंने जसकरण को गले लगाया. साथ ही उन्हें शुभकामनाएं दी.

बिग बी ने जसकरण को गले लगाकर दी बधाई

मीडिया से बात करते हुए ”जसकरण सिंह” ने बताया कि जब उन्होंने एक करोड़ रुपये की धनराशि जीती तो उस समय अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) का रिएक्शन कैसा था. जसकरण ने कहा, ‘जब अमिताभ सर ने ऐलान किया कि मैं एक करोड़ रुपये जीत चुका हूं तो उन्होंने सबसे पहले मुझे गले लगाया और मुझसे कहा, “कमाल कर दिया मुंडया, कमाल कर दिया”.’ इसी के साथ जसकरण सिंह ने बताया कि वह, ‘अमिताभ बच्चन की यह बात जिंदगी भर नहीं भूल पाएंगे.’

जसकरण ने शेयर किया अपना यादगार पल

इसके अलावा जसकरण सिंह ने शो (Kaun Banega Crorepati 15) से जुड़े अपना सबसे यादगार पल भी शेयर किया. उन्होंने कहा, ‘मेरा सबसे अच्छा और यादगार पल वो था जब जब फास्टेस्ट फिंगर फर्स्ट के विजेता के तौर पर अमिताभ बच्चन ने उनका नाम ऐलान किया.’ इसी के साथ उन्होंने ये भी कहा कि, ‘सर, कंटेस्टेंट को इस बात का अहसास नहीं होने देते कि आप हॉट सीट पर सदी के सबसे बड़े महानायक के सामने बैठे हुए हैं.’

शो में आने के लिए सालों से कर रहे थे कोशिश

इसके अलावा जसकरण सिंह (Jaskaran Singh) ने ये भी बताया कि वह पिछले चार सालों से ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में आने का प्रयास कर रहे थे. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि, जब भी शो में कोई करोड़पति बनता था तो वह उस पल को बार-बार रिवाइंड करके देखा करते थे कि जैसे उनसे ही वो सवाल किया जा रहा है और अब उनकी वो कल्पना सच हो गई. वह हॉटसीट पर महानायक के सामने तो बैठे ही थे. साथ ही उन्होंने एक करोड़ रुपये भी जीते.

मेरी बेटी का मूड उखड़ाखड़ा रहता है, मैं क्या करूं?

सवाल

हमारी शादी हुए 26 साल हो गए हैं, एक बेटा है और एक बेटी. बेटा बचपन से समझदार रहा. कभी परेशान नहीं किया, पढ़ने में होशियार रहा और अब अपने बलबूते पर अच्छी कंपनी में नौकरी कर अच्छा कमा रहा है. लेकिन बेटी शुरू से नकचढ़ी रही है. भाई से भी बातबात पर लड़ पड़ती है. पढ़ाई में ठीकठाक रही है, अब कालेज में पढ़ रही है. कालेज में जब से गई है, उस के रंगढंग ही सम?ा में नहीं आते, न अपने जाने का कुछ बताती है न आने का. कुछ पूछो तो कहती है, ‘वह कोई बच्ची नहीं जो अपना भलाबुरा न समझ सके.’

हम उसे खुश करने की बहुत कोशिश करते हैं लेकिन उसे हमारी कोई भी चीज, कोई भी काम पसंद नहीं आता. कहती है, आप लोगों को आजकल का कुछ भी नहीं पता. समझ नहीं आता कि वह लाइफ में चाहती क्या है. ऐसा नहीं है कि हम पुरानी सोच के हैं. मैं खुद मौडर्न मदर हूं. पति भी फौरवर्ड हैं. बच्चों पर हम ने कभी कोई पाबंदी नहीं लगाई लेकिन इस का कुछ सम?ा नहीं आता कि इतनी उखड़ीउखड़ी सी क्यों रहती है.

जवाब

आप की बेटी उम्र के उस दौर से गुजर रही है, जहां बच्चे को सिर्फ अपना ही अपना दिखता है. उस की अपनी ही दुनिया होती है. घरवालों के बारे में वे नहीं सोचते. कालेज, फ्रैंड्स ये सब बहुत माने रखते हैं.

आप की बेटी महत्त्वाकांक्षी भी लगती है. वह लाइफ में बहुतकुछ चाहती है, जल्दीजल्दी सब हासिल करना चाहती है. उसे लगता है वह बहुत पीछे है और बाकी बहुत आगे निकल रहे हैं.

चिंता मत कीजिए, उम्र के साथसाथ सोच में परिवर्तन आने लगता है. कालेज में कई बार फ्रैंड्स ऐसे मिल जाते हैं जिन की संगत में बच्चा बदल जाता है. उस का कालेज खत्म होने दीजिए. उस में बदलाव जरूर आएगा. फिर भी उस के साथ ज्यादा से ज्यादा बातचीत करने की कोशिश कीजिए. परिवार में सब साथ बैठें तो उसे इम्पोर्टेंट फील करवाइए.

जी का जंजाल बनी प्रेमिका

प्रदेश की राजधानी होने के नाते रोजाना लाखों लोग लखनऊ आतेजाते रहते हैं. इसी वजह से लखनऊ के रेलवे स्टेशन चारबाग के आसपास तो हर तरह के होटलों की भरमार है ही, उस से सटे इलाकों का भी यही हाल है. ऐसा ही एक इलाका है नाका हिंडोला. यहां भी छोटेबड़े तमाम होटल हैं.

नाका हिंडोला के मोहल्ला विजयनगर में गुरुद्वारे के पीछे एक होटल है सिंह होटल एंड पंजाबी रसोई. 16 सितंबर की सुबह 11 बजे के आसपास होटल का कर्मचारी मोहन बहादुर बेसमेंट में बने कमरों की ओर गया तो गैलरी में उसे एक बच्चा रोता हुआ दिखाई दिया.

वह लपक कर बच्चे के पास पहुंचा. बच्चा 4 साल के आसपास रहा होगा. उस ने उसे गोद में उठा कर पुचकारते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ बेटा, मम्मी ने मारा क्या?’’

‘‘नहीं, मम्मी ने नहीं मारा. मम्मी को पापा मार कर भाग गए.’’ बच्चे ने कहा.

‘‘मार कर कहां भाग गए पापा?’’ मोहन ने पूछा तो बच्चा रोते हुए बोला, ‘‘पता नहीं?’’

मोहन बहादुर को पहले लगा कि पतिपत्नी में मारपीट हुई होगी या हो रही होगी, इसलिए बच्चा रोते हुए बाहर आ गया होगा. लेकिन अब उसे मामला कुछ और ही लगा, इसलिए उस ने पूछा, ‘‘मम्मी कहां हैं?’’

‘‘वह बाथरूम में पड़ी है.’’ बच्चे ने कहा.

‘‘तुम किस कमरे से बाहर आए हो?’’ मोहन ने जल्दी से पूछा तो बच्चे ने कमरा नंबर 102 की ओर इशारा कर दिया.

मोहन बच्चे को गोद में लिए कमरे के अंदर बने बाथरूम में पहुंचा तो वहां की हकीकत देख कर परेशान हो उठा. बाथरूम में एक महिला की अर्धनग्न लाश पड़ी थी. बच्चे ने उस लाश की ओर अंगुली से इशारा कर के कहा, ‘‘यही मेरी मम्मी है. पापा इन्हें मार कर भाग गए हैं.’’

लाश देख कर मोहन बच्चे को गोद में उठाए लगभग भागते हुए होटल के मैनेजर रामकुमार के पास पहुंचा. उस ने पूरी बात उन्हें बताई तो होटल में अफरातफरी मच गई. होटल के सारे कर्मचारी इकट्ठा हो गए.

मैनेजर रामकुमार ने स्वयं कमरे में जा कर देखा. लाश देख कर उन के भी हाथपांव फूल गए. उन्होंने तुरंत होटल मालिक राजकुमार और स्थानीय थाना नाका हिंडोला पुलिस को घटना की सूचना दी.

सूचना मिलते ही इंसपेक्टर विजय प्रकाश सिंह ने पहले तो इस घटना की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी, उस के बाद खुद पुलिसकर्मियों को साथ ले कर सिंह होटल पहुंच गए.

होटल मालिक राजकुमार उन का इंतजार बाहर कर रहे थे. उन के पहुंचते ही वह उन्हें साथ ले कर बेसमेंट स्थित उस कमरे पर पहुंचे, जिस में लाश पड़ी थी. लाश कमरे के बाथरूम में अर्धनग्न अवस्था में थी. सरसरी तौर पर निरीक्षण के बाद उन्होंने मृतका के नग्न हिस्से पर कपड़ा डलवाया.

मृतका की उम्र 22-23 साल रही होगी. उस के गले को किसी तेज धारदार हथियार से काटा गया था, जिस से निकला खून गरदन से ले कर पीठ के नीचे तक जमीन पर फैला था.

इंसपेक्टर विजय प्रकाश सिंह लाश का निरीक्षण कर ही रहे थे कि एएसपी (पश्चिम) अजय कुमार और सीओ कैसरबाग हृदेश कठेरिया भी फोरेंसिक टीम के साथ होटल पहुंच गए. फोरेंसिक टीम घटनास्थल से साक्ष्य जुटाने में लग गई तो पुलिस अधिकारी होटल के मालिक और मैनेजर से पूछताछ करने लगे.

कमरे की तलाशी में ऐसी कोई भी चीज नहीं मिली, जिस से मृतका या उस के पति के बारे में कुछ पता चलता. पुलिस अधिकारियों ने बच्चे को अपने पास बुला कर पुचकारते हुए प्यार से पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘आयुष. यह मेरा स्कूल का नाम है. घर में मुझे सब शिवा कहते थे.’’ बच्चे ने जवाब में बताया.

‘‘तुम्हारी मम्मी को किस ने मारा?’’

‘‘पापा ने मारा है.’’

‘‘पापा ने मम्मी को कैसे मारा?’’ एएसपी अजय कुमार ने पूछा तो बच्चे ने कहा, ‘‘पहले तो पापा ने मम्मी को खूब मारा. मम्मी खूब रो रही थीं. फिर भी पापा उन को मारते रहे. पापा उन्हें मारते हुए बाथरूम में ले गए. वहीं मम्मी बेहोश हो गईं. मम्मी को मारते देख मैं जोरजोर से रो रहा था. पापा ने मुझे गोद में उठाया और बिस्तर पर लिटा दिया. कुछ देर में मैं सो गया. सुबह उठ कर देखा तो मम्मी मर चुकी थी. पापा नहीं दिखाई दिए तो मैं रोने लगा. रोते हुए कमरे से बाहर आया तो अंकल ने मुझे गोद में ले लिया.’’

पुलिस अधिकारियों ने बच्चे को एक महिला सिपाही के हवाले कर के उसे बच्चे को कुछ खिलानेपिलाने को कहा. इस के बाद होटल के मैनेजर रामकुमार से मृतका के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बताया, ‘‘कल यानी 15 सितंबर की रात 11 बजे एक आदमी पत्नी और बेटे के साथ आया था. उस ने अपना नाम बबलू, पत्नी का सीमा और 4 वर्षीय बेटे का नाम आयुष उर्फ शिवा बताया. कमरा मांगने पर मैं ने उस से आईडी मांगी तो उस ने अपना आधार कार्ड दिया. तब काफी रात हो चुकी थी, इसलिए उस की फोटोकौपी नहीं हो सकती थी. इसलिए मैं ने उस का आधार कार्ड रख लिया और उसे कमरा नंबर 102 की चाबी दे दी. होटल का वेटर उस का सामान ले कर उसे कमरे तक पहुंचाने गया.

‘‘कमरे में जाने के कुछ देर बाद बबलू चारबाग गया और वहां से खाना ले आया. सुबह साढ़े 6 बजे बबलू ने मेरे पास आ कर कहा कि मुझे आधार कार्ड की जरूरत है इसलिए आप मुझे मेरा आधार कार्ड दे दीजिए. थोड़ी देर में दुकान खुल जाएगी तो मैं फोटोकौपी करा कर दे दूंगा. चिंता की कोई बात नहीं, मेरी पत्नी और बच्चा होटल में ही है.

‘‘मैं ने आधार कार्ड दे दिया तो वह कमरे में गया और अपना बैग ले कर चला गया. उस की पत्नी और बच्चा होटल में ही था, इसलिए मैं ने सोचा वह लौट कर आएगा ही. लेकिन वह लौट कर नहीं आया. जब आयुष रोता हुआ कमरे से बाहर आया तो पता चला कि वह पत्नी की हत्या कर के भाग गया है.’’

बबलू भले ही आधार कार्ड ले कर चला गया था, लेकिन उस का नंबर, उस पर लिखा पता और मोबाइल नंबर होटल के रजिस्टर में लिख लिया गया था. पुलिस ने उस का आधार नंबर, पता और मोबाइल नंबर नोट कर लिया. इस के बाद घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भिजवा दिया गया.

थाना नाका हिंडोला के थानाप्रभारी विजय प्रकाश बच्चे को साथ ले कर थाने आ गए और होटल मालिक राजकुमार की ओर से मृतका सीमा के पति बबलू के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पुलिस ने होटल में दर्ज आधार कार्ड के पते और मोबाइल नंबर की जांच कराई तो दोनों फरजी निकले.

आधार कार्ड के अनुसार बबलू का पता आरजेड-30, स्मितापुरी, पार्क रोड, नई दिल्ली लिखा था जो फरजी पाया गया. आधार कार्ड के नंबर में 2 अंक गलत थे. कमरे में ऐसा कुछ भी नहीं मिला था, जिस से हत्यारे के बारे में या मृतका के बारे में कुछ पता चलता.

इंसपेक्टर विजय प्रकाश सिंह सोच रहे थे कि अब क्या किया जाए. तभी उन की नजर आयुष पर पड़ी. वह स्कूल की ड्रेस पहने था. उन्होंने उस की स्कूली शर्ट के कालर पर लगे टैग को देखा. उस में जो लेबल लगा था, उस में स्टार यूनिफार्म लिखा था. इस का मतलब ड्रेस जिस कंपनी में तैयार की गई थी, उस का नाम स्टार यूनिफार्म था.

स्कूल ड्रेस तैयार करने वाली इस कंपनी के बारे में शायद इंटरनेट से कुछ पता चल जाए, यह सोच कर उन्होंने इंटरनेट पर सर्च किया तो कंपनी का पता और फोन नंबर मिल गया. पुलिस ने उस नंबर पर फोन कर के संपर्क किया. जब कंपनी के बारे में पता चल गया तो पुलिस ने वाट्सएप द्वारा आयुष और उस की ड्रेस की फोटो कंपनी को भेजी तो कंपनी ने बताया कि यह ड्रेस एक प्ले स्कूल की है, जिस का पता है एम-24, चाणक्य प्लेस, डाबड़ी, नई दिल्ली.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस की एक टीम नई दिल्ली पहुंच गई. इस पुलिस टीम ने प्ले स्कूल के प्रबंधक को आयुष का फोटो दिखा कर पूरी बात बताई तो प्रबंधक ने स्कूल के रजिस्टर से आयुष के घर का पता लिखा दिया.

आयुष के मातापिता स्कूल से कुछ दूरी पर सीतापुरी कालोनी में अवधेश के मकान में किराए पर कमरा ले कर रहते थे.

पुलिस टीम ने अवधेश से पूछताछ की तो पता चला कि उस के किराएदार का नाम बबलू नहीं बल्कि मणिकांत मिश्रा है और वह गोरखपुर के थाना सहजनवां के मोहल्ला डुगडुइया का रहने वाला है. उस के पिता का नाम विश्वंभरनाथ मिश्रा है. सीमा उस की ब्याहता पत्नी नहीं थी बल्कि दोनों लिवइन रिलेशन में रहते थे.

पुलिस टीम ने दिल्ली से ही इंसपेक्टर विजय प्रकाश को फोन कर के सीमा के असली हत्यारे का नाम पता बता दिया. इस के बाद विजय कुमार ने दूसरी पुलिस टीम गोरखपुर भेज दी.

19 सितंबर को गोरखपुर गई पुलिस टीम ने स्थानीय पुलिस की मदद से मणिकांत के घर छापा मारा तो वह घर पर ही मिल गया. पूछताछ में उस ने न केवल सीमा की हत्या का अपना अपराध कुबूल कर लिया बल्कि हत्या में प्रयुक्त सब्जी काटने वाला चाकू भी बरामद करा दिया. पुलिस टीम मणिकांत को गिरफ्तार कर के लखनऊ ले आई. थाने में की गई पूछताछ में मणिकांत ने सीमा की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना पिपराइच के पुखरभिंडा गांव में रहता था कमल सिंह. उस के परिवार में पत्नी और एक ही बेटी थी सीमा. वह अपराधी प्रवृत्ति का था, इसलिए पत्नी और बच्चों पर खास ध्यान नहीं देता था. वैसे भी वह ज्यादातर जेल में ही रहता था, इसलिए पत्नी और बेटी अपने मन की मालिक थीं.

सीमा खूबसूरत भी थी और महत्त्वाकांक्षी भी. वह जवान हुई तो उस की खूबसूरती लोगों की आंखों में बैठ गई. उसे जो भी देखता, देखता ही रह जाता. जिस का बाप अपराधी हो, उस के घर का माहौल तो वैसे भी अच्छा नहीं होता क्योंकि उस के साथ उठनेबैठने वाले कोई अच्छे लोग तो होते नहीं.

कमल के यहां भी उसी के जैसे लोग आते थे. जवान बेटी को ऐसे लोगों से दूर रखना चाहिए, लेकिन कमल को इस बात की कोई चिंता ही नहीं थी. वह सभी को घर के अंदर ही बैठाता था. बदमाश प्रवृत्ति का व्यक्ति किसी का नहीं होता, इसलिए उन सब की नजरें कमल की जवान बेटी पर जम गई थीं.

बगल के ही गांव भरहट का रहने वाला एक लड़का कमल के यहां आता रहता था. वह भी अपराधी प्रवृत्ति का था. वह कुंवारा था, इसलिए उस ने कमल सिंह के सामने सीमा से शादी करने का प्रस्ताव रखा तो कमल सिंह ने सोचा कि उसे बेटी की शादी तो करनी ही है. अगर वह अपने हिसाब से शादी करेगा तो दुनिया भर का इंतजाम और दानदहेज के लिए काफी पैसे खर्च करने पड़ेंगे.

और यदि वह सीमा की शादी इस लड़के से कर देता है तो उसे अपने पास से एक पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा. इतना ही नहीं बल्कि वह चाहे तो इस लड़के से कुछ पैसे भी ले लेगा. लड़का उसे पसंद था इसलिए उस ने कहा, ‘‘सीमा की शादी तो मैं तुम से कर दूंगा लेकिन कुछ देने के बजाय मुझे तुम से कुछ चाहिए.’’

लड़का भी सीमा के लिए बेचैन था. इसलिए उस ने कहा, ‘‘चाचाजी, मैं सीमा के लिए अपना सब कुछ आप को दे सकता हूं.’’

‘‘मुझे तुम्हारा सब कुछ नहीं चाहिए. सब कुछ दे दोगे तो मेरी बेटी को खिलाओगे पिलाओगे कहां से. मुझे कुछ रुपए चाहिए. क्योंकि मेरे ऊपर काफी कर्ज हो गया है.’’

वह लड़का कमल द्वारा मांगी गई रकम देने को तैयार हो गया तो उस ने सीमा का विवाह उस युवक से करा दिया. सीमा पिता के घर से ससुराल पहुंच गई. वहां कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीकठाक रहा, लेकिन बाद में वह लड़का बातबात पर सीमा से मारपीट करने लगा तो परेशान हो कर सीमा उस से तलाक ले कर मायके चली आई.

सीमा पहले से ही बिना अंकुश की थी. शादी के बाद वह और आजाद हो गई. उसे किसी से भी बात करने या मिलने में जरा भी हिचक नहीं होती थी. कोई रोकटोक भी नहीं थी इसलिए वह कहीं भी किसी के भी साथ घूमने चली जाती थी. इस की सब से बड़ी वजह थी उस की जरूरतें. इसलिए जो भी उस की जरूरतें पूरी करता, वह उसी की हो जाती.

ऐसे में ही उस की मुलाकात थाना पिपराइच के गांव पकडि़यार के रहने वाले केदार सिंह के बेटे मनोहर सिंह से हुई तो वह उस से जुड़ गई. केदार सिंह खेतीकिसानी करते थे. मनोहर सीमा को इस कदर चाहने लगा कि वह उस से शादी करने के बारे में सोचने लगा.

मनोहर ने अपने पिता केदार सिंह से शादी के लिए कहा तो उन्होंने मना कर दिया. लेकिन मनोहर ने जिद पकड़ ली कि वह शादी करेगा तो सीमा से ही करेगा अन्यथा कुंवारा ही रहेगा. तब मजबूर हो कर केदार सिंह को झुकना पड़ा. वह सीमा से उस की शादी कराने को राजी तो हो गए लेकिन उन्होंने शर्त रख दी कि सीमा को उन के हिसाब से घर में रहना होगा. जबकि वह जानते थे कि सीमा ज्यादा दिनों तक उन की इच्छानुरूप नहीं रह सकती. इसीलिए उन्होंने यह शर्त रखी थी.

मनोहर से शादी के बाद सीमा ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम आयुष रखा गया. लेकिन घर में उसे सब प्यार से शिवा कहते थे. केदार सिंह ने सीमा पर काफी बंदिशें लगा रखी थीं. उसे परेशान करने के लिए वह बातबात पर उसे प्रताडि़त करते रहते थे.

सीमा को बंदिशें वैसे भी कभी रास नहीं आईं, वह तो खुले आकाश में विचरण करने वाली युवती थी. यही वजह थी कि जल्दी ही वह उस घर के माहौल से तंग आ गई. वह उस घर से भागने की कोशिश करने लगी. आखिर एक दिन मौका मिलते ही वह बेटे को ले कर उस घर से हमेशाहमेशा के लिए भाग निकली.

सीमा मायके आई तो उस का पिता कमल सिंह किसी मामले में गोरखपुर जेल में बंद था. सीमा अकसर अपने पिता से मिलने जेल जाती रहती थी. वहीं उस की मुलाकात मणिकांत मिश्रा से हुई. वह भी अपने पिता विश्वंभरनाथ मिश्रा से मिलने जेल आता रहता था.

मणिकांत के पिता विश्वंभरनाथ मिश्रा जिला महाराजगंज में कोऔपरेटिव बैंक की नौतनवां शाखा में सचिव थे. 2008 में उन्हें गबन और धोखाधड़ी के मामले में गोरखपुर जेल भेज दिया गया था. मणिकांत मिश्रा मांबाप का एकलौता बेटा था.

मणिकांत भी अपने पिता से मिलने जेल आता रहता था और सीमा भी. अकसर दोनों की मुलाकात हो जाती थी. कभी दोनों ने एकदूसरे के बारे में पूछ लिया तो उस के बाद उन में बातचीत होने लगी. बातचीत होतेहोते उन में दोस्ती हुई और फिर प्यार.

बाप जेल में था, मुकदमा चल रहा था. आमदनी का कोई और जरिया नहीं था इसलिए मणिकांत दिल्ली चला गया और वहां वह कढ़ाई का काम करने लगा. रहने के लिए उस ने डाबड़ी की सीतापुरी कालोनी में अवधेश के मकान में एक कमरा किराए पर ले लिया. मणिकांत दिल्ली में रहता था और सीमा गोरखपुर में. लेकिन दोनों में फोन पर बातें होती रहती थीं. सीमा ने उस से कहा कि उसे वहां अच्छा नहीं लगता. इस पर मणिकांत ने उसे दिल्ली बुला लिया. वह बेटे को ले कर दिल्ली पहुंच गई.

सीमा को दिल्ली आए 2-3 दिन ही हुए थे कि एक रात उस ने कहा, ‘‘मणि, हम दोनों एकदूसरे को पसंद ही नहीं करते, बल्कि एकदूसरे को जीजान से चाहते भी हैं. हमें एकदूसरे से दूर रहना भी अच्छा नहीं लगता. क्यों न हम दोनों शादी कर लें?’’

सीमा की इस बात पर मणिकांत गंभीर हो गया. कुछ देर सोचने के बाद उस ने कहा, ‘‘सीमा, प्यार करना अलग बात है और शादी करना अलग बात. मैं तुम से प्यार तो करता हूं, लेकिन शादी नहीं कर सकता.’’

‘‘क्यों, प्यार करते हो तो शादी करने में क्या परेशानी है?’’

‘‘तुम शादीशुदा ही नहीं, किसी दूसरे के एक बच्चे की मां भी हो. ऐसे में मैं तुम से कैसे शादी कर सकता हूं?’’

‘‘तो क्या तुम मुझे बेसहारा छोड़ दोगे? मैं तो बड़ी उम्मीद ले कर तुम्हारे पास आई थी कि तुम मुझ से प्यार करते हो, इसलिए मुझे अपना लोगे.’’

‘‘सीमा, मैं तुम्हें बेसहारा भी नहीं छोड़ सकता और शादी भी नहीं कर सकता. अगर तुम चाहो तो एक रास्ता है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘लिवइन रिलेशनशिप. यानी हम दोनों बिना शादी के एक साथ पतिपत्नी की तरह रह सकते हैं.’’

सीमा मरती क्या न करती, वह राजी हो गई. इस के बाद दोनों बिना शादी के ही पतिपत्नी की तरह साथ रहने लगे. मणिकांत ने पास के ही चाणक्य प्लेस स्थित एक प्ले स्कूल में आयुष का एडमिशन करा दिया. सीमा की भी उस ने एक कालसेंटर में नौकरी लगवा दी. वहां सीमा को 5 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता था.

सीमा जल्दी ही अपने रंग दिखाने लगी. वह घूमने, फिल्में देखने और महंगा खाना खाने पर जरूरत से ज्यादा पैसे खर्च करने लगी. उस का पूरा वेतन इसी में खर्च हो जाता. पैसे खत्म हो जाते तो वह परेशान हो उठती. तब वह आसपड़ोस से उधार लेने लगी. उन पैसों को भी वह अपने शौक पूरा करने में उड़ा देती.

उधार देने वालों के पैसे सीमा वापस न करती तो वे मणिकांत से पैसे मांगते. सीमा की इन हरकतों से मणिकांत परेशान रहने लगा. उस ने सीमा को कई बार समझाया, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ.

धीरेधीरे उसे सीमा के चरित्र पर भी शक होने लगा. क्योंकि सीमा हर किसी से इस तरह खुल कर बात करती थी जैसे वह उस का बहुत खास हो. इस के अलावा उसे लोगों से पैसा भी बड़े आराम से उधार मिल जाता था. इस से मणिकांत को लगने लगा कि सीमा ने ऐसे लोगों से संबंध बना रखे हैं. इन्हीं बातों को ले कर दोनों के बीच आए दिन झगड़ा होने लगा.

हद तब हो गई, जब सीमा मणिकांत पर दबाव बनाने लगी कि वह गोरखपुर की अपनी सारी संपत्ति बेच कर दिल्ली में एक अच्छा सा मकान ले कर यहीं रहे. मणिकांत सीमा की हरकतों से वैसे भी परेशान था. जब वह उस पर संपत्ति बेचने के लिए ज्यादा दबाव बनाने लगी तो वह सीमा से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगा. उसे पता था कि यह औरत सीधे उस का पीछा नहीं छोड़ेगी. इसलिए उस ने उसे खत्म करने का विचार बना लिया.

पूरी योजना बना कर उस ने सीमा से गोरखपुर के अपने गांव चलने को कहा तो वह खुशीखुशी चलने को तैयार हो गई. 15 सितंबर की दोपहर मणिकांत ने सीमा और आयुष को साथ ले कर लखनऊ जाने के लिए गोमती एक्सप्रेस पकड़ी.

रात 10 बजे वह लखनऊ के चारबाग स्टेशन पर उतरा. उस ने सीमा से कहा कि इस समय गोरखपुर जाने के लिए कोई बस या ट्रेन नहीं मिलेगी, इसलिए आज रात यहीं किसी होटल में रुक जाते हैं.

सीमा क्या कहती, वह होटल में रुकने को तैयार हो गई. रिक्शे पर बैठ कर उस ने रिक्शे वाले से किसी छोटे और सस्ते होटल में चलने को कहा. रिक्शे वाला तीनों को नाका हिंडोला थाने के विजयनगर स्थित सिंह होटल एंड पंजाबी रसोई ले गया. वहां मणिकांत ने  होटल के रिसैप्शन पर बैठे मैनेजर रामकुमार से एक कमरे की डिमांड की तो उस ने उस से आईडी मांगी.

मणिकांत ने सुबह को आईडी की फोटोकौपी देने को कहा. तब उस ने उस का आधार कार्ड ले कर उस का नंबर, मोबाइल नंबर और पता दर्ज कर लिया. कमरे का किराया 350 रुपए ले कर उस ने कमरा नंबर 102 की चाबी मणिकांत को दे दी. वह सीमा और आयुष को ले कर कमरे में चला गया.

सीमा और आयुष को कमरे में छोड़ कर मणिकांत चारबाग गया और वहां किसी ढाबे से खाना ले आया. खाना खा कर वह सीमा से बातें करने लगा. तभी किसी बात पर उस की  सीमा से बहस हो गई तो वह सीमा को पीटने लगा. सीमा जोरजोर से रोने लगी. मां की पिटाई और उसे रोता देख कर मासूम आयुष भी रोने लगा.

मणिकांत सीमा की पिटाई करते हुए उसे बाथरूम में ले गया. वहां उस ने उसे इस तरह पीटा की वह बेहोश हो गई. उसे उसी हालत में छोड़ कर वह आयुष के पास आया और उसे बिस्तर पर लिटा कर किसी तरह सुला दिया. इस के बाद उस ने घर से बैग में रख कर लाया सब्जी काटने वाला चाकू निकाला और बाथरूम में बेहोश पड़ी सीमा का बेरहमी से गला काट दिया, जिस से उस की मौत हो गई. रात भर वह उसी कमरे में रहा. सवेरा होने पर उस ने मैनेजर से अपना आधार कार्ड लिया और बैग ले कर निकल गया. होटल से निकल कर वह गोरखपुर स्थित अपने घर चला गया.

उस ने अपनी ओर से होटल में कोई सुबूत नहीं छोड़ा था, लेकिन पुलिस आयुष की स्कूल ड्रेस के टैग के सहारे उस तक पहुंच ही गई. सारी कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के पुलिस ने मणिकांत को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.

पुलिस ने आयुष को चाइल्डलाइन भेज कर सीमा के पति मनोहर और उस के घर वालों से संपर्क किया तो उस के चाचाचाची आ कर उसे ले गए. कथा लिखे जाने तक पुलिस होटल के मालिक के खिलाफ भी काररवाई करने की तैयारी कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

स्मृति ईरानी : भाजपा का स्त्री चेहरा, दर्द नहीं कोरी राजनीति

संसद में हालिया फ्लाइंग किस वाला मामला बताता है कि सत्ता पक्ष के लिए महिला न्याय महज मजाक है. इसी कड़ी में कथित रूप से अपनी बेबाक छवि के लिए जाने जानी वाली भाजपा नेत्री स्मृति ईरानी भाजपाई पुरुषवादी एजेंडे को थोपने वाली मुहर बन कर रह गई हैं. उन की यह छवि कहीं न कहीं अमेरिकी दक्षिणपंथी नेत्री फिलिस श्लेफ्ली जैसी बन गई है जो महिलाओं के ही पर कुतरने का काम कर रही थीं.

9 अगस्त को केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी लोकसभा में इस बात को ले कर आगबबूला हो गईं कि राहुल गांधी ने सदन में फ्लाइंग किस दे कर वहां बैठी सारी महिलाओं का अपमान किया है. दरअसल उस दिन हुआ यह था कि जब राहुल गांधी भाषण दे कर सदन से बाहर निकल रहे थे तो उन के हाथ से कुछ कागज जमीन पर गिर पड़े और जब वे उन कागजों को उठाने के लिए ?ाके तो पास खड़े भाजपा के सांसद हंसने लगे. राहुल ने उन्हें हंसते हुए देखा और ट्रेजरी बैंच की तरफ हवा में एक फ्लाइंग किस उछाल कर मुसकराते हुए बाहर निकल गए.

लेकिन स्मृति ईरानी ने इसे ऐसे पेश करने की कोशिश की कि राहुल ने वहां बैठी भाजपा सांसद महिलाओं को ही फ्लाइंग किस दिया और इसी बात को ले कर वे नारीवाद के नाम पर चिल्लाने लगीं कि राहुल गांधी ने कितनी नीच हरकत की, उन्होंने अपने खराब आचरण का प्रमाण दिया वगैरहवगैरह. लेकिन सच तो यह था कि मुद्दा कुछ था ही नहीं.

उस दिन सदन में स्मृति ईरानी का वह रूप महिला का रूप नहीं था बल्कि ताकत और सत्ता में चूर केंद्रीय मंत्री का रूप था. इस का जैंडर से उतना ही वास्ता था जितना मछली का पेड़ पर चढ़ने से और चिडि़या का पानी में तैरने से.

जिस वक्त वे सदन में एक फ्लाइंग किस को ले कर देश और ब्रह्मांड की महिलाओं का अपमान बता रही थीं, ठीक उसी समय बृजभूषण शरण सिंह 2 सीट पीछे बैठा हंस रहा था. जब वे मिसोजिनी की बात कर रही थीं, तब असली मिसोजेनिस्ट वहीं बैठा था जिस ने नाबालिग बच्चियों की छाती पर हाथ फेरा, उन से सैक्सुअल फेवर मांगा. बात न मानने पर उन्हें खेल से निकाल देने की धमकी दी. तब इसी बृजभूषण पर इन्होंने क्यों कुछ नहीं कहा?

महिलाओं का अपमान करने वाले इस बृजभूषण सिंह की मिसोजिनी पर उन्हें गुस्सा क्यों नहीं आया? आखिर यह कैसी संवेदना है उन की कि देश की महिलाओं के प्रति जो इतने महीनों में महिला पहलवानों के लिए एक शब्द भी नहीं निकला उन के मुंह से और आज एक फ्लाइंग किस को ले कर इतना बड़ा बवाल मचा रही हैं?

गुस्सा तो स्मृति ईरानी को तब भी नहीं आया जब सांप्रदायिक हिंसा की आग में जल रहे मणिपुर में उन 2 महिलाओं को सरेआम निर्वस्त्र कर के मर्दों ने उन की परेड करवाई. उन के शरीर से छेड़छाड़ की गई, नोचा गया और वहां बाकी खड़े मर्द ठहाके लगाते रहे. तब इन्हीं स्मृति ईरानी की संवेदना कहां चली गई थी? क्या तब उन्हें महिलाओं का अपमान नहीं दिखा? क्यों मुंह पर ताले पड़ गए थे उन के?

महिला का अपमान तो उन्हें हाथरस रेप केस में भी नहीं दिखा था जब बलात्कार की शिकार हुई उस लड़की की लाश को उस के परिवार की मरजी के खिलाफ रातोंरात पुलिस वालों ने जला दिया था और भी बहुत सारी बातें हैं जिस पर सत्ता में बैठी स्मृति ईरानी को गुस्सा नहीं आता है. कभी इसी स्मृति ईरानी ने चीखचीख कर कहा था, ‘बुलाइए मीटिंग, हम एक सुर में बोलेंगे कि अगर बच्ची का बलात्कार होता है तो यह देश उसे सजाए मौत देगा,’ लेकिन आज वही स्मृति ईरानी मणिपुर की घटना पर दम साधे बैठी रहीं. क्यों? विपक्षी नेताओं पर निशाना साधते हुए वे कहती हैं कि मणिपुर की घटना के लिए वही लोग जिम्मेदार हैं और विपक्ष इस मुद्दे पर संसद में चर्चा नहीं करना चाहता था, जबकि यह बात हर कोई जानता है कि वहां मणिपुर में बीजेपी की सरकार है.

एक तरफ तो स्मृति ईरानी महिला अधिकार की बात करती हैं और वहीं दूसरी तरफ मणिपुर की घटना को ले कर उन की चुप्पी हैरान करती है. स्मृति ईरानी कोई आम महिला नहीं हैं, बल्कि वे एक कलाकार हैं जिन्हें कब, कहां, कितना बोलना है, कितना हंसना है, कितना रोना है, कब चीखनाचिल्लाना है, कितने बड़ेछोटे डायलौग बोलने हैं, सब अच्छे से आता है. राजनीति में रहते हुए भी वे ऐसा ही कर रही हैं तो इस में आश्चर्य की क्या बात है.

स्मृति ईरानी का जीवन चरित्र

23 मार्च, 1977 में जन्मी स्मृति ईरानी का ताल्लुक एक पंजाबी परिवार से है. 3 बहनों में स्मृति सब से बड़ी हैं. दिल्ली में जन्मी स्मृति ईरानी ने नई दिल्ली में होली चाइल्ड औक्सिलियम स्कूल से 12वीं क्लास तक पढ़ाई की है. 2001 में उन्होंने अपनी सहेली के पति जुबिन ईरानी से शादी की और जिन से उन्हें 2 बच्चे हैं.

अभिनेत्री से राजनेता बनने का सफर

मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री के पद पर बैठी स्मृति ईरानी की पहचान ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ सीरियल से हुई थी. एकता कपूर के इस शो से उन्हें काफी लोकप्रियता मिली थी. इस सीरियल की बदौलत वे घरघर की तुलसी बन गई थीं. इस सीरियल के बाद वे टीवी जगत का जानामाना चेहरा बन चुकी थीं. देशविदेश में उन की पहचान बन चुकी थी.

एक इंटरव्यू में स्मृति ने खुलासा किया था कि इस सीरियल में काम करने के उन्हें 1,800 रुपए फीस के तौर पर मिलते थे. इस के अलावा उन्होंने और भी कई सीरियलों में काम किया. स्मृति ईरानी का कैरियर तब शुरू हुआ था जब वे 1998 में मिस इंडिया पैजेंट में फाइनलिस्ट बनीं. इस के बाद उन्होंने कई मौडलिंग प्रोजैक्ट भी किए.

स्मृति ईरानी मैक्डोनल्स में वेटर का काम भी कर चुकी हैं. वे मीका सिंह के साथ एक म्यूजिक अल्बम में भी नजर आ चुकी हैं. लेकिन असली पहचान उन्हें ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ सीरियल से ही मिली. तुलसी के रूप में दर्शकों ने उन्हें खूब सराहा था. वे सिर्फ उस सीरियल की तुलसी नहीं, बल्कि घरघर की तुलसी बन चुकी थीं.

भारत की हर बेटे वाली मां की यही ख्वाहिश होती थी कि उन की भी आने वाली बहू तुलसी जैसी हो को पूरे परिवार जो एक माला में पिरो कर रखती है, सुखदुख में परिवार के साथ खड़ी रहती है. लोग अकसर नाटकड्रामा देखतेदेखते उसे सच मान बैठते हैं और उसे ही अपनी जिंदगी में उतारने की कोशिश करने लगते हैं.

राजनीति की शुरुआत

स्मृति ईरानी 2003 में भाजपा से जुड़ीं. इसी के साथ उन्होंने राजनीति में कदम रखा था. स्मृति ईरानी ने यह फैसला तब लिया था जब वे एक बोल्ड अभिनेत्री होने के लिए सुर्खियों में आई थीं. स्मृति ने अपना पहला चुनाव कांग्रेस उम्मीदवार कपिल सिब्बल के खिलाफ लड़ा जिस में वे हार गई थीं पर फिर भी भाजपा ने उन्हें महाराष्ट्र यूथ विंग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया था.

2014 में स्मृति ईरानी ने उत्तर प्रदेश के अमेठी से कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा और राहुल गांधी को बड़ी टक्कर देते हुए बोली थीं कि जो लोग अपने निर्वाचन क्षेत्र का विकास नहीं कर सकते, उन्हें देश के विकास के बारे में नहीं बोलना चाहिए. उन का कहना था कि उन की ईमानदारी, कड़ी मेहनत और समर्पण ने उन्हें कैबिनेट में एक मजबूत स्थान दिलाया.

संसद में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान भी स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी के भाषण का जवाब दिया. बल्कि, तमाम ऐसे मौके आते रहे जब मोदी सरकार ने इन पर भरोसा करते हुए संसद में विपक्ष पर जवाबी हमले की कमान स्मृति ईरानी को सौंपी और स्मृति ईरानी ने इसे बखूबी अंजाम भी दिया.

स्मृति ईरानी से जुड़े विवाद

स्मृति ईरानी से जुड़े विवादों की सूची काफी लंबी है. साल 2004 में स्मृति ने नरेंद्र मोदी पर ही हमला करते हुए कहा था कि उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री का पद छोड़ देना चाहिए. स्मृति ने गुजरात में हुए दंगों को ले कर कहा था कि नरेंद्र मोदी को इस्तीफा दे देना चाहिए.

डिग्री को लेकर विवाद

इस विवाद की शुरुआत उस वक्त हुई जब स्मृति ईरानी के 2004 एवं 2014 के शैक्षणिक योग्यता में अलगअलग बात बताई गई. 2004 में स्मृति ने एफिडेविट के जरिए दिल्ली यूनिवर्सिटी से आर्ट्स में स्नातक होने की बात लिखी. इस में कहा गया कि उन्होंने 1996 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के कोरेस्पोंडैंस से स्नातक की डिग्री ली है. लेकिन जब 2014 में वे अमेठी से राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ रही थीं तो उन्होंने 1994 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से कौमर्स पार्ट-1 में स्नातक होने की बात लिखी. साल 2019 में स्मृति ईरानी ने एक बार खुद को 12वीं पास बताया था.

रोहित वेमुला और जेएनयू मामला

स्मृति ईरानी के साथ दूसरा विवाद हैदराबाद यूनिवर्सिटी के रिसर्च स्कौलर रोहित वेमुला की आत्मह्त्या एवं जेएनयू मामले को ले कर हुआ था. रोहित वेमुला मामले में स्मृति ईरानी विपक्ष के साथ छात्रों के निशाने पर भी आई थीं. इस मामले में उन्हें सही से हैंडल न कर पाने का आरोप लगा था और इस के बाद स्मृति को शिक्षा मंत्रालय से हटा कर कपड़ा मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंप दी गई थी. रोहित वेमुला मामले पर स्मृति पर तथ्यों के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगा था. यही वक्त था जब स्मृति को ‘आंटी नैशनल’ तक कह कर संबोधित किया गया था.

सबरीमाला मंदिर विवाद

स्मृति ईरानी को ले कर तीसरा विवाद केरल के सबरीमाला मंदिर के वक्त हुआ था जब उन्होंने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर बयान दिया था कि ‘पूजा करने का अधिकार है, लेकिन अपवित्र करने का नहीं.’ उन के इस बयान पर कई महिला संगठनों से ले कर दूसरे कई लोगों ने आपत्ति जताई थी. इस बात पर स्मृति का कहना था कि, ‘मैं सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ बोलने वाली कोई नहीं हूं क्योंकि मैं एक कैबिनेट मंत्री हूं लेकिन यह साधारण सी बात है कि क्या आप माहवारी के खून से सना नैपकिन ले कर चलेंगे और किसी दोस्त के घर में जाएंगे? आप ऐसा नहीं करेंगे. क्या आप को लगता है कि भगवान के घर में ऐसे जाना सम्मानजनक है?’

स्मृति ईरानी की बातों से लगता है कि यहां भी ‘सास बहू’ सीरियल चल रहा है जो वे स्क्रिप्ट पढ़पढ़ कर लोगों को ज्ञान दे रही हैं. खैर, चौथा विवाद उन पर साल 2012 में लगा था. एक टीवी डिबेट के दौरान कांग्रेस नेता संजय निरूपम ने स्मृति को अपशब्द कहे थे. उन्होंने स्मृति पर व्यक्तिगत हमला करते हुए कहा था, ‘आप पहले टीवी पर ठुमका लगाती थीं और अब भाजपा में शामिल हो कर राजनीतिक विश्लेषक बन गई हैं.’ इस के बाद विवाद शुरू हुआ तो दोनों ने एकदूसरे पर मानहानि का दावा ठोंक दिया था.

बिहार के शिक्षा मंत्री के ‘डियर’ कहने पर भी स्मृति ईरानी भड़क गई थीं और अपने फेसबुक पेज पर एक लंबी पोस्ट लिख कर उन्हें जवाब दिया था और आखिर में खुद को ‘आंटी नैशनल’ लिखा था.

अब राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए वे चीखचिल्ला कर कह रही हैं कि राहुल गांधी ने संसद में बैठी महिला सांसदों की तरफ देख कर फ्लाइंग किस दिया और ऐसा कर के राहुल गांधी ने अभद्रता की सारी हदें पार कर दीं. केंद्रीय कृषि मंत्री शोभा करंदलाजे ने भी फ्लाइंग किस को ले कर कांग्रेस सांसद पर निशाना साधते हुए राहुल गांधी के व्यवहार को अनुचित बताया और लोकसभा के अध्यक्ष के पास शिकायत दर्ज कराई.

कई अन्य महिला सांसदों ने भी शिकायतपत्र पर हस्ताक्षर किए. इस शिकायतपत्र पर उन्होंने राहुल गांधी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की. हस्ताक्षर करने वाली सभी महिला बीजेपी सांसद हैं. लेकिन यहां एक बात सम?ा नहीं आती कि चिल्लाचिल्ला कर राहुल गांधी पर आरोप लगाने वाली स्मृति ईरानी ने शिकायतपत्र पर हस्ताक्षर क्यों नहीं किए?

टीवी एंकर सुधीर चौधरी ने जब उन से यह सवाल पूछा कि आप ने भी तो शिकायतपत्र पर हस्ताक्षर किए हैं? तो वे भड़कती हुई बोलीं कि उन्होंने कोई हस्ताक्षर नहीं किए तो उन्होंने हस्ताक्षर क्यों नहीं किए, यह सोचने वाली बात है? क्या यह सब एक राजनीति के तहत हो रहा है?

वे तो सुधीर चौधरी के टमाटर के सवाल पर भी लाल हो गईं. दरअसल जब सुधीर चौधरी ने उन से पूछा कि ‘जब टमाटर 250-300 रुपए किलो था तो क्या आप के घर में भी टमाटर पर बात होती थी?’ इस सवाल को सुनते ही स्मृति ईरानी टीवी एंकर पर भड़कती हुई बोलीं, ‘क्या मैं पूछ सकती हूं कि क्या हुआ जब आप जेल में थे?’ एक और एंकर को भी उन्होंने ऐसे ही जवाब दे दिया कि अगर कोई पुरुष उन्हें फ्लाइंग किस दे तो कैसा लगेगा?’ यह वही गोदी मीडिया है जो मोदी सरकार की सत्ता की दलाली में लगी हुई है लेकिन आज वही भाजपा नेता स्मृति ने उसे उस की असली औकात दिखा दी.

अब फ्लाइंग किस को ले कर स्मृति ईरानी कितना सच और कितना ?ाठ बोल रही हैं, यह तो वही जानें पर मथुरा सांसद हेमा मालिनी का कहना है कि उन्होंने राहुल को ऐसा करते नहीं देखा. दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने कहा कि, ‘हवा में फेंकी एक फ्लाइंग किस से इतनी आग लग गई. दो पंक्ति पीछे एक आदमी बृजभूषण बैठा हुआ था, जिस ने महिला पहलवानों को अपने कमरे में बुला कर उन का शोषण किया, उसे देख कर स्मृति ईरानी को गुस्सा क्यों नहीं आया?’

इस विवाद में कई महिला सांसदों सहित अन्य महिलाएं भी राहुल गांधी के समर्थन में उतर चुकी हैं. एक महिला ने तो यहां तक कह दिया कि राहुल गांधी को लड़कियों की कोई कमी नहीं है जो वे 50 साल की महिला को फ्लाइंग किस देंगे.

वैसे, राहुल गांधी के फ्लाइंग किस पर कई सारे मीम्स बन चुके हैं तो कोई इसे हलके से ले रहा है तो कोई राहुल के समर्थन में उतर आया है और कई ने इस की कड़ी निंदा भी की है.

किस या फ्लाइंग किस कैसा

किस या चुंबन चाहे जिस तरीके से हो, वह प्रेम और स्नेह का प्रतीक होता है. गर्मजोशी और प्यार का इजहार करने के लिए लोग किस करते हैं और दूर से अपनी उंगलियों के पोरों को चूम कर लोग अपने प्यार को जताने के लिए फ्लाइंग किस करते हैं. अकसर जाते समय लोग अपने प्यार जताने के लिए फ्लाइंग ‘किस’ करते हैं.

सैलिब्रिटीज अकसर करते हैं फ्लाइंग किस

सैलिब्रिटीज अकसर अपने प्रशसकों को थैंक्यू करने के लिए फ्लाइंग किस करते हैं. किसी मशहूर हस्ती द्वारा स्टेज से फ्लाइंग किस देने का मतलब होता है कि वह दर्शकों, प्रशंसकों को प्यारभरा थैंक्यू कर रहा है.

किसे दे सकते हैं फ्लाइंग किस

फैंस, सहयोगी, दोस्त, दर्शक, मातापिता, बहनभाई किसी को भी फ्लाइंग किस दे सकते हैं. इस के अलावा स्टेज पर परफौर्म करते हुए कई बार ऐक्टरऐक्ट्रैस अपने प्रशंसकों को अच्छी प्रतिक्रिया देने के लिए फ्लाइंग किस देते हैं.

कब हुई इस की शुरुआत?

माना जाता है कि फ्लाइंग किस की शुरुआत प्राचीन मध्यपूर्व में हुई थी. इस के साथ ही, कुछ लोगों का मानना है कि मेसोपोटामिया में इस की शुरुआत हुई थी. वैसे, किस का किस्सा, काफी जोर पकड़े हुए है. कुछ लोग इस पर मीम्स बना कर स्मृति की खिंचाई कर रहे हैं तो कुछ इसे गलत बता रहे हैं.

भाजपा महिला डेमोक्रेट ने राष्ट्रपति से शिकायत की कि राहुल गांधी ने उन्हें उड़ा दिया. 2018 में एक आलिंगन और आंख ?ापकाना सुर्खियां बना था. अब यह एक उड़ती हुई किस है. एक समय संसद की बहसें सामग्री और प्रस्तुति के लिए जानी जाती थीं, अब नाटकीय चर्चा का विषय बन गई हैं.

पता नहीं स्मृति ईरानी को हो क्या गया है, जहां उन्हें बोलना चाहिए वहां तो बोलती नहीं हैं और जहां कोई बात ही नहीं है वहां बेकार की बातों को तूल देती हैं. अब किसी ने उन से यह पूछा कि आप की शादी आप की बचपन की सहेली मोना के पति जुबीन ईरानी से हुई क्या? उस पर वे तिलमिलाती हुई बोलीं कि मोना उस की बचपन की सहेली नहीं हो सकती क्योंकि वह उस से 13 साल बड़ी है.

कौन है स्मृति के पति जुबीन ईरानी?

स्मृति ईरानी के पति जुबीन ईरानी एक अमीर पारसी बिजनैसमैन हैं और वे पहले से ही शादीशुदा थे. स्मृति ईरानी जब स्ट्रगल के दिनों में रैस्टोरैंट में नौकरी करती थीं उसी दौरान मोना ईरानी से उन की मुलाकात हुई और दोनों दोस्त बन गईं. मोना एक अमीर पारसी लड़की थी और वह जुबीन ईरानी की पत्नी और एक अरबपति खानदान की बहू थी. मगर वहीं उस वक्त स्मृति के पास फ्लैट का किराया देने तक के लिए पैसे नहीं होते थे.

मोना ईरानी ने कई बार उस के फ्लैट का किराया चुकाने में मदद की थी. दोनों की दोस्ती इतनी पक्की हो गई कि मोना ईरानी उसे अपने घर ले आई और उसी दौरान जुबीन ईरानी से स्मृति को प्यार हो गया. जुबीन ने अपनी पत्नी मोना को तलाक दे कर 2001 में स्मृति से शादी कर ली.

स्मृति ईरानी का कहना है कि उन की हर सफलता में उन के पति जुबीन ने उन्हें पूरा सपोर्ट किया. एक इंटरव्यू में स्मृति ने कहा था, ‘मैं ने जुबीन से इसलिए शादी की क्योंकि मु?ो उन की जरूरत थी. मैं उन से सलाह लेती थी, उन से बात करती थी, हम रोज मिलते थे तो हम ने सोचा क्यों न हम एकदूसरे से शादी कर के हमेशा के लिए एक हो जाएं.’

किसी का घर तोड़ कर अपना घर बसा लेना उन्हें बुरा नहीं लगा. लेकिन एक हवा में उछाली गई फ्लाइंग किस पर उन्होंने इतना हंगामा मचा दिया. काश, ऐसा ही हंगामा वे मणिपुर की घटना पर मचाती कहतीं कि उन बलात्कारियों को स?रेआम गोली मार दी जाए तो सम?ा में आता कि महिलाओं के प्रति उन के दिल में संवेदना है.

आज हर रोज बेटियों के साथ, छोटीछोटी बच्चियों के साथ बलात्कार जैसे घृणित अपराध हो रहे हैं लेकिन उस बात से स्मृति ईरानी को कोई खास फर्क नहीं पड़ता. लेकिन राहुल गांधी के एक फ्लाइंग किस पर उन्हें इतना गुस्सा आया कि उन्होंने उन के खानदान तक को कठघरे में खड़ा कर दिया.

वैसे, सिर्फ स्मृति ईरानी ही क्यों, बल्कि, पूरी दुनिया का इतिहास ऐसी तमाम सत्ता पर बैठी महिलाओं का गवाह है जिन्होंने ऐसे किसी नाजुक मौके पर पीडि़त महिलाओं के पक्ष में खड़े होने के बजाय सत्ता का पक्ष चुना. पूरी दुनिया का सच यही है कि जब अपनी पार्टी और अपने लोगों की मिसोजिनी पर सवाल उठाने की बात आती है तो सत्ता के गलियारों में विचर रही महिलाएं भी चूक जाती हैं. फिर चाहे वे स्मृति ईरानी हों, हिलेरी क्ंिलटन हों, मारग्रेट थैचर हों, ममता बनर्जी हों, मायावती हों, वृंदा करात हों या फिर कोई और.

पितृसत्ता किस तरह औरतों का ब्रेनवाश करती है, फिलिस श्लाफली से बड़ा उदाहरण कौन हो सकता है. जब ग्लोरीय स्टाइनम, बेट्टी फ्राइडेन और तमाम महिलाएं अमेरिका में महिलाओं की समानता के अधिकार के लिए लड़ रही थीं उस वक्त देश की सत्तारूढ़ पार्टी की करीबी फिलिस श्लाफली देशभर की औरतों को यह सम?ाने की कोशिश कर रही थीं कि औरतों को समानता के अधिकार की जरूरत ही नहीं है क्योंकि समाज में और परिवार में औरतों का दर्जा पहले ही बहुत ऊंचा है. औरत मां है, पत्नी है, घर की स्वामिनी है, औरत महान है. बात इतनी सी है कि श्लेफ्ली महिलाओं के साथ नहीं, बल्कि सत्ता के साथ थीं.

देश में महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाया जाता है, उस के टुकड़े कर के फेंका जाता है, भट्टियों में जलाया जाता है लेकिन देश के नेता, अभिनेता और युवा तमाशबीन हो कर अपने ही देश की नारी के सम्मान को लुटता देख रहे हैं. न तो उन के चेहरों पर कोई मलाल है न संवेदना.

देश में जब से भाजपा सरकार ने सत्ता की बागडोर संभाली है, ऐसा लगता है महिलाओं के अच्छे दिन लद गए. इस सरकार का सब से लोकप्रिय नारा था- ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ जो आज मानो सब का मुंह चिड़ा रहा है.

जंतरमंतर पर भारतीय खेल जगत की सब से होनहार बेटियों को जब अपने न्याय के लिए रोते देखा गया, मणिपुर में जब बेटियों को निर्वस्त्र घुमाया गया तो लगा इस सरकार का नारा कितना बड़ा धोखा है. कैसे कोई मांबाप यह विश्वास कर ले कि इस देश में उन की बेटियां सुरक्षित हैं?

महिलाओं पर ही जुल्म क्यों?

पुलिस ने जब महिला पहलवानों का समर्थन कर रही डीयू की छात्राओं पर लाठियां बरसा कर उन्हें जख्मी किया तो सम?ा में आया कि पुलिस किस की तरफ है. सच तो यह है कि लोगों की सेवा में लगी पुलिस भी सरकार की ही भाषा बोलती नजर आती है, इसलिए तो आज वह हो रहा है जो होना तो क्या, सोचा भी नहीं जा सकता.

एक कहावत है, ‘जब सैयां भए कोतवाल, तो अब डर काहे का’. बाहुबली सत्ताधीशों का साथ देते हैं अपराधों में, बलात्कारों में, भूमिअतिक्रमण में, ?ाठी गवाही आदि में पूरी निष्ठा और ईमानदारी से. ऐसा लगता है सरकार बेटियों को नहीं, बाहुबलियों और बलात्कारियों को बचाने में एड़ीचोटी का दम लगा रही है.

सदियों से 2 गुटों की लड़ाई में महिलाओं को हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है. एक पक्ष को हराने के लिए दूसरे पक्ष की महिलाओं का शोषण और बलात्कार किया जाता रहा है.

इस पितृसत्तात्मक समाज की सदियों से यही सोच रही है कि समुदाय, जाति और धर्म को जीतना है तो दूसरे पक्ष की स्त्रियों को जीतो. अगर इन्हें हराना है तो दूसरे पक्ष की औरतों पर हमला बोलो. आखिर, जंग या जातीय संघर्षों के दौरान महिलाओं पर ही ऐसे जुल्म क्यों ढाए जाते हैं? रेप ही ज्यादा देखने को मिलते हैं या उन्हें सैक्स स्लेव क्यों बनाया जाता है? मर्दाना सत्ता यही मानती है कि महज जीतना या हराना नहीं है, स्त्री शरीर पर हमलावर होना है.

हमला भी कहां करना है, यह भी वह बताती और सिखाती है. इसलिए हमले के नतीजे में महज किसी की हत्या नहीं होती. मर्दाना सत्ता बताती है कि यौन हिंसा करनी है और औरत के खास अंगों को निशाना बनाना है क्योंकि जाति, धर्म, समुदाय सब की इज्जत का भार स्त्री उठाए हुए है. मर्दाना खयाल ने महिलाओं की इज्जत उस के कुछ अंगों में समेट दी है जो अगर बिखर गया तो वह किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहती है. परिवार की इज्जत मटियामेट हो जाती है.

महिलाएं होती हैं आसान शिकार

औरतों के साथ ऐसी हिंसा कर हमलावर पक्ष अपने को विजेता और दूसरे समूह को पराजित मानता है. दूसरे पक्ष को नीचा दिखाने के लिए औरत को हथियार के रूप में इस्तेमाल करता है. मणिपुर में उन निर्वस्त्र, बेबस लड़कियों के साथ उछलकूद करते विपक्षी युवा कितने उत्साह से भरे हुए थे, यह साफ वीडियो में दिखाई दे रहा था.

ऐसा क्यों होता है, इस बवाल के पीछे किस तरह की मानसिकता काम करती है जहां मुद्दा कुछ और होता है लेकिन आक्रोश का सामना महिलाएं करती हैं? जिस में भूखी, जाहिल और निर्लज्ज भीड़ अपनी मांगों को पूरा करने के लिए औरतों व लड़कियों को टारगेट बनाती है?

साउथ एशियन यूनिवर्सिटी (सार्क यूनिवर्सिटी) में इंटरनैशनल रिलेशन में एसोसिएट प्रोफैसर धनंजय त्रिपाठी के अनुसार, जातीय संघर्षों, जंग या सांप्रदायिक दंगों में महिलाओं से रेप या उन के यौनशोषण के पीछे 4 सिद्धांत काम करते हैं जिन्हें प्रैशर कुकर सिद्धांत, कल्चर पैथोलौजी सिद्धांत, सिस्टेमैटिक या स्ट्रैटेजिक रेप सिद्धांत और फैमिनिस्ट सिद्धांत का नाम दिया जाता है.

धनंजय त्रिपाठी कहते हैं कि ऐसे समाज में लोगों का गुस्सा महिलाओं पर इसलिए निकलता है क्योंकि वे उन्हें सब से आसान शिकार मानते हैं और कहीं न कहीं स्त्रीविरोधी मानसिकता उन के दिमाग में बैठी ही रहती है. वे स्त्री को दबा कर, मार कर या रेप कर अपने पुरुष होने को जायज ठहराते हैं.

पूर्वी यूरोप में बोस्निया की महिलाओं के साथ, म्यांमार में रोहिंग्या महिलाओं के साथ, इसलामिक स्टेट औफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) का यजीदी महिलाओं को यौन दासी बना कर यौनहिंसा करना, बजरिए स्त्री शरीर जीतने और हारने के ऐसे अनेकों मर्दाना उदाहरण मिल जाएंगे.

1990 के दशक में बोस्नियाई युद्ध के दौरान सामूहिक रेप की घटनाओं ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा था. अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय ने पहली बार 27 जून, 1996 को रेप और यौन हमले को युद्ध अपराध घोषित किया.

योगोस्लावियाई युद्ध हो, रवांडा में हुए सामूहिक रेप हों या मणिपुर की घटनाएं, सब जगह रेप को एक हथियार की तरह लिया गया. यह मान लिया जाता है कि जंग में सब जायज है. ‘अगेन्स्ट अवर विल’ में सुजैन ब्राउनमिलर कहती हैं कि जंग और जातीय संघर्ष के दौरान हावी होने और खुद को सही साबित करने की सोच इंसान को क्रूर और बेरहम बना देती है. वहीं, मैनुवर्स की लेखिका सिंथिया एनलोए कहती हैं कि रेप लड़ाइयों के दौरान का सब से जहरीला और खतरनाक हथियार है जिस के पीछे ज्यादातर राजनीतिक दिमाग होता है.

2000 साल पहले भी युद्ध में महिलाओं को हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया रोमन इतिहासकर लिवी बताते हैं कि पहली सदी के आसपास जब लगातार जंग से आबादी कम हो रही थी, तब रोमन साम्राज्य के नेता रोमूलस ने एक धार्मिक त्योहार का आयोजन किया और पड़ोसी सैबाइन कबीलाई लोगों को न्योता दिया. रात में उन्हें शानदार दावत दी गई. जैसे ही दावत खत्म हुई, रोमूलस नेता का इशारा पा कर रोमनों ने सैबाइन लोगों पर हमला बोल दिया.

पुरुषों को मार डाला गया और औरतों को बंधक बना लिया गया. फिर इन महिलाओं से रेप किया जाता ताकि जंग के लिए ज्यादा से ज्यादा गुलाम मिल सकें. बाद में यही ट्रैंड अरब आक्रमणकारियों में भी देखने को मिला. भारत में भी ऐसे ही गुलामों से दिल्ली सल्तनत की नींव पड़ी थी.

हमारे देश में विकास की बातें तो हो रही हैं पर दिख नहीं रहा है. रोज महिलाओं के साथ हिंसा बढ़ती ही जा रही है. 2014 से 2021 तक दलित, आदिवासी महिलाओं से बलात्कार के 31,967 मामले सामने आ चुके हैं. 21 साल पहले गुजरात में गोधरा ट्रेन कांड किसे याद नहीं होगा. जहां गर्भवती बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया लेकिन बीजेपी के राज्य में एक साल पहले उन 11 लोगों की सजा वक्त से पहले खत्म कर दी गई. आज वे सभी जेल से बाहर हैं. जेल से बाहर आ कर वे हीरो बन गए और जिस के साथ हिंसा हुई वह ठगी सी रह गई.

मणिपुर की घटना तो महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों व हिंसा की पराकाष्ठा है. आखिर, उस युग की द्रौपदी और आज की द्रौपदी में अंतर ही क्या है, खींचे तो दोनों के वस्त्र गए. एक की भरी सभा में, एक की पूरे समाज के सामने. उस युग की द्रौपदी की इज्जत तो कृष्ण ने बचा ली थी पर आज की द्रौपदी को कोई बचाने वाला नहीं है, सब तमाशा देखने वाले हैं.

बचपन में हमें यही सिखाया गया था कि भगवान कृष्ण ने द्रौपदी की साड़ी इतनी लंबी कर दी थी कि कौरव उसे खींचतेखींचते थक गए थे. लेकिन द्रौपदी को अपमानित करने वाले कौरव और पांडव कितने मक्कार व नालायक थे, यह हमें नहीं बताया गया. जब द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था तब वहां महिलाएं भी मौजूद थीं पर किसी ने एक आवाज तक नहीं उठाई. सदियों से महिलाओं का उत्पीड़न करना, उन का बलात्कार करना, मारनापीटना, दुर्व्यवहार करना पुरुष अपना अधिकार मानता आया है. दुख की बात तो यह है कि कई महिलाएं भी ऐसी मान्यताओं में विश्वास करती हैं.

महिला मुद्दों पर राजनीति का चश्मा

महिला उत्पीड़न मामले को राजनीतिक चश्मे से इसलिए देखा जाता है क्योंकि कहीं न कहीं आरोपी उन के ही गुट के होते हैं. इन मामलों में तमाम महिला नेता कहां गुम हो जाती हैं, पता नहीं चलता. महिला नेता अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने में इतनी व्यस्त होती हैं कि रेप जैसे छोटे मामलों को देखने और बोलने के लिए उन के पास फुरसत नहीं है.

देश के गृहमंत्री अमित शाह के मुताबिक, भाजपा दुनिया की सब से बड़ी पार्टी है. भाजपा अपने सदस्यों को राष्ट्रनिर्माण का वचन देती है. इन का वादा है कि इन से जुड़ते ही आप राष्ट्रनिर्माण की दिशा में एक कदम आगे बढ़ा देते हैं. एक कार्यक्रम के दौरान अमित शाह ने कहा था कि औरतों की इज्जत के लिए युद्ध करना पड़े तो करेंगे. लेकिन आज वही अमित शाह मणिपुर पर चुप हैं. कितने ही ऐसे रेप केस के मामले में वे चुप रहे क्योंकि गुनाह करने वाले भाजपा के ही नेता थे.

क्या भारत की महिलाओं की सुरक्षा, बस, एक मिस्डकौल के लिए रुकी है? क्या एक मिस्डकौल दें राष्ट्र निर्माण के लिए और रेप थ्रेट से मुक्ति पा जाएं?

एक के बाद एक बीजेपी नेताओं पर महिलाओं के साथ शोषणउत्पीड़न के मामले आते रहे हैं. लेकिन इस से ज्यादा दुखद बीजेपी महिला नेताओं की चुप्पी है जो महिला नेतृत्व के नाते भी कई गंभीर सवाल खड़े करती है, जिस पर लोग भरोसा कर के वोट देते हैं ताकि देश का बेहतर निर्माण हो सके लेकिन जब वही उसे खोखला करने में सब से आगे है तो दुख होता है.

एक तरफ जनता चौतरफा महंगाई की मार ?ोल रही है तो दूसरी तरफ युवा बेरोजगार घूम रहे हैं. आज रसोई गैस की कीमत 1,000 से 1,200 सौ रुपए हो गई है. महिलाएं उज्ज्वला गैस के चूल्हे को एक तरफ कर के फिर मिट्टी के चूल्हों पर खाना पकाने को मजबूर हैं. पैट्रोल के दाम भी आसमान छू रहे हैं. ऐसे में स्मृति ईरानी कुछ बोलती क्यों नहीं हैं? चुप क्यों हैं?

सत्ता के मद में चूर स्मृति ईरानी और भाजपा नेताओं को जनता के दुखदर्द दिखाई ही कहां दे रहे हैं. अगर दिखाई देता तो मणिपुर की घटनाओं पर कुछ बोलते, लेकिन यहां तो विपक्षी पार्टी पर दोष मढ़ कर खुद को पाकसाफ करने में लगे हैं. जनता हर तरफ से मार ?ोल रही है और ये सारे नेता सिर्फ डींगें हांक रहे हैं. आज जिस तरह से मणिपुर, उत्तराखंड जैसे राज्यों में जो हो रहा है, वह बेशर्मी की हद हो गई. महिलाओं का शरीर जंग का अखाड़ा नहीं है जिस पर जीत और हार तय की जाए.

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