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बहुत गहरी है गरीबी, गुलामी और धर्म की साजिश

अमीरीगरीबी हमारे पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार पिछले जन्मों का परिणाम है पर असलियत यह है कि बहुत कम मारवाड़ी या गुजराती बिलकुल फटेहाल मिलेंगे और बहुत कम ब्राह्मण अरबोंखरबों से खेल रहे होंगे. अमेरिका के लेखक रौबर्ट कियोस्की की किताब ‘रिच डैड पूअर डैड’ की टैग लाइन ही है, ‘ऐसा क्या है जो अमीर बाप अपने बच्चों को पैसे के बारे में सिखाते हैं और गरीब बाप नहीं.’

उदाहरण के लिए एक गरीब का बेटा अपने घर में एअर कंडीशनर के लिए मांग करता है. गरीब बाप तुरंत उत्तर देगा, “मेरे पास इतना पैसा नहीं है, यह हमारी हैसियत नहीं है.’’

अमीर बाप का बेटा एक एअरकंडीशंड बड़ी कार की मांग करता है पर अमीर बाप के पास बेटे को एअरकंडीशंड कार के पैसे नहीं हैं पर वह कहेगा, “सोचो, हम कैसे एअरकंडीशंड बड़ी कार खरीद सकते हैं.”

पहले मामले में बेटे का दिमाग काम करना बंद कर देगा. एअरकंडीशनर तो खरीदा ही नहीं जा सकता. दूसरे का बेटा उपाय ढूंढ़ना शुरू करेगा कि कैसे वह भी पैसा लगाए ताकि एअरकंडीशंड बड़ी कार खरीद सके.

पहले की इच्छा कभी पूरी नहीं होगी पर दूसरा कहीं पैसा बचाएगा, कहीं काम कर के अतिरिक्त पैसे जोड़ेगा, स्कौलरशिप पर पढ़ने की कोशिश करेगा.

अमीर बापों का कहना कि टैक्स असल में समाज का अमीरों पर सजा है कि उन्होंने इतना क्यों कमाया, इसलिए वे इतना कमाते हैं कि टैक्स देने के बाद भी शान से रह सकें.

गरीब बाप का कहना होता है कि अमीर उन से पैसे छीन लेते हैं और सरकार उन से कुछ हिस्सा टैक्स में ले कर गरीबों में फिर सुविधाओं के रूप में बांट देती है. गरीब बाप अब सरकार (भारत में मंदिर पर) निर्भर हो जाता है और जितना काम करता है, उसे काफी समझता है और अपने बेटे को हमेशा गरीबी में पालता है.

अमीर बाप अकसर कहते हैं कि तुम अच्छा पढ़ो ताकि इतनी अक्ल हो कि बिजनैस शुरू कर सको. गरीब बाप कहता है कि अच्छा पढ़ो ताकि किसी कंपनी में लगीबंधी नौकरी मिल सके.

पहले को अगर किसी वजह से बाहर नौकरी करनी होती है तो वह उसे ट्रेनिंग समझता है, दूसरा नौकरी मिल जाने को अंतिम पढ़ाई मानता है. पहला ट्रेनिंग खत्म कर के सालदरसाल मेहनत कर के अपना व्यवसाय खड़ा करता है, दूसरा लगेबंधे वेतन में छोटे मकान में रह कर सरकार और समाज को कोसता रहता है.

मुसीबत आने पर गरीब बाप साहूकारों, मंदिरों, सरकारों, मुफ्त खाने या इलाज के रास्ते ढूंढ़ता है, अमीर बाप किसी भी तरह की आर्थिक समस्या आने पर समस्या से उबरने के लिए हाथपैर मारता है. वह लाइफगार्ड का इंतजार नहीं करता, मुसीबत उसे मजबूत बनाती है.

अमीर बाप अकसर चुस्त रहते हैं, अपनी सेहत का खयाल रखते हैं. अच्छे व मंहगे रेस्तराओं में खाते हैं पर हिसाब से. गरीब बाप लंगरों की खोज में रहता है और टीवी पर बकवास का मजा लेता है. अमीर बाप टीवी पर वे फिल्में देखता है जिन में संघर्ष दिखाया गया हो, गरीब बाप ऐसी फिल्में देखता है जिन में चमत्कार दिखाए जाते हैं.

सलीम जावेद की फिल्म ‘शोले’ में जय और वीरू दोनों सिर्फ 2 होते हुए भी गब्बर सिंह के गैंग का मुकाबला करने को तैयार हो जाते हैं क्योंकि उन्हें अपनेआप पर भरोसा है. फिल्म उन दोनों की हिम्मत की कहानी है जिस में कोई चमत्कार नहीं होता, कहीं से देवीदेवता प्रकट हो कर गब्बर सिंह को नहीं मारते. सैंकड़ों फिल्में बनी हैं, कुछ सफल भी हुई हैं, जिन में नायक या नायिका पर किसी देवीदेवता या पुलिस की कृपा हो जाती है. फिल्म ‘शोले’ न जाने क्यों इस से बचा है. यह फिल्म की सफलता का कारण है या नहीं पर कम से कम फिल्म का संदेश तो है.

समाज असलियत में जानबूझ कर गरीबों का सांत्वना देने की साजिश में उन्हें आलसी और निकम्मा बनाता है ताकि वे पीढ़ी दर पीढ़ी उसी भरोसे में रहें कि हम गरीब हैं तो यह हमारा दोष नहीं है. गरीबों के दोस्त, रिश्तेदार एक ही भाषा बोलते हैं. उन्हें सब से बड़े और प्रभावशाली सलाहकार, धर्म के दुकानदार हमेशा यही कहते रहते हैं कि ऊपर वाले पर भरोसा करो, दिन अवश्य फिरेंगे, यही ज्ञान गरीब बाप अपने बेटे को देता है.

अमीर बाप को यह सलाह पसंद नहीं आती. वह धर्म के पाखंड को ऊपरी तौर पर मानता है, चर्च, मसजिद, मंदिर जाता है. पर उस की निगाहें इस ओर लगी रहती हैं कि कैसे पैसे कमाया जाए नकि कैसे पैसे को अपनेआप पाया जाए. शायद वह इसलिए भी धर्म की दुकान की पूरी आर्थिक सहायता करता है क्योंकि वह गरीब खुद भी उस का कर्मचारी भी है, ग्राहक भी जिस से अमीर को फायदा होता है. वह अपनी संतानों में धर्म में अंधविश्वास करना नहीं सिखाता. उसे सदियों से बताया गया है कि अमीर बने रहना है तो ज्यादा जनता का गरीब बने रहना जरूरी है. वह अपने बेटों को स्विट्जरलैंड स्कीइंग के लिए भेजता है जिस में टांग टूटने का डर भी रहता है, सिर्फ तिरुपति नहीं, जहां वह सामाजिक रस्म निभाने जाता है और यही बेटे को कराता है.

गरीबी और अमीरी अगर पीढ़ी दर पीढ़ी दर चल रही है तो पिताओं के कारण, जो गलत व सही उदाहरण पेश करते हैं. एक अपने बेटे को बचपन से पैसा का सदुपयोग सिखाता है, दूसरा, पैसों के अभाव में जीना सीखता है. एक पैसा कमाने की प्रेरणा देता है, दूसरा कम में संतोष करना सीखाता है.

हमारे यहां जाति व्यवस्था है पर लाखों गरीब ब्राह्मण मिल जाएंगे. लाखों गरीब श्रत्रिय मिल जाएंगे. लाखों गरीब वैश्य मिल जाएंगे पर हर गरीब वैश्य पिता की शिक्षा के कारण कुछ नया कर के पैसा कमाना चाहता है. गरीब ऊंची जातियों के लोगों की सोच में जन्म से पाई गरीबों की भाषा घुस जाती है और वे पीढ़ी दर पीढ़ी वहीं के वहीं रहते हैं.

एलोन मस्क आज अमीर हैं तो इसलिए कि उस ने उस काम को किया जो दूसरे सिर्फ सोच रहे थे. मार्क जुकरबर्ग कुछ लिखे बिना लेखकों का मालिक बन बैठा. यह उन की उस शक्ति का परिणाम है जो उन के पिताओं ने दी. दोष भाग्य, देश के कानून, समाज की व्यवस्था में भी है पर मुख्य बात पिता की सही शिक्षा है जो अमीरों के बच्चों को पहले से ही रेस में आगे कर देती. यह उन के पिता की संपत्ति का कमाल नहीं है, यह उन के पिता की शिक्षा है जो चाहे उस ने शब्दों में दी या उदाहरणों में, पर कमाल करती है.

भाजपा की प्रायोरिटी महज चुनाव

केंद्र में बैठी भाजपा सरकार ने 2 सितंबर को ‘वन नेशन, वन इलैक्शन’ के लिए 8 सदस्यीय कमेटी का गठन किया. इस कमेटी के अध्यक्ष पूर्व दलित राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को बनाया गया, अन्य सभी 7 सदस्यों के चयन से साबित हुआ कि यह भाजपा सरकार का विमर्श नहीं देश पर नोटबंदी, जीएसटी जैसा जजमैंट है.

इस का मतलब यह कि अगर यह लागू होता है तो देश में जनता एक बार वोट डालेगी, फिर उन्हें 5 सालों तक खामोश कर दिया जाएगा.

मूल सवाल यह है कि सरकार की प्रायोरिटी क्या है? वह आखिर ‘वन नेशन वन इलैक्शन’ को इतना अहमियत क्यों दे रही है, जबकि आज न जाने कितनी ही समस्याएं लोगों के सामने खड़ी हैं? सवाल यह कि क्या ‘वन नेशन वन इलैक्शन’ से पहले वन एजुकेशन नहीं हो जाना चाहिए था?

देश में दोहरी शिक्षा नीति है, जिस के पास पैसा है वह इस के दम पर महंगी व अच्छी शिक्षा ले सकता है, वहीं गरीबों के बच्चे 20वीं सदी के टीनटप्पर वाले स्कूलों में पढ़ाई करते रहें, उन्हें उन के भाग्य पर छोड़ दिया गया है. यह ढांचा ही गरीबों को गरीब बनाए रखने का सब से बड़ा जरीया बना हुआ है.

हिंदी पट्टी के काऊ स्टेट को छोड़ भी दिया जाए तो शिक्षा की कथित “क्रांति” करने वाली राजधानी दिल्ली, जिस की आप सरकार पासिंग परसैंटेज को ही सरकारी स्कूलों की बेहतरी मान अपनी पीठ थपथपाती है, क्या प्रेम नगर में पूड़ी वाले और पटेल नगर के खत्ते वाले के नाम से मशहूर राजकीय स्कूलों को बाराखंबा के मौडर्न स्कूल व पूसा रोड के सैंट माइकल स्कूल के बराबर मान सकती है?

दिल्ली की शिक्षा “क्रांति” एक नजर साइड रख दें, तो उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूल के बच्चे डीपीएस, सैंट जौन, स्कौटिश, सैंट जेवियर, शिव नाडर, स्टेप बाय स्टेप, लोयला, दून स्कूल, सैंट कोलंबस जैसे स्कूल में पढ़े बच्चों के सामने भला टिक पाएंगे?

जाहिर है, सरकारी स्कूलों में पढ़ कर बच्चे आगे जा कर आधुनिक मजदूर ही बनते हैं, जिन का काम नए आधुनिक मशीनों में लिखी इंस्ट्रक्शन समझ पाने तक ही सीमित रहता है.

बात हैल्थ की, सरकार के लिए क्या जरूरी है? क्या इस से पहले ‘वन ट्रीटमेंट’ जैसी चीजें नहीं मिलनी चाहिए? कोरोना ने देश की बैंड बजा कर रख दी, सरकार ने कितना ही दुनिया के सामने अपनी इज्जत छुपाने की कोशिश की हो, लेकिन श्मशान घाटों में जलती चिताओं और गंगा में बहती लाशों ने तो हकीकत जगजाहिर कर ही दी.

कोरोना ने लोगों को तड़पाया, सरकारी अस्पतालों की भारी कमी को देश ने देखा. जिन के पास पैसा था उन्होंने ट्रीटमेंट लिया, उन्हें बचने का अवसर मिला. लेकिन जिन के पास पैसा नहीं था वो तो अनाम मौत दर्ज हो गए. हर गली में एक आदमी निबट लिया और खाते में भी नहीं चढ़ा. क्या सरकार की प्रायोरिटी ज्यादा अस्पताल नहीं होने चाहिए, सभी को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा नहीं होनी चाहिए, जहां लोग सड़ते हुए मर न जाएं, बल्कि इलाज के बाद ठीक हो कर घर आएं?

देश की 80 करोड़ आबादी अभी भी सरकारी राशन पर गुजरबसर कर रही है. उन की आय इतनी नहीं कि वे इस महंगाई में घर का गुजारा चला सकें. प्रति व्यक्ति आय लगातार सिकुड़ रही है. क्या सरकार की चिंता “वन नेशन वन इलैक्शन” से पहले क्या इस बात पर नहीं जागी कि गरीबों के लिए सम्माजनक इनकम वाले जीवन को साकार किया जाना चाहिए, जहां वे अपने बच्चों के लिए एक बेहतर भविष्य की कामना कर सकें?

बात ‘वन’ की हो ही रही है, तो ‘वननैस’ क्या देश के लोगों का नहीं होना चाहिए? सरकार चुनाव एक ही बार में करवा लेना चाहती है, लेकिन देश के लोगों को एक नहीं कर पा रही, बल्कि सत्ता में बैठे नुमाइंदे खुद इस खाई को बढ़ाने के काम में लगे हुए हैं. दलितों को मंदिरों में जाने से पीटा जाता है, उस मंदिर में जहां का पुजारी सवर्ण होता है. दलितों के छूने भर से सवर्णों में झुरझुरी दौड़ पड़ती है.

जाहिर है, सरकार के इस नए एजेंडे में कारपोरेट का तड़का भी मिला हुआ है. ‘अदानीमोदी का रिश्ता क्या है?’ यह कल तक विपक्ष के नेता राहुल गांधी पूछ रहे थे, उन के इस सवाल को आम लोग सही मानने लगे हैं. ‘एक देश एक चुनाव’ के एजेंडे से यह साफ हो जाता है कि अदानी जैसे व्यापारी अब बारबार चुनावी पार्टियों में पैसा झोंकने को तैयार नहीं. वे एक ही बार में निबटा लेना चाहते हैं.

वहीं देश के संघीय ढांचे को चुनौती देता यह भाजपाई एजेंडा कैसे सफल होगा, देश की पार्टियां तैयार होंगी कि नहीं, राज्यों की आधी सरकारें मानेंगी कि नहीं, इस से लोकतंत्र को कितना नुकसान पहुंचेगा, यह सवाल अभी पकने लगेंगे, लेकिन भाजपा जरूर फिलहाल इस मुद्दे से महंगाई, बेरोजगारी, अर्थव्यवस्था, गरीबी जैसे मुद्दों से ध्यान भटकाना चाहती है.

पूर्वोत्तर की सैर

पूर्वोत्तर भारत की भौगोलिक स्थिति कुछ ऐसी रही कि यह लंबे समय तक शेष भारत से अलगथलग जैसा रहा. ऐसी बात भी नहीं कि पूर्वोत्तर से हम बिलकुल अपरिचित भी रहे हों. तेल का पहला कुआं यहां मिलने से यह चर्चा में तो था ही, चाय के विशाल बागान और वन संपदाओं के लिए भी यह क्षेत्र जाना जाता था. हमारे कुछ व्यापारिक भाई और बंगाली भद्रजन भी इधर आतेजाते ही रहे थे. फिर भी पहली बार इधर हमारी भरपूर नजर तब पड़ी, जब विभाजन के वक्त यह भारत में शामिल होने के लिए आंदोलित हुआ. दूसरी बार तब, जब चीन ने वर्ष 1962 में इधर आक्रमण किया. हम गुवाहाटी, तेजपुर, डिब्रुगढ़ आदि नामों से परिचित हुए.

मगर इधर हुए तेजी से विकास कार्यों ने पूर्वोत्तर की तसवीर बदली है. उग्रवाद, अलगाववाद, आतंकवाद लगभग समाप्तप्राय हुआ, तो यहां बहुतकुछ बदलाव आए. शेष भारत ने पूर्वोत्तर को समझना और सहयोग करना आरंभ किया तो यहां की तसवीर बदली. अब यहां के स्थानीय युवा शिक्षा और रोजगार के लिए दक्षिण के बेंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई से ले कर उत्तर के दिल्ली, जयपुर, चंडीगढ़ आदि में भरपूर मिलेंगे. अन्य राज्यों के शहरों में भी उन की अच्छी संख्या देखी जा सकती है.

पूर्वोत्तर में पर्यटन के शौकीनों को यह जान लेना चाहिए कि यहां भव्य विशालकाय किले और महल नहीं मिलेंगे. महंगे, भारी स्वर्णाभूषणों और हीरेजवाहरात से सुसज्जित देवीदेवताओं के ऊंचऊंचे मंदिर और मठ नहीं मिलेंगे. कारण यह कि यह क्षेत्र भूकंप केंद्रित रहा है. इसलिए यहां के लोग हलके, ढलवां छत वाले मकान आदि ही बनाते रहे हैं. यहां तो बस नैसर्गिक, प्राकृतिक दृश्य और अछूती विशिष्ट श्रेणी की रोमांचक चीजें मिलेंगी. यहां के जीवन में विविधता और सरलता है और यही चीजें हमें आकर्षित भी करती हैं.

पूर्वोत्तर में जाने के लिए पहला पड़ाव तो सिलिगुड़ी ही है. इसे भारत का चिकेननेक भी कहा जाता है. भारत के नक्शे में इसे देखें. बिलकुल पतली सी पगडंडी समान है यह, जो पूर्वोत्तर को भारत से जोड़े हुए है और जिस का सामरिक महत्त्व है. वैसे, सिलिगुड़ी और जलपाईगुड़ी हैं तो पश्चिम बंगाल में, मगर पूर्वोत्तर के प्रदेश सिक्किम में जाने के लिए यहां आना ही पड़ेगा. आप यहां कश्मीर से कन्याकुमारी तक, कहीं से भी सीधे सिलिगुड़ी या जलपाईगुड़ी स्टेशन पहुंच सकते हैं, क्योंकि अब यहां से सीधी ट्रेनसेवा है.

कोलकाता से तो बस से भी पहुंचा जा सकता है. वैसे, सिलिगुड़ी में बागडोगरा हवाईअड्डा है, जहां दिल्ली या कोलकाता से सीधी विमानसेवा है, उस से भी पहुंचा जा सकता है.

सिक्किम

ऊंचे पर्वतों और खाइयों से घिरे इस राज्य में हरियाली ही हरियाली दिखती है. बात भी सही है. आखिर शिखर पर जब बर्फ से ढके पहाड़ हों, तो नीचे हरियाली रहनी ही है. यहां के प्राकृतिक दृश्य, विविध रंगों से परिपूर्ण जीवनशैली और हरीतिमा दर्शनीय तो हैं ही, दूध के समान बहती पहाड़ी नदियों को देखना भी सुखद है.

आमतौर पर यहां का जीवन शांत और सरल है. मुख्यतया सिक्किम के स्थानीय बौद्धों और उन के भव्य विहारों व मठों को देखा जा सकता है. इन के सामने सफेद या रंगीन पताकाओं की श्रृंखलाएं जैसे पर्यटकों से मौन वार्त्तालाप करती हों. यहां का नैसर्गिक सौंदर्य और रोमांचक वन्यजीव रोमांचित करने के लिए काफी हैं.

सिक्किम में अनेक स्थल हैं, जिन का पर्यटन की दृष्टि से विशेष महत्त्व है और पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करने में सक्षम हैं. यहां गंगटोक, ताशी व्यू पौइंट, रूमटेक, आर्किडेरियम, सरमसा गार्डन, लच्छुंग, यूमठंग, यूकसम, गोइछाला, रवोंगला, नाथूला सीमा आदि हैं, जिन्हें देख कर मन मुग्ध हो जाता है.

सिलिगुड़ी या जलपाईगुड़ी से सिक्किम जाने के लिए बससेवा तो है ही, इस के अलावा टैक्सियां भी हैं, जिन्हें स्वतंत्र रूप से या शेयर में भी बुक किया जा सकता है.

गंगटोक सिक्किम की राजधानी है. यह प्राकृतिक दृश्यों से परिपूर्ण है. दूरदूर तक जहां तक नजर जाती है, सीढ़ीनुमा खेत दिखाई देंगे, जो पूर्वोत्तर भारत की खासीयत हैं. ढलवा छत वाले झोंपड़ीनुमा मकान दिखेंगे. हांलाकि, अब समृद्धि के साथ बहुमंजिले भव्य मकान भी दिखने लगे हैं. हर पहाड़ के आगेपीछे दूधसमान जलधारा के झरने दिखेंगे. यदि बारिश हो जाए, तो इन की रफ्तार और तेजी देखते बनती है. गंगटोक से हिमालय की बर्फ से लदी कंचनजंघा पर्वत चोटी की शोभा देखते बनती है.

जनजातीय समुदायों में पहाड़ों के साथ झीलों को भी समान महत्त्व दिया जाता है और ऐसे में तिसांगु झील देखने जाना ज्यादा रोचक है. यहां नौकाविहार का आनंद लिया जा सकता है.

गंगटोक के पास ही डियर पार्क है, जिसे देख सकते हैं. आर्किड की लगभग 500 प्रजातियां सिक्किम में पाई जाती हैं. सो, इस के लिए आर्किडेरियम है, जहां आर्किड की किस्में और अन्य दुर्लभ प्रजाति के पौधे भी देखने को मिलते हैं.

पर्वतारोहण और ट्रेकिंग के लिए सिक्किम का विशेष स्थान है. इस के शौकीन पर्यटक इस के लिए सिक्किम का ही रुख करते हैं. सिक्किम का मुखौटा नृत्य बहुत प्रसिद्ध है. किंतु यह खास अवसरों पर ही देखने को मिल सकता है.

प्राचीन काल में चीन जाने का एक सिल्क रूट यानी रेशम मार्ग सिक्किम के नाथूला सीमा से ही होबीकर जाता था, तब सिक्किम के बगल में तिब्बत था. अब तिब्बत के चीन में विलय हो जाने के कारण नाथूला भारतचीन सीमा का प्रवेशद्वार है. यहां जाने का रास्ता काफी रोमांचक और जोखिम भरा है. अगर बर्फबारी नहीं हुई तो गनीमत. बर्फबारी के बीच रास्ता काफी फिसलनभरा हो जाता है. मजबूत जिप्सी गाड़ियां पर्यटकों की टीम को ले कर वहां नाथूला सीमा तक जाती हैं.

अंदाजा कीजिए कि एक तरफ ऊंचेऊंचे पहाड़ हैं, दूसरी तरफ गहरी खाई है. रास्ता जो है, वह बर्फ से भरा है. ऐसे में ड्राइवर गाड़ियों के अगले पहियों में लोहे की जंजीरें पहनाते हैं. इस से दबाव पड़ने पर बर्फ टूटतीपिघलती है, जिस से पहिए नहीं फिसलते. फिर मंथर गति से गाड़ी चलाते हुए वे आगे बढ़ते हैं.

रास्तेभर बर्फ से ढके पहाड़ दिखेंगे और नाथूला सीमा पर आमनेसामने कांटों की बाड़ के पीछे भारतीय और चीनी सैनिकों की टुकड़ियों को देखना और भी रोमांचक लगता है.

एक तरफ भारतीय ध्वज, तो दूसरी तरफ चीनी ध्वज लहराते दिखते हैं. चारों तरफ भयानक सन्नाटा और खामोशी. ऐसे में आप या अलौकिक आनंद की कल्पना करें या जनविहीन इलाकों में भयभीत हों. मगर यह यथार्थ है कि पहाड़ों का यही बर्फ धीरेधीरे गलगल कर नदियों को भरापूरा बनाता है. वही नदियां, जो हमारी जीवनदायिनी हैं. हमारे कृषि कार्यों के लिए जरूरी जल यही नदियां उपलब्ध कराती हैं. ट्रांसपोर्ट का कार्य तो ये आदिकाल से करती ही रही हैं.

पूर्वोत्तर में हस्तनिर्मित परंपरागत शिल्प का विशेष योगदान है. यहां सिक्किम में इसे विशेषकर देखा जा सकता है.बांस और बेंत के बुने हुए विभिन्न डिजाइनों के बहुरंगी थैले, पर्स और शोपीस, चमड़े के सामान, लकड़ी की कलाकृतियां, परंपरागत पोषाकें, स्कार्फ और टोपियां, स्थानीय आभूषण आदि पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं. वैसे, गंगटोक के लाल बाजार, सुपर बाजार, न्यू मार्केट में इन के साथ चीनी सजावटी सामान से भी भरे पड़े मिलेंगे.

बदन दर्द का कारण हो सकता है अवसाद

अवसाद एक ऐसा डिसऔर्डर है जिसे दिमाग से जोड़ कर देखा जाता है. मगर इस के लक्षण शारीरिक रूप से भी दिखाई देते हैं. जिन्हें अवसाद की समस्या होती है उन में से लगभग 50% लोगों को शरीर में दर्द महसूस होता है. दरअसल, शरीर और मस्तिष्क आपस में जटिल रूप से जुड़े होते हैं. जब एक ठीक नहीं होता है तो इस बात की आशंका बहुत बढ़ जाती है कि दूसरे पर भी इस का प्रभाव दिखाई देने लगे. कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि अवसाद व्यक्ति के दिमाग में दर्द पैदा करने वाले हिस्सों को ऐक्टिव कर देता है, जिस से मसल्स पेन, जौइंट पेन, चैस्ट पेन, हैडेक आदि हो सकता है.

कई दफा हम दर्द दूर करने की दवा खाते रहते हैं पर इस दर्द की मूल वजह यानी अवसाद पर ध्यान नहीं देते और लंबे समय तक तकलीफ सहते रहते हैं.

‘यूनिवर्सिटी औफ कोलोरैडो, हैल्थ साइंस सैंटर’ के डाक्टर रोबर्ट डी कीले ने 200 से ज्यादा मरीजों का अध्ययन कर पाया कि शुरुआत में डाक्टर्स भी उन की शारीरिक तकलीफों खास कर गले और बदन में दर्द की वास्तविक वजह यानी अवसाद का अंदाजा नहीं लगा सके. इस वजह से लंबे समय तक उन्हें अपनी तकलीफों से छुटकारा नहीं मिला. केवल डाक्टर ही नहीं, बल्कि मरीज भी ऐंटीडिप्रैशन मैडिसिन लेने को तैयार नहीं थे, क्योंकि उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि वे डिप्रैशन के मरीज हैं.

क्या है अवसाद

अवसाद एक गंभीर स्थिति है. हालांकि यह कोई रोग नहीं, बल्कि एक संकेत है कि आप के शरीर और जीवन में असंतुलन पैदा हो गया है. अवसाद से निबटने में दवा उतनी कारगर नहीं होती जितनी आप की सकारात्मक सोच और जीवनशैली में बदलाव का प्रयास. साधारणतया अवसाद के प्रारंभिक शारीरिक लक्षणों के तौर पर नींद की कमी, कमजोरी, थकावट, आदि की पहचान की जाती है, पर कईर् दफा इस की वजह से शारीरिक पीड़ा जैसे बैक, नैक और जौइंट पेन आदि भी पैदा होने लगता है.

अवसादग्रस्त व्यक्ति न तो ठीक तरह से खाता है और न ही पूरी नींद ले पाता है. इस से भी मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं, जिस से शरीर और गरदन में दर्द हो सकता है.

अवसाद और शरीर में दर्द होना

इस संदर्भ में सरोज सुपरस्पैश्यलिटी हौस्पिटल, नई दिल्ली के न्यूरोलौजिस्ट डा. जयदीप बंसल कहते हैं कि शारीरिक दर्द और अवसाद में गहरा बायोलौजिकल संबंध है. न्यूरोट्रांसमीटर्स, सैरोटोनिन और नोरेपिनफ्रीन दर्द और मूड दोनों को प्रभावित करते हैं. अवसाद की स्थिति में ये अनियंत्रित हो जाते हैं. इन का अनियंत्रित हो जाना अवसाद और दर्द दोनों से जुड़ा होता है.

सामान्य तौर पर दर्द इस बात का सूचक होता है कि अंदर कोई परेशानी है. यह परेशानी शारीरिक या मानसिक अथवा दोनों हो सकती है. कई बार हमें कोई शारीरिक समस्या नहीं होती तब भी हमारे शरीर के किसी हिस्से में दर्द होने लगता है. इसे साइकोसोमैटिक पेन कहते हैं, जिस का तात्पर्य है कि मस्तिष्क और मन की परेशानी शारीरिक रूप से प्रदर्शित हो रही है.

समय के साथ बढ़ जाता है दर्द

अधिकतर अवसादग्रस्त लोग खुद को दूसरे लोगों से अलगथलग कर घर की चारदीवारी में कैद कर लेते हैं. इस से उन की शारीरिक सक्रियता काफी कम हो जाती है. कुछ लोग घंटों सोए रहते हैं या लगातार लंबे समय तक कंप्यूटर अथवा मोबाइल पर लगे रहते हैं. इस दौरान वे अपना पोस्चर भी ठीक नहीं रखते. गलत पोस्चर और लगातार एक ही स्थिति में बैठे रहने से कमर दर्द और गरदन में दर्द की समस्या हो जाती है. दिनरात बिस्तर में दुबके रहना, मांसपेशियों को कमजोर बना देता है. इस से भी शरीर और जोड़ों में दर्द होने लगता है. शारीरिक रूप से सक्रिय न रहने से हड्डियां भी कमजोर पड़ने लगती हैं.

मेरा मन घर से भाग जाने का करता है, बताएं मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं 30 वर्षीय अविवाहित युवती हूं. बचपन में ही मेरे अलावा घर में 3 बड़े भाई हैं. मैं इकलौती छोटी बहन थी. भाइयों की लाडली होने चाहिए थी, पर लाड़प्यार तो दूर कभी किसी ने मुझ से सीधे मुंह बात भी नहीं की. मां अकसर बीमार रहती थीं, इसलिए पढ़ाई के साथसाथ मैं घर का कामकाज भी करने लगी. बावजूद इस के मेरा मंझला भाई मुझ से पता नहीं क्यों नफरत करता था. हमेशा लड़ताझगड़ता और मारपीट करता था. एक बार तो उस ने गला दबा कर मुझे जान से मारने की भी कोशिश की. मां ने बीचबचाव कर के किसी तरह मुझे बचाया.

मेरा यह भाई शायद अपनी बेरोजगारी से तनाव में रहता था. और किसी पर तो उस का बस चलता नहीं था, इसलिए वह जबतब मुझे ही मारनेपीटने लगता. किसी ने उसे समझाने का प्रयास नहीं किया और एक दिन उस ने आत्महत्या कर ली. उस के मरने के बाद मां की सेहत दिनोंदिन गिरने लगी और फिर उन की भी मृत्यु हो गई. बड़े भाई ने शादी कर ली. मुझे लगा कि भाभी के घर में आने से मां के जाने के बाद घर में आया सूनापन दूर होगा. मुझे भी घर के काम में कुछ सहयोग मिलेगा. शायद मेरे जीवन में कुछ सुकून आएगा पर स्थिति और बदतर हो गई. भाभी घर के किसी काम को हाथ नहीं लगाती. मेरा काम और बढ़ गया. इस पर मुझे भरपेट खाना तक नहीं मिलता. आते ही उस ने मुझ पर शादी करने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया. मेरी पढ़ाई तो मां की मृत्यु के बाद ही छूट गई थी. मुझे पढ़ने का शौक था. इसलिए मैं ने प्राइवेट परीक्षा दे कर ग्रैजुएशन कर ली.

मैं शादी नहीं करना चाहती और अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हूं पर दोनों भाई इस की इजाजत नहीं दे रहे. छोटा भाई मारपीट करता है और कहता है कि शादी नहीं करनी तो घर से निकल जाओ. इस घर में रहने का तुम्हें कोई हक नहीं है. घर पर उन दोनों का हक है.

कई बार मन करता है कि जहर खा कर अपना जीवन समाप्त कर दूं. बचपन से आज तक मैं ने सिर्फ दुख ही दुख देखे हैं. कभी किसी से प्यार के दो बोल सुनने को नहीं मिले.

मेरे पैदा होने के कुछ दिनों बाद पिता चल बसे तो मां मुझे मनहूस, कलमुंही और न जाने क्याक्या कहती रहीं. फिर भाईयों के हाथों पिटती, गालियां खाती रही. रहीसही कसर भाभी ने आ कर पूरी कर दी.

सारा दिन कोल्हू के बैल की तरह घर के कामों में पिस्ती रहती हूं. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं. नौकरी वे मुझे करने नहीं देंगे, शादी मैं करना नहीं चाहती, क्योंकि पुरुषों पर से मेरा विश्वास उठ गया है. जब मुझे अपने घर पर अपने भाइयों से ही प्यार नहीं मिला तो किसी बाहर वाले से मैं क्या उम्मीद करूं कि वह मेरी परवाह करेगा. कभी जी करता है घर से भाग जाऊं तो कभी अपनी जीवन लीला को ही समाप्त कर लेने का मन करता है. कृपया बताएं क्या करूं?

जवाब

इसे संयोग ही कह सकते हैं कि बचपन से ले कर अब तक आप का जीवन त्रासदीपूर्ण रहा. इस के लिए घर के सदस्यों से ज्यादा आप के परिवार की प्रतिकूल परिस्थितियां जिम्मेदार रहीं.

पिता के अचानक चले जाने से 4-4 बच्चों की जिम्मेदारी आप की मां के कंधों पर आ गई. अकेली औरत के लिए ये सब संभालना और अकेले जीवन की जद्दोजहद को झेलना आसान नहीं था. इस के अलावा वे बीमार रहती थीं. अपनी परेशानियों से त्रस्त हो कर वे अपनी भड़ास आप पर निकालती थीं. इस से आप को यह नहीं समझना चाहिए कि उन्हें आप से प्यार नहीं था.

रही आप के भाइयों के आप के प्रति व्यवहार की बात तो मांबाप के न रहने से आप के विवाह की जिम्मेदारी भी आप के भाइयों पर आ गई. इसीलिए वे चाहते हैं कि आप शादी कर लें. आप के भाइयों का व्यवहार आप के प्रति सौहार्दपूर्ण नहीं रहा तो इस का निष्कर्ष यह नहीं निकालना चाहिए कि सभी मर्द उन्हीं की तरह निष्ठुर होते हैं.

आत्महत्या जैसी कायरतापूर्ण बात आप को अपने मन से निकाल देनी चाहिए. यह किसी समस्या का हल नहीं है. आप का दूसरा विकल्प घर से भागने का भी विवेकपूर्ण नहीं है. इस से आप किसी बड़े संकट में पड़ सकती हैं. इसलिए ऐसी भूल हरगिज न करें.

अपनी सोच को सकारात्मक रखें और घर वालों की बात मान कर शादी कर लें. हो सकता है कि शादी के बाद आप को वे सब खुशियां मिल जाएं, जिन से आप अब तक वंचित रही हैं. आप का अपना घर होगा, अपना परिवार होगा जहां आप पूरी तरह सुरक्षित होंगी.

Sunny Deol इसलिए बेटे को नहीं बनाना चाहते थे एक्टर, Rajveer Deol ने बताया कारण

Sunny Deol Son Rajveer Deol : बॉलीवुड अभिनेता सनी देओल (Sunny Deol) इन दिनों अपनी फिल्म गदर 2(Gadar 2) की सक्सेस को एंजॉय कर रहे हैं. उनकी इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर ताबतोड़ कमाई की है. हालांकि इस बीच उनके छोटे बेटे राजवीर देओल (Rajveer Deol) की पहली फिल्म ‘दोनों’ का ट्रेलर रिलीज हुआ है. राजवीर देओल के साथ-साथ पूनम ढिल्लों की बेटी पलोमा ढिल्लों (Paloma Dhillon) भी इस फिल्म से बॉलीवुड में डेब्यू कर रही हैं.

बीते दिनों फिल्म का ट्रेलर रिलीज किया गया, जिसे लोगों का खूब प्यार मिल रहा है. हालांकि ट्रेलर लॉन्च इवेंट के दौरान राजवीर ने अपने पिता सनी देओल को लेकर खुल कर बात भी की.

क्यों सनी नहीं चाहते थे कि बेटे को एक्टर बनाना?

बीते दिन 4 सितंबर को फिल्म ‘दोनों’का ट्रेलर लॉन्च इवेंट रखा गया था. इस इवेंट की अब एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. वायरल वीडियो में राजवीर (Rajveer Deol) से मीडिया ने सवाल किया कि, जब उन्होंने अपने माता-पिता को बताया कि वह एक्टर बनना चाहते हैं तो इस पर उनका क्या रिएक्शन था? राजवीर ने इस सवाल का जवाब देते हुए कहा कि, ‘घरवाले चाहते थे कि मैं पढ़ाई पर ध्यान दूं. यहां तक की उनके पिता सनी देओल को इस बात से नफरत थी कि मैं एक्टर बनना चाहता हूं, क्योंकि फिल्म इंडस्ट्री काफी अनप्रिडिक्टेबल है.’

इसी के आगे राजवीर ने कहा, ‘मेरा मतलब है कि पापा जी को अपने करियर में 22 साल बाद हिट फिल्म (Gadar 2) मिली थी. इसलिए उन्हें फिकर रहती थी कि, कहीं ये बात हमें भी मेंटली बहुत थका न दें. लेकिन अब मुझे एक्टिंग से प्यार हो गया है.’

5 अक्टूबर को रिलीज होगी फिल्म

आपको बताते चलें कि सनी देओल के बेटे राजवीर (Rajveer Deol) की ये फिल्म “दोनों” 5 अक्टूबर को बड़े पर्दे पर रिलीज होगी. फिल्म में राजवीर और पलोमा लीड रोल में नजर आएंगे. जिसे अविनाश बड़जात्या ने डायरेक्ट किया है और राजश्री के बैनर तले इस फिल्म को बनाया गया है.

INDIA का नाम BHARAT करने का प्रकाश राज ने किया विरोध! जानें क्या कहा

Prakash Raj on India Bharat Controversy : देश में इस समय ‘भारत’ बनाम ‘इंडिया’ का मुद्दा जोर-शोर से गरमाया हुआ है. राजनेता से लेकर बॉलीवुड एक्टर तक इस मुद्दे पर अपनी बात रख रहे हैं. दरअसल, 9 से 10 सितंबर के बीच दिल्ली में 20 समिट की बैठक होने वाली हैं, जिसमें शामिल होने के लिए देश-विदेश के कई नेता के साथ-साथ सेलेब्स को भी इन्वाइट भेजा गया है. लेकिन विवाद इस बात पर हो रहा है कि कार्ड में ‘प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया’ की जगह ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ लिखा हुआ है.

जैसे ही इस इन्विटेशन की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई. वैसे ही विपक्षी दलों ने सरकार पर निशाना साधना शुरु कर दिया. उनका कहना है कि केंद्र सरकार देश का नाम ‘इंडिया’ से बदलकर ‘भारत’ करना चाहती है. इसी कड़ी में साउथ सिनेमा के पॉपुलर एक्टर प्रकाश राज (Prakash Raj on india bharat controversy) ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है.

प्रकाश ने सरकार पर साधा निशाना!

आपको बता दें कि साउथ एक्टर प्रकाश राज (Prakash Raj on india bharat controversy) जितना अपनी फिल्मों से सुर्खियां बटोरते हैं. उतना ही वह अपने ट्वीट के चलते भी लाइमलाइट में रहते हैं. इस बार उन्होंने ‘भारत’ बनाम ‘इंडिया’ के मुद्दे पर अपनी रखी. उन्होंने ट्वीटर पर लिखा, ‘आप डर के साथ केवल नाम बदल सकते हैं… हम भारतीय गर्व के साथ आपको और आपकी सरकार को भी बदल सकते हैं. #इंडिया #जस्ट_आस्किंग.’

‘चंद्रयान 3’ का उड़ाया था मजाक

आपको बताते चलें कि एक्टर प्रकाश राज (Prakash Raj) ने ‘चंद्रयान 3’ का भी मजाक उड़ाया था, जिसके बाद सोशल मीडिया पर उनकी काफी आलोचना हुई थी. यहां तक की उनके खिलाफ पुलिस स्टेशन में केस भी दर्ज करवाया गया था. लेकिन ‘चंद्रयान 3’ की सफलता के बाद उन्होंने इसरो को बधाई दी और उनकी तारीफ भी की थी.

सैक्स को लेकर पति से बात करने में झिझक होती है, मैं क्या करूं?

सवाल

लवमेकिंग में वे बहुत बुरे हैं. शादी हुए 2 साल हो चुके हैं. मेरी अरेंज मैंरिज हुई थी. शादी से पहले जब हम मिले थे तो हम ने अपने पास्ट रिलेशनशिप को ले कर कुछ खास बातचीत नहीं की थी और हमारे रिलेशनशिप पर कोई फर्क भी नहीं पड़ा है. मेरी बस, एक परेशानी है कि उन के प्यार में कोई पैशन नहीं है.

शादी से पहले मेरे 2 बौयफ्रैंड्स रह चुके हैं. बौयफ्रैंड से तो मैं कह देती थी उसे क्या, कैसे करना है, क्या नहीं लेकिन पति से यह कहने में झिझक होती है. अगर उन्होंने यह गलत तरीके से ले लिया और इस से हमारे रिश्ते पर फर्क पड़ा तो सिचुएशन बिगड़ भी सकती है.

जवाब

यह अच्छी बात है कि आप दोनों एकदूसरे की पास्ट रिलेशनशिप के बारे में कुछ खास बातचीत नहीं करते क्योंकि यकीनन इस से आप के प्रैजेंट पर असर पड़ सकता है लेकिन आप का अपने पति से अपनी सैक्सुअल लाइफ डिस्कस न करने की तुक समझ नहीं आई. वे आप के पति हैं और आप उन की पत्नी. अगर आप उन से खुल कर अपनी इच्छाएं व्यक्त नहीं करेंगी तो किस से करेंगी.

आप को इस बारे में अपने पति से बात करनी चाहिए. बात की शुरुआत छोटीछोटी चीजों से कीजिए, जैसे ‘किस’ आदि. यदि वे इतने से ही समझ जाएं तो आप उन की परफौर्मैंस को ले कर भी सहजता से बात कर सकती हैं. अभी आप दोनों के रिलेशनशिप की शुरुआती स्टेज है. जरूरी है कि आप अभी से ही एकदूसरे को समझाने लगें और इस फेज को एंजौय करें.

संदेह के सांप का जहर : महेंद्र सिंह ने क्यों कि अपनी की पत्नी की हत्या ?

परमिंदर कौर जालंधर के पृथ्वीनगर के मकान नंबर एन-ए-28 में रहती थी. उस के पति इकबाल सिंह दुबई के बहरीन में रहते थे. वहां वह किसी विदेशी कंपनी में नौकरी करते थे. उस की 2 बेटियां थीं, बड़ी 30 वर्षीया कमलप्रीत कौर और छोटी 26 वर्षीया रंजीत कौर. बड़ी बेटी कमलप्रीत कौर की शादी उस ने सन् 2001 में न्यूबलदेवनगर के मकान नंबर 197 में रहने वाले सुरजीत सिंह के सब से छोटे बेटे गुरमीत सिंह के साथ कर दी थी.

रंजीत कौर की अभी शादी नहीं हुई थी. वह जालंधर के पटेल अस्पताल में स्टाफ नर्स थी और मां के साथ रहती थी. कमलप्रीत कौर के पति की मौत हो चुकी थी. वह अपनी 2 बेटियों, 12 वर्षीया खुशप्रीत कौर और 10 वर्षीया राजवीर कौर के साथ ससुराल में रहती थी.

4 मार्च, 2014 की दोपहर 2 बजे के लगभग कमलप्रीत कौर अपनी मैरून कलर की एक्टिवा स्कूटर से गई तो लौट कर नहीं आई. जब इस बात की जानकारी परमिंदर को हुई तो उस ने बेटी को फोन किया. कमलप्रीत के पास 2 फोन थे. दोनों ही फोनों की घंटी बजती रही, लेकिन फोन उठा नहीं. इस के बाद रात को दोनों फोन बंद हो गए.

अगले दिन सवेरा होते ही परमिंदर कौर बेटी की तलाश में निकल पड़ी. उस ने नातेरिश्तेदार, जानपहचान वालों के यहां ही नहीं, हर उन संभावित जगहों पर बेटी को तलाशा, जहां उस के मिलने की संभावना थी. लेकिन कमलप्रीत का कहीं पता नहीं चला.

कमलप्रीत का कहीं कुछ पता नहीं चला तो परमिंदर कौर ने जालंधर के थाना डिवीजन नंबर 8 में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी. कमलप्रीत के ढूंढ़ने की जिम्मेदारी ड्यूटी पर तैनात एएसआई अजमेर सिंह को सौंपी गई. यह 4-5 अप्रैल, 2014 के मध्यरात्रि की बात है.

एएसआई अजमेर सिंह ने लापता कमलप्रीत कौर का हुलिया और उस की स्कूटर का नंबर वायरलेस द्वारा प्रसारित करवा दिया. इस के अलावा जिले के सभी थानों को सूचना दे कर कमलप्रीत कौर की तलाश में मदद मांगी. अगले दिन मुखबिरों को भी कमलप्रीत कौर के फोटो दे कर उस के बारे में पता लगाने को कहा गया.

लेकिन इस सब का कोई नतीजा नहीं निकला. चूंकि बीती रात से ही कमलप्रीत के दोनों फोन बंद थे, इसलिए एएसआई अजमेर सिंह ने कमलप्रीत के दोनों फोनों के नंबर एक सिपाही को दे कर ड्यूटी लगा दी थी कि वह लगातार दोनों नंबरों पर फोन करता रहे. उस सिपाही की मेहनत रंग लाई और शाम को कमलप्रीत के एक फोन की घंटी बज उठी.

उस ने यह बात एएसआई अजमेर सिंह को बताई तो उन्होंने अपने मोबाइल से कमलप्रीत के उस नंबर पर फोन मिला दिया तो इस बार फोन रिसीव कर लिया गया. फोन रिसीव करने वाले का नाम सुरेंद्र था. उस से कमलप्रीत कौर के बारे में पूछा गया तो उस ने कहा, ‘‘मैं किसी कमलप्रीत कौर को नहीं जानता. यह फोन भी मेरा नहीं है. मैं बस से जालंधर से फगवाड़ा जा रहा था तो बस में सीट के नीचे से मुझे यह फोन मिला था.’’

कमलप्रीत का फोन लावारिस हालत में बस में मिला, यह बात एएसआई अजमेर सिंह की समझ में नहीं आई. अपना परिचय देते हुए उन्होंने सुरेंद्र को फोन के साथ थाने बुला लिया. थाने आ कर भी सुरेंद्र ने वही सब बताया, जो उस ने फोन पर बताया था. अजमेर सिंह ने सुरेंद्र से फोन ले कर जमा कर लिया. पूछताछ में उन्हें लगा कि सुरेंद्र सच बोल रहा है तो उन्होंने उसे जाने दिया.

शाम को सारी बातें अजमेर सिंह ने थानाप्रभारी इंसपेक्टर विमलकांत को बताईं तो उन्होंने उन की मदद के लिए उन के नेतृत्व में एक टीम बना दी. यह पुलिस टीम लगातार दो दिनों तक कमलप्रीत कौर की तलाश करती रही, लेकिन कहीं से भी कोई सुराग नहीं मिला.

6 मार्च को कमलप्रीत की बहन रंजीत कौर ने थानाप्रभारी विमलकांत को फोन कर के बताया, ‘‘सर, मुझे संदेह है कि मेरी बहन कमलप्रीत कौर के गायब होने के पीछे उस के जेठ महेंद्र सिंह का हाथ हैं. क्योंकि वह मेरी बहन से दुश्मनी रखता था. मुझे पूरा विश्वास है कि उसी ने मेरी बहन को अगवा कर कहीं छिपा दिया है या फिर उस की हत्या कर दी है.’’

इस के बाद थानाप्रभारी ने रंजीत कौर को थाने बुला कर उस से एक तहरीर ले कर कमलप्रीत कौर के अपहरण का मुकदमा उस के जेठ महेंद्र सिंह के खिलाफ दर्ज करा दिया. महेंद्र सिंह गांव बलीना, दोआबा के गुरुद्वारा भगतराम में मुख्य ग्रंथी था. यह गुरुद्वारा साहिब गांव वालों के अधीन था. गांव वाले उसे पाठअरदास व गुरुद्वारा की सेवा के लिए 4 हजार रुपए मासिक वेतन देते थे.

महेंद्र सिंह के रहने और खाने की भी व्यवस्था गुरुद्वारा साहिब की ओर से थी. इंसपेक्टर विमलकांत सीधे उस पर हाथ नहीं डालना चाहते थे. इसलिए वह उस के बारे में पूरी जानकारी जुटाने लगे. इस छानबीन में पता चला कि 4 भाइयों में महेंद्र सिंह दूसरे नंबर पर था, जबकि कमलप्रीत का पति गुरमीत सिंह चौथे नंबर पर सब से छोटा था.

लगभग 25 साल पहले महेंद्र सिंह का विवाह हुआ था. उस के 3 बच्चों में 2 बेटे और 1 बेटी थी. लगभग 10 साल पहले किन्हीं कारणों से उस की पत्नी उसे छोड़ कर चली गई थी. अब तक उस के बडे़ बेटे और बेटी की शादी हो चुकी थी. शादी के बाद उस का बेटा उस से अलग रहने लगा था. इस समय सिर्फ छोटा बेटा 14 वर्षीय गगनदीप सिंह ही उस के साथ रहता था.

थानाप्रभारी विमलकांत ने कमलप्रीत कौर की दोनों बेटियों, खुशप्रीत कौर और राजवीर कौर से भी पूछताछ की थी. उन्होंने बताया था कि उस दिन उन की मां दोपहर 2 बजे के आसपास ताऊ महेंद्र सिंह के बेटे गगनदीप के साथ अपनी स्कूटर से गई थीं. जाते समय उन्होंने कहा था कि वह ताऊ से पैसे लेने जा रही हैं.

थानाप्रभारी विमलकांत ने गगनदीप को बुला कर कमलप्रीत के बारे में पूछा तो उस ने बताया, ‘‘चाची मेरे साथ आई जरूर थीं, लेकिन पठानकोट रोड पर फ्लाईओवर पर उन्होंने मुझ से कहा था कि तुम चलो, मैं थोड़ी देर में आ रही हूं.’’

थानाप्रभारी विमलकांत गगनदीप से पूछताछ कर ही रहे थे कि रंजीत कौर ने थाने आ कर अपना फोन दिखाते हुए कहा, ‘‘सर, 4 मार्च को मेरे फोन पर कमलप्रीत का यह मैसेज आया था, जिसे मैं ने आज पढ़ा है. देखिए सर, इस में उस ने क्या लिखा है?’’

थानाप्रभारी विमलकांत ने रंजीत का फोन ले कर वह मैसेज पढ़ा. वह 4 मार्च को 1 बज कर 20 मिनट पर आया था. मैसेज था, ‘‘मैं अपने जेठ के साथ जा रही हूं. मुझे कोई प्रौब्लम आए तो फौरन फोन उठा लेना.’’

अब तक की तफ्तीश से महेंद्र सिंह वैसे ही शक के घेरे में आ गया था, इस मैसेज से स्पष्ट हो गया कि कमलप्रीत कौर के लापता होने के पीछे किसी न किसी रूप में ग्रंथी महेंद्र सिंह का ही हाथ है. अब समय बेकार करना ठीक नहीं था, इसलिए थानाप्रभारी ने तुरंत उस के घर छापा मार दिया. लेकिन वह घर पर नहीं मिला.

थानाप्रभारी ने महेंद्र सिंह के पीछे मुखबिरों को लगा दिया इस के बाद उन्हीं की सूचना पर 7 मार्च को पठानकोट रोड चौक पर नाका लगा कर उसे गिरफ्तार कर लिया गया. थाने ला कर उस से पूछताछ शुरू हुई तो उस ने जल्दी ही स्वीकार कर लिया कि उसी ने कमलप्रीत की हत्या कर दी है.

लाश के बारे में पूछा गया तो उस ने बताया कि कमलप्रीत की लाश को उस ने गुरुद्वारा साहिब के सीवर में फेंक दी है. महेंद्र के अपना अपराध स्वीकार कर लेने के बाद इंसपेक्टर विमलकांत ने तुरंत इस बात की सूचना एडीसीपी (प्रथम) नरेश डोगरा तथा एसीपी सतीश मल्होत्रा को दे दी थी.

अधिकारियों की उपस्थिति में अभियुक्त ग्रंथी महेंद्र सिंह की निशानदेही पर गुरुद्वारा भगतराम के सीवर पाइप से मृतका कमलप्रीत कौर की लाश बरामद कर ली गई. लाश केवल अंदर के कपड़ों यानी ब्रा पैंटी में थी. इस से लोगों को लगा कि हत्या से पहले मृतका के साथ दुष्कर्म किया गया था.

इंसपेक्टर विमलकांत ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दिया और थाने आ कर कमलप्रीत के अपहरण के मुकदमे के साथ हत्या और लाश को खुर्दबुर्द करने की धाराएं जोड़ दीं.

अगले दिन यानी 8 मार्च को जेएमआईसी सिमरन सिंह की अदालत में महेंद्र सिंह को पेश कर के पूछताछ के लिए पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. रिमांड के दौरान की गई पूछताछ में  महेंद्र ने जो बताया, वह इस प्रकार था.

महेंद्र सिंह ने पुलिस को बताया था कि उस ने छोटे भाई की पत्नी कमलप्रीत की हत्या इसलिए की है, क्येंकि उस ने उस के भाई गुरमीत सिंह की हत्या की थी. उस के प्रिंस और सत्ती से अवैध संबंध थे. इसी वजह से उस ने गुरमीत को जहर दे कर मार दिया था.

महेंद्र सिंह के बताए अनुसार, गुरमीत तनदुरुस्त और अच्छाखासा नौजवान था. उसे कोई बीमारी भी नहीं थी, इसलिए जिस दिन वह मरा था, उसी दिन उसे शक हो गया था कि उस के भाई गुरमीत की मौत स्वाभाविक नहीं थी. उसे साजिश रच कर मारा गया था. इस के बाद वह पता लगाने लगा. तब उसे पता चला कि गुरमीत की पत्नी कमलप्रीत के प्रिंस और सत्ती से अवैध संबंध थे.

इस के बाद महेंद्र सिंह कमलप्रीत पर नजर रखने लगा. इसी साल जनवरी के दूसरे सप्ताह में एक रात उस ने एक सपना देखा. सपने में गुरमीत ने आ कर उस से कहा था कि उसे जहर दे कर मारा गया था. यह काम कमलप्रीत ने अपने हाथों से किया था.

बस इसी के बाद से अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए महेंद्र मौके की तलाश में लग गया था. वह प्रिंस, सत्ती और कमलप्रीत की हत्या कर के अपने भाई की मौत का बदला लेना चाहता था. लेकिन 3-3 हत्याएं करना उस के वश की बात नहीं थी.

कमलप्रीत के मृतक पति गुरमीत सिंह की लाम्मा पिंड चौक के पास ‘राजा भांगड़ा ग्रुप’ के नाम से भांगड़ा पार्टी थी. वह शादीब्याह एवं अन्य अवसरों पर गाना व भांगड़ा करता था. उस का यह काम बहुत बढि़या चल रहा था. अपने इस काम से उस ने खूब पैसा कमाया, जिसे उस ने ब्याज पर उठा दिया था. 23 अक्टूबर को ज्यादा शराब पीने की वजह से उस की मौत हो गई थी. उस ने जो पैसा उठा रखा था, उस की मौत के बाद तमाम लोगों ने वापस नहीं किया था.

गुरमीत का पैसा बहुत लोगों ने दबा रखा है, यह महेंद्र सिंह को पता था. कमलप्रीत की हत्या करने से कुछ दिनों पहले उस ने कमलप्रीत को फोन किया कि गुरमीत ने बुलारा गांव के एक आदमी को डेढ़ लाख रुपए दे रखे थे. वह आदमी 3 किश्तों में वे रुपए लौटाना चाहता है.

कमलप्रीत जेठ की बात पर विश्वास कर के उस आदमी से मिलने को तैयार हो गई. तब महेंद्र ने रुपए दिलवाने के एवज में उस से 3 हजार रुपए कमीशन के तौर पर मांगे. कमलप्रीत ने उस की यह शर्त स्वीकार कर ली. इस के बाद महेंद्र ने बातचीत करने के लिए उसे गुरुद्वारा के अपने कमरे पर बुलाया. उस दिन बातचीत कर के कमलप्रीत घर लौट गई.

4 मार्च, 2014 को सुबह महेंद्र ने कमलप्रीत को फोन कर के अपने कमरे पर बुलाया. कमलप्रीत ने अकेली आने में असमर्थता व्यक्त की तो उस ने अपने बेटे गगनदीप को भेज दिया. कमलप्रीत गगनदीप के साथ किशनपुरा उस की बताई जगह पर एक्टिवा स्कूटर से पहुंची.

ग्रंथी महेंद्र सिंह वहां पहले से ही मौजूद था. वह उसे अपने साथ अपने कमरे पर ले गया. वहां कमरे में बंद कर के महेंद्र उस से अपने भाई गुरमीत की मौत के बारे में पूछने लगा. सपने की बात बता कर उस ने कहा कि उसी ने अपने अवैध संबंधों की वजह से गुरमीत को जहर दे कर मारा था.

कमलप्रीत ने रोते हुए कहा, ‘‘यह सब झूठ है. न तो मेरा किसी से अवैध संबंध है और न मैं ने तुम्हारे भाई की हत्या की है. जरा सोचो, मैं अपने पति की हत्या कर के स्वयं को क्यों विधवा बनाऊंगी. एक विधवा की जिंदगी क्या होती है, यह मुझ से ज्यादा और कौन जान सकता है. जिस प्रिंस और सत्ती पर तुम आरोप लगा रहे हो, वह मुझे अपनी बहन मानते हैं.’’

कमलप्रीत के रोने को महेंद्र सिंह ने ढोंग समझा. उस ने उसे डांटते हुए जान से मारने की धमकी दी तो कमलप्रीत डर गई और पति की हत्या की बात स्वीकार कर ली. इस के बाद उस ने एक कागज दे कर गुरमीत को जहर दे कर मारने की बात लिखने को कहा.

कमलप्रीत ने सोचा, लिख कर देने से वह उस का पीछा छोड़ देगा, इसलिए उस ने लिख दिया, ‘प्रिंस, सत्ती और मैं ने गुरमीत को शराब में सल्फास की गोलियां मिला कर पिला दी थीं, जिस से उस की मौत हो गई थी.’ दरअसल उस समय महेंद्र के सिर पर खून सवार था. उस की आंखों में हैवानियत नाचती देख कमलप्रीत डर गई थी और उस ने वह सब लिख दिया था, जो वह चाहता था.

कमलप्रीत द्वारा लिखी बात पढ़ कर महेंद्र की आंखों में खून उतर आया. उस ने बैड पर बैठी कमलप्रीत का गला पकड़ा और पूरी ताकत से दबा दिया. कमलप्रीत बैड पर गिर पड़ी. वह जिंदा न रह जाए, इस के लिए उस ने उस के गले में पड़ी चुन्नी को लपेट कर पूरी ताकत से कस दिया. इस के बाद लाश को वहीं कमरे में बंद कर के उस के दोनों फोन ले कर वह रामा मंडी, जालंधरअमृतसर रोड पर गया और लुधियाना जाने वाली बस की सीट के नीचे रख कर वापस आ गया.

इस के बाद कमलप्रीत का स्कूटर ले जा कर उस ने जालंधर कैंट के रेलवे स्टेशन की पार्किंग में खड़ा कर दिया. स्टेशन से लौटतेलौटते रात के 8 बज चुके थे. अब उसे लाश को ठिकाने लगाना था. लाश को ठिकाने लगाने से पहले उस ने कमलप्रीत की सलवारकमीज को कैंची से काट कर शरीर से अलग कर दिया.

उन कपड़ों को जला कर उस ने उस की राख को ले जा कर जेहला गांव के निकट गुरुद्वारे के पास खेतों में फेंक दिया, ताकि कोई सुबूत न रहे. उस के कमरे पर आतेआते गांव में सन्नाटा पसर चुका था. उस ने कमलप्रीत की लाश उठाई और गुरुद्वारा में बने सीवर में डाल दिया. इस तरह से कमलप्रीत की हत्या कर के उस ने सारे सुबूत मिटा दिए. लेकिन उस ने कुछ ऐसी गलतियां कर दी थीं, जिस की वजह से वह पुलिस गिरफ्त में आ गया था.

महेंद्र से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर विमलकांत ने प्रिंस और सत्ती को थाने बुला कर पूछताछ की. उन का कहना था कि वे कमलप्रीत को अपनी बहन मानते थे और भाई की तरह उस के छोटेमोटे काम कर दिया करते थे. मृतका कमलप्रीत की मां और बहन तथा पड़ोसियों ने भी उन की बात को सच बताया.

थानाप्रभारी ने एक बार फिर महेंद्र से पूछताछ की तो इस बार उस ने कमलप्रीत की हत्या की जो कहानी बताई, वह कुछ और ही निकली.

दरअसल, मृतक गुरमीत का कामधंधा बहुत अच्छा चल रहा था, जिस से महेंद्र उस से जलता था. गुरमीत का पृथ्वीनगर में एक मकान था, जो काफी कीमती था. महेंद्र उसे हथियाना चाहता था. इसीलिए उस ने कमलप्रीत के प्रिंस और सत्ती से अवैध संबंधों की बात फैला कर कमलप्रीत की हत्या कर दी, ताकि उस मकान को वह हासिल कर सके.

इंसपेक्टर विमलकांत ने महेंद्र की निशानदेही पर कमलप्रीत की एक्टिवा स्कूटर, मोबाइल फोन और वह कैंची भी बरामद कर ली थी, जिस से उस ने उस के कपड़े काटे थे. तमाम पुलिस काररवाई पूरी कर के महेंद्र सिंह को एक बार फिर 10 मार्च, 2014 को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. मृतका कमलप्रीत कौर की दोनों बेटियां खुशप्रीत कौर और राजवीर कौर अपनी मौसी रंजीत कौर के पास रह रही थीं.द्य

-कथा पुलिस सूत्रों व मृतका के परिजनों द्वारा बातचीत पर आधारित

परफैक्ट बैलेंस : नेहा ने अपनी कमजोरी को बातों में ही क्यों समेट लिया था?

‘‘नेहा बहुत थक गया हूं, एक गरमगरम चाय का कप और प्याज के पकौड़े हो जाएं. जरा जल्दी डार्लिंग,’’ राज ने औफिस से आते ही सोफे पर फैलते हुए कहा.

फीकी सी मुसकान बिखेरते नेहा ने पति को पानी का गिलास दिया और फिर उस के पास ही बैठ गई. फिर थकी सी आवाज में बोली, ‘‘चाय और पकौड़े थोड़ी देर में तैयार करती हूं. आज जल्दीजल्दी नहीं हो सकेगा.’’

‘‘क्यों, सब ठीक तो है?’’ राज की आवाज में खिन्नता साफ थी.

‘‘पिछले कुछ दिनों से थोड़ी कमजोरी महसूस कर रही हूं. थकीथकी सी रहती हूं,’’ पति की खिन्नता को भांप कर नेहा ने अपनी बढ़ती कमजोरी को थोड़ी बातों में समेट दिया था. यही तो वह करती आ रही है कई सालों से. कोई भी समस्या हो वह यथासंभव स्वयं ही सुलझा लेती या फिर हलके से उसे राज के सामने रखती ताकि उसे किसी प्रकार का तनाव न हो. ऐसा करने में नेहा को बहुत खुशी मिलती.

‘‘ठीक है पकौड़े न सही चाय के साथ बिस्कुट तो दे सकती हो मेरी नाजुक रानी,’’ राज ताना मारने से नहीं चूका. फिर नेहा की कमजोरी वाली बात को अनसुना कर फ्रैश होने के लिए बाथरूम की ओर बढ़ गया.

नाजुक नेहा के मन रूपी दर्पण पर जैसे किसी ने पत्थर दे मारा हो. कब थी वह नाजुक. 15 सालों की गृहस्थी में उस ने हर छोटेबड़े काम को कुशलता से निभाया था. कब टपटप करता बिगड़ा नल ठीक हो गया, कब पंखा दोबारा चलने लगा, कब बाथरूम की दीवार से रिसता पानी बंद हो गया उस ने राज को पता ही नहीं लगने दिया. बच्चों की देखरेख, पढ़ाईलिखाई, बैंक का काम, कितने ही और घरबाहर से जुड़े काम वह चुपचाप सुचारु रूप से संपन्न करती आ रही थी.

इतना ही नहीं नेहा छोटी कक्षा के 8-10 बच्चों को घर पर ही ट्यूशन भी पढ़ा देती थी. ताकि घर की आमदनी में थोड़ीबहुत वृद्धि हो सके.

पति और अपने बच्चों को प्रसन्न रखने में ही उस ने खुद को भुला दिया था. राज जबजब उसे गुलाबो या झांसी की रानी कह कर छेड़ता तो वह फूली न समाती थी. यही तो उस का प्यारा सा संसार था. यही उस की मनचाही साधना. अपने शौक, अपनी चाहतें सब कुछ उस ने सहर्ष भुला दिए थे. इस बात का नेहा को कभी कोई मलाल नहीं था, कोई गिला नहीं था. पर आज उसे मलाल हुआ कि मेरी कमजोरी, मेरी तकलीफ राज की नजर में कुछ अर्थ नहीं रखती. खुद को ताक पर रख दिया, यही मुझ से गलती हुई.

विचारों की उठतीउफनती लहरों में नेहा ने जैसेतैसे चाय बनाई.

राज फ्रैश हो कर आ गया था. खोईखोई सी नेहा ने उस के सामने चाय और बिस्कुट रख दिए. बस एक रोबोट की तरह यंत्रवत. कहते हैं कि सूखी आंखों से भी आंसू गिरते हैं, पर उन्हें समझने या देखने वाले बिरले ही होते हैं.

‘‘क्या कमाल की चाय बनाई है मेरी गुलाबो ने,’’ चाय की चुसकियां लेते हुए राज ने घाव पर मरहम लगाने की असफल चेष्टा की.

‘गुलाबो, हूं… अब लगे हैं मेरी खुशामद करने. चाय, बिस्कुट मिल गए… मेरी कमजोरी गई भाड़ में. दिल रखने के लिए ही सही कुछ तो पूछते मेरी कमजोरी के बारे में. इन्हें क्या? गलती मेरी ही है जो कभी इन के सामने अपनी तकलीफ नहीं रखी… यही तो सजा मिली है,’ मन ही मन बुदबुदा कर नेहा ने अपनी खीज निकाली.

‘‘नीरू और उमेश कहां हैं?’’ राज के प्रश्न पर नेहा का ध्यान भंग हुआ.

‘‘ट्यूशन वाले बच्चों का कैसा चल रहा है?’’

‘‘अच्छा चल रहा है. उन्हें भी आजकल अधिक समय देना पड़ रहा है. परीक्षा जो नजदीक है,’’ अनमनी सी नेहा बोली.

हर पौधे की तरह मानव हृदय के कोमल पौधे को भी समयसमय पर प्रेमजल से सींचना  पड़ता है, सहृदयता एवं सहानुभूति की खाद को जड़ों में यदाकदा डालना पड़ता है अन्यथा पौधा मुरझा जाता है. विशेषकर नारी का संवेदनशील हृदय जो प्रेम की हलकी सी थाप से छलकछलक जाता है, किंतु अवहेलना की तनिक सी चोट पर मरुस्थल सा शुष्क बन जाता है.

‘‘वह तो है. परीक्षा आ रही है तो समय देना ही पड़ेगा. इतना तो शुक्र है कि घर बैठे ही कमा लेती हो. बाहर नौकरी करती तो आए दिन थक जाती… आनाजाना पड़ता तो पता चलता,’’ घायल मन पर राज ने फिर चोट की.

यह चोट नेहा के लिए असहनीय थी. बोली, ‘‘घर पर ही अंदरबाहर के हजारों काम होते हैं. ये काम आप को दिखते ही नहीं. सब कियाकराया जो मिल जाता है… इतने सालों की गृहस्थी में मैं ने आप पर किसी भी काम का कम से कम बोझ डाला है. इसीलिए मेरी थकान, मेरी कमजोरी आप को पच नहीं रही. आखिर बढ़ती उम्र है… शरीर हमेशा एकजैसा तो नहीं रहता… पर नहीं, मैं तो सदैव गुलाब की तरह खिली रहूं, तरोताजा रहूं… है न?’’ क्रोध और क्षोभ से नेहा की आंखें छलछला आईं.

‘‘अब यह भी क्या बात हुई नाराज होने की? तुम तो मेरी झांसी की रानी हो. कुछ भी कहो आज भी तुम मुझे पहले जैसी गुलाबो ही दिखती हो,’’ राज ने बढ़ती कड़वाहट में मिठास घोलनी चाही.

‘‘रहने दो अपने चोंचले. आप का चैक बैंक में जमा करा दिया था और इंश्योरैंस वाले को फोन कर दिया था,’’ नेहा ने मात्र सूचना दी.

‘‘यह हुई न बात. पढ़ीलिखी, मौडर्न बीवी का कितना सुख होता है. मौडर्न औरत वाकई चुस्त और दुरुस्त होती है.’’

‘‘मौडर्न औरत बेमतलब पिसतीघुटती नहीं है और न ही इतनी मूर्ख कि अपने वजूद को भुला दे चाहे कोई कद्र करे या न करे,’’ नेहा के स्वर तीखे हो चले थे.

‘‘तिल का ताड़ मत बनाओ नेहा. तुम ही एकमात्र स्त्री नहीं हो जो घर और बाहर संभाल रही है. इस बढ़ती महंगाई के युग में हर सजग स्त्री कुछ न कुछ कर के पैसा कमा रही है. घर और परिवार में बैलेंस आजकल की स्त्री को बखूबी आता है. तनिक सूझबूझ से सब हो जाता है,’’ राज ने आग में घी डाल ही दिया.

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं? क्या मुझ में सूझबूझ नहीं? इतने सालों से क्या मैं झकझोर रही हूं? क्या कमी रखी है किसी भी बात में? बैलेंस ही तो करती आ रही हूं अब तक… पर सच ही कहा है कि घर की मुरगी दाल बराबर,’’ नेहा आपे से बाहर हो चुकी थी.

सच सब से गहरे घाव भी उन्हीं से मिलते हैं जिन्हें हम बहुत चाहते हैं. उसी समय नीरू और उमेश आ गए. तूफान थम सा गया. नेहा ने उन्हें नाश्ता कराया. फिर उन्हें पढ़ाने बैठ गई.

वातावरण बोझिल हो चुका था.

‘‘मैं जरा बाहर घूमने जा रहा हूं,’’ कह कर राज बाहर निकल गया.

राज और नेहा की गृहस्थी सुखी और सामान्य थी. थोड़ी बहुत नोकझोंक होती रहती थी. यह सब तो गृहस्थ जीवन का अभिन्न अंग है. बहुत मिठास भी बनावटी लगती है.

नेहा राज को बहुत परिश्रम करता देखती. महीने में 2-3 टूअर भी हो जाते. देर रात तक राज नएनए प्रोजैक्ट पर काम करता. अपने पति पर नेहा को गर्व था. वह राज को प्रसन्न रखने की भरसक कोशिश करती.

सच तो यह था कि दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे. लेकिन प्यार करने और दूसरे के मन की गहराई को समझने में काफी अंतर है. दिल महंगी भेंट नहीं मांगता. 2 शब्द प्रेम, प्रशंसा या सहानुभूति के ही पर्याप्त होते हैं. भावनाओं का स्थान भौतिक पदार्थ कमी नहीं ले सकते.

चूंकि नेहा हमेशा खिलीखिली रहती, इसलिए राज को उसे इसी प्रकार देखने की आदत हो चुकी थी. उस ने कभी इस बात को न जाना न समझा कि नेहा हर कार्य को कैसे कुशलतापूर्वक निबटा लेती. बहुत कम ऐसे अवसर आए जब नेहा ने अपनी परेशानी राज को बताई. प्रेमविभोर नेहा से शायद जानेअनजाने यही गलती हो गई थी. आज झगड़े का मूल कारण भी यही था. रात को डिनर के समय पतिपत्नी चुपचाप से थे. अंदर की पीड़ा जो थी सो थी.

बच्चे स्वभावानुसार चहक रहे थे, ‘‘पापा, मम्मी ने आज दमआलू कितने स्वादिष्ठ बनाए हैं,’’ नीरू ने चटकारे लेते हुए कहा.

‘‘हां बेटा, बहुत स्वादिष्ठ बने हैं,’’ राज ने स्वीकार किया.

उमेश भी नेहा को अपनी विज्ञान शिक्षिका और स्कूल की विज्ञान प्रदर्शिनी के बारे में बता रहा था. नेहा भी जैसेतैसे बेटे के उत्साह में भाग ले रही थी.

बच्चों का भोलापन वास्तव में कलकल करते निर्मल शीतल जलप्रपात सा है, जो पतिपत्नी के गिलेशिकवों के जलतेबुझते अंगारों को शांत कर देता है.

डिनर समाप्त हुआ तो बच्चे अपने बैडरूम में चले गए. नेहा ने जल्दी से बचे काम निबटाए और कपड़े बदल कर राज की तरफ पीठ कर के लेट गई. राज लेटेलेटे कुछ पढ़ रहा था. 11 बज रहे थे. नेहा के लेटते ही राज ने बत्ती बुझा दी.

‘‘नाराज हो क्या?’’ राज की आवाज में मलाई जैसी चिकनाहट थी.

नेहा चुप. कांटा बहुत गहरा चुभा था. पीड़ा हो रही थी.

‘‘डार्लिंग कल शाम मैं टूअर पर निकल जाऊंगा. 2-3 दिन के बाद ही आऊंगा. तुम बात नहीं करोगी तो कैसे चलेगा.’’

‘‘मेरा सिर दुख रहा है. आप सो जाएं,’’ नेहा ने टालना चाहा.

‘‘लाओ मैं तुम्हारा सिर दबा दूं,’’ राज नेहा को मना रहा था.

नेहा अब तक मन ही मन कोई फैसला ले चुकी थी. इसलिए प्रतिकार किए बिना उस ने करवट बदली और राज की ओर देखा. राज ने समझा बिगड़ी बात बनने लगी है. वह नेहा का सिर दबाने लगा.

‘अच्छा है… होने दो सेवा,’ नेहा मन ही मन मुसकराई. मन हलका हुआ तो आंख लग गई. राज भी हलके मन से सो गया.

अगला दिन सामान्य ही रहा. राज औफिस निकल गया. बच्चे स्कूल. नेहा

रोज के कार्यों में व्यस्त हो गई. पर कल रात उस ने जो फैसला लिया था. उसे भूली नहीं थी.

शाम हुई. बच्चे स्कूल से लौटे और राज औफिस से. कुछ खापी कर राज टूअर पर निकल गया. निकलने से पहले नेहा को आलिंगन में लिया. बच्चों को प्यार किया. सब ठीकठाक था. हमेशा की तरह.

3 दिन बाद राज सुबह 9 बजे घर लौटा. बच्चे स्कूल जा चुके थे. नेहा ने हंसते हुए स्वागत किया, ‘‘आप नहाधो लें. तब तक मैं नाश्ता तैयार करती हूं,’’

राज को लगा सब पहले जैसा नौर्मल है. दिल को सुकून मिला.

राज जैसे ही तरोताजा हुआ नेहा ने उस के सामने गरमगरम चाय और प्याज के पकौड़े रख दिए. साथ में पुदीने की चटनी.

‘‘मैं जानता था मेरी गुलाबो कभी बदल नहीं सकती,’’ राज बहुत खुश था.

‘‘कैसा रहा आप का टूअर?’’

‘‘अच्छा रहा. बहुत काम करना पड़ा पर मैं संतुष्ट हूं.’’

‘‘औफिस कितने बजे जाना है?’’

‘‘दोपहर 3 बजे निकलना है. थोड़ा आराम करूंगा. तुम अपनी कहो. क्याक्या किया इन 3 दिनों में?’’ राज ने पकौड़ों का आनंद लेते हुए उत्सुकता से नेहा की ओर देखा.

‘‘बहुत कुछ किया,’’ नेहा के चेहरे पर रहस्यमयी मुसकान थी.

‘‘बताओ तो सही.’’

‘‘एक स्कूल में इंटरव्यू दे कर आई हूं. पार्टटाइम जौब है. छठी और 7वीं कक्षा के बच्चों को अंगरेजी और समाजशास्त्र पढ़ाना है. मेरी ही पसंद के विषय हैं.’’

‘‘इंटरव्यू… यह सब क्या है,’’ राज सकपका गया.

‘‘हां डार्लिंग इंटरव्यू. नौकरी लगभग तय है. अगले महीने से जाना होगा. मेरी 1-2 सहेलियां भी वहां पढ़ा रही हैं. वेतन भी अच्छा है. मेरी सहेली ने ही मेरी सिफारिश की थी. अत: बात बन गई,’’ नेहा ने डट कर अपनी बात कह डाली. वह जानती थी कि राज को यह बात अच्छी नहीं लगेगी. लगे न लगे पर अब पता चलेगा कि परफैक्ट बैलेंस रखना क्या होता है.

‘‘अचानक यह नौकरी की क्या सूझी?’’ राज हैरान और खिन्न था.

‘‘अब इस में सूझने की क्या बात है?

जब हर आधुनिक स्त्री नौकरी कर रही है तो फिर मैं क्यों नहीं,’’ नेहा ने चटनी के चटखारे लेते हुए कहा.

‘‘तुम्हें मेरी उस दिन की बात बुरी लग गई?’’

‘‘बिलकुल नहीं. आप ठीक कहते थे. बैलेंस करने की ही तो बात है,’’ नेहा को मजा आ रहा था.

‘‘तुम्हारी कमजोरी… थकावट का क्या… सेहत भी देखनी पड़ती है.’’

‘‘भई कमाल है. आज आप को मेरी सेहत की बहुत चिंता होने लगी. पर सुन कर अच्छा लगा. चिंता न करें यह सब तो चलता ही है.’’

‘‘नेहा, बात उड़ाओ मत. मैं सीरियस हूं,’’ राज परेशान हो उठा.

‘‘धीरज रखें. मैं डाक्टर से मिल कर आई हूं. ब्लड टैस्ट की रिपोर्ट भी आ गई है.

सब ठीक है हीमोग्लोबिन कम है. डाक्टर की बताई दवा लेनी शुरू कर दी है और खानपान भी डाक्टर के निर्देशानुसार ले रही हूं.’’

‘‘और तुम्हारी ट्यूशनें?’’

‘‘पार्टटाइम नौकरी है. दोपहर 12:30 बजे तक लौट आऊंगी. ट्यूशन तो 3 बजे शुरू होती है. वह भी सप्ताह में 4 बार. महरी फुलटाइम सुबह से शाम तक आ जाया करेगी. बच्चे तो शाम 5 बजे तक ही लौटते हैं. स्कूल मुझे सप्ताह में 5 दिन ही जाना है. शनिर विवार छुट्टी. सब बैलेंस हो जाएगा,’’ नेहा मोरचे पर डटी थी.

‘‘तुम जानती हो अगले महीने बड़े भाईसाहब और भाभी आ रहे हैं,’’ राज ने हारे सिपाही के स्वर में कहा.

‘‘यह तो और भी अच्छी बात है. भाभीजी तो बहुत सुघड़ हैं. मेरी बहुत मदद हो जाएगी. वे भी थोड़ीबहुत घर की देखभाल कर लेंगी और भाईसाहब बच्चों को गणित और विज्ञान पढ़ा दिया करेंगे. इन विषयों में तो वे माहिर हैं,’’ नेहा आज घुटने टेकने वाली नहीं थी.

‘‘तो तुम ने नौकरी करने का निश्चय कर ही लिया है,’’ राज ने हथियार डाल दिए.

‘‘बिलकुल. आप देखना आप की झांसी की रानी घरबाहर को कैसा बैलेंस करती है. आप से ही तो मुझे प्रेरणा मिली है. खैर, छोडि़ए इन बातों को. आप थके हुए हैं. आओ सिर में तेल की मालिश कर देती हूं. आराम मिलेगा,’’ नेहा चाश्नी से सने तीर छोड़ रही थी.

‘‘लंच में क्या है?’’

‘‘सब आप की मनपसंद की चीजें.

लौकी के कोफ्ते, बैगन का भरता और मीठे में बासमती चावल की खीर. आया न मुंह में पानी?’’

‘‘हांहां, ठीक है,’’ राज निरुत्तर हो चुका था.

कहना न होगा कि नेहा परफैक्ट बैलेंस का अंदाज सीख चुकी थी.

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