केंद्र में बैठी भाजपा सरकार ने 2 सितंबर को 'वन नेशन, वन इलैक्शन’ के लिए 8 सदस्यीय कमेटी का गठन किया. इस कमेटी के अध्यक्ष पूर्व दलित राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को बनाया गया, अन्य सभी 7 सदस्यों के चयन से साबित हुआ कि यह भाजपा सरकार का विमर्श नहीं देश पर नोटबंदी, जीएसटी जैसा जजमैंट है.

इस का मतलब यह कि अगर यह लागू होता है तो देश में जनता एक बार वोट डालेगी, फिर उन्हें 5 सालों तक खामोश कर दिया जाएगा.

मूल सवाल यह है कि सरकार की प्रायोरिटी क्या है? वह आखिर 'वन नेशन वन इलैक्शन' को इतना अहमियत क्यों दे रही है, जबकि आज न जाने कितनी ही समस्याएं लोगों के सामने खड़ी हैं? सवाल यह कि क्या 'वन नेशन वन इलैक्शन' से पहले वन एजुकेशन नहीं हो जाना चाहिए था?

देश में दोहरी शिक्षा नीति है, जिस के पास पैसा है वह इस के दम पर महंगी व अच्छी शिक्षा ले सकता है, वहीं गरीबों के बच्चे 20वीं सदी के टीनटप्पर वाले स्कूलों में पढ़ाई करते रहें, उन्हें उन के भाग्य पर छोड़ दिया गया है. यह ढांचा ही गरीबों को गरीब बनाए रखने का सब से बड़ा जरीया बना हुआ है.

हिंदी पट्टी के काऊ स्टेट को छोड़ भी दिया जाए तो शिक्षा की कथित "क्रांति" करने वाली राजधानी दिल्ली, जिस की आप सरकार पासिंग परसैंटेज को ही सरकारी स्कूलों की बेहतरी मान अपनी पीठ थपथपाती है, क्या प्रेम नगर में पूड़ी वाले और पटेल नगर के खत्ते वाले के नाम से मशहूर राजकीय स्कूलों को बाराखंबा के मौडर्न स्कूल व पूसा रोड के सैंट माइकल स्कूल के बराबर मान सकती है?

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
  • देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
  • 7000 से ज्यादा कहानियां
  • समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
 

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
  • देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
  • 7000 से ज्यादा कहानियां
  • समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
  • 24 प्रिंट मैगजीन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...