अमीरीगरीबी हमारे पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार पिछले जन्मों का परिणाम है पर असलियत यह है कि बहुत कम मारवाड़ी या गुजराती बिलकुल फटेहाल मिलेंगे और बहुत कम ब्राह्मण अरबोंखरबों से खेल रहे होंगे. अमेरिका के लेखक रौबर्ट कियोस्की की किताब ‘रिच डैड पूअर डैड’ की टैग लाइन ही है, 'ऐसा क्या है जो अमीर बाप अपने बच्चों को पैसे के बारे में सिखाते हैं और गरीब बाप नहीं.'

उदाहरण के लिए एक गरीब का बेटा अपने घर में एअर कंडीशनर के लिए मांग करता है. गरीब बाप तुरंत उत्तर देगा, "मेरे पास इतना पैसा नहीं है, यह हमारी हैसियत नहीं है.’'

अमीर बाप का बेटा एक एअरकंडीशंड बड़ी कार की मांग करता है पर अमीर बाप के पास बेटे को एअरकंडीशंड कार के पैसे नहीं हैं पर वह कहेगा, "सोचो, हम कैसे एअरकंडीशंड बड़ी कार खरीद सकते हैं."

पहले मामले में बेटे का दिमाग काम करना बंद कर देगा. एअरकंडीशनर तो खरीदा ही नहीं जा सकता. दूसरे का बेटा उपाय ढूंढ़ना शुरू करेगा कि कैसे वह भी पैसा लगाए ताकि एअरकंडीशंड बड़ी कार खरीद सके.

पहले की इच्छा कभी पूरी नहीं होगी पर दूसरा कहीं पैसा बचाएगा, कहीं काम कर के अतिरिक्त पैसे जोड़ेगा, स्कौलरशिप पर पढ़ने की कोशिश करेगा.

अमीर बापों का कहना कि टैक्स असल में समाज का अमीरों पर सजा है कि उन्होंने इतना क्यों कमाया, इसलिए वे इतना कमाते हैं कि टैक्स देने के बाद भी शान से रह सकें.

गरीब बाप का कहना होता है कि अमीर उन से पैसे छीन लेते हैं और सरकार उन से कुछ हिस्सा टैक्स में ले कर गरीबों में फिर सुविधाओं के रूप में बांट देती है. गरीब बाप अब सरकार (भारत में मंदिर पर) निर्भर हो जाता है और जितना काम करता है, उसे काफी समझता है और अपने बेटे को हमेशा गरीबी में पालता है.

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