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Raksha Bandhan : अल्पना- वह अमेरिका क्यों गई थी?

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जीत गया जंगवीर

‘‘खत आया है…खत आया है,’’ पिंजरे में बैठी सारिका शोर मचाए जा रही थी. दोपहर के भोजन के बाद तनिक लेटी ही थी कि सारिका ने चीखना शुरू कर दिया तो जेठ की दोपहरी में कमरे की ठंडक छोड़ मुख्यद्वार तक जाना पड़ा.

देखा, छोटी भाभी का पत्र था और सब बातें छोड़ एक ही पंक्ति आंखों से दिल में खंजर सी उतर गई, ‘दीदी आप की सखी जगवीरी का इंतकाल हो गया. सुना है, बड़ा कष्ट पाया बेचारी ने.’ पढ़ते ही आंखें बरसने लगीं. पत्र के अक्षर आंसुओं से धुल गए. पत्र एक ओर रख कर मन के सैलाब को आंखों से बाहर निकलने की छूट दे कर 25 वर्ष पहले के वक्त के गलियारे में खो गई मैं.

जगवीरी मेरी सखी ही नहीं बल्कि सच्ची शुभचिंतक, बहन और संरक्षिका भी थी. जब से मिली थी संरक्षण ही तो किया था मेरा. जयपुर मेडिकल कालेज का वह पहला दिन था. सीनियर लड़केलड़कियों का दल रैगिंग के लिए सामने खड़ा था. मैं नए छात्रछात्राओं के पीछे दुबकी खड़ी थी. औरों की दुर्गति देख कर पसीने से तरबतर सोच रही थी कि अभी घर भाग जाऊं.

वैसे भी मैं देहातनुमा कसबे की लड़की, सब से अलग दिखाई दे रही थी. मेरा नंबर भी आना ही था. मु?ो देखते ही एक बोला, ‘अरे, यह तो बहनजी हैं.’ ‘नहीं, यार, माताजी हैं.’ ऐसी ही तरहतरह की आवाजें सुन कर मेरे पैर कांपे और मैं धड़ाम से गिरी. एक लड़का मेरी ओर लपका, तभी एक कड़कती आवाज आई, ‘इसे छोड़ो. कोई इस की रैगिंग नहीं करेगा.’

‘क्यों, तेरी कुछ लगती है यह?’ एक फैशनेबल तितली ने मुंह बना कर पूछा तो तड़ाक से एक चांटा उस के गाल पर पड़ा. ‘चलो भाई, इस के कौन मुंह लगे,’ कहते हुए सब वहां से चले गए. मैं ने अपनी त्राणकर्ता को देखा. लड़कों जैसा डीलडौल, पर लंबी वेणी बता रही थी कि वह लड़की है. उस ने प्यार से मु?ो उठाया, परिचय पूछा, फिर बोली, ‘मेरा नाम जगवीरी है. सब लोग मु?ो जंगवीर कहते हैं. तुम चिंता मत करो. अब तुम्हें कोई कुछ भी नहीं कहेगा और कोई काम या परेशानी हो तो मु?ो बताना.’

सचमुच उस के बाद मुझे किसी ने परेशान नहीं किया. होस्टल में जगवीरी ने सीनियर विंग में अपने कमरे के पास ही मुझे कमरा दिलवा दिया. मुझे दूसरे जूनियर्स की तरह अपना कमरा किसी से शेयर भी नहीं करना पड़ा. मेस में भी अच्छाखासा ध्यान रखा जाता. लड़कियां मुझे से खिंचीखिंची रहतीं. कभीकभी फुसफुसाहट भी सुनाई पड़ती, ‘जगवीरी की नई ‘वो’ आ रही है.’ लड़के मुझे देख कर कन्नी काटते. इन सब बातों को दरकिनार कर मैं ने स्वयं को पढ़ाई में डुबो दिया. थोड़े दिनों में ही मेरी गिनती कुशाग्र छात्रछात्राओं में होने लगी और सभी प्रोफेसर मु?ो पहचानने तथा महत्त्व भी देने लगे.

जगवीरी कालेज में कभीकभी ही दिखाई पड़ती. 4-5 लड़कियां हमेशा उस के आगेपीछे होतीं.

एक बार जगवीरी मु?ो कैंटीन खींच ले गई. वहां बैठे सभी लड़केलड़कियों ने उस के सामने अपनी फरमाइशें ऐसे रखनी शुरू कर दीं जैसे वह सब की अम्मां हो. उस ने भी उदारता से कैंटीन वाले को फरमान सुना दिया, ‘भाई, जो कुछ भी ये बच्चे मांगें, खिलापिला दे.’

मैं सम?ा गई कि जगवीरी किसी धनी परिवार की लाड़ली है. वह कई बार मेरे कमरे में आ बैठती. सिर पर हाथ फेरती. हाथों को सहलाती, मेरा चेहरा हथेलियों में ले मु?ो एकटक निहारती, किसी रोमांटिक सिनेमा के दृश्य की सी उस की ये हरकतें मु?ो विचित्र लगतीं. उस से इन हरकतों को अच्छी अथवा बुरी की परिसीमा में न बांध पाने पर भी मैं सिहर जाती. मैं कहती, ‘प्लीज हमें पढ़ने दीजिए.’ तो वह कहती, ‘मुनिया, जयपुर आई है तो शहर भी तो देख, मौजमस्ती भी कर. हर समय पढ़ेगी तो दिमाग चल जाएगा.’

वह कई बार मु?ो गुलाबी शहर के सुंदर बाजार घुमाने ले गई. छोटीबड़ी चौपड़, जौहरी बाजार, एम.आई. रोड ले जाती और मेरे मना करतेकरते भी वह कुछ कपड़े खरीद ही देती मेरे लिए. यह सब अच्छा भी लगता और डर भी लगा रहता.

एक बार 3 दिन की छुट्टियां पड़ीं तो आसपास की सभी लड़कियां घर चली गईं. जगवीरी मु?ो राजमंदिर में पिक्चर दिखाने ले गई. उमराव जान लगी हुई थी. मैं उस के दृश्यों में खोई हुई थी कि मु?ो अपने चेहरे पर गरम सांसों का एहसास हुआ. जगवीरी के हाथ मेरी गरदन से नीचे की ओर फिसल रहे थे. मु?ो लगने लगा जैसे कोई सांप मेरे सीने पर रेंग रहा है. जिस बात की आशंका उस की हरकतों से होती थी, वह सामने थी. मैं उस का हाथ ?ाटक अंधेरे में ही गिरतीपड़ती बाहर भागी. आज फिर मन हो रहा था कि घर लौट जाऊं.

मैं रो कर मन का गुबार निकाल भी न पाई थी कि जगवीरी आ धमकी. मु?ो एक गुडि़या की तरह जबरदस्ती गोद में बिठा कर बोली, ‘क्यों रो रही हो मुनिया? पिक्चर छोड़ कर भाग आईं.’

‘हमें यह सब अच्छा नहीं लगता, दीदी. हमारे मम्मीपापा बहुत गरीब हैं. यदि हम डाक्टर नहीं बन पाए या हमारे विषय में उन्होंने कुछ ऐसावैसा सुना तो…’ मैं ने सुबकते हुए कह ही दिया.

‘अच्छा, चल चुप हो जा. अब कभी ऐसा नहीं होगा. तुम हमें बहुत प्यारी लगती हो, गुडि़या सी. आज से तुम हमारी छोटी बहन, असल में हमारे 5 भाई हैं. पांचों हम से बड़े, हमें प्यार बहुत मिलता है पर हम किसे लाड़लड़ाएं,’ कह कर उस ने मेरा माथा चूम लिया. सचमुच उस चुंबन में मां की महक थी.

जगवीरी से हर प्रकार का संरक्षण और लाड़प्यार पाते कब 5 साल बीत गए पता ही न चला. प्रशिक्षण पूरा होने को था तभी बूआ की लड़की के विवाह में मु?ो दिल्ली जाना पड़ा. वहां कुणाल ने, जो दिल्ली में डाक्टर थे, मु?ो पसंद कर उसी मंडप में ब्याह रचा लिया. मेरी शादी में शामिल न हो पाने के कारण जगवीरी पहले तो रूठी फिर कुणाल और मु?ा को महंगेमहंगे उपहारों से लाद दिया.

मैं दिल्ली आ गई. जगवीरी 7 साल में भी डाक्टर न बन पाई, तब उस के भाई उसे हठ कर के घर ले गए और उस का विवाह तय कर दिया. उस के विवाह के निमंत्रणपत्र के साथ जगवीरी का स्नेह, अनुरोध भरा लंबा सा पत्र भी था. मैं ने कुणाल को बता रखा था कि यदि जगवीरी न होती तो पहले दिन ही मैं कालेज से भाग आई होती. मु?ो डाक्टर बनाने का श्रेय मातापिता के साथसाथ जगवीरी को भी है.

जयपुर से लगभग 58 किलोमीटर दूर के एक गांव में थी जगवीरी के पिता की शानदार हवेली. पूरे गांव में सफाई और सजावट हो रही थी. मु?ो और पति को बेटीदामाद सा सम्मानसत्कार मिला. जगवीरी का पति बहुत ही सुंदर, सजीला युवक था. बातचीत में बहुत विनम्र और कुशल. पता चला सूरत और अहमदाबाद में उस की कपड़े की मिलें हैं.

सोचा था जगवीरी सुंदर और संपन्न ससुराल में रचबस जाएगी, पर कहां? हर हफ्ते उस का लंबाचौड़ा पत्र आ जाता, जिस में ससुराल की उबाऊ व्यस्तताओं और मारवाड़ी रिवाजों के बंधनों का रोना होता. सुहाग, सुख या उत्साह का कोई रंग उस में ढूंढ़े न मिलता. गृहस्थसुख विधाता शायद जगवीरी की कुंडली में लिखना ही भूल गया था. तभी तो साल भी न बीता कि उस का पति उसे छोड़ गया. पता चला कि शरीर से तंदुरुस्त दिखाई देने वाला उस का पति गजराज ब्लडकैंसर से पीडि़त था. हर साल छह महीने बाद चिकित्सा के लिए वह अमेरिका जाता था. अब भी वह विशेष वायुयान से पत्नी और डाक्टर के साथ अमेरिका जा रहा था. रास्ते में ही उसे काल ने घेर लिया. सारा व्यापार जेठ संभालता था, मिलों और संपत्ति में हिस्सा देने के लिए वह जगवीरी से जो चाहता था वह तो शायद जगवीरी ने गजराज को भी नहीं दिया था. वह उस के लिए बनी ही कहां थी.

एक दिन जगवीरी दिल्ली आ पहुंची. वही पुराना मर्दाना लिबास. अब बाल भी लड़कों की तरह रख लिए थे. उस के व्यवहार में वैधव्य की कोई वेदना, उदासी या चिंता नहीं दिखी. मेरी बेटी मान्या साल भर की भी न थी. उस के लिए हम ने आया रखी हुई थी.

जगवीरी जब आती तो 10-15 दिन से पहले न जाती. मेरे या कुणाल के ड्यूटी से लौटने तक वह आया को अपने पास उल?ाए रखती. मान्या की इस उपेक्षा से कुणाल को बहुत क्रोध आता. बुरा तो मु?ो भी बहुत लगता था पर जगवीरी के उपकार याद कर चुप रह जाती. धीरेधीरे जगवीरी का दिल्ली आगमन और प्रवास बढ़ता जा रहा था और कुणाल का गुस्सा भी. सब से अधिक तनाव तो इस कारण होता था कि जगवीरी आते ही हमारे डबल बैड पर जम जाती और कहती, ‘यार, कुणाल, तुम तो सदा ही कनक के पास रहते हो, इस पर हमारा भी हक है. दोचार दिन ड्राइंगरूम में ही सो जाओ.’

 

कुणाल उस के पागलपन से चिढ़ते ही थे, उस का नाम भी उन्होंने डाक्टर पगलानंद रख रखा था. परंतु उस की ऐसी हरकतों से तो कुणाल को संदेह हो गया. मैं ने लाख सम?ाया कि वह मुझे छोटी बहन मानती है पर शक का जहर कुणाल के दिलोदिमाग में बढ़ता ही चला गया और एक दिन उन्होंने कह ही दिया, ‘कनक, तुम्हें मु?ा में और जगवीरी में से एक को चुनना होगा. यदि तुम मु?ो चाहती हो तो उस से स्पष्ट कह दो कि तुम से कोई संबंध न रखे और यहां कभी न आए, अन्यथा मैं यहां से चला जाऊंगा.’

यह तो अच्छा हुआ कि जगवीरी से कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ी. उस के भाइयों के प्रयास से उसे ससुराल की संपत्ति में से अच्छीखासी रकम मिल गई. वह नेपाल चली गई. वहां उस ने एक बहुत बड़ा नर्सिंगहोम बना लिया. 10-15 दिन में वहां से उस के 3-4 पत्र आ गए, जिन में हम दोनों को यहां से दोगुने वेतन पर नेपाल आ जाने का आग्रह था.

मु?ो पता था कि जगवीरी एक स्थान पर टिक कर रहने वाली नहीं है. वह भारत आते ही मेरे पास आ धमकेगी. फिर वही क्लेश और तनाव होगा और दांव पर लग जाएगी मेरी गृहस्थी. हम ने मकान बदला, संयोग से एक नए अस्पताल में मु?ो और कुणाल को नियुक्ति भी मिल गई. मेरा अनुमान ठीक था. रमता जोगी जैसी जगवीरी नेपाल में 4 साल भी न टिकी. दिल्ली में हमें ढूंढ़ने में असफल रही तो मेरे मायके जा पहुंची. मैं ने भाईभाभियों को कुणाल की नापसंदगी और नाराजगी बता कर जगवीरी को हमारा पता एवं फोन नंबर देने के लिए कतई मना किया हुआ था.

जगवीरी ने मेरे मायके के बहुत चक्कर लगाए, चीखी, चिल्लाई, पागलों जैसी चेष्टाएं कीं परंतु हमारा पता न पा सकी. तब हार कर उस ने वहीं नर्सिंगहोम खोल लिया. शायद इस आशा से कि कभी तो वह मु?ा से वहां मिल सकेगी. मैं इतनी भयभीत हो गई, उस पागल के प्रेम से कि वारत्योहार पर भी मायके जाना छूट सा गया. हां, भाभियों के फोन तथा यदाकदा आने वाले पत्रों से अपनी अनोखी सखी के समाचार अवश्य मिल जाते थे जो मन को विषाद से भर जाते.

उस के नर्सिंगहोम में मुफ्तखोर ही अधिक आते थे. जगवीरी की दयालुता का लाभ उठा कर इलाज कराते और पीठ पीछे उस का उपहास करते. कुछ आदतें तो जगवीरी की ऐसी थीं ही कि कोई लेडी डाक्टर, सुंदर नर्स वहां टिक न पाती. सुना था किसी शांति नाम की नर्स को पूरा नर्सिंगहोम, रुपएपैसे उस ने सौंप दिए. वे दोनों पतिपत्नी की तरह खुल्लमखुल्ला रहते हैं. बहुत बदनामी हो रही है जगवीरी की. भाभी कहतीं कि हमें तो यह सोच कर ही शर्म आती है कि वह तुम्हारी सखी है. सुनसुन कर बहुत दुख होता, परंतु अभी तो बहुत कुछ सुनना शेष था. एक दिन पता चला कि शांति ने जगवीरी का नर्सिंगहोम, कोठी, कुल संपत्ति अपने नाम करा कर उसे पागल करार दे दिया. पागलखाने में यातनाएं ?ोलते हुए उस ने मु?ो बहुत याद किया. उस के भाइयों को जब इस स्थिति का पता किसी प्रकार चला तो वे अपनी नाजों पली बहन को लेने पहुंचे. पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी, अनंत यात्रा पर निकल चुकी थी जगवीरी.

मैं सोच रही थी कि एक ममत्व भरे हृदय की नारी सामान्य स्त्री का, गृहिणी का, मां का जीवन किस कारण नहीं जी सकी. उस के अंतस में छिपे जंगवीर ने उसे कहीं का न छोड़ा. तभी मेरी आंख लग गई और मैं ने देखा जगवीरी कई पैकेटों से लदीफंदी मेरे सिरहाने आ बैठी, ‘जाओ, मैं नहीं बोलती, इतने दिन बाद आई हो,’ मैं ने कहा. वह बोली, ‘तुम ने ही तो मना किया था. अब आ गई हूं, न जाऊंगी कहीं.’

तभी मुझे मान्या की आवाज सुनाई दी, ‘‘मम्मा, किस से बात कर रही हो?’’ आंखें खोल कर देखा शाम हो गई थी.

संस्कार : रेलगाड़ी में वह किस वजह से असुरक्षित महसूस कर रही थी ?

लगभग 3 वर्ष बाद मैं लखनऊ जा रही थी. लखनऊ मेरे लिए एक शहर ही नहीं, एक तीर्थ है, क्योंकि वह मेरा मायका है. उस शहर में पांव रखते ही जैसे मेरा बचपन लौट आता है. 10 दिन के बाद भैया की बड़ी बेटी शुभ्रा की शादी थी. मैं और मेघना दोपहर की गाड़ी से जा रही थीं. राजीव बाद में पहुंचने वाले थे. कुछ तो इन्हें काम की अधिकता थी, दूसरे इन की तो ससुराल है. ऐनवक्त पर पहुंच कर अपना भाव भी तो बढ़ाना था.

मेरी बात और है. मैं ने सोचा था कि कुछ दिन वहां चैन से रहूंंगी, सब से मिलूंगी. बचपन की यादें ताजा करूंगी और कुछ भैयाभाभी के काम में भी हाथ बंटाऊंगी. शादी वाले घर में सौ तरह के काम होते हैं.

अपनी शादी के बाद पहली बार मैं शादी जैसे अवसर पर मायके जा रही थी. मां का आग्रह था कि मैं पूरी तैयारी के साथ आऊं. मां पूरी बिरादरी को दिखाना चाहती थीं कि आखिर उन की बेटी कितनी सुखी है, कितनी संपन्न है या शायद दूर के रिश्ते की बूआ को दिखाना चाहती होंगी, जिन का लाया रिश्ता ठुकरा कर मां ने मुझे दिल्ली में ब्याह दिया था. लक्ष्मी बूआ भी तो उस दिन से सीधे मुंह बात नहीं करतीं.

शुभ्रा के विवाह में जाने का कुछ तो अपना ही चाव कम नहीं था, उस पर मां का आग्रह. हम दोनों, मांबेटी ने बड़े ही मनोयोग से समारोह में शामिल होने की तैयारी की थी. हर मौके पर पहनने के लिए नई और आधुनिक पोशाक, उस से मैचिंग चूड़ियां, गहने, सैंडिल और न जाने क्याक्या जुटाया गया.

पूरी उमंग और उत्साह के साथ हम स्टेशन पहुंचे. राजीव हमें विदा करने आए थे. हमारे सहयात्री कालेज के लड़के थे, जो किसी कार्यशाला में भाग लेने लखनऊ जा रहे थे. हालांकि गाड़ी चलने से पहले वे सब अपने सामान के यहांवहां रखरखाव में ही लगे थे, फिर भी उन्हें देख कर मैं कुछ परेशान हो उठी. मेरी परेशानी शायद मेरे चेहरे से झलकने लगी थी, जिसे राजीव ने भांप लिया था. ऐसे में वह कुछ खुल कर तो कह न पाए, लेकिन मुझे होशियार रहने के लिए जरूर कह गए. यही कारण था कि चलतेचलते उन्होंने उन लड़कों से भी कुछ इस तरह से बात की, जिस से यात्रा के दौरान माहौल हलकाफुलका बना रहे. गाड़ी ने रफ्तार पकड़ी. हम अपनी मंजिल की तरफ बढ़ने लगे. लड़कों में अपनीअपनी जगह तय करने के लिए छीनाझपटी, चुहलबाजी शुरू हो गई.

वैसे, मुझे युवा पीढ़ी से कभी कोई शिकायत नहीं रही. न ही मैं ने कभी अपने और उन में कोई दूरी महसूस की है. मैं तो हमेशा घरपरिवार के बच्चों और नौजवानों की मनपसंद आंटी रही हूं. मेरा तो मानना है कि नौजवानों के बीच रह कर अपनी उम्र के बढ़ने का एहसास ही नहीं होता, लेकिन उस समय मैं लड़कों की शरारतों और नोकझोंक से कुछ परेशान सी हो उठी थी.

ऐसा नहीं कि बच्चे कुछ गलत कर रहे थे. शायद मेरे साथ मेघना का होना मुझे उन के साथ जुड़ने नहीं दे रहा था. कुछ आजकल के हालात भी मुझे परेशान किए हुए थे. देखने में तो सब भले घरों के लग रहे थे, फिर भी एकसाथ 6 लड़कों का ग्रुप, उस पर किसी बड़े का उन के साथ न होना, उस पर उम्र का ऐसा मोड़, जो उन्हें शांत, सौम्य और गंभीर नहीं रहने दे रहा था. मैं भला परेशान कैसे न होती.

मेरा ध्यान शुभ्रा की शादी, मायके जाने की खुशी और रास्ते के बागबगीचों, खेतखलिहानों से हट कर बस, उन लड़कों पर केंद्रित हो गया था. थोड़ी ही देर में हम उन लड़कों के नामों से ही नहीं, आदतों से भी परिचित हो गए.

घुंघराले बालों वाला सांवला सा, नाटे कद का अंकित फिल्मों का शौकीन लगता था. उस के उठनेबैठने में फिल्मी अंदाज था तो बातचीत में फिल्मी डायलौग और गानों का पुट था. एक लड़के को सब सैम कह कर बुला रहे थे. यह उस के मातापिता का रखा नाम तो नहीं लगता था, शायद यह दोस्तों द्वारा किया गया नामकरण था. चुस्तदुरुस्त सैम चालढाल और पहनावे से खिलाड़ी लगता था. मझली कदकाठी वाला ईश ग्रुप का लीडर जान पड़ता था. नेवीकट बाल, मूंछों की पतली सी रेखा और बड़ीबड़ी आंखों वाले ईश से पूछे बिना लड़के कोई काम नहीं कर रहे थे. बिना मैचिंग की ढीलीडाली टीशर्ट पहने, बिखरे बालों वाला, बेपरवाह तबीयत वाला समीर था, जो हर समय चुइंगम चबाता हुआ बोलचाल में अंगरेजी शब्दों का इस्तेमाल ज्यादा कर रहा था.

मेरे पास बैठे लड़के का नाम मनीष था. लंबा, गोराचिट्टा, नजर का चश्मा पहने वह नीली जींस और कीमती टीशर्ट में बड़ा स्मार्ट लग रहा था. कुछ शर्मीले स्वभाव का पढ़ाकू सा लगने वाला मनीष एक अंगरेजी नोवल ले कर बैठा ही था कि आगे बढ़ कर रजत ने उस का नोवल छीन लिया. रजत बड़ा ही चुलबुला, गोलमटोल हंसमुख लड़का था. हंसते हुए उस के दोनों गालों पर गड्ढे पड़ते थे. रजत पूरे रास्ते हंसताहंसाता रहा. पता नहीं क्यों मुझे लगा कि उस की हंसी, उस की शरारतें, सब मेघना के कारण हैं. इसलिए हंसना तो दूर, मेरी नजरों का पहरा हरदम मेघना पर बैठा रहा.

मेरे ही कारण मेघना बेचारी भी दबीघुटी सी या तो खिड़की से बाहर झांकती रही या आंखें बंद कर के सोने का नाटक करती रही. अपने हमउम्र उन लड़कों के साथ न खुल कर हंस पाई, न ही उन की बातचीत में शामिल हो सकी. वैसे न मैं ही ऐसी मां हूं और न मेघना ही इतनी पुरातनपंथी है. वह तो हमेशा सहशिक्षा में ही पढ़ी है. वह क्या कालेज में लड़कों के साथ बातचीत, हंसीमजाक नहीं करती होगी. फिर भी न जाने क्यों, शायद घर से दूरी या अकेलापन मेरे मन में असुरक्षा की भावना को जन्म दे गया था. उन से परिचय के आदानप्रदान और बातचीत में मैं ने कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई. मुझे लगा, वे मेघना तक पहुंचने के लिए मुझे सीढ़ी बनाएंगे. उन लड़कों के बहानों से उठी नजरें जब मेघना से टकरातीं तो मैं बेचैन हो उठती. उस दिन पहली बार मेघना मुझे बहुत ही खूबसूरत नजर आई और पहली बार मुझे बेटी की खूूबसूरती पर गर्व नहीं, भय हुआ. मुझे शादी में इतने दिन पहले इस तरह जाने के अपने फैसले पर भी झुंझलाहट होने लगी थी. वास्तव में मायके जाने की खुशी में मैं भूल ही गई थी कि आजकल औरतों का अकेले सफर करना कितना जोखिम का काम है. वह सभी खबरें जो पिछले दिनों मैं ने अखबारों में पढ़ी थीं, एकएक कर के मेरे दिमाग पर दस्तक देने लगीं.

कई घंटों के सफर में आमनेसामने बैठे यात्री भला कब तक अपने आसपास से बेखबर रह सकते हैं. काफी देर तक तो हम दोनों मुंह सी कर बैठी रहीं, लेकिन धीरेधीरे दूसरी तरफ से परिचय पाने की उत्सुकता बढ़ने लगी. शायद यात्रा के दौरान यह स्वाभाविक भी था. यदि सामने कोई परिवार बैठा होता तो क्या खानेपीने की चीजों का आदानप्रदान किए बिना हम रहतीं और सफर में कुछ महिलाओं का साथ होता तो क्या वे ऐसे ही अनजबी बनी रहतीं. उन कुछ घंटों के सफर में तो हम एकदूसरे के जीवन का भूगोल, इतिहास, भूत, वर्तमान सब बांच लेतीं.

चूंकि वे जवान लड़के थे और मेरे साथ मेरी जवान बेटी थी, इसलिए उन की उठी हर नजर मुझे अपनी बेटी से टकराती लगती. उन कही हर बात उसी को ध्यान में रख कर कही हुई लगती. उन की हंसीमजाक में मुझे छींटाकशी और ओछापन नजर आ रहा था. कुछ घंटों का सफर जैसे सदियों में फैल गया था. दोपहर कब शाम में बदली और शाम कब रात में बदल गई, मुझे खबर ही न हुई, क्योंकि मेरे अंदर भय का अंधेरा बाहर के अंधेरे से ज्यादा घना था.

हालांकि जब भी कोई स्टेशन आता, लड़के हम से पूछते कि हमें चायपानी या किसी अन्य चीज की जरूरत तो नहीं. उन्होंने मेघना को गुमसुम बैठे बोर होते देखा तो अपनी पत्रपत्रिकाएं भी पेश कर दीं. जबजब उन्होंने कुछ खाने के लिए पैकेट खोले तो बड़े आदर से पहले हमें पूछा. हालांकि हम हमेशा मना करती रहीं.

मैं ने अपनेआप को बहुत समझाया कि जब आपत्ति करने लायक कोई बात नहीं तो मैं क्यों परेशान हो रही हूं. मैं क्यों सहज नहीं हो जाती, लेकिन तभी मन के किसी कोने में बैठा भय फन फैला देता. कहीं मेरी जरा सी ढील, बात को इतनी दूर न ले  जाए कि मैं उसे समेट ही न सकूं. मैं तो पलपल यही मना रही थी कि यह सफर खत्म हो और मैं खुली हवा में सांस ले सकूं.

कानपुर स्टेशन आने वाला था. गाड़ी वहां कुछ ज्यादा देर के लिए रुकती है. डब्बे में स्वाभाविक हलचल शुरू हो गई थी, तभी एक अजीब सा शोर कानों से टकराने लगा. गाड़ी की रफ्तार धीमी हो गई थी. स्टेशन आतेआते बाहर का कोलाहल कर्णभेदी हो गया था. हर कोई खिड़कियों से बाहर झांकने की कोशिश कर ही रहा था कि गाड़ी प्लेटफार्म पर आ लगी. बाहर का दृश्य सन्न कर देने वाला था. हजारों लोग गाड़ी के पूरी तरह रुकने से पहले ही उस पर टूट पड़े थे, जैसे शेर शिकार पर झपटता है. स्टेशन पर चीखपुकार, लड़ाईझगड़ा, गालीगलौज, हर तरफ आतंक का वातावरण था.

इस से पहले कि हम कुछ समझते, बीसियों लोग डब्बे में चढ़ कर हमारी सीटों के आसपास, यहांवहां जुटने लगे, जैसे गुड़ की डली पर मक्खियां चिपकती चली जाती हैं. वह स्टेशन नहीं, मानो मनुष्यों के समुद्र पर बंधा हुआ बांध था, जो गाड़ी के आते ही टूट गया था. प्लेटफार्म पर सिर ही सिर नजर आ रहे थे. तिल रखने को भी जगह नहीं थी.

कई सिर खिड़कियों से अंदर घुसने की कोशिश कर रहे थे. मेघना ने घबरा कर खिड़की बंद करनी चाही तो कई हाथ अंदर आ गए, जो सबकुछ झपट लेना चाहते थे. मेघना को पीछे हटा कर सैम और अंकित ने खिड़कियां बंद कर दीं. पलट कर देखा मनीष, रजत और ईश, तीनों अंदर घुस आए आदमियों के रेवड़ को खदेड़ने में लगे थे. किसी को धकिया रहे थे तो किस से हाथापाई हो रही थी. समीर ने सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए जल्दीजल्दी सारा सामान बंद खिड़कियों के पास इकट्ठा करना शुरू कर दिया.

लड़कों को उन धोतीकुरताधारी, निपट देहातियों से उलझते देख कर जैसे ही मैं ने हस्तक्षेप करना चाहा तो ईश और सैम एकसाथ बोल उठे, आंटीजी, आप दोनों निश्चिंत  हो कर बैठिए. बस, जरा सामान पर नजर रखिएगा. इन से तो हम निबट लेंगे.

तब याद आया कि सुबह लखनऊ में एक विशाल राजनीतिक रैली होने वाली थी, जिस में भाग लेने यह सारी भीड़ लखनऊ जा रही थी. लगता था जैसे रैली के उद्देश्य और उस की जरूरत से उस में भाग लेने वाले अनभिज्ञ थे. ठीक, वैसे ही उस रैली के परिणाम और इस से आम आदमी को होने वाली परेशानी से रैली आयोजक भी अनभिज्ञ थे.

पूरी गाड़ी में लूटपाट और जंग छिड़ी थी. जैसे वह गाड़ी न हो कर शोर और दहशत का बवंडर था, जो पटिरयों पर दौड़ता चला जा रहा था. लड़कों का पूरा ग्रुप हम दोनों, मांबेटी की हिफाजत के लिए डट गया था. एक मजबूत दीवार खड़ी थी हमारे और अनचाही भीड़ के बीच, उन छहों की तत्परता, लगन और निष्ठा को देख कर मैं मन ही मन नतमस्तक थी. उस पल शायद मेरा अपना बेटा भी होता तो क्या इस तरह अपनी मां और बहन की रक्षा कर पाता.

कानपुर से लखनऊ तक के उस कठिन सफर में वे न बैठे, न उन्होंने कुछ खायापिया. इस बीच में अपनी शरारतें, चुहलबाजी, फिल्मी अंदाज, सबकुछ भूल गए थे. उन के सामने जैसे एक ही उद्देश्य था, हमारी और सामान की हिफाजत.

मैं आत्मग्लानि की दलदल में धंसती जा रही थी. इन बच्चों के लिए मैं ने क्या धारण बना ली थी, जिस के कारण मैं ने एक बार भी इन से ठीक व्यवहार नहीं किया. एक बार भी इन से प्यार से नहीं बोली, न ही इन के हासपरिहास अथवा बातचीत में शामिल हुई. क्या परिचय दिया मैं ने अपनी शिक्षा, अनुभव, सभ्यता और संस्कारों का. और बदले में इन्होंने दिया इतना शिष्ट सम्मान और सुरक्षा.

उस दिन पहली बार एहसास हुआ कि वास्तव में महिलाओं का अकेले यात्रा करना कितना असुरक्षित है. साथ ही एक सीख भी मिली कि कम से कम शादीब्याह तय करते समय या यात्रा पर निकलने से पहले हमें शहर में होने वाली राजनीतिक रैलियों, जलसे, जुलूसों की जानकारी भी ले लेनी चाहिए. उस दिन महिलाओं के साथ घटी दुर्घटनाएं अखबारों के मुखपृष्ठ की सुर्खी बन कर रह गईं. कुछ घटनाओं को तो वहां भी जगह नहीं मिल पाई.

लखनऊ स्टेशन का हाल तो उस से भी बुरा था. प्लेटफार्म तो जैसे कुरुक्षेत्र का मैदान बन गया था.

सामान, बच्चे, महिलाओं को ले कर यात्री उस भीड़ से निबट रहे थे. चीखपुकार मची थी. भीड़ स्टेशन की दुकानें लूट रही थी. दुकानदार अपना सामान बचाने में लगे थे. प्रलय का सा आतंक हर यात्री के चेहरे पर स्पष्ट नजर आ रहा था. मेरी तो आंखों के सामने अंधेरा सा छाने लगा था. इतना सारा कीमती सामान और साथ में खूबसूरत जवान बेटी. उस पर किसी भीड़ जिस की न कोई नैतिकता, न सोच, बस, एक उन्माद होता है.

वैसे तो भैया हमें लेने स्टेशन आए हुए थे, लेकिन उस भीड़ में हम उन्हें कहां मिलते. उस भीड़ में तो सामान उठाने के लिए कुली भी न मिल सका. उन लड़कों के पास अपना तो मात्र एकएक बैग था. अपने बैग के साथ सैम ने हमारी बड़ी अटैची उठा ली. छोटी अटैची मेरे मना करने पर भी मनीष ने उठा ली. मेेघना के पास पानी की बोतल और मेरे पास मात्र मेरा पर्स रह गया. हमारे दोनों बैग भी ईश और अंकित के कंधों पर लटक गए थे. उन सब ने भीड़ में एकदूसरे के हाथ पकड़ कर एक घेरा सा बना लिया, जिस के बीच हम दोनों चल रही थीं. उन्होंने हमें स्टेेशन से बाहर ऐसे सुरक्षित निकाल लिया, जैसे आग से बचा कर निकाल लाए हों.

मेरे पास उन का शुक्रिया अदा करने के लिए शब्द नहीं थे. उस दिन अगर वे नहीं होते तो पता नहीं क्या हो जाता, इतना सोचने मात्र से मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं. मैं ने जब उन का आभार प्रकट किया तो उन्होंने बड़े ही सहज भाव से मुसकराते हुए कहा था, ‘‘क्या बात करती हैं आप, यह तो हमारा फर्ज था.’’

दिल ही दिल में सैकड़ों आशीर्वाद देते हुए मैं ने उन्हें शुभ्रा की शादी में शामिल होने की दावत दी, लेकिन उन का आना संभव नहीं था क्योंकि वे मात्र 4 दिनों के लिए लखनऊ एक कार्यशाला में शामिल होने आए थे. उन के लिए 10 दिन रुकना असंभव था. फिर भी एक शाम हम ने उन्हें खाने पर बुलाया. सब से उन का परिचय करवाया. वह मुलाकात बहुत ही सहज, रोचक और यादगार रही. सभी लड़के सुशिक्षित, सभ्य और मिलनसार थे.

हम लोग अकसर युवा पीढ़ी को गैरजिम्मेदार, संस्कारविहीन और दिशाहीन कहते हैं, लेकिन हमारा ही अंश और हमारे ही दिए संस्कारों को ले कर बड़ी हुई यह युवा पीढ़ी भला हम से अलग सोच वाली कैसे हो सकती है. जरूर उन्हें समझने में कहीं न कहीं हम से ही चूक हो जाती है.

ऐ चांद जहां वो जाएं

आज से लगभग 60 साल पहले की बात है. तब मैं हरिद्वार के पन्ना लाल भल्ला इंटर कालेज में 10वीं क्लास में पढ़ता था. मेरे पिताजी हरिद्वार में स्टेशन मास्टर थे. हरिद्वार का अपना ही महत्त्व था. भारत के दूरदराज से आने वाले यात्रियों के लिए रेलगाड़ी ही एकमात्र साधन था. शायद अंगरेजों ने इसी के चलते सोचा होगा कि यहां किसी  वक्त बहुत बड़ी लड़ाई हुई होगी, इसलिए स्टेशन मास्टर साहब के रहने के लिए वैस्टर्न स्टाइल का घर बनाया.

हमारे घर की बाउंड्री वाल के साथ सड़क के किनारे पर एक झोंपड़ी थी. इस में सतीश मेरा दोस्त रहता था. उस के पिता मोची थे, जो सड़क के किनारे बैठ कर लोगों के जूतों की मरम्मत व पौलिश किया करते थे. मांबाप की इकलौती औलाद थी सतीश, जिस पर उन की उम्मीदें टिकी थीं. अपना पेट काट कर वे सतीश की पढ़ाई और देहरादून में रहने का खर्च उठाते थे. सतीश देहरादून के डीएवी कालेज से एमए इंगलिश लिटरेचर में अपनी पढ़ाई कर रहा था. लगभग 21-22 साल का नौजवान, दरमियाना कद, पतला शरीर और सब से अधिक प्रभावित करने वाली थी उस की गहरे सांवले रंग की आंखें, जो उस के काले रंग के बावजूद किसी को भी आकर्षित कर सकती थीं. उस का सपना था कि वह आईएएस अफसर बनेगा.

सतीश के इंगलिश विभाग के हैड प्रोफैसर शुक्ला का मानना था कि वह एक दिन जरूर बड़ा आदमी बनेगा. यहां तक कि वह चाहते थे कि एमए पूरी करने के बाद वह कालेज में ही इंगलिश विभाग का प्रोफैसर बने. इतनी खूबियों का मालिक होने के बावजूद वह जब भी गाता तो सुनने वाले उस के मुरीद हो जाते. वह बात करता तो ऐसा लगता मानो घंटियां बज रही हैं.

घर के ही पास रहने और देहरादून में पढ़ने के चलते मेरी दोस्ती सतीश से हो गई थी. वह गाहेबगाहे हमारे घर आता. शायद उसे अहसास हो गया था कि उस के घरेलू हालात को देखतेजानते भी हम कोई भेदभाव नहीं करते. कहना न होगा कि वह हमारे परिवार का एक सदस्य ही बन गया था. मैं भी सतीश के पास झोंपड़ी में जाता तो उस की मां बड़े प्रेम से एक पुरानी प्याली में चाय पिलाती. झोंपड़ी में घरगृहस्थी का थोड़ा सा ही सामान था. हां, सतीश की पढ़ाई की मोटीमोटी किताबें एक पुरानी लक्कड़ की अलमारी में करीने से सजी हुई थीं.

जब भी सतीश कालेज से गरमियों की छुट्टियों में हरिद्वार आता तो हम दोनों गंगा पर बने पुल मायापुर डैम, जो हमारे घर से 2 किलोमीटर और था, में शाम को साथसाथ जाते.

यों तो आज से 60 साल पहले का हरिद्वार भक्तिपूर्ण वातावरण के कारण हरि का द्वार था. गंगा की धारा पर बने मायापुरी डैम का अपना ही आकर्षण था. शाम के झुटपुटे में गंगा की पवित्र कलकल करती धारा, क्षितिज के पार सूर्य नारायण की ब्रह्मांड की यात्रा से थक कर जल धारा पर पड़ती रंगबिरंगी किरणें और गंगा के साथ मंदमंद बहती बयार हमें अलग ही दुनिया में ले जाती थी.

मायापुरी डैम के किनारे पड़ी बैंच पर हम दोनों बैठ जाते. ऐसे माहौल में सतीश अपने कालेज के बारे में खुल कर बातें किया करता था और मैं 10वीं कक्षा का छात्र उस की बातें बड़े चाव से सुनता.

उस ने बताया कि कालेज के वार्षिकोत्सव में उस ने शैक्सपियर के एक नाटक में हीरो और उस की कक्षा में पढ़ने वाली लड़की मानसी ने हीरोइन का पार्ट किया था, जिस में उन्हें प्रथम पुरस्कार मिला था. मानसी का जिक्र करते ही उस का चेहरा चमक उठता था.

…और फिर शुरू होता सिलसिला गानों का. मेरा चहेता गाना वह जरूर गाता था, ‘‘रमैया वस्ता वईय्या, रमैया वस्ता वईय्या, मैं ने दिल तुझ को दिया…’’

सतीश की आवाज में ऐसी कशिश थी कि डैम पर सैर करने वाले सैर छोड़ कर हमारी बैंच के आसपास व गाने सुनने को खड़े हो जाते थे. पर उस का सब से चहेता गाना था, जिसे वह पूरी शिद्दत से गाता था,    ‘‘ऐ चांद जहां वो जाएं तू भी साथ चले जाना, वैसे है कहां है वो हर रात खबर लाना…’’ गाते हुए वह किसी और ही दुनिया में खो जाता था.

10वीं कक्षा पास कर ली थी. पिताजी का भी हरिद्वार से ट्रांसफर हो गया था. मेरे जाने के दिन नजदीक आ रहे थे. पर, सतीश गरमियों की छुट्टियों में नहीं आया था. एक दिन मैं उस के मांबाप से मिलने उस की झोंपड़ी में गया, तो बाहर ताला लगा हुआ था. मैं सोच ही रहा था कि क्या करूं, तभी हमारे रेलवे के टिकट बाबू मिश्रा अंकल भी जो पास ही रेलवे क्वार्टर में रहते थे, मुझे अकसर सतीश के साथ देखते थे. वे हाथ हिला कर मुझे बुला रहे थे. मैं उन के पास चला गया. कमरे में पड़ी हुई कुरसी पर बैठते हुए मैं ने पूछा, ‘‘सतीश के घर पर ताला लगा हुआ है, क्या वे सब कहीं गए हैं?”

मिश्रा अंकल ने लड़खड़ाती आवाज में कहा, ‘‘सतीश ने कुछ दिन पहले मायापुरी डैम से गंगा में कूद कर आत्महत्या कर ली है,’’ कहते हुए उन की आंखें नम हो गई थीं.

मुझे लगा कि मैं ने कुछ गलत सुन लिया है. मिश्रा अंकल रुंधे गले से बोले जा रहे थे, “गुरबीर, उस की क्लास में एक लड़की पढ़ती थी, कालेज में एक ड्रामे के दौरान उन की दोस्ती हो गई. वे एकदूसरे को चाहने लगे थे. वह जानती थी कि सतीश एमए इंगलिश में कालेज ही नहीं यूनिवर्सिटी का सब से मेधावी छात्र है. उस का आईएएस अफसर बनने का सपना साकार हो कर रहेगा.”

मैं मूक बना सुन रहा था और मिश्रा अंकल बोले जा रहे थे, ‘‘लड़की का नाम मानसी था और वह देहरादून के एक प्रतिष्ठित अमीर घराने की लड़की थी.”

सतीश ने उस से यह बात छिपाई थी कि उस के पिता एक मोची हैं और वह लोगों के जूते पौलिश, मरम्मत करते हैं. हो सकता है कि  उस ने इस डर से कि लड़की उस से मिलनाजुलना न बंद कर दे, सचाई नहीं बताई.

मैं ने देखा कि मिश्रा अंकल की पत्नी भी कमरेे में आ गई थीं. उन की भी आंखें नम थीं. मिश्रा अंकल ने कहा, ‘‘लड़की के पिता को उन के प्रेम संबंधों की जानकारी हो गई थी. उस के पिता ने हरिद्वार में रह रहे अपने मित्रों, संबंधियों से सतीश के बारे में जानकारी हासिल कर ली थी. लड़की के मातापिता हरिद्वार आए, लड़की भी उन के साथ थी. लड़की को सतीश की सचाई के बारे में पता चल चुका था. उस ने अपनी आंखों से सतीश की झोंपड़ी, जिस में उस का परिवार रहता था, सड़क के किनारे बैठे मोची को उस के पिता ने देख लिया था. लड़की ने सतीश के सामने सारी बातें खोल दी थीं, उस ने सतीश से बोलनाचालना बंद कर दिया था. लड़की के पिता ने सतीश को कालेज छोड़ने के लिए कहा और ऐसा न करने पर जान से मारने की धमकी दी. सतीश ने पढ़ाई छोड़ दी थी और वह हरिद्वार अपने मांबाप के पास आ गया था. अब वह पहले वाला आशाविश्वास से भरा सतीश नहीं रह गया था. उस ने लोगों से मिलनाजुलना बंद कर दिया था. वह अपने में ही खोयाखोया सा रहता था और घर में ही पड़ा रहता था.

मिश्रा आंटी की आंखों में आंसू थे. वे कह रही थीं, ‘‘गुरबीर, कितना बुरा हुआ एक होनहार बच्चे का ऐसा दर्द भरा अंत. उस के मांबाप इस सदमे को बरदाश्त नहीं कर पाए. दोनों झोंपड़ी में ताला लगा कर कहीं चले गए हैं. कुछ लोग कहते हैं कि अपने गांव चले गए  है… पर पता नहीं, वे कहां गए हैं.

आज 60 साल से भी अधिक हो गए हैं, पर सतीश नहीं भूलता और न ही भूलता है उस का गाना, ‘‘ऐ चांद जहां वो जाएं तू भी साथ चले जाना…’’

बेटियां होने का दंश

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा खूब जोरशोर से उछाला जाता है लेकिन समाज में माहौल ऐसा बना हुआ है कि बेटी बचाओ, उस का अपहरण करो, उसे रौंदो और रोता या मरता छोड़ जाओ. दिल्ली के पास हरियाणा के पलवल शहर में स्कूल जाती 11वीं क्लास की एक लडक़ी का 3 लडक़ों ने अपहरण कर उस का रेप किया और फिर उसे छोड़ कर भाग गए.

पुलिस इस में क्या करती है, कानून क्या कहता है, दोषियों को सजा होती है या नहीं, पीड़ितों को समाज में सही स्थान मिल पाता है या नहीं, असल में ये बातें दीगर हैं. मुख्य तो यह है कि यह समाज कैसा है जो अभीअभी जवान हुए लडक़ों को इस प्रकार का रिस्क लेने की हिम्मत दे देता है. यह हिम्मत घरों से मिलती हैं. टीवी, अखबारों या अपराध कथाओं से नहीं मिलती यह हिम्मत.

जिन घरों के लडक़े इस प्रकार के क्राइम चलतेचलते कर डालते हैं जिन में पैसा नहीं मिलता, सिर्फ कुछ मिनटों का सुख मिलता है, वे उन घरों से आते हैं जहां इस बात पर आंखें तानी जाती हैं चाहे खुद के घर में बहनबेटी हों. ऐसे हर पुरुष को भरोसा होता है कि वह अपने घर की बेटी या बहन का तो कुछ नहीं होने देगा पर बाहर की लडक़ी का वह कुछ भी कर ले, उस का कुछ नहीं बिगड़ेगा.

समाज चाहे तो यह बंद करा सकता है क्योंकि समाज किसी को यह काम मंदिर में घुस कर करने की इजाजत नहीं देता और ये बिगड़ैल लडक़े भी यह मानते हैं. अपने धर्म की जगह पर लंगर लगाना हो, मेला लगाना हो, जुलूस निकालना हो, ये धर्म की एक आवाज पर इकट्ठे हो जाते हैं. जब धर्म का इतना जोर चलता है तो वह इन बिगड़ैलों से यह क्यों नहीं कह सकता कि जब तक पूरी सहमति न हो, किसी लडक़ी की ओर आंख उठा कर भी न देखो.

असल में धर्म चाहता है कि लड़कियों को परेशान किया जाए क्योंकि तभी वे अकेला आसरा किसी भगवान, अल्ला ईश्वर में मानेंगी और अगर उन के मन में बैठ गया कि वे दूषित हो चुकी हैं तो धर्म के दुकानदारों को बैठेबिठाए ग्राहक मिल जाते हैं. बहुत सी ऐसी लड़कियां तो किसी आश्रम में सहारा ले लेती हैं जहां न जाने क्याक्या होता है.

Raksha Bandhan : भाई के लिए ऐसे बनाएं बूंदी के लड्डू

भाई – बहनों के पवित्र रिश्ते का त्योहार रक्षा बंधन का सभी को इंतजार रहता है. इस दिन सभी बहने अपने भाई को स्पेशल फील कराती हैं. तो वहीं कुछ बहनें अपने भाई के लिए उनके पसंद की मिठाई बनाती हैं. अगर आप भी करना चाहती हैं अपने भाई को स्पेशल फील तो बनाएं इस आसान विधि से बूंदी  के लड्डू.

सामग्री :

– बेसन 250 ग्राम
– सूजी 50 ग्राम
– चीनी 400 ग्राम
– छोटी इलायची 3-4
– बूंदी बनाने वाले सांचा या छन्नी/झारा
– पानी 2 लीटर
– एक लीटर तेल
– एक कड़ाही
– खाने वाला पीला कलर
– खाने वाला हरा कलर
– खाने वाला संतरा कलर
– आटा चालने वाली चलनी

 विधि : 

– एक बड़े कटोरे या बर्तन में बेसन और सूजी डालकर अच्छी तरह मिला लें. – इसके बाद इसमें धीरे-धीरे पानी डालते हुए मिलाते जाएं. एक बार में ही पूरा पानी डालें नहीं तो बूंदी का घोल पतला हो जाएगा.
– बेसन भी मीडियम साइज में पिसा हुआ लें. इसमें सूजी मिलान से बूंदी अच्छी तरह से चाशनी सोख लेगी. लड्डू भी शानदार बनेंगे.
– घोल में पानी डालते जाएं और इसे अच्छी तरह से मिक्स करते हुए घोल पतला घोल बनाएं. यह इतना पतला होना चाहिए कि छन्नी से आसानी से झड़ जाए.
– घोल तैयार करने के बाद इसे 15 मिनट के लिए ऐसे ही रख दें.
– कड़ाही में तेल डालकर मीडियम आंच पर गरम होने के लिए रख दें.
– तय समय बाद तीन अलग-अलग हिस्से में बूंदी बांट लें.
– पहले कटोरे में ज्यादा घोल रखें. इसमें दो चुटकी पीला कलर डालकर अच्छी तरह मिक्सकर घोल तैयार कर लें.
– फिर दूसरी कटोरी में एक चुटकी हरा कलर डालर अच्छी तरह मिक्स कर लें.

– इसके बाद संतरा कलर का बैटर तैयार कर लें. इसके तीसरी कटोरी के घोल में एक चुटकी संतरा रंग डालकर बैटर तैयार कर लें.
– कड़ाही का तेल चेक कर लें कि यह अच्छे से गरम हुआ है या नहीं. इसके लिए उंगली पर पानी लगाकर इसे तेल पर छींटा मारें. अगर यह तड़क रहे हैं तो समझिए तेल बूंदी छानने के लिए गरम हो चुका है.
– अब इसमें सबसे पहले पीली कलर की बूंदी झारा से छान लें. तेल में बूंदी डालने के बाद 1 मिनट से ज्यादा न पकाएं.
– बूंदी को पहले आटा चालने की चलनी में डालें फिर किचन पेपर पर निकाल लें. इससे इनका अतिरिक्त तेल निकल जाएगा.
– इसी तरीके से हरी और संतरे कलर की बूंदी तल लें.
– अब एक पैन में चीनी और एक कप से थोड़ा ज्यादा यानी सवा कप पानी डालकर मीडियम आंच पर रखें.
– इसे 5 मिनट तक तेज आंच पर उबालें. इसमें थोड़ा-थोड़ा संतरा और पीला कलर मिलाकर आधा तार की चाशनी बना लें.

Raksha Bandhan : बड़ी बहन की शादी, निभाएं फर्ज

बड़ी बहन की शादी का मौका हो तो घर में खुशी का माहौल होता ही है. ऐसे में फुल ऐंजौय करने का मौका भी मिलता है, लेकिन अगर हम सिर्फ ऐंजौय करने के चक्कर में सारी जिम्मेदारियों को पेरैंट्स के सिर पर डाल कर खुद फ्री हो जाएं तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि इस से जहां उन का स्ट्रैस बढ़ेगा वहीं अकेले होने के कारण वे चीजों को ज्यादा अच्छी तरह से हैंडिल नहीं कर पाएंगे और कोईर् न कोई गलती कर ही जाएंगे, जिस से सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा. ऐसे में घर में छोटे होने के बावजूद आप की जिम्मेदारी बनती है कि अपने पेरैंट्स के साथ हाथ बंटाएं ताकि इस बेहतरीन माहौल का सभी मजा ले पाएं औैर किसी को शिकायत का मौका भी न मिले.

आप निम्न चीजों में अपना रोल अदा कर सकते हैं :

शौपिंग में करें हैल्प

चाहे रिश्तेदारों के देनेलेने के कपड़े हों या फिर खुद बहन के लिए शौपिंग करनी हो, आप पेरैंट्स के इस काम को हलका कर सकते हैं, जैसे अगर पापा किसी काम में बिजी हैं और वे मार्केट जाने के लिए समय नहीं निकाल पा रहे है, तो आप मम्मी व बहन को शौपिंग कराने के लिए ले जाएं ताकि पापा भी अपना काम कर लें और शौपिंग का काम भी निबट सके.

सामान की पैकिंग का जिम्मा लें खुद पर

मैरिज में दिया जाने वाला सामान तो खरीद लिया है, लेकिन अब उसे पैक करने की जिम्मेदारी भी है. बाहर से पैकिंग करवाना काफी महंगा पड़ता है. इसलिए अगर आप सब भाईबहन मिल कर इस काम को कर लें तो न केवल यह काम आसानी से होगा बल्कि सस्ता भी पड़ेगा.

वैडिंग कार्ड के लिए करें मार्केट रिसर्च

वैडिंग कार्ड का और्डर देने से पहले मार्केट में रेट पता कर लें कि सिंपल से ले कर क्रिएटिव कार्ड की क्या कौस्ट है और कौन सा दुकानदार ज्यादा डिस्काउंट दे रहा है. इस से आप के पापा पर सिर्फ और्डर देने का काम रह जाएगा. हो सके तो जिन फ्रैंड्स के घर अभी हाल में ही शादी हुई है, उन से भी आप एक अंदाजा ले सकते हैं.

मेहमानों के रहने का बंदोबस्त

अगर आप के घर में मेहमानों को ठहराने के लिए पर्याप्त स्पेस नहीं है, तो आप को उन के रहने का बंदोबस्त करना पड़ेगा, इस के लिए आप अपने पापा की हैल्प यह बता कर कर सकते हैं कि पापा हमारे एरिया में फलांफलां मकान खाली हैं, हम उन के मालिकों से इन्हें किराए पर लेने की बात कर सकते हैं. आप अपने फ्रैंड्स से भी रिक्वैस्ट कर सकते हैं कि क्या उन के खाली फ्लोर को 1-2 दिन के लिए हम इस्तेमाल कर सकते हैं. अगर वे इस में हामी भर दें तो आप के पापा का काम काफी आसान हो जाएगा.

संगीत नाइट का अरेंजमैंट करें

बहन के संगीत प्रोग्राम में जान डालने के लिए आप पहले से ही बहन के फेवरिट गानों के साथसाथ हिट सौंग्स को भी डाउनलोड कर के पैनड्राइव में सेव कर लें, साथ ही म्यूजिक प्लेयर का भी बंदोबस्त कर के रखें ताकि ऐनवक्त पर कोई प्रौब्लम न हो. अगर डीजे वाला धोखा दे जाए तो आप का अपना अरेंजमैंट संगीत की रात का मजा खराब नहीं होने देगा.

वैन्यू के बंदोबस्त की देखरेख

वैन्यू बुक कराने की जिम्मेदारी तो पापा को ही बखूबी निभाने दें, क्योंकि बुकिंग में जरा सी गड़बड़ी होने पर काफी परेशानी हो सकती है. लेकिन आप यहां इस तरह अपनी जिम्मेदारी निभा सकते हैं कि मैरिज से एक दिन पहले जिस से वैन्यू बुक कराया है उसे कौल कर के रिमाइंड करवा सकते हैं औैर मैरिज वाले दिन वहां जा कर जायजा लें कि सबकुछ ठीक चल रहा है न.

बहन की ख्वाहिशों को करें सपोर्ट

इस दिन को ले कर हर लड़केलड़की के मन में कई तरह की ख्वाहिशें होती हैं, लेकिन घर के रीतिरिवाजों के कारण उन्हें अपनी इच्छा को दबाना पड़ता है. ऐसे में आप अपनी बहन की हर जायज ख्वाहिश को सपोर्ट करें, जैसे अगर आप की फैमिली में चूड़ा पहनने का रिवाज नहीं है, लेकिन बहन पहनना चाहती है तो आप इस के लिए घर के बड़ों को राजी करें कि इस से किसी का कोई नुकसान नहीं होने वाला बल्कि समय के साथ खुद में बदलाव लाना जरूरी है. इस से वे आप की बात को जरूर मानेंगे औैर बहन के चेहरे पर भी खुशी आएगी.

बैंक के कार्यों में करें हैल्प

अगर आप के पापा को ईबैंकिंग की नौलेज नहीं है और इस चक्कर में उन का काफी समय बरबाद हो रहा है तो बैंक के कार्यों को निबटाने में आप उन की सहायता कर सकते हैं. यहां तक कि एटीएम से पैसा निकालने में भी उन की हैल्प करें.

खुद के पास भी रखें थोड़ा पैसा

घर में शादी का माहौल हो, ऐसे में हर छोटीछोटी चीज के लिए पापा को डिस्टर्ब करते रहने से काम नहीं बनने वाला. इसलिए आप पहले से ही पापा से 5-6 हजार रुपए ले कर रखें ताकि अगर ऐनवक्त पर कोई चीज खरीदनी पड़ जाए या बहन को ही कुछ मंगाना पड़ जाए तो इस के लिए आप को पापा या मम्मी का इंतजार न करना पड़े बल्कि आप खुद ही सब आसानी से हैंडिल कर लें. इस से आप छोटी उम्र से ही चीजों को हैंडिल करना सीख जाएंगे.

बहन का रखें खयाल

नए परिवार में जाने के डर से अगर  बहन खानापीना छोड़ देगी तो इस से वे इस मूवमैंट को ऐंजौय भी नहीं कर पाएगी औैर चक्कर वगैरा आने का डर भी बना रहेगा. इसलिए आप उस के खानेपीने का खयाल रखें, समय पर उसे जूस वगैरा देते रहें. साथ ही मम्मीपापा की भी प्रौपर केयर करें, तभी आप इस जिम्मेदारी को अच्छे से निभा पाएंगे.

बरातियों के वैलकम में न छोड़ें कमी

पापा को पहले ही कह दें कि आप चाचा वगैरा के साथ मेन वैन्यू पर जिम्मेदारी संभालें और हम कजिंस के साथ मिल कर रीअसैंबल पौइंट पर. इस से काम बंट जाएगा. ध्यान रखें बरातियों के वैलकम में कमी न रहने पाए. साथ ही बहन के फ्रैंड्स को भी पूरा ऐंटरटेन करें. यहां तक कि उन्हें छोड़ने या फिर अपने यहां ठहराने का बंदोबस्त करें.

अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के बीच आप को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि हर काम बजट में हो. इस तरह आप छोटे होते हुए भी बड़ों की काफी मदद कर पाएंगे.

मेरे पति, जेठ और ससुर इकट्ठे बैठ कर घर में शराब पीते हैं, जिसका बच्चे पर बुरा असर पड़ता है, क्या मैं अपने बेटे को बोर्डिंग भेज दूं?

सवाल

मैं 27 वर्षीय विवाहिता के 7 वर्षीय बेटे की मां हूं. मेरे पति व्यवसायी हैं. हमारा काफी संपन्न और संयुक्त परिवार है. परेशानी यह है कि शाम को पति, मेरे जेठ और ससुर इकट्ठे बैठ कर शराब पीते हैं. पति को हर तरह से समझा चुकी हूं कि बच्चा बड़ा हो रहा है, उस के सामने सरेआम शराब पीना ठीक नहीं है. पति नहीं समझ रहे. मैं ने अपने भाई से अपनी चिंता व्यक्त की तो उस का कहना है कि मुझे बेटे को बोर्डिंग में भेज देना चाहिए, क्योंकि घर में पढ़नेलिखने का माहौल नहीं है. पति से पूछा तो उन्हें कोई एतराज नहीं है. पर मैं डरती हूं कि अकेला रह कर बच्चा कहीं निर्मोही न हो जाए. बताएं कि मेरी चिंता वाजिब है या नहीं?

जवाब
यदि आप को लगता है कि बच्चे को पढ़ाई के लिए घर में अनुकूल माहौल नहीं मिल रहा तो आप उसे बोर्डिंग में भेज सकती हैं, वहां अनुशासित और स्वस्थ माहौल मिलेगा. बीचबीच में आप लोग बच्चे से मिलने जाते रहेंगे और वह भी छुट्टियों में आप के पास आ सकता है, इसलिए आप लोगों के लिए उस का प्यार कम नहीं होगा. आप को जरूर शुरूशुरू में बच्चे के लिए उदासी हो सकती है पर उस की बेहतरी के लिए आप को अपने मन को कड़ा करना ही होगा.

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शराब है खराब

संजय को शराब पीने की लत उस समय लगी जब वह 10वीं में पढ़ रहा था और बोर्ड की परीक्षा में कम अंक आने की वजह से उस ने अपने जैसे कुछ दोस्तों के साथ टैंशन कम करने के लिए पहली बार बियर पी थी. इस के बाद वह धीरेधीरे इस का आदी होता चला गया. जिस के चलते वह इंटर की परीक्षा में दो बार फेल हुआ. जब इस बात की जानकारी संजय के पिता को हुई तो उन्होंने संजय की पढ़ाई बीच में ही छुड़वा कर उसे अपने कपड़े के व्यवसाय में सहयोग करने के लिए अपने साथ ही लगा लिया, लेकिन संजय अपनी शराब पीने की बुरी आदत के चलते पिता के व्यवसाय से होने वाली आमदनी से पैसे चुरा  कर शराब पीने लगा था, जिस को ले कर अकसर संजय व उस के पिता में तूतू, मैंमैं होती रहती थी.

एक दिन संजय को उलटियां होने लगीं जो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं. संजय के घर वाले आननफानन में उसे ले कर अस्पताल  ले गए, जहां जरूरी चैकअप के बाद डाक्टर ने बताया कि अत्यधिक शराब के सेवन के चलते संजय को लिवर का कैंसर हो गया है जो अपनी अंतिम अवस्था में है. संजय के बचने के चांसेज बहुत कम हैं. डाक्टरों ने उसे बचाने की भरपूर कोशिश की लेकिन बचा नहीं पाए.

एकलौते बेटे की मौत ने संजय के पिता को तोड़ दिया. संजय की शराब पीने की लत के कारण उस का कैरियर तो दांव पर लगा ही साथ ही शराब ने उस की जान भी ले ली.

शराब से ऐसा बुरा हश्र सिर्फ संजय का ही नहीं बल्कि हर रोज हजारों लोगों का होता है. शराब न केवल स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती है बल्कि यह अपराध को भी बढ़ावा देने का एक प्रमुख कारण है. शराब पीने के बाद व्यक्ति का दिल और दिमाग अच्छे और बुरे में फर्क करना भूल जाता है. शराब की वजह से व्यक्ति अपनी सुधबुध खो बैठता है. ऐसे में वह अपने से बड़ों से अभद्रता से बात करने में भी नहीं हिचकता.

शराब की लत की वजह

अकसर शौकिया तौर पर शराब पीने की शुरुआत होती है जो धीरेधीरे उन की आवश्यकता बन जाती है. शराब की लत का एक बड़ा कारण घरेलू माहौल भी है, क्योंकि जब घर का कोई बड़ा सदस्य घर के दूसरे सदस्यों व बच्चों के सामने खुलेआम शराब पीता है या पी कर आता है तो अनुभव लेने की इच्छा के चलते पत्नी, बच्चे व घर के अन्य सदस्य भी शराब पीने के आदी हो सकते हैं.

शराब की लत लगने का एक कारण गलत संगत भी है. अगर व्यक्ति शराब पीने वाले साथियों के साथ ज्यादा समय बिताता है तो उसे शराब की लत पड़ सकती है. तमाम लोग शराब को अपना सोशल स्टेटस मानते हैं.

शराब की लत लगने की एक बड़ी वजह निराशा, असफलता व हताशा को भी माना जाता है, क्योंकि अकसर लोग इन चीजों को भुलाने के लिए शराब का सहारा लेते हैं जो बाद में बरबादी का कारण भी बनता है.

पढ़ाई व कैरियर

किशोरों व युवाओं में नशे की लत दिनोदिन बढ़ती जा रही है. इस कारण शराब उन की पढ़ाई व कैरियर के लिए बाधा बन जाती है.

सामाजिक व आर्थिक नुकसान

शराबी व्यक्ति की समाज में इज्जत नहीं होती, शराब की लत के चलते परिवार में सदैव आर्थिक तंगी बनी रहती है, जिस वजह से परिवार के सदस्यों के साथ मारपीट आम बात हो जाती है. शराब की जरूरतों को पूरा करने के लिए व्यक्ति अपनी स्थायी जमा पूंजी भी दांव पर लगा देता है, जिस से बच्चों की पढ़ाई व कैरियर भी प्रभावित होता है.

स्वास्थ्य की दुश्मन

स्वास्थ्य के लिए शराब जहर की तरह है जो व्यक्ति को धीरेधीरे मौत की तरफ ले जाती है. मानसिक व नशा रोग विशेषज्ञ डा. मलिक मोहम्मद अकमलुद्दीन के अनुसार शराब में पाया जाने वाला अलकोहल शरीर के कई अंगों पर बुरा असर डालता है, जिस की वजह से 200 से भी अधिक बीमारियां होने का खतरा बना रहता है.

अत्यधिक शराब पीने से शरीर में विटामिन और अन्य जरूरी तत्त्वों की कमी हो जाती है. शराब का लगातार प्रयोग पित्त के संक्रमण को बढ़ाता है, जिस से ब्रैस्ट और आंत का कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है.

शराब में पाया जाने वाला इथाइल अलकोहल लिवर सिरोसिस की समस्या को जन्म देता है जो बड़ी मुश्किल से खत्म होने वाली बीमारी है. इथाइल अलकोहल की वजह से पाचन क्रिया गड़बड़ा जाती है, जिस से लिवर बढ़ जाता है और ऐसी अवस्था में भी व्यक्ति अगर पीना जारी रखता है तो अलकोहल हैपेटाइटिस नाम की बीमारी लग जाती है.

सैक्स पर असर

जिला अस्पताल बस्ती के चिकित्सक डा. बी के वर्मा के अनुसार शराब सैक्स के लिए जहर है. लोग सैक्स संबंधों का अधिक मजा लेने के चलते यह सोच कर शराब पीते हैं कि वे लंबे समय तक आत्मविश्वास के साथ सहवास कर पाएंगे, लेकिन लगातार शराब के सेवन के चलते प्राइवेट पार्ट में तनाव आना कम हो जाता है, जिस का नतीजा नामर्दी के रूप में दिखता है. कामेच्छा की कमी के साथ ही महिलाओं की माहवारी अनियमित हो जाती है.

सड़क दुर्घटना का कारण

अकसर सड़क दुर्घटना का सब से बड़ा कारण शराब पी कर गाड़ी चलाना होता है, क्योंकि शराब पीने के बाद गाड़ी ड्राइव करने वाले का दिमाग उस के वश में नहीं रहता और ड्राइव करने वाला व्यक्ति गाड़ी से नियंत्रण खो देता है और दुर्घटना हो जाती है.

अपराध को बढ़ावा

शराब का नशा दुनिया भर में होने वाले अपराधों की सब से बड़ी वजह माना जाता है. अकसर शराबी व्यक्ति नशे में अपने होशोहवास खो कर ही अपराध को अंजाम देता है.

ऐसे पाएं छुटकारा

शराब की लत का शिकार व्यक्ति इस से होने वाली हानियों को देखते हुए अकसर शराब को छोड़ने की कोशिश करता है, लेकिन प्रभावी कदम की जानकारी न होने की वजह से वह शराब व नशे से दूरी नहीं बना पाता है. यहां दिए उपायों को अपना कर व्यक्ति शराब जैसी बुरी लत से छुटकारा पा सकता है-

  1. अगर आप शराब की लत के शिकार हैं और इस से दूरी बनाना चाहते हैं तो इस को छोड़ने के लिए खास तिथि का चयन करें. यह तिथि आप की सालगिरह वगैरा हो सकती है. छोड़ने से पहले इस की जानकारी अपने सभी जानने वालों को जरूर दें.
  2. अगर आप का बच्चा शराब का शिकार है तो मातापिता को चाहिए कि उस की गतिविधियों पर नजर रखें और समय रहते किसी नशामुक्ति केंद्र ले जाएं और मानसिक रोग विशेषज्ञ से संपर्क जरूर करें.
  3. ऐसी जगहों पर जाने से बचें जहां शराब की दुकानें या शराब पीने वाले लोग मौजूद हों, क्योंकि ऐसी अवस्था में फिर से आप की शराब पीने की इच्छा जाग सकती है.
  4. कमजोरी, उदासी या अकेलापन महसूस होने की दशा में घबराएं नहीं बल्कि अपने भरोसेमंद व्यक्ति के साथ अपने अनुभवों को बांटें और कठिनाइयों से उबरने की कोशिश करें.
  5. शराब छोड़ने के लिए आप इस बात को जरूर सोचें कि आप ने शराब की वजह से क्या खोया है और किस तरह की क्षति पहुंची है. इस से न केवल आप शराब से दूरी बना सकते हैं बल्कि खराब हुए संबंधों को पुन: तरोताजा भी कर सकते हैं.
  6. शराब छोड़ने से उत्पन्न परेशानियों से निबटने के लिए किसी अच्छे चिकित्सक या मानसिक रोग विशेषज्ञ की सलाह लेना न भूलें.

कब्ज से कैसे पाएं छुटकारा, जानें घरेलू नुस्खे

कब्ज है तो छोटा सा शब्द, लेकिन जिन लोगों को इस की शिकायत रहती है, वे बेहतर तरीके से जानते हैं कि यह किस तरह आप की लाइफ डिस्टर्ब करती है. पेट साफ न होने से शारीरिक परेशानियों के साथ कई स्किन प्रॉब्लम्स भी हो जाती हैं. ऐसे में आप को अपना खयाल रखने के लिए अपनी कुछ आदतों को बदलना होगा.  कुछ ऐसी आदतें होती हैं जिस की वजह से आप को कब्ज की परेशानी रहती है.

कब्ज की बात करें, तो आम कब्ज से ले कर गंभीर तरह की कब्ज की बीमारी इस में शामिल है. जैसे कभीकभार होने वाली कब्ज, क्रॉनिक कॉन्स्टिपेशन (कब्ज बहुत ज्यादा बढ़ जाने पर),  उम्र से संबंधित कब्ज. कब्ज में हमारी आंतें मल को छोड़ नहीं पाती हैं. कब्ज होने के मुख्य कारण हैं :

1 खानपान

खानपान में किसी भी तरह का बदलाव कब्ज का कारण बन सकता है, जैसे अचानक बहुत ज्यादा तैलीय खाना खाने या वजन घटाने के लिए खाने पर नियंत्रण करने की वजह से भी कब्ज हो जाता है. इस के अतिरिक्त यदि आप बहुत ज्यादा वसायुक्त चीजें पसंद करते हैं या शराब और कौफी पीते हैं तो भी कब्ज के शिकार हो सकते हैं.

2 कम पानी पीना 

कुछ लोग दिनभर बहुत कम पानी पीते हैं. उन का मानना है कि अगर दिन में दो गिलास पानी भी पी लें तो उन का काम चल जाएगा, लेकिन इस से हमारे पाचनतंत्र और शरीर की जरूरतें पूरी नहीं होती हैं. हमें पर्याप्त पानी यानी दिनभर में कम से कम 3-4 लिटर पानी जरूर पीना चाहिए.

3 व्यायाम

क्या आप रोजाना कसरत करते हैं? यदि रोजाना न सही तो सप्ताह में 4 दिन जरूर कसरत करें. इस से हमेशा आप का पाचनतंत्र सही रहेगा और आप कब्ज की समस्या से छुटकारा पा सकेंगे. शारीरिक व्यायाम के अभाव में हमारा मेटाबॉलिज्म खराब हो जाता है. मेटाबॉलिज्म के कमजोर पड़ते ही हमारी पाचनक्रिया गड़बड़ हो जाती है.

4 दवाएं

कई बार दवाओं के सेवन से भी कब्जियत हो जाती है. ज्यादातर मामले पेनकिलर्स की वजह से देखने को मिले हैं. कुछ विटामिन और आयरन की खुराक से भी यह समस्या हो जाती है. ऐसे में डाक्टर से राय ले कर आप इन दवाओं के साथ स्टूल सॉफ्टनर दवाएं ले सकते हैं.

उपचार

1 नीबू पानी

नीबू हमारे शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मददगार साबित होता है. अगर आप को कभी कब्ज हो जाए तो एक गिलास गरम पानी में एक नीबू का रस और शहद मिला कर पीएं. इस से आप को आराम मिलेगा.

2 दूध और दही

कब्ज की समस्या को दूर करने के लिए पेट में अच्छे बैक्टीरिया का होना भी बहुत जरूरी है. सादे दही से आप को प्रोबायोटिक मिलेगा, इसलिए दिन में 1-2 कप दही जरूर खाएं. इस के अलावा यदि आप को बहुत परेशान हैं तो एक गिलास दूध में एक से दो चम्मच घी मिला कर रात को सोते समय पिएं, लाभ होगा.

3. आयुर्वेद 

सोने से पहले 2 या 3 त्रिफला टैबलेट गरम पानी के साथ लें. त्रिफला हरड़, बहेड़ा और आंवले से बना होता है. ये तीनों पेट के लिए काफी लाभकारी होते हैं. त्रिफला रात में अपना काम शुरू कर देता है.

4 खाने में फाइबर का इस्तेमाल करें

एक दिन में एक महिला को औसतन 25 ग्राम फाइबर की जरूरत होती है, वहीं एक पुरुष को 30 से 35 ग्राम फाइबर की आवश्यकता होती है. अपने पाचनतंत्र को दोबारा ट्रैक पर लाने के लिए आप को यह सुनिश्चित करना होगा कि आप हर दिन अपनी जरूरत के अनुसार फाइबर की खुराक लेते रहें.

आलिया ने Elvish Yadav को किया सपोर्ट तो स्वरा भास्कर ने लगाई क्लास

Elvish Yadav : बिग बॉस ओटीटी 2 (Bigg boss OTT 2) जीतने के बाद से एल्विश यादव (Elvish Yadav)  और ज्यादा सुर्खियों में बने हुए हैं. जहां कुछ लोग उनके बिग बॉस जीतने का विरोध कर रहे हैं, तो वहीं कुछ लोग उनका समर्थन भी कर रहे हैं. उनके फैंस की लिस्ट में एक नाम बॉलीवुड एक्ट्रेस आलिया भट्ट का भी है. आलिया ने एल्विश की तारीफ करते हुए एक पोस्ट किया था, जिसके बाद से वह यूजर के निशाने पर आ गई है. साथ ही एक्ट्रेस स्वरा भास्कर (Swara Bhaskar) ने भी आलिया (Alia Bhatt) की क्लास लगाई है.

एल्विश ने आलिया की स्टोरी पर लिखा ”आई लव यू”.

दरअसल, बुधवार को अपने इंस्टाग्राम स्टोरीज पर आलिया के ‘आस्क मी एनीथिंग’ सेशन किया था. इसी सेशन के दौरान उनसे एक फैन ने पूछा था, “एल्विश यादव के बारे में कुछ हो जाए”. इस पर आलिया ने लिखा था, “सिस्टमम.” फिर आलिया की इस स्टोरी का स्क्रीनशॉट एल्विश ने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी पर शेयर किया और लिखा, ”आई लव यू”.

स्वरा ने आलिया को दिखाया आईना

इसके बाद शुक्रवार को ट्विटर पर एक्ट्रेस स्वरा भास्कर (Swara Bhaskar) ने एक पोस्ट को रीट्वीट करते हुए लिखा, “हैलो @आलिया, ये एल्विश यादव हैं, जिनकी आप तारीफ कर रही हैं. महिलाओं के प्रति उसकी पूरी तरह से निंदनीय रवैये पर एक अच्छी नज़र डालें, वह कैसे बेशर्मी से स्वरा के साथ $exual h@rassm€nt में जुड़े हुए है. आप जैसी एक्ट्रेस के लिए ये कितनी बड़ी गिरावट है.”

2021 से जुड़ा है मामला

आपको बता दें कि एल्विश (Elvish Yadav) और स्वरा के बीच साल 2021 में एक राजनीतिक मुद्दे को लेकर तीखी बहस हुई थी. दरअसल, उस समय एल्विश ने एक्ट्रेस का अपमान किया था, जिसके बाद स्वरा ने तथ्यों का हवाला देते हुए एल्विश को गलत साबित किया था.

जिसका जवाब देते हुए एल्विश ने लिखा था, “झूठा झूठा! चड्ढी में आग लग गई!” इसके अलावा उन्होंने एक और तीखा ट्वीट किया था, जिसमें उन्होंने लिखा था, “अत्यधिक m@sturb@tion आपको अंधा बना देता है. ये एक मिथक था लेकिन स्वरा दीदी इसको सही साबित कर सकती है. जीएसटी शब्द का प्रयोग किया मैंने स्वरा?”

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