अभिनेता आमिर खान की पत्नी और जानीमानी फिल्ममेकर किरण राव इन दिनों अपनी और यूटीवी मोशन के सहयोग से बनी फिल्म ‘शिप औफ थीसस’ को प्रमोट कर रही हैं, जिस के लिए उन्होंने आमिर की मदद लेने के बजाय एक अनोखा तरीका अपनाया है. दरअसल, उन्होंने फिल्म की पब्लिसिटी के खर्चों को देखते हुए फिल्म का प्रचार इंटरनैट के माध्यम से करने की योजना बनाई है.
‘धोबीघाट’ जैसी बेहतरीन फिल्म बना चुकी किरण का यह प्रमोशन आइडिया वाकई दिलचस्प है, लेकिन सफल कितना होता है यह सोचने वाली बात है.
आनंद एल राय की हालिया रिलीज फिल्म ‘रांझणा’ में सोनम कपूर के किरदार ‘जोया’ को काफी तारीफें मिल रही हैं. एक अदद हिट फिल्म को तरस रही सोनम कपूर को लगता है इस फिल्म से जरूर फायदा होगा. तभी तो वे अपने कोस्टार धनुष की भी बढ़चढ़ कर मदद कर रही हैं. दरअसल, धनुष को हिंदी बोलने और समझने में काफी परेशानी होती है. लिहाजा, फिल्म प्रमोशन के दौरान सोनम धनुष से पूछे गए सभी हिंदी के सवालों को अंगरेजी में ट्रांसलेट करती दिखीं. कहना पड़ेगा कि सोनम, धनुष की हिंदी टीचर का काम बखूबी कर सकती हैं.
डांसिंग दिवा माधुरी इन दिनों छोटे परदे और बड़े परदे दोनों के लिए काम करने में व्यस्त हैं. कई निर्माता लाइन में हैं पर वे उन्हें डेट्स नहीं दे पा रही हैं. वे अपने शुरुआती समय को याद कर बताती हैं कि जब उन्होंने बौलीवुड में कदम रखा था तो लोगों ने कहा था कि वे यहां जगह नहीं बना पाएंगी. लेकिन उन्होंने उसे गलत साबित कर दिखाया. वे कहती हैं, ‘‘दरअसल, आप को अपनी शक्ति का अंदाजा होता है. कोई मुसीबत आने पर आप खुद ही उसे सब से अच्छी तरह संभाल पाते है.’’ आप की बात बिलकुल सही है माधुरीजी, आप ने वाकई खुद को साबित कर के दिखाया है.
सीरियल किसर इमरान हाशमी का सितारा इन दिनों बुलंदियों पर है. एक जमाने में बी ग्रेड के कलाकार माने जाने वाले इमरान के साथ कोई बड़ी अभिनेत्री काम करने में कतराती थी. बौलीवुड में अपने 10 साल पूरे कर चुके इमरान अब जल्द ही हौट दिवा करीना कपूर के साथ सिल्वर स्क्रीन पर रोमांस करते नजर आएंगे. चर्चा है एकता कपूर और करण जौहर संयुक्त रूप से एक फिल्म बनाने जा रहे हैं जिस में करीना कपूर और इमरान हाशमी मुख्य भूमिका निभाएंगे. फिल्म का नाम ‘बदतमीज दिल’ रखा गया है.
फिल्म ‘ये जवानी है दीवानी’ के हिट गाने ‘बदतमीज दिल’ से लिया गया यह टाइटल फिल्म को कितना सफल बना पाएगा, देखने वाली बात होगी.
इन दिनों हिंदी फिल्मों में साउथ इंडियन ब्यूटीज खूब धमाल मचा रही हैं. इसी फेहरिस्त में फिल्म ‘बरफी’ से चर्चा में आई अभिनेत्री इलेना डिक्रूज भी शामिल हैं. वे जल्द ही शाहिद कपूर के साथ फिल्म ‘फटा पोस्टर निकला हीरो’ में नजर आएंगी. राजकुमार संतोषी के निर्देशन में बन रही इस फिल्म को ले कर वे बेहद उत्साहित हैं. इलेना कहती हैं कि अगर यह फिल्म भी ‘बरफी’ की तरह सुपरहिट होती है तो वे बौलीवुड में ही जम जाएंगी. वैसे इलेना मैडम, इतनी जल्दबाजी अच्छी नहीं.
यह फिल्म डाक्टरी के पेशे से जुड़ी एक सच्ची घटना से प्रेरित है. डाक्टरी पेशे में आज इतने लूपहोल्स हैं कि आप को पता ही नहीं चल पाता कि डाक्टर किस तरह आप को बेवकूफ बना रहे हैं. अकसर पैसों के लालच में डाक्टर मरीज के रिश्तेदारों की जेबें नएनए तरीकों से खाली कराते रहते हैं. इलाज में लापरवाही होने और मरीज की मौत हो जाने पर कोई न कोई बहाना बना दिया जाता है कि मरीज के फेफड़े कोलैप्स हो गए या औपरेशन के बाद मरीज को दिल का दौरा पड़ा और वह मर गया. यह फिल्म कुछ इसी तरह की बातों का परदाफाश करती है और बताती है कि किस तरह पेशेवर डाक्टर मरीजों का शोषण करते हैं व उन की लापरवाही से हुई किसी मरीज की मौत पर वे कैसे परदा डालते हैं.
कहानी 8 साल के एक बच्चे अंकुर अरोड़ा (विशेष तिवारी) की है. उसे पेट दर्द होने पर एक निजी अस्पताल में भरती कराया जाता है. वरिष्ठ डा. अस्थाना (के के मेनन) बच्चे की जांच कर उस की मां नंदिता (टिस्का चोपड़ा) को बताता है कि बच्चे को अपैंडिक्स का दर्द है और उस का औपरेशन करना पड़ेगा. औपरेशन के दौरान डा. अस्थाना के साथ डा. रिया (विशाखा सिंह) और एक अन्य डाक्टर भी मौजूद रहता है. औपरेशन से ठीक पहले एक नर्स डा. अस्थाना को बताती है कि अंकुर ने कुछ घंटे पहले कुछ बिस्कुट खाए हैं. डा. अस्थाना बच्चे के पेट से खाना निकालने की बात कहता तो है पर निकालना भूल जाता है. औपरेशन हो जाता है. अंकुर को उल्टी होती है और वह कोमा में चला जाता है.
अगले दिन उस की मौत हो जाती है. डा. अस्थाना मामला दबा देता है पर एक अन्य डा. रोहन को सचाई पता चल जाती है. वह अंकुर की मां को विश्वास में ले कर डा. अस्थाना और अस्पताल पर लापरवाही का केस दायर करता है. अदालत डा. अस्थाना को कुसूरवार मान कर 3 साल की सजा सुनाती है और अस्पताल को 10 करोड़ रुपए बतौर मुआवजा मरीज को देने का फैसला सुनाती है. फिल्म का यह विषय एकदम मौजूं है लेकिन इसे फिल्मी अंदाज में पेश किया गया है. इसीलिए सबकुछ नाटकीय सा लगता है. ऐसे गंभीर विषय वाली फिल्म में रिया व रोहन के रोमांस के प्रसंग बाधा उत्पन्न करते हैं.
सुहेल लतारी निर्देशन में अपना कमाल दिखा पाने में नाकामयाब रहा है. क्लाइमैक्स में अदालत के दृश्य एकदम नाटकीय लगते हैं.
के के मेनन जैसे कलाकार से अच्छा काम नहीं लिया जा सका है. सिर्फ टिस्का चोपड़ा ने भावपूर्ण दृश्य दिए हैं. फिल्म का गीतसंगीत पक्ष कमजोर है. छायांकन कुछ अच्छा है.
जेब में फूटी कौड़ी नहीं और बातें लाखोंकरोड़ों की. ख्वाहिशें बड़ीबड़ी, सपने ऊंचे, हमेशा खुश रहने वाले, बेहद जुगाड़ू होते हैं फुकरे. अगर हम अपने आसपास निगाह दौड़ाएं तो हमें कहीं न कहीं ऐसे फुकरे जरूर नजर आ जाएंगे. कालेजों में तो फुकरों की पूरी जमात ही देखने को मिल जाएगी. ऐसे फुकरे अपने दोस्तों को उल्लू बना कर अपनी जरूरतें पूरी करते हैं.
निर्माता फरहान अख्तर की यह फिल्म उस की पिछली फिल्मों ‘दिल चाहता है’ और ‘जिंदगी मिलेगी न दोबारा’ की तरह ही 4 दोस्तों की दोस्ती पर है. स्कूल- कालेज में पढ़ने वाले ये चारों दोस्त लंगोटिया यार हैं. फुकरा नंबर वन है चूचा (वरुण शर्मा) और फुकरा नंबर 2 है हन्नी (पुलकित सम्राट). दोनों 3-4 साल फेल हो चुके हैं. सारा दिन वे लड़कियों के आगेपीछे घूमते रहते हैं. तीसरा फुकरा लाली (मनजोत सिंह) हलवाई का बेटा है. वह अकसर अपनी गर्लफ्रैंड को बाइक पर कालेज छोड़ता है. चौथा फुकरा है जफर (अली फजल). वह कालेज में पढ़ता है और गायक बनना चाहता है.
इस फुकरापंती की जड़ हैं हन्नी और चूचा. चूचा और हन्नी को कालेज में ऐडमिशन के लिए पैसे चाहिए. वे कालेज का परचा लीक करा कर पैसों का जुगाड़ करना चाहते हैं. कालेज का चौकीदार उन्हें एक दबंग लेडी भोली पंजाबन (रिचा चड्ढा) के पास पैसों के इंतजाम के लिए ले जाता है. भोली उन्हें एक डील के तहत 4 लाख 470 हजार रुपए दे देती है. इस पैसे को वे लौटरी में लगाते हैं. पैसा डूब जाता है. भोली पंजाबन चूचा, हन्नी और लाली पर पैसे लौटाने का दबाव बनाती है. लाली के पिता की दुकान के कागज भी उस ने कब्जे में कर रखे हैं. वह लाली और हन्नी को एक रेव पार्टी में ड्रग्स की गोलियां बेचने की पेशकश करती है. दोनों उस पार्टी में पहुंचते हैं और पुलिस रेड में फंस जाते हैं परंतु बच जाते हैं. अंत में वे पुलिस को सचाई बता देते हैं. पुलिस उन दोनों को छोड़ देती है और भोली पंजाबन को गिरफ्तार कर लेती है.
फिल्म की यह कहानी पूर्वी दिल्ली की है. निर्देशक ने वहां के लोगों के रहनसहन का सही खाका खींचा है. हन्नी का छत फांद कर अपनी गर्लफ्रैंड से मिलना, चूचा का साइकिल पर लड़कियों के कालेज के चक्कर लगाना, लाली के हलवाई बाप का हर वक्त लाली को मां की गालियां देने के साथसाथ एक स्मैकिए के पास नोटों की गड्डियां होना पुरानी दिल्ली में रोजाना दोहराई जाने वाली बातें हैं, जिन्हें निर्देशक ने बखूबी दिखाया है. उस ने दर्शकों को कुछकुछ बांधे रखने की कोशिश की है.
पूरी फिल्म में?भोली पंजाबन का किरदार अधिक ध्यान आकर्षित करता है. इस किरदार का आइडिया निर्देशक को पिछले दिनों दिल्ली में गिरफ्तार हुई सोनू पंजाबन से मिला है. इस दबंग लेडी ने खूब गालियां दी हैं. उस के द्वारा बोले गए संवाद एकदम चालू हैं. इस तरह के किरदार पुरानी दिल्ली के इलाकों में कहीं न कहीं आप को देखने को जरूर मिल जाएंगे.
फिल्म की कहानी खुद निर्देशक मृगदीप सिंह लांबा ने लिखी है. कहानी लिखने से पहले लगता है उस ने काफी रिसर्च की है. दिल्ली के सुभाष नगर, यमुना पर बने पुल, चांदनी चौक, मिरांडा हाउस, झिलमिल कौलोनी, बस स्टैंड आदि जगहों पर शूटिंग की गई है. फिल्म का गीतसंगीत साधारण है. टाइटल गीत कुछ अच्छा है.
इन चारों फुकरों में से वरुण शर्मा ने अपने अभिनय से प्रभावित किया है. उस का हर रात सपना देखना और सपने के अनुसार लौटरी का नंबर लगाना व लौटरी का लग जाना जैसी बातें फिल्म में फन पैदा करती हैं. फिल्म का छायांकन अच्छा है.
इस फिल्म में न तो हीरोहीरोइन एकदूसरे के लिए मरमिटने की कसमें खाते हैं, न ही एकदूसरे से लिपटतेचिपटते हैं. इस प्रेम कहानी में नायिका के प्रति नायक की दीवानगी है, पागलपन है. निर्देशक आनंद एल राय ने बचपन के इस प्यार को बहुत खूबसूरती से आगे बढ़ते दिखाया है. ब्लौकबस्टर गीत ‘कोलावेरी डी’ से शोहरत हासिल करने वाला दक्षिण भारत का स्टार धनुष इस फिल्म का हीरो है और सोनम कपूर ने हीरोइन की भूमिका निभाई है.
धनुष चेहरेमोहरे से हीरो बिलकुल नहीं लगता. रफटफ चेहरे वाला, दाढ़ी बढ़ी हुई, उलटेसीधे कपड़े पहने जब वह नायिका का पीछा करता है तो लगता है जैसे कोई फटीचर किसी सुंदरी का पीछा कर रहा हो. जब वह नायिका से अपने प्यार का इजहार करता है तो दर्शकों के चेहरों पर हंसी आ जाती है.यही फिल्म की खासीयत है. निर्देशक ने बनारस की गलियों में प्यार का जो रस उड़ेला है उसे देख मजा आने लगता है. इस के अलावा फिल्म की कई और खासीयतें भी हैं.
फिल्म की कहानी शुरू होती है नायक कुंदन (धनुष) और नायिका जोया (सोनम कपूर) के बचपन से. कुंदन एक पुजारी का बेटा है और जोया मुसलिम है. कुंदन बचपन से ही जोया से प्यार करता है जबकि बिंदिया (स्वरा भास्कर) कुंदन को चाहती है. जोया के घर वाले उसे आगे पढ़ने के लिए अलीगढ़ भेज देते हैं. इन 8 सालों में जोया कालेज पहुंच जाती है. उस की जिंदगी में छात्र यूनियन का नेता जसजीत उर्फ अकरम जैदी (अभय देओल) आ जाता है.
8 साल बाद जब जोया वापस घर लौटती है तो वह कुंदन को नहीं पहचान पाती. जोया उसे बताती है कि वह उस से प्यार नहीं करती बल्कि कालेज में साथ पढ़ने वाले अकरम जैदी से प्यार करती है. कुंदन उन दोनों की शादी करवाने में सहयोग करता है. लेकिन ज्यों ही अकरम का भेद खुलता है कि वह मुसलमान नहीं हिंदू है, शादी नहीं हो पाती. उसे अधमरा कर फेंक दिया जाता है. बाद में वह मर जाता है.
यूनिवर्सिटी में अब छात्र नेता जसजीत उर्फ अकरम जैदी द्वारा छोड़े गए कामों की जिम्मेदारी जोया अपने सिर ले लेती है. एक स्थानीय नेता छात्र यूनियन को अपनी पार्टी में मिलाने की कोशिश करता है. स्वयं मुख्यमंत्री एक चाल चल कर कुंदन को मरवा देता है. जोया मुख्यमंत्री की करतूतें जनता को बता कर वाहवाही लूटती है. उसे न जसजीत उर्फ अकरम जैदी मिला न ही कुंदन.
फिल्म की कहानी काफी कसी हुई है. मध्यांतर तक कहानी में पकड़ बनी रहती है. मध्यांतर के बाद ज्यों ही कहानी छात्र संघ के सदस्यों द्वारा प्रदर्शन, धरनों और पुलिस के साथ हुई झड़पों में फंस जाती है तो लगता है कहानी पटरी से उतर गई. मध्यांतर से पहले कहानी में बनारस का जो टेस्ट नजर आता है वह दिल्ली पहुंचने पर कड़वाहट में बदल जाता है. कहानी छात्र संघ की राजनीति में उलझ जाती है.
फिल्म के संवाद हिमांशु शर्मा ने लिखे हैं जो बहुत ही जानदार हैं. निर्देशक ने बनारस की पृष्ठभूमि का पूरा निचोड़ इन संवादों में डाल दिया है. धनुष की संवाद अदायगी में दक्षिण भारत का पुट साफ झलकता है.
दक्षिण में तो धनुष स्टार है, इस फिल्म में भी उस ने अच्छा अभिनय किया है. सोनम कपूर मासूम किशोरी सी लगी है. सब से अच्छा काम स्वरा?भास्कर और कुंदन के दोस्त पंडित की भूमिका में मोहम्मद जीशान अय्यूब का है.
ए आर रहमान का संगीत काफी अच्छा है. गीत इरशाद कामिल ने लिखे हैं, जिन के बोल अच्छे हैं. छायांकन अच्छा है.
बौलीवुड की कार्यप्रणाली बहुत ही अजीबोगरीब है. यहां पर 8-10 साल काम करने के बाद कुछ भी सहज नहीं होता है, बल्कि कठिनाइयां बढ़ती ही हैं. ऐसा मानना है बौलीवुड अभिनेता अभय देओल का. फिल्म ‘सोचा न था’ से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले अभय हाल ही में प्रदर्शित फिल्म ‘रांझणा’ में वाम विचारधारा वाले नेता के रूप में नजर आए. पेश है शांतिस्वरूप त्रिपाठी से हुई उन की बातचीत के खास अंश.
फिल्म ‘रांझणा’ में आप जेएनयू नेता के किरदार में नजर आए. निजी जीवन में आप इस किरदार के साथ कितना रिलेट करते हैं?
मैं भी थोड़ा वाम विचारधारा का हूं. मैं बीच का रास्ता ले कर चलता हूं, थोड़ा सा आशावादी भी हूं. मेरा मानना है कि पैसे से ही गरीबी आती है. पैसा ही रचनात्मकता को खत्म करता है और पैसा आने से इंसानियत भी मर जाती है.
लेकिन आप को नहीं लगता कि वर्तमान में पूरे विश्व से वाम विचारधारा खत्म होती जा रही है?
मैं न वामपंथी हूं और न ही सामान्य विचारधारा का हूं, बल्कि बीच में हूं. मेरा मानना है कि हमेशा बीच का रास्ता अपनाना चाहिए. देखिए, पूरे विश्व में न तो साम्यवाद चला है और न ही पूंजीवाद. मेरे खयाल से दोनों असफल हैं.
आप अपने 8 साल के कैरियर में खुद को कहां पाते हैं?
यह तो मुझे नहीं पता. लेकिन इन 8 वर्षों में मैं ने बहुतकुछ सीखा है. जो चाहा, वह किया. मैं ने दिमाग के बजाय दिल से सोच कर काम किया. कई बार सफल भी हुआ, कई बार असफल भी. फिल्म इंडस्ट्री बहुत अजीबोगरीब तरीके से काम करती है. यहां बहुत छोटे विचारों वाले लोग हैं. यहां खुले दिमाग नहीं, बल्कि बंद दिमाग के लोग हैं. इसलिए इस माहौल में काम करना बहुत कठिन होता है.
फिल्म इंडस्ट्री या यों कहें कि बौलीवुड की जो कार्यशैली है, क्या उस में आप खुद को फिट नहीं पाते हैं?
फिल्म इंडस्ट्री में काम करने के दौरान हम बहुत सी चीजों को देख कर सोचते हैं कि यह नहीं होना चाहिए. कुछ चीजें देख कर लगता है कि यह कुछ ज्यादा होनी चाहिए. पर हमें रुक कर यह सोचना पड़ेगा कि मैं क्या काम कर रहा हूं, जो मैं कर रहा हूं, क्या उस से खुश हूं, क्या वह मेरे लिए सही है? यदि इन सारे सवालों के जवाब ‘हां’ हैं तो आगे बढ़ते जाना चाहिए.
अभिनेता के बाद अब आप निर्माता भी बन गए हैं. इस की वजह?
मैं ने कुछ ऐसी फिल्में कीं जिन्हें मार्केटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन में निर्माता ने मार दिया था. मैं उन अनुभवों से फिर नहीं गुजरना चाहता. जो फिल्में मैं बनाना चाहता हूं उन्हीं को बनाने के लिए मैं ने यह कदम उठाया है. मुझे यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं है कि फिल्म इंडस्ट्री के बड़े निर्माताओं का मुझे सपोर्ट नहीं है. यदि मैं छोटे निर्माताओं के पास जाता हूं तो यह डर लगा रहता है कि वे मार्केटिंग व डिस्ट्रीब्यूशन में फिल्म को मार न दें. इसलिए मैं ने सोचा कि मैं खुद फिल्म का निर्माण करूं. ऐसे में फिल्म मेरे हिसाब से बनेगी. मेरे हिसाब से बिकेगी और मैं फिर किसी दूसरे को दोष नहीं दे सकूंगा.
आप को नहीं लगता कि फिल्म निर्माता बनना काफी कठिन काम है?
कठिन तो है. सच कहूं तो इस फिल्म इंडस्ट्री में काम करना ही कठिन है. फिर चाहे आप अभिनेता हों या निर्माता या फिर निर्देशक. हर किसी के लिए बहुत कठिन परिस्थितियां होती हैं.
अपनी फिल्म ‘वन बाय टू’ को ले कर कुछ बताएंगे?
फिल्म की शूटिंग पूरी हो चुकी है. फिल्म का सब्जैक्ट यह है कि किस तरह से प्रकृति अलगअलग तरह के लोगों को एकसाथ आने पर मजबूर करती है. दोनों अलग विचारधारा के हैं. और कैसे यूनिवर्स उन्हें इंस्पायर करता है, उस की कहानी है.
इस फिल्म में बतौर नायिका आप की प्रेमिका प्रीति देसाई को लेने की कोई खास वजह?
फिल्म में प्रीति देसाई को जोड़ने का निर्णय मेरा नहीं था. यह निर्देशक देविका का निर्णय रहा. जब उन्होंने मुझे फिल्म का सब्जैक्ट बताया था तभी उन्होंने मुझ से पूछा था कि क्या वे प्रीति देसाई का औडिशन ले लें. मैं ने कह दिया था कि आप प्रीति से बात कर लें.
फिल्म ‘शंघाई’ की असफलता की वजह क्या रही?
इस की मार्केटिंग बहुत गलत तरीके से की गई. फिल्म की मार्केटिंग इस तरह से की गई कि यह इमरान हाशमी की फिल्म है. दर्शकों के दिमाग में बसा कि यह तो सीरियल किसर वाला कलाकार है. इस की फिल्म में संगीत बहुत होता है. इमरान हाशमी है, इसलिए फिल्म में गाने डाल दिए गए. फिल्म की रिलीज से पहले ही मुझे पता चल गया था कि यह फिल्म नहीं चलेगी. जब आप फिल्म को प्रमोट गलत तरीके से करेंगे तो कैसे चलेगी? जब आप ने एक अलग तरह की फिल्म बनाई है तो लोगों तक यह बात पहुंचाइए कि आप ने कितनी अलग तरह की फिल्म बनाई है.
मुझे मसाला फिल्मों से एतराज नहीं है. मैं तो कहता हूं कि आप मसाला फिल्में बनाएं और उसे बेचें. लेकिन जब आप मसाला फिल्म नहीं बना रहे हैं तो उसे मसाला फिल्म के रूप में क्यों बेच रहे हैं?
आप ने कुछ समय पहले एक हौलीवुड फिल्म ‘सिंगुलैरिटी’ की थी. उस की क्या स्थिति है?
मुझे इस के बारे में कुछ भी नहीं पता. मेरी समझ में भी नहीं आ रहा है कि इस फिल्म के साथ क्या हो रहा है. वास्तव में इस फिल्म की शूटिंग भारत में हो रही थी. फिल्म के निर्देशक रोलांड जोफी को भारतीय कलाकारों की जरूरत थी. उन्होंने हमें याद किया. मैं ने भी एक नया अनुभव लेने के लिए फिल्म में काम किया. उस के बाद क्या हुआ, मुझे खुद पता नहीं चला.
क्या आप भविष्य में दूसरी हौलीवुड फिल्म करना चाहेंगे?
हौलीवुड व बौलीवुड इंडस्ट्री, दोनों की कार्यप्रणाली अलग है. वहां एक खास तरह की कार्यप्रणाली है, जिस का वहां निर्वाह होता है. वहां काम करने के लिए हमें एक एजेंट व एक मैनेजर रखना पड़ेगा. उस के बाद अच्छी स्क्रिप्ट की तलाश के लिए मुझे विदेश जाना पड़ेगा. ?
टीवी से दूरी बनाए रखने की बात भूल कर आप इन दिनों एक शो ‘कनैक्टेड हमतुम’ में नजर आ रहे हैं?
मैं ने अब तक जितनी भी फिल्में की हैं उन सभी का कंटैंट अच्छा था. हर फिल्म में मुझे कुछ नया करने का मौका मिला और अब मैं टीवी शो में भी कुछ नया कर रहा हूं. मैं ने यह शो टीआरपी या पैसे की बात सोच कर स्वीकार नहीं किया. इस शो का फौर्मेट बहुत अच्छा है.
यदि हमें लोगों के बीच ‘वायलैंस अगेंस्ट वीमन’ को ले कर जागरूकता फैलानी है तो नारी की जिंदगी क्या है, उस का प्रोफैशन क्या है, उस की अपनी समस्याएं क्या हैं, उस का सामाजिक स्तर क्या है और नारी को ले कर क्याक्या समस्याएं आती हैं, वह सब भी जानना जरूरी है.
औरतों को ले कर आप की सोच क्या है?
औरतें तो रहस्य हैं. वे हमें डराती ज्यादा हैं. पुरुषों के मुकाबले औरतें कहां ज्यादा ताकतवर होती हैं? पुरुषों के मुकाबले औरतें ज्यादा इमोशनल होती हैं. सुंदर होती हैं. औरतें अपने हिसाब से सामाजिक समस्याओं को देखती हैं.
जिस तरह से इस शो में औरतें अपनी निजी जिंदगी की बात कैमरे पर खुल कर बता रही हैं, क्या उस से आप सहज होंगे?
निजी स्तर पर मैं कभी नहीं चाहूंगा कि 24 घंटे कैमरा मेरे ऊपर या मेरी जिंदगी के इर्दगिर्द रहे. मैं दूसरों के साथ अपनी निजी जिंदगी नहीं बांट सकता. क्योंकि एक कलाकार के रूप में मैं अपनेआप से झूठ बोलता हूं. भले ही काल्पनिक हो, मगर लोग फिल्मों में मुझे हंसते हुए ही देखते हैं.
मैं अपने घर के अंदर कैमरा रखने की इजाजत नहीं दे सकता. कलाकार बनते ही हम पब्लिक फिगर हो जाते हैं, मगर मैं कुछ चीजें अपने लिए बचा कर रखना चाहता हूं. हां, यदि मैं कलाकार न होता तो शायद मैं भी अपनी जिंदगी को कैमरे पर बताने के बारे में सोचता.