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Raksha Bandhan : साहिल ने कैसे निभाया अपने भाई होने का फर्ज?

साहिल आज काफी मसरूफ था. सुबह से उठ कर वह जयपुर जाने की तैयारी में लगा था. उस की अम्मी उस के काम में हाथ बंटा रही थीं और समझा रही थीं, ‘‘बेटे, दूर का मामला है, अपना खयाल रखना और खाना ठीक समय पर खा लिया करना.’’

साहिल अपनी अम्मी की बातें सुन कर मुसकराता और कहता, ‘‘हां अम्मी, मैं अपना पूरा खयाल रखूंगा और खाना भी ठीक समय पर खा लिया करूंगा. वैसे भी अम्मी अब मैं बड़ा हो गया हूं और मुझे  अपना खयाल रखना आता है.’’

साहिल को इंटरव्यू देने जयपुर जाना था. उस के दिल में जयपुर घूमने की चाहत थी, इसलिए वह 10-15 दिन जयपुर में रहना चाहता था. सारा सामान पैक कर के साहिल अपनी अम्मी से विदा ले कर चल पड़ा.

अम्मी ने साहिल को ले कर बहुत सारे ख्वाब देखे थे. जब साहिल 8 साल का था, तब उस के अब्बा बब्बन मियां का इंतकाल हो गया था. साहिल की अम्मी पर तो जैसे बिजली गिर गई थी. उन के दिल में जीने की कोई तमन्ना ही नहीं थी, लेकिन साहिल को देख कर वे ऐसा न कर सकीं.

अम्मी ने साहिल की अच्छी परवरिश को ही अपना मकसद बना लिया था. इसी वजह से साहिल को कभी अपने अब्बा की कमी महसूस नहीं हुई थी. तभी तो साहिल ने अपनी अम्मी की इच्छाओं को पूरा करने के लिए एमए कर लिया था और अब वह नौकरी के सिलसिले में इंटरव्यू देने जयपुर जा रहा था.

साहिल को विदा कर के उस की अम्मी घर का दरवाजा बंद कर घर के कामों में मसरूफ हो गईं. उधर साहिल भी अपने शहर के बस स्टैंड पर पहुंच गया.

जयपुर जाने वाली बस आई, तो साहिल ने बस में चढ़ कर टिकट लिया और एक सीट पर बैठ गया. साहिल की आंखों से उस का शहर ओझल हो रहा था, पर उस की आंखोंमें अम्मी का चेहरा रहरह कर सामने आ रहा था.

अम्मी ने साहिल को काफी मेहनत से पढ़ायालिखाया था, इसलिए साहिल ने भी इंटरव्यू के लिए बहुत अच्छी तैयारी की थी. बस के चलतेचलते रात हो गई थी. ज्यादातर सवारियां सो रही थीं. जो मुसाफिर बचे थे, वे ऊंघ रहे थे.

रात के अंधेरे को रोशनी से चीरती हुई बस आगे बढ़ी जा रही थी. एक जगह जंगल में रास्ता बंद था. सड़क पर पत्थर रखे थे. ड्राइवर ने बस रोक दी. तभी 2-3 बार फायरिंग हुई और बस में कुछ लुटेरे घुस आए.

इस अचानक हुए हमले से सभी मुसाफिर घबरा गए और जान बचाते हुए अपना सारा पैसा उन्हें देने लगे. एक लड़की रोरो कर उन से दया की भीख मांगने लगी. वह बारबार कह रही थी, ‘‘मेरे पास थोड़े से रुपयों के अलावा कुछ नहीं है.’’

मगर उन जालिमों पर उस की मासूम आवाज का कुछ असर नहीं हुआ. उन में से एक लुटेरा, जो दूसरे सभी लुटेरों का सरदार लग रहा था, एक लुटेरे से बोला, ‘‘अरे ओ कृष्ण, बहुत बतिया रही है यह लड़की. अरे, इस के पास देने को कुछ नहीं है, तो उठा ले ससुरी को और ले चलो अड्डे पर.’’ इतना सुनते ही एक लुटेरे ने उस लड़की को उठा लिया और जबरदस्ती उसे अपने साथ ले जाने लगा.

वह डरी हुई लड़की ‘बचाओबचाओ’ चिल्ला रही थी, पर किसी मुसाफिर में उसे बचाने की हिम्मत न हुई. साहिल भी चुप बैठा था, पर उस के दिल के अंदर से आवाज आई, ‘साहिल, तुम्हें इस लड़की को उन लुटेरों से छुड़ाना है.’

यही सोच कर साहिल अपनी सीट से उठा और लुटेरों को ललकारते हुए बोला, ‘‘अरे बदमाशो, लड़की को छोड़ दो, वरना अच्छा नहीं होगा.’’ इतना सुनते ही उन में से 2-3 लुटेरे साहिल पर टूट पड़े. वह भी उन से भिड़ गया और लड़की को जैसे ही छुड़ाने लगा, तो दूसरे लुटेरे ने गोली चला दी. गोली साहिल की बाईं टांग में लगी.

साहिल की हिम्मत देख कर दूसरे कई मुसाफिर भी लुटेरों को मारने दौड़े. कई लोगों को एकसाथ आता देख लुटेरे भाग खड़े हुए, पर तब तक साहिल की टांग से काफी खून बह चुका था. लिहाजा, वह बेहोश हो गया.

ड्राइवर ने बस तेजी से चला कर जल्दी से साहिल को एक अस्पताल में पहुंचा दिया. सभी मुसाफिर तो साहिल को भरती करा कर चले गए, पर वह लड़की वहीं रुक गई. डाक्टर ने जल्दी ही साहिल की मरहमपट्टी कर दी.

कुछ देर बाद जब साहिल को होश आया, तो सामने वही लड़की खड़ी थी. साहिल को होश में आता देख कर वह लड़की बहुत खुश हुई. साहिल ने उसे देख राहत की सांस ली कि लड़की बच गई. पर अचानक इंटरव्यू का ध्यान आते ही उस के मुंह से निकला, ‘‘अब मैं जयपुर नहीं पहुंच सकता. मेरे इंटरव्यू का क्या होगा?’’

लड़की उस की बात सुन कर बोली, ‘‘क्या आप जयपुर में इंटरव्यू देने जा रहे थे? मेरी वजह से आप की ये हालत हो गई. मैं आप से माफी चाहती हूं. मुझे माफ कर दीजिए.’’

‘‘अरे नहीं, यह आप क्या कह रही हैं? आप ने मेरी बात का गलत मतलब निकाल लिया. अगर मैं आप को बचाने न आता, तो पता नहीं मैं अपनेआप को माफ कर भी पाता या नहीं. खैर, छोडि़ए यह सब. अच्छा, यह बताइए कि आप यहां क्यों रुक गईं? मुझे लगता है कि सभी मुसाफिर चले गए हैं.’’

लड़की ने कहा, ‘‘जी हां, सभी मुसाफिर रात को ही चले गए थे. आप के पास भी तो किसी को होना चाहिए था. अपनी जान की परवाह किए बिना आप ने मेरी जान बचाई. ऐसे में मेरा फर्ज बनता था कि मैं आप के पास रुकूं. मैं आप की हमेशा एहसानमंद रहूंगी.’’

‘‘यह तो मेरा फर्ज था, जो मैं ने पूरा किया. अच्छा, यह बताइए कि आप कल जयपुर जा रही थीं या कहीं और…?’’

इतना सुनते ही लड़की की आंखों में आंसू आ गए. वह बोली, ‘‘आप ने मेरी जान बचाई है, इसलिए मैं आप से कुछ नहीं छिपाऊंगी. मेरा नाम आरती है. मेरे पैदा होने के कुछ साल बाद ही पिताजी चल बसे थे. मां ने ही मुझे पाला है.

‘‘मेरे ताऊजी मां को तंग करते थे. हमारे हिस्से की जमीन पर उन्होंने कब्जा कर लिया. उन्होंने मेरी मां से धोखे में कोरे कागज पर अंगूठा लगवा लिया और हमारी जमीन उन के नाम हो गई.

‘‘एक महीने पहले मां भी मुझे छोड़ कर चल बसीं. मेरे ताऊजी मुझे बहुत तंग करते थे. उन के इस रवैए से तंग आ कर मैं भाग निकली और उसी बस में आ कर बैठ गई, जो बस जयपुर जा रही थी.

‘‘मैं ने 12वीं तक की पढ़ाई की है. सोचा था कि कहीं जा कर नौकरी कर लूंगी,’’ यह कह कर आरती चुप हो गई.

साहिल को आरती की कहानी सुन कर अफसोस हुआ. कुछ देर बाद आरती बोली, ‘‘अब आप को होश आ गया है, 2-4 दिन में आप बिलकुल ठीक हो जाएंगे. अच्छा तो अब मैं चलती हूं.’’

साहिल ने कहा, ‘‘पर कहां जाएंगी आप? अभी तो आप ने बताया कि अब आप का न कोई घर है, न ठिकाना. ऐसे में आप अकेली लड़की. बड़े शहर में नौकरी मिलना इतना आसान नहीं होता.

‘‘वैसे, मेरा नाम साहिल है. मजहब से मैं मुसलमान हूं, पर अगर आप हमारे घर मेरी छोटी बहन बन कर रहें, तो मुझे बहुत खुशी होगी.’’

‘‘लेकिन, आप तो मुसलमान हैं?’’ आरती ने कहा. साहिल ने कहा, ‘‘मुसलमान होने के नाते ही मेरा यह फर्ज बनता है कि मैं किसी बेसहारा लड़की की मदद करूं. मुझे हिंदू बहन बनाने में कोई परहेज नहीं, अगर आप तैयार हों, तो…’’

आरती ने साहिल के पैर पकड़ लिए, ‘‘भैया, आप सचमुच महान हैं.’’

‘‘अरे आरती, यह सब छोड़ो, अब  हम अपने घर चलेंगे. अम्मी तो तुम्हें देख कर बहुत खुश होंगी.’’ एक हफ्ते बाद साहिल ठीक हो गया.  डाक्टर ने उसे छुट्टी दे दी.

साहिल आरती को ले कर अपने घर पहुंचा. दरवाजा खटखटाते हुए उस ने आवाज लगाई, तो उस की अम्मी ने दरवाजा खोला.

साहिल को देख कर वे चौंकीं, ‘‘अरे साहिल, सब खैरियत तो है न? तू इतनी जल्दी कैसे आ गया? तू तो 15 दिन के लिए जयपुर गया था. क्या बात है?’’

‘‘अरे अम्मी, अंदर तो आने दो.’’

‘‘हांहां, अंदर आ.’’

साहिल जैसे ही लंगड़ाते हुए अंदर आया, तो उस की अम्मी को और धक्का लगा, ‘‘अरे साहिल, तू लंगड़ा क्यों रहा है? जल्दी बता.’’

साहिल ने कहा, ‘‘सब बताता हूं, अम्मी. पहले मैं तुम्हें एक मेहमान से मिलवाता हूं,’’ कह कर साहिल ने आरती को आवाज दी. आरती दबीसहमी सी अंदर आई. खूबसूरत लड़की को देख कर साहिल की अम्मी का दिल खुश हो गया, पर अगले ही पल अपने को संभालते हुए वे बोलीं, ‘‘साहिल, ये कौन है? कहीं तू ने…

‘‘अरे नहीं, अम्मी. आप गलत समझ रही हैं.’’

अपनी अम्मी से साहिल ने जयपुर सफर की सारी बातें बता दीं.

सबकुछ सुन कर साहिल की अम्मी बोलीं, ‘‘बेटा, तू ने यह अच्छा किया. अरे, नौकरी तो फिर कहीं न कहीं मिल ही जाएगी, पर इतनी खूबसूरत बहन तुझे फिर न मिलती. बेटी आरती, आज से यह घर तुम्हारा ही है.’’

इतना सुनते ही आरती साहिल की अम्मी के पैरों में गिर पड़ी.

‘‘अरे बेटी, यह क्या कर रही हो. तुम्हारी जगह मेरे दिल में बन गई. अब तुम मेरी बेटी हो,’’ इतना कह कर अम्मी ने आरती को गले से लगा लिया.

साहिल एक ओर खड़ा मुसकरा रहा था. अब साहिल के घर में बहन की कमी पूरी हो गई थी. आरती को भी अपना घर मिल गया था. उस की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए थे.

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Raksha Bandhan : लौंगलता- बारिश में लीजिए इस मिठाई का स्वाद, हमेशा रहेगा याद

भारत में लौंग की गिनती लोकप्रिय मसालों में होती है. इस की लोकप्रियता का ही प्रमाण इस के नाम पर बनने वाली लौंगलता है. लौंगलता की सब से बड़ी खासीयत उस में लौंग का इस्तेमाल है. लौंगलता को लौंग के जरिए बांधा जाता है, ताकि उस के अंदर भरे मेवे और मसाले बाहर न आ सकें.

बनाने की विधि

लौंगलता के कारीगर रमेशपाल कहते हैं कि 1 किलोग्राम मैदे से 100 के करीब लौंगलता बन जाती हैं.

इसे बनाने के लिए सब से पहले मैदे को ठीक तरह से गूंधा जाता है.

इस के बाद 1 किलोग्राम खोया, 200 ग्राम काजू, 1 ग्राम केसर और 50 ग्राम किशमिश को मिला कर अंदर भरने की सामग्री तैयार की जाती है.

फिर 1 किलोग्राम चीनी ले कर चाशनी तैयार की जाती है.

मैदे से गोल आकार की पूड़ी बना कर उस के अंदर मेवा भर दिया जाता है.

इस के बाद पूड़ी को मोड़ कर सही आकार देते हैं. मोड़ते समय परत दर परत हलका घी लगा देते हैं, जिस से परतें आपस में मिलती नहीं हैं.

परतें खुले नहीं, इस के लिए लौंग से उन्हें फंसा दिया जाता है. 

तैयार लौंगलताओं को घी में हलका भूरा होने तक तल लेते हैं. इस के बाद उन्हें चीनी की चाशनी में डाल कर निकाल लेते हैं.

ऊपर पिस्ता डाल कर लौंगलताओं को सजा देते हैं.

लौंगलता को तलते समय ध्यान रखना चाहिए कि आंच ज्यादा न हो. ज्यादा तेज आंच होने से यह सख्त हो सकती है, जो खाने में सही नहीं लगती है.

जानें इस मिठाई के बारे में…

लौंगलता देशी मिठाई है. पहले यह वाराणसी में सब से ज्यादा मशहूर थी. समय के साथसाथ लखनऊ जैसे दूसरे शहरों में भी यह मिलने लगी. अब सारी दुनिया इस की दीवानी है. इस का जायका लोगों को काफी समय तक याद रहता है.

लखनऊ में जब छप्पनभोग नामक मिठाई की दुकान चालू हुई, तो उस के मालिक रवींद्र गुप्ता ने देशी मिठाइयों को विदेशों में पहचान दिलाने का काम शुरू किया. उन की नजर सब से पहले लौंगलता पर पड़ी. रवींद्र गुप्ता कहते हैं कि लौंगलता ऐसी मिठाई है, जिसे बाहर भेजना आसान होता है. यह आसानी से पैक हो जाती है. इसे कोरियर से बाहर भेजते हैं.

विदेशों में रहने वाले भारतीय मिठाइयों के शौकीन लोग इसे खूब पसंद करते हैं. इसे खाने में मिठाई और मेवे के साथसाथ लौंग का स्वाद भी मिलता है. इसे बनाने में अच्छे किस्म के गेहूं के मैदे का इस्तेमाल किया जाता है. इस में खोया व मेवा भी अच्छी किस्म का इस्तेमाल किया जाता है.

वैसे तो विदेशों में बहुत सारी भारतीय मिठायां खाई जाती हैं, पर लौंगलता अपने रसीले बनारसी टेस्ट के कारण लोगों को बहुत लुभाती है.

विदेशों में रहने वाले लोग ऐसी मिठाई पसंद करते हैं, जिस का स्वाद अच्छा हो, पर उस में चीनी का इतना प्रयोग न हुआ हो, जो नुकसान कर सके. ऐसे में लौंगलता उन के लिए सब से ज्यादा मुफीद होती है. लौंगलता की मांग उन देशों में सब से ज्यादा है, जहां पर भारतीय ज्यादा तादाद में रहते हैं.

अमेरिका, इंगलैंड, मारीशस और सिंगापुर वगैरह ऐसे ही देश हैं. मुसलिम आबादी वाले देशों में भी इस की मांग खूब है. अरब देशों में भी लौंगलता खूब पसंद की जाती है. तमाम भारतीय विदेश वापस जाते समय अपने साथ लौंगलता जरूर ले जाते हैं.

लौंगलता ज्यादा दिनों तक बिना खराब हुए रखी जा सकती है. विदेशों के अलावा मुंबई, दिल्ली और जयपुर के लोग भी इसे खूब पसंद करते हैं. बाहर भेजने के लिए लौंगलता को ऐसे पैक किया जाता है, जिस से इसे ले जाना आसान हो और देखने वाले पर इस का बेहतर असर पड़ सके.

लौंगलता 300 रुपए प्रति किलोग्राम से ले कर 500 रुपए प्रति किलोग्राम तक बिकती है. गरम लौंगलता खाने का अलग मजा होता है. आजकल ज्यादातर घरों में ओवन होता है. लौंगलता खाने से पहले उसे ओवन में एक बार गरम कर लिया जाए तो उस का स्वाद बढ़ जाता है. लौंगलता गुझिया नस्ल की मिठाई है, जिस का स्वाद अब विदेशों तक पहुंच रहा है.

Raksha Bandhan : कजिन्स का बनाएं व्हाट्सऐप ग्रुप

आदत के मुताबिक उस दिन भी सुबह बिस्तर छोड़ने से पहले अपूर्वा ने अपना स्मार्टफोन उठा कर जैसे ही व्हाट्सऐप खोला तो खुद को एक और नए ग्रुप में जुड़ा देख कर ?ाल्ला उठी लेकिन जैसे ही उस ने ग्रुप का नाम देखा तो सुखद आश्चर्य से भर उठी. ग्रुप का नाम था ‘स्वीट कजिन्स’.

ग्रुप में कुल 6 मैंबर थे जिन में से 3 के नंबर तो उस के पास नाम से सेव थे. आदित्य उस का भाई, अनामिका और अंबर उस के बड़े पापा के बच्चे जो उम्र में उस से थोड़े बड़े थे. बाकी 2 को उस ने डीपी देख कर पहचाना कि अरे, यह तो लालिमा है जबलपुर वाली बूआ की बेटी और यह नेहा है इंदौर वाली बूआ की बेटी, जो आजकल यूएस की एक बड़ी कंपनी में जौब कर रही है.

ग्रुप की एडमिन लालिमा थी जिस ने अंगरेजी में अपने वैलकम मैसेज में लिखा था, ‘‘इस नए ग्रुप में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. यह कितने हैरत की बात है कि हम इस पीढ़ी के लोग ढंग से एकदूसरे को जानते तक नहीं जबकि हमारे पेरैंट्स ने लंबा वक्त साथ गुजारा है और उन में अभी तक पहले सी ही बौंडिंग व ताजगी है. ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब मम्मी, मामा लोग की, मामियों की और विदिशा वाले अपने पुश्तैनी घर की चर्चा न करती हों. नानीनाना की बात करते तो कभीकभी वे भावुक होते रो भी पड़ती हैं.

‘‘इस ग्रुप को बनाने का एक बड़ा मकसद हमारे पेरैंट्स के रिश्ते की मजबूती व उन के स्नेह और यादों को फिर से जिंदा कर हमारे बीच वह आत्मीय परिचय कायम रखना है जो उन की जिंदगी का अटूट हिस्सा है और हमें विरासत में मिला है. मैं उम्मीद करती हूं कि जल्द ही हम एकदूसरे के इतने नजदीक आ जाएंगे कि जब कभी किसी फंक्शन में मिलें तो पूरी अनौपचारिकता, आत्मीयता, जिंदादिली और प्यार से मिलें. मु?ो लगता है कि हमारे पेरैंट्स को इस से उतनी ही खुशी मिलेगी जितना कि कभी एकदूसरे से बिछड़ते वक्त उन्हें दुख हुआ होगा. उन के पास तो कई यादें हैं लेकिन हमारे पास तो वह भी नहीं हैं. यूं तो हम एकदूसरे को नाम से जानते हैं बचपन में मिले भी हैं. संभव है इस ग्रुप के कुछ मैंबर बाद में कभी मिले हों पर अब सैटल होने के बाद मिलने का लुत्फ ही अलग होगा.’’

पोस्ट काफी भावुक और लंबीचौड़ी थी जिस के आखिर में लालिमा ने अपना पूरा परिचय देते सभी का परिचय चाहा था. अपूर्वा भूल गई कि उसे आज जागने में देर हो गई है और जल्द ही उसे कंपनी की जूम मीटिंग जौइन करने लैपटौप खोल कर बैठ जाना है. उस ने तुरंत अपने बारे में सबकुछ बताते लालिमा को इस खुबसूरत पहल के लिए थैंक्स बोला और लंच में फिर मिलने का वादा किया. दोपहर तक सभी ने ग्रुप बनने पर खुशी जाहिर की.

आज सचमुच वह बहुत खुश थी क्योंकि अपने इन सभी कजिन्स से मिले उसे मुद्दत हो गई थी, हां मम्मीपापा से सुनती जरूर रहती थी कि बड़ी बुआ 2 चोटी बना कर कालेज जाती थी तो सहपाठी उन्हें यह कहते चिढ़ाते थे कि दो चोटी वाली लल्लूजी की साली. एक बार बड़े पापा को टाकीज के बाहर सिगरेट पीते देख दादाजी ने रंगे हाथों पकड़ा था और घर तक घसीट कर लाए थे और फिर तबीयत से उन की धुनाई की थी. पापा को इंटर में गणित में कम नंबर मिलने पर मुर्गा बनाया था. फिर तो पापा ने गणित में इतनी मेहनत की थी कि उन्हें राज्य के सब से नामी इंजीनयरिंग कालेज में दाखिला मिला था वह भी स्कौलरशिप के साथ. तब उन का फोटो सभी अखबारों में छपा था जिन की कटिंग्स मम्मी ने आज भी अपनी शादी के एलबम में लगा कर रखी हैं.

छोटी बुआ को जब लड़के वाले यानी फूफाजी के घर वाले देखने आए थे और रिश्ते के लिए हां कर गए थे तो वे उन्हीं के सामने फफकफफक कर बड़े पापा के सीने से चिपक गई थीं कि मैं आप लोगों को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी.

इसलिए जरूरी हैं कजिन्स

ऐसी कई बातें अपूर्वा के मन में उमड़घुमड़ रहीं थीं. यह याद करते तो उसे अभी भी हंसी आ गई कि बचपन में ये चारों भाईबहन जब लड़ते थे तो दादी उन्हें ऊपर वाले कमरे में बंद कर कहतीं थीं, ‘अब तुम लोग ही फैसला कर लो खूब एकदूसरे के हाथपैर और सिर फोड़ो पर दरवाजा तुम्हारे पापा के आने के बाद ही खुलेगा. इस पर चारों लड़ाई?ागड़ा छोड़ उन की खुशामद करने लगते थे. कितने अमीर थे वे लोग उस ने सोचा और हम लोग कितने कंगाल हैं जो दिनरात कंपनी की नौकरी में सिर खपाए रहते हैं.

कहने को ही सबकुछ है मसलन अच्छी सैलरी वाली जौब, यारदोस्त, वीकएंड की पार्टियां और सैरसपाटा. फिर भी कुछ खालीपन सा रहता है मन में, यह खालीपन क्या है यह आज उसे सम?ा आ रहा था जब लालिमा ने यह ग्रुप बनाया.

इस बात को 3 साल गुजर चुके हैं पुणे में रह कर एक सौफ्टवेयर कंपनी में नौकरी कर रही अपूर्वा बताती है, ‘‘फिर मानो लाइफ में बहार सी आ गई. पांचों कजिन्स इतने घुलमिल कर बात करते हैं, अपनी रोजमर्राई बातें सा?ा करते हैं जैसे बचपन से साथ खेलेपलेबढ़े हों अब मैं और रोमांचित हूं क्योंकि इसी साल अनामिका दीदी की शादी में एकसाथ होंगे. मैं ने तो सभी के लिए अभी से गिफ्ट खरीदना शुरू कर दिया है यूएस से नेहा भी आ रही है. हम सब ने प्लानिंग भी कर ली है कि कैसेकैसे धमाल शादी में करेंगे. सच स्वीट कजिन्स ग्रुप ने मेरी जिंदगी बदल दी है.’’

आप भी बनाएं

अपूर्वा ने स्वीट कजिन्स ग्रुप के तुरंत बाद एक और कजिन्स ग्रुप बनाया था जिस में मामा और मौसी के बच्चे शामिल किए थे. इस ग्रुप में भी पेरैंट्स और नानानानी से जुड़ी यादें सा?ा होती हैं. बचपन की खट्टीमीठी यादों का रिनुअल होता है. वह बच्चों जैसे खुश हो कर बताती है, ‘‘संडे को अलगअलग दोनों ग्रुप्स में वीडियो कौल भी होता है. अब पहले सी बोरियत नहीं होती और सब से मिलने का मन भी करता है. नहीं तो लगता है कि रिलेशन के नाम पर मम्मीपापा और आदित्य के अलावा कोई और है ही नहीं.

तो देर किस बात की आप भी उठाइए अपना मोबाइल फोन और फटाफट बना डालिए अपने कजिन्स का एक स्वीट सा ग्रुप फिर सम?ा आएगा कि इस भागतीदौड़ती दुनिया और बढ़ती दूरियों में नजदीकी रिश्तों की क्या अहमियत है. हमउम्र कजिन्स के साथ लगभग सारी बातें सा?ा हो जाती हैं जिस से टैंशन और डिप्रैशन दूर करने में मदद मिलती है. कई बार अच्छीखासी उपयोगी चर्चा भी हो जाती है जौब में भी सहायता मिलती है.

यह कम हैरत की बात नहीं कि वजहें कुछ भी हों युवाओं को अपने रिश्तेदारों के बारे में इतनी ही जानकारी है कि फलां आजकल वहां है और अमुक शहर में है कई बार तो कजिन्स एक ही शहर में नौकरी कर रहे होते हैं लेकिन एकदूसरे से कोई वास्ता ही नहीं रखते. 26 वर्षीय अभिनय कोरोनाकाल में जब घर आया तो उसे पता चला कि उस के चाचा का बेटा सार्थक जिस के साथ वह क्रिकेट खेला करता था वह भी मुंबई में ही जौब करता है तो उस ने तुरंत चाचा को फोन कर उस का नंबर लिया और सार्थक से बात की.

अब दोनों महीने के एक किसी वीकएंड में मिल कर साथसाथ एंजौय करते हैं और किसी भी तरह की जरूरत पड़ने पर एकदूसरे के लिए उपलब्ध रहते हैं. इन दोनों की इस दोस्ती से पेरैंट्स भी खुश और बेफिक्र हैं जो अपने जमाने का यह डायलौग दोहराते हैं कि वाकई खून के रिश्तों की अपनी एक अलग कशिश होती है. आज नहीं तो कल खून जोर मारता ही है.

लेकिन ध्यान रखें

कजिन्स का व्हाट्सऐप ग्रुप जरूर बनाएं लेकिन इस में कुछ बातों का ध्यान रखा जाना जरूरी है. मसलन फिजूल की धार्मिक और राजनीतिक पोस्टें न डालें, किसी भी मुद्दे पर जब बहस हो तो अपनी बात पर अड़े न रहें दूसरों की भी सुनें. पोस्ट डालते वक्त इस बात का ध्यान रखें कि कोई भद्दी, अश्लील बात या वीडियो ग्रुप में न जाए और न ही ऐसा कोई मैसेज डालें जिस से किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचे. जोक्स भी स्वस्थ डालना चाहिए. अपनी सैलरी वगैरह का बखान वेवजह नहीं करना चाहिए और न ही किसी को नीचा दिखाने की मंशा रखनी चाहिए.

और सब से अहम बात यह कि पेरैंट्स से जुड़े नएपुराने विवाद अगर कोई हों तो उन की चर्चा नहीं करनी चाहिए कि कब किस ने किस के साथ क्या अच्छाबुरा किया था या धोखा दिया था. याद रखें हर कहीसुनी बात सच नहीं होती और वैसे भी विवादों को जिंदा रखना और ढोना एक फुजूल की बात है जिस के आप की जिंदगी में कोई माने या जगह नहीं होनी चाहिए.

इस से यकीन मानें आप को कई नहीं तो कुछ रियल फ्रैंड्स और वैलविशर मिलेंगे जिन से आप परिचित तो हैं लेकिन एक ऐसी दूरी बीच में आ गई है जिस के बारे में आप ने कभी सोचा भी नहीं होगा. यही कजिन्स आप के सुखदुख में बिना किसी स्वार्थ के साथ देंगे. आप घर में हों या बाहर हों कजिन्स आप को औरों से बेहतर सम?ोंगे. महानगरीय जिंदगी का दंश ?ोल रहे कई युवा तो अकेले रहते इतने हैरानपरेशान हो जाते हैं कि अकसर सोचते हैं कि क्या मतलब ऐसी जिंदगी के जिस में कोई अपना न हो. अपने तो हैं जरूरत है उन्हें एक व्हाट्सऐप ग्रुप में जोड़ कर पेरैंट्स की तरह संबंध बनाने और निभाने की.

बवासीर : ऐसे पाएं नजात

गुदा के अंदर वौल्व की तरह गद्देनुमा कुशन होते हैं, जो मल को बाहर निकालने या रोकने में सहायक होते हैं. जब इन कुशनों में खराबी आ जाती है, तो इन में खून का प्रवाह बढ़ जाता है और ये मोटे व कमजोर हो जाते हैं. फलस्वरूप, शौच के दौरान खून निकलता है या मलद्वार से ये कुशन फूल कर बाहर निकल आते हैं. इस व्याधि को ही बवासीर कहा जाता है.

ऐसा माना जाता है कि कब्ज यानी सूखा मल आने के फलस्वरूप मलद्वार पर अधिक जोर पड़ता है तथा पाइल्स फूल कर बाहर आ जाते हैं. बवासीर की संभावना के कई कारण हो सकते हैं.

क्या हैं कारण

शौच के समय अधिक जोर लगाना, कम रेशेयुक्त भोज्य पदार्थ का सेवन करना, बहुत अधिक समय तक बैठे या खड़े रहना, बहुत अधिक समय तक शौच में बैठे रहना, मोटापा, पुरानी खांसी, अधिक समय तक पतले दस्त लगना, लिवर की खराबी, दस्तावर पदार्थों या एनिमा का अत्यधिक प्रयोग करना, कम पानी पीना और गरिष्ठ भोज्य पदार्थों का अधिक सेवन करना आदि.

आनुवंशिक : एक ही परिवार के सदस्यों को आनुवंशिक गुणों के कारण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में आना.

बाह्य संरचना :  पाइल्स साधारणतया जानवरों में नहीं पाए जाते, चूंकि मनुष्य पैर के बल पर सीधा खड़ा रहता है, सो, गुरुत्वाकर्षण बल के कारण शरीर के निचले भाग में कमजोर नसों में अधिक मात्रा में रक्त एकत्रित हो जाता है, जिस से नसें फूल जाती हैं और पाइल्स का कारण बनती हैं.

शारीरिक संरचना : गुदा में पाई जाने वाली नसों को मजबूत मांसपेशियों का सहारा नहीं मिलने के कारण ये नसें फूल जाती हैं और कब्ज के कारण जोर लगता है तो फटने के कारण खून निकलना शुरू हो जाता है.

लक्षण पहचानें

शौच के दौरान बिना दर्द के खून आना, मस्सों का फूलना व शौच के दौरान बाहर आना. मल के साथ चिकने पदार्थ का रिसाव होना व बाहर खुजली होना, खून की लगातार कमी के कारण एनीमिया होना तथा कमजोरी आना व चक्कर आना और भूख नहीं लगना इस के प्रमुख लक्षण हैं.

उपाय भी हैं

यदि हम खानपान में सावधानी बरतें तो बवासीर होने से बचने की संभावना होती है. कब्ज न होने दें, भोजन में अधिक रेशेयुक्त पदार्थों का प्रयोग करें, दोपहर के खाने में कच्ची सब्जियों का सलाद लें, अंकुरित मूंगमोठ का प्रयोग करें, गेहूं का हलका मोटा पिसा व बिना छना आटा खाएं, खाना चबाचबा कर खाएं, रात को गाय के दूध में 8-10 मुनक्का डाल कर उबाल कर खाएं. चाय व कौफी कम पीएं, वजन ज्यादा हो तो कम करें, प्रतिदिन व्यायाम करें और सकारात्मक सोच रखें.

इन बातों का रखें ध्यान

जब भी शौच की जरूरत महसूस हो, तो उसे रोका न जाए. शौच के समय जरूरत से ज्यादा जोर न लगाएं. लंबे समय तक जुलाब न लें. बहुत अधिक समय तक एक ही जगह पर न बैठें. शौच जाने के बाद मलद्वार को पानी से अच्छी तरह साफ करें.

एमआईपीएच विधि से इलाज

एमआईपीएच यानी मिनिमली इनवेजिव प्रौसीजर फौर हेमरोहिड्स. इस विधि में एक विशेष उपकरण, जिसे स्टेपलर कहते हैं, काम में लिया जाता है, जो कि सिर्फ एक ही बार काम में आता है. यह विधि गे्रड-1, ग्रेड-2 तथा ग्रेड-3, जोकि दूसरी विधि के फेल हो जाने पर काम में ली जा सकती है.

इस विधि में पाइल्स को काट कर उस के ऊपर मलद्वार में 2-3 इंच की खाल कट जाती है, जिस से पाइल्स अपने सामान्य स्थान पर आ जाते हैं. इस विधि को करने में मात्र 20 मिनट लगते हैं, न के बराबर खून निकलता है, तथा दर्द भी कम ही होता है व मरीज को 24 घंटों से पहले छुट्टी दे दी जाती है. व्यक्ति 24-48 घंटों में काम पर जाने लायक हो जाता है. इस विधि द्वारा उपचार करने के बाद फिर से पाइल्स होने की संभावना 2 से 10 प्रतिशत ही रहती है, निर्भर करता है कि सर्जन कितना अनुभवी है.

(लेखक पाइल्स व गुदा रोग विशेषज्ञ हैं.)

बहू-बेटी का फर्क : अनुराग की शादी से नाखुश थी सपना की मां?

जब से वे सपना की शादी कर के मुक्त हुईं तब से हर समय प्रसन्नचित्त दिखाई देती थीं. उन के चेहरे से हमेशा उल्लास टपकता रहता था. महरी से कोई गलती हो जाए, दूध वाला दूध में पानी अधिक मिला कर लाए अथवा झाड़ ूपोंछे वाली देर से आए, सब माफ था. अब वे पहले की तरह उन पर बरसती नहीं थीं. जो भी घर में आता, उत्साह से उसे सुनाने बैठ जातीं कि उन्होंने कैसे सपना की शादी की, कितने अच्छे लोग मिल गए, लड़का बड़ा अफसर है, देखने में राजकुमार जैसा. फिर भी एक पैसा दहेज का नहीं लिया. ससुर तो कहते थे कि आप की बेटी ही लक्ष्मी है और क्या चाहिए हमें. आप की दया से घर में सब कुछ तो है, किसी बात की कमी नहीं. बस, सुंदर, सुसंस्कृत व सुशील बहू मिल गई, हमारे सारे अरमान पूरे हो गए.

शादी के बाद पहली बार जब बेटी ससुराल से आई तो कैसे हवा में उड़ी जा रही थी. वहां के सब हालचाल अपने घर वालों को सुनाती, कैसे उस की सास ने इतने दिनों पलंग से नीचे पांव ही नहीं धरने दिया. वह तो रानियों सी रही वहां. घर के कामों में हाथ लगाना तो दूर, वहां तो कभी मेहमान अधिक आ जाते तो सास दुलार से उसे भीतर भेजती हुई कहती, ‘‘बेचारी सुबह से पांव लगतेलगते थक गई, नातेरिश्तेदार क्या भागे जा रहे हैं कहीं. जा, बैठ कर आराम कर ले थोड़ी देर.’’

और उस की ननद अपनी भाभी को सहारा दे कर पलंग पर बैठा आती.

यह सब जब उन्होंने सुना तो फूली नहीं समाईं. कलेजा गज भर का हो गया. दिन भर चाव से रस लेले कर वे बेटी की ससुराल की बातें पड़ोसिनों को सुनाने से भी नहीं चूकतीं. उन की बातें सुन कर पड़ोसिन को ईर्ष्या होती. वे सपना की ससुराल वालों को लक्ष्य कर कहतीं, ‘‘कैसे लोग फंस गए इन के चक्कर में. एक पैसा भी दहेज नहीं देना पड़ा बेटी के विवाह में और ऐसा शानदार रोबीला वर मिल गया. ऊपर से ससुराल में इतना लाड़प्यार.’’

उस दिन अरुणा मिलने आईं तो वे उसी उत्साह से सब सुना रही थीं, ‘‘लो, जी, सपना को तो एम.ए. बीच में छोड़ने तक का अफसोस नहीं रहा. बहुत पढ़ालिखा खानदान है. कहते हैं, एम.ए. क्या, बाद में यहीं की यूनिवर्सिटी में पीएच.डी. भी करवा देंगे. पढ़नेलिखने में तो सपना हमेशा ही आगे रही है. अब ससुराल भी कद्र करने वाला मिल गया.’’

‘‘फिर क्या, सपना नौकरी करेगी, जो इतना पढ़ा रहे हैं?’’ अरुणा ने उन के उत्साह को थोड़ा कसने की कोशिश की.

‘‘नहीं जी, भला उन्हें क्या कमी है जो नौकरी करवाएंगे. घर की कोठी है.  हजारों रुपए कमाते हैं हमारे दामादजी,’’ उन्होंने सफाई दी.

‘‘तो सपना इतना पढ़लिख कर क्या करेगी?’’

‘‘बस, शौक. वे लोग आधुनिक विचारों के हैं न, इसलिए पता है आप को, सपना बताती है कि सासससुर और बहू एक टेबल पर बैठ कर खाना खाते हैं. रसोई में खटने के लिए तो नौकरचाकर हैं. और खानेपहनाने के ऐसे शौकीन हैं कि परदा तो दूर की बात है, मेरी सपना तो सिर भी नहीं ढकती ससुराल में.’’

‘‘अच्छा,’’ अरुणा ने आश्चर्य से कहा.

मगर शादी के महीने भर बाद लड़की ससुराल में सिर तक न ढके, यह बात उन के गले नहीं उतरी.

‘‘शादी के समय सपना तो कहती थी कि मेरे पास इतने ढेर सारे कपड़े हैं, तरहतरह के सलवार सूट, मैक्सी और गाउन, सब धरे रह जाएंगे. शादी के बाद तो साड़ी में गठरी बन कर रहना होगा. पर संयोग से ऐसे घर में गई है कि शादी से पहले बने सारे कपड़े काम में आ रहे हैं. उस के सासससुर को तो यह भी एतराज नहीं कि बाहर घूमने जाते समय भी चाहे…’’

‘‘लेकिन बहनजी, ये बातें क्या सासससुर कहेंगे. यह तो पढ़ीलिखी लड़की खुद सोचे कि आखिर कुंआरी और विवाहिता में कुछ तो फर्क है ही,’’ श्रीमती अरुणा से नहीं रहा गया.

उन्होंने सोचा कि शायद श्रीमती अरुणा को उन की पुत्री के सुख से जलन हो रही है, इसीलिए उन्होंने और रस ले कर कहना शुरू किया, ‘‘मैं तो डरती थी. मेरी सपना को शुरू से ही सुबह देर से उठने की आदत है, पराए घर में कैसे निभेगी. पर वहां तो वह सुबह बिस्तर पर ही चाय ले कर आराम से उठती है. फिर उठे भी किस लिए. स्वयं को कुछ काम तो करना नहीं पड़ता.’’

‘‘अब चलूंगी, बहनजी,’’ श्रीमती अरुणा उठतेउठते बोलीं, ‘‘अब तो आप अनुराग की भी शादी कर डालिए. डाक्टर हो ही गया है. फिर आप ने बेटी विदा कर दी. अब आप की सेवाटहल के लिए बहू आनी चाहिए. इस घर में भी तो कुछ रौनक होनी ही चाहिए,’’ कहतेकहते श्रीमती अरुणा के होंठों की मुसकान कुछ ज्यादा ही तीखी हो गई.

कुछ दिनों बाद सपना के पिता ने अपनी पत्नी को एक फोटो दिखाते हुए कहा, ‘‘देखोजी, कैसी है यह लड़की अपने अनुराग के लिए? एम.ए. पास है, रंग भी साफ है.’’

‘‘घरबार कैसा है?’’ उन्होंने लपक कर फोटो हाथ में लेते हुए पूछा.

‘‘घरबार से क्या करना है? खानदानी लोग हैं. और दहेज वगैरा हमें एक पैसे का नहीं चाहिए, यह मैं ने लिख दिया है उन्हें.’’

‘‘यह क्या बात हुई जी. आप ने अपनी तरफ से क्यों लिख दिया? हम ने क्या उसे डाक्टर बनाने में कुछ खर्च नहीं किया? और फिर वे जो देंगे, उन्हीं की बेटी की गृहस्थी के काम आएगा.’’

अनुराग भी आ कर बैठ गया था और अपने विवाह की बातों को मजे ले कर सुन रहा था. बोला, ‘‘मां, मुझे तो लड़की ऐसी चाहिए जो सोसाइटी में मेरे साथ इधरउधर जा सके. ससुराल की दौलत का क्या करना है?’’

‘‘बेशर्म, मांबाप के सामने ऐसी बातें करते तुझे शर्म नहीं आती. तुझे अपनी ही पड़ी है, हमारा क्या कुछ रिश्ता नहीं होगा उस से? हमें भी तो बहू चाहिए.’’

‘‘ठीक है, तो मैं लिख दूं उन्हें कि सगाई के लिए कोई दिन तय कर लें. लड़की दिल्ली में भैयाभाभी ने देख ही ली है और सब को बहुत पसंद आई है. फिर शक्लसूरत से ज्यादा तो पढ़ाई- लिखाई माने रखती है. वह अर्थशास्त्र में एम.ए. है.’’

उधर लड़की वालों को स्वीकृति भेजी गई. इधर वे शादी की तैयारी में जुट गईं. सामान की लिस्टें बनने लगीं.

अनुराग जो सपना के ससुराल की तारीफ के पुल बांधती अपनी मां की बातों से खीज जाता था, आज उन्हें सुनाने के लिए कहता, ‘‘देखो, मां, बेकार में इतनी सारी साडि़यां लाने की कोई जरूरत नहीं है, आखिर लड़की के पास शादी के पहले के कपड़े होंगे ही, वे बेकार में पड़े बक्सों में सड़ते रहें तो इस से क्या फायदा.’’

‘‘तो तू क्या अपनी बहू को कुंआरी छोकरियों के से कपड़े यहां पहनाएगा?’’ वह चिल्ला सी पड़ीं.

‘‘क्यों, जब जीजाजी सपना को पहना सकते हैं तो मैं नहीं पहना सकता?’’

वे मन मसोस कर रह गईं. इतने चाव से साडि़यां खरीद कर लाई थीं. सोचा था, सगाई पर ही लड़की वालों पर अच्छा प्रभाव पड़ गया तो वे बाद में अपनेआप थोड़ा ध्यान रखेंगे और हमारी हैसियत व मानसम्मान ऊंचा समझ कर ही सबकुछ करेंगे. मगर यहां तो बेटे ने सारी उम्मीदों पर ही पानी फेर दिया.

रात को सोने के लिए बिस्तर पर लेटीं तो कुछ उदास थीं. उन्हें करवटें बदलते देख कर पति बोले, ‘‘सुनोजी, अब घर के काम के लिए एक नौकर रख लो.’’

‘‘क्यों?’’ वह एकाएक चौंकीं.

‘‘हां, क्या पता, तुम्हारी बहू को भी सुबह 8 बजे बिस्तर पर चाय पी कर उठने की आदत हो तो घर का काम कौन करेगा?’’

वे सकपका गईं.

सुबह उठीं तो बेहद शांत और संतुष्ट थीं. पति से बोलीं, ‘‘तुम ने अच्छी तरह लिख दिया है न, जी, जैसी उन की बेटी वैसी ही हमारी. दानदहेज में एक पैसा भी देने की जरूरत नहीं है, यहां किस बात की कमी है, मैं तो आते ही घर की चाबियां उसे सौंप कर अब आराम करूंगी.’’

‘‘पर मां, जरा यह तो सोचो, वह अच्छी श्रेणी में एम.ए. पास है, क्या पता आगे शोधकार्य आदि करना चाहे. फिर ऐसे में तुम घर की जिम्मेदारी उस पर छोड़ दोगी तो वह आगे पढ़ कैसे सकेगी?’’ यह अनुराग का स्वर था.

उन की समझ में नहीं आया कि एकाएक क्या जवाब दें.

कुछ दिन बाद जब सपना ससुराल से आई तो वे उसे बातबात पर टोक देतीं, ‘‘क्यों री, तू ससुराल में भी ऐसे ही सिर उघाड़े डोलती रहती है क्या? वहां तो ठीक से रहा कर बहुओं की तरह और अपने पुराने कपड़ों का बक्सा यहीं छोड़ कर जाना. शादीशुदा लड़कियों को ऐसे ढंग नहीं सुहाते.’’

सपना ने जब बताया कि वह यूनिवर्सिटी में दाखिला ले रही है तो वे बरस ही पड़ीं, ‘‘अब क्या उम्र भर पढ़ती ही रहेगी? थोड़े दिन सासससुर की सेवा कर. कौन बेचारे सारी उम्र बैठे रहेंगे तेरे पास.’’

आश्चर्यचकित सपना देख रही थी कि मां को हो क्या गया है?

देश को बढ़ाने का नुरखा

वैसे तो वे अपने घर, परिवार, महल्ले, गांव, जाति और धर्म से बाहर निकलने के आदी नहीं थे, पर इस बार जाने कहां से उन्होंने देश को आगे बढ़ाने का नारा सुन लिया और सोचा कि चलो, देश को आगे बढ़ा लिया जाए.

देश उन्हें हमेशा ही भगवान की तरह लगा. वैसे उन्हें न भगवान नजर आता था न देश. हां, घर दिखाई देता है, महल्ला दिखाई देता है, गांव दिखाई देता है, पर देश की केवल बातें ही बातें सुनाई देती हैं. उन्होंने जब से यह गाना सुना था कि ‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती’ तब से कई बार पूरे खेत को खोद डाला था पर मिट्टी ही मिट्टी निकली थी.

इस से उन्हें लगने लगा था, जैसे किसी दूसरे देश में रह रहे हों क्योंकि देश की धरती को तो सोना और हीरेमोती उगलना चाहिए था. वे तो भागेभागे उन दिनों गुजरात भी चले गए थे. लोगों ने सोचा था कि भूकंप पीडि़तों की सहायता के लिए गए होंगे, पर वे तो यह सोच कर गए थे कि शायद खोदने पर हीरेमोती न निकलते हों, मगर भूकंप आने पर तो धरती हीरेमोती जरूर उगलेगी.

जिस तरह पंडेपुरोहित भगवान से प्रेम रखने के लिए कहते रहते हैं, उसी तरह नेता लोग देश से प्रेम करने के लिए लोगों को उकसाते रहते हैं. दोनों के ही धंधे का सवाल है, इसलिए वे दिनरात अपना धंधा चमकाने के लिए लोगों को देश और धर्म से प्रेम करना सिखाते हैं.

पंडित जबजब मिलता तबतब कहता, ‘‘भैया, भगवान से प्रेम करो. वही अजर, अमर, अविनाशी हैं, कणकण में विराजमान हैं, घटघट वासी हैं, उन की मरजी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता, वे सबकुछ जानते हैं, सबकुछ देखते हैं, सबकुछ सुनते हैं. वही कर्ता हैं, वही कर्म हैं, वही करण हैं, वे संप्रदान, अपादान आदि हैं. उन से प्रेम करो क्योंकि वे हैं तभी तो हमारा धंधा है.

इसी तरह नेता कहता है कि देश से प्रेम करो. फिर वह इस अमूर्त को मूर्त रूप देने की जरूरत महसूस करता है तो इस निर्णय पर पहुंचता है कि आम आदमी अपनी मां को बहुत चाहता है, सो वह देश को मां बना देता है, भारत माता. फिर वह कहता है कि अपनी मातृभूमि से प्रेम करो और खुद दूसरों की भूमि से प्यार जताने विदेशों में डोलता फिरता है.

नेता खुद कहता है और अपने टुच्चे चापलूसों से भी कहलवाता है, ‘मातृभूमि पर शीश चढ़ाओ, मातृभूमि पर बलिबलि जाओ…’ और खुद रक्षा के नाम पर बड़ेबड़े हथियारों के सौदों में तहलका कर रहा होता है. इधर लोग मातृभूमि से प्रेम करने लगते हैं तो उधर मातृभूमि पर हमेशा खतरा मंडराने के नाम पर और मातृभूमि की रक्षा के नाम पर हथियार और परमाणु तकनीक खरीदने के लिए बड़ेबड़े सौदे करते हुए नेता दलाली की रकम से स्विस बैंक की तिजोरी भरता जाता है.

सो सुबह से शाम तक देश से प्रेम करना सिखाना नेता का चोखा धंधा है.

पंडित हो या नेता दोनों ही देशवासियों को अपनीअपनी तरह से उल्लू बनाने में लगे हैं, पर जब पंडित नेता बन जाता है तब नीम चढ़ा करेला बन कर देश का कचूमर निकाल देता है.

इस बार वे चक्कर में आ चुके थे. वे यानी कि श्याम सेवकजी. नेता ने कहा कि देश को आगे बढ़ाना है तो वे सोच में पड़ गए कि क्या और कैसे बढ़ाना है. देश तो देखा ही नहीं. केवल उस का नक्शा देखा है जो उन्हें अपने हाथों बनाए आलू के परांठे जैसा नजर आता है. इसलिए बिना खाना खाए तो वे देश का नक्शा देखना ही नहीं चाहते हैं, उन्हें लगता है कि ये नेता शायद भूखे पेट देश का नक्शा देख लेते होंगे तभी उसे खाने लगते हैं.

इस देश को किस ओर आगे बढ़ाया जाए? उत्तर की तरफ बढ़ाते हैं तो चीन नहीं बढ़ने देगा, पश्चिम की ओर पाकिस्तान नहीं बढ़ने देगा, पूर्व में बंगलादेश, दक्षिण में श्रीलंका व मालदीव बाधक बनेंगे. उन्होंने सोचा कि संस्कृत में कहा गया है कि  ‘महाजनो येन गत: स पंथ:’ (वही रास्ता है जिस से महान व्यक्ति गया) इसलिए लोगों से पूछना चाहिए. उन के अनुभवों का लाभ लेने के लिए वे निकल पड़े. सब से पहले वे महाजन (व्यापारी) के पास पहुंचे और बोले, ‘‘सेठजी, क्या आप देश को आगे बढ़ा रहे हैं?’’

‘‘हां, बढ़ा तो रहे हैं,’’ सेठजी बोले.

‘‘तो हमें भी बताइए,’’ वे बोले.

‘‘देखो भाई, देश को आगे बढ़ाना एक ऊंचा भाव है, इसलिए हम चीजों के भाव बढ़ा रहे हैं.’’

श्याम सेवकजी आगे बढ़े तो सरकारी दफ्तर के एक बाबू मिले. उन्हें लगा ये दूसरे किस्म के महाजन हैं. महान हैं, इसीलिए सरकारी बाबू बने. उन से भी उन्होंने वही सवाल दोहराया, ‘‘बाबूजी, आप देश को आगे बढ़ा रहे हैं?’’

‘‘हां, बढ़ा देंगे, 2 हजार लगेंगे,’’ बाबूजी बोले.

‘‘मैं सम?ा नहीं?’’ श्याम सेवक ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘अरे भाई, जब एक दुबलीपतली फाइल को आगे बढ़ाने के 100-50 ले लेते हैं, फिर ये तो इतना बड़ा देश है. 50 तो चपरासी ही ले लेगा,’’ बाबूजी बोले.

श्याम सेवक ने सोचा कि देश का भविष्य तो नौजवानों के कंधों पर है, सो वे एक शिक्षित बेरोजगार के पास पहुंचे, जो पान की दुकान पर बैठ कर लड़कियों के कालेज की छुट्टी का इंतजार कर रहा था. उस से भी वही सवाल किया, ‘‘क्यों भैया, क्या तुम देश को आगे बढ़ा रहे हो?’’

उस ने अपने गालों पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘फिलहाल तो हम अपनी दाढ़ी बढ़ा रहे हैं और तुम अपनी गाड़ी बढ़ाओ, फूटो यहां से, छुट्टी होने वाली है.’’

मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार के मुख्यमंत्रियों से तो पूछना ही बेकार था, क्योंकि वे तो अपना प्रदेश घटा चुके थे सो देश को क्या आगे बढ़ाते.

दूध वाले के पास गए तो उस ने कहा, ‘‘हम तो दूध में पानी बढ़ा रहे हैं.’’

डाक्टरों ने कहा, ‘‘हम फीस बढ़ा रहे हैं.’’

अदालतों ने कहा, ‘‘हम तारीख बढ़ा रहे हैं.’’

कुछ महिलाएं महिला सशक्तीकरण के कार्यक्रम में जाने से पहले ब्लाउज के गले का दायरा बढ़ा रही थीं. वकील वादी/प्रतिवादियों के बीच दरार बढ़ा रहे थे ताकि वे समझौता न कर सकें. कुल मिला कर यह कि नेताओं के नारों के कारण देश में हर कोई कुछ न कुछ बढ़ा रहा था, मगर देश है कि बढ़ ही नहीं पा रहा.

थकहार कर श्याम सेवकजी एक धार्मिक पीठ पर पहुंचे. जा कर पीपल के पेड़ के नीचे लेट गए. लेटेलेटे ही उन्होंने देखा कि पीपल के पेड़ पर एक लोहे की प्लेट ठुकी थी जिस पर पीले रंग का पेंट पुता था. पेंट पर नीले रंग से लिखा हुआ था, ‘तुम सुधरोगे, जग सुधरेगा.’

वे फिर लेटे नहीं रह पाए. अगर आर्कमिडीज होते तो यूरेकायूरेका चिल्लाते हुए सड़क पर भागते, पर चूंकि वे आर्कमिडीज नहीं थे, इसलिए पूरे वस्त्रों में अपने को ढके हुए तेज कदमों से घर पहुंचे. उन्हें अपने हिस्से के देश को आगे बढ़ाने का सूत्र मिल गया था.

अगले दिन ही उन्होंने राजमिस्त्री बुलवाए, अपना चबूतरा तुड़वा कर 3 फीट आगे गली में बढ़वा दिया. गली संकरी हो गई थी. पर उन्होंने अपने हिस्से का देश आगे बढ़ा लिया था और लोगों की नासम?ा पर वे बेहद दुखी हुए. यदि सारे देशवासी उन्हीं की तरह अपनीअपनी जिम्मेदारियां निभाएं तो सारा देश कहां का कहां पहुंच जाए.

लोगों ने 14 साल बाद इस एक्टर से मांगे फिल्म के रिफंड पैसे, मिला ये मजेदार जवाब

Imran Khan : फिल्म ‘जाने तू या जाने ना’ फेम एक्टर इमरान खान ने भले ही इस समय बड़े पर्दे से दूरी बना रखी है, लेकिन सोशल मीडिया पर वह काफी एक्टिव रहते हैं. यहां तक की वह अपने ज्यादातर फैंस के सवालों का जवाब भी देते हैं. हाल ही में उन्होंने एक यूजर के सवाल का मजाकिया अंदाज में जवाब दिया. जो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.

एक्टर से किस फिल्म के लिए मांगे रिफंड पैसे ?

दरअसल, बीते दिन एक्टर इमरान खान (Imran Khan) ने एक पोस्ट किया था, जिसमें उन्होंने लिखा था कि अगर इस पोस्ट पर एक मिलियन लाइक्स आ जाते हैं तो वो बॉलीवुड में कमबैक करेंगे. इस पोस्ट पर लोगों ने जमकर कमेंट किया. एक यूजर ने एक्टर की पोस्ट पर कमेंट करते हुए लिखा, ‘एक मिलियन लाइक्स मिल जाएंगे, लेकिन तब, जब आपकी फिल्म ‘किडनैप’ और ‘लक’ देखने के लिए हमने जो पैसे दिए हैं, उसे लौटा दें.’

एक्टर- मुझे ही नहीं मिली पेमेंट

वहीं इस यूजर को इमरान (Imran Khan) ने रिप्लाई भी किया. उन्होंने लिखा, ‘जो पैसे आप देते हैं, वह सबसे पहले थिएटर के मालिक और फिर उसके बाद प्रोड्यूसर्स के पास जाते हैं. चीजें ऐसे ही चलती हैं.’ इसके आगे एक्टर ने लिखा, ‘मुझे ही उस मूवी की अभी तक फाइनल पेमेंट नहीं मिली है. इसलिए यह मुद्दा हम उनके सामने उठा सकते हैं.’

इस फिल्म से रखा था बॉलीवुड में कदम

आपको बता दें कि पिछले कुछ समय से इमरान खान (Imran Khan) बॉलीवुड में कमबैक को लेकर चर्चाओं में बने हुए हैं. कहा जा रहा है कि वो जल्द ही किसी बड़ी फिल्म में नजर आएंगे. वहीं उन्होंने बाल कलाकार के रूप में ‘जो जीता वही सिकंदर’ फिल्म से बॉलीवुड में कदम रखा था. इसके बाद वह 2008 में आई फिल्म ‘जाने तू या जाने ना’ में नजर आए थे, जिसमें उन्होंने लीड एक्टर के तौर पर अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत की थी.

पाकिस्तानी एक्ट्रेस Mahira Khan करेंगी दूसरी शादी, 7 साल पहले हुआ था तलाक

Mahira Khan Wedding : पाकिस्तानी एक्ट्रेस माहिरा खान पाकिस्तान के साथ-साथ भारत में भी काफी फेमस हैं. साल 2017 में उन्होंने एक्टर शाहरुख खान की मूवी ‘रईस’ से बॉलीवुड में डेब्यू किया था, जिसके बाद से भारत में उनकी तगड़ी फैन फॉलोइंग बन गई है. इसके अलावा बॉलीवुड एक्टर रणबीर कपूर के संग भी उनका नाम जोड़ा गया था, जिससे उन्हें खुब लाइमलाइट मिली थी. हालांकि अब एक बार फिर माहिरा खान अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर सुर्खियों में हैं.

दरअसल, कहा जा रहा है कि वो (Mahira Khan Boyfriend ) जल्द ही अपने लॉन्गटाइम बॉयफ्रेंड सलीम करीम से शादी करने वाली हैं.

लॉन्गटाइम बॉयफ्रेंड संग लेंगी सात फेरे

पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कहा जा रहा है कि एक्ट्रेस माहिरा खान (Mahira Khan Boyfriend) अपने बॉयफ्रेंड सलीम करीम संग अगले महीने यानी सितंबर 2023 में शादी कर सकती है. निकाह के लिए पाकिस्तान के पंजाब में एक हिल स्टेशन को चुना गया है. शादी में केवल परिवार और करीबी दोस्त ही शामिल होंगे. हालांकि अभी तक माहिरा ने अपनी शादी से जुड़ी किसी भी खबर पर रिएक्ट नहीं किया है.

एक्ट्रेस के मैनेजर ने किया बड़ा खुलासा

आपको बता दें कि एक्ट्रेस माहिरा खान (Mahira Khan Boyfriend) कई सालों से बिजनेसमैन सलीम करीम को डेट कर रही हैं. कई बार तो दोनों को इवेंट्स और दोस्तों संग तस्वीरों में भी देखा गया है. हालांकि जब माहिरा की शादी की खबरों के बारे में उनके मैनेजर अनुषाय तल्हा से पूछा गया, तो उन्होंने इन खबरों को ‘गैरजिम्मेदार पत्रकारिता’ बता दिया. साथ ही ये भी कहा कि, ये सारी खबरें एक्ट्रेस के परिवार और उनके दोस्तों के ऑफिशियल स्टेटमेंट के बिना पब्लिश की गई हैं.

तलाकशुदा हैं माहिरा खान

आपको बता दें कि साल 2006 में एक्ट्रेस माहिरा खान (Mahira Khan Boyfriend) की मुलाकात लॉस एंजेलिस में अली असकरी से हुई थी, जिसके एक साल बाद उन्होंने उनसे शादी कर ली थी. हालांकि माहिरा के पिता अली से उनकी शादी के खिलाफ थे लेकिन फिर भी उन्होंने ये शादी की. वहीं साल 2009 में माहिरा ने एक बेटे अजलान को जन्म दिया, लेकिन कुछ साल बाद दोनों के रिश्ते में दूरियां आने लगी, जिसके बाद साल 2015 में माहिरा ने अली से तलाक ले लिया.

मैं ऐसा क्या करूं जिस से मेरे परिवार की मदद हो सके ?

सवाल

हम लोग काफी अमीर थे लेकिन पापा को बिजनैस में बहुत घाटा हुआ. ऊपर से कोविड के बाद से हमारी आर्थिक स्थिति काफी डांवांडोल हो गई. मेरे पापा तब से डिप्रैशन में आ गए हैं. मम्मी और मैं उन्हें समझा समझा कर हार गए हैं लेकिन निराशा उन के दिमाग में ऐसी घर कर गई है कि बाहर ही नहीं निकलती. मैं अपने पेरैंट्स की इकलौती संतान हूं. हमारे सारे रिलेटिव कोई मदद के लिए आगे नहीं आते. कई बार तो मुझे लगता है कि उन्हें हमारी यह हालत देख कर मजा आता है क्योंकि पहले वे सारे हमारी संपन्नता देख कर जलते थे.

जवाब

जीवन में उतारचढ़ाव तो आते ही हैं. उन्हें स्वीकार कर लेंगे तो उस से उबरने में मदद मिलती है. आप के पापा ने पूरी तरह से हार मान ली है, इस कारण डिप्रैशन में भी आ गए हैं.

आप और मम्मी दोनों को उन्हें हर हाल में सम?ाना होगा कि बिजनैस तो बनतेबिगड़ते रहते हैं. उन्हें फिर से ऊपर उठाना है. उन्हें विश्वास दिलाएं कि आप उन के साथ हैं. स्थितियां बदल चुकी हैं, फिर से बिजनैस को जमाने की कोशिश करें. रिश्तेदार नहीं तो यारदोस्तों से मदद लेने की कोशिश करें. एकदूसरे का सहारा बनें. हालात बदलते देर नहीं लगती. हिम्मत मत हारिए.

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