‘‘कुछ खास नहीं, वही रूटीन, औफिस, घर, औफिस. भाई विदेश में हैं और कुसुम सपरिवार अकसर रहने आ जाती है, मां नहीं रहीं.’’
‘‘मैं तो सोचती थी अब तुम अपना जीवन जी रही होगी पर लग रहा है ऐसा नहीं है. तुम्हारे स्वार्थी घर वालों ने यह नहीं सोचा कि तुम्हें भी खुशी पाने का हक है.’’
‘‘वे भी क्या करते… इन सब के लिए मेरी उम्र निकल गई है.’’
‘‘कैसी उम्र निकल गई है. मुझे बताओ क्या तुम खुश हो?’’
नलिनी की आंखें भर आईं, किसी ने कभी उस से नहीं पूछा था कि क्या वह खुश है. धीरेधीरे नलिनी ने मधु को अपने और विकास के बारे में भी बता दिया. उस की मानसिक स्थिति समझ कर मधु ने उस के हाथ पर अपना हाथ रखा और फिर बोली, ‘‘तुम नौकरी करती हो, अपना जीवन जीओ, डरती किस से हो? दुनिया क्या कहेगी, इस की चिंता में तुम ने काफी समय खराब कर लिया है. सब की बहुत जिम्मेदारी उठा ली है, पहला काम करो दुनिया की चिंता हमेशा के लिए दिमाग से निकाल दो. मुझे देखो, मैं अपनी मरजी से जी सकती हूं तो तुम क्यों नहीं?’’
नलिनी को हैरानी हुई कि मधु अपनी तुलना उस के साथ कैसे कर सकती है?
मधु ने ही कहा, ‘‘मेरी शादी हुई थी, लेकिन कुछ साल पहले पति का निधन हो गया, जानती हूं तुम क्या सोच रही हो, मैं तो अच्छे चमकते कपड़े और बढि़या ज्वैलरी पहन कर तैयार हो घूम रही हूं. मैं क्यों सफेद कपड़े पहने लाश की तरह घूमूं? मेरे हिसाब से स्त्री के लिए स्त्रीत्तव की इच्छा करना स्वाभाविक है और फिर ये नियम बनाए किस ने हैं. मैं इन नियमों को नहीं मानती. मुझे घर वालों या लोगों की परवाह नहीं, मैं जो हूं सो हूं और मुझे जीने का उतना ही हक है जितना बाकी लोगों को. 13 साल की मेरी बेटी है, हम में अपनी मरजी से अकेले रह कर जीने की हिम्मत है, हम चाहें तो हिम्मत आ जाती है.’’
‘‘तो तुम क्या कहती हो, मैं क्या करूं?’’
‘‘जो तुम चाहती हो, अपना जीवन तलाशो जहां तुम्हारी जरूरतें पहले आएं.’’
‘‘मधु, सच में तुम मुझे राह दिखा कर इस सब से निकालने के लिए मिली हो.’’
कितने समय से नलिनी दुनिया के अंधेरे और नीरस रंग से जूझ रही थी. मधु
हंसी तो उस की दुनियाको ठेंगा दिखाती यह हंसी नलिनी को समझा गई कि वह जीवन में क्या चाहती थी. दोनों में फोन नंबर और घर के पते का आदानप्रदान हुआ.
नलिनी वहां से चल दी. उसे बेहद शांति मिली थी. उसे क्या करना है, यह निश्चय पक्का हो गया था. उसे लगा कि वह तो आत्महत्या की भावना में डूबी रहती है, जबकि उस की प्रिय सहेली ने आगे बढ़ कर जिंदा रहना सीख लिया. अपने कमरे में आ कर वह लेट गई, वह जान गई अब मुसकराना कितना आसान है. वह विकास के खयाल में डूब गई. उस ने उसे अपना शरीर, मन सब समर्पित किया था. उसे फिर मधु की दुनिया को ठेंगा दिखाती हंसी याद आ गई तो वह भी मुसकरा पड़ी.
उस ने अपना फोन उठाया और पहली बार विकास का नंबर मिला दिया. विकास ने फोन उठाया तो नलिनी के मुंह से उत्साहित स्वर में निकला ‘विकास’ और विकास ने आगे सुने बिना ही प्रसन्नता भरी आवाज में कहा, ‘‘नलिनी, मैं आ रहा हूं.’’
नलिनी को लगा वह खुद रोशनी की किरण ले जाने के बजाय काली अमावस रात का अंधेरा बटोर कर अकारण ही अपने जीवन में भरती चली गई. काश, उम्र के फर्क को नजरअंदाज कर वह हिम्मत कर पहले ही उस घुटनभरे अंधेरे को काटते हुए उस चेहरे तक पहुंच जाती जो उस का इंतजार कर रहा था. फिर मुसकराते हुए वह यह गीत गुनगुना उठी, ‘न उम्र की सीमा हो, न जन्म का हो बंधन…’
अगले दिन ही विकास फ्लाइट से पहुंच गया. नलिनी औफिस में अपने काम में व्यस्त थी, जब विकास उसके सामने आ कर खड़ा हो गया, नलिनी वहीं उस के गले लग गई. हमेशा, लोग क्या कहेंगे, इस बात की परवाह करने वाली नलिनी औफिस में उस के गले लग कर खड़ी है, यह देख कर विकास हंस पड़ा. दोनों सीधे नलिनी के फ्लैट पर पहुंचे. कुसुम सपरिवार उपस्थित थी. नलिनी ने विकास का परिचय अपने होने वाले पति के रूप में दिया तो कुसुम और मोहन की नाराजगी उन के चेहरे से ही प्रकट हो गई जिसे दोनों ने नजरअंदाज कर दिया.
अगले दिन कुसुम चली गई. विकास और नलिनी के औफिस के दोस्तों ने जल्दी से जल्दी विवाह का कार्यक्रम तय करवाया, दोनों ने मिल कर खूब शौपिंग की, उन का सादा सा विवाह संपन्न हुआ. कुसुम और मोहन मेहमान की तरह आए और चले गए. नलिनी को अब किसी से कोई शिकायत नहीं थी, वह खुश थी, विकास उस के साथ था.
नलिनी चाहती थी अब वह नौकरी छोड़ कर बस सिर्फ अपनी घरगृहस्थी संभाले. विकास ने भी इस में सहमति दिखाई. नलिनी रिजाइन कर के फ्लैट बंद कर विकास के साथ दिल्ली चली गई.
विकास के मातापिता तो विवाह में नहीं आ पाए थे, लेकिन उन्हें नलिनी को देख कर उस से मिलने के बाद इस में कोई आपत्ति भी नहीं थी. वे कभीकभी दोनों से मिलने मेरठ से दिल्ली आते रहते थे. नलिनी का मधुर व्यवहार उन्हें बहुत अच्छा लगा था.
नलिनी सुंदर थी, लेकिन अपनी उम्र को ले कर उस के मन में हमेशा एक चुभन सी रहती. वह अपनी मनोदशा किसी से बांट न पाती. यहां तक कि विकास से भी नहीं. विवाह के 6 महीने बीत गए थे. दोनों अपने वैवाहिक जीवन से बहुत खुश थे.
विकास के कई दोस्त थे, वे अपनीअपनी पत्नी के साथ मिलने आते रहते थे. कभीकभी एकाध बार कोई दोस्त उन की उम्र के फर्क पर हंसता तो नलिनी का दिल बैठ जाता.
विकास के औफिस का गु्रप भी जब इकट्ठा होता, जिन में लड़कियां भी थीं, सब विकास से बहुत खुली हुई थीं, सब एकदूसरे का नाम ले कर बुलाते थे. लेकिन जब वे उसे नलिनीजी कहते तो उसे महसूस होता कि सब उसे बड़ी मान कर एक फासला रखते हैं. वह सब की बहुत आवभगत करती. उन में अपनेआप को मिलाने की बहुत कोशिश करती, लेकिन अपने चारों तरफ वह एक अनावश्यक औपचारिक गंभीर सा दायरा खिंचा महसूस करती जिसे चाह कर भी तोड़ नहीं पाती.
एक दिन विकास के औफिस में गीता सिंह नाम की एक नई नियुक्ति हुई. उसे ट्रेनिंग देने का काम विकास को ही मिला. बेहद आधुनिक, चंचल गीता को विकास दिनभर काम सिखाता.
एक बार विकास ने अपने सहकर्मियों को डिनर के लिए घर पर बुलाया तो गीता भी आई. गीता नलिनी से पहली बार मिल रही थी. उस ने जिस तरह नलिनी को देख कर चौंकने का अभिनय किया, नलिनी को अच्छा नहीं लगा. विकास नलिनी को गीता के बारे में बताता रहा. नलिनी सुनती रही. बीच में हांहूं करती रही. नलिनी ने देखा विकास गीता के साथ काफी खुला हुआ है. गीता की बातों पर वह जोर के ठहाके लगाता खूब गप्पें मार रहा था. नलिनी ने खुद को उपेक्षित महसूस किया. उसे लगा वह कहीं मिसफिट हो रही है. हालांकि विकास के व्यवहार में कुछ आपत्तिजनक नहीं था, लेकिन नलिनी को गीता का विकास का हाथ बारबार पकड़ कर बात करना बिलकुल पसंद नहीं आ रहा था. वह सोचने लगी विकास उसे इतनी लिफ्ट क्यों दे रहा है. औफिस से और लड़कियां भी आई थीं, लेकिन गीता जैसा उच्शृंखल स्वभाव किसी का नहीं था. वह खुद भी इतने सालों से औफिस में काम करती रही थी, औफिस के माहौल की वह आदी थी, लेकिन गीता का खुलापन असहनीय लग रहा था.
सब के जाने के बाद नलिनी ने नोट किया विकास की बातों में गीता का काफी जिक्र था. गीता अविवाहित थी. मातापिता के साथ रहती थी. अब छुट्टी वाले दिन भी गीता कभी भी आ धमकती. विकास को हंसतेबोलते देख नलिनी सोचने लगती क्या विकास को मेरे से ऊब होने लगी है. गीता की देह दिखाती आधुनिक पोशाकें देख कर नलिनी का दम घुटने लगता. विकास भी गीता से दूर रहने की कोई कोशिश करता नहीं दिखा तो नलिनी धीरेधीरे डिप्रैशन का शिकार होने लगी और इसी डिप्रैशन के चलते बीमार हो गई. रात को नलिनी और विकास सोने लेटे. विकास तो सो गया, लेकिन नलिनी को अचानक लगा जैसे कमरे के अंदर फैले हुए अंधेरे में अलगअलग किस्म की शक्लें उभर कर सामने आ रही हैं, जो उस पर हंस रही हैं और वह उस अंधेरे में डूबती चली गई. वह आंखें बंद किए जोरजोर से चीख रही थी. विकास चौंक कर उठ बैठा. नलिनी बेदम सी हो कर विकास की बांहों में झूल गई. उस ने तुरंत फोन कर के डाक्टर को बुलाया.
डाक्टर ने चैकअप करने के बाद बताया, ‘‘ये दिमागी तौर पर बहुत तनाव में हैं, दबाव में होने की वजह से ब्लडप्रैशर भी हाई है. और हां, बधाई हो आप पिता बनने वाले हैं.’’
विकास की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. डाक्टर दवा दे कर चला गया. विकास नलिनी का हाथ पकड़ कर बैठा था. वह बीते दिनों के घटनाक्रम को ध्यानपूर्वक सोचने लगा…
उसे नलिनी की मनोदशा का अंदाजा हो गया तो उसे अपराधबोध हुआ. उसे गीता से इतना खुला व्यवहार नहीं करना चाहिए. उस के स्वयं के मन में कुछ गलत नहीं था, लेकिन नलिनी के मानसिक संताप को अनुभव कर विकास की पलकों से आंसू नलिनी के हाथ को भिगोते रहे, न जाने यह नाजुक दिलों के तारों का संगम था या कुछ और था. उस के गरमगरम आंसुओं की गरमी जैसे नलिनी के दिल की गहराई तक जा पहुंची और उस की बंद पलकों में हरकत हुई. वह गहरे अंधेरे से धीरेधीरे बाहर आ रही थी. धुंध के गहरे बादल छंटते जा रहे थे.
विकास उस के हाथ को अपने हाथ में ले कर कहने लगा, ‘‘नलिनी, कैसी हो अब? अगर मेरी किसी भी बात से तुम्हारा दिल दुखा हो तो मुझे माफ कर दो.’’
नलिनी ने जैसे ही कुछ कहने की कोशिश की, विकास बोल उठा, ‘‘नलिनी, जल्दी से ठीक हो जाओ, तुम्हारे साथ जीवन की सब से बड़ी खुशी बांटनी है और तुम आज के बाद अपने दिमाग से उम्र की बात बिलकुल निकाल दोगी. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं और तुम्हारे बिना नहीं रह सकता. हम सच्चे दिल व पूरी निष्ठा से जीवन को बड़ी खूबसूरती से जीएंगे. अभी तो बहुत रास्ते तय करने हैं, बहुत दूर जाना है, साथसाथ एकदूसरे का हाथ थामे. तुम बस मेरे प्यार पर विश्वास करो.’’
नलिनी चुपचाप विकास की तरफ देख रही थी. उस ने विकास का हाथ कस कर पकड़ लिया और सुकून से आंखें बंद कर लीं. फिर उस ने खिड़की की तरफ देखा जहां उस के जीवन की एक नई सुबह का सूर्य निकल रहा था जिस की चमकती किरणों ने उस के दिल के हर कोने को चमका दिया था.