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न उम्र की सीमा हो : भाग 3

‘‘कुछ खास नहीं, वही रूटीन, औफिस, घर, औफिस. भाई विदेश में हैं और कुसुम सपरिवार अकसर रहने आ जाती है, मां नहीं रहीं.’’

‘‘मैं तो सोचती थी अब तुम अपना जीवन जी रही होगी पर लग रहा है ऐसा नहीं है. तुम्हारे स्वार्थी घर वालों ने यह नहीं सोचा कि तुम्हें भी खुशी पाने का हक है.’’

‘‘वे भी क्या करते… इन सब के लिए मेरी उम्र निकल गई है.’’

‘‘कैसी उम्र निकल गई है. मुझे बताओ क्या तुम खुश हो?’’

नलिनी की आंखें भर आईं, किसी ने कभी उस से नहीं पूछा था कि क्या वह खुश है. धीरेधीरे नलिनी ने मधु को अपने और विकास के बारे में भी बता दिया. उस की मानसिक स्थिति समझ कर मधु ने उस के हाथ पर अपना हाथ रखा और फिर बोली, ‘‘तुम नौकरी करती हो, अपना जीवन जीओ, डरती किस से हो? दुनिया क्या कहेगी, इस की चिंता में तुम ने काफी समय खराब कर लिया है. सब की बहुत जिम्मेदारी उठा ली है, पहला काम करो दुनिया की चिंता हमेशा के लिए दिमाग से निकाल दो. मुझे देखो, मैं अपनी मरजी से जी सकती हूं तो तुम क्यों नहीं?’’

नलिनी को हैरानी हुई कि मधु अपनी तुलना उस के साथ कैसे कर सकती है?

मधु ने ही कहा, ‘‘मेरी शादी हुई थी, लेकिन कुछ साल पहले पति का निधन हो गया, जानती हूं तुम क्या सोच रही हो, मैं तो अच्छे चमकते कपड़े और बढि़या ज्वैलरी पहन कर तैयार हो घूम रही हूं. मैं क्यों सफेद कपड़े पहने लाश की तरह घूमूं? मेरे हिसाब से स्त्री के लिए स्त्रीत्तव की इच्छा करना स्वाभाविक है और फिर ये नियम बनाए किस ने हैं. मैं इन नियमों को नहीं मानती. मुझे घर वालों या लोगों की परवाह नहीं, मैं जो हूं सो हूं और मुझे जीने का उतना ही हक है जितना बाकी लोगों को. 13 साल की मेरी बेटी है, हम में अपनी मरजी से अकेले रह कर जीने की हिम्मत है, हम चाहें तो हिम्मत आ जाती है.’’

‘‘तो तुम क्या कहती हो, मैं क्या करूं?’’

‘‘जो तुम चाहती हो, अपना जीवन तलाशो जहां तुम्हारी जरूरतें पहले आएं.’’

‘‘मधु, सच में तुम मुझे राह दिखा कर इस सब से निकालने के लिए मिली हो.’’

कितने समय से नलिनी दुनिया के अंधेरे और नीरस रंग से जूझ रही थी. मधु

हंसी तो उस की दुनियाको ठेंगा दिखाती यह हंसी नलिनी को समझा गई कि वह जीवन में क्या चाहती थी. दोनों में फोन नंबर और घर के पते का आदानप्रदान हुआ.

नलिनी वहां से चल दी. उसे बेहद शांति मिली थी. उसे क्या करना है, यह निश्चय पक्का हो गया था. उसे लगा कि वह तो आत्महत्या की भावना में डूबी रहती है, जबकि उस की प्रिय सहेली ने आगे बढ़ कर जिंदा रहना सीख लिया. अपने कमरे में आ कर वह लेट गई, वह जान गई अब मुसकराना कितना आसान है. वह विकास के खयाल में डूब गई. उस ने उसे अपना शरीर, मन सब समर्पित किया था. उसे फिर मधु की दुनिया को ठेंगा दिखाती हंसी याद आ गई तो वह भी मुसकरा पड़ी.

उस ने अपना फोन उठाया और पहली बार विकास का नंबर मिला दिया. विकास ने फोन उठाया तो नलिनी के मुंह से उत्साहित स्वर में निकला ‘विकास’ और विकास ने आगे सुने बिना ही प्रसन्नता भरी आवाज में कहा, ‘‘नलिनी, मैं आ रहा हूं.’’

नलिनी को लगा वह खुद रोशनी की किरण ले जाने के बजाय काली अमावस रात का अंधेरा बटोर कर अकारण ही अपने जीवन में भरती चली गई. काश, उम्र के फर्क को नजरअंदाज कर वह हिम्मत कर पहले ही उस घुटनभरे अंधेरे को काटते हुए उस चेहरे तक पहुंच जाती जो उस का इंतजार कर रहा था. फिर मुसकराते हुए वह यह गीत गुनगुना उठी, ‘न उम्र की सीमा हो, न जन्म का हो बंधन…’

अगले दिन ही विकास फ्लाइट से पहुंच गया. नलिनी औफिस में अपने काम में व्यस्त थी, जब विकास उसके सामने आ कर खड़ा हो गया, नलिनी वहीं उस के गले लग गई. हमेशा, लोग क्या कहेंगे, इस बात की परवाह करने वाली नलिनी औफिस में उस के गले लग कर खड़ी है, यह देख कर विकास हंस पड़ा. दोनों सीधे नलिनी के फ्लैट पर पहुंचे. कुसुम सपरिवार उपस्थित थी. नलिनी ने विकास का परिचय अपने होने वाले पति के रूप में दिया तो कुसुम और मोहन की नाराजगी उन के चेहरे से ही प्रकट हो गई जिसे दोनों ने नजरअंदाज कर दिया.

अगले दिन कुसुम चली गई. विकास और नलिनी के औफिस के दोस्तों ने जल्दी से जल्दी विवाह का कार्यक्रम तय करवाया, दोनों ने मिल कर खूब शौपिंग की, उन का सादा सा विवाह संपन्न हुआ. कुसुम और मोहन मेहमान की तरह आए और चले गए. नलिनी को अब किसी से कोई शिकायत नहीं थी, वह खुश थी, विकास उस के साथ था.

नलिनी चाहती थी अब वह नौकरी छोड़ कर बस सिर्फ अपनी घरगृहस्थी संभाले. विकास ने भी इस में सहमति दिखाई. नलिनी रिजाइन कर के फ्लैट बंद कर विकास के साथ दिल्ली चली गई.

विकास के मातापिता तो विवाह में नहीं आ पाए थे, लेकिन उन्हें नलिनी को देख कर उस से मिलने के बाद इस में कोई आपत्ति भी नहीं थी. वे कभीकभी दोनों से मिलने मेरठ से दिल्ली आते रहते थे. नलिनी का मधुर व्यवहार उन्हें बहुत अच्छा लगा था.

नलिनी सुंदर थी, लेकिन अपनी उम्र को ले कर उस के मन में हमेशा एक चुभन सी रहती. वह अपनी मनोदशा किसी से बांट न पाती. यहां तक कि विकास से भी नहीं. विवाह के 6 महीने बीत गए थे. दोनों अपने वैवाहिक जीवन से बहुत खुश थे.

विकास के कई दोस्त थे, वे अपनीअपनी पत्नी के साथ मिलने आते रहते थे. कभीकभी एकाध बार कोई दोस्त उन की उम्र के फर्क पर हंसता तो नलिनी का दिल बैठ जाता.

विकास के औफिस का गु्रप भी जब इकट्ठा होता, जिन में लड़कियां भी थीं, सब विकास से बहुत खुली हुई थीं, सब एकदूसरे का नाम ले कर बुलाते थे. लेकिन जब वे उसे नलिनीजी कहते तो उसे महसूस होता कि सब उसे बड़ी मान कर एक फासला रखते हैं. वह सब की बहुत आवभगत करती. उन में अपनेआप को मिलाने की बहुत कोशिश करती, लेकिन अपने चारों तरफ वह एक अनावश्यक औपचारिक गंभीर सा दायरा खिंचा महसूस करती जिसे चाह कर भी तोड़ नहीं पाती.

एक दिन विकास के औफिस में गीता सिंह नाम की एक नई नियुक्ति हुई. उसे ट्रेनिंग देने का काम विकास को ही मिला. बेहद आधुनिक, चंचल गीता को विकास दिनभर काम सिखाता.

एक बार विकास ने अपने सहकर्मियों को डिनर के लिए घर पर बुलाया तो गीता भी आई. गीता नलिनी से पहली बार मिल रही थी. उस ने जिस तरह नलिनी को देख कर चौंकने का अभिनय किया, नलिनी को अच्छा नहीं लगा. विकास नलिनी को गीता के बारे में बताता रहा. नलिनी सुनती रही. बीच में हांहूं करती रही. नलिनी ने देखा विकास गीता के साथ काफी खुला हुआ है. गीता की बातों पर वह जोर के ठहाके लगाता खूब गप्पें मार रहा था. नलिनी ने खुद को उपेक्षित महसूस किया. उसे लगा वह कहीं मिसफिट हो रही है. हालांकि विकास के व्यवहार में कुछ आपत्तिजनक नहीं था, लेकिन नलिनी को गीता का विकास का हाथ बारबार पकड़ कर बात करना बिलकुल पसंद नहीं आ रहा था. वह सोचने लगी विकास उसे इतनी लिफ्ट क्यों दे रहा है. औफिस से और लड़कियां भी आई थीं, लेकिन गीता जैसा उच्शृंखल स्वभाव किसी का नहीं था. वह खुद भी इतने सालों से औफिस में काम करती रही थी, औफिस के माहौल की वह आदी थी, लेकिन गीता का खुलापन असहनीय लग रहा था.

सब के जाने के बाद नलिनी ने नोट किया विकास की बातों में गीता का काफी जिक्र था. गीता अविवाहित थी. मातापिता के साथ रहती थी. अब छुट्टी वाले दिन भी गीता कभी भी आ धमकती. विकास को हंसतेबोलते देख नलिनी सोचने लगती क्या विकास को मेरे से ऊब होने लगी है. गीता की देह दिखाती आधुनिक पोशाकें देख कर नलिनी का दम घुटने लगता. विकास भी गीता से दूर रहने की कोई कोशिश करता नहीं दिखा तो नलिनी धीरेधीरे डिप्रैशन का शिकार होने लगी और इसी डिप्रैशन के चलते बीमार हो गई. रात को नलिनी और विकास सोने लेटे. विकास तो सो गया, लेकिन नलिनी को अचानक लगा जैसे कमरे के अंदर फैले हुए अंधेरे में अलगअलग किस्म की शक्लें उभर कर सामने आ रही हैं, जो उस पर हंस रही हैं और वह उस अंधेरे में डूबती चली गई. वह आंखें बंद किए जोरजोर से चीख रही थी. विकास चौंक कर उठ बैठा. नलिनी बेदम सी हो कर विकास की बांहों में झूल गई.  उस ने तुरंत फोन कर के डाक्टर को बुलाया.

डाक्टर ने चैकअप करने के बाद बताया, ‘‘ये दिमागी तौर पर बहुत तनाव में हैं, दबाव में होने की वजह से ब्लडप्रैशर भी हाई है. और हां, बधाई हो आप पिता बनने वाले हैं.’’

विकास की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. डाक्टर दवा दे कर चला गया. विकास नलिनी का हाथ पकड़ कर बैठा था. वह बीते दिनों के घटनाक्रम को ध्यानपूर्वक सोचने लगा…

उसे नलिनी की मनोदशा का अंदाजा हो गया तो उसे अपराधबोध हुआ. उसे गीता से इतना खुला व्यवहार नहीं करना चाहिए. उस के स्वयं के मन में कुछ गलत नहीं था, लेकिन नलिनी के मानसिक संताप को अनुभव कर विकास की पलकों से आंसू नलिनी के हाथ को भिगोते रहे, न जाने यह नाजुक दिलों के तारों का संगम था या कुछ और था. उस के गरमगरम आंसुओं की गरमी जैसे नलिनी के दिल की गहराई तक जा पहुंची और उस की बंद पलकों में हरकत हुई. वह गहरे अंधेरे से धीरेधीरे बाहर आ रही थी. धुंध के गहरे बादल छंटते जा रहे थे.

विकास उस के हाथ को अपने हाथ में ले कर कहने लगा, ‘‘नलिनी, कैसी हो अब? अगर मेरी किसी भी बात से तुम्हारा दिल दुखा हो तो मुझे माफ कर दो.’’

नलिनी ने जैसे ही कुछ कहने की कोशिश की, विकास बोल उठा, ‘‘नलिनी, जल्दी से ठीक हो जाओ, तुम्हारे साथ जीवन की सब से बड़ी खुशी बांटनी है और तुम आज के बाद अपने दिमाग से उम्र की बात बिलकुल निकाल दोगी. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं और तुम्हारे बिना नहीं रह सकता. हम सच्चे दिल व पूरी निष्ठा से जीवन को बड़ी खूबसूरती से जीएंगे. अभी तो बहुत रास्ते तय करने हैं, बहुत दूर जाना है, साथसाथ एकदूसरे का हाथ थामे. तुम बस मेरे प्यार पर विश्वास करो.’’

नलिनी चुपचाप विकास की तरफ देख रही थी. उस ने विकास का हाथ कस कर पकड़ लिया और सुकून से आंखें बंद कर लीं. फिर उस ने खिड़की की तरफ देखा जहां उस के जीवन की एक नई सुबह का सूर्य निकल रहा था जिस की चमकती किरणों ने उस के दिल के हर कोने को चमका दिया था.

मां का घर भाग : 3

पहले मां से रोज ही उस की बात हो जाया करती थी, फिर बातचीत का सिलसिला कम हो गया. पूजा जब पूछती कि मां, तुम ने खाना खाया कि नहीं, रोज शाम को टहलने जाती हो कि नहीं, तो अनुराधा हंस देतीं, ‘मेरी इतनी फिक्र न कर पूजा, मैं बिलकुल ठीक हूं. मुझे अच्छा लग रहा है कि तुम को अपनी नई जिंदगी रास आ गई. खुश रहो और सुवीर को भी खुश रखो. बस, इस से ज्यादा और क्या चाहिए?’

आज पूजा को पुरानी सारी बातें याद आ रही हैं. जब तक वह मां के साथ थी, हर समय उन पर हावी रहती, ‘मां, आप अपनी सहेलियों को घर न बुलाया करें, कितना बोर करती हैं. हर समय वही बात, शादी कब करोगी, कोई बौयफें्रड है क्या? आप की वह सफेद बालों वाली सहेली मोहिनीजी तो मुझे बिलकुल पसंद नहीं. कितना तेज बोलती हैं और कितना ज्यादा बोलती हैं.’

‘मैं ने मां को समझा ही नहीं,’ पूजा बुदबुदाई और उठ खड़ी हुई.

सुप्रिया ने टोका, ‘‘कहां चली, पूजा?’’

‘‘मां को ढूंढ़ने.’’

‘‘कहां?’’

‘‘पता नहीं, सुप्रिया. पर एक बार मैं उन से मिल कर माफी मांगना चाहती हूं.’’

‘‘तुम चाहो तो मैं तुम्हारे साथ चल सकती हूं,’’ सुप्रिया ने कहा.

अगले दिन सुवीर ने दोनों सहेलियों को हवाई जहाज से मुंबई भेजने की व्यवस्था कर दी. वह खुद भी साथ जाना चाहता था पर पूजा ने कहा, ‘‘जरूरत होगी तो मैं तुम्हें बुला लूंगी. मुंबई हमारी जानीपहचानी जगह है.’’

सुप्रिया के मायके में सामान रख दोनों सहेलियां सब से पहले कांदिवली पूजा के घर गईं. पूजा धीरा आंटी के घर पहुंची तो उसे देख कर वे चौंक गईं, ‘‘अरे पूजा, तू? अनुराधा की कोई खबर मिली?’’

‘‘यही तो पता करने आई हूं. आप बता सकती हैं कि मां की वे सहेलियां कहां रहती हैं जो हमारे घर कभीकभी आती थीं?’’

धीरा आंटी सोचने लगीं, फिर बोलीं, ‘‘सब के बारे में तो नहीं जानती, पर बैंक में तुम्हारी मां के साथ काम करने वाली आनंदी को मैं ने कई बार उन के साथ देखा था बल्कि 10 दिन पहले भी आनंदी यहां आई थीं.’’

‘‘मां ने आप से अपने जाने को ले कर कुछ कहा था…’’

‘‘नहीं पूजा, तुम्हारी मां हम लोगों से कम ही बोलती थीं. दरअसल, 10 साल पहले जब तुम्हारी मां ने शादी की थी, तब से…’’ कहतेकहते अपने होंठ काट लिए धीरा ने.

‘‘मां की शादी?’’ पूजा को झटका लगा. वह गिड़गिड़ाती हुई बोली, ‘‘प्लीज आंटी, आप मुझे सबकुछ सचसच बताइए. शायद आप की बातों से मुझे मां गई कहां हैं यह पता चल जाए?’’

धीरा गंभीर हो कर बताने लगीं, ‘‘तुम समीरजी के बारे में तो जानती ही हो. जिस दिन तुम्हारी मां को पता चला कि समीर बीमार हैं, उन्हें टी.बी. हो गई है, तुम्हारी मां ने घबरा कर मुझे ही फोन किया था. मैं और वे अच्छी सहेली थीं और अपना दुखदर्द बांटा करती थीं. मैं ने तुम्हारी मां को अपने घर बुलाया. समीर अनुराधा की जिंदगी में ताजा हवा का झोंका थे. तुम्हारी मां उन का बहुत सम्मान करती थीं और प्यार भी करती थीं. मैं अनुराधा को ले कर समीर के पास गई थी. समीर की हालत वाकई खराब थी. अनुराधा ही समीर को ले कर अस्पताल गईं लेकिन उन की जिंदगी में तो जैसे चैन था ही नहीं.’’

‘‘क्या हुआ? समीर अंकल अच्छे तो हो गए?’’ पूजा ने बेसब्री से पूछा.

‘‘हमारे पहुंचने से पहले वहां समीर के मातापिता आ गए थे. उन्होंने अनुराधा के सामने यह शर्त रखी कि वह समीर से शादी करे वरना वे उस की शादी कहीं और कर देंगे. बीमार समीर को जीवनसाथी की जरूरत है और अब बूढ़े मांबाप में इतनी शक्ति नहीं कि उस की देखभाल कर सकें.

‘‘समीर बैंक में नौकरी करते थे, देखने में अच्छे थे, एक पैर ठीक नहीं था तो क्या, कोई न कोई लड़की तो मिल ही जाती. समीर के मातापिता का दिल रखने के लिए अनुराधा और समीर ने कोर्ट में जा कर शादी कर ली.

‘‘मुझे अनुराधा का यों शादी करना अच्छा नहीं लगा. शायद इस की वजह यह थी कि तुम मां की शादी का विरोध कर चुकी थीं. उस समय मैं भी अनुराधा से नाराज हो गई. इस के बाद हमारे संबंध पहले जैसे न रहे,’’ इतना कहतेकहते धीरा की आवाज भर्रा गई.

पूजा की आंखों में आंसू आ गए. वह बोली, ‘‘आंटी, हम औरतें ही दूसरी औरतों को जीने नहीं देतीं. मां की खुशी हमें बरदाश्त नहीं हुई.’’

धीरा ने सिर हिलाया, ‘‘आज पलट कर सोचती हूं तो अपने ऊपर ग्लानि हो आती है. काश, मैं ने उस समय अनुराधा को समझा होता.’’

पूजा भी मन ही मन यही सोच रही थी कि काश, उस ने मां को समझा होता.

धीरा ने अचानक कहा, ‘‘हो सकता है, मोहिनी को अनुराधा के बारे में पता हो. वह यहीं पास में रहती है. चलो, मैं भी चलती हूं तुम्हारे साथ.’’

धीरा फौरन साड़ी बदल आईं. तीनों एक आटो में बैठ कर दहिसर की तरफ चल पड़ीं. पूजा अरसे बाद मोहिनीजी से मिल रही थी. उन के पूरे बाल सफेद हो गए थे. पूजा के साथ धीरा और सुप्रिया को देख वे ठिठकीं. पूजा आगे बढ़ कर उन के गले लग कर रोने लगी. मोहिनी ने पूजा को बांहों में भींच लिया और पुचकारते हुए कहा, ‘‘मत रो बेटी, तुझे यहां देख कर मुझे एहसास हो गया है कि तू बहुत बदल गई है.’’

‘‘मुझे मां के पास ले चलिए, मौसी,’’ पूजा ने रोंआसी आवाज में कहा.

मोहिनीजी ने पूजा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘तुम अपनी मां को ढूंढ़ती हुई इतनी दूर आई हो तो मैं तुम्हें मना नहीं करूंगी. लेकिन बेटी, अनुराधा को और तकलीफ मत देना, बहुत दिनों बाद मैं ने उसे हंसते देखा है, सालों बाद वह अपनी जिंदगी जी रही है.’’

अगले दिन जब पूजा और सुप्रिया मोहिनी के साथ इगतपुरी जाने को निकलने लगीं तो धीरा भी साथ चल पड़ीं. सुबह की बस थी. दोपहर से पहले वे इगतपुरी पहुंच गईं. वहां से एक जीप में बैठ कर वे आगे के सफर पर चल पड़ीं. जीप पेड़पौधों से ढके एक घर के सामने रुकी. घर के अंदर से वीणा वादन की आवाज आ रही थी.

मोहिनी ने दरवाजा खटखटाया तो एक कुत्ता बाहर निकल आया और उन्हें देख कर भौंकने लगा. अंदर से आवाज आई, ‘‘विदूषक, इतना हल्ला क्यों मचा रहे हो? कौन आया है?’’

अनुराधा की आवाज थी. जब वे सामने आईं तो पूजा के दिल की धड़कन जैसे रुक ही गई. सलवारकमीज और खुले बालों में वे अपनी उम्र से 10 साल छोटी लग रही थीं. माथे पर टिकुली, मांग में हलका सा सिंदूर और हाथों में कांच की चूडि़यां. भराभरा चेहरा. पूजा पर नजर पड़ते ही अनुराधा सन्न रह गईं. पूजा दौड़ती हुई उन के गले  लग गई.

मांबेटी मिल कर रोने लगीं. पूजा ने किसी तरह अपने को जज्ब करते हुए कहा, ‘‘मां, मुझे माफ कर सकोगी?’’

अनुराधा ने सिर हिलाया और बेटी को कस कर भींच लिया.

‘‘मां, पिताजी कहां हैं? मुझे उन से मिलना है,’’ पूजा की आवाज में बेताबी थी.

अनुराधा उन सब को ले कर अंदर गई. समीर रसोई में सब्जी काट रहे थे. पूजा उन के पास गई तो समीर ने उस के सिर पर हाथ रख कर प्यार से कहा, ‘‘वेलकम होम बिटिया.’’

अनुराधा को कुछ कहनेसुनने की जरूरत ही नहीं पड़ी. पूजा समझ गई कि साल में 2 बार मां 10 दिन के लिए कहां जाती थीं. क्यों चाहती थीं कि पूजा शादी कर अपने घर में खुश रहे.

शाम को बरामदे में सब बैठे थे. पूजा ने सिर मां की गोद में रखा था. वह दोपहर से न जाने कितनी बार रो चुकी थी. मां का हाथ एक बार फिर चूम वह भावुक हो कर बोली, ‘‘मां, मैं कितनी पागल थी. औरत हो कर तुम्हारा दिल न समझ सकी. आज जब मैं अपने परिवार में खुश हूं तो मुझे एहसास हो रहा है कि तुम मेरी वजह से सालों से अपने पति से अलग रहीं.’’

अनुराधा को विश्वास नहीं हो रहा था कि उस की बेटी के साथसाथ उस की पुरानी सहेली धीरा भी लौट आई है, उस की खुशियों में शरीक होने. रात को सुवीर का फोन आया तो पूजा उत्साह से बोली, ‘‘पता है सुवीर, मेरे साथ दिल्ली कौन आ रहा है? मां और पापा. दोनों कुछ दिन हमारे साथ रहेंगे, फिर हम जाएंगे दीवाली में उन्हें छोड़ने.’’

अनुराधा और समीर मुसकरा रहे थे. बेटी मायके जो आई है.

टाइमपास : भाग 3

अम्माजी के कान में भनक लग गई थी. वे नाराज हो उठी थीं क्योंकि उन्हें पार्वती फूटी आंख नहीं सुहाती थी जबकि सब से ज्यादा काम वह उन्हीं का करती थी. उन को रोज नहलाधुला कर उन के कपड़े धोती थी. उन के बाल बनाती थी. रोज उन के पैरों में मालिश किया करती थी. उन की नजर में वह बदचलन औरत थी. काश, उस समय वह उन की बातों पर ध्यान दे देती तो आज उसे यह दिन न देखना पड़ता. रोमेश और उस के डर से अम्माजी उसे भगा नहीं पाती थीं वरना वे उसे एक दिन न टिकने देतीं. कुछ ही दिनों में पता चला कि पूजा अपने प्रेमी के साथ, वह सोने का हार ले कर रफूचक्कर हो गई. पार्वती के रोनेधोने के कारण महेश ने शादी के लिए जोड़े हुए रुपए लड़के वालों को दे कर किसी तरह मामले को निबटाया था. परंतु बिरादरी में वह उस की बदनामी तो बहुत कर गई थी. सालभर बाद जब पूजा के बेटी हुई तो भागती हुई सब से पहले वह बेटी के पास पहुंची थी. यहांवहां भाग कर चांदी के कड़े खरीद लाई थी और 5-6 फ्रौक भी खरीद लाई थी. उस की आवाज और चेहरे से खुशी छलकी पड़ रही थी. बोली थी, ‘भाभी, हम नानी बन गए हैं. वह है तो मेरी ही नातिन.’ रीना मुसकरा कर उस को देखती रह गई थी. मन ही मन वह बोली थी, ‘कितनी भोली है बेचारी.’

उस ने पार्वती को 500 रुपए का नोट पकड़ा दिया था. उसे याद आया था कि जब ईशा के बेटा हुआ था तो वह कितनी खुश हुई थी. रोमेश औफिस से आ गए थे. उन्होंने उसे रुपए देते हुए देख लिया था. वे बोले, ‘यह बहुत चालू है. तुम्हें बेवकूफ बना कर अपना मतलब सीधा करती है.’ वह बोल पड़ी थी, ‘रहने भी दीजिए. जरूरत के समय वह हमेशा हाजिर रहती है, यह नहीं देखते आप?’

‘ठीक है, यह तुम्हारी दुनिया है, जो ठीक समझो, करो.’ इधर महेश दूसरी औरत के चक्कर में पड़ गया था. वह रोज शराब पीने लगा था. वह पी कर देर रात में आता और हंगामा करता. अकसर पार्वती पर हाथ भी उठाने लगा था. पार्वती सुस्त और अनमनी रहने लगी थी. एक दिन रोमेश रीना से बोले थे, ‘तुम्हारी छम्मकछल्लो आजकल चुपचुप रहती है. शायद किसी परेशानी में है. पूछ लो उस से, यदि पैसों की जरूरत हो तो दे दो.’ ‘नहीं, पैसे की बात नहीं है. महेश और दीप दोनों शराब पीने लगे हैं. महेश किसी दूसरी औरत के चक्कर में भी पड़ गया है.’

रोमेश आश्चर्य से बोले थे, ‘इतनी सुंदर और सलीकेदार औरत होने के बावजूद वह दूसरी पर मुंह मार रहा है.’ पार्वती इधर काम पर आती थी, उधर महेश की प्रेमिका उस के घर पर आ जाती थी. धीरेधीरे उस की हिम्मत बढ़ गई थी. वह उस के घर में ही अपना हक जताने लगी थी. यदि वह कोई शिकायत करती तो महेश पार्वती की पिटाई कर देता था. पार्वती किसी भी तरह अपने और महेश के रिश्ते को बचाना चाहती थी. जब उस का नशा उतर जाता था तो वह पार्वती के पैरों पर गिर कर माफी मांगने लगता था. वह पिघल जाती थी. यह सिलसिला काफी दिन से चल रहा था. वह अपनी परेशानियों में उलझी हुई थी. इधर, दीप भी आवारा लड़कों के साथ चोरी, जुआ, शराब आदि का शौकीन बन गया था. पार्वती के यहांवहां छिपाए हुए पैसे वह चुपचाप गायब कर लेता था और महेश का नाम लगा कर घर में महाभारत मचवा देता था. एक बार उस के नए मोबाइल को देख कर उस ने पूछा था तो बोला, ‘हमारे मालिक ने हमें इसे ठीक करवाने के लिए दिया है.’ एक दिन दीप के पर्स में रुपयों की गड्डी को देख उस का माथा ठनका था, परंतु दीप ने उसे पट्टी पढ़ा दी थी. वह भी ममता की मारी भुलावे में आ गई थी. परंतु एक दिन वह चाल की एक लड़की को फुसला कर ले भागा था.

लड़की नाबालिग थी, उस के पिता ने पुलिस में शिकायत कर दी. पुलिस ने महेश और पार्वती को थाने में ले जा कर पिटाई की और 2 दिन के लिए बंद कर दिया था. 4-5 दिन के अंदर पुलिस ने दीप को ढूंढ़ निकाला था. नाबालिग लड़की को भगाने के जुर्म में दीप को जेल में बंद कर दिया था. महेश की प्रेमिका माधुरी ने अपनी कोशिशों से महेश को छुड़ा लिया था. पुलिस ने पार्वती को भी छोड़ दिया था. अब महेश का घर उस के लिए पराया हो चुका था. उस की सौत माधुरी का हक महेश और उस के घर दोनों पर हो गया था.  पार्वती लुटीपिटी रीना के पास पहुंची थी. उस का रोनाबिलखना देख उस का दिल पिघल उठा था. रोमेश के लाख मना करने पर भी उस ने पार्वती को घर पर रख लिया था. वह बहुत खुश थी. रीना को पार्वती के घर पर रहने से बहुत आराम हो गया था. वह उस के घर व बाजार के सारे काम करती थी. उस को यहां रहते हुए लगभग 2 साल हो गए थे. अकसर वह अपने बच्चों और महेश को याद कर के आंसू बहाने लगती थी. यह देख रीना का दिल पिघल उठता था. आज इसी पार्वती की वजह से उस के घर का सुखचैन लुट गया था. शाम ढल चुकी थी. कमरे में अंधेरा छाया हुआ था. उसे बिजली जलाने का भी होश नहीं था. आज उस के जीवन में ही अंधकार छा गया था. वह जब से यहां आई, अपने मुंह में पानी की एक बूंद भी नहीं डाली थी. आज वह बहुत व्यथित थी. जीवन से निराश हो कर उस का मन फूटफूट कर रोने को हो रहा था.

रोमेश की आवाज से वह वर्तमान में लौट आई थी. वे उसे मोबाइल दे कर बोले, ‘‘लो, त्रिशा का 2 बार फोन आ चुका है, कह रही है, क्या बात है? मां का फोन स्विच्ड औफ आ रहा है. उन की तबीयत तो ठीक है. सुबह यहां से गई थीं तब तो बिलकुल ठीक थीं. उन को फोन दीजिए. वे मुझ से बात करें. गुडि़या बहुत रो रही है.’’ रीना के हैलो बोलते ही त्रिशा खीझ कर बोली थी, ‘‘क्यों मां, पापा मिल गए तो मुझे और मेरी गुडि़या सब को भूल गईं. कम से कम पहुंचने की खबर तो दे देतीं.’’ रीना अपनी बेटी को जानती थी, यथासंभव अपनी आवाज को सामान्य करती हुई बोली थी, ‘‘न बेटा, फ्लाइट में फोन बंद किया था, फिर उसे औन करना ही भूल गई थी. गुडि़या को घुट्टी पिला दो और उस के पेट पर हींग मल दो. पेटदर्द से रो रही होगी,’’ उस ने फोन काट दिया था. सामने खड़े रोमेश का मुंह उतरा हुआ था. वे हाथ जोड़ कर उस से बेटी को कुछ न बताने और कान पकड़ कर माफी का इशारा कर रहे थे.

रीना कशमकश में थी. क्या उस का और रोमेश का इतना पुराना रिश्ता पलभर में टूट जाएगा? वह सिर पर हाथ रख कर चिंतित मुद्रा में ही बैठी थी. रोमेश अपने अनगढ़ हाथों से सैंडविच और दूध बना कर लाए थे, ‘‘रीना, तुम मुझे जो चाहे वह सजा दे दो, लेकिन प्लीज, पहले यह सैंडविच खा लो.’’ रीना को याद आया कि रोमेश तो डायबिटिक हैं और पिछले कई घंटों से उन्होंने कुछ नहीं खाया.

रोमेश बोले थे, ‘‘मुझे 2-3 दिन से बुखार आ रहा था. आज सुबह से मेरे सिर में बहुत दर्द भी हो रहा था, इसलिए नाश्ता भी नहीं किया था.’’ अब रीना ने सिर उठा कर रोमेश पर भरपूर निगाह डाली तो वे काफी कमजोर दिख रहे थे. उन का मासूम चेहरा डरे हुए बच्चे की तरह लग रहा था. सबकुछ भूल कर उस का दिल कसक उठा था. यदि रोमेश को कुछ हो गया तो… उस ने चुपचाप सैंडविच उठा ली थी. रोमेश ने भी सिर झुका कर सैंडविच और दूध पी लिया था. रातदिन मजाक करने वाले हंसोड़ रोमेश को चुप और गुमसुम देख उसे अटपटा लग रहा था. परंतु आज वह मन ही मन एक निश्चय कर चुकी थी. वह आहिस्ताआहिस्ता अलमारी से अपना सामान हटा कर दूसरे बैडरूम में ले जा रही थी. वह रोमेश की परछाईं से भी इस समय दूर जाना चाह रही थी. रोमेश की उदास और पनीली आंखें चारों तरफ उस का पीछा कर रही थीं. आज रीना दुनिया में बिलकुल अकेली हो चुकी है, जहां कोई ऐसा नहीं था जिस से वह अपने दर्द को कह कर अपना मन हलका कर सके. उसे घुटन महसूस हो रही थी. उस को अपनी दुनिया सूनी और वीरान लग रही थी. पीछे से रोमेश की धीमी सी आवाज उस के कानों में पड़ी थी, ‘डियर, तुम्हारे बिना मेरा टाइमपास कैसे होगा?’ आज उस के बढ़ते कदम नहीं रुके थे. वह रोमेश को अनदेखा कर के दूसरे बैडरूम की ओर चल पड़ी थी.

नींव के पत्थर : भाग 3

नाई ने मुझे गौर से देखा और मुसकराया. संभवतः इसलिए कि एक सरदारजी को नाई की क्या जरूरत पड़ गई. काम कर रहे दूसरे नाई ने कहा, ‘वे तो चलाना कर गए सरदारजी, कोई काम था…? ’

‘‘नहीं,’’ मैं आगे बढ़ गया. ‘अच्छा हो गया मर गया, साला. धरती पर बोझ.’ कितना आक्रोश भरा होगा उस व्यक्ति के मन में, जिन के ये शब्द चलतेचलते मेरे कानों में पड़े. मैं सतपाल महाजन बजाजी वाले की दुकान की ओर बढ़ा, जहां से मुझे बाईं ओर गली में मुड़ना है. गली में पहले दूरदूर तक प्रायः अंधेरा हुआ करता था, अब स्ट्रीट लाइट की रोशनी से जगमगा रही है. चढ़ाई चढ़ते समय जहां बड़ेबड़े खोले हुआ करते थे, अब सुंदरसुंदर कोठियां बन गई हैं, बड़ीबड़ी इमारतें खड़ी हो गई हैं. मन के भीतर एक टीस उत्पन्न हुई कि यह कैसी विडंबना है कि हम सब बड़ीबड़ी सुंदर इमारतों को देख कर खुश होते हैं, उन की तारीफ करते हैं, पर हम उन पत्थरों को भूल जाते हैं, जो इन की नींव में दफन हो कर इन को मजबूती प्रदान किए हुए हैं. काश, हम यह न भूल पाते कि हमारे पूर्वजों की जाने कितनी अभिलाशाएं, कितने त्याग-परित्याग, सम्मान-आत्मसम्मान, बलिदान-आत्म बलिदान का ये परिणाम हैं? मैं मानव की इस प्रवृत्ति को समझ नहीं पाया कि देरसवेर में उन को भी ऐसी स्थिति में आना है, उन को भी कल को नींव का पत्थर बनना है? मैं जब राजी के दादाजी के द्वार पर पहुंचा तो बड़ा उद्विग्न था. बड़े अनमने भाव से द्वार खटखटाया. दादाजी ने तुरंत दरवाजा खोला, जैसे मेरी प्रतीक्षा कर रहे हों.

‘‘आ, पुत्तर आ,’’ मैं उन के साथ ड्राइंगरूम में आ गया. सामने सौफे पर बैठा तो अनायास ही चारों ओर अवलोकन करने लगा.

‘‘देख पुत्तर, मैं ने तुहाडे दादाजी का कुज नहीं बदलेया, सबकुज वही, वैसे दा वैसा, सिर्फ इक पलंग अपने आराम वास्ते रखा ऐ…’’

गिरधारी चुपचाप खाना लगा गया.

‘‘लै पुत्तर, परशादे शक.’’

‘‘जी, दादाजी आप भी लें.’’

‘‘हां… हां पुत्तर, मैं वी लैंदा हां,’’ कह कर उन्होंने अपने लिए परशादा रख लिया और खाने लगे. थोड़ी देर बाद वे बोले, ‘‘पुत्तरजी, मैं तुहानू इक गल कहना चाहदां ऐ. हुन मैं बुड्ढा हो गया ऐ, पता नईं कद बुलावा आ जाए. मेरा मुंडा बाहर ऐ ते ओथे ई बस गया ऐ. ओदे आन दी कोई उम्मीद नईं. राजी अपने घर खुश ऐ. ते पुत्तरजी, तुसीं अपने दादाजी दी धरोहर वापस ले लो… ये मकान, जमीन, सबकुज, मैं नु बड़ी शांति मिलेगी.’’

‘‘पर, दादाजी.’’

‘‘न पुत्तर ना, ना करीं, मैं तै नू मुफ्त लैन वास्ते नई कह रेया. जिन्ने पैसे तेरे दादाजी नूं मैं दित्त सी ओने मैं नू दे दे… मैं नू शांति मिल जाएगी.’’

‘‘चंगा, दादाजी जिवें तुहाडी मरजी,’’ पहली बार मेरे मुख से पंजाबी में निकला, ‘‘मैं पैसे भिजवा कर सारी कागजी काररवाई करवा लूंगा, पर एक प्रार्थना है, दादाजी.’’

‘‘बोल पुत्तर बोल. अज कुज वी मंग ले, मैं बौत खुश आं.’’

‘‘आप हमारे सिर पर बने रहें. आप का आशीर्वाद हमें मिलता रहे. आप पहले की तरह इस घर, जमीन के मालिक बने रहें. सबकुछ वैसा ही चले, जैसा चल रहा है.’’

‘‘चंगा पुत्तरजी, जीऊंदे रहो,’’ और वे रो पड़े. मैं उन को उसी स्थिति में छोड़ आया.

मैं बाहर आया तो दूर व्योम में फिर बादलों ने करतल ध्वनि की. अब मेरे दादाजी, सरदार गुरशरण सिंहजी नींव के पत्थर बन कर नहीं रहेंगे, बल्कि आकाशदीप की तरह व्योम में प्रज्वलित होते रहेंगे.

अस्पताल में भर्ती हुई कॉमेडियन Bharti Singh, लगी गंभीर चोट

Comedian Bharti Singh Health : एक्ट्रेस और कॉमेडियन ”भारती सिंह” ने अपनी बेहतरीन कॉमिक टाइमिंग और एक्टिंग से अपनी पहचान बनाई हैं. उनकी शानदार पंचलाइन्स के कारण भारती को आज घर-घर में पहचान मिली है. कई शो में काम करने के साथ-साथ वह अपना यूट्यूब पचैनल भी चलाती हैं, जिसमें वह अपनी जिंदगी से जुड़ी हर छोटी-बड़ी अपडेट अपने फैंस के साथ साझा करती हैं. वहीं अब भारती ने अपने लेटेस्ट वीडियो में बताया है कि उन्हें गंभीर चोट आई है, जिसकी वजह से उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है.

भारती की कमर में लगी चोट

आपको बता दें कि ‘भारती सिंह’ (Bharti Singh Health Video) ने अपने लेटेस्ट वीडियो में बताया है कि, ‘वो अपने ही घर में अपने ही बेड से नीचे गिर पड़ीं, जिस कारण उनकी कमर में गंभीर चोट आई है.’ इसके अलावा उन्होंने ये भी बताया कि ये हादसा तब हुआ जब वह अपने सिर की मसाज करवा रही थीं. मसाज करवाते समय उनके हाथ में फोन था, जिसकी वजह से उनका ध्यान भटक गया और वो बेड से नीचे गिर गई.

बेड से गिरने के बाद जब उन्हें दर्द हो रहा था तो तब उनके पति ‘हर्ष लिंबाचिया’ उन्हें अस्पताल लेकर गए. जहां उनका एक्सरे किया गया. हालांकि एक्सरे में सब ठीक आया है और अब उनकी हाल भी ठीक है. लेकिन डॉक्टर ने उन्हें पूरी तरह से बेड रेस्ट करने को कहा है.

मदरहुड जर्नी को एंजॉय कर रही हैं भारती

आपको बताते चलें कि इस समय भारती (Bharti Singh) मदरहुड जर्नी को पूरी तरह से एंजॉय कर रही हैं. उन्होंने बीते साल 3 अप्रैल को एक बेटे को जन्म दिया था, जिसका नाम ‘लक्ष्य’ है लेकिन प्यार से सब उसे ”गोला” कहकर  पुकारते हैं.

Alia से लेकर Shraddha तक ये 5 हसीनाएं बनी गैंगस्टर, देखें सिनेमा की लेडी माफिया की लिस्ट

Lady Mafia in Hindi Cinema : हिन्दी सिनेमा में हमेशा से ही माफिया, गैंगस्टर, डॉन और निगेटिव रोल पर मेल एक्टर्स का ही दबदबा रहा है, लेकिन समय के साथ इस चीज में भी बड़ा परिवर्तन आया है. कुछ सालों से डॉन, माफिया, गैंगस्टर और निगेटिव रोल का किरदान निभाने के लिए फीमेल एक्ट्रेस की भी दिलचस्पी बड़ी है और बड़ भी रही है.

पिछले कई वर्षों में बॉलीवुड एक्ट्रेस (Lady Mafia in Hindi Cinema) आलिया भट्ट से लेकर श्रद्धा कपूर तक ने बड़े पर्दे पर गैंगस्टर का किरदार निभाकर लोगों का दिल जीता है. इसके अलावा अभिनेत्री कृतिका कामरा ने भी वेबसीरीज ‘बंबई मेरी जान’ में डॉन की जबरदस्त भूमिका निभाई है. गौरतलब है कि यह किरदार, न केवल स्टार्स के लिए चुनौतीपूर्ण होते हैं बल्कि दर्शकों के लिए भी नया अनुभव होता है.

तो आइए जानते हैं उन कुछ उम्दा बॉलीवुड एक्ट्रेस के बारे में जिन्होंने निडर होकर बड़े पर्दे पर गैंगस्टरों की भूमिका निभाई है.

आलिया भट्ट

बॉलीवुड अभिनेत्री ‘आलिया भट्ट’ (alia bhatt) ने फिल्म “गंगूबाई काठियावाड़ी” में अपनी शानदार एक्टिंग से सबको हैरान कर दिया था. उन्होंने इस फिल्म में प्रसिद्ध माफिया क्वीन गंगूबाई का किरदार निभाया था. उन्होंने ये रोल इतने अच्छे से निभाया था कि हर कोई उनकी एक्टिंग का फैन हो गया था. यहां तक की उऩको गंगूबाई के लिए नेशनल अवॉर्ड से भी नवाजा गया था.

ऋचा चड्ढा

हिन्दी सिनेमा (Lady Mafia in Hindi Cinema) में ताबड़तोड़ कमाई करने वाली ‘फुकरे’ फैंचाइजी की तीनों फिल्मों में एक्ट्रेस ‘ऋचा चड्ढा’ ने भोली पंजाबन का किरदार निभाया है. जो कि निडर, चतुर और उग्र रवैये वाली गैंगस्टर महिला होती है. गौर करने वाली बात ये है कि फिल्म में भोली पंजाबन की भूमिका निभाना, ऋचा (richa chadha) के निडर अंदाज व उनकी खुद की निर्भीकता को दर्शाता है.

नेहा धूपिया

फिल्म “फंस गए रे ओबामा” में एक खूंखार गैंगस्टर मुन्नी मैडम का किरदार निभाकर बॉलीवुड एक्ट्रेस ‘नेहा धूपिया’ ने अपने फैंस को हैरान कर दिया था. उन्होंने (neha dhupia) फिल्म में इतना जबरदस्य अभिनय किया था कि उनकी तुलना भारतीय सिनेमा के कुख्यात गैंगस्टर गब्बर सिंह से की जाने लगी थी.

ईशा तलवार

एक्ट्रेस ‘ईशा तलवार’ (isha talwar) ने सीरीज “सास बहू और फ्लेमिंगो” में अपनी एक्टिंग से लोगों के दिलों में जगह बनाई हैं. इसमें उन्होंने बहू बिजली का किरदार निभाया था. जो कि उनके लिए काफी चुनौती भरा था. लेकिन उन्होंने ये किरदार बखूबी निभाया.

श्रद्धा कपूर

बॉलीवुड में अपनी दमदार एक्टिंग (Lady Mafia in Hindi Cinema) से लोगों का दिल जीतने वाली एक्ट्रेस ‘श्रद्धा कपूर’ ने फिल्म “हसीना: द क्वीन ऑफ मुंबई” में हसीना पारकर का किरदार निभाकर सभी को आश्चर्यजनक कर दिया था. फिल्म में उनके (shraddha kapoor) गैंगस्टर लुक और एक्टिंग ने खूब वाहवाही लूटी थी.

वाहन बेचने पर न करें यह गलती, पड़ सकता है महंगा

छोटे शहरों, महानगरों और गांवों तक में निजी वाहन अब लोगों की जरूरत बन गए हैं. भले मेट्रो, बस व ट्रेन से लोग रोजमर्रा का सफ़र करते हों पर बाइक से ले कर कार लगभग हर दूसरे घरपरिवार में मौजूद है.

वाहन व्यक्ति की संपत्ति का हिस्सा है.वाहन ने हमारी जिंदगी तेज की है. इस ने सुविधा और सहूलियत दी है तो हर व्यक्ति चाहता है कि उस के पास अपना खुद का वाहन हो चाहे वह सैकंडहैंड ही क्यों न हो.

कई मौकों पर वाहन खरीदनाबेचना पड़ जाता है. ऐसे में वाहन बेचते व खरीदते हुए लेखाजोखा से जुड़े काम होते हैं. यह काम सरकार के क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय के माध्यम से होते हैं. किसी भी वाहन को बेचने पर उसके मालिक द्वारा खरीदने वाले व्यक्ति के नाम पर वहां को ट्रांसफर करवाया जाता है. ऐसे ट्रांसफर पर सरकार को ड्यूटी भी प्राप्त होती है जो राज्य सरकार का राजस्व होता है.

कई लोग इसे झंझट वाला काम समझते हैं और आपसी विश्वास में इस ट्रांसफर वाली प्रक्रिया से बचने की कोशिश करते हैं. जैसे वे स्टाम्प के माध्यम से अपने परिचित या जानपहचान वाले को अपना वाहन बेच देते हैं. कई बार तो बिना स्टाम्प के ही ऐसे ही बेच देते हैं. इस में सरकार को राजस्व का नुकसान तो होता ही है, उस व्यक्ति को भी नुकसान होता है जिस के नाम पर वाहन रजिस्टर्ड होता है.

कानून कहता है जिस डेट को वाहन को बेचा गया है उस के 14 दिनों के भीतर खरीदने वाले व्यक्ति को उस वाहन को अपने नाम पर रजिस्टर्ड करवाना होता है. यह प्रावधान मोटर व्हीकल एक्ट 1988 की धारा 50 के अंतर्गत है. हां, यदि खरीदने व बेचने वाले का राज्य अलगअलग है तो यह अवधि 45 दिनों की होती है. पर इन दिनों के भीतर वाहन रजिस्टर्ड करवा लेना जरूरी होता है. इसे ही वाहन के स्वामित्व का ट्रांसफर कहा जाता है.

क्या होता है ट्रांसफर

पुराने वाहनों को खरीदने व बेचने को ले कर यह एक तरह का नियम है, जिस के तहत इस प्रक्रिया को पूरा करके की वाहन को खरीदाबेचा माना जाता है. इसे ही आरसी ट्रांसफर कहा जाता है.

क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय द्वारा वाहनों को ट्रांसफर किया जाता है. औफलाइन माध्यम से सीधे कार्यालय में जा कर यह काम किया जा सकता है वरना कुछ राज्यों में औनलाइन सुविधा है तो इसे औनलाइन भी किया जा सकता है. इस प्रक्रिया के दौरान कुछ जरूरी संबंधित कागजात व दस्तावेज जमा कराने होते हैं. दस्तावेज जमा करने के कुछ दिनों बाद आरसी ट्रांसफर कर दी जाती है.

मूल मालिक को नुकसान

अगर वाहन ट्रांसफार नहीं करवाया जाता है तोखरीदने वाले की गलतियों में भागीदारी अपनेआप बनने लगती है और वाहन के मूल मालिक को भारी नुकसान उठाने पड़ सकते हैं. जैसे-

जुर्म में संलिप्तता : यदि बेचा गया वाहन खरीदने वाले के नाम पर ट्रांसफर नहीं करवाया जाता है तब वह वाहन उसके पहले मालिक के नाम पर ही दर्ज होता है. किसी भी वाहन से अनेक तरह के अपराध संभव हैं. ऐसी सूरत में अपराधों में वाहन का मूल मालिक भी आरोपी बनाया जा सकता है, मालिक केवल स्टांम्प पर लिखापढ़ी के आधार पर यह नहीं कह सकता है कि वाहन उसके द्वारा बेचा जा चुका है.

ऐसे वाहन से कोई तीसरा व्यक्ति शराब इत्यादि प्रतिबंधित अपराधों के आरोप में पकड़ा जाता है तब वाहन का मूल मालिक भी पुलिस द्वारा आरोपी बना दिया जाता है क्योंकि वाहन का कब्जा उसे अपने पास रखने की जिम्मेदारी थी.

क्रिमिनल व सिविल जिम्मेदारी :खरीदने वाले के वाहन पर कब्जा न लिए जाने की स्थिति में सड़क हादसे में कई बार वाहन के मूल मालिक को भी मकदमों में घसीटदिया जाता है. आजकल सड़क हादसे आम हैं. हर दिन कईयों सड़क हादसों के मामले थानों में जमा होते हैं.

फिक्की ईवाई की इस साल आई रिपोर्ट कहती है कि भारत में हर साल लगभग 15 लाख सड़क हादसे होते हैं. जो दुनियाभर के रोड ऐक्सिडैंट के 11 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ पहले स्थान पर हैं.

ऐसे में बेचे गए और ट्रांसफर न करवाए गए वाहन से यदि कोई हादसा होता है तो हादसे की गंभीरता तय करते हैं कि मूल मालिक पर किस तरह की धारा लग सकती हैं. ऐसी धाराएं 279, 337, 338 और 304 (ए) हैं जो मामूली चोट से ले कर मृत्यु होने तक की धाराओं में लगाई जा सकती हैं.

ऐसे हादसों के बाद 2 तरह के प्रकरण बनते हैं. एक प्रकरण तो आपराधिक प्रकरण होता है जो ड्राइवर पर चलाया जाता है. कभीकभी ऐसे प्रकरण परिस्थितियों को देखकर मालिक पर भी बना दिए जाते हैं. इन अपराधों में सजा का प्रावधान है जो जुर्माने से लेकर 2 साल तक के कारावास तक की है. इसमें दूसरा प्रकरण सिविल प्रकरण बनता है जो मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 166 के अंतर्गत मुआवजे हेतु पीड़ित या पीड़ित के वारिसों द्वारा लगाया जाता है.

ऐसा मुआवजा क्षति के आधार पर लगाया जाता है जो पीड़ित व्यक्ति की आय को देखते हुए उसको होने वाले नुकसान के आधार पर तय होता है. इस हेतु वाहन का थर्ड पार्टी बीमा होता है, ऐसे नुकसान की क्षतिपूर्ति बीमा कंपनी द्वारा की जाती है लेकिन यदि वाहन का बीमा नहीं है तब क्षतिपूर्ति की ज़िम्मेदारी मालिक पर भी डाली जा सकती है और पीड़ित व्यक्ति को होने वाला नुकसान मालिक से दिलवाया जाता है.

भारी आर्थिक क्षति का नुकसान

आजकल सड़क हादसों में मरने वाले लोगों के आश्रित परिजनों को, आय के अनुसार, अधिक से अधिक मुआवजा राशि दिलवाई जा रही है. जिस व्यक्ति की आय अधिक है उसकी सड़क हादसे में मृत्यु होने पर परिजनों को अधिक से अधिक मुआवजा मिलता है. बीमा नहीं होने की सूरत में मुआवजा वाहन के मूल मालिक को देना होता है क्योंकि वाहन का बीमा करवाना मालिक की जिम्मेदारी है.

एहतियात जरूरी

अब समस्या आती है कि मूल मालिक ने तो वाहन बेच दिया, लेकिन खरीदने वाला ट्रांसफर नहीं करवा रहा. अब ऊपर बताए जोखिम के हिसाब से तो मालिक इस केस में फंस सकता है. ऐसे में सब से पहले मूल मालिक की जिम्मेदारी बनती है कि वहखरीदने वाले को ट्रांसफर कराने हेतु एक सूचनापत्र लिखे. यह पत्र डाक द्वारा भेजे.

पत्र में वाहन खरीदने वाले को तत्काल वाहन अपने नाम पर ट्रांसफर करने की चेतावनी हो. यदि इस के बावजूद खरीदार ट्रांसफर न करवाए तो एक आवेदन डाकपत्र की कौपी के साथ क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय के समक्ष पेश करना चाहिए. ऐसे मामलों में वाहन मालिक खरीदार के खिलाफ आपराधिक व सिविल मुकदमा भी दायर कर सकता है.

यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है

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काले केशों की मार : महिलाएं कैसे उठाती है फायदे ?

जवान होते लड़केलड़कियों को जैसे 16वें साल का इंतजार होता है वैसे ही प्रेमा को अपने 60वें साल का इंतजार था. 16वें साल के सपने अगर रंगीन होते हैं तो प्रेमा के भी 60 साल के सपने कुछ कम रोमांचक नहीं थे. उसे इस दिन का बड़ी बेसब्री से इंतजार था जब वह 60 साल की हो जाएगी.

इंतजार का हर एक दिन उस पर भारी पड़ रहा था. और इतने अधिक महत्त्वपूर्ण दिन का इंतजार क्यों न हो, 60वां साल होते ही उसे एक महत्त्वपूर्ण उपाधि जो मिलने वाली थी. वह उपाधि भी कोई ऐसीवैसी नहीं थी. वह उपाधि तो उसे भारत सरकार देने वाली थी. सुंदरसलोना 60वां साल होते ही उसे ‘वरिष्ठ नागरिक’ होने की उपाधि मिलनी थी. तब वह बड़ी शान से रेलवे वालों को बोल सकती थी कि वह तो  ‘सीनियर सिटीजन’ है और उसे रेलवे टिकट पर 30 प्रतिशत की कटौती मिलनी ही चाहिए.

प्रेमा की तकदीर कुछ अधिक ही जोर मार रही थी. इधर वह 60 की हुई और उधर रेलमंत्री ने ऐलान कर दिया कि रेल में सफर करने वाली ‘वरिष्ठ महिलाओं’ को टिकट पर 50 प्रतिशत कटौती मिलेगी. अखबार में यह समाचार पढ़ते ही उस का दिल तो बल्लियों उछलने लगा था.

प्रेमा ने तुरंत इस का फायदा उठाने की योजना बना डाली. अब उसे कहीं न कहीं घूमने तो जाना ही था. उस की तकदीर कुछ अधिक ही साथ देने लगी थी क्योंकि तभी उसे एक विवाह का निमंत्रणपत्र मिल गया. उस के भतीजे की शादी बेंगलुरु में होने वाली थी. शादी मेें 15 दिन बाकी थे यानी तैयारी के लिए भी अधिक समय मिल गया था. सब से पहले तो उस का बेंगलुरु जाने का टिकट आया. आज तक उस ने कभी खुश हो कर अपनी जन्मतिथि किसी को भी नहीं बताई थी पर आज उस ने बड़े गर्व से अपनी जन्मतिथि रेलवे फार्म में भरी थी ताकि उसे ‘वरिष्ठ नागरिक’ होने की कटौती मिल सके.

1 हजार रुपए के टिकट के लिए उसे केवल 500 रुपए ही देने पड़े थे. उसे इतनी बचत से बहुत खुशी भी हुई और अपने 60वें वर्ष पर गर्व भी हुआ.

प्रेमा ने शादी में जाने की तैयारी शुरू कर दी थी. 500 रुपए के टिकट में जो बचत हुई थी, उसे वह अपने ऊपर खर्च करना चाहती थी. उसे लगा कि शादी में सब से अच्छा उसे ही दिखना चाहिए. अपनी बहनों और भाभियों में उसे ही सब से अच्छा लगना चाहिए.

प्रेमा सीधी ब्यूटीपार्लर पहुंची. अपने अधपके बालों को काला करवाया, गोल्ड फेशियल करवाया ताकि उम्र छिप जाए. 60वें वर्ष की गहरी लकीरों को छिपाना चाहा. पार्लर से बाहर निकलते समय उस ने खुद को आईने में निहारा और हलके से मुसकरा दी.

प्रेमा को लगा अब वह 10 साल तो जरूर ही पीछे चली गई है. 2 घंटे कुरसी पर बैठने के बाद जब घुटने की हड्डियों ने चटखने की सरगम बजाई तो उसे याद हो आया कि वह तो अब वरिष्ठ नागरिक है और अपनी स्थिति पर उसे खुद ही गर्वभरी हंसी आ गई.

निश्चित तिथि पर प्रेमा ने बेंगलुरु की यात्रा के लिए प्रस्थान किया. याद से अपना पैनकार्ड पर्स में रखा. वही तो उस के 60वें साल का एकमात्र सुबूत था. अपनी सुरक्षित सीट पर बैठ कर उस ने सहयात्रियों पर नजर दौड़ाई. उस के साथ के सभी यात्री उसे वरिष्ठ नागरिक ही लगे. उस ने सोचा रेलवे की 30 प्रतिशत की छूट का फायदा उठाने ही सब निकल पड़े हैं. एक दादीमां के साथ उन की 2-3 साल की पोती भी थी. रात में जब सोने की तैयारी हुई तो उसे नीचे वाली सीट ही मिली थी. और इधर, दादीमां अपनी पोती के साथ नीचे वाली सीट ही चाहती थीं. दादी मां बोलीं, ‘‘बहनजी, आप तो जवान हैं, आप ऊपर वाली सीट ले लो. मु?ा से तो चढ़ा नहीं जाएगा.’’

दादीमां के मुंह से अपनी जवानी की बात सुन कर तो प्रेमा एक बार के लिए भूल गई कि वह भी तो वरिष्ठ नागरिक है. तभी उसे खयाल आया कि यह तो ब्यूटीपार्लर का ही कमाल था कि वह जवान नजर आ रही थी. उस ने गर्व से अपने काले बालों पर हाथ फेरा और किसी तरह बीच वाली सीट पर चढ़ गई.

सुबह होते ही टिकटचेकर ने आ कर सब को जगा दिया था. इतमीनान से बैठ कर वह एकएक यात्री का टिकट चैक करने लगा. प्रेमा का टिकट देख कर उस ने एक बार घूर कर उसे देखा और बोला, ‘‘बहनजी, आप अपना सर्टिफिकेट दिखाएं. मुझे तो शक हो रहा है कि आप ने धोखे से आधा टिकट लिया है.’’

सब के सामने धोखे की बात सुन कर प्रेमा के तनबदन में आग लग गई. उस ने तमक कर अपना पर्स खोला और अपना पैनकार्ड सामने कर दिया. कुछ लज्जित हुआ टिकटचेकर बोला, ‘‘माताजी, बाल काले करवा कर गाड़ी में चढ़ोगे तो हमें धोखा तो होगा ही. अब आप इन माताजी की तरफ देखो, सारे बाल सफेद हैं इसलिए उन से तो मैं ने प्रमाण नहीं मांगा.’’

दूसरे यात्री टिकटचेकर की बात सुन कर हंस पड़े थे और प्रेमा खिसिया कर रह गई थी.

कहते हैं कि छोटे बच्चों को भी धोखा देना मुश्किल होता है. कुछ बातों का ज्ञान उन्हें जन्मजात होता है. इस का प्रमाण भी आज प्रेमा को मिल गया था. दादी की पोती जब सो कर उठी तो उस ने प्रेमा को दादी कह कर ही बुलाया. उस ने कहा भी, मैं तो तुम्हारी आंटी हूं, मुझे आंटी कह कर बुलाओ. पर नहीं, बच्ची उसे दादी ही बुलाती रही. उस ने तो उस के काले बालों की भी लाज नहीं रखी, उस का 60वां साल उसे नए अनुभव करवाने के लिए ही आया था.

बेंगलुरु स्टेशन पर पहुंच कर प्रेमा ने देखा कि उसे लेने स्टेशन पर कोई नहीं पहुंचा था. कुछ देर इंतजार करने के बाद वह अपनी अटैची घसीटती हुई चल दी. एक टिकटकलेक्टर ने उसे रोका और टिकट मांगा. उस ने टिकट दिखाया तो उस ने भी उसे घूरा और कहा, ‘‘आप एक तरफ आ जाइए और अपना बर्थ सर्टिफिकेट दिखाइए.’’

प्रेमा ने ?ाट से अपने पर्स में से पैन- कार्ड निकालना चाहा पर उसे कार्ड कहीं भी दिखाई नहीं दिया. उस ने पूरे पर्स को तलाश मारा पर पैनकार्ड नहीं मिला. अब तो उस के होश उड़ गए. अब करे तो क्या करे? कैसे इस टिकटकलेक्टर को यकीन दिलाए कि वह पूरे 60 वर्ष की है. उस की घबराहट को देख कर टिकटकलेक्टर जरा अकड़ गया और बोला, ‘‘ऐसा धोखा करने से पहले उस की सजा के बारे में भी सोचना था. अब आप जानती ही होंगी कि आप को हजार रुपए जुर्माना भी हो सकता है और 15 दिन की जेल भी.’’

सुन कर प्रेमा के हाथपांव फूल गए. उस ने रोती हुई आवाज में कहा, ‘‘मैं सच में कह रही हूं कि मैं 60 साल की हूं.’’

‘‘पर मैं यकीन नहीं कर सकता. आप का तो एक भी बाल सफेद नहीं है.’’

‘‘वह तोे मैं ने काले रंगवाए हैं.’’

‘‘मैं कोई बहानेबाजी सुनने वाला नहीं हूं. या तो आप पैनकार्ड दिखलाइए या जुर्माना भरने को तैयार हो जाइए.’’

प्रेमा ने आसपास ?ांका. पर उस की मदद करने वाला कोई नहीं था. वह बोली, ‘‘आप यकीन मानिए, मैं 60 साल 20 दिन की हूं.’’

‘‘आप चाहे 60 साल एक दिन की हों मुझे एतराज नहीं है. पर आप सबूत दीजिए.’’

पास की एक बैंच पर बैठ कर उस ने अपने दिमाग पर पूरा जोर दिया. सुबह तो उस ने पैनकार्ड डब्बे में टी.टी.ई. को दिखाया था, इस वक्त न जाने कहां गायब हो गया. अब उस ने पर्स में जितनी रकम थी, गिननी श्ुरू की. पूरे 1200 रुपए थे. टी.टी.ई. ने उसे 1 हजार रुपए जुर्माना भरने की बात कही थी. टी.टी.ई. भी उसे गिद्ध नजरों से देख रहा था. अब उस ने गिड़गिड़ाती हुई आवाज में कहा, ‘‘मेरी तो किस्मत ही खराब है इसलिए मेरा पैनकार्ड गुम हो गया है. ट्रेन में मैं ने टिकटचेकर को दिखाया था.’’

‘‘आप कुछ भी कह लीजिए पर मुझे तो लग रहा है कि आप ?ाठ बोल रही हैं.’’

‘‘आप जुर्माना ले लीजिए पर मुझे झूठी तो मत कहिए. मेरा इतना अपमान तो मत कीजिए.’’

टी.टी.ई. ने बड़ी शान से 1 हजार रुपए जुर्माने की रसीद काटी और उसे पकड़ा दी.

प्रेमा ने रसीद ली और बैंच पर बैठ गई. मन ही मन अपने काले बालों को कोसा जिन्होंने काली नागिन बन कर उसे ही डसा था. एक तो हजार रुपए गए और दूसरे झूठी का लेबल भी लग गया. फिर उस ने रेलमंत्री को कोसा जिस ने वरिष्ठ नागरिकों के लिए ऐसी स्कीम निकाली. न वह स्कीम होती न उस ने 50 प्रतिशत छूट पर टिकट खरीदा होता.

सब को कोसने के बाद प्रेमा ने एक बार फिर से अपना पर्स टटोला. अब की बार उस ने पूरे पर्स को उलट दिया. सारा सामान बाहर निकाल दिया. तब उस की नजर पर्स के उधड़े हुए हिस्से पर पड़ी, जहां से उस का पैनकार्ड ?झांक रहा था. उस ने जल्दी से उसे बाहर खींचा और उधर को दौड़ी जिधर टिकटकलेक्टर गायब हुआ था. उस ने बहुत तलाशा पर वह जालिम चेहरा उसे नजर नहीं आया.

अब अपने को कोसते हुए प्रेमा स्टेशन से बाहर निकली. घर पहुंच कर उस ने सारी कहानी कह सुनाई. अब उसे खुद पर ही हंसी आ रही थी. उस ने तो बाल रंगे थे कि वह जवान नजर आए और जब वह जवान नजर आई तो उस ने सब को कहा कि वह 60 साल की बूढ़ी है. दोनों स्थितियों का लाभ वह एकसाथ नहीं उठा सकती थी या तो 50 प्रतिशत की कटौती ले ले या घने काले बालों वाली तरुणी बन जाए. या तो एक वृद्धा का सम्मान ले ले या फिर बच्चों से दादी के बदले आंटी कहलवा ले. खुद ही सोचनेविचारने के बाद नतीजा निकाला कि उम्र के साथ चलने में ही भलाई है, दौड़ आगे की ओर ही लगानी चाहिए पीछे की ओर नहीं. क्योंकि आप स्वयं को कभी भी धोखा नहीं दे सकते तो फिर दूसरों को ही धोखा देने की कोशिश क्यों की जाए?

इक्के पे दुक्का : अनुभा को क्यों अपनी ननद पसंद नहीं थी ?

‘‘तुम से कोई भी काम ढंग से नहीं होता, चटनी ने पूरी दीवार खराब कर दी

है. डैडी होते तो तुम्हें कब का घर से निकाल चुके होते. उन्हें सफाई बहुत

पसंद थी,’’ रोज की तरह अंजना फिर अपने भाई की पत्नी को डांट रही थी.

अनुभा रोंआसा चेहरा लिए सब सुन रही थी. बात तो कुछ नहीं थी, अनुभा के हाथ से चटनी दीवार पर लग गई थी, जोकि उस ने साफ भी कर दी थी. उसे अचानक ही विवाह से पूर्व का एक किस्सा याद आ गया…

‘मां, आज मैं और भाभी चाट खाने जा रहे हैं. हमारे लिए खाना मत बनाना,’ अनुभा ने भाभी के साथ प्लान बनाया था.

‘अच्छा बेटा, दोनों खूब मजे करना, जाओ घूम आओ,’ बाजार में नए सूट पर चटनी गिरने से अनुभा की भाभी मधुरा थोड़ा सहम गई. अनुभा ने उसे दिलासा दिया और कहा कि ज्यादा न सोचे. घर आने पर अनुभा की मां ने मधुरा का कुरता देखते ही कहा, ‘अरे बेटा, जल्दी से चेंज कर के कुरता मुझे दे दे, मैं अभी साफ कर दूंगी. बाद में दाग रह जाएगा.’ मधुरा ने चैन की सांस लेते हुए कुरता मां को दे दिया था और यहां तो चटनी कांड ही बन गया था. अनुभा आंसू पोंछने लगी.

अनुभा का विवाह हुए कुछ ही महीने हुए थे. उस ने काफी लड़कों से मिलने के बाद राम से विवाह के लिए हां कही थी. राम बैंक में एक उच्च पद पर नियुक्त था. अनुभा एक साइंस ग्रेजुएट थी. उस के घर में एक बड़ा भाई था जिस की शादी उस की शादी से एक साल पहले ही हुई थी. भाभी के आने से घर खुशियों से भर गया था. उस की भाभी मधुरा बहुत ही अच्छे दिल की लड़की थी जिस ने घर में आते ही सब को इतने प्यार से अपनाया था कि अनुभा के मातापिता को लगता ही नहीं था कि वह पराई थी. हर चीज के लिए वे मधुरा पर निर्भर हो गए थे.

अनुभा को एक सहेली मिल गई थी. वह भाभी से खूब लाड़ करती. उन को सिनेमा दिखाने ले जाती. ननदभाभी शौपिंग और गपशप करतेकरते बहुत करीब आ गए थे.

?अनुभा के लिए जब राम का रिश्ता आया तो वह खुद पर फख्र कर उठी. राम बहुत ही सुदर्शन युवक था. देखने में जितना अच्छा उतना ही दिल का साफ. अनुभा सुंदर भविष्य के सपने संजोए पिया घर आ गई.

राम के घर में उस की मां और अविवाहित बड़ी बहन अंजना थी. अंजना में यों तो कोई दोष न था पर मांगलिक होने की वजह से उस की अब तक शादी नहीं हुई थी. रूपरंग में वह साधारण थी. राम और अंजना भाईबहन से भी नहीं लगते थे. अंजना के लिए जितने भी रिश्ते आए, सब ने उसे मांगलिक होने की वजह से ठुकरा दिया था. इस बात से उस का दिल काफी आहत हुआ था. वह सोचने लगी कि 21वीं सदी में भी लोग अंधविश्वास को छोड़ नहीं पाए हैं. लोग चांदसितारे तक पहुंच चुके मगर समाज में कुछ लोगों की सोच अभी भी दकियानूसी ही है.

हालांकि वह भी ग्रेजुएट थी व कई वर्षों एक ट्रैवल एजेंसी में जौब भी कर चुकी थी. एक दिन उस ने औफिस में क्लाइंट की गलत बुकिंग कर दी तो उस के बौस ने गुस्से में आ कर उसे निकाल दिया था. उस की यह नौकरी उस के पिता ने बड़ी सिफारिश से लगवाई थी. नौकरी छूटने के बाद से वह घर पर खाली बैठी थी.

अंजना की जबान बहुत ही तेज थी. घर में सभी उस के उग्र स्वभाव और बोली से डरते थे. उस की सब सहेलियों की शादी हो गई थी और सब खुशहाल जीवन जी रही थीं. अकेली अंजना की ही शादी नहीं हुई थी. कारण कोई इतना बड़ा नहीं था पर उन की बिरादरी में मांगलिक होना एक बहुत बड़ा ऐब था. नातेरिश्तेदार आतेजाते राम की मां को ताने मारते और अंजना की शादी की बात छेड़ते, ‘अरे, कब इस की शादी करोगी उलका रानी? अब तो राम की बहू ले आओ. अंजना से कहना भाभी का ध्यान रखे. अब तो उसे यहीं तुम सब के साथ रहना है.’ उलका सुन कर भी चुप हो जाती.

उलका के पति आकाश बहुत बड़े व्यापारी थे पर कुछ साल पहले ही उन का देहांत हो चुका था. राम अपनी मां और बहन को बहुत प्यार करता था. वह उन्हें समझता कि दुनिया की बातें न सुनें. इधर जब राम के लिए रिश्ते आने लगे तो उलका ने सोचा कि राम की शादी तो समय से हो जाए. बस, अनुभा भी उन के परिवार का हिस्सा बन गई.

अनुभा सुखी परिवार से आई थी. उस का घर रिश्तों को बहुत अहमियत देता था. उसे लगा कि ससुराल में भी उसे यही वातावरण मिलेगा पर बेचारी वह अंजना के स्वभाव से परिचित नहीं थी. अंजना को अनुभा में सहेली नहीं, प्रतिद्वंद्वी नजर आई. उसे लगता कि अनुभा उस का घर, भाई, मां सब को हथिया लेगी, इसलिए भाभी को, जो उस से कई साल छोटी थी, उस ने बातबेबात तंग करना शुरू कर दिया.

हर बात में अनुभा को गलत साबित करना, काम में मीनमेख निकालना, उस के परिवार की बुराई करना और मां व राम से लगाईबुझाई करना उस का नया शगल था, ‘तुम बहुत ही मनहूस हो. पता नहीं राम ने तुम में क्या देखा’, ‘तुम्हारे घर वालों को जरा भी शऊर नहीं है,’ तुम को मां इसलिए लाईं क्योंकि तुम छोटे घर से हो… जैसे ताने उसे रोज सुनाती. हां, यह सब वह अपनी मां और भाई के पीठपीछे कहती.

अनुभा तो जैसे आसमान से गिरी. उस के लिए अंजना एक पहेली सी थी. अनुभा ने जब अपनी सास और पति से इस का कारण पूछना चाहा तो उन्होंने अंजना की तरफदारी करते हुए कहा कि उस की जिंदगी में कुछ भी नहीं है, सिवा खालीपन के. इसलिए अनुभा भी उस की बातों को नजरअंदाज कर दे. 1 या 2 दिन की बात होती तो अनुभा शायद शिकायत न करती पर अंजना के दिल में जो जहर था, उस की कड़वाहट वह अनुभा पर निकालने लगी थी.

हर समय गुनगुनाने और खिलखिलाने वाली अनुभा एकदम चुप हो चली थी. अंजना को वह अपनी बड़ी बहन मान कर उस का दुख दूर करने की कोशिश करना चाहती थी पर अंजना को उस के मीठे व्यवहार से भी जलन थी.

दिन इसी तरह निकल रहे थे. एक दिन अनुभा को पता चला कि वह मां बनने वाली है. इस बात से घर में खुशी की लहर दौड़ गई. अंजना का व्यवहार भी अनुभा के लिए थोड़ाथोड़ा बदलने लगा. उस ने पहली बार अनुभा का खयाल रखना शुरू किया पर फिर भी दिन में जब तक वह 2-4 कड़वी बातें न बोलती, उस का खाना हजम न होता. अनुभा ने उस के व्यवहार को नकार कर अपनी सेहत का ध्यान रखना शुरू किया. उस के लिए यह बहुत जरूरी था कि उस का बच्चा सेहतमंद हो. सही समय आने पर उस ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया.

बड़े लाड़ से सब ने उस का नाम परी रखा. परी ने अनुभा और राम का संसार महका दिया. अंजना ने खुशीखुशी परी की देखभाल करना शुरू किया पर उस की जलन ने एक नया रूप ले लिया था. वह पूरा दिन परी को अपने पास रखती. उस को नहलातीधुलाती, उस की मालिश करती, सिर्फ फीड करने के लिए वह परी को अनुभा के पास छोड़ती. अंजना को यह सब कर के बहुत अच्छा लगता था पर वह यहां भी यह भूल गई थी कि वह एक मां से उस का अधिकार छीन रही थी.

अनुभा को अपनी बेटी सिर्फ रात को मिलती. वह भी तब, जब राम घर आ जाता. अनुभा को भी अच्छा लगता था कि अंजना शायद परी के कारण बदल रही थी पर यह सब एक धोखा था. अंजना परी पर हक जता कर अपना खालीपन भर रही थी. जब भी अनुभा परी को तैयार करती या खिलाती, अंजना उस में दस नुक्स निकाल देती, ‘अरे, इसे क्या कपड़े पहनाए हैं. इसे भी अपनी तरह गंवार बनाओगी क्या’, ‘तुम्हारे पास तो यह रोती रहती है. लाओ, मुझे दो, मेरे पास आते ही परी सो जाती है.’ वह अनुभा से परी को जबरदस्ती ले जाती और खुद उस का पूरा ध्यान रखती. (1)

उलका यह सब देख कर बहुत खुश थी. उसे लगता था कि उस की बेटी बदल गई है पर उस का स्वार्थीपन वह नहीं देख पा रही थी. परी को अंजना हाथोंहाथ रखती पर अनुभा के पास वह तभी जाती जब उस को फीड करना होता.

अनुभा मातृत्व का सुख अनुभव ही नहीं कर पा रही थी. धीरेधीरे उस का वजन कम होने लगा और रूपरंग मुर?ा गया. वह जितना खुश परी की मां बन कर थी, उतना ही अंजना के स्वार्थी व्यवहार से दुखी. जब उस ने राम से बात करनी चाही तो राम ने कहा कि उसे इस सब में न घसीटे. अब अगर कोई उलका से या अंजना से पूछता कि अंजना दिनभर क्या करती है तो वह बड़े गर्व से बताती कि वह परी की देखभाल करती है. लोग यह सुन कर हैरान रह जाते और पीठपीछे हंसते.

एक रिश्तेदार ने तो कह भी दिया, ‘क्या यह तुम ने अपना कैरियर बना लिया है?’ यह सुन कर मांबेटी बहुत नाराज हुईं. फिर भी कुछ नहीं बदला.

दिन इसी तरह बीत रहे थे और अंजना के व्यवहार में कोई फर्क नहीं आ रहा था. परी अब 6 महीने की हो चली थी. आंखें मटकामटका कर वह सब को देखती, खूब हाथपैर चलाती और अपने मुंह से आवाजें निकालने की कोशिश करती. अनुभा के पास वह फिर भी रात को ही आती थी. अनुभा को इस का कोई उपाय सम?ा नहीं आ रहा था.

एक दिन राम की बूआ नन्हीं परी को देखने और कुछ दिन उन के साथ रहने बनारस से आईं. एक दिन में ही उन्हें अंजना का व्यवहार खटक गया. अनुभा के मुरझाए चेहरे को देख वे सब सम?ा गईं. वे पहली बार अनुभा और राम की शादी के बाद उन के घर आई थीं. अनुभा दौड़दौड़ कर उन की खातिर कर रही थी. उस का शरीर अभी भी कमजोर था, फिर भी वह बूआजी की सेवा में दिलोजान से जुट गई थी. बूआजी को भी अनुभा बड़ी प्यारी लगती थी. 4 दिन उन्होंने उलका और अंजना का यह व्यवहार देखा. उन्हें लगा कि इस चीज को यहीं रोकना होगा वरना अनुभा कभी परी का बचपन नहीं जी पाएगी.

एक दिन बूआजी ने अनुभा से कहा कि उन्हें कुछ खरीदारी करनी है तो वह उन्हें बाजार ले चले. अनुभा ने परी की ओर देखा तो बूआजी ने कहा, ‘‘अरे अंजना संभाल लेगी, चलो न.’’ अंजना ने भी खुशीखुशी हां कर दी.

बूआजी अनुभा को एक बढि़या से रैस्टोरैंट में ले गईं. वहां पर दोनों के लिए कोल्ड कौफी और्डर कर के बूआजी ने अनुभा से सारा माजरा समझ. होशियार तो वे थीं ही. अब उन्होंने अनुभा को एक ऐसा तरीका बताया जिसे सुन कर वह बहुत खुश हो गई. बूआजी के गले लग कर वह बेचारी रो पड़ी. बूआजी ने उस का कंधा थपथपाते हुए कहा, ‘‘न रो बहू, अब सब ठीक हो जाएगा.’’ थोड़ी देर में दोनों वापस घर आ गए.

अगले दिन, जैसा कि बूआजी ने प्लान बनाया था, उन्होंने अनुभा को डांटना शुरू किया, ‘‘अरे बहूरानी, कब तक ननद की अच्छाई का फायदा उठाओगी? वह बेचारी तुम्हारी बच्ची को पूरा दिन रखती है, न तुम उसे खाना खिलाती हो, न नहलाती हो, न उस की मालिश करती हो और न दिन में उसे अपने पास सुलाती हो. मेरी अंजना तुम्हारी जगह यह सारा काम करती है. इतनी अच्छी ससुराल मिली है और तुम उस का नाजायज फायदा उठा रही हो.’’ बूआजी की बातें सुन कर अनुभा मन ही मन मुस्कराई पर ऊपर से उस ने मुंह लटका लिया.

‘‘अरे, मैं कुछ बोल रही हूं, सुन रही हो कि नहीं अंजना, बहू को परी को संभालने दे, बहुत लाड़ कर लिया तुम दादी और बूआ ने परी का. उस के हाथ में बच्ची को दे कर देखो, आटेदाल का भाव पता चल जाएगा. मेरी भाभी और भतीजी इतनी सीधी हैं, इस का यह मतलब नहीं है कि कोई भी अपनी मनमानी करे.’’ (2)

अंजना और उलका ने कहा भी, ‘‘नहींनहीं, यह तो घर का बच्चा है और हमें इसे संभालने में कोई भी परेशानी नहीं है.’’

पर बूआजी ने सब सोच रखा था. वे बोलीं, ‘‘मैं जब से आई हूं तब से देख रही हूं कि कभी खाना बनाने के बहाने तो कभी सुस्ताने के बहाने बहू इधरउधर हो जाती है और अंजना तुम परी का पूरा खयाल रखती हो. तुम सब के बारे में इतना सोचती हो तो बहू को भी तो तुम्हारे बारे में सोचना चाहिए. क्यों अनुभा?’’ जैसा कि उन दोनों ने तय किया था अनुभा ने सिर्फ अपना सिर हिला दिया. बूआजी ने अंजना से तुरंत परी को ले कर अनुभा को दे दिया. उन्होंने कहा, ‘‘जाओ बहू, परी को तैयार करो और फिर खिचड़ी खिला दो. उस के बाद तुम भी इस के साथ थोड़ी देर सो जाना.’’

अंजना ने प्रतिवाद किया, ‘‘बूआजी, वह मेरे बिना नहीं सोएगी. अनुभा के पास तो वह रोती है.’’

बूआजी ने प्यार से अंजना के सिर पर एक चपत लगाई, ‘‘अरे पगली, उसे भी तो पता चले कि बच्चे को रखना कितना मुश्किल काम होता है. तू ने तो उस की आदत ही बिगाड़ दी है. सारा दिन आराम करती है बहू. हमारे घर में ऐसा नहीं होता है. तुम्हारा बच्चा है, तुम पालो.’’ (3)

अंजना मन मसोस कर रह गई.

बूआजी पूरे 2 महीने रहीं और वे अंजना को परी से सिर्फ एक घंटा खेलने देती थीं.

उन्होंने कमला को अपने साथ लगा कर रसोईघर में अलगअलग व्यंजन बनाना

सिखाया. जब अंजना खाली होती तो वे उसे सिलाई, बुनाई, कढ़ाई सबकुछ सिखातीं, क्योंकि वे तो इन सब में पारंगत थीं. इधर अनुभा परी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय गुजारती. खूब खेलती और खुश रहती. धीरेधीरे उस का पुराना रंगरूप वापस आने लगा. लेकिन साथ ही अब उसे डर लगने लगा कि बूआजी के जाते ही अंजना अपना असली रंग दिखाएगी. बूआजी ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली थीं. एक दिन उन्होंने कहा, ‘‘राम बेटा, बनारस के 2 टिकट करवा दे. एक मेरा और एक अंजना का.’’ अंजना तो हक्कीबक्की बूआजी का मुंह देखती रही.

‘‘अरे, ऐसे क्या देख रही है, चलेगी न मेरे साथ? मेरी भी कुछ सेवा कर. बनारस का पकवान खा और अपनी भाभी को थोड़ी सी आजादी दे.’’ यह कह कर बूआजी हंसने लगीं. उलका को तो इस बात को सुन कर अच्छा ही लगा. उन्हें लगा कि अंजना का भी मन बदलेगा और वह खुश रहेगी.

बूआजी का प्लान फुलप्रूफ था. एक दिन वे फिर अनुभा को शौपिंग करने के बहाने बाहर ले गईं. उन्होंने कहा कि वे अंजना को 2 महीने अपने पास रखेंगी. इस बीच वे उसे जौब करने के लिए मना लेंगी. जब वह वापस आएगी तब तक राम उस के लायक काम ढूंढ़ कर रखे. उन्होंने अनुभा से कहा, ‘‘बहू, तुम्हें थोड़ा सा मजबूत बनना पड़ेगा. जब अंजना वापस आएगी तो वह परी पर अपना हक जमाएगी, मगर तुम्हें उसे प्यार से मना करना पड़ेगा. उसे अपने भविष्य के बारे में भी सोचना चाहिए.’’ (4)

अनुभा खुशीखुशी इस के लिए मान गई और बोली, ‘‘बूआजी, जिस घर में आप जैसे बुजुर्ग होते हैं वहां पर बच्चों को कभी कोई दुख नहीं सता सकता. मैं बहुत खुशहाल हूं कि मुझे आप जैसी बूआ सास मिलीं.’’

बूआजी ने प्यार से अपनी बहू को गले लगा लिया.

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