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अंधभक्त और चमचे की भिड़ंत

पृथ्वीलोक पर राजनीतिक बहस के अमूमन 3 तीर्थस्थल माने गए हैं- चाय, पान और नाई की दुकानें. लेकिन हमारी राय में जहां भी 4 निठल्ले लोगों का जमावड़ा हो जाए, वही स्थान राजनीतिक बहसबाजी का तीर्थस्थल बन जाता है. आप ‘तीर्थस्थल’ की जगह ‘पर्यटन स्थल’ शब्द का भी प्रयोग कर सकते हैं क्योंकि अधिकांश तीर्थस्थल भक्तों की मेहरबानी से पर्यटन स्थल ही बन गए हैं.

एक बात तो तय है कि जो मजा राजनीतिक बहसबाजी में है, वह कहीं और नहीं. इसका प्रत्यक्ष प्रमाण संसद और विधानसभाएं हैं. राजनीतिक दंगल शुरू हुआ नहीं कि संभावनाओं के बादल अखबारों और टीवी चैनलों पर पहले से ही गरजनेबरसने शुरू हो जाते हैं.

दंगल शुरू होते ही देश की जनता टीवी के सामने ऐसे आंखें गड़ाकर बैठ जाती है जैसे ‘रामायण ‘ या ‘महाभारत’ का सीरियल शुरू हो गया हो. अब फिल्मी तर्ज पर ‘फ्लाइंग किस’ के दृश्य भी आप किसी थिएटर की जगह लोकतंत्र के पवित्र मंदिर यानी संसद भवन में देख सकते हैं. अपशब्दों की रिमझिम बारिश गुजरे जमाने की बात हो गई है, अब तो रोज नए शिगूफे हैं, आखिर हम हर क्षेत्र में ‘विकास’ जो कर रहे हैं.

एक रविवार की सुबह हम अपने बिस्तर पर कीचड़ में अलसाए से पड़े मगरमच्छ की तरह लेटे हुए थे, तभी लोकसभा के स्पीकर की तरह पत्नी ने फरमान सुना दिया, “आज की चाय तब तक स्थगित रहेगीजब तक आप सिर का मुंडन और हजामत नहीं करवा आते हो.”

अब कोई भी शादीशुदा आदमी बता सकता है कि इस फरमान को टालना कितना मुश्किल होता है.

हमने सोचा, चलो, आज सवेरे का अखबार सैलून पर ही पढ़ा जाए. वहां पहुंचे तो हमसे पहले 3 ग्राहक और लाइन में लगे थे. एक अखबार पढ़ने में व्यस्त और 2 मोबाइल में खोएहुए. हमने अखबार वाले अधेड़ आदमी की तरफ बड़ी उम्मीद के साथ देखा. वह आदमी हमारी भावनाओं को ताड़ गया और अखबार को हमारी ओर बढ़ाते हुए बड़े ही निराशाजनक अंदाज में बोला, “लीजिए, पढ़िए. कोई अच्छी खबर नहीं. देश का बेड़ागर्क हो गया. देश रसातल में चला गया.”

“अरे भाई, ऐसा क्यों कहते हो? देश में तो विकास की गंगा बह रही है,”” हमने उनकी नकारात्मकता को अपनी सकारात्मक सोच के तीर से काटना चाहा.

लेकिन उधर से सनसनाता हुआ तपाक से जवाब आया, “अंधभक्त लगते हो. सावन के अंधे को सब हरा ही हरा दिखाई देता है.”

“भाई, ऐसा क्यों कहते हो? सरकार के विरोधी लगते हो?” हमने खिसियाते हुए कहा.

“हां, हमें सरकार का विरोधी ही समझो. हम सच बात कहने की हिम्मत तो रखते हैं, हम आप जैसे अंधभक्त तो नहीं. जरा एक ढंग का काम तो बताओ जो तुम्हारी सरकार ने किया हो?” उन्होंने अपने मुंह से जहरबुझा बाण छोड़ा.

लेकिन हम भी कम नहीं थे. उस बाण की काट के लिए हमें भी अपने तरकश से आजमाए हुए सिद्ध बाण निकालने थे. आखिर अंधभक्त की लाज दांव पर लगी थी. सैलून वाला तो इस बहस को सुनकर गदगद था. उसे पता था कि यह बहस अब किसी भी कीमत पर रुकने वाली नहीं और ग्राहक बहस छोड़कर जाने वाले नहीं. वह अपने चेहरे पर मुसकान लिए अपने ग्राहक के बालों में यांत्रिक तरीके से उंगलियां चलाने लगा.

हम अपनी अंधभक्ति की लाज बचाते हुए और चेहरे पर विजयी मुसकान लाते हुए बड़े विश्वास के साथ बोले, “सरकार ने सबसे बड़ा काम राममंदिर बनवाने का किया है. क्या इसका जवाब है तुम्हारे पास?”

हमें पूरा विश्वास था कि चमचा सा दिखने वाले इस आदमी के पास हमारी बात का कोई जवाब नहीं हो सकता. लेकिन वह महाशय तो जैसे पहले से ही इस सवाल का जवाब देने के लिए बैठे हुए थे.वे झट से बोले, “आप अंधभक्त झूठ बोलने के शौकीन हैं. राममंदिर सरकार के निर्णय से नहीं, माननीय उच्चतम न्यायालय के फैसले से बना है. सरकार में हिम्मत होती तो संसद में बिल लाती और राममंदिर बनवाती. तब मानते हम कि यह काम सरकार ने किया है.”

उनका सच सुनकर हमारी बोलती बंद हो गई. हम सोचने लगे, ये चमचे इतना ज्ञान कहां से लाते हैं? लेकिन हमारे तरकश में भी तीरों की कमी नहीं थी. हमने अपनी झेंप मिटाते हुए अपने तरकश में से एक और आजमाया हुआ तीर निकाला. हमें पूरा विश्वास था कि चमचे के पास इसकी काट न होगी. हमने 56 इंच का सीना फुलाकर अकड़ कर कहा, “सरकार ने जम्मूकश्मीर से अनुच्छेद 370 को जो खत्म किया है, उसपर तुम्हारा क्या कहना है, बताओ तो जरा? ”

“अरे मेरे प्यारे अंधभक्त, तुम कोई भी काम ठीक से करना जानते ही नहीं. तुम आधेअधूरे काम करते हो. अनुच्छेद 370 का खंड 1 तो तुम्हारी सरकार ने हटाया ही नहीं. केवल खंड 2 और 3 को हटाया है. जम्मूकश्मीर को 2 हिस्सों में बांट दिया और उससे पूर्ण राज्य का दर्जा भी छीन लिया. ये हैं तुम्हारी सरकार के काम करने के ढंग.”

इस प्रकार तंज कसते हुए उन्होंने जब यह बात कही तो मुझे पूरा यकीन हो गया कि ये महाशय कोई पहुंचे हुए चमचे हैं और ये हार मानने वाले नहीं. हमने अपना बचाखुचा हौसला समेटते हुए कहा, “अरे जनाब, आपको दिखाई ही नहीं देता, चारों तरफ हाईवे का निर्माण हो रहा है. चंद्रयान चंद्रमा पर, गगनयान गगन में और मंगलयान मंगल पर जा रहा हैलेकिन आपको सरकार की उपलब्धियां दिखाई ही नहीं देतीं.”

इस पर वे महाशय पहले तो ठठाकर हंसे, फिर बोले, “भाईसाहब, आपने यह बात कहकर पूरी तरह से यह सिद्ध कर दिया है कि आप पक्के वाले अंधभक्त हो. आप किसी भी बात का सही मूल्यांकन नहीं कर सकते. अरे, आपकेगिनाए सारे काम सरकार के काम हैं? क्या इससे पहले की सरकारों ने हाईवे नहीं बनवाए? क्या अंतरिक्ष यान एक दिन में बनकर तैयार हो गया? आपको मालूम होना चाहिए कि इसरो का गठन 15 अगस्त, 1969 को ही हो गया था. लेकिन अंधभक्त तो अंधभक्त ही रहेंगे, आंखों पर काली पट्टी बांधे रहेंगे.”

इतना कहतेकहते वे महाशय धम्म से खाली कुरसी पर जाकर बैठ गए. हमें एकदम से झटका सा लगा मानो हमारे हाथ से प्रधानमंत्री की कुरसी निकल गई हो और उसे चमचे ने कब्जा लिया हो.

लेकिन एक बात नीले आसमान की तरह एकदम साफ हो गई थी कि यदि कोई हार मानने को तैयार न हो तो उसे दुनिया में कोई हरा नहीं सकता. चमचे साहब तो कुरसी पर काबिज हो चुके थे और हम अपनी शिकस्त को अखबार के पन्ने पलटकर पचाने वछिपाने की कोशिश में लगे थे.

वहां बैठे अन्य ग्राहक हमें देखकर अजीब तरह से मुसकरा रहे थे. हमें लगा यह इनकी मुसकान नहीं, सूर्पणखां की दिल जलाने वाली हंसी है. हमने अखबार को चेहरे के सामने कर उससे ढाल का काम लिया.

कुछ देर बाद चमचा महाशय विजयी रथ पर सवार होकर सैलून से बाहर निकले तब हमारी जान में जान आई. हम आहिस्ता से हजामत बनवाने वाली कुरसी पर बैठे तो ऐसा लगा मानो हजामत बनाने वाला कह रहा हो ‘हजामत तो तुम्हारी चमचा बनाकर चला गया, अब मुझसे क्या खाक हजामत बनवाओगे.’

आईआईटी डायरेक्टर लक्ष्मीधर बेहरा का हिमांचल आपदा पर कुतर्की बयान

सरकारी संस्थानों की सरकार द्वारा बिकवाली करना, फंड न दिया जाना ही सिर्फ इन की बरबादी का कारण नहीं, बरबादी का एक बड़ा कारण उच्च पदों पर ऐसे लोगों को बैठाना है जिन के अजीबोगरीब बयानों और तर्कों से संस्थान की छवि पर असर पड़ता है.

हाल ही में आईआईटी मंडी के डायरैक्टर लक्ष्मीधर बेहरा ने इस साल हिमाचल में आए भूस्खलन और बाढ़ पर अजीबोगरीब बयान दे कर अपने पद की गरिमा ही गिरा दी.

लक्ष्मीधर का कहना है कि चूंकि हिमांचल के लोग ज्यादा मांस खाते हैं इसलिए प्राकृतिक आपदा आई है. अब कोई बेहरा से पूछे कि ऐसे तो हिमाचल से ज्यादा भूस्खलन तेलंगाना में आ जाना चाहिए था, जहां की लगभग 99 फीसदी आबादी मांस खाती है, और मुजफ्फरपुर में तो लोग एक ही दिन में 10 करोड़ का मीट-मछली चाप जाते हैं. वहीं दिल्ली में तो 70 फीसदी आबादी मांस खाती है. आपदा के आने का यही पैमाना है तो अमेरिका में तो एक आदमी सालाना 120 किलो मांस खा जाता है. यानी, लगभग हर दिन 330 ग्राम मांस खा रहा है.

पिछले साल 2022 में लक्ष्मीधर बेहरा को आईआईटी मंडी का डायरैक्टर बनाया गया था. इस से पहले वे कानपुर आईआईटी में थे. वे मूल ओडिशा के रहने वाले हैं और खुद को कृष्ण भक्त कहते हैं. यूट्यूब पर इन के कुछ इंटरव्यू हैं, जहां पता चलता है कि ये भौतिक शिक्षा के साथ अध्यात्मिक शिक्षा भी देते हैं.

चश्मे के बीच में से नाक और माथे पर इस्कानी स्टाइल का चंदन लगाने वाले मिस्टर बेहरा के सिर पर बाल नहीं हैं. संस्कृति का गुणगान करते बेहरा हलके गेरुआ रंग की धोती पहने इस्कान आयोजनों में जाते रहते हैं, कभी कभी विदेशों में हो रहे आयोजनों में भी शिरकत करते हैं. बकौल बेहरा, वे चर्चों में भी जाते हैं जहां गीता पढ़ते हैं, अध्यात्मिक शिक्षा देते हैं.

डायरैक्टर बेहरा भगवदगीता को आर्ट औफ लिविंग मानते हैं. वे एक इंटरव्यू में वैदिक संस्कृति को जीवन में अप्लाई करने की बात करते हैं. वे बताते हैं कि हमें आश्रम भाव से जीवन जीना चाहिए, भौतिक चीजों से दूर रहना चाहिए.ये कुछकुछ उन्हीं लोगों में शरीक होते दिखाए देते हैं जो कहते हैं कि ज्ञान का सारा सार गीता में है, इसी को पढ़ लो काफी है.

प्रोफैसर बेहरा ने साल 1988-90 में राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान, राऊरकेला से इंजीनियरिंग में एमएससी की पढ़ाई की थी. इसके बाद उन्होंने साल 1997 में आईआईटी दिल्ली से पीएचडी की. वे विदेश में भी पढ़ा चुके हैं. ऐसे देखा जाए तो एक पढ़ेलिखे व्यक्ति से ऐसा सुनना हैरान करता है.

अब आते हैं उन के मूल रुझान पर, चूंकि इस्कान पंथ में मांस, लहसुन, प्याज खाना वर्जित माना जाता है, इस लिहाज से यदि वे इस्कान मान्यताओं के अनुसार यह कह रहे होते तो इसे एक आध्यात्मिक प्रवचनकर्ता द्वारा दिया बयान मान दरकिनार कर दिया जाता, पर वे आईआईटी डायरैक्टर हैं और जिस शोध के आधार पर वे कह रहे हैं उसे जान लेना भी तो जरूरी है.

दरअसल, इस तरह का एक तयशुदा प्रचार काफी समय से किया जा रहा है कि मांसाहार के चलते दुनियाभर में आपदा जैसी समस्याएं पैदा हो रही हैं. इसे ‘आइन्स्टीन पैन वेव थ्योरी’ कहा जा रहा है. बड़ी चालाकी से इसे आइन्स्टीन के नाम से जोड़ दिया गया है, जबकि आइन्सटीन का इस थ्योरी से कोई लेनादेना ही नहीं, न ही आइन्स्टीन ने इस तरह का कोई पेपर लिखा.

यह थ्योरी कहती है, कत्लखानों में पशु काटे जाते हैं तो उनकी निरीहअव्यक्त कराह,छटपटाहट, तड़प वातावरण में तब तकरहती है जबतक उनकी चमड़ी,खून,मांस-मज्जा पूरी तरह नष्ट नहीं हो जाती और बड़ी चालाकी से इसे जबरन ऊर्जा के संरक्षण के सिद्धांत से जोड़ दिया गया है.डा. मदम मोहन ने अपनी पुस्तक ‘अ न्यू अप्रोच’ में गणितीय गणनाओं का उपयोग करके ‘पैन वेव’ को सिद्ध करने का छद्म प्रयास किया, जिस का कोई आधार नहीं. इसे क्षद्म विज्ञान यानी शूडो साइंस कहा जाए तो गलत न होगा, माने, कहीं का रोड़ा कहीं जोड़ा वाली बात.

अब इस तरह के तर्क में कोई दम नहीं, न ही किसी बड़े नामी वैज्ञानिक मंच पर कोई रिसर्च पेपर इस पर पेश किया गया है. इस माने कोई क्रैडिबिलिटी भी नहीं है इस की. यह पूरा दावा शब्जाल के अलावा और कुछ नहीं.

मिस्टर बेहरा का यदि मानना है कि मुर्गा-मीट-मच्छी खा लेने से हिमाचल में बादल फटने और भूस्खलन की घटनाएं हो रही हैं तो जाहिर हैउन्हेंआईआईटी मंडी के ही उन तमाम विशेषज्ञों की टीम, जो हिमाचल प्रदेश में हुई लैंड स्लाइड का जोरशोर से अध्ययन कर रही है और सैकड़ों जगहों से नमूने एकत्रित कर रही है, को रुकवा देना चाहिए.

क्या उन में यह हिम्मत है कि अपने ही आईआईटी के विशेषज्ञों की टीम को लैंड स्लाइड के कारणों पर शोध न करने को कहें, क्योंकि डायरैक्टर को तो लैंड स्लाइड के कारण पहले से ही मालूम है.क्या उन में इतनी भी हिम्मत है कि वे अपनी इस बकवास को रिसर्च पेपर में लिख सकें?बेशक नहीं,ऐसा कर के वे जगत में अपनी ही बचीखुची किरकिरी नहीं कराएंगे.

इस से पहले भीलक्ष्मीधर ने कहा था कि लोग भूख से नहीं मरते बल्कि ओवरईटिंग करने से मरते हैं. साइंस एंड टैकनोलौजी से जुड़े ऐसे लोगों का इस तरह के बयान देना धूर्तता तो दिखाता ही है, साथ में लोगों को अंधविश्वासी बनाने कीचालबाजी भी दिखाता है, क्योंकि इसी तरह के लोग जब यह कहते फिरते हैं कि उन्होंने अपने दोस्त के घर से भूत भगाया था तो लोग पाखंडी ही बनते हैं.

मैं ट्रीटमैंट के बाद गर्भवती हुई हूं, ऐसे में मुझे ऐसा क्या खाना चाहिए, जिससे मेरी डिलीवरी में कोई प्रौब्लम न आएं?

सवाल

मेरी शादी को 4 साल हो गए हैं और मैं डाक्टरी ट्रीटमैंट के बाद ही गर्भवती हो पाई हूं. आप बताएं कि मुझे ऐसा क्या खानापीना चाहिए जिस से मेरी डिलीवरी में कोई प्रौब्लम न आए?

जवाब

अकसर महिलाओं व परिवार के हर व्यक्ति की यही सोच होती है कि गर्भवती होना मतलब उस दौरान स्त्री को पूरी तरह से आराम करना चाहिए जिस से उसे व बच्चे को कोई नुकसान न पहुंचे, लेकिन ऐसी सोच गलत है.

अनेक रिसर्च में यह साबित हुआ है कि इस दौरान आप जितना काम व वाक करेंगी उतनी आप फिट व आप की नौर्मल डिलीवरी हो पाएगी. ऐसे में जब आप डाक्टरी ट्रीटमैंट के बाद गर्भवती हो पाई हैं तो आप पूरी तरह डाक्टर के परामर्श के अनुसार ही चलें.

लेकिन इस बात का खयाल रखें कि  पौष्टिक डाइट जरूर लें और थोड़ीथोड़ी देर में कुछ खाती रहें, क्योंकि इस दौरान आप के खुद के साथसाथ पेट में पल रहे बच्चे का भी पेट भरना है.

जितना हो सके फास्टफूड व तनाव से दूर रहें और घर पर निकाले गए ताजे फलों का ही जूस पिएं. इस से आप खुद को भीतर से फिट फील कर पाएंगी और आप की डिलीवरी में भी आसानी होगी.

गर्भ धारण करना किसी भी महिला के जीवन की सब से बड़ी खुशी होती है. मगर इस दौरान उसे कई सावधानियां भी बरतनी पड़ती हैं. आज नारी पर घरबाहर दोनों जिम्मेदारियां हैं. वह घर, बच्चों, औफिस सभी को हैंडल करती है.

आधुनिक युग की नारी होने के नाते कुछ महिलाएं धूम्रपान और शराब आदि का भी सेवन करने लगी हैं. यही वजह है कि गर्भावस्था में उन्हें अपनी खास देखभाल की जरूरत होती है. थोड़ी सी सावधानी बरतने पर मां और शिशु दोनों स्वस्थ और सुरक्षित रह सकते हैं.

पौष्टिक आहार लेना जरूरी

आप मां बनने वाली हैं, तो यह जरूरी है कि आप पौष्टिक आहार लें. इस से आप को अपने और अपने गर्भ में पल रहे शिशु के लिए सभी जरूरी पोषक तत्त्व मिल जाएंगे. इन दिनों आप को अधिक विटामिन और खनिज, विशेषरूप से फौलिक ऐसिड और आयरन की जरूरत होती है.

गर्भावस्था के दौरान कैलोरी की भी कुछ अधिक जरूरत होती है. सही आहार का मतलब है कि आप क्या खा रही हैं, न कि यह कि कितना खा रही हैं. जंक फूड का सेवन सीमित मात्रा में करें, क्योंकि इस में केवल कैलोरी ज्यादा होती है बाकी पोषक तत्त्व कम या कह लें न के बराबर होते हैं.

मलाई रहित दूध, दही, छाछ, पनीर आदि का शामिल होना बहुत जरूरी है, क्योंकि इन खाद्यपदार्थों में कैल्सियम, प्रोटीन और विटामिन बी-12 की ज्यादा मात्रा होती है. अगर आप को लैक्टोज पसंद नहीं है या फिर दूध और दूध से बने उत्पाद नहीं पचते, तो अपने खाने के बारे में डाक्टर से बात करें.

पेयपदार्थ

पानी और ताजे फलों के रस का खूब सेवन करें. उबला या फिल्टर किया पानी ही पीएं. घर से बाहर जाते समय पानी साथ ले जाएं या फिर अच्छे ब्रैंड का बोतलबंद पानी ही पीएं. ज्यादातर रोग जलजनित विषाणुओं की वजह से ही होते हैं. डब्बाबंद जूस का सेवन कम करें, क्योंकि इन में बहुत अधिक चीनी होती है.

वसा और तेल

घी, मक्खन, नारियल के दूध और तेल में संतृप्त वसा की ज्यादा मात्रा होती है, जो ज्यादा गुणकारी नहीं होती. वनस्पति घी में वसा अधिक होती है. अत: वह भी संतृप्त वसा की तरह शरीर के लिए अच्छी नहीं है. वनस्पति तेल वसा का बेहतर स्रोत है, क्योंकि इस में असंतृप्त वसा अधिक होती है.

समुद्री नमक या आयोडीन युक्त नमक के साथसाथ डेयरी उत्पाद आयोडीन के अच्छे स्रोत हैं. अपने गर्भस्थ शिशु के विकास के लिए अपने आहार में पर्याप्त मात्रा में आयोडीन शामिल करें.

गर्भावस्था से पहले आप का वजन कितना था और अब आप के गर्भ में कितने शिशु पल रहे हैं, उस हिसाब से अब आप को कितनी कैलोरी की जरूरत है, यह डाक्टर बता सकती हैं.

जब नींद न आए और बेचैनी सताएं, तो अपनाएं ये टिप्स

आप सोना चाहते हैं, लेकिन दिमाग कहीं भटक रहा है. नींद न आने पर मजबूर हो कर आप अपने दोस्त से चैटिंग करने लगते हैं या बेमतलब फेसबुक अथवा यू ट्यूब पर कोई वीडियो देखने लगते हैं. सोने की कोशिश करने की जगह आप सोशल मीडिया से चिपक जाते हैं. नींद न आने की यह बीमारी अनिद्रा कहलाती है. जीवनशैली से संबंधित रोग सभी को प्रभावित करते हैं और इन में हाइपरटैंशन, तनाव, डिप्रैशन, अनिद्रा आदि शामिल हैं.

नींद न आने की समस्या

दरअसल, जरूरत से ज्यादा काम करने से दिमाग व शरीर के थकने, जल्दबाजी में खाना खाने और जंग फूड पर ज्यादा निर्भरता से लाइफस्टाइल में इस तरह की गड़बडि़यां पैदा होती हैं. अनिद्रा कई कारणों से मनुष्य पर प्रभाव डाल सकती है. यह व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक सेहत को खराब कर सकती है.

एक अध्ययन के अनुसार अमेरिका में 30 से 40 फीसदी वयस्क नींद न आने की बीमारी से पीडि़त हैं, जबकि 10 से 15 फीसदी वयस्कों को यह समस्या अपने परिवार से विरासत में मिलती है. भारत में 1 करोड़ से ज्यादा लोग नींद न आने की समस्या से पीडि़त हैं.

इस का सब से प्रमुख कारण यह है कि हर व्यक्ति ज्यादा पैसा कमाना चाहता है, इसलिए वह देर रात तक औफिस में रुकता है. उसे पार्टी भी करनी है. इसलिए वह औफिस के बाद पार्टी भी अटैंड करता है. आज उस की जिंदगी में हर चीज परफैक्ट है, पर एक चीज लापता है और वह है नींद.

जीवन पर गहरा प्रभाव

बहुत से लोग यह नहीं जानते हैं कि हमारे दिमाग में एक सोने की और एक जागने की साइकिल होती है. अगर स्लीप साइकिल वर्किंग मोड में होती है तो वैकअप साइकिल औफ रहती है, क्योंकि यह तब प्रभावी होती है जब स्लीप साइकिल काम करना बंद कर देती है. इसलिए जब कोई अनिद्रा से ग्रस्त होता है तो उस के बायोलौजिकल सिस्टम में दोनों साइकिल एक ही साइड पर काम करती हैं. सेहत को नुकसान पहुंचाने वाली नींद न आने की यह आदत जीवन पर काफी गहरा प्रभाव डालती है. इस से किसी भी व्यक्ति को सोने में काफी परेशानी होती है, जिस से उस की ऐनर्जी में कमी आती है, उस का मन किसी एक जगह नहीं लगता. मूड लगातार बदलता रहता है. इस के साथ ही उस की परफौर्मैंस पर भी प्रभाव पड़ता है.

कितनी जरूरी है नींद

नींद न आने की समस्या से पीडि़त अधिकांश लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में कई परेशानियों का सामना करते हैं. नींद न आने से लोग तनावग्रस्त रहते हैं, मनोवैज्ञानिक परेशानी महसूस करने लगते हैं. उन्हें बहुत जल्दी गुस्सा आता है. उन का दिमाग ठीक ढंग से काम नहीं करता. कुछ लोग देर तक औफिस में ठहरते हैं. वह एक ही चेयर पर बैठेबैठे देर तक काम करते हैं, जिस से उन की रीढ़ की हड्डी में दर्द होने लगता है और वे कमर दर्द के भी शिकार हो जाते हैं.

अगर नींद न आने की समस्या 3-4 हफ्तों से ज्यादा समय तक रहती है, तो उस व्यक्ति को डाक्टर से संपर्क करना चाहिए. कुछ लोग नींद न आने का इलाज कराने से भी डरते हैं, क्योंकि वे सोचते हैं कि इस बीमारी की दवा लेने के साइड इफैक्ट झेलने पड़ेंगे, लेकिन इस बीमारी को कुदरती इलाज से भी ठीक किया जा सकता है. हम सभी के लिए 8 घंटे की भरपूर नींद चाहिए. नींद हमारी सेहत के लिए बहुत जरूरी है.

क्या करें

यदि आप को नींद न आने की बीमारी हो, तो आप घर में इस उपाय को आजमा सकते हैं-

-सोने से पहले गरम पानी से स्नान करें. यह एक ऐक्सरसाइज की तरह होगा. गरम पानी से नहाने के बाद बैड पर जाते ही आप को नींद आ जाएगी.

-दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद आप को अपने मांसपेशियों को आराम देने और अच्छी नींद लेने के लिए अपने शरीर को कूलडाउन करने की जरूरत होती है. इस के लिए आप किसी टब या बालटी में कुनकुने पानी में अपने पैरों को डुबो कर रख सकते हैं.

-अपने शरीर की मांसपेशियों एवं ऊतकों को आराम देने के लिए आप 1 चम्मच एप्सौम साल्ट या डैड सी साल्ट को पानी में डाल सकते हैं. फुट बाथ आप की त्वचा को बैक्टीरिया से बचाता है और दिन भर की थकान से हुए पैरों के दर्द को भी कम करता है. उस गरम पानी में आप कुछ आवश्यक तेल भी डाल सकते हैं, जिस से रिलैक्स होने में मदद मिलती है. नींद न आने के रोग में कई तेल भी काफी फायदेमंद होते हैं. आप तुलसी का तेल, देवदार का तेल, लैवेंडर तेल, रोजमैरी औयल, विंटर ग्रीन औयल आदि का इस्तेमाल कर सकते हैं. आप को किसी भी तेल की 1-2 बूंदें पानी की बालटी में डालनी है.

घरेलू उपचार

वैज्ञानिकों का कहना है कि लैवेंडर के तेल से मालिश करने से यह तेल लगाने के 5 मिनट के भीतर ही शरीर की कोशिकाओं में पहुंच जाता है. इस तेल का शांत प्रभाव नींद न आने की बीमारी से बचाता है. इस की सुगंध सीधे दिमाग तक पहुंचती है और तेल के वाष्पीकृत भीतरी तत्त्व सीधे सांस में प्रवेश करते हैं.

अगर सोने जाने से पहले गरम पानी से नहाने का समय नहीं है तो कुनकुने पानी में अपने पैर डाल कर बैठ जाएं. दिन भर की कड़ी मेहनत के बाद यह रिलैक्स करने का बेहतरीन तरीका है. इस उपाय से स्किन हाइड्रेट होती है, मांसपेशियां ढीली पड़ती हैं. इस से रिलैक्स होने में मदद मिलती है, जिस से बिस्तर पर लेटते ही नींद आ जाती है.

– डा. नरेश अरोड़ा, चेस अरोमाथेरैपी कौस्मैटिक्स

थोथी सोच : शेखर व सुलक्षणा के साथ उस दिन क्या हुआ ?

सामने से तेज रफ्तार से आती हुई जीप ने उस मोटरसाइकिल सवार को जोरदार टक्कर मार दी. टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि उस की आवाज ने हर किसी के रोंगटे खड़े कर दिए. कोई कुछ समझ पाता, इस से पहले ही जीप वाला वहां से जीप ले कर भाग निकला.

सड़क पर 23-24 साल का नौजवान घायल पड़ा था. उस के चारों तरफ लोगों की भीड़ जमा हो गई. उन में से ज्यादातर दर्शक थे और बाकी बचे हमदर्दी जाहिर करने वाले थे. मददगार कोई नहीं था.

उस नौजवान का सिर फूट गया था और उस के सिर से खून बह रहा था. तभी भीड़ में से 39-40 साल की एक औरत आगे आई और तुरंत उस नौजवान का सिर अपनी गोद में रख कर चोट की जगह दबाने लगी ताकि खून बहने की रफ्तार कुछ कम हो. पर दबाने का ज्यादा असर नहीं होता देख कर उस ने फौरन अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ कर चोट वाली जगह पर कस कर बांध दिया. अब खून बहना कुछ कम हो गया था.

उस औरत ने खड़े हुए लोगों से पानी मांगा और घूंटघूंट कर के उस नौजवान को पिलाने की कोशिश करने लगी. तब तक भीड़ में से किसी ने एंबुलैंस को फोन कर दिया.

एंबुलैंस आ चुकी थी. चूंकि उस घायल नौजवान के साथ जाने को कोई तैयार नहीं था इसलिए उस औरत को ही एंबुलैंस के साथ जाना पड़ा.

उस नौजवान की हालत गंभीर थी पर जल्दी प्राथमिक उपचार मिलने के चलते डाक्टरों को काफी आसानी हो गई और हालात पर जल्दी ही काबू पा लिया गया.

नौजवान को फौरन खून की जरूरत थी. मदद करने वाली उस औरत का ब्लड ग्रुप मैच हो गया और औरत ने रक्तदान कर के उस नौजवान की जान बचाने में मदद की.

जिस समय हादसा हुआ था उस नौजवान का मोबाइल फोन जेब से निकल कर सड़क पर जा गिरा था, जो भीड़ में से एक आदमी उठा कर ले गया, इसलिए उस नौजवान के परिवार के बारे में जानकारी उस के होश में आने पर ही मिलना मुमकिन हुई थी.

वह औरत अपनी जिम्मेदारी समझ कर उस नौजवान के होश में आने तक रुकी रही. तकरीबन 5 घंटे बाद उसे होश आया. वह पास ही के शहर का रहने वाला था और यहां पर नौकरी करता था. उस के घर वालों को सूचित करने के बाद वह औरत अपने घर चली गई.

दूसरे दिन जब वह औरत उस नौजवान का हालचाल पूछने अस्पताल गई तब पता चला कि वह नौजवान अपने मातापिता की एकलौती औलाद है. उस के मातापिता बारबार उस औरत का शुक्रिया अदा कर रहे थे. वे कह रहे थे कि आज इस का दूसरा जन्म हुआ है और आप ही इस की मां हैं.

कुछ महीने बाद ही उस नौजवान की शादी थी.

उस औरत का नाम शालिनी था. शादी के कुछ दिनों बाद ही एक हादसे में शालिनी के पति की मौत हो गई थी. वह पति की जगह पर सरकारी स्कूल में टीचर की नौकरी कर रही थी. नौजवान का नाम शेखर था.

अब दोनों परिवारों में प्रगाढ़ संबंध हो गए थे. शेखर शालिनी को मां के समान इज्जत देता था.

वह दिन भी आ गया जिस दिन शेखर की शादी होनी थी. शेखर का परिवार शालिनी को ससम्मान शादी के कार्यक्रमों में शामिल कर रहा था. सभी लोग लड़की वालों के यहां पहुंच गए जहां पर लड़की की गोदभराई की रस्म के साथ कार्यक्रमों की शुरुआत होनी थी.

परंपरा के मुताबिक, लड़की की गोद लड़के की मां भरते हुए अपने घर का हिस्सा बनने के लिए कहती है. शेखर की इच्छा थी कि यह रस्म शालिनी के हाथों पूरी हो, क्योंकि उस की नजर में उसे नई जिंदगी देने वाली शालिनी ही थी. शेखर के घर वालों को इस पर कोई एतराज भी नहीं था.

पूरा माहौल खुशियों में डूबा हुआ था. लड़की सभी मेहमानों के बीच आ कर बैठ गई. ढोलक की थापों के बीच शादी की रस्में शुरू हो गईं. शेखर के पिता ने शालिनी से आगे बढ़ कर कहा कि वह गोदभराई शुरू करे.

वैसे, शालिनी इस के लिए तैयार नहीं थी और खुद वहां जाने से मना कर रही थी. पर जब शेखर ने शालिनी के पैर छू कर बारबार कहा तो वह मना नहीं कर पाई.

मंगल गीत और हंसीठठोली के बीच शालिनी गोदभराई का सामान ले कर जैसे ही लड़की के पास पहुंची, तभी एक आवाज आई, ‘‘रुकिए. आप गोद नहीं भर सकतीं,’’ यह लड़की की दादी की आवाज थी.

शालिनी को इसी बात का डर था. वह ठिठकी और रोंआसी हो कर वापस अपनी जगह पर जाने के लिए पलटी.

तभी शेखर बीच में आ गया और बोला, ‘‘दादीजी, शालिनी मम्मीजी सुलक्षणा की गोद क्यों नहीं भर सकतीं?’’

‘‘क्योंकि ब्याह एक मांगलिक काम है और किसी भी मांगलिक काम की शुरुआत किसी ऐसी औरत से नहीं कराई जा सकती जिस के पास मंगल चिह्न न हो,’’ दादी शेखर को समझाते हुए बोलीं.

‘‘आप भी कैसी दकियानूसी बातें करती हैं दादी. आप यह कैसे कह सकती हैं कि मंगल चिह्न पहनने वाली कोई औरत मंगल भावनाओं के साथ ही इस रीति को पूरा करेगी?’’

‘‘पर बेटा, यह एक परंपरा है और परंपरा यह कहती है कि मंगल काम सुहागन औरतों के हाथों से करवाया जाए तो भविष्य में बुरा होने का डर कम रहता है,’’ दादी कुछ बुझी हुई आवाज में बोलीं, क्योंकि वे खुद भी विधवा थीं.

‘‘क्या आप भी ऐसा ही मानती हैं?’’

‘‘हां, यह तो परंपरा है और परंपराओं से अलग जाने का तो सवाल ही नहीं उठता,’’ दादी बोलीं.

‘‘इस के हिसाब से तो किसी लड़की को विधवा ही नहीं होना चाहिए क्योंकि हर लड़की की शादी की शुरुआत सुहागन औरत के हाथों से होती है?’’ शेखर ने सवाल किया.

‘‘शेखर, बहस मत करो. कार्यक्रम चालू होने दो,’’ शालिनी शेखर को रोकते हुए बोली.

‘‘नहीं मम्मीजी, मैं यह नाइंसाफी नहीं होने दूंगा. अगर विधवा औरत इतनी ही अशुभ होती तो मुझे उस समय ही मर जाना चािहए था जब मैं ऐक्सिडैंट के बाद सड़क पर तड़प रहा था और आप ने अपने कपड़ों की परवाह किए बिना ही साड़ी का पल्लू फाड़ कर मेरा खून रोकने के लिए पट्टी बनाई थी या आप के रक्तदान से आप का खून मेरे शरीर में गया.

‘‘भविष्य में होने वाली किसी अनहोनी को रोकने के लिए वर्तमान का अनादर करना तो ठीक नहीं होगा न…’’ फिर दादी की तरफ मुखातिब हो कर वह बोला, ‘‘कितने हैरानी की बात है कि जब

तक कन्या कुंआरी रहती है वह देवी रहती है, वही देवी शादी के बाद मंगलकारी हो जाती है, पर विधवा होते ही वह मंगलकारी देवी अचानक मनहूस कैसे हो जाती है? सब से ज्यादा हैरानी इस बात की है कि आप एक औरत हो कर ऐसी बातें कर रही हैं.’’

दादी की कुछ और भी दलीलें होने लगी थीं. तभी दुलहन बनी सुलक्षणा ने उन्हें रोकते हुए कहा, ‘‘दादीजी, मैं शेखर की बातों से पूरी तरह सहमत हूं और चाहती हूं कि मेरी गोदभराई की रस्म शालिनी मम्मीजी के हाथों से ही हो.’’

इस के बाद विवाह के सारे कार्यक्रम अच्छे से पूरे हो गए.

आज शेखर व सुलक्षणा की शादी को 10 साल हो चुके हैं. वे दोनों आज भी सब से पहले आशीर्वाद लेने के लिए शालिनी के पास जा रहे हैं.

मुझे माफ कर दो सुलेखा : भाग 3

‘‘तो…’’

‘‘उस की बेटी को अपनी बहू बना लूं,’’ मेरी बात पर प्रतीक ने मु   झे देखा और हंस कर बोले, ‘‘वैसे, आइडिया अच्छा है, बात करें क्या?’’

‘‘ज्यादा बकवास मत करो, सुकठा कहीं का. मुंह देखा उस का. बेटी भी वैसी ही होगी,’’ मैं ने मुंह बनाया.

‘‘अरे, बाप रे, सास के तेवर तो अभी से    झलकने लगे तुम में,’’ प्रतीक की बात पर मु   झे जोर की हंसी आ गई.

‘‘हां, यह हुई न बात. हंसती रहा करो, अच्छी लगती हो,’’ बोल कर प्रतीक ने मु   झे अपने कंधे से सटा लिया. लेकिन मेरी हंसी तो उस नवीन को देखते ही गायब हो गई थी. सालों बाद उसे देख कर मेरे पुराने जख्म फिर से हरे हो गए. कुछ ही देर में प्रतीक खर्राटे भरने लगे और मैं खिड़की से बाहर देखते हुए यह सोचने लगी कि नवीन का दिया एकएक जख्म, मम्मीपापा और भैया का तिरस्कार कभी नहीं भूल सकती मैं.

विचारों की कड़ी मु   झे सुदूर अतीत में ले गई-

‘‘सुन, सुन, सुन दीदी, तेरे लिए एक रिश्ता आया है. सुन, सुन, सुन लड़के में क्या गुण. सुन, सुन, दीदी, सुन…’

सुलेखा की आंखों के सामने नवीन का फोटो लहराते हुए माला गाने लगी तो सुलेखा ने    झपट्टा मार कर वह तसवीर उस के हाथ से छीननी चाही, मगर माला दूर छिटक गई और बोली, ‘न-न दीदी, ऐसे थोड़े ही. इस के लिए पहले कुछ देना पड़ेगा. आप का वह सिल्क वाला दुपट्टा चाहिए मु   झे, तभी यह तसवीर मिलेगी, वरना मैं चली.’

‘अच्छाअच्छा चलो, दिया. अब तो फोटो दे दो,’ बोल कर मैं ने वह फोटो माला के हाथ से    झटक लिया और कमरे में जा कर बंद हो गई. माला कहती रही, ‘अरे दीदी, दरवाजा तो खोलो.’ पर मैं ने दरवाजा नहीं खोला. मेरा कलेजा जोरजोर से धड़क रहा था. ऐसा लग रहा था कि बाहर ही निकल आएगा. मैं जितनी बार भी नवीन की तसवीर देखती, आहें भरती. रातदिन मेरे जेहन में सिर्फ नवीन ही होता. सोतेजागते, उठतेबैठते, खातेपीते, बस, मैं उस के ही सपने देखा करती. उस से प्यारा इस दुनिया में और कोई नहीं था अब मेरे लिए. मेरा दिल बेकरार हुआ जा रहा था उस से मिलने को, बातें करने को. सोचती, जिस दिन मेरी नजर उसे देखेगी, जाने मेरा क्या हाल होगा. मेरी हालत पर भाभी और बहन मेरा मजाक उड़ातीं. उस का और मेरा नाम जोड़ कर हंसतीं और मैं    झूठा गुस्सा दिखाती पर मु   झे वह सब अच्छा लगता था. सच कहूं, तो मु   झे प्यार हो गया था नवीन से.

नवीन मेरी बड़ी मौसी की बहू का भाई था. मैं ने जब पहली बार उसे मौसी के बेटे की शादी में देखा था, तभी मैं अपना दिल हार गई थी. लेकिन लाज के मारे यह बात किसी से कह नहीं पाई थी.

मां ने जब नवीन को देखा तो वह उसे अपना दामाद बनाने को लालायित हो उठी. एक तो लड़का सरकारी बैंक में है और जानापहचाना भी तो बेटी सुखी रहेगी. लेकिन मां को एक ही बात का डर था कि कहीं लड़के वाले मेरे सांवले रंग को देख कर मु   झे छांट न दें. मां मौसी के सामने हाथ जोड़ कर कहने लगीं कि वह लेनदेन में कोई कमी नहीं रखेंगी, बस किसी तरह उस लड़के से सुलेखा का रिश्ता पक्का हो जाए तो मौसी का बड़ा एहसान होगा.

मौसी ने कहा भी कि वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगी. लेकिन मां का डर सच साबित नहीं हुआ. नवीन के मम्मीपापा को मैं पसंद आ गई. लेकिन उन का कहना था कि लड़कालड़की आपस में एक बार मिल लें तो शादी की डेट भी रखवा देंगे. नवीन से मिलने पर मु   झे लगा कि शायद उन्हें भी मेरी तरह बात करने में शर्म आ रही है क्योंकि हमारे बीच कोई बात ही नहीं हुई.

खैर, दोनों परिवारों की उपस्थिति में पटना के मौर्या होटल में हमारी एंगेजमैंट हो गई और फिर शादी की तैयारियां भी शुरू हो गईं. लेकिन मैं ने महसूस किया कि नवीन खुश नहीं था. लेकिन फिर लगा, मैं भी पागल हूं. कुछ भी सोचती हूं. अरे, होगी कोई औफिस की टैंशन. और खुश न होते तो एंगेजमैंट ही क्यों करता.

घर में जब भी मेरी और नवीन की शादी की बातें होतीं, मैं दरवाजे के पीछे खड़ी हो कर सुनती कि क्या बातें हो रही हैं? एक रोज हौल में बैठे सब शादी की ही बात कर रहे थे कि कैसे क्या करना है? और मैं चुपके से उन की बातें सुन रही थी कि तभी पीछे से बूआ कहने लगीं, ‘यह देखो, बेशर्म लड़की को, छिपछिप कर अपनी शादी की बातें सुन रही है और एक हमारा जमाना था. जब हमारी शादी की बातें होती थीं, हम अपने कानों में रूई ठूंस लिया करते थे.’

भले ही मैं वहां से भाग खड़ी हुई, लेकिन बूआ पर मु   झे इतना जोर का गुस्सा आया न कि क्या कहूं और इस में क्या बेशर्मी? अपनी ही तो शादी की बातें सुन रही थी मैं?

घर में शादी की जोरशोर से तैयारियां चल रही थीं. दूरदराज से मेहमान भी लगभग आ ही चुके थे. मेरे हाथों पर नवीन के नाम की हलदी, मेहंदी भी लग चुकी थी. लेकिन तभी हमारे ऊपर बहुत बड़ा वज्रपात हो गया. नवीन ने यह कह कर शादी करने से इनकार कर दिया कि वह किसी कालीकलूटी लड़की से शादी नहीं करेगा.

सुनते ही पापा तो खड़ेखड़े ही गिर पड़े. मां भी सुधबुध खो बैठीं कि अब क्या होगा.

हाथ जोड़ते हुए पापाभैया गए थे नवीन के घर कि वे उन की बेटी को अपना लें पर नवीन ने यह कह कर उन की बेइज्जती कर दी कि किसी कालीकलूटी से शादी कर के वह अपने जीवन में अंधेरा नहीं भरना चाहता.

पापा को लगा ऐसा कह कर नवीन ने उन का ही नहीं, बल्कि उन की बेटी का भी अपमान किया और अपनी बेटी का अपमान वे कतई बरदाश्त नहीं कर सकते थे. इसलिए उलटे पैर वहां से वापस लौट आए.

नवीन ने शादी करने से इनकार कर दिया, यह बात सुनते ही मेरी आंखों से अविरल धारा बहने लगी. मेरा दिल टूट कर चकनाचूर हो चुका था.

अपने इस घोर अपमान का दुख मैं भुला नहीं पा रही थी. कालागोरा, मोटा, पतला होना क्या इंसान के अपने हाथ में है. आखिर मेरा कुसूर क्या है, जो मैं सांवली हूं. मैं ने खुद को कमरे में बंद कर लिया और निढाल बिस्तर पर पड़ गई. मन कर रहा था मेरा कि छत से कूद जाऊं या पंखे से    झूल जाऊं. लेकिन फिर लगा, मेरे मम्मीपापा का क्या होगा? लोग तो यही कहेंगे न कि जरूर बेटी ने ही कुछ गलत किया होगा, इसलिए मर गई. लेकिन कोई यह नहीं सोचेगा कि गलत मैं ने नहीं, बल्कि उस नवीन ने किया है मेरे साथ. नवीन का होना या न होना अब मेरे लिए कोई माने नहीं रखता था. लेकिन अपने अपमान की टीस मु   झे जीने नहीं दे रही थी. नवीन की कही बातें कि, ‘कालीकलूटी से शादी कर के वह अपने जीवन में अंधेरा नहीं फैलाना चाहता,’ मेरे कानों को जला रही थीं. दिमाग में क्यों, कैसे जैसे हजारों सवाल दौड़ते, जिन का कोई उत्तर न मिलता.

मु   झे अब शादी के नाम से भी नफरत होने लगी थी. कहीं भी मेरी शादी की बात चलती, मैं चीख पड़ती. कहीं मेरी तबीयत न खराब हो जाए, यह सोच कर पापा मु   झे बूआ के घर छोड़ आए ताकि वहां मेरा मन बहलेगा और उन बातों को भुला सकूंगी, लेकिन कहां… वहां भी वही बातें मु   झे डरातीरुलातीं और मैं गुम हो जाती.

बूआ के बहुत जोर डालने पर मैं ने एक औफिस में नौकरी कर ली पर वहां भी मेरा मन नहीं लगता. सबकुछ खालीखाली सा लगता था. एक रोज औफिस से आते समय जब मैं रेंगती ट्रेन पर चढ़ने लगी तो लगा कि अब मेरा हाथ छूट जाएगा और मैं गिर पड़ूंगी. लेकिन तभी किसी ने मेरा हाथ पकड़ कर खींचा. वह सुंदर सा नौजवान मु   झे देख कर मुसकराते हुए बोला, ‘चलती ट्रेन में चढ़ना सिर्फ फिल्मों में ही अच्छा लगता है.’

उस की बातों पर मु   झे हंसी आ गई. उस के बाद से रोज हमारी मुलाकात होने लगी. पता चला कि वह बैंक में काम करता है. बैंक का नाम सुन कर मु   झे नवीन की याद आ गई और लगा कि सारे बैंक वाले एकजैसे होते होंगे. लेकिन मैं गलत थी, प्रतीक एकदम अलग इंसान था. नवीन से एकदम उलट. बहुत ही हंसमुख और जिंदादिल, रोते को भी हंसा दे, ऐसा उन का नेचर था.

उस रोज मैं ने औरेंज कलर का सलवारसूट पहन रखा था. मेकअप कोई बहुत ज्यादा नहीं करती मैं. बालों को खुला ही छोड़ दिया था. होंठों पर हलके रंग की लिपस्टिक लगा रखी थी. इस के अलावा और कुछ नहीं. मु   झे नहीं पता था कि प्रतीक कितनी देर से मु   झे ही देख रहे थे. मेरी नजरें जब उन से टकराईं तो शर्म से मेरा चेहरा नीचे    झुक गया था.

जब मैं प्रतीक के साथ होती तो लगता भरी हुई हूं और अकेली होती तो लगता खाली सी हूं. उधर प्रतीक का भी यही हाल था. इस का मतलब था कि हम दोनों ही एकदूसरे की तरफ आकर्षित होने लगे थे, लेकिन मेरे मन में एक डर था कि मेरे घर वाले क्या सोचेंगे. क्या वे हमारे रिश्ते को कबूल करेंगे?

लेकिन मु   झे नहीं पता था कि यह सब मेरे घर वालों का ही कियाधरा है. मेरे शादी न करने के फैसले से वे इतने घबरा गए कि उन्हें यही एक रास्ता सू   झा, ताकि प्रतीक में मेरा आकर्षण बढ़े और मैं शादी के लिए राजी हो जाऊं.

दरअसल प्रतीक मेरे पापा के दोस्त का बेटा था और उन्होंने जब मु   झे पहली बार देखा था, तभी मैं उन के मन को भा गई थी. लेकिन जब उन्हें पता चला कि मेरी शादी तय हो गई है तो खुद ही पीछे हट गए थे. लेकिन फिर जब उन्हें पता चला कि मेरी शादी टूट गई तो बड़ा दुख हुआ था उन्हें. दोनों परिवारों की मरजी से सगाई और फिर कुछ ही दिनों में हमारी शादी हो गई.

शादी के बाद मैं प्रतीक के साथ गुजरात आ गई और वहीं से हमारी नई जिंदगी की शुरुआत हो गई. हमारी सुंदर सी फुलवारी में खुशी और महक की कोई कमी नहीं थी.

प्रतीक ने मु   झे प्यार का गागर नहीं, बल्कि पूरा समुद्र ही दे दिया था. उन के प्यार में सराबोर मैं नवीन और उस के दिए जख्मों को भुला चुकी थी.

जिंदगी भी अजीब होती है, कभीकभी आप जो सोचते हैं वह नहीं होता, जो नहीं सोचते वह हो जाता है. लेकिन जो हो जाता है शायद, वही हमारे जीवन के लिए बेहतर होता है. मु   झे सम   झ में आ गया था कि नवीन तो मेरे प्रतीक के पैर की धोवन भी नहीं है.

‘‘तुम सोईं नहीं क्या?’’ प्रतीक ने पूछा तो मैं ने कहा कि, ‘‘नहीं. बाहर का नजारा देख रही थी.’’

कुछ देर में हम भागलपुर पहुंच गए. भले ही बड़े भैयाभाभी के मन में हमें ले कर जो कुछ भी था, मगर मैं अब इस मनमुटाव को दूर कर देना चाहती थी. जिंदगी बहुत बड़ी नहीं होती. जितनी भी होती है, उस में हंसबोल कर रिश्ते निभा लेना चाहिए.

भाभीभैया से हम ने रिक्वैस्ट की कि वे गुजरात आएं और हमारे साथ कुछ दिन रहें. मां के घर जा कर हमें दूसरे दिन ही वहां से निकलना था. उदास थी यह सोच कर कि अब फिर हम कब मिल पाएंगे? कब यहां आना हो पाएगा? लेकिन प्रतीक को किसी से हंसहंस कर बात करते देख मेरा ध्यान उधर चला गया. पूछा किस से बात कर रहे हैं तो कहा, ‘‘नवीन का फोन था. रिक्वैस्ट कर रहा था कि हम उस के साथ एक रात डिनर करें. रिपोर्ट अच्छी देने के लिए वह मु   झे ‘धन्यवाद’ कर रहा था.’’

‘‘वह सब तो ठीक है पर हम खानेवाने नहीं जाएंगे,’’ एकदम से मैं बोल पड़ी तो प्रतीक मु   झे देखने लगे.

‘‘क्यों? अब इतने प्यार से बुला रहा है तो जाने में क्या हर्ज है?’’

‘‘बस, नहीं जाना. कह दिया न मैं ने,’’ बोल कर मैं ने अपना चेहरा उस तरफ घुमा लिया. लेकिन फिर लगा, जाना चाहिए. उसे भी तो पता चले कि जिस लड़की के सांवले रंग के कारण उस ने उसे छोड़ दिया था, आज वही लड़की अपने पति के साथ कितनी खुश है. मेरे पति ओहदे में भी उस से बड़े हैं. जहां प्रतीक एजीएम हैं, वहीं नवीन स्केल थ्री अफसर. उसे तो अपने खातिर कोई दूध सी गोरी लड़की चाहिए थी, जो मु   झ से भी ज्यादा दहेज ले कर आए.

लेकिन क्या मिला उसे? मु   झे मां ने बताया था कि नवीन का उस की पत्नी से तलाक हो चुका है. करोड़पति बाप की बेटी, वह भी एकलौती, अकड़ी तो होगी ही? क्यों सहेगी वह पति, सासससुर की बातें? शादी के कुछ सालों बाद ही दोनों के बीच अनबन शुरू हो गई थी. बड़े बाप की बेटी के नखरे नवीन और उस के परिवार के बरदाश्त के बाहर होने लगे थे और यही बात उसे सहन नहीं हुई. सो, वह नवीन का घर छोड़ कर मायके चली गई और उन लोगों पर दहेज व प्रताड़ना का केस कर दिया, जो    झूठ था. किसी तरह ये लोग जेल जाने से तो बच गए पर हमेशा के लिए उन के रिश्ते में दरार आ गई, जो तलाक के बाद ही रुकी.

जब हम नवीन के घर डिनर पर गए तो उस ने हमारा बहुत सत्कार किया. लेकिन लग रहा था कि वह मु   झ से कुछ कहना चाह रहा है पर प्रतीक के सामने कह नहीं पा रहा है. मैं वहां से जल्द से जल्द निकलना चाह रही थी. अजीब ही घुटन महसूस हो रही थी मु   झे. नहीं आती तो प्रतीक को बुरा लग जाता, इसलिए आना पड़ा. जैसे ही हम जाने को हुए, वह जस्ट मेरे करीब आ कर खड़ा हो गया और अपने दोनों हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘हो सके तो मु   झे माफ कर देना, सुलेखा.’’

मैं आश्चर्य से उसे देखने लगी. लगा, यह इंसान मु   झ से माफी मांग रहा है? एक मामूली लड़की से? उस की आंखों में पछतावा साफसाफ    झलक रहा था. उस की बातों पर मैं ने कोई जवाब नहीं दिया और    झटके से जा कर मैं गाड़ी में बैठ गई और कांच ऊपर चढ़ा लिया. जाने क्यों मेरी आंखों से दो बूंद आंसू ढलक पड़े. शायद, इसलिए कि मेरे सांवले रंग को ले कर जो अपमान उस ने मेरा किया था, उस के लिए आज उसे पछतावा हो रहा था.

कौन हारा : भाग 3

वैशाली के आंसू बहने लगे, ‘क्या मुझे यही ताना देने के लिए बचा था?’

‘नहीं, नहीं, मेरा मतलब यह नहीं था. बच्चे थोड़े बड़े हो जाएं तो तुम फिर से काम शुरू कर देना,’ सुधीर हड़बड़ा गया था.

और फिर वैशाली घर तक ही सीमित रह गई. उस का समय काटना मुश्किल हो जाता था पर सुधीर ने उसे मजबूर सा कर दिया था. अब वसुधा की खबर ने उसे बुरी तरह बेचैन कर दिया. उसे कई दिनों से सुधीर का व्यवहार बदला सा लग रहा था. वह देर से घर आने लगा था, कभी वह दूसरे शहर के टूर पर बाहर रहने की बात करता था. बच्चे व वैशाली उसे बहुत मिस करते थे. शिकायत करने पर वह कह देता कि मेहनत व भागदौड़ नहीं करूंगा तो आगे कैसे बढ़ूंगा. हमारा काम कैसा है यह तुम जानती ही हो. अब वैशाली समझ रही थी कि उस का समय व प्यार अब किसी और के नाम हो गया है. पर वह चुप थी.

पर एक दिन वह बोल ही गई, ‘आजकल आप घर से बाहर कुछ ज्यादा ही नहीं रहने लगे हैं?’

‘क्या मतलब है तुम्हारा?’ चोर निगाहों से देखते हुए सुधीर बोले.

‘मतलब आप अच्छी तरह समझते हैं. मेरा चैन खत्म कर के आप ऐसे पूछ रहे हैं जैसे कुछ हुआ ही न हो.’

‘देखो, मेरा दिमाग खराब मत करो और मुझे सोने दो. न जाने क्या कहना चाह रही हो?’

‘आप जानते हैं कि मैं क्या कह रही हूं. बताओ क्या कमी है मुझ में जो आप को किसी और के बारे में सोचने की जरूरत पड़ गई.’

‘यह तुम्हारी गलतफहमी है. तुम जानती नहीं क्या कि हमारा काम ही ऐसा है कि जाने किसकिस से मिलनाजुलना पड़ता है और हमारी कामयाबी से जल कर लोग न जाने क्याक्या बातें उड़ा देते हैं,’ सुधीर जो अभी तक तैश में बोल रहा था एकदम ठंडा सा पड़ गया.

क्या वैशाली इतनी नादान थी कि उस के चेहरे के बदलते रंगों को समझ न पाती. हां, इतना अवश्य था कि अभी तक अपनी दुनिया में इतनी मग्न थी कि इस ओर सोच भी नहीं सकी थी. गुस्से व दुख में वह अपना तकिया ले कर दूसरे कमरे में जाने लगी इस आशा के साथ कि शायद सुधीर उसे रोक ले, पर कहां, सुधीर तो चैन से सो गया और वह दूसरे कमरे में जागी आंखों के साथ आंसू बहाती रही.

काफी दिन चढ़ आया था. चिडि़यों के चहचहाने से वैशाली की आंख खुली तो वह हड़बड़ा कर जाग उठी.

अगले दिन वैशाली ने वसुधा को घर बुलवाया और पूछा, ‘‘तुम उसे जानती हो?’’

‘‘हां, सुधीर के आफिस में मामूली सहायक है,’’ वसुधा ने बताया.

‘‘मैं उस से मिलना चाहती हूं, देखना चाहती हूं कि ऐसा क्या है उस में जो मुझ में नहीं है.’’

फिर शाम को दोनों उस मिडिल क्लास के तंग गली वाले महल्ले में पहुंचीं जहां अंदर तक उन की गाड़ी भी नहीं पहुंच सकी थी. दरवाजा खटखटाने पर एक बुजुर्ग औरत ने दरवाजा खोला तो पूछने पर पता चला कि शिल्पा अभी वापस नहीं आई है. वैशाली उसी महिला से, जो शिल्पा की मां थीं, उलझ पड़ी.

‘‘आफिस का समय तो कब का खत्म हो चुका है… क्या वह रोज ही इतनी देर से आती है?’’

‘‘नहींनहीं, कभीकभी आफिस में काम ज्यादा होता है तो देर हो जाती है. पर आप लोग कौन हैं?’’ शिल्पा की मां अचकचा सी गईं.

इस पर वसुधा ने जवाब दिया, ‘‘यह शिल्पा के बौस की पत्नी हैं. सुना है सुधीर यहां भी अकसर आते रहते हैं?’’

‘‘ज्यादा नहीं, 1-2 बार ही आए हैं.’’

‘‘तो क्या आप ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि एक कंपनी का मालिक एक मामूली कर्मचारी के घर क्यों आता है? खूब जानती हूं, आप जैसी मांएं ही अपनी आंखें बंद किए रखती हैं फिर चाहे किसी का घर बरबाद हो या उन्हें बदनामी मिले.’’

‘‘ये आप कैसी बातें कर रही हैं? शायद आप को कोई गलतफहमी हो गई है,’’ शिल्पा की मां के चेहरे का रंग उड़ने लगा था.

‘‘अगर गलतफहमी होती तो शायद हम यहां वक्त बरबाद करने न आते. आप अपनी बेटी को संभाल लीजिए वरना…’’ वसुधा जो बहुत तीखे शब्दों में कह रही थी, अचानक रुक गई क्योंकि आगे के शब्द शिल्पा बोल रही थी.

‘‘वरना क्या कर लेंगी आप. आप को मेरे घर आ कर हमारी बेइज्जती करने का कोई हक नहीं है. अच्छा होगा कि आप यहां से चली जाएं.’’

वैशाली हैरानी से उस साधारण सी लड़की को देख रही थी जो खुद को शिल्पा बता रही थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि आखिर ऐसी कौन सी बात है जो सुधीर उसे छोड़ शिल्पा की ओर खिंच गए. उस की तंद्रा टूटी जब वसुधा और शिल्पा के बीच होने वाले वाक्युद्ध के स्वरों की तीव्रता बहुत बढ़ गई. वह वसुधा का हाथ पकड़ लगभग उसे घसीटती बाहर ले आई तो वसुधा उसी पर बरस पड़ी.

‘‘आप चुप क्यों खड़ी थीं, खरीखोटी क्यों नहीं सुनाईं? इज्जतदार होगी तो फिर सुधीर से मिलने की कोशिश नहीं करेगी.’’

‘‘इतना ही काफी है. पता नहीं सुधीर के संबंध इस से कहां तक हैं. उन्हें पता चलेगा तो कहीं बात और न बिगड़ जाए,’’ वैशाली धीरे से बोली.

कई दिनों तक सुधीर और वैशाली के बीच सन्नाटा सा पसर गया था. पहले वह आ कर बच्चों के हालचाल उस से पूछता था पर अब आ कर खाना खा कर चुपचाप सो जाता था. वैशाली सोच रही थी कि आज सुधीर से पूछेगी कि वह इतना क्यों बदल गया है? पर उस के कुछ कहने के पहले ही सुधीर उस से पूछ बैठा, ‘‘तुम शिल्पा के घर गई थीं?’’

‘‘क्यों, नहीं जाना चाहिए था?’’ सुधीर का सपाट सा चेहरा देख कर वह चौंक गई थी.

‘‘मुझ से पूछ तो लेतीं, मेरे खयाल में मैं कोई ऐसा काम नहीं कर रहा हूं जिस के लिए तुम इतना परेशान हो,’’ सुधीर उसी स्वर में बोला.

‘‘उस ने मेरी शांति भंग कर दी है. मेरा घर तोड़ने पर तुली है और तुम कह रहे हो कि कुछ हुआ ही नहीं,’’ वैशाली लगभग चीख उठी थी.

‘‘तुम्हारा घर कौन छीन रहा है. मैं उसे नया घर दे रहा हूं,’’ सुधीर ने उसी शांति से जवाब दिया.

वैशाली जैसे आसमान से नीचे आ गिरी, ‘‘यह क्या कह रहे हो? प्लीज सुधीर, मेरी गलती तो बताओ. तुम्हारे इस कदम से बच्चों पर क्या असर पड़ेगा?’’

‘‘क्या कहूं मैं? मैं ने बहुत सोचा पर यह कदम उठाने से खुद को रोक नहीं सका.’’

‘‘क्या वह मुझ से बहुत अच्छी है, सुंदर है, सलीके वाली है? क्या लोग मेरे से ज्यादा उस की तारीफ करते हैं?’’ वैशाली की आंखों में हार की नमी आ गई थी.

वैशाली के बहुत पूछने पर सुधीर धीरे से मुसकराया, ‘‘यही सब तो नहीं है उस में. वह एक आम सी लड़की है. मेरे साथ रहेगी तो लोग मुझे भूल कर भी उसे नहीं देखेंगे. कोई हमारी जोड़ी को बेमेल नहीं कहेगा. मेरी हीन भावना अंदर ही अंदर मुझे नहीं मारेगी.’’

वैशाली चौंक गई थी तो यह बात थी जो सुधीर पार्टी फंक्शन में जाने से कतराते थे. वह बोली, ‘‘तुम…तुम सुधीर, मुझे जरा सा इशारा तो करते. तुम्हारे लिए मैं खुद को पूरी तरह बदल देती, सादगी अपना लेती, पार्टी में जाना छोड़ देती.’’

‘‘मेरे खयाल से तुम इतनी नासमझ तो नहीं हो कि मेरी पसंद, नापसंद समझ नहीं सकीं. सच तो यह है कि तुम्हें भीड़, शोरशराबा, पार्टी बेइंतहा पसंद हैं. तुम चाहती हो कि तुम हर समय लोगों से घिरी अपनी तारीफ सुनती रहो. क्या तुम ने कभी चार लोगों में मेरी तारीफ की थी, बुराई को नापसंद किया, तुम सिर्फ अपने घमंड में जीती रहीं और मुझे नजरअंदाज करती रहीं, लेकिन शिल्पा में यह सब नहीं है. उस के साथ मुझे हीन भावना नहीं आएगी, क्योंकि उस के लिए सिर्फ मैं ही अहम हूं. लोगों की भीड़ की जगह उसे सिर्फ मेरा साथ पसंद है और मैं सिर्फ यही चाहता हूं.’’

‘‘ठीक है, अब से यही होगा. अपनी नादानी में मैं ने इस ओर ध्यान नहीं दिया पर अब जैसा तुम चाहोगे वैसा ही होगा. मुझे अपनी गलती सुधारने का एक मौका दो. मुझे माफ कर दो,’’ वैशाली के लाख माफी मांगने, आंसू बहाने पर भी सुधीर पर कोई असर नहीं पड़ा.

‘‘देखो, अब बहुत देर हो चुकी है. मैं शिल्पा से शादी कर के दूसरे घर में जा रहा हूं. तुम कहोगी तो तलाक दे दूंगा अन्यथा जैसे रह रही हो, बच्चों के साथ रहती रहो. तुम्हें बच्चों व घर का खर्च मिलता रहेगा. तुम्हारे व बच्चों के प्रति फर्ज पहले की तरह निभाता रहूंगा.’’

सुधीर की बातों से वैशाली का मन बुरी तरह सुलग उठा था. इतना तो समझ ही गई थी कि अब सुधीर का निर्णय बदलेगा नहीं. उस का मन हुआ था कि जोर से चिल्ला कर कह दे कि ठीक है, वह जहां जाना चाहे जाए, मुझ से कोई मतलब न रखे पर वह जानती थी कि वह भी मजबूर थी क्योंकि बच्चे जिस रहनसहन के आदी थे, वह अकेली कुछ नहीं कर सकती थी. अत: कुछ देर बाद वह शांति से बोली, ‘‘देखो, अब अगर इस घर से जाने का फैसला कर ही लिया है तो तुम्हारा संबंध बच्चों तक ही रहेगा. दूसरी पत्नी से बचेखुचे पल मैं तुम्हारे साथ शेयर नहीं कर सकूंगी.’’

?सुधीर कुछ देर तक कस कर होंठ भींचे एकटक आंखों से वैशाली को देखता रहा, फिर अपना सामान ले कर झटके से बाहर चला गया. वह बुत बनी खड़ी थी. उस की तंद्रा तब टूटी जब चिंटू उस से आ कर लिपट गया था, ‘‘मम्मी, पापा कहां चले गए? क्या अब वह कभी नहीं आएंगे?’’

वैशाली चौंक उठी थी, उस ने चिंटू के सिर पर हाथ फेरा और बोली, ‘‘नहीं बेटा, पापा आएंगे.’’

वैशाली जैसे सबकुछ हार चुकी थी. सारी कोशिशों के बाद भी सुधीर को वापस न लाने की असफलता का दुख उस के मन पर हिमखंड की तरह जम चुका था. घर छोड़ने के बाद सुधीर वैशाली के यहां जल्दीजल्दी चक्कर लगाता था, कभीकभी रुक भी जाता था. नियमित रूप से पैसे भी देता रहता था लेकिन जाने क्यों वैशाली के मन में जमी बर्फ की सतह और भारी हो जाती थी.

सुधीर को देख कर वह इधरउधर हो जाती, खुद को काम में व्यस्त कर लेती थी. सुधीर फोन करता तो वह ‘होल्ड करें’ कह कर बच्चों को फोन पकड़ा देती थी. कई बार सुधीर ने उस से सीधे बात करने की कोशिश भी की लेकिन न जाने क्यों वह उसे पथराई सी आंखों से देखती बुत सी बनी रह जाती.

अगर सुधीर गलती का एहसास कर के पूरी तरह से उस के पास वापस आने की बात करता तो शायद उस के मन में जमा दुख पिघल जाता पर कहां, अपनी हार के दुख से वह जैसे चलतीफिरती मशीन बन कर रह गई थी. नित नए मैचिंग कपड़े, गहने, ब्यूटीपार्लर के चक्कर, साजसिंगार, क्लब, पार्टीज, सबकुछ बंद हो गया था. लंबा समय गुजर गया, किसी ने उस को बाहर आतेजाते नहीं देखा था. पर एक दिन वसुधा जबरदस्ती उसे एक परिचित के यहां पार्टी में ले ही गई. हलकी हरी शिफान की साड़ी, सादगी से बना जूड़ा, साधारण से शृंगार में भी वह बहुत खूबसूरत लग रही थी.

तभी वैशाली कि निगाह सुधीर पर पड़ी, जो उसे ही एकटक देख रहा था और सोच रहा था कि यह इतनी खूबसूरत स्त्री कभी उस का हक थी और आज वह उस से कितनी दूर है. वसुधा का ध्यान सुधीर पर गया तो उस ने वैशाली को कोहनी मारी, ‘‘देख, सुधीर कैसी हसरत से तुम्हें देख रहे हैं. अपनी गलती पर पछता रहे होंगे.’’

‘‘गलती कैसी, मर्द हैं चाहे जो कर सकते हैं,’’ मन में उमड़ते दुख को दबा कर वैशाली बोली.

‘‘हां, यही काम कोई औरत करती तो बदचलन कहलाती,’’ वसुधा चिढ़ गई थी.

‘‘चलो उधर,’’ वैशाली उस का हाथ पकड़ दूसरी तरफ ले गई थी. वैशाली ने सुधीर को बहुत समय बाद देखा था पर एक ही नजर में उसे महसूस हुआ कि सुधीर शायद मौजूदा जिंदगी से खुश नहीं हैं. शायद मेरा वहम है, वैशाली का यही सोचना था पर यह उस का भ्रम नहीं था. वह सच में अपनी जिंदगी से नाखुश था. वैशाली की जिस बात से घबरा कर वह शिल्पा की ओर झुका था वही सबकुछ आज शिल्पा ने अपना लिया था. वैशाली खुद अपनी आंखों से देख रही थी कि कीमती साड़ी, गहनों से लदी पूरे साजसिंगार से सजी शिल्पा लोगों की भीड़ में घिरी कहकहे लगा रही थी. ऐशोआराम ने उस के चेहरे की रौनक ही बदल दी थी और खूबसूरत लग रही थी. वह पूरी तरह बदल गई थी और उस ने भी उस उच्च वर्ग की खासीयत को अपना लिया था जहां चमकदमक, दिखावट, शो, सजावट को ज्यादा महत्त्व दिया जाता है. वह लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी थी और उसे ध्यान भी नहीं था कि सुधीर कहां खड़ा फिर से अपने अकेलेपन से जूझ रहा है.

यह देख कर वैशाली के मन का तपता रेगिस्तान मानो बारिश की बूंदों से ठंडक पा गया था. तभी उस की निगाहें सुधीर से टकराईं. उस ने सुधीर को देख कर एक गहरी निगाह शिल्पा पर डाली और फिर से सुधीर को देख कर व्यंग्य से मुसकराई, मानो कह रही हो कि क्या अब तुम फिर से नई शिल्पा ढूंढ़ोगे? क्योंकि यह शिल्पा भी आज लोगों की भीड़ में घिरी तुम्हारी हीन भावना की वजह बन तुम्हें अनदेखा कर रही है.

वैशाली की निगाहों की तपिश से घबरा कर सुधीर शर्मिंदा सा दूसरी ओर चला गया. वैशाली तो पति की जिंदगी में दूसरी औरत के दुख से हार गई थी पर सुधीर भी कहां जीत पाया था? नम आंखों और फीकी मुसकान के साथ वह सुधीर को जाता देखती रह गई.

बिन घुंघरू की पायल : भाग 3

हम लोगों को बैठक में बैठा कर उस कमरे की ओर बढ़ गई जहां कूलर चल रहा था. 5 मिनट बाद ही एक सुंदर सी औरत, जिस के बाल कंधे तक कटे थे, सिल्क की साड़ी पहने आंखों में अजनबीपन का भाव लिए हमारे सामने खड़ी थी. भैया घर पर नहीं थे, इसलिए मुझे अपना परिचय स्वयं ही देना पड़ा. मैं अपने को रोक नहीं पा रही थी, इसलिए पूछ लिया, ‘‘भाभी, पायल कहां है?’’ ‘‘वही तो आप को यहां बैठा कर गई है,’’ उन्होंने कहा तो विश्वास नहीं हुआ. ‘‘जो लड़की रसोई में बरतन मांज रही थी, वही पायल है?’’ ‘‘हां, आज महरी छुट्टी पर चली गई थी. मु?ो मालूम ही नहीं पड़ा कि कब पायल बरतन मांजने लगी.’’

नई भाभी ने मानो अपनी सफाई दी. ‘‘जरा, उसे बुलाइए तो.’’ भाभी की एक आवाज पर गोदी में बबलू को लिए पायल भागती हुई आई. मैं ने झट से उस की गोद से बच्चे को ले कर पायल को अपने हृदय से लगा लिया. उस के नंगे पैरों में आज कोई पायल न थी. उस के बचपन के न जाने कितने चित्र मेरी आंखों के सामने थे. वह गोलमटोल बच्ची आज दुबलीपतली, शरमीली सी मेरे सामने खड़ी थी. शाम होतेहोते भैया आ गए थे. मैं सब के लिए कुछ न कुछ लाई थी. फ्रौक का पैकेट जब मैं ने पायल की ओर बढ़ाया तो संकोच और खुशी के मिलेजुले भाव उस की आंखों में तैर आए. अगले दिन भाभी ने फिल्म देखने का कार्यक्रम बनाया था. पायल स्कूल से लौट आई थी. मैं ने उस से अपनी लाई पिंक फ्रौक पहन कर तैयार होने को कहा तो उस के सहमे चेहरे पर खुशी के अनगिनत फूल खिल उठे.

अटैची में से साड़ी निकालते समय मेरा हाथ एक पैकेट से टकराया. बालों में लगाने की क्लिपें थीं जो मैं पायल को देना भूल गई थी. उसी पैकेट को देने के खयाल से मैं पायल के कमरे तक गई. अंदर शायद भाभी उस से कुछ कह रही थीं. जो सुना उस से मन के एक कोने में झटका सा लगा था. पैकेट लिए वापस अपने कमरे में आ गई थी. पायल से कहे भाभी के शब्द अब तक कान में गूंज रहे थे, ‘चल उतार वह फ्रौक और चुपचाप घर में बैठ. बूआ क्या आ गईं, तेरा दिमाग ही आसमान पर चढ़ गया है. वह पूछे तो कह देना कि स्कूल का बहुत काम मिला है. बबलू सो रहा है. उठेगा तो दूध गरम कर के दे देना और खाना बना कर रखना. राजकुमारी की तरह बैठी मत रहना.’ पिक्चर जाने का सारा उत्साह ही खत्म हो गया था पर अब इनकार करने पर भाभी को बुरा लगेगा, यह सोच कर तैयार हो गई.

टैक्सी में बैठते समय पायल की ओर देखा था. उस की आंखें डबडबा आई थीं. मैं भाभी से यही कह पाई थी, ‘‘अकेली कैसे रहेगी यह?’’ ‘‘डर की कोई बात नहीं, आसपड़ोस में सब हैं ही,’’ उन्होंने सपाट स्वर में कहा और टैक्सी आगे बढ़ गई. अनमने भाव से फिल्म देखी. मन कहीं पायल के आसपास ही मंडरा रहा था. घर पहुंचने पर पायल ने खाना मेज पर लगा दिया था. ‘‘अरे, खाना क्यों बना लिया? मैं आ कर बना लेती,’’ भाभी ने कहा तो मन कुढ़ गया. एक बार सोचा कह दूं, मैं सब सुन चुकी हूं जो आप पायल से कह कर गई थीं पर रिश्ते में कटुता न पैदा हो, यह सोच कर बात को पी गई. एक हफ्ते भैया के पास रह कर यही सम?ा पाई थी कि नई भाभी का व्यवहार पायल के प्रति अच्छा नहीं है.

मेरे सामने वे लाख दिखावा करने की कोशिश करतीं पर कहीं न कहीं चूक हो ही जाती. वास्तविक ममता और ममता का नाटक करने में अंतर होता ही है. हम लोग रोज ही कहीं न कहीं घूमने जाते थे पर भाभी किसी न किसी बहाने से पायल को घर पर ही छोड़ जातीं, तब बबलू को संभालने और खाना बनाने के काम से उन्हें छुट्टी मिल जाती. इस अपने स्वार्थ के कारण वे उस छोटी सी बालिका के मन में उठती न किसी इच्छा को सम?ातीं, न समझाना चाहती थीं. 5 साल तक विदेश में जिस खिलखिलाती हंसी को सुनने के लिए तरसती रही थी, वह यहां आने के बाद भी नहीं सुन पाई तो एक दिन बड़े प्यार से पूछ ही लिया, ‘‘तू इतनी खामोश क्यों रहती है, पायल? पायल तो बोलती है, बजती है.’’ उस की बड़ीबड़ी आंखों में पानी तैर आया था. ‘‘हर पायल कहां बोलती है, बूआ. कुछ पायल ऐसी भी होती हैं जिन में घुंघरू नहीं होते. मैं भी वैसी ही बिना घुंघरू की पायल हूं.’’ आश्चर्य से एक पल मैं उस का चेहरा देखती रह गई.

कितनी बड़ी बात कह दी थी उस छोटी सी बच्ची ने. मुझे लगा, जैसे घर के हर कोने से मां चीखचीख कर कह रही हों, ‘कहां है मेरी रुन?ान? उस की पायल के घुंघरू कैसे टूट गए? उस की आवाज क्यों नहीं आती अब?’ सहसा मेरे मन से आवाज निकली, ‘तुम्हारी रुनझन जरूर बोलेगी, मां. मैं उस की पायल में घुंघरू टांकूंगी.’ शाम को भैया के आते ही मैं ने बिना किसी भूमिका के कहा, ‘‘आप तो जानते ही हैं भैया, पायल से मैं बहुत प्यार करती हूं. बहुत छोटी सी थी, तभी से अजीब सा लगाव हो गया है इस से. अब तो भैया आप अकेले नहीं रहे. बंटू, बबलू हैं ही आप के पास. मैं पायल को अपने साथ ले जाना चाहती हूं.’’ ‘‘मैं उसे जरूर भेज देता, लेकिन उस के बिना यहां काम कैसे चलेगा? बंटू, बबलू अभी बहुत छोटे हैं. तुम्हारी भाभी की तबीयत भी ठीक नहीं रहती और तुम जानती ही हो, दिल्ली जैसे शहर में नौकर भी कहां मिलते हैं. तुम्हारी भाभी उसे कभी न जाने देगी.’’ भैया का जवाब हथौड़े की तरह लगा था. काश, भैया पहले की तरह कह देते कि पायल निशा की आखिरी निशानी है, उसे कैसे आंखों से दूर कर दूं तो मन खुशी से भर जाता पर अब लगा, जैसे मां की रुनझन, निशा भाभी की पायल वास्तव में नई भाभी के पैरों की बिन घुंघरु की पायल बन कर रह गई है. उस रात फिर मैं सो नहीं पाई. पायल को इस तरह छोड़ कर भी नहीं जा सकती थी और जबरदस्ती अपने साथ ले जाने का अर्थ था इस घर से अपने मधुर संबंधों को समाप्त करना. कितना मजबूर हो जाता है इंसान, इसी सोचविचार में रात गुजर गई.

सुबह नाश्ते की मेज पर एक दृढ़ निश्चय मन में संजोए हुए मैं ने कहा, ‘‘भाभी, पायल भी शाम को मेरे साथ मुंबई जाएगी.’’ ‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ उन्होंने भैया की ओर देख कर कहा. ‘‘हो क्यों नहीं सकता? आखिर मेरा भी तो उस पर कुछ अधिकार है,’’ मैं ने कहा. ‘‘अधिकार क्यों नहीं है, दीदी. आप का जब मन करे, आप उस से यहां मिलने आ सकती हैं. मैं उस के बिना कैसे रहूंगी? आखिर 5 साल में मुझे भी तो उस से ममता हो गई है.’’ ‘‘जिसे आप ममता कह रही हैं, भाभी, वह निरा आप का स्वार्थ है. जहां अपनत्व की भावना न हो, वहां ममता कैसी? इस आयु में जब बच्चे दीनदुनिया की चिंता से दूर अपने में मस्त खेलकूद में लगे रहते हैं, आप ने पिंजरे के पंछी की तरह उसे कैद कर लिया है. वह न अपनी इच्छा से उठ सकती है, न बैठ सकती है. उस का एक भी क्षण अपना नहीं है.’’ मेरे मन का ज्वालामुखी जैसे फूट पड़ा था. मु?ो किसी भी रिश्ते का जैसे डर नहीं रह गया था. ‘‘हम अपने बच्चों से कैसा व्यवहार करते हैं, इस विषय में बोलने का अधिकार किसी को नहीं है.’’ क्रोध से भाभी का चेहरा तमतमा आया था. ‘‘अधिकार है क्यों नहीं. मरने से पहले निशा भाभी पायल को मुझे सौंप गई थीं. यदि वह यहां ठीक से रहती तो मुझे बोलने का कोई हक नहीं था पर वह मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से अस्वस्थ हो गई है. जवाब दीजिए, भैया, क्या यह वही पायल है जिसे 5 साल पहले मैं आप के पास छोड़ गई थी?

हमेशा खिलखिलाने वाली पायल की हंसी कहां लुप्त हो गई. आप ने कभी जानने की कोशिश की? करते भी कैसे? आप को दफ्तर और क्लब से फुरसत मिले, तब न.’’ भावावेश में मैं बोलती जा रही थी. भैया मौन सुन रहे थे. जवाब देने के लिए उन के पास था ही क्या? भाभी दिनभर खिंचीखिंची रहीं. मैं ने पायल की 2-4 फ्रौक अपनी अटैची में रख लीं. शाम को भैया खामोश से स्टेशन तक मुझे व पायल को छोड़ने आए थे. इंजन के सीटी देने पर अपनी जेब से एक पैकेट निकाल कर उन्होंने पायल को थमा दिया. ट्रेन की खिड़की से ?ांक कर मैं ने देखा, वे रूमाल से अपनी आंखों को पोंछ रहे थे. ट्रेन ने गति पकड़ ली थी. मैं ने पायल के हाथ के पैकेट को खोल कर देखा, उस में छोटेमोटे घुंघरूओं की पायल थी. मैं ने उसी समय उस के पैरों में उसे बांध दिया. पायल खिड़की के बाहर देख रही थी. आज उस के चेहरे पर भय और घबराहट की कोई लकीर न थी. जब भी कोई दृश्य उसे प्यारा लगता, वह खिलखिलाती हुई मेरा ध्यान उधर आकृष्ट करने की कोशिश करती. बीचबीच में उस की पायल के घुंघरू बोल उठते तो मु?ो लगता जैसे आज मां की रुन?ान वापस लौट आई है. भले ही उसे वापस लाने के लिए नई भाभी से संबंध बिगाड़ने पड़े थे पर मन में एक सुखद अनुभूति थी. आखिर एक बिना घुंघरू की पायल में घुंघरू जो टंक गए थे.

दोषी कौन : भाग 3

पानी अब सर से ऊपर बहने लगा था इसलिए रश्मि ने चिल्लाना शुरू कर दिया रोहित अब भी खामोशी से सारा तमाशा देख रहा था इसके अलावा कोई और रास्ता उसके पास बचा भी नहीं था . दृश्य अनिल कपूर , श्रीदेवी और उर्मिला मांतोंडकर अभिनीत फिल्म जुदाई जैसा हो गया था , जिसमें मध्यमवर्गीय श्रीदेवी  रईस उर्मिला को पैसो की खातिर पति अनिल कपूर को न केवल सौंप देती है बल्कि दोनों की शादी भी करा देती है .

इस मामले में पूरी तरह ऐसा नहीं था फिल्म में अनिल कपूर उर्मिला को नहीं चाहता था बल्कि उर्मिला ही उस पर फिदा हो गई थी और श्रीदेवी की पैसों की हवस देखते उसने अपना प्यार और प्रेमी खरीद लिया था . इधर हकीकत में रोहित अब हिम्मत जुटाते रश्मि को यह कहते शांत कराते यह कह रह था कि श्रीमति वर्मा उसकी प्रेमिका नहीं बल्कि दोस्त हैं जो अकेलेपन से घबराकर सहारा मांगने चली आई है .

एक तो चोरी और ऊपर से सीनाजोरी की तर्ज पर पति की यह सफाई सुनकर  रश्मि और भड़क उठी और इतनी भड़की कि उनके पड़ोसी को शोरशराबा सुनकर उनके घर की कालबेल बजाने मजबूर होना पड़ा . आगुंतक पड़ोसी का नाम अशोक जी मान लें जो अंदर आए तो नजारा देख सकपका उठे . यकीन माने अशोक जी अगर ठीक वक्त पर एंट्री न मारते तो मुझे यह कहानी मनोहर कहानिया या सत्यकथा के लिए पूरा मिर्च मसाला उड़ेल कर लिखनी पड़ती .

अशोक जी ने मौके की नजाकत को समझा और तुरंत पुलिस को इत्तला कर दी . पुलिस के आने तक उनका रोल मध्यस्थ सरीखा रहा जो दरअसल में एक हादसे को रोकने का भी पुण्य कमा रहा था . इस दौरान भी श्रीमति वर्मा यह दोहराती रहीं कि वे अपनी सारी प्रापर्टी रश्मि के नाम करने तैयार हैं लेकिन एवज में उन्हें रोहित के साथ रहने की इजाजत चाहिए . लेकिन चूंकि रश्मि श्रीदेवी की तरह पति बेचने को तैयार नहीं थीं क्योंकि उसने शायद जुदाई  फिल्म देखी थी कि फिल्म के क्लाइमेक्स में जब अनिल कपूर उर्मिला के साथ जाने लगता है तो उसकी हालत पागलों सरीखी हो जाती है और तब उसे पति की अहमियत समझ आती है और उसके प्यार का व रिश्ते का एहसास होता है .

खैर पुलिस आई और सारा मामला सुनने समझने के बाद हैरान रह गई मुमकिन है लॉकडाउन की झंझटों के बीच कुछ पुलिस बालों को इस अनूठी प्रेम कहानी पर हंसी भी आई हो लेकिन उसे उन्होने दबा लिया हो . बात अब घर की दहलीज लांघ कर परिवार परामर्श केंद्र तक जा पहुंची जिसकी काउन्सलर सरिता राजानी ने वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए विवाद सुलझाने की कोशिश की . बात श्रीमति वर्मा के बेटे बहू से भी की गई लेकिन कोई समाधान नहीं निकला . श्रीमति वर्मा अंगद के पैर की तरह अपने प्रेमी के घर जम गईं थीं यह रश्मि के लिए नई मुसीबत थी .

सरिता राजानी को जो समझ आया वह इतना ही था कि श्रीमति वर्मा बेटे बहू की अनदेखी और अबोले के चलते लॉकडाउन के अकेलेपन से घबराकर रोहित के घर आ गईं थीं . इधर रश्मि का कहना यह था कि शादी के 14 साल बाद रोहित ने उसे धोखा दिया है जिसके लिए वे कभी उसे माफ नहीं करेंगी . रोहित के पास बोलने कुछ खास था नहीं उसकी चुप्पी ही उसका कनफेशन थी . दिन भर एक दिलचस्प काउन्सलिन्ग वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए चली जिसका सुखद नतीजा यह निकला कि श्रीमति वर्मा अपने घर वापस चली गईं लेकिन कहानी अभी बाकी है .

अब जो भी हो लेकिन अभी तक जो भी हुआ वह आमतौर पर इस तरह नहीं होता . हर किसी के विवाहेत्तर संबंध होते हैं जिनमे से अधिकांश अस्थायी होते हैं पर जो स्थाई हो जाते हैं उनका अंजाम तो वही होता है जो इस मामले में हुआ . ऐसे अफसानो को कोई साहिर लुधियानबी किसी खूबसूरत मोड पर नहीं ले जा सकते .  इनकी मंजिल तो अलगाव या ज़िंदगी भर की घुटन ही होती है और यह तय कर पाना मुश्किल हो जाता है कि आखिर दोष किसके सर मढ़ा जाए .

एक अनुभवी लेखक होने की नाते मैं पाठकों की यह जिज्ञासा बखूबी समझ रहा हूँ कि आखिर श्रीमति वर्मा और रोहित के बीच शारीरिक यानि नाजायज करार दिए जाने बाले संबंध थे या नहीं .  कुछ तो झल्लाकर यह तक सोचने लगे होंगे कि एक तरफ फेंको यह किस्सा और फलसफा  पहले मुद्दे और तुक की बात करो . लेकिन पूरी लेखकीय चालाकी दिखाते मैं इतना ही कहूँगा कि हो भी सकते हैं और नहीं भी .  वैसे भी इस मसले पर कुछ कहना बेमानी होगा इसलिए पाठक खुद अंदाजा लगाने स्वतंत्र हैं . ऊपर मैंने श्रीमति वर्मा की तुलना किसी स्कूली लड़की से जानबूझकर एक खास मकसद से की है और इसके लिए अब हमें कहानी से बाहर आकर सोचना पड़ेगा .

मेरे लिए दिलचस्प और चिंतनीय बात एक अधेड़ महिला का सारे बंधन तोड़कर अपने प्रेमी के यहाँ बेखौफ पहुँच जाना है जो जानती समझती है कि इसका अंजाम और शबब सिवाय जग हँसाई और बदनामी के कुछ नहीं होगा . दिल के हाथों मजबूर लोग मुझे इसलिए अच्छे लगते हैं कि उनमें एक वो हिम्मत होती है जो धर्म , समाज और घर परिवार नाते रिश्तेदारी किसी की परवाह नहीं करती .  वह अपने प्यार के बाबत किसी मुहर या किसी तरह की स्वीकृति की मोहताज नहीं उसका यह जज्बा और रूप नैतिकता से परे मेरी नजर मैं एक सेल्यूट का हकदार है .

रोहित को भी दोषी मैं नहीं मानता क्योंकि उसने समाज से उपेक्षित और लगभग प्रताड़ित विधवा को भावनात्मक सहारा दिया .  यहाँ मैं इस प्रचिलित मान्यता को भी खारिज करता हूँ कि किसी विवाहित पुरुष को पत्नी के अलावा किसी दूसरी स्त्री से प्यार नहीं करना चाहिए . मुझे मालूम है अधिकतर लोग मेरी इस दलील से इत्तफाक नहीं रखेंगे लेकिन मेरी नजर में ये वही लोग होंगे जो यह राग अलापेंगे कि किसी विधवा को तो प्यार करने जैसी हिमाकत करनी ही नहीं चाहिए .  उसके लिए तो उन्हीं सामाजिक और धार्मिक दिशा निर्देशों का पालन करते रहना चाहिए जो राज कपूर की फिल्म प्रेम रोग में दिखाए गए है . फिल्म का कथानक रूढ़ियों और खोखले उसूलो में जकड़े एक ठाकुर जमींदार खानदान के इर्द गिर्द घूमता रहता है .

इस फिल्म में नायक की भूमिका में हाल ही में दुनिया छोड़ गए ऋषि कपूर थे . नायिका पद्मिनी कोल्हापुरे विधवा हो जाती है तो उस पर तरह तरह के अमानवीय जुल्म उसके ससुराल और मायके बाले ढाते हैं .  यहाँ तक कि उसके जेठ की भूमिका निभा रहे रजा मुराद तो उसका बलात्कार तक कर डालते हैं .  एक दृश्य में यह भी दिखाया गया गया है कि विधवा नायिका के मुंडन तक की तैयारियां हो गई हैं . नायिका जब वापस मायके आती है ऋषि कपूर से उसका प्यार परवान चढ़ने लगता है .  इसकी भनक जैसे ही ठाकुरों को लगती है तो वे भड़ककर बंदूक उठा लेते हैं . ऐसे में इस फिल्म में शम्मी कपूर द्वारा बोला यह डायलोग बेहद प्रासंगिक और उल्लेखनीय है कि समाज सहारा देने होना चाहिए न कि छीनने .

चल रही इस कहानी में इकलौता पेंच या उलझन रोहित का शादीशुदा होना है .  कहा जा सकता है कि उसने रश्मि से बेबफाई की , उसे धोखा दिया . इस मोड पर मेरे ख्याल में हमे धैर्य और समझ से काम लेना चाहिए . श्रीमति वर्मा से प्यार करने का हक छीना नहीं जा सकता और न ही रोहित से सिर्फ इस बिना पर कि वह शादीशुदा है . दो टूक सवाल ये कि क्या कोई शादीशुदा मर्द प्यार करने का हक नहीं रखता या कोई भी पति , पत्नी के अलावा किसी और औरत से प्यार करने का हकदार क्यों नहीं माना जाना चाहिए . एक साथ दो स्त्रियों से प्यार करना गुनाह क्यों जबकि वह दोनों को भावनात्मक और शारीरिक संतुष्टि या सुख दे सकता है .

रश्मि का तो कोई दोष ही नहीं जो एक सीधी सादी घरेलू महिला है .  उसके लिए तो उसका पति और प्यार ही सब कुछ है पर उसका भरोसा ही नहीं बल्कि दिल भी टूटा है . मैं उससे इतने बड़े दिल की होने की उम्मीद नहीं करता कि वह पति की बेबफाई को पचा ले लेकिन यह उम्मीद तो उससे की जा सकती है कि वह श्रीमति वर्मा की हालत समझे . रोहित ने उन्हें बुरे वक्त में सहारा दिया इसके लिए वह उसकी तारीफ भले ही न करे और कर भी नहीं सकती लेकिन महिला होने के नाते यह तो समझ ही सकती है कि पति की प्रेमिका किन हालातों में उसके नजदीक आई और इस तरह दस साल रोहित के साथ गुजारे कि किसी को हवा तक नहीं लगी . वैसे भी यह विवाहेत्तर सम्बन्धों का पहला या आखिरी उजागर मामला नहीं है .

कहानी को दिए शीर्षक के मुताबिक यह बताना भी मेरी लेखकीय ज़िम्मेदारी है कि अगर सभी बेगुनाह हैं हैं तो फिर दोषी कौन है  . उसका नाम बताने के पहले मैं यह जरूर बताना चाहूँगा कि ऐसे मामले जब तक उजागर नहीं होते तब तक कोई नोटिस नहीं लेता यानि ढका रहे तो गुनाह गुनाह नहीं रह जाता . यह मामला उजागर हुआ है तो मेरी नजर में दोषी है – 

पिया बावरा : भाग 3

शायद हीरालाल ठीक कह रहा था, वे क्या करते, जो कुछ भी हुआ वह सोचीसमझी योजना का हिस्सा नहीं था. वह सबकुछ केवल सुहानी को बचाने की जिद से हो गया. शायद उन से बचकानी हरकत हो गई. इतनी बड़ी बात को गंभीरता से नहीं लिया और नतीजे के बारे में भी नहीं सोचा था.

उन्हें लगा कि वीणा सुहानी के घर की तरफ ही जा रही है और बिना समय गंवाए उन्होंने वीणा पर गोली चला दी. सुहानी तो बच गई मगर वीणा के पिता का कुछ भरोसा नहीं. केवल उन्हें सलाखों के पीछे भेज कर वे संतुष्ट होने वाले नहीं हैं. सुभाष के जीवन से तो सबकुछ छिन गया, पत्नी भी और प्रेमिका भी.

वह 15 अगस्त का दिन था. सभी कैदियों को सुबह झंडा फहराते समय राष्ट्रगान गाना था. फिर सब को बूंदी के लड्डू दिए गए थे. सुभाष अपना लड्डू खाने का प्रयत्न कर ही रहे थे कि हीरालाल ने जल्दी से आ कर उन के कान से मुख सटा दिया और कहा, ‘‘अभीअभी इंस्पेक्टर के कमरे से सुन कर आया हूं, कह रहे थे कि डाक्टर की प्रेमिका का पता चल गया है. बहुत जल्द उसे भी गिरफ्तार कर लिया जाएगा.’’

‘‘क्या?’’ उन के हाथ से लड्डू छिटक गया. हीरालाल ने झट से लड्डू उठा लिया और बोला, ‘‘डाक्टर, मुझे पता है कि अब तुम इस लड्डू को नहीं खाओेगे. डाक्टर हो न, जमीन पर गिरा लड्डू कैसे खा सकते हो.’’

उस ने वह लड्डू भी खा लिया.

सुभाष बहुत व्याकुल हो उठे थे. वे समझ गए थे कि यह सब वीणा के पिता ने ही करवाया है. उन की आंखों से आंसू बहने लगे.

हीरा ने कहा, ‘‘यह क्या, डाक्टर साहब. आप इतने कमजोर दिल के हैं, फिर भला दूसरों के दिल का आपरेशन कैसे करते थे?’’

डाक्टर ने अपने आंसू पोंछे और कहा, ‘‘हीरा, सब को अपने अंत का पता होता है, फिर भी हम जैसों से इतनी भूल कैसे हो जाती है.’’

‘‘आप शरीफ इनसान हैं इसलिए सबकुछ शराफत के दायरे में करने की कोशिश की. काश, आप भी शातिर खिलाड़ी होते तो आज पकड़ा कोई और जाता और आप अपनी सुहानी के साथ हनीमून मना रहे होते.’’

सुभाष ने चौंक कर हीरालाल को देखा और बोले, ‘‘क्या कह रहे हो?’’

‘‘ठीक कह रहा हूं, डाक्टर. आज मैं जिस कत्ल की सजा भोग रहा हूं उस व्यक्ति को मैं ने कभी देखा ही नहीं. उस का हत्यारा बहुत शातिर और धनवान था. मुझे उलझा कर खुद मजे से घूम रहा है.’’

डाक्टर ठगे से खड़े रह गए.

‘‘डाक्टर, सच यह है कि इतने वर्षों में इस जेल के अंदर रह कर मैं ने दांवपेंच सीख लिए हैं. एक बार यहां से भागने का अवसर मिला तो उस शातिर की हत्या कर के सचमुच का हत्यारा बन जाऊंगा.’’

डा. सुभाष अपनी सोच में डूबे हुए थे, धीरे से बुदबुदाए, ‘इस से तो अच्छा था कि मुझे फांसी हो जाती.’’

इतना कहने के साथ ही उन्होंने कस कर अपनी छाती को दबाया और कराह उठे. उन का हृदय दर्द से तड़प रहा था.

‘‘डाक्टर,’’ हीरा चिल्ला उठा.

डाक्टर धीरेधीरे धरती पर गिर कर तड़पने लगे. हलचल मचते ही कई अधिकारी वहां आ गए थे. डाक्टर को स्ट्रेचर पर लिटाया गया और सिपाही चल पड़े. हीरा भाग कर वहां पहुंचा और झुक कर डाक्टर के कान में कहने की चेष्टा की कि वहां से भाग जाना पर सुभाष बेसुध हो चुके थे.

हीरा मन मसोस कर उन्हें जाता देखता रहा. सुभाष की बंद आंखों के सामने बहुत से चेहरे घूम रहे थे.

‘तुम पागल हो गए हो उस बेटी समान लड़की के लिए,’ वीणा के पुराने स्वर डाक्टर को नीमबेहोशी में सुनाई दे रहे थे. फिर सबकुछ डूबने लगा. आवाज, सांस और धुंधलाती सी पुरानी यादें. उस धुंधली छाया में बस एक छवि अटकी थी सुहानी…सुहानी.

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