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सजा : असगर ने अपने दोस्त के साथ क्या किया ?

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त्योहार के मौके पर शानदार और यादगार डिनर

दीवाली अधिकतर लोगों का फैवरेट त्योहार है. दीवाली के जश्न भी सब अलगअलग तरीके से मनाते हैं. कुछ लोग फैमिली के साथ दीवाली सैलिब्रेट करना पसंद करते हैं तो कई लोगों को दीवाली पार्टी में दोस्तों के साथ ज्यादा मजा आता है. ऐसे में अगर आप भी दीवाली पार्टी करने की ख्वाहिश रखते हैं तो कुछ खास तरीकों से पार्टी प्लान कर आप त्योहार को भरपूर एंजौय कर सकते हैं.

दीवाली की पार्टी और्गेनाइज करना आसान नहीं. पार्टी को स्पैशल बनाने के लिए आप को प्रौपर प्लानिंग के साथ हर छोटीबड़ी चीज पर खास ध्यान देना पड़ता है. दीवाली पार्टी और्गेनाइज करने के कुछ टिप्स को अपना कर पार्टी को यादगार और शानदार बनाया जा सकता है. इस में परिवार या दोस्तों के हर व्यक्ति की पसंदनापसंद को ध्यान में रखते हुए पार्टी की प्लानिंग करने की आवश्यकता होती है.

इस बारे में सैलिब्रिटी शैफ रणवीर ब्रार कहते हैं कि दीवाली की पार्टी हमेशा घर पर ही आयोजित की जाती है. ऐसे में उस की प्लानिंग 7 दिनों पहले से कर लेनी चाहिए.

इस में बजट, मैन्यु, साजसजावट, ड्रैस कोड, मनोरंजन आदि की भी प्लानिंग पहले से कर लेनी चाहिए ताकि पार्टी शानदार बन जाए.

बजट की करें प्लानिंग

बजट की प्लानिंग सब से पहले करें, क्योंकि उसी के हिसाब से खाने का मैन्यु तैयार किया जाता है. इस के लिए जरूरी नहीं कि आप का बजट अधिक हो. कम बजट में भी एक शानदार पार्टी का आयोजन किया जा सकता है, क्योंकि इस दिन सभी घर पर रहते हैं और उस समय की मौसमी सब्जियों और फलों से व्यंजन तैयार कर एक शानदार पार्टी हो सकती है.

रखें फ्लैक्सिबल ड्रैस कोड

पार्टी में ड्रैस कोड भारीभरकम नहीं, बल्कि त्योहार के हिसाब से कलरफुल ट्रेडिशनल रखें, जिस में 2 से 3 रंगों का मेल हो, ताकि सभी के पास वैसी ड्रैस पहले से मौजूद हों.

संतुलित डिशेज

शैफ रणवीर कहते हैं कि दीवाली में ठंड पूरी तरह से नहीं आती, इसलिए इस मौसम में ठंडे और गरम पेय पदार्थों का मिक्सचर बना कर फ्रिज में रख लेना चाहिए. सबकुछ अंत में करने की न सोचें. इस से दीवाली एंजौय करना मुश्किल होता है.

सलाद और शरबत जैसी चीजों को पहले से तैयार कर रख लें. चाट जैसी अगर कुछ डिश आप के मैन्यु में हैं तो इस की चटनियां तैयार कर फ्रिज में रखें. ऐसा करने से समय बचता है और डिश जल्दी तैयार हो जाती है.

अधिक अमाउंट में कोई भी डिश न बनाएं. जितनी कम मात्रा में तैयार व्यंजन होंगे, लोग उतनी ही अधिक डिशेज को टेस्ट कर पाएंगे. इस से वे सभी डिशेज के टेस्ट का आनंद उठा सकते हैं. अगर एक डिश से पेट भर गया तो व्यक्ति आगे कुछ खाना नहीं चाहेगा, इस से खाना खराब होता है.

कई प्रकार के शरबत मैन्यु में शामिल करें. इस से लोग काफी समय तक पार्टी में टिक सकते हैं. अधिक मसाले वाला खाना न सर्व करें क्योंकि आज सभी स्वास्थ्य को ले कर जागरूक हो चुके हैं. ऐसे में यूथ हो या वयस्क, सभी कम तेलमसाले में स्वादिष्ठ भोजन खाना पसंद करते हैं.

खाने की सजावट में उन चीजों को न डालें जो खाई न जा सकें. सिर्फ सजावट के लिए कुछ भी डाल कर टेबल को न सजाएं. सलाद हो या कुछ और उसे खाई जा सकने वाली चीजों से सजाएं. इस से आप की क्रिएटिविटी और खाने का आकर्षण बना रहता है.

करें सजावट फूलों से

सजावट के लिए उस मौसम में मिलने वाले गेंदे के फूल का प्रयोग करें. एक अच्छी रंगोली के साथ बीच में मिट्टी के दीये को जला कर एथनिक लुक दें. मुख्यद्वार पर भी गेंदे के फूलों की तोरण बना कर सजावट करें. डाइनिंग प्लेस के पास फूलों के गुलदस्ते रखें. उस में ताजे फूलों के साथ मिट्टी के कलरफुल दीये रखें हों, जो परिवार के सभी को ट्रैडिशन के साथसाथ ताजगी का एहसास करवाएं.

मनोरंजन को भी दें प्राथमिकता

दीवाली क्रिएटिविटी का त्योहार है, इसलिए इसे मनोरंजक बनाने के लिए ताश नहीं, बल्कि कुछ गेम्स, संगीत और इंटरएक्शन का माहौल रखें, ताकि पार्टी शानदार और यादगार बने.

हर क्षेत्र की पसंद अलग

स्टर्लिंग हौलीडेज एंड रिसौर्ट लिमिटेड के शैफ सरवनन थान्गावेल कहते हैं कि त्योहार के दिन घर पर रह कर सभी एक आकर्षक और शानदार डिनर पार्टी का आयोजन कर सकते हैं. वे आगे कहते हैं कि इस का आयोजन नौर्थ और साउथ इंडिया में अलगअलग तरीके से किया जाता है.

साउथ में अधिकतर लोगों के खाने की चौइस नौर्थ से काफी अलग होती है. साउथ में दीवाली पर मुर्कू (नमकीन), जो बेसन से नहीं, चावल के आटे से बनाया जाता है, को पहले से बना कर रखा जा सकता है जिसे शरबत के साथ परोसा जाता है.

शैफ थान्गावेल कहते हैं, ‘‘मेरे हिसाब से जो सामग्री आप को आसानी से मिले या घर पर हो उस से ही भोजन की प्लानिंग करें. बाहर जा कर अपना समय बरबाद न करें. स्टार्टर के रूप में मिलेट्स के रोटी, पकौड़े आदि बनाए जा सकते हैं, जो मेन कोर्स से पहले परोसे जा सकते हैं.’’

‘‘दक्षिण में अधिकतर लोग नौनवैजिटेरियन होते हैं. इस से उन की पसंद के चिकन या मटन की कई वैरायटियां बनाई जा सकती हैं, जबकि शाकाहारी लोगों के लिए मौसमी सब्जियों की कई डिशेज बना सकते हैं, जिन में उपकर्म (दाल), लौकी की सब्जी, घी चावल आदि हो सकते हैं.

डिशेज तैयार करते वक्त इस बात का ध्यान रखना है कि खाना अधिक हैवी न हो और सभी भोजन का आनंद उठा सकें. डैजर्ट की अगर बात करें तो आदिरसम है जो एक मीठा व्यंजन है और जिसे गुड़ व चावल के आटे के साथ बनाया जाता है. यह दीवाली में खास होता है.

दक्षिण में हलवा भी आटे का ही बनता है, जिसे 2 दिनों पहले बनाया जा सकता है. इस के अलावा रवा लड्डू, टैंडर कोकोनट की कुल्फी आदि भी बनाई जा सकती है. हौट स्वीट डिश में पायसम है जो रवा या सेंवईं से बनाई जा सकती है. इस प्रकार साउथ में दीवाली का त्योहार उस समय खेतों में उगने वाली सभी चीजों से ही मनाया जाता है. दीवाली के समय के मौसम में केरल में उगने वाले गेंदे के फूलों की रंगोली, तोरण आदि के साथ दीवाली को यादगार बनाया जा सकता है.

परिवार का ट्रिप प्लान करे ग्लू का काम

त्योहार का असली आंनद परिवार के साथ ही मिलता है. एक ही जगह पर परिवार के साथ भी खुशियों का मजा दूना करना है तो परिवार के साथ किसी पर्यटन स्थल की ट्रिप प्लान करें. त्योहार में कम लोग बाहर घूमने जाते हैं. ऐसे में वहां भीड़भाड़ कम होती है. होटल में जगह आसानी से मिल जाती है. बाजार में फैस्टिवल की मस्ती और धूमधाम देखने को मिलती है. हर जगह त्योहार मनाने का अलग अंदाज होता है.

पर्यटन के साथ ही साथ दूसरी जगह की कला, संस्कृति और उत्साह देखने को मिलता है. कई पर्यटन स्थलों पर शिल्प मेले और दूसरे आयोजन होते हैं, जो पर्यटकों की सुविधा को देखते हुए प्लान किए जाते हैं, जिस से पर्यटकों को घूमने के साथ वहां की कला व संस्कृति को सम?ाने का मौका मिले.

फैस्टिवल की छुटिट्यों के साथ ही अगर थोड़ी छुट्टियों का प्रबंध हो जाए तो घूमने की कोई अच्छी सी सब के पसंद वाली ट्रिप प्लान कर सकते हैं. इस में फैस्टिवल के साथ ही पूरा परिवार घूमने का भी मजा ले सकता है. देश में यातायात के खराब व महंगे प्रबंधन के कारण ट्रिप प्लान करते समय कुछ खास बातों का ध्यान रखना जरूरी है. घूमने के लिए धार्मिक पर्यटन स्थलों का प्लान न करें.

धार्मिक स्थलों पर अब वहां के अलगअलग धार्मिक कानून बन गए हैं, जिस से घूमने वालों की आजादी प्रभावित होती है. त्योहारों में धार्मिक पर्यटन स्थलों पर कट्टरपन और भी बढ़ जाता है, जिस से घूमने का मजा किरकिरा हो जाता है.

इस के साथ ही धार्मिक पर्यटन स्थलों पर वहां के लोगों की राय के हिसाब से चलना पड़ता है, जो घूमने वाले की आजादी को खत्म करता है. कई बार त्योहारों में भीड़ सामान्य दिनों की अपेक्षा अधिक होती है.

टिकट की कीमत देख प्लान करें ट्रिप

सुविधानुसार पर्यटन स्थल का चुनाव करने के बाद यह देख लें कि वहां तक जाने वाली ट्रेनें कौनकौन सी हैं, कब आतीजाती हैं. तत्काल टिकट बुक कराने से पहले सामान्य रूप से टिकट बुक कराने का काम करें. यह टिकट सस्ता होता है. तभी ‘पर्यटन ट्रिप’ अच्छी रहेगी. आज के समय में रेलवे मुनाफा बढ़ाने में लगा है. एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन के बीच अलगअलग ट्रेनों का किराया अलगअलग होता है, जबकि ट्रेन के समय में कोई बहुत फर्क नहीं होता है.

उदाहरण के लिए लखनऊदिल्ली के बीच चलने वाली कुछ ट्रेनों के किराए को देखें तो पता चलता है कि सामान्य टिकट बुकिंग में चेयरकार का किराया तेजस में 1205, शताब्दी 945, गोमती एक्सप्रैस 645 रुपए होता है.

दिक्कत की बात यह है कि जब सामान्य औनलाइन टिकट बुक कराया जाता है तो टिकट उपलब्ध ही नहीं होता है. तत्काल बुक कराने पर यही टिकट बहुत महंगे हो जाते हैं. ऐसे में पहले से ही आनेजाने का टिकट बुक करा लें. अगर वहां से पहुंच कर वापसी का टिकट कराया और टिकट नहीं मिला तो परेशानियां बढ़ जाएंगी.

टूर एंड ट्रैवल्स वाले इस तरह की परेशानियों में मदद कर सकते हैं. उन की दिक्कत यह है कि वे छोटे टूर प्लान नहीं करते हैं. इस वजह से वे मदद नहीं करते हैं. फैस्टिवल में जब भी कोई टूर प्लान करें, उस की पूरी जानकारी हासिल करें. आजकल गूगल पर बहुत सारी जानकारियां हैं. उन जगहों पर टूर करें जहां का प्राकृतिक सौंदर्य सुख दे. भीड़भाड़ वाली जगहों से बचें. जब भी धार्मिक पर्यटन स्थल पर जाते हैं वहां अपनी मरजी कम, दूसरे के नियमकानून से अधिक चलना पड़ता है. ऐसे में घूमने के बाद भी सुख नहीं मिलता है.

समझ कर करें पर्यटन स्थल का चुनाव

पर्यटन स्थल का चुनाव करते समय यह ध्यान रखें कि वह जगह परिवार में सब को पसंद हो. अगर जगह सब की पसंद की नहीं होगी तो उन का मन नहीं लगेगा. इस से पूरा टूर तनाव में निकल जाएगा. पर्यटन स्थल का चुनाव करते समय वहां की दूरी और आनेजाने के साधन को समझ कर प्लान करें. आजकल सड़कमार्ग भी अच्छे और सुविधाजनक हैं.

ऐसे में अपने साधन से भी 4-5 सौ किलोमीटर तक की यात्रा की जा सकती है. महंगाई का असर भी पर्यटन पर पड़ रहा है. ऐसे में बड़े और दिखावे वाले फाइवस्टार होटलों की जगह पर रिसौर्ट में ठहरने का प्रबंध कर सकते हैं. शहरों में बहुत सारे लोकल रिसौर्ट खुल गए हैं जिन में परिवार सहित त्योहार का मजा ले सकते हैं.

बढ़ती महंगाई ने पर्यटन को प्रभावित किया है. इस की वजह यह है कि महंगाई बढ़ने से लोगों का बजट बिगड़ जाता है. बजट को बनाए रखने के लिए लोग खर्च में कटौती करते हैं. इस में पर्यटन सब से पहले प्रभावित होता है. किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का बड़ा योगदान होता है.

यह उद्योग लाखों लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार उपलब्ध कराता है. पर्यटन स्थलों पर देशविदेश से आने वाले पर्यटक परिवहन साधनों से ले कर होटल, रैस्तरां और पर्यटन स्थलों के टिकट पर व्यय करते हैं, जिस से राजस्व बढ़ता है. घूमने का शौक रखने वाले नएनए पर्यटन स्थलों की खोज में रहते हैं. कई देशों की अर्थव्यवस्था पर्यटन उद्योग के इर्दगिर्द घूमती है.

पर्यटन है बड़ा कारोबार

लोगों को अपने देश के अलावा विदेशी पर्यटक स्थलों पर भी घूमने जाना चाहिए. इस से वे दूसरेदूसरे देश की कला व संस्कृति को सम?ा सकते हैं. भारत में कलात्मक, धार्मिक, प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर पर्यटन स्थल हैं.

पर्यटक भी बड़ी तादाद में कश्मीर से ले कर कन्याकुमारी तक फैले पर्यटन स्थलों को देख सकते हैं. वर्ल्ड ट्रैवल एंड टूरिज्म काउंसिल द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में लगभग 4 करोड़ लोग टूर एंड टूरिज्म इंडस्ट्री के माध्यम से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर आजीविका हासिल कर रहे हैं.

2021 में विश्व यात्रा और पर्यटन परिषद की रिपोर्ट में 178.0 बिलियन अमेरिकी डौलर के योगदान के साथ भारत का पर्यटन क्षेत्र विश्व सकल घरेलू उत्पादन में अपने योगदान में 6ठे स्थान पर है. विदेशी मुद्रा के मामले में भारत के पर्यटन क्षेत्र ने वर्ष 2020 में 6.96 बिलियन अमेरिकी डौलर की कमाई की. कोरोना महामारी के बाद इस के और तेजी से बढ़ने की उम्मीद है.

2020 में भारत में पर्यटन क्षेत्र में 39 मिलियन लोगों को रोजगार मिला जो कि देश में कुल रोजगार का 8 प्रतिशत था. 2029 तक यह आंकड़ा लगभग 53 मिलियन होने की उम्मीद है. भारत के 40 स्थल विश्व विरासत सूची में शामिल हैं, जिन में 32 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक और 1 मिश्रित स्थल हैं. इस मामले में भारत विश्व में 6ठे स्थान पर है.

हर देश की पहली जरूरत अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है. पर्यटन के कारण आज कई देशों की अर्थव्यवस्था पर्यटन उद्योग के इर्दगिर्द घूमती है. पर्यटन विश्व का सब से बड़ा क्षेत्र है, जो वैश्विक स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 11 प्रतिशत योगदान देता है.

भारत में यह अभी भी 6.7 प्रतिशत ही है. इस के मुकाबले चीन (8.6), इंडोनेशिया (9.2), मलयेशिया (12.9), श्रीलंका (8.8) तथा थाईलैंड (13.9) है जो हमारे देश से बहुत अधिक हैं. हमारे देश में पिछले कुछ सालों से धार्मिक पर्यटन स्थल बढ़े हैं, जिन के प्रति विदेशियों में रुचि कम है. हमारे देश में प्राकृतिक पर्यटन स्थल कम हैं. इन के विकास पर सरकार ध्यान नहीं दे रही है. इस कारण पर्यटन उद्योग बढ़ नहीं रहा है.

भारत में तमाम फैस्टिवल होते हैं. अगर पर्यटन को फैस्टिवल से जोड़ा जाएगा तो देश का विकास हो सकेगा. इस के अलावा पर्यटन को जीवनशैली से जोड़ने से लाभ होगा. पर्यटन के महत्त्व को समझना होगा. इस से देश, समाज और परिवार को लाभ होगा. परिवार के साथ पर्यटन करने से आपसी प्रेम, सामंजस्य और तालमेल बढ़ता है.

जब भी घूमने जाएं, पूरी तैयारी के साथ जाएं. इस में कपड़ों के साथसाथ दवाएं भी ले लें. डाक्टर से भी सलाह ले कर जाएं. आजकल तबीयत कब, किस की खराब हो जाए, यह पता नहीं होता है. ऐसे में इमरजैंसी अस्पतालों और दवाओं की जानकारी रखनी जरूरी होती है. नई उम्र के लोगों में भी हैल्थ इशू होने लगे हैं. कई बार घूमते समय इन की जरूरत पड़ जाती है.

प्रैग्नैंसी में सैक्स करना कोई खतरे की बात तो नहीं ?

सवाल

मुझे प्रैग्नैंट हुए 4 महीने हो चुके हैं. अकसर औरतें कहती हैं कि प्रैग्नैंसी में उन्हें सैक्स करना अच्छा नहीं लगता जबकि मुझे तो अब सैक्स करने में और आनंद आता है, ऐसा क्यों. वैसे, मेरे पति बहुत प्यार से सेफली सैक्स करते हैं ताकि कोई तकलीफ न हो मुझे.

जवाब

जी हां प्रैग्नैंसी के दौरान महिलाओं को सैक्स में अधिक आनंद की प्राप्ति होती है. इस की खास वजह यह है कि जननांगों में बढ़ा हुआ रक्तप्रवाह उन्हें अति संवेदनशील बना देता है.

गर्भावस्था में सैक्स करना कोई खतरे की बात नहीं है. उलटा मांसपेशियां प्रसव के लिए मजबूत हो जाती हैं. इम्यून सिस्टम मजबूत होता है. प्रैग्नैंसी में सैक्स के दौरान भ्रूण को नुकसान नहीं पहुंचता है क्योंकि सैक्स में उपयोग आने वाले अंग अलग हैं. इस प्रक्रिया का भ्रूण से कोई संबंध नहीं होता है. शिशु के आसपास एमनियोटिक द्रव का घेरा होता है जो भ्रूण को सुरक्षित रखता है. वह गर्भाशय में एमनियोटिक थैली में लिपटा हुआ होता है. सैक्स के दौरान पेनिट्रेशन योनि में होता है और इस से गर्भाशय पर कोई प्रभाव नहीं होता है.

बस, गर्भावस्था के दौरान सुरक्षित शारीरिक संबंधों का विशेष खयाल रखें क्योंकि यदि इस वक्त एसटीडी यानी सैक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज होती है तो मुश्किल पैदा कर सकती है. इसलिए कंडोम का प्रयोग करें और अंगों की साफसफाई का विशेष ध्यान रखें. वैसे, प्रैग्नैंसी के दौरान ओरल सैक्स सुरक्षित होता है. ध्यान रखें, पार्टनर वेजाइना में हवा न डाले, इस से वेजाइना में हवा के बुलबुले बन सकते हैं जिस से रक्तवाहिका में रुकावट आ सकती है, जो कोख में पल रहे भ्रूण के लिए नुकसानदायक हो सकता है.

ऐसे करें दांतों की झनझनाहट का इलाज

दांतों में सेंसिटिविटी की परेशानी आम हो चुकी है. अक्सर ठंडा-गर्म खाने से लोगों को दांतों में झनझनाहट की शिकायत होती है. ये आपकी दांतों पर लगी इनेमल की कोटिंग के घिस जाने से होता है. इसी कोटिंग के बदौलत हम कठोर चीजों को खा पाते हैं. जब दांतों से इनेमल की कोटिंग हट जाती है तब दांतों में कुछ भी ठंडा या गर्म खाने पर बड़े जोर की टीस मचती है. इसके लिए दांतों के बैक्टीरिया और प्लेग भी जिम्मेदार होते हैं. अगर आपको भी ये परेशानी होती है तो हम आपके लिए लाए हैं घरेलू उपचार, जिनकी मदद से आप इस परेशानी का इलाज कर सकेंगे.

नमक का पानी का उपचार

गुनगुने पानी में दो चम्मच नमक घोल लें. रोज सुबह और रात में इससे कुल्ला करें. सेंस्टिविटी की शिकायत में ये काफी लाभकारी तरीका है.

करें नर्म ब्रस का प्रयोग

ध्यान रखें कि ब्रश आपका नर्म हो. इससे आपके मसूढ़ों पर ज्यादा दबाव नहीं पड़ेगा. दांत साफ करते वक्त हल्के हाथों का प्रयोग करें.

फ्लोराइड माउथवाश या टूथब्रश का करें प्रयोग

फ्लोराइड हमारे दांतों के लिए काफी जरूरी होता है. इससे सड़न और टूथ इनेमल जैसी समस्याएं दूर रहती हैं. इस परेशानी से बचने के लिए जरूरी है कि ऐसा माउथवाश या टूथपेस्‍ट का प्रयोग करें जिसमें फ्लोराइड शामिल हो.

सरसो का तेल और नमक

एक चम्मच सरसो के तेल में एक छोटा चम्मच सेंधा नमक मिलाएं. मिश्रण से मसूढ़ों और दांतों में मसाज करें. ऐसा करने के 5 मिनट बाद मुंह धो लें.

एसिडिक पदार्थों से रहें दूर

ऐसे किसी भी खाद्य या पेय से दूरी बनाए रखें जो प्राकृति में अम्लिय हों. जैसे फलों के रस, शीतल पेय, सिरका, रेड वाइन, चाय, आइसक्रीम जैसी चीजों से दूरी बनाएं. अगर आप इन्हें खाएं भी तो तुरंत ब्रश कर लें. ये आहार दांतों के इनेमल का काफी नुकसान करते हैं.

सावित्री और सत्य

सावित्री को नींद नहीं आ रही थी. अभी पिछले साल ही उस के पति की मौत हुई थी. उस की शादीशुदा जिंदगी का सुख महज एक साल का था. सावित्री ससुराल में ही रह रही थी. उस का पति ही बूढ़े सासससुर की एकलौती औलाद था. ससुराल और मायका दोनों ही पैसे वाले थे. सावित्री अपने मायके में 4 बच्चों में सब से छोटी और एकलौती लड़की थी. मांबाप और भाइयों की दुलारी…

मैट्रिक पास होते ही सावित्री की शादी हो गई थी. पति की मौत के बाद उस का बापू उसे लेने आया था, पर वह मायके नहीं गई. उस ने बापू से कहा था कि आप के तो 3 बच्चे और हैं, पर मेरे सासससुर का तो कोई नहीं है. पहाड़ी की तराई में एक गांव में सावित्री का ससुराल था. गांव तो ज्यादा बड़ा नहीं था, फिर भी सभी खुशहाल थे. उस के ससुर उस इलाके के सब से धनी और रसूखदार शख्स थे. वे गांव के सरपंच भी थे. पहाडि़यों पर रात में ठंडक रहती ही है. थोड़ी देर पहले ही बारिश रुकी थी. सावित्री कंबल ओढ़े लेटी थी, तभी अचानक ही जोर के धमाके की आवाज से वह चौंक पड़ी थी. वह बिस्तर से नीचे उतर आई. शाल से अपने को ढकते हुए बगल में सास के कमरे में गई. वहां उस ने देखा कि सासससुर दोनों ही जोरदार धमाके की आवाज से जाग गए थे. उस के ससुर स्वैटर पहन कर टौर्च व छड़ी उठा कर बाहर जाने के लिए निकलने लगे, तो सावित्री ने कहा, ‘‘बाबूजी, मैं आप को रात में अकेले नहीं जाने दूंगी. मैं भी आप के साथ चलूंगी.’’

काफी मना मरने के बावजूद सावित्री भी उन के साथ चल पड़ी थी. जब सावित्री बाहर निकली, तो थोड़ी दूरी पर ही खेतों के बीच उस ने आग की ऊंची लपटें देखीं. गांव के कुछ और लोग भी धमाके की आवाज सुन कर जमा हो चुके थे. करीब जाने पर देखा कि एक छोटे हवाईजहाज के टुकड़े इधरउधर जल रहे थे. लपटें काफी ऊंची और तेज थीं. किसी में पास जाने की हिम्मत नहीं थी. देखने से लग रहा था कि सबकुछ जल कर राख हो चुका है. तभी सावित्री की नजर मलबे से दूर पड़े किसी शख्स पर गई, जिस के हाथपैरों में कुछ हरकत हो रही थी. वह अपने ससुर के साथ उस के नजदीक गई. कुछ और लोग भी साथ हो लिए थे. उस नौजवान का चेहरा जलने से काला हो गया था. हाथपैरों पर भी जलने के निशान थे. वह बेहोश पड़ा था, पर रहरह कर अपने हाथपैर हिला रहा था. तभी एक गांव वाले ने उस की नब्ज देखी और फिर नाक के पास हाथ ले जा कर सावित्री के ससुर से बोला, ‘‘सरपंचजी, इस की सांसें चल रही हैं. यह अभी जिंदा है, पर इस की हालत नाजुक दिखती है. इस को तुरंत इलाज की जरूरत है.’’ सरपंच ने कहा, ‘‘हां, इसे जल्द ही अस्पताल ले जाना होगा. प्रशासन को अभी इस की सूचना भी शायद न मिली हो. सूचना मिलने के बाद भी सुबह के पहले यहां पर किसी के आने की उम्मीद नहीं है. तुम में से कोई मेरी मदद करो. मेरा ट्रैक्टर ले कर आओ. इसे शहर के अस्पताल ले चलते हैं.’’

थोड़ी देर में ही 2-3 नौजवान ट्रैक्टर ले कर आ गए थे. उस घायल नौजवान को ट्रैक्टर से ही शहर के बड़े अस्पताल ले गए. सावित्री भी सरपंचजी के साथ शहर तक गई थी. अस्पताल में डाक्टर ने देख कर कहा कि हालत नाजुक है. पुलिस को भी सूचित करना होगा. यह काम सरपंच ने खुद किया और डाक्टर को तुरंत इलाज शुरू करने को कहा. इमर्जैंसी वार्ड में चैकअप करने के बाद डाक्टर ने उसे इलाज के लिए आईसीयू में भेज दिया. पर उस शख्स के पास से कोई पहचानपत्र या बोर्डिंग पास भी नहीं मिला. हादसे की जगह के पास से एक बुरी तरह जला हुआ पर्स मिला था. उस पर्स में ऐसा कुछ भी सुबूत नहीं मिला था, जिस से उस की पहचान हो सके. डाक्टर ने इलाज तो शुरू कर दिया था. सरपंचजी खुद गारंटर बने थे यानी इलाज का खर्च उन्हें ही उठाना था. सुबह होते ही इस हादसे की खबर रेडियो और टैलीविजन पर फैल चुकी थी.

पुलिस भी आ गई थी. पुलिस को सारी बात बता कर उस की सहमति ले कर सरपंचजी अपनी बहू सावित्री के साथ अपने घर लौट आए थे. शहर के एयरपोर्ट पर अफरातफरी का सा माहौल था. एयरपोर्ट शहर से 20 किलोमीटर दूर और गांव की विपरीत दिशा में था. लोग उस उड़ान से आने वाले अपने रिश्तेदारों का हाल जानने के लिए बेचैन थे. एयरलाइंस के मुलाजिमों ने तो सभी सवारियों और हवाईजहाज के मुलाजिमों की लिस्ट लगा रखी थी, जिस में सब को ही मरा ऐलान किया गया था. थोड़ी ही देर में टैलीविजन पर एक ब्रेकिंग न्यूज आई कि एक मुसाफिर इस हादसे में बच गया है, जिस की हालत नाजुक है, पर उस की पहचान नहीं हो सकी है. सब के मन में उम्मीद की एक किरण जग रही थी कि शायद वह उन्हीं का सगा हो. अस्पताल में भीड़ उमड़ पड़ी थी. डाक्टर ने कहा कि अभी वह वैंटिलेटर पर है और हालत नाजुक है. मरीज के पास तो अभी कोई नहीं जा सकता है, उसे सिर्फ बाहर से शीशे से देखा जा सकता है. लोग बाहर से ही उस को देख कर पहचानने की कोशिश कर रहे थे, पर यह मुमकिन नहीं था. उस का चेहरा काफी जला हुआ था. उस पर दवा का लेप भी लगा था.

इधर सरपंच रोज सुबह अस्पताल आते थे, अकसर सावित्री भी साथ होती थी. वह उन को अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी, क्योंकि सरपंच खुद दिल के मरीज थे. कुछ दिनों के बाद डाक्टर ने सरपंच से कहा, ‘‘मरीज खतरे से बाहर तो है, पर वह कोमा में जा चुका है. कोमा से बाहर निकलने में कितना समय लगेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता है. कुछ ही दिनों में उसे आईसीयू से निकाल कर स्पैशल वार्ड में भेज देंगे.

‘‘दूसरी बात यह कि उस का चेहरा बहुत खराब हो चुका है. अगर वह कोमा से बाहर भी आता है, तो आईने में अपनेआप को देख कर उसे गहरा सदमा लगेगा.’’

सरपंच ने पूछा, ‘‘तो इस का इलाज क्या है?’’

डाक्टर बोला, ‘‘उस के चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी करनी होगी, पर इस में काफी खर्च होगा. अभी तक के इलाज का खर्च तो आप देते आए हैं.’’

सरपंच ने कहा, ‘‘आप पैसे की चिंता न करें. अगर यह ठीक हो जाता है, तो मैं समझूंगा कि मेरा बेटा मुझे दोबारा मिल गया है.’’ कुछ दिनों के बाद उस मरीज को स्पैशल वार्ड में शिफ्ट किया गया था. वहां उस की देखभाल दिन में तो अकसर सावित्री ही किया करती थी, लेकिन रात में सरपंच के कहने पर गांव से भी कोई न कोई आ जाता था. तकरीबन 2 महीने बाद उस की प्लास्टिक सर्जरी भी हुई. उस आदमी को नया चेहरा मिल गया था. इसी बीच सरपंच के ट्रैक्टर की ट्रौली पर एक बैल्ट मिली. हादसे के बाद उस नौजवान को इसी ट्रौली से अस्पताल पहुंचाया गया था. शायद किसी ने उसे आराम पहुंचाने के लिए बैल्ट निकाल कर ट्रौली के एक कोने में रख दी थी, जिस पर अब तक किसी की नजर नहीं पड़ी थी. बैल्ट पर 2 शब्द खुदे थे एसके. उस बैल्ट को देख कर सरपंच को लगा कि उस आदमी की पहचान में यह एक अहम कड़ी साबित हो.

इस की सूचना उन्होंने पुलिस को दे दी. साथ ही, लोकल टैलीविजन चैनल और रेडियो पर भी इसे प्रसारित किया गया. अगले ही दिन एक बुजुर्ग दंपती उसे देखने अस्पताल आए थे. उन का शहर में काफी बड़ा कारोबार था, पर चेहरा बदल जाने के चलते वे उसे पहचान नहीं पा रहे थे. बैल्ट भी पुलिस को दे दी गई थी. वहां पर उन्होंने सावित्री को देखा, जो मन लगा कर मरीज की सेवा कर रही थी. अस्पताल से निकल कर वे सीधे पुलिस स्टेशन गए और वहां उस बैल्ट को देख कर कहा कि ऐसी ही एक बैल्ट उन के बेटे की भी थी, जिस पर एसके लिखा था. यह बैल्ट जानबूझ कर उन के बेटे ने खरीदी थी, क्योंकि एसके उस के नाम ‘सत्य कुमार’ से मिलती थी. फिर भी संतुष्ट हुए बिना उसे अपना बेटा मानने में कुछ ठीक नहीं लग रहा था. फिलहाल वे अपने घर लौट गए थे. पर सरपंच का मन कह रहा था कि यह सत्य कुमार ही है.

तकरीबन एक महीना गुजर चुका था. सरपंच और सावित्री दोनों ही सत्य कुमार की देखभाल कर रहे थे. एक दिन अचानक सावित्री ने देखा कि सत्य कुमार के होंठ फड़फड़ा रहे थे और हाथ से कुछ इशारा कर रहा था. उस ने तुरंत डाक्टर को यह बात कही. डाक्टर ने कहा कि दवा अपना काम कर रही है और उन्हें पूरी उम्मीद है कि अब वह बिलकुल ठीक हो जाएगा. कुछ दिन बाद सावित्री उसे जब अपने हाथ से खाना खिला रही थी, सत्य कुमार ने उस का हाथ पकड़ कर कुछ बोलने की कोशिश की थी. उसी शाम जब सावित्री अपने घर जाने के लिए उठी, तो सत्य कुमार ने उस का हाथ पकड़ कर बहुत कोशिश के बाद लड़खड़ाती जबान में बोला, ‘‘रुको, मैं यहां कैसे आया हूं? मैं तो हवाईजहाज में था. मैं तो कारोबार के सिलसिले में बाहर गया हुआ था.’’ फिर अपने बारे में उस ने कुछ जानकारी दी थी. सरपंच और सावित्री दोनों की खुशी का ठिकाना न था. उन्होंने डाक्टर को बुलाया. डाक्टर ने उसे चैक कर कहा, ‘‘मुबारक हो. अब यह होश में आ गया है. इस के मातापिता को सूचना दे दें.’’ सावित्री और सरपंच अस्पताल में ही रुक कर सत्य कुमार के मातापिता का इंतजार कर रहे थे. वे लोग भी

खबर मिलते ही दौड़े आए थे. सत्य कुमार ने अपने मातापिता को पहचान लिया था और हादसे के पहले तक की बात बताई. उस के बाद का उसे कुछ याद नहीं था. सत्य कुमार के पिता ने सरपंच और सावित्री का शुक्रिया अदा करते हुए कहा, ‘‘आप के उपकार के लिए हम लोग हमेशा कर्जदार रहेंगे. यह लड़की आप की बेटी है न?’’

सरपंच बोले, ‘‘मेरे लिए तो बेटी से भी बढ़ कर है. है तो मेरी बहू, पर शादी के एक साल के अंदर ही मेरा एकलौता बेटा हम लोगों को अकेला छोड़ कर चला गया, पर सावित्री ने हमारा साथ नहीं छोड़ा.

‘‘मैं तो चाहता था कि यह अपने मांबाप के पास चली जाए और दूसरी शादी कर ले, पर यह तैयार नहीं थी.’’

सत्य कुमार के पिता ने कहा, ‘‘अगर आप को कोई एतराज नहीं है, तो मैं सावित्री को अपनी बहू बनाने को तैयार हूं, क्यों सत्य कुमार? ठीक रहेगा न?’’ सत्य कुमार ने सहमति में सिर हिला कर अपनी हामी भर दी थी. फिर सेठजी ने सत्य कुमार की मां की ओर देख कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘अरे सेठानी, तुम भी तो कुछ कहो.’’ सेठानी बोलीं, ‘‘आप लोगों ने तो मेरे मुंह की बात छीन ली है. मेरे बोलने को कुछ बचा ही नहीं है.’’

फिर वे सावित्री की ओर देख कर बोलीं, ‘‘तुम्हें कोई एतराज तो नहीं है?’’

सावित्री की आंखों से आंसू की कुछ बूंदें छलक कर उस के गालों पर आ गई थीं. वह बोली, ‘‘मैं आप लोगों की भावनाओं का सम्मान करती हूं, पर मैं अपने सासससुर को अकेला छोड़ कर नहीं जा सकती.’’ सरपंच ने सावित्री को समझाते हुए कहा, ‘‘तुम्हें एतराज नहीं होना चाहिए, क्योंकि हम सभी लोगों की खुशी इसी में है. और हम लोगों को अब जीना ही कितने दिन है, जबकि तुम्हारी सारी जिंदगी आगे पड़ी है.’’ सेठजी ने भी सरपंच की बातों को सही ठहराते हुए कहा, ‘‘तुम जब भी चाहो और जितने दिन चाहो, सरपंचजी के यहां बीचबीच में आती रहना.’’ सावित्री सेठजी से बोली, ‘‘सत्यजी को आप ने जन्म दिया है और बाबूजी ने इन्हें दोबारा जन्म दिया है, तो इन की भी तो कुछ जिम्मेदारी बनती है मेरे ससुरजी के लिए.’’

सेठजी बोले, ‘‘मैं मानता हूं और मेरा बेटा भी इतनी समझ रखता है. सत्य कुमार को तो 2-2 पिताओं का प्यार मिलेगा. सत्य कुमार सरपंचजी का उतना ही खयाल रखेगा, जितना वह हमारा रखता है.’’ सावित्री और सत्य दोनों एकदूसरे को देख रहे थे. उन लोगों की बातें सुन कर वह कुछ संतुष्ट लग रही थी. उस दिन सारी रात लोगों ने अस्पताल में ही बिताई थी. सावित्री के मायके में भी सरपंच ने यह बात बता दी थी. सभी को यह रिश्ता मंजूर था. सरपंच ने धूमधाम से अपने घर से ही सावित्री की शादी की थी.

सत्यपाल मलिक-राहुल गांधी आमने सामने

देश के इतिहास में यह पहली बार हुआ है जब राहुल गांधी जैसे बड़े कद के कांग्रेस नेता ने एक इंटरव्यू में सत्यपाल मलिक को ले कर राजनीति में एक तरह से तूफान ला दिया और एक नई परिपाटी की शुरुआत कर दी.

दरअसल, आज के समय में इस की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था. उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी लगातार नएनए प्रयोग कर रहे हैं. कभी किसी आम आदमी से मिलते हैं तो कभी किसी मजदूर से. ऐसे में आज के चर्चित शख्सियत सत्यपाल मलिक, जो कभी नरेंद्र मोदी सरकार के अनुरूप राज्यपाल रहे और जब उन्हें यह लगा कि यह देशहित में नहीं है तो उन्होंने अपनी राह बदल ली.

इंटरव्यू के बाद बवाल

ऐसी शख्सियत सत्यपाल मलिक से राहुल गांधी ने नया प्रयोग करते हुए यूट्यूब पर एक साक्षात्कार लिया और उसे अपने अधिकृत चैनल पर प्रसारित कर दिया. इस साक्षात्कार को 25 अक्तूबर, 2023 को राहुल गांधी ने अपने यूट्यूब हैंडल पर शेयर किया है जिसे लाखों लोगों ने देखा. हम आप को इस बातचीत में क्या कुछ खुलासा हुआ संक्षिप्त में बता रहे हैं :

जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने बातचीत के दौरान यह दावा किया, “मौजूदा केंद्र सरकार वापसी नहीं कर सकेगी.” उन्होंने कहा,”जम्मू कश्मीर का पूर्ण राज्य का दरजा बहाल कर के चुनाव कराया जाना चाहिए. आप सुरक्षा बलों की मदद से लोगों का दिल जीतें और उस के बाद आप कुछ भी कर सकते हैं. यहां के लोग मिलनसार हैं. अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से लोगों को उतना नुकसान नहीं हुआ, जितना पूर्ण राज्य का दरजा छीनने से हुआ है.”

मलिक ने साक्षात्कार में कहा, “मैं केवल यह चाहता हूं कि पूर्ण राज्य का दरजा बहाल किया जाए और चुनाव कराए जाएं. आखिरकार (केंद्रीय गृहमंत्री) अमित शाह ने संसद में यही आश्वासन दिया था.”

इस पर राहुल गांधी ने कहा कि अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान जम्मू में लोगों को इस तथ्य से अधिक आहत पाया कि राज्य को केंद्रशासित प्रदेश में बदल दिया गया.

मलिक ने कहा, “मैं ने कई बार केंद्र से राज्य का दरजा बहाल करने के बारे में पूछा लेकिन अकसर जवाब मिलता था कि जब सबकुछ ठीक चल रहा है तो इस की क्या जरूरत है?”

मलिक ने कहा, “जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद लौट रहा है व राजौरी एवं घाटी के ऊपरी इलाकों में हमले देखे जा रहे हैं.”

वापसी नहीं होगी मोदी सरकार की

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष द्वारा 2019 के पुलवामा हमले पर अपने विचार पूछे जाने पर सत्यपाल मलिक ने कहा, “मैं ने कभी नहीं कहा कि उस समय सत्ता में मौजूद लोग हमले के लिए जिम्मेदार थे, लेकिन हां, उन्होंने हमले का इस्तेमाल अपने राजनीतिक लाभ के लिए किया.”

सनद रहे कि जम्मू और श्रीनगर के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित पुलवामा के पास 14 फरवरी, 2019 को एक आतंकवादी ने अपनी विस्फोटकों से लदी कार से सीआरपीएफ जवानों की बस में टक्कर मार दी थी, जिस में 40 जवानों की मौत हो गई थी.

सत्यपाल मलिक ऐसे राजनेता हैं जो नरेंद्र मोदी पर लगातार खुल कर अपनी बात कह रहे हैं. उन्होंने उस घटना को याद करते हुए कहा, “मुझ से उस समय इस पर टिप्पणी नहीं करने के लिए कहा गया था और उस समय मैं ने इस बात की पैरवी की थी कि घटना के बाद कुछ लोगों पर काररवाई होनी चाहिए.”

राहुल गांधी ने यह सवाल किया,”इतना सारा विस्फोटक कैसे आ सकता है?” तो मलिक ने कहा,”यह पाकिस्तान से आया था लेकिन इस का कभी पता नहीं चला.”

उपेक्षित है पिछड़ा वर्ग

राहुल ने मीडिया में अन्य पिछड़ा वर्ग, दलित या आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधित्व के बारे में भी बात की, जिस पर मलिक ने कहा, “मीडिया उद्योग में आरक्षण होना चाहिए.”

मणिपुर की जातीय हिंसा की पृष्ठभूमि में मेघालय के राज्यपाल के रूप में पूर्वोत्तर में अपने अनुभवों के बारे में पूछे जाने पर मलिक ने कहा कि मणिपुर में इस सरकार की पूरी विफलता है. मुख्यमंत्री कुछ नहीं कर रहे हैं और उन्हें हटाया भी नहीं जा रहा है. मणिपुर की स्थिति पर अपनी बात रखते हुए मलिक ने दावा किया कि और 6 महीने की बात है. मैं लिख कर दे रहा हूं कि ये लोग (नरेंद्र मोदी) सत्ता में नहीं आएंगे.

मणिपुर पर विफल रही सरकार

राहुल गांधी ने दावा किया कि अपने मणिपुर दौरे के दौरान पाया कि राज्य 2 हिस्सों में बंट गया है. कांग्रेस नेता के इस सवाल पर कि क्या देश आज 2 विचारधाराओं आरएसएस और गांधीवादी में बंटा हुआ है।

मलिक ने कहा,”भारत तभी बचेगा जब देश उदार हिंदुत्व की विचारधारा के साथ आगे बढ़ेगा. यह बात गांधीजी ने भी कही थी. इस देश को गांधीजी से बेहतर कोई नहीं समझ सका. उदार हिंदू मत के बिना देश बचेगा नहीं बल्कि बिखर जाएगा. सभी को एकता के साथ शांति से रहना होगा.”

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सिद्ध सीरीज के अधिकार

बाल गंगाधर तिलक की गर्जना थी कि, ‘स्वतंत्रता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे ले कर रहूंगा.’ महाराणा प्रताप ने कहा था, ‘गुलामी की हलवापूरी से स्वतंत्रता की घास बेहतर है.’ हमारे संविधान ने हमें कुछ मूलभूत अधिकार दिए हैं- समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार आदि.

सरकारी नौकर नौकर नहीं, ‘साहब’ या ‘बाबू साहब’ हो जाता है, मतलब कि उस के पर निकल आते हैं. उस के कुछ ‘नौकरी सिद्ध अधिकार’ पैदा हो जाते हैं. जैसे कि कार्यालय देर से आने परंतु जल्दी छोड़ देने का अधिकार, काम करने के स्थान पर मक्कारी करने का अधिकार, चाय, समोसे, आलूबड़े हेतु कई बार अपनी सीट छोड़ देने का अधिकार आदि.

कुछ लोग भ्रष्टाचार को भी एक अधिकार मान लेते हैं और बिना इस के कोई काम करना हेठी मानते हैं. सरकारी पद पर कब्जा हो जाने के बाद आदमी इतना गिर जाता है कि हर मामले में ऊपर का स्कोप देख कर काम करता है. ऐन काम के मौके पर गायब हो जाने का सिद्ध अधिकार होता है. हां, कर्मचारियों को एक और अधिकार होता है- हड़ताल का, भले ही काम ढेले भर का न हो लेकिन हड़ताल का काम वे कभी भी कर सकते हैं.

पहले ही दिन से काम का नहीं लेकिन हड़ताल का काम वे कभी भी कर सकते हैं. पहले ही दिन से काम का नहीं, हड़ताल का जन्मसिद्ध अधिकार हो जाता है. इस के बिना तो सूनासूना सा लगता है. वैसे वे हड़ताल कर के माहौल की नीरसता को दूर करने का एक जरूरी काम करते हैं.

मूलभूत अधिकार और नौकरीसिद्ध अधिकारों के अलावा कई अन्य जमातों के भी सिद्ध अधिकार होते हैं जो कि उन्हें जन्म से या कि पेशेगत अर्जित हो जाते हैं. जैसे, दूध वाले को दूध में पानी मिलाने का जन्मसिद्ध अधिकार होता है. दूध का कितना अधिक रेट आप देने को तैयार हों या दे रहे हों, उस के पानी मिलाने के रेट में कोई कमी नहीं आने की है.

सुप्रीम कोर्ट जन्मसिद्ध अधिकारों की बातें तो करती है पर इन वास्तविक जन्मसिद्ध अधिकारों की नहीं जो नेताओं, ईडी, पुलिस, सरकारी नौकरों, कौरपोरेटों के पास हैं. आप ने घर में किसी प्लंबर को या कारपैंटर को या मेसन या इसी तरह के अन्य किसी शख्स को काम पर लगाया है तो दोतीन दिन तो वह बहुत अच्छे से काम करता है, फिर चौथे दिन वह आप का काम अधूरा छोड़ कर अचानक गायब हो जाता है. 4 दिनों बाद कारपैंटर मेसन या प्लंबर आएगा हेंहें करते हुए और ऐसा नायाब बहाना मारेगा कि आप 4 दिनों से भरे रहने के बावजूद अपने को उस के सामने खाली नहीं कर पाते हैं.

बात, दरअसल इतनी सी है कि एक जगह का काम एक बार में पूरा न करना उस का जन्मसिद्ध अधिकार है और इसी अधिकार में ही बीच में ही कहीं दूसरी जगह का काम भी हाथ में ले लेना निहित है फुल बेशर्मी से. वैसे, कोई बहस का बिंदु नहीं है, यह भी उस का जन्मसिद्ध अधिकार है कि वह यहां भी काम समय पर पूरा नहीं करता है और जल्दी ही कोई तीसरा काम हाथ में ले लेता है. यदि कोई चौथा काम भी मिल जाए तो वह फटाक से बीमार हो सकता है या किसी नजदीकी रिश्तेदार की मौत की घोषणा कर, जहां काम बंद कर दिया गया है उन को बहला सकता है.

अब हम और आप इत्ती सी बात ही सम?ा पाए कि वह काम तो आप का करना चाहता है लेकिन उस का यह जन्मसिद्ध अधिकार आड़े आ जाता है. गंगू को तो लगता है कि जन्मसिद्ध अधिकारों का एक डीएनए विकसित हो गया है, ऐसे संस्कारी लोगों में जो उन्हें मजबूर कर देता है काम बीच में छोड़ कर नए काम हाथ में ले लेने हेतु. वह एकसाथ कई लोगों को रुलाता और बहलाता रहता है. इतना तो प्याज के दाम बढ़ने पर वह भी नहीं रुलाती होगी या इतना बहलाव तो अच्छे दिनों की उम्मीद ने भी नहीं किया होगा.

शिक्षक का जन्मसिद्ध अधिकार है ट्यूशन पढ़ाना और इस के लिए वह सारे पापड़ बेलता है. प्रायोगिक परीक्षाओं में अच्छे नंबरों का आश्वासन विद्यार्थी को मिल जाता है, बच्चे के पढ़ाई में कमजोर होने, होमवर्क न करने की बात पेरैंट्स को नमकमिर्च मिला कर बताई जाती है और इस सब का उपचार होता है उस का जन्मसिद्ध अधिकार कि 40 छात्रों की संख्या वाली क्लास से कम से कम 20 बच्चे तो उस के यहां के ट्यूशन के सैशन में आएं ही आएं.

सरकारी डाक्टर का जन्मसिद्ध अधिकार है अस्पताल की व्यवस्था बिगाड़ने में अपना अधिकतम आवश्यक योगदान देना. यहां वह कुछ कर के नहीं, न कर के योगदान देता है, जैसे यदि दांत का डाक्टर है तो वह कहेगा कि डैंटलचेयर नहीं है वह क्या करे. सर्जन है तो कहेगा कि ओटी के औजार पुराने जंग लगे हैं और अपनी निजी प्रैक्टिस को अस्पताल की चरमराई व्यवस्था के सपोर्ट से फलनेफूलने देना.

पत्नी जमात को जन्मसिद्ध अधिकार है, वैसे, उस का जन्म पति के घर से दूसरे घर में होता है. लेकिन उसे यह अधिकार ब्याह के बाद मिल जाता है कि पति को टाइट रखे, उस की खैरखबर ले, उस के व्हाट्सऐप व अन्य ऐपों पर नजर रखे, उस के बैंकबैलेंस की टोह लेती रहे. पत्नी दांपत्य जीवनरूपी विशाल क्षेत्र में पति की हरकतों की निगरानी करने वाली एक तरह की टोही विमान है.

अब डाक्टर की बात आई है तो वकील की तो आएगी ही. कहा भी गया है कि डाक्टर व वकील में केवल इतना सा अंतर है कि एक की गलती जमीन के छह फुट ऊपर लटका देती है और दूसरे की जमीन के 6 फुट नीचे सुला देती है. वकील का जन्मसिद्ध अधिकार होता है मुकदमे को दोतीन पीढि़यों तक खींच कर ले जाना. वे बहुत सामाजिक व्यक्ति होते हैं. पारिवारिक तानेबाने को काफी तवज्जुह देते हैं. हां, वकीलों का नया सिद्ध अधिकार विकसित हो रहा है किसी चर्चित दोषी की पिटाई करने के केस के फैसले के पहले ही अपना फैसला कर लेना.

सुनार को जन्मसिद्ध अधिकार है आप के गहनों, जोकि आप उस के पास सुधरवाने या उजलवाने ले गए हों, में हाथ की सफाई दिखाने का. उस में से कुछ सोना चुरा लेने का. सुनार भाई बुरा नहीं मानेंगे. दीवाली आने वाली है और इतना तो चलता है दाल में नमक के बराबर और यहां तो हर आदमी चोरी में लगा है, नहीं तो, यह कविता कहां से बनती. ‘रोटी के चोर गुनाहगार हो गए और सोने के चोर साहूकार हो गए…’

यदि कोई कवि आप के साथ रेल या बस में यात्रा कर रहा हो तो उस का जन्मसिद्ध अधिकार है कि आप को आप के न चाहने पर भी अपनी कविता की चंद लाइनें तो आप के सामने पेश कर ही दे. सामने क्या, यदि आप पिछवाड़ा कर के भी खड़े हो जाएं तो भी वह कविता तो सुना कर ही मानेगा और बाद में दाद भी आप से ले लेगा. नेताजी का जन्मसिद्ध अधिकार आप भूले जा रहे हैं. यदि भीड़ हो जाए थोड़ी सी भी तो वे देश व जनता की चिंता पर लंबा भाषण देने से चूकते नहीं हैं. जब तक दस बार इशारा न किया जाए, बैठने को तैयार नहीं होते हैं. वे कहते हैं कि हम जनता की सेवा करने आए हैं, बैठ कर सेवा नहीं होती.

भारतीय जनता पार्टी का जन्मसिद्ध अधिकार है- ‘भारत माता की जय’ बुलवाना चाहे उसे यह मालूम हो न हो कि यह माता पैदा कब और कैसे हुई और ‘भारत पिता’ कहां है. उसे यह भी अधिकार है कि 4 राज्यों में शून्य से 4 सीटें सफलता से प्राप्त कर के अपने को तमिलनाडु, केरल, पुद्दुचेरी और पश्चिम बंगाल में छा जाना कह सके.

गूंगी गूंज : एक मांं की बेबसी की कहानी

“रिमझिम के तराने ले के आई बरसात, याद आई किसी से वो पहली मुलाकात,” जब भी मैं यह गाना सुनती हूं, तो मन बहुत विचलित हो जाता है, क्योंकि याद आती है, पहली नहीं, पर आखिरी मुलाकात उस के साथ. आज फिर एक तूफानी शाम है. मुझे सख्त नफरत है वर्षा  से. वैसे तो यह भुलाए न भूलने वाली बात है, फिर भी जबजब वर्षा होती है तो मुझे तड़पा जाती है.

मुझे याद आती है मूक मीनो की, जो न तो मेरे जीवन में रही और न ही इस संसार में. उसे तकदीर ने सब नैमतों से महरूम रखा था. जिन चीजों को हम बिलकुल सामान्य मानते हैं, वह मीनो के लिए बहुत अहमियत रखती थीं. वह मुंह से तो कुछ नहीं बोल सकती थी, पर उस के नयन उस के विचार प्रकट कर देते थे.

कहते हैं, गूंगे की मां ही समझे गूंगे की बात. बहुतकुछ समझती थी, पर मैं अपनी कुछ मजबूरियों के कारण मीनो को न चाह कर भी नाराज कर देती थी.

बारिश की पहली बूंद पड़ती और वह भाग कर बाहर चली जाती और खामोशी से आकाश की ओर देखती, फिर नीचे पांव के पास बहते पानी को, जिस में बहती जाती थी सूखें पत्तों की नावें. ताली मार कर खिलखिला कर हंस पड़ती थी वह.

बादलों को देखते ही मेरे मन में एक अजीब सी उथलपुथल हो जाती है और एक तूफान सा उमड़ जाता है जो मुझे विचलित कर जाता है और मैं चिल्ला उठती हूं मीनो, मीनो…

मीनो जन्म से ही मानसिक रूप से अविकसित घोषित हुई थी. डाक्टरों की सलाह से बहुत जगह ले गई, पर कहीं उस के पूर्ण विकास की आशा नजर नहीं आई.

मीनो की अपनी ही दुनिया थी, सब से अलग, सब से पृथक. सब सांसारिक सुखों से क्या, वह तो शारीरिक व मानसिक सुख से भी वंचित थी. शायद इसीलिए वह कभीकभी आंतरिक भय से प्रचंड रूप से उत्तेजित हो जाती थी. सब को उस का भय था और उसे भय था अनजान दुनिया का, पर जब वह मेरे पास होती तो हमेशा सौम्य, बहुत शांत व मुसकराती रहती.

बहुत कोशिश की थी उस रोज कि मुझे गुस्सा न आए, पर 6 वर्षों की सहनशीलता ने मानसिक दबावों के आगे घुटने टेक दिए थे और क्रोध सब्र का बांध तोड़ता हुआ उमड़ पड़ा था. क्या करती मैं? सहनशीलता की भी अपनी सीमाएं होती हैं.

एक तरफ मीनो, जिस ने सारी उम्र मानसिक रूप से 3 साल का ही रहना था और दूसरी ओर गोद में सुम्मी. दोनों ही बच्चे, दोनों ही अपनी आवश्यकताओं के लिए मुझ पर निर्भर.

उस दिन एहसास हुआ था मुझे कि कितना सहारा मिलता है एक संयुक्त परिवार से. कितने ही हाथ होते हैं आप का हाथ बंटाने को और इकाई परिवार में स्वतंत्रता के नाम पर होती है आत्मनिर्भरता या निर्भर होना पड़ता है मनमानी करती नौकरानी पर. नौकर मैं रख नहीं सकती थी, क्योंकि मेरी 2 बेटियां थीं और कोई उन पर बुरी नजर नहीं डालेगा, इस की कोई गारंटी नहीं थी.

आएदिन अखबारों में ऐसी खबरें छपती रहती हैं. मीनो के साथसाथ मेरा भी परिवार सिकुड़ कर बहुत सीमित हो गया था. संजीव, मीनो, सुम्मी और मैं. कभीकभी तो संजीव भी अपने को उपक्षित महसूस करते थे. हमारी कलह को देख कर कई लोगों ने मुझे सलाह दी कि मीनो को मैं पागलखाने में दाखिल करा दूं और अपना ध्यान अपने पति और दूसरी बच्ची पर पूरी तरह दूं, पर कैसे करती मैं
मीनो को अपने से दूर. उस का संसार तो मैं ही थी और मैं नहीं चाहती थी कि उसे कोई तकलीफ हो, पर अनचाहे ही सब तकलीफों से छुटकारा दिला दिया मैं ने.

उस दिन मेरा और संजीव का बहुत झगड़ा हुआ था. फुटबाल का ‘विश्व कप’ का फाइनल मैच था. मैं ने संजीव से सुम्मी को संभालने को कहा, तो उस ने मना तो नहीं किया, पर बुरी तरह बोलना शुरू कर दिया.

यह देख मुझे बहुत गुस्सा आया और मैं ने भी उलटेसीधे जवाब दे दिए. फुटबाल मैच में तो शायद ब्राजील जीता था, परंतु उस मौखिक युद्ध में हम दोनों ही पराजित हुए थे. दोनों भूखे ही लेट गए और रातभर करवटें बदलते रहे.

सुबह भी संजीव नाराज थे. वे कुछ बोले या खाए बिना दफ्तर चले गए. जैसेतैसे बच्चों को कुछ खिलापिला कर मैं भी अपनी पीठ सीधी करने के लिए लेट गई. हलकीहलकी ठंडक थी. मैं कंबल ले कर लेटी ही थी कि मीनो, जो खिलौने से खेल रही थी, मेरे पास आ गई. मैं ने हाथ बाहर निकाल उसे अपने पास लिटाना चाहा, पर मीनो बाहर बारिश देखना चाहती थी.

मैं ने 2-3 बार मना किया, मुझे डर था कि कहीं मेरी ऊंची आवाज सुन कर सुम्मी न जाग जाए. उस समय मैं कुछ भी करने के मूड में नहीं थी. मैं ने एक बार फिर मीनो को गले लगाने के लिए बांह आगे की और उस ने मुझे कलाई पर काट लिया.

गुस्से में मैं ने जोर से उस के मुंह पर एक तमाचा मार दिया और चिल्लाई, ‘‘जानवर कहीं की. कुत्ते भी तुम से ज्यादा वफादार होते हैं. पता नहीं कितने साल तेरे लिए इस तरह काटने हैं मैं ने अपनी जिंदगी के.’’ कहते हैं, दिन में एक बार जबान पर सरस्वती जरूर बैठती है. उस दिन दुर्गा क्यों नहीं बैठी मेरी काली जबान पर. अपनी तलवार से तो काट लेती यह जबान.

थप्पड़ खाते ही मीनो स्तब्ध रह गई. न रोई, न चिल्लाई. चुपचाप मेरी ओर बिना देखे ही बाहर निकल गई मेरे कमरे से और मुंह फेर कर मैं भी फूटफूट कर रोई थी अपनी फूटी किस्मत पर कि कब मुक्ति मिलेगी आजीवन कारावास से, जिस में बंदी थी मेरी कुंठाएं. किस जुर्म की सजा काट रही हैं हम मांबेटी?

एहसास हुआ एक खामोशी का, जो सिर्फ आतंरिक नहीं थी, बाह्य भी थी. मीनो बहुत खामोश थी. अपनी आंखें पोंछती मैं ने मीनो को आवाज दी. वह नहीं आई, जैसे पहले दौड़ कर आती थी. रूठ कर जरूर खिलौने पर निकाल रही होगी अपना गुस्सा.

मैं उस के कमरे में गई. वहां का खालीपन मुझे दुत्कार रहा था. उदासीन बटन वाली आंखों वाला पिंचू बंदर जमीन पर मूक पड़ा मानो कुछ कहने को तत्पर था, पर वह भी तो मीनो की तरह मूक व मौन था.

घबराहट के कारण मेरे पांव मानो जकड़ गए थे. आवाज भी घुट गई थी. अचानक अपने पालतू कुत्ते भीरू की कूंकूं सुन मुझे होश सा आया. भीरू खुले दरवाजे की ओर जा कूंकूं करता, फिर मेरी ओर आता. उस के बाल कुछ भीगे से लगे.

यह देख मैं किसी अनजानी आशंका से भयभीत हो गई. कितने ही विचार गुजर गए पलछिन में. बच्चे उठाने वाला गिरोह, तेज रफ्तार से जाती मोटर कार का मीनो को मारना.

भीरू ने फिर कूंकूं की तो मैं उस के पीछे यंत्रवत चलने लगी. ठंडक के बावजूद सब पेड़पौधे पानी की फुहारों में झूम रहे थे. मेरा मजाक उड़ा रहे
थे. मानव जीवन पा कर भी मेरी स्थिति उन से ज्यादा दयनीय थी.

भीरू भागता हुआ सड़क पर निकल गया और कालोनी के पार्क में घुस गया. मैं उस के पीछेपीछे दौड़ी. भीरू बैंच के पास रुका. बैंच के नीचे मीनो सिकुड़ कर लेटी हुई थी. मैं ने उसे उठाना चाहा, पर वह और भी सिकुड़ गई. उस ने कस कर बैंच का सिरा पकड़ लिया. मैं बहुत झुक नहीं सकती. हैरानपरेशान मैं इधरउधर देख रही थी, तभी संजीव को अपनी ओर आते देखा.

संजीव ने घर फोन किया, लेकिन घंटी बजती रही, इसलिए परेशान हो कर दफ्तर से घर आया था. खुले दरवाजे व सुम्मी को अकेला देख बहुत परेशान था कि मिसेज मेहरा ने संजीव को मेरा पार्क की तरफ भागने का बताया. वे भी अपना दरवाजा बंद कर आ रही थीं.

संजीव ने झुक कर मीनो को बुलाया तो वह चुपचाप बाहर घिसट कर आ गई. मीनो को इस प्रव्यादेश का जिंदगी में सब से बड़ा व पहला धक्का लगा था. पर मैं खुश थी कि कोई और बड़ा हादसा नहीं हुआ और मीनो सुरक्षित मिल गई.

घर आ कर भी वह वैसे ही संजीव से चिपटी रही. संजीव ने ही उस के कपड़े बदले और कहा, ‘‘इस का शरीर तो तप रहा है. शायद, इसे बुखार है,” मैं ने जैसे ही हाथ लगाना चाहा, मीनो फिर संजीव से लिपट गई और सहमी हुई अपनी बड़ीबड़ी आंखों से मुझे देखने लगी.

मैं ने उसे प्यार से पुचकारा, “आ जा बेटी, मैं नही मारूंगी,” पर उस के दिमाग में डर घर कर गया था. वह मेरे पास नहीं आई.

”ठंड लग गई है. गरम दूध के साथ क्रोसीन दवा दे देती हूं,“ मैं ने मायूस आवाज में कहा.

“सिर्फ दूध दे दो. सुबह तक बुखार नहीं उतरा, तो डाक्टर से पूछ कर दवा दे देंगे,” संजीव का सुझाव था.

मैं मान गई और दूध ले आई. थोड़ा सा दूध पी मीनो संजीव की गोद में ही सो गई. अनमने मन से हम ने खाना खाया. सुबह का तूफान थम गया था. शांति थी हम दोनों के बीच.

संजीव ने प्यार भरे लहजे से पूछा, “उतरा सुबह का गुस्सा?” उस का यह पूछना था और मैं रो पड़ी.

“पगली सब ठीक हो जाएगा?” संजीव ने प्यार से सहलाया. मेरी रुलाई और फूटी. मन पर एक पत्थर का बोझ जो था मीनो को तमाचा मारने का.

मीनो सुबह उठी तो सहज थी. मेरे उठाने पर गले भी लगी. मैं खुश थी कि मुझे माफ कर वह सबकुछ भूल गई है. मुझे क्या पता था कि उस की माफी ही मेरी सजा थी.

मीनो को बुखार था, इसलिए हम उसे डाक्टर के पास ले गए. डाक्टर ने सांत्वना दी कि जल्दी ही वह ठीक हो जाएगी, पर मानो मीनो ने न ठीक होने की जिद पकड़ ली हो. 4 दिन बाद बुखार टूटा और मीनो शांति से सो गई- हमेशाहमेशा के लिए, चिरनिद्रा में. मुक्त कर गई मुझे जिंदगीभर के बंधनों से. और अब जब भी बारिश होती है, तो मुझे उलाहना सा दे जाती है और ले आती है मीनो का एक मूक संदेश, ”मां तुम आजाद हो मेरी सेवा से. मैं तुम्हारी कर्जदार नहीं बनना चाहती थी. सब ऋणों से मुक्त हूं मैं.

‘‘मीनो मुझे मुक्त कर इस सजा से. यादों के साथ घुटघुट कर जीनेमरने की सजा.”

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