विपक्ष के ‘इंडिया’ गठबंधन का पहला उद्देश्य मोदी सरकार के निरकुंश होते शासन पर लगाम लगाने का था. आम आदमी पार्टी के मुद्दे को ले कर विपक्ष एकजुट रहा. सुप्रीम कोर्ट तक ईडी और सीबीआई के निरकुंश होते कामों की बात पहुंचाई गई. ममता बनर्जी का मसला हो या महुआ मोइत्रा का, विपक्ष ने एकजुटता दिखाने का काम किया. बड़ी पार्टी होने के नाते कांग्रेस ने हर मुद्दे पर अगुवाई भी की.

मोदी-अडानी के मसले पर लोकसभा में खुल कर सवाल पूछे. राहुल गांधी को लोकसभा की सदस्यता तक गंवानी पड़ी पर वह झुके नहीं. उस समय इंडिया गठबंधन पूरी ताकत से सत्ता के सामने खड़ा था. दोतीन मीटिंगों में ही लगने लगा था कि इंडिया गठबंधन मोदी के बढ़ते रथ की लगाम थाम लेगा. अचानक 3 राज्यों में कांग्रेस के चुनाव हारते ही इंडिया गठबंधन के तमाम दल कांग्रेस पर ही हमलावर हो गए. ऐसा लग रहा है जैसे इंडिया गठबंधन का उद्देश्य विधानसभा चुनाव लड़ना और जीतना था.

सत्ता से अधिक मत है विपक्ष के पास

लोकतंत्र में चुनावी जीत और हार राजनीति का एक हिस्सा है. इसी तरह से सत्ता और विपक्ष भी सरकार का एक हिस्सा है. इन चुनावों में भाजपा को 4 करोड़ 81 लाख 29 हजार 325 वोट और कांग्रेस को 4 करोड़ 90 लाख 69 हजार 462 वोट मिले हैं. क्या सत्ता पक्ष केवल अपने वोटर के लिए काम करेगा? ऐसा नहीं होता. सरकार सब की होती है. जिन लोगों ने वोट दे कर सरकार बनाई उन को घमंड नहीं होना चाहिए. जिन लोगों ने वोट नहीं दिया उन को भी घबराना नहीं चाहिए.

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