Download App

माहेला जयवर्धने ने अपने चहेते ‘रो’ से मुंबई इंडियंस की कप्तानी क्यों छीन ली

फिलहाल रोहित शर्मा दक्षिण अफ्रीका में टैस्ट मैच खेलने गए हुए हैं, पर एक दूसरी खबर यह भी है कि अब उन से आईपीएल की मुंबई इंडियंस टीम की कप्तानी छीन ली गई है. मुंबई इंडियंस को 5 बार आईपीएल का खिताब दिला चुके ‘मुंबईकर’ रोहित शर्मा की जगह हार्दिक पंड्या को इस टीम की कप्तानी सौंपी गई है, जिस से रोहित शर्मा के फैन बड़े गुस्से में दिखाई दे रहे हैं. याद रहे कि ये वही रोहित शर्मा हैं, जिन्होंने हालिया वनडे वर्ल्ड कप में भारतीय टीम को लगातार 10 मैच जितवाए थे. हालांकि, हम फाइनल मुकाबले में आस्ट्रेलियाई टीम से हार गए थे.

अब यह मुद्दा बड़ा गरम हो चुका है कि रोहित शर्मा के साथ ऐसा क्यों किया गया है? तो इस सवाल का जवाब दिया माहेला जयवर्धने ने, जो मुंबई इंडियंस टीम के ग्लोबल डायरैक्टर हैं और रोहित को ‘रो’ कह कर बुलाते हैं. ‘जियो सिनेमा’ के साथ एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “यह एक मुश्किल फैसला था. ईमानदारी से कहूं तो यह इमोशनल डिसीजन था. हम क्रिकेट प्रेमियों की भावनाओं का कद्र करते हैं. मुझे लगता है कि हर कोई भावुक है और हमें इस का भी सम्मान करना होगा. लेकिन, साथ ही एक फ्रैंचाइजी के रूप में आप को ऐसे फैसले लेने होते हैं. युवा पीढ़ी को गाइड करने के लिए ‘रो’ (रोहित शर्मा) का औन ऐंड औफ फील्ड हमारे साथ जुड़े रहना काफी खास है.”

माहेला जयवर्धने कोई भी दलील दें, पर रोहित शर्मा के फैन सोशल मीडिया पर इस फैसले को सही नहीं मान रहे हैं. पूर्व क्रिकेटर इरफान पठान ने सोशल मीडिया पर इस बारे में बेबाक बोल कर सनसनी मचा दी है.

उन्होंने कहा, “रोहित शर्मा का जो कद मुंबई इंडियंस में है, वह उसी तरह का है जो सीएसके में धोनी का है. रोहित ने मुंबई टीम को बतौर कप्तान बनाया है. टीम को बनाने में रोहित ने काफी मेहनत की है. वे टीम मीटिंग में जाते हैं और अपनी बात रखते हैं, रणनीति बनाते हैं. मैं रोहित को गेंदबाज का कप्तान मानता हूं, जो सालोंसाल टीम को आगे ले कर आए हैं. पिछले साल जो टीम थी कितने लोगों ने माना होगा कि यह टीम क्वालिफाई करेगी. बतौर कप्तान रोहित ने टीम को क्वालिफाई करवाया. जो गेंदबाजी थी मुंबई की हलकी थी. जोफ्रा आर्चर नहीं खेल रहे थे. बुमराह भी टीम में नहीं थे, इस के बाद भी रोहित ने टीम को क्वालिफाई करवाया.”

हार्दिक पंड्या को कप्तानी सौंपने को ले कर इरफान पठान ने कहा, “मुझे लगता है कि मुंबई इंडियंस के पास सूर्यकुमार यादव मौजूद थे. बुमराह भी टीम में मौजूद थे. अब यहां हार्दिक पंड्या के लिए सब से बड़ा चलैंज यह रहेगा कि इन सब के साथ, रोहित के साथ, सूर्या के साथ, बुमराह के साथ, जो अपनेआप में एक लीडर हैं… बुमराह ने भी कप्तानी की है… बतौर कप्तान हार्दिक के सामने सब से बड़ा चैलेंज इन सब को साथ में ले कर चलने का होगा. मैं बता रहा हूं कि हार्दिक के लिए मुंबई की कप्तानी करना आसान नहीं होगा.”

इरफान पठान की बात में दम है क्योंकि अगर रोहित शर्मा इस फैसले से थोड़े भी खफा हैं, वे इस कि झलक आईपीएल मैचों में जरूर दिखा देंगे.

मेरे पति का अफेयर चल रहा है पर फिर भी वो मुझे तलाक नहीं दे रहे हैं, बताएं कि मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं 25 वर्षीय विवाहित महिला हूं. विवाह को 2 वर्ष हो गए हैं. लेकिन अब मुझे अपने पति के बारे में जो बातें पता चल रही हैं, अगर मुझे पहले पता होती तो मैं उन से शादी कभी न करती. मेरी केवल बहनें हैं कोई भाई नहीं है और पति का कहना है कि उन्होंने मेरे पिता के कहने पर मुझ से इसलिए विवाह किया ताकि मेरे गांव और शहर दोनों की संपत्ति उन के नाम हो जाए.

मेरे पति मुझ पर मायके से पैसा लाने के लिए दबाव डालते हैं और नशे में मुझे मारतेपीटते भी हैं. उन के खुद के अन्य महिलाओं से अफेयर हैं पर वे मुझ पर शक करते हैं जबकि मेरा ऐसा कोई संबंध नहीं है. वे मुझ पर हमेशा नजर रखते हैं और घर से बाहर नहीं जाने देते. कहते हैं, ‘‘मैं तुम्हें तलाक कभी नहीं दूंगा. तुम्हें ऐसे ही रहना होगा.’’ मैं बीए कर चुकी हूं और एमए कर रही हूं. मैं इतनी सक्षम हूं कि अकेले रह सकती हूं लेकिन मेरे पति मुझे तलाक नहीं देना चाहते. मैं बहुत परेशान हूं. मैं ऐसे इंसान के साथ और नहीं रह सकती. मैं अकेले रहना चाहती हूं. क्या करूं सलाह दें.

जवाब

आप की सारी बातों से पता चल रहा है कि आप के पति ने संपत्ति के लालच में आप से विवाह किया है और उन्हें आप से कोई लगाव या प्यार नहीं है. उन का मकसद सिर्फ आप को परेशान करना है. अगर आप सचमुच उन से छुटकारा पाना चाहती हैं तो या तो आप बिना तलाक के भी पति से अलग रह सकती हैं. इस के अलावा आप का इस तरह उन से अलग रहना कानूनन तलाक का आधार नहीं माना जाएगा. इस के अलावा अगर आप चाहें तो पति के क्रूरतापूर्ण व्यवहार के आधार पर न्यायिक पृथक्करण करवा सकती हैं या तलाक ले सकती हैं. अगर आप तलाक के लिए कोर्ट में अर्जी देती हैं तो कोर्ट एक खास समय के लिए कानूनी अलगाव की मंजूरी देता है ताकि पतिपत्नी अपने रिश्ते के बारे में पूर्ण विचार कर सकें. इस अवधि में आप दोनों कानूनन विवाहित रहेंगे. लेकिन इस अवधि के बाद भी आप का निर्णय अलग होने का होगा तो कानून के अंतर्गत आप की तलाक की याचिका पर सुनवाई होगी.

दिल को स्वस्थ और मजबूत रखने के लिए अपनाएं ये टिप्स

हैल्दी डाइट के सामने कौनकौन सी समस्याएं हैं, यह आम प्रश्न है. इस का जवाब ढूंढ़ा जाना चाहिए. आज हृदय रोग, कैंसर, डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, किडनी की बीमारियां बहुत तेजी से फैल रही हैं और ये सभी किसी न किसी रूप में डाइट यानी खानपान से जुड़ी हैं.

दरअसल, आजकल लोग क्राइसिस मैनेजर हो गए हैं क्योंकि लोग तब तक अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिए कठोर कदम नहीं उठा पाते जब तक कि पानी सिर के ऊपर से न गुजर जाए. बाजार में इन दिनों अच्छे तथा संतुलित आहार प्राप्त करना आसान नहीं है जबकि स्नैक्स, प्रोसैस्ड फूड आसानी से बाजारों में सर्वसुलभ हैं. फल तथा सब्जियों को रखने व बनाने की समस्या है. इस के लिए रेफ्रिजरेटर की जरूरत पड़ती है. यही कारण है कि बदलती फूड हैबिट, खानपान में अनियमितता, भागमभाग की जिंदगी, समय का अभाव, मानसिक दबाव एवं तनाव के कारण युवा पीढ़ी तरहतरह की मानसिक व शारीरिक बीमारियों का शिकार हो रही है. इन में हृदय रोग भी एक है. पहले उम्रदराज लोगों और अधेड़ावस्था में ही हृदय रोग के होने की शिकायत मिलती थी किंतु अब तो 20-25 साल के युवकयुवतियों में भी यह रोग तेजी से फैल रहा है. यदि खानपान, रहनसहन और चालचलन पर ध्यान दिया जाए तो यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं कि हृदय रोग के होने की संभावना घट तो जाएगी साथ ही, हृदय रोगियों को दीर्घायु होने से कोई रोक नहीं सकता.

चिकित्सा विज्ञान ने हृदय रोगियों के लिए रेशेदार फल तथा खाद्य पदार्थों के साथसाथ दूसरी चीजें निर्धारित की हैं जो हृदय को निरोग तथा स्वस्थ रखने में सहायक होती हैं. इन में एंटीऔक्सीडैंट पर विशेष जोर दिया जा रहा है ताकि हृदय रोग खतरनाक स्थिति न ले ले और सर्जरी कराने की जरूरत न पड़े. इन डाइट्स में हाई फाइबर डाइट, लो फैट डाइट, ऐंटीऔक्सीडैंट, हर्बल प्रोडक्ट, लो कार्बोहाइड्रेट और लो प्रोटीन डाइट शामिल हैं.

वजन प्रबंधन

हृदय रोगियों के लिए वजन को नियंत्रित करना जरूरी है. अगर वजन अधिक है और मोटापे के शिकार हैं तो वजन कम करने वाली डाइट लेनी होगी. इस के लिए किसी अच्छे डाइटीशियन से डाइट चार्ट बनवा कर अनुशासनपूर्वक उस का पालन करना जरूरी है.

प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट

वजन कम करने के लिए खानपान में अधिक प्रोटीन तथा कम कार्बोहाइड्रेट का प्रचलन लोकप्रिय हो रहा है. इस से वजन कम होता है. ऐसे खाद्य पदार्थों में वसा को नियंत्रित किया जाता है क्योंकि इस से कैलोरी प्राप्त होती है. आजकल वजन कम करने के लिए फास्ट एनर्जी फूड की भी वकालत की जा रही है. कार्बोहाइड्रेट का सेवन तब किया जाना चाहिए जब अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है, जैसे सुबह या जब ऐक्सरसाइज कर रहे हों. रात में कम ऊर्जा की जरूरत पड़ती है, इसलिए डिनर में कार्बोहाइड्रेट से परहेज किया जाना चाहिए. इस तरह की डाइट के पीछे यह सिद्धांत काम करता है कि प्रोटीन तथा वसा से ऊर्जा धीरेधीरे प्राप्त होती है, इस कारण इस से वजन बढ़ने की संभावना काफी कम होती है. इतना ही नहीं, प्रोटीन का पाचन धीरेधीरे तथा देरी से होता है और कार्बोहाइड्रेट का पाचन अपेक्षाकृत तेजी से होता है, जिस से पेट जल्दी खाली हो जाता है.

कम वसा का सेवन

हृदय रोगियों के लिए कम वसा का सेवन फायदेमंद होता है. इस से एक तो वजन नियंत्रित रहता है, दूसरे, रक्तनलियों में वसा का जमाव नहीं हो पाता. फलस्वरूप हृदय रोगियों को इस से काफी राहत मिलती है. चूंकि वसा से अधिक मात्रा में कैलोरी मिलती है तथा इस का जमाव शरीर के विभिन्न भागों में कार्बोहाइड्रेट तथा प्रोटीन की अपेक्षा ज्यादा होता है इसलिए इस की मात्रा कम कर दी जाए तो अधिक ऊर्जा की बचत हो जाती है. उदाहरण के रूप में यदि वसा की मात्रा 10 ग्राम कर दी जाए तो 900 कैलोरी ऊर्जा की कमी होती है. वजन कम करने के दौरान कार्बोहाइड्रेट तथा प्रोटीन की मात्रा ज्यादा नहीं बढ़ानी चाहिए. बहरहाल, भोजन में वसा की कमी के पीछे मुख्य उद्देश्य रक्त में कोलैस्ट्रौल की मात्रा को कम करना होता है.

ऐंटीऔक्सीडैंट

औक्सीडैंट या फ्री रेडिकल से कई तरह के रोग होते हैं, जैसे कैंसर, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, एथेरो स्कलोरोसिस, मोतियाबिंद, स्ट्रोक, दमा, पैंक्रियाटाइटिस, पार्किंसन डिजीज तथा पेट की बीमारियां. फ्री रेडिकल के शरीर में आने के मुख्य स्रोत तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट, वायु प्रदूषण, एनेस्थेटिक्स, पैस्टिसाइड्स तथा कुछ दवाएं व रेडिएशन हैं. इस के प्रभाव को खत्म करने के लिए ऐसे लोगों को ऐंटीऔक्सीडैंट के सेवन की सलाह दी जाती है. ये विटामिंस हैं जो लवणों तथा दूसरे एजेंट के साथ मिल कर फ्री रेडिकल या औक्सीडैंट के प्रभाव को समाप्त कर देते हैं. शरीर के अंदर इन का निर्माण नहीं होता है. ये हमारे द्वारा खाए गए भोज्य हैं. जब विटामिंस तथा लवण का सेवन ऐंटीऔक्सीडैंट की तरह करते हैं तो ये हृदय व दूसरे शारीरिक अंगों को क्षतिग्रस्त होने से बचाते हैं. सो हर हृदय रोगी को इस का सेवन करना चाहिए. हालांकि हम जानते हैं कि एलडीएल कोलैस्ट्रौल बैड कोलैस्ट्रौल माना जाता है जिस के कारण हृदय रोग होता है. अभी हाल में अनुसंधान से पता चला है कि यह और कुछ नहीं एलडीएल का औक्सीडाइज्ड रूप है जो हृदय की नलियों में जमा हो कर एथरोजेनेसस नामक बीमारी का कारण बनता है. यहां बता दें कि सामान्यतया अनऔक्सीडाइज्ड एलडीएल हृदय रोग पैदा करने में सक्षम नहीं होता है. इसलिए हृदय रोगों को रोकने के लिए 2 बातें मुख्य हैं : एलडीएल कोलैस्ट्रौल की मात्रा को नियंत्रित करना और एलडीएल कोलैस्ट्रौल को औक्सीडाइज होने से बचाना. इस के लिए हृदय रोगियों को विटामिन तथा लवण के साथ ऐंटीऔक्सीडैंट का भी सेवन करना जरूरी है. इस से एलडीएल के औक्सीडाइज होने की संभावना कम होती है.

लवण का सेवन

कुछ ऐसे लवण हैं जो शरीर को सक्रिय, मैटाबोलिज्म तथा हृदय को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी हैं. इन में प्रमुख हैं : क्रोमियम, मैग्नीशियम तथा कैल्शियम. इन की कमी से कई तरह की बीमारियों के होने की संभावना होती है, जैसे क्रोमियम की कमी से इंसुलिन रेजिस्टेंट, हाइपर इंसुलिनेमिया, इंपेयर ग्लूकोज रालटेस तथा हाइपर लिपिडेनिया होने की संभावना होती है. इस की उचित मात्रा का सेवन करने से ये परेशानियां दूर हो जाती हैं. मैग्नीशियम की कमी से कोरोनरी आर्टेरियो, स्कलोरेसिस नामक रक्तनलियों की बीमारियां होती हैं और कैल्शियम की कमी से आट्रेरियो स्कलोरेसिस तथा उच्च रक्तचाप नामक बीमारियां होती हैं. अत: हृदय रोग विशेषज्ञ हृदयरोगियों को कुछ विटामिन जैसे विटामिन-ई, विटामिन-सी के साथ कैल्शियम, सेलेमियम तथा क्रोमियम का सेवन नियमित रूप से करने की सलाह देते हैं.

ऐसे कम करें रिस्क फैक्टर

अधिक मछली खाएं. मछली प्रोटीन तथा दूसरे पोषक तत्त्वों का अच्छा स्रोत है. इस में प्रचुर मात्रा में ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है जो हृदय रोग की संभावना तथा स्ट्रोक को कम करने में सहायक होता है. हरी रेशेदार सब्जियां, फल, जूस तथा मोटे अनाज का सेवन करें. मौसमी फल, हरी सब्जियां, मोटे अनाज आसानी से सुलभ हैं. ये खाने में स्वादिष्ठ तो लगते ही हैं, हृदय रोग से लड़ने में सहायक भी होते हैं.

  1. नियंत्रित वसा का चुनाव करें.
  2. कम वसा का सेवन करें.
  3. सैचुरेटेड फैट का त्याग करें.
  4. अनसैचुरेटेड फैट का चुनाव करें.
  5. प्रोटीन में विविधता लाएं.
  6. कोलैस्ट्रौल का सेवन कम करें.
  7. थोड़ाथोड़ा खाएं.
  8. खानपान पर ध्यान

हार्ट को हैल्दी रखने के लिए इस बात पर ध्यान देने की जरूरत होती है कि आप क्या खा रहे हैं. ऐसा करने पर हार्ट की आर्टरीज में रक्त के क्लौट बनने से रोका जा सकता है. यदि किसी आर्टरी में क्लौट का जमाव होना शुरू हो भी गया हो तो उस के बढ़ने की संभावना कम हो जाती है. इस से टोटल तथा एलडीएल कोलैस्ट्रौल कम होता है जिस से रक्तचाप नियंत्रित रहता है. ऐसे मरीजों के लिए डाइटीशियन जब डायरी प्लान बना रहे होते हैं तो वे इस बात का ध्यान रखते हैं कि मरीज को क्या खाना चाहिए और क्या नहीं. हकीकत यह है कि हार्ट की सुरक्षा के लिए एक ओर जहां कुछ खाद्य पदार्थों को डाइट चार्ट में जोड़ा जाता है वहीं कुछ खाद्य पदार्थों को हटाया भी जाता है. जिस खाद्य पदार्थ को आप खा रहे हैं, उस को एंजौय करें. खुशीखुशी खाएं, न कि नाकभौं सिकोड़ कर. अपनी जिंदगी के बारे में पौजिटिव थिंकिंग रखते हुए उस का आनंद लें ताकि आप अपने में सहजता का अनुभव करें. इस बात को बोनस के रूप में मानें कि आप को कम खाने की जरूरत पड़ रही है. इस से एक ओर जहां आप का वजन कम होता है वहीं दूसरी ओर इस से रक्त में कोलैस्ट्रौल की मात्रा भी कम होती है.

सपनों की बगिया : क्या सुजाता अपने ससुरालवालों को बदल पाई ?

story in hindi

सांसदों का निलबंन : एक पार्टी के राज की तरफ बढ़ता देश

13 दिसंबर को संसद में हुई सुरक्षा में चूक के मसले पर लोकसभा और राज्यसभा के सांसद सदन में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बयान की मांग कर रहे थे. सांसदों का कहना था कि गृहमंत्री टीवी पर बयान दे सकते हैं तो सदन में क्यों नहीं? सांसदों का यह विरोध सरकार को पंसद नहीं आया और उस ने लोकसभा व राज्यसभा से कुल 78 सांसदों को निलंबित कर दिया है. निलंबित सांसदों में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, तृणमल कांग्रेस के सौगत राय, डीएमके के टी आर बालू, दयानिधि मारन समेत लोकसभा के कुल 33 सांसद हैं. वहीं राज्यसभा से जयराम रमेश, प्रमोद तिवारी, के सी वेणुगोपाल, इमरान प्रतापगढ़ी, रणदीप सिंह सुरजेवाला, मोहम्मद नदीमुल हक समेत 45 सांसद शामिल हैं.
2001 के संसद हमले के दिन 13 दिसंबर को 2 लोगो ने लोकसभा के अंदर और 2 ने बाहर प्रदर्शन किया था. उस के बाद से विपक्ष लगातार सुरक्षा में हुई उस चूक को ले कर सरकार से जवाब मांग रहा था. इस को ले कर 14 दिसंबर को लोकसभा से कुल 13 सांसद निलंबित किए गए थे. संसद के शीतकालीन सत्र में अब तक कुल मिला कर 92 सांसदों को निलंबित किया जा चुका है. विपक्षी सांसदों ने यह आरोप भी लगाया कि जब जब संसद की सुरक्षा से खिलवाड़ होता है, सत्ता में भाजपा सरकार ही होती है. 2001 में अटल सरकार थी, 2023 में मोदी सरकार है.

एक पार्टी शासन की तरफ बढ़ रहा देश

विपक्ष के कुल सांसदों में से आधे के करीब निलंबित किए जा चुके है. इसे मोदी सरकार का संसद और लोकतंत्र पर हमला माना जा रहा है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना है, ‘निरंकुश मोदी सरकार सासंदों को निलंबित कर के सभी लोकतांत्रिक मानदंडों को कूड़ेदान में फेंक रही है. विपक्ष रहित संसद के साथ मोदी सरकार लोकतंत्र की आवाज को दबा रही है. देश  को एक पार्टी राज की तरफ ले जाया जा रहा है.’
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने कहा है, ‘भाजपा के पास सदन चलाने का नैतिक अधिकार नहीं है. अगर मोदी सरकार सभी सांसदों को निलंबित कर देगी तो सांसद अपनी आवाज कैसे उठाएंगे? वो 3 महत्त्वपूर्ण विधेयक पास कर रहे हैं. विधेयक पर विपक्ष के सांसद बहस करें, यह लोकतंत्र में एक व्यवस्था होती है. भाजपा इस व्यवस्था को खत्म करना चाहती है. विपक्ष को पूरी तरह निलंबित करने के बाद भाजपा के पास सदन चलाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है.’

सरकार की जिम्मेदारी है सदन चलाना

सही बात तो यह है कि देश स्तर पर नीतियां अब नहीं बनती हैं. नीतियों को बनाने में विधायक और सांसदों की भूमिका खत्म हो गई है. नीतियों को बनाने में ब्यूरोक्रेसी हावी हो गई है जिस ने हर जगह पर पीएमओ बना लिए हैं. ऐसे में सांसद या विधायक सदन में रहें या न रहें, इन पर कोई फर्क नहीं पड़ता है. सत्ता में बैठे लोग यह भूल जाते हैं कि विपक्ष का महत्त्व भी सरकार जैसा ही होता है. संविधान में यह अधिकार विपक्ष को अधिकार दिया गया है कि वह अपनी असहमति दर्ज करा सके. विधयेक बिना सदन में चर्चा के पारित न हो. जब सदन से सारे सांसद निलंबित कर दिए जाएंगे तो इन विधेयक पर चर्चा कैसे होगी?
सरकार की यह जिम्मेदारी है कि सदन चले. विपक्ष बहस में हिस्सा ले. विधेयक बिना चर्चा के पारित न हों. इसीलिये वह विपक्ष के साथ बातचीत कर के उन को सदन में हिस्सा लेने वाला महौल बनाती थी. अटल सरकार में यह जिम्मेदारी मनोहर जोशी निभाते थे. 2014 से 2019 तक सुमित्रा महाजन ने इस जिम्मेदारी को उठाया. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला इस तरह का माहौल बनाने में सफल नहीं हो रहे हैं. इस की वजह यह है कि सरकार के कामकाज और व्यवहार पर पीएमओ हावी है. वह जिस तरह के निर्देश देता है, उसी के मुताबिक काम होता है.

पीएमओ के रूप में ब्यूरोक्रेसी हावी

ब्यूरोक्रेसी के इस तरह से दखल देने से सत्ता और विपक्ष के बीच राजनीति व्यवहार खत्म हो जाता है. वह सत्ता और विपक्ष की जगह पर एकदूसरे के दुश्मन जैसे बन कर एकदूसरे के सामने खड़े हो जाते हैं. यहां एक पार्टी सत्ता चलाने का मतलब पीएमओ द्वारा सत्ता चलाना हो गया है. अब भाजपा में सुषमा स्वराज जैसी नेताओं की कमी है जो हाईकमान के सामने गलत कामों का विरोध कर सकें. एक तरह से सरकार मोदी सरकार नहीं चला रही, ब्यूरोक्रेसी सरकार चला रही है, जो पूरी तरह से निष्ठुर हो कर काम कर रही है. उस के लिए विपक्ष के चुने गए प्रतिनिधियों का कोई मतलब नहीं रह गया है.

ब्यूरोक्रेसी सरकार की छवि को पूरी तरह से खराब कर देती है. नेता यह भूल जाते हैं कि वोट मांगने ब्यूरोक्रेसी जनता के पास नहीं जाती. ऐसे में जब नेता वोट मांगने जाएंगे, जनता उन से सवाल पूछ सकती है. ब्यूरोक्रेसी इस तरह से काम करती है कि वह जिस लकीर पर चले, नेता उसी पर चले. जैसे, चीटिंया एक लाइन में चलती हैं. चींटिंयो की अगुआई रानी चींटी करती है. ब्यूरोक्रेसी के पीछे जो लाइन चलती है उस में कोई रानी चींटी यानी उन का कोई अगुआ नहीं होता है. ऐसे में असफलता की जिम्मेदारी सभी नेताओं की होती है.

मोदी सरकार ने जब अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए अदालत के आदेशानुसार ट्रस्ट बनाया तो नृपेंद्र मिश्रा को इस का चेयरमैन बना दिया. नृपेंद्र मिश्रा रिटायर सीनियर आईएएस अफसर हैं. 2014 से 2019 तक वे मोदी सरकार के प्रमुख सचिव थे. उन को पदमभूषण सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है. वही अब राम मंदिर निर्माण के सारे फैसले ले रहे हैं. मंदिर निर्माण आंदोलन में शामिल रहे बाकी नेता उन के आदेश को मानने का बाध्य हैं.

रिटायर होने के बाद भी उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव का कार्यकाल लगातार बढ़ाया जाता रहा है. दुर्गा शंकर मिश्रा का कार्यकाल मुख्य सचिव के रूप में रिटायर होने के बाद भी 2021 और 2022 में बढ़ाया जा चुका है. 31 दिसंबर, 2023 को यह कार्यकाल खत्म हो रहा है. लोग कयास लगा रहे हैं कि तीसरी बार यह कार्यकाल बढ़ेगा या नहीं. उत्तर प्रदेश जैसे राज्य को रिटायर अफसर चला रहे हैं. इस तरह से सरकार ब्यूरोक्रेसी पर निर्भर है. ब्यूरोक्रेसी के फैसले चुने गए जनप्रतिनिधियों के फैसलों से अलग होते हैं.

सरकार के कदम से मजबूत हो रहा विपक्ष

संसद की सुरक्षा में चूक हुई है. गृहमंत्री अमित शाह की नाकामियों को छिपाने के लिए विपक्षी सांसदों को निलंबित किया जा रहा है. विपक्ष के सांसदों का कहना है कि जब उन की बात सुनी नहीं जा रही है तो उन के पास सदन में नारेबाजी करने और तख्तियां दिखाने के अलावा रास्ता नहीं बचता है. निलंबित होने वाले सांसदों में किसी एक पार्टी के ही सांसद नहीं हैं. इन में अधिकतर इंडिया ब्लौक के सदस्य हैं. 3 राज्यों में चुनावी हार के बाद भी इन की अगुआई कांग्रेस ही कर रही है.
संसद में इस तरह से विरोध करना कोई नई बात नहीं है. जब गैरभाजपा की सरकार होती थी तो इसी तरह से भाजपा के सांसद शोरशराबा करते थे. तब इस तरह से सांसदों को निलंबित नहीं किया जाता था. संसद की सुरक्षा में चूक एक बहुत बड़ा मुद्दा है. विपक्ष के सांसदों की यह जिम्मेदारी है कि वे इस मुददे पर सरकार को बात रखने पर मजबूर करें. सांसदों का निलंबन तानाशाही की तरफ बढता हुआ कदम है.

अयोध्या मंदिर मामला: बहुत साफ हैं आडवाणी और जोशी की अनदेखी के माने

अफ़सोस तो इस बात का भी होना चाहिए कि देश में खबरों के माने और दायरा बहुत समेट कर रख दिए गए हैं. उस से भी बड़ा अफ़सोस यह कि खुद को बुद्धिजीवी समझने का दावा करने वाले अधिकतर लोगों ने मान लिया है कि खबर का मतलब होता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण, इंडिया गठबंधन की उठापटक, देश में कितनी जाति के मुख्यमंत्री और नेता हैं, इस के बाद अपराध, क्रिकेट और फ़िल्में. और ज्यादा हुआ तो यह कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने यह या वह फैसला दिया.

ऐसी खबरों से न तो तर्कक्षमता निखरती है और न ही ज्ञान में कोई बढ़ोतरी होती है. सरकार का प्रचार ही जब मीडिया का मकसद रह जाए तो कहा जा सकता है कि हम दिमागी तौर पर गुलाम बना कर रख दिए गए हैं और इस पर कोई एतराज भी किसी को नहीं है. ज्यादा नहीं कोई 2 महीने पहले एक खबर आ कर दम तोड़ गई थी कि केंद्र सरकार 9 वर्षों की अपनी उपलब्धियों का प्रचार करने के लिए आईएएस अधिकारियों को रथ प्रभारी के तौर पर तैनात करने की तयारी में हैं. वित्त मंत्रालय द्वारा जारी किए गए इस पत्र का मसौदा काफी लंबाचौड़ा है जिस पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं हुई थी.

कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने सोशल मीडिया एक्स पर यह कहते अपनी जिम्मेदारी पूरी हुई मान ली थी कि सिविल सर्वैन्ट्स को चुनाव में जाने वाली सरकार के लिए राजनीतिक प्रचार करने का आदेश कैसे दिया जा सकता है. भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने इस पर सरकार का बचाव किया था. लेकिन वह तर्क आधारित और संवैधानिक न हो कर कांग्रेस की आलोचना तक सिमट कर रह गया था.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड्गे ने जरूर तुक की बात कही थी कि सरकार की रथ प्रभारी बनाने की योजना केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम 1964 का स्पष्ट उल्लंघन है जो निर्देश देता है कि कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी भी राजनीतिक गतिविधि में हिस्सा नहीं लेगा. खड़गे ने आगाह करते हुए यह भी कहा था कि अगर विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों को वर्तमान सरकार की मार्केटिंग गतिविधियों के लिए नियुक्त किया जा रहा है तो हमारे देश का शासन अगले 6 महीनों के लिए ठप हो जाएगा. लोकतंत्र की धज्जियां कैसे खुलेआम उड़ाई जा रही हैं, इसे समझने के लिए भाजपा आईटी सैल के प्रमुख अमित मालवीय का सोशल मीडिया पर यह कहना पर्याप्त था कि नौकरशाहों का कर्तव्य है कि वे लोगों की सेवा करें, जैसा निर्वाचित सरकार उचित समझे.

 

कलियुगी श्रवण कुमार

मामला गंभीर था जिस से यह साबित हुआ था कि सरकार की मंशा ब्यूरोक्रेट्स को खुद से सहमत करने की और अपनी विचारधारा के लिहाज से हांकने की भी है और इस में वह अब तक कामयाब भी रही है. क्योंकि कोई चैनल इस पर डिबेट नहीं करता, दैनिक स्तंभ लिखने वाले नैतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक ज्ञान का रायता लुढ़का रहे हैं. वे अब खुशवंत सिंह होने के बजाय शिव खेड़ा होने लगे हैं. वे इस बात का जिक्र करने से भी परहेज करते हैं कि केंद्र तो केंद्र, भाजपाशासित राज्य सरकारों पर तक पीएमओ के आईएएस अधिकारियों का शिकंजा कसता जा रहा है.

ऐसे में क्या आप यह उम्मीद करते हैं कि पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी को 22 जनवरी को अयोध्या आने से रोका जाना महज एक राजनीतिक फैसला है. राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने एक पत्रकार वार्त्ता आयोजित कर कहा कि भाजपा के इन दोनों वरिष्ठ नेताओं से मैं ने कहा कि आप दोनों बुजुर्ग हैं, इसलिए स्वास्थ्य व उम्र को देखते राम मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा में न आएं. बकौल चंपत राय, दोनों ने इसे मान भी लिया.

थोड़ीबहुत नानुकुर मुरली मनोहर जोशी ने की लेकिन चंपत राय ने उन से कहा, ‘गुरुजी मत आइए. आप की उम्र और सर्दी… आप ने अभी घुटने भी बदलवाए हैं.’ चंपत राय ने एक तथाकथित दिलचस्प किस्सा सुनाते हुए यह भी बताया कि कैसे 5 अगस्त को राम मंदिर आंदोलन के सहनायकों में से एक कल्याण सिंह शिलान्यस के दिन आने के लिए अड़ गए थे और उन्हें चालाकी दिखाते ऐन वक्त पर आने से रोक दिया गया. घर के बुजुर्गों को इसी तरह रोका जाता है.

 

फैसला और इमेज  

आडवाणी और जोशी की यह त्रासदी ही है कि उन्हें आज से कोई 30-32 साल पहले भी अयोध्या जाने से रोकने की कोशिश या साजिश हुई थी. तब उन का रास्ता रोकने वाले लालू और मुलायम यादव जैसे लोग थे लेकिन आज तो अपने वाले ही नहीं चाह रहे कि वे अपने लगाए पेड़ का फल चखें. उस दौर में भी रास्ता आईएएस अफसरों की सलाह पर ही रोका गया था और आज भी ऐसा ही लग रहा है क्योंकि चंपत राय कोई इतनी बड़ी हस्ती नहीं हैं कि बिना मोदी आज्ञा और पीएमओ के फरमान के यह अहम फैसला ले पाएं. यह स्क्रिप्ट किस ने लिखी, यह शायद ही कभी पता चले पर क्यों लिखी, यह हर कोई समझ रहा है.

प्रेमचंद की चर्चित कहानी ‘बूढ़ी काकी’ की तर्ज पर इन दोनों की बेरहम अनदेखी और उन्हें  आने से रोकने का इकलौता मकसद यह है कि सिर्फ नरेंद्र मोदी ही दिखें. लालकृष्ण आडवाणी न होते तो आज भी राम मंदिर एक सपना बन कर ही रह जाता. उन्होंने जो किया उसे देश जानता है.

आज जो हो रहा है उसे भी देश समझ रहा है कि सवाल नरेंद्र मोदी की इमेज का है. अगर आडवाणी और जोशी आए तो मंदिर आंदोलन के अगुआ होने के नाते मीडिया और देश के हिंदुओं का ध्यान उन्हीं की तरफ रहेगा. तब लोग यह भी पूछ और सोच सकते हैं कि मुख्य यजमान आडवाणी जी क्यों नहीं जबकि सारा कियाधरा तो उन्हीं का है.

अगर भाजपा एक परिवार है तो उस में बुजुर्गो की इतनी उपेक्षा क्यों कि उन्हें एक अति शुभ कार्य का साक्षी भी नहीं बनने दिया जा रहा जबकि सनातनी संस्कार तो यह कहते हैं कि घर के बुजुर्ग ही सर्वेसर्वा होते हैं, वे तो प्रभुतुल्य होते हैं. यह और बात है कि चंपत राय ने  4 दिनों पहले ही नरेंद्र मोदी को विष्णु अवतार माना है. रही बात अस्वस्थता और उम्र की, तो वह किसी के गले नहीं उतर रही. इन दोनों ने ही इस बाबत अपने से कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है. ऐसे में चंपत राय, जो मुद्दत से इन की खैरखबर लेने नहीं गए, को कैसे जादू के जोर से पता चल गया कि ये आने की स्थिति में नहीं.

90 के दौर के किशोर और युवा हिंदू जो जान जोखिम में डाल कर अयोध्या गए थे वे इस पर  क्या सोचते हैं, यह कहना भी मुश्किल है. उन्होंने भाजपा के बहुत मुश्किल और चुनौतीपूर्ण दिनों में आडवाणी का जलवा देखा है जो उन्होंने खुद हासिल किया था. वही पीढ़ी नरेंद्र मोदी युग भी देख रही है जिस में इन की कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष भागीदारी नहीं. ये लोग सोशल मीडिया पर हिंदुत्व से ताल्लुक रखती सच्चीझूठी पोस्ट फौरवर्ड करने के आसान काम करने भर को रह गए हैं. ये कुछ बोल भी नहीं सकते क्योंकि जब सुनी नींव रखने वालों की नहीं जा रही तो इन की हैसियत क्या.

सुनी सिर्फ उन आईएएस अधिकारियों की जा रही है जो सरकार की दिशा और दशा तय कर रहे हैं, जो विकसित भारत संकल्प यात्रा के रथी बना दिए गए हैं. दौर हमेशा से अर्जुनों का रहा है. ये एकलव्य तो अंगूठा दान करने को जन्मे हैं. दौर नृपेंद्र मिश्रा जैसे आईएएस अधिकारियों का है जो राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष की हैसियत से अयोध्या के नए ऋषिमुनि बन बैठे हैं जिन्होंने 92 के आंदोलन में अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया वे परचून और भजिये की दुकान पर बैठे या दूसरे छोटेमोटे कामों से गुजर करते उस दौर के संस्मरण सुना रहे हैं.

ज्यादती कईयों के साथ हो रही है और यही क्रूरता ही धर्म का सच है.

लिवइन रिलेशनशिप में बच्चों की कस्टडी, कहां फंस रहा है पेंच

बिना शादी किए पतिपत्नी की तरह साथ रह रहे जोड़ों यानी लिवइन रिलेशनशिप में रहने वाले पार्टनर्स को शादीशुदा जोड़ों की तरह अधिकार नहीं मिलते हैं. कई मामलों में ऐसे जोड़ों को शादीशुदा जोड़ों के मुकाबले कानूनी तौर पर कम अधिकार मिलते हैं. खासतौर पर उन के बच्चों की कस्टडी के मामले में अनिश्चितता रहती है.

एक महिला शादी के एक साल बाद ही अपने पति से अलग हो गई और अपने बौयफ्रैंड के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रहने लगी. इसी दौरान वह प्रैग्नैंट भी हो गई. खास बात यह कि उस ने अब तक अपने पति से तलाक नहीं लिया था. यानी, कानूनी तौर पर  वह शादीशुदा थी और पति से अलग अपने पुरुषमित्र के साथ रह रही थी.

अस्पताल में उस ने एक बच्चे को जन्म दिया. बच्चे के जन्म प्रमाणपत्र में पिता के नाम के तौर पर उस के पति का नाम दर्ज हो गया जबकि बायोलौजिकल पिता उस का लिवइन पार्टनर था. कुछ समय बाद महिला ने पति से तलाक ले लिया. अब उस ने बर्थ सर्टिफिकेट पर बच्चे के पिता के तौर पर अपने लिवइन पार्टनर का नाम डलवाना चाहा.

यह मामला नवी मुंबई का है. वहां की महानगर पालिका ने पिता का नाम बदलने से इनकार कर दिया. मैजिस्ट्रेट कोर्ट में भी महिला की याचिका खारिज हो गई तो वह मुंबई हाईकोर्ट पहुंची. 8 अगस्त, 2023 को जस्टिस एस बी शुक्रे व जस्टिस राजेश पाटिल की बैंच के सामने याचिका पर सुनवाई हुई और आगे की डेट दी गई. इस तरह पूर्व पति की जगह बच्चे के बर्थ सर्टिफिकेट में लिवइन पार्टनर का नाम डलवाने के लिए वह लंबी कानूनी लड़ाई लड़ रही है.

लिवइन रिलेशनशिप यानी  ‘बिन फेरे हम तेरे’ का रिश्ता जहां 2 बालिग बिना शादी किए  एक छत के नीचे पतिपत्नी की तरह रोमांटिक रिलेशनशिप में रहते हों. लिवइन रिलेशन में पार्टनर भले ही पतिपत्नी की तरह रहते हैं लेकिन दोनों शादी के बंधन से नहीं बंधे होते. शादी के लिहाज से एकदूसरे के प्रति कानूनी जिम्मेदारियों से वे मुक्त होते हैं. कानूनी भाषा में इस रिश्ते को ‘नेचर औफ मैरिज’ के रूप में समझा गया है. लिवइन रिलेशनशिप से पैदा होने वाले बच्चों को भारत में कानूनी रूप से जायज माना जाता है लेकिन समाज की नजरों में न ही इस रिश्ते को इज़्ज़त मिली है और न ही उन से होने वाले बच्चों को. इस रिश्ते से जन्मे बच्चे के जन्म प्रमाणपत्र में पिता के नाम को ले कर भी सवाल उठते हैं.

लिवइन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चे और कानून 

किसी भी पुरुष या महिला के लिए बिना शादी किए किसी के साथ फिजिकल रिलेशन में रहना कानून के हिसाब से गलत नहीं है मतलब गैरकानूनी नहीं है. चाहे वह शादीशुदा है, तलाकशुदा है या अविवाहित है, वह लिवइन रिलेशनशिप में रह सकता है. इसे अपराध नहीं कह सकते हैं.

लेकिन लिवइन रिलेशनशिप को ले कर देश में स्पष्ट कानून नहीं है. इस तरह की रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों को तमाम चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. उन्हें कानून से समुचित संरक्षण नहीं मिलता. साथ ही, बच्चों की कस्टडी से जुड़े मामले भी कौम्प्लिकेटेड हो जाते हैं. क्योंकि लिवइन रिलेशनशिप से जुड़े मामलों से निबटने के लिए अलग से कोई कानून नहीं है. हालांकि अदालतें समयसमय पर इस से जुड़े मामलों पर अहम फैसले सुनाती रहती हैं लेकिन कई दफा वे अलगअलग होते हैं.

लिवइन पार्टनर को नहीं मिलते ये अधिकार 

लिवइन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़े शादीशुदा जोड़ों को मिले कई अधिकारों से वंचित रहते हैं. लिवइन पार्टनर का एकदूसरे की संपत्ति में उन का अधिकार या उत्तराधिकार नहीं हो सकता लेकिन शादी के मामले में ऐसा नहीं होता. लिवइन पार्टनर अगर अलग होते हैं तो वो मैंटीनैंस का दावा नहीं कर सकते. हालांकि, लिवइन रिलेशन से पैदा हुए बच्चे को उसी तरह के कानूनी अधिकार हासिल हैं जो शादीशुदा कपल के बच्चे के होते हैं.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिवइन में रेप से जुड़े एक केस में अपने हालिया फैसले में इस कौन्सेप्ट पर ही सवाल उठाया था. मामला लिवइन रिलेशन में एक साल तक रहे जोड़े का था. महिला पार्टनर ने पुरुष पार्टनर पर रेप का आरोप लगाया था. वह प्रैग्नैंट हो गई थी. 1 सितंबर को दिए अपने आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि जानवरों की तरह हर मौसम में पार्टनर बदलने का चलन एक सभ्य और स्वस्थ समाज की निशानी नहीं हो सकता. हाईकोर्ट ने कहा कि शादी में जो सुरक्षा, सामाजिक स्वीकृति और स्थायित्व मिलता है वह लिवइन रिलेशनशिप में कभी नहीं मिल सकता. हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत देते हुए लिवइन रिलेशन को ले कर कई कठोर टिप्पणियां कीं.

लिवइन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चों के अधिकार 

जून 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लिवइन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों को शादीशुदा जोड़े के बच्चों की तरह ही प्रौपर्टी से ले कर उत्तराधिकार तक के अधिकार मिलेंगे. शर्त यह है कि लिवइन रिलेशन लंबा हो और इस तरह का न हो कि जब चाहा, साथ रहने लगे और जब चाहा, अलग हो गए.

संपत्ति के अधिकारों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने भारत माता और अन्य बनाम विजया रंगनाथन एंड एसोसिएट्स के मामले में एक फैसला ही सुनाया था. फैसला यह था कि 2 लोगों के लिवइन संबंध से पैदा होने वाले बच्चों को उन के मातापिता की संपत्ति में उत्तराधिकारी माना जा सकता है.  कानून की नजर में भी उन्हें एक वैध उत्तराधिकारी माना जा सकता है.

चाइल्ड कस्टडी 

लिवइन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चे की कस्टडी एक जरूरी लीगल बैरियर है. स्पष्ट कानूनों के न होने की वजह से यह रिश्ता शादी के मुकाबले ज्यादा कौम्प्लिकेटेड हो जाता है. लिवइन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चे के लिए कस्टडी के मैटर को उसी तरह से डील किया जाता है जैसे कि शादी के केस में कुछ स्पेसिफिक कानूनों के न होने पर किया जाता है.

कानपुर में बच्चे हुए बेरहम : 4 पिल्लों को जलाया जिंदा, जिम्मेदार कौन

कानपुर के बेगमपुरवा में 3 नाबालिग बच्चों ने कुत्ते के 4 नन्हे पिल्लों को ज़िंदा जला दिया. बच्चो की उम्र 8-9 साल के बीच थी. क्षेत्र के एक पार्क में एक फीमेल डौग ने 4 बच्चों को जन्म दिया था. स्थानीय लोगों ने पिल्लों को ठंड से बचाने के लिए जूट की बोरी और कार्ड बोर्ड आदि से एक छोटा सा घर उन के लिए बना दिया था, जिस में वे दुबके रहते थे. बच्चों ने उन के इस घर में भूसा भर कर उस में आग लगा दी, जिस में चारों पिल्ले तड़पतड़प कर मर गए. उन की दर्दनाक आवाज सुन कर स्थानीय लोग जमा होने लगे तो पिल्लों की मौत का मज़ा ले रहे बच्चे डर कर भागने लगे, लेकिन लोगों ने उन में से एक को पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया.

जानवरों के लिए काम करने वाली सामाजिक संस्था ‘उम्मीद एक किरण’ ने किदवई नगर थाने में इस मामले में तहरीर दी. मामला पशु क्रूरता अधिनियम के तहत 428 और 429 की धारा का था. जिस में से धारा 428 में 2 साल की सजा का प्रावधान है, जबकि धारा 429 में 5 साल की सजा है. इस मामले में आरोपी को थाने से ही जमानत मिल जाती है, लेकिन इस मामले में चूंकि बच्चे माइनर थे इसलिए बच्चों को पुलिस ने अरेस्ट नहीं किया.

बच्चों में बढ़ती क्रूरता

गौरतलब है कि बचपन सब से संवेदनशील अवस्था है. जीवों के प्रति प्रेम सब से ज्यादा बचपन में ही उमड़ता है. बड़ों के मुकाबले बच्चे कुत्ते, बिल्ली, तोते आदि पालने में और उन के साथ खेलने में सब से ज्यादा खुशी महसूस करते हैं. उन से बिछोह भी उन को बर्दाश्त नहीं होता. मगर यह घटना संकेत करती है कि बच्चों की मानसिकता और संवेदनशीलता के स्तर में बहुत बड़ा परिवर्तन हो रहा है, जिस पर मातापिता, टीचर्स या अन्य लोगों का ध्यान नहीं जा रहा है. बच्चों में क्रूरता बढ़ रही है. अपराध की प्रवृत्ति बहुत कम उम्र में पैदा हो रही है. जिस को अगर अनदेखा किया गया तो आने वाला समय देश और समाज के लिए खतरनाक होगा.

बच्चों की ऐसी क्रूर और उग्र मानसिकता का जिम्मेदार कौन है? क्या सोशल मीडिया? आज हर बच्चे के हाथ में स्मार्ट फ़ोन है. यूट्यूब पर वह बहुत सी ऐसी चीज़ें देख रहा है जो उस के भोले मन पर बुरा प्रभाव छोड़ती हैं. क्या टीवी चैनल बच्चों के व्यवहार पर प्रभाव डाल रहे हैं? दो दशक पहले तक क्राइम सीरियल या पारिवारिक नोकझोंक वाले सीरियल देर रात दिखाए जाते थे जब बच्चे सो चुके होते थे. लेकिन अब सारे दिन ऐसे सीरियल टीवी चैनलों पर जारी रहे हैं. जो सीरियल चल रहे हैं उन में एकदूसरे की खिलाफ साजिश, मारधाड़, गालीगलौच और मौत का तांडव चल रहा है.

शक्तिमान, स्पाइडर मैन आदि सीरियल भी हिंसा को ही पोषित करते हैं और कुछ नहीं. इन के अलावा ऐतिहासिक सीरियल भी कमोबेश हिंसक विचारों को ही बढ़ाते हैं. उन्हें देख कर बच्चो के मन में भी ऐसे ही हीरो बनने की इच्छा बलवती हो जाती है. उन्हें यही लगता है कि कोई जरा सा भी सिर उठाए तो उसे खत्म कर दिया जाना चाहिए. इस तरह आराम से जिंदगी जी जा सकती है.

इस के अलावा न्यूज चैनलों में भी दुनिया में चल रही लड़ाइयों के दृश्य परोसे जा रहे हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध, गाजा और इजराइल का भींषण युद्ध, बमों के धमाके, घायल चीखतेमरते लोग, गिरती इमारतों के भयावह दृश्य. कोई अच्छी खबर, कोई आशावादी बात, कोई अविष्कार, कोई सकारात्मक बात कहीं नहीं हो रही है. बच्चे इन न्यूज चैनलों और सीरियलों को देखते हैं. इन का बुरा प्रभाव भी उन के दिमाग पर पड़ रहा है.

कभीकभी घरपरिवार अथवा समाज से मिलने वाले तिरस्कार से बच्चे कुंठाग्रस्त हो कर भी इस प्रकार हिंसा के मार्ग पर चल पड़ते हैं. यहां बदले की भावना प्रमुख कारण होती है. ऐसे बच्चों को प्यार व दुलार की आवश्यकता होती है.

चिंता कि बात

डा. सुगंधा गुप्ता कहती हैं, “आमतौर पर, जो बच्चे जानवरों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं, उन्होंने या तो खुद दुर्व्यवहार देखा है या अनुभव किया है. किसी जानवर के विरुद्ध की गई हिंसा का प्रत्येक कार्य इस बात का संकेत है कि व्यक्ति पाशविकता की तरफ बढ़ रहा है और वह भविष्य में अपराधी बन सकता है, समाज को बड़ा नुकसान भी पहुंचा सकता है. 1970 के दशक से अब तक क्राइम के क्षेत्र में जो अनुसंधान हुए हैं, उस में बचपन में जानवरों के प्रति क्रूरता को बाद में अपराध, हिंसा और आपराधिक व्यवहार में बदलते देखा गया है. पशुओं के प्रति क्रूरता को चेतावनी संकेत के रूप में रिपोर्ट किया गया है. ज्यादातर हिंसक अपराध में अपराधियों के प्रोफाइल में पशु क्रूरता का इतिहास है. आंकड़े बताते हैं कि घरेलू हिंसा देखने वाले 30 प्रतिशत बच्चे अपने छोटे भाईबहनों या पालतू जानवरों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं.”

बच्चों की हिंसक वृत्ति पर लगाम लगाना बहुत आवश्यक है. घर में मातापिता को चाहिए कि हिंसा से भरपूर कार्टून के स्थान पर बच्चो को संस्कार देने वाले कार्यक्रम देखने के लिए प्रोत्साहित करें. मारधाड़ वाले सीरियल कम से कम समय के लिए देखने दें. उन्हें बारबार समझाएं कि हिंसा से किसी का भला नहीं होता बल्कि नुकसान होता है. मिलजुल कर भाईचारे से रहने के लिए शिक्षित करें. स्कूल या खेल के लिए जाते समय चौकस रहें कि बच्चे ऐसा कोई हिंसा करने वाला हथियार अपने साथ न ले जाएं.

विद्यालय में टीचर्स को भी चाहिए कि किसी बच्चे में हिंसक प्रवृत्ति पनपती दिखाई दे, तो फौरन उन के मितापिता तथा स्कूल अथौरिटी को सूचित करें ताकि इस मनोवृत्ति पर समय रहते लगाम लगाई जा सके. समयसमय पर बच्चों की काउंसलिंग कराने से भी उस के मन में आए कुंठा अथवा एग्रेसिव भावों को नियंत्रित किया जा सकता है.

भाजपा के धर्म जाल को कैसे तोड़ेगी कांग्रेस

इतवार 17 दिसंबर को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में लाखों की भीड़ के सामने लच्छेदार भाषण देते लोकसभा चुनाव की दुंदुभी फूंक रहे थे ठीक उसी वक्त में कोलकाता से कांग्रेसी दिग्गज पी चिदम्बरम भी भाजपा की ही तारीफों में कसीदे गढ़ते कह रहे थे कि हवा उस के पक्ष में है और भाजपा हर चुनाव को आखिरी चुनाव समझते लड़ती है.

पूर्व वित्तमंत्री की मंशा हालांकि कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को आगाह करने की थी लेकिन तरीका उन का ठीक वैसा ही था जैसे कोई पिता अपने आलसी और सुस्त बेटे को जिम जाने के फायदे न गिना कर पडौसी के लड़के के सिक्स पेक और सेहत की मिसाल देने लगे.

लोकतंत्र में नेता विपक्षी नेताओं की तारीफ करें यह कोई नई बात नहीं है. इंदिरा गांधी के दौर में जनसंघ सहित कई गैर कांग्रेसी नेता उन के प्रशसंक थे. इन में अटलबिहारी बाजपेयी का नाम उल्लेखनीय है लेकिन उन्होंने कभी कांग्रेस की नीतियोंरीतियों और खूबियों की तारीफ नहीं की.

आजकल उल्टा हो रहा है नरेंद्र मोदी की तारीफ करने से बचने कांग्रेसी नेता भाजपा के चुनावी प्रबंधन की तारीफ करने लगे हैं जबकि उन्हें इस की आलोचना करना चाहिए कि भाजपा धर्म के नाम पर वोट मांग कर लोकतंत्र की गरिमा और खूबसूरती खत्म कर रही है जो अंतत देश के लिए नुकसानदेह है.

काशी में बोले मोदी

चिदंबरम ने हालांकि यह भी कहा कि हवाएं दिशाएं बदल भी देती हैं लेकिन इस के लिए भगवान भरोसे बैठ जाना कोई बुद्धिमानी या तुक की बात तो नहीं. यह हवा जिस की पीड़ा उन के मुंह से निकली कैसे भाजपा अपने पक्ष में मोड़े हुए है इस के लिए वाराणसी में मोदी ने क्या कुछ कहा उस पर एक नजर डाले तो स्पष्ट होता है कि अब धर्म के साथ साथ भाजपा एक नया काम यह कर रही है कि जिन लोगों को केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं से लाभ मिला है उन के मुंह से विज्ञापन करवा रही है.

मसलन – मुझे प्रधानमंत्री आवास योजना में घर मिला जिस से मेरी गरीबी दूर हो गई. स्कूल कौलेजों में पढ़ रहे मेरे बच्चों में आत्मविश्वास आ गया अब वे दोस्तों के सामने इस बात पर शर्मिंदा नहीं होते कि वे झोपड़े या कच्चे घर में रहते हैं.

मसलन – मैं एक गरीब महिला हूं मुझे उज्ज्वला योजना में गेस सिलेंडर मिला जिस से मेरी गरीबी दूर हो गई मुझे लकड़ियों के धुंए से मुक्ति मिल गई.

मसलन – मैं गरीब हूं और अपना इलाज नहीं करा सकता था लेकिन आयुष्मान कार्ड बनने से मेरा लाखों का इलाज होता है इस से अब मैं गरीब नहीं रहा मेरा औपरेशन हुआ अब मैं फिर से काम कर सकता हूं. यह कार्ड नहीं होता तो जिंदगी जैसेतैसे गुजार लेता.

यह ब्रांडिंग ठीक वैसी ही है जैसी देर रात टीवी के विज्ञापनों में दिखाई जाती है कि पहले मैं बहुत दुबला और कमजोर था फिर मुझे फलां प्रोडक्ट मिल गया अब मैं बहुत ताकतवर हूं और `कुछ भी कर सकता हूं. मेरी कमजोरी दूर हो गई है और इस से मेरी परफार्मेंस सुधरी है अब मैं बहुत खुश हूं.

तो बकौल मोदीजी देश में सब खुश हैं, खुशहाल हैं क्योंकि उन की जरूरतें सरकारी योजनाओं से पूरी हो रही हैं. 80 करोड़ भूखों को सरकार अन्न दान कर रही है. बेघरों को दान में आवास दिया जा रहा है और बाकी बचे लोगों जिन्हें रोटी, कपड़ा और मकान की भी जरूरत नहीं उन के दुख दर्द दूर करने राम मंदिर लगभग बन चुका है. वहां भीड़ हो तो मथुरा, काशी ये लोग आ सकते हैं नहीं तो प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार, ऋषिकेश, गया, बैजनाथ और चारों धाम सहित मंदिरों की लम्बी श्रृंखला है. जिसे जहां सहूलियत हो दक्षिणा चढ़ा कर मानसिक संतुष्टि और सुख सम्पत्ति की गारंटी ले सकता है लेकिन इस के लिए जरुरी है कि वोट भाजपा को ही दिया जाए.

जिन्हें विष्णु के क्षीर सागर में होने न होने पर शक हो वे चाहें तो सीधे नरेन्द्र मोदी को भी पूज सकते हैं क्योंकि अयोध्या के एक ताजे बुलेटिन में उन्हें विष्णु अवतार घोषित कर दिया गया है. राम जन्म भूमि ट्रस्ट के सचिव चम्पत राय ने मोदी के काशी दौरे के बाद यह पाताल वाणी की है.
मुमकिन है ऊपर कहीं से उन्हें यह निर्देश मिला हो कि अभी कल्कि अवतार में विलम्ब है इसलिए नरेंद्र मोदी को ही विष्णु अवतार घोषित कर दिया जाए. बाद की खाना पूर्तियां वक्त रहते होती रहेंगी. हालफिलहाल तो नरेंद्र मोदी 22 जनबरी को मानव रूप में ही विष्णु अवतार के दर्शन करेंगे.

कितना सच कितना झूठ

वाराणसी में नरेंद्र मोदी ने सरकार की उपलब्धियां गिनाते चाहा यही है कि लोग योजनाओं का लाभ लें और वोटों की दक्षिणा भाजपा को दें. अब यह और बात है कि वे और दूसरे भाजपाई जितना और जैसे गिनाते हैं उतने का दसवा हिस्सा ही आमजन को मिलता है. मिसाल आयुष्मान कार्ड की लें तो भाषणों से तो लगता ऐसा है कि सभी लोग इस का फायदा उठा रहे हैं लेकिन हकीकत कुछ और है.
स्वास्थ मंत्रालय ने 17 दिसम्बर को ही आंकड़े जारी कर बताया है कि आयुष्मान योजना की पात्रता तो 33 करोड़ लोगों को है लेकिन अभी तक सिर्फ 3 करोड़ लोगों को ही ये कार्ड जारी किए गए हैं. इन में से भी लगभग आधे उत्तर प्रदेश के लाभार्थी हैं. कम काम में ज्यादा हल्ला कैसे मचाया जाता है भाजपा को इस में मास्टरी हासिल हो चुकी है.
मोदीजी 4 करोड़ परिवारों को प्रधानमंत्री आवास योजना से लाभान्वित बता चुके हैं यानी एक परिवार में 4 सदस्य भी माने जाएं तो 16 करोड़ लोगों को छत मिल चुकी है. आयुष्मान की तरह यह दावा और आंकड़ा भी शक के दायरे में है.
उज्ज्वला योजना में सिलेंडर बंटे जरुर है लेकिन हकीकत यह है कि बड़ी तादाद में महिलाएं दोबारा सिलेंडर भरवा ही नहीं पाई क्योंकि वे गरीब हैं और उन के पास हजार रूपए गैस सिलेंडर खरीदने को नहीं. इसी तरह स्वच्छ भारत अभियान के चिथड़े किसी भी शहर कसबे या गांव में उड़ते देखे जा सकते हैं जहां शौचालयों में कुत्तों ने डेरा डाला हुआ है या वटीन के वे डब्बे गायब ही हो चुके हैं. महिलाएं पहले की तरह लोटा या बोतल ले जाते दिख जाती हैं.

कांग्रेस खामोश क्यों

चिदंबरम जैसे नेता इन दावों और आंकड़ों का पोस्टमार्टम करे तो जो हकीकत सामने आएगी वह जरुर हवा का रुख कांग्रेस की तरफ मुड़ सकता है, इस के साथसाथ उसे यह भी लोगों को बताते रहना होगा कि दरअसल में धर्म से रोजगार नहीं मिलने वाला उस के लिए तो खुद लोगों को मेहनत करना पड़ेगी. अभी कांग्रेसी यह बात यदा कदा कह जरुर रहे हैं लेकिन खुद इस बात को ले कर शंकित हैं कि लोग इसे स्वीकारेंगे और समझेंगे या नहीं.
सियासी बाजार में बिलाशक झूठ बेचना आसान है लेकिन सच बेचना उस से भी ज्यादा आसान काम है. धर्म स्थलों से समस्याएं हल नहीं होतीं और रोजगार नहीं मिलता यह जनता भी जानती और समझती है लेकिन उस की शंका कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को ले कर यह है कि वे उसे भरोसा नहीं दिला पा रहे कि धर्म की राजनीति से हट कर यह काम कैसे होगा या हो भी सकता है.
इसी असमंजस का लाभ नरेंद्र मोदी और भाजपा उठा रहे हैं इसीलिए हवा उन के पक्ष में है और तो और उन्हें विष्णु अवतार घोषित करने पर आमजनों की धार्मिक भावनाओं पर कोई फर्क नहीं पड़ता वे इस बात पर आहत नहीं होती कि सरासर एक आदमी को भगवान बनाया जा रहा है जिस पर किसी को कोई एतराज नहीं.
दरअसल में धर्म के डर जो सदियों से हिंदुओं के दिलोदिमाग में बैठा हुआ है को भगवा गैंग ने कुछ इस तरह होव्वा बनाया है कि लोग उस के मकड़जाल से निकलने में डरने लगे हैं. कांग्रेसियों और इंडिया गठबंधन नास्तिक कहलाने से डरते हैं और उन में से अधिकतर नास्तिक हैं भी नहीं फिर भी मात खा रहे हैं तो इस की वजह भाजपा का बिछाया धर्म जाल है जिसे काटने जोखिम तो विपक्ष को उठाना पड़ेगा नहीं तो योजनाओं के लाभार्थी पैसा और वोट दोनों लुटाते खुद भी लुटते रहेंगे.
नरेंद्र मोदी अब अस्पताल और स्कूल बनाने की बात कभी कभार ही करते हैं क्योंकि शिक्षा और इलाज दोनों महंगे होते जा रहे हैं. विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रियंका गांधी ने इस मुद्दे को उठाने की कोशिश राजस्थान से की थी लेकिन कांग्रेसियों ने इस पर ध्यान नहीं दिया था कि कैसे इसे जनता के सामने पेश करें कि हकीकत उन्हें समझ आए. लोकसभा चुनाव के मद्देनजर विपक्ष को आधेअधूरे नहीं बल्कि पूरे मन से इसे उठाना होगा तभी हवा उन की तरफ चलेगी.

भारत के मोस्ट वांटेड अपराधी दाऊद इब्राहिम को पाकिस्तान में जहर दिया गया?

मुंबई हमलों का गुनाहगार और मोस्ट वांटेड आतंकवादी दाऊद इब्राहिम के बारे में यह खबर है कि पाकिस्तान के कराची शहर, जहां बीते कई सालों से उस ने अपना सुरक्षित ठिकाना बना रखा था, में उस के बंगले में ही उसे जहर दे कर मारने की कोशिश की गई है.

सोशल मीडिया के हवाले से कहा जा रहा है कि कराची में दाऊद को एक अस्पताल में भरती कराया गया है. उस की हालत नाजुक है और डाक्टर्स की टीम उस के इलाज में जुटी है. हालांकि, उसे सामान्य रूप से बीमार होने की बात कह कर अस्पताल में भरती कराया गया है.

गौरतलब है कि इस से पहले भी दावा किया गया था कि दाऊद कई गंभीर बीमारियों से जूझ रहा है. पिछले दिनों चर्चा थी कि गैंग्रीन के कारण कराची के एक अस्पताल में उस के पैर की 2 उंगलियां काट दी गई थीं. हालांकि, इस बात की भी पुष्टि नहीं हो पाई थी.

मोस्ट वांटेड आतंकवादी और डी-कंपनी का प्रमुख दाऊद इब्राहिम भारत का भगोड़ा है. वह 1993 के मुंबई बम विस्फोटों का मास्टरमाइंड है, जिस में 250 से अधिक लोगों की जान चली गई और हजारों लोग घायल हो गए. इस के बाद ही उसे भारत का मोस्ट वांटेड आतंकवादी घोषित किया गया था. तब से उस ने पाकिस्तान में शरण ले रखी है. भारत ने कई बार इस के सुबूत भी पेश किए. हालांकि, पाकिस्तान लगातार उस की देश में मौजूदगी से इनकार करता रहा है.

आखिर किस ने ऐसा किया है? वे कौन सी शक्तियां हो सकती हैं जो दाऊद को उस के घर के भीतर जहर दे सकती हैं? इस के पीछे खुद पाकिस्तान की कोई एजेंसी है या फिर भारत और अमेरिका में से किसी का हाथ है? दाऊद इब्राहिम को जहर दिए जाने की बात सामने आने के बाद इसे कुछ लोग बीते करीब 2 वर्षों के दौरान मारे गए पाकिस्तानी आतंकियों से जोड़ रहे हैं. इन में रियाज अहमद, शाहिद लतीफ, ख्वाजा शाहिद और अबु हंजाला के नाम शामिल हैं. उन में से कुछ को जहर दे कर भी मारा गया है.

पाकिस्तान में छिपे ये सभी आतंकवादी भारत की मोस्ट वांटेड लिस्ट में थे. दाऊद भी भारत के लिए मोस्ट वाटेंड हैं और उस को भी जहर देने की बात सामने आई है तो मामले को दूसरे आतंकियों की मौत से जोड़ा जा रहा है.

दाऊद इब्राहिम (67) 1993 के मुंबई बम हमले का आरोपी है. अमेरिका ने भी उसे आतंकी घोषित कर रखा है. मुंबई ब्लास्ट के बाद दाऊद भारत से भाग गया था. भारत की खुफिया एजेंसियां दाऊद के ठिकाने के साथसाथ उस की आवाज तक हासिल कर चुकी हैं.

खुफिया एजेंसियां पाकिस्तान में उस के उन ठिकानों तक भी पहुंचीं, जिन्हें वह अब तक दुनिया भर से छिपाता रहा है. ज्यादा वक्त नहीं हुआ जब दाऊद की आवाज के आधार पर भारत की एजेंसियां इस नतीजे पर पहुंची थीं कि दाऊद कराची में ही है और वहीं से अपना गैरकानूनी कारोबार चला रहा है.

अन्य देशों में छिपे बैठे भारत के दुश्मन चुनचुन कर मारे जा रहे हैं. कुछ दिनों पहले कनाडा ने भारत पर यह आक्षेप लगाया कि अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर, जो एक कनाडाई है, की ह्त्या भारत ने करवाई है.

भारत और कनाडा के बीच काफी अच्छी दोस्ती थी, लेकिन अब अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले ने माहौल पूरी तरह से बदल कर रख दिया है. दोनों देशों के रिश्तों में तनाव चरम पर है.

जी20 सम्मेलन में भी भारत और कनाडा के बीच आई दरार साफ नजर आई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कनाडा में सिख अलगाववादियों के ‘आंदोलन’ और भारतीय राजनयिकों के खिलाफ हिंसा को उकसाने वाली घटनाओं को ले कर नाराजगी जताई थी, जिस पर कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो ने जवाब दिया था कि भारत कनाडा की घरेलू राजनीति में दखल न दे.

जी20 समिट के बाद जस्टिन ट्रूडो 12 सितंबर को कनाडा वापस गए और जैसे ही वे अपने देश पहुंचे, वहां से खबर आई कि कनाडा ने भारत के साथ ट्रेड मिशन को रोक दिया है. दरअसल, कनाडा में बसे सिखों को ट्रूडो अपने साथ ले कर चलना चाहते हैं, इसीलिए वे खालिस्तानियों का भी खुल कर समर्थन कर रहे हैं.

खालिस्तान समर्थकों ने निज्जर की हत्या के खिलाफ कनाडा के टोरंटो और लंदन, मेलबर्न सहित सैन फ्रांसिस्को जैसे कई शहरों में प्रदर्शन किए. खालिस्तान का समर्थन करने वाले निज्जर पहले ऐसे अलगाववादी नहीं हैं जिन की हत्या की गई है, भारत सरकार की ओर से आतंकवादी घोषित किए गए परमजीत सिंह पंजवाड़ की भी मई में लाहौर में हत्या कर दी गई थी.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें