13 दिसंबर को संसद में हुई सुरक्षा में चूक के मसले पर लोकसभा और राज्यसभा के सांसद सदन में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बयान की मांग कर रहे थे. सांसदों का कहना था कि गृहमंत्री टीवी पर बयान दे सकते हैं तो सदन में क्यों नहीं? सांसदों का यह विरोध सरकार को पंसद नहीं आया और उस ने लोकसभा व राज्यसभा से कुल 78 सांसदों को निलंबित कर दिया है. निलंबित सांसदों में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, तृणमल कांग्रेस के सौगत राय, डीएमके के टी आर बालू, दयानिधि मारन समेत लोकसभा के कुल 33 सांसद हैं. वहीं राज्यसभा से जयराम रमेश, प्रमोद तिवारी, के सी वेणुगोपाल, इमरान प्रतापगढ़ी, रणदीप सिंह सुरजेवाला, मोहम्मद नदीमुल हक समेत 45 सांसद शामिल हैं.
2001 के संसद हमले के दिन 13 दिसंबर को 2 लोगो ने लोकसभा के अंदर और 2 ने बाहर प्रदर्शन किया था. उस के बाद से विपक्ष लगातार सुरक्षा में हुई उस चूक को ले कर सरकार से जवाब मांग रहा था. इस को ले कर 14 दिसंबर को लोकसभा से कुल 13 सांसद निलंबित किए गए थे. संसद के शीतकालीन सत्र में अब तक कुल मिला कर 92 सांसदों को निलंबित किया जा चुका है. विपक्षी सांसदों ने यह आरोप भी लगाया कि जब जब संसद की सुरक्षा से खिलवाड़ होता है, सत्ता में भाजपा सरकार ही होती है. 2001 में अटल सरकार थी, 2023 में मोदी सरकार है.
एक पार्टी शासन की तरफ बढ़ रहा देश
विपक्ष के कुल सांसदों में से आधे के करीब निलंबित किए जा चुके है. इसे मोदी सरकार का संसद और लोकतंत्र पर हमला माना जा रहा है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना है, ‘निरंकुश मोदी सरकार सासंदों को निलंबित कर के सभी लोकतांत्रिक मानदंडों को कूड़ेदान में फेंक रही है. विपक्ष रहित संसद के साथ मोदी सरकार लोकतंत्र की आवाज को दबा रही है. देश को एक पार्टी राज की तरफ ले जाया जा रहा है.’
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने कहा है, ‘भाजपा के पास सदन चलाने का नैतिक अधिकार नहीं है. अगर मोदी सरकार सभी सांसदों को निलंबित कर देगी तो सांसद अपनी आवाज कैसे उठाएंगे? वो 3 महत्त्वपूर्ण विधेयक पास कर रहे हैं. विधेयक पर विपक्ष के सांसद बहस करें, यह लोकतंत्र में एक व्यवस्था होती है. भाजपा इस व्यवस्था को खत्म करना चाहती है. विपक्ष को पूरी तरह निलंबित करने के बाद भाजपा के पास सदन चलाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है.’
सरकार की जिम्मेदारी है सदन चलाना
सही बात तो यह है कि देश स्तर पर नीतियां अब नहीं बनती हैं. नीतियों को बनाने में विधायक और सांसदों की भूमिका खत्म हो गई है. नीतियों को बनाने में ब्यूरोक्रेसी हावी हो गई है जिस ने हर जगह पर पीएमओ बना लिए हैं. ऐसे में सांसद या विधायक सदन में रहें या न रहें, इन पर कोई फर्क नहीं पड़ता है. सत्ता में बैठे लोग यह भूल जाते हैं कि विपक्ष का महत्त्व भी सरकार जैसा ही होता है. संविधान में यह अधिकार विपक्ष को अधिकार दिया गया है कि वह अपनी असहमति दर्ज करा सके. विधयेक बिना सदन में चर्चा के पारित न हो. जब सदन से सारे सांसद निलंबित कर दिए जाएंगे तो इन विधेयक पर चर्चा कैसे होगी?
सरकार की यह जिम्मेदारी है कि सदन चले. विपक्ष बहस में हिस्सा ले. विधेयक बिना चर्चा के पारित न हों. इसीलिये वह विपक्ष के साथ बातचीत कर के उन को सदन में हिस्सा लेने वाला महौल बनाती थी. अटल सरकार में यह जिम्मेदारी मनोहर जोशी निभाते थे. 2014 से 2019 तक सुमित्रा महाजन ने इस जिम्मेदारी को उठाया. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला इस तरह का माहौल बनाने में सफल नहीं हो रहे हैं. इस की वजह यह है कि सरकार के कामकाज और व्यवहार पर पीएमओ हावी है. वह जिस तरह के निर्देश देता है, उसी के मुताबिक काम होता है.
पीएमओ के रूप में ब्यूरोक्रेसी हावी
ब्यूरोक्रेसी के इस तरह से दखल देने से सत्ता और विपक्ष के बीच राजनीति व्यवहार खत्म हो जाता है. वह सत्ता और विपक्ष की जगह पर एकदूसरे के दुश्मन जैसे बन कर एकदूसरे के सामने खड़े हो जाते हैं. यहां एक पार्टी सत्ता चलाने का मतलब पीएमओ द्वारा सत्ता चलाना हो गया है. अब भाजपा में सुषमा स्वराज जैसी नेताओं की कमी है जो हाईकमान के सामने गलत कामों का विरोध कर सकें. एक तरह से सरकार मोदी सरकार नहीं चला रही, ब्यूरोक्रेसी सरकार चला रही है, जो पूरी तरह से निष्ठुर हो कर काम कर रही है. उस के लिए विपक्ष के चुने गए प्रतिनिधियों का कोई मतलब नहीं रह गया है.
ब्यूरोक्रेसी सरकार की छवि को पूरी तरह से खराब कर देती है. नेता यह भूल जाते हैं कि वोट मांगने ब्यूरोक्रेसी जनता के पास नहीं जाती. ऐसे में जब नेता वोट मांगने जाएंगे, जनता उन से सवाल पूछ सकती है. ब्यूरोक्रेसी इस तरह से काम करती है कि वह जिस लकीर पर चले, नेता उसी पर चले. जैसे, चीटिंया एक लाइन में चलती हैं. चींटिंयो की अगुआई रानी चींटी करती है. ब्यूरोक्रेसी के पीछे जो लाइन चलती है उस में कोई रानी चींटी यानी उन का कोई अगुआ नहीं होता है. ऐसे में असफलता की जिम्मेदारी सभी नेताओं की होती है.
मोदी सरकार ने जब अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए अदालत के आदेशानुसार ट्रस्ट बनाया तो नृपेंद्र मिश्रा को इस का चेयरमैन बना दिया. नृपेंद्र मिश्रा रिटायर सीनियर आईएएस अफसर हैं. 2014 से 2019 तक वे मोदी सरकार के प्रमुख सचिव थे. उन को पदमभूषण सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है. वही अब राम मंदिर निर्माण के सारे फैसले ले रहे हैं. मंदिर निर्माण आंदोलन में शामिल रहे बाकी नेता उन के आदेश को मानने का बाध्य हैं.
रिटायर होने के बाद भी उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव का कार्यकाल लगातार बढ़ाया जाता रहा है. दुर्गा शंकर मिश्रा का कार्यकाल मुख्य सचिव के रूप में रिटायर होने के बाद भी 2021 और 2022 में बढ़ाया जा चुका है. 31 दिसंबर, 2023 को यह कार्यकाल खत्म हो रहा है. लोग कयास लगा रहे हैं कि तीसरी बार यह कार्यकाल बढ़ेगा या नहीं. उत्तर प्रदेश जैसे राज्य को रिटायर अफसर चला रहे हैं. इस तरह से सरकार ब्यूरोक्रेसी पर निर्भर है. ब्यूरोक्रेसी के फैसले चुने गए जनप्रतिनिधियों के फैसलों से अलग होते हैं.
सरकार के कदम से मजबूत हो रहा विपक्ष
संसद की सुरक्षा में चूक हुई है. गृहमंत्री अमित शाह की नाकामियों को छिपाने के लिए विपक्षी सांसदों को निलंबित किया जा रहा है. विपक्ष के सांसदों का कहना है कि जब उन की बात सुनी नहीं जा रही है तो उन के पास सदन में नारेबाजी करने और तख्तियां दिखाने के अलावा रास्ता नहीं बचता है. निलंबित होने वाले सांसदों में किसी एक पार्टी के ही सांसद नहीं हैं. इन में अधिकतर इंडिया ब्लौक के सदस्य हैं. 3 राज्यों में चुनावी हार के बाद भी इन की अगुआई कांग्रेस ही कर रही है.
संसद में इस तरह से विरोध करना कोई नई बात नहीं है. जब गैरभाजपा की सरकार होती थी तो इसी तरह से भाजपा के सांसद शोरशराबा करते थे. तब इस तरह से सांसदों को निलंबित नहीं किया जाता था. संसद की सुरक्षा में चूक एक बहुत बड़ा मुद्दा है. विपक्ष के सांसदों की यह जिम्मेदारी है कि वे इस मुददे पर सरकार को बात रखने पर मजबूर करें. सांसदों का निलंबन तानाशाही की तरफ बढता हुआ कदम है.