हैल्दी डाइट के सामने कौनकौन सी समस्याएं हैं, यह आम प्रश्न है. इस का जवाब ढूंढ़ा जाना चाहिए. आज हृदय रोग, कैंसर, डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, किडनी की बीमारियां बहुत तेजी से फैल रही हैं और ये सभी किसी न किसी रूप में डाइट यानी खानपान से जुड़ी हैं.

दरअसल, आजकल लोग क्राइसिस मैनेजर हो गए हैं क्योंकि लोग तब तक अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिए कठोर कदम नहीं उठा पाते जब तक कि पानी सिर के ऊपर से न गुजर जाए. बाजार में इन दिनों अच्छे तथा संतुलित आहार प्राप्त करना आसान नहीं है जबकि स्नैक्स, प्रोसैस्ड फूड आसानी से बाजारों में सर्वसुलभ हैं. फल तथा सब्जियों को रखने व बनाने की समस्या है. इस के लिए रेफ्रिजरेटर की जरूरत पड़ती है. यही कारण है कि बदलती फूड हैबिट, खानपान में अनियमितता, भागमभाग की जिंदगी, समय का अभाव, मानसिक दबाव एवं तनाव के कारण युवा पीढ़ी तरहतरह की मानसिक व शारीरिक बीमारियों का शिकार हो रही है. इन में हृदय रोग भी एक है. पहले उम्रदराज लोगों और अधेड़ावस्था में ही हृदय रोग के होने की शिकायत मिलती थी किंतु अब तो 20-25 साल के युवकयुवतियों में भी यह रोग तेजी से फैल रहा है. यदि खानपान, रहनसहन और चालचलन पर ध्यान दिया जाए तो यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं कि हृदय रोग के होने की संभावना घट तो जाएगी साथ ही, हृदय रोगियों को दीर्घायु होने से कोई रोक नहीं सकता.

चिकित्सा विज्ञान ने हृदय रोगियों के लिए रेशेदार फल तथा खाद्य पदार्थों के साथसाथ दूसरी चीजें निर्धारित की हैं जो हृदय को निरोग तथा स्वस्थ रखने में सहायक होती हैं. इन में एंटीऔक्सीडैंट पर विशेष जोर दिया जा रहा है ताकि हृदय रोग खतरनाक स्थिति न ले ले और सर्जरी कराने की जरूरत न पड़े. इन डाइट्स में हाई फाइबर डाइट, लो फैट डाइट, ऐंटीऔक्सीडैंट, हर्बल प्रोडक्ट, लो कार्बोहाइड्रेट और लो प्रोटीन डाइट शामिल हैं.

वजन प्रबंधन

हृदय रोगियों के लिए वजन को नियंत्रित करना जरूरी है. अगर वजन अधिक है और मोटापे के शिकार हैं तो वजन कम करने वाली डाइट लेनी होगी. इस के लिए किसी अच्छे डाइटीशियन से डाइट चार्ट बनवा कर अनुशासनपूर्वक उस का पालन करना जरूरी है.

प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट

वजन कम करने के लिए खानपान में अधिक प्रोटीन तथा कम कार्बोहाइड्रेट का प्रचलन लोकप्रिय हो रहा है. इस से वजन कम होता है. ऐसे खाद्य पदार्थों में वसा को नियंत्रित किया जाता है क्योंकि इस से कैलोरी प्राप्त होती है. आजकल वजन कम करने के लिए फास्ट एनर्जी फूड की भी वकालत की जा रही है. कार्बोहाइड्रेट का सेवन तब किया जाना चाहिए जब अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है, जैसे सुबह या जब ऐक्सरसाइज कर रहे हों. रात में कम ऊर्जा की जरूरत पड़ती है, इसलिए डिनर में कार्बोहाइड्रेट से परहेज किया जाना चाहिए. इस तरह की डाइट के पीछे यह सिद्धांत काम करता है कि प्रोटीन तथा वसा से ऊर्जा धीरेधीरे प्राप्त होती है, इस कारण इस से वजन बढ़ने की संभावना काफी कम होती है. इतना ही नहीं, प्रोटीन का पाचन धीरेधीरे तथा देरी से होता है और कार्बोहाइड्रेट का पाचन अपेक्षाकृत तेजी से होता है, जिस से पेट जल्दी खाली हो जाता है.

कम वसा का सेवन

हृदय रोगियों के लिए कम वसा का सेवन फायदेमंद होता है. इस से एक तो वजन नियंत्रित रहता है, दूसरे, रक्तनलियों में वसा का जमाव नहीं हो पाता. फलस्वरूप हृदय रोगियों को इस से काफी राहत मिलती है. चूंकि वसा से अधिक मात्रा में कैलोरी मिलती है तथा इस का जमाव शरीर के विभिन्न भागों में कार्बोहाइड्रेट तथा प्रोटीन की अपेक्षा ज्यादा होता है इसलिए इस की मात्रा कम कर दी जाए तो अधिक ऊर्जा की बचत हो जाती है. उदाहरण के रूप में यदि वसा की मात्रा 10 ग्राम कर दी जाए तो 900 कैलोरी ऊर्जा की कमी होती है. वजन कम करने के दौरान कार्बोहाइड्रेट तथा प्रोटीन की मात्रा ज्यादा नहीं बढ़ानी चाहिए. बहरहाल, भोजन में वसा की कमी के पीछे मुख्य उद्देश्य रक्त में कोलैस्ट्रौल की मात्रा को कम करना होता है.

ऐंटीऔक्सीडैंट

औक्सीडैंट या फ्री रेडिकल से कई तरह के रोग होते हैं, जैसे कैंसर, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, एथेरो स्कलोरोसिस, मोतियाबिंद, स्ट्रोक, दमा, पैंक्रियाटाइटिस, पार्किंसन डिजीज तथा पेट की बीमारियां. फ्री रेडिकल के शरीर में आने के मुख्य स्रोत तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट, वायु प्रदूषण, एनेस्थेटिक्स, पैस्टिसाइड्स तथा कुछ दवाएं व रेडिएशन हैं. इस के प्रभाव को खत्म करने के लिए ऐसे लोगों को ऐंटीऔक्सीडैंट के सेवन की सलाह दी जाती है. ये विटामिंस हैं जो लवणों तथा दूसरे एजेंट के साथ मिल कर फ्री रेडिकल या औक्सीडैंट के प्रभाव को समाप्त कर देते हैं. शरीर के अंदर इन का निर्माण नहीं होता है. ये हमारे द्वारा खाए गए भोज्य हैं. जब विटामिंस तथा लवण का सेवन ऐंटीऔक्सीडैंट की तरह करते हैं तो ये हृदय व दूसरे शारीरिक अंगों को क्षतिग्रस्त होने से बचाते हैं. सो हर हृदय रोगी को इस का सेवन करना चाहिए. हालांकि हम जानते हैं कि एलडीएल कोलैस्ट्रौल बैड कोलैस्ट्रौल माना जाता है जिस के कारण हृदय रोग होता है. अभी हाल में अनुसंधान से पता चला है कि यह और कुछ नहीं एलडीएल का औक्सीडाइज्ड रूप है जो हृदय की नलियों में जमा हो कर एथरोजेनेसस नामक बीमारी का कारण बनता है. यहां बता दें कि सामान्यतया अनऔक्सीडाइज्ड एलडीएल हृदय रोग पैदा करने में सक्षम नहीं होता है. इसलिए हृदय रोगों को रोकने के लिए 2 बातें मुख्य हैं : एलडीएल कोलैस्ट्रौल की मात्रा को नियंत्रित करना और एलडीएल कोलैस्ट्रौल को औक्सीडाइज होने से बचाना. इस के लिए हृदय रोगियों को विटामिन तथा लवण के साथ ऐंटीऔक्सीडैंट का भी सेवन करना जरूरी है. इस से एलडीएल के औक्सीडाइज होने की संभावना कम होती है.

लवण का सेवन

कुछ ऐसे लवण हैं जो शरीर को सक्रिय, मैटाबोलिज्म तथा हृदय को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी हैं. इन में प्रमुख हैं : क्रोमियम, मैग्नीशियम तथा कैल्शियम. इन की कमी से कई तरह की बीमारियों के होने की संभावना होती है, जैसे क्रोमियम की कमी से इंसुलिन रेजिस्टेंट, हाइपर इंसुलिनेमिया, इंपेयर ग्लूकोज रालटेस तथा हाइपर लिपिडेनिया होने की संभावना होती है. इस की उचित मात्रा का सेवन करने से ये परेशानियां दूर हो जाती हैं. मैग्नीशियम की कमी से कोरोनरी आर्टेरियो, स्कलोरेसिस नामक रक्तनलियों की बीमारियां होती हैं और कैल्शियम की कमी से आट्रेरियो स्कलोरेसिस तथा उच्च रक्तचाप नामक बीमारियां होती हैं. अत: हृदय रोग विशेषज्ञ हृदयरोगियों को कुछ विटामिन जैसे विटामिन-ई, विटामिन-सी के साथ कैल्शियम, सेलेमियम तथा क्रोमियम का सेवन नियमित रूप से करने की सलाह देते हैं.

ऐसे कम करें रिस्क फैक्टर

अधिक मछली खाएं. मछली प्रोटीन तथा दूसरे पोषक तत्त्वों का अच्छा स्रोत है. इस में प्रचुर मात्रा में ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है जो हृदय रोग की संभावना तथा स्ट्रोक को कम करने में सहायक होता है. हरी रेशेदार सब्जियां, फल, जूस तथा मोटे अनाज का सेवन करें. मौसमी फल, हरी सब्जियां, मोटे अनाज आसानी से सुलभ हैं. ये खाने में स्वादिष्ठ तो लगते ही हैं, हृदय रोग से लड़ने में सहायक भी होते हैं.

  1. नियंत्रित वसा का चुनाव करें.
  2. कम वसा का सेवन करें.
  3. सैचुरेटेड फैट का त्याग करें.
  4. अनसैचुरेटेड फैट का चुनाव करें.
  5. प्रोटीन में विविधता लाएं.
  6. कोलैस्ट्रौल का सेवन कम करें.
  7. थोड़ाथोड़ा खाएं.
  8. खानपान पर ध्यान

हार्ट को हैल्दी रखने के लिए इस बात पर ध्यान देने की जरूरत होती है कि आप क्या खा रहे हैं. ऐसा करने पर हार्ट की आर्टरीज में रक्त के क्लौट बनने से रोका जा सकता है. यदि किसी आर्टरी में क्लौट का जमाव होना शुरू हो भी गया हो तो उस के बढ़ने की संभावना कम हो जाती है. इस से टोटल तथा एलडीएल कोलैस्ट्रौल कम होता है जिस से रक्तचाप नियंत्रित रहता है. ऐसे मरीजों के लिए डाइटीशियन जब डायरी प्लान बना रहे होते हैं तो वे इस बात का ध्यान रखते हैं कि मरीज को क्या खाना चाहिए और क्या नहीं. हकीकत यह है कि हार्ट की सुरक्षा के लिए एक ओर जहां कुछ खाद्य पदार्थों को डाइट चार्ट में जोड़ा जाता है वहीं कुछ खाद्य पदार्थों को हटाया भी जाता है. जिस खाद्य पदार्थ को आप खा रहे हैं, उस को एंजौय करें. खुशीखुशी खाएं, न कि नाकभौं सिकोड़ कर. अपनी जिंदगी के बारे में पौजिटिव थिंकिंग रखते हुए उस का आनंद लें ताकि आप अपने में सहजता का अनुभव करें. इस बात को बोनस के रूप में मानें कि आप को कम खाने की जरूरत पड़ रही है. इस से एक ओर जहां आप का वजन कम होता है वहीं दूसरी ओर इस से रक्त में कोलैस्ट्रौल की मात्रा भी कम होती है.

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