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भारत के मोस्ट वांटेड अपराधी दाऊद इब्राहिम को पाकिस्तान में जहर दिया गया?

मुंबई हमलों का गुनाहगार और मोस्ट वांटेड आतंकवादी दाऊद इब्राहिम के बारे में यह खबर है कि पाकिस्तान के कराची शहर, जहां बीते कई सालों से उस ने अपना सुरक्षित ठिकाना बना रखा था, में उस के बंगले में ही उसे जहर दे कर मारने की कोशिश की गई है.

सोशल मीडिया के हवाले से कहा जा रहा है कि कराची में दाऊद को एक अस्पताल में भरती कराया गया है. उस की हालत नाजुक है और डाक्टर्स की टीम उस के इलाज में जुटी है. हालांकि, उसे सामान्य रूप से बीमार होने की बात कह कर अस्पताल में भरती कराया गया है.

गौरतलब है कि इस से पहले भी दावा किया गया था कि दाऊद कई गंभीर बीमारियों से जूझ रहा है. पिछले दिनों चर्चा थी कि गैंग्रीन के कारण कराची के एक अस्पताल में उस के पैर की 2 उंगलियां काट दी गई थीं. हालांकि, इस बात की भी पुष्टि नहीं हो पाई थी.

मोस्ट वांटेड आतंकवादी और डी-कंपनी का प्रमुख दाऊद इब्राहिम भारत का भगोड़ा है. वह 1993 के मुंबई बम विस्फोटों का मास्टरमाइंड है, जिस में 250 से अधिक लोगों की जान चली गई और हजारों लोग घायल हो गए. इस के बाद ही उसे भारत का मोस्ट वांटेड आतंकवादी घोषित किया गया था. तब से उस ने पाकिस्तान में शरण ले रखी है. भारत ने कई बार इस के सुबूत भी पेश किए. हालांकि, पाकिस्तान लगातार उस की देश में मौजूदगी से इनकार करता रहा है.

आखिर किस ने ऐसा किया है? वे कौन सी शक्तियां हो सकती हैं जो दाऊद को उस के घर के भीतर जहर दे सकती हैं? इस के पीछे खुद पाकिस्तान की कोई एजेंसी है या फिर भारत और अमेरिका में से किसी का हाथ है? दाऊद इब्राहिम को जहर दिए जाने की बात सामने आने के बाद इसे कुछ लोग बीते करीब 2 वर्षों के दौरान मारे गए पाकिस्तानी आतंकियों से जोड़ रहे हैं. इन में रियाज अहमद, शाहिद लतीफ, ख्वाजा शाहिद और अबु हंजाला के नाम शामिल हैं. उन में से कुछ को जहर दे कर भी मारा गया है.

पाकिस्तान में छिपे ये सभी आतंकवादी भारत की मोस्ट वांटेड लिस्ट में थे. दाऊद भी भारत के लिए मोस्ट वाटेंड हैं और उस को भी जहर देने की बात सामने आई है तो मामले को दूसरे आतंकियों की मौत से जोड़ा जा रहा है.

दाऊद इब्राहिम (67) 1993 के मुंबई बम हमले का आरोपी है. अमेरिका ने भी उसे आतंकी घोषित कर रखा है. मुंबई ब्लास्ट के बाद दाऊद भारत से भाग गया था. भारत की खुफिया एजेंसियां दाऊद के ठिकाने के साथसाथ उस की आवाज तक हासिल कर चुकी हैं.

खुफिया एजेंसियां पाकिस्तान में उस के उन ठिकानों तक भी पहुंचीं, जिन्हें वह अब तक दुनिया भर से छिपाता रहा है. ज्यादा वक्त नहीं हुआ जब दाऊद की आवाज के आधार पर भारत की एजेंसियां इस नतीजे पर पहुंची थीं कि दाऊद कराची में ही है और वहीं से अपना गैरकानूनी कारोबार चला रहा है.

अन्य देशों में छिपे बैठे भारत के दुश्मन चुनचुन कर मारे जा रहे हैं. कुछ दिनों पहले कनाडा ने भारत पर यह आक्षेप लगाया कि अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर, जो एक कनाडाई है, की ह्त्या भारत ने करवाई है.

भारत और कनाडा के बीच काफी अच्छी दोस्ती थी, लेकिन अब अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले ने माहौल पूरी तरह से बदल कर रख दिया है. दोनों देशों के रिश्तों में तनाव चरम पर है.

जी20 सम्मेलन में भी भारत और कनाडा के बीच आई दरार साफ नजर आई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कनाडा में सिख अलगाववादियों के ‘आंदोलन’ और भारतीय राजनयिकों के खिलाफ हिंसा को उकसाने वाली घटनाओं को ले कर नाराजगी जताई थी, जिस पर कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो ने जवाब दिया था कि भारत कनाडा की घरेलू राजनीति में दखल न दे.

जी20 समिट के बाद जस्टिन ट्रूडो 12 सितंबर को कनाडा वापस गए और जैसे ही वे अपने देश पहुंचे, वहां से खबर आई कि कनाडा ने भारत के साथ ट्रेड मिशन को रोक दिया है. दरअसल, कनाडा में बसे सिखों को ट्रूडो अपने साथ ले कर चलना चाहते हैं, इसीलिए वे खालिस्तानियों का भी खुल कर समर्थन कर रहे हैं.

खालिस्तान समर्थकों ने निज्जर की हत्या के खिलाफ कनाडा के टोरंटो और लंदन, मेलबर्न सहित सैन फ्रांसिस्को जैसे कई शहरों में प्रदर्शन किए. खालिस्तान का समर्थन करने वाले निज्जर पहले ऐसे अलगाववादी नहीं हैं जिन की हत्या की गई है, भारत सरकार की ओर से आतंकवादी घोषित किए गए परमजीत सिंह पंजवाड़ की भी मई में लाहौर में हत्या कर दी गई थी.

हलाल पर बवाल : खाने में क्यों दखल दे धर्म या सरकार

बिहार के बेगूसराय के सांसद और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का कहना है कि- ‘हिंदुओं को साजिश के तहत ‘हलाल’ मीट खिलाया जा रहा है, जिस से उन का धर्म भ्रष्ट हो रहा है.’ उन्होंने हिंदू समुदाय के लोगों से अपील की कि वे लोग ‘हलाल’ मीट न खाएं. जो भी हिंदू मीट खाते हैं वे ‘झटका’ मीट खाएं.

गिरिराज सिंह ने कहा कि वे खुद भी ‘झटका’ मीट खाते हैं. इस के साथ ही उन्होंने कहा कि इन दिनों मंदिरों में बलिप्रथा पर रोक लगाने की साजिश की जा रही है, जबकि यह बलिप्रथा हिंदू धर्म का अहम हिस्सा है.

इस के साथ ही गिरिराज सिंह ने कुर्बानी पर भी सवाल उठाए. मंत्री ने कहा कि अगर हिंदू के द्वारा दी जा रही बली अगर बली है तो फिर मुसलमान जो बकरों की कुर्बानी करते हैं, उस पर भी रोक लगनी चाहिए. सरकार को इस पर रोक लगानी चाहिए. उन्होंने बिहार की नीतीश सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि वोट की राजनीति करने वाली सरकार ऐसा नहीं कर सकती.

गिरिराज सिंह ने अपने भाषण में आगे कहा कि कोई भी मुसलमान हिंदुओं के घर पर बना मीट नहीं खाएगा. लेकिन हिंदू लोग उन के घर बना ‘हलाल’ मीट खा लेते हैं जिस से हिंदुओं का धर्म भ्रष्ट हो रहा. उन्होंने कहा कि राज्य की नीतीश सरकार को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता. उसे, बस, अपने वोटबैंक से मतलब है.

गिरिराज सिंह ने सड़क के किनारे मीट काटने पर भी एतराज जताते कहा कि सड़क के किनारे मीट काटने से आसपास गंदगी फैलती है. इस से साफसफाई पर असर पड़ता है. ऐसे में सड़क के किनारे खुले में मीट काटने पर बैन लगाना चाहिए.

गिरिराज सिंह हलाल मामले पर पहले भी कई सवाल उठा चुके हैं. कुछ दिनों पहले उन्होंने हलाल सामान को बैन करने की मांग की थी. गिरिराज केंद्र सरकार में मंत्री हैं. वे बिहार में केवल बयान दे सकते हैं. उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं, वे हलाल को ले कर गंभीर हैं. ‘हलाल प्रमाणपत्र’ देने वालों के खिलाफ अभियान चला कर उस को बंद कर रहे हैं.

खानपान को नियंत्रित न करें धर्म

खानपान इंसान का अपना अधिकार है. यह बात केवल संविधान की ही नहीं, मौलिक अधिकारों की भी है. धर्म हमेशा से ही खाने को नियंत्रित करता रहा है. ‘हलाल’ और ‘झटका’ दोनों ही शब्द मीट के खाने से जुड़े हैं. इन दोनों का ही मतलब जानवर काटने की विधि से जुड़ा है.

‘झटका’ में जानवर की गरदन एक बार में ही काट दी जाती है. ‘हलाल’ में जानवर की गरदन को धीरेधीरे काटा जाता है. ‘हलाल’ विधि से काटे गए जानवर का मांस खाना ही इसलाम धर्म के अनुसार सही माना जाता है. गैरमुसलिम ‘हलाल’ की जगह ‘झटका’ मीट खाने को सही मानते हैं.

‘हलाल’ के समर्थक कहते हैं कि ‘झटका’ मीट खाने में नुकसान करता है, क्योंकि एक झटके में जब गरदन काटी जाती है तो तमाम सारा ब्लड अंदर रह जाता है जो मीट खाने वाले को नुकसान करता है. जबकि ‘हलाल’ में ब्लड धीरेधीरे बहता है, तो बाहर निकल जाता है. इस से वह खाने वाले को नुकसान नहीं करता है.

‘झटका’ खाने वालों का तर्क है कि ‘हलाल’ विधि में जानवर तड़पतड़प कर मरता है, ऐसे में उस का मीट खाना सही नहीं होता. इस तरह से गैरमुसलिम ‘झटका’ विधि से काटे गए मीट को सही मानते हैं. शुरुआत से ही धर्म खाने को नियंत्रित करता रहा है.

बीफ के मीट को खाने और न खाने के पीछे भी धर्म का ही विवाद है. इस को ले कर झगड़े होते रहते हैं. भारत के ही तमाम उत्तरपूर्व राज्यों में बीफ खाया जाता है, जबकि दूसरे राज्यों में धार्मिक कारणों से बीफ खाने से मना किया जाता है.

इन राज्यों के मुसलिम भी अब बीफ खाना पसंद नहीं करते. मीट की बात तो छोड़िए, हमारे समाज में तो धर्म कई बार लहसुन और प्याज खाने पर भी प्रतिबंध लगाता है. जैन धर्म में लहसुन और प्याज खाने की मनाही है. दाल में छोंक लगाने के लिए लहसुन और प्याज की जगह पर जीरा का छोंक लगाया जाता है.

खाना मौलिक अधिकार है

खाना इंसान का मौलिक अधिकार है. यह रहनसहन और वातावरण पर निर्भर करता है. कई जगहों का वातावरण ऐसा होता है कि जहां बिना मीट खाए रहना संभव नहीं होता है. इस के लिए पहाड़ी इलाकों को देखा जा सकता है. वहां मीट खाना जरूरत होता है. इस के बिना जीवन की कल्पना नहीं हो सकती. रेगिस्तान के ऐसे इलाके जहां कोई फसल नहीं होती वहां भी बिना मीट खाए नहीं रहा जा सकता. जो जानवर वहां होता है वहां के लोग उस का मीट खाना पसंद करते हैं. जिन इलाकों में आनाज पैदा होता है वहां लोगों के पास औप्शन होते हैं. ऐसे में वे मीट खा भी सकते हैं और नहीं भी खा सकते.

किसी खाने पर धर्म और सरकार का प्रतिबंध मौलिक और मानवाधिकार का हनन करने वाला होता है. इस से किसी समाज और देश का भला नहीं हो सकता. धर्म का कट्टरपन जिन भी देशों में है वे बरबादी की राह पर चल रहे हैं. इजराइल, सीरिया, इराक, ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान जैसे देश इस के उदाहरण हैं.

धर्म के प्रतिबंध के बाद भी भारत इसलिए तरक्की कर रहा है क्योंकि यहां जनसंख्या अधिक है. जिस में से बहुत से भारतीय हिंदू मजदूर विदेशों में गैरधर्म के देशों में रह कर पैसा कमा रहे हैं और कमाई भारत में भेज रहे हैं. भारत सरकार इसी विदेशी करैंसी के बल पर फूल कर कुप्पा हो रही है कि हमारा विदेशी मुद्रा भंडार कितना फलफूल रहा है.

पाकिस्तान और बंगलादेश की तुलना करें तो कट्टरपन में बंगलादेश पाकिस्तान के पीछे हो गया है. बंगलादेश लगातार तरक्की की राह पर है. वहां का तैयार कपड़ा बड़ी तादाद में भारत के बाजारों में बिक रहा है. आज जो सस्ते किस्म का कपड़ा भारत में गरीबों की जरूरत को पूरा कर रहा है, वह बंगलादेश से ही बन कर आ रहा है. कट्टरपन पर चल रहा पाकिस्तान बंगलादेश से पिछड़ गया है.

भारत भी जिस तरह से धार्मिक कट्टरपन पर आगे बढ़ रहा है उस का नुकसान देश को उठाना पड़ेगा. गिरिराज सिंह जैसे लोग धार्मिक भावनाओं को उकसा कर वोट ले सकते हैं पर उन की इस तरह की नीतियों से देश पिछड़ जाएगा.

धर्म के कट्टरवादी लोग देश को जेल की तरह बनाना चाहते हैं, जहां खानेपीने का मैन्यू जेलर तय करता है. उसी तरह से कट्टरवादी यह चाहते हैं कि देश के लोग क्या खाएं, क्या पहनें यह वे तय करें. धार्मिक कट्टरपन समाज और इंसान को आगे नहीं बढ़ने देता. लोग क्या खाएं, यह तय करने का अधिकार उन का मौलिक और संवैधानिक अधिकार है. धर्म और सरकार को इस में अड़ंगा नहीं डालना चाहिए.

संसद की सुरक्षा पर उठते सवाल

जिस सुरक्षा व्यवस्था के साथ हाल ही मेंधर्म, धार्मिकता और पूरे ‘आडंबर’ के साथ नए ‘संसद भवन’ का उद्घाटन बड़ेबड़े तांत्रिक पंडितों की मौजूदगी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था, वह सुरक्षा कवच कहां है कि संसद में घुसपैठ कांड हो गया. सच तो यह है कि वह सुरक्षा कवच पूरी तरह निरर्थक हो गया जिसे दुनिया ने अब देख लिया.

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर अगर ‘बाधा विनाशक’ कोई पूजापाठ-तंत्रमंत्र क्रिया की होती तो, शायद, संसद में इस तरह की घटना कभी हो ही न सकती थी. लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह अच्छी तरह जानते हैं कि इस तरह के पूजापाठ, तंत्र, आडंबर से सुरक्षा को कोई फर्क नहीं पड़ता.

यह बात सही है कि प्रधानमंत्री ने देशदुनिया को यह दिखाने की प्रयास किया कि वे बहुत बड़े हिंदू धर्मवादी, चहेते प्रधानमंत्री हैं. वे राजनीतिक सफलता के लिए देशप्रदेश के भीतर अपने वोटबैंक को कामयाब बनाने में कहीं न कहीं सफल हो रहे हैं. जिस का प्रत्यक्ष उदाहरण है हाल में 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में से 3 राज्यों में मिली सफलता.

यह किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है कि संसद में एक बार फिर 13 दिसंबर को संसद में हुए हमले के बरसी के दिन ही कांड हो गया. और सारी दुनिया में देश की सरकार व उस के द्वारा तैयार की गई देश की सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लग गया.

13 दिसंबर, 2001 का यह वह दिन था जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय आतंकी घुसपैठ हुई थी और अब 13 दिसंबर, 2023 का वह दिन था जब भाजपा के बड़े चेहरे बन चुके नरेंद्र मोदी की सरकार है और संसद में घुसपैठ हो गई, भवन धुआंधुआं हो गया, अफरातफरी मच गई.

दरअसल, जहां वीवीआईपी स्थितियां हों, सुरक्षा के सारे मानकों का पालन किया जाता हो, जहां कोई परिंदा भी पर भी न मार सकता हो ऐसा माना जाता है, वहां सुरक्षा में सेंध एक बड़ा प्रश्न है, जिस का जवाब देश के गृहमंत्री को देना चाहिए, प्रधानमंत्री को स्वस्फूर्त देना चाहिए.

मगर संसद और सड़क दोनों ही मौन हैं और जब सांसद जवाब मांगते हैं तो उन पर निष्कासन की बिजली गिरा दी जाती है. इन स्थितियोंको किसी भी स्थिति में अच्छा नहीं कहा जा सकता. एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में सबकुछ खुला होना चाहिए, पारदर्शिता होनी चाहिए. मोदी के सत्तासीन हो जाने के बाद 2014 से ही देश में उलटी गंगा बह रही है.

सुरक्षा चूक के बाद संसद की कार्यवाही रही हंगामेदार

विपक्षी सदस्यों ने सुबह 11 बजे से ही लोकसभा और राज्यसभा में अध्यक्षीय आसन के समीप आ कर प्रधानमंत्री के संसद में जवाब और गृहमंत्री के इस्तीफे की मांग के साथ नारेबाजी की. परिणामस्वरूप,‘आसन’ की अवमानना और अनादर का आरोप लगाते हुए सत्तापक्ष द्वारा विपक्ष के 14 सांसदों को मौजूदा शीतकालीन सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित कर दिया गया.

इस में लोकसभा के 13 और राज्यसभा का एक सांसद शामिल हैं. लोकसभा में सांसदों के निलंबन का प्रस्ताव संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी व राज्यसभा में सदन के नेता पीयूष गोयल ने रखा, जिसे दोनों सदनों में ध्वनिमत से पारित किया गया. निलंबन के साथ ही संसद की कार्यवाही को स्थगित कर दिया गया. हालांकि, इस के बाद भी विपक्षी सांसद अध्यक्षीय आसन के पास आ कर कुछ देर तक हंगामा व नारेबाजी करते रहे.

14 सांसदों में लोकसभा के 13 और राज्यसभा के एक सांसद शामिल हैं. लोकसभा से निलंबित किए गए सांसदों में कांग्रेस के 9 सांसद, माकपा के 2, द्रमुक के एक और भाकपा के एक सासंद शामिल हैं.

सरकार ने संसद में कहा, “लोकसभा में बुधवार को सुरक्षा चूक की घटना के मामले में उच्चस्तरीय जांच शुरू कर दी गई है और विपक्ष को इस मुद्दे पर राजनीति नहीं करनी चाहिए.”

लोकसभा की कार्यवाही एक बार के स्थगन के बाद अपराह्न 2 से जब शुरू हुई तो विपक्षी सदस्यों ने सदन में सुरक्षा की चूक संबंधी घटना पर नारेबाजी शुरू कर दी.

इसी बीच, संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी नोशी ने कहा, “हम सब सहमत हैं कि कल की दुर्भाग्यपूर्ण घटना सदस्यों की सुरक्षा के लिहाज से गंभीर थी.”

उन्होंने कहा,“लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने घटना के तत्काल बाद सभी दलों के सदन के नेताओं की बैठक बुलाई और संसद की सुरक्षा को और पुख्ता करने के लिए सब के सुझाव सुने.”

जोशी ने कहा कि सांसदों के कुछ सुझावों को लागू किया जा चुका है और लोकसभा अध्यक्ष ने आज स्वयं कहा है कि सुरक्षा को और मजबूत करने के लिए भविष्य में और भी कदम उठाए जाएंगे. मगर सब से बड़ी बात यह है कि सब की सुरक्षा को ले कर जिस तरह नरेंद्र मोदी सरकार को गंभीर होना चाहिए वह कहीं से भी दिखाई नहीं दे रहा है.

यह भी महत्त्वपूर्ण तथ्य कि नईनई बनी संसद के बिल्डिंग में हुई यह घटना संपूर्ण सुरक्षा व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े कर चुकी है और अगर इसे गंभीरता से नहीं लिया गया तो आगामी समय में इस के दुष्परिणाम भी आ सकते हैं.

चलने की आदत बनाएगी आपको फिट

भारत में स्वास्थ्य समस्याओं के पीछे अनेक कारण होते हैं लेकिन हमारा पैदल न चलना एक बड़ा कारण है. पैदल न चलने के चलते हमें कई बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है. इस बारे में स्वास्थ्य संबंधी जानकार क्या कहते हैं, जानें. चलने के विषय में तरहतरह की कहावतें प्रचलित हैं, जैसे कि ‘चलना ही जिंदगी है’, ‘चलने का नाम जिंदगी’, ‘जितना चलोगे उतना चलोगे’, ‘जीवन चलने का नाम’ आदि. एक जमाना था जब लोग हाट बाजार, रिश्तेदारों के यहां जाने, मेला देखने, कार्यालय अथवा विद्यालय जाने जैसे उद्देश्यों से 5-10 किलोमीटर पैदल ही चले जाया करते थे. आज भौतिक सुखसुविधाओं ने हमारा चलना लगभग बंद कर दिया है. छोटीछोटी दूरियां तय करने के लिए साइकिल, बाइक, यहां तक कि कार का सहारा लिया जाता है. महानगरों में अकसर देखा गया है कि लोग अपने पालतू कुत्तों को सुबहशाम दैनिक निवृत्ति के लिए भी मोटरकार या अन्य वाहनों का सहारा लेते हैं.

3 से 4 मंजिल वाले भवनों में आनेजाने के लिए सीढि़यों के बजाय लिफ्ट का उपयोग करना आम हो गया है. इन सुविधाओं ने हमारे दैनिक कार्यों को सुलभ तो बनाया है परंतु इस के साथसाथ हमारे स्वास्थ्य को बहुत प्रभावित किया है. अब तो शहरों में ही नहीं, गांवों में भी डायबिटीज यानी मधुमेह, मोटापा, पाचन संबंधी समस्याएं, कब्ज, अनिद्रा, थायराइड, हार्मोन का असंतुलन, तनाव, हाई ब्लडप्रैशर, हृदयरोग जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं आम हो गई हैं. पहले ये सभी स्वास्थ्य समस्याएं बड़ी उम्र के लोगों में देखी जाती थीं परंतु आरामतलबी और कार्यसंबंधी तनाव के कारण आज की युवा पीढ़ी भी इन समस्याओं से जू झ रही है. वैसे तो स्वास्थ्य समस्याओं के पीछे और भी कई कारण होते हैं परंतु हमारा नहीं चलना भी एक प्रमुख कारण है. चलना एक प्राकृतिक स्वास्थ्य बीमा यदि हम अपने दैनिक कार्यों में चलने को शामिल करते हैं तो हमारा हृदय बेहतर तरीके से कार्य करता है.

दिल का दौरा पड़ने का खतरा कम हो जाता है. शरीर के विभिन्न अंगों में रक्त वाहिकाओं के साथसाथ सूक्ष्म रक्त नलिकाओं, जिन्हें हम कैपिलरीज कहते हैं, के माध्यम से रक्त का संचरण बेहतर होता है. इस से अल्जाइमर रोग का खतरा कम हो जाता है, जीवन अवधि बढ़ जाती है और एक स्वस्थ जीवनयापन होता है. चलने के दौरान आए पसीने के माध्यम से शरीर के टौक्सिंस बाहर निकल जाते हैं. पैदल चलना हमारे रक्तचाप को नियंत्रण में रखता है, रात में बहुत अच्छी नींद आती है. नियमित पैदल चलना बड़ी आंत और स्तन कैंसर को रोकता है, हमारी हड्डियां मजबूत होती हैं, थकान कम होती है. इन के अलावा शारीरिक व मानसिक गतिविधियां बेहतर तरीके से संपन्न होती हैं. नियमितरूप से पैदल चलने के परिणामस्वरूप शरीर में अच्छे कोलैस्ट्रौल का स्तर बढ़ता है जबकि खराब कोलैस्ट्रौल कम होता है. रक्त शर्करा यानी रक्त में ग्लूकोज का स्तर नियंत्रित रहता है.

शरीर का वजन भी नियंत्रित रहता है. मानसिक अवसाद यानी डिप्रैशन, चिंता और तनाव जैसी घातक स्थितियां नियंत्रित रहती हैं. हमारी मांसपेशियों की ताकत बेहतर होती है. हमारे जोड़ लचीले रहते हैं. आत्मविश्वास बढ़ता है. शरीर की इम्यूनिटी यानी प्रतिरक्षा शक्ति में सुधार आता है. पैदल चलना सभी आयु के लोगों और पुरुष और महिलाओं दोनों के लिए बहुत ही लाभकारी होता है. हम पैदल चलते हैं तो नएनए लोगों के संपर्क में भी आते हैं. इस तरह हम कह सकते हैं कि नियमितरूप से पैदल चलना एक प्राकृतिक स्वास्थ्य बीमा से कम नहीं है. पैदल चलने की कुछ महत्त्वपूर्ण बातें कोई भी व्यक्ति किसी भी आयु में नियमितरूप से पैदल चलना आरंभ कर सकता है. चलने की शुरुआत करने से पहले 10 मिनट तक हलका व्यायाम किया जाना चाहिए. ध्यान रहे, यदि आसपास का परिवेश बहुत ठंडा हो या बहुत गरम, तो उन स्थितियों में पैदल चलने से बचना चाहिए. इन स्थितियों में चलने से पहले उपयुक्त कपड़े पहन कर शरीर को सुरक्षित रखना जरूरी होता है.

पैदल चलने का क्षेत्र निर्मल, हराभरा और प्रदूषण रहित होना चाहिए. आसपास तालाब, नदी, झरना या समुद्र का किनारा हो तो बेहतर होता है. 45 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को नियमितरूप से पैदल चलने की शुरुआत करने से पहले चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए, खासकर ऐसे लोगों को जो मधुमेह से पीडि़त हों. पैदल चलने के दौरान शरीर में ग्लूकोस की कमी होने जैसी स्थिति पैदा होती है जो एक गंभीर समस्या बन जाती है. सो, ऐसे व्यक्तियों को साथ में 200 मिलीलिटर पानी, 2 बिस्कुट और 10 ग्राम ग्लूकोस अपनी जेब में रख कर ही बाहर निकलना चाहिए. दमा की शिकायत वाले व्यक्तियों को पैदल सैर पर जाने पर साथ में इनहेलर्स रखना बहुत जरूरी होता है. इन के अलावा पैदल सैर पर जाने वाले व्यक्ति को आरामदेह जूते और कौटन के कपड़े पहनने चाहिए. ट्रेडमिल पर चलना कई बार घर के बाहर पैदल चलने के लिए मौसम अनुकूल नहीं होता. अत्यधिक सर्दी, गरमी अथवा बरसात के मौसम में घर के अंदर ट्रेडमिल पर चलना एक अच्छा विकल्प होता है.

ट्रेडमिल पर चलने से पहले उसे कैसे औपरेट करना है, इस की जानकारी सुनिश्चित की जानी चाहिए. यह भी जानना चाहिए कि इसे कैसे बंद किया जाए या इस की गति को कैसे बदला जाए. कैसे करें पैदल सैर सब से महत्त्वपूर्ण यह है कि मनमस्तिष्क में स्वस्थ रहने के लिए पैदल चलने की तीव्र इच्छा होनी चाहिए. पहले 3 से 5 मिनट तक धीमे चलना चाहिए. उस के बाद चलने की गति बढ़ाएं और 12 से 15 मिनट तक उसी गति में चलें. फिर 3 से 5 मिनट चलने की गति कम करें और उस के बाद रुक जाएं. शुरुआत के 4 से 5 दिनों तक आप की पेशियों में दर्द हो सकता है लेकिन बाद में वह दूर हो जाएगा. पहले दिन सिर्फ 5 मिनट चलें. उस के बाद प्रत्येक तीसरे दिन 3-3 मिनट अधिक चलें. चलने की अवधि तब तक बढ़ाएं जब तक कि आप प्रत्येक दिन 30 मिनट न चलने लगें. यदि किसी प्रकार की असुविधा हो तो पैदल चलना बंद कर दें, आराम से बैठें और 2 घूंट पानी पिएं. बेहतर होगा पैदल चलने के समय आप के साथ कोई हो.

लेकिन तेज गति से चलने के दौरान बातें नहीं करें, बल्कि प्रकृति के सान्निध्य का आनंद लें. चलने की जगह समतल होनी चाहिए. परंतु मोटापासहित व्यक्तियों को बालूयुक्त मैदान पर चलना फायदेमंद होगा. संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित ‘द सैंटर्स फौर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवैंशन’ यानी सीडीसी की सिफारिश है कि सप्ताह में 150 मिनट या इस से अधिक औसत गति के साथ चलने अथवा 75 मिनट तेजी से चलने पर हमारा संपूर्ण स्वास्थ्य अच्छा रहता है और रोग के खतरे में कमी आ जाती है. इस दिशानिर्देश के आधार पर आप सप्ताह में 5 बार 30 मिनट पैदल चलने का कार्यक्रम बना सकते हैं. क्या सावधानियां बरतें हृदयगति दर की ऊपरी सीमा : 220 अंक में आप की आयु घटाने पर प्राप्त अंक आप की हृदयगति की ऊपरी सीमा होगी. उदाहरण के तौर पर, यदि किसी व्यक्ति की आयु 60 वर्ष है तो 220 में 60 घटाने पर प्राप्त 160 अंक व्यक्ति की हृदयगति दर की ऊपरी सीमा होगी. यदि आप की हृदयगति की ऊपरी सीमा 50 से 70 प्रतिशत तक पहुंचती है तो भी डरने की आवश्यकता नहीं.

मधुमेहग्रस्त या मोटापाग्रस्त कोई व्यक्ति यदि प्रतिदिन 40 से 45 मिनट थोड़ी तेजी से चले तो 3 से 4 महीने के भीतर बहुत अच्छे परिणाम देखने को मिल सकते हैं. चलने के दौरान क्या होता है 1-5 मिनट : जब आप तेज कदमों से चलते हैं तो कोशिकाओं में ऊर्जा उत्पन्न करने वाले तंत्रिका रसायन तैयार होते हैं, जो शरीर को आवश्यक ऊर्जा प्रदान करते हैं. हृदय की गति 70 से 100 बीट (स्पंदन) के बीच हो सकती है. इस स्थिति में चलने के लिए पेशियां तैयार रहेंगी. जोड़ों में सायनोवियल फ्लुएड नामक एक चिपचिपी सामग्री का स्राव होता है जो हमारे जोड़ों को लचीला बनाती है. जब हम आराम करते हैं तो प्रतिमिनट एक कैलोरी ऊर्जा इस्तेमाल होती है, इस स्थिति में प्रतिमिनट 5 कैलोरी इस्तेमाल होगी.

शरीर के लिए आवश्यक ऊर्जा वसा से प्राप्त होती है. 6-10 मिनट : इस अवधि में हृदय की गति 100 से 140 के बीच होगी. इस अवस्था में 6 कैलोरी प्रति?मिनट इस्तेमाल होती है. रक्त वाहिकाएं शिथिल होती हैं और उन में ल्यूमेन बढ़ जाता है. सभी कोशिकाओं में रक्त का संचरण बेहतर होता है, रक्त में औक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है और रक्त संचरण बढ़ने के साथ सभी कोशिकाओं को पोषक तत्त्व बेहतर तरीके से मिलते हैं. 11-20 मिनट : इस अवधि में थकान के कारण तापमान बढ़ जाता है. पसीने के साथ टौक्सिंस अच्छी तरह से बाहर निकल जाते हैं. आप की श्वास प्रक्रिया तेज हो जाती है.

यदि आप 3 से 4 महीने तक प्रतिदिन 20 मिनट पैदल चलना जारी रखते हैं तो आप के फेफड़ों की क्षमता बढ़ जाती है. मांसपेशियों को मजबूत बनाने के लिए एपीनेफ्रीन और ग्लुकागोन जैसे हार्मोन उत्पन्न होते हैं. 20-25 मिनट : इस अवस्था में आप अपने को फुर्तीला महसूस करते हैं. यदि कोई व्यक्ति 6 सप्ताह तक प्रतिदिन 25 मिनट पैदल चलता है और यह प्रक्रिया जीवनपर्यंत जारी रखता है तो मस्तिष्क में एंडोर्फिन नामक हार्मोन उत्पन्न होता है जिस से अवसाद, चिंता और तनाव की स्थितियां कम होती हैं. जैसेजैसे शरीर में कैलोरी जलती है वैसेवैसे इंसुलिन हार्मोन की प्रभावकारिता बढ़ जाती है. यदि आप 25 से 30 मिनट तक चलने के बाद रुक जाते हैं तो अगले एक घंटे तक आप के शरीर की कैलोरी जल जाती है. यह स्थिति मधुमेह, हाइपर थायराइड और मोटापा से पीडि़त व्यक्तियों के लिए वरदान होती है.

चलने के संबंध में भ्रांतियां लोगों का मानना है कि आयु बढ़ने के साथ व्यायाम करने की जरूरत नहीं पड़ती. यह सब से बड़ी भ्रांति है. वास्तव में वृद्ध लोगों की शारीरिक गतिविधियां कम हो जाती हैं जिस के कारण उन्हें नियमितरूप से व्यायाम करने की जरूरत होती है. प्रतिदिन चलने के साथ उन की मांसपेशियों व जोड़ों में लचीलापन बना रहता है. आर्थ्राइटिस यानी संधिशोथ की विकास प्रक्रिया धीमी हो जाती है. परंतु उन लोगों को कड़े व्यायाम नहीं करने चाहिए. एक भ्रांति यह भी है कि व्यायाम करने से थकान हो जाती है. वास्तव में 6 सप्ताह तक प्रतिदिन 25 मिनट व्यायाम करने से थकान की समस्या कम हो जाती है. शरीर की फिटनैस बढ़ जाती है, वैवाहिक संबंधों में मधुरता आती है तथा अवसाद की स्थिति में गिरावट आती है. लोगों का यह भी मानना है कि व्यायाम करना समय का दुरुपयोग होता है. लेकिन ऐसा नहीं होता है.

वास्तव में अनेक स्वास्थ्य समस्याओं से बचने के साथसाथ अस्पताल में भरती हो कर महंगा इलाज कराने तथा अपने घर एवं परिवार से दूर रहने से बचने के लिए यह एक वास्तविक निवेश होता है. पैदल सैर करने के लिए सुबह का समय शाम की अपेक्षा बेहतर होता है क्योंकि सुबह के परिवेश में प्रदूषण का स्तर कम होता है और हमारा शरीर 6 से 8 घंटे तक बिस्तर पर निष्क्रिय रहता है. वैसे स्वस्थ रहने के लिए हमें नियमित रूप से पैदल चलना चाहिए और व्यायाम करना चाहिए परंतु सप्ताह में 6 दिन 25 मिनट पैदल सैर करना भी स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है. मधुमेह, मोटापा और आर्थ्राइटिस से पीडि़त व्यक्तियों को सप्ताह में 6 दिन 30 से 40 मिनट पैदल चलना उन्हें स्वस्थ बनाए रखने के लिए बेहतर होता है. इन स्थितियों में पैदल चलने से बचें यदि किसी व्यक्ति के सीने में दर्द होने की शिकायत हो, सांस लेने में तकलीफ हो,

अधिक पसीना आता हो, थकान हो जाती हो, शारीरिक संतुलन बाधित हो तो इन स्थितियों में पैदल सैर करने की सलाह नहीं दी जाती. एक सुशिक्षित चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए. विश्व के अनेक भागों में पैदल सैर करने वाले लोगों के हजारों वर्गों पर संपन्न अध्ययनों से समाज में रोगभार को कम करने में बहुत अनुकूल परिणाम मिले हैं. आइए, हम पैदल चलें और विश्व से मधुमेह नामक घातक बीमारी को दूर भगाएं. द्य चलने से संबंधित सावधानियां भोजन ग्रहण करने के तुरंत बाद पैदल सैर नहीं करनी चाहिए. अच्छे परिणाम के लिए प्रतिदिन एक निर्धारित समय पर नियमितरूप से पैदल चलना चाहिए.

मधुमेह से पीडि़त व्यक्तियों को अपने आहार पर नियंत्रण के साथ प्रतिदिन 40 मिनट पैदल सैर करना आवश्यक होता है. यदि कोई व्यक्ति नियमितरूप से प्रतिदिन 30 मिनट पैदल चलता है तो वह स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा माना जाता है. पहले कम दूरी तक चलने की शुरुआत करें और फिर प्रत्येक तीसरे दिन 300 मीटर की दूरी बढ़ाएं. इस से शरीर के सभी अंगों के कार्य में सुधार आता है. नियमितरूप से पैदल चलने के परिणामस्वरूप मधुमेह सहित कई स्वास्थ्य समस्याओं को रोकने में मदद मिलती है.

मैं 28 वर्षीय विधवा हूं, क्या मेरा फिर से शादी करना ठीक होगा ?

सवाल

मैं 28 वर्षीय विधवा हूं. मेरे पति वायुसेना में थे. वायुसेना विभाग द्वारा मुझे कोई नौकरी नहीं दी गई. मेरी एक लड़की है जिस की परवरिश का मेरे पति ने पहले ही इंतजाम कर दिया था. सो, वह मुझ पर बोझ नहीं है. पति के न रहने पर ससुराल वालों ने बहुत बुरा व्यवहार किया. इस कारण मैं अकेली रहने लगी हूं. मैं बीए, बीएड हूं और एक प्राइवेट संस्था में कार्य करती हूं. अब मैं इंटरनैट पर वैडिंग वैबसाइट पर वैवाहिक विज्ञापनों के माध्यम से फिर शादी करना चाहती हूं. लेकिन डर लगता है कि कहीं गलती न हो जाए. कृपया मेरा मार्गदर्शन करेें.

जवाब

सुशिक्षित व कामकाजी महिला होने के नाते आप को लोगों को भलीभांति समझने का पर्याप्त अनुभव होगा. इसलिए अपने मन से डर निकाल कर जीवन को खुशहाल बनाएं. विज्ञापन के माध्यम से जीवनसाथी ढूंढ़ने में आप को संकोच नहीं करना चाहिए. शादी आपसी सहयोग, सद्भाव, समान रुचियों और दृष्टिकोणों पर निर्भर करती है. सो, शादी तय करने से पहले जीवनसाथी व उस के परिवार की सभी बातों की भलीभांति जांचपड़ताल कर लीजिए. इस से आप की सभी शंकाओं का समाधान हो जाएगा. यह काम आप के परिवार के किसी बुजुर्ग को ही करना चाहिए. आप स्वयं करेंगी तो कठिनाई हो सकती है.

हीरो : आशी बुआ को क्यों नाटक करना पड़ा था ?

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फिर आई बहार : रीमा के ससुराल वाले उसे क्यों रोक रहे थे ?

आज सालों बाद मैं अपनी सहेली रीमा से मिलने जा रही हूं. बचपन से ही साथ खेले, पढ़े, बड़े हुए और सुखदुख में एकदूसरे के साथी बने. ग्रैजुऐशन करने के बाद मैं ने एमए में प्रवेश ले लिया था, जबकि रीमा के पुरातनपंथी मातापिता ने ग्रैजुऐशन करते ही उस का विवाह कर दिया था.

मेरा रीमा से कुछ विशेष ही लगाव था. इसलिए फोन पर हमारी बातें होती रहती थीं और जब कभी रीमा मायके आती तो हम दोनों का अधिकांश समय साथ ही गुजरता था. रीमा हमेशा ही मुझ से अपनी खुशहाल जिंदगी की बातें करती. अपने पति राजेश की प्रशंसा करते तो थकती नहीं थी.

एक दिन दफ्तर से घर लौटते समय राजेश का अचानक ऐक्सीडैंट हो गया और उस ने घटनास्थल पर ही दम तोड़ दिया. सूचना मिलते ही मैं भी रीमा के घर गई. उस पर तो दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा था.

कहते हैं, मुसीबत कभी अकेले नहीं आती. एक मुसीबत तो रीमा पर आन पड़ी थी दूसरे, ससुराल वालों की तीखी और कड़वी बातें उस का कलेजा छलनी कर देते. सब उसे ही पति की मौत का जिम्मेदार ठहराते.

“कुलच्छिनी, कलंकिनी, पति को खा गई…” जाने क्याक्या कटूक्तियां सुनतेसुनते रीमा के कान पक जाते. वह सोचती रहती कि अब यह जीवन कैसे कटेगा? क्या करूं, क्या न करूं?

मुझे तो एक ही हल समझ में आ रहा था कि रीमा अब अपनेआप को किसी काम में व्यस्त कर ले. व्यस्त रह कर वह अपने दुख को थोड़े समय के लिए ही सही, भुला तो सकेगी. साथ ही 5-6 घंटों के लिए सासननदों के तानों से भी उसे मुक्ति मिली रहेगी. मैं ने यही सब सोच कर अपनी बात रीमा के सामने रख दी.

आंखों में आंसू भरे रीमा ने कहा,“मुझ से नहीं होगा. फिर ससुराल वाले घर से बाहर जा कर नौकरी करने की इजाजत भी नहीं देंगे. अब तो बस घुटघुट कर मरना है.”

मैं ने उसे दिलासा देते हुए कहा,“सब ठीक हो जाएगा. धीरज रख.”

इधर रीमा के मातापिता भी अपनी बेटी के साथ हुए हादसे से बेहद दुखी व परेशान थे. उन्हें अपनी बेटी के भविष्य की चिंता सता रही थी. वे भी चाहते थे कि रीमा कोई नौकरी कर के अपनेआप को व्यस्त कर ले, जिस से उसे अपना दुख भुलाने में मदद मिले. पर रीमा के ससुराल वाले कब मानने वाले थे?

फिर पानी सिर से ऊपर गुजरने लगा. रीमा की स्थिति बहू की नहीं बल्कि नौकरानी की हो गई थी. तानों की बौछारों के बीच घर का सारा काम उसी से कराया जाने लगा. नौकरों की छुट्टी कर दी गई. काम का बोझ उसे उतना परेशान न करता जितना तानों का न रुकने वाला दौर. दुखी मन और कितना दुख सहता. अब तो रीमा का मन भी मुक्ति के लिए छटपटाने लगा था. आखिर सहनशक्ति की भी एक सीमा होती है जो समाप्त हो चुकी थी. विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी थी. अब उस ने तय कर लिया था कि इस नर्क से मुक्त हो कर रहेगी और मुक्ति का एक ही रास्ता है खुद अपने पैरों पर खड़े होना.

बीए पास तो वह थी ही. जहां कहीं विज्ञापन देखती, वहीं आवेदन कर देती. आखिरकार, एक प्राइवेट कंपनी में उसे सैक्रेटरी चुन लिया गया. अपना नियुक्तिपत्र देख कर क्षण भर के लिए तो वह अपने साथ हुए हादसे को भूल ही गई. खुशियों के द्वार अब उस के लिए खुल गए.

ससुराल वालों के सारे विरोधों को दरकिनार करते हुए रीमा ने अपनी नई नौकरी जौइन कर ली. उस ने एक क्वार्टर भी ले लिया. जल्द ही रीमा ने अपने कार्य और व्यवहार से दफ्तर में अपनी एक खास छवि बना ली. नया शहर, नई नौकरी, नएनए लोग, अब तक घर की चारदीवारी में रही रीमा के लिए कुछ अजीब सा तो लग रहा था पर जल्दी ही उस ने इस नए परिवेश में अपनेआप को ढाल लिया. रीमा के नीरस जीवन में बाहर सी आ गई थी. अपने जीवन के इस बदले हुए रूप की सूचना रीमा मुझे फोन पर अकसर ही देती रहती थी. जीवन में जो रिक्तता आ गई थी, उस का दर्द भी उस की बातों से जाहिर हो ही जाता था.

ससुराल वालों ने अब रीमा की खोजखबर लेना बंद कर दिया. इधर रीमा अपने पैरों पर खड़ी हो कर खुश तो थी पर संतुष्ट नहीं. आखिर दिलोजान से चाहने वाला, उस की हर खुशी पर कुरबान होने वाला पति जो उस ने खो दिया था. यह खालीपन उसे भीतर ही भीतर खाए जा रहा था. मन की घुटन ने आखिर उसे तन से भी कमजोर बना दिया. एक बार तो वह इतनी बीमार हुई कि उस ने बिस्तर ही पकड़ लिया.

कई दिनों तक वह दफ्तर नहीं गई. एक आवश्यक मीटिंग के पेपर तैयार करने थे. रीमा के बौस मिस्टर बिनोद खुद इस संबंध में रीमा से मिलने उस के घर पहुंच गए. रीमा का बुखार से तमतमाया चेहरा और सूजी हुई आंखें देख कर वे हैरत में पड़ गए। बोले,“मुझे तुम्हारी बीमारी की सूचना तो मिली थी पर मैं ने सोचा कि देखभाल और आराम करने से अब शायद आप बेहतर होंगी. पर यह क्या, आप यहां अकेली और इस हाल में? घर के बाकी लोग कहां हैं?”

रीमा ने वस्तुस्थिति पर परदा डालने की कोशिश की मगर मिस्टर बिनोद से शायद कुछ छिपा नहीं रह गया.
उसे तत्काल अस्पताल ले कर गए. रीमा को भरती कर लिया गया. सारे चैकअप किए जा रहे थे. लंबे समय से अत्यधिक मानसिक तनाव झेल रही रीमा का ब्लडप्रैशर हाई हो गया था. डाक्टर ने आराम करने की सलाह दी थी.

पूरी तरह ठीक होने तक उसे अस्पताल में ही रहना था. अकेली रीमा अस्पताल में यह सोच कर परेशान हो रही थी कि यहां कौन उस की देखभाल करेगा? इस से तो वह घर पर ही ठीक थी. उस का विचार मंथन चल ही रहा था कि सामने से बिनोद साहब आते हुए दिखाई दिए. हाथ मैं थरमस और जाने कितने पैकेटों को लिए हुए.

रीमा को अपने हाथों से थरमस से चाय निकाल कर दी. पैकेट से फल और दवाइयां निकाल कर रैक में रखा और पास ही बैठ गए. जाने कितनी देर वे यों ही बैठे रहे और बातों से रीमा का दिल बहलाते रहे, जिस से अस्पताल में रह कर वह बोर न हो. रीमा ने कहा भी,”सर, देर बहुत हो चुकी है. अब आप घर जाइए. मैं ठीक हूं.”

“लेकिन तुम्हें इस तरह अकेली छोड़ कर…”

“कोई बात नहीं सर, अकेले रहने की वैसे भी मेरी आदत है. फिर यहां डाक्टर व नर्स तो हैं ही मेरी देखभाल करने के लिए.”

“ठीक है, अपना ध्यान रखिएगा,” जातेजाते भी बिनोद साहब डाक्टर व नर्स से रीमा का ध्यान रखने को कह गए.

सुबह रीमा की आंखें भी नहीं खुली थीं और बिनोद साहब हाजिर थे. थोड़ी देर रीमा के उठने का इंतजार करते रहे फिर अस्पताल के बाहर जा कर टी स्टौल से थरमस में चाय ले कर आ गए. रीमा अब तक जाग चुकी थी. उसे अपने हाथों से चाय का प्याला थमाते हुए बोले,“गुडमौर्निंग.”

रीमा को सुखद आश्चर्य हुआ. कभी अपनों ने इतना खयाल नहीं रखा और कहां यह. मेरे बौस अवश्य हैं पर इन से मेरा कोई खून का रिश्ता तो नहीं. अब तक उपेक्षाओं का शिकार रही रीमा को संकट की घड़ी में बौस का यों साथ रहना, अस्पताल में देखभाल करना उसे सुखद भी लग रहा था. मानो तपती दुपहरी में शीतल हवा का झोंका उस के तनमन को ठंडक पहुंचा गया.

5 दिनों के बाद पूर्णतया स्वस्थ हो कर आज रीमा अस्पताल से डिस्चार्ज हो गई. इन 5 दिनों में बिनोद साहब ने रीमा का इस तरह ध्यान रखा कि शायद परिवार वाले भी इतना न कर पाते.

रीमा ने फिर से दफ्तर जाना शुरू कर दिया. आज बौस के आते ही उस ने उन्हें धन्यवाद दिया. बौस ने पूछा,”धन्यवाद किसलिए?”

“सर, आप ने मेरा इतना खयाल रखा. आजकल तो अपने भी अपनों के लिए इतना नहीं करते.”

बौस ने सिर ऊपर उठाया,“मैं आप की बात समझा नहीं. आखिर आप ने यह भ्रम क्यों पाल रखा है कि अपने भी अपनों के लिए कुछ नहीं करते.”

“कुछ नहीं सर, बस यों ही.”

रीमा की आंखों से बह चले आंसुओं को बौस ने देख लिया. रीमा अपने केबिन में जा चुकी थी. शाम को औफिस के सारे काम समेट कर रीमा जाने की तैयारी में थी कि तभी चपरासी ने आ कर सूचना दी कि साहब ने याद किया है. रीमा बिनोद साहब से मिलने गई.

“सर?”

“रीमाजी, यदि आप को ऐतराज न होतो आज शाम कौफी हाउस में कौफी पी जाए?”

रीमा पशोपेश में पड़ गई, जिसे बिनोद साहब ने भांप लिया,”देखिए, आप गलत न समझें. यह सिर्फ प्रस्ताव है, कोई बाध्यता नहीं. यदि आप को आपत्ति है, तो कोई बात नहीं.”

“नहीं सर, ऐसी बात नहीं है,” रीमा के सामने बौस के द्वारा अब तक किए गए निस्वार्थ उपकार घूम गए. उन के निश्चल, निष्कपट और शालीनता के कायल औफिस के सभी कर्मचारी थे. शक का तो सवाल ही नहीं उठता. इसलिए वह चलने को तैयार हो गई।

कुछ ही देर में वे कौफी हाउस पहुंच गए. “देखिए रीमाजी, मैं शुरू से ही आप के भीतर छिपे दर्द को महसूस कर रहा हूं. यदि वह दर्द आप छिपा कर रखेंगी तो भीतर ही भीतर घुट कर रह जाएंगी. यदि आप चाहें तो अपना दर्द मेरे साथ शेयर कर सकती हैं. विश्वास कीजिए. मैं बौस की हैसियत से नहीं, बल्कि इंसानियत और दोस्त के नाते आप का दर्द बांटना चाहता हूं. बचपन में ही मेरे मातापिता चल बसे थे. मैं उन की इकलौती संतान था. वजीफा ले कर पढ़ाई की और आज यहां तक पहुंचा हूं. मैं अपने मातापिता का सहारा तो नहीं बन सका. अब अगर किसी के काम आ सका तो मैं अपना जीवन धन्य समझूंगा.”

रीमा की आंखों से आंसूओं की धार बह निकली. मिस्टर बिनोद ने उस की दुखती रग पर हाथ क्या रखा, उस ने तो रोते हुए अपने साथ हुए हादसे की जानकारी उन्हें दे दी. पति की मौत के बाद ससुराल वालों का उपेक्षा भरा बरताव और प्रताड़ना की दुखद दास्तान सुन कर तो बिनोद भी विचलित से हो गए. उन्होंने रीमा को सांत्वना दी, “रीमाजी, आप के साथ जो कुछ हुआ, उस का मुझे अफसोस है लेकिन आप कब तक इस तरह घुटती रहेंगी. आप के सामने पूरा जीवन पड़ा है. माना कि आप के पास अच्छी नौकरी है, पर जीने के लिए सिर्फ नौकरी और पैसा नहीं, खुशी की भी दरकार होती है. यदि आप बुरा न मानें तो मैं आप की खुशियां लौटा सकता हूं?”

“सर, मैं समझी नहीं.”

“आप अन्यथा न लें,” बौस ने कहा,“मैं और आप दोनों ही अपनों से जुदा हो कर एकाकी और नीरस जीवन जी रहे हैं. यदि आप चाहें तो हम एकदूसरे के हमसफर बन कर अपने जीवन की बगिया को फिर से महका सकते हैं.”

“सर, मैं इस समय कुछ भी नहीं सोच पा रही हूं.”

“कोई बात नहीं. आप की जो भी मरजी होगी, मुझे स्वीकार होगा. बस, इतना समझ लीजिए कि मैं यह सब किसी स्वार्थवश नहीं कह रहा था. मैं हृदय से आप को अपनाना चाहता हूं. आप को खुशी देना चाहता हूं.” रीमा असमंजस में थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था क्या करे और क्या न करे.

मुझे तो वह जब भी फोन करती, बौस की चर्चा और उन की तारीफ जरूर करती थी. कौफी हाउस की सारी बातें उस ने मुझे फोन पर बताई और यह भी कहा,“मेरी तो समझ में नहीं आ रहा क्या जवाब दूं. तू तो मेरी सहेली है, अब तू ही बता?”

यदि उजड़ी बगिया में फिर से बहार आ जाए तो उस से अच्छा और क्या हो सकता है?” मैं ने उसे तत्काल सुझाव दे डाला,“अब देर मत कर. अपना उजड़ा जीवन फिर से संवार ले.”

और अब कल ही रीमा का फोन आया,“मैं ने अपने बौस से शादी कर ली है. बिना किसी धूमधड़ाके के. बस इस खुशी में मैं तुझे शामिल करना चाहती हूं. तू जल्दी आ जा.”

अपनी प्रिय सखी का स्नेह निमंत्रण भला मैं कैसे टाल सकती थी. 5-6 घंटे के सफर के बाद मैं मुंबई पहुंच गई. औटो ले कर सीधे रीमा के घर पहुंची. कौलबेल बजाई. दरवाजा खोलने वाला सुदर्शन, सभ्य व अच्छी कदकाठी का व्यक्ति था. बड़ी शालीनता से अभिवादन कर उस ने मुझे अंदर आने के लिए कहा. तब तक रीमा भी बाहर आ चुकी थी. उस ने ही परिचय कराया,“यही हैं मेरे पति मिस्टर बिनोद.”

रीमा गले लग गई. उस की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बह निकली. ये खुशी के आंसू थे.
हम दोनों बातचीत में मशगूल थे. इतने में रीमा के पति चाय की ट्रे लिए बैठक में आ गए.

रीमा ने चहकते हुए कहा,“जनाब, यह अस्पताल नहीं, घर है. घर में तो चाय मुझे बनाने देते.”

“अरे, क्या अस्पताल और क्या घर, बंदा तो आप की सेवा में हरदम ही हाजिर है.”

हंसी के ठहाकों से कमरा गूंज गया.
जीवन को टूटी डोर फिर से जुड़ गई थी. उजड़ी और वीरान बगिया में खुशियों के फूल फिर से खिल उठे थे.

कैसा यह इश्क है : भाग 3

पूर्वी ने राहत की सांस ली, सामने से महिमा और मयंक चले आ रहे थे. एकसाथ दोनों कितने अच्छे लगते थे. बेटियां ही बहुएं बनती हैं. बदलती डेहरिया है… प्यार की बढ़नी से जीवन की हर नकारात्मक को बुहारते हुए कब चुपके से बहुएं से बेटियां बन जाती है, पता नहीं चलता. नईनवेली बहू महिमा ने लाड़ से पूर्वी का हाथ पकड़ा.

“मां, आइए आप को एक चीज दिखाऊं.”

“क्या बातें हो रही हैं सासबहू में?”

उस अल्हड़ सी लड़की में न जाने क्या जादू था. सब बिना सोचे उस के पीछे चलते चले गए. महिमा के हर कदम के साथ पूर्वी के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी. महिमा उसी गुंबद के सामने खड़ी थी जिस से उस की यादें जुड़ी थीं. गुंबद के दोनों तरफ संकरा सा गलियारा था जो झरोखे पर आ कर मिलता था. उन गलियारों को देख ऐसा लगता मानो वो गुंबद से गलबहियां कर रहे हों. महिमा ने पूर्वी का हाथ पकड़ा और गुंबद के बायीं तरफ संकरे गलियारे की तरफ मुड़ गई. महिमा संग मयंक और एक बड़ा सा दिल दो हजार इक्कीस.

पूर्वी का दिल धक्क से कर गया.

“मां, कालेज से निकलने के बाद मयंक तो आप के पास वापस आ गए और मैं दिल्ली अपने मम्मीपापा के पास चली गई. महीने में एक शनिवार को मैं उस से औफिस के बहाने दिल्ली से मिलने आती थी. शादी के पहले एकदो बार हम यहां आए थे. उस वक़्त मयंक ने मुझ से कहा था कि शादी के बाद तुम्हें यहां जरूर ले कर आऊंगा. आप सुबह पापा से कह रही थीं न कि मयंक से ज्यादा महिमा मां से मिलने को इच्छुक हैं. मैं सिर्फ नानीजी से मिलने नहीं, इस वजह से भी यहां आना चाहती थी.”

महिमा ने शर्माते हुए चोर नजर से मयंक की ओर देखा. मयंक अपनी पोल खुलते देख झेंप सा गया. प्रखर खिलखिला कर हंस पड़े.

“अब समझ आया मयंक हफ्ते में 3 दिन कौन सा ओवरटाइम कर रहा था.”

प्रखर की बात सुन सब के चेहरे पर सहज मुसकान खेल गई. पूर्वी और मयंक उसी बैंच पर बैठ गए जहां वर्षों पहले दुनिया से छिप कर पूर्वी और पीयूष बैठ कर घंटों बातें किया करते थे. पूर्वी ने गुलमोहर की ओर देखा, सूरज की किरणें छन कर आ रही थीं. बैंच पर गुलमोहर के फूल बिखरे हुए थे. उसे लगा मानो वो कह रहे हों, ‘देखो, यहां लिखे नाम सिर्फ लफ्ज़, सिर्फ इबारत बन कर नहीं रह जाते. प्यार समंदर की तरह है, जितना ले कर जाता है उतना ही वापस भी कर देता है. यह बात अलग है वो प्यार भी हो सकता या फिर सिर्फ इंतज़ार. पीयूष न सही प्रखर उसे प्यार के रूप में मिला था. आज महिमा और मयंक को देख कर उसे अपनी प्रेमकहानी याद आ गई. उस ने पीयूष को कभी माफ नहीं किया. पहले प्यार का गम ऐसा ही होता है जिसे याद कर हमेशा उस की आंखें पनीली हो जाती थीं पर आज पीयूष को याद कर उस की आंखें मुसकरा रही थीं. आज उस ने पीयूष को माफ कर दिया था और मन ही मन यह इच्छा की कि पीयूष भी उसे माफ कर दे क्योंकि यह लड़ाई उस के अकेली की नहीं थी. उस ने भी तो पीयूष से प्यार किया था, फिर अकेला वो ही दोषी क्यों… पूर्वी मांबाप की इकलौती बेटी थी. 2 भाइयों की अकेली बहन. सब चाहते थे उस की शादी पहले हो. पीयूष सब से बड़ा बेटा था, पिता बचपन में ही मर चुके थे. घर की सारी जिम्मेदारी उस के ऊपर थी. 2 छोटी बहनें थीं उस की. अपनी जिम्मेदारियों को पूरा किए बिना वह खुद कैसे शादी कर सकता था. दोनों ही मजबूर थे अपनी परिस्थितियों के आगे. न पीयूष पूर्वी से कह सका और न पूर्वी उसे समझ पाई. पीयूष उस से समय मांगता रहा और पूर्वी उस से अपना भविष्य.

“मां, चलिए नानीजी इंतजार कर रही होंगी. काफी देर हो गई है.”

महिमा ने पूर्वी की तरफ हाथ बढ़ाया, पूर्वी ने महिमा को नजर भर कर देखा. आज वह पहले से ज्यादा सुंदर लग रही थी. आश्चर्य होता था उसे देख कर, दुबलीपतली सी उस लड़की में कितना आत्मविश्वास भरा था. 3 साल तक उस ने मयंक की नौकरी लगने का इंतज़ार किया. क्या उस पर दबाव नहीं था अपने परिवार का? पर वह डटी रही अपने प्यार के लिए, संबल बन कर खड़ी रही अपने प्यार के लिए, इंतज़ार करती रही अपने प्यार के लिए जबकि मयंक टूट रहा था अपनी परिस्थितियों के आगे.

एक बार तो उस ने खुद मयंक को फोन पर रोते हुए देखा था, ‘महिमा तुम शादी कर लो, मेरा क्या पता कब नौकरी लगेगी, लगेगी भी या नहीं.’ उधर से महिमा ने क्या कहा वह सुन नहीं पाई पर इतना तो जरूर था कि उस के बाद उस ने मयंक को हमेशा मजबूती से खड़े होते देखा. यह उस का विश्वास ही तो था जो आज उन्हें उन की मुहब्बत को मंजिल मिल गई.

पूर्वी सोच रही थी, काश उस ने थोड़ी सी हिम्मत दिखाई होती. काश उस ने भी थोड़ा इंतजार कर लिया होता, काश उस ने भी परिस्थितियों के आगे घुटने नहीं टेके होते. पूर्वी के दिल का बोझ आज हलका हो गया था. आज उस ने पीयूष को माफ कर दिया था पर क्या पीयूष ने भी उसे माफ कर दिया होगा.

स्टारडम की तलाश में स्टार सन्स

बौलीवुड में इन दिनों कई स्टार किड्स रंगीन परदे पर अपना जलवा बिखेर रहे हैं. हालांकि वे अभी तक वह स्टारडम हासिल नहीं कर पाए हैं जो उन की मां या पिता ने हासिल किया, लेकिन नए सितारों की कुछ फिल्में खासी चर्चा में रही हैं. ‘धड़क’ फिल्म से शुरू करें तो मशहूर अदाकारा नीलिमा अजीम के बेटे ईशान खट्टर और श्रीदेवी की बेटी जान्ह्वी कपूर अभिनीत यह फिल्म जवां औडियंस को बहुत भाई दोनों की एक्टिंग की भी खूब सराहना हुई. ईशान खट्टर ने परदे पर सर्वप्रथम 2005 में फिल्म ‘वाह! लाइफ हो तो ऐसी’ में एक बच्चे का अभिनय किया था.इस के बाद 2017 में उन्होंने मजीद माजिदी के नाटक ‘बादलों से परे’ में नशीली दवाओं के व्यापारी का किरदार निभाया, जिस की भी बहुत सराहना हुई. 2018 में उन्होंने मराठी फिल्म ‘सैराट’ और इसी फिल्म के हिंदी संस्करण ‘धड़क’ में अपने अभिनय का लोहा मनवाया.

ईशान के अलावा स्टारसन्स में दूसरा नाम आता है बौलीवुड के बादशाह शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान का. बौलीवुड में शाहरुख खान एक बहुत बड़े स्टार हैं. शाहरुख की फैन फौलोइंग सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी खूब है. माना जा रहा है कि आर्यन खान अपने पिता शाहरुख की तरह ही फिल्म इंडस्ट्री में अपने अभिनय का जौहर दिखाएंगे. हालांकि फिल्मों में नाम कमाने से पहले उन को ड्रग केस में काफी बदनामी मिली, मगर बाद में वे उस केस से बाइज्जत बाहर निकल आए और पता चला कि उन का और उन के पिता का नाम खराब करने और बड़ी वसूली की चाह में यह कुछ लोगों का बिछाया जाल था जिस में आर्यन को फंसाया गया.

आर्यन खान में एक्टिंग की कीटाणु बचपन से ही कुलबुला रहे हैं. 2001 में जानीमानी फिल्म ‘कभी खुशी कभी गम’ में उन्होंने फिल्म के एक दृश्य में अपने पिता के चरित्र का युवा रूप निभाया था और 2006 में ‘कभी अलविदा न कहना’ फिल्म में वे बाल कलाकार के रूप में नज़र आए थे. ‘द’ के हिंदी डब में उन्होंने एक चरित्र को अपनी आवाज दी. 2004 में आई फिल्म ‘इन्क्रेडिबल’ और उस के बाद आई फिल्म ‘सिम्बा’ में भी उन्होंने आवाज अभिनेता के रूप में काम करते हुए चरित्रों को अपनी आवाज दी. उन्हें एनिमेटेड फिल्म ‘हम हैं लाजवाब’ के लिए सर्वश्रेष्ठ Dubbing Child Voice Artist Male पुरस्कार से सम्मानित किया गया. आर्यन ने टैलीविजन प्रोडक्शन में बैचलर औफबफाइन आर्ट्स तथा कैलिफोर्निया विश्विद्यालय के सिनेमैटिक आर्ट्स स्कूल से भी अभिनय की पढ़ाई की है.वह मार्शल आर्ट्स में ब्लैक बेल्ट विजेता हैं.

बौलीवुड अभिनेता आमिर खान के बेटे जुनैद खान जल्द ही बौलीवुड में कदम रखने जा रहे हैं.हाल ही में जुनैद खान स्टारर मूवी का ऐलान हुआ. जुनैद आमिर खान की पहली पत्नी रीना दत्ता के बेटे हैं. यों तो जुनैद लाइमलाइट से कोसों दूर रहे हैं लेकिन अब ऐसा लगता है कि बड़े परदे पर आते ही वे अपने पिता की तरह एक बड़ा नाम हासिल करेंगे. जुनैद ने फिल्म पाने के लिए काफी संघर्ष किया है. उन्हें 15 बार रिजेक्ट किया गया और अंततः 16वीं बार उन्हें बिना किसी सिफारिश के फिल्म हासिल हुई. जुनैद, यशराज फिल्म्स की फिल्म ‘महाराज’ के साथ अपनी शुरूआत कर रहें है, ऐसे में उन्हें लाइमलाइट तो मिलनी तय हैं. यशराज फिल्म्स के बैनर तले बनने वाली इस फिल्म की शूटिंग लगभग कम्प्लीट हो चुकी है. इस के अलावा जुनैद नाटक ‘स्ट्रिक्टली अनकन्वेंशनल’ में एक ट्रांसवुमन का किरदार निभाते नज़र आए. ट्रांसवुमन की भूमिका के लिए जुनैद ने महिलाओं की पारंपरिक पोशाक और लंबे बालों वाला लुक लिया है. बता दें कि जुनैद लंबे वक्त से थिएटर करते आ रहे हैं. महाराजा फिल्म के बाद वे साईं पल्लवी के साथ एक अनटाइटल्ड लव स्टोरी में दिखाई देंगी.

सैफ अली खान के बेटे इब्राहिम अली खान देखने में हूबहू अपने पिता की तरह लगते हैं लेकिन अब उन की एक्टिंग में पिता की तरह दम होगा या नहीं ये वक्त आने पर ही पता लगेगा. सैफ अली खान और अमृता सिंह के बेटे इब्राहिम अली खान बौलीवुड डेब्यू के लिए पूरी तरह तैयार हैं. इब्राहिम ने ‘रौकी और रानी की प्रेम कहानी’ में करण जौहर को असिस्ट किया था. वैसे उन की दिलचस्पी एक्टिंग में है.धर्मा प्रोडक्शन की फिल्म ‘सरजमीन’ से वह एक्टिंग में कदम रखेंगे. इस में काजोल और मलयालम सुपरस्टार पृथ्वीराज सुकुमारन लीड रोल में हैं. अभी इस फिल्म को रिलीज होने में थोड़ा वक्त है मगर इस से पहले इब्राहिम को उन की दूसरी फिल्म भी मिल गई है. वे दिनेश विजन की फिल्म ‘दिलेर’ में नज़र आएंगे जो एक रोमांटिक ड्रामा है. इस फिल्म का बड़ा हिस्सा लंदन में शूट होगा.

सनी देओल के बेटे करण देओल ने फिल्म ‘पल पल दिल के पास’ से अपना बौलीवुड डेब्यू किया था मगर फिल्म ‘पल पल दिल के पास’ बौक्स औफिस पर धड़ाम हो गई. अब ऐसे में करण अपने पिता सनी देओल के स्टारडम का मुकाबला कर पाएंगे, यह अभी कह पाना जरा मुश्किल है.

मैं नहीं मानती : भाग 3

साहिल ने कस कर उस का हाथ थाम लिया और सोचने लगा कि जब उस के पापा गुजर गए थे तब यही समाज ने उस की मां पर भी कितने जुल्म ढाए थे. वह सब उस ने अपनी आंखों से देखा था. खैर, अब तो उस की मां उन सब बातों से उबर चुकी हैं.  लेकिन आज फिर वही सब नीलिमा के साथ होते देख कर उस का दिल रो पड़ा. जब प्रकृति इंसानइंसान में भेद नहीं करती, फिर यह समाज और लोग कौन होते हैं ऐसा करने वाले? और ये धर्मशास्त्र लिखा किस ने है? एक पुरुष ने ही न, तो अपनी सुविधा अनुसार उन्हें जो ठीक लगा लिख डाला कि एक विधवा औरत को सफेद कपड़े पहनने चाहिए क्योंकि इस से औरत का मन शांत रहता है. खाना भी उसे सादा खाना चाहिए क्योंकि तामसी भोजन करने से औरत में कामभावना जाग्रत होने लगती है जो समाज के नजर में महापाप है. सरल भोजन करने से औरत के मन में किसी भी प्रकार की इच्छा व्यक्त नहीं हो पाती और उस का मन पूजापाठ में लगा रहता है.

लेकिन यही सब उन्होंने पुरुषों के लिए क्यों नहीं लिखा कि जब जिन की पत्नियां मर जाती हैं, उन्हें भी ऐसा कुछ करना चाहिए? किसी न  किसी वजह से यह समाज विधवा औरतों को ही उन के पति के मरने का बोध क्यों करता है? कभी सफेद कपड़े पहना कर तो कभी दुत्कार कर उन की जिंदगी बेरंग बना दी जाती है और उस के बाद उन से उन के सारे हक छीन लिए जाते हैं. जो व्यक्ति इस दुनिया में है ही नहीं. उसे याद करने का पाठ पढ़ाया जाता है. एक विधवा औरत अगर किसी पुरुष से बात भी कर ले तो उस के चरित्र पर कीचड़ उछाला जाता है, मगर पुरुष को कोई कुछ नहीं कहता.

एक पति न होने से औरतों के प्रति समाज का नजरिया क्यों बदल जाता है? आज भले ही हमारे देश में सतीप्रथा खत्म हो चुकी है लेकिन फिर भी जिन हालातों में एक विधवा औरत अपनी जिंदगी बिता रही है वह आग में जला कर राख कर देने से कम है क्या? अपने मन में ही सोच कर साहिल कुपित हो उठा. साहिल  को चुप देख कर नीलिमा को लगा, पता नहीं उस के मन में क्या चल रहा है.

“साहिल, मैं तुम पर शादी के लिए कोई प्रैशर नहीं डालना चाहती.  क्योंकि हो सकता है मेरा अतीत जानने के बाद तुम या तुम्हारे परिवार वाले एक विधवा को अपनी बहू न बनाना चाहे. लेकिन कोई बात नहीं. मगर हम दोस्त तो बने रह सकते हैं,” बोल कर वह जाने को उठ खड़ी हो गई. साहिल ने भी उसे जाने से नहीं रोका और वह भी अपने घर चला गया. साहिल ने उसे मैसेज कर के बोला था कि 1-2 दिनों के लिए वह अपने गांव जा रहा है, तो शायद उस का फोन न लगे. लेकिन आज 1 हफ्ता हो चुका था और साहिल अपने घर से वापस नहीं आया था. फोन भी नहीं लग रहा था उस का जो नीलिमा उस से बात करती और पूछती कि वह कब आएगा?

ट्रेन से जब वह औफिस आतीजाती तो पागलों की तरह उस की नजरें साहिल को यहांवहां ढूंढ़ती रहतीं कि शायद वह कहीं दिख जाए. नीलिमा को तो यही लगने लगा कि साहिल  एक विधवा से शादी ही नहीं करना चाहता इसलिए जान छुड़ा कर भाग गया या हो सकता है कहीं और उस की शादी तय हो गई हो और वह अपने गांव गया हो. औफिस में भी उस का मन काम में नहीं लगता था.   सिर भारी होने लगता तो छुट्टी ले कर घर चली जाती. न तो उसे घर में चैन था न औफिस में. लगता था बस एक बार कहीं साहिल दिख जाए, तो वह उस के सीने से लग जाएगी.

आज भी औफिस में नीलिमा से कोई काम नहीं हो पा रहा था. इसलिए वह आधे दिन की छुट्टी ले कर औफिस से निकल गई. आज फिर ट्रेन में उसे साहिल के होने का एहसास हुआ तो वह रो पड़ी. स्टेशन पर उतरी और भारी कदमों से घर की ओर चल पड़ी.

एक उस के पापा ही थे जो उसे समझते थे. लेकिन वह भी उस से दूर चले गए. घर पहुंचने पर मां कहने लगीं कि उस की बुआ उस के लिए एक लड़का बता रही हैं. उम्र ज्यादा नहीं लड़के की और वह सरकारी नौकरी में है. लेकिन मां की बात पर नीलिमा ने कोई जवाब नहीं दिया और कमरे में जा कर अंदर से दरवाजा लगा लिया. थोड़ी देर बात जब संध्या उसे खाने के लिए बुलाने आई, तो खाने के टेबल पर भी उस ने वही बात दोहराते हुए कहा कि आखिर एक न एक दिन तो उसे शादी करनी ही पड़ेगी न.

“बुआ को और कोई काम नहीं है क्या मां? क्यों वे मेरे ही पीछे पड़ी हैं?” नीलिमा झल्ला पड़ी, तो संध्या यह कह कर भड़क उठी कि एक तो लोग उस का भला चाह रहे हैं और यह है कि ऐंठी दिखा रही है. सिर्फ उस के कारण ही उस का भाई अब तक कुंआरा बैठा है.

“अरे, तो करो न अपने बेटे की शादी…मना किस ने किया है? आप कहो तो मैं इस घर से तो क्या, आप सब से भी दूर बहुत दूर चली जाती हूं,” एक तो वैसे ही नीलमा का मूड ठीक नहीं था, ऊपर से मां की बकवास भरी बातों से वह और बौखला पड़ी.

बाहर हौल में दीपक जोरजोर से बोल रहा था कि अपने साथसाथ उस की भी जिंदगी बरबाद कर देगी यह नीलिमा. अब क्या अपनी शादी के लिए उसे कोई फिल्मी हीरो चाहिए?  जिस भाई को वह अपना समझती थी आज उसी भाई ने उसे परायापन का एहसास करा दिया था. बता दिया कि वह सिर्फ एक बोझ है इस घर में.   इसलिए निकालो इसे इस घर से, जितनी जल्दी हो सके.

सुबह नीलिमा का औफिस जाने का जरा भी मूड नहीं था. लेकिन जाना तो पड़ेगा ही, क्योंकि वही तो एक सहारा है उस का. ट्रेन में बैठेबैठे वह सोच रही थी कि औफिस के पास ही एक कमरे का घर ले लेगी अपने लिए.

औफिस में नीलिमा को एकदम गुमशुम बैठे देख कर अनु ने जब पूछा कि क्या हुआ उसे तो वह रो पड़ी और अपने घर का सारा हाल कह सुनाया कि कैसे उस के घर वाले किसी से भी उस की शादी कर देना चाहते हैं.

“अरे, तो तू मना कर दे. बोल कि तू किसी और से प्यार करती है,” अनु बोली तो नीलिमा और फफक पड़ी कि जब साहिल का कोई अतापता ही नहीं है तो किस आधार वह वह ऐसा बोल सकती है…

“अच्छा, तू ज्यादा टैंशन न ले. सब ठीक हो जाएगा,” बोल कर अनु अपने कामों में तो लग गई लेकिन उसे अब नीलिमा की चिंता होने लगी.  देख रही थी वह, कई दिनों से उस का ऐसा ही चल रहा था. औफिस आती तो सही पर अनमनी सी बैठी बस काम करती रहती थी. किसी से कुछ बोलतीटोकती नहीं थी. गुस्सा आ रहा था अब उसे साहिल पर कि कैसा इंसान है, क्यों शादी का प्रस्ताव रखा जब उसे शादी करनी ही नहीं थी तो?  सारे लड़के एकजैसे होते हैं, एकदम दोगले. कहते कुछ और हैं और करते कुछ और. उन्हें तो बस लड़कियों के शरीर से प्यार होता है. मन भर गया तो कहीं और ठिकाना ढूंढ़ने लगते हैं.  लेकिन क्या बढ़िया अभिनय किया उस साहिल ने, वाह.

लेकिन नीलिमा यह मनाने को कतई तैयार नहीं थी कि साहिल का प्यार कोई अभिनय था. किसी भी तरह वह साहिल को बुरा व्यक्ति मान लेने में असमर्थ थी. अपने दिमाग में चल रहे द्वंद्व से लग रहा था नीलिमा का सिर फट जाएगा. इसलिए अपने दोनों हाथों से उस ने अपने कान बंद कर लिए और वहीं टेबल पर सिर झुका कर सिसक पड़ी. वह शरीर से ही नहीं, बल्कि मन से भी बहुत काफी थक चुकी थी. इसलिए 2 दिनों की छुट्टी का ऐप्लिकेशन दे कर वह औफिस से निकल गई. ट्रेन की खिड़की से बाहर झंकाते हुए उदास मन से वह सोचने लगी कि साहिल ने उस के साथ ऐसा क्यों किया? क्यों उस ने उस के दिल के साथ खिलवाड़ किया?

तभी अपने हाथ पर किसी का स्पर्श पा कर वह चौंकी और जब पलट कर देखा, तो हक्कीबक्की रह गई. उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उस के बगल में साहिल बैठाबैठा मुसकरा रहा है. साहिल ने जब हौले से उस के गाल को स्पर्श करते हुए पूछा कि वह कैसी है, तो उस के प्रेम की खुशबू से तर नीलिमा उस के सीने से लग कर सिसक पड़ी.

नीलिमा ने जब ठुनकते हुए कहा कि पता है उसे, उस के बिना उस का कितना बुरा हाल था, तो साहिल  अपने कान पकड़ कर माफी मांगते हुए बोला कि वह अपनी शादी के लिए मां और भाई को मनाने अपने गांव गया था.

“तो क्या वे लोग मान गए हमारी शादी के लिए?” नीलिमा ने पूछा.

“हां, मानना ही था,” साहिल मुसकरा कर बोला. लेकिन वह कैसे बताए नीलिमा को कि उन के रिश्ते को ले कर घर में कितना बवाल मचा. साहिल एक विधवा से शादी करना चाहता है, यह बात सुन कर साहिल की मां तो एकदम बिफर पड़ीं कि अब क्या इस उम्र में वह उसे ऐसे दिन दिखाएगा? इस से अच्छा तो वह मर ही जाए. और साहिल के भाई ने तो यहां तक कह दिया कि अगर उस ने नीलिमा से शादी की बात सोची भी तो अच्छा नहीं होगा.

“लेकिन नीलिमा में बुराई ही क्या भैया? यही न कि वह एक विधवा है? तो इस में उस का क्या दोष है बताइए न? नहीं, अब मैं अपनी बात से पीछे नहीं हट सकता. शादी तो मैं नीलिमा से करूंगा और रही बात गांवसमाज के लोगों को जवाब देने की तो उस के लिए भी मैं तैयार हूं,”  यहां बात असल यह थी कि साहिल का भाई अपनी साली से उस की शादी करवाना चाहता था और जब उसे पता चला कि साहिल किसी और से प्यार करता है और उस से ही शादी करना चाहता है, तो चीखनेचिल्लाने लगा. यहां तक की उस ने मां के भी कान भर दिए साहिल के खिलाफ कि वह बापदादा की बनीबनाई इज्जत को मिट्टी में मिलाना चाहता है.

साहिल की मां गुस्से में अन्नजल त्याग कर बैठ गईं कि जबतक साहिल अपना फैसला नहीं बदलता वे खाना तक नहीं खाएंगी. साहिल को समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे वह. कैसे मां को समझाए कि नीलिमा अच्छी लड़की है और विधवा होना कोई उस का गुनाह या दोष नहीं है.

जूस का गिलास ले कर साहिल जब अपनी मां के कमरे में गया तो उस ने अपना मुंह दूसरी तरफ फेर लिया. “मां, यह जूस पी लो प्लीज, वरना आप की तबीयत खराब हो जाएगी,” लेकिन उस की मां कहने लगी कि हो जाने दे. उसे अब जी कर करना भी क्या है.

“नहीं मां, ऐसा मत कहिए. मैं सच कह रहा हूं नीलिमा बहुत ही अच्छी लड़की है. लेकिन एक विधवा होना कोई दोष तो नहीं है न? मां, आप ने भी तो कभी विधवा का दंश झेला है? जब पापा गुजर गए थे तब इसी समाज ने आप के खाने, हंसने, पहननेओढ़ने पर पहरा बैठा दिया था. आप एक विधवा का दर्द झेलती रहीं. तो आप क्या चाहती हैं वही दर्द नीलिमा झेले? जब एक औरत हो कर, एक औरत का दर्द नहीं समझ पा रही हैं आप, तो मर्द क्या समझेंगे?”

जब देखा साहिल ने उस की बातों का मां पर कोई असर नहीं हो रहा है, तो बोला, “ठीक है मां, अगर आप चाहती हैं मैं नीलिमा से शादी न करूं, तो यही सही. लेकिन आप यह जूस पी लेना,” कह कर वह जाने ही लगा कि पीछे से मां ने आवाज दी.

“जूस का गिलास पकड़ा मुझे और सुन, मुंबई जाने की मेरी भी टिकट करा. मुझे अपनी होने वाली बहू से मिलना है,” मां की बात सुन कर साहिल दौड़ कर उन के गले लग गया. खुशी के मारे उस के आंखों से आंसू निकल पड़े.

“अरे, क्या सोचने लग गए तुम?” साहिल को चुप देख कर नीलिमा बोली, “कहीं तुम मुझ से झूठ तो नहीं बोल रहे हो?”

“सोलह आने सच बोल रहा हूं और इस का सुबूत यह है कि कल ही मैं अपनी मां के साथ तुम्हारे घर तुम्हारा हाथ मांगने आ रहा हूं,” साहिल की बात से नीलिमा का दिल यह सोच कर बैठ गया कि अब क्या होगा  क्योंकि उस ने अब तक अपने घर में अपने रिश्ते के बारे में नहीं बताया था.

अपने वादे अनुसार साहिल जब अपनी मां को ले कर नीलिमा के घर उस का हाथ मांगने पहुंचा तो उन का आदरसत्कार करने के बजाय, संध्या यह कह चिल्लाने लगी कि अभी उन के जातबिरादरी में लड़को की कमी नहीं है जो वे अपनी बेटी की शादी एक गैर जाति के लड़के से करेंगी.  और दीपक ने तो उन की बेइज्जती कर के उन्हें अपने घर से बाहर ही निकाल दिया.

साहिल और उस की मां की बेइज्जती देख नीलिमा रो पड़ी. मन तो किया उस का अभी यह घर छोड़ कर निकल जाए. उन के जाने के बाद संध्या बेटी पर बरस पड़ी कि उस की इतनी हिम्मत की वह अपने लिए लड़का ढूंढ़े वह भी गैर जाति के.  समाज में नाक कटवाएगी क्या उन का?

नीलिमा की शादी की बात सुन कर नीलिमा के ससुराल वाले और नातेरिशतेदारों में भी हड़कंप मच गया कि एक विधवा कैसे अपने लिए लड़का पसंद कर सकती है? संध्या की तो नींद हो उड़ चुकी थी कि एक तो बेटी विधवा ऊपर से लड़का गैर बिरादरी का. जीने नहीं देंगे लोग उन्हें. आखिर उन्हें रहना तो इसी समाज में है. और कल को दीपक के लिए कौन अपनी बेटी देगा? यहां सब अपनाअपना स्वार्थ देख रहे थे लेकिन नीलिमा के बारे में कोई नहीं सोच रहा था.

बुआ तो कहने लगीं,”अभागी कहीं की… तेरे लिए जातबिरादरी का लड़का ढूंढ़ कर लाई, तो तू परजात में मरने चली है. इस से तो अच्छा तू मर ही जाती.”

“हां, तो मार ही दो मुझे, अच्छा रहेगा. कम से कम ऐसी नीरस बेरंग जिंदगी जीने से तो बच जाऊंगी मैं. और ऐसा कौन सा अनर्थ कर दिया मैं ने जो आप सब मिल कर मेरे मरने की दुआ मांग रहे हैं? यही न की अपने लिए अपने पसंद का साथी ढूंढ़ा. तो क्या गलत कर दिया मैं ने?” नीलिमा ने आज अपना रौद्र रूप दिखाया क्योंकि उस की चुप्पी का क्या नतीजा हुआ था वह आज तक वह भुगत रही है.

“बीच में ही मेरी पढ़ाई छुड़वा कर आपलोगों ने मेरी शादी एक ऐसे इंसान से करवा दी, जो शराब पीपी कर मर गया और मुझे विधवा बना गया. मुझे सफ़ेद साड़ी में लिपटने को मजबूर कर दिया गया और आज मैं जब खुद अपने लिए खुशियां तलाश लायी हूं, तो मैं पापन, अभागन हो गई?

“नहीं मानती मैं इस समाज को और उन के बनाए नियमकानूनों को, समझीं आप? और वैसे भी, मुझे अब यहां इस घर में रहना ही नहीं है. और एक बात मां, भले ही साहिल दूसरी जाति से है. लेकिन मैं उस से ही शादी करूंगी,” यह बोल कर नीलिमा घर से निकल गई और सब खड़ेखङे देखते रह गए.

दीपक ने आगे बढ़ कर उसे रोकना चाहा लेकिन संध्या ने उस का हाथ पकड़ लिया कि जाने दो उसे. शायद, संध्या को भी लगा कि नीलिमा अपनी जगह सही है क्योंकि वह भी एक विधवा होने का दर्द झेल चुकी है. लेकिन अब वह उसी दर्द से बेटी को गुजरते नहीं देख सकती. जानती है यह समाज उसे माफ नहीं करेगा. लेकिन अपनी बेटी की खातिर वह इस समाज से भी लड़ लेगी.

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