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पनौती : स्टूडैंट मास्टर की दिलचस्प कहानी

‘‘ओए पप्पू, क्लास की पिकनिक पर चल रहे हो?’’

‘‘जी, मास्टरजी. मेरा नाम तो अभिषेक है. आप बारबार भूल जाते हैं?’’

‘‘भूलता नहीं हूं, पप्पू. तू मुझे बिलकुल पप्पू लगता है.’’ सारी क्लास हंसने लगी. 8वीं क्लास के इस पीरियड में ये रोज चलने वाली बातें थीं. सब को रट सी गई थीं.

‘‘पता है न, पिकनिक की तैयारी कैसी होनी चाहिए?’’

‘‘जी, मास्टरजी. पिछले साल भी तो गए थे.’’

‘‘वाह, पप्पू तो हर साल पिकनिक पर जाता है.’’

अभिषेक का चेहरा गुस्से से लाल हो गया. पर मास्टरजी का क्या बिगाड़ लेता. उसे समझ न आता कि ये इतिहास पढ़ाने वाले सोमेश सर उस से इतना चिढ़ते क्यों हैं. अभिषेक क्लास का होशियार स्टूडैंट है, कभी फर्स्ट आता है, कभी सैकंड. पर सोमेशजी आते ही उसे घूरते हैं, उस की जाति का घुमाफिरा कर अपमान भी कर देते हैं. कम से कम किसी टीचर को अपनी क्लास में इस बात से दूर रहना चाहिए. उन की नजर में सब बच्चों को बराबर होना चाहिए. पर जब से स्कूल के माली विनोद ने अपने बेटे अभिषेक का एडमिशन इस स्कूल में करवाया है, सोमेशजी ने उस की नाक में दम कर रखा है.

आजकल तो वे अभिषेक को खुल कर पनौती भी कहने लगे हैं, अभिषेक चुप रहता है. अपने मातापिता की बात का आदर करते हुए चुपचाप पढ़ाई पर वह ध्यान दे रहा है. यह एक छोटे से शहर जौनपुर का हिंदी मीडियम बौयज स्कूल है. अब कल पिकनिक पर बच्चों को बनारस ले जाया जा रहा है. बच्चे मंदिर, घाट देखेंगे, सारनाथ जाएंगे. स्पोर्ट टीचर अनिल सर सब व्यवस्था देख रहे हैं, उन की हैल्प कर रहे हैं, सोमेश सर.

‘‘कल तुम लोगों को सारनाथ दिखाएंगे, इतिहास में बुद्ध से जुड़ी यह काफी महत्वपूर्ण जगह है. बहुत से विदेशी भी वहां आते हैं. कल हमारा पप्पू भी सारनाथ देखेगा.’’

बच्चे हंसने लगे. अभिषेक फिर अपमान का घूंट पी कर रह गया. उस के बाद सोमेशजी ने कुछ सारनाथ के बारे में ही बताया, बुद्ध के उपदेशों के बारे में बात की. अगले पीरियड की घंटी बजी तो अभिषेक की जान में जान आई. अब उस के दोस्त रमेश, सोहन और अमित उस के पास आ कर बैठे. रमेश ने कहा, ‘‘यार, सोमेश सर क्या पकाते हैं. अभिषेक के तो पीछे ही पड़ गए हैं. पप्पूपप्पू कर के दिमाग की ऐसीतैसी कर दी है. इन का करें क्या?’’

‘‘छोड़ यार, इसी साल की बात है. अगले साल मैं इतिहास विषय तो लूंगा नहीं. झेल लेंगे इस साल.’’

रोज की तरह स्कूल का टाइम बीता. अगले दिन सब बच्चे पूरी तैयारी के साथ चले पिकनिक. बस में बैठने से पहले लाइन में लगे हुए बच्चों को देखते हुए सोमेश सर ने कहा, ‘‘अरे, पप्पू पनौती कहां है?’’ बच्चों ने लाइन में खड़े अभिषेक की तरफ इशारा कर दिया.

अमित सर ने टोका, ‘‘क्या सोमेशजी, क्यों बच्चे को परेशान करते हैं? इतना अच्छा, शांत बच्चा है.’’

‘‘अरे, पनौती है, पनौती. सुबह उसे देख लेता हूं, तो मेरा पूरा दिन खराब जाता है.’’

बच्चे बस में एकएक कर के चढ़ते गए, अभिषेक अपने दोस्तों के साथ बैठ गया. सोमेशजी ने कहा, ‘‘चलो ड्राइवर, मैं एक शौर्टकट बताता हूं.’’

ड्राइवर ने पूछा, ‘‘कौन सा?’’

‘‘तुम चलो तो सही,’’ कुछ बच्चे बैठते ही घर से लाया सामान खाने लगे तो सोमेशजी ने डांट लगाई, ‘‘अरे, बस तो चलने दो. चलो, ड्राइवर, सीधे चलो, अब दाएं से, अब सीधे, अब नीचे से ले लो, अब बाएं से,’’ इसी तरह से दिशानिर्देश देते हुए सोमेशजी ड्राइवर के बराबर वाली सीट पर ही बैठ गए. गरदन अकड़ा कर वे बोले, ‘‘यह रास्ता तो आंख बंद कर के भी बता सकता हूं,’’ एक घंटे तक सोमेशजी खुद बोलते रहे, ड्राइवर ने जब भी बोलने की कोशिश की, डांट कर उसे चुप करा दिया. अनिल सर ने कहा, ‘‘सोमेशजी, यह रास्ता पक्का शौर्टकट है? मैं तो अभी इस एरिया में नया हूं.’’

‘‘आप चिंता न करें, अनिलजी. आज मैं ने पिकनिक की पूरी जिम्मेदारी ली हुई है. देखना, सब कितना एंजौय करेंगे,’’ कहतेकहते सोमेशजी की आवाज अचानक धीरे हुई, सब चौंके, अमित ने अभिषेक के कान में कहा, ‘‘देखना, पक्का यह गलत रास्ते पर ले आए हैं. आवाज का कौन्फिडैंस कुछ हिला हुआ नहीं है?’’

तीनों दोस्त हंस दिए, थोड़ी तेज आवाज में. ऐसे मौके अभिषेक ग्रुप को जरा कम ही मिलते थे. यह भी पता था, आज पिकनिक है, ज्यादा टोकाटाकी नहीं की जाएगी. और अनिल सर भले इंसान हैं, ये भी सब को पता था. सोमेशजी की आवाज आई, ‘‘पता नहीं, बस में कौन पनौती बैठा है,’’ कहतेकहते उन्होंने अभिषेक को देखा, हंसे, कहा, ‘‘हां, भाई ड्राइवर, शायद गलत शौर्टकट पकड़ लिया, अब तुम्हें जो रास्ता ठीक लगे, वही ले लो.’’

ड्राइवर को गुस्सा तो बहुत आया, कहा, ‘‘मास्टरजी, आप तो बोलने ही नहीं दे रहे थे.’’

‘‘हां, तो चलो, अब बोल लो,’’ सोमेशजी ने ढीठता से कहा. ड्राइवर मुंह में ही बहुत देर तक बुदबुदाया कि डेढ़ घंटे का रास्ता 4 घंटे में पूरा हुआ. अब तक एक बज रहा था, बच्चों को भूख लग आई थी. बस सारनाथ पहुंची. सोमेशजी ने कहा, ‘‘चलो, पहले तुम लोगों को लंच करवाते हैं, गरीबदास हलवाई के यहां से खाना पैक करवाया है, 4 तरह की सब्जियां हैं. चलो, सब लाइन लगा कर उतरो, फ्रैश हो कर ग्राउंड पर गोल घेरा बना कर बैठो. आओ, अनिलजी, हम तब तक यहां के मैनेजर से मिल लेते हैं.’’

स्कूल के 2 कर्मचारी विमल और अजीत भी साथ आए थे, वे सब बच्चों को ले कर आगे बढ़ गए. बड़ा सा गोल घेरा बन गया, विमल और अजीत खाने के बैग में से सामान निकालने लगे, डिस्पोजेबल प्लेट्स और गिलास हर बच्चे को दिए गए, फिर सब की प्लेट में सब्जियां डाल दी गईं, सब्जियों की खुशबू से सब की भूख और तेज हो गई.

एक तरफ सोमेश और अनिल भी बैठ गए. इतने में विमल की घबराई आवाज आई, ‘‘सरजी, रोटी कहां हैं?’’

‘‘अरे, सब्जियों के साथ ही होगी. मैं थोड़े ही हाथ में ले कर बैठा हूं.’’

‘‘सरजी, रोटी नहीं हैं.’’

‘‘क्या?’’ अमित और सोमेश तुरंत उठ खड़े हुए, थैले उलटेपुलटे गए. रोटियां नहीं थीं. सोमेश ने तुरंत गरीबदास की दुकान पर फोन लगाया, कुछ बातें करते रहे, हां, ओह, अरे, की आवाज आती रही. फोन रख कर वे बोले, ‘‘हलवाई कह रहा है, मैं ने सिर्फ सब्जियां ही बोली थीं, मैं रोटी का और्डर देना ही भूल गया था.’’

सोमेश के चेहरे पर शर्मिंदगी थी, बच्चों के चेहरे लटक गए थे. अनिल ने कहा, ‘‘विमल, अजीत बाहर बहुत से ढाबे हैं, जल्दी से उन से रोटियां ले आओ. बच्चों, थोड़ा टाइम लगेगा, तब तक कुछ अपना खाना चाहो तो खा लेना.’’

सोमेश की नजरें फिर मुसकराते हुए अभिषेक और उस के दोस्तों पर पड़ीं, तो वे चिढ़ गए, अभिषेक को देखते हुए जोर से कहा, ‘‘पता नहीं, आज पिकनिक में कौन पनौती आया है.’’

अभिषेक भी हंस दिया, ‘‘सर, हम भी यही सोच रहे थे.’’

और बच्चे भी अभिषेक और सोमेश सर के बीच चल रहे इस संवाद का मतलब खूब समझते थे, वे सब भी हंस दिए. सोमेशजी का मूड और खराब हो गया. बाहर से रोटियां आईं, बच्चे खाने पर टूट पड़े. पिकनिक का फुल माहौल बना. खानापीना, गाना हुआ. फिर सारनाथ घूमा गया. अच्छी शांत जगह थी. सब खुश थे. अब साढ़े 3 बज रहे थे. बच्चों ने कहा, ‘‘थोड़ा गेम खेलें, सर?’’

‘‘चलो, विमल, रस्सी ले आओ बस से,’’ अनिल सर ने कहा, तो बच्चे खुश हो गए.

रस्सी के एक कोने को अनिल सर और कुछ बच्चों ने पकड़ा, दूसरा सिरा सोमेश और बाकी बच्चों ने. सोमेशजी ने पहले ही कह दिया था, ‘‘अभिषेक, तुम अनिलजी की तरफ जाओ, मैं अपनी साइड कोई पनौती नहीं लूंगा.’’

अनिल सर को उन की इस बात पर बहुत गुस्सा आता था, पर सोमेश उन से बहुत सीनियर थे, वे अभी ही स्कूल में आए थे तो कोई बहस नहीं करना चाहते थे. अभिषेक उन्हें प्रिय था, उन्होंने उस से कहा, ‘‘आओ, जीतना है.’’

रस्साकशी शुरू हो गई, जिस तरफ सोमेशजी थे, वह टीम हार गई, अभिषेक जोरजोर से हंसा. सोमेशजी का मन किया कि उसे एक चांटा रसीद कर दें, पर किस बात पर करते. अभिषेक ने किया क्या था. चुप ही रह गए. घाट, मंदिर घूमफिर कर सब वापस लौट आए, पिकनिक बढि़या रही थी.

कुछ दिन स्कूल में आम दिनों से ही बीते. हां, सोमेशजी का पप्पूपप्पू का गाना चलता रहा था. फिर टीचर्स, स्टूडैंट्स एनुअल फंक्शन की तैयारियों में व्यस्त हो गए. सोमेशजी ने जानबूझ कर अभिषेक को एनुअल फंक्शन के एक भी प्रोग्राम में नहीं लिया. और हद तो यह कि अभिषेक के पास से निकलते हुए वे गाना गुनगुनाने लगते कि ‘पप्पू कांट डांस साला.’ अभिषेक घर जा कर अपने पेरैंट्स को बताता भी तो क्या. उन्हें दिनभर मेहनत करते देखता, दोनों कुछ न कुछ काम करते ही रहते. उसे पढ़ालिखा कर बड़ा आदमी बनाने का ही सपना देखते थे. वह अपना दुख अपने मन में ही रख कर मुसकराता रहता. अब यही सोचता कि अगले साल इतिहास का सब्जैक्ट रहेगा ही नहीं, तो परेशानी नहीं होगी.

एनुअल फंक्शन के दिन सुबह से ही स्कूल में बड़ी रौनक थी. स्टेज पर प्रोग्राम चल रहे थे. सबकुछ बहुत अच्छा चल रहा था. पर सोमेशजी का कुछ अतापता नहीं था. प्रिंसिपल और बाकी टीचर्स हैरान थे, सब हैं, यह सोमेशजी का कुछ पता नहीं चल रहा है. एक टीचर ने बताया कि आजकल वे अकेले ही हैं, उन का परिवार किसी शादी में बाहर गया हुआ है. अचानक दोपहर में सोमेशजी प्रकट हुए, प्रिंसिपल ने उन्हें गुर्रा कर क्याक्या कहा, सब बच्चों ने सुना. सोमेशजी मिमिया रहे थे, ‘‘पता नहीं, कैसे देर तक सोता रह गया. घर में कोई है नहीं, आंख ही नहीं खुली.’’

अभिषेक ने यह बात सुनी तो वह जोर से हंस दिया. एक तो बच्चों के सामने अपमान, दूसरे अभिषेक की हंसी. सोमेशजी का पारा चढ़ गया, बोले, ‘‘पप्पू पनौती, तेरे आसपास होने से ही सब काम बिगड़ते हैं. तुझे मैं बताता हूं, देखना.’’

उन्होंने अपने प्रिय शिष्य, क्लास के मौनिटर अभिजीत शुक्ला को बुलाया, आदेश दिया, ‘‘इस पनौती को मेरी क्लास में मत आने देना. मैं इसे पनिशमैंट दे रहा हूं, यह 4 दिन क्लास के बाहर खड़ा रहेगा. बाहर खड़ा हो कर जितना हंसना हो, हंस लेगा.’’

प्रिंसिपल अब तक सोमेशजी पर गुर्रा कर जा चुके थे. अभिजीत ने अपनेआप को हीरो समझते हुए स्टाइल से कहा, ‘‘यस सर.’’ किसी भी क्लास में टीचर के प्रिय स्टूडैंट का जोश अलग ही रहता है.

सोमेशजी का मूड अगले कुछ दिन बहुत खराब रहा. 4 दिन तो उन्होंने अभिषेक को अपनी क्लास के बाहर ही खड़ा रखा. वह भी चुपचाप बाहर ही खड़ा हो कर अपनी किताबों में से कुछ पढ़ता ही रहा. उस के पास सारे अपमान का एक ही जवाब था, मेहनत, अच्छे नंबर लाना. परीक्षाएं हुईं, फिर रिजल्ट आने तक स्कूल की छुट्टियां हो गईं. अभिषेक ने हमेशा की तरह रातदिन मेहनत की थी. वह बहुत खुश था कि अब सोमेश सर से उस का पीछा छूट जाएगा. पर उसे एक डर भी था कि कहीं उसे जानबूझ कर कम नंबर दे कर सोमेश सर उस का रिजल्ट न खराब कर दें.

एनुअल फंक्शन के बाद से उन्होंने उस से कोई बात नहीं की थी, सिर्फ बुरी तरह घूरा था. रिजल्ट का दिन आया. सोमेश सर एकएक बच्चे का नाम पढ़ कर नंबर बताते और उसे उस की आंसरशीट देने लगे. बच्चों के दिल की धड़कन बढ़ी हुई थी. पिनड्रौप साइलैंस था. उन्होंने इस बार अभिषेक को जानबूझ कर बहुत कम नंबर दिए थे, यह सच था. उस की आंसरशीट में अपनी तरफ से कितनी ही जगह लाललाल गोले बना दिए थे. उन्होंने आवाज दी, ‘‘अभिजीत, 50 नंबर.’’

अभिजीत पढ़ाई में अभिषेक से कम न था. वह हैरान सा बोला, ‘‘सर, मेरा पेपर तो बहुत अच्छा हुआ था. इतने कम मार्क्स.’’ सोमेशजी ने फौरन अभिषेक की आंसरशीट निकाली, ‘‘अभिषेक, 80 नंबर,’’ कह कर उन्होंने अपना सिर पकड़ लिया. उन्होंने तो अपनी तरफ से अभिजीत को सब से ज्यादा नंबर दिए थे, ओह! नाम एक से हैं, कन्फ्यूजन हो गया शायद. अभिजीत उन्हें गुस्से से घूर रहा था. सोमेशजी ने कहा, ‘‘ओह, इस पप्पू के नंबर सब से ज्यादा आ गए, यह सचमुच पनौती है.’’

‘‘सर, मुझे तो कोई और ही पनौती लग रहा है, इतने दिन से सब देख रहे हैं, काम कौन बिगाड़ता है.’’

उन्मुक्त हंसी की एक लहर पूरी क्लास को भिगो गई.

अचानक ‘‘पनौती कोई और नहीं, आप हैं, आप हैं, आप हैं,’’ कह कर अभिजीत फूटफूट कर रोने लगा. क्लास का यह सन्नाटा सब को उदास कर गया था. अभिषेक के मन में अभिजीत के लिए दुख था, पर मास्टरजी अब उसे कभी पनौती नहीं कहेंगे, इस बात पर खुशी भी थी. वह लगातार सोमेशजी को भोली मगर शरारती मुसकान के साथ देख रहा था, वे कहीं और देख रहे थे.

युद्ध में महिलाएं होती हैं ज्यादा बरबाद

युद्ध और संघर्ष देशों की अर्थव्यवस्थाएं बरबाद कर देते हैं, चमचमाते शहरों और गगनचुंबी इमारतों को ध्वस्त कर श्मशान बना देते हैं, लोगों की आजीविका खत्म कर देते हैं, भय और अनिश्चितता से समाजों को भर देते हैं, सालों के लिए असमानताएं और विषमताएं बढ़ा देते हैं, लाखोंकरोड़ों मनुष्यों का जीवन समाप्त हो जाता है, परिवार के परिवार खत्म हो जाते हैं और युद्ध के खात्मे के बाद हमारी उंगलियों पर सिर्फ आंकड़े रह जाते हैं. आंकड़े उन के जो सैनिक युद्ध में मारे गए. मगर युद्ध के दौरान और युद्ध के बाद कितनी महिलाएं और कितने बच्चे प्रभावित हुए, कितनी औरतों ने जानें गंवा दीं, कितनी अपाहिज हो गईं, कितनी औरतों और मासूम बच्चियों का अपहरण हो गया, कितनों के साथ बर्बर बलात्कार हुए, कितनों को सरेआम नंगा ?कर के घुमाया गया, इन बातों की कहीं कोई चर्चा नहीं होती. संघर्ष के दशकों बाद भी महिलाएं इस का खमियाजा भुगतती रहती हैं, लेकिन उन के दर्द को जानने में किसी की कोई दिलचस्पी नहीं.

दुनिया में जगहजगह युद्ध हो रहे हैं. कुरुक्षेत्र ज्यादातर युद्ध लूटने के लिए नहीं हुए. सदियों से धर्म के नाम पर इंसान का खून बहाया जा रहा है. कहा जाता है कि काल्पनिक कथानक महाभारत में युद्ध में करीब सवा करोड़ योद्धा मारे गए थे. इन में करीब 70 लाख कौरव पक्ष से तो 44 लाख पांडव सेना से मारे गए थे. इन मौतों का विवरण है पर क्या कहीं उन की विधवाओं और मासूम बच्चों के बारे में भी लिखा गया कि उन का क्या हुआ? वे जीवित रहीं या मर गईं? जीवित रहीं तो किस के सहारे रहीं? किस ने उन्हें पनाह दी? किस ने उन के दर्द बांटे? किस ने उन के बच्चों को रोटी दी.

मुसलमानों के पैगंबर मोहम्मद ने 23 वर्षों के दौरान कोई 80 युद्ध लड़े, जिन में हजारों हलाक हो गए. उन के बारे में तो धर्मग्रंथों में लिखा है मगर उन की विधवाओं का क्या हुआ? उन के बच्चों का क्या हुआ? उन्होंने किन मुश्किलों का सामना किया? कैसे तड़पतड़प कर जिंदगी काटी? किन मुसीबतों से काटी? क्या इस का भी लिखित ब्योरा कहीं है?

जिंदगियां लीलते युद्ध

प्रथम विश्व युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध, वियतनाम और भारत की आजादी की लड़ाइयां व वर्तमान समय में अनेक देशों- अफगानिस्तान, इराक, लीबिया, सीरिया, यमन, यूक्रेन, रूस में हुए सशस्त्र संघर्ष होते हम देख रहे हैं. वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन और इजराइल-फिलिस्तीन का युद्ध हजारों जिंदगियां लील चुका है.

गोलियों और बमों के धमाकों में घरों के उड़ते परखच्चे, दरबदर होते परिवार, जान बचा कर बदहवास भागते लोग, लाशों से पटी सड़कें, सड़कों पर फटेहाल रोतेबिलखते बच्चे और बूढ़े, इज्जत बचाती चीखतीचिल्लाती औरतें और लड़कियां, मांओं के सीनों से चिपटे खून में लिथड़े घायल बच्चे, क्या युद्ध की विभीषिका थम जाने के बाद इस भय और दर्द से कभी निकल पाएंगे? क्या कभी यह वहशियानापन, यह विनाश, अपनों को खो देने का दर्द, ये गोलेबारूद का उठता काला धुआं, उजड़े हुए उन के आशियाने, क्या यह भयावह मंजर कभी भी उन की आंखों के सामने से हट पाएगा? शायद कभी नहीं.

संयुक्त राष्ट्र की महिला एजेंसी ने हाल ही में कहा- ‘म्यांमार, अफगानिस्तान से ले कर साहेल और हैती के बाद अब यूक्रेन और गाजा का भयानक युद्ध हम देख रहे हैं. हर गुजरते दिन के साथ ये युद्ध महिलाओं और लड़कियों की जिंदगी, उम्मीदों और भविष्य को बरबाद कर रहे हैं. सभी संकटों और संघर्षों में महिलाएं और लड़कियां सब से अधिक कीमत चुकाती हैं.’

युद्ध का असर सभी को प्रभावित करता है, लेकिन महिलाओं और लड़कियों को सब से बड़े खतरों और सब से गहरे नुकसान का सामना करना पड़ता है. युद्ध की वजह से लाखों की संख्या में महिलाएं और बच्चे अपना घर, अपना देश छोड़ने को मजबूर होते हैं. यूक्रेन से युद्ध की शुरुआत में ही 32 लाख लोग अपने घर छोड़ कर भागने के लिए मजबूर हुए. यूक्रेन में हर एक सैकंड में एक बच्चा शरणार्थी बनने के लिए मजबूर था. उन औरतों की दशा सोचिए जो अपने मासूम बच्चों को सीने में भींच कर जान व इज्जत बचाने के लिए भाग रही थीं.

युद्ध कोई भी हो, कहीं भी हो, किसी भी परिस्थिति में हो, उस की विभीषिका सब से ज्यादा औरतों को ही झेलनी पड़ती है. युद्ध की विभीषिका झेलती, अपना घर छोड़ कर बच्चों के लिए सुरक्षित ठिकाने तलाशती औरतों की कहानी कोई नहीं जानता.

हर सभ्यता में जबजब मारकाट हुई, दंगाफसाद हुआ है, उस की सब से बड़ी कीमत न चाहते हुए भी औरतों को ही चुकानी पड़ी है. वही औरतें जिन्होंने कभी ये लड़ाईदंगेफसाद मांगे ही नहीं. वही औरतें जो युद्ध के समय अपने पतियों के इंतजार में बच्चों को संभालती रहीं, वही प्रेमिकाएं जो युद्ध के लिए जंग के मैदान में गए अपने प्रेमी के लौटने का इंतजार करतेकरते आखिरी दम भरने तक अपने आंसू संभाले रहीं, वही औरतें जिन्हें हर युग में सिर्फ एक वस्तु की तरह इस्तेमाल किया गया, युद्ध लड़ने और जीतने का हथियार समझ गया.

जहांजहां लड़ाइयां हुईं, दुश्मन देश की औरतों को इंसान नहीं बल्कि उन के जिस्म को उन की कौम, उन के धर्म, उन के समुदाय का प्रतीक मान कर उन को शिकार बनाया गया. इस मानसिकता से उन पर हमला किया गया, उन्हें बंदी बना कर उन के साथ सामूहिक बलात्कार किए गए, उन को सरेआम कत्ल किया गया कि उन का जिस्म जलील करेंगे तभी उन का देश, उन की कौम, उन का धर्म जलील होगा.

वे औरतें जिन्होंने अपने धर्म और अपनी कौम का ठेका कभी नहीं लिया. जिन्होंने कभी नहीं चाहा कि उन के घर, परिवार, समाज, धर्म, देश की इज्जत उन के जिस्म से जोड़ी जाए, मगर पुरुष मानसिकता ने औरत के बदन को सदैव धर्म, समाज और देश से जोड़ कर रखा. यही वजह है कि जबजब लड़ाइयां हुईं, दुश्मन देश को नीचा दिखाने के लिए सब से पहले उन की औरतों पर हमले हुए. सब से पहले उन्हें नंगा किया गया.

जरमनी के तानाशाह हिटलर द्वारा यहूदियों पर अत्याचार को याद कर के आज भी लोग थर्रा उठते हैं. उस के यातना शिविर और गैस चैंबर्स, जिन में एकएक बार में 8-8 हजार यहूदियों को मारा गया, धर्म और नस्ल के नाम पर की गई यह बर्बरता इतिहास के पन्नों में दर्ज है. अकेले बेल्सन शिविर में 6 लाख यहूदियों की हत्या की गई. शिविरों में सालभर के अंदर ही 10 लाख यहूदियों को मार दिया गया था.

आंकड़ों के मुताबिक, 1939 से 1945 तक 6 सालों में 60 लाख यहूदियों की हत्या हिटलर ने की, जिन में मासूम यहूदी बच्चे और औरतें भी शामिल थीं. इन गैस चैंबरों में मर्दों को तो सीधे धकेल दिया जाता था मगर औरतों को मारने से पहले बुरी तरह प्रताडि़त किया जाता था. हिटलर के शासन में नाजी सैनिकों ने यहूदी महिलाओं और लड़कियों के साथ बर्बरता की सारी हदें पार कर दी थीं.

यहूदी महिलाओं के साथ नाजी सैनिक यातना शिविरों में खुलेआम सामूहिक बलात्कार करते थे. कई महिलाओं के साथ तो तब तक बलात्कार किया जाता, जब तक उन की मौत न हो जाती. नाजी सैनिक गर्भवती महिलाओं पर भी रहम नहीं खाते थे. वे गर्भवती महिलाओं को लाठीडंडों और चाबुक से पीटते थे. उन के पेट पर लातें मारते थे और गर्भवती महिलाओं को जिंदा ही कब्रों में फेंक दिया जाता था.

नाजियों की हौरर हिस्ट्री की पराकाष्ठा यह कि जब हिटलर के यातना शिविरों और गैस चैंबर्स में यहूदी महिलाओं को लाया जाता था, तो नाजी सैनिक उन के सारे कपड़े उतार कर, उन्हें गंजा कर के हंटरों और डंडों से पीटते हुए लाते थे. वे उन के प्राइवेट पार्ट्स पर आघात करते थे. नाजी सैनिक महिलाओं पर इस तरह के जुल्म किसी सैक्सुअल प्लेजर के लिए नहीं करते थे, बल्कि यह अत्याचार उन के यहूदी धर्म और उन की नस्ल को नीचा दिखाने के लिए करते थे.

औरत के शरीर का उस के धर्म, नस्ल, समुदाय, समाज और देश की इज्जत से जोड़ कर देखना आज भी ज्यों का त्यों है. मणिपुर में जो भी हुआ, वह भारतीय समाज, भारतीय लोकतंत्र और भारतीय सभ्यता पर एक बदरंग धब्बा तो है ही, मगर इस की जड़ उसी पुरानी सोच में निहित है कि किसी समुदाय विशेष पर हावी होना है, उस पर वार करना है, उस को खदेड़ कर भगाना है, उस को जलील करना है या उस को समाप्त करना है तो उस समुदाय की औरतों को निशाना बनाओ. यही हुआ मणिपुर में, जहां ईसाई औरतों को हिंदू पुरुषों द्वारा नंगा कर के उन की परेड निकाली गई. उन को प्रताडि़त किया गया. उन का बलात्कार और कत्ल हुआ.

जब भी युद्ध होते हैं, जब भी दंगेफसाद होते हैं, वे एकसाथ 2 होते हैं. एक उस जगह पर या उस देश में, दूसरा औरत के जिस्म पर. हर परेशानी, हर नाराजगी का बदला समाज सब से पहले भीड़ के रूप में औरत से चुकाता है. वे औरतें जो बेगुनाह हैं, जिन का कोई कुसूर नहीं है, जो घरों में हैं, जो पुरुषों की संतानों को पैदा करती हैं, उन्हें पालती हैं. जो प्रकृति में जीवन सींचती हैं, उन को ही सब से पहले निशाना बनाया जाता है सिर्फ उस देश और देश के लोगों को सबक सिखाने के लिए.

पीढि़यों तक दर्द

युद्ध का प्रभाव किसी देश पर दीर्घकालिक या अल्पकालिक हो सकता है, लेकिन महिलाओं और बच्चों के दिलदिमाग पर युद्ध की त्रासदियों का प्रभाव उम्रभर के लिए होता है. बल्कि आगे आने वाली कई पीढि़यां उस दर्द को महसूस करती हैं.

युद्ध कहीं भी हो, सब से ज्यादा अत्याचार और वीभत्स घटनाएं औरतों और मासूम बच्चियों के साथ घटती हैं, जिन्हें सीधे गोली नहीं मारी जाती या बम से नहीं उड़ाया जाता, बल्कि पहले उन के शरीर से कपड़े नोच कर उन से सामूहिक बलात्कार किया जाता है और उस के बाद उन्हें प्रताडि़त करकर के या तो मार दिया जाता है या युद्धबंदी के तौर पर कैद कर के उन के जिस्म को आगे भी नोचते रहने की साजिश होती है.

औरतों के सामने उन के नन्हेनन्हे बच्चों को कत्ल कर देने जैसे भयावह दृश्य हर युद्ध में दिखाई देते हैं. अपनी आंखों के सामने अपने बच्चों को कत्ल होते देखने से ज्यादा पीड़ादायी और कुछ नहीं है. यह अत्याचार दिमाग को सुन्न कर देने वाला होता है. पिछले दशकों में दुनिया में होने वाले सशस्त्र संघर्षों में करीब 20 लाख बच्चे मारे गए हैं. यदि उन की मांएं जीवित हैं तो यह असहनीय दर्द, दुख और तनाव ताउम्र उन को रुलाता रहेगा.

युद्ध के प्रभावों में शहरों का बड़े पैमाने पर विनाश होता है. इस का देश की अर्थव्यवस्था पर लंबे समय तक प्रभाव रहता है. सशस्त्र संघर्ष का देश के बुनियादी ढांचे, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रावधान और सामाजिक व्यवस्था पर बहुत नकारात्मक असर होता है. यूरोप में 30 साल के युद्ध के दौरान जरमन राज्यों की जनसंख्या लगभग 30 फीसदी कम हो गई थी. अकेले स्वीडिश सेनाओं ने जरमनी में 2 हजार महलों, 18 हजार गांवों और 1 हजार 5 सौ कसबों को नष्ट कर दिया, जो सभी जरमन शहरों का एकतिहाई हिस्सा था.

प्रथम विश्वयुद्ध में जुटाए गए 6 करोड़ यूरोपीय सैनिकों में से 80 लाख मारे गए, 70 लाख स्थायी रूप से अक्षम हो गए और 36 करोड़ गंभीर रूप से घायल हो गए. जो मर गए उन की विधवाओं के लिए जीवन नरक से भी बदतर हो गया और जो स्थायी रूप से अक्षम हो गए उन का बोझ उन की औरतें उम्रभर ढोती रहीं. अनेक औरतों को घर चलाने के लिए एकएक डौलर के लिए सैक्स के बाजार में उतरना पड़ा.

द्वितीय विश्वयुद्ध में कुल हताहतों की संख्या का अनुमान अलगअलग है, लेकिन अधिकांश का अनुमान है कि युद्ध में सैनिक और नागरिक शामिल थे. लगभग 6 करोड़ लोग मारे गए, जिन में लगभग 7 करोड़ सैनिक और 4 करोड़ नागरिक शामिल थे. सोवियत संघ ने युद्ध के दौरान लगभग 27 करोड़ लोगों को खो दिया, जो द्वितीय विश्वयुद्ध के सभी हताहतों का लगभग आधा था.

किसी एक शहर में नागरिकों की मृत्यु की सब से बड़ी संख्या लेनिनग्राद की 872-दिवसीय घेराबंदी के दौरान 12 लाख नागरिकों की मृत्यु थी. यह घेराबंदी 8 सितंबर, 1941 से शुरू हुई जो 872 दिनों बाद 27 जनवरी, 1944 को खत्म हुई. इस दौरान नाजियों ने पूरे लेनिनग्राद शहर को घेर कर रखा. नाजी सेना की तरफ से शहर पर लगातार गोले दागे जाते. किसी को आत्मसमर्पण की इजाजत न थी. सिर्फ मौत ही नियति थी. पूरे शहर में अकाल जैसी स्थिति पैदा कर दी गई. ऊपर से भयानक ठंड. तापमान माइनस 30 डिग्री सैल्सियस तक गिर जाता था.

युद्ध से उपजी बीमारियां

इस युद्ध त्रासदी ने 7 लाख 50 हजार लेनिनग्रादर्स को मौत के मुंह में धकेल दिया. मौत हवा में थी. हर जगह मौत थी. अधिकांश भुखमरी, जोखिम और बीमारी से मर गए थे. लोग अचानक कीचड़भरी सड़कों पर गिरते और मर जाते, अपने टूटेफूटे अपार्टमैंट या कार्यस्थलों पर गिर कर मर जाते. ठंड और भूख ने इंसानी जीवन खत्म करना शुरू कर दिया. ईंधन के भंडार सूख चुके थे. न बिजली थी, न पानी, न शहरी परिवहन और न ही चिकित्सा सहायता. दिसंबरजनवरी 1941-42 में लेनिनग्राद में एक लाख से अधिक लोग भूख से मर गए. मृत लोग कई दिनों तक खुली बर्फ पर पड़े रहे, क्योंकि जीवित लोगों के पास उन्हें दफनाने के लिए न तो ताकत थी और न ही साधन.

अनेक प्रत्यक्षदर्शी वृत्तांत, लोगों की निजी डायरियां और मित्रों को लिखे पत्र उस समय की अकल्पनीय भयावहता को दर्शाते हैं. एक 12 वर्षीया लड़की, तान्या सविचवा, जिस ने लेनिनग्राद में 872 दिनों की लंबी घेराबंदी के दौरान अपनी डायरी में सटीक ढंग से मौत की भयावह कहानी लिखी थी- ‘28 दिसंबर, 1941, दोपहर 12.10 बजे, झेन्या की मृत्यु हो गई. 25 जनवरी, 1942, अपराह्न 3 बजे, दादी की मृत्यु हो गई. 17 मार्च सुबह 5 बजे, ल्योका की मृत्यु हो गई. 13 अप्रैल रात 2 बजे, अंकल वास्या की मृत्यु हो गई. 10 मई, शाम 4 बजे, अंकल ल्योशा की मृत्यु हो गई. 13 मई, सुबह 7.30 बजे, मामा का निधन. सविचेव मर चुके हैं. हर कोई मर गया. केवल तान्या ही बची है.’

तान्या किसी तरह घेराबंदी से बच गई, हालांकि उस के तुरंत बाद ‘डिस्ट्रोफी’ से उस की मृत्यु हो गई. मस्कुलर डिस्ट्रोफी जीन म्यूटेशन के कारण होने वाली मांसपेशियों की बीमारियों का एक समूह है. मांसपेशियों के कमजोर होने से समय के साथ गतिशीलता कम हो जाती है. डर, भूख, अनिश्चितता और अकेलेपन ने तान्या सविचवा को इस रोग का शिकार बना दिया.

कहते हैं कि अगर यह देखना हो कि कोई समाज या राष्ट्र तरक्की कर रहा है या नहीं, तो उस समाज या राष्ट्र में औरत की स्थिति को देख लेना चाहिए. समाज या राष्ट्र की स्थिति का पता चल जाएगा. और यह बात सही भी है. कोई भी समाज या राष्ट्र अपनी महिलाओं को हाशिए पर रख कर कभी आगे नहीं बढ़ सका है.

हम ने दुनिया के कई देशों- अफगानिस्तान, इराक, लीबिया, सीरिया, यमन, रूस, यूक्रेन, इजराइल, फिलिस्तीन में सशस्त्र संघर्ष देखे. इन में से कुछ तो गृहयुद्ध हैं और कुछेक देश द्वारा दूसरे के खिलाफ आक्रमण हैं. इन सभी युद्धों में जो एक बात समान है, वह है महिलाओं के बेघर होने, हिंसा और शोषण या मौत का शिकार होने की और युद्ध के पश्चात उन पर जबरन थोपे गए धार्मिक नियमों की.

धार्मिक शासन महिलाओं पर भारी

15 अगस्त, 2021 को अफगानिस्तान पर तालिबान ने कब्जा किया. इस के बाद अफगानिस्तान में महिलाओं की जिंदगी पूरी तरह बदल गई. तालिबान शासन की सब से ज्यादा मार अफगानिस्तान की महिलाएं ही झेल रहीं हैं.

अफगानिस्तान में तालिबान के हमले से पहले औरतें खुल कर जी रही थीं. वे स्कूलकालेजों में पढ़ रही थीं. औफिसों में नौकरियां कर रही थीं. मार्केट में बिंदास घूमती थीं. पार्टियों में शिरकत करती थीं. मनचाहे कपड़े पहनती थीं. लेकिन तालिबानी हमले और अफगानिस्तान पर तालिबान के अधिकार के बाद सब से पहले वहां की औरतों को निशाना बनाया गया. उन से शिक्षा का हक छीन लिया, उन की नौकरियां छीन लीं, उन्हें परदे में कैद कर घरों में बंद कर दिया गया. उन की आजादी पर ताले जड़ दिए गए और जिन औरतों ने तालिबानी ऐलानों को मानने से इनकार किया उन्हें बेदर्दी से गोली मार दी गई. महिलाओं पर युद्ध के प्रभाव कई प्रकार से होते हैं- भावनात्मक, सामाजिक, आर्थिक और शारीरिक रूप से.

जब 2 देशों के बीच युद्ध होता है तो युवाओं पर सेना में भरती होने का दबाव बढ़ता है. उन्हें जबरन लड़ने के लिए भेजा जाता है. यूक्रेन पर रूस ने हमला किया तो सभी पुरुषों को लड़ाई के लिए यूक्रेन में रोक कर उन की महिलाओं व बच्चों को सुरक्षित क्षेत्रों में जाने के लिए कह दिया गया. बेचारी औरतों, जो अब तक घरों में रह कर बच्चे पाल रही थीं, अचानक भयानक गोलीबारी व बमबारी के बीच उन से बच्चों को ले कर जाने के लिए कहा जाना किस कदर भयावह है, यह कोई समझ नहीं सकता.

पति, प्रेमी, भाई, बेटे या पिता से इस अचानक बिछोह का असर भावनात्मक रूप से महिलाओं को तोड़ देता है. वे जंग से बच कर सुरक्षित ठिकानों या राहत शिविरों में पहुंच भी जाती हैं तो बच्चों की देखभाल और रोटी जुटाने के लिए उन को नौकरी के लिए घर से बाहर निकलना पड़ता है, जिस की उन को आदत नहीं होती. वे अनजाने लोगों से मिलती हैं. हर आदमी उन का फायदा उठाने की फिराक में होता है. अपनी सुरक्षा के प्रति वे बेबस हिरणी सी व्याकुल फिरती हैं, अधिकांश औरतें लोगों की हवस का शिकार बन जाती हैं या मजबूरी में उन के आगे सरैंडर हो जाती हैं. यह हारी हुई जिल्लतभरी जिंदगी मानसिक रूप से उन को ताउम्र परेशान करती है.

यौन शोषण की शिकार महिलाएं

युद्ध कोई भी हुआ हो, युद्ध के दौरान बलात्कार और हिंसा की शिकार महिलाओं की संख्या का सटीक आंकड़ा कभी भी हासिल नहीं हो पाया. क्योंकि महिलाएं प्रतिशोध के डर से या समाज में उन्हें कैसे देखा जाएगा, इस डर से बलात्कार की रिपोर्ट नहीं करतीं. और कर भी दें तो कोई फायदा नहीं है क्योंकि युद्धकालीन अपराधियों पर मुकदमा चलाना भी कठिन है. इसीलिए महिलाओं पर संघर्ष के प्रभाव को भुला दिया जाता है, उस का कोई रिकौर्ड नहीं रखा जाता या उस पर ध्यान नहीं दिया जाता है.

युद्ध का परिणाम भोगती औरतें

1994 में अफ्रीका का देश रवांडा नरसंहार से तबाह हो गया था. अनुमान है कि केवल सौ दिनों से अधिक समय में लगभग 10 लाख लोग मारे गए. एक ही कौम के 2 गुटों के बीच हुए हिंसक युद्ध में नरसंहार और औरतों से बलात्कार के कारण रवांडा कुख्यात है. इस अवधि में लगभग 2 लाख 50 हजार से 5 लाख महिलाओं के साथ बलात्कार होने का अनुमान लगाया गया था. रवांडा पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत रेने डेगनी-सेगुई ने कहा, ‘बलात्कार व्यवस्थित था और नरसंहार के अपराधियों द्वारा इसे ‘हथियार’ के रूप में इस्तेमाल किया गया था.’

सशस्त्र संघर्ष अकसर महिलाओं व लड़कियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है. युद्ध के समय में चोट, मृत्यु, शारीरिक और मानसिक बीमारी का खतरा बढ़ जाता है. युद्ध के दौरान सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं या तो नष्ट हो जाती हैं या बहुत कम स्थिति में होती हैं.

इन सेवाओं की कमी का खमियाजा महिलाओं को भुगतना पड़ता है क्योंकि उपलब्ध संसाधनों को युद्ध में पुरुषों की ओर मोड़ दिया जाता है. अस्पतालों में घायल सैनिकों का ही इलाज होता है. इस से महिलाओं की जीवन प्रत्याशा पुरुषों की तुलना में असंगत रूप से कम हो जाती है क्योंकि वे आर्थिक परिवर्तन, विस्थापन और यौनहिंसा के अप्रत्यक्ष प्रभावों से तो प्रभावित होती ही हैं, आवश्यक इलाज भी उन्हें मुहैया नहीं होता है.

युद्ध के दौरान महिलाओं और लड़कियों की तस्करी भी आम है. तस्कर आमतौर पर उस स्थान से सुरक्षित मार्ग के लिए धन की मांग करते हैं जहां से लोग अपने गंतव्य तक भाग रहे होते हैं. जब शरणार्थी भुगतान करने में असमर्थ होते हैं या पर्याप्त भुगतान नहीं कर पाते तो वे अपने साथ की महिलाओं और लड़कियों को अकसर यौनशोषण के लिए तस्करों के हवाले कर देते हैं.

युद्धों और संघर्षों के प्रभाव को मापना आसान नहीं है और महिलाओं पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करना तो और भी कठिन है. हालांकि अंतरसरकारी संगठन संघर्षों को कम करने, युद्ध को रोकने और महिलाओं पर असंगत प्रभाव को कम करने के लिए काम कर रहे हैं लेकिन दुनिया के देशों को अभी बहुतकुछ करने की जरूरत है.

कारगिल युद्ध की पीडि़त गुडि़या

1999 में भारत व पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध में भारतीय फौजी आरिफ को युद्धबंदी बना लिया गया. भारतीय सेना को आरिफ के बंदी बनाए जाने की सूचना नहीं थी तो उस को मृत मान लिया गया.

कारगिल युद्ध शुरू होने के मात्र 10 दिन पहले आरिफ की शादी गुडि़या से हुई थी. आरिफ की मौत ने गुडि़या को बदहवास कर दिया. वह अपने पिता के घर लौट आई. 2003 में गुडि़या की शादी तौफीक नाम के व्यक्ति से कर दी गई. गुडि़या तौफीक के बच्चे की मां बनने वाली थी, उसी दौरान भारत और पाकिस्तान सरकारों ने युद्ध में बंदी बनाए गए सैनिकों को रिहा करना शुरू किया.

पाकिस्तान जेल से आरिफ भी रिहा हो कर आया तो उस के घर में आनंद छा गया मगर घर लौटा आरिफ उस वक्त परेशान हुआ जब उसे पता चला कि उस की पत्नी अब किसी और की बीवी है. उन दिनों गर्भवती गुडि़या दिल्ली के बाहरी इलाके में कलुंदा गांव में अपने मातापिता के साथ रह रही थी. गुडि़या को मेरठ जिले के मुंडली गांव बुलाया गया जहां उस के पहले पति का मकान था. ग्राम पंचायत बैठी और पंचायत ने शरीयत का हवाला दे कर फैसला सुनाया कि गुडि़या की दूसरी शादी अवैध है. उस को अपने पहले पति आरिफ के साथ रहना होगा. तब गुडि़या ने भी अपने पहले पति के साथ फिर से घर बसाने का इरादा जताया.

गुडि़या का यह फैसला, दरअसल उस के पहले पति, पूर्व ससुराली संबंधियों, गांव वालों और धार्मिक नेताओं के दबाव के कारण था. जबकि गुडि़या के दूसरे पति तौफीक को अपनी गर्भवती पत्नी के इस विवादास्पद निर्णय लेने की पूरी प्रक्रिया से दूर रखा गया.

मौलवियों ने कहा कि गुडि़या शरीयत का पालन करे और आरिफ़ को स्वीकार करे. सब से गंभीर बात इन मौलवियों ने यह कही कि गुडि़या अगर ऐसा न करे तो उस का होने वाला बच्चा नाजायज बन जाएगा. दूसरी तरफ तौफीक से गुडि़या ने इस प्रकरण से 5 दिनों पहले टैलीफोन पर बात की और अपनी विवशता प्रकट की थी. पहले पति से दोबारा मिलने का दबाव इतना था कि पिता ने ऐसा न करने पर आत्महत्या करने की धमकी दी थी.

आरिफ से पुनर्मिलन के एक महीने बाद गुडि़या ने एक बच्चे को जन्म दिया. आरिफ ने शुरुआती हिचक के बाद गुडि़या के बच्चे को इस शर्त पर स्वीकार करने की घोषणा की कि बड़ा होने के बाद वह तौफीक के पास वापस भेज सकता है.

इस सारे झंझवातों से गुजरती गुडि़या आतंरिक रूप से टूट चुकी थी. आने वाले कुछ महीनों में ही वह अनीमिया की शिकार हो गई. इस के साथ ही वह एक गर्भपात की पीड़ा से गुज़री और उसे अत्यधिक मानसिक दबाव से भी जूझना पड़ा. लगातार बिगड़ती सेहत के कारण गुडि़या मात्र 15 महीनों के अंदर ही दिल्ली के सैनिक अस्पताल में मौत की नींद सो गई.

गुडि़या के लिए मानसिक दबाव का एक कारण उस के देवरदेवरानी का उसे बारबार यह ताना मारना था कि वह मनहूस है क्योंकि शादी के कुछ ही दिनों के अंदर आरिफ युद्ध में लड़ने के लिए चला गया था और लापता हो गया था. अब वह फिर लौट आई है. अब फिर परिवार पर कोई कहर टूटेगा.

ऐसी अनेक गुडि़यों की कहानियां युद्ध के मैदानों में बिखरी हुई होंगी, कितने आरिफ वापस लौट कर आए होंगे और उन्हें घर पर अपनी पत्नियां न मिली होंगी. शायद वे बलात्कार का शिकार हो गई हों, हो सकता है किसी की गोली का शिकार हो गई हों, शायद किसी शरणार्थी कैंप के किसी कोने में सिसक रही हों या दूसरे मुल्क द्वारा अपहृत हो गई हों. कौन जानता है ऐसी लाखों गुडि़याओं को, उन की कहानियों को, उन के साथ हुई हैवानियत को? इतिहास के किन पन्नों में दर्ज हैं ऐसी गुडि़याएं?

डिजिटल गोल्ड में निवेश करना फायदेमंद

हमेशा से लोग सोने में निवेश करना पसंद करते हैं. त्योहार से ले कर शादी तक के दौरान देश के लोग बड़ी संख्या में सोना खरीदते हैं और इसे स्त्रीधन भी समझ जाता है, जो जरूरत के समय काम आ सके. लेकिन बदलते परिवेश में निवेश का तरीका बदल चुका है. डिजिटल सोना एक कौन्सैप्ट है, जिस का उपयोग क्रिप्टो करैंसी का वर्णन करने के लिए किया जाता है.

इसे फिजिकल गोल्ड का डिजिटल समकक्ष माना जाता है. यह ब्लौकचेन तकनीक पर आधारित संपत्ति है, जो निवेशकों को बिना किसी धातु के सोने को डिजिटल रूप से एक्सचेंज करने व रखने में सक्षम बनाती है.

सुविधापूर्ण निवेश

स्टेट बैंक औफ इंडिया के मैनेजर विनय वर्मा कहते हैं कि वर्तमान समय में डिजिटल गोल्ड में निवेश करना लोग पसंद कर रहे हैं.

डिजिटल गोल्ड में निवेश व्यक्ति खुद कर सकता है, इस में लौस और प्रौफिट की जिम्मेदारी भी व्यक्ति पर ही होती है, इसलिए अच्छी तरह से जांचपरख करने के बाद ही डिजिटल गोल्ड में निवेश करना चाहिए.

इस के अलावा इस में किसी सरकारी बैंक की भागीदारी नहीं होती. भारत में यह रिजर्व बैंक औफ इंडिया का प्रोडक्ट है, जिसे व्यक्ति घरबैठे औनलाइन खरीद सकता है. इसे खरीदने के लिए केवल किसी बैंक के खाताधारक होने की आवश्यकता होती है, ताकि व्यक्ति डिजिटल गोल्ड को खरीदने और बेचने में पैसों का लेनदेन बैंक खाते द्वारा कर सके.

सुरक्षित निवेश

डिजिटल गोल्ड को सुरक्षित निवेश भी माना जाता है. आसान भाषा में डिजिटल गोल्ड औनलाइन सोना खरीदने का एक तरीका है. इस में व्यक्ति सिर्फ एक रुपए का सोना खरीद कर भी डिजिटल गोल्ड में निवेश कर सकता है. निवेश से ले कर सर्टिफिकेट तक सब औनलाइन ही होता है. किसी प्रकार की समस्या औनलाइन ही सौल्व हो जाती है.

इस की पूरी जानकारी औनलाइन सोवरेन गोल्ड ब्रैंड स्कीम पर भी मिलती है. सरकार की इस योजना के तहत बाजार से कम कीमत पर गोल्ड में निवेश किया जा सकता है. इस में किए गए निवेश की सुरक्षा की गारंटी सरकार देती है. सोवरेन गोल्ड ब्रैंड में अधिकतर व्यक्ति 24 कैरेट यानी 99.9 फीसदी शुद्ध सोने में निवेश करते हैं.

इस स्कीम को निवेशकों का जबरदस्त रिस्पौंस मिला है और इस के बदले उन्हें रिटर्न भी अच्छा मिला है. निवेशकों को शानदार रिटर्न देने वाली इस सोवरेन गोल्ड ब्रैंड स्कीम का उद्देश्य फिजिकल गोल्ड की मांग को कम करना है. यही कारण है कि सरकार बाजार भाव से कम कीमत पर सोना बेचती है और इस बार सोने की कीमत 5,923 रुपए प्रति ग्राम तय की गई है.

गोल्ड ब्रैंड का इश्यू प्राइस भारतीय बुलियन एंड ज्वैलर्स एसोसिएशन लिमिटेड द्वारा तय किया जाता है जो 999 शुद्धता वाले गोल्ड का क्लोजिंग प्राइस के आधार पर होता है.

कैसे करती है काम ?

खरीदे गए डिजिटल गोल्ड को एक लौकर में संग्रहीत किया जाता है. यह 24 कैरेट शुद्ध सोना है, जिस तक केवल सुरक्षित माध्यम से ही पहुंचा जा सकता है. दिन में किसी भी समय व्यक्ति अपना शेयर खरीद सकते हैं. इस के अलावा, जब भी आप अपनी निवेश योजना बदलना चाहें तो इसे बेचना भी आसान होता है.

इन्वैस्टमैंट पर नियमित रूप से नजर रखने के लिए डिजिटल सोने की दरें भी देख सकते हैं या डिजिटल गोल्ड की दरें खोज सकते हैं. इस प्रकार यह बेहद लचीला है और हर किसी के लिए इसे मैनेज करना आसान होता है.

डिजिटल गोल्ड में कम से कम 1 रुपए से भी निवेश शुरू किया जा सकता है. बाजार में भाव के मुताबिक, व्यक्ति खुद इस की खरीद और बिक्री कर सकते हैं. भारत में आरबीआई के अलावा 3 कंपनियां एमएमटीसी-पीएएमपी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, ओग्मोंटगोल्ड लिमिटेड और डिजिटल गोल्ड इंडिया प्राइवेट लिमिटेड अपने सेफ गोल्ड ब्रैंड के साथ डिजिटल गोल्ड का औफर देती हैं. एयरटेल पेमैंट्स बैंक भी सेफ गोल्ड के साथ डिजिगोल्ड औफर करता है.

खरीदने के तरीके

औनलाइन सोना खरीदने में गोल्ड ईटीएफएस, गोल्ड सेविंग फंड्स जैसे इलैक्ट्रौनिक फौर्म में खरीदारी की जा सकती है. मार्केट में डिजिटल गोल्ड के भाव को देखते हुए व्यक्ति इस की खरीदबिक्री कर सकते हैं. इस में मिनिमम एक रुपए से निवेश शुरू कर सकते हैं.

डिजिटल गोल्ड में निवेश के फायदे

  • इस में व्यक्ति छोटी से छोटी रकम केवल 1 रुपए से भी निवेश शुरू कर सकता है. वह जरूरत के अनुसार खुद बेच भी सकता है.
  • डिजिटल गोल्ड को ट्रैक करना आसान है और इसे दिन के किसी भी समय एक्सैस किया जा सकता है.
  • यह हाई लिक्विडिटी प्रदान करता है और इसे दिन के किसी भी समय बाजार दरों पर खरीदा व बेचा जा सकता है.
  • डिजिटल गोल्ड  को फिजिकल गोल्ड  में कन्वर्ट करने का भी औप्शन होता है. इसे सोने के सिक्कों या अपनी पसंद के किसी भी रूप में बदला जा सकता है.
  • डिजिटल गोल्डा इंश्योर्ड और सेक्योर्ड वाल्ट में सेलर की तरफ से स्टोवर किया जाता है. इस के लिए कस्टमर को कोई चार्ज नहीं देना पड़ता.
  • अगर आप के पास डिजिटल गोल्ड है तो आप औनलाइन लोन के लिए इसे कोलेटरल के तौर पर बतौर एसेट इस्तेमाल कर सकते हैं.
  • डिजिटल गोल्ड को इन्फ्लेशन के खिलाफ बचाव के रूप में जाना जाता है और इसे लोन के एक विकल्प के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
  • डिजिटल गोल्ड  में निवेश का फायदा यह है कि आप को गोल्ड की कीमतों पर तुरंत अपडेट मिलता है. कस्टमर रीयल टाइम मार्केट अपडेट के आधार पर गोल्ड खरीद या बेच सकता है.
  • इस में इस की चोरी या डकैती की कोई संभावना नहीं होती.

खरीदने की योग्यता

भारत में डिजिटल सोना एक एडल्ट अकाउंटहोल्डर व्यक्ति खरीद सकता है. डिजिटल सोना खरीदने के लिए व्यक्ति के पास बचत खाता या चालू खाता होना जरूरी होता है.

डिजिटल गोल्ड के रिस्क फैक्टर

  • डिजिटल गोल्ड कोई निष्क्रिय आय उत्पन्न नहीं करता है, अर्थात निवेश पर कोई ब्याज नहीं मिलता है.
  • इस में कोई रेगुलेटरी बौडी नहीं होती, इसलिए कई बार निवेशकों और ग्राहकों के लिए रिस्क हो सकता है.
  • स्टोरेज टाइम लिमिट न होने की वजह से यह समझना मुश्किल होता है कि इस संपत्ति को कितने समय तक रखना सही है, लेकिन कुछ बातों को ध्यान में रखते हुए इस की स्टोरेज की समय सीमा का पता किया जा सकता है, मसलन रेगुलेटरी रेस्ट्रिक्शन, रेंटल कान्ट्रैक्ट्स आदि.
  • डिजिटल गोल्ड एसबीआई या सेबी के नियमों के अंतर्गत नहीं आता है.
  • सोने में निवेश की अधिकतम राशि 2 लाख रुपए तक सीमित है, जो कुछ निवेशकों के लिए एक बाधा बन सकते हैं.
  • हैकिंग या धोखाधड़ी जैसे साइबर जोखिम भी इस में कई बार हो सकता है, इसलिए इसे खरीदने के बाद नियमित जांचपरख करते रहना चाहिए.

मेरी वाइफ इंटीमेट होने से कतराती है, बताएं कि मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी वाइफ को प्रैग्नैंसी के दौरान कुछ कौंप्लिकेशंस थीं, इसलिए प्रैग्नैंसी के 6ठे महीने के बाद से ही हम ने इंटरकोर्स नहीं किया. अब वाइफ की नौर्मल डिलीवरी हुए एक महीना हो चुका है. अब भी मैं जब सैक्स करने की कोशिश करता हूं तो वह बहाने बनाती है. और अगर कुछ बहाना नहीं सूझता तो बच्चे को फीड कराने लगती है. इस वजह से मेरी मैरिड लाइफ बिलकुल नीरस हो गई है. हालांकि उस की फिजिकल कंडीशन देख कर मैंने हर तरह से कंर्पोमाइज किया है लेकिन अब कुछ ज्यादा हो रहा है. आप ही बताए कि मैं क्या करूं ?

जवाब

डिलीवरी के बाद अकसर महिलाएं लंबे समय तक सैक्स नहीं करती हैं. ऐसा करने के पीछे कई वजहें हैं, जैसे महिलाओं को लगता है कि डिलीवरी के बाद सैक्स करने से वे दोबारा जल्दी प्रैग्नैंट हो सकती हैं. इस से उन के स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है. इस तरह के डाउट की वजह से महिलाएं लंबे समय तक सैक्स करने से बचती रहती हैं.

आप की पत्नी की मैंटल कंडीशन ऐसी ही लग रही है. बच्चा अभी महीनेभर का है. पहली बार मां बनना भी महिलाओं को कई बार तनाव में ला देता है कि बच्चे की देखभाल में कोई कमी न रह जाए या उसे कुछ हो न जाए का डर भी उन पर हावी रहने लगता है. दूसरी तरफ नौर्मल डिलीवरी के बाद भी वैजाइना में टांके लगे होते हैं, जो कि 15 दिनों तक लगे रह सकते हैं. जब तक टांके रिमूव न कर दिए जाएं तब तक सैक्स करना सेफ नहीं होता है.

डाक्टर खुद सलाह देते हैं कि डिलीवरी के कम से कम 4 से 6 सप्ताह तक सैक्स नहीं करना चाहिए. इस दौरान महिला का शरीर काफी कमजोर होता है. बच्चे को फीड कराने के कारण वह थकान और अन्य समस्याओं से जू?ा रही होती है. यही नहीं, डिलीवरी के बाद कुछ महिलाएं वैजाइना में ड्राईनैस, सैक्स डिजायर में कमी जैसी चीजों का अनुभव करती हैं.

इसलिए वाइफ की मनोस्थिति को सम?ाने की कोशिश कीजिए. आप भी नएनए पिता बने हैं. पत्नी की बच्चे को संभालने में पूरीपूरी मदद कीजिए. बच्चे से ही आप दोनों में पहली जैसे नजदीकियां आ जाएंगी, यह आप खुद महसूस करेंगे. पत्नी को खुश रखने की कोशिश कीजिए. वह भी पहले की तरह आप को प्यार देने में कमी नहीं छोड़ेगी. टाइम के साथ सब नौर्मल हो जाएगा.

मल्टीस्पैशलिटी हौस्पिटल में जाना जरूरी क्यों ?

सुधा के पति को क्रोनिक थ्रोम्बोएम्बोलिक पल्मोनरी हाइपरटैंशन हो गया था. उन का रेस्पिरेटरी फेल्योर हो गया था, जिसे वे मल्टीस्पैशलिटी हौस्पिटल में जा कर ही पता कर पाए. पहले वे जनरल फिजीशियन से दवाइयां ले रहे थे. लेकिन एक रात उन्हें सांस लेने में काफी समस्या होने लगी और उन के पैरों में भी सूजन आ गई. उन्हें बेहोशी छा गई.

आननफानन उन्हें एक मल्टीस्पैशलिटी अस्पताल के इमरजैंसी वार्ड में भरती करवाया गया. जहां जांच से पता चला कि उन्हें क्रोनिक थ्रोम्बोएम्बोलिक पल्मोनरी हाइपरटैंशन की बीमारी है, जिस के परिणामस्वरूप उन्हें सांस लेने में अधिक तकलीफ हो रही है. ऐसा मरीज दस हजार में एक होता है. इस का इलाज जल्दी करवाना पड़ता है वरना आगे चल कर इस पल्मोनरी हाइपरटैंशन से लंग्स पर प्रैशर बढ़ जाता है. तकरीबन 4 वर्षों के इलाज के बाद वे स्वस्थ हुए और नियमित दिनचर्या को अब वे कर पा रहे हैं.

क्या है यह बीमारी ?

क्रोनिक थ्रोम्बोएम्बोलिक पल्मोनरी हाइपरटैंशन (सीटीईपीएच) ऐसी स्थिति है जहां क्रोनिक रक्त के थक्कों (थ्रोम्बोएम्बोलिक) के कारण फुफ्फुसीय धमनियों में रक्तचाप बढ़ जाता है, जो फेफड़ों के माध्यम से रक्त के मुक्तप्रवाह को बाधित करता है.

असल में आज की लाइफस्टाइल और प्रदूषणभरे माहौल में लंग्स इन्फैक्शन के मामलों में काफी वृद्धि हुई है, जिस का समय रहते इलाज करना अधिक जरूरी है, लेकिन अधिकतर मरीज इधरउधर इलाज करवाते रहते हैं, जिस से उन की बीमारी की सही जांच नहीं हो पाती. फलस्वरूप, रोगी की बीमारी बढ़ जाती है और फिर उस को ठीक करना असंभव सा हो जाता है.

कम समय में सफल इलाज के लिए मल्टीस्पैशलिटी हौस्पिटल सही होता है, जहां एक छत के नीचे सारी जांच और इलाज कम समय में बिना भागदौड़ के संभव हो जाता है. हालांकि इस के खर्चे थोड़े अधिक होते हैं लेकिन आजकल कई संस्थाएं और मैडिकल इंश्योरैंस हैं जो गरीबों को इलाज में मदद करती हैं, जिस से कम दाम में इलाज संभव हो पाता है.

क्या है लंग्स डिसऔर्डर ?

इस बारे में मुंबई की ग्लोबल हौस्पिटल के पल्मोनोलौजी और लंग्स ट्रांसप्लांट के हेड डा. समीर गार्डे कहते हैं कि लंग्स की 2 तरह की बीमारियां देखने को मिलती हैं और इन्हें सम?ाना आवश्यक है.

  1. इन्फैक्शन, मसलन निमोनिया, कोविड इन्फैक्शन, स्वाइन फ्लू या टीबी के रोगी
  2. दूसरे, जिन को अस्थमा है या वे स्मोकिंग की वजह से सीओपीडी के शिकार है या लंग्स फाइब्रोसिस यानी लंग्स में कड़कपन का आना आदि है.

इन दोनों ही तरह के मरीज हौस्पिटल पहुंचते हैं. ऐसा देखा गया है कि भले ही कोई अपने लंग्स का कितना भी खयाल रखे, शहर में बिगड़ता पौल्यूशन, बिगड़ती लाइफस्टाइल जिस में स्ट्रैस काफी होता है, की वजह से भी इन्फैक्शन, उन्हें हो जाया करता है. छोटीमोटी सर्दी, खांसी साल में 2 बार हर किसी को होती है, लेकिन निमोनिया या टीबी की वजह से हौस्पिटल में एडमिट होना पड़ता है.

उन लोगों को यह बीमारी अधिक होती है जिन्होंने खाना ठीक से नहीं खाया है, खाने में पौष्टिक आहार नहीं लिया है या हाई प्रोटीन डाइट नहीं ली है. जिन की डायबिटीज कंट्रोल में नहीं रहती है उन्हें भी कई बार लंग्स की बीमारी होती है. इस के अलावा बड़ी बीमारियां, जैसे कैंसर या लंग्स ट्रांसप्लांट करवाने वाले मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है. इस से उन में लंग्स के इन्फैक्शन, जल्दी हो जाते हैं.

बचें प्रदूषण से

डाक्टर आगे कहते हैं कि प्रदूषण, एलर्जी, खेती करने वाले किसान और स्मोकिंग से लंग्स खराब होने वाले अलग मरीज होते है जिन की रोग प्रतिरोधक क्षमता ठीक होने के बावजूद लंग्स इन्फैक्शन हो जाता है. इन में अधिकतर किसानों को लंग्स फाइब्रोसिस की बीमारी होती है, जो धान की कन्नी या भूसे से अधिक होती है. इस के अलावा कबूतर के पंख और मल की वजह से भी लंग्स फाइब्रोसिस होता है, जिसे हाइपर सैंसिटिविटी निमोनाइटिस कहते हैं. इस में लंग्स में सूजन आ जाती है, जिस से लंग्स कड़क हो जाते हैं और कई बार लंग्स ट्रांसप्लांट की भी जरूरत पड़ती है.

लक्षण

  • 2 हफ्ते से अधिक समय तक खांसी आना.
  • खांसी में खून का गिरना.
  • बुखार आना.
  • सांस लेने में दम लगना.
  • थोड़े काम करने पर थकान महसूस करना.
  • हृदयगति का बढ़ना आदि हैं.

ऐसा होने पर तुरंत लंग्स स्पैशलिटी वाले डाक्टर के पास जाएं, क्योंकि खांसी में अस्थमा, लंग्स फाइब्रोसिस की शुरुआत, लंग्स कैंसर के लक्षण आदि कुछ भी हो सकते हैं.

मल्टीस्पैशलिटी हौस्पिटल की खासीयत

डा. समीर कहते हैं कि मल्टीस्पैशलिटी हौस्पिटल में डाक्टर दिनरात ध्यान रखते हैं. इस के अलावा जांच जल्दी होने पर बीमारी का पता जल्दी चल जाता है. यहां अस्थमा और पल्मोनरी के रोगी के लंग्स की जांच भी की जाती है, जिस में ब्रीदिंग टैस्ट, सीटी स्कैन किए जाते हैं. जांच के बाद इलाज की सभी सुविधाएं मिल जाती हैं.

एक्सपर्ट चैस्ट फिजीशियन इन अस्पतालों में अधिक होते हैं. इलाज भी अच्छी तरह से हो जाता है. ऐसा देखा गया है कि मल्टीस्पैशलिटी वाले हौस्पिटल में अधिकतर मरीज गंभीर बीमारी वाले आते हैं, जिन का इलाज बाहर सही से न हो पाया हो.

ट्रूडो ने कहा कि अमेरिका के कड़े रुख के बाद नरम पड़े मोदी

”जब से अमेरिका ने भारत के एक कर्मचारी पर गुरपतवंत सिंह पन्नू को मारने के लिए एक व्यक्ति को हायर करने का आरोप लगाया है तब से भारत-कनाडा संबंधों में अचानक बदलाव आया है. भारत को शायद एहसास हो गया है कि वह हमेशा आक्रामक रुख इख्तियार नहीं कर सकता और यही वजह है कि अब भारत में सहयोग करने को ले कर खुलेपन की भावना आ गई है जो पहले कम थी.” कैनेडियन ब्रौड़कास्टिंग कौर्पोरेशन (सीबीसी) के साथ इंटरव्यू के दौरान कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत से संबंधों को ले कर मन की बात कही. भारत-कनाडा संबंध कुछ वक़्त पहले तब काफी तल्ख़ हो गए थे जब जून में कनाडाई नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में अज्ञात भारतीय एजेंटों का हाथ होने का आरोप कनाडा सरकार ने भारत पर लगाया था. भारत ने इसे सिरे से खारिज कर दिया था. मगर इस के बाद चेक रिपब्लिक में निखिल गुप्ता नाम के व्यक्ति की गिरफ़्तारी के बाद अमेरिका ने कहा कि भारतीय खुफिया एजेंसी की प्लानिंग के तहत न्यूयौर्क निवासी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या करवाने के लिए शूटर्स अरेंज करने का काम निखिल गुप्ता को सौंपा गया और इस के लिए एक बहुत बड़ी रकम का आदानप्रदान हुआ, जिस के सुबूत मौजूद हैं.

निखिल की गिरफ़्तारी के बाद अमेरिका के कड़े रुख को देखते हुए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मामले की जांच कराने की बात कहनी पड़ी है. खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की अमेरिका में कथित हत्या की कोशिश का आरोप भारत पर लगने के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अगर कोई इस बारे में हमें सूचना देता है तो भारत इस पर गौर करेगा. हमारी प्रतिबद्धता कानून के शासन के प्रति है. भारत ‘विदेशों में स्थित कुछ चरमपंथी समूहों की गतिविधियों को ले कर बहुत चिंतित’ है. आरोपों की जांच के लिए हम ने पहले ही एक जांच समिति का गठन कर दिया है.

दरअसल, आतंकवाद और अलगाववाद के बीज चाहे कहीं भी और किसी भी देश में पनप रहे हों, उन्हें तुरंत समाप्त करना ज़रूरी है, लेकिन इस के लिए अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और नियमों के तहत कदम उठाने की जरूरत है. विदेशी धरती पर सिख नेताओं की हत्या से भारत में रह रहे सिखों में भी गलत संदेश जाने का अंदेशा है, जो भारत की आतंरिक सुरक्षा और सद्भाव के लिए कतई ठीक नहीं होगा.

अमेरिका के न्याय विभाग ने 52 साल के एक भारतीय नागरिक निखिल गुप्ता पर खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश रचने और भारतीय खुफिया एजेंसी के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया है. निखिल को 30 जून को चेक रिपब्लिक से गिरफ्तार किया गया था. उस को जल्दी ही अमेरिका प्रत्यर्पित किया जाएगा. जो आरोप उस पर लगे हैं, उन के तहत गुप्ता को 20 साल तक की सज़ा हो सकती है. अमेरिका का कहना है कि यही व्यक्ति कनाडा में हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के प्लान में भी शामिल था. दावा किया गया है कि निखिल गुप्ता पर गुजरात में एक आपराधिक मामला चल रहा है जिस में मदद के बदले वह एक भारतीय ख़ुफ़िया अधिकारी के कहने पर कनाडा में निज्जर और न्यूयौर्क में अलगाववादी नेता पन्नू की हत्या करवाने के लिए तैयार हुआ था.

भारत पर यह आरोप ऐसे वक्त में लगा है जब दोनों देशों की दोस्ती नए मुकाम पर है. मई में, पीएम मोदी ने राष्ट्रपति जो बाइडेन और प्रथम महिला जिल बाइडन के निमंत्रण पर राजकीय यात्रा के लिए अमेरिका का दौरा किया. जिस के बाद, बाइडन सितंबर में भारत की अध्यक्षता में नई दिल्ली में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत आए. उधर ट्रूडो का भी कहना है कि हम भारत के साथ टकराव नहीं चाहते और रिश्ते बेहतर बनाना चाहते हैं. हम इंडो-पैसिफिक रणनीति को आगे बढ़ाना चाहते हैं, लेकिन कनाडा के लिए लोगों के अधिकारों, लोगों की सुरक्षा के लिए खड़ा होना हमारा कर्तव्य है. पन्नू मामले में अमेरिका के कड़े रुख से भारतीय एजेंसियां जांच में सहयोग देने को तैयार हुई हैं. उम्मीद है कि अब निज्जर हत्याकांड की जांच में कनाडा को भी वैसा ही सहयोग मिलेगा. इस से मामले के असली अपराधियों को सजा मिल सकेगी.

क्या था मामला ?

गौरतलब है कि गुरपतवंत सिंह पन्नू सिख अलगाववादी खालिस्तान आंदोलन का एक प्रमुख सदस्य है और पंजाब को भारत से अलग करने की वकालत करता है. भारत में वह एक नामित आतंकवादी है. अमेरिका का आरोप है कि भारतीय ख़ुफ़िया अधिकारी सीसी -1 ने निखिल गुप्ता को लक्ष्य के बारे में जून 2023 में विस्तृत व्यक्तिगत जानकारी दी थी. पन्नू का न्यूयौर्क शहर में घर का पता, फोन नंबर और उस के दैनिक आचरण की विस्तृत जानकारी गुप्ता को भेजी गई थी. यह जानकारी निखिल गुप्ता ने एक सुपारी किलर को भेजी, जिसे उस ने इस काम के लिए हायर किया था. लेकिन जिसे वह सुपारी किलर समझ रहा था वह, दरअसल, अमेरिकी खुफिया एजेंसी का अंडरकवर एजेंट था, जो इस साजिश के बारे में अमेरिकी पुलिस को लगातार अपडेट कर रहा था. निखिल गुप्ता और भारतीय अधिकारी सीसी -1 के बीच इलैक्ट्रौनिक कम्युनिकेशन के ज़रिए वार्त्ता हो रही थी. इस के अलावा दिल्ली में दोनों ने मुलाक़ात भी की थी. तमाम गतिविधियों की जानकारी होने के चलते ही अमेरिका ने न्यूयौर्क में पन्नू की हत्या की साजिश को विफल किया.

अमेरिका ने आरोप लगाया है कि कनाडा में हुई हरदीप निज्जर की हत्या में भी भारतीय ख़ुफ़िया का हाथ है. अमेरिकी दस्तावेज में कहा गया है कि 18 जून, 2023 को नकाबपोश बंदूकधारियों ने कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में एक सिख मंदिर के बाहर हरदीप सिंह निज्जर की हत्या की. निज्जर सिख अलगाववादी आंदोलन का नेता और पन्नू का करीबी सहयोगी था. वह भारत सरकार का मुखर आलोचक था. उस की हत्या के कुछ ही घंटों बाद सीसी -1 ने निखिल गुप्ता से एक वीडियो क्लिप शेयर किया जिस में निज्जर का खून से लथपथ शरीर उस के वाहन में गिरा हुआ दिखाया गया था. इस वीडियो को देखने के बाद निखिल गुप्ता ने अपने हायर किए गए किलर को फ़ोन कर के कहा कि हरी झंडी मिल गई है.

कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का कहना है कि भारत को हमारे आरोपों को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है. ट्रूडो ने कहा, “अब अमेरिका का भी आरोप है कि भारत सरकार के एक अधिकारी ने अमेरिकी धरती पर एक खालिस्तानी नेता की हत्या की साजिश रची. उस ने निखिल को हायर किया और निखिल ने जिसे सुपारी किलर समझ कर ह्त्या का जिम्मा सौंपा और उस के लिए बड़ा पेमैंट किया वह अमेरिकी खुफिया का अंडरकवर एजेंट है.”

निखिल गुप्ता ने पन्नू की हत्या के लिए किलर को एक लाख डौलर देने की बात कही थी. अमेरिका का दवा है कि उस में से 15 हजार डौलर का एडवांस पेमैंट उस ने 9 जून, 2023 को कर दिया था. अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंट, जिसे निखिल सुपारी किलर समझता था, ने निखिल गुप्ता की सभी गतिविधियों और बातचीत को रिकौर्ड किया, जिस के आधार पर ही उस के खिलाफ मुकदमा दायर किया गया और उस की गिरफ़्तारी हुई.

गौरतलब है कि कनाडा की सुरक्षा एजेंसियां भारत सरकार और कनाडा के नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बीच की कड़ी की सक्रियता से जांच कर रही हैं. ट्रूडो का कहना है कि कनाडा की धरती पर कनाडा के नागरिक की हत्या में किसी विदेशी सरकार की संलिप्तता बरदाश्त नहीं की जाएगी. यह हमारी संप्रभुता का उल्लंघन है और पूरी तरह से अस्वीकार्य है.

हत्या की साज़िश के अभियोग की ख़बर के बाद भारत और अमेरिका के बीच प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू हो चुका है. पश्चिमी देशों में सिख अलगाववाद की बढ़ती सोच भारत के लिए अहम मुद्दा है. हाल के महीनों में भारत ने कई मंचों पर सिख अलगाववाद के मुद्दे को उठाया है. नई दिल्ली में अमेरिका और भारत के मंत्री स्तर की हालिया बैठक में भारत ने अमेरिका के समक्ष सिख अलगाववाद का मुद्दा रखा तो नवंबर में ही आस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री की भारत यात्रा के दौरान भी बढ़ते सिख चरमपंथ का मुद्दा उठाया गया. लेकिन पश्चिमी देश, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत करते हैं, के लिए सिख अलगाववाद अहम मुद्दा नहीं है क्योंकि यह सीधेतौर पर उन्हें प्रभावित नहीं करता है.

विदेशी धरती पर किसी साजिश के तहत सिख अलगाववादी नेताओं को, जिन्होंने उस देश के नागरिकता ले रखी हो, चुनचुन कर ख़त्म कराना जहां गलत है, वहीं भारत की अखण्डता और संप्रभुता को बनाए रखने के लिए ऐसे सभी आतंकवादियों व अलगाववादियों को भारत को सौंपने की भी जरूरत है ताकि उन पर भारतीय क़ानूनों के तहत मुक़दमा चलाया जा सके.

डोनाल्ड ट्रंप अब राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ पाएंगे या नहीं ?

कोलोराडो सुप्रीम कोर्ट की हैसियत अमेरिका में वही है जो भारत में किसी भी हाईकोर्ट की होती है. इस नाते डोनाल्ड ट्रंप के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का मौका अभी है और तय है वे जाएंगे भी क्योंकि एक बार फिर दुनिया के सब से ताकतवर देश का राष्ट्रपति बन जाने का सपना वे देख रहे हैं और इस के लिए जीतोड़ मेहनत भी कर रहे हैं. कोलोराडो सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अगले साल होने जा रहे राष्ट्रपति चुनाव के लिए अयोग्य घोषित कर दिया है.

मामला कैपिटल हिल हिंसा का है, जिस में अदालत ने ट्रंप समर्थकों की भूमिका को ले कर यह फैसला सुनाया है. गौरतलब है कि पिछले चुनाव में हार के बाद ट्रंप समर्थकों ने अमेरिकी संसद कैपिटल हिल को घेर लिया था और संसद में न केवल गोलीबारी की थी बल्कि तोड़फोड़ करते कई दफ्तरों पर कब्जा भी कर लिया था. इस हिंसा में 4 लोगों की मौत हुई थी.

अमेरिकी इतिहास में पहली बार किसी राष्ट्रपति को व्हाइट हाउस की दौड़ में शामिल होने से पहले ही अयोग्य घोषित किया गया है लेकिन ट्रंप जल्दी हार मान लेने वालों में से नहीं हैं. पिछले चुनाव के बाद बड़ी मुश्किल से उन्होंने सत्ता जो बाइडेन को सौंपी थी. तब एक बार तो दुनिया सकते में आ गई थी कि कहीं ऐसा न हो कि पूरे देश में ही इमरजैंसी लगानी पड़े और ट्रंप व उन के समर्थकों को काबू करने को मिलिट्री की सेवाएं लेनी पड़ें. अगर ऐसा होता तो इस का फर्क दुनियाभर पर पड़ता.

एक कट्टर चेहरा

आखिर क्यों डोनाल्ड ट्रंप कुरसी नहीं छोड़ना चाहते थे और क्यों अब फिर से उसे हासिल करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं? आमतौर पर अमेरिका में राष्ट्रपति दोबारा सत्ता हासिल करने को ज्यादा उत्सुक नहीं रहते हैं. लेकिन ट्रंप की बेताबी से लगता है कि अमेरिकी लोकतंत्र पर जो दागधब्बे उन के राष्ट्रपति रहते लगे थे उन्हें वे और स्याह कर देना चाहते हैं. 4 साल अमेरिका में कट्टरवाद जम कर फलाफूला. अश्वेतों और प्रवासियों का चैन से रहना दूभर हो गया था. इस से दक्षिणपंथी तो खुश थे पर चुनावी नतीजों ने ट्रंप को ख़ारिज कर दिया था.

खुद को फख्र से राष्ट्रवादी कहने बाले ट्रंप, दरअसल, एक कट्टर रिपब्लिकन नेता हैं जिस की नीतियांरीतियां लोकतंत्र को धता बताती हुई थीं. व्यक्तिगत रूप से भी वे एक खब्त, ऐयाश और सनकी व्यक्ति हैं. उन पर महाभियोग भी चला. यौनशोषण के अलावा भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे. भड़काऊ भाषण देने में तो वे माहिर हैं ही. न केवल अमेरिका बल्कि पूरी दुनिया में यह वह दौर है जब राष्ट्रप्रमुख खुद की कट्टर इमेज छिपाने के बजाय उसे और उजागर कर रहे हैं जिस से धार्मिक, जातिगत, नस्लीय और दूसरे किस्म के छोटेबड़े भेदभाव बढ़ा कर राज किया जा सके. इसीलिए पूरी दुनिया से ये आवाजें आती रहती हैं कि लोकतंत्र खतरे में है.

ट्रंप पर अदालती फैसले के बाद जो बाइडेन ने भी उन्हें लोकतंत्र के लिए खतरा बता डाला. अमेरिकी लोकतंत्र को दुनिया का सब से पुराना और मजबूत लोकतंत्र कहा व माना जाता रहा है लेकिन हकीकत में ऐसा है नहीं. किसी भी दूसरे देश की तरह वहां के लोगों में भी आपसी मतभेद हैं. लेकिन ट्रंप ने इन्हें हवा दे कर जो किया वह उन की कमजोरी को ही उजागर करता है. आमतौर पर कट्टर शासक बहुत कमजोर होते हैं और देश की मुख्यधारा के लोगों का मसीहा खुद को दिखा कर धर्मगुरुओं की तरह या उन के इशारे पर देश हांकते हैं.

डैमोक्रेटिक बाइडेन भी हालांकि व्यक्तिगतरूप से कम विलासी या शौक़ीन नहीं हैं लेकिन उन की उदारवादी इमेज पर कोई शक नहीं करता जबकि ट्रंप के मामले में ऐसा नहीं है. कोलोराडो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 2 दिनों पहले ही उन्होंने प्रवासियों पर निशाना साधते हुए कहा था कि वे न केवल दक्षिणी अमेरिका, बल्कि पूरी दुनिया में जहर फैला रहे हैं. वे अफ्रीका, एशिया और पूरी दुनिया से हमारे देश में आते हैं. वामपंथियों को भी ट्रंप ने कीड़ा बताया था.

बाइडेन ने मौका लपकते पलटवार में कहा था कि ट्रंप अगर राष्ट्रपति बने तो इस बार उन के लिए पहले से भी ज्यादा कड़े कानून ला सकते हैं. पिछली बार राष्ट्रपति बनने पर उन्होंने अवैध प्रवासियों को उन के बच्चों से अलग रखा था. इस बार मुमकिन है उन्हें पकड़ कर उन के देश ही भेज दिया जाए. मुमकिन यह भी है कि प्रवासियों की वैचारिक स्क्रीनिंग की जाने लगे.

प्रवासी होंगे बड़ा मुद्दा

अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या आएगा, यह वक्त बताएगा लेकिन प्रवासी अगले चुनाव में बड़ा मुद्दा होंगे, यह अभी से साफ़ होने लगा है. इस में कोई शक नहीं कि अमेरिका प्रवासियों की पहली पसंद है. दिक्कत अवैध प्रवास को ले कर है जिस से स्थानीय और अमेरिकी मूल के लोग चिढ़ने व डरने लगे हैं. प्रवासियों को ले कर अमेरिकी कानून उदार हैं. डैमोक्रेट्स इन का आमतौर पर स्वागत ही करते हैं. बाइडेन सरकार ने 3 साल में लगभग 5 लाख वेनेजुएलावासियों को हिफाजत दी है. हालांकि, इस पर कुछ मेयर्स ने बजट गड़बड़ाने की शिकायत की थी.

लाखों की तादाद में प्रवासी अमेरिका जायज और नाजायज तरीकों से जाते हैं. कोविड के बाद इन की तादाद और बढ़ रही है. एक तरफ ट्रंप जहां इन की आमद को खतरा बताते हुए स्थानीय लोगों को भड़काते हैं तो दूसरी तरफ बाइडेन इसे बहुत बड़ी मुसीबत की शक्ल में नहीं देखते. अमेरिका में दिक्कत यह हो चली है कि स्थानीय और बाहरी लोगों के वोट लगभग बराबर हो चले हैं जिस का फायदा अलगअलग तरीकों से रिपब्लिकन और डैमोक्रेटिक पार्टियों को मिलता रहा है.

अगले चुनाव में क्या होगा, इस पर दुनियाभर के सियासी पंडितों को संशय है. हालफ़िलहाल तो यही दिख रहा है कि पिछले चुनाव की तरह बाइडेन और ट्रंप फिर एक बार आमनेसामने होंगे हालांकि दोनों की उम्मीदवारी को अपनी ही पार्टियों के अंदर से चुनौती मिल रही है. दक्षिणपंथी ट्रंप अभी भी अधिकतर स्थानीय लोगों की पसंद हैं पर उन्हें तगड़ी चुनौती भारतीय मूल के विवेक रामास्वामी से मिल रही है. निक्की हैली भी रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से दौड़ में हैं.

ट्रंप को अयोग्य ठहराए जाने पर विवेक रामास्वामी ने भी इसे लोकतंत्र की हत्या बताया है और फैसला उन के हक में न आने पर चुनाव से दूर रहने की बात कही है. सो, संभव है कि फैसला ट्रंप के पक्ष में न आने पर विवेक को रिपब्लिकन्स की सहानुभूति और समर्थन दोनों मिलेंगे जिन का रुख अभी प्रवासियों को ले कर स्पष्ट नहीं है जबकि वे खुद एक तरह से बाहरी हैं. जिस तरह ऋषि सुनक को ब्रिटेन ने स्वीकार लिया है उस तरह अमेरिका विवेक रामास्वामी या निक्की हैली को स्वीकारेगा, इस में ट्रंप जैसों की मानसिकता को ले कर शक ही है.

मिमिक्री कांड : अपमान के बहाने खेला ओबीसी कार्ड

लोकसभा और राज्यसभा में 142 सांसदों के निलंबन का विरोध कर रहे सांसदों ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की मिमिक्री की. टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने संसद के बाहर धनखड़ की मिमिक्री कर दी. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस का वीडियो बनाया. भाजपा ने इस को मुददा बना दिया. इसे देश के संवैधानिक पद के अपमान से जोड़ दिया गया है. इस मसले को ले कर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सदन में जिस तरह से अपनी बात रखी उस से लगा कि वे बेहद आहत हैं.

भजभज मंडली ने धनखड़ की मिमिक्री को जाट अपमान से जोड़ दिया. जिस जाट बिरादरी को वह मानने के लिए तैयार नहीं थी उसे बिरादरी के तौर पर अब स्वीकार कर लिया है. इस की प्रमुख वजह पूर्व राज्यपाल सतपाल मलिक को भी माना जा रहा है. जिस तरह से वे मोदीशाह के निर्णयों को ले कर सवाल उठाते रहे हैं, ‘मिमिक्री कांड’ के बहाने सतपाल मलिक के महत्त्व को भी खत्म करने की योजना है.

प्रधानमंत्री ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से फोन पर बात करते हुए उन को सांत्वना देते कहा, ‘पिछले 20 सालों में मैं खुद लगातार अपमान सहन कर रहा हूं.’ प्रधानमंत्री के बयान के बाद अब पूरी पार्टी, संगठन और सोशल मीडिया टीम ‘मिमिक्री कांड’ को विक्टिम कार्ड के रूप में खेल रही है. राज्यसभा में केंद्रीय संसदीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने साफसाफ इसे उपराष्ट्रपति की प्रतिष्ठा से जोड़ते हुए कहा, ‘हम ने देखा, कैसे एकदूसरे सदन के सदस्य आप के संवैधानिक पद को अपमानित किया है. हम इस की निंदा करते हैं, किसी वर्ग और समाज को अपमानित करना सही नहीं है.’

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा ने राहुल गांधी का बिना नाम लिए कहा, ‘जनता ने इन को चुन कर संसद में विचारविमार्श करने के लिए भेजा था. लेकिन उन्होंने जोकर का काम संभाल लिया है. वे गोरखपुर से भाजपा सांसद रवि किशन के फिल्म स्टूडियो में कैमरामैन के लिए आवेदन कर सकते हैं.’

कांग्रेस ने क्या कहा ?

कांग्रेस नेता सुरेंद्र सिंह राजपूत ने लखनऊ में इस प्रकरण पर बात करते कहा, ‘भाजपा नेता मामले को भटकाने, विषय को बदलने में माहिर हैं. 142 से अधिक विपक्षी सांसदों के निलंबन जैसे लोकतंत्र की हत्या करने वाले काम से ध्यान भटकाने के लिए ‘मिमिक्री’ को मुद्दा बना रहे हैं. ‘मिमिक्री’ करना कानूनन अपराध नहीं है. इस से पहले खुद प्रधानमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह की नकल उतार चुके हैं. हास्य कवियों ने जब मोदी के बारे में कहना शुरू किया तो उन की आईटी सैल ने विरोध के स्वर को दबाने का काम किया. उपराष्ट्रपति महोदय को अगर अपना अपमान लगता है तो उन को इस के खिलाफ थाने में जा कर एफआईआर दर्ज कराना चाहिए. भाजपा में बड़े पदों पर बैठे छोटे लोग तानाशाही को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं.’

भाजपा की रणनीति

भाजपा ने उपराष्ट्रपति की मिमिक्री को जाति से जोड़ कर बड़ा दांव चल दिया है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी देश में ओबीसी जनगणना की मांग कर रहे हैं. इसी मुद्दे पर कांग्रेस ने राजस्थान, एमपी और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव भी लड़ा था. कांग्रेस इस मुद्दे को उठा कर बीजेपी के ओबीसी वोटबैंक में सेंध लगाने की कोशिश में थी. अब भाजपा ने उपराष्ट्रपति के अपमान को ओबीसी से जोड़ कर अपने वोटर को बड़ा संदेश देने की कोशिश की है.

भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पिछडा नेता कहती है. केंद्रीय संसदीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने राज्यसभा में कहा कि ऐसा पहली बार नहीं है. ये लोग बारबार संवैधानिक पद पर बैठे लोगों को अपमानित करते हैं. पीएम नरेंद्र मोदी को 20 साल तक अपमानित किया. चूंकि वे गरीब तबके से आते थे, ओबीसी थे, इसलिए वे ऐसा करते थे. पीएम बनने के बाद भी उन को अपमानित किया गया. राष्ट्रपति को अपमानित किया क्योंकि वे अनुसूचित जनजाति के हैं. अब किसानपुत्र और जाट समाज का भी अपमान किया गया है. विपक्ष उपराष्ट्रपति का अपमान कर रहा है. उपराष्ट्रपति का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान. संविधान का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान.

पौराणिक कहानियों से सीखती भाजपा

पौराणिक कथाओं, प्रवचनों पर चलने वाली भाजपा उन्हीं कहानियों के बताए अनुसार चल रही है. महाभारत में जुआं खेलने की सहमति युधिष्ठिर ने दी. हारने पर वस्तु की तरह पत्नी को दांव पर लगाने का काम युधिष्ठिर ने किया. सारा दोष दुशासन को दिया गया. युधिष्ठिर को धर्मराज की उपाधि दे दी गई. रामायण में शूर्पणखा की नाक लक्ष्मण ने काटी लेकिन सारा दोष रावण के सिर मढ़ दिया गया. इसी तरह से अहल्या के साथ हुआ. उन के साथ छल इंद्र ने किया और पत्थर अहल्या को बनना पडा. पौराणिक कथाओं में ऐसे उदाहरणों की भरमार है.
इसी तरह से भाजपा भी ‘मिमिक्री कांड’ को ले कर कर सकती है. ओबीसी की गोलबंदी करने के लिए भाजपा ‘मिमिक्री कांड’ को एक हथियार की तरह से प्रयोग कर रही है. भाजपा के इस दांव से विपक्ष बैकफुट पर आ गया है. टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि उन का मकसद किसी को आहत करना नहीं था. वे मिमिक्री को आर्ट से जोड़ रहे हैं. इस के बाद भी भाजपा ने छोटेबड़े हर स्तर पर ‘मिमिक्री कांड’ को ओबीसी के सम्मान से जोड़ दिया है.

मैं अपने दोस्त की बहन को पसंद करता हूं, क्या ये बात मैं अपने दोस्त को बता दूं ?

सवाल

मैं 22 साल का हूं. एक लड़की मुझे पसंद करती है. लेकिन उस के भाई से मेरी बहुत अच्छी दोस्ती है. अगर उसे पता चला तो हमारी दोस्ती में दरार भी आ सकती है. मुझे उचित राय दें?

जवाब

अगर आप दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं तो कोई समस्या नहीं है. दोस्त की बहन से प्यार हो जाना कोई गुनाह नहीं?है. बेहतर होगा कि आप उस के घर के बड़ों को भरोसे में ले कर बात करें और दोस्त को भी सच बता दें. अगर वह समझदार होगा तो दोस्ती में दरार नहीं आएगी, बल्कि इस के रिश्तेदारी में तबदील होने की उम्मीद बढ़ जाएगी. और भी बेहतर होगा कि आप बात उजागर करने से पहले कुछ बन कर दिखाएं.

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