story in hindi
story in hindi
सोने की खरीदारी महंगी होती है. इस में मिलावट कितनी हुई है, इस का अंदाजा लगाना आम आदमी के लिए बेहद कठिन काम होता है. पहले के समय में सोना बेचने वाला, जिस को सामान्य बोली में सुनार कहते थे, ‘कसौटी’ नाम के एक पत्थर पर सोने को रगड़ कर दिखाता था कि सोना कितना खरा यानी शुद्ध है.
इस को ले कर एक कहावत भी कही जाती है कि ‘आदमी परखे बसे और सोना परखे कसे’ इस का मतलब है कि आदमी के अच्छेबुरे की पहचान तब होती है जब उस के साथ रहा जाए और सोने की परख तब होती है जब उस को कसा जाए यानी कसौटी पर घिसा जाए.
सोने से अधिक गड़बड़ी सोने से बनी ज्वैलरी के साथ की जा सकती है. इस को सामान्य ग्राहक कभी सम?ा नहीं सकता. आमतौर पर सोने की सब से ज्यादा खरीदारी ज्वैलरी के रूप में ही होती है. सोने के सिक्के या बिसकुट को वे लोग ही खरीदते हैं जिन को बचत के लिए खरीदना होता है. ज्वैलरी खरीदने वाले के सामने दिक्कत यह होती है कि अगर सोने में मिलावट हुई तो जब वह बेचने जाएगा तो उस की सही कीमत नहीं मिलेगी. ऐसे में सोने की शुद्धता को कैसे परखा जाए?
सरकार ने सोने की शुद्धता के लिए सोने से बनी ज्वैलरी पर हालमार्किंग को अनिवार्य कर दिया है. इस के बाद भी गड़बड़ी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. ज्यादातर सोना बेचने वाले पक्की रसीद नहीं लेने के लिए कहते हैं. उन का तर्क होता है कि पक्की रसीद लेने पर टैक्स जोड़ने के कारण ज्वैलरी की कीमत बढ़ जाएगी. ऐसे में ग्राहक भी उन के तर्क से सहमत हो जाता है, वह दुकानदार के भरोसे पर बिना पक्की रसीद के ज्वैलरी खरीद लेता है. ऐसे में नकली हालमार्क वाली ज्वैलरी भी बेच ली जाती है.
हालमार्क देख कर सोना खरीदें
सोना खरीदते वक्त उस की क्वालिटी जरूर जांच लें. सब से अच्छा है कि हालमार्क देख कर सोना खरीदें. हालमार्क सरकारी गारंटी है. हालमार्क का निर्धारण भारत की एकमात्र एजेंसी ब्यूरो औफ इंडियन स्टैंडर्ड करती है.
हालमार्किंग योजना भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम के तहत संचालन, नियम और विनियम का काम करती है. सब से पहली बात यह कि असली सोना
24 कैरेट का ही होता है, लेकिन इस के आभूषण नहीं बनते क्योंकि वह बेहद मुलायम होता है. आमतौर पर आभूषणों के लिए 22 कैरेट सोने का इस्तेमाल किया जाता है जिस में 91.66 फीसदी सोना होता है. हालमार्क पर 5 अंक होते हैं. सभी कैरेट का हालमार्क अलग होता है. मसलन, 22 कैरेट पर 916, 21 कैरेट पर 875 और 18 पर 750 लिखा होता है. इस से शुद्धता में शक नहीं रहता.
अब सवाल उठता है कि हालमार्क असली है या नहीं? उस की पहचान कैसे करें? हालमार्किंग में किसी उत्पाद को तय मापदंडों पर प्रमाणित किया जाता है. भारत में बीआईएस वह संस्था है जो उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराए जा रहे गुणवत्ता स्तर की जांच करती है. अगर सोनाचांदी हालमार्क वाला है तो इस का मतलब है कि उस की शुद्धता प्रमाणित है. लेकिन कई ज्वैलर्स बिना जांच प्रक्रिया पूरी किए ही हालमार्क लगा रहे हैं.
ऐसे में यह देखना जरूरी है कि हालमार्क ओरिजनल है या नहीं. असली हालमार्क पर भारतीय मानक ब्यूरो का तिकोना निशान होता है. उस पर हौलमार्किंग सैंटर के लोगो के साथ सोने की शुद्धता भी लिखी होती है. उसी में ज्वैलरी निर्माण का वर्ष और उत्पादक का लोगो भी होता है.
शुद्धता को पहचानें
गोल्ड ज्वैलरी खरीदते वक्त सब से पहले उस की शुद्धता का पता लगाएं. 24 कैरेट गोल्ड सब से शुद्ध होता है. गोल्ड ज्वैलरी 22 या 18 कैरेट के सोने से बनती है. मतलब 22 कैरेट गोल्ड के साथ 2 कैरेट कोई और मैटल मिक्स किया जाता है. ज्वैलरी खरीदने से पहले हमेशा ज्वैलर से सोने की शुद्धता जान लें. वाइट गोल्ड ज्वैलरी अगर ले रहे हैं तो निकेल या प्लैटिनम मिक्स के बजाय पैलेडियम मिक्स ज्वैलरी लेना बेहतर होगा. निकेल या प्लैटिनम मिक्स वाइट गोल्ड से स्किन एलर्जी होने का खतरा रहता है.
कई सुनार केडीएम को भी शुद्ध बता कर बेचते हैं, लेकिन इस में कैडमियम नामक तत्त्व होता है, जोकि फेफड़ों के लिए हानिकारक होता है. साथ ही, इस में तांबे की मिलावट भी होती है. इस तरह के फ्रौड से बचने के लिए आभूषण या सोने की किसी भी वस्तु पर अंक जरूर देखें. यहां पर सब से अहम बात यह है कि अखबारों में प्रतिदिन छपने वाले या टीवी पर दिखाए जाने वाले सोने के दाम 24 कैरेट गोल्ड के होते हैं. इसलिए अगर आप 23, 22 या कम कैरेट का सोना खरीद रहे हैं तो दाम कम होंगे.
शुद्धता सर्टिफिकेट जरूरी
गोल्ड खरीदते वक्त प्योरिटी सर्टिफिकेट यानी शुद्धता प्रमाणपत्र लेना न भूलें. इस सर्टिफिकेट में गोल्ड की कैरेट क्वालिटी भी जरूर चैक कर लें. साथ ही, गोल्ड ज्वैलरी में लगे जेम स्टोन के लिए भी एक अलग सर्टिफिकेट जरूर लें.
इस के बाद भी चाहे सिक्के खरीदें या ज्वैलरी, हमेशा विश्वसनीय दुकान से ही लें. ज्वैलरी हमेशा हालमार्क निशान वाली ही खरीदें. छोटे ज्वैलर्स के पास हालमार्क ज्वैलरी नहीं होती. ऐसे में वहां धोखा होने का डर ज्यादा होगा. सावधानी के लिए गोल्ड की कीमत की जानकारी रखें. बाजार में सोनेचांदी के भाव रोज बढ़तेघटते हैं. ऐसे में सही समय और मूल्य पर सोने की खरीदारी कर सकेंगे.
सिक्का या ज्वैलरी खरीदते वक्त कच्ची पर्चियां लेने का ट्रैंड है. लेकिन यह गलत है. कई बार वापसी के वक्त ज्वैलर्स खुद ही अपनी कच्ची पर्ची नहीं पहचानते, इसलिए पक्का बिल जरूर लें. बिल में सोने का कैरेट, शुद्धता, मेकिंग चार्ज, हालमार्क का जिक्र जरूर हो. इस तरह से सावधानी रखेंगे तो गोल्ड की खरीदारी सही तरह से कर सकेंगे. दुकानदार आप को गलत सोना नहीं दे पाएगा. सोने की खरीदारी पर नुकसान नहीं होगा.
ऐसे पिघलता है सोना
सोने को पिघलाने के लिए काफी ज्यादा हीट की जरूरत होती है, इसलिए इस दौरान हमेशा बहुत सावधानी रखनी पड़ती है.
सोने के पिघलाने के लिए एक क्रूसिबल कंटेनर की जरूरत पड़ती है. क्रूसिबल एक इक्विपमैंट कंटेनर है, यह एक प्रकार का फायरप्रूफ कंटेनर है जो धातु के तरल या पदार्थों की रासायनिक प्रतिक्रिया को पिघलाने व पिघलने के लिए उपयोग किया जाता है. यह बेहद ज्यादा हीट या गरमाहट को भी सहन कर सकता है.
क्रूसिबल को आमतौर पर ग्रेफाइट कार्बन या क्ले से बनाया जाता है. सोने का मेल्ंिटग पौइंट करीब 1943 डिग्री फारेनहाइट (1064 एष्ट) होता है, जिस का मतलब होता है कि आप को इतने टैंपरेचर की जरूरत होगी, जो इसे पिघलाने के हिसाब से हौट हो, इसलिए यह बहुत जरूरी हो जाता है कि इस काम के लिए आप क्रूसिबल कंटेनर को ही चुनें.
क्रूसिबल को मूव करने और उसे पकड़ने के लिए चिमटे की भी जरूरत पड़ती है. यह चिमटा हीट रेजिस्टैंट मैटीरियल से बना हुआ होना चाहिए.
इस के बाद गोल्ड से अशुद्धियों को निकालने के लिए फ्लक्स का यूज किया जाता है. फ्लक्स एक पदार्थ है, जिसे गोल्ड को पिघलाने के पहले गोल्ड में मिलाया जाता है. यह अकसर बोरेक्स और सोडियम कार्बोनेट का एक मिक्स्चर होता है.
अगर सोना अशुद्ध हुआ तो आप को और भी फ्लक्स की जरूरत होगी. फ्लक्स महीन सोने के कण को एकसाथ रखने में मदद करता है और यह गरम होने पर सोने में मौजूद अशुद्ध धातु को भी निकालने में मदद करता है.
गोल्ड को पिघलाना खतरनाक होता है, क्योंकि सोने को पिघलाने के लिए बहुत ज्यादा हीट की जरूरत होती है. सोने को पिघलाने के लिए जगह सेफ होनी चाहिए. चेहरे को बचाने के लिए फेसशील्ड और सेफ्टीगौगल्स पहनना बेहद जरूरी है. हाथों को हीट रेजिस्टैंट बनाने के लिए हैवी ग्लव्स होना भी जरूरी है.
इस के अलावा गोल्ड को पिघलाने के लिए हीटिंग किट का भी इस्तेमाल किया जाता है. इस के लिए इलैक्ट्रिक फर्नेन्स खरीदना पड़ता है. यह एक तरह की इलैक्ट्रिक भट्टी है जिसे सोना पिघलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इस मशीन में गोल्ड पिघलाने के लिए भी क्रूसिबल और फ्लक्स की जरूरत पड़ती है.
एक अन्य विधि में गोल्ड पिघलाने के लिए पोपेन टौर्च का इस्तेमाल होता है. पोपेन टौर्च एक तरह का लाइटर जैसा होता है, जिस में से बहुत तेजी से हीट निकलती है. विधि वही होती है कि सोने को क्रूसिबल में रख कर टौर्च से क्रूसिबल के अंदर ही सोने पर हीट मारी जाए.
हालांकि हीट करते हुए यह ध्यान रखना जरूरी है कि पोपेन की हीट सोने पर ही पड़े, इस से क्रूसिबल मजबूत होता है लेकिन लगातार हीट उसे नुकसान पहुंचा सकती है. सेफ्टी किया जाना बहुत जरूरी है.
सवाल
हम 2 बहनें हैं. मेरी शादी तो 26 साल की उम्र में ही हो गई थी लेकिन मुझ से 5 साल बड़ी बहन ने शादी अभी तक नहीं की है और न ही वे करना चाहती हैं. 38 की होने को आई हैं लेकिन वे अपनी बिंदास लाइफ से खुश हैं. बिजनैस वूमन बन कर सब पर रोब मारना उन्हें अच्छा लगता है. पर मुझे लगता है कि अभी तो वो जवान हैं, उन्हें सब अच्छा लग रहा है लेकिन आगे जब उम्र बढ़ने लगेगी तो उन्हें जीवनसाथी की जरूरत महसूस होगी और फिर तब क्या करेंगी वो. मुझे उन की चिंता होती है. अब आप ही बताइएं कि मैं उन्हें शादी के लिए कैसे मनाऊं ?
जवाब
यह सच है कि हर इंसान का सब से महत्त्वपूर्ण रिश्ता जो होता है वो उसका स्वयं के साथ संबंध होता है. इसीलिए कुछ महिलाएं वास्तव में अपने आप से खुश रहती हैं. आत्मनिर्भर बनना चाहती है. जीवन में कोई जिम्मेदारी नहीं लेना चाहती, जिससे उन्हें तनाव कम होता है और सुकून ज्यादा मिलता है.
आप को लगता है कि आप की बड़ी बहन तब तक पूर्ण नहीं हो सकती जब तक कि उन की जिंदगी में उन के पास अपना जीवनसाथी न हो, लेकिन आप की बहन स्वयं जीवन जीने के बारे में बहुत सकारात्मक है.
बहुत महिलाएं ऐसी होती हैं जो नहीं चाहतीं कि उन का कोई पार्टनर हो. वे अकेले ही रहना पसंद करती हैं. अपने आप को खुश रखने के लिए उन के जीवन में और भी चीजें होती हैं, जो उन्हें एक रिश्ते में रहने से ज्यादा उत्साहित करती हैं.
हर किसी की अलगअलग प्राथमिकताएं होती हैं और पारंपरिक वैवाहिक जीवन कुछ महिलाओं की प्राथमिकता में नहीं होता है. इसलिए आप अपनी बड़ी बहन की चिंता करना छोड़ दें. वे अपनी लाइफ जैसी जीना चाहती हैं, उन्हें जीने दें क्योंकि वो अपने जीवन से खुश हैं.
ब्रेकफास्ट हैल्दी डाइट में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह दौड़ने के लिए ऊर्जा उपलब्ध कराता है. अगर आप मौर्निंग रनर हैं तो आप का पोस्ट रन ब्रेकफास्ट अगले दिन दौड़ने के लिए रिकवर करता है.
ब्रेकफास्ट हैल्दी डाइट में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह दौड़ने के लिए ऊर्जा उपलब्ध कराता है. अगर आप मौर्निंग रनर हैं तो आप का पोस्ट रन ब्रेकफास्ट अगले दिन दौड़ने के लिए रिकवर करता है. अगर आप दोपहर में दौड़ते हैं, तो ब्रेकफास्ट आप को दौड़ने के लिए ऊर्जा से भरा महसूस कराएगा. अगर आप शाम को दौड़ते हैं, तो ब्रेकफास्ट सारा दिन ब्लड शुगर को स्थिर रखने में सहायता करेगा. ब्रेकफास्ट करने का दूसरा फायदा यह होगा कि आप दोपहर में हैवी लंच खाने से बच जाएंगे, जिस से आप को शाम को दौड़ते समय भारीपन महसूस नहीं होगा.
रनर्स ब्रेकफास्ट
ब्रेकफास्ट को दिन का सब से महत्त्वपूर्ण भोजन माना जाता है. 7-8 घंटे की नींद के बाद जब आप उठते हैं तो आप को अपने दिन की शुरुआत करने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है. आप दौड़ने में कितनी कैलोरी बर्न करते हैं यह आप की दौड़ने की गति और आप के भार पर निर्भर करता है. आप जितनी तेज गति से दौड़ेंगे आप की मैटाबोलिक दर उतनी ही अधिक होगी और उतनी ही अधिक कैलोरी बर्न होगी. वैसे
1 मील चलने की तुलना में दौड़ने में लगभग दोगुनी कैलोरी बर्न होती है. 1 मील दौड़ने में एक औसत भार का व्यक्ति 100 कैलोरी बर्न कर लेता है. अगर आप मौर्निंग रनर हैं तो आप को अपने ब्रेकफास्ट को 2 भागों में बांटना होगा- प्रीरनिंग ब्रेकफास्ट और पोस्ट रनिंग ब्रेकफास्ट.
प्री रनिंग ब्रेकफास्ट
दौड़ने के बाद पौष्टिक और संतुलित भोजन खाना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है दौड़ने के पहले शरीर को ऐनर्जाइज करना. आप दौड़ने से पहले जो खाते हैं, उस पर ही आप के दौड़ने की परफौर्मैंस निर्भर करती है. यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि आप कब और कितना दौड़ने की योजना बना रहे हैं.
महत्त्वपूर्ण है टाइमिंग
अगर आप सुबह 6 बजे 3 मील दौड़ना चाहते हैं तो केवल 20 मिनट पहले एक संतरा खाना ठीक रहेगा. जो लोग रविवार को मैराथन दौड़ लगाना चाहते हैं उन्हें शनिवार की रात को भरपेट खाना चाहिए. खिलाडि़यों और ऐथलीटों को अपने प्रदर्शन के 3 दिन पहले से अपने खाने में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए.
पचने में हो आसान
दौड़ने के पहले के खाने में वसा और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम होनी चाहिए ताकि वह आसानी से पच सके.
ऊर्जा से भरपूर
प्री रनिंग ब्रेकफास्ट ऊर्जा से भरपूर होना चाहिए ताकि दौड़ते समय आप के मस्तिष्क और मांसपेशियों को लगातार ऊर्जा मिलती रहे.
कितना खाएं
दौड़ने से पहले कभी भी बहुत ज्यादा न खाएं. अगर आप ज्यादा खाएंगे तो थका हुआ महसूस करेंगे, लेकिन ऐसा भी न करें कि दौड़ने से पहले कुछ भी न खाएं क्योंकि खाली पेट दौड़ने से मांसपेशियां कमजोर होती हैं.
पानी का स्तर बनाए रखें
सब से पहली और जरूरी बात यह है कि शरीर में पानी का स्तर बनाए रखें. हालांकि आप दिनभर पानी पीते रहते हैं, लेकिन दौड़ने से पहले थोड़ा ज्यादा पानी पीएं.
प्रोटीन है जरूरी
दौड़ने से पहले जो भी खाएं, उस में प्रोटीन होना सब से जरूरी है. प्रोटीन मांसपेशियों को टूटने से बचाता है और इस से शरीर को लगातार ऊर्जा मिलती रहती है.
पोस्ट रनिंग ब्रेकफास्ट
दौड़ने के 1 घंटे बाद ही कुछ खाएं. लेकिन पानी अवश्य पी लें, क्योंकि दौड़ने से शरीर में इलैक्ट्रोलाइट की बहुत कमी हो जाती है. स्वयं को पोषण देने के लिए नीबू पानी, नारियल पानी या सादा पानी ले सकते हैं. दौड़ने के बाद जो खाएं उस में अच्छी गुणवत्ता वाला प्रोटीन ले सकते हैं. अंडे, फल, दूध और दुग्ध उत्पाद, ब्रैड, बटर, साबूत और अंकुरित अनाज आदि लिए जा सकते हैं. अपने भोजन में नमक भी शामिल करें, क्योंकि पसीने से शरीर में नमक की कमी हो जाती है जिस से शरीर में सोडियम की कमी हो सकती है. रक्त में शुगर का स्तर कम न हो इसलिए थोड़ी मात्रा में शुगर भी लें.
रनर्स के नाश्ते का कंपोजीशन
कार्बोहाइड्रेट: यह मांसपेशियों के लिए सब से आसानी से उपलब्ध ऊर्जा का स्रोत है. ब्रेकफास्ट की कुल कैलोरी का 55-70% कार्बोहाइड्रेट से आना चाहिए.
प्रोटीन: नाश्ते की कुल कैलोरी का 15% प्रोटीन से आना चाहिए. प्रोटीन मांसपेशियों को शक्तिशाली बनाने के लिए बहुत जरूरी है.
वसा: जो लोग नियमित रूप से दौड़ते हैं उन्हें वसा का सेवन कम मात्रा में करना चाहिए, क्योंकि यह शरीर के सर्वाधिक सांद्रित ऊर्जा का स्रोत है.
फ्ल्यूड: रनर्स को पानी तो पीना ही चाहिए, लेकिन उस के साथ ही अन्य तरल पदार्थ का भी सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए. यह शरीर के ताप को नियंत्रित करने और शरीर में जल का स्तर बनाए रखने के लिए जरूरी है.
इन्हें न खाएं
रनर्स का ब्रेकफास्ट जितना पोषक होगा उन का प्रदर्शन उतना ही बेहतर रहेगा. इसलिए जरूरी है कि ब्रेकफास्ट में ऐसे भोजन को शामिल न किया जाए, जिस में कैलोरी की मात्रा तो भरपूर हो, लेकिन पोषकता अत्यधिक कम हो. नाश्ते में इन चीजों को खाने से बचें:
व्हाइट ब्रैड, पेस्ट्री, डोनट, हलवा, मिठाई, केक, वसा युक्त दूध और दुग्ध उत्पाद, सोडा और कोल्ड डिं्रक्स, परांठे, साबूदाना, पूरी सब्जी, कचौरी, समोसा.
क्यों जरूरी है ब्रेकफास्ट ?
ब्रेकफास्ट न करने से शरीर में वसा के मैटाबोलिज्म के लिए जरूरी ऐंजाइम्स उत्पन्न नहीं होते हैं. अगर आप सुबह ब्रेकफास्ट नहीं करेंगे तो रक्त में शुगर और कोलैस्टेरौल का स्तर बढ़ जाता है, जो आप को कई बीमारियों का आसान शिकार बना सकता है, साथ ही आप के लिए लंबे समय तक दौड़ना भी असंभव हो जाएगा.
ऊर्जा का स्तर बनाए रखने के लिए
ब्रेकफास्ट शरीर और मस्तिष्क को ईंधन उपलब्ध कराता है. अगर आप रनिंग करने के बाद ब्रेकफास्ट नहीं लेगे तो शरीर में ऊर्जा का स्तर कम हो जाएगा. ऊर्जा उपलब्ध करवाने के अलावा ब्रेकफास्ट महत्त्वपूर्ण पोषक का भी अच्छा स्रोत है. ब्रेकफास्ट में खाया जाने वाला साबूत अनाज, सूखे मेवे, फल और सब्जियां आदि प्रोटीन, विटामिंस और मिनरल्स के अच्छे स्रोत हैं. शरीर को इन आवश्यक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है और अगर ब्रेकफास्ट में इन का सेवन पर्याप्त मात्रा में न किया जाए तो दिन के बाकी समय में इन की पूर्ति करना संभव नहीं होता है.
अगर आप रोज रनिंग करने के बाद पोषक नाश्ता नहीं करेंगे तो आप की हड्डियां और मांसपेशियां कमजोर हो जाएंगी. इसलिए दौड़ने के 1 घंटा बाद पौष्टिक नाश्ते का सेवन बहुत जरूरी है.
ब्रेन पावर के लिए आवश्यक
ब्रेकफास्ट में अच्छे प्रकार का प्रोटीन खाने से अधिक देर तक पेट भरा लगता है. इस के अलावा यह प्रोटीन अमीनो ऐसिड टायरोसिन को मस्तिष्क में पहुंचने में सहायता करता है, जिस की सहायता से सजगता बढ़ाने वाले रसायनों डोपामाइन और ऐपिनेफ्रिन का उत्पादन होता है. अगर आप ब्रेकफास्ट नहीं करेंगे तो रक्त में शुगर का स्तर कम हो जाएगा जो नकारात्मक रूप से मस्तिष्क को प्रभावित करता है. इस से आप अगले दिन खुद को दौड़ने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं कर पाएंगे.
‘‘मे आई कम इन, सर?’’, मेहता कोचिंग सैंटर के दरवाजे पर खड़े वरुण ने झिझकते हुए पूछा.
‘‘यस, कम इन’’, राजीव मेहता सर की कोचिंग खासी प्रसिद्ध थी. यहां से कोचिंग करना मतलब प्रबंधन के प्रमुख संस्थानों में दाखिला पक्का. यहां दाखिला मिलना आसान नहीं था, जिन छात्रों के 12वीं में 90 प्रतिशत से ऊपर अंक आते, उन्हें ही यहां कोचिंग हेतु बुलाया जाता. फिर बाकायदा साक्षात्कार होता. केवल छात्र का ही नहीं, बल्कि उस के अभिभावकों का भी साक्षात्कार लिया जाता.
कोचिंग की आवश्यकता वैसे तो पढ़ाई में कमजोर विद्यार्थियों को पड़ती है किंतु कोचिंग का व्यवसाय कुछ ऐसा है कि अच्छा नाम कमाने हेतु उन्हें आवश्यकता पड़ती है मेधावी छात्रों की. साथ ही कोचिंग को बखूबी चलाने के लिए पैसा चाहिए, इसलिए ऐसे विद्यार्थी भी चाहिए जो संस्थान को भारी फीस दे सकें. भारत में जनता इतनी है कि हर जगह सीटों की कमी पड़ जाती है. लंबी कतारों में खड़े लोग अपने बच्चों का दाखिला करवाने को लालायित रहते हैं. इसीलिए कोचिंग में दाखिला मिलने पर ऐसी प्रसन्नता होती है मानो आगे की शिक्षा मुफ्त हो.
राजीव सर की कोचिंग की भारी फीस भरनी हर किसी के बूते की बात कहां थी. जब वरुण का नाम काउंसिलिंग के लिए आया तो उस का पूरा परिवार बहुत खुश हुआ. वह भी खुश था कि अब उस का दाखिला एक अच्छे प्रबंधन संस्थान में हो सकेगा.
वरुण पढ़ाई में बहुत मेधावी नहीं था. परिश्रम से ही वह अपने वर्तमान स्थान तक पहुंचा था. इस कोचिंग सैंटर में दाखिले के बाद भी वरुण ने परिश्रम करने की ठानी थी. दाखिले की फीस का इंतजाम पापा ने अपनी पीएफ स्कीम से उधार ले कर किया था और बाद की फीस हेतु वरुण के नाम पर छात्र लोन के लिए अर्जी भी दे दी थी. कोचिंग का समय शाम से ले कर रात तक का होता था. यहां पढ़ाने के लिए बाहर से शिक्षक आया करते थे. धीरेधीरे पता चला कि दिन में ये शिक्षक अन्य प्रबंधन संस्थान में पढ़ाया करते थे, तभी इन्हें वहां की तत्कालीन शिक्षा प्रणाली का अनुमान रहता. ये उसी हिसाब से कोचिंग में भी पढ़ाया करते.
राजीव सर और उन की पत्नी कशिश कोचिंग संस्थान को चलाया करते थे. जैसे एक व्यापारी पौलीक्लीनिक खोल कर उस में अच्छे डाक्टरों को घंटे के हिसाब से पैसे दे कर बुलाता है, बस, कुछ वैसा ही हिसाब यहां था. खैर, बच्चों को तो अपने भविष्य से मतलब था, यदि वह सुनहरा दिख रहा है तो किसी को कोई आपत्ति नहीं थी.
राजीव सर की पत्नी कशिश भी कोचिंग में पूरी भागीदारी निभाती थीं. ‘‘यदि कुछ समझ में न आए तो मेरे पास आना, कभी भी, शरमाना मत. मैं तुम्हारे सारे डाउट क्लीयर कर दूंगी, ओके?’’ नए बैच का ओरिएंटेशन पूरा होने पर कशिश मैम के आश्वासन पर पूरी कक्षा ने तालियां बजा दी.
फिर सत्र आरंभ हो गया और पूरे जोरशोर से पढ़ाई शुरू हो गई. राजीव सर अकसर अपने केबिन में ही सारा दिन बिताते, जबकि कशिश मैम सारे कोचिंग इंस्टिट्यूट का चक्कर लगातीं, शायद, यहीं से कोचिंग क्लास के अंदर चल रही बातों की टोह लिया करती होंगी. अच्छे प्रबंधक के सारे गुण झलकते थे उन में. वरुण उन से काफी प्रभावित रहता और वे भी वरुण को देख मुसकरातीं.
दूसरा सत्र पूरा होने के साथ कोचिंग का आधा कार्यकाल पूर्ण हो चुका था. अगले सत्र के बाद कुछ चुनिंदा छात्रों हेतु छात्रवृत्ति की घोषणा भी होनी थी. यह छात्रवृत्ति 50 से ले कर 90 फीसदी की फीस माफी की हुआ करती थी, ऐसा सब ने सुन रखा था. हर छात्र इस छात्रवृत्ति की ओर ललचाई नजरें रख रहा था. वरुण को इस छात्रवृत्ति की सख्त जरूरत थी. ‘कितना अच्छा हो जो यह मुझे मिल जाए, पापा का काफी लोन भी चुक जाएगा,’ वह सोचने लगा था क्योंकि अब तक की फीस उस के पापा छात्र लोन के जरिए ही चुका पा रहे थे जो उन्होंने वरुण के नाम पर लिया था.
उस शाम, कक्षा समाप्त होने के बाद सभी छात्र अपने घरों की ओर निकलने लगे. तभी वहां कशिश मैम टहलती हुई आईं और बोलीं, ‘‘वरुण, जरा मेरे केबिन में आना.’’
वरुण को आश्चर्य हो रहा था कि उसे कशिश मैम ने क्यों बुलाया है. रात के
9 बज रहे थे, कोचिंग सैंटर लगभग खाली हो चुका था. पहली बार वह उन के केबिन में गया. क्या आलीशान केबिन था. एक तरफ कशिश मैम की मेजकुरसी सजी थी तो दूसरी ओर एक बड़ा सा सोफासैट रखा था. दीवारों पर सुंदर पेंटिंग टंगी हुई थीं. कमरे के 2 विपरीत कोनों में हलकी रोशनी वाले बल्ब जल रहे थे. सुर्ख लाल परदों के कारण कमरे में हलकी लाल रोशनी छिटक रही थी.
‘‘आओ वरुण, मेरे पास चले आओ,’’ कशिश मैम की आवाज आज कितनी मधुर व कामुक प्रतीत हुई, ‘‘हां, दरवाजे की चिटकनी बंद करते आना.’’
‘‘जी मैम, कहिए, क्या कर सकता हूं मैं?’’, वरुण हाथ बांधे एक अच्छे छात्र की भांति खड़ा हो गया.
‘‘बहुत कुछ कर सकते हो तुम, पर आज नहीं. आज सिर्फ मुझे करने दो,’’ कहते हुए कशिश मैम उस के एकदम करीब आ कर खड़ी हो गईं. उन की सांस अपने कानों से टकराने से वरुण अचकचा कर थोड़ा दूर हो गया. ‘‘डरो मत. आज यहां और कोई नहीं है. बस, मैं और तुम.’’ कशिश मैम ने वरुण का हाथ पकड़ कर उसे अपने पास सोफे पर बैठा लिया. ‘‘देखो वरुण, मुझे तुम बहुत अच्छे लगते हो, और शायद तुम्हें मैं. मैं ने देखा है तुम्हें अपनी ओर देखते हुए’’, कहते हुए जैसे ही कशिश मैम ने वरुण के बालों में अपनी उंगलियां फिरानी आरंभ कीं, वह घबरा गया, ‘‘नहीं मैम, ऐसी कोई बात नहीं है, बिलकुल नहीं.’’
‘‘अरे, इतना क्यों घबरा रहे हो, डियर? माना कि मैं तुम से उम्र में थोड़ी बड़ी हूं पर मैं किसी कमसिन लड़की से कहीं अधिक सुख दे सकती हूं तुम्हें, और फिर छात्रवृत्ति के बारे में भी तो सुना होगा तुम ने? मैं ने सुना है तुम्हारे पापा ने पीएफ से उधार लिया है और अब तुम एजुकेशन लोन पर पढ़ रहे हो. जरा सोचो,
90 फीसदी छात्रवृत्ति मिलने पर कितना फायदा हो जाएगा तुम्हें.’’
वरुण सोच में डूब गया और कशिश मैम जैसा चाहती थीं वैसा करती रहीं. न चाहते हुए भी वरुण ने कोई प्रतिरोध नहीं किया. फिर तो यह क्रम बन गया. जब कशिश मैम का दिल करता, वे वरुण को बुला लेतीं. जब कोचिंग सैंटर खाली हो जाता, अपने कमरे में कशिश मैम वरुण के साथ मनचाहा करतीं और वरुण चुपचाप सब सह जाता. उस समय उसे केवल अपने पिता की आर्थिक मजबूरी व अपना सुनहरा भविष्य दिखाई देता.
छात्रवृत्ति घोषणा का समय आया. राजीव सर ने हर अध्यापक से उन के छात्रों की सिफारिशी सूची मंगवाई. पूरी कमेटी बैठाई गई. 50 फीसदी छात्रवृत्ति हेतु 10 विद्यार्थियों के नाम सुझाए गए, 60 फीसदी और 70 फीसदी के लिए 3 विद्यार्थी और 90 फीसदी हेतु केवल एक विद्यार्थी का नाम चुनना था. जब पूरी सूची तैयार हो गई, तब मैम ने राजीव सर से खास कह कर वरुण का नाम 90 फीसदी के लिए सुझा दिया, ‘‘लड़का बहुत मेहनती है और मेधावी भी, मैं ने खुद उसे कितनी बार परखा है.’’
घोषणा के बाद वरुण बहुत प्रसन्न हुआ. जिस लालच में उस ने अपना सर्वस्व लुटाया, आखिर वह उसे मिल गया. इस खबर से वरुण पूरे सैंटर में मशहूर हुआ सो अलग. सैंटर की छात्रा नेहा भी अब उस की ओर देख मुसकुराने लगी थी. वरुण को तो नेहा प्रथम दिन से ही आकर्षक लगी थी. वरुण के एक बुद्धिमान विद्यार्थी स्थापित होने के बाद नेहा ने उस से दोस्ती कर ली. उसे विश्वास होने लगा था कि वरुण एक सफल भविष्य बनाएगा.
एक शाम कक्षा समाप्त होने के बाद कुछ लड़कों ने वरुण के ऊपर टिप्पणी की, ‘‘क्या बात है वरुण, कशिश मैम तुम्हें अकेले में क्यों बुलाती हैं, यार?’’
वरुण कुछ उत्तर दे पाता, इस से पहले ही नेहा बोल पड़ी, ‘‘वह इसलिए क्योंकि मैम को वरुण अपने बेटे की याद दिलाता है, उस का नाम है अरुण. दोनों नाम इतने मिलतेजुलते हैं न, तो उन्हें वरुण पर भी प्यार आता है.’’
बाद में वरुण ने नेहा से पूछा, ‘‘आज जो तुम ने कह कर उन लड़कों का मुंह बंद कर दिया, तुम्हें कैसे पता कशिश मैम के बेटे का नाम अरुण है?’’
‘‘वह इसलिए जनाब, क्योंकि राजीव सर और कशिश मैम मेरे मामामामी हैं और अरुण मेरा ममेरा भाई है जो लंदन में पढ़ता है. दरअसल, मैं ने भी इस बात पर गौर किया कि मामी तुम्हें कई बार बुलवाती हैं तो मैं ने उन से कारण पूछा और यह बात उन्होंने स्वयं मुझे बताई. कितनी स्वीट हैं न, मामी’’, नेहा की बात से वरुण भौचक्का रह गया. नेहा, मैम की रिश्तेदार निकली. अब वह कैसे अपने मन की बात उस से कहे? वह तो सोच रहा था कि नेहा की सहायता से मैम के चंगुल से निकलने का प्रयास करेगा. वरुण उदास हो गया.
एक शाम अपनी मनमरजी कर चुकने के बाद कशिश मैम कहने लगीं, ‘‘वरुण, तुम मंजोतिया कालेज में दाखिला चाहते हो न? हमारे यहां जो अनिरुद्ध सर आते हैं, वे वहीं पढ़ाते हैं. मैं ने उन से मंजोतिया कालेज की प्रवेश परीक्षा में आने वाले पेपर मंगवाए हैं, तुम्हें दिखा दूंगी.’’
वरुण सकते में आ गया, ‘‘कैसे मैम? अनिरुद्ध सर दाखिले के पेपर कैसे और क्यों लाएंगे?’’
‘‘तुम क्या सोचते हो कि हमें दिन में पढ़ाने के लिए अच्छे शिक्षक नहीं मिल सकते?’’, हंसते हुए मैम बोलीं, ‘‘हम देर शाम की कोचिंग इसलिए रखते हैं ताकि अच्छे प्रबंधन कालेजों में पढ़ाने वाले शिक्षक हमारे यहां भी पढ़ा सकें. वैसे, निजी प्रबंधन कालेजों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को बहुधा एक नौकरी के साथ दूसरी नौकरी करने की अनुमति नहीं होती है. ऐसा वे चोरीछिपे करते हैं. उन्हें दोगुना वेतन मिल जाता है और हमें अच्छे प्रबंधन कालेजों में दाखिले हेतु प्रश्नपत्र भी. यही शिक्षक हमें वहां से निकलवा कर देते हैं.
‘‘फिर जब हमारे यहां के विद्यार्थी उन्हीं कालेजों में दाखिले के लिए समूह परिचर्चा व साक्षात्कार में भाग लेते हैं, तो यही शिक्षक उन के ऐसे समूह बनवाते हैं, जो उन के मित्र शिक्षक को जंचे ताकि इन का चुनाव आसानी से हो जाए. तभी तो हमारा नाम होता है कि इस कोचिंग सैंटर में पढ़ने से विद्यार्थी अच्छी जगह दाखिला पा लेते हैं. कुछ समझे इस सारे गणित को?’’
वरुण हतप्रभ रह गया. दाखिले के चक्रव्यूह में इतने भेद. खैर, वरुण को इस सब से क्या मतलब. वह तो अपना उल्लू सीधा करने के चक्कर में था, अन्य सभी की भांति.
वरुण को 90 फीसदी वजीफा भी मिल चुका था और अपने मनमाफिक कालेज में दाखिला भी. अब उसे कशिश मैम के चक्रव्यूह में फंसने की क्या आवश्यकता थी भला. सो, इस बार जब कशिश मैम ने उसे बुला भेजा, वह नहीं गया. बल्कि इस बार वह राजीव सर के पास जा पहुंचा और कशिश मैम की सारी पोलपट्टी खोल कर रख दी. सुनते ही राजीव सर आगबबूला हो उठे, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई बकवास करने की? जानते भी हो क्या बक रहे हो?’’
‘‘सर, मैं सच कह रहा हूं. आप अपनी पत्नी से स्वयं पूछ लीजिए.’’
‘‘अब तुम मुझे बताओगे मुझे क्या करना है? निकल जाओ इसी वक्त मेरे कमरे से,’’ कहते हुए राजीव सर ने वरुण को निकाल दिया. वरुण अपने घर लौट गया. लेकिन जो आग उस ने लगाई थी, उस की चिंगारियां अभी भी सुलग रही थीं. राजीव सर ने फौरन कशिश मैम को बुलवा भेजा, और फिर सारी बात उन से पूछ डाली. सारी बात खुलने पर कशिश मैम सकपका गईं. उन्हें जरा भी उम्मीद नहीं थी कि बात यों उघड़ जाएगी. उन का रोरो कर बुरा हाल था, ‘‘आप अपनी पत्नी की बात का विश्वास करेंगे, या एक अनजान लड़के का? वह लड़का कोरा झूठ बोल रहा है. बल्कि उस की मुझ पर बुरी नजर रही है. वह हमेशा मुझे घूरता रहता है. आप ही कहते हैं न कि मेरे जैसा बदन कम ही औरतों का होता है. अब यदि मैं इतनी सुंदर हूं तो क्या इस में भी मेरी गलती है?’’
‘‘उसे हमारे व्यवसाय के अंदर की बातें कैसे पता? उसे कैसे पता कि हम अन्य प्रबंधन कालेज के शिक्षकों से दाखिले के पेपर मंगवाते हैं, हम समूहपरिचर्चा व साक्षात्कार में अपने विद्यार्थियों को कैसे आगे करवाते हैं, जवाब दो’’, राजीव सर अब भी क्रोध में उबल रहे थे.
‘‘मुझे नहीं पता कि उसे ये सब बातें कैसे पता. मैं उसे बेहद शरीफ और नेकनीयत विद्यार्थी समझती थी. याद है मैं ने आप से कह कर उसे 90 फीसदी वजीफा भी दिलवाया था. और वह मुझे ही बेकार में बदनाम कर रहा है. हो सकता है कि वह किसी अन्य कोचिंग सैंटर से पैसे खा रहा हो और हमारे यहां फूट डालने का प्रयास कर रहा हो या फिर उस को हमारे अंदर की बातें कहीं से पता चल गई हैं और वह हमें ब्लैकमेल करना चाह रहा हो…वह पहले हम दोनों में लड़ाई करवाएगा और फिर जब आप अकेले पड़ जाएंगे तब आप को ब्लैकमेल करने लगेगा.’’
फिर कुछ सोच कर कशिश मैम आगे कहने लगीं, ‘‘और हां, यदि आप को अब भी मेरी बात का विश्वास नहीं तो नेहा या किसी अन्य विद्यार्थी से पूछ लीजिए कि मेरे और उस लड़के के क्या संबंध हैं.’’ उन का यह पैंतरा काम कर गया. नेहा का नाम सुन कर राजीव सर शांत हो गए और उसे बुला भेजा.
‘‘जी हां, मामाजी, मामी वरुण को इसलिए पसंद करती हैं क्योंकि उस का नाम अरुण से मेल खाता है. वे उसे बच्चे की तरह प्यार करती हैं. क्यों, क्या बात है?’’
‘‘कुछ नहीं, नेहा बेटे. अब तुम जाओ.’’ नेहा की बातें सुन कर राजीव सर संभल गए.
अब आगे क्या करना है, इस विषय को ले कर वे गंभीर विचारों में पड़ गए.
दोनों मियांबीवी ने मिल कर यह निर्णय लिया कि वे वरुण को अनुशासनात्मक कार्यवाही के तहत अपने कोचिंग सैंटर से निकाल देंगे. यदि उस ने ज्यादा होहल्ला किया तो 90 फीसदी वजीफे की रकम के अलावा जो फीस के पैसे उस ने भरे हैं, वह उसे लौटा देंगे लेकिन उसे अपने यहां का विद्यार्थी नहीं दर्शाएंगे.
2 दिनों के बाद राजीव सर ने वरुण को अपने कक्ष में बुलवाया और अनुशासनात्मक कार्यवाही का हवाला देते हुए उसे निष्कासनपत्र थमा दिया.
‘‘यह क्या सर, आप मेरी गलती न होते हुए भी मुझे सजा दे रहे हैं? और कशिश मैम जिन के कारण…’’ वरुण आगे कुछ कहता इस से पहले ही राजीव सर दहाड़ पड़े, ‘‘नाम मत लो मिसेज राजीव का अपनी गंदी जबान से. चुपचाप यह चिट्ठी पकड़ो और निकल जाओ इस सैंटर से. तुम्हारे जैसे लड़कों के लिए यहां कोई जगह नहीं है. याद रखना, अगर तुम ने कोई बवाल खड़ा करने की कोशिश की तो मैं अनुशासनात्मक समिति बिठा कर भी यही कार्य कर सकता हूं. और उस स्थिति में तुम्हें तुम्हारी फीस भी नहीं लौटाई जाएगी. अभी कम से कम मैं तुम्हारी फीस लौटा रहा हूं. चुपचाप फीस लो और दफा हो जाओ यहां से.’’
वरुण के 2 वर्ष बरबाद हुए सो अलग, मनपसंद प्रबंधन संस्थान में हुआ उस का दाखिला भी रद्द हो गया क्योंकि इस सैंटर ने उस प्रबंधन संस्थान को वरुण का गलत चरित्र प्रमाणपत्र भिजवा दिया. वरुण को कशिश मैम से उठाए लाभ की महंगी कीमत यों चुकानी पड़ी. काश, उस ने अपने सुनहरे भविष्य के सपने की खातिर उस समय सही फैसला किया होता तो आज उसे न तो इस तरह लांछित होना पड़ता और न ही उस की प्रगति की राह में यों रोड़े अटकते. अब वह नए सिरे से कैरियर बनाने की कोशिश कर रहा है पर बीचबीच में उसे कशिश मैम की याद आ ही जाती है. अब तो नेहा ने भी उस से सभी संबंध तोड़ लिए हैं और कोई नई लड़की भी उसे घास नहीं डाल रही. यहां कोचिंग सैंटर में सभी स्वार्थी हैं, प्रतिद्वंद्वी हैं, कोई दोस्त नहीं, कोई साथ देने वाला नहीं.
हरियाणा के यमुनानगर में 16 दिसंबर 2023 को घर में जादू टोना की बात कह कर 5 लोगों ने तांत्रिक क्रिया के नाम पर शालू नाम की महिला से 25 लाख रुपए हड़प लिए और फिर फोन उठाना भी बंद कर दिया. तब शालू ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई.
दरअसल शालू नशा मुक्ति अभियान प्रयास इंडिया की टीम लीडर है. तालिम भी उन की टीम में काम करता था. वह उसे बहन कहता था. सितंबर 2022 में एक्सीडेंट में शालू को चोट लग गई थी. जिस के बाद आरोपी तालिम अपने 4 रिश्तेदारों के साथ उस के घर मिलने के लिए आया था.
इस दौरान तालिम ने साथ आए रिश्तेदार सलमान के लिए कहा कि वह तांत्रिक का कार्य करता है. यदि घर में कोई परेशानी है तो वह दूर कर सकता है. उस की बातों में आ कर शालू ने बताया कि बेटा बीमार रहता है और अब उसे भी चोट लग गई है. इस पर सलमान ने उस के घर के कोनेकोने में देखा और कहा कि किसी ने जादू टोना किया हुआ है. यदि इस से जल्द मुक्ति नहीं मिली तो बर्बाद कर देगा.
आरोपियों ने उस के घर कुछ तंत्रमंत्र किए और ताबीज भी जलाए. फिर इलायची पढ़ कर दूध व चाय में उबाल कर पीने को दिया. तांत्रिक क्रिया करने के नाम पर उस से डेढ़ लाख रुपए ले लिए. आरोपी नफीसा उस के घर पर रोजाना सुबह आती और तंत्र क्रिया कर शाम को वापस चली जाती. नफीसा उसे कभी घर में खून के छींटे तो कभी लाल कपड़े में सिंदूर दिखाती. इस तरह घर में भूतप्रेत होने की बात कह कर उसे झांसे में लिए रहे.
यहां तक कि घर से कीमती सामान भी गायब होने लगे. इस के लिए भी आरोपियों ने तांत्रिक बाधा को जिम्मेदार ठहराया और उस से फिर तंत्रमंत्र करने के लिए रुपए मांगे गए. अब तक आरोपियों ने उस से लगभग 25 लाख रुपए हड़प लिए थे. शालू ने बच्चों के नाम कराई गई एफडी को तुड़वा कर यह रुपए दिए थे. इस के बाद नफीसा ने उस के घर आना बंद कर दिया. उन लोगों ने शालू का फोन उठाना भी छोड़ दिया जिस से परेशान हो कर उस ने इस की शिकायत पुलिस से की.
भले ही आज दुनिया 21वीं सदी में पहुंच चुकी है और आधुनिक होने का दावा कर रही हो लेकिन आएदिन ऐसे अंधविश्वास के मामले सामने आते रहते हैं. इसी अंधविश्वास के चलते कुछ लोग अपनी जान गवा देते हैं तो कुछ लोग अपनी संपत्ति लेकिन फिर भी यह अंधविश्वास का खेल ऐसे ही चलता रहता है. लोगों में अंधविश्वास के प्रति जागरूकता की इतनी कमी है कि न केवल मूर्ख लोग बल्कि पढ़ेलिखे भी तांत्रिक और ओझा की बातों में आ कर अपना नुकसान कर बैठते हैं.
तांत्रिक ने की ठगी
ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से सामने आया. उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद निवासी एक तांत्रिक ने कोरियर कंपनी के स्वामी से 25 लाख रुपये ठग लिए. आरोपी तांत्रिक ने व्यापारी को झांसा दिया था कि उस के घर की जमीन फटेगी और सोना निकलेगा. लेकिन न तो जमीन फटी और न ही उन्हें सोना मिला. तब उन्होंने तांत्रिक पर रुपए देने का दबाव बनाया तो आरोपी धमकाने लगा कि वह ऐसी तंत्र क्रिया करेगा जिस से वो बरबाद हो जाएगा और उस की मृत्यु तक हो जाएगी. व्यापारी की शिकायत पर पुलिस ने आरोपी तांत्रिक को हिरासत में ले लिया.
इसी तरह 4 मार्च 2022 को मध्य प्रदेश के जबलपुर में एक महिला को महिला तांत्रिक ने 40 लाख रुपए का चूना लगा दिया. आरोपी महिला ने उस के घर में गड़ा धन होने की बात कही और उसे निकालने के नाम पर लाखों रुपए ठग लिए. सचाई पता चलने के बाद पीड़िता ने महिला तांत्रिक के खिलाफ एफआईआर कराई.
ऐसा ही कुछ ऊना में 25 जुलाई 2020 को हुआ जब बच्चे की चाहत में तांत्रिक के पास पहुंची महिला से लाखों की ठगी की गई. बच्चे की चाहत में एक अंधविश्वासी महिला ने एक तांत्रिक बाबा मदन गोपाल पर लाखों रुपए लुटा दिए. इस के लिए महिला को अपने गहने तक बेचने पड़े. महिला की शादी वर्ष 2017 में हुई थी. शादी के कुछ माह बाद महिला का गर्भपात हो गया जिस के चलते वह परेशान रहने लगी.
इसी दौरान वह अपने पति संग मायके की एक महिला के साथ तांत्रिक मदन गोपाल के पास पहुंची. बाबा इन से नियमित तौर पर कुछ न कुछ डिमांड करने लगा. इसी बीच महिला ने बेटे को जन्म भी दिया जिस का फायदा उठाकर बाबा की डिमांड ओर बढ़नी शुरू हो गई थी. बाबा महिला से बच्चे के नाम पर 9 लाख रुपए से ज्यादा ठग चुका था.
बाबा का लालच दिनप्रतिदिन बढ़ता गया और जब महिला ने और पैसा देने से मना कर दिया तो बाबा ने उसे धमकी देना शुरू कर दिया. बाबा ने महिला को उस के पति और बच्चे को जान से मारने की धमकी दी. तब महिला ने इस की शिकायत पुलिस से की.
झांसे में न फंसें
आज के वैज्ञानिक युग में भी अगर हम तंत्रमंत्र और भूतप्रेतों पर विश्वास करेंगे, अंधविश्वास के नाम पर तांत्रिको और बाबाओं पर रुपए लुटाएंगे और तांत्रिक शक्तियों से अपना फायदा होने या तकलीफ दूर होने की उम्मीद करेंगे तो इस से बड़ी बेवकूफी और क्या होगी ? इंसान मेहनत से सालों में रुपए जोड़ता है और इन तांत्रिकों और बाबाओं के झांसे में आ कर 2 मिनट नहीं लगते उस के सारे रुपए लुट जाते हैं.
आखिर कब तक पढ़ेलिखे हो कर भी हम बाबाओं और तांत्रिकों के ऊपर अपनी मेहनत के रुपए लुटाते रहेंगे सिर्फ इस आशा में कि वह कोई जादू करेगा और हमारी सारी तकलीफें दूर हो जाएगी या हमारा कुछ बड़ा फायदा हो जाएगा.
याद रखें आप को अपने झांसे में लेने के लिए तात्कालिक तौर पर वे कुछ फायदा पहुंचा दें या ऐसा संयोग से हो जाए यह संभव है. मगर वे आप के साथ जो घिनौना खेल खेलते हैं उसे समझना जरूरी है. वे आप के खिलाफ साजिश रचते हैं और आप उस के शिकार बन जाते हैं.
अगर आप के जीवन में कोई तकलीफ आती है तो उस का निराकरण वैज्ञानिक तरीके से, मेडिकल साइंस में या फिर अपने प्रयासों से तलाश करने का प्रयास करें. आप बीमार हैं तो डाक्टर के पास जाएं. आप के घर में कलह है तो अपने रिश्तों को सुधारने का खुद प्रयास करें.
इस के लिए अपने व्यवहार और अपनी सोच में बदलाव लाएं. अगर आप के घर में मुसीबतें लगी रहती हैं तो इस की वजह तलाश करें कि ऐसा क्यों हो रहा है. फिर उस का समाधान करें. हर समस्या, हर मुसीबत का सामना आप को खुद करना है और आप ऐसा करने में सक्षम हैं. लेकिन अगर आप बीच में किसी तंत्रमंत्र वाले तांत्रिक और बाबा के चक्कर में पड़ेंगे तो जो आप के पास है वह भी चला जाएगा.
7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले के बाद इजरायल और हमास के बीच शुरू हुआ भयंकर युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है. इस भयावह युद्ध में जो बेहिसाब बमबारी हुई है उस के चलते गाजा पट्टी तो खंडहर में बदल ही चुकी है इजरायल में भी इमारतों, मकानों, सड़कों, पुलों आदि को भारी नुकसान पहुंचा है. अब जारी युद्ध के बीच ही इजरायल ने इमारतों के पुनः निर्माण की प्रक्रिया शुरू कर दी है और अपने फैसले के तहत उसे सस्ते मजदूरों की दरकार है.
सस्ते मजदूरों के लिए इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भारत से संपर्क किया है. नेतन्याहू जानते हैं कि भारत में चरम गरीबी का सामना कर रहे भारतीय थोड़े से धन का लालच देते ही इजरायल में काम करने के लिए तैयार हो जाएंगे. उन का सोचना शतप्रतिशत ठीक है क्योंकि गरीब आदमी सोचता है कि यहां भूख से मरने से बेहतर है जान का रिस्क उठा कर दूसरे देश में जा कर कुछ पैसा कमा लें और अपने घर की दशा कुछ ठीक कर लें.
भारत की गरीब आबादी के सामने पेट पालने की मजबूरी हमेशा से रही है. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान इंग्लैण्ड की तरफ से लड़ने के लिए हजारों भारतीय गरीब किसानों को सैनिक ट्रेनिंग दे कर युद्ध क्षेत्र में झोंक दिया गया. वे युद्ध की विभीषिकाओं से जूझते रहे. अनेक मर गए, कुछ अपंगता की हालत में जीवित बचे. जर्मनी में आज भारत का गरीब अपनी रोजी कमाने के लिए जाता है.
आज करीब 21,000 भारतीय नीले कार्ड पर वहां मजदूरी कर रहे हैं. जर्मनी की हमेशा यह सोच रही कि भारत हमारे लिए एक दिलचस्प श्रम बाजार है और भारत सरकार का भी आप्रवासन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण है. अरब देशों में हमारे कामगार और मजदूर किन कठिन परिस्थितियों में काम करते हैं, सरकार ने कभी उनकी चिंता नहीं की. कई बार तो उन्हें ले जाने वाले ठेकेदार उन का पासपोर्ट जब्त कर के रख लेते हैं. छोटेछोटे कमरे में 20-20 आदमियों को भेंड़-बकरियों की तरह रखते हैं और दिन में एक वक़्त खाना देते हैं. मगर ये गरीब यह सब सहते हैं ताकि अपने परिवार का पेट दो वक़्त भर सकें.
वर्तमान समय में करीब 18,000 भारतीय इजराइल में काम करते हैं. भीषण बम धमाकों के बीच भी कई भारतीय मजदूरों ने इजरायल में ही रुकने का फैसला किया. चीन से करीब 7,000 मजदूर और पूर्वी यूरोप से 6,000 मजदूर इजरायल में काम कर रहे हैं. इस्राइल के अर्थव्यवस्था मंत्री नीर बरकत ने बीती अप्रैल में अपने भारत दौरे पर और अधिक भारतीय मजदूरों को काम पर रखने की बात की और भारत के साथ एक समझौता किया, जिस में 42,000 भारतीय मजदूरों को इजरायल भेजने की बात तय हुई थी. लेकिन अब इजरायल ने करीब एक लाख मजदूरों को मांगा है, जिस को ले कर भारत का नेशनल स्किल डेवलपमेंट कारपोरेशन इंटरनेशनल काफी सक्रियता दिखा रहा है.
पहले इजरायल में बहुत बड़ी संख्या में फिलिस्तीनी श्रमिक कार्यरत थे, लेकिन हमास के हमले ने करीब 90 हजार फिलिस्तीनियों के पेट पर लात मार दी. इन का वर्क परमिट रद्द हो गया. इस से पूरे इजरायल में निर्माण का काम ठप पड़ गया. हालांकि कुछ चीनी श्रमिक वहां काम कर रहे हैं लेकिन उनबीकी संख्या बहुत कम है.
इस वक्त इजरायल में श्रमिकों का बड़ा संकट है. निर्माण क्षेत्र के कई सैक्टर्स में बड़ी संख्या में कामगारों की जरूरत है. जिन बिल्डिंगों का कुछ दिनों पहले तक लगातार निर्माण हो रहा था, अब वह साइट पूरी तरह खाली पड़ी हैं. जिन लोगों ने मकान खरीद रखे हैं, वह लोग बिल्डर्स पर काम को जारी रखने का दबाव बना रहे हैं.
इजरायल बिल्डर्स एसोसिएशन के मुताबिक 90 हजार फिलिस्तीनी मजदूरों में 10 फीसदी गाजा और बाकी वेस्ट बैंक से थे, जिन से वर्क परमिट रद्द हुए हैं. निर्माण गतिविधियां पुरानी गति से शुरू करने के लिए इजरायल की सरकार और कंपनियां भारत की ओर उम्मीद से देख रही हैं.
इजरायल ने भारत को प्रति श्रमिक 6100 इजरायली न्यू शेकेल करेंसी यानी भारतीय मुद्रा में 1.38 लाख रूपए प्रतिमाह देने का औफर दिया है, जिसे भारत सरकार द्वारा सहर्ष स्वीकार कर लिया गया है. नेशनल स्किल डेवलपमेंट कारपोरेशन इंटरनेशनल ने इस दिशा में श्रमिकों की तलाश शुरू कर दी है. स्किल्ड लेबर जिस के पास हाई स्कूल तक पढ़ाई का सर्टिफिकेट है, को आवेदन करने के लिए कहा गया है.
युद्ध क्षेत्र बने इजरायल में श्रमिकों को भेजने के लिए सब से ज्यादा उत्साह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिखाया है. उन्होंने उत्तर प्रदेश से 10 हजार श्रमिक भेजने की बात कही है.
प्रदेश के श्रम एवं सेवायोजन विभाग ने इस पर काम भी शुरू कर दिया है. सभी जिलों को इच्छुक कामगारों का डाटा एकत्र करने को कहा गया है. इन श्रमिकों को एक टेस्ट पास करने के बाद इजरायल भेजा जाएगा.
निर्माण श्रमिकों को नेशनल स्किल डेवलपमेंट कारपोरेशन इंटरनेशनल के माध्यम से भेजा जाएगा. इच्छुक लोगों के पास काम के अनुभव के अलावा हाई स्कूल तक की शिक्षा जरूरी है. इन की आयु सीमा 25 से 45 वर्ष तय की गई है. जान दांव पर लगा कर युद्धग्रस्त इजरायल जाने वाले लोग तो वहां इस आशा से जाएंगे कि महीने के 1 लाख 38 हजार रूपए कमा लेने से उन के घर की दशा कुछ सुधर जाएगी, मगर भारत में भ्रष्टाचार का जो आलम है उस में इन श्रमिकों के पल्ले कितना पैसा आएगा कहना मुश्किल है. इन की कमाई का बड़ा हिस्सा कान्ट्रैक्टर्स और अधिकारियों की जेबों में जाएगा, यह निश्चित है.
वहीं इजरायल में इन श्रमिकों को अपने रहने और चिकित्सा बीमा का पैसा खुद देना होगा. दुर्भाग्य से अगर वे इजरायल में जान गंवा बैठें तो यहां उन के परिवार का लालनपालन कौन करेगा, इस सवाल पर सबके मुंह सिले हुए हैं. सवाल है कि क्या हम कभी इतने सक्षम हो पाएंगे कि हमारे युवाओं को यहीं उन के घरपरिवार में रहते हुए रोटी-रोजगार मिल सके? उन्हें चंद रुपयों के लिए अपना सबकुछ छोड़ कर जान जोखिम में डाल कर विदेश न जाना पड़े?
सरकार देश की जनता के कटोरे में अन्न की भीख भरभर के दुनिया को कब तक दिखाती रहेगी कि देखो हमारा देश कितना गरीब, कितना भूखा है?
दिल्ली सरकार की बिजली सब्सिडी योजना, जिस के तहत उपभोक्ताओं को इस योजना को चुनना था, एक तरह से विफल हो गई है क्योंकि बजट में 100 करोड़ रुपए की अतिरिक्त वृद्धि करनी पड़ी है. सरकार ने 2023-24 में बिजली सब्सिडी के लिए 3,250 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं जिन में संशोधित बजट में 100 करोड़ रुपए अतिरिक्त हैं. दिल्ली सरकार की योजना केवल उन लोगों को बिजली सब्सिडी देने की थी जिन्हें वास्तव में इस की आवश्यकता है. जबकि नवंबर में 51 लाख उपभोक्ताओं ने 400 यूनिट तक की खपत के लिए सब्सिडी का लाभ उठाया. ‘औप्ट-इन’ योजना के बावजूद सरकार ने शून्य और आधे बिलों के लिए 3,162 करोड़ रुपए खर्च किए.
दिल्ली सरकार के आंकड़ों के अनुसार राजधानी में करीब 58 लाख घरेलू बिजली उपभोक्ता हैं. नवंबर में 51 लाख लोगों ने 400 यूनिट तक बिजली की खपत पर सब्सिडी का लाभ उठाया. नवंबर में करीब 38 लाख उपभोक्ताओं को 200 यूनिट तक की खपत के लिए कोई राशि नहीं देनी पड़ी जबकि 13 लाख उपभोक्ताओं को 201 से 400 यूनिट तक की खपत के लिए 50 फीसदी की छूट मिली.
दिल्ली सरकार ने 2019-20 में बिजली सब्सिडी पर 2,405.6 करोड़ रुपए खर्च किए, जबकि 2020-21 में यह राशि बढ़ कर लगभग 2,940 करोड़ रुपए और 2021-22 में 3,090 करोड़ रुपए हो गई. सरकार द्वारा ‘औप्ट-इन’ योजना शुरू करने के कारण कुछ लोग कुछ महीनों तक सब्सिडी का लाभ नहीं उठा पाए. इस के बावजूद सरकार ने शून्य और आधे बिलों के लिए 3,162 करोड़ रुपए खर्च किए. हालांकि शुरुआत में कम लोगों ने सब्सिडी का विकल्प चुना और पहले कुछ महीनों में सब्सिडी वाले बिल पाने वाले लोगों की संख्या कम थी. लेकिन ऐसा लगता है कि अब उन में से अधिकांश लोग इस का दावा करने लगे हैं. इस की वजह कहीं न कहीं लोगों का निम्न जीवन स्तर ही है. लोग बमुश्किल अपना जीवनयापन कर रहे हैं.
बिजली की खपत के मामले में भारत दुनिया के कई देशों के मुकाबले काफी पिछड़ा है. मिसाल के तौर पर देश में प्रतिव्यक्ति बिजली की खपत 917 किलोवाट घंटे है, जबकि चीन, जरमनी और अमेरिका में यह दर क्रमशः 3,298, 7081 और 13,246 किलोवाट घंटे है. इस मामले में वैश्विक औसत 2,600 किलोवाट घंटे है. यानी, यहां यह खपत वैश्विक औसत की एकतिहाई है.
महिलाएं ही सहती हैं ज्यादा तकलीफ
सामान्यतया महिलाएं ही इस ‘कटौती’ का शिकार बनती हैं. ज्यादातर घरों में दिन के समय महिलाएं रह जाती हैं. बच्चे स्कूल चले जाते हैं और पुरुष अपने औफिस. तब महिलाएं कम से कम बिजली का उपयोग करती हैं ताकि बिल ज्यादा न आए. उस दौरान जरूरत होते हुए भी वे एक पंखे से काम चलाती हैं और कोशिश करती हैं कि बिना बिजली की बरबादी किए वे अपने काम निबटाएं. वैसे भी, ज्यादातर घरों में किचन में पंखे होते नहीं हैं, जबकि महिलाओं का ज्यादा समय किचन में ही बीतता है. इसी तरह अगर 2 बल्ब जलाने की जरूरत है तो वे एक जलाएंगी या नहीं भी जलाएंगी. अकसर महिलाएं कोशिश करती हैं कि वे हाथ से कपड़े धो लें ताकि वाशिंग मशीन में बिजली लगने से बच जाए. रेफ्रिजरेटर जरूरी चीज है, सो वह चलता रहता है. बाकी हर संभव जगह महिलाएं कटौती करने की कोशिश करती हैं ताकि बिल ज्यादा न खर्च हो और उन का परिवार सब्सिडी वाले दायरे में रहे. इस तरह कहीं न कहीं इस सब्सिडी के चक्कर में महिलाएं ही तकलीफ सहती हैं.
पोल भी खुली है
हम यह कह सकते हैं कि भले ही 10 साल से बीजेपी यह डंका पीट रही है कि भारत के लोगों की स्थिति निरंतर अच्छी हो रही है, देश प्रगति कर रहा है, गरीबी दूर हो रही है मगर 51 लाख लोगों का सब्सिडी लेना यह स्पष्ट करता है कि भारत में लोग कितनी गरीबी में हैं. लोग किस कदर रुपए बचा रहे हैं ताकि उन का घर चल सके. भले ही तीसरी बड़ी शक्ति के रूप में देश को विकसित करने की गारंटी दी जाती रही है पर धरातल में रह कर देखें तो आज भी सामान्य जनता उसी हालत में या उस से कहीं बदतर हालत में जीने को विवश है. भारत सकल घरेलू उत्पाद के मामले में 5वें स्थान पर है लेकिन प्रतिव्यक्ति आय के मामले में 128वें स्थान पर है.
story in hindi
गाजापट्टी के मध्य में इतिहास और तनाव आपस में जुड़े हुए थे. पर गाजा समुदाय विषम परिस्थितियों के बावजूद वहां डटा रहा. क्षेत्र की अराजकता और विनाश के बीच यहां रहने वाले लोगों को रुकरुक कर आशा की एक किरण दिखाई देती थी.
इजराइल फिलिस्तीन संघर्ष का एक लंबा और जटिल इतिहास था, जो पीढ़ियों पुराना था. गाजा के छोटे से क्षेत्र को हिंसा का खामियाजा भुगतना पड़ा और यह संघर्ष का केंद्रबिंदु बन गया. इस युद्धग्रस्त क्षेत्र में विभिन्न पृष्ठभूमि और राष्ट्रीयताओं के लोग रहते थे जो गाजा को अपना घर कहते थे, जिन में भारतीय भी शामिल थे. उन की कहानियां क्रूरता या हिंसा की नहीं बल्कि विपरीत परिस्थितियों में साहस, दृढ़ता और एकता की थीं.
संघर्ष का पर्याय
प्राचीन इतिहास और सुंदरता की भूमि गाजा, संघर्ष का पर्याय बन गई थी. कठिनाइयों के बावजूद जीवन कायम रहा.
नवीन, एक भारतीय प्रवासी, उन लोगों में से था जिन्हें इस भूमि में घर मिला. वह कई साल पहले काम के सिलसिले में गाजा आया था लेकिन वहां उस ने गहरी जड़ें जमा लीं. गाजा अपने हलचल भरे बाजारों और सुरम्य समुद्रतटों के साथ उस का दूसरा घर बन गया था.
गाजापट्टी ने कई संघर्ष देखे थे, जिन में सब से हालिया बमबारी भी शामिल थी, जिस ने इस क्षेत्र को बरबाद कर दिया था. इमारतें मलबे में तबदील हो गईं और सड़कें जर्जर हो गईं, लेकिन इस के निवासियों की भावना बरकरार रही.
नवीन समुद्रतट पर बैठा, भूमध्य सागर को देख रहा था. शांत पानी और गाजा के अशांत इतिहास के बीच के गहन अंतर पर विचार कर रहा था. कभीकभी वह आश्चर्यचकित हो जाता था कि इतनी खूबसूरत जगह संघर्ष से कैसे खराब हो सकती है.
इतिहास को समझें
गाजा की मौजूदा स्थिति को समझने के लिए इस के इतिहास में गहराई से जाने की जरूरत थी.
इजराइल फिलिस्तीन संघर्ष 20वीं सदी के मध्य में शुरू हुआ, जो क्षेत्रीय विवादों और हिंसा से चिह्नित था. गाजा के लोग गोलीबारी में फंस गए थे और अकसर इस के साथ आने वाली कठिनाइयों को सहन कर रहे थे.
जैसेजैसे नवीन अपना घर गाजा में बसाने लगा, उस की मुलाकात सारा नाम की फिलिस्तीनी महिला से हुई, जो पेशे से इतिहासकार थी. सारा ने क्षेत्र के इतिहास की जटिलताओं, फिलिस्तीनियों के विस्थापन और उन की अपनी मातृभूमि की इच्छा के बारे में बताया.
“यहां के लोग सब कुछ सहन करते हैं,” सारा ने कहा, जब वह नवीन को कलाकृतियों से भरे एक संग्रहालय में ले गई, जो इस भूमि के अशांत व अतीत की कहानी कहता था.
“चुनौतियों के बावजूद हम दृढ़ हैं और हम बेहतर भविष्य की आशा करते हैं,” उस ने बताया।
नवीन ने जो कहानियां सुनीं, उस से वह चकित हो गया और उसे एहसास हुआ कि हालांकि संघर्ष ने जमीन को नुकसान पहुंचाया था, लेकिन लोगों की आशाएं कायम रहीं.
गाजा प्रवासियों के एक विविध समूह का घर था, जिस में न केवल नवीन जैसे भारतीय बल्कि यूरोपीय, अफ्रीकी और विभिन्न पृष्ठभूमि के लोग भी शामिल थे. संस्कृति और भाषा में अंतर के बावजूद उन सभी में एक समान बंधन था- इस चुनौतीपूर्ण माहौल में बेहतर जीवन की खोज.
विविधता में एकता
जब नवीन गाजा शहर के हलचल भरे बाजारों में घूम रहा था, तो उस का सामना उन प्रवासियों के समूहों से हुआ, जिन्होंने एकजुट समुदाय बनाए थे. उन्होंने अपने अनुभव साझा किए, आशा की कहानियों का आदानप्रदान किया और एकदूसरे को समर्थन की पेशकश की. विविधता में एकता उन के जीवन की परिभाषित विशेषता थी.
नवीन ने एक साथी भारतीय प्रवासी अहमद से दोस्ती की, जो वर्षों से गाजा में रह रहा था. अहमद एक छोटी सी किराने की दुकान चलाता था और अपनी उदारता के लिए जाना जाता था. वह अकसर संघर्षरत परिवारों को किराने का सामान मुहैया कराता था, चाहे उस की राष्ट्रीयता कोई भी हो.
अहमद ने कहा, “मैं भले ही भारत से आया हूं, लेकिन गाजा वह जगह है जहां अब मेरा दिल है. हमसब इस में एकसाथ हैं और मैं अपने पड़ोसियों के जीवन को थोड़ा आसान बनाने में अपनी भूमिका निभाना चाहता हूं.”
गाजा में जीवन के सब से प्रेरक पहलुओं में से एक युवा पीढ़ी का जोश था. संघर्ष और कठिनाइयों के बीच बड़े होने के बावजूद कई बच्चों के सपने और महत्त्वाकांक्षाएं थीं.
शिक्षा पर जोर
नवीन को अल कुद्स विश्वविद्यालय के छात्रों के एक समूह से मिलने का अवसर मिला, जो चुनौतियों के बावजूद अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए दृढ़ थे.
इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे युवा छात्र कासिम ने कहा, “हिंसा और निराशा के इस चक्र से बाहर निकलने का रास्ता शिक्षा है.” “हम एक उज्जवल भविष्य में विश्वास करते हैं, और हम इसे हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे.”
नवीन उन के दृढ़ संकल्प और अपने सपनों के प्रति प्रतिबद्धता से बहुत प्रभावित हुआ. उस ने महसूस किया कि गाजा के खंडहरों के बीच आशा, युवा पीढ़ी के माध्यम से आज भी जीवित थी.
वह अकसर इन में से कुछ छात्रों को पढ़ाता भी था, उन की पढ़ाई में मदद करता था. उस ने उन की आंखों में जो उद्देश्य और आशा की भावना देखी, वह उसे लगातार याद दिलाती रही कि जीवन चलता रहेगा और भविष्य का वादा बना रहेगा.
विपरित परिस्थितियों में मानवता
विकट परिस्थितियों के बावजूद गाजा में दयालुता का काम एक आम दृश्य था. नवीन अकसर लोगों को अपने पड़ोसियों की मदद करते, संसाधन साझा करते और जरूरतमंदों को सांत्वना देते हुए देखता था. गजावासियों के दिलों में समुदाय और करुणा की भावना गहरी थीं.
एक शाम नवीन ने स्वयंसेवकों के एक समूह को जरूरतमंद परिवारों को भोजन उपलब्ध कराते देखा. जिन्हें भोजन मिल रहा था उन के चेहरों पर मुस्मकराहट थी और वह एकजुटता की शक्ति का प्रमाण थी. स्पष्ट था कि विपरीत परिस्थितियों में भी मानवता कायम रहेगी.
नवीन ने अपना समय और संसाधन भी स्वेच्छा से देने का निर्णय लिया. विभिन्न पृष्ठभूमियों के अपने दोस्तों के साथ मिल कर उस ने एक सामुदायिक रसोई शुरू की जहां वह उन लोगों के लिए भोजन तैयार करता था जिन्हें इस की सब से अधिक आवश्यकता थी. यह गाजा में जीवन को थोड़ा और अधिक सहनीय बनाने के लिए एकता और सामूहिक प्रयास का प्रतीक बन गया.
गाजा में नवीन का समय आंखें खोल देने वाला अनुभव था. उन्होंने इजराइल फिलिस्तीन संघर्ष को व्यक्तिगत स्तर पर गहराई से समझा था. उस ने हिंसा से प्रभावित जिंदगियों को देखा था लेकिन साथ ही लोगों की ताकत और उन के हौसलों को भी देखा था.
जब परिस्थितियां हद से ज्यादा बदतर हो गईं और वह भारत लौटने की तैयारी कर रहा था, नवीन को गाजा में शांति कार्यकर्ताओं के एक समूह द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया. यह आयोजन एकता का प्रतीक था, जो क्षेत्र में संघर्ष को समाप्त करने और स्थायी शांति का आह्वान करने के लिए विभिन्न पृष्ठभूमि के व्यक्तियों को एकसाथ ला रहा था.
जब नवीन भारत लौटने की तैयारी करने लगा
नवीन ने अपने अनुभव साझा करने और बेहतर भविष्य की आशा व्यक्त करने के लिए मंच संभाला. उस ने संघर्षों को सुलझाने में बातचीत और समझ के महत्त्व पर जोर दिया. वहां मौजूद लोगों ने उसे ध्यान से सुना.
नवीन ने इन कार्यकर्ताओं को कहा, “मित्रो, गाजा की इस भूमि के साथी नागरिक, मैं गाजा के लोगों की ताकत और एकता से बहुत प्रभावित और प्रेरित हूं. यहां की मेरी यात्रा आंखें खोलने वाला अनुभव रही है और मैं यहां आशा और उम्मीद की कहानियां साझा करने आया हूं, जो मैं ने इस असाधारण जगह में अपने समय के दौरान देखी हैं.
“मैं अवसर और रोमांच की तलाश में एक प्रवासी के रूप में गाजा आया था. मैं इस भूमि की सुंदरता, समृद्ध इतिहास और जीवंत संस्कृति से प्रभावित हुआ. लेकिन मुझे यह भी समझ में आया कि गाजा एक ऐसी जगह है जहां इतिहास की गूंज ने वहां के लोगों के जीवन पर गहरा प्रभाव छोड़ा है. इजराइल फिलिस्तीन संघर्ष एक जटिल मुद्दा है, जो क्षेत्रीय विवादों, हिंसा और मातृभूमि के लिए संघर्ष से चिह्नित है.
“जैसे ही मैं गाजा में जीवन व्यतीत कर रहा था, मेरी मुलाकात सारा जैसी महिला से हुई, जो एक भावुक इतिहासकार थीं, जिन्होंने मुझे इस भूमि की ऐतिहासिक जटिलताओं को समझने में मदद की. गाजा के लोगों ने कठिनाइयों और विस्थापन को सहन किया है, लेकिन उन्होंने अविश्वसनीय लचीलापन भी दिखाया है. चुनौतियों के बावजूद, वे दृढ़ रहते हैं और बेहतर भविष्य की आशा करते हैं.”
नवीन ने आगे कहा,”गाजा में जीवन का सब से उल्लेखनीय पहलू विविधता में एकता है. यह भूमि दुनियाभर के प्रवासियों का घर है। हम में से प्रत्येक इन चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बीच बेहतर जीवन की तलाश में हैं. हम अलगअलग देशों, संस्कृतियों और पृष्ठभूमियों से आए, लेकिन यहां हम ने एकजुट समुदाय बनाए, एकदूसरे का समर्थन किया और अपने अनुभव साझा किए.
“मुझे गाजा की युवा पीढ़ी के साथ बातचीत करने का सौभाग्य मिला है, जिन के सपने और महत्त्वाकांक्षाएं बेहद चमकीली हैं. कासिम की तरह ये छात्र चुनौतियों के बावजूद अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं. उन का मानना है कि शिक्षा ही हिंसा और निराशा के चक्र से बाहर निकलने का रास्ता है और वे एक उज्जवल भविष्य बनाने के लिए अथक प्रयास करते हैं.”
नवीन ने भावुक हो कर कहा,”लेकिन जिस चीज ने मुझे सब से अधिक गहराई से प्रभावित किया है वह दयालुता के कार्य हैं जो मैं ने गाजा में देखे हैं. विकट परिस्थितियों के बावजूद मैं ने लोगों को अपने पड़ोसियों की मदद करते, संसाधन साझा करते और जरूरतमंदों को सांत्वना देते देखा है. समुदाय और करुणा की भावना गाजावासियों के दिलों में गहरी हैं, जो हमें याद दिलाती है कि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मानवता कायम रहती है.”
आंदोलन में शामिल होने को ले कर नवीन आगे बोलते हैं,”मैं ने काररवाई में एकता और आशा की शक्ति देखी है और मुझे इस आंदोलन में शामिल होने पर गर्व है. हमारी सामुदायिक रसोई, जहां हम जरूरतमंद लोगों के लिए भोजन तैयार करते हैं, यह सिर्फ एक उदाहरण है कि कैसे एकता और करुणा गाजा में जीवन को थोड़ा और अधिक सहनीय बना सकती है.
“आज मैं हम सभी से शांति की दिशा में काम करने का आह्वान करता हूं. इजराइल फिलिस्तीन संघर्ष एक गहरी जड़ें जमा चुका मुद्दा है जिस के लिए धैर्य, समझ और सब से बढ़ कर बातचीत की आवश्यकता होगी. हमें यह याद रखना चाहिए कि गाजा के लोगों को ही सब से ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है. युवा पीढ़ी एक उज्जवल भविष्य का सपना देखती है, जहां वे अपनी शिक्षा प्राप्त कर सकें और अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा कर सकें. हमें न केवल शांति का सपना देखने के लिए बल्कि इस के लिए सक्रिय रूप से काम करने के लिए भी एकसाथ खड़ा होना चाहिए.
“जैसे ही मैं गाजा छोड़ने की तैयारी कर रहा हूं, मैं अपने साथ, एकता और आशा की भावना ले कर जा रहा हूं जो इस भूमि को परिभाषित करती है. यह सिर्फ संघर्ष की भूमि नहीं है, यह एक ऐसी जगह है जहां जीवन निरंतर चलता रहता है और जहां व्यक्ति, उन की पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना समुदाय और साझा उद्देश्य की भावना पैदा करने के लिए एकसाथ आते हैं.”
उस ने कहा,”आइए, याद रखें कि आशा सब से चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी जीवित रहती है. आगे का रास्ता लंबा है, लेकिन जिन लोगों से मैं यहां मिला हूं उन के दृढ़ संकल्प और एकता से गाजा में एक उज्जवल भविष्य की उम्मीद है. धन्यवाद.”
लोगों का धन्यवाद
नवीन का भाषण दर्शकों को बहुत पसंद आया और समापन के बाद वह शांति कार्यकर्ताओं के उस समूह में शामिल हो गया जिन्होंने कार्यक्रम का आयोजन किया था. जब वह समूह के विभिन्न सदस्यों के साथ बातचीत में शामिल हुआ, तो उस ने संघर्षों को सुलझाने में बातचीत और समझ के महत्त्व पर जोर दिया.
नवीन ने कार्यकर्ताओं के समूह के पास जा कर उन के गरमजोशी भरे स्वागत के लिए उन का धन्यवाद दिया, “मैं सचमुच मानता हूं कि बातचीत और समझ शांति का मार्ग प्रशस्त कर सकती है. तो, इस बारे में आपके क्या विचार हैं कि हम गाजा में इसे और अधिक कैसे बढ़ावा दे सकते हैं?”
हसन वहां का एक स्थानीय कार्यकर्ता था. उस ने कहा, “नवीन, आप के शब्द शक्तिशाली थे. मुझे लगता है कि हमें जमीनी स्तर पर शुरुआत करने की जरूरत है. शांति निर्माण पर हमारी सभाएं और कार्यशालाएं जैसी पहल बातचीत को बढ़ावा देने में मदद कर सकती हैं. लेकिन इतने इतिहास और इतनी दर्दभरी दास्तान के कारण यह आसान नहीं है, आप जानते हैं.”
एक फिलिस्तीनी कार्यकर्ता ने जब कहा…
लीना एक युवा फिलिस्तीनी कार्यकर्ता थी, उस ने कहा, “नवीन, आप का विचार अद्भुत है, लेकिन सभी को मेज पर लाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है. दोनों तरफ बहुत ज्यादा अविश्वास है.”
रामी एक इजरायली शांति समर्थक थी। उस ने कहा,”नवीन, मैं आप से सहमत हूं, लेकिन यह बुनियादी मुद्दों को संबोधित करने के बारे में भी है. आत्मनिर्णय का अधिकार, भूमि और सुरक्षा संबंधी चिंताएं. हम उन से कैसे निबट सकते हैं?”
नवीन ने बताया, “रामी, तुम्हारी बात सटीक है. ये गहराई से जुड़े मुद्दे हैं और इन पर चर्चा की जरूरत है. लेकिन मुख्य बात ऐसा माहौल बनाना है जहां दोनों पक्ष अपनी चिंताओं को साझा करने में सुरक्षित महसूस करें. खुले रूप से, बिना कुछ छिपाए, ईमानदारी से संवाद करना, सब से चुनौतीपूर्ण विषयों को भी संबोधित करने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है.”
एक भारतीय कार्यकता का दर्द
सना, गाजा में रहने वाले एक भारतीय कार्यकर्ता थी. उस ने कहा, “नवीन, यहां आप के अनुभव परिवर्तनकारी रहे हैं. लेकिन हम यह कैसे सुनिश्चित करें कि इन पहलों का स्थायी प्रभाव हो? दीर्घकालिक दृष्टिकोण क्या है?”
इस प्रश्न पर नवीन ने कहा, “मेरे विचार में दीर्घकालिक दृष्टिकोण शांति और समझ की संस्कृति बनाना है. इस के लिए शिक्षा और जागरूकता की आवश्यकता है. स्कूल, मीडिया और सामुदायिक संगठन शांति की संस्कृति को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. यह छोटी उम्र से ही सहानुभूति, सहयोग और संघर्ष समाधान के मूल्यों को स्थापित करने के बारे में है. इतना विनाश हो चुका है फिर भी आप स्वयं ही देख रहे हो अपने आसपास कि लोग एकदम निराश नहीं हैं.”
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से मदद की अपील
एक स्थानीय समुदाय का नेता वहां उपस्थित था. उस ने नवीन को बातचीत करते देखा तो उस के पास आया और कहा, “नवीन, आप का भाषण प्रेरणादायक था. लेकिन हमें अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी समर्थन की जरूरत है. हम जैसे व्यक्ति उस समर्थन को पाने के लिए क्या कर सकते हैं?”
इस पर नवीन ने कहा, “यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है. सब से पहले, हमें अपनी कहानियां और अनुभव दुनिया के साथ साझा करना जारी रखना चाहिए. सोशल मीडिया और इंटरनैट हमें अपनी आवाज उठाने के लिए एक मंच प्रदान करते हैं. दूसरा, हमें ऐसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों और गैरसरकारी संगठनों की तलाश करनी चाहिए जो संघर्ष समाधान और शांति निर्माण की दिशा में काम करते हैं. उन के साथ सहयोग हमारे प्रयासों को बढ़ाने में मदद कर सकता है.”
युवाओं की भूमिका
एक युवती लीना ने कहा, “नवीन, इन प्रयासों में अधिक युवाओं को शामिल करने के बारे में क्या खयाल है? वे ही हैं जो मशाल को आगे बढ़ाएंगे.”
नवीन ने कहा, “बिलकुल लीना. परिवर्तन के पीछे अकसर युवा ही प्रेरक शक्ति होते हैं. युवा परिषदों की स्थापना के बारे में क्या खयाल है जो उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में सक्रिय रूप से भाग लेने की अनुमति देती है? इस तरह वे शांति निर्माण पहल का स्वामित्व महसूस करेंगे.”
एक अन्य युवती रामी का कहना था, “नवीन, तुम कई स्थानों की यात्रा कर चुके हो. क्या अन्य संघर्ष क्षेत्रों से कोई सफलता की कहानियां या रणनीतियां हैं जिन से हम सीख सकते हैं?”
नवीन ने बताया, “रामी, मैं ने दक्षिण अफ्रीका और उत्तरी आयरलैंड जैसी जगहों पर जमीनीस्तर पर सुलह प्रयासों के सकारात्मक उदाहरण देखे हैं. उन में समुदाय आधारित परियोजनाएं, ऐतिहासिक मेलमिलाप और अंतरधार्मिक संवाद शामिल थे. इन अनुभवों से सीखना और उन्हें हमारी अनूठी स्थिति में अपनाना फायदेमंद हो सकता है.”
राजनीतिक आयाम क्या हो ?
एक स्थानीय युवक हसन ने कहा, “आप ने हमें सोचने के लिए बहुत कुछ दिया है. लेकिन राजनीतिक आयाम के बारे में क्या? हम दोनों पक्षों के नीतिनिर्माताओं के साथ कैसे जुड़ सकते हैं?”
नवीन ने बताया, “यह एक महत्त्वपूर्ण पहलू है. हम कूटनीति की भूमिका की उपेक्षा नहीं कर सकते. स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय नीतिनिर्माताओं, वकालत समूहों और राजनयिकों के साथ जुड़ना महत्त्वपूर्ण है. वे ऐसा माहौल बनाने में मदद कर सकते हैं जहां हमारे जमीनीस्तर के प्रयास अधिक प्रभावी हो सकते हैं. संयुक्त राष्ट्र और रैड क्रौस जैसे संगठनों के साथ संबंध बनाना भी बहुमूल्य सहायता प्रदान कर सकता है.”
सना कहती है, “मुझे लगता है कि वैश्विक जागरूकता जरूरी है. हम अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को यहां की स्थिति के बारे में कैसे अधिक शामिल और सूचित कर सकते हैं? मीडिया के माध्यम से जो बाहर जाता है वह तो…”
तब नवीन ने कहा, “सोशल मीडिया एक शक्तिशाली उपकरण है. हम इस का उपयोग यहां अपने दैनिक जीवन की कहानियां, वीडियो और अनुभव साझा करने के लिए कर सकते हैं. हमें अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और मानवाधिकार समूहों से भी जुड़ना चाहिए. सोशल मीडिया पर अकसर उन की मजबूत उपस्थिति होती है और वे हमारे संदेश को वैश्विक दर्शकों तक पहुंचाने में मदद कर सकते हैं.”
नवीन ने भावुक हो कर कहा, “मेरी यात्रा यहीं खत्म नहीं होती. मैं हमारे द्वारा शुरू किए गए जमीनीस्तर के संगठन का समर्थन करना जारी रखूंगा और भारत और उस के बाहर जागरूकता बढ़ाने के लिए अपने अनुभवों का उपयोग करूंगा. मैं गाजा के लोगों के साथ जुड़ा रहूंगा और आप की कहानियां साझा करता रहूंगा और कौन जानता है, शायद मैं किसी दिन यहां वापस आऊंगा और देखूंगा कि हम ने साथ मिल कर क्या प्रगति की है.”
शांति कार्यकर्ताओं और नवीन के समूह ने शांतिपूर्ण भविष्य के लिए अपने विचार, अनुभव और आशाएं साझा कीं. उन्होंने माना कि आगे का रास्ता चुनौतीपूर्ण होगा, लेकिन वे बदलाव लाने के लिए दृढ़ थे. उन की चर्चा ने एक सतत साझेदारी की नींव रखी, जो बातचीत, समझ और गाजा के उज्जवल भविष्य पर केंद्रित होगी.
जैसेजैसे बातचीत जारी रही, शांति कार्यकर्ताओं और नवीन के समूह ने गाजा में शांति को बढ़ावा देने के विभिन्न तरीकों पर चर्चा की. उन्होंने माना कि आगे का रास्ता चुनौतीपूर्ण था, लेकिन क्षेत्र के लिए एक उज्जवल भविष्य बनाने का उन का दृढ़ संकल्प अटल था. नवीन की उपस्थिति और काररवाई के आह्वान ने उन के उद्देश्य के प्रति उन की प्रतिबद्धता को और बढ़ा दिया था.
नवीन का भाषण काररवाई का आह्वान था और यह श्रोताओं में से कई लोगों को पसंद आया. विभिन्न पृष्ठभूमियों के लोग न केवल शांति का सपना देखने के लिए बल्कि उस की दिशा में काम करने के लिए एकसाथ आए. उन्होंने संवाद और मेलमिलाप को बढ़ावा देने के लिए समर्पित एक जमीनीस्तर का संगठन बनाया.
भारत वापसी करने के बाद…
नवीन गाजा के लोगों और उन की अदम्य भावना के प्रति गहरी सराहना के साथ भारत लौटा. वह गाजा में अपने समय के दौरान बनाए गए दोस्तों के संपर्क में रहे, उन के जीवन, उन के सपनों और उन की कहानियां साझा कीं.
इजराइल फिलिस्तीन संघर्ष एक जटिल मुद्दा था और इस का समाधान खोजने में समय और प्रयास लगेगा. लेकिन गाजा में रहने वाले लोगों की कहानियों के माध्यम से नवीन को समझ में आ गया था कि आशा, सब से चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी कायम रह सकती है.
गाजा सिर्फ संघर्ष की भूमि नहीं थी, यह एक ऐसी जगह थी जहां जीवन फलताफूलता रहा था और जहां व्यक्ति, अपनी पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना, समुदाय और साझा उद्देश्य की भावना पैदा करने के लिए एकसाथ आए थे.
नवीन ने उस जमीनीस्तर के संगठन का समर्थन करना जारी रखा जिस का वह हिस्सा बन गया था, जो क्षेत्र में शांति और समझ की दिशा में काम कर रहा था. वह जानता था कि आगे का रास्ता लंबा है, लेकिन जिन लोगों से वह मिला था उन के दृढ़ संकल्प और एकता के साथ गाजा में एक उज्जवल भविष्य की आशा थी.