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न्यू ईयर की छुट्टियों में घूमने का प्लान पहले से बनाएं, वरना यह होगा नुकसान

नए साल की शुरुआत लोग कुछ यादगार तरीके से करना पसंद करते हैं. इस के लिए दोस्तों या परिजनों के साथ पार्टी या फिर कहीं घूमने जाने की योजना बनाने लगते हैं. वैसे भी, इस साल की शुरुआत वीकैंड के फौरन बाद हो रही है. यानी, 30 और 31 दिसंबर को शनिवार व रविवार की छुट्टी के बाद 1 जनवरी, 2024 को धमाल मचाने का मजा ही अलग होगा.

3 दिनों की लगातार छुट्टी की वजह से जाहिर है ज्यादातर लोग घूमने का प्लान बना रहे होंगे. सर्दी के मौसम में हिल स्टेशनों की खूबसूरती और अधिक बढ़ जाती है. इस वजह से 3 दिनों के एक खूबसूरत और यादगार ट्रिप के लिए आप भारत के पहाड़ी इलाकों की ओर रुख कर सकते हैं. कुछ लोग अपने आसपास कहीं घूमने जाने कि सोच रहे होंगे तो कुछ वृंदावन, ऋषिकेश जैसे स्थलों की सैर करने की योजना बना रहे होंगे.

आप कहीं भी जाने वाले हों, इस बात का खयाल रखें कि नए साल में हर जगह पर्यटकों की संख्या बहुत बढ़ जाती है. इसलिए किसी भी जगह जाने के लिए पहले से प्लान बनाना और तैयारी करना बहुत जरूरी है ताकि सफर का मजा किरकिरा न हो जाए.

नए साल पर पहाड़ों के रास्तों में जाम

हर बार नए साल के मौके पर शिमला-मनाली में पर्यटकों की संख्या बढ़ जाती है. हिमालय की बर्फ से ढकी सफेद चादर का नजारा देखने को लोग दूरदराज से पहुंचते हैं. इस वर्ष महज क्रिसमस के मौके पर शिमला में एक दिन में 13 हजार से ज्यादा गाड़ियों की आवाजाही हुई है. मनाली की भी कुछ ऐसी ही स्थिति रही. पर्यटकों से गुलजार पहाड़ी इलाकों में ट्रैफिक जाम की समस्या बहुत ज्यादा देखने को मिली.

पिछले साल भी नए साल के मौके पर हजारों यात्रियों की गाड़ियां घंटों ट्रैफिक जाम में फंसी रही थीं. क्रिसमस की छुट्टियों में मनाली में सैलानियों का सैलाब देखा गया. वहां एक लाख से अधिक टूरिस्ट पहुंचे. सड़कों पर भी वाहनों की लंबी कतारें नजर आईं.

पहले से कराएं बुकिंग

पर्यटकों की संख्या बढ़ने के कारण नए साल के मौके पर अधिकतर होटलों की बुकिंग पहले से हो जाती है और बाद में अच्छे व किफायती होटलों में कमरे मिलना मुश्किल हो जाता है. वहीं पर्यटन का सीजन होने के कारण होटलों में कमरे का रेट भी बढ़ जाता है. इसलिए ध्यान रखें कि अगर आप नए साल पर किसी भी पर्यटन स्थल पर जा रहे हैं तो पहले से ही औनलाइन होटल बुकिंग करा लें ताकि वहां पहुंच कर भटकना न पड़े और किराया बढ़ा कर न देना पड़े.

कई दफा ऐसा भी होता है कि भीड़ अधिक होने और बढ़ते जाम की स्थिति में प्रशासन भी सिर्फ उन लोगों को आगे जाने देता है जिन के पास होटल की पहले से बुकिंग है यानी जिन्होंने होटल पहले ही बुक कर रखे हैं. जिन के पास होटल बुक करने का कोई प्रूफ नहीं है उन्हें बीच रास्ते से ही लौटाया भी जाया जा सकता है.

ऐसे में खुद की गाड़ी से यात्रा कर रहे हैं तो वीकैंड से पहले ही यहां पहुंच जाएं. अगर आप ट्रेन, फ्लाइट या बस से जा रहे हैं तो पहले से रिजर्वेशन कराएं. वरना अंतिम समय में आप को तिगुनाचौगुना किराया दे कर रिजर्वेशन लेना होगा. एयरलाइन टिकट घोटालों में न फंसें. प्रयास करें कि किसी ऐसी जगह पर घूमने की योजना बनाएं जहां बहुत अधिक सैलानी न हों ताकि आप खुल कर नववर्ष के जश्न को एंजौय कर सकें.

अगर आप अंधविश्वासी प्रवृत्ति के हैं और किसी धार्मिक स्थल का रुख कर रहे हैं यानी मंदिरों के दर्शन करने जा रहे हैं तो भी ध्यान रखें कि वहां इतनी भीड़ होगी कि पैर रखने की जगह भी मुश्किल से मिलेगी. ऐसे स्थानों में होटल वगैरह पहले से बुक रहते हैं और रेट भी ज्यादा होता है. इसलिए बेहतर यही होगा कि उसी दिन वापस लौटने का प्लान रखें.

सैलिब्रेशन ट्रिप की तैयारी पहले से करें

  • बैग्स विद व्हील चुनें

ज्यादातर लोगों को बैकपैक ले कर चलने की आदत होती है. यह एक अच्छा औप्शन है मगर ध्यान रखें कि जब आप कहीं बाहर घूमने के लिए जाने वाले हों तब आप को जाम की वजह से कहीं भी काफी चलना पड़ सकता है. ऐसे में अगर आप बैकपैक लेना चुनते हैं और अपना सारा सामान उस में रखते हैं तो आप की पीठ की हालत खराब हो सकती है. इसलिए हमेशा ऐसा सूटकेस या बैग लेना समझदारी है जिस में पहिए हों. इन बैग्स के साथ ज्यादा सामान ले कर चलना और ले जाना आसान होता है.

  • दवाइयां और फर्स्टएड बौक्स न भूलें

आप जहां भी जाएं, अपनी सेहत का खयाल रखना बेहद जरूरी है. कभी भी कोई अप्रत्याशित स्थिति आ सकती है, जैसे ऐक्सिडैंट होना, जाम में फंसना, उलटी या सिरदर्द होना आदि. इस के लिए तैयारी कर के चलें. जो दवाइयां आप रैगुलर ले रहे हैं, जैसे थायराइड या शुगर आदि की मैडिसिन, उन्हें साथ ले जाना न भूलें. एक फर्स्टएड बौक्स भी साथ में रखें. इन के अलावा कुछ जरूरी दवाइयां भी साथ रखें. बुखार, सर्दी खांसी, सिरदर्द और वौमिटिंग की दवा हमेशा आप के साथ होनी चाहिए. इसी तरह ग्लूकोज, ओआरएस आदि रखना भी इंपोर्टेंट है.

  • ठंड के हिसाब से आरामदायक कपड़े पैक करें

ठंड के मौसम में भारी कपड़े जरूरी हो जाते हैं. मगर इस मामले में भी समझदारी से काम लें. कहीं भी आप को जाम का सामना करना पड़ सकता है. हो सकता है कि कमरा मिलने में असुविधा हो या कोई और परेशानी हो. ऐसे में बहुत कपड़े रखना मूर्खता ही है. आप एक भारी गरम जैकेट पहन लीजिए और दोचार एक्स्ट्रा स्वैटर रखिए. मगर क्वांटिटी से ज्यादा क्वालिटी भली. यानी, कई गरम कपड़ों के बजाय कुछ ही बेहतरीन और भरपूर गरमाहट देने वाले कपड़े ले जाएं. ऐसे कपड़े पैक करें जो कम्फर्टेबल हों. पैकिंग करते वक्त जगह और मौसम का ख़याल भी रखें.

  • ट्रैवल से जुड़े इंपोर्टेन्ट डाक्यूमैंट्स रखें साथ

आप के बैग में एक फोल्डर के लिए जगह होनी चाहिए जिस में आप के सभी महत्त्वपूर्ण ट्रैवल डाक्यूमैंट्स मौजूद हों. आप की विभिन्न प्रकार की आईडी, टिकेट्स और होटल की जानकारी वगैरह आप के पास जरूर होने चाहिए. साथ ही, क्रैडिट कार्ड वगैरह के लिए भी अलग जगह रखें.

  • जरूरी कौस्मेटिकस ही रखें

पैकिंग करते वक्त आप को टूथब्रश, टूथपेस्ट, सनस्क्रीन और एक डिओडोरेंट जैसी सब से जरूरी चीजें एक छोटे बैग में रख लेनी चाहिए. यदि आप के पास कुछ चीजें हैं जिन के बिना आप कहीं नहीं जा सकते हैं तो उन्हें साथ रखें, जैसे लिपस्टिक, पाउडर आदि. लेकिन अगर आप ज्यादा ब्यूटी प्रोडक्ट्स लेते हैं तो यह आप के लिए मैनेज करना कठिन होगा. ज्यादातर होटल आप को जरूरी कौस्मेटिक्स, जैसे लोशन, क्रीम, शैंपू और कंडीशनर उपलब्ध करवाते हैं इसलिए बेजरूरत की चीजें न रखें.

  • गैजेट्स को साथ रखना न भूलें

आज के डिजिटल एरा में गैजेट्स साथ में होने बहुत जरूरी हैं, इसलिए आप जहां भी जाएं उन्हें अपने साथ ले जाना सुनिश्चित करें. मोबाइल के बिना तो वैसे भी आज के समय में कोई दो मिनट नहीं रह सकता. तसवीरें लेने और यादगार वीडियो बनाने के लिए कैमरा रखना भी जरूरी है. साथ ही, मोबाइल चार्जर, रिस्ट वौच आदि भी रखना न भूलें.

मैडिकल क्लेम के लिए अब 24 घंटे एडमिट रहना जरूरी नहीं

देश में बीमा खासतौर से स्वास्थ्य बीमा को ले कर जागरूकता नहीं है. आंकड़े इस की गवाही भी देते हैं कि महज 27 फीसदी लोगों ने ही स्वास्थ्य बीमा ले रखा है. इरडा यानी भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण के एक आंकड़े के मुताबिक उस की और सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी लोग स्वास्थ्य बीमा लेने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं. अब इरडा की कोशिश यह है कि जैसे यूपीआई की सुविधा पूरे देश में फैल गई है वैसे ही बीमा कंपनियों को भी अपने प्लान कुछ इस तरह बनाने चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा लोग स्वास्थ्य बीमा लें.

लेकिन यह आसान काम नहीं है क्योंकि बीमा कंपनियों के बारे में लोगों के अनुभव बहुत अच्छे नहीं हैं. क्लेम का पैसा उतनी आसानी से मिलता नहीं है जितना कि पौलिसी लेते वक्त बताया जाता है. दरअसल, बीमा कंपनियों के नियम और शर्तें बहुत ज्यादा कड़े होते हैं. इन की अधिकतर औपचारिकताएं भी गैरजरूरी होती हैं. देश में 24 बीमा कंपनियां और 34 सामान्य बीमा कंपनियां अपनी सेवाएं दे रही हैं लेकिन उन की पहुंच बहुत सीमित है.

हालांकि सरकारों की विभिन्न योजनाओं के चलते लोग इस से जुड़ रहे हैं लेकिन उन के अनुभव बहुत अच्छे नहीं हैं. एनएफएचएस-5 की एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी स्वास्थ सेवाओं की खराब गुणवत्ता के चलते लोग बीमा सहूलियत का इस्तेमाल ही नहीं करते. वहीं प्राइवेट सैक्टर की अपनी अलग दिक्कतें हैं.

दूर हुई बड़ी दिक्कत

सब से अहम दिक्कत थी अस्पताल में 24 घंटे भरति रहने की शर्त, जिसे अब इरडा ने दूर करने की कोशिश की है. इरडा के नए नियम के मुताबिक अब अस्पताल में बिना 24 घंटे भरती हुए भी मैडिकल क्लेम लिया जा सकता है. इस सहूलियत के लिए बीमा कंपनियों को अलग से इंतजाम करने होंगे. यह सहूलियत या क्लेम डे केयर ट्रीटमैंट के तहत मिलेगा.

दरअसल, लोग स्वास्थ्य बीमा इसलिए भी नहीं लेते कि कई बीमारियों में अस्पताल में भरती होने की जरूरत नहीं पड़ती. ऐसे में उन्हें स्वास्थ्य बीमा अनुपयोगी लगता है जो गलत भी कहीं से नहीं. अब यह परेशानी एक हद तक दूर होती नजर आ रही है. इरडा के मुताबिक अब जिन खास बीमारियों के इलाज के लिए क्लेम लिया जा सकता है उन में कीमोथेरैपी, टांसिल्स का औपरेशन, मोतियाबिंद का औपरेशन, रेडियोथेरेपी, कोरोनरी एंजियोग्राफी, साइनस का औपरेशन, हीमोडायलिसिस, स्किन ट्रांसप्लान्टेशन और घुटनों का औपरेशन शामिल हैं.

लेकिन डे केयर ट्रीटमैंट में बीमा कंपनियां अब क्लेम तो देंगी पर उन में डाक्टर परामर्श शुल्क जांचें और टैस्ट शामिल नहीं होंगे. यह बहुत ज्यादा घाटे का सौदा महंगे होते इलाजखर्च को देखते नहीं है क्योंकि भले ही 2 से 12 घंटे अस्पताल में भरती रहना पड़े, इन बीमारियों में 25-30 हजार रुपए खर्च हो ही जाते हैं.

मनमानी और फैसला

इरडा का यह फैसला आम लोगों के लिए राहत और सहूलियत देने वाला है लेकिन इस से बीमा कंपनियों की मनमानी पर रोक लग पाएगी, इस में शक है. यह फैसला भी इरडा ने एक अदालती फैसले के बाद ही लिया है. गुजरात के वड़ोदरा के रमेशचंद्र जोशी ने साल 2017 में उपभोक्ता फोरम में शिकायत की थी कि उन्होंने अपनी पत्नी को साल 2016 में डर्मटोमायो साइटिस नाम की बीमारी के इलाज के लिए अहमदाबाद के लाइफ केयर इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंस एंड रिसर्च सैंटर में भरती कराया था. एक दिन में ही इलाज हो कर पत्नी की अस्पताल से छुट्टी हो गई जिस पर कोई 45 हजार रुपए का खर्च आया था.

इस के बाद उन्होंने जब अपनी बीमा कंपनी नेशनल इंश्योरैंस से क्लेम मांगा तो कंपनी ने क्लौज 3.15 का हवाला देते हुए उन का क्लेम खारिज कर दिया. इस पर रमेशचंद्र ने उपभोक्ता फोरम की शरण ली, तो फैसला उन के पक्ष में आया.

फोरम का यह तर्क अपनी जगह एकदम सटीक था कि आज के आधुनिक युग में इलाज के लिए तरीके और दवाएं विकसित हुई हैं. ऐसे में डाक्टर उसी के मुताबिक इलाज करते हैं. ऐसे में भले ही मरीज को कम समय के लिए अस्पताल में भरती कराया गया था, फिर भी वह मैडिकल इंश्योरैंस क्लेम का हकदार है.

इस फैसले के बाद इरडा ने जो नियम बनाया उस से आम लोगों को राहत तो मिलेगी लेकिन जरूरत बीमा कंपनियों की मनमानी पर लगाम कसने की भी है. पौलिसी देते वक्त तो कंपनियां और उस के एजेंट लच्छेदार बाते करते हैं लेकिन जब मरीज इलाज के लिए अस्पताल में भरती होता है तो पौलिसी में तरहतरह की खामियां निकाल कर और नियमकायदेकानून बता कर क्लेम रिजैक्ट कर दिए जाते हैं.

पीड़ित लोग जब अपने अनुभव दूसरों को सुनाते बताते हैं तो हर किसी को हैल्थ इंश्योरैंस बेकार की चीज लगने लगती है. बिरले ही लोग हैं जिन्हें क्लेम मिल पाता है वरना लोग मन मसोस कर उस घड़ी को कोसते नजर आते हैं जब उन्होंने पौलिसी ली थी. देशभर की अदालतों में हजारों मुकदमे बीमा कंपनियों के खिलाफ चल रहे हैं जो बताते हैं कि सरकारी एजेसिंयों की लाख कोशिशों के बाद भी लोग स्वास्थ्य बीमा करवाने में कतराते हैं.

50 पार शादी में हैरानी क्यों ?

56 साल की उम्र में अरबाज खान एक बार फिर दूल्हा बन गए हैं. आज 24 दिसंबर 2023 को उन्होंने मेकअप आर्टिस्ट शौरा खान के साथ निकाह किया. अरबाज पिछले कुछ समय से मेकअप आर्टिस्ट शौरा खान को डेट कर रहे थे. अरबाज और शौरा ने अचानक शादी का डिसीजन लिया और शादी के बंधन में बंध गए. दोनों की मुलाकात फिल्म पटना शुक्ला के दौरान हुई थी. दोनों ने अपने रिलेशनशिप को प्राइवेट रखा था.

शौरा से पहले अरबाज जौर्जिया एंड्रियानी को डेट कर रहे थे लेकिन दोनों का रिश्ता ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया. कुछ दिनों पहले जौर्जिया ने अरबाज खान संग ब्रेकअप का खुलासा किया था. जौर्जिया एंड्रियानी को डेट करने से पहले अरबाज खान ने मलाइका अरोड़ा से शादी रचाई थी. दोनों की लव मैरिज थी लेकिन कुछ सालों बाद दोनों के रिश्ते में खटास आ गई. फिर दोनों ने साल 2017 में एकदूसरे से तलाक ले लिया था. मलाइका और अरबाज का एक बेटा भी है जिसका नाम अरहान खान है.

जब अधिक उम्र में शादी की बात चल रही हो तो भला पूर्व विदेश राज्य मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर को कैसे भूल सकते हैं. उन्होंने 54 साल की उम्र में सुनंदा पुष्कर से शादी की थी. दोनों लंबे समय से काफी अच्छे दोस्त थे और उन्होंने इस दोस्ती को अगस्त 2010 में शादी में बदल दिया. थरूर और सुनंदा दोनों की यह तीसरी शादी थी लेकिन उनका यह साथ ज्यादा समय तक नहीं चल सका. 2014 में सुनंदा की मौत की खबर मीडिया में आई.

वैसे 50 साल से भी अधिक उम्र में शादी करने वालों की लिस्ट काफी लंबी है. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह 65 के पार जाने के बाद दूल्हा बने. उन्होंने 2015 में 67 साल की उम्र में पत्रकार रहीं अमृता राय के साथ सात फेरे लिए थे. दोनों की ही यह दूसरी शादी थी.

कांग्रेस के कद्दावर नेता और उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी शादी करने वाले शायद दुनिया के सब से बुजुर्ग नेता हैं. उन्होंने मई, 2014 में 88 साल की उम्र में 62 साल की उज्जवला शर्मा के साथ लखनऊ में शादी रचाई. नारायण दत्त उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड दो राज्यों के मुख्यमंत्री रहे हैं. हालांकि इस शादी के लिए उन के बेटे रोहित शेखर ने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी थी.

रोहित ने 2005 में अदालत में यह दावा किया था कि नारायण दत्त तिवारी उन के पिता हैं. नौबत डीएनए टेस्ट तक पहुंची जिस में रोहित की बात साबित भी हुई. अंतत: उन्हें रोहित को अपनाना पड़ा. भारतीय समाज में किसी महिला का सार्वजनिक रूप से किसी रिश्ते की बात और विवाहेतर संबंध से बच्चे की बात स्वीकार करना बेहद असामान्य घटना है. लेकिन उज्जवला शर्मा ने इसे खुल कर स्वीकार किया और बेटे रोहित शेखर के साथ अपना हक पाने के लिए संघर्ष भी किया. इसी संघर्ष का नतीजा रहा कि उम्र के आखिरी पड़ाव में एनडी तिवारी को उज्जवला शर्मा से शादी भी करनी पड़ी.

दुनिया के महान नेताओं की सूची में शामिल और दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ 27 सालों तक संघर्ष करने वाले नेल्सन मंडेला ने भी जीवन के उत्तरार्ध में शादी की. 1998 में उन्होंने अपने 80 वें जन्मदिन पर राजनेता और मानवाधिकार कार्यकर्ता ग्रेसीया मासेल के साथ शादी की. यह उन की तीसरी शादी थी.

क्रिकेट के बाद पाकिस्तान की राजनीति में भी अपनी खास पहचान बनाने वाले 65 साल के इमरान खान ने 2015 में बीबीसी की पत्रकार रही रेहम खान के साथ शादी रचाई थी. तब उनकी उम्र 62 साल की थी. वैसे यह शादी महज 9 -10 महीने ही चल सकी. दोनों ने आपसी सहमति से तलाक ले लिया. इमरान और रेहम दोनों की ही यह दूसरी शादी थी. इसके बाद इमरान खान ने पंजाब के राजनीतिक घराने से ताल्लुक रखने वाली बुशरा बीबी से 65 साल की उम्र में 2018 में तीसरी शादी की. बुशरा की भी ये दूसरी शादी थी. बुशरा और इमरान की मुलाकात 2015 में पहली बार हुई थी. इस के बाद से दोनों एकदूसरे को डेट करने लगे थे.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी उन चंद राजनेताओं में शुमार हैं जिन्होंने 50 के पार जाने के बाद शादी रचाई थी. उन्होंने अब तक तीन शादियां की हैं. इस से उन के पांच बच्चे हैं. हालांकि जिस वक्त उन्होंने तीसरी शादी की तब तक राजनीति में कदम नहीं रखा था. 2005 में उन्होंने पूर्व मौडल मैलानिया क्नास के साथ 2005 में 59 साल की उम्र में तीसरी शादी की थी. दोनों के बीच 24 साल का अंतर है.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुकुल वासनिक ने हाल ही में 60 साल की उम्र में रवीना खुराना से शादी की. 60 साल की उम्र में शादी कर के मुकुल सुर्खियों में आ गए थे.

दिग्गज एक्टर आशीष विद्यार्थी ने 25 मई 2023 को असम की रहने वाली रूपाली बरुआ संग दूसरी शादी की. दोनों की ये कोर्ट मैरिज थी. वहीं आशीष और उनकी पूर्व पत्नी राजोशी ने करीब 7 महीने पहले तलाक की अर्जी डाली थी. शादी के बाद उन्हें ये बोलकर ट्रोल किया गया कि 60 साल की उम्र में शादी कौन करता है.

तब आशीष विद्यार्थी ने एक वीडियो शेयर कर अपने मन की बात साझा की थी और कहा था, ‘ हम सब की अलगअलग जिंदगियां हैं, अलगअलग जरूरतें हैं, अलगअलग मोके हैं और हम सब जिंदगी खुशी से जीना चाहते हैं. मेरी जिंदगी में भी तकरीबन 22 साल पहले पीलू यानि राजोशी (पहली पत्नी) आई और हम दोनों बहुत अच्छी तरह पति-पत्नी की तरह चले. इस दौरान हमारा प्यारा बेटा अर्थ हुआ. वह बड़ा हुआ कालेज गया अब नौकरी कर रहा है. इस 22 साल की मजेदार जर्नी के दौरान हम लोगों ने कुछ ढाई साल पहले ऐसा पाया कि हम लोग भविष्य जैसा देखते हैं उस में कुछ फर्क आया है. जब हमें लगा कि हमारे बीच कुछ मतभेद है जिस से हम आगे खुश नहीं रह पाएंगे तब हम दोनों ने तय किया कि अब हम अलग-अलग रास्ते पर चलेंगे.’

अभिनेता मिलिंद सोमन अपनी निजी जिंदगी को ले कर काफी चर्चा में रहे हैं. चाहे वह बोल्ड फोटोशूट हो या फिर शादी. साल 2018 में मिलिंद ने 53 की उम्र में अंकिता कुंअर से दूसरी शादी थी. अंकिता कुंअर मिलिंद से 20 साल छोटी हैं.

बॉलीवुड में पौजिटिव रोल से लेकर विलेन तक के किरदार में नजर आ चुके जाने माने अभिनेता कबीर बेदी का नाम भी इसी लिस्ट में शामिल है. वह 70 की उम्र में दूल्हा बने थे. कबीर बेदी ने साल 2016 में मौडल परवीन दोसांझ से 70 की उम्र में शादी की थी और ये उन की तीसरी शादी है.

बौलीवुड के एक्शन हीरोज में एक संजय दत्त भी अपनी निजी जिंदगी को लेकर खूब चर्चा में रहे. उन्होंने साल 2008 में मान्यता दत्त से शादी की थी. उस समय अभिनेता की उम्र 50 साल से महज एक साल कम यानी 49 साल थी. यह संजय दत्त की तीसरी शादी है.

टीवी से लेकर फिल्मों तक में अपनी अदाकारी से अलग पहचान बनाने वाली दिग्गज अभिनेत्री सुहासिनी मुले की प्रेम कहानी भी बेहद ही दिलचस्प है. उन को सोशल मीडिया के जरिए भौतिकी वैज्ञानिक अतुल गुर्टू से प्यार हुआ था. वह पहले से शादीशुदा थे लेकिन उन की पत्नी का निधन हो चुका था. इस के बाद साल 2011 में सुहासिनी और अतुल गुर्टू शादी के बंधन में बंध गए. उस समय सुहासिनी मुले की उम्र 60 साल थी.

आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम एनटी रामाराव ने 20 साल की उम्र में 1943 में बसावा टाकाराम से पहली शादी की थी. साल 1985 में उनकी पत्नी का निधन हो गया था. अपनी पत्नी की मौत के दौरान वे राज्य के सीएम पद पर काबिज थे. बाद में राजनीतिक जीवन के दौरान ही उन्होंने 1993 में 70 साल की उम्र में तेलुगु लेखिका लक्ष्मी पार्वती से शादी कर ली. लेकिन एनटीआर के परिवार ने उन की दूसरी शादी को कभी भी स्वीकार नहीं किया.

भोजपुरी सिनेमा के अभिनेता सिंगर और राजनेता मनोज तिवारी ने पहली पत्नी से तलाक होने के बाद साल 2020 में सुरभि तिवारी से दूसरी शादी की. उस समय अभिनेता की उम्र 50 साल थी.

सच है कि जिंदगी वह है जिस में हम खुशी से रह सकें. हमें किसी और के लिए नहीं बल्कि अपने लिए जीना और खुश रहना होता है. अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के बाद अगर हम खुश रहने के लिए दूसरी शादी करना चाहें तो इस में कुछ भी गलत नहीं है. वैसे भी बात उम्र की हो ही क्यों? हम किसी भी उम्र में खुश रहने का सपना देख सकते हैं और उस के लिए कदम उठा सकते हैं.

अधिक उम्र में दूसरी शादी करना अकेले रहने से बहुत अच्छा है. अगर इंसान तलाकशुदा है तो भी उसे खुश रहने और अपना परिवार बसाने का हक है भले ही उसकी उम्र कितनी भी हो. इस उम्र में भी इंसान जिम्मेदारी लेता है तो उसे निभाता भी है. गलत शादी में रह कर अपने जीवन में हमेशा निराश और तनावग्रस्त रहने की बजाय नई जिंदगी शुरू करना ज्यादा बेहतर है. इस में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए.

कितनी कटौती करते हैं सोना बेचते वक्त सुनार ?

भारतीय स्त्रियों का सोने के प्रति सम्मोहन जबरदस्त है. सोने के गहने पहन कर वे जितनी खुश होती हैं, किसी अन्य चीज से नहीं होतीं. आप को जान कर आश्चर्य होगा कि भारतीय महिलाओं के पास करीब 21,000 टन सोना है जिस की कीमत एक ट्रिलियन डौलर यानी करीब 100 लाख करोड़ रुपए के आसपास है. इतना सोना दुनिया के 5 सब से बड़े बैंकों के पास भी नहीं है. मगर भारतीय स्त्री सोने को अपनी आर्थिक संपत्ति के रूप में देखती है और जरूरत पड़ने पर, परिवार पर कोई आपदा आने पर, बेटी की शादी पर या कोर्टकचहरी के चक्कर में फंसने पर वह अपनी इस संपत्ति को बेच कर या गिरवी रख कर उस कठिन समय को पार करती है. पुराने समय से यह रिवाज चला आ रहा है कि बहनबेटियों को शादी में सोने के आभूषण भेंट किए जाते हैं. इस के पीछे मुख्य कारण यही है कि बहनबेटियों पर कोई संकट या विपत्ति का पहाड़ टूटे तो उस समय आभूषण काम आ सकें.

कई बार जब हम बाजार में अपना सोना बेचने जाते हैं तो हमें पता नहीं होता कि सुनार उस के दाम कैसे लगाएगा. हम सोचते हैं कि हम ने अगर 5 साल पहले 50 हजार रुपए के कंगन खरीदे थे तो 5 साल में सोने के जो दाम बढ़े हैं उस के अनुसार हमें अब कम से कम 70 या 80 हजार रुपए मिल जाएंगे. लेकिन जब सुनार हमारे कंगन के दाम 50 हजार या उस से भी कम बताता है तो हम आश्चर्य में पड़ जाते हैं और उस सुनार को ठग समझ लेते हैं. जबकि वह सोने का कैरेट और मिलावट को अलग कर के बचा हुआ दाम आप को बताता है.

दरअसल सोने के रूप में जो संपत्ति आप के पास है उस की असल कीमत क्या है, उस की शुद्धता कितनी है, उस में मिलावट कितनी है, खरीदते वक्त उस का मेकिंग चार्ज कितना था, इन तमाम बातों की जानकारी अगर आप को होगी तभी आप अपना सोना ठीक कीमत पर सुनार को बेच सकते हैं, वरना गहनों के बाजार में ठग बहुत बैठे हैं.

सोना कई प्रकार के कैरेट में होता है. पहला 24 कैरेट- जो सोने का सब से शुद्ध रूप है और बहुत मुलायम होता है, इसलिए इस के गहने नहीं बनते हैं. दूसरा 22 कैरेट- जिस में अन्य धातु की थोड़ी मिलावट की जाती है ताकि वह थोड़ा सख्त हो जाए और उस को गहनों के रूप में ढाला जा सके. तीसरा 20 कैरेट- इस में भी अन्य धातु की मिलावट होती है. चौथा 18 कैरेट- इस में अन्य धातुओं की काफी ज्यादा मिलावट होती है और यह ज्यादा सख्त होता है. इस के अलावा 14 कैरेट के सोने से भी आभूषण बनते हैं.

जब आप अपना सोना बाजार में बेचने जाते हैं तो सब से पहले तो यह जान लेना जरूरी है कि क्या सच में आप का सोने का गहना 22 कैरेट का है या नहीं. कई बार लोकल सुनार झठ बोल कर आप को 18 कैरेट का सोना 22 कैरेट के हिसाब से बेच देते हैं, फिर वही सुनार आप से सोना वापस लेते समय कटौती काट लेता है, क्योंकि उसे पता है कि सोना 18 कैरेट का ही है.

इसलिए सोना न तो छोटे सुनार से खरीदें और न उस को बेचें. सोना हमेशा हालमार्क ही लें या ब्रैंडेड दुकानों जैसे तनिष्क, कल्याण या पीसीजे आउटलेट से खरीदें. यहां आप के सोने की शुद्धता की गारंटी है और ये आप को पक्का बिल भी देते हैं जिस पर सोने की शुद्धता और धातु की मिलावट, मेकिंग चार्ज आदि की पूरी जानकारी होती है. तनिष्क 18 कैरेट सोने का आभूषण बनाता है और कल्याण ज्वैलर्स 18 और 22 कैरेट के आभूषण बनाता है. ये दोनों ही अच्छे प्रतिष्ठान हैं. यहां आप को पक्की रसीद मिलेगी और सही आभूषण मिलेगा, जिस पर 916 लिखा होगा और हालमार्क का निशान लगा होगा. गहनों पर विक्रेता का भी नाम अंकित होगा. जबकि पड़ोस के सुनार आप से मीठीमीठी बात कर के गलत आभूषण दे देंगे और वे पक्की रसीद भी नहीं देंगे. आप वहां पर ठग लिए जाएंगे.

यदि आप अपने खरीदे हुए सोने का कैरेट चैक करवाना चाहते हैं तो बड़ेबड़े  आउटलेट्स में आप को कैरेटो मीटर मिल जाएगा जहां आप यह जांच सकते हैं कि आप का सोना कितने कैरेट का है.

सुनार जो आभूषण बनाते हैं वे अलगअलग कैरेट के हालमार्क आभूषण होते हैं. 24 कैरेट 100 फीसदी होता है जिस का आभूषण नहीं बनाया जाता. आभूषण 22 कैरेट से शुरू हो कर 20, 18 या 14 कैरेट का हो सकता है. आभूषण बनाने में 10 फीसदी से ले कर 30 फीसदी तक मेकिंग चार्ज जुड़ता है.

सोने के आभूषण में तांबा कितने प्रतिशत मिलाना है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि सोने की शुद्धता कितनी रखनी है. जैसे, अगर 22 कैरेट के आभूषण बनाने हैं तो उस में 91.60 फीसदी सोना और बाकी 8.40 फीसदी में तांबा व चांदी का मिश्रण, जिसे अलोय कहते हैं, डाला जाता है. तांबा गहनों में मजबूती के लिए डाला जाता है पर निर्धारित मात्रा में, क्योंकि ज्यादा तांबा आभूषण के रंग को बदल देता है और उसे ज्यादा कठोर कर सकता है.

सुनार कैरेट के हिसाब से सोने का भाव लगा कर मेकिंग चार्ज लगाते हैं. अगर आभूषण बनाने में ज्यादा खर्चा आता है तो कुछ हिस्सा मेकिंग के अतिरिक्त पौलिश के रूप में चार्ज किया जाता है ताकि ग्राहक को मेकिंग ज्यादा न लगे.

भाव कैसे तय करते हैं ?

मान लीजिए आज 24 कैरेट सोने के एक तोले यानी 10 ग्राम का भाव 40,000 रुपए है. आप को आभूषण 22 कैरेट का लेना है तो पहले 22 कैरेट का भाव निकाला जाता है- 100/ 24*22

40,000/24 = 1,666.66

1,666.66 × 22 = 36,666

अब 22 कैरेट का भाव हुआ 36,666 रुपए प्रति 10 ग्राम

36,666 + मेकिंग

मेकिंग चार्ज अलगअलग डिजाइन के हिसाब से अलगअलग हो सकता है

36,666 + 10 फीसदी मेकिंग

36,666+ 3,666 = 40,332

40,332 + 3 फीसदी जीएसटी

40,332+1,210 = 41,542

इस के अलावा कुछ डिजाइनों में मेकिंग चार्ज ज्यादा हो सकता है और पौलिश चार्ज भी लगाया जा सकता है. सोने की शुद्धता मापने का सब से अहम पैमाना कैरेट होता है. कैरेट जितना ज्यादा होगा, सोना उतना ही खरा होगा. ज्यादा कैरेट मतलब ज्यादा दाम. इसी तरह से कैरेट जितना कम होगा, सोना उतना ही सस्ता होगा.

पुरानी गोल्ड ज्वैलरी को एक्सचेंज या अपसाइकिल करते समय की जरूरी बातें

भारत में लोग अपनी संस्कृति और विरासत को संजो कर रखते हैं. हमारी मां और दादी हमें जो गहने देती हैं भले वे आज के स्टाइल के न हों फिर भी हम इसे अपने जीवन का हिस्सा बना लेते हैं, एक निशानी के तौर पर.

इस के उलट, मांबाप जब अपने बच्चों को गहने देते हैं तो अपने पुराने गहनों को अपग्रेड या ‘अपसाइकिल’ करना चाहते हैं लेकिन उस समय दिमाग में कई तरह के सवाल चल रहे होते हैं कि कहीं हमारे असल गहनों में कुछ मिलावट कर दी तो?

ऐसे में गहनों के एक्सचेंज या अपसाइकिल कराने जा रहे हैं तो निम्न बातों का ध्यान रखना जरूरी है-

  • आप को बीआईएस से मान्यता प्राप्त जौहरी के पास जाना होगा.
  • अपने सोने के गहनों को पहले हालमार्क करवाना हमेशा अच्छा होता है.
  • कुछ जौहरी अपने स्टोर परिसर में ही इन सेवाओं की पेशकश करते हैं लेकिन अपनी ज्वैलरी का टैस्ट करवाने के लिए बीआईएस लाइसैंस प्राप्त एसेइंग एंड हालमार्क सैंटर (एएचसी) पर जाना बेहतर होता है, क्योंकि जौहरी सोने के गलत वजन और कैरेट का दावा कर के आप के आभूषणों की कीमत कम बता सकता है या हो सकता है कि उस के पास सोने की शुद्धता और उत्कृष्टता को परखने के लिए सही उपकरण न हों.
  • एएचसी में आभूषण टैस्ट कराते हुए पहले 4 गहनों पर 200 रुपए का शुल्क लगता है, उस के बाद प्रति इकाई 45 रुपए का शुल्क.
  • सोने की शुद्धता के सुबूत के बिना आप इसे साबित नहीं कर सकते हैं. अपने सोने के आभूषणों को एक्सचेंज या अपसाइकिल कराते समय बिल का साथ होना हमेशा अच्छा रहता है. हालांकि यदि आप के पास मूल रसीद नहीं है तो हालमार्क आप के काम आएगा.
  • एक्सचेंज या अपसाइकिल करना चाहते हैं तो उस से एक सप्ताह पहले सोने की कीमतों का आकलन करें. इस तरह आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि जब सोने की दर अपने चरम पर हो तो आप ज्वैलरी स्टोर पर जाएं और अपने एक्सचेंज से अधिकतम राशि प्राप्त करें.
  • अगर आप अपने अपसाइकिल या कस्टममेड ज्वैलरी पीस को हालमार्क करवाना चाहते हैं तो निकटतम एएचसी पर हालमार्क करवाएं.

नागरिक स्वतंत्रता का हृस

3 विधानसभाओं को, जहां पिछली बार कांग्रेस जीती थी, बुरी तरह हार जाना साबित करता है कि फिलहाल भारतीय जनता पार्टी का एकछत्र राज चलता रहेगा. कांग्रेस राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के शोरशराबे, भारत जोड़ो यात्रा, अडानी को धनवान बनाने के आरोपों के बावजूद अभी तक जनता का भरोसा जीत नहीं पाई है. फिर भी कांग्रेस अभी बची है. यह तेलंगाना में साबित हो गया जहां उस ने भारतीय राष्ट्रीय समिति को हरा दिया.

भारतीय जनता पार्टी के राज करने के ढंग से बहुत से लोग खुश नहीं हैं. हिंदूमुसलिम विवाद, धर्म की खुलेआम बिक्री, मीडिया और स्वतंत्र संस्थाओं का नियंत्रण चाहे बुद्धिजीवियों में से कुछ को पसंद न आए, आम जनता को भगवा रंग का आकर्षण अभी भी बुरा नहीं लगता है और वह फीके पड़ चुके कांग्रेसी नारों से ऊबने लगी है.

नरेंद्र मोदी के राज में भारत में कुछ खास गड़बड़ हो रही हो, ऐसा भी नहीं है. देश खासे ढंग से चल रहा है और दूसरे देशों की तरह तरक्की कर रहा है और उन्हीं की तरह यहां अमीरों के पास पैसा जमा हो रहा है, गरीबों की हालत सुधर नहीं रही है. गरीब वोटर ज्यादा हैं पर वे समझ नहीं पा रहे कि सरकार की ऐसी कौन सी नीतियां हैं जिन से भेदभाव पैदा हो रहा है और उन में से किन को कांग्रेस ठीक कर सकती है.

जहांजहां तुलसीदास के रामचरितमानस का राज है वहां भारतीय जनता पार्टी के पांव मजबूत हैं. जहां रामचरितमानस को कोई नहीं जानता वहां भारतीय जनता पार्टी केवल तोड़जोड़ कर सरकार बना सकती है. रामचरितमानस के बल पर ही 1947 के बाद कांग्रेस ने उत्तरी राज्यों में 40-50 साल राज किया था पर अब इस की डोर भारतीय जनता पार्टी ने ज्यादा जोर से पकड़ ली है और उस ने इसे ज्यादा जोर से भुनाने की कला सीख ली है.

भारतीय जनता पार्टी की धार्मिक राजशाही में देश को अभी कितने ही और साल रहना पड़ेगा वैसे भी, देश से ही नहीं, दुनियाभर से तार्किक सोच, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और नागरिक स्वतंत्राओं की इच्छा गायब हो रही है. दुनिया के कितने ही देश टैक्नोलौजी के कमाल इंटरनैट से मानसिक बहकावे में आने व उस से पैदा हो रही गुलामी के फंदे में फंस रहे हैं. प्रिंटिंग प्रैस ने जो आजादी 500 साल पहले आम लोगों को मुहैया कराई थी, वह आज इंटरनैट की वजह से धूमिल होने लगी है.

अपनी विस्तृत सोच व विस्तृत दृष्टि को मोबाइल की छोटी स्क्रीन में लोगों ने खुद ही कैद कर लिया है और अमीर लोग व चतुर शासक इस का जम कर लाभ उठा रहे हैं.

नरेंद्र मोदी की पार्टी चाहे 2,000 साल पुराने विचारों को मुख्य ध्येय मानती हो, उस का वाहन अब कोई चूहा या भैंसा नहीं रह गया है, उस का वाहन 5जी, 6जी, 7जी तरंगें हैं, रौकेट हैं, कंप्यूटर एनालिसिस है, आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस है. दुनियाभर के अमीर और कट्टरपंथी राजनेता नई तकनीक का इस्तेमाल संकीर्णता फैलाने में जम कर कर रहे हैं.

सेनाओं ने दोनों विश्वयुद्धों में जम कर आधुनिक साइंस का इस्तेमाल किया और आज भी हर वैज्ञानिक उपलब्धि को राजनीतिबाज तुरंत लपक लेते हैं. नरेंद्र मोदी की पार्टी और सरकार इस में दूसरी पार्टियों से कहीं आगे हैं.

राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की हार का दंश कांग्रेस को ज्यादा सताएगा हालांकि उसे तेलंगाना का लौलीपौप फिलहाल मिला हुआ है- जब तक कि वहां भाजपा बीआरएस के साथ मिल कर कांग्रेस को तोड़ कर अपनी सरकार नहीं बना लेती.

परिवार का इतिहास जड़ों को मजबूत करता है

एक औसत व्यक्ति के लिए इतिहास वह होता है जो किताबों में लिखा होता है, जिस में राजाओं की हारजीत की बड़ीबड़ी गाथाएं होती हैं. इतिहासकार बड़ी कठिनाई से कतराकतरा जोड़ कर इजिप्ट के फैरो के बारे में या चीन के सम्राटों या अपने देश के अशोक, अकबर, गांधी जैसे व्यक्तियों के बारे में तथ्य जुटा कर कथा बनाते हैं जो हमें अतीत की याद दिलाएं. यह एक समाज के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि इन्हीं यादों के बल पर वर्तमान शासक अपने राज को सुखद, दुखद या क्रूर बना पाते हैं और हर हाल में उन्हें जनता का समर्थन मिलता है.

यह खेद है कि हमारे यहां पारिवारिक इतिहास लिखने की परंपरा नहीं है. उन मूल भारतीयों से मिलो जो दक्षिण अफ्रीका, सूरीनाम, फिजी या मौरिशस में रह रहे होते हैं जो पहले यह जानना चाहते हैं कि उन के पूर्वज कहां से, कब भारत छोड़ कर वहां आए थे.

पारिवारिक इतिहास की कीमत तब समझ आती है जब आप उस से दूर रह रहे हों. जो पार्टीशन में पाकिस्तान के इलाकों से आए उन वृद्धों की आंखें अपने पूर्वजों के गांवों के बारे में याद करने से नरम हो जाती हैं. वे गर्व से अपने परिवार के बारे में बताना चाहते हैं पर हमारे यहां यह बूढ़ों का रोना माना जाने लगा है जो बिखरते परिवारों का एक कारण है.

आज 10-15 साल का किशोर अपने परिवार के अनुशासन की अवहेलना करने में नहीं हिचकता क्योंकि उसे नहीं मालूम कि उस के पिता या मां की सफलता उस परिवार की देन है जिस ने उन दोनों को सुरक्षा का घेरा दिया.

पारिवारिक इतिहास में यह जरूरी नहीं कि बहुतकुछ बताया जाए. यह भी जरूरी नहीं कि सबकुछ अच्छा ही हुआ होगा. हर पारिवार में पीढि़यों पहले जुआरी, नशेड़ी हो सकते हैं पर यदि पारिवारिक इतिहास बताते हुए उन के दुर्गुणों का जिक्र किया जाए तो नुकसान उन के बच्चों और बच्चों के बच्चों को होगा. ऐसे में यह आज के किशोर या युवा तक कैसे पहुंचेगा?

भारत के शहरों में हर दूसरा ही नहीं, 10 में से 8 शहर, गांव, कसबे से आए हैं. उस पारिवारिक इतिहास में एक गरीब किशोर की भी रुचि पैदा की जा सकती है और अमीर किशोर या युवा की भी.

अमेरिकी लेखक जौन जे चैपमैन ने 1900 के आसपास लिखा था, ‘‘मानव की सब से गहरी इच्छा अपनी छाप छोड़ने की होती है, चाहे वह दीवारों पर भित्तिचित्रों में दिखे या डायरियों में. सभ्यताएं इतिहास की देन हैं.’’

आज भी आप किसी पेड़ के पास चले जाएं. किसी ऐतिहासिक स्थल पर चले जाएं, लोगों के नाम खुदे मिलेंगे. क्यों? क्योंकि वे सब को बताना चाहते हैं कि उन्होंने यहां तक पहुंचने का लक्ष्य पूरा किया. ‘थ्री इडियट’ में वे इंजीनियरिंग कालेज की टंकी में अपने नाम लिख कर आते हैं और 10-12 साल बाद वहां फिर पहुंचते हैं कि देखें, कौन कितना सफल है. यह तभी संभव है न, जब इतिहास के प्रति रुचि थी.

घर के इतिहास में आज के किशोर और युवा की रुचि न हो, यह नहीं हो सकता. परिवार चाहे टूटाबिखरा हो, गरीब हो या अमीर हो, छोटा या बड़ा हो, सैकड़ों कथाओं और किस्सों से भरा होता है. पिछली पीढ़ी का कार्य है कि वक्त पड़ने पर वह नई पीढ़ी को इतिहास बताए. मांबाप कब, कैसे, कहां मिले, किशोर और युवा ने कौन से अस्पताल में जन्म लिया से ले कर दादापरदादा कौन थे, क्या थे? यह अमूल्य जानकारी है, संपत्ति है जो परिवार के बांधने में सीमेंट का काम करती है.

जवाहरलाल नेहरू ने इंदिरा गांधी को देश का इतिहास बतातेबताते ‘डिस्कवरी औफ इंडिया’ लिख डाली जो आज भी एक ऐतिहासिक दस्तावेज है. भारतीय जनता पार्टी पौराणिक इतिहास को भुना कर सत्ता में आई पर उस ने संघर्ष की गाथाएं ज्यादा सुनाईं, अत्याचारों, लूट की बात सुनाई जिस का नतीजा है कि एकदो पीढि़यां तालिबानी जैसी हिंसक बनती नजर आ रही हैं.

परिवार के किस्से कब सुनाए जाएं. यह समय ढूंढ़ना चाहिए. यह साफ है कि आप के परिवार की कहानी मोबाइल में नहीं है, यूट्यूब पर नहीं है. इंस्टाग्राम पर नहीं है. ऐसे में चुनौती और बड़ी है. किशोरों और युवाओं में परिवार का इतिहास जानने में अरुचि पैदा हो गई है. इस का ही परिणाम है कि मांबाप भी उन से अपने संबंध ठीक नहीं रख पाते. किशोर युवा मांबाप से भी और बाहर वालों से भी सही संबंध नहीं बना पाते. पारिवारिक इतिहास की भूलें उन्हें याद दिलाती रहेंगी कि कौन सी गलतियां नहीं करनी, पारिवारिक इतिहास की उपलब्धियां उन्हें एहसास दिलाएंगी कि उन के पुरखे क्या पा सके थे.

युवाओं और किशारों का विकास सही हो, इसलिए पुराने फोटो, पत्र, सिक्के, बैज, मैडल हमेशा संभाल कर रखें. पीढ़ी दर पीढ़ी संभालें और हर पीढ़ी को बताएं कि ये बेमतलब की पुरातन चीजें नहीं हैं. ये उन नींव की ईंटों के नमूने हैं जिन पर वर्तमान स्थिर है. पारिवारिक इतिहास को दोहराएंगे तो बहुत सी बातें याद आएंगी जो मां, नानी, दादी, परदादी ने बनाई थीं. ये सब एक काल को फिर जीवित कर सामने खड़ी कर सकती हैं जो नैटफ्लिक्स की किसी ठांठां करने वाली फिल्म से ज्यादा रोचक होगी. अपने पर गर्व करने का हक हरेक को है और इस हक से ही आज की सफलता जुड़ी है.

पारिवारिक इतिहास जानने पर आप को पता चलता है कि किन मुसीबतों से मुगलों का आक्रमण सहा या गदर में बचे. परिवार में किस ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया, कौन अंगरेजों की गोलियों से मरा. यह इतिहास बताता है कि पारिवार ने कब अच्छे दिन देखे और कब बुरे दिन और आज आप कैसे अपनी चुनौतियों से जूझ सकते हैं. आप आज जो भी हैं वह आप के पुरखों की देन है. आप की शक्ल, कद, विशेषताएं, कमजोरियां, बीमारियां आदि सब के सूत्र आप को अपने पारिवारिक इतिहास में मिल सकते हैं और आप खुद को संभाल सकते हैं. जिनोलौजी, पारिवारिक इतिहास की विधा, की एक विशेषज्ञा ताहितिया मैक्वेल का कहना है कि कुछ लोग देशदेश में अपने पुरखों को ढूंढ़ने लगते हैं.

इस लेखक को साउथ अफ्रीका के केपटाउन में एक डोरमैन दिखा जो दक्षिणी भारतीय लगा. उस ने तपाक से पूछा, ‘इंडियन?’ हां कहने के बाद उस ने अपने को भी भारतीय मूल का बताया और वह जानना चाहता था कि क्या कोई तरीका है कि वह भारत के मूल गांव तक पहुंच सके. पर उस के पुरखों ने कोई इतिहास नहीं लिखा था, कुछ सुनाया नहीं था. वे अनपढ़ थे और 200 साल पहले अफ्रीका लाए गए थे. उस का परिवार कई देशों से गुजर चुका था पर अभी तक उस का चेहरामोहरा एक तमिलियन जैसा था. उसे कसक थी कि काश, कोई उस के मूल वतन के बारे में बता दे. न जाने कितने भारतीय गैस्टों से उस ने यह पूछा होगा.

आप के मांबाप कौनकौन से शहरों के रहने वाले हैं, दादानाना कहां रहते थे, किस तरह रहते थे, ये बातें पता करना देश के इतिहास को पढ़ने जैसा जरूरी है. जैसे आप देश से जुड़ते हैं जब आप एक कौमन इतिहास पढ़ते हैं, उसी तरह आप का परिवार जुड़ता है. दुनियाभर में बहुत से देश कोशिश करते हैं कि उन के मनमुताबिक इतिहास को लिखा जाए और पढ़ाया जाए. यह क्यों होता है, इसलिए कि सरकारें जानती हैं कि जनता को जोड़े रखने के लिए सही या गलत, झठा या सच्चा, पूरा या अधूरा इतिहास हर नागरिक को मालूम होना चाहिए.

हर युवा के लिए पारिवारिक इतिहास जरूरी है क्योंकि तभी औसत घर खुश रह सकता है. परिवार के बारे में मालूम हो कि वे साधारण घरों से थे पर यदि इस पीढ़ी ने उन्नति कर ली तो एक सफलता का भाव पैदा होता है. अगर आज कोई सक्षम नहीं रह गया तो वह अपने पुरखों के इतिहास 4 जनों के बीच बता सकता है कि उस की जड़ें मजबूत हैं. हो सकता है उन मजबूत जड़ों से उभरी कोई शाख फिर नया कारनामा कर दे.

हमारे तीर्थ स्थानों में पारिवारिक इतिहास का झठा वर्णन कर के भक्तों को खूब लूटा जाता है. जजमानों को उन पीढि़यों का झठा ज्ञान दे कर उन के मन में एक नया उत्साह पैदा कर दिया जाता है. ‘अच्छा तो हमारे परदादा यहां आए थे और यह उन का नाम था.’ यह जानने के उत्सुक मोटा दान दे देते हैं हालांकि यह बड़ा रैकेट है जिस की पोल खोलने से लोग डरते हैं.

अमेरिका, यूरोप में कंपनियां खुल गई हैं जो परिवार के इतिहास को चर्चों के बर्थ व डैथ रजिस्टरों से मिलान कर के बताती हैं. सभी चर्च अपने रिकौर्डों को कंप्यूटर पर डलवा रहे हैं क्योंकि पारिवारिक इतिहास के बारे में जानने का व्यवसाय भी चमक रहा है.

पारिवारिक इतिहास को बताने का तरीका आना चाहिए. जब भी पर्यटन का कोई कार्यक्रम बनाएं, उस शहर के आसपास के पर्यटन स्थल को आइटनरी में जोड़ लें जिस के आसपास आप का पुश्तैनी गांवकसबा है. वहां तक नए बच्चों को ले जाएं. आज चाहे छोटे बच्चे इस ‘सैर’ को सजा मानते हों, 15-20 साल बाद वे इसे दोहराएंगे.

राजस्थान के कई गांव और कसबे हैं जिन में बीसियों मकानों पर ताले लगे हैं क्योंकि उन के वर्तमान मालिक बड़े शहरों में चले गए हैं, जिन के पास पैसे हैं वे इन पुराने मकानों को नहीं बेचना चाहते. उलटे, वे उन की मरम्मत कराते रहते हैं ताकि उन्हें अपनी जड़ें मालूम रहें. कई तो अपना वर्तमान पता भी लिख देते हैं ताकि कोई भी भूलाबिसरा रिश्तेदार खोजते हुए पहुंच जाए. एक कौमन जगह से आए लोगों से मिलना बहुत ही सुखद होता है. न्यूयौर्क में  आज भी जगहजगह अलगअलग इलाकों से आए लोगों के क्लब हैं जहां साल दो साल में सब मिलने की कोशिश करते हैं.

नींद लें, न कम न ज्यादा

‘जो सोवत है सो खोवत है जो जागत है सो पावत है.’

भारतीयों को उपरोक्त सीख विरासत में मिली है. लेकिन लगता है अब इस सीख की जरूरत नहीं है. न ही अब रात में जगने के लिए किसी को आह्वान किए जाने की दरकार है. चूंकि भूमंडलीकरण ने पूरी दुनिया को एक गांव में बदल दिया है, इसलिए अब इस गांव का सूरज कभी नहीं डूबता. जब गांव के एक कोने में रात होती है तो जाहिर है दूसरे कोने में दिन होता है. मगर चूंकि गांव एक ही हो गया है तो यह कहना सैद्धांतिक रूप से जरा मुश्किल हो गया है कि कब सोया जाए और कब जगा जाए? इस दुविधा ने वाकई नींद के सामने बड़ी मुश्किलें खड़ी कर दी हैं.

यह अकारण नहीं है कि चाहे आधुनिक विकास हो, जीवनशैली हो या भूमंडलीकरण, सब ने हमारी नींद पर हमला किया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमानित अध्ययन के मुताबिक,

70 के दशक से अगर तुलना करें तो आज की दुनिया की नींद औसतन 4.5 घंटा प्रति 24 घंटे कम हो गई है. वहीं  शहरी भारत में भी 4 से 5 घंटे तक प्रति 24 घंटे कम हो गई है. ग्रामीण भारत में भी 2 से 3 घंटे की नींद पर खलल पड़ा है. इस के कई कारण हैं पर सब से बड़ा कारण जीवन जीने का ढंग और कामकाज की बदलती जीवनशैली है.

आधुनिक अर्थव्यवस्था ने ज्यादातर लोगों के कामकाज टाइमटेबल को बदल दिया है. नाइट ड्यूटी करना अब महज उत्पादन बढ़ाने का जरियाभर नहीं है बल्कि भूमंडलीकरण की जरूरत भी बन गया है.

जाहिर है इस के कारण ऐसे लोगों की तादाद निरंतर बढ़ती जा रही है जिन को पर्याप्त नींद नहीं मिल पा रही है. हाल ही में किए गए एक सर्वे के अनुसार, महानगरों में लगभग एकतिहाई भारतीय पर्याप्त नींद से वंचित हैं. इस कारण वे चिड़चिड़े हो रहे हैं, कई किस्म की बीमारियों से ग्रस्त हो रहे

हैं और बिना किसी बीमारी के भी स्वास्थ्य गिर रहा है. लेकिन इस का एक दूसरा पहलू भी है कि नींद की इस कमी ने लोगों की आर्थिक सेहत में इजाफा किया है.

हालांकि, नींद न आना कोई नई बात नहीं है. मतलब यह कि जब यह भूमंडलीकरण नहीं था, देररात तक होने वाली पार्टियों का चलन नहीं था, दिन जैसा माहौल पैदा करने वाली झकास रोशनी नहीं थी, तब भी कई लोग रातरातभर करवटें बदलते थे. लेकिन तब ऐसा व्यक्तिगत कारणों से था. तब नींद न आना बड़े पैमाने पर तमाम लोगों का रोग नहीं था, लेकिन आज ऐसा है. आज के युग में नींद न आना अलग बात है और तमाम वजहों से नींद में कमी हो जाना व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सार्वजनिक और न चाहने पर भी प्रभावित करने वाली वजह है. इस स्थिति में इसे एक महामारी की शक्ल में भी ढाल दिया गया है.

किशोरों व युवाओं के साथसाथ बच्चों तक को आज नींद न आने की या नींद में कमी होने की समस्या प्रभावित कर रही है. नींद न आने की वजहों में आज की जीवनशैली से पैदा हुए तनाव से ले कर इस के फायदे तक इस के कारण हैं. अति सक्रियता और हर चीज जानने के दबाव ने गैरजरूरी तनाव पैदा किया है. अति सक्रिय दिमाग व हाइपर टैक्नोलौजी वास्तव में अपर्याप्त नींद की बड़ी वजहें हैं.

पिछले एक दशक में एकतिहाई कामकाजी भारतीय पर्याप्त नींद से वंचित हुए हैं जिस कारण उन्हें स्वास्थ्य संबंधी तमाम समस्याएं पैदा हो गई हैं.

एक सर्वे के मुताबिक, 93 प्रतिशत भारतीय रात में 8 घंटे से भी कम की नींद ले पाते हैं. सवाल है क्या इन्हें इस कम नींद का खमियाजा भुगतना पड़ता है? जवाब है हां, ऐसा है. 58 प्रतिशत ऐसे लोग अपने कामकाज के दौरान 100 फीसदी परफौर्मेंस नहीं दे पाते. इसी के चलते 38 प्रतिशत लोग अपने कार्यस्थल पर सोते पकड़े गए हैं.

पर्याप्त नींद न मिल पाने से स्वास्थ्य संबंधी अनेक समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं. स्लीप  डिसऔर्डर्स के 80 से अधिक प्रकार होते हैं. साथ ही, इस के कारण हार्ट अटैक, डिप्रैशन, हाई ब्लडप्रैशर, याददाश्त में कमी जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं. मोटापे को रोग समझने में दुनिया को तकरीबन 25 वर्ष लगे थे, अगर यही भूल नींद के सिलसिले में हुई तो निश्चित रूप से यह एक महामारी का रूप ले लेगी क्योंकि नींद में कमी एक खमोश कातिल की तरह है.

यह विडंबना ही है कि एक तरफ जहां नींद की कमी ने इसे बीमारी बना कर खरबों डौलर का खर्च पैदा कर दिया है वहीं इस अपर्याप्त नींद की समस्या ने अरबों डौलर का जबरदस्त नींदबहाली का कारोबार पैदा कर दिया है.

नींद को ले कर लोगों में सजगता, डर और इस के साथ जीनेमरने की आदत भी पैदा हो रही है, जैसे नींद पूरी न कर पाने की भरपाई आम कामकाजी लोग कार्यस्थल पर तरोताजा रहने के लिए एनर्जी ड्रिंक्स आदि लेने का प्रयास करते थे, लेकिन अब नींद न आने से परेशान लोग मैडिकल हस्तक्षेप को महत्त्व देने लगे हैं. यह इस समस्या के प्रति डर भी है और सजगता भी.

मगर कुछ भी हो, इस से देश में स्लीप क्लीनिक्स की बाढ़ सी आ गई है. नींद न आने से ऐसे रोगियों की भी संख्या बढ़ती जा रही है जिन को पोलीसोमोनोग्राम कराने की जरूरत पड़ती है. यह टैस्ट लगभग 15 से 20 हजार रुपए में होता है और इस टैस्ट से मालूम होता है कि नींद क्यों नहीं आ रही.

नींद की बीमारी से छुटकारा पाने के लिए विशेषरूप से तैयार किए गए गद्दों की मांग भी बढ़ती जा रही है. कुछ कस्टम मेड गद्दे, जिन के बारे में अच्छी नींद लाने का दावा किया जाता है, 1.8 लाख से 3.0 लाख रुपए तक में बिक रहे हैं.

ऐसा नहीं है कि नींद न आने के चलते सिर्फ नींद लाने वाले कारोबार ही फलफूल रहे हैं. हकीकत यह है कि कई दूसरे पेशे के लोग भी इस का फायदा उठा रहे हैं खासकर लेखन और इंटरनैट के जरिए अपनी कुशलता बेच कर पैसे कमाने वाले लोगों को इस से जबरदस्त फायदा हुआ है. ऐसे लोग इंटरनैट पर बैठ कर ब्लौगिंग व लेखन कर रहे हैं. अपनी विशेषज्ञता और कुशलता को दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक ले जा रहे हैं जिस से इन्हें भरपूर आर्थिक फायदा हो रहा है और वे बड़े मजे से कह रहे हैं जो जागत है सो पावत है…

इसलिए नहीं आती नींद

हम में से ज्यादातर लोग जानते हैं कि भरपूर नींद लेना स्वास्थ्य के लिए जरूरी है. बावजूद इस के, हम इसे अमलीजामा नहीं पहनाते. इस के लिए कभी पसंदीदा टीवी सीरियलों को दोषी मानते हैं तो कभी दोस्तों को और कभी फेसबुक में चैटिंग की लत को. हम खुद को इस बात के लिए दोषी कम ही ठहराते हैं कि अनुशासन के साथ हम नींद हासिल करने कोशिश नहीं करते, लेकिन नींद न आने या नींद न मिलने का रोना जरूर रोते हैं.

–       बेहतर नींद पाने के लिए अगर आप नींद की गोलियां लेते हैं तो उन्हें सोने से 1 घंटा पहले लें या जागने से 10 घंटे पहले. इस से दिन में होने वाले आलस से बचे रहेंगे.

–       सोने से पहले कोई रिलैक्स करने वाली ऐक्सरसाइज तो हम करते नहीं, ऊपर से आइस्क्रीम, डेजर्ट्स या गरम कौफी पीते हैं. इस से नींद में खलल पड़ता है. बेहतर है हलकीफुलकी ऐक्सरसाइज करें लेकिन इतनी मेहनत न करें कि थकान महसूस हो.

–       सोने से पहले डरावनी फिल्में, झकझोर देने वाली डौक्यूमैंट्रीज न देखें, न ही उथलपुथल मचा देने वाली कहानियां पढ़ें. इन से नींद प्रभावित होती है. बहुत प्रतिस्पर्धी खेलों को भी देखने से बचें.

–       शाम को कैफीन का सेवन न करें.

–       बिस्तर में बैठ कर किताब न पढ़ें.

–       नींद लाने के लिए शराब का सेवन न करें.

–       खाली पेट या बहुत ज्यादा खा कर सोने के लिए न जाएं.

–       दूसरे व्यक्ति की नींद की गोलियां न खाएं. बिना डाक्टर की सलाह के नींद की गोलियां न लें.

–       दिन में ज्यादा न सोएं.

–       अपने शरीर को सोने का आदेश न दें. ऐसा करने से आप का शरीर व मन अधिक सतर्क हो जाता है.

–       अगर आप बिस्तर पर लेटने के बाद 20-30 मिनट जागे रहते हैं तो दूसरे कमरे में जाएं, किसी खामोश गतिविधि में शामिल हों जैसे पढ़ना या टैलीविजन देखना और जब नींद आने लगे तो वापस बिस्तर पर लौट आएं. रात में जितनी बार भी ऐसा करने की जरूरत पड़े, करें.

–       अच्छी नींद के लिए तनावमुक्त रहना भी जरूरी है. इसलिए

जो बातें आप को तनावग्रस्त कर सकती हैं उन से बचें और अगर जीवन में कोई तनाव उत्पन्न करने वाली समस्या है तो उस का समाधान करने का प्रयास करें.

कैसे पाएं अच्छी नींद

संपन्नता कई किस्म की होती है. भरपूर नींद मिलना भी स्वास्थ्य के नजरिए से संपन्न होना ही है. इस बात की गांठ बांध लें कि अच्छी नींद का अर्थ केवल आंखें बंद कर लेना भर नहीं है. अच्छी नींद में शामिल है शरीर को आराम मिलना व ऊर्जा स्तरों को फिर हासिल करना.

नींद का स्वभाव चक्रात्मक होता है. आमतौर पर मस्तिष्क 2 प्रकार की नींदों के दौर से गुजरता है. ये दोनों दौर तकरीबन 90 मिनट में 5 चरणों से संपन्न होते हैं. यही नींद की गुणवत्ता तय करते हैं. इस पूरी प्रक्रिया में 2 नींदें संपन्न होती हैं. रैपिड आई मूवमैंट स्लीप (आरईएम) और नौन रैपिड आई मूवमैंट स्लीप (एनआरईएम). यहां इन चक्रों की गहराई में जाने की जरूरत नहीं है, बस समझने की बात यह है कि अच्छी आरामदायक नींद के लिए क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए.

–       रोजाना सोने का समय निश्चित करें और उसी समय पर सोएं व जगें.

–       जैसे स्वस्थ रहने के लिए नियमित ऐक्सरसाइज जरूरी है उसी तरह अच्छी, खुशनुमा व गुणवत्तापूर्ण नींद के लिए भी नियमित ऐक्सरसाइज जरूरी है, खासकर यह सुबह की जानी चाहिए. नियमित ऐक्सरसाइज करने से आरामदायक नींद मिलने के साक्ष्य मौजूद हैं.

–       अच्छी नींद के लिए हवा, पानी और सूरज की रोशनी बहुत जरूरी है. दोपहर के बाद धूप का आनंद लें. इस से भी भरपूर नींद आती है.

–       बैडरूम में आरामदायक तापमान, शांति व अंधेरा रखें.

मेरी ननद का अफेयर चल रहा है, बताएं कि मैं क्या करूं ?

सवाल

मेरे पति का 5 साल पहले देहांत हो चुका है. उस के बाद से मुझ पर ही मेरे 2 बच्चे, मेरी ननद व सास की जिम्मेदारी है. मैंने हर परिस्थिति का डट कर मुकाबला किया. लेकिन मुझे 1 माह पहले ही पता चला है कि मेरे पड़ोस में रहने वाले लड़के से मेरी ननद का अफेयर चल रहा है, जिस के कारण मैं काफी परेशान हूं, जबकि उस लड़के का घरपरिवार व खुद वह काफी सुलझा हुआ है. समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं ? कृपया सलाह दें.

जवाब

जिंदगी में वही इंसान कुछ कर गुजरता है जो मुसीबतों का सामना कर के आगे बढ़ना चाहता है. अगर आप भी अपने पति के देहांत के बाद हिम्मत हार कर बैठ जातीं तो आप का पूरा घर बिखर चुका होता, लेकिन आप ने ऐसा नहीं किया. तो फिर अब इतनी सी बात से डर कैसा.

सोचिए, आप पूरी जिंदगी तो अपनी ननद को घर पर बैठा कर नहीं रख सकतीं. एक न एक दिन तो आप उस के लिए हमसफर ढूंढ़ कर उसे विदा करेंगी ही, तो फिर इस काम में देर कैसी.

जब आप खुद जानती हैं कि वह परिवार व लड़का ननद के लिए सही है, ऐसे में आप सोचिए नहीं, बल्कि सास से बात कर के दोनों परिवार आमनेसामने बैठ कर बात करें और अगर सब सही लगे तो 2 प्यार करने वालों को मिलवा दें. नए रिश्ते जुड़ने से आप की जिंदगी में भी खुशियां आएंगी.

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चुनाव तक ही निलंबित रहेगा कुश्ती संघ?

केंद्रीय खेल मंत्रालय ने कहा है कि डब्ल्यूएफआई के नवनिर्वाचित अध्यक्ष संजय सिंह के अंडर-15 और अंडर-18 ट्रायल गोंडा के नंदिनी नगर में आयोजित कराने की घोषणा नियम के खिलाफ है. इस कारण कुश्ती संघ की नवनिर्वाचित कार्यकारिणी को निलंबित कर दिया गया है. इस के साथ ही नए संघ के चुने जाने के बाद इस के लिए गए सभी फैसलों को भी रद्द कर दिया गया है.

डब्ल्यूएफआई को सस्पैंड किया गया है. खेल मंत्रालय के अगले आदेश तक यह जारी रहेगा. सरकार के अगले आदेश में अगर निलंबन खत्म हो जाएगा तो यही कार्यकारिणी प्रभावी हो जाएगी.

सवाल उठ रहा है कि क्या लोकसभा चुनाव तक इस विवाद को हाशिए पर डालने के लिए यह फैसला लिया गया है? कुश्ती संघ की नवनिर्वाचित कार्यकारिणी सरकार के फैसले के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाने जा रही है, जिस में सरकार ने अलोकतांत्रिक फैसला करते हुए लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई कुश्ती संघ की नवनिर्वाचित कार्यकारिणी को निलंबित कर दिया है.

कांग्रेस नेता उदित राज ने इस मसले पर कहा कि खेल मंत्रालय का फैसला आंखों में धूल झोंकने के समान है. यह कैसे हो सकता है कि जिस पर आरोप है उसे गिरफ्तार तक नहीं किया गया है. साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया के कारण सरकार पर दबाव बढ़ा है लेकिन उन्हें न्याय अब तक नहीं मिला है.

सरकार ने चुनाव प्रणाली को निलबंन का आधार नहीं बनाया है. केवल नवनिर्वाचित कार्यकारिणी अंडर-15 और अंडर-18 ट्रायल गोंडा में कराने को गलत मानते हुए निलंबन का कदम उठाया है. इस से साफ है कि सरकार ने बड़ी चतुराई दिखाते हुए अपनी इमेज को बचाने के लिए कुश्ती संघ का निलबंन किया है.

सरकार ने विवाद का कारण बने बृजभूषण शरण सिंह, जो भाजपा के सांसद है, से यह कहलवा दिया कि वे कुश्ती संघ की राजनीति से संन्यास ले रहे हैं. इस से खिलाड़ी भी खुश  हो गए हैं.

क्या बोले बृजभूषण शरण सिंह?

कुश्ती संघ के पूर्व प्रमुख और बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने कहा, “अब मेरा कुश्ती से कोई लेनादेना नहीं है. मैं ने 12 साल तक कुश्ती के लिए काम किया. मैं ने अच्छा काम किया या बुरा काम किया, इस का मूल्यांकन समय करेगा. मैं ने एक तरह से कुश्ती से संन्यास ले लिया है. कुश्ती से अपना नाता मैं तोड़ चुका हूं. अब जो भी फैसला लेना है, सरकार से बात करना है या कानूनी प्रक्रिया का सहारा लेना है, इस पर फैसला फैडरेशन के चुने हुए लोग लेंगे. लोकसभा का चुनाव आ रहा है. इस के अलावा भी मेरे पास कई और काम हैं.”

फौरी है खुशी

इस लड़ाई को लड़ने वाली महिला पहलवान साक्षी मलिक ने कहा है कि उन की लड़ाई सरकार से नहीं, बृजभूषण शरण सिंह से है. साक्षी मलिक के विरोध के बाद बजरंग पुनिया ने भी पद्मश्री सम्मान वापस किया. बजरंग पुनिया का कहना है कि, “सरकार का यह फैसला बिलकुल ठीक फैसला है. हमारी बहनबेटियों के साथ जो अत्याचार हुआ, जिन लोगों ने किया उन लोगों को फैडरेशन से हटाना चाहिए.”

कुश्ती खिलाड़ी विनेश फोगाट ने कहा, “यह अच्छी खबर है. इस पद पर कोई महिला आनी चाहिए ताकि यह संदेश जाए कि महिलाएं आगे बढ़ें. जो भी हो, कोई अच्छा आदमी आना चाहिए.”

सवाल उठता है यह तो तब होगा जब कुश्ती संघ बर्खास्त हो और नए चुनाव कराए जाएं. सरकार की तरफ से इस तरह का कोई भरोसा नहीं दिलाया गया है. इस से साफ है कि सरकार को महिलाओं और इन पहलवानों की कोई चिंता नहीं है. विनेश फोगाट ने जो कहा, यह मांग महिला पहलवान पहले से करती आ रही थीं.

क्यों की बृजभूषण ने संन्यास की घोषणा?

कुश्ती संघ की राजनीति से बृजभूषण शरण सिंह के संन्यास की घोषणा के पीछे की साइड स्टोरी है. पिछली 18 जनवरी से बृजभूषण शरण सिंह और महिला पहलवानों के बीच लड़ाई कोर्ट, पुलिस, मीडिया, सरकार और कुश्ती संघ तक हर जगह चल रही है. जब कुश्ती संघ के नए चुनाव हुए उस में बृजभूषण के करीबी संजय सिंह की जीत हुई. उस के बाद बृजभूषण गुट के लोगों ने इसे अपनी जीत मानी. ‘दबदबा कायम है’ का नारा दे कर बृजभूषण के लोगों ने प्रचार किया. इस ने महिला पहलवानों के लिए आग में घी का काम किया.

महिला पहलवान खासकर साक्षी मलिक और विनेश फोगाट करो या मरो की हालत पर उतर आईं. इन का साथ बजरंग पुनिया ने दिया. मोदी सरकार का विरोध कर रहे लोगों ने बृजभूषण को हथियार बना कर मोदी सरकार पर हमला करना तेज कर दिया. ऐसे में पीएमओ सक्रिय हो गया. उसे लगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में यह मुददा गले की फांस बन सकता है, अयोध्या की चमक फीकी हो सकती है क्योंकि अयोध्या और गोंडा अगलबगल हैं. इसी के आसपास के जिलों में बृजभूषण की राजनीति चलती है. बृजभूषण भाजपा के सांसद है और उन के बेटे प्रतीक भूषण विधायक हैं.

पीएमओ ने बचाव के लिए 2 फैसले किए. पहला, बृजभूषण अगर कुश्ती संघ की राजनीति करना चाहते हैं तो सांसद के पद से इस्तीफा दें. दूसरा, सांसद बने रहना है तो कुश्ती संघ से नाता तोड़ें. पीएमओ की पहल पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा से बृजभूषण की बातचीत हुई. उस के बाद बृजभूषण ने कुश्ती संघ की राजनीति से नाता तोड़ने की घोषणा कर दी.

महिला पहलवान यही चाहती थीं. आने वाले दिनों की राजनीति को देखते हुए बृजभूषण के लिए भी यही सब से मुफीद था. अगर वे सांसद पद से इस्तीफा देते तो उन के सामने कोई रास्ता नहीं था. उन को भाजपा छोड़नी पड़ती. अब समाजवादी पार्टी और कांग्रेस भी उन को टिकट नहीं देतीं और निर्दलीय चुनाव लड़ना समझदारी न होती.

जाहिर तौर पर डब्ल्यूएफआई को एक समय के बाद बहाल भी किया जा सकता है. बृजभूषण शरण सिंह भाजपा की मजबूरी हैं. लोकसभा चुनाव में इमेज बनाने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया है. उस के खत्म होते ही डब्ल्यूएफआई को बहाल किया जा सकता है. बृजभूषण भले ही कुश्ती की राजनीति से संन्यास ले चुके हों पर उन का प्रभाव लंबे समय तक वहां बना रहेगा. बृजभूषण 3 पीढ़ियों से पहलवानी कर रहे हैं. कुश्ती उन के खून में बस गई है. इस से उन का अलग होना संभव नहीं है.

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